हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma) complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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"क्या ऐसी बातें दरवाजा खुला रखकर करनी चाहिए?"



"ओहा सौरी! विजय भैया के कैद में फंस जाने की खबर के कारण शायद मेरे दिमाग ने ठीक से काम करना बंद कर दिया है ।" कहने के बाद उसने दरवाजा बंद किया और लपककर वापस उसके पास जाकर कहा…“अमेरिकन सीक्रेट सर्विस का एजेंट लाहौर में कहां और किस पोजीशन में है?"


"हैरी है उसका नाम। हैरी आर्मस्ट्रांग ।"


"क., .क्या मतलब?" ब्लेक ब्वॉय चौंका ।


"भला मुझसे बेहतर बाहरी मददगार उन्हें कहाँ मिलेगा?"



"क. . .कहना क्था चाहते हो?"


"कहना नहीं अब मैं वह करना चाहता हूं अंकल जो करना चाहिए ।" कहने के साथ लड़का हैरतअंगेज अंदाज में बेड से उछला । खतरे का आभास होते ही ब्लेक ब्वॉय ने बहूत फुर्ती के साथ खुद को अपने स्थान से हटाया था । इसका उसे बहुत ज्यादा तो नहीं मगर इतना फायदा तो जरूर मिला कि हेरी के दाएं हाथ की जो कराट उसकी कनपटी पर लगनी चाहिए थी वह उसके कंधे पर लगी ।



ब्लैक ब्वॉय को लगा जैसे कंधे पर लोहे का हधौड़ा मारा गया हो ।


अगर कराट कनपटी पर लगी होती तो निश्चित रूप से वह अब तक बेहोश हो चुका होता ।


अभी वह हैरी के पहले ही वार से नहीं उबर पाया था पर जोरदार धूंसा पड़ा ।


इस बार बह मुंह से चीख निकालता हुआ फ़र्श पर जा गिरा !!! सम्भलकर उठने की कोशिश करता हुआ बोला…"हेरी, ये तुम क्या बेवकूफी कर रहे हो?"



मगर अब भला वह कुछ सुनने के मूड में कहां था?



ब्लैक ब्वॉय सम्भल भी नहीं पाया था कि हैरी का एक हाथ मुहं पर कुकर का ढक्कन बनकर चिपक गया !

दूसरे हाथ की कराट कनपटी की उस नस पर पड़ी जिसे वह हैरी के पहले वार से बचा गया था !
परिणाम वही हुआ जो उस नस पर चोट पड़ने के बाद अक्सर होता है । ब्लैक ब्यौय की आंखों के सामने दीवाली की रात जवान हो उठी। मुहं से निकलने वाली चीख होंठों पर जमे हैरी के हाथ के कारण हलक ही में घुटकर रह गई और फिर आंखों के समक्ष ऐसा अंधेरा छा गया जैसा चकाचौंध लाइटों के अचानक गुल होने पर छा जाताहै । निर्जीव-सा जिस्म हैरी की बांहों में झूलता रह गया ।



लडके ने ज़रा भी देर किए बगैर ब्लेक ब्वॉय के जिस्म को उस वेड पर लिटाया जिस पर कुछ देर पहले खुद लेता था । उसके गले से लांकेट रुपी ट्रांसमीटर निकालकर उसने अपने गले में डाला और पलटकर ठीक इस तरह, बगैर जरा भी लंगड़ाए दरवाजे की तरफ बढ गया जेसे कहीं जरा-स्री भी खरोंच न हो ।

“ओह्म" आबू सलेम के मुह से केवल यहीं एक शब्द निकल सका ।



जोकर ने उसकी डूयूटी वहीं लगाई थी ताकि किसी किस्म की गड़बड़ होने पर वह वहाँ का मोर्चा संभाल सके । कम से कम अभी तक उसे किसी किस्म के खतरे का इल्ं नहीं है । तुम्हें चाहिए-अपनी पूरी शक्ति के साथ टाटा सफारी को घेरकर उसे अपने कब्जे में लो । 'कोरम' उसकी गिरफ्ताऱी के वाद ही पूरा होगा !!"



"मैं अभी यह काम करता हू सर ।"



"इस काम को तुम सिलबटटे पर चटनी पीसने के बराबर आसान मत समझे । अंतर्राष्ठट्रीय केंचुवा बो चीज है जिसे अगर जरा भी मौका मिल गया तो अकेला ही तुम्हारा और तुम्हरि सारे गैंग का बेड ठीक उसी तरह बजा देगा जैसे रामायण के मुताबिक हनुमान ने लंका में घुसकर रावण का बजाया था ।”



"म...मैं समझ गया सर !"



"क्या समझ गए? "


"कि मुझे पूरी सावधानी के साथ उसे गिरफ्तार करना है ।"



"केवल सावधानी के साथ ही नहीं, अपनी पूरी क्षमता झोंक देनी है तुम्हें इस काम में । वह फिसल गया तो हाथ में आई पूरी की पूरी बाजी फिसल जाएगी ।"


"जी !"


"इस काम से निपट तो । उसके बाद तुम्हें हमसे बात करने की जरूरत नहीं है । अंजाम की जानकारी हमे अपने स्रोत से खुदबखुद मिल जाएगी । अगर अंजाम वही हुआ जो होना चाहिए यानी अंतर्राष्टीय केंचुवा भी तुम्हारे चंगुल में फंस गया तो हम दोनों 'भाई-बहन' खुद तुम्हारे दौलतखाने पर पथारेगे ।'"



जाने क्यों, आबू सलेम की इच्छा यह पूछने की हुई कि यदि वे पहले से विजय, विकास और नजमा के वहां आगमन के वारे में जानते थे तो उसे बताया क्यों नहीं, इस तरह तो मामला उल्टा हो सकता था, मगर यह सब कहने की उसकी हिम्मत न हुई । जब बोला तो केवल यहीं कह सका---' आपको जल्दी ही यहां आने का मोका दूंगा ।"


हमने भी को कपड़े सिंलवाने भेज दिए हैं आबू प्यारे ।" इन शब्दों के साथ सम्बंध विच्छेद कर दिया गया ।
सफारी में छुपे अलफांसे के दाएं हाथ की तर्जनी में मौजूद मोटे नग बाली अंगूठी से एक नन्हीं सी सुई उसकी उंगली में चुभने लगी ।


अगली… पिछली सीटों के बीच लेटे ही लेटे उसने एक नजर अंगूठी की तरफ देखा फिर, थोडा उचका । नजर सफारी के बंद काच के पार चारों तरफ डाली । हर तरफ खास वर्दीधारी हथियारबंद पहरेदार नजर आ रहे थे !



