सुलग उठा सिन्दूर complete

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Jemsbond
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Re: सुलग उठा सिन्दूर

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मगर मन से यह विश्वास रखकर गुर्राया---- कि फिलहाल वह खुद को नौकर से ज्यादा कुछ न दर्शाएगा, "सीधी तरह बताओ कि हमारी बाते तुम किसके इशारे पर सुन रहे थे?"



"क-किसी के नहीं!"



" फिर?"



"'म……मैं अाप लोगों की बातें नहीं सुन रहा था, बल्कि एक जरुरी काम से यहाँ आया था ।"

"किससे काम था ?"'


"व-बड़े साहब से!"


"अगर बाबूजी से काम था तो मां के कमरे में क्या कर रहे थे, उस दरवाजे पर कान क्यो लगा रखे थे?"


"रामू चुप रहा।


प्रत्पक्षतः उसके पास इस सवाल का कोई जवाब न था--हां, मन-ही-मन सोच जरूर रहा था कि काश. . .चीफ की तरफ से उसे नौकर की एक्टिंग करते रहने के सख्त निर्देश न होते-काश, वह देव को बता सकता कि वह कौन है और छूपकर उनकी बाते क्यों सुन रहा था?



इधर, देव को या चिन्ता -थी कि कहीं बाबूजी कमरे के अंदर से ही ऊंची आवाज में बोल न पड़े, अत: उसे खुले दरवाजे की तरफ़ खींचता हुआ बोला--- "अगर खैरियत चाहते हो तो इस वत्त यहाँ से चले जाओ, तुम्हारा फैसला सुबह करूंगा!"


रामू ने सोचा जान बची तो लाखों पाए ।


वह वापस जाने के लिए गैलरी में मुड़ा ही था किं-कर्नल भगतसिंह ने अंदर से दरवाजा भड़भड़ाया साथ ही ऊंची अबाज में पूछा-"कोन-हैं देव, किससे लड़ रहे हो?"


रामू ठिठक गया ।


देव बोला-----" अभी अाकर बताता हूं बाबूजी, अाप फिक्र न. ।"



"दरवाजा खोलो, इसे तुमने बाहर से की क्यों कर दिया ।"



उस तरफ़ कोई ध्यान दिए विना देव 'रामू' पर गुर्राया---"अव यहाँ क्यों खड़ा है, खैरियत चाहता है तो चला जा यहाँ से ।"


वेचारा रामू !नौकर की एक्टिग करने के लिए विवश ।


उसे ऐसी एक्टिग करनी थी, जैसी हालत थी रंगे हाथों चोरी करते पकड़े जाने पर सामान्य नौकर की होती है है । अत: मुंह से एक भी लफ्ज निकले विना वहां से सरक लिया।



देव तब तक अपने स्थान पर खड़ा उसे आग्नेय नेत्रों से घूरता रहा, जव तक कि मोड़ पार करके वह आंखों से ओझल न हो गया-----उधर अंदर से दरवाजा भड़भड़ा रहा कर्नल भगतसिंह जाने क्या-क्या पूछता रहा-देव ने एक नजर उस थम्ब की तरफ़ डाली, जिसके पीछे दीपा के छुपे होने की सम्भावना थी, मगर उंसके जिस्म का कोई हिस्सा देव को चमका नहीं।

आगे बढ़कर देव ने डंडाला सरका दिया ।



"क्या बात थी ।" कर्नल भगतसिंह ने पुछा---"किससे लड़ ऱहे थे तुम?"



"रामू था!"


" रामू ?"


" हां , मां के कमरे में खड़ा वह हमारी बातें सुन रहा था ।"



"ओह अच्छा!" कर्नल भगतसिंह खुलकर 'हंस पड़ा, जासूस है न, अपनी जासूसी झाड़ रहा होगा…सोच रहा होगा कि कहीं तुम मुझे किसी चक्कर में तो नहीं फंसा रहे हो?"



यह सोचकर देव अंदर-ही-अंदर कांप उठा कि टेबलेट के प्रभाव में सिर्फ सच बोल रहे बाबूजी ने अगर यही वाक्य 'रामू' के सामने कह दिया होता तो क्या होता कि प्रत्यक्ष नाराजगी-भरे स्वर में बोला----"' अगर यह जासूस है बाबूजी तो , इसका मतलब ये तो नहीं कि घर के सदस्यों की ही जासूसी करता फिरे…उनकी बाते सुने, क्या बाप-बेटे स्वच्छन्द रूप बात भी नहीं कर सकते?"



"मैं उनसे कहूंगा कि भविष्य में इस तरह की हरकत न करें !"



"चलिए!" कहंने के साथ ही वह पुन: अन्दर दाखिल हो गया । कुछ देर बाद बेड पर बैठा लह पूछ रहा था-"वह चाबी कहां है बाबूजी , जिससे प्राईवेट रूम का दरवाजा खुलता है?"



" हमेशा मेरे गले में पड़ी रहती है!"



देव ने अादेश-सा दिया---" मुझे दिखाइए!"


