हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma) complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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अनेक गैलरियों से गुजरते हुए एक लिफ्ट से पहुचे । लिफ्ट से उनका सफ़र ऊपर के लिए नहीं था बल्कि नीचे के लिए था । विजय-विकास को समझते देर न लगी-कंकरीट का यह गिलास जितना जमीन के ऊपर नजर जाता है, अगर उतना नहीं तो कम से कम आधा जमीन के अंदर जरूर है ।


लिफ्ट में सफर करते वक्त विजय ने पूछा----“चले तो हम जा रहे है प्यारे, लेकिन पता तो लगे, हम जा कहाँ रहे हैं?”


"भाई जी के बेडरूम में ।"


“वहां क्यों?"


"मेरो डूयूटी मेडम को वहां पहुचाना है ।"



"उसके बाद !"


"वापस चले जाना है ।"



"चाहे हम ना चाहें ?"


जैक चुप रहा !

जैक चुप रहा ।

लिपट रुक चुकी थी !


उसके खुलते ही वे बाहर निकले । सामने गैलरी थी । एक बार फिर से कई गैलरियां पार करके एक कमरे में पहुचे । उन्होंने नोट किया था---- बेसमेंट में गार्ड्स काफी कम थे ।



जिस कमरे में जैक उन्हें ले आया था उसे कमरा न कहकर किसी 'शेख' का 'हरम' कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा । दीवारों पर लड़कियों की. . लडकियों की नहीं बल्कि अपने-जपने जमाने की टोप हीरोइनों की फोटो लगी हुई थी । वे सब शायद वे थी जो इस 'हरम' में आ चुकी थी ।



जैक ए.सी. के स्विच बोर्ड की तरफ़ बढा।


उसे आन किया ।



और पलक झपक्टो ही विजय-विकास के पैरों तले से जमीन खिसक गई ।



वे उस कमरे के नीचे मौजूद दूसरे कमरे के फर्श पर जा गिरे ।


जैक ने केवल क्षण भर के लिए स्विच को आन करके वापस आफ कर दिया था । फ़र्श का वह हिस्सा जहां से विजय-विकास नीचेे गिरे ' थे, दो किवाडों की तरफ झूलता हुआ पुन: फर्श नजर आने लगा । नजमा के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थिरक रहे थे ।



"बेवकूफ ।" उसकी तरफ पलटते हुए जैक के होंठों पर मुस्कान थी-"समझ रहे थे मैं मरने के डर से इन्हें अपने साथ यहां तक ले आया हूं !"



"तो क्या तुमने पहले ही सोच लिया था इन्हें, यहाँ लाकर. . . ।"



"सोच न लिया होता तो इतने आराम से यहां तक न ले जाता । इन्हें क्या पता---' भाई जी को यह पता लग जाए कि उनका कोई सिपहसालार केवल अपनी जान बचाने के लिए दुश्मन को हेववार्टर में घुसा लाया है तो वे ऐसी मौत देते हैं जिसे देखकर, मौत भी थर्रा उठती है । मैंने तो सफारी में इनका नाम सुनते ही सोच लिया था…जितनी खुशी भाई जी को इन्हें अपने कैद खाने में पाकर होगी उतनी खुशी उन्हें शायद पहले कभी नहीं मिली होगी ।"

नजमा चुप रहीं !



"हुह । विजय-विकास बडा नाम सुना था इनका !” कामयाबी के नशे में चूर जैक कहता चला गया'-…"सुना था-सारे संसार के मुजरिम इन से कांपते हैं !!
"हुह । विजय-विकास बडा नाम सुना था इनका !” कामयाबी के नशे में चूर जैक कहता चला गया'-…"सुना था-सारे संसार के मुजरिम इन से कांपते हैं !! मैंने तो सोचा भी नहीं था ये इतने मूर्ख होंगे । कम से कम सोचा तो होता इन्होनें ---- भाई जी का खास सिपहसालार इतनी सुरक्षा व्यवस्थाओं के बावजूद बगेर कोई विरोध किए क्यों अंदर घुसा चला जा रहा है?"



“मान गई जैक, काफी होशियारी से काम लिया तुमने ।"


"बस यह बात इसी ढंग से भाई जी के सामने कह देना ।'


"मततब?"


"उन्हें बता देना दुनिया की मानी हुई हस्तियों को मैंने कितनी समझदारी और धैर्य के साथ लाकर उनके कैदखाने में फंसाया है । उसके मुंह से यह सुनते ही वह मेरी तरक्की कर देगे ।"


“ज़रूर कहूंगी । बहरहाल, तुमने काम तो तरक्की के लायक किया है मगर वे हैं कहां ?'"


"अभी बुलाता हूं।” कहने के साथ उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और एक. . केवल एक बटन पुश करके कान से लगा लिया ।


नजमा समझ सकती थी वह आबू सलेम से बात करना चाहता है !



करने दे या नहीं?


नजमा फैसला नहीं कर पा रही थी ।


चकरघिन्नी की तरह घूम रहा था उसका दिमाग ।



चाहती तो जैक पर तत्काल हमला करके उसे अपने काबू में कर सकती थी ! रिवॉल्वर भी था उसके पास । कवर कर सकती थी । एक ही वार में बेहोश तक कर सकती थी क्योंकि उसकी तरफ़ से जैक पूरी तरह लापरवाह था । भला सोच भी कैसे सकता था यह कि 'संगीता’ उस पर हमला कर सकती है ।


परंतु ।


वह निश्चय नहीं कर पा रही थी कि वर्तमान हालात का ज्यादा से ज्यादा फायदा कैसे उठा सकती है?