वे सभी अपनी डूंयूटी पर मुस्तेैद थे । बावजूद इसके व उसे नहीं देख सकते थे । इसके दो कारण थे । पहता-सफारी उनके बॉस की थी !!



उसके नजदीक जाकर अंदर झांकने की हिम्मत किसी में नहीं थी ।


झांकते तो तब जब उन्हें उसके अंदर किसी के होने का शक होता ।


दुसरा--- वे झांकते…भी तो कांच काले होने की वजह से कुछ नजर नहीं आता ।



हां , यह बेचैनी उसके मन में ज़रूर थी कि विजय-विकास और नजमा को अंदर गए इतनी देर हो गई है अभी तक कुछ हुआ क्यों नहीं?


हंगामा दोनो ही हालात में होना चहिए था ।



उनकी कामयाबी की सूरत में भी और नाकामयाबी की सूरत में भी !

दिमाग में एक ही सवाल था…इमारत के अन्दर हो क्या रहा है? जब अगुंठी की सूई ने चुभना शुरू किया तो वह समझ गया-नुसरत-तुगलक में से कोई उससे बात करना चाहता है अत: अंगूठी में मौजूद बाजरे के दाने जितना. छोटा स्विच दबाया ।


मोटा नग छोटी सी डिब्बी के ढक्कन की मानिन्द खुल गया । अब अंगूठी एक छोटे से ट्रांसमीटर में तब्दील हो चुकी थी । अलफासे ने अगूंठी को अपने मुह के नज़दीक लाकर धीमे स्वर में कहा----" मारकेश बोल रहा हू ।"


इधर तुगलक मियां हैं !" काफी महीन आवाज उभरी----" बगल में नुसरत बहन ।"


“बोलिए !"


"आबू सलेम उम्मीद से ज्यादा कामयाब आदमी निकला ! "


"यानी विजय-विकस और नजमा उसके चंगुल में फंस चुके हैँ ।" अलफांसे के मुहं से निकलने वाली आवाज पूरी तरह बदली हुई थी !!!
"करेक्ट ।'"


"इन हालत में मेरे लिए निदेश ?"


"हमने तुम लोगों के वहां प्रवेश की आबू सलेम को कोई जानकारी नहीं दी थी । सोचा था-अगर विजय-विकास वहां- कामयाब होते है तो तुम्हारे एहसानमंद होंगे जिसका भविष्य में लाभ मिलेगा मगर अब, कामयाब आबू सलेम हो गया है । यकीनन उसने एक बड़े कारनामे को अंजाम दिया है । साबित कर दिया है उसने कि - वह काम का आदमी है जो भविष्य में भी काम आाएगा । ऐसे आदमी को गंवा देना समझदारी नहीं होगी इसलिए हमने फैसला किया है…मिशन पूरा होने तक है लोग वहीं रहे । आबू सलेम की कैद में ।"



"मगर. . आपने कहा था…-वे किसी भी किस्म की कैद से भाग निकलने में सक्षम हैं ।"



"ऐसे किन्हें भी हालत से निपटने के लिए तुम उनके साथ रहोगे ।"



"मतलब ?"



"हमने आबू सलेम को निर्देश दे दिए हैं । कुछ देर बाद वह टाटा _ सफारी को घेरकर तुम्हें गिरफ्तार कर लेगा ।


मिशन पूरा होने तक तुम उनके साथी बनकर उन्हीं के साथ कैद रहोगे । अगर वे फरार होते हैं तव भी । तुम्हारे साथ रहने पर हमे उनके हर कदम की जानकारी रहेगी । इस तरह किसी भी मौके पर उन्हें दबोच लेना मुश्किल नहीं होगा ।"


"मैं समझ गया ।"


"केवल यहीं बताने के लिए कांन्टेक्ट किया था कि गिरफ्तार होते वक्त तुम्हें ज्यादा उछल-कूद नहीं मचानी है ।" कहने के बाद उसके ज़वाब की प्रतीक्षा किए वगैर दुसरी तरफ से सम्बंध विच्छेद कर दिया गया ।

अंगूठी रूपी ट्रांसमीटर आँफ़ करते वक्त उसने महसूस किया कि चारों तरफ मौजूद सशस्त्र गार्ड सफारी के नजदीक सरकने लगे है । एक खास किस्म की सतर्कता भी थी उनके चेहरों पर और उस वक्त तो उसके होंठों पर बहुत ही जानदार मुस्कान उतरी जब आबृ सलेम को राउंड हाऊस की विशाल सीढ़ियां तय करके पोर्च की तरफ आते देखा !!!
"बैलकम. वेलकम लूमड़ प्यारे । आखिर तुम भी आ ही मिले संग हमारे ।"



मारकेश ने फर्श पर फैले जैक के खून से बचने की काफी कोशिश की थी पर बच नहीं सका।


फिर भी, उसने खुद को गिरने से बचा लिया था । वर्ना जिस तरह से उसे ऊपर से धकेला गया था, सिर के बल भी गिर सकता था । खुद को संतुलित करने के साथ ऊपर देखा…उसे आबू सलेम के बेडरूम से नीचे टपकाने के वाद दरवाजा अभी-अभी बंद हुआ था ।

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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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अब उसने एक एक नजर विजय, विकास और नजमा पर डाली । अपने होठों पर अलफांसे वाली मुस्कान पैदा की और बोला-----"तुममे से किसी को इतना कमजोर तो नहीं समझता था मैं ।"


"कितना कमजोर लूमड़ मियां?"


"कि तुममें से कोई मेरे सफारी में छुपे होने का रहस्य आबू सलेम को बता दे ।"


"कसम से लूमड़ मिया । हममे से किसी ने आबू भैया को इस बारे में कुछ नहीं बताया । बताते तो तब जब किसी ने पूछा हो ! मगर अब तुम बताओ----"'यह गलतफहमी तुम्हें हो कैसे गई?"



