मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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शायद हां ...

नहीतो मेरी इतनी छोटी छोटी चिजोंपर वो भला क्यो ध्यान देती...

उधर दिमागमें विचारोंका सैलाब चल रहा था और बाहरी तौर पर वह अपने थैलीमें अपना सामान भरने लगा था. एक हाथसे थैली पकडकर दुसरे हाथसे सामान भरनेमें उसे दिक्कत हो रही थी.

" लाओ जी मै पकडाए देती हू थैली " कहते हूए मधुराणीने अपने दोनो हाथोसे थैली पकड ली.

थैलीका एक तरफ़का हिस्सा गणेशने पहलेसेही पकडा हूवा था. उस हिस्सेको मधुराणीने इस तरहसे पकडा की गणेशका हाथभी उसके हाथमे आ जाएं. अचानक मधुराणीने उसका हाथ अपने हाथमें लेनेसे गणेश हडबडा गया. उसने हडबडाहटमें अपना हाथ झटसे पिछे खिंच लिया. लेकिन अगलेही क्षण उसे अपने गल्तीका अहसास होगया.

मै भी कितना पागल ... अपना हाथ पिछे खिंच लिया ...

कितना अच्छा मौका था. ...

दैव देता है और कर्म ले जाता है ... लोग झुट नही कहते ...

मुझे थैलीका दुसरा हिस्सा फिरसे पकडना चाहिए ...

वह थैलीका मधुराणीका हाथ रखा हुवा हिस्सा पकडनेके लिए मन मन निश्चय करने लगा था. लेकिन उसकी हिम्मत नही बन रही थी.

गणेशकी वह हडबडाहट देखकर मुस्कुराते हूए मधुराणी बोली , " बाबूजी आपतो एकदम वो ही हो ... आपके बिवी का न जाने कैसा होवे रहे "

अरे क्या कर रहा है ? ...

वह तो सिधा तुम्हारे मर्दानगीपर घांव कर रही है ...

गणेशने पक्का निश्चय कर मधुराणीका हाथ रखा हुवा हिस्सा पकडनेकी चेष्टा की. लेकिन तबतक थैलीमें पुरा सामान डालना हो गया था.

" अब और कुछ डालना है ... थैलीमें " गणेशने उसका थैलीके साथ पकडा हुवा हाथ देखकर मजाकमें कहा.

" नही .. बस इतनाही " कहकर गणेशने फिरसे अपना हाथ पिछे खिंच लिया.

मधुराणी नटखटसी फिरसे मुस्कुराने लगी. गणेश शर्माकर लाल लाल हो गया था. उसे अपना खुदकाही गुस्सा आ रहा था. की वह ठिकसे इतने बडे मौके का फायदा नही ले पा रहा था. इसलिए उसका चेहरा औरही लाल हो गया था. उस अवस्थामें उसने झटसे थैली उठाई और तेजीसे अपने कमरेकी तरफ़ निकल पडा.

कमरेका ताला खोलकर अंदर जानेसे पहले उसने एकबार पलटकर मधुराणीकी तरफ़ देखा. वह अबभी उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुरा रही थी. न जाने क्यो उसे क्या लग रहा था - कही वह यह तो नही सोच रही की , '' कितना बेवकुफ़ है ... कैसा होगा इसका.'
वह झटसे कमरेंमें घुस गया. दरवाजा बंद करनेके लिए पलटनेकीभी उसकी हिम्मत नही बनी. कमरेमें आतेही सिधा वह बाथरुममें चला गया. लोटेसे मटकेका ठंडा पाणी निकालकर चेहरेपर छिडका.

क्या कर रहा है तू ...

वेवकुफ़ के जैसा ...

वह सिग्नलपे सिग्नल दे रही है ....

और तूम हो की बस ढक्कनके जैसे कुछ नही कर रहे हो ....

नही कुछतो करना चाहिए ...

गणेशने अपना जबडा कस लिया.

मैने अपने आपपर बहुत संयम रखनेका प्रयत्न किया. ...

लेकिन मधुराणी तुम ही हो की जो मेरे प्रयत्नको यश मिलने देना नही चाहती ...

अब मै हार गया हूं ...

पुरी तरह हार गया हूं ...

अब इसके आगे जो भी होगा उसके लिए मै जिम्मेदार नही होऊंगा ...

उसके लिए मधुराणी तुम ही पुरी तरहसे जिम्मेदार होगी ...

ऐसा विचार मनमें आते ही गणेशको हल्का हल्का महसूस होने लगा था. उसके अंदरके अपराधके भाव पुरी तरहसे नष्ट हो गए थे.

पाटिलकी हवेली पर हमेशा चहल-पहल का माहौल बना रहता था , दरअसल यह एक पुरानी हवेली थी जो छोटी पहाड़ी पर बनी हुई थी . इसके चारों ओर एक दीवार बनी हुई थी और पहरे के लिए चार पाँच जगह इसी दीवार पर सुरक्षा चौकियाँ बनी हुई थी, जिसमें चौकीदार पहरा दिया करते थे . आज कल वह चौकियाँ खाली रहतीं थी , क्योंकि अब वैसी सुरक्षा की ज़रूरत नहीं थी . आज हवेली में खास बैठक बुलाई गयी थी . एक एक कर गाँव वाले आने लगे . पाटिलकी हवेली से बुलावा गाँववालों के लिए बड़ी इज़्ज़त की बात होती थी . हालाँकि बैठक में गिने-चुने गाँववालों को ही बुलाया गया था. लेकिन बैठक में क्या चर्चा होती है इस बात को जानने कई गाँव वालों ने आस पास ही डेरा जमाया हुआ था , जिसे जहाँ जगह मिली वह वहीं बैठ गया .

बैठक में हिस्सा लेने वाला शख्स बड़ी शान से सीना चौड़ा कर उस जमावड़े को बड़ी हिकारत से देखते हुए हुए हवेली के अंदर जा रहा था . बैठक के दौरान हवेली से बाहर किसी वजह से जो भी आदमी आता था उससे 'ताज़ा हाल' जानने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता था और वह बाहर आया हुआ आदमी ना - नुकुर करते भाव खाते हुए लोगों को अंदर की खबर देता था .

