सुलग उठा सिन्दूर complete
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
यही सब सोचते उसने गैस अॉन करकेउस पर कढ़ाई रख दी -- स्पून से थोड़ी सूजी कढ़ाई में डाली और उसे भूनने लगी --- बंसी उसके ठीक सिर पर खड़ा था, दीपा ने कनखियों से थाली की तरफ़ देखा…थाली उससे केवल दो फुट दुर थी यानी हाथ बडाकर आराम से छू सकती थी, मगर मौका मिले तब न ?
अचानक उसके दिमाग में एक ख्याल अाया, कढ़ाई में घी डालती हुई बोली…"तुम किसी वर्तन में पानी लेकर उसमें दो चम्मच चीनी गोल लो बंसी?"
"वह किसलिए?"
"अच्छी तरह भूनने के बाद सूजी उसी में तो डाली जाएगी"
"बंसी हंसने लगा, बोला…"आपको सूजी का हलवा बनाना आता भी है बहूरानी?"
"क्या मतलब?"
"पानी में चीनी तब डलती है जब वह उबलने लगता है!"
"ये वहुत घिसी-पिटी तरकीब है और ऐसा करने पर कई बार चीनी के दाने 'दानों' की ही शक्ल में रह जाते हैं, जब वे मुंह में जाते हैं तो खाने वाले का सारा मजा किरकिरा हो जाता है!" दीपा कहती चली गई…"आज मैं तुम्हें बिल्कुल नए पैटर्न से हलवा बनाना सिखऊंगी---किसी बर्तन में थोड़ा-सा पानी लेकर दो चम्मच चीनी उसमें अच्छी तरह फेंट लो-ठीक उसी तरह जैसे आमलेट के लिए अंडों को फेंटा जाता है!"
कंधे उचकाकर बंसी ने एक डोंगा उठाया और 'वाशवैशन' की तरफ मुड़ा ही था कि दीपा ने बायां हाथ अपने वक्ष-स्थल में डालकर टेबलेट निकाल ली---उधर बंसी ने नल खोला----उस वक्त दीपा की तरफ उसकी पीठ थी, जब उसने पूरी फूर्ती के साथ टेबलेट उस कटोरी में डाल दी, जिसमें 'रेशेदार' सब्जी थी ।
टेबलेट डूब गई ।
"देखना बहूरानी, क्या इतना पानी वाकी रहेगा?"
दीपा ने पलटकर देखा जरूर मगर बिना सोचे-समझे कह दिया--- ठीक रहेगा?"
अब उसे इस बात की परवाह कहां थी कि हलवा स्वादिष्ट ही बनना चाहिए ?
दीपा ने जो कुछ बताया उसे सुनकर हालांकि देव के दिमाग पर थोडी घबराहट हावी हुई थी, शीघ्र ही खुद को संयत करके बोला---"खैर-विपरीत हालातों के बाद तुमने काम पूरा कर दिया, इसी बात की खुशी है-जव यह सारा ड्रामा देशवासीयों के सामने अाएगा,लोगों को पता चलेगा कि दुश्मनों के पडृयन्त्र को चकनाचूर करने के लिए हमने किन-किन हालातों में क्या-क्या किया तो लोग हमारी प्रशंसा करते न थकेंगे!"
"अब तो बस वर्तन लेकर बंसी के लौटने की इन्तजार है!" दीपा ने कहा----"हां तुम श्योर हो न देव कि मांजी अपने कमरे का ताला लगाकर गई हैं?"
"हां हंडरेड परसेट श्योर ।"
"इस तरह, साढे नौ तक वे फुसफुसाकर बाते करते रहे-ये बाते वे अपने कमरे में नहीं, बल्कि एक ऐसे स्यान पर छुपे खड़े कर रहे थे, जहाँ से बंसी को कर्नल के कमरे से लोटता आराम से देख सकते थे।
एकाएक दीपा ने विषय बदला-"क्या बात है, बंसी अभी तक नहीं लोटा ?"
"लो!" गैलरी में नजर गडाए देव के मुंह से निकला---" शायद तुम्हारे कहने ही की देर थी, वह जा रहा है!"
इन वाक्यों के पांच मिनट बाद वे कर्नल भगतसिंह के कमरे की तरफ -जा रहे थे-प्राइवेट रुप के सामने से गुजरते वक्त सम्भालने की लाख चेष्टा के बावजूद वे कांप गए, चूंकि जानते
थे कि इस वक्त वे प्राइवेट रूम की निगरानी कर रहे जासूस की निगाह मे हैं ।
अंजली और भगतसि'ह के कमरों के नजदीक पहुचे ।
पलटकर एक वार पीछे देखा-----मोड़ तक गेलरी सुनसान पड़ी थी, देव का इशारा मिलते ही दीपा विजली से चलने वाली गुड़िया की तरह आहिस्ता से अंजली के कमरे का 'डंडाला' हटाकर अन्दर गुम हो गई ।
बाहर से देव ने डंडाला पुन: लगा दिया ।
गेैलरी अब तक सुनसान पड़ी थी, देव ने धड़कते दिल से भगतसिंह के कमरे के बंद दरवाजे पर दस्तक दी, पहली ही दस्तक पर अन्दर से पूछा गया-"कौन है?"
"मैं देव है बाबूजी, जरा दरवाजा खोलिए!"
"क्या बात है!"