जैक और आबू सलेम का सम्पर्क स्थापित हो गया । उनमे बातें होने लगी । नजमा ने वे सभी बाते सुनी ।


अंत में, मोबाइल का स्विच आफ करते वक्त जैक वेइंतेहा खुश था । बोला…"वही बात हुई । विजय-विकास के बोरे में सुनकर भाई जी की बांछें खिल गई । मुझे लगता हे…मेरे इस कारनामे से खुश होकर अव वे मुझे नम्बर टू बना देगे । मेडम, आपको लाने का यह काम मेरे लिए वहुत ही मुबारक साबित हुआ !
बस यूं कहा जा सकता है कि अचानक मेरे हाथ इतनी बड़ी सफलता लग गई !



नजमा ने अपने मतलब का सबाल किया ---" क्या वे आ रहें हैं ?"


"हां !"


" है कहां ?"


"मैनें पूछा नहीं ! क्या पता इतनी बड़ी इमारत में कहां होंगे !"


इसीलिये .......बस इसीलिये जैक को आबू सलेम से बात करने दी थी उसने ! उसके दिमाग में यही समस्या थी कि इतनी वड़ी इमारत में आबू सलेम को कहां ढूढंते फिरेगें ? बेहतर है वह खुद ही यहां आ जाये और ......... जैक वता रहा था --- वह आरहा है ! अपना अगला स्टेप निर्धारित करने हेतु यह जानना जरूरी था उसे जहां आने में कितनी देर लगेगी ! वही पूछा उसने ----" मेरा मतलब था ---- वे कितनी देर में यहां पहुंच जाएगें !"



"एक से दस मिनट के बीच !" मारे खुशी क जैके झूम रहा था ---" वे इमारत में कहीं भी हो ! वहां से दस मिनट से ज्यादा नहीं लगेंगें !"



जैक अभी भी उसकी तरफ से पुरी तरह से लापरवाह था !


चाहती तो इस वक्त उसे अपने काबू में कर सकती थी !



मगर नहीं !


दिमाग ने कहा ---" ये ठीक नहीं होगा !"



आबू सलेम जल्दी आगया तो सारे पासे एक ही झटके में उलट जाएंगें !!



वही हुआ !

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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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एक मिनट से भी कुछ पहले ही यह कहता हुआ आबू सलेम कमरे में दाखिल हुआ ---" कहां हैं वे !"



" तहखाने में !" जैक बोला !




" वैरी गुड !" मारे खुशी के उसका बुरा हाल था !!!



नजमा दौड़कर उससे लिपट गई और यूं थर थर कांपने लगी जैसे बुरी तरह डर गई हो !!!!



आबू सलेम ने पहली बार उस पर ध्यान दिया ! उसके जिस्म को अपनी बाईं भुजा में लपेटकर सीने से लगाया और जैक से पुछा ----" ये हो कैसे गया ! लेने तुम इसे गये थे !"


जैक ने बताना शुरू किया तो बताता ही चला गया !



नमक मिर्च भी लगाया थोड़ा !!!!!
नजमा ने भी बीच बीच में जैक की तारीफ की !



मगर ।


सुनने के बाद आबू सलेम के चेहरे पर वह खुशी नजर नहीं'आई जो आनी चाहिए थी । खुशी की जगह गम्भीरता काबिज हो गई थी उसके चेहरे पर । नजमा को खुद से अलग किया । एक सिगरेट सुलगाई। चहलकदमी-सी करता हुआ बोता-जैक, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ' !"



"ज...जी ।"


"एक बहुत बड़ा सेठ था । एक दिन उसे किसी बिजनेस डील के लिए शहर से बाहर जाना था । सुबह-सुबह तेयार हो रहा था कि उसका चौकीदार आया । बोला…'सेठ जी, आज जाप बाहर मत जाओ ।' सेठ ने चौंककर पुछा'-…"क्यों?' चीकीदार ने कहा…"मैंने सपने में देखा वह प्लेन क्रैश होने वाला है जिससे आप जा रहे हैं ।' सेठ भडक उठा-दिमाग खराब हो गया है क्या तेरा? तूने सपना देखा और मैं न जाऊं? जानता भी है-अगर मैं न गया तो लाखों का नुकसान हो जाएगा ।' चौकीदार गिड़गिड़ाया----" मान जाइए सेठ जी, मेरे सपने अक्सर सच हो जाते हैं । लाखों क्या, करोडों रुपए भी आपकी जान से ज्यादा कीमती नहीं हो सकते ।’ सेठ गुर्राया ---" बकवास बंद कर !मैं इन अंधविश्वासों को नहीं मानता ।' ' सचमुच वह अंधविश्वास नहीं था, परंतु चीकीदार भी पूरा मालिक-भवत था । वह सेठ के कानों से गिर गया । बार-बार न जाने के लिए कहता रहा । तकरार लम्बी हो गई । सेठानी भी वहाँ आ पहुची । तकरार का कारण पता लगा तो चेहरा पीला पड गया उसका । सेठ से बोली----' न जाएँ । यदि इसने प्लेन क्रैश होने का सपना देखा है तो जरूर होगा । अपने सपनों के बारे में इसने मुझें पहले भी अनेक बार बताया है, हमेशा. . .हर सपना सच हुआ ।' सेठ तब भी अड़ा रहा