गणेश जैसे ही हवेली के करीब पंहुचा उसने घड़ी में देख कर इस बात की तसल्ली करना चाही कि कहीं उसे देर तो नहीं हो गयी , उसने देखा तय समय को ५ मिनट बाकी थे . जैसे ही उसका ध्यान आस पास के जमावड़े की ओर गया उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा . उसने सोचा -

मेरे यहाँ आने से पहले ही यहाँ बैठक तो शुरू नहीं हो गयी ...

लेकिन बैठक को तो वक्त है...

या बैठक शुरू होने के पहले ही कुछ हो गया .....

गणेश ने सरसरी निगाह से लोगों के जमावड़े का जायज़ा लिया. सबकी कौतूहल भरी आँखें उसी को देख रहीं थी .

अब भीतर जा कर ही बात पता चलेगी....उसने खुद से मन ही मन कहा .

गणेश ने जल्दबाज़ी में हवेली की ओर कदम बढ़ाए , लेकिन भीतर जाने के लिए दो-तीन रास्ते थे. वह ठिठक गया .अब इनमें से किस रास्ते से भीतर जाया जाए ? वह इस बात को सोचते हुए उसने आस पास नज़रें दौड़ाई , तभी पाटिल साहब का नौकर उसे दिखाई दिया .

" यहाँ इस तरफ ..." उस नौकर ने एक जगह इशारा करते हुए कहा.

गणेश उसके पीछे पीछे चल दिया , गणेश उसकी ओर देख कर मुस्कुराया . गणेश पहली बार इस हवेली में आया था. हालाँकि उसकी और पाटिल साहब की कई दफ़ा मुलाकात हो चुकी थी लेकिन वे सभी या तो आफ़िस में या गाँव के किसी आयोजन में हुई थी .वह नौकर घुमावदार रास्ते से होता हुआ गणेश को हवेली के उपरी हिस्से में ले गया , उपर आलीशान बैठक थी जहाँ गाँव के २-४ रसूखदार लोग बैठे हुए थे . गणेश को आते देख उनमें दुआ सलाम हुई .पाटिल और सरपंच का आना अभी बाकी था .

गणेश बैठक के एक कोने में जा कर बैठ गया . बाकी लोग बाग बीड़ी , पान, चिलम , तंबाखू का मज़ा लेने में मशगूल थे और साथ ही साथ खेती किसानी की बातें हो रहीं थी . गणेश का उन लोगों में जा कर बात करने का जी नहीं हुआ, इसलिए एक तरफ वह अकेला ही बैठा रहा . उसके बगल में ही दूसरे कोने में एक बूढ़ा गाँववाला बैठा हुआ था . उस गाँववाले ने कमीज़ के नीचे हाथ डाल कर कुछ टटोला और बनियान के भीतर बनी ख़ुफ़िया जेब से खाकी कपड़े की छोटी से गठरी बाहर निकाली. उसने गठरी की गाँठ हौले से खोली. बड़े आराम से चिलम की सफाई की . चिलम के पिछवाड़े एक छोटी गोली जैसी कोई चीज़ थी , उसने वह चीज़ बाहर निकाली और उसे साफ किया और वापिस चिलम के पिछवाड़े डाल दिया. शायद वह चीज़ चिलम पीते हुए तंबाखू को मुँह के अंदर जाने से रोकने का काम करती थी , इसलिए उसे पिछवाड़े डाला जाता होगा. इसके बाद उसने उस गठरी से कपड़े की एक और छोटी गठरी निकाली . गणेश उस बूढ़े की हरकतों पर बारीकी से नज़रें जमाए हुए था . उसने उस छोटी गठरी की गाँठ खोली उसमें मौजूद तंबाखू को उसने चिलम में दबा कर भर दिया . अब वह दोबारा गठरी में कुछ ढूँढने लगा. उसने उसमें से एक सफेद पत्थर का टुकड़ा निकाला उसे गाँव वाले 'चकमक पत्थर' कहते थे. और चकमक पत्थर के टुकड़े खेतों में या झरने के किनारे बालू में बहुतायत में मिलते थे . उस पत्थर को वैसे ही हाथ में पकड़े हुए गठरी से उसने कोई की-चेन जैसी चीज़ बाहर निकाली उस चीज़ के एक सिरे पर असल में लोहे की एक छोटी मोटी पट्टी थी और दूसरे सिरे पर उस पट्टी से बँधी हुई रेशमी चीज़ थी. उस रेशमी चीज़ को बीचों बीच काट कर एक छोटी सी डिबिया बनाई गयी थी , उस डिबिया में रूई रखी गयी थी . गणेश ने कभी किसी से इस बारे में पूछा था तो उसे बताया गया वह रूई कपास के बीजों के बजाए किसी जंगली पौधे के बीजों से बनाई गयी थी, जिसे वह लोग 'कफ' कह कर पुकारते थे . उस बूढ़े ने उस रेशमी डिबिया से थोड़ा कफ निकाल कर सफेद पत्थर के सिरे पर उसे लगाया और उस छोटी लोहे की पट्टी से उस पत्थर को जोरों से घिस कर , कफ जलाने ले किए वह चिंगारी पैदा करने लगा. दो तीन बार की गयी असफल कोशिशों के बाद चौथी बार उस कफ ने आग पकड़ ली . उसने वह जलता हुआ कफ चिलम के मुंहाने रखा और उसके पिछवाड़े एक छोटे से कपड़े की चिंदी ठूंस कर वह चिलम पीने लगा , जैसे जैसे वह जोरों से कश लेता था चिलम के मुंहाने पर उसे तंबाखू अंगारों की तरह लाल दिखता था . दो तीन लंबे कश ले कर बड़ी शान से वह बूढ़ा मुँह से धुआँ छोड़ रहा था .

उसे अहसास हुआ की गणेश उसे काफ़ी देर से अपलक देखे जा रहा है अगली दफे दो चार लंबे कश ले कर धुआँ छोड़ते हुए उसने चिलम वाला हाथ गणेश की ओर बढ़ा कर बोला " पीवेगा ?"

गणेश ने अजीब सा मुँह बना कर हाथ के इशारे से मना किया.

" नाही? .... अरे बबुआ का नसा है इसका ...बहुत बढ़िया .... उ बीड़ी , सिगरेट मा कौनो दम नाही ... एक कस ले के तो देख"

बूढ़े ने दोबारा मिन्नत की.