"जरा काम है, आपसे कुछ जरूरी बाते करनी हैं?"
"अब मूड नहीं है, सुबह बात करेगे देव, तुम जाओ ।"
देव के रोंगटे खड़े हो गए, पहली बात तो ये कि अगर बाबूजी जिद पर अड़ गए तो किसी भी सूरत में दरवाजा न खोलेंगे । दूसरे अचानक ही उसके दिमाग पर यह आतंक हावी होने लगा था कि यदि ठीक इस वक्त कोई जासूस इधर निकल अाए तो उसे अकेला देखकर क्या चौंक नहीं पडेगा?"
हिम्मत करके देय ने कहा…"सुबह को सब होते हैं बाबूजी, जबकि मुझे आपसे अकेले में बाते करनी हैं, प्लीज…केवल पांच मिनट के लिए दरवाजा दीजिए ।"
"ओफ्फो...अच्छा ठहरो, खोलते हैं!" इस वाक्य ने जहां देव को शांति प्रदान की वहीं मस्तिष्क में एक नया सवाल यह उत्पन्न कर दिया कि बाबूजी टेबलेट के प्रभाव में हैं भी या नहीं?
क्या वास्तव में टेबलेट में मुश्ताक द्वारा बताए गए सब गुण है ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि मुश्ताक ने उसे किसी झमेले में फंसा दिया हो, वह बाबूजी से बात शुरू करे और वावूजी बिना अाब-ताव देखे उसे शूट कर दें?
अभी वह यही सोच रहा था कि दरवाजा खुल गया ।
नाईट सूट पहने बाबूजी सामने थे और उनकी तरफ देखता दुखता हुआ देव यह पता लगाने की कोशिश करता रहा था कि वे करामाती गोली के प्रभाव में हैं या नहीं?
"अन्दर आओ!” कर्नल भगतसिंह ने कहा ।
देव ने एक नजर मोड़ तक सूनी पड़ी गेलरी पर डाली और कमरे में दाखिल हो गया-उस वक्त भगतसिंह बैड की तरफ़ लौट रहा था जव देव ने घूमकर चटक्नी चढ़ा दी।
भगतसिंह ने उसे बैड पर बैठाया, स्वयं लगभग लेटते हुए बोले----"कहो !"
एक बार फिर उनके हाव-भाव का निरीक्षण करके देव ने यह पता लगाने की नाकाम कोशिश की कि उन पर गोली का असर है या नहीं, बोला…"आपने हलवा खाया?"
भफ्तसिंह ठहाका लगाकर हंस पड़ा ।
देव की बुद्धि चकरा गई, जबकि भगतसिंह ने कहा, "क्या तुम ये बात करने यहां आएँ हो?"
"न-नहीं तो?"
"किर?"
"ऐसे ही पूछ लिया, दीपा ने आपके लिए कोई चीज पहली बार बनाई थी न?"
"नहीं खाया!"
थोड़ा चौंकते हुए देव ने पूछा---"क्यों?"
"बंसी मना करने लगा, कहने लगा कि दुश्मनों की जासूस हो सकती है-उसने अस्वाभाविक जिद करके हलवा बनाया है ---------
-मुमकिन है उसमें कुछ मिलाया हो----कल सुलह वह उसे लेब में भेजेगा टेस्ट के बाद पता लगेगा कि उसका सन्देह कितना गलत या सही है?"
देव उछल पड़ा ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
आश्चर्यजनक ढंग से भगतसिंह सच बोल रहा था, हैरत के सागर में डूबे देव ने पू्छा--"ये अाप क्या कह रहे हैं बाबूजी बंसी भला ऐसा क्यों कहेगा?"
"अरे भई, इस किस्म की चीजो पर नजर रखना ही तो उसका काम है…इसीलिए तो उसे और रामू को नौकरों के भेष में यहां रखा गया हैं?"
"नौकरों के भेष मे-वास्तव में वे कौन हैं?"
"मिलिट्री सीफेट सर्विस के जासूस ।"
" क्या ?"
"तुम चौंक रहे हो?" भगतसि'ह हंसता हुआ बोला…"हां तुम्हें चौकना ही चाहिए क्योकि आज़ से पहले यह बात तुम्हें मालूम नहीं थी-मगर तुम घबराओ नहीं, वे धर के किसी मेम्बर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते-उनका काम संदेह होने पर उसकी . जांच-पड़ताल करना है, सो वे कर रहे हैं---हमें पूरा यकीन है, कि बहू दुश्मनों की जासूस नहीं हो सकती!"
" मगर इन जासूसों कोठी के अन्दर क्यों तैनात किया गया है बाबूजी ?"
" हकीकत तो बेचारे वे खुद भी नहीं जानते, सोचते है कि हमारे प्राइवेट रूम की सुरक्षा के लिए उन्हें इस वजह से यहाँ नियुक्त किया गया है । यहाँ मिलिट्री के सीक्रेटस रखे है ।"
देव ने धड़कते दिल से पूछा-"हकीकत क्या है?"
"वास्तव में वे एम. एक्स. ट्रिपल फाइव की सुरक्षा व्यवस्था के एक हिस्से हैं ।" भगतसिंह आराम से विना किसी तनाव के इस तरह बताए चला जा रहा था जैसे इस वक्त वह खुद को अपने जनरल के सामने महसुस कर रहा हो ।
"एसा एक्स ट्रिपल फाईव क्या है?" देव ने पूछा।
"दुसरी भाषा में तुम उसे हिन्दुस्तान के प्राण कह सकते हो!"
