सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री complete noval

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Jemsbond
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सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री complete noval

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सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री by Vedprakash sharma

1

फ्लॅट नंबर आ-74.
यशोदा कुंज, राजनगर.
रात के ढाई बजने वाले थे.
हर तरफ सन्नाटा पसरा पड़ा था.
उस कमरे मे भी जिसमे पाँच व्यक्ति मौजूद थे.
एक के जिस्म पर पोलीस इनस्पेक्टर की वर्दी थी, वह सख़्त चेहरे वाला काफ़ी लंबा और तंदुरुस्त व्यक्ति था.
वर्दी पर लगी नेंप्लेट पर लिखा था, राघवन मजूमदार.
उसकी बगल मे खड़े अधेड़ उमरा के शख्स ने हाफ बाजू की टी-शर्ट और पॅंट पहन रखी थी.
उसके भारी-भरकम चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कमरे मे जो कुछ हो रहा था, उसका वश चलता तो उसे तुरंत रोक देता.
कमरे मे जो हो रहा था, वह बेहद रहस्यपूर्न था.
अधेड़ उम्र का एक दूसरा आदमी नाइट सूट पहने डबल बेड पर पालती मारे बैठा था. अपने ठीक सामने उसने एक के उपर एक दो तकिये रखे हुवे थे और तकियो पर था लॅपटॉप.
लॅपटॉप पर इंटरनेट खुला हुआ था.
बेड के दूसरे सिरे पर नाइट गाउन पहने एक औरत ऐसी मुद्रा मे लेटी थी जैसे कि सो रही हो.
उसकी पीठ लॅपटॉप पर काम कर रहे अधेड़ की तरफ थी.
कमरे मे मौजूद पाँचवा शख्स एक युवक था, उसके हाथो मे मौजूद ऑन वीडियो कॅमरा का रुख़ बेड की तरफ था.
लॅपटॉप पर इंटरनेट खोले बैठा शख्स अपने काम मे इस तरह से मशगूल था जैसे कमरे मे मौजूद अन्य चार व्यक्तियो की मौजूदगी का उसे एहसास ही ना हो, जैसे उसे ये भी मालूम ना हो कि एक युवक उसकी वीडियो फिल्म बना रहा है.
अचानक एक आवाज़ हुई.
लॅपटॉप पर काम करने वाले शख्स का ना केवल ध्यान भंग हुआ बल्कि चौंककर उसने दरवाजे की तरफ देखा.
आवाज़ कमरे के बाहर से हुई थी.
अजीब से खाटके की आवाज़ थी वह.
लॅपटॉप पर काम करने वाले के चेहरे पर कुछ देर तक ऐसे भाव रहे जैसे कि सोच रहा हो कि उस आवाज़ का कारण जानने के लिए बेड से उठे या नही.
फिर वह बेड से उठा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया.
अस्चर्य की बात ये थी कि खाटके की जिस आवाज़ ने ये प्रतिक्रिया की थी, उसने इनस्पेक्टर राघवन, टी-शर्ट पहने अधेड़ या वीडियो बनाने वाले को ज़रा भी नही चौंकाया था.
जैसे उनमे से किसी ने वह आवाज़ सुनी ही ना हो.
वीडियो फिल्म बनाने वाले का कॅमरा लॅपटॉप पर काम करने वाले का पीछा करता रहा था.
टी-शर्ट पहने अधेड़ के भारी-भरकम चेहरे पर पहले से काबिज बेचैनी के भाव मे इज़ाफा ज़रूर हो गया था.
अस्चर्य की बात एक और थी, ये कि लॅपटॉप पर काम करने वाले शख्स ने अब भी उनमे से किसी की तरफ देखा तक नही, ठीक इस तरह वह दरवाजे के करीब पहुचा जैसे उसकी नालेज के मुताबिक वे लोग इस कमरे मे हो ही ना.
अकेला ही हो वह.
दरवाजे की चितकनी कमरे की तरफ से बंद थी जिशे उसने नीचे गिराया और बहुत ही आहिस्ता से, इस तरह किवाड़ खोला कि ज़रा भी आवाज़ पैदा ना हो, जैसे चाहता हो की उसके बाहर निकलने के बारे मे किसी को पता ना लगे.
छोटी सी लॉबी मे झाँका उसने.
हालाँकि लॉबी मे कोई बल्ब, ट्यूब या कफ्ल आदि रोशन नही थी फिर भी अंधेरा इतना ना था कि वहाँ मौजूद उन अन्य चार व्यक्तियो को ना देखा जा सके जिनमे से तीन के जिस्मो पर पोलीस की वर्दी थी. चौथे के हाथ मे वैसा ही वीडियो कॅमरा था जैसा कमरे मे मौजूद युवक के हाथ मे था.
उस वीडियो कॅमरा का निशाना भी वोही शख्स था जो लॉबी और कमरे के दरवाजे के बीच से लॉबी की तरफ झाँकता नज़र आ रहा था मगर अस्चर्य...घोर अस्चर्य.
दरवाजे पर खड़े शख्स के चेहरे पर अब भी ऐसा कोई भाव ना उभरा जैसे उसने लॉबी मे मौजूद 4 लोगो को देखा हो.
बल्कि अंदाज ऐसा था जैसे की लॉबी को खाली समझ रहा हो.
उसने दबे पाँव, ऐसे भाव से लॉबी मे कदम रखा जैसे चाहता हो कि किसी को उसके वहाँ आने की आहट ना मिले.
उधर, कमरे मे मौजूद औरत उसी तरह पीठ किए हुवे लेटी रही.
जैसे उसे पता ही ना हो कि वहाँ क्या हो रहा है.
इनस्पेक्टर राघवन मजूमदार ने अपनी बगल मे खड़े टी-शर्ट पहने अधेड़ शख्स का बाजू पकड़ा और लघ्भग ज़बरदस्ती अपने साथ खींचता हुआ उस दरवाजे की तरफ ले गया जिसे लॅपटॉप पर काम करने वाले ने कुछ ही देर पहले पार किया था.
अधेड़ के भारी-भरकम चेहरे पर मौजूद बेचैनी के भाव अब ऐसे भाव मे तब्दील होने लगे थे जैसे की वो अभी रो देगा. विरोधस्वरूप उसने अभी कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि इनस्पेक्टर राघवन ने अपने होंठो पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया. इनस्पेक्टर के चेहरे पर सख्ती के ऐसे भाव थे जो बता रहे थे कि यदि अधेड़ के मुँह से ज़रा सी भी आवाज़ निकली तो वह उसे कच्चा चबा जाएगा.
उनके साथ कॅमरा वाला युवक भी दरवाजे की तरफ बढ़ा.
उसने अपना कॅमरा ऑफ कर लिया था मगर लॉबी मे मौजूद युवक का कॅमरा ना सिर्फ़ केवल ऑन था बल्कि निरंतर नाइट सूट पहने शख्स की हर गतिविधि को क़ैद कर रहा था.
फर्निचर के नाम पर लॉबी मे एक डाइनिंग टेबल और उसके चारो तरफ पड़ी 6 चेर्स थी, डाइनिंग टेबल पर विस्की की बोतल और काँच के दो गिलास रखे हुवे थे.
नाइट सूट वाला दबे पाँव लॉबी के दूसरे सिरे पर मौजूद एक अन्य कमरे के दरवाजे पर पहुचा. मुँह से ज़रा भी आवाज़ निकाले बगैर उसने बंद दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला.
दरवाजा अंदर से बंद ना था क्योंकि वह उसके धकेलते ही खुल गया था, बाकी लोग पूरी खामोशी के साथ अपने-अपने स्थान पर खड़े उस रहस्यमयी तमाशे को देखते रहे जबकि अपने कॅमरा को चालू रखे कॅमरा वाला ना केवल नाइट सूट वाले के पीछे लपका बल्कि उसके पीछे-पीछे उस कमरे मे दाखिल भी हो गया जो पिछले कमरे के मुक़ाबले काफ़ी छोटा था.
इतना छोटा की उसमे डबल-बेड तक नही आ सकता था, कमरे के एक कोने मे एक फोल्डिंग पलंग पड़ा हुआ था.
उस पर दरि और साधारण सी चादर बिछी हुई थी.
पलंग के सिरहाने एक स्टूल था.
स्टूल पर पानी से भारी पलस्टिक की बोतल थी.
वीडियो कॅमरा नाइट सूट वाले की हर हरकत को क़ैद कर रहा था जबकि उसके चेहरे पर गुस्से के भाव नज़र आने लगे थे.
जबड़े कस गये थे.
चेहरा सुर्ख लाल होने लगा था.
खाली कमरे मे घूमती उसकी निगाहे एक कोने मे खड़ी दो हॉकीयो पर स्थिर हो गयी.
फिर, अजीब से जुनून मे नज़र आ रहा वह उस कोने की तरफ बढ़ा और अगले ही पल हाथ बढ़कर एक हॉकी उठा ली थी उसने.
कॅमरा उसकी हर गतिविधि को क़ैद कर रहा था जबकि वह उससे बेपरवाह हॉकी संभाले वापिस लॉबी मे आ गया.
ऐसा होते ही लॉबी मे मौजूद कॅमरा वाले युवक ने भी अपना कॅमरा ऑन कर लिया, अब नाइट सूट वाला जो भी कर रहा था वो दो कॅमरो मे शूट हो रहा था.
बाकी लोग खामोशी से उस सबको देख रहे थे.
जैसे किसी रहस्यमय फिल्म की शूटिंग चल रही हो.
