सुलग उठा सिन्दूर complete
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
उसका वाक्य बीच में ही काटकर नागर ने सख्त स्वर में सवाल किया-----'' तुमने उस दिन यह परिचय क्यों छुपाया था, जब हम फोन पर मिली इंफॉरमेशन के कारण अापके घर अाये थे, कोई बहाना न बनाइएगा मिस्टर देव-उस दिन तुमने ही नहीं, बल्कि जब्बार ने भी तुम्हरे आपस के परिचय को हम लोगों से छुपाया था हम जानना चाहते है…क्यों?"
देव को हॉल में ही तारे नजर आगए।
" इस सवाल का जवाब तो अाप जब्बार ही से पूछ लेते । "
"तभी न, जव जवाब देने के लिए उसे छोड़ा गया हो ?"
"क----क्या मतलब?"
उसे कच्चा चबा जाने की इसी मुद्रा में नागर गुर्राया-"नदी से उसके कपडे और मोटर साइकिल बरामद होचुकी है-जाहिर है कि या तो उसकी हत्या कर दी गई है या किसी ने कैद कर रखा है!"
"किसने?"
"तुमने!" नागर ने एक झटके से कहा ।
"म-मैंने?" देव की खोपडी नाच गई ।
"जी हां, आपने मिस्टर देव!" दांत भींचता हुया नागर उसके अत्यन्त समीप आ गया और एक-एक शब्द को चबाता हुआ बोला--"मेरे पास आपकी गिरफ्तारी का वारंट है?
"व--वारंट?" एक झटके से देव के जिस्म का समूचा खून पानी में तब्दील हो गया, आंखों के सामने अंधेरा छा गया, जबकि नागर लगातार गुर्रा रहा था----तुम्हारे खिलाफ़ मैं इतने सबूत जुटा चुका हूं कि वारंट हासिल करने में जरा भी कठिनाई पेश नहीं आई---अतः न तुम्हारी कोई चालाकी काम अाएगी न झूठ-सीधी तरह बताओं कि जब्बार कहाँ है?"
"म-मुझे क्या मालूम?" इसके अलावा देव कह भी क्या सकता था !
इस बार नागर ने झपटकर दोनों हाथों से उसका गिरेबान ही जो पकड़ लिया, अत्यन्त गुस्से में गुर्राया-------"मैँने उस कार का पता लगा लिया है, जिसके टायरों के निशान जंगल में खड़ी मेटाडोऱ के नज़दीक से मिले थे-वह तुम्हारे दोस्त की कार है और उस दिन उससे तुमने इस बहाने के साथ ली थी कि अपना मैंरीज-ड़े शहर से पूर मनाना चाहते हो, बोलो----इस बहाने के साथ गाड़ी ली थी या नहीं?"
" ल---ली थी!"
"उस कार को तुम मेटाडोर के नजदीक ले गए या नहीं-----वहां से कार में रखकर लूट का दस लाख रुपमा लाए थे या नहीं?"
"न न -नही।”
"वको मत ।" नागर गर्जा---"जितने सबूत मेरे पास हैं, उनके आधार पर दावे के साथ कह सकता हूं कि लूट का रुपया लाए-चैकपोस्ट पर जब्बार ने उसे देखा भी है मगर शायद वह भी लालच में फंस गया था----सो उसने-वहाँ तुम्हारा रहस्य नहीं खोला-----वाद में वह तुमसे मिला होगा, बंटबारे को लेकर मुजरिमों में अक्सर झगड़ा हो जाता है उसी झगडे के परिणामस्वरूप या तो तुमने जब्बार की हत्या कर दी या !"
"य-ये झूठ हैे-----बकवास हैे!" देव हिस्टीरियाई अंदाज में चीख उठा…"मैंने कुछ नहीं किया…लूट की दौलत से तो मेरा दूर दूर तक का वास्ता नहीं है!"
'" तो फिर मैटाडोर के नजदीक तुम्हारी काऱ के निशान और जब्बार से अपना परिचय हम लोगों सामने छुपाने के पीछे क्या भावना थीी?"
"आप सिर्फ उन बातों का जिक्र कर रहे हैं, जिनसे मैं सन्देह के दायरे में फंसता हूं --ये क्यों नहीं सोचते कि यदि मेरे पास दौलत थी तो तलाशी में मिली क्यों नहीं?"
"ऐसे ढेर सारे सवालों का जवाब थाने चलकर तुम खुद दोगे?"
"क्या मतलब?"
"मतलब ये मिस्टर देव कि इंस्पेक्टर नागर की धाक मुजरिमों से रहस्य उगलवाने के मामले में सबसे जयादा है-र्दार्चर चेयर पर बैठाकर जव तुम्हें करेंट के झटके दिए जाएंगे-जिस्म से खून, ऊंगलियों से नाखून और सिर से बाल नोचे जाएगे तो उन सवालों का जवाब तुम खुद-ब-खुद दोंगे, जिन्हें खड़ा करके मुझे चकमा देना चाहते हो!"
देव की रूह तक कांप गई । कि वह जानता था कि टॉर्चर के सामने टिके रहेने की शक्ति उसमें नहीं है । दिमाग में दो शब्द उभरे---खेल--खात्म !"
एम. एक्स. ट्रिपल फाइव को चुराने की स्कीम कार्यान्वित होने से पहले ही धराशायी हो गई…देव के सपनों का ताजमहल उसकी आंखों के सामने टूट-टूटकऱ बिखरने लगा और अभी वह कछ बोल भी नहीं पाया था कि हाल में प्रविष्ट होता हुआ कर्नल भगतसिंह चौंकने वाले स्वर में बोला, 'धीरे, क्या हुआ-तुमने देव को इस तरह क्यों पकड़ रखा है इंस्पेक्टर, क्या किया है इसने?"
"सुनकर शायद आपकी दुख हो कर्नल साहब कि आपका लड़का डाकू ही नहीं, बल्कि एक पुलिस सब-इंस्पेक्टऱ का सम्भावित हत्यारा भी है!"