"" मैं समझा नहीं बाब्रूजी ।"
"वह एक ऐसी फाइल है-जिसमें यह दर्ज है कि हमारी कितनी-कितनी सेनाएं, टैंक और दूसरे हथियार कहाँ-कहाँ तैनात है, कौन-सा 'राडार' कहाँ लगा है-किस मोर्चे पर हम दुश्मन कें
छक्केे छुडा सकते हैं और वे मोर्चे कौन से हैं, जहाँ से दुश्मन यदि हमला करे तो हमारे परखच्चे उड़ा देगा---.. एक्स ट्रिपल फाइव में सबकुछ दर्ज है, यह भी कि हमारे मिजाइल्स और गुप्त हवाई अड्डे कहां हैं--पाकिस्तानी सेना में छुपे हमारे गुप्तचरों के नाम तक हैं उसमें । संक्षेप में यह समझ सकते हो कि अगर एम.एक्स ट्रिपल फाइव दुश्मन के हाथ लग जाए तो वह चौबीस घंटे के अन्दर देहली लाल किले पर अपना झंडा फ़हरा सकता है?"
रोमांचित होते देव ने पूछा…‘"एम.एक्स.ट्रिपल फाइव रखी कहाँ है ?"
कर्नल भगतसिंह बेहिचक सब बताता चला गया ।
की-हाँल से आंख सटाए झुकी खड़ी दीपा की कमर बुरी तरह दुखने लगी थी, किंतु एक पल के लिए भी वहां से आंख हटाकर उसे सीधी खड़ी होना गंवारा नहीं था-----वह दावे के साथ कह सकती थी कि अभी तक इस दरवाजे के सामने से, गैलरी से कोई नहीं गुजरा है और इसीलिए वह खुश भी थी----भगबान से दुआ कर रही थी कि इधर कोई आए ही नहीं।
वैसा कोई ड्रामा ही नहीं, जिसकी उन्होंने कल्पना की थी ।
किन्तु भगवान ने शायद उसकी दुआ नहीं सुनी, क्योंकि तभी गैलरी से उसे ऐसी आवाज आई जैसे वहां दवे पांव कोई चल रहा हो----दीपा का दिल बुरी तरह धड़कने लगा ।
गेैलरी में 'रामू' नजर आया ।
दोनों कमरों के बीच वाले दरवाजे पर दस्तक देने के लिए दीपा अभी वहां से हटने की सोच ही रही थी कि छवकै छूट गए--- रामू को उसने अागे निकल जाने की जगह इसी कमरे की तरफ बढ़ते देखा---अभी वह कुछ समझ भी न पाई थी कि धीरे से इसी दरवाजे का बाहर वाला "डंडाला'' सरकने की आवाज सुनी ।
दीपा के रोंगटे खड़े हो गए ।
पसीना छूट पड़ा, सिट्टी-पिट्टी गुम ।
जिन किबाडों के "की-हॉल'' से उसने आंख सटा रखी थी । उन्हीं' में हल्का-सा धक्का लगा और वह तेजी से सीधी खड़ी हो ग़ई कमर में दर्द की तेज लहर दौड़ी, मुंह से निकलना चाह रही सिसकारी को बडी मुश्किल से रोका!
इस बिचार ने उसके छक्के छुडा दिए कि रामू इसी कमरे में अा रहा है ।
यह तो वह न सोच सकी कि इस कमरे में आकर वह क्या करना चाहता है किन्तु आहिस्ता से खुल रहे किवाड़ के साथ-साथ पीछे जरूर हटती चली गई ।
अन्ततः दीवार से चिपक गई वह ।
रामू चोरों की तरह अन्दर दाखिल हुआ, दीपा ने अपनी सांस तक रोक ली, उफ-इस वक्त भले ही उसके जिस्म के चाहे जिस हिस्से को काटा जाए, एक बूंद खून हासिल न होगा!
चेहरा तीन दिन की सड़ी हुई लाश के चेहरे जैसा लग रहा था ।
गनीमत यह थी कि 'रामू' ने पलटकर दरवाजा बन्द करने की कोशिश नहीं की…अगर वह ऐसी कोशिश करता तो दीपा पर उसकी नजर पड़ने से भगवान भी नहीं रोक सकता था, मगर वह चोरों की तरह दबे पांव दोनों कमरों के बीच वाले दरवाजे की तरफ़ बढ़ रहा था ।
दीपा का दिमाग जड़ होकर रह गया ।
इसके अलावा उसे कुछ ऩ सूझा कि यहीं से फौरन भागं जाना चाहिए-रामू ने अगर पलटकर देख लिया तो सारा प्लान, सारी स्कीम धरी रह जाएगी ।
दरवाजा खुला था, वह किवाड़ के पीछे ।
दीपा हिली ।।
दरवाजे की तरफ बढ़ रहे रामू पर दहशत में डूबी अपनी आंखे चिपकाए, बिल्ली के मानिन्द कदम बढ़ाया-एक-दो फिर तीसरा और चौथे कदम में वह सुई गिरने जैसी आहट भी किए विना गेलरी में थी ।।
कमरे के अन्दर से अब रामू उसे नहीं देख सकता था ।
उसने काफी देर से रुकी सांस छोड़ी--दिमाग की मशीन थोड़ी देर रुकने के बाद जैसे पुन: काम करने लगो-अब उसकी समझ में आ रहा था कि रामू ,शायद दोनों कमरों के बीच वाले दरवाजे से कान सटाकर बाते सुनना चाहता है और इस विचार ने पुन: उसके होश फाख्ता कर दिए-------उसी दरवाजे पर तो उसे दस्तक देनी थी, वह मुख्य द्वार के स्थान पर उस दरवाजे से बातें सुनने की कोशिश कर रहा है और यदि उसने बाते सुन ली तो?
