हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma) complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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सुना है-----उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई कैद नहीं-रख सकता । पिछली बार जोकर तक की कैद को धता बता गया था । उसे हमने कैद कर लिया है । कोई बडी बात ही नहीं हुई ये?”



" 'रावण का नाम सुना है?”


"सुना है ।"


"बता कौन था वो !"



"विलेन था ।"



"विलेन?”


" रामायण का ।"



"विलेन नहीं, किरदार बोल । रामायण का एक पावरफुल किरदार । कुछ लोग उसे हीरो मानते हैं । वह इतना पावरफुल था कि नो के नो ग्रहों को कैद कर रखा था । अपनी खाट के पाए बांध कर रखा था उन्हें उसने । शुक्र, शनिश्चर और राहु-केतु तक उन्हीं में थे ।"

"तो ?"



"तो क्या, बावजूद इसके-अकेले हनुमान उसकी लंका में आग लगा गए । राम 'ने तो बैकुंठ ही पहुचा दिया उसे ।"




"बात भेजे में नहीं घुसी । यहां तू कथा क्यों बांचने लगा?"




- “कोशिश कर रहा हूं तुझें समझाने की । यह बताने की कि इन लोगों को कैद करके इतना इतराने की जरूरत नहीं है । अव भी कोई हनुमान तेरी लंका में आग लगा सकता है राम बैकुंठ पहुचा सकताहै ।"




"हमारा जो होगा देखा जाएगा मगर ये तय है, उससे पहले हमारा मारकेश इनके प्रधानमंत्री को बैकुंठ पहुचा देगा ।"



"खामोश ।" विकास दहाड़ उठा-"'मुह से एक भी लफ्ज और निकाला तो जुबान खींच लुंगा ।"




"लो । कर तो बात । ये है छटंकी की अक्ल !” नुसरत ने तुगलक से कहा---"सामने नहीं हैं । पर्दे पर हैं और जनाब हमारी जुबान खीचने का दावा करते है । कोई पूछै इनसे, वर्तमान हालात में ऐसा ये - कैसे कर सकते हैं ।"


"अक्ल से पैदल तू है । सच्ची-मुच्ची थोडी कह रहे हैं छटकी मियां । तुगलक ने कहा----“मजाक कर रहे हैं मगर तू ठहरा बंदर । बंदर क्या जाने मजाक का स्वाद ।"



विकास मन मारकर रह गया । नुसरत की बात एक तरह से ठीक ही थी । वर्तमान हालातं में चाहकर भी उनका कुछ नहीं बिगाड सकता था !!!!!!
पहली बात-वह कैद मे था । दूसरी बात नुसरत-तुगलक उसके सामने नहीं थे । पर्दे पर केवल उनकी तस्वीरें थीं ।




काफी देर से खामोश विजय ने कहा…"प्यारे नुसरत भैया और तुगलक बहन ।"



“क्या चाहते हो कहन?” नुसरत ने फौरन तुक मिलाई ।



विजय ने भी उसी तुक से जवाब दिया-----" क्यु रहे हो तुम हमें सहन ? "



"मतलब क्या हुआ बहन ?"



"मतलब ये हुआ कि पिछली बार तुमने कसम खाई थी कि जेसे ही मैं या दिलजला तुम्हारे सामने पड़ेगे तुम फोरन से पहले हमें गोली मार दोगे त्ताकि किसी किस्म की बाजी पलटने का मौका ही न मिले । फिर कैद क्यों किया है हमे? पूरी क्यों नहीं करते अपनी कसम? इस ववत तुम्हें हमें गोली मारने से कोई नहीं रोक सकता ।"



"माकूल । एकदम माकूल बात कही है बडे़ मियां ने । तुगलंक ने नुसरत से कहा----" मैनें तुमसे कहा ही था ---- कैद वैद करने की जरूरत नहीं है इन्हें । सीघी- सीधी गोली मार खत्म करो किस्सा । न वांस रहेगा न बांसुरी बजेगी । वेसे भी वे बेचारे खुद गोली खाने के लिए फड़फड़ा रहे हैं । पता नहीं तुझे ही क्या बीमारी लग गई है?"




'यै बात तो तू मानता है न कि शोहरत का असर जरूर जरूर पड़ता है ।"




" बिल्कुल मानता हूं ।




"वही हुआ मेरे साथ । तू जानता ही है…पिछले दिनों हम उस पीले चेहरे वाले मरियल से मुर्दे सिंगही के साथ रहे थे । बचपन से उसे एक ही मीनिया है---- दुनिया जीतनी है और विजय के जीते जी ही जीतनी है । उसके उसी मीनिया ने मुझे भी जकड लिया है । इनके प्रधानमंत्री को मारना है तो इनकी आखों के सामने मारना है । उसके बाद इन्हें भी. .ये मेरे सामने हैं क्या, केवल भुनगे । एक-एक गोली खाएंगे और चित्त हो जाएंगे" । …



"एक बात पता है न तुझे ?"



" पता है या नहीं, यह तो बाद' ही में बताऊंगा ! पहले बात तो पूछ !"



"बो मुर्दा साला आज तक केवल अपने मीनिया के कारण ही विश्वासपात्र नहीं बन सका । हर बार बडे मियां ने अड़गी मार दी ।
"बो मुर्दा साला आज तक केवल अपने मीनिया के कारण ही विश्वासपात्र नहीं बन सका । हर बार बडे मियां ने अड़गी मार दी । मीनिया न होता तो अब तक कई बार विश्व सम्रााट बन-बिगड़ चुका होता ।"




"कहना क्या चाहता है?”



“कहीं वहीं हश्र न हो तेरा । न राम मिला न रहीम ।"



“तेरे मन में यह डर इसलिए है तू मेरी तरह मर्द नहीं है । बहन ठहरा मेरी । मुझमें और इस मुर्दे में यही फर्क है । मर्द होता तो समझता-इनके जीवित रहते, इनकी आंखों के सामने इनके प्रधानमंत्री को मारूंगा तो कितना नाम होगा मेरा ।"



"चल एक वार को 'इनके रहते' बाली बात तो मेरी समझ में आती है मगर "इनकी आंखों के सामने' वाली बात बिल्कुल पल्ले नहीं पड़ रही । प्रधानमंत्री महोदय को मारना स्टेडियम में है और ये बेचारे यहां पड़े सड़ रहे है । फिर भला तू उनकी हत्या इनकी 'आंखों के सामने कैसे करेगा?"



"देखना चाहता है?"



