सुरभि और जिन्न फ़ैज़ान का इश्क़ complete

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Jemsbond
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Re: सुरभि और जिन्न फ़ैज़ान का इश्क़

Post by Jemsbond »

अब कोई रक्त-स्राव नहीं था!
हाँ, आराम की सख़्त ज़रूरत थी!
वे प्रसन्न हो उठे!
और हम, उसी अस्पताल से अपने स्थान के लिए,
वापिस हो लिए, सारे रास्ते, यही सब घूमता रहा दिमाग़ में!
वहां पहुंचे हम
शाम को, खाना-पीना हुआ!
शर्मा जी लौट गए थे,
और मैं, सोने चला गया था!
रात को, कोई दो बजे,
मुझे महक आई!
मैं उठ बैठा, तभी के तभी!
ये एक अलग सी महक थी,
और जो हाज़िर हुआ, वो फ़ैज़ान था!
मुस्कुराता हुआ,
हाज़िर होते ही, गले से लगा मेरे!
"सुरभि से मिले?" पूछा मैंने,
"नहीं!" बोला वो,
"क्यों?" पूछा मैंने,
"दस रोज़ बाकी हैं!" बोला वो,
"हाँ! हैं!" बोला मैं,
"आलिम साहब! कैसी हैं वो?" पूछा उसने,
"हु'मैद से नहीं पूछा?" पूछा मैंने,
"नहीं, हम अलहैदा ही रहते हैं" बोला वो,
"ठीक है आपकी सुरभि!" कहा मैंने,
उसने एक लम्बी सांस ली!
"चलते हैं, सुक़ून हुआ! आपका बेहद शुक्रिया आलिम साहब!" बोला वो, और ग़ायब हुआ!
मैं फिर से,
पीछे यादों में लौटने लगा था!
बैठ गया बिस्तर पर,
और तभी,
वो ह'ईज़ा हायर हुई!
मुस्कुराते हुए!
और लपक कर,
गले से लग गयी!
"आलिम साहब! यही उम्मीद थी आपसे!" बोली वो,
मैं मुस्कुरा पड़ा!
"ह'ईज़ा! सुरभि का शुक्रिया करो आप! मेरा नहीं!" कहा मैंने,
"हक़ीक़त का ज़रिया आप ही हैं!" बोली वो!
"नहीं! मैं फ़क़त, एक तमाशबीन!" कहा मैंने,
"ऐसा न कहें!" बोली वो,
"आपके फ़ैज़ान भाई आये थे!" कहा मैंने,
"कब" चौंकते हुए पूछा उसने,
"अभी!" कहा मैंने,
"मज़बूर हैं, क्या करें!" बोली वो,
"हूँ! सच कहा!" कहा मैंने,
"क्या हम अब जा सकते हैं सुरभि के पास?" पूछा उसने,
"हाँ! रास्ता खुल गया है!" कहा मैंने,
वो फिर से गले लगी!
भींचा मुझे!
माथे पर चूमा,
और हुई ग़ायब!
मित्रगण!
इसे कहते हैं जिन्नाती-कारनामा!
दस दिनों में,
सुरभि,
पहले जैसी हो गयी!
बदन भर गया,
आभा जाग उठी!
रूप-रंग, निखर गया!
वही पुरानी सुरभि, लौट आई थी!
घर में, खुशियाँ लौट आई थीं फिर से!
ग्यारहवां दिन!
उस सुबह उठी सुरभि!
गुसलखाने गयी!
फिर से वही दो फूल!
उस मुस्कुराई!
स्नान किया,
वस्त्र पहने, केश संवारे!
उस रोज उसे कक्षा में जाना था!
हमारे वहां पहुंचने तक,
वो जा चुकी थी!
पूरे घर में महक ही महक थी!
अब माता-पिता भी खुश थे उसके!
वे स्वीकार कर चुके थे वो सच!
उन्होंने जो फैंसला लिया,
उस से जान बच गयी थी सुरभि की!
हम वहां से, चले वापिस,
और उस दिन शाम को,
दुबारा आये वहां!