मगर अब चोकीदार और सेठानी मिल कर 'ग्यारह' हो चुके थे । चोकीदार को तो डाट-डपटकर चुप भी करा सकता था मगर सेठानी पर एक न चली । अंतत: जा ही नहीं सका वह । उस वक्त अपने कमरे में पड़ा लाखो रुपए के नुकसान पर कलप रहा था जब खबर आई……‘वह प्लेन क्रैश हो गया और सारे यात्री मारे गए ।' सेठ हेरान । सेठानी ने कहा----देख लीजिए, मैंने कहा था न---चोकीदार के सारे सपने सच्चे होते है ।' सेठ ने चौकीदार को बुलाया ।

अपनी जान बचाने के बदले में उसे दस लाख रुपए दिए ओंर नोकरी से निकाल दिया ।"


"क. . .क्यों?" यह सवाल नजमा और जैक के मुंह से एक साथ स्वत: फूट पड़ा !!



"यही सवाल सेठ से चौकीदार और सेठानी ने भी पूछा ।" आबू सलेम शानदार बेड के नजदीक पहुंचकर बोला----"कहने लगे---'ये अजीब बात कर रहे है आप? एक तरफ दस लाख रुपंए दे रहे हैं, दुसरी तरफ रोजी-रोटी छीन रहे हैं बेचारे की । नौकरी से निकाल रहे हैँ ! क्यों?' .. .इस क्यों का जवाब तुम्हें देना है जैक । बताओं-सेठ ने चीकीदार को नौकरी से क्यों निकाल दिया?"


वेचारा जैक ।


क्या जवाब देता ।


उसकी तो समझ में ही कुछ नहीं आया था । समझ में तो तब कुछ आता जब दिमाग में सांय-सांय की आवाज के साथ चल रहा अंधड कुछ समझने देता । उसकी समझ में तो यह भी नहीं आया था कि आबू सलेम ने इस वक्त यह कहानी आखिर सुनाई क्यों है ।



"जबाब दो जैक ।" आबू सलेम के लहजे में खराश पैदा हो गई थी…"सेठ ने चौकीदार को नौकरी से _क्यों निकाला?"



“म…मैं नहीं समझ सका भाई जी ।” जैक बडी मुश्किल से कह पाया ।


आबू सलेम ब्रोला----" सेठ ने चीकीदार से कहा…मैंने तुम्हें जागने के लिए नौकरी पर 'रखा .था । सोने के लिए नहीं ।' अपनी पत्नी से बोला----'अगर पहले बता देती यह सपने देखता है तो मैं इसे बहुत पहले ही हटा चुका होता क्योंकि चीकीदार का काम है सारी रात जागकर पहरा देना, न कि सपने देखते रहना । जो शख्स अपने काम में लापरवाही करें भला उसे मैं नौकरी पर कैसे रख सकता हू।"


"ब. . बिल्कुल ठीक कहा सेठ ने ।” जैक के मुह से निकला । आबू सलेम ने उसकी आंखों में झांकते हुए पुन: पूछा…"ठीक कहा न?”

" ज.... .जी ।"


"कुछ वैसी ही गलती तुम कर बैठे हो जैसी चौकीदार ने की थी ।"



जैक के होश फाख्ता । मुह से निकलना---" मै कुछ समझा नहीं भाई जी !!
"विजय विकास तहखाने में हैं, यह अच्छी वात है मगर है इत्तेफाक ।


जो बेवकूफी तुमने की, उसके परिणामस्वरूप इस वक्त वे हमारे सिरों पर भी सवार हो सकते थे ।


यकीन मानो जैक, जरा भी समझदारी का काम नहीं किया तुमने बल्कि हद दर्जे की बेवकूफी का परिचय दिया है । ऐसी बेवकूफी का जैसी बेवकूफी की उम्मीद कम से कम तुमसे नहीं थी मुझे । तुम्हें अपनी जान की परवाह न करके उनसे रास्ते ही कहीँ भिड जाना चाहिए था । इन्हें मार गिराते तो इनाम के हकदार होते, खुद मर जाते तब भी इनाम के हकदार होते क्योंकि मैं समझ जाता तुमने जान दे दी, उन्हें हेडक्वार्टर तक नहीं पहुचने दिया मगर तुम तो ठीक उल्टा ही कर बैठे । खुद घुसा लाए । अंदर । मेरे बेडरुम तक । सोचो----अगर जरा भी चूक हो जाती तो ये शख्स. . जिनसे अमेरिका और चीन तक थर्राते हैं, क्या हमारे इस हेडक्वार्टर के परखच्चे नहीं उड़ा देते? ऐसा नहीं हुआ तो शायद केवल इसलिए क्योंकि हमारी किस्मत अच्छी थी वर्ना अपनी बेवकूफी से मौत का सामान तो ले ही आए थे तुम यहां अपने साथ ।


नहीं----अंजाम', ठीक निकल आने से किसी आदमी के बेवकूफी भरे कदम क्रो समझदारी नहीं कहा जा सकता । तुमने चौकीदार की तरह अपने काम में लापरवाही बरती इसकी सजा जरूर मिलेगी !"