"दिखा ।"



"ये देख! हैं, कहने के साथ नुसरत तुगलक पर्दे से गायब हो गए । अव पर्दे पर सोडियम नजर जाने लगा था । वहाँ जोर-शोर से सभा की तैयारियां चल रही थी । पर्दे पर स्टेडियम का हर हिस्सा दिखाया …जाने लगा । साथ ही कांमेटेटर की तरह नुसरत की आवाज गूंज रहीं थी ---" यह है वह स्टेडियम जहाँ हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री और हमारे ' मुल्क के राष्ट्रपति संयुक्त रूप से जनता को सम्बोधित कंरेगें । यह स्टेडियम उस वक्त भी इन्हें इसी तरह पर्दे पर दिखाया जाएगा जिस वक्त यह भीड से खचाखच भरा होगा । उस वक्त इस तरह, ठीक इस तरह कैमरा मंच पर फिट होगा। जिस वक्त प्रधानमंत्री महोदय के प्राण'-पखेरू उड़ेगे । बोला उस वक्त ये सब कुछ अपनी आंखो से देख रहे होंगे या नहीं?"



"रहेगा तू धीवट का धीवट ही ।" अब पर्दे तुगलक बोलता हुआ नजर आया-----"छोटी-सी बात इसको लम्बी करके समझाने की क्या जरूरत थी । एक सैटेस में बता देता कि तूने इनके लिए "लाइव टेलीकास्ट' का इंतजाम कर रखा है ।"



"मैंने सोचा तू कूठ मगज है । केवल इतना कह देने से बात शायद तेरे भेजे में न घुसे ।"


" अब ये भी बता दे , तेरा मारकेश उसे मारेगा कैसे ???"
"ये जो अभी--अभी तूने मारकेश को 'मेरा मारकेश' कहा इस पर मुझें सखत ऐतराज है । दुनिया को कभी किसी कीमत पर यह फ्ता नहीं लगेगा कि मारकेश से हमारा कोई मतलब है या हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री की हत्या के पीछे पाकिस्तान है । पाकिस्तान वेचारा तो अपनी पूरी ताकत से अपने राष्ट्रपति और मेहमान प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था में जुटा नजर जाएगा । जो होगा ऐसी ट्रिक से होगा कि हमारे पास मुल्क की तरफ़ से कोई उंगली नहीं उठा सकेगा ।"
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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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“उस ट्रिक के बारे में बता ।"



"सवाल मत कर । कान लगाकर वह सुनता रह जो मैं बता रहा हूं और बता मैं यह रहा हूं कि इत्तना तो तू जानता ही होगा कि मारकैश को सारी दुनिया जानती है । यह भी जानती है कि वह ओसामा विन लादेन का दायां-बायां है ।"



"जानता भी हूं और मानता भी हूं ।"



"दुनिया यह भी जानती है कि ओसामा विन लादेन हमारे राष्ट्रपति से आजकल उतना ही खफा है जितना एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को दुसरे की बांहों में देखकर होता है ।"



"ठीक ही खफा है बेचारा और वही क्यों, पाकिस्तान की जनता तक राष्ट्रपति महोदय से खफा है । हो भी क्यों नहीं, उनकी नजर वे वे इस्लाम के खिलाफ अमेरिका का साथ जो दे रहे हैं ।"



" इसीलिए, मारकैश हमला पाकिस्तानी राष्ट्रपृति पर करता नजर आएगा ।"


"मतलब ?"


“मगर मारे जाएंगे हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री ।"



"ऐसा ?"



" कहानी ये बनेगी-राष्ट्रपति से खफा ओसामा बिन लांदेन ने मारकेश को उनकी हत्या करने भेजा । मगर नसीब भारत के प्रधानमंत्री का खराब धा । वे बेचारे तो बेआई में लपेटे में आ गए । मारकेश खुद कबूल कबूल करेगा उन्हें मारने का उसका कोई इरादा नहीं था । वे तो दुर्घटनावश मारे गए ।"



"अच्छी है ।" तुगलक कह उठा ---" ट्रिक अच्छी है तुगलक बहन मगर .......!"



"मगर?"



"यह सब होगा कैसे?"
" जब होगा तब देखियो । क्लाइमेक्स पूछकर सारी पिक्चर का मजा खराब मत कर !!! वेसे भी, हमारे मेहमानों को नीद आते लगी है । उन्हें ज्यादा बोर करना ठीक नहीं होगा । चलते हैं ।"' इन शब्दों के बाद वे दोनों पर्दे से गायब हो गए।



विजय, विकास, मारकेश और नजमा उसके सामने कुछ नहीं बोल पाए थे ।




बोलते भी कैसे? अपने सामने वो किसी ओंर को बोलने का मौका ही कहां देते थे ?



विजय की समझ में अब तक यह बात आकर नहीं दे रही थी कि वे सब बाते नुसरत-तुगलक ने उसे क्यों सुनाई? कोई न कोई उइदेश्य तो उनका जरूर था मगर क्या उदूदेश्य था ! यह कमसे कम फिलहाल विजय की समझ में नहीं आ रहा था ।
आबू सलेम के जीवन में यूं तो खुशी के ऐसे अनेक मौके आए थे मगर जितना खुश वह आज था उतना पहले कभी नहीं हुआ था । बात थी भी स्वाभाविक ।




आज उसकी प्रशंसा नुसरत-तुगलक ने की थी । जिस देश ने उसे पनाह दे रखी थी उस देश के सबसे बड़े जासूसों ने । और. . प्रशंसा वे करते भी क्यों नहीं? उसने काम ही इतना बड़ा किया था जो लोग सिंगही और जैक्सन जैसे विश्व प्रसिद्ध मुजरिमों के भी काबू मे कभी नहीं आए उसने उन्हें कैद कर लिया था । उसने!



उसे तो यकीन ही नहीं आ रहा था कि यह काम उसी ने किया है ।



सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था ।



यह भी कि इस वक्त वह ठीक उस कमरे के ऊपर अपने बेड पर मौजूद है जिस कमरे में विजय-विकास और अलफांसे जैसी हस्तियां मौजूद है ।



हाथ में जाम था उसके । डेक फुल वाल्यूम पर बज रहा था और...........उससे निकलने वाले संगीत पर जो लड़की कैबरे कर रही थ्री वह पाकिस्तानी फिल्य इंडस्ट्री की नम्बर वन हीरोइन थी------ हिना ।

एक भी कपड़ा नहीं था उसके जिस्म पर !!!