हॉकी संभाले, नाइट सूट वाला अब उस दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था जो उस दरवाजे के ठीक बगल मे था जिसमे औरत सोई हुई सी मुद्रा मे थी, सभी उसके पीछे लपके मगर इस बात का ख़याल रखा कि वीडियो बना रहे युवको के काम मे बाधा ना पड़े.
नाइट सूट वाले ने इस कमरे के दरवाजे को ज़ोर से धकेला.
वह भी अंदर से बंद नही था इसलिए एक ही झटके मे खुल गया और...और उसका खुलना था कि कमरे के डबल बेड पर मौजूद दो शख्स बुरी तरह हड़बड़ा गये, उनके जिस्मो पर पूरे कपड़े नही थे.
एक करीब 45 साल की अधेड़ औरत थी.
दूसरा लड़का था.
औरत के मुँह से शब्द निकले," म..मालिक आप "
नाइट सूट वाला तो मारे गुस्से के जैसे पागल हो चुका था.
उसने पूरी ताक़त से अपने हाथो मे मौजूद हॉकी घुमाई.
हालाँकि हॉकी औरत को लगी नही थी मगर जोरदार चीख के साथ इस तरह अपना सिर पकड़कर दूसरी तरफ उलट गयी जैसे वही लगी हो और लाश की तरह फर्श पर पड़ी रह गयी.
नाइट सूट वाले का गुस्सा जैसे कम नही हुआ था, उसने दूसरी बार हॉकी घुमाई लेकिन इस बार सहमा और डरा हुआ लड़का ये कहता हुआ बीच मे आ गया," क..क्या कर रहे हो प..पापा "
सेंटेन्स अधूरा छोड़ कर एक चीख के साथ वह बेड पर जा गिरा.
उसने अपनी कनपटी पकड़ रखी थी जबकि सचाई ये थी कि हॉकी ने उसे छुआ तक नही था.
उनका इस तरह से गिरना बता रहा था कि उस फ्लॅट मे किसी पुरानी घटना का डेमो चल रहा था.
" क..क्या हुआ, क्या हुआ " बदहवास हालत मे चीखती हुई वह औरत इस कमरे मे दाखिल हुई जिसे वे सब पिच्छले कमरे मे सोती सी छोड़कर आए थे.
कमरे की हालत देखकर वह चीखने वाली मशीन की तरह चीखने लगी और..यही क्षण था जब नाइट सूट वाले ने हॉकी एक तरफ फेंककर उसका मुँह दबोच लिया और गुर्राती सी आवाज़ मे बोला," चुप रहो इंदु, पड़ोसी जाग जाएँगे "
औरत अपने चेहरे पर आतंक और घबराहट के भाव लिए चीखने की कोशिश मे केवल गू-गू कर रही थी.
ठीक उसी वक़्त इनस्पेक्टर राघवन ने टी-शर्ट पहने भारी-भरकम अधेड़ से सख़्त लहजे मे पूछा," 4/5 जून की रात मे यही सब हुआ था ना मिस्टर. राजन सरकार "
" नही... बिल्कुल नही इनस्पेक्टर, ऐसा कुछ भी नही हुआ था " टी-शर्ट वाला अधेड़ लघ्भग चीख पड़ा," ये सब केवल आप लोगो की कल्पना है, मैं और इंदु तो.. "
" खामोश " इनस्पेक्टर चिल्लाया," ये राग अलापना बंद करो "
" कैसे कर दूं इनस्पेक्टर " राजन सरकार रो पड़ा," कैसे कर दूं, जब ऐसा कुछ हुआ ही नही, आप ही सोचिए, क्या आप अपने बेटे को मार सकते है, नही मार सकते ना, हम ने भी अपने बेटे को नही मारा, भला कोई कैसे अपने जिगर के टुकड़े को मार सकता है "
इस बार इनस्पेक्टर ने नरम लहजे मे कहा," मानता हू, तुम्हारी ये बात मैं मानता हू कि कोई भी मा-बाप सामान्य अवस्था मे या यू कहे कि होशो-हवास मे अपनी औलाद की हत्या नही कर सकते और तुमने भी ऐसा नही किया, बस दुर्भाग्य से जो होना था, हो गया. तुमने इस कमरे मे सीन ही ऐसा देखा कि अगर तुम्हारी जगह मैं भी होता तो गुस्से की ज़्यादती के कारण उसी तरह पागल हो जाता जैसे कि तुम हो गये थे, अपने बेटे को अधेड़ नौकरानी के साथ देखकर भला कौन अपने होशो-हवास काबू मे रख सकता है, इसके बावजूद तुमने उन्हे जान से मारने के लिए हॉकी नही घुमाई थी बल्कि सिर्फ़ अपने गुस्से का इज़हार कर रहे थे, लेकिन इत्तेफ़ाक से या कहो कि दुर्भाग्य से हॉकी की चोट मीना के सिर पर ऐसी जगह पड़ गयी कि वह तत्काल मर गयी, ऐसा ही दुर्भाग्य कान्हा के साथ हुआ, हॉकी का दूसरा वार भी तुमने उस पर नही किया था बल्कि मीना पर ही किया था, उसे बचाने के लिए कान्हा सामने आ गया, हॉकी उसे लगी और दुर्भाग्य से उसकी मौत भी तत्काल... "
" नही...नही...नही " राजन सरकार जैसे अपने बाल नोच लेना चाहता था," कितनी बार कहूँ कि ऐसा कुछ भी नही हुआ, मीना और मेरे बेटे को किसी और ने मारा है "
" और मैं आपसे कितनी बार कह चुका हू कि बार-बार ये बेसुरा राग अलापने से आपको या आपकी पत्नी को कोई फ़ायदा नही होने वाला " इस बार इनस्पेक्टर का लहज़ा उसे समझाने वाला था," बल्कि नुकसान ही होगा, मेरी बात को समझने की कोशिश करो, अगर आप कबूल कर लेंगे कि 'हां, ऐसा ही हुआ था' तो आप पर हत्या का नही बल्कि गैर-इरादतन हत्या का केस चलेगा, जो हुआ, उसे आक्सिडेंट माना जाएगा, ऐसे केस मे फाँसी की सज़ा का प्रावधान नही है जबकि इन सबको कबूल ना करके जो मूर्खता आप कर रहे है, उसके फलस्वरूप हत्या की धाराए लगेंगी और आप दोनो को फाँसी पर भी लटकाया जा सकता है "
" हम ऐसा नही होने देंगे " राजन सरकार के जबड़े कस गये.
चेहरा सुर्ख हो गया.
भले ही रो वह अब भी रहा था परंतु दृढ़तापूर्वक बोला," हम अपने बेटे को इंसाफ़ दिलाकर ही रहेंगे, उसके कातिल को फाँसी पर चढ़ाना ही अब हमारा एक्मात्र मकसद है "
" जब उस रात आपके इस फ्लॅट मे आप चारो के अलावा और कोई था ही नही और ना ही ऐसा कोई निशान मिला है जिससे साबित होता हो कि कोई बाहरी व्यक्ति फ्लॅट मे आया या गया हो तो कोई और कैसे मर्डर कर सकता है "
" इस वक़्त मेरे पास तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नही है "
" हमारे सवालो के जवाब आप कभी खोज भी नही पाएँगे "
" बेशक मैं ये काम नही कर सकता मगर इस कायनात मे एक ऐसा आदमी है जो पोलीस के हर सवाल का जवाब ना केवल खोज सकता है बल्कि मुझे और मेरी पत्नी को हत्यारे साबित करने की तुम्हारी पूरी थियरी की धज्जिया उड़ा सकता है "
" हम भी तो सुने " इनस्पेक्टर राघवन के होंठो पर उसकी खिल्ली उड़ाने वाली मुस्कान उभरी थी," कौन है वो अजीम्मोशान हस्ती "

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री

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Sabse Badi Murder Mystery -- Ved Prakash sharma

1

flat number A-74.
Yashoda kunj, Rajnagar.
raat ke dhaai bajne vaale the.
har taraf sannata pasra pada tha.
us kamre me bhi jisme paanch vyakti maujood the.
ek ke jism par police inspector ki vardi thi, vah sakht chehre vaala kaafi lamba aur tandurust vyakti tha.
vardi par lagi nameplate par likha tha, Raaghvan majoomdaar.
uski bagal me khade adhed umra ke shakhs ne half baaju ki t-shirt aur pant pehan rakhi thi.
uske bhaari-bharkam chehre par aise bhaav the jaise kamre me jo kuch ho raha tha, uska vash chalta to use turant rok deta.
kamre me jo ho raha tha, vah behad rahasyapoorn tha.
adhed umra ka ek dusra aadmi night suit pehne double bed par paalthi maare baitha tha. apne theek saamne usne ek ke upar ek do takiye rakhe huve the aur takiyo par tha laptop.
laptop par internet khula hua tha.
bed ke dusre sirey par night gown pehne ek aurat aisi mudra me leti thi jaise ki so rahi ho.
uski peeth laptop par kaam kar rahe adhed ki taraf thi.
kamre me maujood paanchva shakhs ek yuvak tha, uske haatho me maujood on video camera ka rukh bed ki taraf tha.
laptop par internet khole baitha shakhs apne kaam me is tarah se mashgool tha jaise kamre me maujood anya chaar vyaktiyo ki maujoodgi ka use ehsaas hi na ho, jaise use ye bhi maalum na ho ki ek yuvak uski video film bana raha hai.
achanak ek aawaj huyi.