मैं सुरभि से मिला!
उसने अब गुस्सा न किया!
बल्कि, मेरा धन्यवाद किया!
वो सुरभि,
जिसे मैंने पहले देखा था,
अब बदल चुकी थी!
और सबसे बड़ी बात,
वो एक महीना और बीस दिन,
उसकी यादों से,
ग़ायब हो चले थे!
और मुझे, तब इंतज़ार था, फ़ैज़ान का! उस रोज़, आना था उसे!
वो शाम के साथ बजे का वक़्त था!
वो कमरा, ख़ुश्बू के मारे, भभक रहा था!
बेहतरीन ख़ुश्बू थी, हर जगह!
मैं कुर्सी पर बैठा था, और वो सुरभि, अपने पलंग पर,
हमारे दरमियान कोई बातचीत न हुई थी,
हाँ, मैं उस लड़की को देख रहा था,
जिस से एक जिन्न रजू हुआ था, एक जिन्न! फ़ैज़ान!
जिसकी शख़्सियत, बेहद वजनी और दमदार थी!
उसके जवाब, ज़हन में आये सारे सवालों को.
किसी मौज से नहाये किनारों पर बनी लकीरों को जैसे,
एक बार में ही, किसी मौज की मानिंद साफ़ कर दिया करते थे!
वो ज़हनी, ईमानदार, संजीदा और अपने क़ौल का, पक्का था!
कोई ठीक सवा सात बजे,
प्रकाश कौंधा!
मेरी आँखें बंद हुईं!
हाथ कर लिए आगे मैंने,
और जब, मंद हुआ प्रकाश,
तो आँखें खोलीं!
सफेद रंग के कुर्ते में, सोने के तारों से जड़ा था वो,
उसमे , गोटे से जड़े थे, नीले रंग के!
पाजामी भी वैसी ही थी,
गर्दन में, एक चमकीले हरे रंग का कपड़ा पड़ा था!
सुनहरी बाल, कानों को छिपाए हुए थे!
आँखें, नीली, चमक रही थीं!
और वो सुरभि,
उस से चिपक गयी थी!
वो सुरभि की कमर में, हाथ बांधे खड़ा था!
उस रूप देख कर तो मैं भी दंग रह गया!
यूनान के देवता एडोनिस को मैं, खुद,
सामने देख रहा था! ऐसा रौशनी वाला, चमकदार रूप था उसका!
वो मुस्कुरा रहा था!
उसने, सर पर हाथ फेरा सुरभि के,
और लिटा दिया, बिस्तर पर आहिस्ता से,
वो सो गयी थी! गहरी नींद में!
आया मेरे पास, उसके गोटों में से, जैसे संगीत सा निकला!
मुझे देखा,
मुस्कुराया,
मेरा हाथ पकड़ा,
और चूम लिया!
उसके बाद, वही बोला, "इजाज़त है?"
मैं मुस्कुरा पड़ा!
और किया सर आगे!
उसने लगाया हाथ, अँधेरा छाया,
और जब आँखें खुलीं,
तो रात का वक़्त था वो!
थोड़ा आगे, अलाव जल रहा था!
सुरभि ने देखा फ़ैज़ान को,
फ़ैज़ान ने, किया हाथ आगे,
और सुरभि भाग छूटी!
दौड़ती हुई चली गयी!
फ़ैज़ान रुक गया!
मैं भी रुक गया!
"आलिम साहब!" बोला वो,
मेरे दोनों हाथ, अपने हाथों में पकड़ कर!
"आपके एहसानों का बदला, हम कभी नहीं उतार सकते! बस इतना कहेंगे, ग़र ये नाचीज़ ज़िंदगी में कभी नौकर भी बने आपका, तो आपको अपनी कमर से ग़ुजरवा देंगे!" बोला संजीदगी से!
मैं हंस पड़ा!
पहली बार खिलखिलाकर हंसा!
"ऐसी बड़ी बड़ी बातें, फ़ैज़ान भाई, कहाँ से सीखी हैं?" बोला मैं!