यह. . .बस यहीं तो खास शोक 'था आबू सलेम को । लड़कियों को विना कपड़ो के अपने सामने नचाता और लडकियां भी वे जिनके लाखों-करोडों दीवाने हों । शाम होते ही उसने हिना को बुलवा लिया था । हीरोइन इंडियन किल्म इंडरट्री की हो या पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री की.......
भला किसमें हिम्मत थी जो आबू के हुक्म को नजर अंदाज़ कर सकती । वह ठीक उसी समय हाजिर हो गइ थी जिस समय बुलाई गई थी । उसके एक ही हुक्म पर हिना ने अपने सारे कपडे उतार दिए थे । आबू सलेम ने डेक पर उसी की फिल्म का गाना लगाया और उसने ठीक उसी तरह से थिरकना शुरू कर दिया था जिस तरह कपडे पहन हिना क्रो उसके दीवाने पर्दे पर देख सकते थे ।



यह दृश्य इस वक्त भी आबू सलेम की आंखों को वैसा ही चेन पहुंचा रहा था जैसा हमेशा पहुंचाया करता था । गिलास में भरे अपने चौथे पैग को उसने हलक में उड़ेला और गिलास हाथ में लिए बेड से उठ खड़ा हुआ । अब वह भी संगीत की धुन पर थिरकता हुआ उस अलमारी की तरफ बढा जो असल में छोटा-सा बार था ।



हिना को उसकी गतिविधियों से कोई मतलब ही नहीं था । वह तो बस नाचे जा रही थी । क्योकि जानती धी-आबू सलेम को नाचने वाली का गाने के बीच में रुक जाना कतई पसंद नहीं है ।


पूरी तरह मस्त । थिरक्रता-सा आबू सलेम अलमारी के नजदीक पहुचा । इरादा एक और पैग बनाने का था मगर अलमारी के खुलते ही चौक जाना पडा । व्हिस्की की बोतलों के पीछे मौजूद ट्रांसमीटर का बल्ब वार-बार स्पार्क करता साफ़ नजर आ रहा था । पलक झपकते ही मस्ती झड़ गई । घडी की चौथाई में उसकी समझ में यह बात आ गई कि नुसरत-तुगलक उससे सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं । यह बात समझ में आते ही वह डेक पर झपटा ।




एक झटके से उसकी पावर कट की ।



संगीत बंद होते ही ट्रांसमीटर से निकलकर कमरे में गूंजने बाती पिंग-पिंग की आवाज साफ़ सुनाई देने लगी । हिना का जिस्म रुकं गया मुंह से निकल----" क्या हुआ?"



मगर आबू सलेम को भला जवाब देने का होश कहां था?



अगली जम्प उसने अलमारी की तरफ लगाई यी । हेडफोन कानों पर चढाया । माइक हाथ में लिया और ट्रांसमीटर आन किया ही था कि दूसरी तरफ से जावाज उभरी-----"आबू मियां नंगे नाच कभी-कभी देखने वाले को भी नंगा कर देते हैं ।"



"स. . सारी सर । सौरी ।" हड़बड़ाए अंदाज मैं आबू सलेम कहता चला गया----कमरे में बज रहे म्यूजिक के कारण मेैं ट्रांसमीटर की आवाज नहीं सुन सका ।"
"हमने भी जो बात कही इसलिए कहीं है ।" दुसरी तरफ से उभरने वाली आवाज तुगलक की थी…"हम किसी की मस्तियों से खलल नहीं डालना चाहते मगर काम के प्रति हर एक को चौकस देखना चाहते है । जबकि फिलहाल हमने तुम्हें चौकस नहीं पाया । हमारी जिन्दगी के पांच कीमती मिनट तुमसे संपर्क स्थापित करने के नामुराद काम की भेंट चढ़ गए ।"'




"भविष्य में ऐसी कभी नहीं होगा सर ।"


"चलो । माफ किया, इसलिए माफ किया कि यह तुम्हारी पहली गलती है और आज दिन में तुमने एक बड़ा काम किया है ।" तुगलक उसे बोलने का मोका दिए बीना कहता चला गया-----"तुम्हें खटखटाने की जहमत इसलिए उठानी पडी क्योंकि हमारा चीफ़ इसी वक्त तुम्हारे हेडक्वार्टर पर आना चाहता है ।"



"अ . . .आपका चीफ?"



"यानी पाकिस्तानी सोकेट सर्बिस के चीफ ।"



' "ज...जी हां ।"



"उनका उददेश्य है-कैदियों की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेना ।" तुगलक ने बताया-----" कैदियों को सीकेट सर्विस के खास कैदखाने से रखना चाहते थे । हमने तुम्हारी तारीफ की । कहा----तुमने उन्हें माकूल सुरक्षा व्यवस्था में रखा है । ऐसी कोई घटना नहीं हो सकती जैसी आई..एस..आई के चीफ की कैद में रखे गए कैदी ने कर डाली थी । आई..एस..आई. के चीफ के अंजाम से तो तुम वाकिफ हो न?”


"ज...जी । उनके अंजाम से भला जैन वाकिफ़ नहीं है। पूरा' पाकिस्तान जानता है-----उन्हें न केवल उनके पद से हटा दिया गया है वल्कि आपने उनकी नाक भी काट ती है ।"




"बिल्कुल दुरुस्त । ऐसी मिसालें तुम जैसे लोगों को हमेशा याद रखनी चाहिए ।" कहने के वाद तुगलक ने अपनी आवाज को थोड़ा विराम दिया । फिर वोला---" तो कह हम यह रहे थे कि चीफ आंख मूंद कर हमारी बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं है । वे खुद कैदियों की सुरक्षा व्यवस्था से रूबरू होने वहाँ आ रहे है । यहि उन्हें कोई कमी लगी तो कैदियों को सीक्रेट सर्विस के खास कैदखाने में ट्रांसफर कर लिया जाएगा ।”


"म. . .मैं पृरी कोशिश करूंगा सर कि ऐसी नौबत ना आए !"
"तुम्हारी आन-वान-शान के लिए वेहतर तो यही है । समझ सकते हो अगर वे तुम्हारे सुरक्षा इंतजामात से संतुष्ट हो गए तो पकिस्तान में कितना ऊंचा मुकाम पा जाओगे ।"



"आप यकीन रखें सर, मैं अपनी प्रमोशन के इस मोके क्रो गंवाऊंगा नहीं । वे कब आ रहे हैं?"



" दस पंद्रह मिनट बाद । काले रंग की मर्सडीज में होंगे वे । नम्बर नोट करों ।"



"जी बोलिए !"