laptop par kaam karne vaale shakhs ka na keval dhyaan bhang hua balki chounkar usne darvaaje ki taraf dekha.
aawaj kamre ke baahar se huyi thi.
ajeeb se khatke ki aawaj thi vah.
laptop par kaam karne vaale ke chehre par kuch der tak aise bhaav rahe jaise ki soch raha ho ki us aawaj ka kaaran jaanne ke liye bed se uthe ya nahi.
fir vah bed se utha aur darvaaje ki taraf badh gaya.
ascharya ki baat ye thi ki khatke ki jis aawaj ne ye pratikriya ki thi, usne inspector Raaghvan, t-shirt pehne adhed ya video banane vaale ko jara bhi nahi chounkaaya tha.
jaise unme se kisi ne vah aawaj suni hi na ho.
video film banane vaale ka camera laptop par kaam karne vaale ka peecha karta raha tha.
t-shirt pehne adhed ke bhaari-bharkam chehre par pehle se kaabij bechaini ke bhaavo me ijaafa jaroor ho gaya tha.
ascharya ki baat ek aur thi, ye ki laptop par kaam karne vaale shakhs ne ab bhi unme se kisi ki taraf dekha tak nahi, theek is tarah vah darvaaje ke kareeb pahucha jaise uski knowledge ke mutabik ve log is kamre me ho hi na.
akela hi ho vah.
darvaaje ki chitkani kamre ki taraf se band thi jise usne neeche giraya aur bahut hi aahista se, is tarah kivaad khola ki jara bhi aawaj paida na ho, jaise chahta ho ki uske baahar nikalne ke baare me kisi ko pata na lage.
choti si lobby me jhaanka usne.
haalanki lobby me koyi bulb, tube ya CFL aadi roshan nahi thi fir bhi andhera itna na tha ki vaha maujood un anya chaar vyaktiyo ko na dekha jaa sake jinme se teen ke jismo par police ki vardi thi. chouthe ke haath me vaisa hi video camera tha jaisa kamre me maujood yuvak ke haath me tha.
us video camera ka nishana bhi vohi shakhs tha jo lobby aur kamre ke darvaaje ke beech se lobby ki taraf jhaankta najar aa raha tha magar ascharya...ghor ascharya.
darvaaje par khade shakhs ke chehre par ab bhi aisa koyi bhaav na ubhra jaise usne lobby me maujood 4 logo ko dekha ho.
balki andaaj aisa tha jaise ki lobby ko khaali samajh raha ho.
usne dabe paanv, aise bhaav se lobby me kadam rakha jaise chahta ho ki kisi ko uske vaha aane ki aahat na mile.
udhar, kamre me maujood aurat ushi tarah peeth kiye huve leti rahi.
jaise use pata hi na ho ki vaha kya ho raha hai.
inspector Raaghvan majoomdaar ne apni bagal me khade t-shirt pehne adhed shakhs ka baaju pakda aur laghbhag jabardasti apne saath kheenchta hua us darvaaje ki taraf le gaya jise laptop par kaam karne vaale ne kuch hi der pehle paar kiya tha.
adhed ke bhaari-bharkam chehre par maujood bechaini ke bhaav ab aise bhaavo me tabdeel hone lage the jaise ki vo abhi ro dega. virodhswaroop usne abhi kuch kehne ke liye munh khola hi tha ki inspector Raaghvan ne apne hontho par ungli rakhkar chup rehne ka ishaara kiya. inspector ke chehre par sakhti ke aise bhaav the jo bata rahe the ki yadi adhed ke munh se jara si bhi aawaj nikli to vah use kachha chaba jaayega.
unke saath camera vaala yuvak bhi darvaaje ki taraf badha.
usne apna camera off kar liya tha magar lobby me maujood yuvak ka camera na sirf keval on tha balki nirantar night suit pehne shakhs ki har gatividhi ko kaid kar raha tha.
furniture ke naam par lobby me ek dining table aur uske chaaro taraf padi 6 chairs thi, dining table par whisky ki botal aur kaanch ke do gilaas rakhe huve the.
night suit vaala dabe paanv lobby ke dusre sirey par maujood ek anya kamre ke darvaaje par pahucha. munh se jara bhi aawaj nikaale bagair usne band darvaaje ko andar ki taraf dhakela.
darvaaja andar se band na tha kyonki vah uske dhakelte hi khul gaya tha, baaki log poori khaamoshi ke saath apne-apne sthaan par khade us rahasymayi tamaashe ko dekhte rahe jabki apne camera ko chaalu rakhe camera vaala na keval night suit vaale ke peeche lapka balki uske peeche-peeche us kamre me daakhil bhi ho gaya jo picchle kamre ke mukable kaafi chota tha.
itna chota ki usme double-bed tak nahi aa sakta tha, kamre ke ek kone me ek folding palang pada hua tha.
us par dari aur saadharan si chaadar bichi huyi thi.
palang ke sirhaane ek stool tha.
stool par paani se bhari palstic ki botal thi.
video camera night suit vaale ki har harkat ko kaid kar raha tha jabki uske chehre par gusse ke bhaav najar aane lage the.
jabde kas gaye the.
chehra surkh laal hone laga tha.
khaali kamre me pan hoti uski nigaahe ek kone me khadi do hockeyo par stith ho gayi.
fir, ajeeb se junoon me najar aa raha vah us kone ki taraf badha aur agle hi pal haath badhakar ek hockey utha li thi usne.
camera uski har gatividhi ko kaid kar raha tha jabki vah usse beparvaah hockey sambhaale vaapis lobby me aa gaya.
aisa hote hi lobby me maujood camera vaale yuvak ne bhi apna camera on kar liya, ab night suit vaala jo bhi kar raha tha vo do camero me shoot ho raha tha.
baaki log khaamoshi se us sabko dekh rahe the.
jaise kisi rahasyamay film ki shooting chal rahi ho.
hockey sambhaale, night suit vaala ab us darvaaje ki taraf badh raha tha jo us darvaaje ke theek bagal me tha jisme aurat soyi huyi si mudra me thi, sabhi uske peeche lapke magar is baat ka khayaal rakha ki video bana rahe yuvko ke kaam ma baadha na pade.
night suit vaale ne is kamre ke darvaaje ko jor se dhakela.
vah bhi andar se band nahi tha isliye ek hi jhatke me khul gaya aur...aur uska khulna tha ki kamre ke double bed par maaujood do shakhs buri tarah hadbada gaye, unke jismo par poore kapde nahi the.
ek kareeb 45 saal ki adhed aurat thi.
dusra ladka tha.
aurat ke munh se shabd nikle," m..maalik aap "
night suit vaala to maare gusse ke jaise paagal ho chuka tha.
usne poori taakat se apne haatho me maujood hockey ghumaayi.
haalanki hockey aurat ko lagi nahi thi magar jordar cheekh ke saath is tarah apna sir pakadkar dusri taraf ulat gayi jaise vahi lagi ho aur laash ki tarah farsh par padi reh gayi.
night suit vaale ka gussa jaise kam nahi hua tha, usne dusri baar hockey ghumaayi lekin is baar sehma aur dara hua ladka ye kehta hua beech me aa gaya," k..kya kar rahe ho p..papa "
sentence adhoora chhodkar ek cheekh ke saath vah bed par jaa gira.
usne apni kanpatti pakad rakhi thi jabki sachaayi ye thi ki hockey ne use chhua tak nahi tha.
unka is tarah se girna bata raha tha ki us flat me kisi puraani ghatna ka demo chal raha tha.
" k..kya hua, kya hua " badhavaas haalat me cheekhti huyi vah aurat is kamre me daakhil huyi jise ve sab pichhle kamre me soti si chhodkar aaye the.
kamre ki haalat dekhkar vah cheekhne vaali machine ki tarah cheekhne lagi aur..yahi kshan tha jab night suit vaale ne hockey ek taraf fenkkar uska munh daboch liya aur gurrati si aawaj me bola," chup raho Indu, padosi jaag jaayenge "
aurat apne chehre par aatank aur ghabrahat ke bhaav liye cheekhne ki koshish me keval goo-goo kar rahi thi.
