मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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" अ.... हाँ ???" रुमाल से अपनी गर्दन और और चेहरे पर पसीने की बूँदें पोछते हुए उसने मधुरानी से कहा "कुछ ? कहा मुझसे?"

उसकी सकपकाहट देख कर मधुरानी की हँसी छूट गयी "बाबू जी" वह मुस्कुराते हुए बोली "तोहार तो पसीने छूटे है" मुस्कुराना जारी रखते हुए उसने आगे कहा " घबडाओं ना बाबूजी , हमार कोई ऐसा वैसा इरादा ना है , एक औरत का घर बार उजाड़ कर हम अपना घर ना बसाना चाहे . आपने का सोचा ?? "

"न..न.. नहीं" खिसियानी हँसी हंसते हुए गणेश बोला , अब भी रुमाल से उसका पसीना पोंछना जारी था.

गणेश की इस हालत के मज़े लेती हुई मधुरानी ठहाका मार कर हँसने लगी " आईने में खुद की सकल देखों बाबूजी , का चेहरा होई गवा है "

आख़िर क्या चाहती है यह औरत ? ....इस पिछड़े हुए गाँव में रहने के बावजूद कितने आज़ाद ख्यालात क़ी है यह .... गणेश मन ही मन विचार करने लगा

"बाबू जी" मधुरानी आगे बोली " आप एही सोचत रहोगे कि कैसी कलमुंही औरत होवे है , इसके ख़सम को उ पाटिल ने अपनी गाड़ी से कुचला , ई की माँग उजाड़ दि फिर भी उ पाटिल की तरफ़दारी करती है"

हद हो गयी यह तो.... गणेश चौंक गया ....इसे कैसे पता मैं क्या सोच रहा हूँ ?.... कहीं यह कोई टोना टोटका तो नहीं करती?.... शायद नहीं , हो- न- हो यह मेरे मन की बात ताड़ गयी , या शायद यह महज एक इत्तेफ़ाक हो....

"मेरा ख़सम बेवड़ा था , दिन-रात सराब के नसे में धुत्त रहता था उ ही हालत में उ ससुरा उ पाटिल जी की गाड़ी के नीचे आया रहा , ई बात में उ पाटिल जी का क्या कसूर ? और ई बात को लेकर हम काहे पाटिल जी से दुस्मनि मोल ले? अब ई तो एही हुआ के पानी में रहकर मगरमच्छ से पंगा लेना" मधुरानी ने कहा .

गणेश टकटकी लगाए उसकी ओर देख रहा था ....इसकी सोच सही है... अगर इसने पाटिल साहब से पंगा लिया होता तो वह इसका इस गाँव में जीना हराम कर देता.... गणेश वापिस सोच में डूब गया .

"बाबूजी" अबकी बार उसकी बाँहों को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से उसे हिलाते हुए मधुरानी बोल उठी "आपको ई बीच बीच में खोने की न जाने कैसी अजीब बीमारी होवे है"

उसके नर्म , मुलायम हाथों की छुअन से उसके सारे बदन में रोंगटे खड़े हो गये वह फिर अपनी सोच में डूब गया.
अब इसकी बातें कुछ कुछ समझ में आने लगी है , शायद यह भी मेरे जसबातों को समझती है....

वह उसकी खूबसूरती को अपनी आँखों से निहार रहा था , उसे ताक रहा था मानों उसके चेहरे का नूर अपनी आँखों से पी जाना चाहता हो.


आज बृहस्पतिवार था , बृहस्पतिवार को गाँव में साप्ताहिक हाट - बाजार लगा करती थी . सुबह सवेरे ही गणेश आफ़िस जा कर आया , आज कुछ खास काम भी नहीं था, लिहाज़ा उकता कर वह बाजार की तरफ चल दिया . सब्ज़ी तरकारी वालों की दुकानों के सामने घूमते हुए वह कपड़े वालों की कतार में चला आया. कपड़े वालों की दुकानों में छोटे बच्चों से ले कर बड़े बूढ़े और महिलाओं के धोती साड़ियाँ कुर्ते करीने से सजाए गये थे . उन्हीं के बीच उसे बंजारा लोगों की वह खास पोशाक भी नज़र आई , एक तरफ चोगा और टोपी लटके हुए थे , उस अजीब सी रंग बिरंगी पोशाक को देख कर उसे बड़ा मज़ा आ रहा था . दुपहर का वक्त हो चला था , बाजार में आस पास के गाँवों से आने वाले ग्राहकों की भीड़ धीरे धीरे बढ़ने लगी थी , दुकानों के बीचों बीच रास्ते पर भीड़ इतनी बढ़ गयी थी की पाँव रखने की जगह न थी, फिर भी उन सबके बीच किसी प्रकार गणेश अपने रास्ते चल रहा था , अब वह पूरी तरह उकता चुका था . उसने सोचा एक बार गाँव की तरफ घूम आए ...
उसके पाँव बरबस ही मधुरानी की दुकान की तरफ बढ़ चले , बाजार की भीड़ भाड़ से बचते बचाते वह पानी की टंकी की ओर बढ़ चला जहाँ बड के पेड़ की अच्छी ख़ासी ठंडी छाँव थी. एकपल उसने इस पेड़ तले सुसताने की सोची लेकिन दूसरे ही पल उसने वह विचार त्याग दिया और उसने मधु रानी की दुकान की ओर अपने कदम बढ़ाए .

दूर से ही उसकी दुकान के इर्द गिर्द लोगों का जमावड़ा देख उसे हैरत हुई. वह मन मसोस कर रह गया, अब इस भीड़ के रहते उससे बातचीत मुमकिन न थी. उसने दो चार मिनट वहीं चहलकदमी कर गुज़ारे, वह सोच रहा था कि वापिस बाजार जाया जाए या थोड़ी देर कमरे में सुस्ताया जाए. लेकिन उसे मधु रानी से मिलने की प्रबल इच्छा हुई, लिहाज़ा उन लोगों की भीड़ में रास्ता निकालते हुए वह गल्ले के करीब जा पंहुचा .

" ओ शामू ज़रा देख तो उ औरत धोती में गुड का डला छिपायात रही , जा जा जल्दी जा उ भिखमंगी चोरनी को पकड़ ला " मधु रानी की तेज नज़रों से वह चोरनी बच न पाई थी.