तुगलक ने नम्बर बता दिया । आबू सलेम ने क्या…"थैक्यू सर। नम्बर मेरे दिमाग में फिट हो चुका है ।"



"अब गंवाने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है । पंद्रह मिनट के अंदर उन व्यवस्थाओं को दरुस्त कर तो जहां कमी नजर आए।" कहने के बाद दूसरी तरफ सम्बंध विच्छेद कर दिया गया ।



और. . आबू सलेम के जिस्म में मानो बिजली-सी भर गई । उस वक्त वह फास्ट फारवर्ड वाले अंदाज से ट्रांसमीटर आँफ करके हैड फोन को कानों से उतार रहा था जब हिना ने पूछा…"बात क्या है आबू डार्लिग ।"

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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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आबू सलेम उसकी तरफ धूमा ! भाव ऐसा था जैसे अभी अभी पता लगा हो कि वह भी वहाँ है । बोला---"जल्दी से कपडे पहन और फूट . यहा से ।"


“ज . . .जी? " वह उसके बेहद रूखे स्वर पर चकराई ।


"टाइम खराब मत कर । कपड़े पहन और जा यहां से!" कहने के साथ उसने वह रिमोट उठाया जिससे कमरे का दरवाजा कंट्रोल होता था और दरवाजे की तरफ लपका । फिर जाने क्या सोचकर ठिठका । बोला…"या छोड़ । यहीं रह । तेरे कपडे पहनने के फेर में रहा तो पांव मिनट बरबाद कर देगी । आराम से बेड पर लेट जा । सो भी सकती है । डेक नहीं बजाएगी । किसी को पता नहीं लगना चाहिए कि तू यहाँ है ।" कहने के वाद रिमोट की मदद से दरवाजा खोलकर वह आंधी--तूफान की तरह कमरे के बाहर निकल गया ।



सच्चाई ये है कि हिना की समझ में ठीक से कुछ भी समझ नहीं आया था । मामले को समझने के लिए वह आबू सलेम के पीछे लपकी मगर उसके दरवाजे पर पहुचने से पहले ही दरवाजा पुन: वंद हो चुका था !
अगले पंद्रह बल्कि चौदह मिनट आबू सलेम ने इतनी जबरदस्त व्यस्तता के बीच गुजारे जैसे अपने पिछले जीवन में कभी नहीं गुजारे थे । चौदह इसलिए क्योंकि एक मिनट पहले वह चीफ़ के इस्तकबाल हेतु रीउंड हाउस के लोहे वाले पेट पर पहुच गया था । वहा, जहाँ ऐसी सरर्च लाइटें लगी हुई थी जिनकी रोशनी के कारण दो सौ मीटर पहले ही इमारत की तरफ बढती चींटी तक को देखा जा सकता था ।



चौदह मिनट के अंदर वह अपने सारे तंत्र को चोकस कर चुका था ।



अगर यह लिखा जाए तो गलत नहीं होगा कि राउंड हाउस में इस वक्त एक भी शख्स सो नहीं रहा था । जिनकी डूपूटी दिन से हुआ करती थी उन्हें भी जगाकर वहां तैनात कर दिया गया था ! जहां आबू सलेम को लगा कि गार्ड होना चाहिए मगर नहीं है ।



स्टाफ को पता लग गया था कि सीकेट सर्विस के चीफ कैदियों की सूरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने आ रहे हैं । सिक्योरिटी इंचार्ज के साथ आबू सलेम उस वक्त लोहे वाले गेट पर खडा था जब इंचार्ज ने कहा---'' आप नाराज न हों तो एक वात कहूं भाई जी ।"



"क्या कहना चाहते हो?” आबू सलेम ने पूछा ।


आपके मुंह से दारू की बास आ रही है । ।"



“ओहा' आबू सलेम हड़बड़ाया ।


इंचार्ज ने कहा… “उन्हें भी आई तो शायद ठीक नहीं होगा !"



".क......कह तो तुम ठीक रहे हो मगर ।" उसने अपनी रिस्टब्रॉच पर निगाह डालते हुए कहा----" अब हो क्या सकता है । चीफ के पहुचने में केवल पंद्रह सेकंड बाकी रह गए हैं ।"


"मेरे पास माउथ फ्रैशनर है ।"



"कहां है ?"



"अभी लाया ।" कहने के बाद वह अपने केविन की तरफ दौड पड़ा । अगले पल उसी तरह दौडता हुआ वापस आता हुआ नजर आया ।



उसके हाथ में माउथ फेशंनर का डिब्बा था । नजदीक आकर हांफत्ता हुआ बोला…-'" मुंह खोलिए ।"


आबू सलेम ने मुंह खोला । इंचार्ज ने फ्रैशनव स्प्रे कर दिया ।



अब आबू सलेम के मुह में बदबू की जगह खुशबू भर गई थी ।
“इसे वापस रख आ ।" आबू सलेम ने कहा…'त्तेरे हाथ में देखेंगे तो सब कुछ समझ जाएंगे ।"



इंचार्ज एक बार फिर अपने कैबिन की तरफ दोड़ पड़ा ।



से सारी हड़बड़ाट इसलिए थी क्योंकि उन्हे उम्मीद थी कि पंद्रहवा मिनट पूरा होते-होते सीक्रेट सर्विस का चीफ वहां पहुंच जाएगा।




मगर ऐसा हुआ नहीं, उस वक्त पांच मिनट ज्यादा गुजर चुके थे जब आबू सलेम, इंचार्ज और वहाँ तैनात अन्य गाडर्स को एक गाडी की हेड लाइट नजर जाई ।



उसके सर्च लाइट के दायरे में आते ही अलू-सलेम ने नम्बर पढा ।



“सब सतर्क हो जाएं !"आनू सलेम के मुंह से निकला "वे ही ।"


देखते ही देखते काली मर्सडीज उनके नजदीक आ रूकी ।



दूसरे गार्ड्स के साथ इंचार्ज ने भी जोरदार सैल्यूट मारा ।



आबू सलेम ने लपककर ड्राइविंग डोर खोला । डोर खुलने के साथ अंदर की लाइट आँन हो गई।



गाडी में केवल एक ही शख्स था ।


वह जो उसे ड्राइव करके वहां तक लाया था ।


पके हुए सेव जैसे रंग का शख्स था वह । चौड़ा मस्तक । आंखों पर चश्मा । फेचकट दाढी । वे मूंछे जिनके दोनों सिरे दाढी का हिस्सा थे । बाएं गाल पर आंख के नजदीक एक मोटा काला मस्सा था ।



साढे छ: फुट लम्बा था वह । काले चमकदार जूतों और काले ही सूट में वह बेहद आकर्षक लग रहा था । आकर्षक आबू सलेम भी कम नहीं था मगर उसे अपना व्यक्तित्व उसके सामने वहुत बैना लगा।



"वेलकम सर वेलकम ।" केवल इतना कहने में आबू सलेम का हलक सूख गया ।



० चीफ ने उसकी तरफ़ हाथ बड़ाते हुए कहा----"उम्मीद है नुसरत तुगलक ने फोन कर दिया होगा ।"



"ज.....जी-जी हाँ ।" हड़वड़ाकर हाथ मिलाने के साथ आबू सलेम यही मुश्किल से कह सका । उसने महसूस किया था चीफ़ का हाथ उससे भी कहीं ज्यादा मजबूत हैं।

"और तुमने तैयारियां भी पूरी कर ली होंगी?"
"त तैयारियां?" सलेम बौखला गया…"मैं समझा नहीं सर । अ.......आप केैसी तैयारियों की बात.....!"



