मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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गणेश बाबू को जो बात जानना चाह रहे वह उसके दिए हुए जवाब से जान न पाए थे. वे और खुल कर बोले
"आपकी बेटी कैसी है?"

"बेटी?" उसने सवालिया निगाहों से पूछा.

"मेरा मतलब...आपकी गूंगी से है" गणेश बाबू ने साफ कहा .

गणेश बाबू को गूंगी का नाम मालूम न था यूँ भी सारा गाँव उसे गूंगी कह कर ही पुकारता था. रघुजी ने अपनी नज़रे चुरा लीं और मंच की ओर देखने लगे. शायद वह अपनी भावनाएँ छुपाने की कोशिश कर रहे थे. गणेश बाबू ने सोचा

कहीं मैने ग़लत बात तो न कह दी...बेकार में दिल दुखा दिया...

"माफ़ करिएगा...मुझे कुछ पता न था इसलिए ऐसे ही पूछ लिया" गणेश बाबू रघुजी के कंधे पर हाथ रखते बोले.

उसने दोबारा पलट कर गणेश बाबू की ओर देखा इस बार उसकी आँखें भर आईं थी. वह मंच की ओर देखते बोला " साहब उसकी किस्मत ही फूटी थी..."

"क्यों क्या हुआ" गणेश बाबू ने पूछा.

"उस हरामजादे गूंगे के ब्याह के बाद हम लोगन ने उसके लिए दूसरा लड़का पसंद किया था..." बोलते वक्त उसकी आवाज़ भर्रा गयी थी. गूंगी का बाप बोलते समय थोड़ा रुका. गणेश बाबू भी कहानी जानना चाह रहे थे.

"उसका ब्याह भी तय हो गया था....हमने खेती बाड़ी बेच कर दहेज की रकम भी खड़ी कर ली थी...लेकिन" वह बोला.

गणेश बाबू के दिमाग़ में तरह तरह के विचार आने लगे थे .

लेकिन..? लेकिन..क्या हुआ? उस लड़के ने भी गूंगी को नकार दिया क्या?… गणेश बाबू ने सोचा

"लेकिन जैसे ही बेटी को पता चला उसने खाना पीना छोड़ दिया...15 दिन से उसने कुछ न खाया पिया..ब्याह के ठीक एक दिन पहले वह चल बसी... हमको छोड़ कर चली गयी...." वह बूढ़ा अपनी आँखों के आँसू पोंछते हुए बोला.

"क्या????" गणेश बाबू चौंक कर बोले..आगे उस बूढ़े से और सवाल पूछने की उनमें कोई हिम्मत न थी. वह बूढ़ा अब मंच की ओर देख रहा था अपनी बेटी की यादों को छुपाते हुए.

बेचारी गूंगी... वह गूंगे से सच्चा प्यार करती थी...लोगों को उनके बीच यूँ आना न चाहिए था..उन्हें क्या हक था?… गणेश बाबू ने सोचा.

उन्हें थपथपा कर भारी कदमों से वहाँ से चले गये. और वे कर भी क्या सकते थे.


अन्य नेताओं का भाषण होने के बाद मधुरानी भाषण देने के लिए खड़ी हुई. माइक्रोफोन के सामने जा कर उसने वहाँ उमड़ी भीड़ को निगाह भर कर देखा . चारों ओर शांति छा गयी. लोग उसको सुनने के लिए बेताब थे.

"भाइयों और बहनों..." उसने पॉज़ लिया. लोगों ने ज़ोरदार तालियाँ बजा कर उसका स्वागत किया. आख़िरकार उसने अपना भाषण शुरू किया.

करिश्मा शायद इसी को कहते हैं… गणेश बाबू ने सोचा.

मधुरानी का भाषण जो चला वह पौन घंटे तक चला. लोग मंत्रमुग्ध हो कर उसे सुन रहे थे. गणेश बाबू ने उसके भाषणों के बारे में आज तक केवल सुना ही था. आज वह शिद्दत से यह महसूस कर रहे थे की वाकई वह एक बेहतरीन वक्ता है.

