सुलग उठा सिन्दूर complete
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
शीघ्र ही चीफ और जनरल साहब लॉन के उस हिस्से में पहुंच गए जहाँ बम फटा था , कोई जनहानि न हुई थी, किन्तु न किसी की समझ में इस विस्फोट का कारण ही अा रहा था और न ही यह कि हरकत किस ने की है ।
कमरा अन्दर से वन्द करने के बाद देव अपनी फूली हुई सांस को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा था-दीपा डरे हुए से नेत्रों से उसे देख रही थी----छोटा-सा सवाल वह बडी मुश्किल से पूछ सकी…"क्या हुआ देव?"
"इधर आओ!" दीपा का बाजू पकड़कर वह उसे लगभग घसीटता हुआ भीतरी कमरे में ले गया और दरवाजा बन्द करके इसकी भी चटकनी चढाता हुआ बोला…"शुक्र है कि प्राइवेट रूम से निकलकर मुझे यहाँ अाते किसी ने नहीं देखा-तुमने मेरा वहुत शानदार ढंग साथ दिया है दीपा…पत्नी हो तो तुम जैसी! "
"एम. एक्स. ट्रिपल फाईव मिली?"
""हां! " वह गर्व से बोला, "वह मेरे कन्धें पर लटके इस वेग में है, अब फौरन इस कोठी से निकलने की तैयारी करो ।"
"कोठी से निकलने की?" दीपा चौंकी ।
"हां ।"
"म-मगर पहले तो ऐसी कोई योजना न थी फिर कोठी से निकलकर भागने की हमें जरूरत क्या है-किसी को कानो-कान पता नहीं चलेगा कि हमने एम. एक्स. फाइव---!"
"योजना थी-मैंने तुम्हें पूरी स्कीम नहीं बताई थी दीपा!" देव ने जल्दी से कहा----"ओर अब----अब तो यहां से फरार हो जाना बेहद जरूरी हो गया है!"
"वह क्यों?"
"इंस्पेक्टर नागर यहां पहुच गया है-उसके पास मेरी गिरफ्तारी का वारंट है-वह सब कुछ जान गया है-यह कि हम जंगल से लूट की दौलत-लाये थे-यह भी कि हमने जब्बार की हत्या की है और अब यह राज कोठी में रहने वाले ज्यादातर लोग जानते हैं!"
"क-कैसे ?"
""उफ…बातों में गंवाने के लिए हमारे पास वक्त नहीं है दीपा-----समय मिलने पर सब कुछ विस्तार से -समझाऊंगा------यहाँ रहा तो देख लिए जाने के एक पल बाद भी आजाद न रह है सकूंगा-निकलो यहाँ से ।"
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है-इस वक्त यहां सेनिक ही नहीं, बल्कि जनरल साहबं भी हैं और उन सबकी नजर से बचकर कोठी से निकलना असम्भव है!"
देव के होंठों पर अजीब मुस्कान दौड़ गई-बोला न इसीलिए तो मानना पड़ता है कि मुश्ताक नाम के आदमी के दिमाग में कम्यूटर फिट है!"
"क्या मतलब?"
"कोठी में इस वक्त जो हालात हैं उसकी हू-व-हू-कल्पना मुश्ताक ने पहले ही कर लो थी और वह पहले ही से समझा चुका है कि इन हालातों के रहते मुझे तुम्हारे साथ कोठी से कैसे निकलना है-बड़ा नायाब तरीका !"
"मगर यहाँ से भागकर जाओगे कहां?"
"स्रीरांक होटल-वहां कमरा नम्बर दो सौ सोलह हमारे फ़र्जी नामों से बुक है, सारी रात वहीं रहेगे-यह सारा इन्तजाम मुश्ताक ने किया है सुबह वह हमसे मिलने वहीं जाएगा-हम उसे एम. एक्स. ट्रिपल फाइव देगे और वह हमें बीस करोड़!"