उसने आबू सलेम की बात काटकर कंहा----""जैसी तैयारियों की बू तुम्हारे मुंह से आ रही है ।



"ज.....जी ।"' यह शब्द आबू सलेम के मुह से चीख की शकल में निकल था ।




“तुम्हारे मुंह से माउथ फ्रेशनर की खुशबू आ रही है मिस्टर आबू रात के वक्त फ्रेशनर वे इस्तेमाल करते जो चाहते हैं कि उनके मुह से आने वाली दुर्गन्ध को सामने वाला न सूंघ सके । ऐसे मौकों पर माउथ फ्रेशनर का इस्तेमाल केवल व्हिस्की की दुर्गध को दबाने के लिए किया जाता है ।"




इस एहसास ने आबू सलेम के सम्पूर्ण जिस्म में सनसनाहट-सी फैला दी कि चीफ ने उसकी चोरी पकड़ ली है । बौखलाहट में उसके मुंह से केवल इतना ही निकला----" स.........सोरी सर । रात के वक्त मैं - एकाध पैग…!"




"पीना कोई बुरी बात नहीं है ।" एक बार फिर चीफ़ उसकी बात काटकर कहता चला गया…- “बुरी बात है पीकर बहक जाना !! अपने काम से अपनी डूयूटी से विमुख हो जाना और मैं देख रहा दूं-अपनी डूयूटी के प्रति तुम पूरी तरह सजग भी हो, मुस्तेद भी । ऐसा न होता तो तुम्हें व्हिस्की की बदबू को हमसे छुपाने के लिए माउथ फ्रेशनर के इस्तेमाल तक का होश न रहता । तुम्हारे मुंह से आने वाली खुशबू इस बात का सुबूत है कि तुम पूरी तरह होश में ही नहीं बल्कि ,पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त भी हो ।”



"ज जी ।" चीफ के शब्दों ने उसे जबरदस्त राहत दी थी । मस्तक पर उभर आया पसीना सूखता चला गया था ।



" यहा की सुरक्षा व्यवस्था तो हमने देख ही ली, आओ…अब आगे चलें ।"’



”य. यस सर ।" हड़बडी से कहने के साथ वह उसकी अगवानी करता हुआ बोला…-" आइए!"’



चीफ चारों तरफ निगाह दौडातां हुआ आगे बढा ।


इंचार्ज दुविधा में फंस गया । उसने आबू सलेम के साथ यह 'तय' ही नहीं किया था कि उसे यहीं रह जाना है या उनके साथ चलना है ।

इस वक्त अपने विवेक का इस्तेमाल करने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था !
उसका इस्तेमाल करके उनके साथ ही आगे बढ़ गया ।


"तुम यहीं रहो ।" एकाएक चीफ़ ने ठिठकर कहा ।


"ज. . .जी ।” इंचार्ज जहाँ का तहाँ चिपककर रह गया ।


चीफ़ ने आबू सलेम से कहा…"क्या तुमने इससे यहीं पहरा देने के लिए नहीं कहा था?"



"क. . यहा था सर इसकी डूयूटी यहीं रहती है ।"



"फिर अपनी डूयूटी छोडकर यह हमारे साथ क्यों चल दिया?"


आबू सलेम को जवाब नहीं सूझ रहा था जबकि इंचार्ज ने जल्दी से कहा'--“स. . .सर मैंने सोचा…शायद आपको यही अच्छा लगे ।"



"कोई भी आए, तुम्हें अपनी डूयूटी पर मुरतैद रहना है ।


' परवाह नहीं करनी कि उसे क्या अच्छा या बुरा लगेगा । ये इमारत का मेन गेट है । तुम्हारा यहाँ रहना जरूरी है । यहाँ से हटना अपनी डूयूटी से कोताही मानी जाएगी । इंचार्ज ही मुस्तेद नहीं रहेगा तो दूसरों को मुस्तैद क्या रखेगा !!!


"ज. . .जी ।"


"चलो मिस्टर आबू !" कहने के साथ वह जागे बढ गया ।

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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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आबू सलेम ने राहत की सांस ली । इंचार्ज ने बात संभाल ली थी । हकीकत यह थी कि उसकी डूयूटी गेट पर नहीं रहती थी । उसका काम था-…-सारी इमारत में घूमते रहकर समूची सुरक्षा व्यवस्था की दुरुस्तगी चेक करते रहना । मगर, उसने यह भांपकर कि चीफ क्या चाहता है उसका पसंदीदा जवाब दे दिया था । अर्थात चीफ द्वारा सुरक्षा व्यवस्था की एक कमी चीफ द्वारा पकडी जाने से बाल-बाल बची थी ।



सर्च लाइटों के जरिए राउंड हाउस के समूचे लान को रोशन रखा गया था । हर तरफ का निरीक्षण करता हुआ चीफ धनुषाकार ड्राइव वे पर आगे बढता रहा।



उसके साथ-साथ चंल रहे आबू सलेम ने कहा----"' जैसा लान आप इस तरफ देख रहे हैं वेसा ही लॉन इमारत के चारों तरफ है । जिस तरह यहां चप्पे--चप्पे पर गाडूर्स तैनात हैं उसी तरह हर तरफ हैं ।"


" लान में तैनात कुल गार्ड्स की संख्या कितनी है?" चीफ ने पूछा ।


आबू सलेम को संख्या ठीक से पता नहीं थी मगर जवाब पूरे कॉन्फिडेंस के साथ दिया----"ऐक सौ पांच ।"

"गुड !"
आबूं सलेम उसे विभिन्न गैलरियों से गुजारने के बाद कंट्रोल में ले गया ।


वहां अनेक टी दी स्क्रीन के सामने बैठे गाडर्स की तरफ इशारा करता हुया बोला -----"इन स्क्रीन के जरिए चौबीस घटे इमास्त - के भीतरी हिस्से के चप्पे--चप्पे को देखा जाता रहता है । कहीं भी किसी भी स्थान पर होने वाली कोई भी गतिविधि यहाँ मौजूद लोगों की आखो से नहीं छुप सकती ।"



"तुम्हारे बेडरूम को कौन से स्क्रीन पर देखा जा सकता है?"


