हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma) complete

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Jemsbond
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हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma) complete

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हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

हर्षरण शास्त्री !

प्रदेश की सत्ता-धारी पार्टी का एक विधायक !

केवल विधायक !

मंत्री-पद तक नही था उस पर !

मगर पिलती इतनी थी कि चीफ़ मिनिस्टर तक वो ही करता जो वो चाहता था ! इस बात को सब जानते थे इसलिए उसके दरबार में फरियादियों की भीड़ रहा करती थी !

परन्तु उस दिन !

सुबह के 5बजे से मूसलादार बारिश हो रही थी !

शायद इसीलिए -- दरबार खाली था !

हर्षरण कुर्सी पर पसरा पडा था !

करीब 10 बजे !

दरवाज़े पर आहट हुई !

हर्षरण की तंद्रा भंग हुई ऑर..... आँखें खुलते ही 'टरर' होगयि ! एक यूबक-युबती ने अभी अभी ड्रॉयिंग रूम में परवेश किया था !

संभलकर बैठ गया वो!

आँखें यूबक पर नही, युबती पर ..... बल्कि युबती पर भी नही-- उसके जोबन पर टिकी हुई थी ! रेशमी साड़ी पहने हुई थी ,जो भीग जाने के कारण गदराए जिसम से चिपक गयी थी ! जिसम का एक एक कटाव सॉफ नज़र आ रहा था !


सफेद लिबास में संगमरमर की नहाई - सी प्रतिमा नज़र आ रही थी वो !

ब्लाउज झीना था, भीगा हुआ !

अंदर पहने बस्तर का डिज़ाइन तक सॉफ चमक रहा था !

युबती ने पल्लू दुरुस्त किया !

मगर हर्षरण की नज़रें !

उफ्फ !

जैसे चीर डालना चाहती थी हर कपड़े को !

लार टपक गयी ! मदमस्त हो उठा ! बोला --"आइए ! आइए !"

यूबक-युबती दोनो ने नमस्कार किया !

हर्षरण की नज़रें युबती की चट्टानो पर थी !

युबती भाँप गयी !

लाज़ ओर झेन्प की सुर्खी दौड़ गयी चेहरे पर !

सीप सी पलकें झुकी !

हर्षरण को उसकी बड़ी बड़ी आँखें नज़र आनी बंद होगयि ! बहुत मुस्किल से खुद को संभाला उसने ! संभलकर बोला -- "बैठिए !"

यूबक-युबती सामने पढ़ी कुर्सिओ में से दो पर बैठ गये !

"कहिए , कॉन है आप ? कैसे पधारे ?"

यूबक ने कहा --" मेरा नाम अजीत है ! 95 बैच का आइ.ए.एस हूँ !"

"ओह, गुड !"

"कई साल से ऐसी जगह पड़ा सड़ रहा हूँ सर कि .....!"

खेले खाए हर्षरण ने उसकी बात पूरी होने से पहले कहा -- " डी.एम बन-ना चाहते हो !"

" जी जी " आपकी कृपा होज़ाये तो...!

"तो?"

"मैं हर कीमत देने को तैयार हूँ !"

हर्षरण के होंठों पर अर्थ-पूरण मुस्कान उभरी -- "हर कीमत ?"

"जो आप चाहें !"

हर्षरण ने युबती की तरफ इशारा कर के पूछा --"यह कॉन है ?"

"मेरी वाइफ !"

"ओह !" हर्षरण का ध्यान पहली बार उसके मस्तक पर लगी सुर्ख बिंदी ऑर सिंदूर से भरी माँग पर गया ! बोला --"तुम्हारा नाम ?

" निशा !" अजीत ने कहा !

हर्षरण ने तपाक से पूछा -- " यह बोल नही सकती क्या ?"

" ज... जी निशा !" युबती ने कहा !

" थॅंक गॉड !" हर्षरण ने मानो बोहत देर से रुकी हुई साँस छोड़ी -- "मैं तो समझा गूंगी है ! इतनी सुंदर लड़की .... ऑर गूंगी ! दुख की बात थी ना !"

अजीत केवल मुस्कुरा कर रह गया जबकि निशा खिल-खिला कर हँस पड़ी !
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: NOVEL IN HINDI TRICK ( By Ved Parkash Sharma)

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अजीत ने कहा -- " मेरा काम होज़ायगा ना सर !"

"जिला बोलो !"

"जी .. जी ?"

"स्टेट में बहुत जिले है ! कॉन सा चाहिए ?"

"सर , राजनगर मिल जाए तो.... !"

"ओके ! दो दिन बाद तुम राजनगर के डी.एम होगे!"

"थॅंक्स ! थॅंक यू सर !"

" सूखे थॅंक्स से काम नही चलेगा दोस्त !"

"ज... जी !"

" नियुक्ति होने पर मिठाई का डिब्बा पहुँचाना होगा !"

" ओह ! अच्छा ज़रूर सर !" मारे खुशी के अजीत का बुरा हाल था !