" ई करम जले गाँव वाले चोरी चकारि से बाज न आवे है" वह गुस्से से गाँववालों को कोसते हुए बड़बड़ा रही थी.

" अरे जल्दी जा नास्पीटे , तोरा सत्यानाश जाए कलमुंहे जा जल्दी जा उसको पकड़" वह चीखी.

उस नौकर ने इधर उधर नज़रे दौड़ाई और वह चोरनी उसकी नज़रों से न बच पाई , नौकर को अपनी तरफ आता देख वह भीड़ से निकल दूसरी ओर भागने लगी . गणेश मधुरानी के करीब खड़ा हो तमाशा देख रहा था . उधर मधुरानी थी जो सुध बुध खो बैठी थी, उसका सारा ध्यान उस चोरनी पर लगा था

" अरे जल्दी जा कलमुंहें पकड़ उ कर्मजली को देख देख कैसन भाग रही है उ कुतिया" मधुरानी उत्तेजित हो कर चिल्लाए जा रही थी .

" ए री ज़रा ई बोतल में तेल तो डाल " उस भीड़ में किसी ने बोतल उठा कर उसका ध्यान अपनी ओर खींचा.

" ए री मधुरानी ज़रा नोन की थैली निकाल तो " एक औरत उससे बोली.

गणेश ने १० रु. का नोट निकाल कर कहा "मुझे एक गोल्ड फ्लेक "

"अरे तनिक ठहरो , इधर ई चोर लोग पूरा दुकान पे हाथ साफ करत रहे और आप लोगन को थोडा वक्त रुकने की फ़ुर्सत नाही" मधुरानी गणेश पर झुंझला कर जैसे फट पड़ी .

उसको जब अहसास हुआ कि वह गणेश है तो आवाज़ में नर्मी लाते हुए बोली " बाबूजी ए आप हैं हम समझे कोई और आवे है"

" न.. न.. कोई बात नहीं पहले तुम अपना काम देख लो , कोई जल्दी नहीं है " गणेश ने जवाब दिया.

" अरे बाबू तोके जल्दी ना है पर हमको तो है ना " एक औरत भीड़ में बोल उठी .

उस औरत की ओर गुस्से से देखती हुई मधुरानी तेज आवाज़ में बोल उठी " ए री बड़ी जल्दी है ना तुझे ? जा किसी और दुकान पर चली जा , हमर दुकान का नौकर उ चोरनी के पीछे गया है , हम जो गल्ले से उठ कर तुझे जो समान दिए रहे तो उ चोर लोग पूरा दुकान पर हाथ साफ कर लिए"

वह औरत चुप हो गयी . मधुरानी की बात अपनी जगह सही थी.

" बाबू जी तनिक ठहरिए उ शाम के आते ही आपको सिगरेट दिए रहे " मधुरानी गणेश की ओर मुखातिब हुई.

इतने में शाम उस चोरनी को पकड़ कर मधुरानी के सामने ले आया.

"हरामजादे" वह औरत शाम से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली "हमरा हाथ जोड़ बेसरम , कीड़े पड़े तोहार हाथ में , तेरा सत्यानास जाए"

"मैं न छोड़ूं तोहार हाथ , म्हारी दीदी ने तुमको गुड चुराते देखा होवे है" लड़का बोला.

"ए कलमुंही , हम ई गुड के पैसे दिए हैं" चोरनी उल्टा मधुरानी पर बरसी .

"पैसे दिए रहे तूने ? हैं ? बड़ी आई पैसे देने वाली कुतिया " अपनी साडी कमर में खोंस कर मधुरानी आगे बढ़ी .

" ए शामू ज़रा ग्राहकों को देख तो , हम अभी इसको ठीक किए देते हैं"

" जी दीदी जी" कह कर शामू ग्राहकों को समान तौलने लगा .

इतने में चोरनी कह उठी "हराम की जनी ग़ाली मत दे कहे देती हूँ"
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Jemsbond
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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"चटाक!!!" मधुरानी एक झन्नाटेदार तमाचा उस चोरनी के मुँह पर रसीद दिया "गुड चोरनी , रंडी! " मधुरानी उसके बालों का झोंटा पकड़ कर उसे तमाचे पर तमाचे मारे जा रही थी "पैसे दिए तूने कमिनि ? हाँ? हमर से ज़बान लड़ाती है ? हैं? कितने का गुड तूने मोल लिया, बता कमिनि ... बोल हरामजादि हम तोहार चमडी निकाल लूँगी " इतना कह कर उसने और एक तमाचा उसको जड़ा .

"आ " मार से वह औरत कराह उठी फिर आवाज़ में नर्मी लाते हुए बोली "ए री मार मत"

"अच्छा ? तो बताए दे कितने का गुड खरीदा तूने ? " इतना कह कर उसके झोंटे को उसने ज़ोरदर झटका दिया .

वह औरत अपने बॉल छुड़ाते हुए नीचे गिर पड़ी फिर सम्हल कर उठती हुई बोली " बताती हूँ" "चार आने का आधा किलो"

" चार आने का आधा किलो? हैं?" उसकी बात को दोहराते हुए मधु रानी बोली " चार आने का आधा किलो गुड कब से मिलत रहा ? हैं? कलमुंही झूठ बोलती है , कीड़े पड़ें तेरे मुँह में रंडी , हराम जादि चोरनी " उसे गलियाते हुए उसने उसके मुँह पर एक घूँसा जड़ दिया , फिर उसकी साडी से गुड की दल्ली निकल कर शामू को बोली " ओ सामू बेटा ज़रा ई गुड की दल्ली को तोलना तो और बता ई रंडी को कितना होवे है? "

उससे गुड की दल्ली ले कर तौलने के बाद कहा " डेढ़ किलो बनता है दीदी जी"

" ए देखो गाँववालों ई औरत कहे है इसने हमार से आधा किलो गुड लिया रहा चार आने में , और फिर तौलने पर इसका वजन डेढ़ किलो कैसे हुआ रहा ? और ई रंडी हमसे कहत रही इसने गुड हमसे मोल लिया है , क्योंरी कुतिया ? " इतना कह कर उसने नीचे बैठी औरत की कमर में एक जोरदार लात जमाई . वह औरत ज़मीन पर धराशायी हो गयी

" ठहर रंडी की जनि छीनाल औरत , तुझे छठी का दूध याद न दिलाया रहा तो हमरा नाम भी मधुरानी नहीं , कहे देती हूँ , ए रे सामू ज़रा रस्सी तो ला रे इसको बाँध कर थाने लिए चलते हैं" मधु रानी कड़क कर बोल उठी.