अचानक "मधुरानी मुर्दाबाद...." भीड़ के एक कोने से किसी ने तेज आवाज़ में कहा ..

नारा सुन कर गणेश बाबू होश में आए. उन्होने पलट कर देखा वहाँ कुछ लोग लाल झंडा और लाठियाँ पकड़े दिखाई दिए.

वैसे इस बात का अंदेशा था की सभा में कुछ गड़बड़ होने वाली है...यह ज़रूर संपत राव पाटिल जी के बेटे दीपक का किया धारा है... गणेश ने सोचा.

संपत राव पाटिल की मौत के बाद उनके बेटे दीपक ने उनकी जगह ले ली थी. शायद उसे मालूम था की पाटिल जी का क़त्ल मधुरानी ने करवाया है. क्योंकि उनके बीच अनबन की खबरें बहुत पहले से जाहिर हो चुकीं थी. पाटिल जी आज होते तो वे ऐसा कदम कभी न उठाते लेकिन यह जोशीला नौजवान था.....गर्म खून था.

"मधुरानी मुर्दाबाद" नारे अब पूरी सभा में गूंजने लगे थे.

चारो ओर अफ़रा-तफ़री मच गयी. मधुरानी भाषण देते हुए एक पल रुकी उसने मधुकर बाबू और अन्य कार्यकर्ताओं की ओर एक नज़र डाली. मधुकर बाबू बड़े तैश में अपने आदमियों को लेकर उस कोने में बढ़ने लगे जहाँ नारेबाज़ी चल रही थी. इधर मधुरानी का भाषण जारी था.

मधुकर बाबू और उनके चालीस पचास आदमियों के जाने पर स्थिति बद से बदतर हो गयी. उन लोगों ने लाठियाँ निकाल लीं और उन्हें मधुरानी के समर्थकों पर चलाना शुरू कर दिया. भागा-दौड़ी शुरू हो गयी. मधुरानी को मजबूरन भाषण रोकना पड़ा.

एक पुलिस अधिकारी माइक्रोफोन के सामने खड़े हो कर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करने लगा . लेकिन अब भीड़ काबू के बाहर हो चुकी थी. वह लाल झंडे वाले और लाठीधारियों की संख्या देखते देखते बढ़ने लगी. मधुरानी के कार्यकर्तों के पास कोई हथियार न था वह पत्थर उठा उठा कर उन्हें मारने लगे. इधर लाल झंडे वाले लाठियाँ भंज रहे थे. एक कार्यकर्ता ने जो पत्थर ले कर मारने के लिए फेंका वो सीधे एक आम के पेड़पर लटके मधुमखियोंकी छत्ते से जा लगा..सारी मक्खियों ने वहाँ मौजूद भीड़ को निशाना बनाना शुरू किया.

मधुमक्खियों के कारण और भी भगदड़ मच गयी .. धक्कामुक्की बढ़ गयी...यह पूरा प्लान मधुरानी के विरोधियों का ही था. लेकिन हालात इस कदर बेकाबू हो जाएँगे किसी को अंदाज़ा न था. पुलिस अधिकारी ने वायरलेस पर संदेश भेज कर और मदद माँगी.


वह लाल झंडे वाले लोग अब मंच की दिशा की ओर बढ़ चले थे . लेकिन गणेश बाबू और उनके कार्यकर्ता उन्हें रोकने लगे. उन्हें मालूम था की एक बार यह लोग मंच तक पंहुच गये तो मधुरानी और उसके साथ मौजूद अन्य नेताओं की खैर नहीं. मधुरानी की जान को ख़तरा था इसलिए वह जी जान लगा कर लड़ रहे थे. मधुमक्खियों का छत्ता वहाँ से पास ही था. उन्होने वहाँ भी हमला बोल दिया था. गणेश बाबू और उनके लोगों को एक साथ दो चीज़ों से बचना पड़ रहा था , एक तो उन गुण्डों की लाठियों से और दूसरे उन मधुमक्खियों से. खुद गणेश बाबू का चेहरा भी डंक से सूज कर लाल हो गया था लेकिन उन्हें इसकी परवाह न थी.