"क्या बक...?" मगर, वाक्य पूरा न हो सका । कोठी के बाहर अचानक जबरदस्त फायरिंग की आवाज गूंजने लगी थी ।
बडी तेज रफ्तार के साथ दो जीपें आई…ठीक सवा आठ बजे ब्रेकों की जबरदस्त चीख-पुकार के साथ कर्नल की कोठी के ठीक सामने रूकी…द्वार पर तैनात सेनिक अभी सम्भल भी न पाए थे जीपों से गोलियों की पूरी एक बाढ़ उन पर झपटी ।
सारा इलाका गोलियों की आवाज से थर्रा उठा ।
इधर, चीखते हुए सेनिक लुढ़के उधर दोनों जीपों से आठ सशस्त्र व्यक्ति कूद कोठी में दाखिल हो गए-कोठी के लॉन में चारों तरफ़ सैनिक द्वार की तरफ लपके ।
उन पर भी गोलियां झपटी ।
एकाध मरा-कुछ घायल हुए बाकी, तुरन्त पोजीशन ले गए ।
इधर, दरवाजे के अास-पास हथियारों से लेस व्यक्तियों ने भी पोजीशन ले ली थी ।
धात लगाकर दोनों तरफ़ से गोलिय चलने लगी ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
अचानक गोलियों की आवाज सुनकर सभी चोंक पड़े और सबसे पहले जेब से रिवॉल्वर निकालकर हॉल से बाहर जम्प लगाने वाला कर्नल भगतसिंह था----नागर और देव आदि ने उसके पीछे वंसी को झपटते देखा----------मौके की नजाकत को ताड़कर नागर ने भी देव को छोड़ा, होलस्टर से रिवॉल्वर निकालता हुआ बंसी के पीछे लपका।।
बाकी पुलिस वालों ने भी उसका अनुसरण किया ।
हॉल के खाली होते ही देव के दिमाग एक मात्र यह विचार कौंधा कि अब किसी का भी ध्यान मेरी तरफ नहीं है अत: मुझे अपने मिशन पर निकल जाना चाहिए।
वह वापस अन्दर की तरफ दोड़ा ।
बाहर लगातार फायरिंग चल रही थी ।
बहादुरी दिखाता हुआ कर्नल भगतसिंह लगातार आगे बढ़ रहा था, बंसी उसके पीछे था और इस वक्त उसके हाथ में भी एक रिवॉल्वर चमक रहा था…नागर और उसके साथी वरांडे में पोजीशन लिए हुए थे-कर्नल भगतसिंह लॉन की घास पर रेगतां चला जा रहा था कि एक दीवार की आड़ से एक हाथ ने उसे पड़कर बडी फुर्ती से खींच लिया।
बंसी ने उधर फायर किया ।
जवाब में उधर से गोली चली, जिसने बंसी के सिर को खील-खील करके बिखेर डाला, कर्नल का रिवॉल्वर लॉन में ही पड़ा रह गया था, जबकि दीवार की बैक से एक गुर्राहट उभरी-----"भगतसिंह के हिमायती गौर से सुन ले-----कर्नल मेरे कब्जे में है, अगर किसी ने भी जरूरत से ज्यादा बहादुरी दिखाने की कोशिश ही तो मैं इसे शूट कर दूगा?"
एकाएक हर तरफ़ सन्नाटा छा गया और अभी इस सन्नटे से कोई उभर भी न पाया था कि एकाएक समूची कोठी की लाइट गुल हो गई ।
घुप्प अंधेरा । किसी को पता-नहीं कि कौन किधर है?
फिर भी रूक-रुककर ही सही मगर, गोलियां चल रही थी-अंधेरा छाने के करीब पांच मिनट वाद वहां एक आबाज----" कर्नल का लड़का मेरे कब्जे में है बॉस ।"
"वेरी गुड ।" नागर ने गोली इस आवाज परं दागी, किन्तु चीख न उभरी----गेली एक थम्ब से टकराई थी, जेर्रे चारों तरफ बिखर गए ।
कोठी के अन्दर अफरा-तफरी फेैल गई ।
नौकर इधर-उधर भाग रहे थे, मगर एक थम्ब के पीछे खडी दीपा को उस गेलरी से रामू के गुजरने के गुजरने का इंतजार था…हालांकि
उसका चेहरा इस वक्त उस कागज के मानिन्द नजर आ रहा था, जिस पर कुछ लिखा न गया हो ।
बाहर से फायरिंग और चीखों की आवाज अा रही थी ।
एकाएक उसने बदहवास हालत में अंजली को गेलरी से भागकर ड्राइंग हाल की तरफ़ जाते देखा----दीपा जानती थी फि उधर खतरा है, दिल में अंजली को रोक लेने की भावना उठी, किन्तु देव की हिदायतें याद अाते ही वह मुर्झा गई ।
एक मिनट बाद उसने रामू को गैलरी में दौड़ते देखा ।
थम्ब के पीछे से निकलकर वह भी दोड्री, रामू के हाथ में रिवॉल्वर देखकर बुरी तरह कांप गई वह, किन्तु वह हड़बड़ाहट का अभिनय करती बोली, " ये सव क्या हो रहा है रामू?"
"मुझे क्या मालूम?" वह रूका नहीं ।
दीपा चीख पड़ी…"मांजी बाहर गई हैं रामू ।" पता नहीं उसने सुना या नहीं-----दीपा अपने कमरे की तरफ लपकी-दरवाजे नजदीक रखी फोल्डिंग टेबल उठाकर प्राइवेट रूम की तरफ दौड्री---दरवाजे के नजदीक पहुंचकर टेबल खोली---उस पर चढ़कर अभी दीपा ने लाल बल्ब उतारा ही था कि दोड़ता हुआ देव वहां पहुंचा, उखड्री हुई सांसो को नियंत्रित करने की केशिश करता हुआ बोला-"जल्दी करो दीपा, तुम वहुत लेट हो !"
दीपा ने उस होल्डर में फ्यूज बल्न लगा दिया।
'रबर' के हेडिंल वाली चाबी दरवाजा खोलने का प्रयास करते हुए देव ने कहा----"यहां का काम खत्म करते ही सिक्के का इस्तेमाल जल्दी करो!"