जैक के चेहरे की सारी रंगत यूं उड़ गई जैसी जिस्म से आत्मा के निकलते ही उड़ जाती है ।


जैक ।



वह जैक जो अपने कारनामे पर बल्लियों उछल रहा था ।



मारे खुशी के जो पागल हुआ जा रहा था ।



जो तरक्की बल्कि आर्गेनाइजेशन में "नम्बर दू' की हैसियत पा जाने की उम्मीद कर रहा था उस जैक के उसी कारनामे को जब "हद दर्ज की बेवकूफी' करार दे दिया गया, बल्कि साबित कर दिया गया तो जैसे उसके जिस्म में दौड़ रहा सारा लहू निचोड़ लिया गया ।

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मारे खौफ के दिल थाड़-थाड़ करके बज रहा था ।



बोलने की लाख चेष्टाओं के बावजूद वह अपने मुंह से कोई आवाज नहीं निकाल सका।



इधर ।



नजमा के दिमाग में भी आंधियाँ चल रही थी ।



खुद उसने भी स्वप्न तक में नहीं सोचा था कि.....
खुद उसने भी स्वप्न तक में नहीं सोचा था कि----


यूं !




जैक की इतनी बडी कामयाबी 'बेवकूफी' साबित हो जाएगी।


"जैक ।" आबू सलेम ने कहा…"मैं काफी देर से तुम्हारे बोलने का इंतजार कर रहा हूं ।"


" 'भ. .......भाई जी ।" जैसे मुर्दा बोला----" म..... मेरी तो समझ में नहीं आ रहा क्या कहू?" !



“केवल इतना बताओ-मैंने गलत कहा या सही?"



"अ. . अपने कहा है भाई जी तो सही ही क्या होेगा मगर. . . "


" मगर ?"


" क... . .कम से कम मैंने जो किया, यही सोचकर किया था कि इनाम के लायक काम है । अब उसमें भी कोई खोट निकल जाए तो. . . !"


"तो ?"



"भाई जी मैंने सोचा नहीं था इसमें भी कोई खोट निकाल सकता है! "



"तुम्हारी स्थिति ठीक मेरी कहानी के चौकीदार जैसी है ।"



"ज..... . जी ।"



"उसे भी नहीं पता था मालिक की जान बचाने की धुनक में कहां गलती कर रहा है ।"




एक बार किर जैक कोशिश के बावजूद मुह से आवाज न निकाल सका



। “इसलिए मैंने तुम्हारे साथ वही सुलूक करने का फैसला किया है जो सेठ ने चौकीदार के साथ किया था ।" कहने के साथ वह ए .सी. के स्पिच के नजदीक पहुचा । उसे ओंन करने के साथ बोला-'"बोलो, तुम्हें मंजूर है या नहीं?”



फर्श का वह हिस्सा पुन: दो किवाड़ बनकर खुल गया था जहाँ से विजय-विकास नीचे गिरे थे ।



"अबे औ भाई ।” नीचे से विजय की आवाज आ रही थी----“ये कहाँ फंसा दिया तूने हमें । यहाँ से निकाल यार ।"



विजय और भी जाने क्या-क्या बक रहा था । आबू सलेम ने उसके शब्दों पर ध्यान न देकर जेक से कहा----"तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ।"


जैक जानता था…उसकै मंजूर नामंजूर कहने से कोई फर्क पडने बाल नहीं था! करना वहीं था आबू सलेम को, जो उसके दिमाग में आचुका था !
जैक जानता था…उसकै मंजूर नामंजूर कहने से कोई फर्क पडने बाला नहीं था! करना वहीं था आबू सलेम को, जो उसके दिमाग में आचुका था !




सो, वहुत सोच-समझकर कहा उसने----"आपने पहले कभी कोई गलती की है भाई जी और ना ही आगे करेगे । मुझे इस बात पर पूरा विश्वास है !


"सेठ ने चीकीदार को दस लाख रुपए दिए थे, मैं तुम्हारे परिवार को पूरे एक करोड दूगा । यह एक करोड विजय-विकास को मेरे चंगुल में फंसाने का इनाम होगा ।"



' "ज. . .जी !"



"सजा के तोर पर सेठ ने चौकीदार को नोकरी से निकाल दिया था । मगर तुम जानते हो…हमारे आर्गेनाइजेशन मेंनौकरी सै निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है । जो बोझ वन जाए उसके लिए एक ही व्यवस्था है ।"



"न . .नहीँ । नहीं भाई जी ।" उसके जिस्म में दौड़ता खुन मानो जहां का तहां रुक गया था ।


आबू सलेम ने जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया ।



जैक गिड़गिड़ा उठा----"भाई जीं प्लीज़ ।"


"मुझे दुख हुआ जैक । सच मानना…तुम्हारी वर्तमान हालत को देखकर मुझे वहुत दुख हो रहा है । जानते हो क्यों, केवल इसलिए कि मैं पहले नहीं ताड़ सका तुम मौत से इतने डरते हो । ' तुम. . जिसे मैंने अपना पर्सनल सुरक्षा गार्ड बनाया था । मेरी कल्पनाओं के मुताबिक तो यह सजा तुम्हें हंसते-हंसते गले लगानी चहिए थी । तुम्हें लेकर जो उम्मीदे मैं बांधा करता -था आज तुम्हीं ने वे सारी ध्वस्त कर दी । अब तो लग रहा है-वास्तव तुम विजय-विकास को यहाँ तक अपनी किसी पूर्व सोच के कारण नहीं बल्कि अपनी जान बचाने की खातिर लाए थे । यहां आकर उन्हें तहखाने मे डालने का मोका मिला और वह काम पूरा होते ही तुमने कहानी गढ़ दी की .......... ।"



"न.. .नही…नही भाई जी । यह झूठ है ।" बह कहता चला गया…"ओर यह भी झूठ है कि में मौत से डरता हूं ।”



"वह तो चेहरा बता रहा है तुम्हारा !"