कर्नल भगतसिंह ने बेहिचक से एक ताबीज उतारा । ताबीज क्या रेशम के एक थागे में चाबी पिरी हुई थी, जिसका पिछला हिस्सा ‘रबर' का बना था । टेबलेट के चमत्कारी प्रभाव को दाद देते हुए देव ने ताबीज लिया- भगतसिंह के सामने ही उसने जेब से 'साबुन स्लाईस' निकाली और चाबी को उनके बीच में लगाकर बाकायदा उसकी 'छाप' ली ।


"ये क्या कर रहे हो?" भगतसिंह ने पूछा ।


"छाप ले रहा हूं " बड़े ही मोहक ढंग से मुस्कराते हुए देवं ने साफ़ कहा ।



भगतसिंह ने मूर्खोॉ की तरह पूछा…"क्यों?"



"चाबिर्यों की डुप्लीकेट भी तो होनी चाहिए ताकि अगर एकं सेट खो जाए तो कम-से-कम दूसरे की मदद से आप एम. एक्स, ट्रिपल फाइव तक पहुंच तो सकें ?"





कर्नल ने सहमति में गर्दन हिलाई । "तो लाइए वह चाबी, जिससे हाल क्लॉक में चाबी भरी जाती है ।"



भगतसिंह ने विना किसी हुज्जत के वह चाबी भी उसे सौप दी । उसकी छाप लेते हुए देव ने पूछा-"तहखाने का दरवाजा खोलने के लिए इस चाबी के कितने राउंड देने पड़ते हैं?"

"सात ।" देव ने एक कागज पर लिख लिया । और इस तरह, देव ने न सिर्फ हर आवश्यक चाबी की छाप ले ती बल्कि अलमारी के दोनो लॉंक नम्बर भी नोट कर लिए । यह भी पूछ लिया कि कृत्रिम दरिया किस तरह पार किया जाएगा-गर्ज यह कि अपने मतलब की पूरी जानकारी लेने के बाद उसने कहा…"अब आप थक गए होंगे बाबूजी, आराम से सो जाइए!"

भगतसिंह और अंजली "बेड टी'' साथ ही लेते थे और नियमानुसार चाय देने के बाद बंसी चुपचाप चला जाता था, किन्तु आज वह गया नहीं बल्कि वेड के समीप चुपचाप खड़ा हो गया ।



उसे उस मुद्रा में देखकर भगतसिंह ने पूछा…"क्या बात है बंसी, कुछ कहना चाहते हो क्या?"



"जी !"


" बोलो ?"



"क्या रात छोटे साहब ने रामू के बारे में कोई शिकायत की थी ?"


"रात...नही तो, रात तो वह हमारे पास आया ही नहीं!"



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Re: सुलग उठा सिन्दूर

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कर्नल भगतसिंह के इस सफेद झूठ पर बंसी उछल पड़ा । हैरत है उनका चेहरा देखता हुआ बोला----"' क्या बात कर रहे हैं साहव, रात तो उन्होनें आपसे कम-से-कम डेढ घंटे बात की है ------बहूरानी भी उनके साथ थी!"



"क्या बकवास कर रहे हो?" भगतसिंह गुर्रा उठा----" रात हम खाना खाते ही सो गए थे और उसके बाद हमने किसी से कोई वात नहीं की!"



हैरत के कारण बंसी का बुरा हाल हो गया…"आपको क्या हो गया है साहब, इस बात का तो मैं चश्मदीद गवाह हूं, रामू भी,, शायद छोटे साहव और वहूरानी-भी न मुकर सकें---- मैं उनके मुंह से कहलवा सकता हूं कि रात करीब साढ़े नौ बजे वे यहाँ अाए और ग्यारह बजे लौटे ---- बीच के सारे समय आपसे बाते करते रहे हैं!"



भगतसिंह के रोबीले चेहरे के ज़रें-जरें पर आश्चर्य के कण नजर आने लगे, बोले----"रात तुमने कोई ख्वाब तो नहीं देखा है ?"


"अाप कैसी बात कर रहे हैं साहब, रात तो यहाँ रामू और छोटे साहब के बीच झड़प भी हुई हैे----मैँ उसी सम्बन्ध में पूछ रहा था कि उन्होंने कोई शिकायत तो नहीं की?"



"झड़प-वह किसलिए?"



"कमाल है,-आपको तो कुछ भी याद नहीं!" बंसी की समझ में नहीं आ रहा था कि कर्नल भगतसिंह क्यों "मुकर" रहा है, जबकि भगतसिंह स्वयं उससे कहीं अधिक चकित नजर आ रहा था, बोला-"रामू, देव और दीपा भी तुम्हारे गवाह हैं?"


"जी ।"



"तीनों को इसी वक्त बुलाकर यहाँ लाओ?"



आश्चर्य के सागर में डूबा बंसी कमरे से बाहर चला गया, समीप बैठी अंजली ने कहा----""ये सब क्या चवकर है?"



"पता नहीं क्या बक रहा है?" असमंजस में फंसे भगतसिंह ने कहा…"हमे अच्छी तरह याद है कि खाना खाने के बाद किसी से कोई बात नहीं की---बंसी के जाते ही दरवाजा बन्द करके हम सो गए थे और ये बेवकूफ कहता है कि देव और --दीपा यहाँ अाए-उन्होंने डेढ घंटे हमसे बाते की ।"




"अजीब बात है!"