विना कुछ बोले दीपा ने फोल्डिंग टेबल गैलरी में लगे एक अन्य बल्ब के नीचे रखी, जेब से रूमाल निकालकर बल्ब निकाला और उसके पिछले भाग में सिक्का लगाकर पुन: बल्ब होल्डर में लगाते ही सारी केठी की लाइट उड़ गई ।
दीपा ने बल्व होल्डर्स से निकलकर सिक्का अलग किया और बल्ब को पुन: लगाने का प्रयास करने लगी, किन्तु अंधेरे के कारण यह काम पहले जैसी फुर्ती के साथ न कर सकी।
रूक-रुककर फायरिंग चलती रहीं ।
पांच मिनट बाद एक जीप स्टार्ट होकर सड़क पर दौड़ गई। नागर और सेैनिक चौंके-अभी वे कुछ निश्चय न कर पाए थे कि चार…पांच साए दरवाजे से निकलने का प्रयास करते नजर आए ।
गोलियां चारों तरफ से उन पर झपटी ।
चीखों के साथ वे वहीं ढेर हो गए और इस सफ़लता के अति-उत्साह में एक सेनिक अपने छुपे हुए स्थान से निकलकर दरवाजे की तरफ दोड़ा। "
एक गन गर्ज उठी ।
सेनिक कटे वृक्ष-सा गिरा । पुन: सन्नाटा छा गया ।
पोजीशन लिए हर व्यक्ति अंधेंरे मेॉ आंखें गड़ा-गड़ाकर अपने शिकार को तलाश रहा था । आंखें अव अंधेरे की अभ्यस्त हो गई थीं----नगर को लग रहा था फि कुछ बदमाश जीप में भाग गए है------दरवाजे के पार दो जीपें और खडी थी--एक बदमाशों की, दूसरी खुद पुलिस की।
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
वह फरार जीप का पीछा करना, चहता था, किन्तु फिलहाल कसमसाने के अलावा कुछ न कर सका, क्योंकि अभी-अभी मरा सेनिक इस वात का गवाह था कि बचे हुए बदमाश दरवाजे के आस-पास पोजीशन लिए हुए हैं-फिर भी वह लॉन की घास पर धीरे-धीरे रेगकर अागे बढ़ रहा था ।
अचानक एक अन्य जीप स्टार्ट हुई ।
किसी ने जीप पर गोली चलाई, हालांकि वह गोली जीप को रोक न सकी । किन्तु नागर को यह बता गई कि अब दरवाजे पर एक भी बदमाश नहीं है, क्योकि सेनिक की गोली के जवाब में उधर से कोई गोली न चली थी और यह समझते ही वह रबर के बवुए की तरह न सिर्फ उछलकर खड़ा हो गया बल्कि जीप की तरफ़ लपकत्ता हुआ चीखा-" वे लोग भाग रहे हैं, पीछा करो ।"
सैनिक और सिपाही उसके पीछे लपके।
दरवाजा अन्दर से बन्द करने के वाद देव ने चटक्नी चढा दी और कंघे पर लटके छोटे से सफारी वेग से शक्तिशाली टार्च निकालकर अॉन की----रोशनी का विशाल दायरा सारे कमरे में चकराने लगा--एक मेज-कुर्सी के अलावा वहां सामान के नाम पर अन्य कुछ न था ।
प्रकाश का दायरा बाल क्लॉक पर जाकर स्थिर हो गया । धड़कते दिल से देव कुछ देर तक पुराने जमाने के उस घंटे को घूरता रहा-फिर कुर्सी उठाकर उसके नीचे रखी----जेब से चाबियां निकली, घंटे की चाबी के अलावा अन्य सब वापस जेब में डाली और चाबी छिद्र मे डालकर राऊंड देने शुरू किये ।।
अच्छी तरह गिनकर उसने सात राउंड दिए। टार्च का प्रकाश कमरे के फर्श पर ठीक बीच में स्थिर कर दिया ।
दो मिनट बाद--हल्की सी गड़गड़ाहट के साथ फर्श का एक हिस्सा हट गया और टॉर्च के प्रकाश में केवल पल-भर के लिए सीढि़यां चमकी क्योंकि देव ने तुरन्त ही टॉर्च आँफ कर ली थी ।
अब इसे सिर्फ यह डर था कि कहीं कुत्ते सीढियां तय करके जहां न पहुच जाएं, अत: तेजी के साथ सफारी बैग से भगतसिंह के विना घुले कपडे़ निकाले ।
मेज से उतरकर खुले रास्ते के नजदीक पहुंचा ।
इन कपडों में कर्नल भगतसिंह के जिस्म की गन्ध मौजूद थी, जिसे इन्सान भले ही न सूंघ सके, किन्तु 'कुत्ता सूंघ सकता धा और शायद कुत्तों को भ्रमित करने के लिए ही कपडों की यह गठरी सीढियों पर लुढका दी।
नीचे से कुत्तों के भौकनें की आवाज उभरी ।
इस आवाज ने न सिर्फ देव के रोंगटे खड़े कर दिए, वल्कि उसके दिलो-दिमाग को आतंकित भी कर दिया-उसने जल्दी से बैग से गोश्त का एक लोथड़ा निकलकर तहखाने में उछाल दिया-कुत्तो के झपटने की आवाज ऊपर तक अाई ।
देव की आंखे चमक गई । एक के बाद एक. . .उसने गोश्त के चार छोथड़े तहखाने में फेंके ।
मुश्ताक ने लिखा था…" कर्नल के कपडों की गंध से कुत्ते भ्रमित हो जाएंगे-जब तुम छोथड़े फेकोंगे तो वे यही समझेंगे कि कर्नल उनकी खुराक देने आया है इसलिए हमने तुम्हारे वहां पहुंचने का टाइम भी लगभग वही रखा है जब कर्नल उन्हें खुराक पहुचाता है, 'पुड़िया' में जहर है इसे गोश्त 'के लोथडों पर लगा दोगे…कोई भी चीज खाने से पहले कुत्ता उसे सूंघता जरूर है, वे भी खूंधेगे और सूंघते ही भांप जाऐंगे कि गोश्त को नहीं खाना है, परन्तु तब तक फाफी देर हो चुकी होगी, क्योंकि जहर इतना तीक्ष्ण है कि इसे सूंघने मात्र से कुत्तों का कल्याण हो जाएगा!" और अब...देव रहा था कि क्या सचमुच कुत्तो का कल्यान हो चुका है?