“म. . .मैं मौत से नहीं डर रहा भाई जी है"'


"ओर किस बात का खौफ है ये?”


“क. . .केवल इस बात का कि अगर थोडी बहुत गलती मुझसे हुई भी है तो सजा इतनी संगीन...........!"




इस बार आहू सलेम उसका वाक्य काटकर कह उठा --- " इसका मतलब अब तुम्हें मेरे फैसलों पर भी एतबार नहीं रहा ।"




"ऐसी बात नहीं है भाई जी । मैं तो… !"



"नहीं जैक । अब तुम जिंदा रहने के काबिल नहीं रहे !" कहने के साथ आबू सलेम ने वह सिगरेट फर्श पर डाली जो अभी आधी ही पी गई थी । जूते से कुचलता हुआ बोला ---" मुझमें तो आस्था भी खत्म हो चुकी है तुम्हारी जिसकी आस्था आबू सलेम में खत्म हो जाए वह आर्गेनाइजेशन में नहीं रह सकता ।"



"मेरी आपमें पूरी... !"


"धांय ।”



आदू सलेम के रिवॉल्वर से एक शोला निकला ।



जैक की खोपडी के चीथड़े उड़ा गया वह ।


उसका जिस्म सारे जहां की शराब पी गए शराबी की तरह लड़खड़ाया ।

अभी लड़खड़ा ही रहा था कि आबू सलेम ने आगे बढकर अपने बूट की जोरदार ठोकर मारी ।



'जैक अंतिम चीख के साथ तहखाने में जा गिरा ।
"अबे ।" मुंह से यह शब्द निकालने के साथ विजय बडी फुर्ती से कूदकर दो कदम पीछे हटा।



जैक का जिस्म "थाड़' से स्टील के फर्श पर जाकर गिरा था ।



हां । केवल जिस्म ही था वह । आत्मा तो कभी की उड़न छु हो चुकी थी । विजय उसे आंखें फाड़े देख रहा था । उसे, जिससे अभी तक 'भल्ल-भल्ल' करके खून वह रहा था ।


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नजर विकास की भी उसी पर थी !



यह बात दोनों में से किसी की समझ में नहीं आ रही थी उसे क्यों मार दिया गया ।



उसे, जिसने उन्हें वेहद सफाई के साथ यहां लाकर कैद में फंसा दिया था । अभा उनमें से कोई आपस में कुछ बोल भी नहीं पाया था कि ऊपर से आवाज आई…"कैसा लगा मिस्टर विजय?"



दोनों ने एक साथ पलटकर ऊपर देखा ।



आबू सलेम मोखले के नजदीक खड़ा नीचे झाँक रहा था । उस पर नजर पड़ते ही विजय चहका----" ये तो कोई बात नहीं हुई आबू भैया । अपना कचरा साला तुमने निचली मंजिल बालों के सिर पर फेंक दिया !
देखो-सारा फर्श गंदा हो गया है । अब पोंछा लगाने वाली भी तुम्हें ही बुलानी होगी ।"’



मुझे यकीन नहीं आ रहा तुम वहीं विजय-विकास हो ।"


" कौन विजय-विकास ।"


"जिनसे सिंगही और जैक्सन जैसे मुजरिम पनाह मांगते है ।"’



"अजी मांगते हैं तो मांगते रहे । हम पनाह देते कहां हैं-सालों को? पनाह आखिर पनाह है । कोई ऐसी चीज तो है नहीं कि जेब से चवन्नी की तरह निकाली और रख दी फुटपाथ पर बैठे भिखारी के हाथ पर ।”



"वाकई ।" आबू सलेम -"'बात सुनकर लगता है तुम बहीं हो । आप बाते बहुत मजेदार करते हैं ।"'



"अजी यूं ऊंट की तरह गर्दन उठाकर बाते करने में तो खुद हमे ही मजा नहीं आ रहा, फिर तुम्हें कहां से जाएगा । ऊपर खिंचवाओं हमें । सामने बैठकर बात करों । फिर देखो कितना मजा जाएगा ।"



“होगा । वेसा भी बहुत जल्द होगा ।"’ कहने के साथ हंसता हुआ आबू सलेम मोखले के नजदीक से हट गया ।




“कहां जा रहे हो आबू सलेम भैया ।" विजय जोर से चीखा…“तुम्हारा तो यार हमे यहाँ से खींचने का कोई मूड ही नजर नहीं आ रहा । सड़ा सड़ाकर ही मार डालने का इरादा है क्या?"



दोनों किवाड़ पुन: बंद हो गए।



अब छत भी सालिड स्टील की बनी नजर जा रही थी । कमरे के फर्श से करीब पंद्रह फुट ऊपर थी वह । जहाँ वे थे वह कमरा दस बाई दस से बड़ा नहीं था । को, फर्श, दीवारे-सब कुछ स्टील का ।


कहीं कोई दरवाजा, कोई खिडकी नहीं । सामान के नाम पर सुई तक नहीं बी वहां । केवल वे थे और संदूक जैसा कमरा !