“अगर तुममें से किसी ने नहीं बताया तो उन्हें मेरे सफारी में होने का पता कैसे लगा?"



"क्या मतलब !" विकास ने पूछा ।




" उन्होंने अचानक जिस कांफिडेंस के साथ सफारी को धेरा और जितनी तैयारी के साथ मुझे सरेंडर करने के लिए कहा उससे जाहिर है उन लोगों को मेरे सफारी में होने की पूरी जानकारी थी । हालात ही ऐसे थे कि किसी किस्म का संधर्ष अथवा विरोध तो मैं कर ही नहीं सकता था । सरेंडर करने के अलावा और कोई चारा नहीं था और फिर, उन्होंने बगैर मेरी शकल देखे मुझे अलफांसे कहकर पुकारा। कहा-----" जानते हैं मिस्टर अलफांसे तुम गाड़ी के अंदर हो । हाथ हवा में उठाए बाहर जा जाओ वरना एक ही धमाके से तुम्हारे साथ-साथ सफारी के भी परखच्चे उड़ा दिए जाएंगे ।"




“और तुम शरीफ़ बच्चे की तरह हाथ उठाकर गाडी से बाहर आ गए?
"और क्या कर सकता था?"



"'गलती की ।” विजय ने कहा ।



"क्या मतलब? "



"हम दावे के साथ कह सकते हैँ…सूखी भैरवी दे रहे थे साले । तुम्हारी जान इतनी कीमती नहीं है कि उसके फेर में सफारी की बलि दे देते और दे भी देते तो तुम्हारे साथ कम से कम एक सफारी तो पहुंचती अल्लाह मियां के दरबार में । रिकार्ड तो टूटता यह कि इस दुनिया से कोई अपने साथ कुछ नहीं ले जाता ।"



मारफेश ने अलफांसे वाले अंदाज में बुरा…सा मुंह बनाकर कहा----"मौका हो या न हो मगर तुम्हें हमेशा बकवास करते रहने के अलावा और कुछ नहीं आता ।"



" और तुमने हमेशा बकवास न करने का ठेका ले रखा है ।"



"सोचने बाली बात ये है कि वे इतने कंन्फर्म कैसे थे कि मैं सफारी कि मैं सफारी में हूं !



"इसका जवाब भी हम ही दे सकते हैं ।"



"तो दो न ।"'




"आकाशवाणी हुई होगी ।"



"उफ्फ! तुमसे बात करना एवरेस्ट पर चढने के बराबर है ।" वह अलफांसे की तरह झल्लाया । विकास की तरफ पलटकर " बोला----" तुम बताओ विकास । क्या तुम में से किसी ने अबू सलेम को मेरे सफारी में होने की जानकारी दी थी ।"



" नहीं ।"



"फिर कैसे पता लगा'उसे?"



"‘कुछ कहा नहीं जा सकता ।"



इस बार मारकेश कुछ नहीं बोला । अलफांसे के चेहरे पर ऐसे भाव उत्पन्न किए रहा जैसे कुछ सोच रहा हो । कुछ देर उसी अवस्था में रहने के वाद बोला…"तुम लोग यहीं कैसे कंस गए और.. . ।"




"और ।" एक बार फिर विजय बीच में टपका ।



"अगर तुम यहाँ फंसे हो तो उसमें जैक का योगदान जरूर होगा ।



वही जैक यहाँ इस अवस्था में कैसे पड़ा है? इसे जिसने और क्यों मार डाला? "



"आबू सलेम की तरफ़ से हम सबको यहां लाने का इनाम मिला है !"
" इनाम !"


जवाब में नजमा ने सव कुछ बता दिया । सुनने के बाद कुछ कहने के लिए मारकेश ने मुह खोला ही था कि-----

कमरे में सरसराहट की आवाज़ गूंजी ।



जाहिर है, सबकी नजरे उसी तरफ उठ गई । नजरें ही क्यों, वे पूरे के पूरे उस दिशा से घूम गए थे ।



छोटे से कमरे की पूरी एक दीवार शटरिंग वाले दरवाजे की तरह एक तरफ हटती चली जा रहीं थी ।



"शुक्र है खुदा का ।” विजय बड़बड़ा उठा- "इस काल कोठरी जैेसी जगह पर गेट नम्बर दू तो पता लगा ।



दीवार पूरी तरह हट चुकी थी मगर दीवार की जगह अब कांच नजर आ रहा था । दीवार जितना ही बडा था वह । पूरी तरह पारदर्शी ।



काच के पार अव उन्हें काफी बड़ा हाल नजर जा रहा था। हाल में अनेक किस्म की मशीन लगी थी । एक तरफ़ शानदार सोफे पड़े हुए थे और सामने की तरफ एक पर्दा था !!! ठीक मिनी थियेटर के पर्दे जैसा । उसकी लम्बाई करीब दस फुट और चौडाई आठ फुट थी ।




बेजान वस्तुओं के अलावा हाल में कुछ नहीं था ।



मगर जल्दी ही पर्दे पर चित्र उभरने लगे ।



और चित्र में नजर जाने लगे…नुसरत- तुगलक ।




वे अगल-बगल पड़ी ऊंची पुश्त वाली दो कुर्सियों पर पसरे पड़े थे ।


पैर अपने सामने पडी सेंटर टेबल पर फैला रखे वे । होठों पर मुस्कान लिए उन्ही की तरफ देखते प्रतीत हो रहे थे वे ।




"नुसरत भैया !” पर्दे पर तुगलक कहता नजर आया ।




नुसरत की आवाज वे साफ सुन रहे थे-----" हां तुगलक बहन ।'"


"केैसी रही?”



"क्या कैसी रही?”



"देख नहीं रहे, बड़े-बड़े सूरमा हमारी कैद में हैं ।"



"तो इसमें उतना खुश होने की क्या बात है जितने लोग तब होते हैं जव घर में भैया पैदा हुआ हों?"




" घर में भैया पैदा होने से भी ज्यादा खुशी की वात है मियां । वो जोकर और छटंकी नाक हैं हिन्दुस्तान की । जब नाक ही यहाँ कैद होकर,, रह गई हो तो............



.......... तो हिन्दुस्तान सूंघेंगा कैसे और वो ........ वो अंतर्राष्ट्रीय केंचुया!!!