पुर्वं-निर्धारित योजना के अनुसार पांच मिनट तक वह दम साधे खामोश बैठा रहा, फिर जेब से रिवॉल्वर निकलकर तहखाने के अंधेरे में एक गोली दाग दी ।
सारे तहखाने और प्राइवेट रूम में धमाका गूंज उठा ।
फायर के जवाब में तहखाने के अन्दर से कुत्ते की कोई आवाज़ नहीं अाई और यह समझते ही देव की आंखे चमक उठी कि कुत्तों का कल्याण हो चुका है ।
अब उसने निश्चित भाव से ही टॉर्च अॉन की ।
उसकी रोशनी में सीढियां उतरनी शुरू की-हालाक्रि वह अच्छी तरह जानता था कि कुत्ते मर चुके होंगे-परन्तु फिर भी तीन सीढियां तय करने के वाद उसकी टांगे कापने लगी-----मन में यह बिचार उठा कि कहीं किसी तरह कोई कुत्ता जीवित न बच गया हो? एक ही उसे फाड़ डालने के लिए काफी था ।
पाचर्वी सीढ़ी पर पहुंचकर उसने टॉर्च का प्रकाश नीचे, गैलरी में घुमाना शुरू किया शीघ्र ही प्रकाश के दायरे में चार कुत्तों की लाशें और गोश्त के लोथड़े दूंढ़ लिए-खाने के नाम पर गोश्त को उन्होंने छुआ तक न था मगर फिर भी वे लाश में तब्दील हो चुके थे ।
उनकी लाशें देखकर ही देवं की रीढ़ की हड्डी मैं सिहरंन-सी दौड गई---कद और स्वास्थ्य से वे कुत्ते नहीं, बल्कि भेड्रिए लगते थे-यह सोचकर वह कांप उठा कि यदि वे जीवित होते तो उसकी क्या हालत करते ?
कुछ देर तक उनका निरीक्षण करने और सन्तुष्ट होने के वाद नीचे उतरने लगा…अन्तिम सीढ़ी पर कदम रखते ही सारी गैलरी प्रकाश से भर गई ।
गैलरी की छत पर दूर-दूर तक लगे बल्ब अॉन हो गए---पहले मोड़ तक गैलरी बिल्कुल साफ नजर आ रही थी, कदमों मे पड़ी थी कर्नल के कपडों की गठरी-हाथो से उसने त्वचा की रंगत के दस्ताने उतारकर वहीं डाल दिए ।
टार्च आँफ करके सफारी बैग में रखी ।
इसके बाद तेज कदमों से गैलरी पार करने लगा…पहला मोड़ पार करने के बाद कुछ ही देर वाद ही उसके सामने कृत्रिम दरिया था--दरिया के इस किनारे पर खड़े होकर उसने ध्यान से देखा, एक विशालकाय मगरमच्छ और लम्बा अजगर दरिया में शायद सोए पड़े पे, क्योंकि पानी में कोई हलचल न थी-देव ने बेग से एक कार्क की गेद निकाली। गेद उसने दरिया के ठीक बीच में फेंकीं और उसके पानी में गिरते ही दरिया में जैसे भूचाल अा गया-सोया हुआ अजगर और मगरमच्छ हरकत में अा गए थे । दिल ने दहशत उभरी।
मगर मन में यह विश्वास लिए कि जव तक वह पानी से बाहर है, उसका वे कुछ न बिगाड सकेंगे-उस दिलचस्प उठा-पटक को देखता रहा---कुछ देर बाद अपने बाईं तरफ बढ़ा ।
दीवार में एक छिद्र टूढा ।
जेब से एक चाबी निकलकर उसमें डाली, तीन वार उल्टी चाबी घुमाते ही सारी गैलरी हल्की गड़गड़ाहट की आवाज़ से गूंज उठी --- उसने छत की तरफ देखा, बीचों--बीच दो फुट चौडा करीब डेढ सौ गज लम्बा टुकड़ा बाई तरफ सरक गया ।
दरिया के इस किनारे पर छत से नीचे की तरफ सरकती हुई एक मोटी जंजीर नजर अाई, छत पर एक विशाल बेलन था, बेलन पर जंजीर लिपटी थी और बेलन के घूमने के अनुपात में ही जंजीर नीचे अाती जारही थी।
दो मिनट वाद गड़गड़ाहट बन्द ।
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
जंजीर का निचला सिरा अब इतना नीचे था कि देव उसे अराम से छू सकता था…ऊपरी सिरा एक मजबूत फौलादी छल्ला था जो उस राड में फंसा हुआ था, जो रेल की पटरी के समान दरिया के उस पार तक चली गई थी ।
देव जंजीर के नजदीक पहुचा । ८ .
निचले सिरे पर लगा एक नन्हा-सा स्विच दबाते ही गैलरी में धुर्र घुर्र की आवाज गूंजने लगी-देव ने दोनों हाथों से जंजीर जकड़ ली ।
और फिर जंजीर पर लटके देव का सफर शुरू हो गया ।
जंजीर के उपरी सिरे वाला कुन्दा राड पर चल रहा था और साथ ही जंजीर पर लटका देव भी दरिया के ऊपर से गुजरने लगा----मगरमच्छ और अजगर काफी उछल-कूद मचा रहे थे किन्तु व्यर्थ---देव उनकी पहुंच से वहुत ऊपर था ।
इस तरह वह दरिया पार पहुंचा ।
जंजीर का सफर खत्म होते घुर्र-घुर्र की आवाज बन्द हो गई---देव गैेलरी में तेजी से आगे बढ़ गया-उस स्थान पर जहाँ सुरंग बन्द थी । फर्श पर वह कुछ दूंढ़ने लगा ।
शीघ्र ही उसे एक "की-हॉल' मिला-जिस से एक अन्य चाबी निकालकर इस्तेमाल करते ही सामने वाली दीवार में एक मोखला प्रकट हुआ --- इतने ब्यास का कि एक बार में केबल एक ही व्यक्ति लेटकर अन्दर प्रविष्ट हो सकता था ।।।
देव बेहिचक उसमें रेग गया । अन्दर अंधेरा था ।
सुरंग 'जेड' के अाकार की थी, यानी दो मोड़ पड़े, जिन्हें पार करते-करते देव का दम घुटने लगा-दिलो--दिमाग पर थोड़ी दहशत भी सवार होती महसूस हुई ।