"आराम से बैठ जाओ गुरु । हमारे लिए अब कुछ नहीं हो सकता ।" विकास ने एक दीवार के सहारे बैठते हुए कहा !



विजय घुटने मोड़कर इस तरह जैक की लाश के नजदीक बैठ गया जैसे "इंडियन सीट' पर बैठा हो । अफसोस सा करता बोता----" बात भेजे में नहीं घुस रही दिलजले । आबू भैया ने इसे पटकनी क्यों दी !"



'इसकी चिंता छोडो गुरु, अपनी फिक्र करों । छब्बे जी बनने आए थे दूबे जी बनकर रह गए ।"



"हम 'क्यों करें अपनी फिक्र । ऊपर वाला करेगा हमारी फिक्र.. सारी, वाला नहीं, वाली ।"
"अरे ! तुम अभी तक वहीं खडी हो !" ए .सी का स्विच अॉन करने के तुरंत
बाद आबू सलेम ने एक कोने में सिमटी खड़ी नजमा की तरफ देखते हुए कहा …""और .. .इतनी हवाइयां क्यों उड़ रही हैं चेहरे पर? नहीं संगी डार्लिग, तुम्हारा चेहरा इतना फीका अच्छा नहीं लगता । ये तो दमकता हुआ अच्छा लगता है ।"



नजमा खामोशी के साथ डरी-सहमी 'संगीता' की एक्टिंग करती रही ।




"अच्छा भाई सारी ।" हंसकर वह नजमा की तरफ़ बढ़ता हुआ बोला----"मुझे यह सब तुम्हारे सामने नहीं करना चाहिए था मगर क्या करता, मजबूर हो गया । गुनहगार को हाथों हाथ सजा देने की आदत जो पड़ गई है ! "




नजमा अब भी कुछ नहीं बोली ।


आबू सलेम ने नजदीक जाकर उसे बांहों मैं भर लिया ! बोला----"तुम तो कांप रही हो ।"



"स. . .सलेम !" वह यू बोली जैसे बड़ी मेहनत के बाद बोल पा रही हो ---- "क्या वाकई जैक का कुसूर इतना बड़ा था? म. . .मेरे ख्याल से तो ......!"



"हां! हां! बोलो तुम्हारे ख्याल से ?"



"उसका कोई कसूर नहीं था ।"

ठहाका लगाकर हंस पड़ा आबू सलेम । बोला----"छोड़ो, यह सब तुम्हारे सोचने के लिए नहीं है डार्लिग । भूल जाओं यह यब तुम्हारे सामने हुआ है । यह भी भूल जाओ----जैक नाम का कोई आदमी कभी इस दुनिया में -था ।"

“भ. . .भूल जाऊगी ---मगर इतनी जल्दी नहीं भूल सकती ।"



"बात तो ठीक है और----ज़ब तक इस मानसिक अवस्था में रहोगी तब तक प्यार करने मे भी मजा नही आएगा ।

तो आओ मूड चेंज करने के लिए तुम्हें शूटिंग दिखाता हू।"



" शूटिंग !"



"यस । तुम क्या समझती हो शूटिंग केवल स्टूडियोज में होती है । अपने यहाँ भी मैं कभी--कभी सेट लगा लिया करता हूं और हां हीरो भी बड़ा फेमस है । तुम्हारी लाइन का न सही पोलिटिक्स की लाइन कां है । मगर है फेमस !"
यह सोचकर नजमा का दिल जोर- जोर से धडकनें लगा कि शायद वह मोहम्मद इकराम तक पहुचने वाली है । बोली ---" ऐसा कौन सा नेता है जिसे तुम हीरो बना रहे हो ।"



"मोहम्मद इकराम ।"



" इ ......इकराम । वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री । रिवटजरलैंड मे सुना था उन्हें क्डिनेप. . .ओह । तो उन्हें तुम्ही ने ।"



"हां । ऐसा ही समझो ।"



" मगर क्यों? तुम्हें उसे किडनैप करने की क्या जरूरत पड़ गई !



“संगी डार्लिंग ।" थोड़ा बोर से होते आबू सलेम ने कहा---"हो क्या गया है तुम्हें? अचानक सवाल बहुत करने लगी हो ।"



" म.....मेरा मतलब था ।" थोडा गडबडाने के बाद नज़मा ने खुद को संभाल लिया----"तुम्हें उसे किडनैप करने की क्या जरूरत थी पॉलिटिक्स की दुनिया में ऐसा कौन है जिसे तुम मेसेज भेजो और बह खुद चलकर तुम्हारे पास न आ जाएगा ।"



"हालात ऐसे थे कि वह अपनी मर्जी से कहीं आ-जा नहीं सकता था !"



"में समझी नहीं । ऐसे क्या हालात थे!"



"एगर उसे किडनैप की खबर स्विटृजरलैंड पहुंच गई तो उस इंटरव्यू की खबर भी ज़रुर पहुची होगी जिसने भारत को दंगों की आग में झोक रखा है ।"




"हां । यह खबर भी थी वहां ।"



"उसी के कारण इंडियन गवर्नमेंट ने उसे अपने सुरक्षा धेरे में ले रखा था । अपनी मर्जी से कहीं नहीं आ-जा सकता था है इसलिए मेसेज भेजने की जगह उठवाना पड़ा ।"



"मगर ऐसी जरुरत क्या पड़ गई उसकी ?"