वह औरत दर्द से कराहते हुए अपने कान पकड़ कर गिडगिडाई " ना दीदी , रहम करो हमार छोटे छोटे बच्चे हैं , हमका पुलिस में ना दो" वह मधुरानी के पाँवों को छू कर बोली .

" नौटंकी ना कर , धन्दे का टाइम खराब करती है रंडी , चल उठ और दफ़ा हो यहाँ से और कहे देते हैं आइन्दा इहा अपनी मनहूस सकल न दिखाना वरना ओ हाल करूँगी तेरा तोरे बच्चे भी तुझे न पहचानेंगे चल भाग बुरचोदि रंडी हरामजादि " पलट कर गल्ले पर वापिस जाते हुए मधुरानी गुस्से से बड़बड़ा रही थी.

गणेश सांस रोक कर यह हाई वोल्टेज ड्रामा देखे जा रहा था उसके मुँह से एक लफ्ज़ नहीं निकल रहा था , दूसरी दफे वह मधुरानी का यह रूप देख रहा था. लेकिन जो भी हो ऐसे मुश्किल हालात से दो चार हाथ करना इसे खूब आता है , कोई और होती तो घबरा जाती. उसे याद आया एक बार वह अपनी पत्नी को पीछे स्कूटर पर बिठा कर कहीं जा रहा था एक गुंडा दिन दहाड़े उसकी बीवी के हाथों से पर्स छीन कर भाग खड़ा हुआ , यह देख कर उसकी बीवी को वो सदमा लगा की उसको समझ ही नहीं आया कि आख़िर क्या हुआ , वह मानों काठ की हो गयी , कितनी देर बाद वह होश में आई तब तक गुंडा दूर भाग चुका था. उसकी जगह यह मधु रानी होती तो गाड़ी से कूद कर उस गुंडे का पीछा करती और न सिर्फ़ अपना पर्स उससे लेती बल्कि उसकी गर्दन पकड़ कर २-४ लातें उसको लगाए बिना वापस न आती.

आज उसके दिल में मधुरानी के प्रति इज़्ज़त कई गुना बढ़ गयी थी. उसने सोचा,

भारतीय नारी को इसी तरह हिम्मती बनना पड़ेगा , अगर इसी तरह महिलाएँ खुद को मजबूत बनाएँ और हिम्मत से काम लें तो कोई भी इन महिलाओं का शोषण न कर पाएगा , वाकई औरत अबला नहीं होती....

गणेश की अब गाँववालों से अच्छी ख़ासी जान-पहचान हो गयी थी और वह उनसे काफ़ी घुल -मिल गया था . गाँव के नौजवानों के मिलने जुलने का स्थान टेलर की दुकान हुआ करता था . मारुति टेलर की दुकान पर शाम को उसके कई हमउम्र लोगों का जमावड़ा सा लगता था , गाँव की खबरों का ताज़ा हाल वहाँ शाम में मिल जाया करता था . वहीं के कुछ लड़के शाम ५ से ७ के दरमियाँ आम के बगीचे में क्रिकेट खेला करते , शाम को खेल कर लौटने के बाद उनके मिलने, हँसी मज़ाक करने का अड्डा मारुति टेलर की दुकान पर हुआ करता था . बाद में गेंद बल्ला और स्टप्स इत्यादि चीज़ें उसी टेलर की दुकान में रखीं जातीं. सो सब लड़के खेलने से पहले और खेलने के बाद वहीं मिलते थे. गणेश को यह देख कर बड़ा अचरज हुआ के इतने पिछड़े गाँव के लड़कों को क्रिकेट खेलने का शौक है , उसने जब जानने की कोशिश की तो यह बात सामने आई कि गाँव के लड़के रेडियो पर क्रिकेट कमेंट्री सुना करते थे , गावसकर , वेंगसरकर , अमरनाथ जैसे खिलाड़ियों से वे वाकिफ़ थे . फिर क्या था बढ़ई के छोरे ने बल्ला , स्टंप बनाने की ज़िम्मेदारी ली और चमार के लौंडे ने गेंद बनाने की , तो यूँ कर गाँव के लड़के क्रिकेट खेलने में रम जाते.

गणेश भी शाम को वहाँ उन लड़कों के साथ खेलने जाया करता . कुछ कुछ लड़कों का खेल देख कर वह हैरान हो जाता . महदा नाम का एक लड़का जब बॉलिंग करता था तो अच्छे अच्छों के छक्के छूट जाते ,उसकी उछाल खाती तेज गेंदों से डर कर बल्लेबाज़ एक तरफ हट जाते . कई लोग उसकी उछाल खाती गेंदों से ज़ख़्मी हुए थे . फिर मारुति टेलर ने ऐसी दुर्घटनाओं से बचने के लिए पॅड्स बनाए . एक दूसरा लड़का लोहा सिंह बिना ग्लव्स के कीपिंग करने में माहिर था , गेंद चाहे कितनी ही तेज या उछाल भरी क्यों न हों उससे छूटती न थी . एक बार हैरत में गणेश ने उसके हाथ देखे थे, तो उसने पाया था की वह लड़का मेहनत मज़दूरी किया करता था इसलिए हथेलियों की चमडी सख़्त हो गयी थी, यह उसके नॅचुरल ग्लव्स बन गये थे . जिस लड़के को सारे गाँव के लोग पगला कहते थे वह तो हरफ़नमौला था , जब उसको गेंद डालने के लिए कहा जाता तो अर्जुन के निशाने की तरह उसका निशाना केवल तीन स्टॅंप्स हुआ करते और जब वह बल्लेबाजी करता तो उसे सिर्फ़ गेंद ही दिखाई देती , वह खूब लंबी हिट लगाता . फीलडिंग में तो वह माहिर था ही. मोटर मेकेनिक और बबन एलेक्ट्रीशियन तो चालाक खिलाड़ी थे , हरदम नये स्ट्रोक्स खेलते और नयी गेंदे फेंकते थे , कहल की तकनीक के मामले में उनका कोई सानी न था . आफ़िस का पांडु क्रिकेट का समान मैदान में लाया करता इसके बदले में उसे एक दो ओवर बॅटिंग करने दी जाती लेकिन समान वापस रखने की जब बारी आती तो वह अक्सर नदारद होता.
मारुति टेलर कभी कभार एक-दो गेंद खेल कर वापस अपनी दुकान पर जाया करता , उसे उसके काम से ही फ़ुर्सत न होती . जब यह साहब बॅटिंग करने आते थे तो उनका ध्यान गेंद के बजाए धोती संभालने में जादा होता था .