चाहे जान चली जाए मधुरानी का बाल भी बांका नही होना चाहिए..आख़िरकार अब वही तो मेरे जीने का सहारा थी...

शायद मैं उस से प्यार करने लगा हूँ ... वरना क्या मैं उसके लिए जी जान लड़ा कर लड़ता?...

उनके साथ के कुछ कार्यकर्ता वहाँ से भाग खड़े हुए , लेकिन गणेश बाबू को न जाने आज क्या हो गया था इस उम्र में भी वह लाल झंडे वाले लोगों को मार रहे थे. अब उनके हाथों में भी एक लाठी आ गयी थी जिससे वह अब जी जान से लड़ रहे थे.

जब यह बमचक मची थी तो गणेश बाबू को मधुकर बाबू मंच की ओर जाते दिखे.

" गणेश बाबू एक भी लौंडा उपर नहीं पंहुच ना चाहिए … जान ले लो इन सालों की..मैं उपर मधुरानी की सुरक्षा की व्यवस्था देखता हूँ" मधुकर बाबु ने कहा.

अब तक मैदान में पुलिस बल आ चुका था. उन्होने आँसू गैंस के गुब्बारे छोड़े और लाठी चार्ज करने लगे. लेकिन भगदड़ कायम थी. पुलिस बल भी वहाँ जमे लोगों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए काफ़ी न था.
गणेश बाबू हमलावरों को मार भागने मे लगभग कामयाब हो गये थे इतने में उनके करीब तीन कार्यकर्ता आ पंहुचे. गणेश बाबू समझ गये की उन्हें कोई खबर बतानी है.. वहाँ का इंतेज़ाम दूसरे कार्यकर्ता को सौंप कर वह उन तीनों के साथ एक कोने में आ खड़े हुए.

"साहब बुरी खबर है" एक आदमी बोला.

"क्या हुआ..ज़रा खुल कर बताओ" गणेश बाबू का कलेजा मुँह को आ रहा था "कही माधुरानी को कुछ हो तो न गया" उन्होने सोचा.

"मधुकर बाबू आज आपका गेम बजाने की फिराक में हैं" दूसरा आदमी बोला.

"क्या?!!..तुम लोगों को कैसे पता चला?" गणेश बाबू ने हैरान हो कर पूछा.

उन्हें मालूम था की मधुकर बाबू कभी न कभी यह चाल चलेंगे. लेकिन वह वक्त इतनी जल्दी आएगा उन्हें ऐसी उम्मीद न थी.

"राजू ने अपने कानों से सुना ...मधुकर बाबू को काशीनाथ से कहते हुए " तीसरा बोला..

"क्या कहा उसने?" गणेश बाबू ने पूछा.

" आ..आज अच्छा मौका है....इस की बजा डालो आज ... मुझसे ज़बान लड़ाता है हरामज़ादा...उसे मालूम नहीं म्यान में एक ही तलवार रह सकती है.. - ऐसा काशीनाथ को बोला वह"

"ऐ ..सा..?" गणेश बाबू सोचते हुए बोले.

"अब क्या करें?" गणेश बाबू बोले.

"साहब जी आप बस हुक्म कीजिए" राजू बोला .
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बन्धन
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गणेश बाबू ने उसकी ओर देखा. उसका फ़ैसला हो चुका था. उसे आदेश देने पर वह जान की परवाह किए बगैर उसकी खातिर जी जान लड़ा देने वाला था. गणेश बाबू के जबड़े भींच गये थे.

"हाँ वह सही है..एक म्यान में एक ही तलवार रह सकती है.." गणेश बाबू अपनी सोने की चेन और अंगूठियाँ निकाल कर उनके हवाले करते हुए बोले.

" जी साहब जैसी आपकी आज्ञा...वैसे वह भी मंच के नीचे भीड़ में उतरा हैं … एक ही लाठी से उसका सिर फोड़ दूँगा" एक दूसरा बंदा बोला.