"मुझे नही चाहिए ... " कहते हुए गणेश ने अपनी नज़रें उस बूढ़ें से हटा कर दूसरी ओर कर लीं .
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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गणेशकी नज़र बाहर खुले में बालकनी की तरफ गयी . वह उठ कर बालकनी में आ गया उसने आस पास देखा , यह हवेली गाँव की सबसे उँचाई पर स्थित थी , लिहाजा गाँव के सभी घर उँचाई से खिलौनों की भाँति दिख रहे थे. उन घरों के आस पास खेतों की हरियाली आँखों बड़ी ठंडक दे रही थी. और उस हरियाली के बीचों बीच सर्पिले घुमावदार मोड़ ले कर झरना कल कल करता बह रहा था . चारों ओर उँचे उँचे पहाड़ और टीले के बीच में बसे हुए गाँव की उस कुदरती खूबसूरती को वह निहार रहा था .

लोगों में मची हलचल से वह अपनी सोच से बाहर आया , उसने पीछे मुड़ कर देखा . उस दीवानखाने में भारी भीड़ जमा हो गयी थी लेकिन अभी भी पाटिल साहब और सरपंच का कोई अता - पता न था . वह वापिस दीवानखाने में आया , उसकी जगह अभी भी खाली थी वह वहाँ जा कर बैठ गया. तभी गाँव के स्कूल मास्टर मते गुरु जी का आना हुआ , लोगों ने उनका अभिवादन किया , उन्होने बैठने से पहले पूरे दीवानखाने का जायज़ा लिया और कोने में बैठे हुए गणेश की ओर रुख़ कर लिया . इंसानी फ़ितरत भी बड़ी अजीब होती है, इतनी भीड़ में भी अपने बैठने लायक आरामदायक जगह तलाश कर ही लेता है . उन्होने सोचा....

कोने में बैठा हुआ गणेश भी सरकारी मुलाज़िम है और मैं भी सरकारी मुलाज़िम हूँ , हम दोनो की खूब जमेगी ...

उन्होने गणेश को नमस्ते की और उसके बगल में आ कर बैठ गये.

"और गणेश जी सब कुशल मंगल ? बड़े दिनो बाद मुलाकात हुई" उन्होने बैठे हुए गणेश को थपकी देते हुए कहा .

" जी हाँ ... हमारा आपके स्कूल की तरफ आना नहीं होता और आपका हमारे दफ़्तर में .... फिर ऐसे खास मौकों पर ही हमारी मुलाकात होती है " गणेश ने जवाब देते हुए कहा .

" जी , यह भी खूब कही आपने " मास्टर जी ने कहा.

तभी सरपंच का आगमन हुआ और दोबारा दुआ सलाम का दौर चल निकला . कुछ लोग उनका हाल चाल पूछने उनकी ओर चल पड़े .

" आ गये सब के सब ? " सरपंच जी ने जानना चाहा . उन्होने ऐसा कर लोगों को अपने आने की खबर दी .

" करीब करीब सब आ गये , सिर्फ़ पाटिल साहब का आना बाकी है.... में यूँ गया और यूँ उनको ले कर आया" उनका हाल चाल पूछने आया एक आदमी बोला .

उसकी और गौर न कर सरपंच साहब बैठक के बीचों बीच आए और रसूखदार लोगों में जा कर बैठ गये .

" शामराव जी सब ख़ैरियत ?" सरपंच ने शामराव के बगल में बैठते हुए पूछा.

" का कहें हुजूर .... अब के बरस बड़ी हिम्मत कर बुआई करा है अब देखे हमरा किस्मत में का गुल खिलना लिखा है " शामराव ने जवाब दिया .

" अरे कौनो चिंता का बात नाही अपने बड़ा काम किया आपको तो इनाम मिलना चाहिए सरकार से ... हौसला रखिए सरकारी अमले के पास ज़रूर कोई योजना होगी" सरपंच ने शामराव को तसल्ली देते हुए कहा और गणेश की ओर मुखातिब होते हुए बोले " अरे गणेश जी कोई नयी योजना है का? "

" हाँ हैं न , इस बारे में विस्तार से बात करने के लिए मैं एक बैठक बुलाना चाहता हूँ " गणेश ने जवाब दिया.

" अरे तो भई जल्दी करो.... कब लेओगे ?.... बताओ?" सरपंच ने लगेहाथ पूछ ही लिया.

" जब भी आप कहें" गणेश ने कहा.

"फिर ई शुक्रवार का दिन कैसा रहेगा ?" सरपंच ने पूछा " क्यों शामराव जी ?"

" हाँ हुजूर चलेगा" शामराव ने जवाब दिया .

" मुझे मंजूर हैं , मैं नोटिस तैयार कर चपरासी के ज़रिए सब तक पंहुचाता हूँ ..." गणेश बोला.

" अरे चपरासी का कौनो ज़रूरत नाही ... सब इधर ही मौजूद हैं .... आप तो बस वखत बताओ" सरपंच ने कहा.

"सुबह दस बजे कैसा रहेगा" गणेश ने सरपंच से पूछा .

" चलेगा ..... क्यों गाँववालों ?" सरपंच ने बैठक में मौजूद अन्य गाँववालों की राय जानना चाही .

" हाँ.. हाँ... चलेगा.. चलेगा" भीड़ में दो चार लोग बोले .

" हाँ तो गणेश जी .. ई तय रहा .. शुक्रवार के रोज सुबह दस बजे " सरपंच ने फ़ैसला सुनाया.

गणेश ने सहमति से गर्दन हिलाई . गणेश को सरपंच जी की हाथों हाथ फ़ैसला करने की अदा बड़ी भाती थी . उसे भला क्या खबर थी कि सरपंच की इसी आदत के चलते गाँव के कई लोगों को मायूसी होती थी , उनकी अक्सर यह शिकायत होती थी कि उनकी राय सरपंच कभी नहीं लेता , और उनकी तरफ से सारे फ़ैसले खुद ही लेता था .

अचानक गणेश को अहसास हुआ कि लोगों की बातचीत की आवाज़ें थम सी गयी .उस वक्त वह बगल में बैठे मास्टर जी से बतिया रहा था . उसने वजह जानने के लिए पीछे मुड़ कर देखा और यह देख कर हैरत में पड़ गया कि बैठक में मौजूद सारे लोग दरवाज़े की ओर एकटक देखे जा रहे थे . लोगों की देखा देखी उसने भी दरवाज़े पर नज़र डाली और वह यह देख कर सन्न रह गया .... चौखट पर मधुरानी खड़ी थी . वह आज सज धज कर आई थी .