"स सॉरी ।” आबू सलेम को एक बार फिर हड़बड़ा जाना पड़।…- "उसे नहीं देखा जा सकता !"



चीफ के गुलाबी होठों पर मुसकान उभर आई । बोला----'' अभी तो तुमने कहा था वहां से इमारत के… '"



।सर ऐसा मैंने अपनी प्राइवेसी बनाए रखने के लिए किया है ।"



"ऐसी ही उम्मीद थी हमें कि तुमने अपनी प्राइवेसी बनाए रखने के लिए जरूर कुछ न कुछ किया होगा , इसलिए कहीं और के बारे मे ना पुछकर केवल तुम्हरे बेडरूम के बारे में पूछा । वह बात जरूरी भी है स्वाभाविक भी । इसमें कोई बुराई नहीं है । कम से कम अपनी प्राइवेसी तो आदमी को बनाकर रखनी ही पड़ती है ।"


काफी कोशिश के वावजूद आबू सलेम समझ नहीं पया कि वह सब चीफ ने व्यंग्य में कहा है या उसके दिल में भी वही बात है जो जुबान कह रही है, इसलिए चुप ही रहा !!!



“खेर ;" चीफ बोला--" क्या मैं कैदियों को देख सकता हू?"



"'इधर आइए ।" कहने के साथ आबू सलेम उसे कंट्रोल रूम के बाएं कोने में रखी स्क्रीन के नजदीक ले गया ।



उस स्क्रीन के सामने- एक नहीं बल्कि पूरी तरह मुरतैद नजर आरहे दो गार्ड बैठे थे ।




चीफ ने स्क्रीन पर नजर डाली । विजय, अलफांसे , विकास और नजमा एक-दूसरे से काफी अलग-अलग दीवारों के नजदीक सोए पड़े थे । बीच में पड्री थी----जेक की लाश !! उसके चारों तरफ खून बिखरा हुआ था ।



"यहा से हर पल उनकी एक---एक हरकत देखी जाती रहती है ।" आबू सलेम ने कहा ।



होंठों पर मुस्कान लिए चीफ बोला--"कितने आराम से सो रह हैं !!!!!



"चंद कोशिशे की थी उन्होंने जैसे कांच की दीवार को तोड़ने का प्रयत्न किया था !!!!
छत में मौजूद उस रास्ते को खोलने का प्रयास किया था जिसके जरिये उन्हें वहां पहुचाया गया था मगर.......!"
"वह रास्ता कहाँ खुलता है?”


"मेरें बेडरूम में ! उसके फर्श ही से वे सीधे इस कमरे मे पहुंचे हैं !"



"गुड ।"


"जब यह बात उन लोगों की समझ में आ गई कि सारी कोशिशे व्यर्थ हैं तो थक-हारकर लेट गए !"



“और करते भी क्या बेचारे । खैर क्या यहाँ उनकी आवाजे सुनने का भी कोई प्रबंध हे?”



"सौरी सर । ऐसा इंतजाम नहीं किया गया है ! "


"अपने जेहन के कम्पुटर में नोट-करो-कमी नम्बर वन । उनकी आवाजें सुनने का प्रबंध भी करो । उस प्रबंध की भनक उन्हें नहीं लगनी चाहिए । इससे यह भी पता लगता रहेगा कि वे क्या सोच रहें हैं ! "



"जी । कहते वक्त मारे खुशी के आबू सलेम मन ही मन बल्लियों उछल रहा था । कारण-चीफ़ ने कमी जरूर पकड़ी थी मगर उसे पकडकर जो उसने कहा था उससे जग जाहिर था ----वह कैदियों को यहीं रखने के पक्ष में है अर्थात सुरक्षा प्रबंधों से संतुष्ट है, ।

अब आबू सलेम को अपनी तरक्की ही तरक्की नजर आ रही थी ।



" हम उनसे बाते करना चाहते हैं !" चीफ ने इच्छा व्यक्त की ।



"जरूर मेरे साथ आइए ! ” कहता हुआ आबू सलेम उसे कंट्रोल रूम से जुडे एक अन्य कमरे में ले गया । वहाँ मौजूद ऊंची पुश्त वाली दो चेयर्स और उनके सामने पडी सेटर टेबल की तरफ इशारा करता हुआ बोला--" आप उनमे से किसी चेयर पर बैठ जाइए । मैं कैमरा आंन कर देता हूं । इससे वे न केवल कमरे को कांच की दीवार के पार हाल में लगे पर्दे पर आपको देख सकेंगे बल्कि आपकी आवाज भी सुन सकेंगे । ठीक उसी तरह, आप भी उनकी आवाजे सुन सकेगें । नुसरत और तुगलक साहंब भी उनसे इसी तरह बात करके गए !"



"नहीं । मैं उनसे रुबरु बात करना चाहता हूं ।"



"ओके । मैं आपको उस हाल में लिए चलता हूं जहाँ पर्दा लगा है !"



"फ..... फिर?"
"हाल की सुरक्षा व्यवस्था मैं देख चुका हू । काफी पुख्ता है । वे नहीं निकल सकते । अब उस कोठरी के गेट नम्बर वन यानी जिसके जरिए उन्हें वहाँ पहुचाया गया, को चेक करना वाकी है । तुमने अभी-अभी बताया-वह तुम्हारा बेडरूम है । बहाँ चले?”



"व. . .व. . यहाँ ।” केवल दो अक्षरों का वह शब्द जब जादू सलेम के मुह से निकला तो दोनो अक्षर अलग-अलग होकर तितर-बितर नजर आए । मस्तक पर पसीना उभर आया था । रोकने की लाख चेष्टाओं के बावजूद वह अपने चेहरे पर उगाने बाली हवाइर्यो को नहीं रोक पाया था ।



चीफ ने उसे ध्यान से देखते हुए पूछा-"एनी प्रोब्लम?" '



'"न. . जो । नो सर । नो प्रॉब्तम ।"



"प्रॉब्लम तो है कुछ । तुम्हारे चेहरे पर साफ नजर आ रही है ।" चीफ ने कहा'……"ए.सी. चल रहा है यहाँ । अच्छी खासी ठंड है मगर तुम्हारे मस्तक पर अचानक पसीना झिलमिला उठा है । वो सुर्खी , वो रौनक भी भी अचानक गायब हो गई है जो कुछ देर पहले तुम्हारे चेहरे की आभा थी ।"


आबू सलेम की आंखों के सामने हिना का नंगा जिस्म तैर रहा था । उसने कहा----" ऐसी कोई बात नहीं है सर । बात केवल ये है कि पहली बात'-जिस कमरे में ये लोग कैद हैं उस कमरे की तरफ से मेरे बेडरूम की तरफ़ खुलने वाले दरवाजे को खोलने का कोई प्रवध ही नहीं है । मैं अपको बता ही चुका है । वे कोशिश करके हार मान चुके हैं । उस दरवाजे को केवल मेरे बेडरूम की तरफ से खोला जा सकता है । यदि इस असंभव बात को संभव मान भी ले कि वे यहाँ से किसी तरह मेरे बेडरूम में पहुच सकते हैं तो मैं दावे के साथ का सकता है वे मेरे बेडरूम से बाहर नहीं निकल सकेंगे ।"



" दावे की वजह?"