सोचकर दीपा कांप उठी ।।
दिमाग में विचार उठा---"क्या मुझे मुख्य द्वार पर सांकेतिक दस्तक देनी चाहिए ?"
उस वक्त कर्नल भगतसिंह द्वारा बताई जा रही सुरक्षा-व्यवस्था अन्तिम दौर में थी और उसने वही सव वताया था, जो देव टेप के जरिए पहले ही जान चुका था । उसके चुप होने पर देव अगला सवाल करना ही चाहता था कि दरवाजे पर हल्की-सी दस्तक हुई ।
इस दस्तक को सुनने के लिए देव के कान हर पल चौंकन्ने थे ।
तीन बार, वही सांकेतिक अबाज ।
परन्तु यह दस्तक दोनों कमरों के ब्रीच वाले दरवाजे पर नहीं, बल्कि मुख्य द्वार पर हुई थी और इसी वज़ह से वह थोडा भ्रमित हो गया ।
बुद्धि चकरा गई ।
दिमाग मैं सवाल उठा कि यदि यह दस्तक दीपा ने दी होती तो दोनों कमरों के बीच वाले दरवाजे पर दी जानी चाहिए थी-मगर, उसी सांकेतिक अन्दाज में किसी अन्य के द्वारा दस्तक दिए जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था ।
दस्तक दीपा ने ही दो होगी-मुख्य द्वार पर क्यों?
देव ठीक से कुछ सोच न सका और ज्यादा देर तक सोचते रहने के हालात न थे । अत वह तेजी से घूमा, मुख्य द्वार के नजदीक पहुंचा --- चिटकनी गिराने के बाद एक झटके से दरवाजा खोलकर गैलरी में पहुचा, परन्तु वहाँ दीपा को देखकर बुद्धि उलट गयी ।
दरवाजा भिडाया ।
दीपा के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी, धीमे-सै उसके कान में फुसफुसाई-"रामू मां के कमरे में है, दोनो कमरों के बीच वाले दरवाजे से बाते सुन रहा है!"
" व-वह वहां कैसे पहुच गया?"
"बात करने का समय नहीं है, उसे सम्भालो?" कहने के बाद दीपा दवे पाव किन्तु तेजी-से शायद छुपने के लिए गैलरी के एक थम्ब की तरफ़ बढ गई।
देव कुछ समझा, कुछ न समझा।
मगर पूरी बात समझने का समय न था, तभी कमरे के अदर से भगतसिंह ने ऊची आवाज में पूछा---"क्या बात है देव, कौन वहां?”
"कोई नहीं, आप वहीं रहे बावूजी-मै अभी आया " कहने के साथ ही उसने इस कमरे का डंडाला बाहर से लगाया----तेज कदमों के साथ खुले पड़े मां के कमरे में दाखिल हो गया और दोनों कमरों के बीच वाले दरवाजे से कान सटाए खडे रामू को . देखा ।
"रामू!" मुंह से गुर्राहट निकाली ।
वह इस तरह उछल पड़ा जैसे अचानक बिच्छू ने डंक मारा हो।
अपने पीछे खड़े देव को देखते ही उसके रौगटें खड़े हो गए…कोशिश के बावजुद उसके मुंह से कोई आवाज न निकल सकी जबकि देव ने पूछा-"इस वक्त यहाँ क्या कर रहे हो ?"
"क-कुछ भी नहीं साहब ।"
"इधर आओ ।" देल ने उसे अपने नजदीक अाने का संकेत दिया ।
हवका-बक्का वह देव के नजदीक पहुचा ।
देव जानता था कि भले ही चाहे जो हो जाए, किन्तु अपनी समझ में रामू किसी भी हालत में उसे यह पता नहीं लगने देगा कि वह नौकर नहीं जासूस है और इसी वजह से अंतिम समय तक भी वह एक सामान्य नौकर जैसा ही व्यवहार करता रहेगा-इसी 'समझ' से प्रेरित देव ने झपटकर रामू का गिरेबान पकड़ लिया, दांत पीसते सवाल किया-"इस तरह छूपकर तुम हमारी बाते क्यों सुन रहे थे?"
"म-मैँ बाते कहां सुन रहा था साहब?"
" झूठ मत बोलो !" गुर्राते हुये देव ने उस पर कुछ और ज्यादा हावी होने की गर्ज से गिरेबान छोड़कर बाल पकडे----इसी पल, उसे याद अाया कि इस जासूस ने कमांडो ट्रेनिगभी की हुई हे…अभी, यदि वह खुल जाए-इय बात को भूला दे कि यहां वह "नौकर'" है तो इसी वक्त मेरी हड्डियों का सुरमा बना सकता है ।
सोचकर भीतर-ही-भीतर कांप उठा देव ।
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
मगर मन से यह विश्वास रखकर गुर्राया---- कि फिलहाल वह खुद को नौकर से ज्यादा कुछ न दर्शाएगा, "सीधी तरह बताओ कि हमारी बाते तुम किसके इशारे पर सुन रहे थे?"