अन्तत: सुरंग ने उसे एक कमरे में पहुचा दिया-बहीं छत पर लगे एक बल्ब का पीला प्रकाश फैला हुआ था और इस प्रकाश में चमचमा रही थी-----स्टील की एक अलमारी------जमीन के साथ 'अटैचड' वह एक छोटी-सी अलमारी थी ।
देय की नजर उस पर चिपककर रह गई ।
देखने मात्र से ही इल्म होता था कि यदि 'बैेरिंग मशीन' के सिरे पर लोहा काटने वाला 'सूजा' लगा दिया जाए तब भी उसमे बाल बराबर छेद न किया जा सकेगा ।
मगर देव यह सोचकर मुस्कराया कि मुझें इसमें छेद करने की कोई जरूरत नहीं है, उसकी आंखे नम्बर वाले लाक और हैँडिल पर स्थिर हो गई ।
उन्हीं पर नजर टिकाए वह नजदीक पहुचा ।
एक-दूसरे से सटे सात 'नम्बर रिग' थे ।
उसने जेब से कागज निकाला-कागज पर दो नम्बर लिखे थे---एक छ: अंकों का दूसरा सात अंकों वाला-देव ने अलग-अलग रिंग्स को घुमाकर तीर के निशान के सामने छ: अंको वाला नम्बर फिक्स किया---सातवे रिंग की जीरो तीर के सामने लाकर हैंडिल घुमाया।
खतरे की घंटियों से अलमारी का सम्बन्ध कट गया ।
फिर सात अंक बाला नम्बर फिक्स करके हैंडिल घूमाते ही मजबूत अलमारी का भारी दरवाजा खुल गया ओर खुलते ही अलमारी के अन्दर लगा बल्ब ठीक उसी तरह रोशन हो उठा जिस तरह फ्रीज का बल्ब रोशन हो उठता है ।
अलमारी के अन्दर रखी फाइलों पर नजर पड़ते ही देव की आंखें नन्हे-नन्हे बल्वों के मानिन्द चमक उठी---उनमें से एम. एक्स. ट्रिपल फाईव तलाशने में उसे कोई दिक्कत पेश नहीं अाई और इस फाइल के चमकदार कवर पर उसे करेंसी नोटों की गड्डीयों का पूरा अंम्बार नजर आया---बीस करोड रुपए उस कवर पर समा न रहे थे ।
फाईल को दीवानों की तरह चुमने लगा था वह ।।।
ड्राइविंग सीट पर सुवखू था और उसके सधेे हुए हाथों में फर्राटे भरती हुई जीप सड़क पर उड़ी चली जा रही थी ।।
पिछ्ली सीट पर थे कर्नल भगतसिंह और जगबीर----जगबीर ने अपने हाथ में दवा रिवॉल्वर अभी तक भगतसिंह की कनपटी पर रखा हुआ था ।
कर्नल भगतसिंह का चौडा और रौबीला चेहरा पुरी तरह भभक रहा था-ऐसा लग रहा था कि यदि उसका वश चले तो अभी दोनों को कच्चा चबा जाए, किन्तु उन्होंने भगतसिंह को पल भर का मोका न दिया था।।
एकाएक सुक्खू बोला-----" अब इसकी आखो पर पट्टी बांध दो जगबीर!"
"इसके लिए जीप रोकनी पडेगी!"
" क्यों? "
"यूं देख रहा है हरामजादा जैसे कच्चा चबा जाएगा, मेरे रिवॉल्वर के निशाने से हटते ही यह हरकत कर सकता है, अत: जीप रोककर पट्टी तुम बांधों ।"
सुक्खू ने ज्यादा हुज्जत न की ।
ब्रैकों की चरमराहट के साथ जीप सूनी पड़ी सड़क के बीचों--बीच रुक गई, जगबीर कर्नल को कबर किए रहा और जिस वक्त -जेब से सुक्खू काली पट्टी निकाल रहा था उस वत्त कर्नल गुर्राया----"यह सव तुम ठीक नहीं कर रहे हो!"
""क्यों?" जगबीर हंसा----"क्या कर लोगे हमारा?"
"मिलिट्री सीक्रेट सर्विस के जासूसों की नजर से तुम ज्यादा देर तक छुप नहीं सकोगे और अपने हत्थे चढ़ते ही वे तुम्हें चीर-फाड़कर डाल देगे!"
"तुम्हारा ख्वाब कभी पूरा नहीं होगा कर्नल, क्योंकि हर कदम पूरी तरह सोच…समझकर उठाया है, कोई जासूस हमारा बाल भी बांका न कर सकेगा!"
"त-तुम आखिर हो कौन और चाहते क्या हो?"
"जहाँ तुम्हें ले जाया जा रहा है, वहाँ इन्हीं सवालों का जवाब दिया जाएगा!"
सुक्खू बोला----"' मगर अव यदि वहाँ पहुंचने से पहले तुमने एक लफ्ज भी जूबान से निकाला तो गोली भेजे में घुसेड़ दी जाएगी---शरीफ बच्चे की तरह, आंखों पर पट्टी बंधवा लो !"
इसके वाद भगतसिंह की आंखों पर पट्टी बाँध दी गई ।
जीप पुन: स्टार्ट होकर अागे बड़ी, मगर अब क़र्नल नहीं देख सकता वह किन रास्तों से गुजर रही है ।
बीस मिनट बाद जीप रुक्री----उसे उसी हालत में उतारा गया ।
दोनों तरफ से पकड़कर पैदल चलाया गया । दस मिनट वाद आंखो से पट्टी हटाई गई तो कर्नल ने कीमती सामान से खूबसूरती के साथ सजे कमरे को निहारा----यह वही कमरा था, जिसमें देव को लाया जाता रहा था-नज़र सामने खडे़ जगबीर और सुक्खू पर जम गई , बोला----" ये कौन-सी जगह है?"
"कुछ देर वाद तुम्हारे हर सवाल का ज़वाब हमारा 'मास्टर' देगा!"
"मास्टर?"
"जी हा!" उसकी खिल्ली-सी उड़ाते हुए सूक्खू ने कहा----"वोे-चमकदार सनमाईंका वाली मेज के पीछे पुश्तवालीं कुर्सी दे ख रहे हो न…वे उसी पर बैठते हैं!"
"तो मैं बैठ जाऊं?" कर्नल भगतसिंह ने विशिष्ट अंदाज में नाक खुजलाते हुए कहा ।
"क-क्या ?" दोनों बुरी तरह उछल पड़े ।
भगतसिंह के होठो पर मुस्कान उभर अाई । इस बार उसके मुंह से निकलने वाली अबाज भी मुश्ताक या कुबड़े भिखारी वाली थी, बोला--------"मैंने ये पूछा है हुजूर कि क्या अाप लोगों की तरफ से मुझे उस कुर्सी पर बैठने की इजाजत है?"