"वाइड बॉल" को वे लड़के " वाईट बॉल " कहते थे और आउट की अपील " आउट है" कह कर करते थे , ऐसे ही मज़ाक मज़ाक में कई बातें होतीं थी जिनको देख सुन कर गणेश को बड़ी हँसी आती थी . छ:- छ: लड़के दोनो टीमों में होते थे इसलिए कामन फीलडिंग होती थी , और ऐसे में अंपायर बॉलिंग करने वाली टीम के किसी खिलाड़ी को बनाया जाता , बोलर जब गेंद डालता था और वह गेंद जब बल्लेबाज के पॅड्स से टकराती थी तो सबसे पहली अपील अंपायर बना लड़का ही करता था , वह यह भूल जाता की वह अंपायरिंग कर रहा है ऐसे में सब लोग हंस हंस कर लोट पोट हो जाते .

शाम में लोटा ले कर खेतों में शौच के लिए जाने वाले लोग भी आम के बगीचे में थोड़ी देर रुक कर क्रिकेट का मज़ा लेते और भूल जाते कि वह क्या करने निकले थे .

जब से गणेश ने इन लड़कों के बीच खेलना चालू किया था तब से मधुरानी भी कई बार शाम में आया करती और गणेश की हौसला अफज़ाई किया करती . कभी कभी तो पाटिल साहब और सरपंच जैसे रसूख्दार लोग भी वहाँ आया करते . पाटिल जी तो सीधे मैदान में घुस जाया करते और बल्ला छीन कर खुद बल्लेबाजी करने लगते

" ए लड़के ज़रा बता तो कौन लौंडा अच्छी गेंद डाले है ? "

"पाटिल जी ओ महदू अच्छी तेज गेंद डाले है "

" ओ मेरा मतलब वो ना था लड़के , उसका नाम बता जिसकी गेंद पीटी जा सके है"

फिर बबन बहुत ही धीमी धीमी गेंद पाटिल जी को डाला करता , पाटिल जो वह बल्ला घुमाते की गेंद सीधे मैदान के बाहर हो जाती.

एक दो ओवर खेल कर पाटिल जी बल्ला फेंक देते और कहते ," हद है साला , क्या मरी मरी गेंद डालते हो अरे लड़कों इस विलायती खेल से तो अपना गिल्ली डंडा बेहतर है"

लड़के मुँह छिपा कर हंसा करते. यह देख पाटिल जी बड़बड़ाया करते "बर्बाद है आजकल के लड़के .. हमारे वक्त हम लोग तो कबड्डी , गिल्ली डंडा , खो खो खेलते फिर रात को छुपान छुपैया खेलते थे"

लड़के अपना खेल जारी रखते.

यूँ ही एक दिन गणेश गणेश उन लड़कों के साथ क्रिकेट खेल रहा था . उस दिन मधुरानी भी उनका खेल देखने बगीचे में आम के पेड़ की नीचे बैठी थी . गणेश का पूरा ध्यान पेड़ के नीचे बैठी हुई मधुरानी पर था. वह अब स्ट्राइक पर था, उधर दूसरे छोर से महादू ने दौड़ते हुए एक तेज गेंद डाली , गणेश गेंद भाँपने में ज़रा चूक गया और बचने की कोशिश में उसे अहसास ही नहीं हुआ कि कब गेंद उसके सिर से रगड़ कर चली गयी . गणेश बाल-बाल बच गया, ज़रा एक दो इंच गेंद इधर उधर होती तो सीधा सिर पर चोट लगती . गणेश बदहवास सा नीचे गिर पड़ा, यह देख लड़कों ने शोर मचा दिया , सब दौड़े-दौड़े उसके पास आए . दूसरे छोर से मधुरानी भी बदहवास सी दौड़ती आई और झुक कर जब उसके माथे को छुआ तो हथेलियाँ खून से सन गयीं .

" हाय राम ! कोई झटपट जा कर डाक्टर बुलवाए द्यो ... जाओ कलमुहो ... खड़े खड़े मुँह का देखत हो" मधुरानी घायल गणेश की देखभाल में जुट गयी और आस-पास के लड़कों को निर्देश देने लगी .

उधर गणेश अपने दोनो हाथों से सिर को पकड़े , दर्द से कराह रहा था .

मधुरानी डर सी गयी " गनेस बाबू .. बाबू जी.. बहुत दर्द हो रहा है का ?" उसने तसल्ली करना चाही कि
कहीं वह दर्द से बेहोश न हो गया हो.

गणेश ने बड़ी मुश्किल से मिचमिचाते हुए अपनी आँखें खोलीं ...... उसकी आखों के सामने हल्के हल्के अंधेरा सा छा रहा था.... बेचारे को दर्द के मारे कुछ सूझ नहीं रहा था.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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" ओ लड़के ... कहीं से पानी लिवा लाओ जा भाग ससुरे" मधुरानी ने एक लड़के को पानी लाने भेजा.

" बाबू जी अब जी कैसा है ? " पास खड़े लड़के ने गणेश से पूछा .

" परे.हट मरे ... तेरा सत्यानाश जाए बाबू जी को कहे सता रहा है ????" मधुरानी उस पर चिल्लाई...

"ना.. ना हम तो बस हाल-चाल जानना चाहता हूँ" लड़का सकपकाया .

" ई लो दीदी जी ई पानी लो , ज़रा बाबूजी को पानी पिलाए द्यो"

इतने में दूसरा लड़का भागा भागा पानी ले आया.मधुरानी ने गणेश को थोडा पानी पिलाया

" ज़रा बाबूजी का चेहरा में पानी छिड़क द्यो .....जान में जान आवेगी" किसी ने सलाह दी.