"क-किसी के नहीं!"
" फिर?"
"'म……मैं अाप लोगों की बातें नहीं सुन रहा था, बल्कि एक जरुरी काम से यहाँ आया था ।"
"किससे काम था ?"'
"व-बड़े साहब से!"
"अगर बाबूजी से काम था तो मां के कमरे में क्या कर रहे थे, उस दरवाजे पर कान क्यो लगा रखे थे?"
"रामू चुप रहा।
प्रत्पक्षतः उसके पास इस सवाल का कोई जवाब न था--हां, मन-ही-मन सोच जरूर रहा था कि काश. . .चीफ की तरफ से उसे नौकर की एक्टिंग करते रहने के सख्त निर्देश न होते-काश, वह देव को बता सकता कि वह कौन है और छूपकर उनकी बाते क्यों सुन रहा था?
इधर, देव को या चिन्ता -थी कि कहीं बाबूजी कमरे के अंदर से ही ऊंची आवाज में बोल न पड़े, अत: उसे खुले दरवाजे की तरफ़ खींचता हुआ बोला--- "अगर खैरियत चाहते हो तो इस वत्त यहाँ से चले जाओ, तुम्हारा फैसला सुबह करूंगा!"
रामू ने सोचा जान बची तो लाखों पाए ।
वह वापस जाने के लिए गैलरी में मुड़ा ही था किं-कर्नल भगतसिंह ने अंदर से दरवाजा भड़भड़ाया साथ ही ऊंची अबाज में पूछा-"कोन-हैं देव, किससे लड़ रहे हो?"
रामू ठिठक गया ।
देव बोला-----" अभी अाकर बताता हूं बाबूजी, अाप फिक्र न. ।"
"दरवाजा खोलो, इसे तुमने बाहर से की क्यों कर दिया ।"
उस तरफ़ कोई ध्यान दिए विना देव 'रामू' पर गुर्राया---"अव यहाँ क्यों खड़ा है, खैरियत चाहता है तो चला जा यहाँ से ।"
वेचारा रामू !नौकर की एक्टिग करने के लिए विवश ।
उसे ऐसी एक्टिग करनी थी, जैसी हालत थी रंगे हाथों चोरी करते पकड़े जाने पर सामान्य नौकर की होती है है । अत: मुंह से एक भी लफ्ज निकले विना वहां से सरक लिया।
देव तब तक अपने स्थान पर खड़ा उसे आग्नेय नेत्रों से घूरता रहा, जव तक कि मोड़ पार करके वह आंखों से ओझल न हो गया-----उधर अंदर से दरवाजा भड़भड़ा रहा कर्नल भगतसिंह जाने क्या-क्या पूछता रहा-देव ने एक नजर उस थम्ब की तरफ़ डाली, जिसके पीछे दीपा के छुपे होने की सम्भावना थी, मगर उंसके जिस्म का कोई हिस्सा देव को चमका नहीं।
आगे बढ़कर देव ने डंडाला सरका दिया ।
"क्या बात थी ।" कर्नल भगतसिंह ने पुछा---"किससे लड़ ऱहे थे तुम?"
"रामू था!"
" रामू ?"
" हां , मां के कमरे में खड़ा वह हमारी बातें सुन रहा था ।"
"ओह अच्छा!" कर्नल भगतसिंह खुलकर 'हंस पड़ा, जासूस है न, अपनी जासूसी झाड़ रहा होगा…सोच रहा होगा कि कहीं तुम मुझे किसी चक्कर में तो नहीं फंसा रहे हो?"
यह सोचकर देव अंदर-ही-अंदर कांप उठा कि टेबलेट के प्रभाव में सिर्फ सच बोल रहे बाबूजी ने अगर यही वाक्य 'रामू' के सामने कह दिया होता तो क्या होता कि प्रत्यक्ष नाराजगी-भरे स्वर में बोला----"' अगर यह जासूस है बाबूजी तो , इसका मतलब ये तो नहीं कि घर के सदस्यों की ही जासूसी करता फिरे…उनकी बाते सुने, क्या बाप-बेटे स्वच्छन्द रूप बात भी नहीं कर सकते?"
"मैं उनसे कहूंगा कि भविष्य में इस तरह की हरकत न करें !"
"चलिए!" कहंने के साथ ही वह पुन: अन्दर दाखिल हो गया । कुछ देर बाद बेड पर बैठा लह पूछ रहा था-"वह चाबी कहां है बाबूजी , जिससे प्राईवेट रूम का दरवाजा खुलता है?"
" हमेशा मेरे गले में पड़ी रहती है!"
देव ने अादेश-सा दिया---" मुझे दिखाइए!"
कर्नल भगतसिंह ने बेहिचक से एक ताबीज उतारा । ताबीज क्या रेशम के एक थागे में चाबी पिरी हुई थी, जिसका पिछला हिस्सा ‘रबर' का बना था । टेबलेट के चमत्कारी प्रभाव को दाद देते हुए देव ने ताबीज लिया- भगतसिंह के सामने ही उसने जेब से 'साबुन स्लाईस' निकाली और चाबी को उनके बीच में लगाकर बाकायदा उसकी 'छाप' ली ।
"ये क्या कर रहे हो?" भगतसिंह ने पूछा ।
"छाप ले रहा हूं " बड़े ही मोहक ढंग से मुस्कराते हुए देवं ने साफ़ कहा ।
भगतसिंह ने मूर्खोॉ की तरह पूछा…"क्यों?"