"अ-अाप खुद मास्टर हैं?" मारे हैरत के वे पागल हुए जा रहे थे-कर्नल भगतसिंह के चेहरे को वे यूं देख रहे थे जैसे दिल्ली के लालकिले को इस कमरे में खड़ा देख रहे हों और उनकी इस हैरत का पूरा मजा लूटता हुआ भगतसिंह मेज के पीछे पहुचा-----------ऊंची पुश्त वाली रिबॉंल्विंग चेयर पर बैठकर उसने दराज से "डनहिल' का पैकिंट निक्राला----एक सिगरेट सुलगाने के बाद बोला…"नहीं तो क्या उस कोठी से कर्नल भगतसिंह को किडनैप कर लेना इतना आसान है, जितनी आसानी से तुम हमें किडनैप कर लाए हो?"
दोनों में से किसी के मुह से बोल न फूटा ।
देव जंजीर के नजदीक पहुचा । ८ .
निचले सिरे पर लगा एक नन्हा-सा स्विच दबाते ही गैलरी में धुर्र घुर्र की आवाज गूंजने लगी-देव ने दोनों हाथों से जंजीर जकड़ ली ।
और फिर जंजीर पर लटके देव का सफर शुरू हो गया ।
जंजीर के उपरी सिरे वाला कुन्दा राड पर चल रहा था और साथ ही जंजीर पर लटका देव भी दरिया के ऊपर से गुजरने लगा----मगरमच्छ और अजगर काफी उछल-कूद मचा रहे थे किन्तु व्यर्थ---देव उनकी पहुंच से वहुत ऊपर था ।
इस तरह वह दरिया पार पहुंचा ।
जंजीर का सफर खत्म होते घुर्र-घुर्र की आवाज बन्द हो गई---देव गैेलरी में तेजी से आगे बढ़ गया-उस स्थान पर जहाँ सुरंग बन्द थी । फर्श पर वह कुछ दूंढ़ने लगा ।
शीघ्र ही उसे एक "की-हॉल' मिला-जिस से एक अन्य चाबी निकालकर इस्तेमाल करते ही सामने वाली दीवार में एक मोखला प्रकट हुआ --- इतने ब्यास का कि एक बार में केबल एक ही व्यक्ति लेटकर अन्दर प्रविष्ट हो सकता था ।।।
देव बेहिचक उसमें रेग गया । अन्दर अंधेरा था ।
सुरंग 'जेड' के अाकार की थी, यानी दो मोड़ पड़े, जिन्हें पार करते-करते देव का दम घुटने लगा-दिलो--दिमाग पर थोड़ी दहशत भी सवार होती महसूस हुई ।
अन्तत: सुरंग ने उसे एक कमरे में पहुचा दिया-बहीं छत पर लगे एक बल्ब का पीला प्रकाश फैला हुआ था और इस प्रकाश में चमचमा रही थी-----स्टील की एक अलमारी------जमीन के साथ 'अटैचड' वह एक छोटी-सी अलमारी थी ।
देय की नजर उस पर चिपककर रह गई ।
देखने मात्र से ही इल्म होता था कि यदि 'बैेरिंग मशीन' के सिरे पर लोहा काटने वाला 'सूजा' लगा दिया जाए तब भी उसमे बाल बराबर छेद न किया जा सकेगा ।
मगर देव यह सोचकर मुस्कराया कि मुझें इसमें छेद करने की कोई जरूरत नहीं है, उसकी आंखे नम्बर वाले लाक और हैँडिल पर स्थिर हो गई ।
उन्हीं पर नजर टिकाए वह नजदीक पहुचा ।
एक-दूसरे से सटे सात 'नम्बर रिग' थे ।
उसने जेब से कागज निकाला-कागज पर दो नम्बर लिखे थे---एक छ: अंकों का दूसरा सात अंकों वाला-देव ने अलग-अलग रिंग्स को घुमाकर तीर के निशान के सामने छ: अंको वाला नम्बर फिक्स किया---सातवे रिंग की जीरो तीर के सामने लाकर हैंडिल घुमाया।
खतरे की घंटियों से अलमारी का सम्बन्ध कट गया ।
फिर सात अंक बाला नम्बर फिक्स करके हैंडिल घूमाते ही मजबूत अलमारी का भारी दरवाजा खुल गया ओर खुलते ही अलमारी के अन्दर लगा बल्ब ठीक उसी तरह रोशन हो उठा जिस तरह फ्रीज का बल्ब रोशन हो उठता है ।
अलमारी के अन्दर रखी फाइलों पर नजर पड़ते ही देव की आंखें नन्हे-नन्हे बल्वों के मानिन्द चमक उठी---उनमें से एम. एक्स. ट्रिपल फाईव तलाशने में उसे कोई दिक्कत पेश नहीं अाई और इस फाइल के चमकदार कवर पर उसे करेंसी नोटों की गड्डीयों का पूरा अंम्बार नजर आया---बीस करोड रुपए उस कवर पर समा न रहे थे ।
फाईल को दीवानों की तरह चुमने लगा था वह ।।।
ड्राइविंग सीट पर सुवखू था और उसके सधेे हुए हाथों में फर्राटे भरती हुई जीप सड़क पर उड़ी चली जा रही थी ।।
पिछ्ली सीट पर थे कर्नल भगतसिंह और जगबीर----जगबीर ने अपने हाथ में दवा रिवॉल्वर अभी तक भगतसिंह की कनपटी पर रखा हुआ था ।
कर्नल भगतसिंह का चौडा और रौबीला चेहरा पुरी तरह भभक रहा था-ऐसा लग रहा था कि यदि उसका वश चले तो अभी दोनों को कच्चा चबा जाए, किन्तु उन्होंने भगतसिंह को पल भर का मोका न दिया था।।
एकाएक सुक्खू बोला-----" अब इसकी आखो पर पट्टी बांध दो जगबीर!"
"इसके लिए जीप रोकनी पडेगी!"
" क्यों? "
"यूं देख रहा है हरामजादा जैसे कच्चा चबा जाएगा, मेरे रिवॉल्वर के निशाने से हटते ही यह हरकत कर सकता है, अत: जीप रोककर पट्टी तुम बांधों ।"
सुक्खू ने ज्यादा हुज्जत न की ।
ब्रैकों की चरमराहट के साथ जीप सूनी पड़ी सड़क के बीचों--बीच रुक गई, जगबीर कर्नल को कबर किए रहा और जिस वक्त -जेब से सुक्खू काली पट्टी निकाल रहा था उस वत्त कर्नल गुर्राया----"यह सव तुम ठीक नहीं कर रहे हो!"