theek ushi waqt inspector Raaghvan ne t-shirt pehne bhaari-bharkam adhed se sakht lehje me poocha," 4/5 june ki raat me yahi sab hua tha na mr. Rajan sarkar "
" nahi... bilkul nahi inspector, aisa kuch bhi nahi hua tha " t-shirt vaala adhed laghbhag cheekh pada," ye sab keval aap logo ki kalpana hai, mai aur Indu to.. "
" khaamosh " inspector chillaya," ye raag alaapana band karo "
" kaise kar du inspector " Rajan sarkar ro pada," kaise kar du, jab aisa kuch hua hi nahi, aap hi sochiye, kya aap apne bete ko maar sakte hai, nahi maar sakte na, humne bhi apne bete ko nahi maara, bhala koyi kaise apne jigar ke tukde ko maar sakta hai "
is baar inspector ne naram lehje me kaha," maanta hu, tumhaari ye baat mai maanta hu ki koyi bhi maa-baap samanya avastha me ya yu kahe ki hosho-havaas me apni aulaad ki hatya nahi kar sakte aur tumne bhi aisa nahi kiya, bas durbhagya se jo hona tha, ho gaya. tumne is kamre me scene hi aisa dekha ki agar tumhaari jagah mai bhi hota to gusse ki jyadati ke kaaran ushi tarah paagal ho jaata jaise ki tum ho gaye the, apne bete ko adhed naukrani ke saath dekhkar bhala koun apne hosho-havaas kaabu me rakh sakta hai, iske baavjood tumne unhe jaan se maarne ke liye hockey nahi ghumaayi thi balki sirf apne gusse ka ijhaar kar rahe the, lekin ittefaak se ya kaho ki durbhaagy se hockey ki chot Meena ke sir par aisi jagah pad gayi ki vah tatkaal mar gayi, aisa hi durbhaagy Kaanha ke saath hua, hockey ka dusra vaar bhi tumne us par nahi kiya tha balki Meena par hi kiya tha, use bachaane ke liye Kaanha saamne aa gaya, hockey use lagi aur durbhaagy se uski mout bhi tatkaal... "
" nahi...nahi...nahi " Rajan sarkar jaise apne baal noch lena chahta tha," kitni baar kahu ki aisa kuch bhi nahi hua, Meena aur mere bete ko kisi aur ne maara hai "
" aur mai aapse kitni baar keh chuka hu ki baar-baar ye besura raag alaapane se aapko ya aapki patni ko koyi faayda nahi hone vaala " is baar inspector ka lehja use samjhaane vaala tha," balki nuksaan hi hoga, meri baat ko samajhne ki koshish karo, agar aap kabool kar lenge ki 'haan, aisa hi hua tha' to aap par hatya ka nahi balki gair-iradatan hatya ka case chalega, jo hua, use accident maana jaayega, aise case me faansi ki saja ka praavdhaan nahi hai jabki in sabko kabool na karke jo murkhta aap kar rahe hai, uske falswaroop hatya ki dhaaraaye lagengi aur aap dono ko faansi par bhi latkaaya jaa sakta hai "
" hum aisa nahi hone denge " Rajan sarkar ke jabde kas gaye.
chehra surkh ho gaya.
bhale hi ro vah ab bhi raha tha parantu dridhtapoorvak bola," hum apne bete ko insaaf dilakar hi rahenge, uske kaatil ko faansi par chadhaana hi ab hamara ekmaatra maksad hai "
" jab us raat aapke is flat me aap chaaro ke alawa aur koyi tha hi nahi aur na hi aisa koyi nishaan mila hai jisse saabit hota ho ki koyi baahri vyakti flat me aaya ya gaya ho to koyi aur kaise murder kar sakta hai "
" is waqt mere paas tumhaare kisi sawaal ka jawaab nahi hai "
" hamare sawaalo ke jawaab aap kabhi khoj bhi nahi paayenge "
" beshak mai ye kaam nahi kar sakta magar is kaaynaat me ek aisa aadmi hai jo police ke har sawaal ka jawaab na keval khoj sakta hai balki mujhe aur meri patni ko hatyaare saabit karne ki tumhaari poori theory ki dhajjiya uda sakta hai "
" hum bhi to sune " inspector Raaghvan ke hontho par uski khilli udaane vaali muskaan ubhri thi," koun hai vo ajeemmushaan hasti "
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Jemsbond
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Re: सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री

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" हम विजय थे ग्रेट है पूरे शेर, हम सबकुछ कर सकते है, अच्छे-ख़ासे ओमलेट को आंटे की तरह गून्थ्कर फिर से अंडा बना सकते है, दही को दूध मे तब्दील कर सकते है, चाहे तो बनी-बनाई रोटी को चक्की मे डालकर फिर से गेहू बना सकते है और काले जादू के ज़ोर से तुझे वापिस तेरी माँ के गर्भ मे पहुचा सकते है "
पूरणसिंघ के मुँह से बोल ना फूटा, वह टकटकी लगाए अपने सामने उल्टे लटके विजय को बस देखता रहा.
उस विजय को जिसके जिस्म पर इस वक़्त सिर्फ़ लाल रंग का लंगोट जैसा अंडरवेर था.
उस विजय को जिसके पूरे जिस्म पर इतना सरसो का तेल लगा हुआ था जैसे वो उससे नाहया हुआ हो.
उस विजय को जिसके जिस्म पर चोट के वे निशान सॉफ नज़र आ रहे थे जो विभिन्न मिशन्स के दौरान उसे लगी थी.
और उस विजय को जिसके दोनो पैर इस वक़्त लोहे के उन कुंडो मे फँसे हुवे थे जिनसे जुड़ी जंजीरो के दूसरे सिरे कमरे के लंतर से जॉइंट कुंडो से जुड़े हुवे थे.
पैरो को कुंडे मे फँसाए वह उल्टा लटका हुआ था.
उसका पुराना नौकर पूरणसिंघ फर्श पर सीधा खड़ा मुँह उठाए उसकी तरफ देख रहा था.
चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि उस पल को कोस रहा हो जिस पल वह इस कमरे मे आया था.
उसने बस ये पूछने का गुनाह किया था कि 'आप नाश्ते मे क्या लेंगे' विजय ने तपाक से कहा था 'चिन्टियो का मुर्रब्बा'.
पूरणसिंघ बौखला गया था.
बात उसकी समझ मे नही आई थी इसलिए मुँह से ये लफ़्ज निकल पड़े," छींतियो का मुर्राबा कैसे बन सकता है मालिक "
विजय ने कहा," हम बना सकते है चिटियो का मुर्रब्बा "
पूरणसिंघ ने कहा था," ऐसा भला आप कैसे कर सकते है "
बस.
इसी सवाल के जवाब मे उसे विजय की उपरोक्त स्पीच सुनने को मिली थी, कभी समाप्त ना होने वाली स्पीच.
पूरणसिंघ को सूझा नही कि वो जवाब मे क्या कहे इसलिए चुपचाप विजय की तरफ देखता रह गया था लेकिन उसे विजय ही कौन कहे जो सामने वाले को चुप ही रहने दे, बोला," गूंगी का गुड क्यू बना रखा है पूरे शेर, चौन्च खोल, कुछ तो बोल "
" क्या बोलू मालिक, मेरी तो कुछ समझ मे ही नही आ रहा "
" सम्धन नही आ रही " विजय चिहुका," अबे घोनचू, सम्धन तब आती है जब आदमी का बच्चा अपने बेटे या बेटी की शादी करता है, औलाद की मदर इन लॉ को सम्धन कहा जाता है और तू तो हमारी तरह चिर कुँवारा है, आज तक तूने चूहे का बच्चा भी पैदा नही किया तो फिर सम्धन कैसे आ जाएगी "
पूरणसिंघ अपने बाल नोचने पर आमादा हो गया, बोला," मैं सम्धन की नही, समझ की बात कर रहा हू मालिक "
विजय ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि कमरे के बाहर से आवाज़ आई," कहाँ हो गुरु "
" अबे " विजय इस तरह हड़बड़ाया जैसे बहुत बड़ी आफ़त आ गयी हो," बेमौसम के मेंढक की तरह दिलजला कहाँ से टपक पड़ा "
पूरणसिंघ को तो जैसे विजय के सामने से हटने के लिए मुँह माँगी मुराद मिल गयी थी, वो ये कहता हुआ दरवाजे की तरफ लपका," मैं देखता हू मालिक "
मगर, दरवाजे तक पहुच नही सका पूरणसिंघ.
विजय ने बहुत ही तेज़ी से अपने जिस्म को एक जोरदार झटका दिया था, उसके परिणामस्वरूप एक लंबे झोट के साथ हवा मे तैरता उसका उल्टा जिस्म दरवाजे के नज़दीक पहुच चुके पूरणसिंघ के ठीक उपर पहुचा और फिर उसने नीचे की तरफ लटक रहे अपने दोनो हाथ बढ़ाकर ठीक इस तरह पूरणसिंघ की गर्दन अपनी भुजाओ मे लपेट ली जैसे बाज हवा मे परवाज़ करते हुवे कबूतर को दबोच लेता है.
अचानक खुद पर टूट पड़ी आफ़त के कारण पूरणसिंघ के हलक से चीख निकल गयी थी मगर चीखने और छटपटाने से ज़्यादा वह कुछ भी तो नही कर सका.
उसे दबोचे विजय ठीक उस तरह लंबे-लंबे झोट ले रहा था जैसे सावन के महीने मे महिलाए पेड़ पर झूले डालकर झूलती है.
फ़र्क था तो केवल इतना कि वे रस्सी या पटरी पर सीधी बैठी होती है जबकि विजय अपने विचित्र झूले पर उल्टा लटका हुआ था और पूरणसिंघ को दबोचे हुवे था.
दरवाजे पर पहुच चुके विकास ने जब उस दृश्य को देखा तो हैरान रह गया, कम से कम पहली नज़र मे उसकी समझ मे बिल्कुल नही आया था कि विजय गुरु आख़िर कर क्या रहे है.
विकास के गठे हुवे जिस्म पर इस वक़्त पीले रंग की ऐसी पॅंट थी जो नीचे से उसकी टगो से चिपकी हुई थी और उपर यानी की जाँघो के नज़दीक से थोड़ी फूली हुई थी.
काले रंग की हाफ-बाजू की टी-शर्ट मे उसके मसल्स सॉफ नज़र आ रहे थे, उसका पेट अंदर था, सीना बाहर.
पैरो मे सफेद रंग के रीबॉक के शूस पहने वह कमरे के दरवाजे पर खड़ा उस विचित्र दृश्य को देख रहा था.
माहौल मे पूरणसिंघ की चीखे गूँज रही थी मगर विजय रुकने को तैयार नही था, रुकना तो दूर वह अपने झोटो को और तेज किए जा रहा था, इतना तेज कि अब वह कमरे की दीवारो से बार-बार लगभग टच सा हो रहा था.