"चाबिर्यों की डुप्लीकेट भी तो होनी चाहिए ताकि अगर एकं सेट खो जाए तो कम-से-कम दूसरे की मदद से आप एम. एक्स, ट्रिपल फाइव तक पहुंच तो सकें ?"
कर्नल ने सहमति में गर्दन हिलाई । "तो लाइए वह चाबी, जिससे हाल क्लॉक में चाबी भरी जाती है ।"
भगतसिंह ने विना किसी हुज्जत के वह चाबी भी उसे सौप दी । उसकी छाप लेते हुए देव ने पूछा-"तहखाने का दरवाजा खोलने के लिए इस चाबी के कितने राउंड देने पड़ते हैं?"
"सात ।" देव ने एक कागज पर लिख लिया । और इस तरह, देव ने न सिर्फ हर आवश्यक चाबी की छाप ले ती बल्कि अलमारी के दोनो लॉंक नम्बर भी नोट कर लिए । यह भी पूछ लिया कि कृत्रिम दरिया किस तरह पार किया जाएगा-गर्ज यह कि अपने मतलब की पूरी जानकारी लेने के बाद उसने कहा…"अब आप थक गए होंगे बाबूजी, आराम से सो जाइए!"
भगतसिंह और अंजली "बेड टी'' साथ ही लेते थे और नियमानुसार चाय देने के बाद बंसी चुपचाप चला जाता था, किन्तु आज वह गया नहीं बल्कि वेड के समीप चुपचाप खड़ा हो गया ।
उसे उस मुद्रा में देखकर भगतसिंह ने पूछा…"क्या बात है बंसी, कुछ कहना चाहते हो क्या?"
"जी !"
" बोलो ?"
"क्या रात छोटे साहब ने रामू के बारे में कोई शिकायत की थी ?"
"रात...नही तो, रात तो वह हमारे पास आया ही नहीं!"
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
कर्नल भगतसिंह के इस सफेद झूठ पर बंसी उछल पड़ा । हैरत है उनका चेहरा देखता हुआ बोला----"' क्या बात कर रहे हैं साहव, रात तो उन्होनें आपसे कम-से-कम डेढ घंटे बात की है ------बहूरानी भी उनके साथ थी!"
"क्या बकवास कर रहे हो?" भगतसिंह गुर्रा उठा----" रात हम खाना खाते ही सो गए थे और उसके बाद हमने किसी से कोई वात नहीं की!"
हैरत के कारण बंसी का बुरा हाल हो गया…"आपको क्या हो गया है साहब, इस बात का तो मैं चश्मदीद गवाह हूं, रामू भी,, शायद छोटे साहव और वहूरानी-भी न मुकर सकें---- मैं उनके मुंह से कहलवा सकता हूं कि रात करीब साढ़े नौ बजे वे यहाँ अाए और ग्यारह बजे लौटे ---- बीच के सारे समय आपसे बाते करते रहे हैं!"
भगतसिंह के रोबीले चेहरे के ज़रें-जरें पर आश्चर्य के कण नजर आने लगे, बोले----"रात तुमने कोई ख्वाब तो नहीं देखा है ?"
"अाप कैसी बात कर रहे हैं साहब, रात तो यहाँ रामू और छोटे साहब के बीच झड़प भी हुई हैे----मैँ उसी सम्बन्ध में पूछ रहा था कि उन्होंने कोई शिकायत तो नहीं की?"
"झड़प-वह किसलिए?"
"कमाल है,-आपको तो कुछ भी याद नहीं!" बंसी की समझ में नहीं आ रहा था कि कर्नल भगतसिंह क्यों "मुकर" रहा है, जबकि भगतसिंह स्वयं उससे कहीं अधिक चकित नजर आ रहा था, बोला-"रामू, देव और दीपा भी तुम्हारे गवाह हैं?"
"जी ।"
"तीनों को इसी वक्त बुलाकर यहाँ लाओ?"
आश्चर्य के सागर में डूबा बंसी कमरे से बाहर चला गया, समीप बैठी अंजली ने कहा----""ये सब क्या चवकर है?"
"पता नहीं क्या बक रहा है?" असमंजस में फंसे भगतसिंह ने कहा…"हमे अच्छी तरह याद है कि खाना खाने के बाद किसी से कोई बात नहीं की---बंसी के जाते ही दरवाजा बन्द करके हम सो गए थे और ये बेवकूफ कहता है कि देव और --दीपा यहाँ अाए-उन्होंने डेढ घंटे हमसे बाते की ।"
"अजीब बात है!"
वे इसी तरह की बाते कर रहे थे कि बंसी तीनों को लेकर यहाँ अा गया ।
उन तीनों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थी । जाहिर था कि बंसी उसे यह बात बता चुका है कि कर्नल साहब रात की हर बात से अनभिज्ञता प्रकट कर रहे हैं, सो-कमरे में दाखिल होते ही देव ने वम्हा-"ये बंसी क्या कह रहा है बाबुजी, क्या आपको याद नहीं कि रात मैं और दीपा यहाँ जाए थे."