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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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सुना है-----उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई कैद नहीं-रख सकता । पिछली बार जोकर तक की कैद को धता बता गया था । उसे हमने कैद कर लिया है । कोई बडी बात ही नहीं हुई ये?”



" 'रावण का नाम सुना है?”


"सुना है ।"


"बता कौन था वो !"



"विलेन था ।"



"विलेन?”


" रामायण का ।"



"विलेन नहीं, किरदार बोल । रामायण का एक पावरफुल किरदार । कुछ लोग उसे हीरो मानते हैं । वह इतना पावरफुल था कि नो के नो ग्रहों को कैद कर रखा था । अपनी खाट के पाए बांध कर रखा था उन्हें उसने । शुक्र, शनिश्चर और राहु-केतु तक उन्हीं में थे ।"

"तो ?"



"तो क्या, बावजूद इसके-अकेले हनुमान उसकी लंका में आग लगा गए । राम 'ने तो बैकुंठ ही पहुचा दिया उसे ।"




"बात भेजे में नहीं घुसी । यहां तू कथा क्यों बांचने लगा?"




- “कोशिश कर रहा हूं तुझें समझाने की । यह बताने की कि इन लोगों को कैद करके इतना इतराने की जरूरत नहीं है । अव भी कोई हनुमान तेरी लंका में आग लगा सकता है राम बैकुंठ पहुचा सकताहै ।"




"हमारा जो होगा देखा जाएगा मगर ये तय है, उससे पहले हमारा मारकेश इनके प्रधानमंत्री को बैकुंठ पहुचा देगा ।"



"खामोश ।" विकास दहाड़ उठा-"'मुह से एक भी लफ्ज और निकाला तो जुबान खींच लुंगा ।"




"लो । कर तो बात । ये है छटंकी की अक्ल !” नुसरत ने तुगलक से कहा---"सामने नहीं हैं । पर्दे पर हैं और जनाब हमारी जुबान खीचने का दावा करते है । कोई पूछै इनसे, वर्तमान हालात में ऐसा ये - कैसे कर सकते हैं ।"


"अक्ल से पैदल तू है । सच्ची-मुच्ची थोडी कह रहे हैं छटकी मियां । तुगलक ने कहा----“मजाक कर रहे हैं मगर तू ठहरा बंदर । बंदर क्या जाने मजाक का स्वाद ।"



विकास मन मारकर रह गया । नुसरत की बात एक तरह से ठीक ही थी । वर्तमान हालातं में चाहकर भी उनका कुछ नहीं बिगाड सकता था !!!!!!
पहली बात-वह कैद मे था । दूसरी बात नुसरत-तुगलक उसके सामने नहीं थे । पर्दे पर केवल उनकी तस्वीरें थीं ।




काफी देर से खामोश विजय ने कहा…"प्यारे नुसरत भैया और तुगलक बहन ।"



“क्या चाहते हो कहन?” नुसरत ने फौरन तुक मिलाई ।



विजय ने भी उसी तुक से जवाब दिया-----" क्यु रहे हो तुम हमें सहन ? "



"मतलब क्या हुआ बहन ?"



"मतलब ये हुआ कि पिछली बार तुमने कसम खाई थी कि जेसे ही मैं या दिलजला तुम्हारे सामने पड़ेगे तुम फोरन से पहले हमें गोली मार दोगे त्ताकि किसी किस्म की बाजी पलटने का मौका ही न मिले । फिर कैद क्यों किया है हमे? पूरी क्यों नहीं करते अपनी कसम? इस ववत तुम्हें हमें गोली मारने से कोई नहीं रोक सकता ।"



"माकूल । एकदम माकूल बात कही है बडे़ मियां ने । तुगलंक ने नुसरत से कहा----" मैनें तुमसे कहा ही था ---- कैद वैद करने की जरूरत नहीं है इन्हें । सीघी- सीधी गोली मार खत्म करो किस्सा । न वांस रहेगा न बांसुरी बजेगी । वेसे भी वे बेचारे खुद गोली खाने के लिए फड़फड़ा रहे हैं । पता नहीं तुझे ही क्या बीमारी लग गई है?"




'यै बात तो तू मानता है न कि शोहरत का असर जरूर जरूर पड़ता है ।"




" बिल्कुल मानता हूं ।




"वही हुआ मेरे साथ । तू जानता ही है…पिछले दिनों हम उस पीले चेहरे वाले मरियल से मुर्दे सिंगही के साथ रहे थे । बचपन से उसे एक ही मीनिया है---- दुनिया जीतनी है और विजय के जीते जी ही जीतनी है । उसके उसी मीनिया ने मुझे भी जकड लिया है । इनके प्रधानमंत्री को मारना है तो इनकी आखों के सामने मारना है । उसके बाद इन्हें भी. .ये मेरे सामने हैं क्या, केवल भुनगे । एक-एक गोली खाएंगे और चित्त हो जाएंगे" । …



"एक बात पता है न तुझे ?"



" पता है या नहीं, यह तो बाद' ही में बताऊंगा ! पहले बात तो पूछ !"



"बो मुर्दा साला आज तक केवल अपने मीनिया के कारण ही विश्वासपात्र नहीं बन सका । हर बार बडे मियां ने अड़गी मार दी ।
"बो मुर्दा साला आज तक केवल अपने मीनिया के कारण ही विश्वासपात्र नहीं बन सका । हर बार बडे मियां ने अड़गी मार दी । मीनिया न होता तो अब तक कई बार विश्व सम्रााट बन-बिगड़ चुका होता ।"




"कहना क्या चाहता है?”



“कहीं वहीं हश्र न हो तेरा । न राम मिला न रहीम ।"



“तेरे मन में यह डर इसलिए है तू मेरी तरह मर्द नहीं है । बहन ठहरा मेरी । मुझमें और इस मुर्दे में यही फर्क है । मर्द होता तो समझता-इनके जीवित रहते, इनकी आंखों के सामने इनके प्रधानमंत्री को मारूंगा तो कितना नाम होगा मेरा ।"



"चल एक वार को 'इनके रहते' बाली बात तो मेरी समझ में आती है मगर "इनकी आंखों के सामने' वाली बात बिल्कुल पल्ले नहीं पड़ रही । प्रधानमंत्री महोदय को मारना स्टेडियम में है और ये बेचारे यहां पड़े सड़ रहे है । फिर भला तू उनकी हत्या इनकी 'आंखों के सामने कैसे करेगा?"