सब लोग गणेश को ज़ख्मी देखकर बड़े चिंतित थे. कोई उसका सिर सहला रहा था , कोई उसके हाथ पैर दबा रहा था . तभी बबन डॉक्टर साहब को ले आया . डॉक्टर की ब्रीफ़केस हाथ में पकड़े बबन ने भीड़ में रास्ता निकाला.

" हटो परे डाक्टर साहब आवे हैं"

भीड़ छट गयी . एक लड़के ने मधुरानी को गणेश की फ़िक्र में घबराते देख ताना मारा

" ए री अब का तू ही उसे इंजेक्सन देवेगी ? हट परे उ देख डाक्टर साहेब आई गवा है"

तभी डॉक्टर साहब करीब पंहुचे " हुम्म.... कहाँ लगी है ? ज़रा चोट दिखाइए"

"माथे मे गेंद लगी रही" किसी ने भीड़ में जवाब दिया.

"उ तो रामजी की किरपा रही डाक्टर साहब जो गनेस बाबू को अधिक चोट न आई , जो गेंद ज़रा इधर उधर होती तो भैया खुपडिया की खैर ना थी" दूसरे ने कहा .

मधुरानी ने उसकी ओर गुस्से से देखा , वह बंदा यह देख अधिक कुछ न बोला और चुप हो गया .

" क्या आपको चक्कर आ रहे हैं गणेश बाबू ? मितलि आ रही है ?" डॉक्टर ने गणेश से जानना चाहा किंतु गणेश ने 'ना' में सिर हिलाया.

डॉक्टर ने स्तेथॉस्कोप कानों में लगाया और दूसरा सिरा उसके सिने पर रखा .

"चोट उ के सिर में लगा है और ई बुडबक उसका सीना जाँच रहा है" एक ने ताना कसा.

" कही और तो चोट नहीं लगी गणेश बाबू ? कहाँ दर्द हो रहा है ? " डाक्टर ने गणेश से सवाल किया. गणेश ने ना में दोबारा सिर हिलाया .

डॉक्टर साहब गणेश की नब्ज़ टटोलने लगे , मधुरानी बड़े परेशान थी.

"चिंता की कोई बात नहीं , मैं कुछ दवाइयाँ लिख देता हूँ उन्हें दो वक्त लीजिएगा , आपकी तबीयत ठीक रहेगी" डॉक्टर स्टेथेस्कोप अपने ब्रीफ़केस में रखते हुए बोले.

इसके बाद उन्होने दवाइयों की शीशी निकालीं , हर शीशी से तीन तीन गोलियाँ निकालीं उन्हें आधा तोड़ कर कागज की पुडीया बनाईं और वह पुडीया मधुरानी को थमातेहुए बोले "यह दवाई इन्हें सुबह शाम खिलाइए , भूलिएगा नहीं"

फिर गणेश की ओर मुड़ कर बोले "अच्छा गणेश बाबू अब आज्ञा दीजिए और अपना ख्याल रखिए" डाक्टर वहाँ से चले गये.

रात हो गयी थी गणेश अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा था , बुखार से उसका बदन तप रहा था शाम से ही उससे मिलने कई लोग आए थे . पड़ोस की सारजाबई उसके लिए खिचड़ी बना लाई थी , उन्होने चम्मच से उसे खिलाई थी . वह थोड़ी देर उसके पास बैठकर जा चुकी थी. आधी रात होने को थी , कमरे में अब उसके साथ केवल मधु रानी थी, वह गणेश को सहला रही थी . गणेश को उसकी नर्म मुलायम छुअन भा रही थी . उसका मन किया कि वह भी मधुरानी को अपनी बाहों में भरकर खूब प्यार लुटाए , लेकिन वह चोट से बदहाल और बेदम पड़ा कराह रहा था. डॉक्टर ने जख्म पर पट्टी बाँधी थी.

" आह... तुम अब जाओ मधुरानी.. आह" गणेश कराहते हुए किसी प्रकार बोला।

"ना .. ना बाबूजी तोहे ई हाल में छोड़ कर हम कहीं ना जा सकत है" मधुरानी ने मना करते हुए कहा . मधुरानी ने अपनी हथेलियों से उसके गालों को सहलाया , उसके बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी और उसके रोंगटे खड़े हो गये. उसने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और उसे अपने सीने से लगा लिया .

मधुरानी अपना हाथ छुडाते हुए बोली " आप आराम करो बाबूजी " फिर उसे पैरों के पास पड़ी चादर ओढाते हुए बोली "आप सो जाओ बाबू जी हम यहीं है"

गणेश उधर दर्द से कराहते हुए अपनी फूटी किस्मत को कोस रहा था ,

धत्त तेरे की , इतना अच्छा मौका हाथ लगा और मैं इस हाल में ? ....

सच है किस्मत हो... तो क्या करेगा पांडु....

आज सुबह से गाँव में चहु ओर चहल-पहल थी . आज गुँगे का ब्याह जो था . गुँगे के बापू और मामा ने जी जान लगा कर उसके लिए कोई दूसरी लड़की ढूँढ ली थी . लड़की पड़ोस के ही गाँव की एक ग़रीब घर से थी . लड़की के बाप ने शायद गुँगे की जायदाद देख कर उसकी कमी को नज़रअंदाज़ कर यह सोच हामी भर दी थी कि ऐसे भरे - पूरे खाते-पीते घर में उसकी बेटी सुख चैन से रहेगी. लड़की के माँ-बाप इतने ग़रीब थे कि ब्याह का खर्च भी नहीं उठा सकते थे, लिहाज़ा ब्याह कि पूरी तैयारी और खर्चा गुँगे के घरवाले ही करेंगे ऐसा तय हुवा था. ब्याह भी शायद इसलिए गुँगे के गाँव में करना तय हुआ . लड़की तय होने से पूर्व गुँगे को घर में ही एक कमरे में क़ैद किया गया था, और एक कारींदा उस पर पहरे पर लगाया गया था. दूसरी ओर गूंगीके पिता ने भी उसे यूँ ही एक कमरे में बंद कर रखा था.

ब्याह का मुहूरत सुबह ११ बजे का था , आज तड़के से ही मेहमानों का मजमा सा लगा था , गाँव के कच्चे पक्के रास्तों से मेहमानों से भरी बैलगाड़ियाँ आ-जा रहीं थी. उनके ठहरने और रुकने का इंतेजाम गाँव की पाठशाला में हो रखा था .