वह यहाँ क्यों आई ? क्या वजह हो सकती है ? .....

वह उसी को निहार रही थी.

गणेश को काटो तो खून नहीं . वह सोचने लगा ....

कहीं यह बला मेरे पीछे तो यहाँ तक नहीं पंहुच गयी?

इधर मधुरानी ने चौखट पर खड़े खड़े ही लोगों पर एक नज़र डाली . सरपंच जी को देखते ही उसने उन्हें राम-राम की. एक बार फिर उसने चारों ओर नज़र धूमाई और इस बार उसकी नज़र गणेश पर आ कर ठहर गयीं . गणेश उसको देख मुस्कुराया . वह गणेश की ओर धीरे धीरे बढ़ने लगी . वह जैसे जैसे पास आती जा रही थी गणेश के दिल की धड़कनें तेज़ होती जा रहीं थी. उसे पसीने छूट रहे थे .

" अरी इहा आओ मधुरानी " सरपंच जी ने उसको पास बैठने के लिए पुकारा .

" ना जी इहा कोने मा ही ठीक है" उसने जवाब दिया.

अब कहीं जा कर गणेश की जान में जान आई.

"यानी की वह इसी बैठक में हिस्सा लेने आई थी. मैं भी न जाने क्या सोच रहा था " गणेश ने मन ही मन कहा.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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गणेश की आँखों के सामने वह दृश्य तैर गया जब बीच बाज़ार एक लफंगें के चिकोटी काटने पर मधुरानी ने उसकी चप्पल से जम कर धुनाई करी थी .

मधुरानी गणेश के एकदम करीब आ कर पालथी मार कर बैठ गयी थी . यह देख गणेश सोचने लगा - यहाँ जगह की कमी के चलते वह यूँ इस तरह मेरे पास आ मुझे छूते हुए बैठी है .... नहीं वह अगर चाहती तो लोगों को तोड़ा खिसकने के लिए कह कर अपने बैठने के लिए जगह आराम से बनवा सकती थी ... लेकिन उसे तो मास्टर साहब और मेरे बीच ही बैठना था .. ज़रा देखूं तो क्या उसका पालथी मास्टर जी को भी छू रही है ? लेकिन यह क्या मास्टर जी से तो वह थोड़े फ़ासले पर बैठी है लेकिन मुझ से तो चिपक कर बैठी है...


गणेश को उसके नर्म जिस्म की छुअन बड़ी अच्छी लग रही थी . वह जानबूझ कर वैसे ही बैठा रहा. बीच बीच में वह चोर निगाहों से आस पास नज़र दल कर यह जानने की कोशिश करता कि कहीं कोई उन्हें देख तो नही रहा . लेकिन मधुरानी तो अपने चेहरे पर मुस्कान लिए ऐसे बैठी थी की शायद ही किसी को गणेश पर शक हो .

यह देख कर उसने चैन की सांस लीं उसने गौर किया कि आस पास के लोग चोर निगाहों से मधुरानी को ही निहार रहे थे कुछ तो इतने बेशरम थे कि खुल्लम खुल्ला उसके बदन को ताक रहे थे .


इधर सरपंच जी का पाटिल साहब की राह देखते देखते बुरा हाल हो गया था " पाटिल साहब अभी तक नहीं आए ? " उन्होने बेसब्री छुपाते हुए कहा.

" पाटिल जी पूजा कर रहे हैं " उनका एक चमचा बोल पड़ा.

"इतनी देर पूजा पाठ ? .... भई किसकी पूजा कर रहे हैं ? हम भी तो सुनें ?" सरपंच जी ने ताना मारा.

लोगों में हँसी की लहर दौड़ गयी.

" जा भैया अंदर जा , ज़रा बतला दे , सब गाँव वाले काफ़ी देर से उनकी राह देख रहे हैं उनसे कहना ज़रा जल्दी करें " सरपंच ने उस चमचे को हुक्म सुनाया.

वह अपनी टोपी पहनते हुए और लंबे लंबे ड़ग भरता दरवाज़े के बाहर निकल गया.

बड़ी देर हो गयी वह बंदा पाटिल जी को बुलाने गया लेकिन वापस नहीं लौटा , सरपंच जी की बेसब्री देख कर एक और आदमी पाटिल जी को संदेसा देने बाहर गया वह भी गायब हो गया . अब लोगों में बातचीत बंद हो गयी , कुछ लोग बेसब्री से इधर उधर चहल कदमी करने लगे . कुछ लोग बीड़ी चिलम सुलगा कर कश लेने लगे कुछ तंबाखू हथेलियों में रगड़ने लगे . सरपंच जी का सब्र अब टूटने लगा था वह बाहर दालान में चल कर आए मगर फिर भी कई लोग अब भी दीवान खाने में मौजूद थे , कुछ वहीं पैर फैला कर बैठ गये.

गणेश वहाँ से हिलने को तैयार नहीं था वह अब भी मधुरानी की नर्म मुलायम छुअन के मज़े ले रहा था . उसने देखा इक्का दुक्का लोग उठ कर बाहर टहलने जा रहे हैं , उसने सोचा उसे भी तोड़ा बाहर घूम आना चाहिए वरना यूँ इस हाल में कोई देखेगा तो ग़लतफहमी हो जाएगी , वह उठने लगा.

" ओ रे गनेस जी किधर जात हो ? आपको भी सिग़िरेट की तलब लगी है का ? " मधुरानी ने उससे पूछा .

गणेश हार कर वैसे ही नीचे बैठ गया तभी लोगों का हुजूम बाहर से अंदर आ गया .

"लगता है पाटिल साहब आ गये " गणेश बोला

" हाँ जी कितनी देर इंतेजार करवाया " मधुरानी परेशान होते हुए बोली .

फिर गणेश की ओर देखते हुए बोली " पर ई अच्छा हुआ आप बैठक में मिल गये वरना मैं कभी की चली जाती " गणेश उसकी ओर देख मुस्कुराया .