"देखना चाहता है?"



"दिखा ।"



"ये देख! हैं, कहने के साथ नुसरत तुगलक पर्दे से गायब हो गए । अव पर्दे पर सोडियम नजर जाने लगा था । वहाँ जोर-शोर से सभा की तैयारियां चल रही थी । पर्दे पर स्टेडियम का हर हिस्सा दिखाया …जाने लगा । साथ ही कांमेटेटर की तरह नुसरत की आवाज गूंज रहीं थी ---" यह है वह स्टेडियम जहाँ हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री और हमारे ' मुल्क के राष्ट्रपति संयुक्त रूप से जनता को सम्बोधित कंरेगें । यह स्टेडियम उस वक्त भी इन्हें इसी तरह पर्दे पर दिखाया जाएगा जिस वक्त यह भीड से खचाखच भरा होगा । उस वक्त इस तरह, ठीक इस तरह कैमरा मंच पर फिट होगा। जिस वक्त प्रधानमंत्री महोदय के प्राण'-पखेरू उड़ेगे । बोला उस वक्त ये सब कुछ अपनी आंखो से देख रहे होंगे या नहीं?"



"रहेगा तू धीवट का धीवट ही ।" अब पर्दे तुगलक बोलता हुआ नजर आया-----"छोटी-सी बात इसको लम्बी करके समझाने की क्या जरूरत थी । एक सैटेस में बता देता कि तूने इनके लिए "लाइव टेलीकास्ट' का इंतजाम कर रखा है ।"



"मैंने सोचा तू कूठ मगज है । केवल इतना कह देने से बात शायद तेरे भेजे में न घुसे ।"


" अब ये भी बता दे , तेरा मारकेश उसे मारेगा कैसे ???"
"ये जो अभी--अभी तूने मारकेश को 'मेरा मारकेश' कहा इस पर मुझें सखत ऐतराज है । दुनिया को कभी किसी कीमत पर यह फ्ता नहीं लगेगा कि मारकेश से हमारा कोई मतलब है या हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री की हत्या के पीछे पाकिस्तान है । पाकिस्तान वेचारा तो अपनी पूरी ताकत से अपने राष्ट्रपति और मेहमान प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था में जुटा नजर जाएगा । जो होगा ऐसी ट्रिक से होगा कि हमारे पास मुल्क की तरफ़ से कोई उंगली नहीं उठा सकेगा ।"
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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“उस ट्रिक के बारे में बता ।"



"सवाल मत कर । कान लगाकर वह सुनता रह जो मैं बता रहा हूं और बता मैं यह रहा हूं कि इत्तना तो तू जानता ही होगा कि मारकैश को सारी दुनिया जानती है । यह भी जानती है कि वह ओसामा विन लादेन का दायां-बायां है ।"



"जानता भी हूं और मानता भी हूं ।"



"दुनिया यह भी जानती है कि ओसामा विन लादेन हमारे राष्ट्रपति से आजकल उतना ही खफा है जितना एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को दुसरे की बांहों में देखकर होता है ।"



"ठीक ही खफा है बेचारा और वही क्यों, पाकिस्तान की जनता तक राष्ट्रपति महोदय से खफा है । हो भी क्यों नहीं, उनकी नजर वे वे इस्लाम के खिलाफ अमेरिका का साथ जो दे रहे हैं ।"



" इसीलिए, मारकैश हमला पाकिस्तानी राष्ट्रपृति पर करता नजर आएगा ।"


"मतलब ?"


“मगर मारे जाएंगे हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री ।"



"ऐसा ?"



" कहानी ये बनेगी-राष्ट्रपति से खफा ओसामा बिन लांदेन ने मारकेश को उनकी हत्या करने भेजा । मगर नसीब भारत के प्रधानमंत्री का खराब धा । वे बेचारे तो बेआई में लपेटे में आ गए । मारकेश खुद कबूल कबूल करेगा उन्हें मारने का उसका कोई इरादा नहीं था । वे तो दुर्घटनावश मारे गए ।"



"अच्छी है ।" तुगलक कह उठा ---" ट्रिक अच्छी है तुगलक बहन मगर .......!"



"मगर?"



"यह सब होगा कैसे?"
" जब होगा तब देखियो । क्लाइमेक्स पूछकर सारी पिक्चर का मजा खराब मत कर !!! वेसे भी, हमारे मेहमानों को नीद आते लगी है । उन्हें ज्यादा बोर करना ठीक नहीं होगा । चलते हैं ।"' इन शब्दों के बाद वे दोनों पर्दे से गायब हो गए।



विजय, विकास, मारकेश और नजमा उसके सामने कुछ नहीं बोल पाए थे ।




बोलते भी कैसे? अपने सामने वो किसी ओंर को बोलने का मौका ही कहां देते थे ?



विजय की समझ में अब तक यह बात आकर नहीं दे रही थी कि वे सब बाते नुसरत-तुगलक ने उसे क्यों सुनाई? कोई न कोई उइदेश्य तो उनका जरूर था मगर क्या उदूदेश्य था ! यह कमसे कम फिलहाल विजय की समझ में नहीं आ रहा था ।
आबू सलेम के जीवन में यूं तो खुशी के ऐसे अनेक मौके आए थे मगर जितना खुश वह आज था उतना पहले कभी नहीं हुआ था । बात थी भी स्वाभाविक ।




आज उसकी प्रशंसा नुसरत-तुगलक ने की थी । जिस देश ने उसे पनाह दे रखी थी उस देश के सबसे बड़े जासूसों ने । और. . प्रशंसा वे करते भी क्यों नहीं? उसने काम ही इतना बड़ा किया था जो लोग सिंगही और जैक्सन जैसे विश्व प्रसिद्ध मुजरिमों के भी काबू मे कभी नहीं आए उसने उन्हें कैद कर लिया था । उसने!