"पे रिमोट ।" उसने चीफ को कन्विस करने के लिए जेब से रिमोट निकालकर दिखाया----" मेरे बेडरूम से बाहर निकलने वाला एक मात्र दरवाजा इस रिमोट से कंट्रोल होता है, यानी इसी से लौक होता है और इसी से खुलता है । ये हमेशा मेरी जेब में रहता है और. . यदि किसी भी तरफ से उसके साथ किसी ने जबरदस्ती करने की कोशिश की तो सारे राउंड हाउस में खतरे का सायरन बज उठेगा ।"


अपनी आंखें आबू सलेम के चेहरे पर गडाए रखकर चीफ ने कहा ---" अगर ये सब सच है तो इंतजाम तो सचमुच पुख्ता हैं मगर.........!!!
"मगर? "


"तुम्हारी हर बात का मतलब केवल एक ही है । यह कि मैं तुम्हारी बातों ही से संतुष्ट हो जाऊं । बेडरूम में जाने की बात न करूं ।"


“ज...जी ऐसी तो कोई बात नहीं है ।"


"तो चलो । मैं उसके फर्श में बने गोखले को खोलकर इनसे बाते करना चाहता है ।" काने के बाद चीफ एक पल के लिए भी यहाँ रुका नहीं था बल्कि तेज कदमों के साथ दरवाजे की तरफ़ बढ़ गया ।


हड़बड़ाए हुए आबू सलेम को उसके पीछे लपकना पडा ।


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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अब पसीना उसके चेहरे ही पर नहीं बल्कि सारे जिस्म पर भरभरा उठा था । उसकी चिपचिपाहट वह साफ महसूस कर रहा था ! लग रहा था----"जैसे नसों में दौडता उसका अपना खून नन्ही- नन्ही चीटियों में तब्दील हो गया है और वे चीटिया उसे काट रही हैं । आंखों के समक्ष रह-रहकर अंधेरा छा रहा था । यह विचार उसके होश उडाए हुए था कि हिना को देखकर चीफ पर क्या प्रतिक्रिया होगी । गनीमत थी तो केवल यह कि वह अपनी कांपती टांगो पर चल पा रहा था गश खाकर गिर नहीं पड़ा था ।


कंट्रोल रूम से बाहर निकलकर चीफ़ अचानक ठिठका ।


उस एक पल के लिए तो आबू सलेम के दिल ने मानो धड़कना ही बंद कर दिया । जेहन में खून की सप्लाई बंद हो गई ।


चीफ ने कहा… मुझें रास्ता मालूम नहीं है, इसलिए तुम आगे चलो ।" ' चीफ का हुक्म था ।


हुक्म पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस के चीफ का था, इसलिए उसे वेैसा भी करना पड़ा जबकि उसे लग रहा था-अपनी टागों पर वह ज्यादा देर नहीं चल सकेगा और तब. . .ज़ब यह बात उसकी समझ में आ गई कि अब यह चाहे जितने "जतन" कर ले, चीफ उसके बेडरूम में जाकर ही मानेगा तो उसने अपने बिखरे हुए हौंसले को समेटा । सोचा'-…अब दुनिया की कोई ताकत चीफ को हकीकत से रूबरू होने से नहीं रोक सकती । सो, जो कुछ देर बाद उसे अपनी आंखों से देखना है वह बता ही दिया जाए तो बेहतर है । बात बताने से थोडी हल्की तो हो ही जाएगी । ऐसा सोचकर यह अपने बेडरूम के की दरवाजे के बाहर ठिठका बोला----", कुछ कहना चाहता हूं सर ।"
"बोलो !"


"आपने ठीक समझा था ! मुझे आपके इस कमरे में पहुचने पर प्रोब्लम होगी !"



"कैसी प्रॉब्लम?”



"मुझे लड़कियों का शौक है और. .आज तो मैं बैसे भी ज्यादा हो खुश था, इसलिए शाम होते ही उसे बुला लिया । जिस वक्त तुगलक साहब का मेसेज मिला उस वक्त में अपने बेडरूम में उसी के था !"

, "और इस वक्त भी वह अंदर है?"


"जी !"


"दरवाजा खोलो !"


"ज.......जी !"


इस बार चीफ़ के हलक से गुर्राहट… -सी निकली------"मैंने कहा…दरवाजा खोलो ! "



अव रिमोट का इस्तेमाल करने के अलावा आबू सलेम के पास कोई चारा नहीं था । यह तो आबू सलेम को लग गया कि चीफ उखड चुका है मगर उसके लहजे से यह अनुमान वह अब भी नहीं लगा पा रहा था कि लड़की को कमरे में बुलाने को वह कितना गेर वाजिब मानेगा। एक उम्मीद थी---जिस तरह उसने उसके शराब पीने को "हलंका' लिया था उसी तरह लड़की की मौजूदगी को भी हल्का ले सकता था ।



दरवाजा खुला ही था कि…-


अंदर से हिना ने दैड़ कर दरवाजे की तरफ़ आते हुए कहना चहा--- "आवू डार्लिग तुम मुझें यहाँ अकेली छोडकर ....! "


वस । इतना ही कह सकी वह ।


आगे के शब्द खुद उसी के हलक में घुटकर रह गए ।


ऐसा आबू सलेम के साथ एक अजनबी को देखकर हुआ था, इसलिए हुआ था क्योंकि वह अभी तक बिना कपड़ो के थी । मुंह खुला का खुला रह गया। सूझा ही नहीं उसे । युं ही खडी रह गई !



आबू सलेम को ही चीखना पड़ा--- "तू अभी तक इसी पोजीशन में है ******* । कपडे पहन !"
आबू सलेम को ही चीखना पड़ा--- "तू अभी तक इसी पोजीशन में है ******* । कपडे पहन !"