वे इसी तरह की बाते कर रहे थे कि बंसी तीनों को लेकर यहाँ अा गया ।



उन तीनों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थी । जाहिर था कि बंसी उसे यह बात बता चुका है कि कर्नल साहब रात की हर बात से अनभिज्ञता प्रकट कर रहे हैं, सो-कमरे में दाखिल होते ही देव ने वम्हा-"ये बंसी क्या कह रहा है बाबुजी, क्या आपको याद नहीं कि रात मैं और दीपा यहाँ जाए थे."



उसके इस वाक्य पर भगतसिंह के मुहं से कोई बोल न फूटा, मुखों की तरह गर्दन उठाए वह उन चारों को सिर्फ देखता रहा-अंजली उलझन का शिकार थी, जव कमरे में खामोशी छाए काफी देर हो गई तो देव ने पूछा…"इस तरह क्या देख रहे हैं, आप-बोलते क्यों नहीं बाबूजी?"

"बोलू क्या खाक ?" सस्पेंस में फंसा वह कह उठा---"कमरे में घुसते ही तुमने भी यही वात कही है जो बंसी कह रहा है और रामू----दीपा के चेहरे पर भी मैं तुम्हारे सवाल का ज़वाब पाने की जिज्ञासा देख रहा हूं--जाहिर है कि तम चारों एक ही बात कह रहे हो, वह भी ऐसी कि जिसे में कभी सच नहीं मान सकता ।"




टेबलेट की करामात ने देव को मन-ही-मन दंग करके रख दिया । जबकि दीपा ने पूछा----"क्या सचमुच आपको रात की कोई बात याद नहीं है बाबूजी !"



"खामोश!" अचानक इतनी जोर से दहाड़ता हुआ कर्नल भगतसिंह एक झटके से खड़ा हो गया कि अंजली सहित पांचों कांपकर रह गए, गुर्राया-----" क्या बकवास लगा रखी है ये----हर व्यक्ति एक ही सवाल कर रहा है, क्या तुम चारों मिलकर मुझे
पागल सावित कर देना चाहते हो-ये कहना चाहते हो कि मेरी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, क्या उद्देश्य है तुम्हारा?"


देव और दीपा में से किसी का बोल न् फूटा, जबकि बंसी बोला-"कैसी बात कर रहे हैं सर , अाप तो अच्छी तरह जानते है कि मैं और रामू क्या हैं-क्या हम किसी से मिलकर अापके विरूद्ध साजिश कर सकते हैं, प्लीज-हमारे बारे में गौर से सोचिये ।"


छुपे अन्दाज मे उसने जो कुछ कहा था उसे देव और दीपा भी समझते थे-भगतसिंह तो खैर समझ ही रहा था । अपने दिमाग को नियंत्रित करके ब्रोला---खैर...पहले तुममे से कोई भी एक व्यक्ति मुझे रात की पूरी वारदात बताए!"

“मैं और दीपा करीब-साढे नौ बजे अपके पास अाए, तव तक आप अपने कमरे का दरवाजा अन्दर से बद कर. चुके थे जिसे हमारे अाने पर पुन: खोला…उसके बाद करीब डेढ घंटे हमने आपसे बाते की!" .


"क्या ?"



"मै अपनी बैक की सर्विस के बारे में आपसे बातचीत करने आया था!"



"बैक के बोरे में क्या?"


"हद हो गई, आपको तो कुछ याद नहीं हेै ।" इस जुमले के बाद देव ने अपना पूर्व निर्धारित बयान जारी कर दिया…"मैं अपनी सर्विस से सन्तुष्ट नहीं हूं , यही बात मैंने आपसे कही थी----------

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सुनकर अाप भावुक हो गए, कहने लगे कि यह बात तो आपको भी पसन्द नहीं है कि एक कर्नल का बेटा ऐसी विना एडवेंचर भरी नौकरी करे-आपने यह भी कहा कि ये बात केवल आप मेरे जिद्दी स्वभाव को ध्यान में रखकर दिल में' छपाए हुए थे, वर्ना चाहते तो ये हैं कि मैं भी मिलिट्री ज्वाइन करके अपने देश की सेवा करता-ज्यादातर भावुक्ता में डूबे अाप यही बताते रहे कि अपने मन में अापने मुझसे क्या-क्या अपेक्षाएं की है तब, मैंने कहा कि मेरा उद्देश्य भी मिलिट्री ज्योंइन करके देश के लिए कुछ कर दिखाना है-अन्त में आपने आश्वासन दिया कि किसी तरह मुझे मिलिट्री में सर्विस दिलाएंगे!"




"कमाल है, हमें कुछ भी याद नहीं है----खेर, लेकिन इस ही रामू से तुम्हारी झड़प कैसे और कहां हो गई?"