"ब-बीस करोड़?" दीपा के रोंगटे खडे़ हो गए ।
"हाँ, बीस करोड़!" अपनी ही घुन में मगन देव कहता चला गया…"इस फाइल के बदले मुश्ताक हमे. बीस करोड रुपए देगा-बीस करोड़-जरा सोचो सही दीपा कि ये कितने रूपये होते हैं-मेरे ख्याल से ये सारा कमरा छत तक भर जाएगा-उफ--कितने अमीर हो गए हैं हम, बीस करोड़ रुपयों में तो छोटा-मोटा मुल्क भी खरीदा जा सकता है!"
दीपा के मुह से बोल न फूटा ।
हैरत के सागर में डूबी वह अपने पति की दीवानगी को देखती रह गई…पागल-सा हुआ जा रहा था देव-----ये दीवानगी उस पर विजली बनकर गिर पडी थी----ऐसी बिजली जिसने वहीं खड़े--खड़े उसे राख के देर में तब्दील कर दिया।
"अरे-क्या हुअा, तुम बोलती क्यों नहीं----हा-हा-हा ।" वह धीरे से हंसा, "सकते में अा गई हो शायद----यह सोचकर कि क्या हम सचमुच बीस करोड के मालिक वन गए हैं, मगर इस तरह सपनों में मत खो दीपा-इन बीस करोड का मजा हम तभी लूट सकेंगे, जव इस कोठी से सुरक्षित् निकल जाएं।"
"म-मगर तुमने तो कहा था देव कि यह सब हम देश के दुश्मनों के षडयंत्र को पर्दाफाश करने के लिए कर रहे हे?"
"तुम पागल की पागल ही रहोगी दीपा, अरे हमने किसी षडृयंत्र का पर्दाफाश करने का ठेका ले रखा है क्या, बेवकूुंफ मत वनो, वीस करोड़ रुपये किसी षडृयंत्र का पर्दाफाश करने से बहुत ज्यादा होते हैं ।"
दीपा ने मुर्खों की तरह पूछा----"तो क्या तुम बीस करोड हासिल करने के लिए एम. एक्स. ट्रिपल फाइव दुश्मनों के हवाले कर दोगे ?"
"इसमें दो राय नहीं ।"
"क्या तुमने सोचा है कि इसका अंजाम क्या होगा?"
"हुंह----तुमने शायद यह नहीं सोचा कि बीस करोड रुपये से क्या-क्या हो सकता है?"
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
दीपा अपनी ही धुन में कहती चली गई…"एम. एक्स ट्रिपल फाइव इस देश की रीढ़ है, इसमें मुल्क की हर कमजोरी दर्ज है-ये दुश्मन के हाथ में पहुची और दुश्मन ने उन मोर्चों पर हमला किया, जहां हम कमजोर हैं-हमारे मुल्क की न जाने जितनी मांओं की गोद उजड़ जाएगी-न जाने कितनी दीपाएं विधवा हो जाएंगी देव-जाने कितनी अभागी बहनों से उनका भाई छिन जाएगा, ये देश गुलाम वन जाएगा देव, दुश्मन हमारा सबकुछ लूट लेगा-इज्जत, दौलत-गौरव और अभिमान!"
"तब तक हम यहाँ नहीं रहेगे---- कल सुवह के बाद तुम जिस विमान से, जिस देश में जाने के लिए कहोगी हम उस देश के लिए उड़ चुके होंगे ।"
"कहीं भी उड़े, उतरना हमे जमीन पर ही पड़ेगा देव ।"
"वया मतलब?"
"अपने दिलो-दिमाग पर हावी हो रही इस दीवानगी को रोको----खुद को सम्भालो मेरे देवता---ये पागलपन ठीक नहीं, होश में अाओ ।"
"तुम फिर अपना पुराना राग अलापने लगी?"
दीपा गिड़गिड़ा उठी-"पुराना राग तुम अलाप रहे हो मेरे चांद, अपनी इस दासी की आंखों में झांककर देखो, जानने की कोशिश तो करो कि मैं क्या चाहती हुं ?"