उसे तो यकीन ही नहीं आ रहा था कि यह काम उसी ने किया है ।



सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था ।



यह भी कि इस वक्त वह ठीक उस कमरे के ऊपर अपने बेड पर मौजूद है जिस कमरे में विजय-विकास और अलफांसे जैसी हस्तियां मौजूद है ।



हाथ में जाम था उसके । डेक फुल वाल्यूम पर बज रहा था और...........उससे निकलने वाले संगीत पर जो लड़की कैबरे कर रही थ्री वह पाकिस्तानी फिल्य इंडस्ट्री की नम्बर वन हीरोइन थी------ हिना ।

एक भी कपड़ा नहीं था उसके जिस्म पर !!!

यह. . .बस यहीं तो खास शोक 'था आबू सलेम को । लड़कियों को विना कपड़ो के अपने सामने नचाता और लडकियां भी वे जिनके लाखों-करोडों दीवाने हों । शाम होते ही उसने हिना को बुलवा लिया था । हीरोइन इंडियन किल्म इंडरट्री की हो या पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री की.......
भला किसमें हिम्मत थी जो आबू के हुक्म को नजर अंदाज़ कर सकती । वह ठीक उसी समय हाजिर हो गइ थी जिस समय बुलाई गई थी । उसके एक ही हुक्म पर हिना ने अपने सारे कपडे उतार दिए थे । आबू सलेम ने डेक पर उसी की फिल्म का गाना लगाया और उसने ठीक उसी तरह से थिरकना शुरू कर दिया था जिस तरह कपडे पहन हिना क्रो उसके दीवाने पर्दे पर देख सकते थे ।



यह दृश्य इस वक्त भी आबू सलेम की आंखों को वैसा ही चेन पहुंचा रहा था जैसा हमेशा पहुंचाया करता था । गिलास में भरे अपने चौथे पैग को उसने हलक में उड़ेला और गिलास हाथ में लिए बेड से उठ खड़ा हुआ । अब वह भी संगीत की धुन पर थिरकता हुआ उस अलमारी की तरफ बढा जो असल में छोटा-सा बार था ।



हिना को उसकी गतिविधियों से कोई मतलब ही नहीं था । वह तो बस नाचे जा रही थी । क्योकि जानती धी-आबू सलेम को नाचने वाली का गाने के बीच में रुक जाना कतई पसंद नहीं है ।


पूरी तरह मस्त । थिरक्रता-सा आबू सलेम अलमारी के नजदीक पहुचा । इरादा एक और पैग बनाने का था मगर अलमारी के खुलते ही चौक जाना पडा । व्हिस्की की बोतलों के पीछे मौजूद ट्रांसमीटर का बल्ब वार-बार स्पार्क करता साफ़ नजर आ रहा था । पलक झपकते ही मस्ती झड़ गई । घडी की चौथाई में उसकी समझ में यह बात आ गई कि नुसरत-तुगलक उससे सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं । यह बात समझ में आते ही वह डेक पर झपटा ।




एक झटके से उसकी पावर कट की ।



संगीत बंद होते ही ट्रांसमीटर से निकलकर कमरे में गूंजने बाती पिंग-पिंग की आवाज साफ़ सुनाई देने लगी । हिना का जिस्म रुकं गया मुंह से निकल----" क्या हुआ?"



मगर आबू सलेम को भला जवाब देने का होश कहां था?



अगली जम्प उसने अलमारी की तरफ लगाई यी । हेडफोन कानों पर चढाया । माइक हाथ में लिया और ट्रांसमीटर आन किया ही था कि दूसरी तरफ से जावाज उभरी-----"आबू मियां नंगे नाच कभी-कभी देखने वाले को भी नंगा कर देते हैं ।"



"स. . सारी सर । सौरी ।" हड़बड़ाए अंदाज मैं आबू सलेम कहता चला गया----कमरे में बज रहे म्यूजिक के कारण मेैं ट्रांसमीटर की आवाज नहीं सुन सका ।"
"हमने भी जो बात कही इसलिए कहीं है ।" दुसरी तरफ से उभरने वाली आवाज तुगलक की थी…"हम किसी की मस्तियों से खलल नहीं डालना चाहते मगर काम के प्रति हर एक को चौकस देखना चाहते है । जबकि फिलहाल हमने तुम्हें चौकस नहीं पाया । हमारी जिन्दगी के पांच कीमती मिनट तुमसे संपर्क स्थापित करने के नामुराद काम की भेंट चढ़ गए ।"'




"भविष्य में ऐसी कभी नहीं होगा सर ।"


"चलो । माफ किया, इसलिए माफ किया कि यह तुम्हारी पहली गलती है और आज दिन में तुमने एक बड़ा काम किया है ।" तुगलक उसे बोलने का मोका दिए बीना कहता चला गया-----"तुम्हें खटखटाने की जहमत इसलिए उठानी पडी क्योंकि हमारा चीफ़ इसी वक्त तुम्हारे हेडक्वार्टर पर आना चाहता है ।"



"अ . . .आपका चीफ?"



"यानी पाकिस्तानी सोकेट सर्बिस के चीफ ।"



' "ज...जी हां ।"



"उनका उददेश्य है-कैदियों की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेना ।" तुगलक ने बताया-----" कैदियों को सीकेट सर्विस के खास कैदखाने से रखना चाहते थे । हमने तुम्हारी तारीफ की । कहा----तुमने उन्हें माकूल सुरक्षा व्यवस्था में रखा है । ऐसी कोई घटना नहीं हो सकती जैसी आई..एस..आई के चीफ की कैद में रखे गए कैदी ने कर डाली थी । आई..एस..आई. के चीफ के अंजाम से तो तुम वाकिफ हो न?”


"ज...जी । उनके अंजाम से भला जैन वाकिफ़ नहीं है। पूरा' पाकिस्तान जानता है-----उन्हें न केवल उनके पद से हटा दिया गया है वल्कि आपने उनकी नाक भी काट ती है ।"




"बिल्कुल दुरुस्त । ऐसी मिसालें तुम जैसे लोगों को हमेशा याद रखनी चाहिए ।" कहने के वाद तुगलक ने अपनी आवाज को थोड़ा विराम दिया । फिर वोला---" तो कह हम यह रहे थे कि चीफ आंख मूंद कर हमारी बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं है । वे खुद कैदियों की सुरक्षा व्यवस्था से रूबरू होने वहाँ आ रहे है । यहि उन्हें कोई कमी लगी तो कैदियों को सीक्रेट सर्विस के खास कैदखाने में ट्रांसफर कर लिया जाएगा ।”


"म. . .मैं पृरी कोशिश करूंगा सर कि ऐसी नौबत ना आए !"
"तुम्हारी आन-वान-शान के लिए वेहतर तो यही है । समझ सकते हो अगर वे तुम्हारे सुरक्षा इंतजामात से संतुष्ट हो गए तो पकिस्तान में कितना ऊंचा मुकाम पा जाओगे ।"



"आप यकीन रखें सर, मैं अपनी प्रमोशन के इस मोके क्रो गंवाऊंगा नहीं । वे कब आ रहे हैं?"