"जी साहब" बाकी दोनों ने भी हामी भर दी और फिर वह सब अपनी लाठियों को संभालते हुए मधुकर बाबू की दिशा में बढ़ चले.


अन्य जगहों पर चाहे हालत बेकाबू हो गये हों लेकिन गणेश बाबू और उनके साथी पूरी ताक़त से लोगों को मंच की ओर जाने से रोके हुए थे. उनकी लाठीधारियों के साथ मुठभेड़ अब भी जारी थी. रह रह कर गणेश बाबू का ध्यान उस दिशा में चला जाता जहाँ उन्होने उन तीनों को मधुकर बाबू का गेम बजाने भेजा था. वैसे उन पर उनका पूरा भरोसा था लेकिन काफ़ी देर होने पर भी जब वे न लौटे तो उन्हें चिंता हुई.

इतने में वह तीनो गणेश बाबू को अपनी ओर आते हुए दिखाई दिए ...तीनों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी...

यानी उन्होने सौंपा गया काम कर दिया... उन्होने सोचा.

अब उनके चेहरे पर भी मुस्कुराहट तैरने लगी . वे अब उनके मुँह से खुशख़बरी सुनना चाह रहे थे . इस दौरान वे तीनों उनके पीछे आ कर खड़े हो गये. वे पलटकर उनसे मुखातिब होने ही वाले थे की उन पर किसी ने पीछे से लाठी चलाई और वह लड़खड़ा कर नीचे गिर पड़े.

उन्होने पलटकर देखा तो उन तीनो में से ही एक बंदे ने पीछे से उनके सिर पर लाठी चलाई थी. उन्हें आश्चर्य हुवा था. वे थोडा सम्हलने को हुए थे की इतने में दूसरा ज़ोरदार वार उनके माथे पर हुआ ..इस बार यह वार उनके विश्वासपात्र राजू ने किया था.

.... अब तक गणेश बाबू को समझ आ गया कि उनके साथ धोखा हुआ है.

लेकिन क्यों? और कैसे?...

इसके बाद उनके शरीर पर लाठियों के अनगिनत वार किए गये . हमलावर वही तीन थे. उन तीनो ने लाठियाँ मार मार कर उन्हें अधमरा कर दिया था. तभी लाठीधारियों का एक बड़ा झुंड अपनी तरफ आते देख तीनों वहाँ से भाग खड़े हुए. नीचे पड़े खून से लथपथ कराहते हुए गणेश बाबू का ध्यान अचानक मंच के कोने में गया..चार पाँच कार्यकर्ता मधुरानी को उसकी गाड़ी तक पंहुचने में कामयाब हो गये थे , उन लोगों में मधुकर बाबू भी थे. वह लोग गाड़ी में झटसे बैठ गये. मधुकर बाबू और गणेश बाबू की नज़रें आपस में मिलीं . मधुकर बाबू उनकी ओर देख एक शैतानी हँसी हँसे. फिर मधुकर बाबू ने माधुरानी से बात करते हुए गणेश बाबू की ओर उंगली से इशारा किया.मधुरानी और गणेश बाबू की नज़रें मिली.

यानी..यानी...मुझ पर जो हमला हुआ वह मधुकर बाबू ने किया और वह भी माधुरानी की सहमति से?...

लेकिन क्यों...और कैसे??...

इतने में गणेश बाबू को मधुकरबाबू के गले में अपनी सोने की चेन दिखाई दी.

अच्छा तो ऐसा हुआ...

गणेश बाबू को सब समझ आया . गणेश बाबू को जो उन तीनो ने खबर दी इसमें भी मधुकर बाबू की चाल थी...उन्होने पहले उनको हमला करने के लिए उकसाया और जब गणेश बाबू ने उन तीनों को मधुकर बाबू का गेम बजाने भेजा तो उसने यह बात जा कर मधुरानी को बता दी और सुबूत के तौर पर उनकी चेन और अंगूठियाँ दिखा दी. और फिर जब मधुरानी को यह बात मालूम पड़ी की गणेश बाबू उनको बताए बगैर इतना बड़ा कदम उठा सकते हैं तो वे भरोसे के काबिल नही हैं. फिर मधुकरबाबू ने गणेश बाबू का गेम बजाने के लिए मधुरानी से इजाज़त माँगी - जो उसने दे दी. लेकिन गणेश बाबू के मन में एक झूठी आशा पल्लवित हुई.