"बताया तो था-----यहां शूटिंग कराने का मूड था । आओ ---- तुम्हें भी दिखाता हूं ! " कहने के साथ लगभग जबरदस्ती उसने नजमा को दरवाजे की तरफ खींचा । उसके साथ खिंचती चली जाने के अलावा फिलहाल कोई चारा भी नहीं था !



बैसे भी, वह देखना चाहती थी --- णतनी बड़ी इमारत में मौहम्मद इकराम है कहाँ? बहरहाल उनका मकसद ही उसे यहां से निकालकर ले जाना था ।
वह बात चाहे जो कर रही हो मगर दिमाग बराबर चकरधिन्नी की तरह घूम रहा था ।
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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

Post by Jemsbond »



जिस जंजाल में विजय-विकास फंस गए थे उन्हें वहाँ से निकालने की जिम्मेदारी अब ,उसी की थी ।

यह काम कोई मुश्किल भी नहीं लग रहा था उसे ।


कारण !



आबू सलेम भी जैक की तरह उसकी तरफ़ से पूरी तरह लापरवाह था और लापरवाह दुश्मन को मौका लगते ही बड़ी असानी से 'दबोचा' जा सकता था । जरूरत थी तो केवल एक ऐसे लम्हें की जब आबू सलेम पर ऐसा प्रहार कर सके जिसके परिणामस्वरूप वह कुछ भी समझने से पहले बेदम हो जाए ।




नजमा जानती थी---यदि एक बार उसके द्वारा अचानक किया गया प्रहार खाली चला गया या इतना कमजोर हुआ जिससे आबू सलेम बेदम ना हो सका तो सारे हालात पलक झपकते ही उसकी मुटूठी से फिसल जाएंगे और. . हालात मुटुठी से फिसल जाने का अंजाम यकीनन उन तीनों की मौत होगा ।



इसलिए, उसने फैसला किया था-थोडी देर भले ही हो जाए, लेकिन प्रहार में कोई चुक न हो ।



और अब...अब तो मोहम्मद इकराम की पोजीशन जानना भी उसका लक्ष्य वन चुका था ।



सो, उसके साथ कमरे से बाहर खिंचती चली गई ।


गैलरी में पहुंचकर आबू सलेम ने जेब से रिमोट निकाला ! उसका एक बटन दबाया ।



बेडरूम का मजबूत दरवाजा बंद हो गया ।



अब वह आबू के साथ गेलरी में बढ़ रही थी ।


करीब एक मिनट बाद वे वहाँ पहुचे जहां मोहम्मद इकराम और शूटिंग टीम मौजूद थी । लाइटे आँफ थी । रिफ्लेक्टर्स समेटे जा रहे थे । कैमरे को स्टेंड से उतारा जा रहा था । यानी माहोल 'पैेकअप' का था ।



कमरे में कदम रखते हुए आबू सलेम ने पूछा…"काम खत्म हो गया लगता है !"




"हा भाई जी । मेरे हिसाब से तो काम ठीक ही हो गया है ।" खलिद मिस्त्री ने कहा---"अच्छा हुआ जो आप आ गए । आप भी देख लें तो बेहतर होगा !"
"दिखाओ !" कहने के साथ आबू सलेम एक सोफे 'पर बैठ गया ।


खालिद मिस्त्री शूट हुई कैसेट वी.सी.आर. में लगा रहा था ।


कुछ देर बार सामने रखे टीबी. के पर्दे पर फिल्म चलने लगी ।


यह वही फिल्म थी जो खालिद ने कुछ देर पहले शूट की थी । आबू सलेम एक-एक शाट को ध्यान से देखने लगा ।



ठीक सामने इकराम बैठा नजर आरहा था ! कैमरे के पीछे से एक आबाज उभरी-----" क्या आप जम्मू-कश्मीर में कहे गए अपने शब्दों को ठीक मानते है?”


मोहम्मद इकराम मजबूती के साथ जवाब देता नजर आया ---" जी हां । मैं आज भी जम्मू में कहे गये अपने शब्दों पर कायम हूं !




कैमरे के पीछे से अगला सवाल पूछा गया…"क्या आपको मालूम है आपके इस भाषण के कारण भारत में काफी हंगामा मचा हुआ है !"


मोहम्मद इकराम थोडा रोष में नजर आया । फिर बोला-"वेवजह हंगामा मचा रखा है क्टटरपंथियों ने । आखिर क्या गलत कह दिया मैंने, जम्मू में मुसलमानों को बसाने की बात ही तो कही है । इसमे क्या गलत कह दिया ।"


कैमरे के पीछे से पुन: कहा गया…"लेकिन आपके स्टेटमेंट के कारण जम्मू में बसे हिन्दू संकट में पड गए हैं ।"



इकराम कुछ और रोष में नजर आया । गुस्से में कहा --- " मुस्लमानों पर हिंसा करके ये मेरी हर बात सच साबित कर रहे हैं । जम्मू कश्मीर समस्या का केवल एक हल है ।"


और वस ।



स्कीन पर झिलमिल नजर जाने लगी ।


खालिद के असिस्टेंट ने टी.बी… आँफ कर दिया ।


"गुड ।" आबू सलेम ने कहा---“अच्छी बनी है । बस एक छोटी-सी कमी । अंतिम सवाल का जबाब देते वक्त मोहम्मद इकराम के लहजे मैं द्रुढ़ता कुछ कम है थोड्री और होती तो ज्यादा बेहतर होता । एनी वे । चलेगी ।"



, "आप तो जानते ही हैं भाईजी ।" खालिद मिस्त्री ने कहा ----" इतनी पंरफांरनेस भी मिस्टर इकराम हमारी कितनी मेहनत के बाद दे पाये हैं । फिर भी, अगर आपको कमी लगती है तो 'डबिंग' से सुथार किया जा सकता है ।"
" नहीं जरूरत नहीं है ।" कहने के बाद आबू ने संगीता से पूछा…" तुम्हें कैसी लगी संगी डार्लिंग?"