"दो बातें!" बोला वो,
"कहिये!" कहा मैंने,
"एक तो आपने हमें भाई कहा, इसके लिए हम आपको सर झुका कर शुक्रिया करते हैं! और दूसरा ये, कि हमें कहाँ से सीखीं, तो जवाब कुछ यूँ आलिम साहब, हम जो कुछ भी सीखते हैं, वो हमें हमारे वालिदैन से मिलता है, बुज़ुर्गों से मिलता है! हमें उनका, हमेशा मान रखना चाहिए!" बोला वो,
मैंने कहा था न!
फ़ैज़ान और दूसरे जिन्नात से अलग है!
उस जैसा मैंने कोई नहीं देखा!
और शायद, देखूं भी नहीं!
"फ़ैज़ान! आप बेहद, बेहद ही अलग हो!" कहा मैंने,
हाथ कस लिया था उसका मैंने!
"शुक्रिया!" बोला वो,
"अच्छा फ़ैज़ान?" बोला मैं,
"जी!" बोला वो,
"अगर मैं, इस सहरा में, कभी फिर, आना चाहूँ तो, कैसे आ सकता हूँ?" पूछा मुस्कुरा कर मैंने,
"आप, हुक़्म कीजियेगा! हम, फ़ैज़ान, उसी लम्हे, आपके पास हाज़िर होंगे!" बोला वो,
अब न रुकी मुस्कुराहट!
इतना भोला, इतना सादा!
मैंने गले से लगा लिया उसे!
चूम लिए उसके हाथ!
"आइये!" बोला वो,
और हम पहुँच गए वहां!
सभी थे वहाँ!
सभी ने, जैसे मेरा ख़ैर-मक़्दम किया!
सुरभि तो, ह'ईज़ा और अशुफ़ा में ही खोयी रही!
पता नहीं क्या क्या बता रही थी उनको!
और वो भी, टकटकी लगाये, कान खड़े किये, सुने जा रही थीं उसे!
दावत थी!
हो गयी!
मैं उठा, हाथ धुलवाए मेरे,
मैंने पोंछ लिए!
"अब चलूँगा फ़ैज़ान!" कहा मैंने,
वो मुस्कुराया!
"आपके, हम, हमेशा एहसानमंद रहेंगे!" बोला वो,
आखिरी बार, सुरभि को देखा,
वो तो गले मिल उनसे, हंसती जा रही थी!
बे'दु,ईं हो चली थी!
उसने मेरे सर पर हाथ फेरा,
और मेरी नींद खुली!
मेरी आँखें खुलीं!
सामने, बिस्तर पर,
सुरभि,
न थी!!
मैं मुस्कुरा पड़ा!
आया बाहर, बंद किया दरवाज़ा,
उसके माँ-बाप से बात की,
और हम चले वापिस फिर!
मित्रगण!
आज दो बरस के करीब, वक़्त गुजर गया!
सुरभि की पढ़ाई पूरी हो गयी! अव्वल दर्ज़े से!
वो अब डॉक्टर बन गयी! एक सरकारी अस्पताल में एस.आर. है अब!
सुरभि का भाई, इंजीनियर बन गया, दक्षिण भारत में है आजकल!
सुरभि के माता-पिता अब आराम से हैं!
घर में कोई कष्ट नहीं है!
सुरभि घर में ही रहती है!
मेरी आखिरी मुलाक़ात उस से इस साल मार्च में हुई थी,
उसके भाई के विवाह में!
ह'ईज़ा, आती रहती है मेरे पास! खूब बातें करती है!
मैं, उसके बाद एक बार और, उस सहरा में गया!
फ़ैज़ान, कुल तीन बार मिला मुझसे!
मेरी विवशता कहिये या कमी,
उस वक़्त मैंने वही किया, जो मेरे हिसाब से जायज़ था!
हाँ, वो फ़ैज़ान!
उसे नहीं भूल सकता मैं!
रेगिस्तान के बारे में, ये सूक्ष्म जानकारी, मुझे फ़ैज़ान ने ही दी!
आज दोनों, खुश हैं!
बेहद खुश!


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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