" दस पंद्रह मिनट बाद । काले रंग की मर्सडीज में होंगे वे । नम्बर नोट करों ।"



"जी बोलिए !"



तुगलक ने नम्बर बता दिया । आबू सलेम ने क्या…"थैक्यू सर। नम्बर मेरे दिमाग में फिट हो चुका है ।"



"अब गंवाने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है । पंद्रह मिनट के अंदर उन व्यवस्थाओं को दरुस्त कर तो जहां कमी नजर आए।" कहने के बाद दूसरी तरफ सम्बंध विच्छेद कर दिया गया ।



और. . आबू सलेम के जिस्म में मानो बिजली-सी भर गई । उस वक्त वह फास्ट फारवर्ड वाले अंदाज से ट्रांसमीटर आँफ करके हैड फोन को कानों से उतार रहा था जब हिना ने पूछा…"बात क्या है आबू डार्लिग ।"

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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

Post by Jemsbond »

आबू सलेम उसकी तरफ धूमा ! भाव ऐसा था जैसे अभी अभी पता लगा हो कि वह भी वहाँ है । बोला---"जल्दी से कपडे पहन और फूट . यहा से ।"


“ज . . .जी? " वह उसके बेहद रूखे स्वर पर चकराई ।


"टाइम खराब मत कर । कपड़े पहन और जा यहां से!" कहने के साथ उसने वह रिमोट उठाया जिससे कमरे का दरवाजा कंट्रोल होता था और दरवाजे की तरफ लपका । फिर जाने क्या सोचकर ठिठका । बोला…"या छोड़ । यहीं रह । तेरे कपडे पहनने के फेर में रहा तो पांव मिनट बरबाद कर देगी । आराम से बेड पर लेट जा । सो भी सकती है । डेक नहीं बजाएगी । किसी को पता नहीं लगना चाहिए कि तू यहाँ है ।" कहने के वाद रिमोट की मदद से दरवाजा खोलकर वह आंधी--तूफान की तरह कमरे के बाहर निकल गया ।



सच्चाई ये है कि हिना की समझ में ठीक से कुछ भी समझ नहीं आया था । मामले को समझने के लिए वह आबू सलेम के पीछे लपकी मगर उसके दरवाजे पर पहुचने से पहले ही दरवाजा पुन: वंद हो चुका था !
अगले पंद्रह बल्कि चौदह मिनट आबू सलेम ने इतनी जबरदस्त व्यस्तता के बीच गुजारे जैसे अपने पिछले जीवन में कभी नहीं गुजारे थे । चौदह इसलिए क्योंकि एक मिनट पहले वह चीफ़ के इस्तकबाल हेतु रीउंड हाउस के लोहे वाले पेट पर पहुच गया था । वहा, जहाँ ऐसी सरर्च लाइटें लगी हुई थी जिनकी रोशनी के कारण दो सौ मीटर पहले ही इमारत की तरफ बढती चींटी तक को देखा जा सकता था ।



चौदह मिनट के अंदर वह अपने सारे तंत्र को चोकस कर चुका था ।



अगर यह लिखा जाए तो गलत नहीं होगा कि राउंड हाउस में इस वक्त एक भी शख्स सो नहीं रहा था । जिनकी डूपूटी दिन से हुआ करती थी उन्हें भी जगाकर वहां तैनात कर दिया गया था ! जहां आबू सलेम को लगा कि गार्ड होना चाहिए मगर नहीं है ।



स्टाफ को पता लग गया था कि सीकेट सर्विस के चीफ कैदियों की सूरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने आ रहे हैं । सिक्योरिटी इंचार्ज के साथ आबू सलेम उस वक्त लोहे वाले गेट पर खडा था जब इंचार्ज ने कहा---'' आप नाराज न हों तो एक वात कहूं भाई जी ।"



"क्या कहना चाहते हो?” आबू सलेम ने पूछा ।


आपके मुंह से दारू की बास आ रही है । ।"



“ओहा' आबू सलेम हड़बड़ाया ।


इंचार्ज ने कहा… “उन्हें भी आई तो शायद ठीक नहीं होगा !"



".क......कह तो तुम ठीक रहे हो मगर ।" उसने अपनी रिस्टब्रॉच पर निगाह डालते हुए कहा----" अब हो क्या सकता है । चीफ के पहुचने में केवल पंद्रह सेकंड बाकी रह गए हैं ।"


"मेरे पास माउथ फ्रैशनर है ।"



"कहां है ?"



"अभी लाया ।" कहने के बाद वह अपने केविन की तरफ दौड पड़ा । अगले पल उसी तरह दौडता हुआ वापस आता हुआ नजर आया ।



उसके हाथ में माउथ फेशंनर का डिब्बा था । नजदीक आकर हांफत्ता हुआ बोला…-'" मुंह खोलिए ।"


आबू सलेम ने मुंह खोला । इंचार्ज ने फ्रैशनव स्प्रे कर दिया ।



अब आबू सलेम के मुह में बदबू की जगह खुशबू भर गई थी ।
“इसे वापस रख आ ।" आबू सलेम ने कहा…'त्तेरे हाथ में देखेंगे तो सब कुछ समझ जाएंगे ।"



इंचार्ज एक बार फिर अपने कैबिन की तरफ दोड़ पड़ा ।



से सारी हड़बड़ाट इसलिए थी क्योंकि उन्हे उम्मीद थी कि पंद्रहवा मिनट पूरा होते-होते सीक्रेट सर्विस का चीफ वहां पहुंच जाएगा।