विकास की समझ मे शुरू मे विजय की इस हरकत का मतलब भले ही नही आया हो मगर अब.. दिमाग़ के सक्रिय होते ही समझ गया कि विजय गुरु की जो हरकत एक नज़र मे मूर्खतापूर्ण नज़र आ रही थी, उसके पीछे गहरा राज़ है.
दो मिनिट इंतजार करते रहने के बाद विकास बोला," बस गुरु, बहुत हो गया, अब छ्चोड़ दो पूरणसिंघ अंकल को "
" अजी ऐसे-कैसे छोड़ दे " विजय ने उसे उसी तरह झुलाते हुवे कहा," तेरी आवाज़ सुनते ही जैसे इस साले के हाथ बटेर लग गयी, हमारे हुकुम के बगैर हमे अकेला छोड़कर जा रहा था, हम ने जमूरे को पकड़ लिया, अभी तो सुर से सुर मिलाकर हरियाली तीज के गीत गाने है "
" जो गुनाह इन्होने किया था उसकी सज़ा पूरी हो चुकी है गुरु, प्लीज़ छोड़ दो बेचारे को "
" तुम रिक्वेस्ट कर रहे हो तो ऐसा ही कर देते है, पूरे शेर को लपकने के लिए तैयार हो जाओ "
" लपकने के लिए "
" लपकोगे नही तो इस पोज़िशन मे छोड़ने पर राम नाम सत्य नही हो जाएगा पूरे शेर का "
" बात तो ठीक... "
विकास का वाक्य पूरा नही हो पाया था क्योंकि उससे पहले ही विजय ने 'लो' कहने के साथ ही पूरणसिंघ को छोड़ दिया था.
मुँह से निकलने वाली बहुत ही लंबी चीख के साथ पूरणसिंघ का जिस्म हवा मे लहराकार फर्श की तरफ बढ़ा और इसमे शक नही कि अगर विकास ने हैरतअंगेज़ फुर्ती के साथ उसे लपक ना लिया होता तो उसे काफ़ी चोटे आती.
विकास उस वक़्त भी पूरणसिंघ को अपनी बाहो मे भरे गिरने से बचाने की कोशिश कर रहा था जब झोट लेते हुवे विजय ने तत्काल ताली बजाई और कहा," वेल डन दिलजले, वेल डन, तुम उतनी फुर्ती दिखाने के इम्तिहान मे पास हो गये हो जितनी हम चाहते थे "
" आपका भी जवाब नही गुरु " विकास ने पूरणसिंघ को सोफे पर बिठाते हुवे कहा," मेरा इम्तिहान लेने के चक्कर मे अगर पूरणसिंघ अंकल को चोट आ जाती तो "
" नही आ सकती थी दिलजले क्योंकि हमे अपनी बछिया के दाँत पता है " इन शब्दो के साथ ही उसने झोट छोटे कर लिए थे.
सोफे पर बैठे हुवे पूरणसिंघ को अब भी ऐसा लग रहा था जैसे विजय के फंदे मे फँसा हवा मे झूल रहा हो.
चक्कर से आ रहे थे उसे इसलिए सोफे पर लेट गया.
उधर, विजय का झूला रुक चुका था.
अपने शरीर को अजीब ढंग से उसने उपर की तरफ उछाला और दोनो जंजीरो को हाथो से पकड़ लिया, अपने पैर गोल कुंडे से निकाले और सीधा होकर फर्श पर कूद गया.
विकास आगे बढ़ा, श्रद्धापूर्वक उसके चरण स्पर्श करते हुवे बोला," प्रणाम गुरुदेव "
" वो तो ठीक है प्यारे दिलजले, मगर आज अकेले कैसे "
सीधे खड़े होते हुवे विकास ने पूछा," क्या मतलब "
" बंदर कहाँ गया "
जवाब विकास ने नही बल्कि दरवाजे से उभरने वाली बंदर की ची-ची ने दिया था, विजय के साथ ही विकास ने भी उधर देखा.
वाहा धनुष्टानकार मौजूद था, मौजूद ही नही था, विजय पर घुड़क भी रहा था.
चेहरे पर गुस्से के चिन्ह थे.
उसके गुस्से की वजह जानते ही विजय सकपका गया, तुरंत बोला," अरे तौबा, मेरे बाप की तौबा मोंटो प्यारे, कसम काले चिड़ीमार की, मैंने तुम्हे बंदर नही कहा "
अजीब नमूना था वह जिसे धनुषटंकार कहा जाता था.
जिस्म से बंदर, मन-मश्तिश्क से इंसान.
हमेशा की तरह इस वक़्त भी वह शानदार सूट मे था, पैरो मे नन्हे-नन्हे किंतु चमकदार जूते थे, अपने हाथो से उसने कान पकड़े, फुर्ती से उठक-बैठक लगाई और फिर विजय को भी वैसा ही करने का इशारा किया.
विजय जानता था कि धनुषटंकार की तरफ से उसे ये सज़ा बंदर कहने की है. गनीमत थी कि वह सज़ा दे रहा था वरना होता ये था कि खुद को बंदर कहने वाले के गाल पर धनुषटंकार करारा चाँटा रसीद कर देता था.
" लो मोंटो प्यारे, हमे माफ़ करो, अपना दिल सॉफ करो " कहने के साथ ही विजय ने कान पकड़कर उठक-बैठक लगानी शुरू कर दी और उसकी इस हरकत पर विकास के गुलाब की पंखुड़ियो से होंठ शरारती अंदाज मे फैल गये.
दरवाजे पर खड़ा धनुष टंकार खुश हो गया.
ख़ुसी का इज़हार करने का उसके पास एक ही तरीका था और वही उसने किया, यानी कोट की जेब से पव्वा निकालकर ढक्कन खोला, दो घूँट हलक मे उंड़ेली और ढक्कन बंद करके पववा जेब मे रखने के बाद मटकने लगा.
विजय अभी मुश्किल से तीन या चार उठक-बैठक ही लगा पाया था कि धनुष टंकार का जिस्म हवा मे लहराकर विजय की गर्दन पर आ गिरा.
" अबे..अबे...क्या करते हो गान्डीव प्यारे " विजय कहता ही रह गया जबकि उसके सीने पर सवार धनुष टंकार गले मे बाँहे डाले उसके चेहरे पर चुंबनो की झड़ी लगाता चला गया.
ये था धनुषटंकार के प्यार करने का तरीका.
चुंबनो से पेट भरने के बाद धनुष टंकार वहाँ से कूदकर उस सोफे की पुष्ट पर जा बैठा जिस पर लेटा पूरणसिंघ अब स्तिथि बेहतर होने के कारण बैठा हुआ था.
और जिस समय मोंटो जेब से एक सिगार निकालकर सुलगा रहा था उस समय विकास ने विजय से पूछा," तो ये प्रॅक्टीस हो रही थी गुरु कि आप कितनी देर तक उल्टे लटक सकते है "
" सोलाह आने ग़लत " विजय ने तपाक से कहा," सावन आने वाला है ना, हम तो ये देख रहे थे कि अपनी कल्लो भाटीयारिं के साथ किस तरह पींगे बढ़ानी है "
" आप मुझे बेवकूफ़ नही बना सकते "
" फिर किसे बना सकते है " विजय ने शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन लंबी करके महामूर्ख की तरह पलके झपकाई.
" सारी दुनिया को, मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आप ना केवल उल्टे लटकने की प्रॅक्टीस कर रहे थे बल्कि ये भी आजमा रहे थे कि इस पोज़िशन मे कितना वेट उठाकर कितने लंबे झोट कितनी देर तक लगा सकते है, इसलिए आपने पूरणसिंघ अंकल को उठाया, मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आपकी मूर्खतापूर्ण हर्कतो के पीछे अक्सर ऐसी ही सार्थक बाते छुपी होती है "
" कह सकते हो तो कहो, रोका किस बागडबिल्ले ने है, मगर ये तो बताओ थर्मस कहाँ है "
" थर्मस " वाकाई विकास का दिमाग़ चकरा गया.
" सुबह-सुबह आए हो, गुरु के लिए चाय-वाय तो लाए ही होगे "
विकास ठहाका लगाकर हंस पड़ा," आपका भी जवाब नही गुरु, घर आए मेहमान को चाय पिलाने से तो गये, उल्टे उसी से पूच रहे हो कि थर्मस कहाँ है और... "
" हां-हां, भौंको जितना भौंकने की हसरत है, भौंको "
" अब सुबह नही है, दोपहर के 11 बज रहे है "
" घड़ी पर तो बजते ही रहते है लेकिन तुम्हारे चेहरे पर 12 क्यो बजे है दिलजले, सुबह-सुबह तूलाराशि ने ठोक दिया क्या "
इस बार विकास थोड़ा सीरीयस नज़र आया," मैं आपसे उस मर्डर मिस्टरी पर चर्चा करने आया हू गुरु जिसने राजनगर को ही नही, सारे मुल्क को हिलाकर रख दिया है, जिसे इस देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्टरी कहा जा रहा है "
" कौन सी पेस्ट्री की बात कर रहे हो यार, हम ने तो आज तक ऐसी कोई पेस्ट्री नही खाई जिसे देश की सबसे बड़ी पेस्ट्री कहा जाए "
" मैं पेस्ट्री की नही, मिस्टरी की बात कर रहा हू गुरु "
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Jemsbond
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Re: सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री

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" hum Vijay the great hai poore sher, hum sabkuch kar sakte hai, achhe-khaase omlett ko aante ki tarah goonthkar fir se anda bana sakte hai, dahi ko doodh me tabdeel kar sakte hai, chahe to bani-banayi roti ko chakki me daalkar fir se gehu bana sakte hai aur kaale jaadu ke jor se tujhe vaapis teri maa ke garbh me pahucha sakte hai "
Poornsingh ke munh se bol na foota, vah taktaki lagaye apne saamne ulte latke Vijay ko bas dekhta raha.
us Vijay ko jiske jism par is waqt sirf laal rang ka langot jaisa underwear tha.
us Vijay ko jiske poore jism par itna sarso ka tel laga hua tha jaise vo usse nahaya hua ho.
us Vijay ko jiske jism par chot ke ve nishaan saaf najar aa rahe the jo vibhinn missions ke douraan use lagi thi.
aur us Vijay ko jiske dono pair is waqt lohe ke un kundo me fanse huve the jinse judi janjeero ke dusre sirey kamre ke lantar se joint kundo se jude huve the.
pairo ko kunde me fansaaye vah ulta latka hua tha.
uska purana naukar Poornsingh farsh par seedha khada munh uthaaye uski taraf dekh raha tha.
chehre par aise bhaav the jaise ki us pal ko kos raha ho jis pal vah is kamre me aaya tha.
usne bas ye poochne ka gunaah kiya tha ki 'aap naashte me kya lenge' Vijay ne tapaak se kaha tha 'cheentiyo ka murraba'.