बाहर से आए सब लोग जब अपनी अपनी जगह बैठ गये तो आख़िर में पाटिल जी अंदर आए . अंदर आते ही सब को देख उन्होने नमस्ते की फिर बैठक के बीचोंबीच आ कर बाहर खड़े सरपंच जी को पुकारा "राम राम सरपंच जी अंदर आइए , अब बैठक शुरू करते हैं "

सरपंच जी मुड़ कर अंदर आए और उनकी नमस्ते का जवाब दिया थोड़े झुंझलाते हुए वह पाटिल साहब की बगल में आ कर बैठ गये.

" बैठक शुरू की जाए..." मानों पाटिल जी सरपंच की आज्ञा ले रहे हों , सरपंच जी ने पाटिल जी की ओर देख कर गर्दन हिलाई.

बैठक में आए लोगों का जायज़ा लेते लेते उनकी दृष्टि कोने में बैठी मधुरानी पर टिक गयीं

"मधुरानी अरी यहाँ सामने आ कर बैठ " पाटिल जी ने उसे सामने आ कर बैठने को कहा.

"मैने तो आते ही साथ उससे सामने बैठने को कहा था ... लेकिन..." अपनी बात अधूरी छोड़ कर सरपंच जी मधुरानी की ओर देखते बोले.

मधुरानी ने वहाँ बैठे बैठे ही हाथ से उनको इशारा किया कि वह ठीक ठाक बैठी है और बैठक शुरू की जाए .

फिर सभा में नज़र डालते अचानक ही पाटिल जी को कुछ याद आया " ओ गाँववालों ई बार इलेक्सन में दूई सीट महिला के लिए हैं , ई सोच कर हमने मधुरानी को बुलवा भेजा , कम से कम एक सीट का तो फ़ैसला होना चाहिए " पाटिल जी बोले

गणेश को पाटिल साहब की बातों पर गौर कर रहा था , पाटिल जी किसी चालाक राजनेता की तरह बातें बनाने में माहिर थे , पिछले बार जब उसकी उनसे मुलाकात हुई तो उसने जाना की वह बड़ी साफ हिन्दी बोलते थे और बड़े पढ़े लिखे जान पड़ते थे , फिर यहाँ गँवई हिन्दी बोलने की क्या तुक ? शायद लोगों से अपनापन जताने की चाल हो.

" फिर बैठक शुरू करते हैं . " पाटिल जी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा .

" गूंगी का बापू किधर है? " ... "और उस गुँगे का बाप ??" उन दोनो को खोजते हुए पाटिल जी की नज़र कोने में सिमट कर बैठे हुए लोगों में गयी " रे आप लोगन वहाँ काहे बैठे रहे ? इक इस कोने में तो दूजा दूजे कोने मैं , बात का है भई ?" पाटिल साहब ने मजाकिया अंदाज़ में कहा .

लोगों में क़हक़हे लगने लगे.

" अरे यहाँ आइए दोनों के दोनो " पाटिल साहब ने उन्हें सामने बुलाया .

पाटिल जी ने फिर से अपनी नज़रें बैठक में घुमाई और इस बार मास्टर जी और उनके बगल में बैठे गणेश को संबोधित कर बोले " अरे मास्टरजी आप तनिक आगे आइए , गनेस बाबू आप भी , पंडित जी थोडा आगे सरकिये " .

हार कर अब गणेश को वहाँ से उठना ही पड़ा. उसने मधुरानी की तरफ कनखियों से देखा, उसके होंठों पर शरारती मुस्कान थी , गणेश आगे जा कर पाटिल जी के साथ बैठ गया.

"तो सरपंच जी पहले क्या किया जाए ?" पाटिल जी ने सरपंच जी की ओर मुड़ कर पूछा .

" जी अब तो दोनो के बापू तय कर चुके हैं , क्यों भाइयों?" सरपंच जी पांडूरंगराव और रघु की ओर देख कर बोले .

दोनो ने अपनी गर्दन सहमति में हिला दी.

" फिर ब्याह का मुहूरत तय करना चाहिए " सरपंच जी बोले.

" पहले लेन देन का तो तय कर लो" बीच में एक बोल उठा .

"वो भी करेंगे पहले मुहूरत तो तय कर लो" सरपंच जी उसकी बात काटते बोले.

पाटिल जी पंडित की ओर मुखातिब हो कर बोले " अरे पंडित जी ज़रा देख कर बताओ शुभ मुहूरत कौन सा है? "

पंडित जी पंचांग के पन्ने पलटने लगे, फिर कुछ देख कर बोले "तुलसी विवाह के बाद शुभ मुहूरत २६ तारीख को आता है"

"कौन से रोज ?" सरपंच जी पूछे .

"बृहस्पतिवार" पंडित जी जे जवाब दिया .

"यानी के साप्ताहिक बाजार वाले रोज" एक गाँव वाला बोला.

"पंडित जी , दूसरा मुहूरत देखो कोई " सरपंच जी बोले.

गाँव में बृहस्पतिवार के दिन बाजार का था , लोगों की खरीददारी के लिए यह दिन तय था . यदि इस दिन ब्याह होता तो कई लोग बाग शामिल न हो पाते .

पंडितजीने थोड़ी देर और पांचांग के पन्ने उल्टे पुल्टे किए और बोले "अगला मुहूरत उसी महीने की २८ तारीख को आता है .. शनिवार के रोज"

"ठीक है , ब्याह २८ को करना तय कर लो , क्यों भाइयों " सरपंच जी पांडु और रघु की ओर देखते बोले.

गूंगों के बापुओं ने चुपचाप गर्दन हिला दी.
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"२८ तारीख को बात हो गयी पक्की" पाटिल जी ने फ़ैसला सुनते हुए कहा .

" अब लेनदेन की बातें हो जाएँ " एक बंदा उतावला हो कर बोला . शायद उसे गूंगे के बाप ने पहले ही साध रखा था .

पाटिल जी ने पांडुरंग राव को पूछा " क्यों भैया का चाहते हो? "

पांडुरंग राव ने बदहवासी से पाटिल जी को देखा .

तभी गणेश ने देखा पाटिल जीने सबकी नज़रें बचा कर गाँव के डॉक्टर साहब को आँख मार कर इशारा किया .

डाक्टर साहब भी कुछ कहने के उठ खड़े हुए " एक मिनट , ज़रा ठहरिए " सबकी निगाहें डाक्टर साहब की और घूम गयीं वह काफ़ी शर्मीले थे और ऐसी बैठकों में खास बोलना पसंद नहीं करते थे , लेकिन लोग यह जानने को बेकरार हो उठे थे की डाक्टर साहब क्या कहते हैं.