उसके इस वाक्य पर भगतसिंह के मुहं से कोई बोल न फूटा, मुखों की तरह गर्दन उठाए वह उन चारों को सिर्फ देखता रहा-अंजली उलझन का शिकार थी, जव कमरे में खामोशी छाए काफी देर हो गई तो देव ने पूछा…"इस तरह क्या देख रहे हैं, आप-बोलते क्यों नहीं बाबूजी?"
"बोलू क्या खाक ?" सस्पेंस में फंसा वह कह उठा---"कमरे में घुसते ही तुमने भी यही वात कही है जो बंसी कह रहा है और रामू----दीपा के चेहरे पर भी मैं तुम्हारे सवाल का ज़वाब पाने की जिज्ञासा देख रहा हूं--जाहिर है कि तम चारों एक ही बात कह रहे हो, वह भी ऐसी कि जिसे में कभी सच नहीं मान सकता ।"
टेबलेट की करामात ने देव को मन-ही-मन दंग करके रख दिया । जबकि दीपा ने पूछा----"क्या सचमुच आपको रात की कोई बात याद नहीं है बाबूजी !"
"खामोश!" अचानक इतनी जोर से दहाड़ता हुआ कर्नल भगतसिंह एक झटके से खड़ा हो गया कि अंजली सहित पांचों कांपकर रह गए, गुर्राया-----" क्या बकवास लगा रखी है ये----हर व्यक्ति एक ही सवाल कर रहा है, क्या तुम चारों मिलकर मुझे
पागल सावित कर देना चाहते हो-ये कहना चाहते हो कि मेरी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, क्या उद्देश्य है तुम्हारा?"
देव और दीपा में से किसी का बोल न् फूटा, जबकि बंसी बोला-"कैसी बात कर रहे हैं सर , अाप तो अच्छी तरह जानते है कि मैं और रामू क्या हैं-क्या हम किसी से मिलकर अापके विरूद्ध साजिश कर सकते हैं, प्लीज-हमारे बारे में गौर से सोचिये ।"
।
छुपे अन्दाज मे उसने जो कुछ कहा था उसे देव और दीपा भी समझते थे-भगतसिंह तो खैर समझ ही रहा था । अपने दिमाग को नियंत्रित करके ब्रोला---खैर...पहले तुममे से कोई भी एक व्यक्ति मुझे रात की पूरी वारदात बताए!"
“मैं और दीपा करीब-साढे नौ बजे अपके पास अाए, तव तक आप अपने कमरे का दरवाजा अन्दर से बद कर. चुके थे जिसे हमारे अाने पर पुन: खोला…उसके बाद करीब डेढ घंटे हमने आपसे बाते की!" .
"क्या ?"
"मै अपनी बैक की सर्विस के बारे में आपसे बातचीत करने आया था!"
"बैक के बोरे में क्या?"
"हद हो गई, आपको तो कुछ याद नहीं हेै ।" इस जुमले के बाद देव ने अपना पूर्व निर्धारित बयान जारी कर दिया…"मैं अपनी सर्विस से सन्तुष्ट नहीं हूं , यही बात मैंने आपसे कही थी----------
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
सुनकर अाप भावुक हो गए, कहने लगे कि यह बात तो आपको भी पसन्द नहीं है कि एक कर्नल का बेटा ऐसी विना एडवेंचर भरी नौकरी करे-आपने यह भी कहा कि ये बात केवल आप मेरे जिद्दी स्वभाव को ध्यान में रखकर दिल में' छपाए हुए थे, वर्ना चाहते तो ये हैं कि मैं भी मिलिट्री ज्वाइन करके अपने देश की सेवा करता-ज्यादातर भावुक्ता में डूबे अाप यही बताते रहे कि अपने मन में अापने मुझसे क्या-क्या अपेक्षाएं की है तब, मैंने कहा कि मेरा उद्देश्य भी मिलिट्री ज्योंइन करके देश के लिए कुछ कर दिखाना है-अन्त में आपने आश्वासन दिया कि किसी तरह मुझे मिलिट्री में सर्विस दिलाएंगे!"
"कमाल है, हमें कुछ भी याद नहीं है----खेर, लेकिन इस ही रामू से तुम्हारी झड़प कैसे और कहां हो गई?"
"जब मैं और अाप बाते कर रहे थे तब बीच में हल्की-सी आहट से मुझे लगा क्रि कोई छुपकर हमारी बाते सुन रहा है… जानने के लिए मैं गैलरी में पहुचा, वहां कोई न था, किन्तु मां के कमरे का दरवाजा खुला पड़ा था और देखता क्या हूं कि दोनों कमरों के बीच वाले दरवाजे से कान लगाए रामू हमारो बातें सुनने की कोशिश कर रहा है---एक नौकर की इतनी मजाल देखकर मैं गुस्से से पागल हो गया और आपसे शिकायत करने तथा इस बारे में सुबह बात करने की धमकी देकर इसे यहाँ से भगा द्रिया-बस, इतनी झड़प हुई थी!"
"क्या इस बीच हमने कुछ नहीं किया या कहा?"
"कमरे के अन्दर से अाप पूछते रहे कि कौन है, मैं किससे झगड़ रहा हूं मगर गुस्से की ज्यादती के कारण उस वक्त मैंने अापके सबालों का जवाब नहीं दिया-बाद में जब मैंने रामू की हरकत के बारे में आपको बताया तो अाप भी वहुत नाराज हुए और कहा कि सुबह होते ही उसे नौकरी से निकाल देगे!"