'" तुम बेवकूफ हो ।" देव झुंझला उठा-----"बेवज़ह जज्बाती हो रहीं हो और सिर्फ इसलिए है, क्योंकि अभी तक, ठीक से कल्पना नहीं कर पाई हो कि बीस करोड रुपये होते क्या है, इनके बूते पर क्या किया जा 'सकता है---एक प्लेन खरीदकर हम जव चाहे सारी दुनिया का चक्कर लगा सकते हैं, स्विटजरलैंड, जापान, न्यूयार्क , जहां चाहे रह सकते हैं ।"
" इस मुल्क के वारे में भी तो सोचो, जिसमें पैदा हुए हो---जिसकी गोद में खेले-जिसकी मिट्टी खाते-खाते इतने बडे हो गए तुम ।"
"हुंह-क्या सोचूं?" देव बोला-----" हमने वह किया जो तुम कह रही हो तो इस देश का कानून हम पर इतना रहम करेगा कि फांसी की सजा को उम्र कैद में तबदील कर देगा, सारी जिन्दगी जेल की कोठरी में एडियां रगड़ते हम अपनी बेवकूफी पर अटूटहास लगाते रहेगे, शायद पागल हो जाएं हम और तव, जेलर और दूसरे कैदियों से कहा करेंगे कि हमने इस मुल्क को बचा लिया है-और हमने एम. एक्स . ट्रिपल फाइव देश के हवाले न की होती तो दुनिया के नक्शे पर हिन्दुस्तान न होता और हमारी ये बाते सुनकर दूसरे कैदी खिल्ली उड़ाने के अंदाज में हंसा करेंगे ।"
"तुम समझते क्यों नहीं देव…?"
""बस...अब बहुत बकवास हो चुकी है, अगर कोई इधर आ गया तो गड़बड़ हो जाएगी-चलो यहां से ।"
"मैं नहीं जाऊगी देव ।"
"क-क्या म्तलब?"
"और अपने जीते-जी तुम्हे भी नहीं जाने दूंगी ।"
"पागल हो गई हो क्या?"
"हां, मैं पागल हो गई हूं ।"
"मैं रुकने वाला नहीं हूं बेवकूफ ।" गुस्से की ज्यादती के कारण वह गुर्राया----खुद को मैं तुम्हारे पागलपन के हवाले नहीं कर सकता, तू कहती है कि अपने जीते-जी मुझे यहां से नहीं जाने देगी और मैं कहता हूं कि तुझे जीवित छोडकर मैं यहाँ से जा नहीं सकता ।" कहते हुए देव का हाथ जेब की तरफ बढ़ा ही था कि उससे पहले दीपा उस पर रिवॉल्वर तानती हुई गुर्रायी----"हाथ रोक को देव वर्ना मैं गोली मार दूगी। "
पैरों तले से जमीन खिसक-गई । हक्का-बक्का रह गया देव । बोला-'"त--तुम----तुम मुझे गोली मारोगी?"
"अगर तुम मुझे मार सकते हो तो मैं भी तुम्हें मार सकती हूं।" दीपा ने एक-एक लपज को चबाते हुये कहा-"हिलना नहीं देव, मैं तुम्हारी कसम खाकर कहती हूं गोली मार दूंगी ।"
"म-मैं तुम्हारा पति हूं ।"
"एक दिन जगवीर ने मेरी मांग की तरफ देखकर कहा था कि मेरा सिन्दूर सुलग रहा है, मगर मेरी इज्जत बचाकर उसके शब्दों को झुठला दिया था----उस दिन सचमुच मेरा सिन्दूर नहीं सुलग रहा था, क्योंकि मामला सिर्फ दस लाख का था किन्तु आज...तुम्हारी आंखों के सामने बीस करोड़ हैं, अपनी आखों से अपने सिन्दूर को सुलगता देख रही हूं----मेरा सिन्दूर सुलग उठा है देव और जब एक नारी का सिन्दूर सुलग उठे, इतना पतित हो जाए कि अपने स्वार्थ के लिए मुल्क ही को दांव पर लगा दे तो एक पत्नी एक पति के सीने में भी दहकते हुये अंगारे भर सकती है, एम. एक्स. ट्रिपल फाइव मेरे हवाले कर दो-मैं इसे उसी को सौपूंगी जिसका इस पर हक है ।"
"किसे ?"