" देखिए ..... ऐसा है , गूंगे और गूंगी की शादी में एक दिक्कत है " डाक्टर साहब गला साफ कर बोले.

"दिक्कत? कैसन दिक्कत? " दो चार लोग हैरत से बोले.

डाक्टर साहब और गंभीर हो गये. लड़की के बाप की यह देख कर हालत पाली हो गयी.

"ज़रा खुल कर बताइए डाक्टर जी " सरपंच जी ने बेताबी से कहा.

दो तीन मिनट यहीं गुजर गये .

"अरे डाक्टर जी कुछ बोलो तो सही " पाटिल जी बेसब्री से बोले "मुँह में दही जमा है क्या?"

" हैं जी ??? म..म..मैं सोच रहा था य.. यहाँ बोलना ठीक रहेगा?" डाक्टर अपना पसीना पोछते हुए बोला .

" अरे ओ डाक्टर , सीधे सीधे बताता काहे नहीं है.... का दिक्कत है ?" गूंगी का मामा कड़क कर बोला.

उसे गूंगी के बाप ने समझा बुझा कर चुप कराया . डाक्टर इधर बेबसी से पाटिल जी की ओर देख रहा था , उसके पसीने छूट रहे थे "अरे बताओ डाक्टर जी घबराईए मत , मैं हूँ न ?" पाटिल ने कहा.

हिम्मत जुटा कर डाक्टर बोला " जी ऐसा है की गूंगा और गूंगी की शादी होती है तो उनके बच्चे भी गूंगे पैदा होंगे , म म मेरा मतलब इस बात की गुंजाइश ज़्यादा है "

बैठक में सबको साँप सूंघ गया .

"उससे कौनो फरक नाही पड़े है" एक आदमी बोला.

"कैसे नाही पड़े है ? एक आदमी पांडुरंग राव के बगल से उठते बोला. शायद वह उनका रिश्तेदार था " इहा इक गूंगे लड़के को पालते पालते ससुरा खून पानी बन गया , अब ब्याह हुआ तो दो गूंगा जोड़ा , और बच्चे भी गुंगे पैदा हुए तो गूंगों की फौज , इन सबको क्या आप संभालेंगे ?"

"उनको हम संभालेंगे , आप उसकी चिंता नाही करो" गूंगी का मामा उठ कर बोला.

"अरे हमार वंश का होगा ? हमरा पोता भी गूंगा ??? ना.. ना... ई हांका मंजूर नाही" दूसरा रिश्तेदार बोला.

"अरे भाई दोनो पार्टी के लोग थोड़ा सब्र करो बैठ जाओ" सरपंच बीच बचाव करते हुए बोले.

"अरे ओ सरपंच !! तू संभालेगा उन गूंगों को ? " लड़के का मामा बोला .

"अरे भाई उसका भी कोई रास्ता निकाल लेंगे , मैं अकेला क्या कर सकता हूँ , पूरे गाँव वालों की मदद चाहिए " सरपंच जी उसको समझाते हुए बोले.

"मतलब ए ही होगा ....की वो गूंगे गाँव की सड़कों पर हाथ फैला कर भीख माँगे हैं.... और आप गाँव वाले उनको भीख देंगे " लड़के का मामा कड़क कर बोला फिर पांडुरंग जी का हाथ पकड़ कर बोला " चलिए जी , यह ब्याह अब न होवे है . अपने बेटे को और भी अच्छे रिश्ते आवे रहे हैं और ई गूंगी से ब्याह रचा कर उसकी जिंदगी खराब नहीं करनी "

" अरे थोड़ा ठंडे दिमाग़ से सोचो भाई , यूँ गुस्सा ना करो अपने बेटे का तो ख्याल करो " गणेश ने बीच बचाव किया .

" आपसे मतलब ? कौन हो जी आप? " लड़के के मामा ने गणेश पर भड़क कर कहा .

" हमारे गाँव के बड़े साहब हैं" एक आदमी ने बताया.

" देखो साहब जी ....अपने काम से काम रखो.... हमारे मामले में टाँग न अड़ाओ , वरना अच्छा नहीं होगा " मामा कड़क कर बोला.

गणेश मन मार कर रह गया .

"चलो जी आप चिंता न करो , हमारे लड़के का ब्याह मैं कराऊंगा वह भी किसी अच्छा छोकरी से , गूंगी बाहरी से नहीं " मामा पांडुरंग जी का हाथ पकड़ कर बोला.

" अरे और आप के छोकरे ने हमारी बेटी की जिंदगी बर्बाद कर दी , उसका का होगा ? " लड़की के मामा ने मोर्चा संभाल लिया.

" हमको उससे कौनो मतलब नाही , तुमसे लड़की संभाली नही जात है , हमारी का ग़लती? तुम्हारी लड़की है ही कुलच्छनी , हमार लड़के पर डोरे डाल कर उसको अपने जाल में फाँस लिया , कलमुंही जाए भाड़ में " लड़के के मामा दरवाज़े से तेज आवाज़ में बोला.

" हरामज़ादे मैं तेरी ज़बान खींच लूँगा " लड़की की तरफ से एक गाँव वाला उठ खड़ा हुआ .

" माधरज़ाद साला ससुर का नाती" लड़की का मामा गुस्से से चीखा " अरे ओ सुदामा , पकड़ इस कुत्ते को , आज इस हरामी की माँ बहन एक करता हूँ " कहते हुए वह लड़के वालों की तरफ लपका .

चारों ओर अफ़रा तफ़री मच गयी. लड़की वाले और लड़के वाले आपस में उँची आवाज़ में चिल्ला चोट करने लगे. कुछ हाथापाई पर उतारू हो गए , चारो और लात घूँसे चल रहे थे , खूब गाली गलौज हो रही थी.

तभी एक तेज रौबदार आवाज़ गूँजी " खामोश!!!! " " सुअर के बच्चों !!!" "हरामज़ादो , यह क्या रंडी बाजार बना रखा है" "निकल जाओ इस घर से , बाहर जा कर जो करना है करो" पाटिल साहब गुस्से में ज़ोर ज़ोर से बोल रहे थे.