" दूसरे नेताओं की तरह मुझे नोटों की नही, लोगों के विश्वास , प्यार ऑर दोस्ती की ज़रूरत है अजीत -- बोलो दोस्ती करोगे मुझसे !"

" क... कैसी बात कर रहे है सर ? कहाँ आप ? कहाँ मैं ?"

"क्यूँ भाई ? ऐसा कॉन सा लंबा चौड़ा फरक है हम में ऑर तुम में ? दोनो ही दो टाँगों पर चलने वाले जानवर है !"

ठहाका लगा कर हंस पड़ा अजीत ! बोला -- " सर ! बहुत अच्छे है आप !"

"खुश हो ना !"

"बहुत सर ! बहुत ! "

" ऑर तुम ?" हर्षरण ने अपनी आँखों में नशा भरकर बोला निशा को !

निशा इतना ही कह सकी --"खुश हूँ !"

"अहसान के बोझ तले दबे दोनो ने हर्षरण को बार बार नमन किया ऑर चले गये ! हर्षरण को निशा की बल खाती कमर उसके चले जाने के बाद भी नज़र आती रही !

अजीत मिठाई का डिब्बा लेकर आया !


वो अकेला ही था !


निशा को साथ ना देखकर हर्षरण को खीझ सी हुई !


गुस्सा भी आया , मगर ज़ाहिर नही किया !


अजीत ने पैर छूये !


मिठाई पेश की !


हर्षरण ने पूछा -- "भाभी नही आई ?"


"वो काम में बिज़ी थी !"


हर्षरण ने मिठाई तो ले ली --" तुमने टोका नही होगा !"


" कई बार कहा सर, लेकिन बोली - मुझे पॅकिंग करनी है !"


"ओह अच्छा !" हर्षरण हंसा --" यानी सूखे डिब्बे से टरकाने का इरादा है !"


" ऐसी बात नही है सर ! आप कहकर तो देखिए ! मैं आपकी हर सेवा करने को तैयार हूँ !"


"डिन्नर होज़ाये आज का !"


"पक्का सर पक्का, कहाँ लेना पसंद करेंगे !"


"तुम्हारे घर !"


झटका सा खाया अजीत ने ! मूँह से निकला --" ग.... घर ?"


"कोई ऐतराज़ ?"


" न...नही सर, म्म्म ... मुझे क्या ऐतराज होसकता है ?"
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Re: NOVEL IN HINDI TRICK ( By Ved Parkash Sharma)

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"एक शर्त ऑर है !"


" सस्सस्स ... शर्त?"


" बनाने - बनाने के चक्कर में भाभी को नही डालोगे भाभी को तुम ! खाना किसी होटेल से मॅंगा लेना !"


" य...यदि होटेल से ही खाना है सर तो ......!"


" समझा करो यार !" हर्षरण ने आँख मारने के साथ अजीत के कंधे पर हाथ रखा -- " नेता आदमी हूँ ! होटेल या बार में खुलाम - खुल्ला तो नही पी सकता ना !"


"ओह , समझ गया ! समझ गया सर ! कॉन सी लेते है ?"


" ठर्रा ,शुद्ध देसी !"हर्षरण ने कहा -- " मेरी समझ में आज तक यह बात नही आई कि जब अपने मुल्क में देशी घी को सबसे शुद्ध ऑर बेहतरीन माना जाता है तो मदिरा विदेशी अच्छी कैसे होसकती है ?"

अजीत का मूँह खुला का खुला रह गया !






उसी रात !


हर्षरण करीब 9बजे उनके घर पहुँचा ! दोनो ने गरम जोशी के साथ स्वागत किया !


निशा हल्के गुलाबी रंग की शिफान की साड़ी पहने हुए थी ! मुखड़े का पूरा मेकप !


वो दमक रह था !


मगर हर्षरण की आँखों के लिए चुंबक का काम कर रहा था निशा का सीना !


निशा...... ऑर शायद अजीत भी ताड़ गया था कि वो क्या देख रहा है !


तभी तो उसका ध्यान वहाँ से हटाने के लिए अजीत ने कहा --" आइए सर, अंदर आइए !"


अंदर कदम रखता हुआ हर्षरण बोला -- "एक सलाह दूं भाभी ?"


"जी कहिए !"


"काला टीका लगा लीजिए एक !"


"क्यूँ ?" निशा के होंठों पर चंचल मुस्कान खेली !


"नज़र से बचने के लिए ज़रूरी है !"


"छोड़िए भी भाई साहब ! क्यूँ बना रहे है मुझे ?"


" बना रहा हू मतलब ?"


" ऐसा क्या है मुझ में जो मुझे नज़र लगेगी ?"