मगर ऐसा हुआ नहीं, उस वक्त पांच मिनट ज्यादा गुजर चुके थे जब आबू सलेम, इंचार्ज और वहाँ तैनात अन्य गाडर्स को एक गाडी की हेड लाइट नजर जाई ।



उसके सर्च लाइट के दायरे में आते ही अलू-सलेम ने नम्बर पढा ।



“सब सतर्क हो जाएं !"आनू सलेम के मुंह से निकला "वे ही ।"


देखते ही देखते काली मर्सडीज उनके नजदीक आ रूकी ।



दूसरे गार्ड्स के साथ इंचार्ज ने भी जोरदार सैल्यूट मारा ।



आबू सलेम ने लपककर ड्राइविंग डोर खोला । डोर खुलने के साथ अंदर की लाइट आँन हो गई।



गाडी में केवल एक ही शख्स था ।


वह जो उसे ड्राइव करके वहां तक लाया था ।


पके हुए सेव जैसे रंग का शख्स था वह । चौड़ा मस्तक । आंखों पर चश्मा । फेचकट दाढी । वे मूंछे जिनके दोनों सिरे दाढी का हिस्सा थे । बाएं गाल पर आंख के नजदीक एक मोटा काला मस्सा था ।



साढे छ: फुट लम्बा था वह । काले चमकदार जूतों और काले ही सूट में वह बेहद आकर्षक लग रहा था । आकर्षक आबू सलेम भी कम नहीं था मगर उसे अपना व्यक्तित्व उसके सामने वहुत बैना लगा।



"वेलकम सर वेलकम ।" केवल इतना कहने में आबू सलेम का हलक सूख गया ।



० चीफ ने उसकी तरफ़ हाथ बड़ाते हुए कहा----"उम्मीद है नुसरत तुगलक ने फोन कर दिया होगा ।"



"ज.....जी-जी हाँ ।" हड़वड़ाकर हाथ मिलाने के साथ आबू सलेम यही मुश्किल से कह सका । उसने महसूस किया था चीफ़ का हाथ उससे भी कहीं ज्यादा मजबूत हैं।

"और तुमने तैयारियां भी पूरी कर ली होंगी?"
"त तैयारियां?" सलेम बौखला गया…"मैं समझा नहीं सर । अ.......आप केैसी तैयारियों की बात.....!"



उसने आबू सलेम की बात काटकर कंहा----""जैसी तैयारियों की बू तुम्हारे मुंह से आ रही है ।



"ज.....जी ।"' यह शब्द आबू सलेम के मुह से चीख की शकल में निकल था ।




“तुम्हारे मुंह से माउथ फ्रेशनर की खुशबू आ रही है मिस्टर आबू रात के वक्त फ्रेशनर वे इस्तेमाल करते जो चाहते हैं कि उनके मुह से आने वाली दुर्गन्ध को सामने वाला न सूंघ सके । ऐसे मौकों पर माउथ फ्रेशनर का इस्तेमाल केवल व्हिस्की की दुर्गध को दबाने के लिए किया जाता है ।"




इस एहसास ने आबू सलेम के सम्पूर्ण जिस्म में सनसनाहट-सी फैला दी कि चीफ ने उसकी चोरी पकड़ ली है । बौखलाहट में उसके मुंह से केवल इतना ही निकला----" स.........सोरी सर । रात के वक्त मैं - एकाध पैग…!"




"पीना कोई बुरी बात नहीं है ।" एक बार फिर चीफ़ उसकी बात काटकर कहता चला गया…- “बुरी बात है पीकर बहक जाना !! अपने काम से अपनी डूयूटी से विमुख हो जाना और मैं देख रहा दूं-अपनी डूयूटी के प्रति तुम पूरी तरह सजग भी हो, मुस्तेद भी । ऐसा न होता तो तुम्हें व्हिस्की की बदबू को हमसे छुपाने के लिए माउथ फ्रेशनर के इस्तेमाल तक का होश न रहता । तुम्हारे मुंह से आने वाली खुशबू इस बात का सुबूत है कि तुम पूरी तरह होश में ही नहीं बल्कि ,पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त भी हो ।”



"ज जी ।" चीफ के शब्दों ने उसे जबरदस्त राहत दी थी । मस्तक पर उभर आया पसीना सूखता चला गया था ।



" यहा की सुरक्षा व्यवस्था तो हमने देख ही ली, आओ…अब आगे चलें ।"’



”य. यस सर ।" हड़बडी से कहने के साथ वह उसकी अगवानी करता हुआ बोला…-" आइए!"’



चीफ चारों तरफ निगाह दौडातां हुआ आगे बढा ।


इंचार्ज दुविधा में फंस गया । उसने आबू सलेम के साथ यह 'तय' ही नहीं किया था कि उसे यहीं रह जाना है या उनके साथ चलना है ।

इस वक्त अपने विवेक का इस्तेमाल करने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था !
उसका इस्तेमाल करके उनके साथ ही आगे बढ़ गया ।


"तुम यहीं रहो ।" एकाएक चीफ़ ने ठिठकर कहा ।


"ज. . .जी ।” इंचार्ज जहाँ का तहाँ चिपककर रह गया ।


चीफ़ ने आबू सलेम से कहा…"क्या तुमने इससे यहीं पहरा देने के लिए नहीं कहा था?"



"क. . यहा था सर इसकी डूयूटी यहीं रहती है ।"



"फिर अपनी डूयूटी छोडकर यह हमारे साथ क्यों चल दिया?"


आबू सलेम को जवाब नहीं सूझ रहा था जबकि इंचार्ज ने जल्दी से कहा'--“स. . .सर मैंने सोचा…शायद आपको यही अच्छा लगे ।"



"कोई भी आए, तुम्हें अपनी डूयूटी पर मुरतैद रहना है ।


' परवाह नहीं करनी कि उसे क्या अच्छा या बुरा लगेगा । ये इमारत का मेन गेट है । तुम्हारा यहाँ रहना जरूरी है । यहाँ से हटना अपनी डूयूटी से कोताही मानी जाएगी । इंचार्ज ही मुस्तेद नहीं रहेगा तो दूसरों को मुस्तैद क्या रखेगा !!!


"ज. . .जी ।"


"चलो मिस्टर आबू !" कहने के साथ वह जागे बढ गया ।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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