पूरी बैठक में खामोशी छा गयी.

" रामू!!!!!" " कहाँ मर गया ससुरा? "

"जी मालिक?" हवेली का एक कारींदा दौड़ा दौड़ा आया , पाटिल जी ने झगड़ने वालों की ओर इशारा कर कहा "उठा कर बाहर फेंक दो इन मधर ज़ाद को"

रामू और उसके साथियों ने तुरंत हुक्म की तामील की वह उन लोगों को धक्के दे कर बाहर निकालने लगे .

गणेश , मधुरानी और अन्य लोग बड़ी हैरत से यह ड्रामा देखे जा रहे थे . बैठक में सबको जैसे साँप सूंघ गया था , केवल बाहर जाने वालों की चप्पल चटखने की आवाज़ आ रही थी .

" माफी चाहता हूँ ..... आप सब आराम से बैठिए " पाटिल जी ने कहा "आज कल तो भलाई का जमाना ही नही रहा"

सरपंच जी भी अब बाहर जाने लगे.

"अरे सरपंच जी तनिक ठहरिए , थोड़ा जलपान करिए फिर बैठक बर्खास्त करते हैं " पाटिल जी बोले।

" आप सब लोग भी बैठिए.... और चाय वाय पी कर जाइए वरना आप लोग कल चर्चा करेंगे कि पाटिल जी ने चाय तक को नहीं पूछा "

अब तक दोनो पार्टी के लोग नीचे पहुँच चुके थे और नीचे से झगड़ने की ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें उपर तक आ रहीं थी.

गणेश जब मधुरानी की दुकान के सामने से गुजरा तो वहाँ ख़ासी भीड़ थी . कल बैठक में हुई बमचक के बाद से वह काफ़ी बेचैन था. लिहाज़ा मधुरानी से बात कर अपनी बेचैनी से छुटकारा पाना चाहता था. मगर लोगों की भीड़ देख कर उससे मिल पाना मुमकिन नहीं था. गणेश ने भीड़ में गर्दन उठा कर मधुरानी की ओर देखा , उनकी नज़रें मिलते ही वह अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराई.

मानों उसकी आँखें उससे कह रही हों ....मेरी मजबूरी को समझो...इन लोगों के होते हुए मै तुमसे कैसे मिल सकती हूँ"

गणेश बेचैनी से उसकी दुकान की तीन चार चक्कर लगा आया, फिर हार कर एक जगह खड़े हो कर सोचने लगा.…

यहाँ चहल कदमी करने से कुछ हासिल नहीं होगा , उल्टा अगर किसी को शक हो गया तो बेकार की मुसीबत गले पड़ जाएगी …

उसने भीड़ में गर्दन उठा कर मधुरानी की ओर देखा और हाथ से "बाद में आने" का इशारा किया . उसकी भी
अपनी आँखों से मूक सहमति पा कर उसने वहाँ से कदम बढ़ाए .

अचानक उसे अजीब सी आवाज़ सुनाई दी " जफ्र आफ़र मैफ़र तुंफ्र राफ्र देफ्र" वह ठिठक कर वहीं बीच रास्ते ठहर गया.

यह तो शायद मधुरानी का ख़ुफ़िया संदेसा है , क्या कह रही थी वह… पिछली बार... उसने अपनी याददाश्त पर ज़ोर डाल कर याद करने की कोशिश की ....अरे हाँ वह फालतू की " फ्र , फ्री" हटाने की बात कर रही थी , क्या मतलब हो सकता है इसका ??? ज से जल्दी ?? आ से आना ?? म से मैं , तु तुम , रा से राह दे से देखना ???"

उसके दिमाग़ में यह बात कौंधी ...."जल्दी आना , मैं तुम्हारी राह देखूँगी" ....
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

अरे वह शायद मुझ ही से बातें कर रही थी , मगर किसी को शक न हो इसलिए अपनी ख़ुफ़िया ज़बान में बोली.... उसने दूर मुड़ कर देखा , मधुरानी उसी को देखती हुई शरारत से मुस्कुरा रही थी , हाय वह उसकी मदहोश करने वाली शराबी आँखें , और दिल पर छुरियाँ चलाने वाली नशीली नज़र , मानों वह अपने आशिक को करीब बुला रहीं हों , गणेश भी उसकी ओर देख मुस्कुराया और अपने कमरे की तरफ बढ़ा.

रास्ते में उसे वही गूंगी लड़की लोटा ले कर खेतों की तरफ जाती दिखाई दी , उसने आस पास देखा उस गूंगे लड़के का कहीं अता पता न था . लेकिन यह उसकी नज़रों से न बच सका क़ि आस पास के लोग भूखी नज़रों से गूंगी के जिस्म को ताके जा रहे थे . उड़ते उड़ते उस तक यह बात पंहुची थी कि उस गूंगे लड़के को उसके घरवालों ने एक कमरे में क़ैद कर रखा था, और सुबह शाम पहरे पर एक क़ारींदा बैठा रखा था. शायद इसलिए वह गूंगी लड़की भी उदास सी लग रही थी , भारी कदमों से वह अपने कमरे में लौट आया.

वहाँ से लौट कर वह बिस्तर पर लेटा और उसकी आँख लग गयी .

अचानक उसकी नींद टूट गयी - दरवाज़ा पर खटखट हुई , वह चौंक कर उठ खड़ा हुआ ....भला इस समय कौन आया होगा ?.... उसने आगे बढ़ कर खिड़की से झाँक कर पता करना चाहा , बाहर अंधेरा छा गया था , उसने मधुरानी के दुकान की तरफ देखा , दुकान में अब कोई ग्राहक न था , मधुरानी भी दुकान में न थी .

शायद यह मधुरानी ही होगी....

वह जल्दी से दरवाज़े के करीब आया और होंठों पर मुस्कान लिए उसने दरवाज़ा खोला . लेकिन यह क्या ? दरवाज़े पर मधुरानी न थी , यह सारजाबाई थी जो खाना ले कर आई थी . चुपचाप उन्होने अंदर आ कर भोजन की थाली रख दी और सुबह की जूठी थाली ले कर चली गयी . अंदर आ कर उसने सोचा "दुकान खुली छोड़ कर मधुरानी न जाने कहाँ गयी होगी" .