उसे, जो यह सोच रही थी --केवल दो मिनट की यह फिल्म देश में कितना खून खराबा करा देगी ! कहना पड़ा ---" अच्छी है ! परफैक्ट है !




"मंत्री जी ने जो कहा, ठीक ही कहा न?"


"ठ .... ठीक ही है ।"


"क्यों न एक बार तुम भी कैमरे के सामने जाकर यही सब कह दो !

" म.....मैं ?" छक्के छूट गए नजमा के । यह सोचकर पलक झपकते ही चेहरा पसीने से भरभरा उठा कि 'संगीता' को भी जब लोग यही सब कहते देखेंगे तो क्या हाल होगा भारत का? मुह से निकला----"मुझे इस झमेले में मत फसाओ आबू।"


और आबू।


आबू सलेम वहुत जोर से ठहाका लगाकर हंस पडा । बोला…"तुम्हारे तो होश ही उड़ गए संगी । रिलेक्स डर्लिग। रिलेक्स । मैं तो मजाक कर रहा था ।”



नजमा के "ओसान' लोटने शुरू हुए ।


आबू सलेम अभी भी कहे चला जा रहा था…“यह सव कहने के लिए मत्री जी ही काफी हैं । तुमसे तो अगर कैमरे के सामने कभी कुछ कहलवाने की जरूरत भी पडी तो रोमांटिक बाते कहलवाएंगे ।" इन शब्दों के साथ उसने नजमा की कलाई पकड़कर एक झटके से अपनी तरफ खींचा था । नजमा उसकी गोद में जा गिरी ! आबू सलेम ने सबके सामने बेहिचक उसके होंठ चूंमे !

नजमा विरोध करना चाहकर भी नहीं कर सकती थी । केवल यही कहकर खुद को अलग किया …"" सबके सामने, क्या कर रहे हो आबू । प्लीज ।"



आबू सलेम हंसता रहा । फिल्म देखने के बाद वह कुछ ज्यादा ही "मस्त" नजर आ रहा था ।



नजमा ने उसका दिमाग डाइवर्ट करने के लिए पूछा---"ये इंटरंव्यू कौन से चेनल पर आएगा?"


"मुहं से निकालो डार्लिग । जिस चेनल पर कहोगी आ जाएगा । सारे चैनल अपने हैं ।"
"उफ्फ ! अब तुम मुझे किसी और ही मूड में लग रहे हो... चलो यहां से ।"


"चलूँगा । मगर एक शर्त पर ।"


" शर्त?"


"तुम्हें भी उसी मूड में आना पडेगा, जिसमें मैं हू।"


नजमा फैसला कर चुकी थी…अब उसे काबू में करना होगा । यह काम केवल बेडरूम में हो सकता था । सो, उसका हाथ पकड़कर सोफे से उठाती हुई बोली----'' चलो तो ।"


हंसता हुआ वह उठकर खड़ा हो गया ।


बाई बांह नजमा के कंधे पर डाल ली । नजमा को उसे इस तरह दरवाजे की तरफ़ ले जाना पड़ रहा था जैसे लोग ज्यादा पी गए शराबी ' को ले जाते हैं ।


पीछे से मोहम्मद इकराम की आवाज आई----"अब मेरा क्या होगा भाई जी ।"



आबू सलेम ठिठका । नजमा को भी ठिठक जाना पड़ा ।



नजमा से अलग होकर वह मोहम्मद इकराम की तरफ मुड़ा । बहूत ही मस्ती वाले मूड में बोला--"घबराते क्यों हो, वादा कर चुका हूं ! " वह नहीं होगा जो 'शोले' वाले कालिया का हुआ था ।"



" म........मेरा मतलब है, मुझें छोडा कब जाएगा?"



"छोड़ा जाएगा? . . .यह वादा तुमसे कब किसने कर लिया कि तुम्हें छोड दिया जाएगा । नहीं, यह वादा मैंने नहीं किया और मेरे अलावा किसी और का वादा यहां चलता नहीं । मैंने केवल इतना कहा था…तुम्हारा वह नहीं होगा 'जो कालिया का हुआ था । सो नहीं होगा और सुनो. . . ।" कहने के वाद वह मोहम्मद इकराम की तरफ बढा । बेहद नजदीक पहुंचकर उसके चेहरे पर झुकते हुए बोला----"खोपडी में भेजा रखते हो तो सोचना भी मत यहाँ से निकलने के बारे में । भारत की सडकों पर देख लिए गए तो पब्लिक वो हालत बना देगी कि जन्म देने वाली मां तक लाश को नहीं पहचान सकेगी । वहाँ पहुंच गए तो वहीं हो जाएगा जो कालिया का हुआ था । अपने उस अंजाम से बचना चाहते हो तो यहीं पड़े रहो । दुनिया में अब तुम्हारे लिए यह और केवल यही एक जगह महफूज है । शुक्र मनाओ --- मैं तुम्हें कभी खलास न करने का वादा कर चुका हूं ! "

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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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