गाँववाले इस शादी को ले कर यूँ खुश थे मानों उनके अपने ही घर के किसी सदस्य का ब्याह हो , सब नये कपड़े पहनकर और सजधज कर तैयार हो रहे थे.

गाँव में जब भी कोई शादी-ब्याह होता तो लाउड स्पीकर पर गाने बजाने का काम भीखू को दिया जाता , हलवाई का काम और खाने-पीने का इंतेजाम किसन के पास होता. उनके अपने अपने सहायक होते थे. पाटिल और सरपंच जी जैसे अनुभवी लोगों से ऐसे मौकों पर सलाह - मशविरा किया जाता. गाँव के नाई के पास बारातियों - घरातीयों और ब्याह में सम्मिलित होने आए मेहमानों की दाढ़ी बनाने , बाल काटने तेल मालिश की ज़िम्मेवारी होती, इसके अतिरिक्त वह ब्याह का निमंत्रण देने का और विवाह मंडप में आए लोगों को टीका लगाने का काम करता , इन सब कामों के बदले नाई को साल भर का अनाज और पूरे परिवार को दो जोड़ी नये कपड़े मिला करते . शादी ब्याह की तैयारी में हफ़्ता दस दिन नाई का परिवार फिर शादी वाले घर के सदस्यों की भाँति ही पूरे मनोयोग से करता.

सुबह के दस बज रहे थे , गुँगे के यहाँ चहल पहल अपने चरम पर पंहुच चुकी थी . लाउड स्पीकर पर भीखू ने गाने बजाने चालू कर दिए थे , लिहाज़ा पूरा वातावरण फिल्मी गानों के शोर से भर गया था. उधर बॅंड बाजे वाले भी चालू हो गये थे , चारों और चिल्लपो मची हुई थी.

गणेश के यहाँ गाँव का नाई सुबह ही आ कर उसको निमंत्रित कर चुका था. गणेश भी ब्याह में जाने के लिए अपने कपड़े इस्त्री कर रहा था. वह नये कपड़े पहन कर और तैयार हो कर बाहर आया और कमरे में ताला डालते हुए उसकी नज़र मधुरानी के घर की ओर गयी . आज दुकान बंद थी फिर उसने उसके घर की ओर नज़रें घुमाई कि तभी उसे मधुरानी के ससुर और दुकान के नौकर को नये कपड़े पहन कर घर से बाहर निकलते देखा. आज गाँवमें शादी थी लिहाज़ा उसने सोचा शायद यह लोग भी शादी में शामिल होने जा रहे हैं . उनके दूर जाने तक वह वहीं खड़ा रहा , मधुरानी के घर का दरवाज़ा अभी भी खुला हुआ ही था जिसका सीधा मतलब था की मधुरानी घर में मौजूद थी.

गणेश सोचने लगा ,

गाँव के लोग बाग शादी में जा रहे हैं .. और मधुरानी घर पर अकेली है ... यह अच्छा मौका है .. उससे मिलने का ... वह भी मुझसे मिलने को लालायित रहती है .. और इसका इशारा वह कई बार दे चुकी है ... आज इज़हार करने का इससे अच्छा मौका शायद फिर कभी न मिले....

गणेश के कदम मधुरानी के घर की तरफ बढ़ चले . जाते जाते उसे उस रात की याद हो आई जब मधुरानी अपने नर्म-मुलायम हाथों से उसे सहला रही थी , उसकी मदहोश करने वाली नज़रें, उसकी शरारती मुस्कान उसे आँखों के सामने दिखाई देने लगी . उसने सोचा,

मैं उसके यहाँ जा तो रहा हूँ .. लेकिन कही मेरी फ़ज़ीहत तो न होगी ? क्या मैं उससे अपने मनकी बात कह पाऊँगा ? …

चलते चलते वह ठिठक गया उसने सोचा,

कहीं कोई मुझे देख तो नही रहा ?…

उसने आस पास देख कर तसल्ली कर ली फिर सोचा ,

लेकिन उसके यहाँ जाने का क्या बहाना करूँ...? यूँ बेवजह जाना ठीक न दिखेगा...

चलते चलते उसे याद आया कि नौकर आज उसके लिए पानी भरना भूल गया है.... हाँ .. यही ठीक रहेगा .. यूँ भी गर्मी के दिन हैं .. मैं कहूँगा कि गला सूख रहा है ... और पानी पीने के बहाने उसके घर चला जाऊँगा....

वह अब उसके घर के दरवाज़े पर पहुँच चुका था . उसने एक बार फिर चारों और नज़रें दौड़ाई कि कोई उसे देख न रहा हो .... चारों और शादी ब्याह के नाच गाने का शोर गुल मचा हुआ था .
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Jemsbond
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

उसके दिल की धड़कने अब तेज हो चुकीं थी उसने हौले से दरवाज़े की सांकल से दरवाज़ा खटखटाया . अंदर से कोई आवाज़ न आई ..उसे तोड़ा अचंभा हुआ उसने दोबारा दरवाज़ा खटखटाया...

"कौन आया रहा ?" अंदर से मधुर आवाज़ आई .

गणेश के हलक से आवाज़ न आई. बोलने की उसने लाख कोशिश की लेकिन चाह कर भी आवाज़ न निकल सकी.

अभी से यह हाल है तो बाद में न जाने क्या होगा ?.... गणेश ने सोचा

.... ऐसे ही वापस चला चलता हूँ ...

नहीं यूँ इस तरह पीठ दिखा कर भागना उचित न होगा.. थोडा धीरज से काम लेना होगा... भागना मर्दानगी की निशानी नही... औरत चाहे जितनी भी बिंदास हो साहस तो मर्द को ही करना चाहिए ....

" कौन है" अंदर से दोबारा आवाज़ आई . इस बार आवाज़ में ज़रा परेशानी झलक रही थी.

"म..म..म..मैं ग.. गग.. गणेश" गणेश ने हकलाते हुए किसी तरह जवाब दिया. वह अब हल्का महसूस कर रहा था. उसे खुद पर ही फख्र महसूस हो रहा था.

इसी तरह हिम्मत करनी होगी ...

" गनेस बाबू... अरे आप उधर बाहेर काहे खड़े हो बाबू जी अंदर आइए . हम इहा कपड़े बदलत रहे " अंदर से आवाज़ आई.