"जब मैं और अाप बाते कर रहे थे तब बीच में हल्की-सी आहट से मुझे लगा क्रि कोई छुपकर हमारी बाते सुन रहा है… जानने के लिए मैं गैलरी में पहुचा, वहां कोई न था, किन्तु मां के कमरे का दरवाजा खुला पड़ा था और देखता क्या हूं कि दोनों कमरों के बीच वाले दरवाजे से कान लगाए रामू हमारो बातें सुनने की कोशिश कर रहा है---एक नौकर की इतनी मजाल देखकर मैं गुस्से से पागल हो गया और आपसे शिकायत करने तथा इस बारे में सुबह बात करने की धमकी देकर इसे यहाँ से भगा द्रिया-बस, इतनी झड़प हुई थी!"



"क्या इस बीच हमने कुछ नहीं किया या कहा?"




"कमरे के अन्दर से अाप पूछते रहे कि कौन है, मैं किससे झगड़ रहा हूं मगर गुस्से की ज्यादती के कारण उस वक्त मैंने अापके सबालों का जवाब नहीं दिया-बाद में जब मैंने रामू की हरकत के बारे में आपको बताया तो अाप भी वहुत नाराज हुए और कहा कि सुबह होते ही उसे नौकरी से निकाल देगे!"



"मगर हम कमरे से बाहर क्यों नहीं अाए?"




"अाते तो तब ही न सर, जबकि इन्होंने आपको बाहर अाने लायक छोड़ा होता?"




."क्या मतलब ?"



रामू ने कहा----गैलरी में अाते ही इन्होंने आपके कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया था?"



" बह क्यो ?"



" इन्हीं से पुछिए ।"
भगतसिंह ने देब से मुखातिब होकर पूछा'…'"क्यों देव, तुमने दरवाजा बाहर से बन्द क्यों किया?"



"वह केवल बेख्याली में हो गया था, दरवाजा बंद करने के बाद मुझे डंडाला सरका देने की आदत है!"




"ये झूठ बोल रहे हैं साहब, अगर इन्हें ऐसी आदत है तो जब ग्यारह बजे यहाँ से गए तब बेख्याली में दरवाजा बाहर से वन्द क्यों नहीं कर गए थे?"


"जाते वक्त ये पहले और मैं कमरे से बाद में निक्ली थ्री!" दीपा ने हक अदा कर दिया ।



"ये सब झूठ है साहब, हकीकत ये है कि उस वक्त ये मेरा और आपका आमना-सामना ही नहीं होने देना चाहते थे!" '



" क्यों ?"




"मुझे लगता है कि ये लोग कोई षडृयन्त्र रच रहे है!"



"ष-षडृयन्त्र?" देव भड़क उठा-"कैसा षडृयन्त्र.. अपने ही घर में भला कोई क्या षडृयन्त्र रच सकता है---किसके बिरूद्ध रचेगा-क्या अपने ही मा-बाप के---आपको क्या हो गया है बाबूजी नौकरों के मुंह से मुझें अाप क्या कहलवा रहे हेै-इनकी ये मजाल कि…कि... ।"



देव ने गुस्से के कारण वाक्य पूरा न कर पाने की खूबसूरत एक्टिग की, जबकि भगतसिंह ने कहा…"तुम लोग मुझे रात की घटनाएं याद दिला रहे हो या आपस में लड़ रहे हो?"



एक पल के लिए दोनों ग्रुप शांत रहे।

फिर बंसी ने पूछा----"क्या अापको बहूरानी द्वारा बनाया गया हलवा याद है साहब?"



"हां, तुम खाने के साथ लाए थे!"



"कहीं आपने उसमें से कुछ खाया तो नहीं था ?" बंसी की अांखें चमक उठी ।



" एक ज़र्रा भी नहीं!"



" त----तो फिर… धोखा देकर किसी अन्य चीज में कोई और चीज मिलाई होगी?"



"क्या मतलब?"

"अापको खाने से पहले की सब बातें, अच्छी तरह याद है, यह भी कि हलवे के सम्बन्ध में हमारी क्या बाते थीं-अगर आपको याद नहीं है तो सिर्फ खाने के बाद की क्या इसका ये मतलब नहीं निकलता साहब कि खाने के साथ आपने कुछ ऐसा खाया, जिसके प्रभाव के दौरान की गई कोई भी वात याद नहीं है ----और ऐसा केवल कल पहली बार हुआ-संयोग से कल पहली बार ही बहुरानी ने किचन में कदम रखा था ।”



दीपा दहाड उठी…"क्या तुम यह कहना चाहते हो कि बाबूजी को मैंने कुछ खिला दिया?"



" तुम खामोश रहो ?" एकाएक भगतसिंह उस पर हिंसक पशु के समान गुर्रा उठा-"पूरा न सही मगर मामला कुछ-कूछ हमारी समझ में आ रहा है…इस बात की छानबीन तो बाद में की जाएगी कि रात वास्तव में यहां हुआ क्या था---सबसे प्रमुख बात ये है कि जो कुछ हुआ वह हमें याद क्यों नहीं है, जरूर हमे ऐसी कोई चीज दी गई थी ।"



' "आप इन नौकरों की बातों में अा रहे हैं बाबूजी, दुनिया में ऐसी कोई चीज है ही नहीं, जिसके प्रभाव में की बातें आदमी सुबह तक भूल जाए!"


" है !"