"बाबूजी को ।" दीपा ने कहा…"अगर उनके चार्ज से फाइल इस तरह गायब हो जाए और लोगों को पता लगे कि चोर उनका अपना बेटा है तो उनका सारा सम्मान धूल में मिल जाएगा-मैं घर की बहू होने के नाते उनकी इज्जत इस तरह खाक नहीं होने दूंगी् फाइल उन्हें ही सौंपूंगी अन्य किसी को पता भी न लगेगा कि तहखाने से कभी फाइल गायब हुई भी थी-लाअो, फाइल मेरे हवाले करो ।"
देव के तिरपन कांप गए ।
वह समझ गया कि दीपा वही करेगी जो कह रहीं है । अब बचने की, एक ही तरकीब उसके दिमाग में आई-----वही पुरानी तरकीब…इन्सान के पीछे देखकर चीखना और जैसे ही वह पीछे देखे अपना रिवॉल्वर निकालकर उसे शूट कर देना-देव ने मौका ताड़ा, दीपा के पीछे देखता हुआ चौंककर चीखा-'"अरे नहीं ।"
"पिट…पिट… ।"
दीपा के हाथ में दवे साइलेंसर रिवॉल्वर से दो शोले निकलकर देव के सीने में धंस गए अपने चेहरे पर हैरत के असीमित भाव लिए वह वहीं फर्श पर लुढक गया----दरअसल अपना वाक्य कहते ही देव ने जेब में हाथ डाल दिया था, जबकि, उसके झांसे में लेशमात्र भी आए विना दीपा की दृष्टि बराबर उस पर थी और खतरा भांपते ही उसने दो बार ट्रेगर दबा दिया ।
देव के मुंह से अंतिम शब्द निकला-"द--दीपा ।"
उसकी लाश को घूरती हुई दीपा ने दांत भीचकर कहा-"सॉरी देव, मैं तुम्हारी अंतिम चाल में इसलिए नहीं फंसी, क्योकि इसी चाल में फंसते पहले जब्बार को देख चुकी थी ।"
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
करीब एक घंटे की खोज़बीन के बावजूद लॉन में हुए विस्फोट के बारे में वे लोग कुछ पता न लगा सके, जनरल साहब ने चीफ से वह रिपोर्ट ली जो विस्फोट के कारण अधुरी रह गई थी और रिपोर्ट सुनने के , बाद जनरल साहब ने हुक्म दिया…"दीपा को बुलाओ ।"
एक कमरे में चीफ, जनरल साहब और दीपा बन्द ।
दीपा के चेहरे पर इस वक्त अजीब-सी दृढ़ता थी-चटटान जैसा खुरदरापन, जबडों को उसने सख्ती के साथ भींच रखा था और उसकी इस अवस्था का निरीक्षण करते हुए जनरल साहब ने पुछ्----"उस रात तुमने कर्नल के खाने में क्या मिलाया था?"
दीपा चुप रही ।
"जवाब दो दीपा!" जनरल साहब ने सख्त लहजे में पूछा, "तुम लोग किस चक्कर में रहने के लिए कोठी में आए थे ?"
दीपा ने होंठ-सिए रखे।
जनरल साहब को गुस्सा अाया, परन्तु उस पर काबू रखे बोले----" तुम्हारे सारे चुप रहने से हकीकत छुप नहीं जाएगी दीपा, हम जानते है कि तुम अपने पति के साथ जंगल से ट्रेजरी से लूटी गई दौलत लाईं…हम यह भी जानते हैं कि तुम दोनों ने मिलकऱ . जब्बार की हत्या की----बोलो की या नहीं, जवाब दो ।"
मगर दीपा नहीं बोली।
इस अवस्था को देखकर चीफ ने कहा, "तुम्हारे चुप रहने से तुम और देव बच नहीं जाओगे दीपा, हमें सब कुछ मालूम हो चुका हैं----अब तुम्हें अपना जुर्म कबूल कर लेना चाहिए ।"
दीपा मूर्तिवत खड्री रही।
अभी ज़नंरल साहब कुछ कहना चाहते ये कि अचानक किसी ने बुरी तरह दरवाजा पीटा । दीपा का गुस्सा उस पर उतरा । जनरल साहब ने चीखकर पूछा-"कौन बदतमीज है?"