Poornsingh boukhla gaya tha.
baat uski samajh me nahi aayi thi isliye munh se ye lafj nikal pade," cheentiyo ka murraba kaise ban sakta hai maalik "
Vijay ne kaha," hum bana sakte hai cheentiyo ka murraba "
Poornsingh ne kaha tha," aisa bhala aap kaise kar sakte hai "
bas.
ishi sawaal ke jawaab me use Vijay ki uprokt speech sunne ko mili thi, kabhi samapt na hone vaali speech.
Poornsingh ko soojha nahi ki vo jawaab me kya kahe isliye chupchaap Vijay ki taraf dekhta reh gaya tha lekin use Vijay hi koun kahe jo saamne vaale ko chup hi rehne de, bola," goongi ka good kyu bana rakha hai poore sher, chounch khol, kuch to bol "
" kya bolu maalik, meri to kuch samajh me hi nahi aa raha "
" samdhan nahi aa rahi " Vijay chihuka," abe ghonchu, samdhan tab aati hai jab aadmi ka bachha apne bete ya beti ki shaadi karta hai, aulaad ki mother in law ko samdhan kaha jaata hai aur tu to hamari tarah chir kunvaara hai, aaj tak tune chuhe ka bachha bhi paida nahi kiya to fir samdhan kaise aa jaayegi "
Poornsingh apne baal nochne par aamada ho gaya, bola," main samdhan ki nahi, samajh ki baat kar raha hu maalik "
Vijay ne kuch kehne ke liye munh khola hi tha ki kamre ke baahar se aawaj aayi," kaha ho guru "
" abey " Vijay is tarah hadbadaya jaise bahut badi aafat aa gayi ho," bemausam ke mendhak ki tarah diljala kaha se tapak pada "
Poornsingh ko to jaise Vijay ke saamne se hatne ke liye munhmaangi muraad mil gayi thi, vo ye kehta hua darvaaje ki taraf lapka," main dekhta hu maalik "
magar, darvaaje tak pahuch nahi saka Poornsingh.
Vijay ne bahut hi teji se apne jism ko ek jordaar jhatka diya tha, uske parinaamswaroop ek lambe jhote ke saath hava me tairta uska ulta jism darvaaje ke najdeek pahuch chuke Poornsingh ke theek upar pahucha aur fir usne neeche ki taraf latak rahe apne dono haath badhakar theek is tarah Poornsingh ki gardan apni bhujaao me lapet li jaise baaj hava me parvaaj karte huve kabootar ko daboch leta hai.
achanak khud par toot padi aafat ke kaaran Poornsingh ke halak se cheekh nikal gayi thi magar cheekhne aur chatpataane se jyada vah kuch bhi to nahi kar saka.
use daboche Vijay theek us tarah lambe-lambe jhote le raha tha jaise saawan ke mahine me mahilaaye ped par jhoole daalkar jhoolti hai.
fark tha to keval itna ki ve rassi ya patri par seedhi baithi hoti hai jabki Vijay apne vichitra jhoole par ulta latka hua tha aur Poornsingh ko daboche huve tha.
darvaaje par pahuch chuke Vikas ne jab us drishya ko dekha to hairaan reh gaya, kam se kam pehli najar me uski samajh me bilkul nahi aaya tha ki Vijay guru aakhir kar kya rahe hai.
Vikas ke gathey huve jism par is waqt peele rang ki aisi pant thi jo neeche se uski taago se chipki huyi thi aur upar yaani ki jaangho ke najdeek se thodi fooli huyi thi.
kaale rang ki half-baaju ki t-shirt me uske muscles saaf najar aa rahe the, uska pet andar tha, seena baahar.
pairo me safed rang ke reebok ke shoes pehne vah kamre ke darvaaje par khada us vichitra drishya ko dekh raha tha.
mahoul me Poornsingh ki cheekhe goonj rahi thi magar Vijay rukne ko taiyaar nahi tha, rukna to door vah apne jhoto ko aur tej kiye jaa raha tha, itna tej ki ab vah kamre ki deewaro se baar-baar laghbahg touch sa ho raha tha.
Vikas ki samajh me shuru me Vijay ki is harkat ka matlab bhale hi nahi aaya ho magar ab.. dimaag ke sakriya hote hi samajh gaya ki Vijay guru ki jo harkat ek najar me murkhtapoorn najar aa rahi thi, uske peeche gehra raaz hai.
do minute intjaar karte rehne ke baad Vikas bola," bas guru, bahut ho gaya, ab chhod do Poornsingh uncle ko "
" aji aise-kaise chhod de " Vijay ne use usi tarah jhulaate huve kaha," teri aawaj sunte hi jaise is saale ke haath bater lag gayi, hamare hukum ke bagair hame akela chhodkar jaa raha tha, hum ne jamoore ko pakad liya, abhi to sur se sur milakar hariyaali teej ke geet gaane hai "
" jo gunaah inhone kiya tha uski saza poori ho chuki hai guru, please chhod do bechaare ko "
" tum request kar rahe ho to aisa hi kar dete hai, poore sher ko lapakne ke liye taiyaar ho jaao "
" lapakne ke liye "
" lapkoge nahi to is position me chhodne par raam naam satya nahi ho jaayega poore sher ka "
" baat to theek... "
Vikas ka vaakya poora nahi ho paaya tha kyonki usse pehle hi Vijay ne 'lo' kehne ke saath hi Poornsingh ko chhod diya tha.
munh se niklane vaali bahut hi lambi cheekh ke saath Poornsingh ka jism hava me lehrakar farsh ki taraf badha aur isme shak nahi ki agar Vikas ne hairatangej furti ke saath use lapak na liya hota to use kaafi chote aati.
Vikas us waqt bhi Poornsingh ko apni baaho me bhare girne se bachaane ki koshish kar raha tha jab jhote lete huve Vijay ne tatkaal taali bajayi aur kaha," well done diljale, well done, tum utni furti dikhaane ke imtihaan me paas ho gaye ho jitni hum chahte the "
" aapka bhi jawaab nahi guru " Vikas ne Poornsingh ko sofe par bithate huve kaha," mera imtihaan lene ke chakkar me agar Poornsingh uncle ko chot aa jaati to "
" nahi aa sakti thi diljale kyonki hame apni bachhiya ke daant pata hai " in shabdo ke saath hi usne jhote chote kar liye the.
sofe par baithe huve Poornsingh ko ab bhi aisa lag raha tha jaise Vijay ke fande me fansa hava me jhool raha ho.
chakkar se aa rahe the use isliye sofe par let gaya.
udhar, Vijay ka jhula ruk chuka tha.
apne shreer ko ajeeb dhang se usne upar ki taraf uchhala aur dono janjeero ko haatho se pakad liya, apne pair gol kunde se nikaale aur seedha hokar farsh par kood gaya.
Vikas aage badha, shraddhapoorvak uske charan sparsh karte huve bola," pranaam gurudev "
" vo to theek hai pyaare diljale, magar aaj akele kaise "
seedhe khade hote huve Vikas ne poocha," kya matlab "
" bandar kaha gaya "
jawaab Vikas ne nahi balki darvaaje se ubharne vaali bandar ki chi-chi ne diya tha, Vijay ke saath hi Vikas ne bhi udhar dekha.
vaha Dhanushtankaar maujood tha, maujood hi nahi tha, Vijay par ghudak bhi raha tha.
chehre par gusse ke chinh the.
uske gusse ki vajah jaante hi Vijay sakpaka gaya, turant bola," arey tauba, mere baap ki tauba Monto pyaare, kasam kaale chidimaar ki, mainne tumhe bandar nahi kaha "
ajeeb namuna tha vah jise Dhanushtankaar kaha jaata tha.
jism se bandar, man-mashtishk se insaan.
hamesha ki tarah is waqt bhi vah shaandaar suit me tha, pairo me nanhe-nanhe kintu chamakdaar joote the, apne haatho se usne kaan pakde, furti se uthak-baithak lagayi aur fir Vijay ko bhi vaisa hi karne ka ishaara kiya.