"मगर हम कमरे से बाहर क्यों नहीं अाए?"
"अाते तो तब ही न सर, जबकि इन्होंने आपको बाहर अाने लायक छोड़ा होता?"
."क्या मतलब ?"
रामू ने कहा----गैलरी में अाते ही इन्होंने आपके कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया था?"
" बह क्यो ?"
" इन्हीं से पुछिए ।"
भगतसिंह ने देब से मुखातिब होकर पूछा'…'"क्यों देव, तुमने दरवाजा बाहर से बन्द क्यों किया?"
"वह केवल बेख्याली में हो गया था, दरवाजा बंद करने के बाद मुझे डंडाला सरका देने की आदत है!"
"ये झूठ बोल रहे हैं साहब, अगर इन्हें ऐसी आदत है तो जब ग्यारह बजे यहाँ से गए तब बेख्याली में दरवाजा बाहर से वन्द क्यों नहीं कर गए थे?"
"जाते वक्त ये पहले और मैं कमरे से बाद में निक्ली थ्री!" दीपा ने हक अदा कर दिया ।
"ये सब झूठ है साहब, हकीकत ये है कि उस वक्त ये मेरा और आपका आमना-सामना ही नहीं होने देना चाहते थे!" '
" क्यों ?"
"मुझे लगता है कि ये लोग कोई षडृयन्त्र रच रहे है!"
"ष-षडृयन्त्र?" देव भड़क उठा-"कैसा षडृयन्त्र.. अपने ही घर में भला कोई क्या षडृयन्त्र रच सकता है---किसके बिरूद्ध रचेगा-क्या अपने ही मा-बाप के---आपको क्या हो गया है बाबूजी नौकरों के मुंह से मुझें अाप क्या कहलवा रहे हेै-इनकी ये मजाल कि…कि... ।"
देव ने गुस्से के कारण वाक्य पूरा न कर पाने की खूबसूरत एक्टिग की, जबकि भगतसिंह ने कहा…"तुम लोग मुझे रात की घटनाएं याद दिला रहे हो या आपस में लड़ रहे हो?"
एक पल के लिए दोनों ग्रुप शांत रहे।
फिर बंसी ने पूछा----"क्या अापको बहूरानी द्वारा बनाया गया हलवा याद है साहब?"
"हां, तुम खाने के साथ लाए थे!"
"कहीं आपने उसमें से कुछ खाया तो नहीं था ?" बंसी की अांखें चमक उठी ।
" एक ज़र्रा भी नहीं!"
" त----तो फिर… धोखा देकर किसी अन्य चीज में कोई और चीज मिलाई होगी?"
"क्या मतलब?"
"अापको खाने से पहले की सब बातें, अच्छी तरह याद है, यह भी कि हलवे के सम्बन्ध में हमारी क्या बाते थीं-अगर आपको याद नहीं है तो सिर्फ खाने के बाद की क्या इसका ये मतलब नहीं निकलता साहब कि खाने के साथ आपने कुछ ऐसा खाया, जिसके प्रभाव के दौरान की गई कोई भी वात याद नहीं है ----और ऐसा केवल कल पहली बार हुआ-संयोग से कल पहली बार ही बहुरानी ने किचन में कदम रखा था ।”
दीपा दहाड उठी…"क्या तुम यह कहना चाहते हो कि बाबूजी को मैंने कुछ खिला दिया?"
" तुम खामोश रहो ?" एकाएक भगतसिंह उस पर हिंसक पशु के समान गुर्रा उठा-"पूरा न सही मगर मामला कुछ-कूछ हमारी समझ में आ रहा है…इस बात की छानबीन तो बाद में की जाएगी कि रात वास्तव में यहां हुआ क्या था---सबसे प्रमुख बात ये है कि जो कुछ हुआ वह हमें याद क्यों नहीं है, जरूर हमे ऐसी कोई चीज दी गई थी ।"
' "आप इन नौकरों की बातों में अा रहे हैं बाबूजी, दुनिया में ऐसी कोई चीज है ही नहीं, जिसके प्रभाव में की बातें आदमी सुबह तक भूल जाए!"
" है !"
देव ने धड़कते दिल से पूछा…"क्या?"
"शराब ।"
"शराब ?"
"हां शराब ।" कर्नल भगतसिंह ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा----'"शराब एक ऐसी चीज है, जिसे व्यक्ति अगर जरूरत से ज्यादा पी ले तो नशे के दोरान की गई बाते या हरकतें नशा उतरने के बाद याद नहीं आतीं और अगर अाती भी हैं तो
धूमिल-धूमिल-----हम शराब लेते जरूर हैं, दो पैग से ज्यादा कभी नहीं और रात भी सिर्फ दो ही पैग लिए हैं जाहिर है कि यह चाहे जिसने दी हो, मगर ऐसी कोई चीज दी गई, जिससे हम इतने नशे में हो गए कि हमेँ कुछ भी याद नहीं-अब ये पता लगाना हमारा काम है कि नशे की यह चीज हमे किसने किस उद्देश्य से दी?" कहते वक्त वे लगातार दीपा को घूर रहे थे ।
दीपा की हालत बैरंग ।
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