देव ने धड़कते दिल से पूछा…"क्या?"



"शराब ।"



"शराब ?"



"हां शराब ।" कर्नल भगतसिंह ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा----'"शराब एक ऐसी चीज है, जिसे व्यक्ति अगर जरूरत से ज्यादा पी ले तो नशे के दोरान की गई बाते या हरकतें नशा उतरने के बाद याद नहीं आतीं और अगर अाती भी हैं तो
धूमिल-धूमिल-----हम शराब लेते जरूर हैं, दो पैग से ज्यादा कभी नहीं और रात भी सिर्फ दो ही पैग लिए हैं जाहिर है कि यह चाहे जिसने दी हो, मगर ऐसी कोई चीज दी गई, जिससे हम इतने नशे में हो गए कि हमेँ कुछ भी याद नहीं-अब ये पता लगाना हमारा काम है कि नशे की यह चीज हमे किसने किस उद्देश्य से दी?" कहते वक्त वे लगातार दीपा को घूर रहे थे ।



दीपा की हालत बैरंग ।
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Re: सुलग उठा सिन्दूर

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कर्नल भगतसिंह की पूरी बात सुनने के बाद मिलिट्री सीक्रेट सर्विस के चीफ ने कहा---" ज़व आपको कुछ भी याद नहीं तो जाहिर है कि कोई नशीली चीज दी गई, उधर-हलवां बनाने के दौरान दीपा की हरकते संदिग्ध थी…सम्भावना ये है कि वह नशीली चीज शायद उसी ने आपकी दी हो?"


"मुझें दरअसल यह डर खाए जा रहा है कि नशे के दोरान मैं मैं एम.एक्स. ट्रिपल फाइव की सुरक्षा व्यवस्था न बक गया होऊं?"


बड़ीं पारी मुस्कराहट के साथ चीफ बोला----"एकदम से कूदकर एम. एक्स. ट्रिपल फाईव पर नहीं पहुच जाना चाहिए।"



"क्या मतलब?"



"एसा एक्स ट्रिपल फाइव के अस्तित्व के राज से केवल तीन व्यक्ति परिचित हैं---मैं , अाप और जनरल साहब-इन तीन हस्तियों में से एक भी ऐसी नहीं है, जो इस राज को लीक करेगी, अत: पहले तो इसकी सूचना ही दुश्मन को होने की सम्भावना नगण्य जितनी है और यदि हो भी जाए तो सुरक्षा-व्यवस्थाएं इतनी कडी हैं कि हमे व्यर्थ ही चिन्तित होने की जरूरत नहीं है!"



"मगर हमारे साथ ऐसा हुआ क्यों?"



"आप कर्नल है, कोई अन्य फौजी राज जानने की कल्पना भी दुश्मन् कर सकता है!"



कर्नल भगतसिंह अभी कुछ कहना ही चाहता था कि मेज पर रखे फोन की घंटी घनघना उठी, चीफ़ ने रिसीवर उठाया----कुछ देर वात की और फोन रखता हुआ बोला-"घटनाएं एक नया और दिलचस्प मोड़ लेती महसूस हो रही हैं कर्नल साब!",


"क्या हुआ"


. "लेव से रिपोर्ट अाई है कि हलवे में किसी नशीली दवा का कोई अंश नहीं पाया गया!"



"आप देव और दीपा को गिरफ्तार करके उनसे पूछताछ क्यों नहीं करते?"



"क्योंकि इससे कोई लाभ होने वाला नहीं है!"



"क्या मतलब?"




"अगर देव और दीपा किसी मकसद से आपकी कोठी में रह रहे है और कर रहे है तो जाहिर है कि उनके पीछे कुछ और लोग हैं-वे केवल 'मोहरे' हैं, जड़ कहीं और है-हमें जड़ तक पहुचना है कर्नल साहब, जानना है कि दुश्मन का 'मिशन' क्या है-इसकै लिए जरूरी ये है कि मोहरों को छेडा न जाए, जबिक सिर्फ वॉच किया जाए!"



" यानी अाप उन पर कडी नजर रखना चहते है?"



"यकीनन" चीफ ने प्रभावशाली स्वर में कहा----"आज से चौबीस घंटे कोठी से बाहर भी उन पर कड़ी नजर रखी जाएगी, हाथ तब डाला जाएगा जब वे हाथ जड़ तक पहुचेंगे---आपको फिक्र करने की कोई जरुरत नहीं है-एम. एक्स. ट्रिपल फाइव की
सुरक्षा हमारे विभाग के सुपुर्द है और हम यकीन दिलाकर कह सकते हैं कि दुश्मन वहां तक नहीं पहुंच सकता!"

दस दिन गुजर गए।



घर में किसी ने भी पुन: उस रात की घटना का जिक्र न किया और यही बात देव और दीपा को अन्दर-ही-अन्दर कचोट रही थी । उनकी समझ में न आ रहा था कि बाबूजी और जासूसों ने मिलकर उन घटनाओं का क्या निष्कर्ष निकाला है?


वे सन्देह के दायरे में हैं या नहीं?