"हीरे की चमक से हीरे की नही, ज़ोहरी की आँखें चकाचौंध होती है ! आप हीरा है , हम ज़ोहरी, इसलिए हमसे पूछिए -- गुलाबी साड़ी में गुलाब का फूल लग रही है आप ! ज़रूर योगा करती होंगी जो जिस्म को इतना नपा तुला बना रखा है ऑर यह मेकप ---- सच कहूँ भाभी, आपको किसी मेकप की ज़रूरत नही है ! उस दिन बारिश में धुला धुला मुखड़ा देखा था ! ऐसा लगता था -- जैसे गुलाब ओस में नहा कर चला आया हो !"
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Re: NOVEL IN HINDI TRICK ( By Ved Parkash Sharma)

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निशा खिल-खिलाई -- "आप तो ताड़ के पेड़ पर पूरा चढ़ा कर मानेंगे मुझे !"


" तुम हो इस लायक ! जानती हो -- तुम्हारे मुखड़े पर सबसे आकर्षक क्या है ?"


"क्या है ?"


"यह आँखें -- यह होंठ !"


"दो चीज़ें ?" निशा हँसी !


"दोनो ! इनका कॉंबिनेशन ! मैं फ़ैसला नही कर पा रहा दोनो में आकर्षक क्या है ? सीप सी, ख़ास चमकने वाली आँखें या प्यासे नज़र आते अधर !"


अजीत को हर्षरण के मूँह से अपनी वाइफ की तारीफ अच्छी नही लग रही थी , शायद इसी लिए इस बार वो निशा से पहले बोल पड़ा -- " पहले क्या लैंगे सर ?"


हर्षरण उसके मनोभाव समझकर मुस्कुराया , बोला -- " वोही जो खाने से पहले लेते हैं !"


उसके बाद !


पीने पिलाने का दौर चला !


हर्षरण तो खैर टॅंकर था !


अजीत ज़रूर होश खोने लगा !


ऑर अंत में बगैर खाना खाए लूड़क गया !


अब घर में सिर्फ़ निशा ऑर हर्षरण थे !


अजीत होकर भी नही था !


निशा ने कहा -" इन्हें पीने की आदत नही है भाई साहब !"


"सॉरी भाभी !" हर्षरण ने नकली दुख जताया !


"क्या आप इन्हें बेडरूम तक पहुँचाने में मेरी मदद करेंगे ?"


"क्यूँ नही ?"


निशा अजीत को उठाने के लिए झुकी !

पल्लू नीचे गिर गया !

हर्षरण के पौ 12 होगये !


आँखें कंपित कबूतरो पर चिपक गयी !


निशा ने भाँपा !


झेंपी ! ऑर पल्लू वापस ढका !
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Re: NOVEL IN HINDI TRICK ( By Ved Parkash Sharma)

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अजीत को एक तरफ से निशा ने पकड़ा , दूसरी तरफ से हर्षरण ने ! इस बार निशा ने पल्लू नही सरकने दिया ! वो उसे बेडरूम तक ले आए ! बेड पर लिटाया ऑर चादर डाल दी !


अब......


वो हुश्न हर्षरण के सामने था जिसे हासिल करने का फ़ैसला उसने निशा पर पहली नज़र पड़ते ही कर लिया था ! बेड के एक तरफ निशा खड़ी थी , दूसरी तरफ हर्षरण !


अजीत का बोझ उठाकर लाने के कारण निशा हाँफ रही थी !


सीने का उठाव गिराव हर्षरण के लिए जान लेवा बन गया !
बोला-- " एक बार फिर माफी चाहता हू भाबी , मेरी वजह से ......!"


" शर्मिंदा ना करें भाई साहब !"


जाने का इरादा नही था हर्षरण का, उसके बावजूद कहा -"चलूं !"


"खाना तो खा लीजिए !"


"इसकी इस हालत के खाना लगेगा तो अज़ीब ही, लेकिन.... !"


"लेकिन ?"


"इधर खाना वेस्ट जाएगा उधेर मेरे पेट में सारी रात चूहे कबड्डी खेलते रहेंगे !"


यह वाक्य हर्षरण ने महॉल को हल्का - फूलका बनाने बल्कि निशा को हँसी दिलाने की गर्ज से कहा था ,परंतु उससे इस वक़्त थोड़ी हैरानी हुई जब हँसना तो दूर निशा मुस्कुराइ तक नही !


चेहरे पर बगैर कोई भाव लिए दरवाज़े की ओर बढ़ती हुई बोली --"आइए !"


हर्षरण का पूरा ध्यान उसकी बल खाती कमर पर था !


निशा दरवाज़ा पार कर गयी !


चुंबक से खींचे लोहे की तरह वो भी ड्रॉयिंग रूम में पहुँचा !


"आप बैठिए !" निशा ने कहा -- " मैं खाना लगाकर आती हूँ !"


कुछ देर हर्षरण खड़ा रहा !


निशा खाना लगा रही थी !



वो दरवाज़े पर ठितका !

निशा ने अपनी पीठ पर उसकी आँखों की चुभन महसूस की !


वो पलटी !


हर्षरण मुस्कुराया ! निशा घबराई ! सिमटी ऑर पीछे की तरफ हटी !


मगर मूँह से कुछ ना बोली !


थोड़ा लपक कर, हर्षरण ने उसे बाहों में भर लिया !


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