अब वह भी मुझे यहाँ से ले जाने का इन्तेजाम कराएगी... वे जाने के लिए तैयार ही थे.

लेकिन यह क्या ? ... वह नज़र अब उनको पहचानती तक न थी , इतना बड़ा दंगा फ़साद होने के बावजूद उन नज़रों में डर भी न था.. दुख भी न था और न दया थी..उन नज़रों में थी एक महत्वकांक्षा..,,,.रास्ते में जो भी आए उसे पैरों तले निर्ममता से रौंदने की चाहत....

मधुरानी ने उन्हें देख कर अनदेखा कर दिया और ड्राईवर को वहाँ से ले चलने का आदेश दिया. उनकी गाड़ी देखते ही देखते नज़रों से ओझल हो गयी. गणेश बाबू देखते ही रह गये. गणेश बाबू को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ. अन्य कार्यकर्ता अब भी लाठीधारियों से लड़ रहे थे।… यह सोच कर की मधुरानी अब भी वहाँ मौजूद है. यानी इन सब लोगों को यूँ ही मरने के लिए छोड़ मधुरानी वहाँ से भाग खड़ी हुई थी.

गणेश बाबू अब नीचे पड़े हुए अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे. इतने में लोगों का बदहवास झुंड उस ओर आया ...वह संख्या में इतने ज़्यादा थे की गणेश बाबू बच ना सके . उस भगदड़ में गणेश बाबू को भीड़ ने बेदर्दी से अंजाने में पैरों तले कुचल डाला..उनकी दर्द भरी चीखें किसी को शोर गुल में सुनाई न दी.

लोगों की भीड़ अब जा चुकी थी लेकिन गणेश बाबू के शरीर का एक भी हिस्सा साबुत न बचा था. थोड़ा हिलाने पर भी उन्हें बहुत दर्द होता था. उन्होने उसी हाल में पड़े पड़े आस पास देखा मधुमक्खियाँ अब भी लोगों को डंस रही थी.....लोगों ने उनसे बचने के लिए उनमें से कई मक्खियों को मसल दिया था. लेकिन वह कार्यकर्ता मक्खियाँ थी..उनका काम अपनी रानी को बचाना था..

गणेश बाबू अब अपनी मौत की प्रतीक्षा करने लगे. अब मौत ही उन्हें इस जानलेवा दर्द से छुटकारा दिला सकती थी. अचानक उनकी नज़र आकाश में गयी उन्होने देखा उस छत्ते की रानी मक्खी अपने साथ कुछ नर मधुमक्खियों और कुछ कार्यकर्ता मक्खियों को ले पूर्व दिशा की ओर उड़ रही थी...... नयी जगह की खोज में....और वह जा रही है इस बात से बेख़बर उसके अन्य कार्यकर्ता अब भी लोगों को डंस रहे थे.......ठीक माधुरानी के कार्यकर्ताओं की तरह.....

गणेश बाबू ने आखरी बार इधर उधर देखा उनके साथी भी लाठी खा कर मर रहे थे तो कुछ अब भी लड़ रहे थे. गणेश बाबू ने सोचा:

इनमें से प्रत्येक आदमी एक कार्यकर्ता मक्खी की मौत मर रहा है....…

उन हालात में भी गणेश बाबू के चेहरे पर समाधान की एक झलक दिखने लगी. उन्हें इस बात की खुशी थी की उनके आस पास मधुरानी के कार्यकर्ता एक कार्यकर्ता मधु मक्खी की मौत मार रहे थे.…

लेकिन जो मौत उनको मिल रही थी वह मौत थी एक नर मधुमक्खी की....

- समाप्त -
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बन्धन
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