उधर, मुश्ताक ने भी उनसे कोई सम्पर्क स्थापित नहीं किया था, जबकि देव नियमपूर्वक बैक जा रहा था-सारे मामले पर ऐसी खामोशी छा गई थी जैसे कुछ हो ही न रहा हो किन्तु देव को लग रहा था कि यह खामोशी वैसी ही है, जैसी तूफान के आाने से पहले अक्सर छा जाया करती है ।।

कर्नल भगतसिंह की पूरी बात सुनने के बाद मिलिट्री सीक्रेट सर्विस के चीफ ने कहा---" ज़व आपको कुछ भी याद नहीं तो जाहिर है कि कोई नशीली चीज दी गई, उधर-हलवां बनाने के दौरान दीपा की हरकते संदिग्ध थी…सम्भावना ये है कि वह नशीली चीज शायद उसी ने आपकी दी हो?"


"मुझें दरअसल यह डर खाए जा रहा है कि नशे के दोरान मैं मैं एम.एक्स. ट्रिपल फाइव की सुरक्षा व्यवस्था न बक गया होऊं?"


बड़ीं पारी मुस्कराहट के साथ चीफ बोला----"एकदम से कूदकर एम. एक्स. ट्रिपल फाईव पर नहीं पहुच जाना चाहिए।"



"क्या मतलब?"



"एसा एक्स ट्रिपल फाइव के अस्तित्व के राज से केवल तीन व्यक्ति परिचित हैं---मैं , अाप और जनरल साहब-इन तीन हस्तियों में से एक भी ऐसी नहीं है, जो इस राज को लीक करेगी, अत: पहले तो इसकी सूचना ही दुश्मन को होने की सम्भावना नगण्य जितनी है और यदि हो भी जाए तो सुरक्षा-व्यवस्थाएं इतनी कडी हैं कि हमे व्यर्थ ही चिन्तित होने की जरूरत नहीं है!"



"मगर हमारे साथ ऐसा हुआ क्यों?"



"आप कर्नल है, कोई अन्य फौजी राज जानने की कल्पना भी दुश्मन् कर सकता है!"



कर्नल भगतसिंह अभी कुछ कहना ही चाहता था कि मेज पर रखे फोन की घंटी घनघना उठी, चीफ़ ने रिसीवर उठाया----कुछ देर वात की और फोन रखता हुआ बोला-"घटनाएं एक नया और दिलचस्प मोड़ लेती महसूस हो रही हैं कर्नल साब!",


"क्या हुआ"


. "लेव से रिपोर्ट अाई है कि हलवे में किसी नशीली दवा का कोई अंश नहीं पाया गया!"



"आप देव और दीपा को गिरफ्तार करके उनसे पूछताछ क्यों नहीं करते?"



"क्योंकि इससे कोई लाभ होने वाला नहीं है!"



"क्या मतलब?"




"अगर देव और दीपा किसी मकसद से आपकी कोठी में रह रहे है और कर रहे है तो जाहिर है कि उनके पीछे कुछ और लोग हैं-वे केवल 'मोहरे' हैं, जड़ कहीं और है-हमें जड़ तक पहुचना है कर्नल साहब, जानना है कि दुश्मन का 'मिशन' क्या है-इसकै लिए जरूरी ये है कि मोहरों को छेडा न जाए, जबिक सिर्फ वॉच किया जाए!"



" यानी अाप उन पर कडी नजर रखना चहते है?"



"यकीनन" चीफ ने प्रभावशाली स्वर में कहा----"आज से चौबीस घंटे कोठी से बाहर भी उन पर कड़ी नजर रखी जाएगी, हाथ तब डाला जाएगा जब वे हाथ जड़ तक पहुचेंगे---आपको फिक्र करने की कोई जरुरत नहीं है-एम. एक्स. ट्रिपल फाइव की
सुरक्षा हमारे विभाग के सुपुर्द है और हम यकीन दिलाकर कह सकते हैं कि दुश्मन वहां तक नहीं पहुंच सकता!"

दस दिन गुजर गए।

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घर में किसी ने भी पुन: उस रात की घटना का जिक्र न किया और यही बात देव और दीपा को अन्दर-ही-अन्दर कचोट रही थी । उनकी समझ में न आ रहा था कि बाबूजी और जासूसों ने मिलकर उन घटनाओं का क्या निष्कर्ष निकाला है?


वे सन्देह के दायरे में हैं या नहीं?


उधर, मुश्ताक ने भी उनसे कोई सम्पर्क स्थापित नहीं किया था, जबकि देव नियमपूर्वक बैक जा रहा था-सारे मामले पर ऐसी खामोशी छा गई थी जैसे कुछ हो ही न रहा हो किन्तु देव को लग रहा था कि यह खामोशी वैसी ही है, जैसी तूफान के आाने से पहले अक्सर छा जाया करती है ।।।

ग्यारहवें दिन !