"मैं हूं सर…भगतसिंह ।"
तीनों उछल पड़े ।
दीपा के निस्तेज पडे़ चेहरे पर रौनक लोट अाई ।
जनरल साब के मुंह से निकला-----"भगतसिंह कैसे लौट, आया?"
चीफ ने लपककर ,दरवाज खोला ।
जहाँ भगतसिंह को देखते ही दीपा का चेहरा हीरे की माफिक दमक उठा, वहीं दीपा को वहाँ देखकर भगतसिंह के दिलो-दिमागं को झटका लगा ।
दिमाग में एक ही बात चकराई-!--"ये अब तक यहां क्या कर रही है?"
'क्या वे लोग पकड़े गए हैं, देव कहां है और बन्द कमरे में ये लोग इससे क्या पूछ रहे थे-दीपा क्या बक चुकी है?
अभी उसका दिमाग हवा में कलाबाजियां ही खा रहा था कि चीफ ने पूछा…"आप यहाँ कर्नल साहब?"
"हां ।" वस्तुस्थिति का ज्ञान होने से पहले वह वहुत कम बोलना चाहता था ।
सवाल जनरल_साहब ने स्वयं किया-"तुम्हें तो उन लोगों ने किडनैप कर लिया-था।"
"यस सर ।" कर्नल को कहना पड़ा ।
"फिर तुम इतनी जल्दी कैसे लोट आए"
"व-वो वात से हुई सर कि वे केवल दो थे, मौका लगते ही मैं उन पर झपट पड़। और इस वक्त मेरे द्वारा वापस लाई गई उसी जीप में उऩ दोनो की लाश पड़ी है, जिसमें वे मुझे किडनैप करके ले गए थे।"
"और तुम्हारा लड़का कहां है?"
" द-देव?" भगतसिंह हकला गया ।
"हां , उसे भी तो बदमाशों ने तुम्हारे साथ ही किडनैप किया था न."
भगतसिंह खेल गया ।
एकदम से उसे सूझा नहीं कि क्या कहे--दरअसल दीपा की मौजूदगी ने उसकी खोपड़ी झनझनाकर रख दी थी । कुछ सूझ न रहा था क्या कहे ।
उसे घूरते हुए जनरल साहब ने कहा…"चुप क्यो हो, ज़वाब क्यों नहीं देते कर्नल कि तुम्हारा लड़का कहां है ।"
"म--मुझे क्या मालूम ?" वह बौखला गया ।
"क्या उसे बदमाशों ने तुम्हारे साथ किडनैप नहीं किया था ?"
"न-नहीं तो?"
"फिर वह कहाँ गया?" अजीब झुंझलाहट भरे अंदाज में कहकर जनरल साहब चीफ की तरफ़ पलटकर गुर्राये-----"तुम तो कहते थे कि उसे भी कर्नल साहब के साथ किडनेप किया गया है ?"
" म…मुझे क्या मालूम सर, मुझें तो आप ही की तरह यहाँ अाने पर ऐसी रिपोर्ट ।"
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
उसका वाक्य पुरा होने से पहले ही दीपा लपककर कर्नल भगतसिंह के सामने पहुंची और बोली…"मैँ अापसे-------सिर्फ आपसे कुछ बातें करना चाहती हूं बाबूजी ।"
"ह-हमसे?" कर्नल बौखला गया…"सिर्फ हमसे क्या बात करना चाहती हो?"