""क्यों?" जगबीर हंसा----"क्या कर लोगे हमारा?"
"मिलिट्री सीक्रेट सर्विस के जासूसों की नजर से तुम ज्यादा देर तक छुप नहीं सकोगे और अपने हत्थे चढ़ते ही वे तुम्हें चीर-फाड़कर डाल देगे!"
"तुम्हारा ख्वाब कभी पूरा नहीं होगा कर्नल, क्योंकि हर कदम पूरी तरह सोच…समझकर उठाया है, कोई जासूस हमारा बाल भी बांका न कर सकेगा!"
"त-तुम आखिर हो कौन और चाहते क्या हो?"
"जहाँ तुम्हें ले जाया जा रहा है, वहाँ इन्हीं सवालों का जवाब दिया जाएगा!"
सुक्खू बोला----"' मगर अव यदि वहाँ पहुंचने से पहले तुमने एक लफ्ज भी जूबान से निकाला तो गोली भेजे में घुसेड़ दी जाएगी---शरीफ बच्चे की तरह, आंखों पर पट्टी बंधवा लो !"
इसके वाद भगतसिंह की आंखों पर पट्टी बाँध दी गई ।
जीप पुन: स्टार्ट होकर अागे बड़ी, मगर अब क़र्नल नहीं देख सकता वह किन रास्तों से गुजर रही है ।
बीस मिनट बाद जीप रुक्री----उसे उसी हालत में उतारा गया ।
दोनों तरफ से पकड़कर पैदल चलाया गया । दस मिनट वाद आंखो से पट्टी हटाई गई तो कर्नल ने कीमती सामान से खूबसूरती के साथ सजे कमरे को निहारा----यह वही कमरा था, जिसमें देव को लाया जाता रहा था-नज़र सामने खडे़ जगबीर और सुक्खू पर जम गई , बोला----" ये कौन-सी जगह है?"
"कुछ देर वाद तुम्हारे हर सवाल का ज़वाब हमारा 'मास्टर' देगा!"
"मास्टर?"
"जी हा!" उसकी खिल्ली-सी उड़ाते हुए सूक्खू ने कहा----"वोे-चमकदार सनमाईंका वाली मेज के पीछे पुश्तवालीं कुर्सी दे ख रहे हो न…वे उसी पर बैठते हैं!"
"तो मैं बैठ जाऊं?" कर्नल भगतसिंह ने विशिष्ट अंदाज में नाक खुजलाते हुए कहा ।
"क-क्या ?" दोनों बुरी तरह उछल पड़े ।
भगतसिंह के होठो पर मुस्कान उभर अाई । इस बार उसके मुंह से निकलने वाली अबाज भी मुश्ताक या कुबड़े भिखारी वाली थी, बोला--------"मैंने ये पूछा है हुजूर कि क्या अाप लोगों की तरफ से मुझे उस कुर्सी पर बैठने की इजाजत है?"
"अ-अाप खुद मास्टर हैं?" मारे हैरत के वे पागल हुए जा रहे थे-कर्नल भगतसिंह के चेहरे को वे यूं देख रहे थे जैसे दिल्ली के लालकिले को इस कमरे में खड़ा देख रहे हों और उनकी इस हैरत का पूरा मजा लूटता हुआ भगतसिंह मेज के पीछे पहुचा-----------ऊंची पुश्त वाली रिबॉंल्विंग चेयर पर बैठकर उसने दराज से "डनहिल' का पैकिंट निक्राला----एक सिगरेट सुलगाने के बाद बोला…"नहीं तो क्या उस कोठी से कर्नल भगतसिंह को किडनैप कर लेना इतना आसान है, जितनी आसानी से तुम हमें किडनैप कर लाए हो?"
दोनों में से किसी के मुह से बोल न फूटा ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
" अपना किडनैप करने में हमने भी तुम्हारी मदद की है या यूं कहा जाए तो गलत न होगा कि अपना अपहरण हमने खुद किया है!"
"मगर अापको खुद यह सव करने की क्या जरूरत थी?"
भगतसिंह ने पूरे आराम से कहा------"ऐसे सवालों का जवाब तुम जैसे बच्चों को नहीं दिया जाता!"
"जी ?"
"दोनों अपने-अपने रिवॉल्वर मेज पर रख दो!"
गुलामों की तरह सुक्खू और जगबीर ने उसके अादेश का पालन कीया--------तब कर्नल ने कहा-"तुम दोनों यहाँ से हजारों मील एक कस्बे के छोटे से बदमाश हो, किन्तु देव की नजर में मैंने तुम्हें पाकिस्तानी सीक्रेट विंग के जासूसों का सम्मान दिया और वह सव तुमसे काम निकालने के लिए किया गया था, जो तुमने किया!"
" जी ।"
"अब मेरा मिशन लगभग पूरा हो चुका है और साथ ही तुम्हारा काम खत्म!" वह कहता चला गया--------"'अफसोस के साथ बताना पड़ रहा है कि अब मैं तुम्हे एक पल के लिए भी इस कमरे से बाहर नहीं जाने दे सकता!"
दोनों के होश उड़गए ।।।
यह समझते ही दोनों के पैरों तले से जमीन खिसक गई कि वह क्या कह रहा हे-सुक्खू पागलों की तरह चीख पड़ा-" न---नहीं-----तुम ऐसा नहीं कर सकते मास्टर!"
" क्यों ?"
"क्योंकि हमने तुम्हारा वहुत काम किया है-तुम्हारे हर हुक्म का पालन किया है हमने!" आतंक में डूबा जगबीर चीखता चला गया----------"'हमने ट्रेजरी में डाका डाला-अपने दोस्त बलजीत को खोया-देव को आतंकित किया--------एम. एक्स. ट्रिपल फाईव की चोरी में तुम्हारा साथ दिया"
""बस.........." कहते हुए कर्नल ने दराज से एक रिवॉल्वर निकलकर उन पर तान दिया----" यही तो एक बात है जिसकी वजह से मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोड सकता---मुझे ऐसा एक भी शख्स जिन्दा नहीं चाहिए, जो भारतीय सेना के जनरल को यह बता कि एम० एक्स ट्रिपल फाइव की चोरी के पीछे कर्नल भगतसिंह है! "
दोनों के हाथ-पैर फूल गऐ-चेहरे पीले जर्द-----जगबीर ने मौके की नजाकत को भांपकर कहा-----" ह--हम किसी को यह राज नहीं बताएंगे प्लीज-हमें जाने दो ।"
"क्या ताजमहल बनाने वालों के हाथ नहीं काट डाले गए थे?"