सुबह ग्यारह बजे ।


अन्य ग्राहकों की तरह एक विदेशी ग्राहक उसके काउन्टर पर आया । पास कराने के लिए चेक दिया-बैंक रुटीन के मुताबिक ग्राहक तो उसके पास जाते ही रहते थे, किन्तु इस विशेष ग्राहक का जिक्र यहां इसलिए किया गया है कि इस ग्राहक ने नाक खुजलाते हुए चेैक के साथ एक चिट्ठी पकड़ाई ।



चिट्ठी देव ने टॉयलेट में जाकर पढ़ी, विना किसी सम्बोधन के लिखा था-'"पिछले दस दिन से हम तुम्हारे चारों तरफ़ ऐसे अनेक शख्स देख रहे हैं, जो तुम पर, तुम्हारी हर एक्टीविटी पर कड़ी नजर रखे हुए हैं-मतलब साफ कि तुमने कोई 'बेवकूफी’ की हेै------हमारे ख्याल से इन लोगों का सम्बन्ध किसी भारतीय खुफिया विभाग से होना चाहिए,,मगर इन शब्दों को पढ़कर आतंकित होने की जरूरत नहीं है-हमारे रहते ये तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते----: तुमने चाबियों की 'छाप' ले ली हो तो कल बैंक में इन्हें अपने साथ लाना…कल किसी समय बैक में नीले सूट पर सफेद टाई लगाए अधेड़ आयु का एक व्यक्ति अाएगा----उसके आने पर 'टायलेट' जाओगे और 'छाप' वाली स्लाईस वहां रख आओगे--तुम्हारे टॉयलेट से निकलते ही हमारा आदमी वहाँ जाएगा और उन्हें कलेक्ट कर लेगा-इससे अागे की कार्यवाही बाद में बताई जाएगी ।।


याद रहे, अपने सारे काम अाम रुटीन से ही करते रहता है----यह भी पता लगाने की कोशिश न करना कि तुम पर कौन लोग किस माध्यम से नजर रखे हुए हैं, क्योंकि तुम पता लगाने में कामयाब हो पाओ या नहीं, किन्तु वे लोग यह जरूर समझ जाएंगे कि तुम्हें उनकी मौजूदगी की सूचना मिल गई है और यह घातक होगा, अत: अपनी बेहतरी के लिए यह भूलकर 'आम रुटीन' में लगे रहो कि तुम्हें कुछ लोग वॉच कर हैं।




इस कागज को जलाकर राख में बदल देना तुम्हारे हित में होगा!



पढकर देव के जिस्म में अजीब-सी सनसनी दौड़ गई, इस जानकारी ने सचमुच उसके होश उड़़ा ड़ाले थे कि जासूस उसे वॉच कर रहे हैं-अब वह समझ गया कि बाबूजी, बंसी और रामू की खामोशी का राज़ क्या है-----मतलब ये कि उनका शक बरकरार है, किंन्तु अभी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुच पाए हैं कि मैं किस चक्कर में हूं ---- शायद यही पता लगाने के लिए मुझ पर गुप्त रूप से नजर जा रही है ।

नजर रखने वाले जासूस---मिलिट्री सीक्रेट सर्विस के होंगे ।


कागज उसने वास्तव में वहीं जलाकर राख कर दिया----उसी रात, जब दीपा ने उससे पूछा कि क्या आज भी मुश्ताक ने उससे सम्बन्थ स्थापित करने की कोई कोशिश नहीं की तो उसने दीपा को बता दिया कि कल 'छाप' वाले साबुन के 'स्लाईस' उस बैक के टॉयलेट में रख देने हैं, जिन्हें मुश्ताक का साथी कलेक्ट कर लेगा----पत्र में लिखे जासूसों के सम्बन्थ में देव ने उससे कोई जिक्र न किया-शयद इस ड़र से कि दीपा पुन: इस काम से हाथ खींच लेने की जिद करेगी ।



अगले दिन ।



उसने-अपनी दिनचर्या सामान्य ही रखी ।



योजना के मुताबिक नीले सूट और सफेद टाई वाला अधेड़ व्यक्ति टॉयलेट से स्लाईस ले गया-कहीं कोई गड़बड़ न हुई ।सब कुछ सामान्य चलता -रहा ।



सचमुच देव ने यह जानने ही कोशिश नहीं की कि कौन लोग उसे कहां से वॉच कर रहे हैे…पांचवे दिन, उसके काउन्टर पर आने बालों में एक बूढा ग्राहक ऐसा भी था जिसने उसे चेक के साथ एक लिफाफा दिया ।

देव ने टॉयलेट में जाकर धड़कते दिल से लिफाफा खोला, लिखा था-----"साथ के लिफाफे में वे सभी चाबियां मोजूद हैं जिनकी छाप तुमने दी थी-लॉक नम्बर्स और दरिया को पार करने की ट्रिक मालूम ही है------कुत्तों के इन्तजाम के लिए लिफाफे में एक छोटी सी पुड़िया है, जिसका इस्तेमाल इस कागज को अन्त तक
पढ़ने पर तुम्हरे जेहन में स्पष्ट हो जाएगा-----अतः तुम ठीक उसी
तरह एम. एक्स. ट्रिपल फाइव तक पहुच सकते हो जिस तरह 'कर्नल' पहुंचता होगा-दिक्कत सिर्फ कर्नल और कोठी में मौजूद दो जासूस खडी कर सकते हैं, यानी उनकी मौजूदगी में तुम्हारा प्राईवेट रूम में घुसना असम्भव है सो, हमने इसका पुरा
इन्तजाम कर लिया है-पूरी स्कीम नीचे लिख रहे हैं, ध्यान से पढने और एक-एक प्योंइंट को दिमाग में बैठा लेने के बाद इस कागज को खत्म कर दो!"