"है कोई बात-प्लीज, अाप केवल दो मिनट के लिए मेरे कमरे में चलिए ।"
चीफ गुर्राया, "नहीं, जो कहना है यहीं कहो, हमारे सामने ।"
"प्लीज---मुझे एकान्त में _बाबूजी से सिर्फ दो मिनट बात करनी है, उसके बाद मैं अपके हर उस सवाल का ज़वाब दूंगी जो अभी अाप पूछ रहे थे-यकीन मानिए, आपके दिमाग की हल गुत्थी सुलझा दूंगी----मेरी रिक्वेस्ट मान, लीजिए ।"
"हरगिज नहीं।"
"तब याद रखिए, मैं भी आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगी ।" एकाएक दीपा का स्वर दृढ एवं खुरदरा होता चला गया----"भुलावे में न रहना कि मैं एक नारी है और… अाप 'सैनिक टांर्चररूम में मेरी जुबान खुलवा लेगे, अपने सुहाग की कसम, मैँ मर जाऊंगी---- मगर जुबान से एक लफ्ज नहीं निकलेगा ।"
ये शब्द दीपा ने कुछ ऐसे अंदाज में कहे थे कि चीफ के साथ-साथ जनरल साहब के जिस्म में भी एक सिहरन-सी दोड़ गई, जबकि दीपा कहती जा रही थी, "और वास्तव में मैं एकांत में बाबूजी को भी उन्हें सवालों का जवाब देना चाहती हूं जो इन से पहले आप लोग मुझसे पुछ रहे थे------ यूं समझ सकते हो कि मैं उन सवालों का जवाब सिर्फ और सिर्फ बाबूजी को दूंगी, इनके अलावा किसी को नहीं ।"
चीफ और जनरल साहब को लगा कि वह जो कह रहीं है सच कह रही है ।
दोनो की नजरे मिली। उधर वस्तुस्थिति जानने के लिए कर्नल भगतसिंह भी उससे एकांत में बात करना चाहता था, किंतु अपनी तरफ से कहना उसे संदेह के बीज बोना लगा और उसी समय जनरल साहब ने उसकी समस्या हल कर दी, बोले-----"ठीक है, हमे तुम्हारी शर्त मंजूर है ।"
"अाइए बाबूजी ।" कहने के बाद दीपा उसे लगभग घसीटती हुई न केवल कमरे से बाहर निकालकर ले गई वल्कि अपने कमरे की तरफ़ वढ़ी ।
गेैलरी में खडे़ सेनिक, सिपाही, नागर और रामू आदि उस दृश्य को देखकर हैरान रह गए, मगर किसी की भी परवाह किए बिना दीपा उसे कमरे में ले गई…उस वक्त वह अंदर से चटकनी चढ़ा रही थी, जव कर्नल ने पूछा-"'बात क्या है, ये सारा नाटक तुम क्यो कर रही हो बहू ?"
"आपकी-आपके परिवार और खानदान की इज्जत बचाने के लिए ।" भगतसिंह की तरफ पलटती हुई दीपा ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"क्या मतलब?" भगतसिंह चौक पड़ा ।
"मतलब जानना चाहते हो तो इधर अाइए ।" कहने के साथ ही वह भीतरी कमरे के द्वार की ओर बढी…असमंजस में फंसा कर्नल उसके पीछे हो लिया----दीपा के दरवाजा खोलते ही भगतसिंह की नजर देव की लाश पर पड्री।
कर्नल के छक्के छूट गये ।
होश फाख्ता हो गए उसके------सारी योजना, सारा प्लान उसकी आंखों के सामने चौपट हुआ पड़ा था…स्टेचू में बदलकर रह गया कर्नल आंखें पथरा गई।
दीपा ने पूछा…"आप देख रहे हैं न बाबूजी?"
"द-देव की लाश ।" वह बड़बड़ा उठा ।
" हां ।"
"किसने _मारा इसे?"
"मैंने ।"
"त-तुमने ?" कर्नल उछल पड़ा-"क-क्यो?"
"क्योंकि यह इस खानदान की इज्जत को खाक में मिलाने पर तुला था ।"
"हम समझे नहीं !"
दीपा ने दरवाजा बंद किया, इस तरफ से चटक्नी चढ़ाई और कमरे में चहलकदमी-सी करती हुई उसे समझाने के लिए शुरु से अंत तक की कहानी संक्षेप में सुऩाने लगी जिस कहानी का रचयिता स्वयं होते हुए भी भगतसिंह ध्यानपूर्वक सुनता रहा ।
दीपा ने बात का अंत करते हुए कहा-इस तरह एम. एक्स . ट्रिपल फाइव को दुश्मनो के हाथो तकं पहुच जाने से रोकने के लिए मैंने खुद हाथो से अपनी मांग में अंगारे भर लिए ।"
कर्नल ने गम्भीर स्वर में पूछा…"अब क्या चहती हो?"