गणेश बाहर आया और उसकी नज़रें मधुरानी को इधर उधर खोजने लगीं , उस दिखाई दिया अंधेरी गली के कोने में खड़ी मधुरानी किसी औरत से धीमे धीमे बातें कर रही थी. उस दूसरी औरत ने हाथों में लोटा पकड़ रखा था . अचानक उस औरत की नज़र गणेश की तरफ गयी और ज़रा तेज आवाज़ में अपनी बात ख़त्म करते हुए बोली "अबकी बार मोडे को बड़े डाक्टर को दिखाएँगे ऐसे मेरा मर्द बोला " और जाते जाते बोली " बाद मा बताऊंगी"

उस को जाता देख मधुरानी भी अपनी दुकान की ओर चल पड़ी और रास्ते में गणेश को देख पूछा " तब के वखत आए रहे ?" , गणेश ने बाहर से कमरे का दरवाज़ा बंद किया और वह भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा.

"हे भगवान , कैसे बदमिज़ाज लोग हैं यह , बेकार बखेड़ा खड़ा कर दिया इन गाँववालों ने " गणेश मधुरानी से बतियाते हुए बोला " अच्छी ख़ासी चर्चा चल रही थी सब गुड गोबर कर दिया "

" सादी ब्याह के मामलों में ऐसा ही होवे है बाबू तुम न जानत रहे , कौन मुआ किस बात को ले कब आड़े आ जाए कौनो खबर न रहे " मधु रानी जवाब देते हुए बोली.

कुछ सोच कर गणेश बोला " कुछ भी हो , मुझे तो इसमें उस पाटिल का ही हाथ नज़र आता है "

"उ कैसे ? " मधुरानी ने पूछा.

" तुम भूल गई ? सरपंच जी ने उनको चर्चा करने पर राज़ी किया था , मुझे लगता है पाटिल जी को यह नागवार गुजरा "

" ना ना बाबूजी ... पाटिल भला आदमी है उ बात होती तो उसने अपनी हवेली में उनको बुलावा न भेजा होता " मधुरानी की बात सुन गणेश एक पल सोच में पड़ गया .

इसे पाटिल जी से इतनी हमदर्दी क्यों ? .....
आख़िर इसी पाटिल की जीप तले आकर इसके मर्द ने अपनी जान गँवाई थी .और फिर भी यह उसी की तरफ़दारी करती है , क्या वजह हो सकती है? अब यूँ तो पाटिल के बुलाने पर भी इसको वहाँ जाना नहीं चाहिए था.... हुम्म! इसी से पूछता हूँ ... लेकिन क्या यह वाकई मायने रखता है? .....

फिर वह मधुरानी को जवाब देते हुए बोला " अरे इसी बला को तो राजनीति कहते हैं "

तुनक कर वह बोल उठी " ई राजनीति हमें न मालूम है बाबू ....हम तो बस इतना जानत रहे कि उ पाटिल बाबू मक्कार ना है , दिल का सरीफ़ होवे है , हम कहे देते है .... हमको आदमी की परख करना आवे है , आपको न परखा हमने ? " शरारत से उसकी आँखो में आँखें डालते हुए वह बोली.

"तुम औरतों तो पैदाइशी भोली भली होती हो , खैर मैने पाटिल जी को डाक्टर साहब को इशारा करते हुए देखा है"
गणेश उसकी नज़रें टाल कर बोला.

"जाने दो न बाबू जी उ मुए पाटिल को , काहे उसकी बातें करत हो" वह उठकर उसकी ओर खिसक कर बैठ गई .

"जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ ... अब उस बेचारी गूंगी लड़की का क्या होगा ? अपनी नासमझी और ज़िद के चलते उसके अरमानों का बेदर्दी से कत्ल किया इन लोगों ने . उस लड़की के साथ बहुत ग़लत हुआ कम से कम यह देखकर तुम्हें कुछ तो विरोध करना चाहिए था , लेकिन तुम भी चुप रह गयीं , तुमसे मुझे यह उम्मीद न थी " गणेश झुंझला कर बोला.

उसने मधु रानी की तरफ देखा , यह बात सुनकर उसके चेहरे की रंगत एक पल में बदल गयी . गणेश को महसूस हुआ कि बेकार ही उसने उससे गुस्से में इतनी कड़ी बात कर दी .

"साहब जी" वह संजीदा आवाज़ में दूर कहीं देखते हुए बोली " ई दुनिया में कई सही गलत बातें होत हैं ...ई सब किस्मत का खेल है जो भाग में लिखा है... सो होवे है उ भाग के आगे हमारा तुम्हारा कोई बस न चले है" फिर वह रुककर बोली "आप भी तो उहाँ बोले थे , कौनो फायदा हुआ उ लोगों के सामने मुँह खोल कर ? उल्टा पूरा गाँव के सामने बेइज़्ज़ती हो गयी"

यह सुन कर गणेश सकपका गया.

मधु रानी संभल कर बोली " उ लोगन के सामने मैं भी बोली रही तो मुझे भी डपट देते कि औरतों - लुगाइयो को बीच में बोलना न चाहिए " वह अपनी रौ में बोली चली जा रही थी .

गणेश बीच में बोल उठा " न न मेरा वह मतलब न था " गणेश उसके सामने सफाई देते हुए बोला .

लेकिन उसकी बात को बीच में काटते हुए मधुरानी बोल पड़ी "आप सोचत रहे कि उनका ब्याह हो जाता तो अच्छा रहता , आप लोगन के लगने से कौनो फ़र्क पड़े है ? मुझे भी लागे है कि आपके संग मेरा ब्याह हो जावे तो कितना अच्छा हो "

गणेश का मुँह खुला का खुला रह गया वह ऐसे चौंक उठा मानों उसे बिजली का झटका लगा हो. वह फटी फटी आँखों से मधु रानी को अपलक देखता ही रह गया .

बात को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा "लेकिन मेरा ऐसन सोचने से का होवे है बाबू जी ? .... ई तो किस्मत की बात होवे है"

हे भगवान ! यह मुझ पर डोरे डाल रही है ? क्या यह मेरे गले पड़ने की सोच रही है?..... गणेश सोच में पड़ गया .... बडी चालू चीज़ है यह , मुझे फाँसने की कोशिश कर रही है.… गणेश के पसीने छूट गये .

"बाबूजी" मधुरानी की आवाज़ से उसकी तंद्रा टूटी.
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