Vijay jaanta tha ki Dhanushtankaar ki taraf se use ye saza bandar kehne ki hai. ganimat thi ki vah saza de raha tha varna hota ye tha ki khud ko bandar kehne vaale ke gaal par Dhanushtankaar karara chaanta raseed kar deta tha.
" lo Monto pyaare, hame maaf karo, apna dil saaf karo " kehne ke saath hi Vijay ne kaan pakadkar uthak-baithak lagaani shuru kar di aur uski is harkat par Vikas ke gulaab ki pankhudiyo se honth shararati andaaj me fail gaye.
darvaaje par khada Dhanushtankaar khush ho gaya.
khusi ka ijhaar karne ka uske paas ek hi tareeka tha aur vahi usne kiya, yaani coat ki jeb se pavva nikalkar dhakkan khola, do ghoont halak me undeli aur dhakkan band karke pavva jeb me rakhne ke baad matakne laga.
Vijay abhi mushkil se teen ya chaar uthak-baithak hi laga paaya tha ki Dhanushtankaar ka jism hava me lehrakar Vijay ki gardan par aa gira.
" abey..abey...kya karte ho gaandiv pyaare " Vijay kehta hi reh gaya jabki uske seene par sawaar Dhanushtankaar galey me baanhe daale uske chehre par chumbano ki jhadi lagata chala gaya.
ye tha Dhanushtankaar ke pyaar karne ka tareeka.
chumbano se pet bharne ke baad Dhanushtankaar vaha se koodkar us sofe ki pusht par jaa baitha jis par leta Poornsingh ab stithi behtar hone ke kaaran baitha hua tha.
aur jis samay Monto jeb se ek sigaar nikalkar sulga raha tha us samay Vikas ne Vijay se poocha," to ye practice ho rahi thi guru ki aap kitni der tak ulte latak sakte hai "
" solaah aane galat " Vijay ne tapaak se kaha," saawan aane vaala hai na, hum to ye dekh rahe the ki apni Kallo bhatiyaarin ke saath kis tarah peenge badhaani hai "
" aap mujhe bevkoof nahi bana sakte "
" fir kise bana sakte hai " Vijay ne shuturmurg ki tarah gardan lambi karke mahamurkh ki tarah palke jhapkaayi.
" saari duniya ko, main daave ke saath keh sakta hu ki aap na keval ulte latakne ki practice kar rahe the balki ye bhi aajma rahe the ki is position me kitna weight uthakar kitne lambe jhote kitni der tak laga sakte hai, isliye aapne Poornsingh uncle ko uthaya, main daave ke saath keh sakta hu ki aapki murkhtapoorn harkato ke peeche aksar aisi hi saarthak baate chupi hoti hai "
" keh sakte ho to kaho, roka kis baagaDabille ne hai, magar ye to batao tharmas kaha hai "
" tharmas " vaakayi Vikas ka dimaag chakra gaya.
" subah-subah aaye ho, guru ke liye chaay-vaay to laaye hi hoge "
Vikas thahaka lagakar hans pada," aapka bhi jawaab nahi guru, ghar aaye mehmaan ko chaay pilaane se to gaye, ulte usi se pooch rahe ho ki tharmas kaha hai aur... "
" haan-haan, bhounko jitna bhounkne ki hasrat hai, bhounko "
" ab subah nahi hai, dopahar ke 11 baj rahe hai "
" ghadi par to bajte hi rehte hai lekin tumhaare chehre par 12 kyo baje hai diljale, subah-subah tulaaraashi ne thok diya kya "
is baar Vikas thoda serious najar aaya," main aapse us murder mystery par charcha karne aaya hu guru jisne Rajnagar ko hi nahi, saare mulk ko hilakar rakh diya hai, jise is desh ki sabse badi murder mystery kaha jaa raha hai "
" koun si pastry ki baat kar rahe ho yaar, hum ne to aaj tak aisi koyi pastry nahi khaayi jise desh ki sabse badi pastry kaha jaaye "
" main pastry ki nahi, mystery ki baat kar raha hu guru "
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तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री

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" मिस्त्री की, आमा, मिस्त्री की भला हमे क्या ज़रूरत है, ये मकान जिसकी छत के नीचे इस वक़्त तुम खड़े हो, 1857 मे बनवाया था, ठीक तब जब अंग्रेज़ो से आज़ादी के लिए पहली बार पंगा लिया गया था, तब से अब तक ज्यो का त्यो खड़ा है, मरम्मत की भी ज़रूरत नही है, फिर मिस्त्री की ज़रूरत क्यो पड़ेगी "
" क्या कहता है आपका दिमाग़ " विकास ने विजय की बातो पर ज़रा भी ध्यान दिए बगैर अपना सवाल किया," क्या अपने बेटे और नौकरानी की हत्या सरकार दंपति ने ही की है "
" हे लाल लंगोटे वाले, हमारे दिलजले को ये क्या हो गया है " हाथ जोड़कर विजय ने कमरे के लॅंटार की तरफ देखा और कहता चला गया," एक ही साँस मे कभी पेस्ट्री की बात कर रहा है, कभी मिस्त्री की और ना जाने कभी किसकी हत्या और कौन सी सरकार के दंपति की, क्या इसे मेंटल डॉक्टर की दरकार है "
" प्लीज़ गुरु, मेरे सवाल का जवाब दो "
" देते है, देना पड़ेगा, नही देंगे तो तुम एक ही घूँसे मे हमारी नाक का मालूदा बना सकते हो क्योंकि हम सॉफ-सॉफ महसूस कर रहे है कि तुम्हारा दिमाग़ अपनी जगह से सरक चुका है और सरके हुवे दिमाग़ का मानव जो कर जाए कम है, पूछो.... बल्कि धोऊ, धोऊ, क्या धोना है "
" मैंने ये पूछा कि क्या आपके ख़याल से कान्हा और मीना की हत्या राजन सरकार और उसकी पत्नी इंदु सरकार ने की है "
" आमा यार, क्यो हलकान कर रहे हो हमे, हमे क्या पता कि कौन कान्हा, कौन मीना, कौन राजन और कौन इंदु सरकार "
" मज़ाक मत करो गुरु "
" हम तुम्हे मज़ाक करते नज़र आ रहे है " उसने अपने उस जिस्म की तरफ इशारा करते हुवे कहा जिस पर अभी सिर्फ़ एक लाल लंगोटे जैसा अंडरवेर था," ये कपड़े पहनकर हम तुमसे मज़ाक करेंगे, तुम हमारी साली लगती हो या भाभी "
" मैं नही मान सकता कि जो नाम आज इस देश के बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर है, वे आपने ना सुना हो "
" नही मान सकते तो ना मानो, हमारे ठेंगे से, हम ने ये नाम नही सुने तो नही सुने, कोई ज़बरदस्ती है कि हम सबके नाम सुने "
" मैं कान्हा मर्डर मिस्टरी की बात कर रहा हू गुरु "
" तुम तो यार फिर पेस्ट्री की बात करने लगे, तुम्हे तो किसी मेंटल डॉक्टर को दिखाना ही पड़ेगा, आओ... हमारे साथ आओ " कहते हुए विजय ने विकास का बाजू पकड़ा और उसे दरवाजे की तरफ खींचता सा बोला," एक मेंटल डॉक्टर अपना यादि है, घबराओ मत, वह तुम्हे बिल्कुल दुरुस्त कर देगा, इतना दुरुस्त कि सारे जीवन के लिए पेस्ट्री खाना भूल जाओगे "
अभी वे दरवाजे के नज़दीक ही पहुचे थे और विकास ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि बाहर से कदमो की ऐसी आवाज़ सुनाई दी जो हर कदम के साथ दरवाजे के करीब आ रही थी.
और विजय इस तरह उच्छल पड़ा जैसे अचानक बिच्छू ने डॅंक मार दिया हो, मुँह से चीख सी निकली थी," बापू जान, ये तो बापू जान है दिलजले " विकास को छोड़ कर उसने अपने दोनो हाथो से अपनी छाती पर इस तरह कैंची बनाई जैसे कोई निर्वस्त्र महिला अपने जिस्म को धाँकने की कोशिश कर रही हो, साथ ही बौखलाकर चारो तरफ देखता हुआ बोला," कहा छुपु, कहा छुप्कर अपनी अस्मत बचाऊ "
कदमो की आवाज़ निरंतर दरवाजे की तरफ आ रही थी.
उनमे से एक आवाज़ पोलीस के भारी बूट्स की थी.
विजय शायद उसे ही सुनकर समझ गया था कि आने वाला ठाकुर निर्भय सिंग है.
विकास हकबकाया सा खड़ा था जबकि विजय बुदबुदा रहा था," जल तू जलाल तू.. आई बाला को टाल तू "
पर बला टलने वाली कहाँ थी.

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ठाकुर निर्भय सिंग दरवाजे पर नज़र आए.
मगर विजय उससे पहले ही जंप मारकर खुद को सोफे की पुष्ट के पीछे छुपा चुका था.
विकास चौंका था.
ये लिखा जाए कि चौंका भी बुरी तरह था तो ग़लत ना होगा क्योंकि उसने देखा था कि ठाकुर साहब अकेले नही थे.
उनके साथ भारी-भरकम चेहरे वाला एक और आदमी भी था.
उस आदमी को विकास ने देखते ही पहचान लिया था.
पहचानता भी क्यू नही.
उस आदमी को तो आज देश का बच्चा-बच्चा पहचानता था.
बार-बार टीवी पर जो दिखाया जा रहा था उसे.
करीब-करीब रोज अख़बारो मे उसकी फोटो छप रही थी.