"सिर्फ यह कि आपकी और आपके खानदान की इज्जत बची रहे, मैं समझती हूं कि यह उसी क्षण खाक में मिल जाएगी जब लोगों को यह पता लगेगा कि वह कर्नल भगतसिंह का बेटा था, जिसने एम . एक्स. ट्रिपल फाइव चुराकर ----दुश्मन तक पहुचाने की कोशिश की थी-यही सोचकर अभी तक इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया-इस मर्डर को मैं अपने सिर ले सकती हूं यह सोचना आपका काम है कि एम.एक्स.ट्रिपल फाइव की चोरी वाली कहानी को गुम करके इसके मर्डर की दुनिया को क्या वजह बताई जा सकेगी ।"
"मुश्ताक का क्या होगा?"
"वह कल सुबह "सीरॉक' होटल के कमरा नम्बर दो सौ सोलह में अाएगा ।" दीपा बोली-"यदि अाप चाहें तो वहां गिरफ्तार किया जा सकेगा ।"
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Re: सुलग उठा सिन्दूर
एकाएक कर्नल दांत र्भीचंकर बोला---"वह कभी गिरफ्तार नहीं होगा ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि मैं ही मुश्ताक हूं बेवकूफ़ लड़की ।" एक--एक लफ्ज़ को चबाते हुए कर्नल ने विशिष्ट अंदाज में नाक खुजाई तो दीपा आसमान् से जमीन पर अा पड़ी, मुहं से निकला----"त--तुम ?"
कर्नल ने जेब से रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया और दांत भींचकर गुर्राया----" अगर एक भी लफ्ज ऊंची आवाज में निकालने कोशिश की तो भेजा फाड़ कर रख दूंगा---------अपने बचाव में मुझे क्या बयान देना है, यह मैं सोच चुका हूं।
बेचारी दीपा!
मुंह से कोई लफ्ज निकालने का होश ही कहाँ रह गया था उसे, जुबान तालू में जा चिपकी थी…समूचे जिस्म को जैसे लकवा मार गया…उसकी पलकें, तक न झपक रही थी । इतना आश्चर्य हुआ था उसे कि जितना शायद किसी को अपने बेडरूम में साक्षात् ताजमहल को भी देखकर न हुआ हो, जबकि कर्नल कहता चला गया-----"तेरी इस देशभक्ति ने मेरा काम बढा़ दिया है वर्ना इस वक्त तुम सीरॉक होटल में होते और मैं जनरल साहब को बता रहा होता कि मेरे किडनैप का ड्रामा रचकर तुम दोनों एम. एक्स ट्रिपल फाइव चुराकर फरार हो गए हो ।"
दीपा जड़ रह गई थी ।
“जो फाइल देव के सफारी बैग में है, वह दो कौड़ी की नहीं, क्योंकि असली एम. एक्स. ट्रिपल फाइव मेरे कमरे मे, मेरी सेफ़ में रखी है, मगर मैं देव की लाश को यहाँ से बरामद नहीं करा सकता क्योंकि यदि लाश यहाँ से बरामद कराई जाएगी तो एम. एक्स. ट्रिपल फाइव भी बरामद करानी होगी-नकली फाइल से वे लोग संतुष्ट नही होगे और असली फाइल बरामद नहीं करा सकता, अत: जाहिर है कि ये लाश मुझे यहाँ से निकालकर वहाँ पहुंचानी होनी, जहाँ से बरामद होने पर इसके पास एम. एक्स. ट्रिपल फाइव का होना जरूरी न समझा जाए-हालांकि तूने मेरी योजना को चौपट कर देने में कोई कसर नहीं छोडी है, मगर मैं उस योजना को किसी कीमत पर चौपट नहीं होने दूगा, जिसके लिए इस पाजी को अपने जाल में फंसाया ।"
"अ-अाप अपने बेटे के लिए ऐसा कह रहे हैं?"