गणेश की आँखों के सामने मधुरानी कपड़े बदलती हुई तस्वीर आ गई.

आज तक मैं सिर्फ़ उसके खूबसूरत जिस्म को निहारना चाहता था..... शायद अनायास ही वह मौका आज हाथ लगा है …

वह जोरों से सांस लेने लगा और उसके मन में विचार आ रहे थे.

वह कपड़े बदल रही है भला यह बतलाने की क्या ज़रूरत थी ?.. या शायद वह यही चाहती थी कि मैं यह बात जान लूँ ... क्या वह मुझे करीब आने का इशारा कर रही है ? .. हाँ , बिल्कुल .. इतने दिन से वह झे इसी का तो इशारा दे रही है ... अब इससे अधिक खुलकर वह भला क्या बताएगी? ....

गणेश हौले से अंदर आया और जाते वक्त उसने दरवाज़े पर काँपते हाथों से सांकल चढ़ाई . सांकल चढ़ा कर वह काँपते कदमों से अंदर आया . एक लंबी सांस ले कर मानों उसने हिम्मत जुटाई .

"उ हाँ चबूतरे पर बिछी खाट पर बैठ जाइए बाबू जी" अंदर से दोबारा आवाज़ आई.

उसने सोचा.

वह केवल चबूतरे पर बैठने के लिए कह सकती थी .. भला उसने खाट पर ही बैठने को क्यों कहा ? आख़िर क्या चाहती है यह .. शायद वह कोई गुप्त संदेश देना चाहती हो ... या वह मुझे अपने करीब बुला रही है ? ... हाँ ज़रूर .. मुझे यूँ ही उसके पास जाना चाहिए .. ऐसा मौका दोबारा हाथ नहीं आएगा ....

उसके दिमाग़ में नग्न मधुरानी की तस्वीर झलकी.

अब तो जाना ही पड़ेगा....

वह चबूतरे की खाट तक चल कर आया. उसने मधुरानी के कमरे में जाने की लाख कोशिश कि लेकिन उसके मानों पाँव ही उठ नही रहे थे. पूरा जिस्म पसीने से तर था .

अगर मधुरानी मुझे यूँ इस हाल में देख लेगी तो न जाने क्या सोचेगी....

उसने मन ही मन कहा और वहीं धम्म से खाट पर बैठ गया . बैठ कर उसके थोड़ी जान में जान आई , जेब से रुमाल निकाल कर वह चेहरे पर आए पसीने को पोंछने लगा .

"म.. मधुरानी म..मैं प..प्यासा हूँ ... थोड़ा पानी मिलेगा? दर असल आ..आज नौकर प..प..पानी भ.. भरना भू.. भूल गया" उसके मुँह से यह लफ्ज़ कब निकले खुद उसे अहसास नहीं हुआ.

उसने सोचा चलो अच्छा ही हुआ यूँ ही चुप रहने में क्या लाभ?....

इतने में मधुरानी ने जवाब दिया " पानी चाहे हो ... लाती हूँ पर उ पानी के लिए इत्ति तकल्लुफ काहे करे हो बाबूजी ? ई हाँ आने जाने में आप पर कोई पाबंदी तो न है.. बाबूजी" मधुरानी की यह बातें उसके सिर में हथौड़े की तरह बजने लगीं

मतलब यह भी एक इशारा है... और वह भी खुल्लम खुल्ला ..अब तो कुछ करना ही पड़ेगा …

वह तड से उठ कर खड़ा हो गया और खिसीयानी हँसी हंसते हुए बोला "न.. नही मेरा व..वह मत...मतलब नहीं था"

उसने धीरे धीरे मधुरानी के कमरे की तरफ कदम बढ़ाए. इसी दौरान खुद मधुरानी ही कमरे के बाहर आई.

"देती हूँ बाबूजी ई ज़रा बाल संवार लूँ "

गणेश फट से पीछे हो गया.

धत्त तेरे की...फिर चूक हो गयी.. इन बातों में टाइमिंग का ख़याल रखना पड़ता है.… उसने मन ही मन कहा.

जाने कितनी बार यूँ ही ग़लती होगी .....कहीं उसने मेरी यह हालत देख ली तो कहेगी कैसे लल्लू से पाला पड़ा है.…

उसने नज़र भर मधुरानी को देखा . हरी साड़ी में लिपटी हुई वह और भी खूबसूरत नज़र आ रही थी. उसने माधुरानी की आँखों में देखा . उसे उसकी आँखें शरारत से भरी नज़र आई, मानों वह उसे इशारा कर पास बुला रहीं हो . उसके हौसलें अब और बढ़ गये थे. कुछ पल पहले वह खुद को कोस रहा था.

गणेश जहाँ बैठा था वहाँ उसके पीछे ही दीवार में एक खांचा बना हुआ था . मधुरानी अपने खुले बालों को उंगलियों से सांवरते हुए, और दाँतों में बालों की क्लिप दबाए , उसके करीब आई और खाँचे से कोई चीज़ लेने के लिए झुकी ... अचानक ही उसके पैर गणेश के पैरों से छू गये और उसके खुले बाल उसके गालों से थोड़ा छू गये. गणेश के मानों पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गयी, उसका जी किया कि वही उसकी कमर को पकड़ कर अपनी बाँहों में भींच ले. उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए भी , लेकिन इतने में वह वापस पीछे सरक गयी , उसे दीवार में बने खाने से जो चीज़ चाहिए थी वह मिल गयी थी ..गणेश अपनी नाकामी पर दोबारा मायूस हो गया . गणेश ने अंदर जाती मधुरानी को देखा. बड़े गले के ब्लाऊज में उसकी सुराहीदार गोरी गर्दन और बाहें देख कर वह मचल उठा . अंदर जाते समय अचानक ही वह रुकी और गणेश की ओर नज़रें उठा कर देखा. गणेश उसे निहारते हुए पकड़ा गया था .वह अंदर चली गयी. गणेश खाट से उठ बैठा.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

अब तो अंदर जाना ही पड़ेगा .. इससे अच्छा मौका अब हाथ न आएगा...