"हमारा यकीन करे मास्टर----एम.एक्स. ट्रिपल फाईव की चोरी के सम्बन्थ में किसी से भी कोई जिक्र किए बिना हम अपने कस्बे लौट जाऐंगे ----- यहां से बहुत दूर ।"
"मैं तुम्हें उससे भी दूर भेजना चाहता हुं !"
" ह-हम चले जाएंगे मास्टर-----" तुम जहां कहो हम चले...!"
" धांय---------धांय !"
कर्नल भगतसिंह के रिवॉल्वर से निकले दो शोले उनके जिस्म के ऐसे संवेदनशील स्थानों में जा धंसे कि सूक्खू या जगवीर में से किसी को तड़पने तक का मौका न मिला------"वे कटे वृक्ष की तरह गिरे और वहीं देर हो गए । "
भगतसिंह के चेहरे पर रहम या उनके प्रति सहानुभूति का कहीं कोई भाव न था और उस वक्त वह फूक मारकर रिवाल्वर की नाल से निकल रहे धुएं को छिन्न-भिन्न कर रहा था, जब कमरे का दरवाजा खुला---प्रशंसा के अंदाज में ताली बजाता हुआ अधेड़ आयु का एक व्यक्ति अन्दर दाखिल हुआ--------उसके चेहरे पर खिचड़ी बालों की फ्रेचकट दाढ़ी और आंखों पर जीरो पावर-के लेंसों वाला एक चश्मा था-----मेज के नजदीक अाता हुआ लह बोला----"वेल डन कर्नल.. वेल डन-----अपने मिशन की कामयाबी पर मैं तुम्हें बधाई देता हूं ।"
'थैक्यू ।" रिवॉल्यर वापस दराज में रखते हुए कर्नल ने कहा---" बैठो ।"
वह उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया ।
"मान गए कर्नल…सचमुच तुमने हक अदा कर दिवा-सारा मिशन तुमने खुद अपने हाथ में रखा-हम तो सिर्फ पचास करोड़ खर्च करने के गुनहगार हैं!"
"अभी तक तुमने सिर्फ पच्चीस करोड खर्च किए हैं!"
"बाकी पच्चीस भी तुम्हारे खाते में जाने के लिए तैयार हैं!" , फ्रेचकट दाढी वाले ने कहा---" तुम एम. एक्स. ट्रिपल फाईव हमारे हवाले करो…पच्चीस करोड तुम्हारे! "
"अभी वह वक्त नहीं आया ।"
" क्या मतलब?"
"एम. एक्स. ट्रिपल फाइव तब मिलेगी जव अपने रिवाल्वर से तुम देव और दीपा को कत्ल का चुके होंगे-तुम्हारे करने के लिए मेरे पास यही पहला और अंतिम काम है ।"
"मैं जानता हूं ।" वह बोला-----" तुम फिक्र मत करो---यहां से पाकिस्तान रवाना होने से पहले मैं इस कमरे में वीडियो कैसेट, जब्बार, देव और दीपा की लाश छोड़ जाऊंगा ।"
जो स्कीम मैंने देव को कागज़ पर लिखकर समझाई थी, उसमे उसे यह नही बताया गया है कि एम. एक्स. ट्रिपल फाईव की चोरी के बाद दीपा के साथ उसे कोठी से कैसे फरार होना है-----इस वक्त वह कोठी के तहखाने में कहीं होगा----" मैं यहां से करीब ग्यारह बजे सुक्खू और जगबीर की लाशों के साथ उसी जीप में कोठी पर पहुंचूगा-तब तक देव और दीपा कथित एम. एक्स. ट्रिपल फाइव के साथ कोठी से निकल चुके होंगे और मिलिट्री सीक्रेट सर्विस के चीफ सहित जनरल साहब वहां पहुंच चुके होंगे---मुझे देखते ही वे सब चौंक पड़ेगे और पूछेंगे कि कहां से आ रहा हूं तब जानते हो मैं क्या जवाब दूगा?"
" क्या ?"
"जिन लोगों ने मुझे किडनैप किया था, मौका लगते ही मैँने उऩ पर अंकुश पा लिया और इस वक्त उनकी लाशें उस जीप में पड़ी हैं, जिसमें मैं यहाँ तक आया हूं----उन्हीं से मुझे पता लगा है कि मेरा अपहरण केवल सव लोगों का ध्यान बांटने के लिए किया गया है-वास्तव में इस अफरा-तफरी के बीच देव और दीपा ने एम. एक्स. ट्रिपल फाइव चुरा ली है----मैं उन्हें बताऊंगा कि मेरा लड़का और बहू पाकिस्तानी जासूसों के लिए काम-कर रहे थे-सिर्फ एम. एक्स. ट्रिपल फाईव की चोरी के लिए ही मेरे साथ कोठी में रहने अाए थे---मेरे इस बयान के तुरन्त बाद कोठी में उनकी तलाश शुरू होगी, किन्तु तब तक वे वहां से निकल चुके होंगें ।"
" गुड ।"
" योजना के मुताबिक वे कोठी से निकलकर सीधे सीरांक होटल के रूम नम्बर दो सौ सोलह में पहुंचेगे जो फर्जी नामों से पहले ही उनके लिए बुक हैं--वहाँ तुम कल सुबह मुश्ताक वाले मेकअप में उनसे मिलोगे और एम. एक्स. ट्रिपल फाइव के बदले बीस करोड़ देने के लिए यहाँ ले जाओगे-----यहां लाकर तुम उन्हें कत्ल कर दोगे!"
"जो करना है मुझे वह सब याद है!"
" उनके पास जो एम. एक्स. ट्रिपल फाईव है वह-नकली है-वही जो उन्हें एम. एक्स. ट्रिपल फाइव के बारे में बताते वक्त दिखाई गई थी-असली एम. एक्स. ट्रिपल फाइव सुबह नौ बजे मैं स्वयं यहाँ आकर तुम्हें दूंगा--मेरे बाकी के पच्चीस करोड तैयार
रखना----उसके बाद तुम करांची के विमान में बैठ जाओगे और मैं कोठी चला जाऊंगा ।"
"मिशन खत्म ।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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