वह राजन था, राजन सरकार.
वही, जिसके बारे मे विकास विजय से बाते करने आया था, वही, जिस पर अपने ही बेटे और नौकरानी की हत्या का आरोप लगा था.
राजन सरकार.
यहाँ.
ठाकुर साहब के साथ.
बात विकास के भेजे मे नही घुसी थी.
बुरी तरह चौंकने का कारण भी यही था.
" तुम लोग यहाँ " ठाकुर साहब ने विकास और मोंटो की तरफ देखते हुवे सामान्य स्वर मे पूछा.
लड़का अपनी लंबी-लंबी टाँगो के बल पर दो ही कदमो मे ठाकुर साहब के करीब पहुचा और झुक कर चरण स्पर्श किए.
उधर, ठाकुर साहब को देखते ही धनुष्टानकार ने अपनी उंगलियो के बीच सुलगते हुवे सिगार को सोफे की पुष्ट के पीछे डाला और एक ही जंप मे ठाकुर साहब के कदमो मे आ गिरा.
उसे देखकर उनके साथ मौजूद शख्स यानी कि राजन सरकार के मुँह से निकला," ये शायद धनुष्टानकार है "
" हाँ " ठाकुर साहब ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.
" मैंने इसके बारे मे पढ़ा है "
" बताया नही तुमने " ठाकुर साहब ने विकास से पूछा," तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो "
विकास ने कहा," विजय अंकल से मिलने आए थे "
" कहाँ है वो"
विकास चुप, लेकिन मौका लगते ही पूरणसिंघ बोल पड़ा," यही है साहब, मालिक इस सोफे के पीछे है "
एक बार तो ठाकुर साहब के मुँह से निकल गया," सोफे के पीछे, क्यो " लेकिन फिर तुरंत ही उन्हे ये ख़याल आ गया कि ज़रूर विजय कोई उट-पटांग हरकत करेगा और कम से कम राजन की मौजूदगी मे वह ऐसा कुछ ना करे इसलिए बहुत ही सामान्य और प्यार भरे लहजे मे उसे आगाह सा किया," हम अपने एक बचपन के दोस्त को तुमसे मिलाने लाए है विजय "
" पर मैं नही मिल सकता बापूजान " सोफे के पीछे से विजय की ऐसी आवाज़ आई जैसे अभी रो देगा.
ठाकुर साहब को गुस्सा आया मगर उसे दबाकर अपने लहजे को प्यार की चाशनी मे डुबोते हुवे बोले," क्यो नही मिल सकते "
" क्योंकि हमारी इज़्ज़त लूट जाएगी "
" इज़्ज़त लूट जाएगी " ठाकुर साहब के दिमाग़ मे गुस्से के कीटाणु कुलबुलाए लेकिन फिर बड़ी सख्ती से उन्हे कुचलते हुवे बड़े प्यार से बोले," हम समझे नही बेटे कि तुम क्या कह रहे हो "
" समझो बापूजान, हमारी मजबूरी को समझने की कोशिश करो " सोफे के पीछे से आवाज़ आई," तुम हमारे इस ताजमहल के किसी और कमरे मे चले जाओ, हम वही पधारते है "
" क्यो, अभी और इसी कमरे मे क्यो नही मिल सकते "
" समझाओ ना दिलजले, बापूजान को तुम्ही समझा सकते हो "
ठाकुर साहब ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि विकास ने कहा," आइए नानु, हम किसी और कमरे मे चलते है, अंकल ठीक कह रहे है, वो कुछ देर मे वही पहुच जाएँगे "
" पर ऐसा क्यू " ठाकुर साहब ने कहा," इसी कमरे मे मिल लेगा तो क्या फ़र्क पड़ जाएगा, और फिर, ये क्या बात हुई कि हमारे आते ही वह सोफे के पीछे जा छुपा, घर आए मेहमान का स्वागत करने का ये कौनसा तरीका है "
इस बार विकास से पहले ही पूरणसिंघ बोल पड़ा," साहब, हम बताए कि मालिक आपके सामने क्यो नही आ रहे है "
सोफे के पीछे से आवाज़ आई," हम बाहर निकले तो सबसे पहले नाश्ते मे तेरा ही मुरब्बा बनाकर चबाएँगे पूरे शेर "
" ज़रूर चबा जाना मालिक लेकिन मेरी गर्दन पकड़कर आपने जो झोट लगाए थे, उनका मैं आपको पूरा मज़ा चखाउन्गा "
" माफी माँगते है यार, हमारी इज़्ज़त से खिलवाड़ ना कर "
ठाकुर साहब थोड़े से झल्ला गये," ये सब क्या हो रहा है "
" आप खुद ही सोफे के पीछे झाँक कर देख लीजिए साहब " पूरणसिंघ ने तपाक से कहा," सबकुछ समझ जाएँगे "
ठाकुर साहब को इस बात पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि उन्हे आया जानकार विजय सोफे के पीछे जा छुपा था और अब बार-बार कहने के बावजूद सामने नही आ रहा था मगर वे बात को और ज़्यादा नही बढ़ाना चाहते थे इसलिए खुद सोफे की तरफ बढ़ते हुवे बोले," तुमने शायद सुना नही विजय, हम अकेले नही आए है, हमारे साथ हमारे बचपन का दोस्त भी है "
ये बात विजय को बताकर वे एक प्रकार से आगाह कर रहे थे कि वह कोई बदतमीज़ी ना करे.
भला वे क्या जानते थे कि इस वक़्त तो वाकयि सामने ना आना विजय की मजबूरी थी.
सोफे के करीब पहूचकर उन्होने उसके पीछे झाँका.
जिस हालत मे विजय था, उसे देखकर वे चौंक पड़े.
और.... जब उन्होने विजय को देख ही लिया तो विजय भी एक झटके से खड़ा हो गया.
ना सिर्फ़ खड़ा हो गया बल्कि एक टाँग हवा मे घूमाकर सोफे की एक सीट पर रखी और जंप सी लगाकर सोफे के सामने आ गया.
उसे उस हालत मे देखकर ठाकुर साहब सकपका कर रह गये थे जबकि राजन सरकार हक्का-बक्का था.
विकास के होंठो पर मुस्कान थी.
पूरणसिंघ मुँह पर हाथ रखकर हंस रहा था.
धनुष्टानकार तो मानो लोट-पोट ही हुआ जा रहा था.
उस वक़्त विजय के जिस्म पर कोई लोच नही थी.
पूरा जिस्म लाठी की तरह तना हुआ था और फिर वो घुटनो को मोडे बगैर लाठी की तरह चलता हुआ ठाकुर साहब के करीब पहुचा तथा उनके पैरो की तरफ झुकते हुवे बोला," पानी लागू बापूजान "
" ये...ये किस हालत मे हो तुम " बौखलाए हुवे ठाकुर साहब के मुँह से बस यही शब्द निकल सके.
" क्यो, हमारी हालत मे कौन सा नुक्स है " वह सीधा होता हुआ बोला," उसी हालत मे है जिसमे आदमी का बच्चा पैदा होता है और उस हालत मे रहना कौन सा जुर्म है, ओह...सॉरी " उसने अपने अंडरवेर की तरफ देखते हुए कहा," ये कच्छा हमारे जिस्म पर एक्सट्रा है, इसे भी उतार देते है " कहने के साथ विजय के हाथ अपने अंडरवेर की तरफ बढ़े ही थे कि ठाकुर साहब चीख पड़े," विजय "
" जी पिताजी " वह तुरंत सावधान की मुद्रा मे खड़ा हो गया.
" ये क्या बदतमीज़ी है "
" जब कमीज़ ही नही पहन रखी है तो हम बद्कमीजि कैसे कर सकते है बापूजान, बद्कमीजि आपने शुरू की, हम तो इज़्ज़त बचाने की खातिर सोफे के पीछे जा छुपे थे, हमारे लाख अनुनय-विनय के बावजूद आप नही माने और वही पहुच गये "
" ओके, ओके " एक बार फिर ठाकुर साहब ने बात को ना बढ़ाने की मंशा से, जल्दी से कहा," हमे नही मालूम था कि हमारे आने से पहले तुम कसरत कर रहे थे, तुमसे कुछ बाते करनी है, हम यही बैठते है, जल्दी से चेंज करके आ जाओ "
" कौन सा पहनकर आउ "
" मतलब "
" अगर आपको हमारा ये लाल वाला लंगोट पसंद नही है तो कोई बात नही, हमारे पास हर कलर का लंगोट है, हरा, नीला, पीला, नीला, सफेद और बैंगनी भी, जिस भी कलर का कहे, पहनकर हाजिर होते है, पर महरूण कलर के लंगोट की चाय्स मत रख देना क्योंकि काफ़ी ढूँढने पर भी बाजार मे वो नही मिला "
राजन सरकार साथ ना होता तो अब तक ठाकुर साहब विजय के चेहरे पर कम से कम एक घूँसा तो जड़ ही चुके होते, उसकी मौजूदगी के कारण खिसियानी सी हँसी हंसते हुवे बोले," मज़ाक मत करो विजय और जल्दी से ढंग के कपड़े पहनकर आओ "
" ढंग के कपड़े " विजय चिहुन्का," आपको ये ढंग के कपड़े नही लग रहे है जो इस वक़्त हम ने पहन रखे है "
" विजय " ठाकुर साहब का लहज़ा थोड़ा सख़्त हुआ," हम ने जो कहा है, वो करो "
" नही करता " विजय भी अकड़कर खड़ा हो गया.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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