उसने उस कमरे की तरफ कदम बढ़ाए. उसकी साँसे तेज चलने लगी थी . अब उसमें आत्मविश्वास झलक रहा था . वह उस कमरे के दरवाज़े की चौखट पर खड़ा हो गया और उसने मधुरानी को आईने में अपने बाल संवारते हुए देखा. वह उसकी ओर पीठ कर खड़ी थी . वह अपने बाल बनाने में मग्न थी उसने सोचा.

वह शायद यूँ ही बेख़बर रहने का नाटक कर रही है....

उसने उसकी तरफ कदम बढ़ाए. उसकी धड़कने तेज हो गयीं, कनपटी भी गर्म हो गयी. वह दबे पाँव उसके पीछे पंहुचा ओर एक झटके से उसने उसका हाथ पकड़ लिया। उसके मन में लड्डू फुट रहे थे, आख़िर वह जो करना चाह रहा था वह हो ही गया. अब उसे मधुरानी क्या करती है यह देखना था .

मधुरानी अपना हाथ छुड़ाते हुए दस कदम पीछे हट गयी. उसे ऐसी उम्मीद न थी . वह मधुरानी की आँखों में झाँक कर उसके मन की बात जानना चाहता था लेकिन नाकामी हाथ लगी .

कहीं वह नाराज़ तो नहीं हो गयी?.... उसने सोचा.

उसने हिम्मत जुटा कर दुबारा उसका हाथ पकड़ने की चेष्टा की.

"बा..बाबूजी .. क्या हुई गवा है आपको?" मधुरानी कमरे के बाहर तेज कदमों से चलते हुए निकल गयी.

एक पल तो उसे समझ ही नही आया कि हुआ क्या? लेकिन उसे अहसास हो गया.

मतलब... उसने मुझे ठुकरा दिया....

उसका सारा शरीर ढीला पड़ गया था . जाते जाते मधुरानी ने मुड़ कर उस पर एक नज़र डाली उसमें उसकी जलती निगाहों का सामना कर सकने का साहस न था. आख़िर औरत के मन की बात तो स्वयं शिव जी भी न समझ सके. वह मायूस हो उठा और उसका मन खुद के प्रति गुस्से से भर गया . कमरे से निकलते हुए उसने दरवाज़ा ज़ोर से खोला और तेज कदमों से चलते हुए बाहर आ गया. उसने पीछे मुड़ कर मधुरानी को देखना तक मुनासिब न समझा .

वह बाहर खुले में आ गया . गर्मी और उमस के दिन होने के बावजूद उसके शरीर को छू कर एक ठंडी हवा का झोंका निकल गया . उसको थोड़ा चैन आया.

चलो अच्छा ही हुआ कम से कम फ़ैसला तो हो गया, नहीं तो जाने कितने दिन में इस बात को लेकर बेचैन रहता...

चलते चलते वह अपने कमरे के बाहर ठिठक कर रुक गया.

अब कहाँ जाऊं .. कमरे में वही अकेलापन .. शादी की भीड़ भाड़ में जाने को उसका जी न किया. फिर न जाने कितनी देर, इन सबसे दूर वह न जाने कितनी देर वह सिर्फ चलता रहा . पूरा गाँव गुँगे की शादी में शामिल होने गया था इसलिए रास्तों पर कोई चहल पहल न थी. फिर अचानक ही एक घर के सामने किसी आवाज़ को सुन कर वह ठिठक गया. अंदर से कोई चीख रहा था . उसे अहसास हुआ यह गूंगी का घर था . घर पर बाहर से ताला लगा था .

इस घर के लोग जाने कहाँ चले गये .. गुँगे की शादी में तो यक़ीनन नहीं गये होंगे फिर कहाँ गये हैं .. शायद खेतों में गये होंगें ....

घर के अंदर से किसी के रोने चिल्लाने की आवाज़ अब भी आ रही थी. ऐसी आवाज़ सुन कर पत्थर दिल आदमी भी पसीज जाए . उस गूंगी का दिल टूट गया था और वह कलेजा फाड़ कर रो रही थी. उसका दिल भी इसी तरह रो रहा था फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि उसकी आवाज़ किसी को सुनाई नहीं दे रही थी .

उस वाकये को हुए तकरीबन हफ़्ता भर हो गया . गणेश अब मधुरानी को जहाँ तक हो सका टालने लग गया था कभी भूले से उनका सामना हो जाता तो गणेश में नज़रें उठा कर उसे देखने की हिम्मत भी न थी. एक बार सामना होने पर उसने उसको देखा तो उसे अहसास हुआ मानों वह गुस्से में लाल पीली हो उसे घूर रही है .


गणेश बेचैन हो उठा

कहीं वह मुझसे उस दिन वाली बात को ले कर नाराज़ तो नहीं ?

या फिर इसलिए नाराज़ है कि मैं उसको टालता हूँ ? ...

कुछ पता नहीं चलता....

ग़लती मेरी ही थी मैं भावनावश हो कर उससे यह सब कर बैठा...

लेकिन वह भी तो इशारे पर इशारे दिए जा रही थी...

जो भी हो मुझे उससे माफी माँगनी चाहिए ...

परंतु कैसे ?

कहीं उसे कोई ग़लतफहमी न हो जाए और कहीं मेरी लोगों के सामने बेइज़्ज़ती न कर दे....

उससे माफी शायद अकेले में ही माँगना उचित होगा "

आज सुबह गणेश की देर से आँखें खुलीं उसने घड़ी में देखा

यह क्या .... सुबह के दस बज रहे हैं

उसे कुछ शोर सुनाई दिया

कहीं यह गूँगा - गूँगी वाला कांड तो नही हो गया

तुरंत वह कपड़े बदल कर बाहर जाने को तैयार हुआ उसे लगा कि वह थोड़ा रुक कर मुँह हाथ धो कर कुल्ला कर बाहर जाए लेकिन बाहर का शोर बढ़ता ही जा रहा था

" वापस आ कर ही मुँह हाथ धोता हूँ"

सोच कर वह निकला

" बात कुछ ज़्यादा ही गंभीर है"

वह ताला लगाए बगैर ही बाहर चला आया.

वह शोर की दिशा में चलता हुआ आगे बढ़ा उसने देखा आगे किसी के घर के बाहर लोगों की भीड़ लगी है . उसने वहीं से आते एक गाँववाले को रोक कर पूछा "भाई साहब .. बात क्या है"

" का मालूम बबुआ .. सायद उ भीखू का तबीयत कुछ ठीक ना है"
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