"ब-वेटा-हुंह----इस हरामी के पिल्ले को मेरा बेटा कहकर गाली मत दो ।" कर्नल ने असीम घृणा के साथ कहा…"ये मेरा बेटा नहीं है ।"
"व-बाबूजी ।"
"अंजली भी अपनी मां की तरह एक चरित्रहीन -औरत है ।" दीवानगी के अालम में कर्नल कहता चला गया…"उन दिनों मैं लद्दाख में बॉर्डर पर था, तीन महीने बाद अाया तो पाया कि अंजली कोख में गर्भ लिए घूम रही है-मेरा माथा तो उसी समय ठनका था, मगर अंजली कह रही थी कि गर्भ मेरा ही है-जाच-पड़ताल करने पर पडोसियों से ही नहीं बल्कि लद्दाख में रहने वाले वहुत से छोरों से पता लगा कि पिछले पूरे दो महीने से अंजली के साथ मेरे घर में एक मर्द रह रहा हैे--मेरा शक विश्वास में बदल गया, इसके बाद भी मेरी शराफत देखो कि अंजली से उस मर्द के बारे में पूछा और उस कमीनी औरत की घूर्तता देखो कि साफ़ मुकर गई-कहने लगी कि मेरी गैरहाजिरी में कोई भी मर्द एक दिन के लिए भी घर में नहीं रहा है ।"
दीपा हैरत से मुंह फाड़े यह सव सुन रही थी ।
कर्नल वर्षो का गुबार निकालता चला गया…"अपनी बदनामी के डर से मैं चुप रह गया, अंजली से इस बारे में बहस न की और मैं इतना बहादुर -भी सावित न हुआ कि उसे उसी तरह मार डालता जिस तरह उसके बाप ने उसकी मां को मार डाला था-अपने दिल को झूठी तसल्ली देता रहा कि हो सकता है बच्चा मेरा ही हो--सव लोग झूठ बोल रहे हों-बच्चे ने जन्म लिया-बड़ा होने लगा ।------------
बड़ा होने लगा--मैं खून के घूट पीता रहा, मगर अंजली या देव को कभी दिल से प्यार न कर सका-उम्र के साथ ही देव की उद्दण्डता और शैतानियां वढ़ने लर्गी-उन्हें देखकर मुझें वार-वार लगता कि वह मेरा खून नहीं हे-तुमसे उसकी शादी का समाचार सुनकर घर से निकाल देना मेरे मन में छुपी घृणा का ही प्रतीक था------अचानक एक दिन पाकिस्तानी जासूस ने एम. एक्स. ट्रिपल फाइव के बदले पचास करोड़ रुपया अॉफर किया----अॉफर मुझे बुरा न लगा, किन्तु फाइल को इस ढंग से चुरवाना जरूरी था, जिससे मैं सन्देह के दायरे में न फंसू और जैसी सुरक्षा व्यवस्थाएं थीं उनमें से कोठी में रहकर ही कोई शख्स फाइल चुरा सकता था-ऐसे समय में मुझे इस हरामी का ख्याल आया--सोचा कि सुरक्षित ढंग से पचास करोड़ भी कमा लूगा और बलि का बकरा बनाकर गन्दे खून के इस लोथड़े से भी हमेशा के लिए निजात पा लूंगा ।"
" न-नहीं ।" दीपा चीख पड़ी-"मैं गारण्टी से कह सकती है कि गन्दे खून का देव नामक लोथड़ा किसी दूसरे का नहीं, तेरा अपना बेटा था ।"
" व…वह कैसे?"
"दौलत के लिए जो दीवानगी मैंने हमेशा देव में देखी थी, वही अाज तेरे मुंह से भी सुन रही हूं ।" दीपा की आवाज ऊंची होती चली गई --- "दौलत के लिए तू भी अपनी मां को बेच सकता है, उसकी कीमत बीस करोड थी और तेरी पचास!"
"धांय-धांय ।"
कर्नल के रिवॉल्वर से निकली दो गोलियों ने उसके सिर को तरबूज-बना दिया । दीपा के अागे के शब्द अंतिम चीख में बदलकर रह गए ।
कर्नल ने उसे खत्म करने में इतनी जल्दी शायद इसलिए की थी, क्योकि उसने बहुत ऊंची आवाज में बोलना शुरू कर दिया था ।
दीपा का जिस्म लहराकर फर्श पर गिरां ।
बाहर से बुरी तरह दरवाजा पीटा जाने लगा ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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