स्कीम पढ़ते वक्त देव का दिल बुरी तरह धड़क रहा था, परन्तु कागज पूरा पढ़ने के बाद उसके चेहरे पर संतुष्टि की गहरी छाप थी । जाहिर था कि स्कीम से लह पूरी तरह सन्तुष्ट है ।

देव ने रिस्टवॉच पर नजर डाली, शाम के आठ बजने में केवल पांच मिनट कम थे…टाइम देखते ही उसके दिलो-दिमाग पर सवार उत्तेजना कुछ और ज्यादा बढ़ गई, बोला----"केवल बीस मिनट बाकी बचे है दीपा, ठीक सवा आठ बजे ये सारा इलाका गोलियों की आवाज से गूंज उठेगा----अपना काम तुम्हें ठीक से याद है न?"



"ह-हां ।" एक एकमात्र लफ्ज दीपा के मुंह से वड़ी मुश्किल से निकल सका------मारे आतंक के उसका चेहरा पीला नजर, आ रहा था---स्पष्ट लग रहा था कि सवा आठ बजे से शुरू होने वाला घटनाचक्र उसे आतंकित किए था, बोली----"अं-अब भी मान जाओं देव, इस भयानक कांड में शामिल होने से इंकार कर । दो !"



"किससे?"



इस सवाल पर यह केवल देव का चेहरा ताकती रह गई, कहने के लिए उसे कुछ सूझा नहीं, जबकि देव कहता चला गया…"अव ऐसा कोई जरिया नहीं है, जिसके द्वारा मैं उस खून -खराबे को रोक संकू जो ठीक सवा आठ बने मुश्ताक के खरीदे गए किराए के गुण्डे यहां शुरू कर देंगे------सारा मामला तय हो चुका है, खून-खराबा तब भी होगा जब हम अपना काम न करें----मेरे कदम खींच लेने से आखिर होगा क्या?"



"तुम पहले ही इस योजना में शामिल क्यों हुये, मुश्ताक से कह क्यों नही दिया कि यह सब ठीक नहीं हैं ।"
"जो हो चुका है अब उसके लिए रोने का समय नहीं है दीपा?"



धोड़े खिन्न स्वर में देव ने जल्दी से कहा----"दुश्मनों के षडृयंत्र का पर्दाफाश करने के लिए फिलहाल उनकी स्कीम पर काम करने के अलावा और कोई चारा नहीं है----------प्लीज, बहस छोडो------------ये बताओं कि ऐन वक्त पर तुम फ्यूज उड़ा दोगी न?"



दीपा ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।



"जैसे ही बंसी और रामू फायरिंग बाले स्पॉट की तरफ जाते नजर अाएं, पन्द्रह वॉट के फ्यूज लाल बल्ब के साथ प्राइवेट रूम के दरबाजे पर पहुचोगी ---- उसके मस्तक पर लगा बल्ब बदल देना एक महत्वपूर्ण काम है!"



" मै समझ चुकी हूं !"



"इसके-बाद सवा दस बजे तक तुम्हारा काम सिर्फ उन सव को वॉच करते रहना है, जो कोठी में हों---कुछ करना या कहना नहीं है, ठीक सवा दस बजे छोटा हैण्ड ग्रेनेड जो मुश्ताक ने हमें दिया है---तुम खिडकी से लॉन में उछाल दोगी-यह मेरा प्राइवेट रूम से बाहर अाने का टाइम होगा!"


दीपा चुप रही ।




"अगर कोई जासूस तुम्हें ऐसी मुसीबत में---फंसाने की कोशिश करे, जिससे का कोई रास्ता ही सुझाई न देती क्या करोगी?"




दीपा ने सूखे हलक से कहा---म-म-मेरे पास रिवाल्वर है!"



"और वह भी साईलेंसर युक्त ।" देव बोला----"उसका इस्तेमाल केवल तब करना है जब अन्य कोई चारा ही न बचे, कभी-कभी महान् काम के लिए देशभक्तों का खून भी बहाना पड़ता है दीपा?"



दीपा चुप ही थी…चेहरे के भाव बता रहे थे कि यह सव उसे पसन्द न था ।




देव शायद उसे अभी कोई और हिदायतें देना चाहता था कि एकाएक कमरे में बंसी ने प्रवेश किया, उसे देखते ही जहां देव के होश उड़ गए वहीं दीपा बेचारी तो पूरी-की-पूऱी कांप उठी , देव ने सम्भलकर पूछा----"क्या बात है?"



"आपसे कोई मिलने अाया है?"





"म--मुझसे --- कौन ?"



" पुलिस ।"
"प-पुलिस ? रोकने की लाख चेष्टा के वावजूद देव के हलक से चीख-सी निकल गई और दीपा ने तो खुद को बड़ी मुश्किल से धराशायी होने से बचाया था ।



गहरा सच्चाटा छा गया वहां ।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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