और वह चेहरा ढांप कर वापस भागी । फर्श पर बिखरे अपने कपडे उठाकर बाथरूम में समा गई । जलालत और गुस्से की ज्यादती के कारण आबू सलेम का चेहरा भभक रहा था । चीफ ने कहा----"'ये तो हिना है । पाकिस्तानी फिल्म इंडरट्री की हीरोइन नः वन ।"


"ज.....जी ।"



"बात समझ में आ गई । शोक को भी टॉप पर जाकर' पूरा करते हो !


आबू चुप ही रहा। बोलता भी तो क्या बोलता? कुछ सूझा ही न ।


कुछ देर बाद हिना कपड़े पहनकर बाथरूम से बाहर आ गई । गर्दन झुकाए हुए थी वह । उनसे नजरे नहीं मिला पा रही थी । आबू के हलक से गुर्राहट-सी निकली----" जा यहाँ से । मेरे आदमी तुझे बाहर छोड़ देगे ।"



हिना दौड़ती हुई कमरे से बाहर चली गई ।



आबू सलेम ने रिमोट के इस्तेमाल से दरवाजा वापस बंद करते हुए - कहा…-"' यहां कोइ भी आए सर मगर उसकी हैसियत बाजारू लड़की से ज्यादा नहीं होती ।"



"फ़र्श से मौजूद दरवाजा खोलो ।" चीफ ने उसकी बात पर ध्यान दिए वगैर हुक्म दिया ।



अबू सलेम ने आगे बढ़कर ए..सी का स्विच आंन कर दिया । दोनों पत्थर किवाडों की तरह नीचे की तरफ झूल गए । चीफ मोखले के नजदीक पहुचा । नीचे झांका । चारों ज्यों त्यों सोए पड़े थे । कुछ देर तक उन्हें देखता रहने के बाद चीफ घूमा ।

बोला…"बंद कर दो ।"


आबू सलेम ने ए.सी. का स्पिच आँफ कर दिया । मोखला बंद होते ही चीफ़ ने कहा…"चारों को मेरी मर्सडीज से पहुंचने का इंतजाम करों ।"



"ज......जी ?" आबू सलेम के हलक से चीख भी निकल गई ।
"तुम्हारी सुरक्षा व्यवस्था से मुझे कोई खास शिकायत नहीं है ।" चीफ़ बहुत ही शांत स्वर में कहता चला जा रहा था…- "बल्कि कहना चाहिए-घूमने के बाद मुझें पूरा यकीन हो क्या कि ये लोग चाहे जितनी ....


.......कोशिश करते, यहाँ से फरार नहीं हो सकते थे मगर लड़की !! कहकर वह खुद ही रुका, चहलकदमी सी करता हुआ बोला…“यह शोक इतना घातक है मिस्टर सलेम कि दुनिया के बड़े-बडे सूरमा अगर मात खाए तो बस यहीं खाए !"



"'म...मैं इस शौक को छोड़ दूगा सर ।"



"भरमाने की कोशिश मत करों मुझे । यह वह शौक है जो आदमी के बच्चे को अगर एक बार लग जाए तो खुद उसके चाहने के बाव नहीं छूटता। ठीक वेसे ही जैसे मांसाहारी शेर शाकाहारी नहीं हो सकता ।"


“में आपसे कोई बहस नहीं करना चाहता सर । आपकी बात बडी - करता हूं मगर यह वायदा जरूर कर सकता हू कि जब तक ये लोग मेरी कैद में है तब तक कोई राउंड हाउस का लोहे वाला गेट पार करके अंदर नहीं आ सकता ।”



"ऐसा कोई वायदा करने की तुम्हें जरूरत ही नहीं है ।”


“क. . .क्यों सर?”



"क्योंकि मैं इन्हें सीक्रेट सर्विस के हेडक्वार्टर से ले जाने का फैसला कर चुका हू ।"


“स...सर ।"



"मिस्टर आबू !" चीफ ने उसे कुछ भी कहने का मौका दिए बौर बहुत ही पैने लहजे में कहा----" चीफ एक बार जो फैसला ले लेता है वह बदला नहीं करता । फैसले को बदलवाने की कोशिश के तहत तुम जो भी कहोगे, मेरा वक्त जाया करना माना जाएगा और. . . तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं। यहां लड़की लाना शायद उतना बड़ा जुर्म नहीं था जितना मेरा टाइम जाया करना है । उस जुर्म की सजा से बचना चाहते हो तो जो का रहा हूं उसका पालन करने के अलावा न और कुछ करो, ना कहो । मैंने कहा है---" इन्हें मेरी मर्संडीज में भिजवाने का प्रबंध करो ।"


"सर, क्या आप इन्हें यहां से अकेले ले जाएंगे?" यह पूछने के अलावा आबू सलेम और कुछ कहने का साहस ही न जुटा सका ।


“बेहोश लोग चाहे जितने हों, किसी का कुछ नहीं बिगाड सकते ।"



"य. . .यानी ?"'


"मर्सडीज में पहुचाने से पहले इन्हें किसी मैं तरह बेहोश करना होगा !"
विकास को लगा-उसकी चेतना लोट रही है । उसी समय छपाक से उसके चेहरे पर ढेर सारा पानी आकर गिरा । मस्तिष्क कुछ और सक्रिय हुआ । बेहोश होने से पूर्व का दृश्य दिमाग के पर्दे पर उभरने लगा ।



वे सब आवूसलेम कीं कैद में थे।



कोई सो रहा था, कोई उंध रहा था । अचानक सभी ने बेचेनी- सी महसूस की । खुद उसे सांस लेने में कठिनाई भी हो रही थी । उछलकर खड़ा हो गया था यह । देखा--सारे कनरे में अजीब-सी दुर्गध वाला सफेद धुआं भरा हुआ था और उस धुएं के ब्रीच छटपटाने वाला वह अकेला नहीं था । विजय, नजमा और अलपांसे की हालत भी उसी जैसी थी । विजय का तो वाक्य भी उसके कानो में पडा था…"पता नहीं इन नमूनों के पैदा होने से पहले कितने हरामी मरे थे । साले आराम से सोने भी नहीं दे रहे ।"



जवाब में अलफासे की आवाज गूंजी थी…"वे हमें बेहोश करने की कोशिश कर रहे हैं?"



कुछ कहने के लिए मुह विकास ने भी खोला था की कामयाब न हो सका । उससे पहले ही आखों के सामने अंधेरा छाने लगा था और फिर उसने खुद को धम्म से कमरे के फर्श पर गिरता हुआ महसूस किया ।



- और फिर, उसके बाद क्या हुआ…वह खुद नहीं जानता ।



तव के बाद अब ही उसकी चेतना लौट रही थी ।



महसूस किया-उसकी पुतलियां कांप रही हैं । इच्छा- -शक्ति का प्रयोग करके आखें खोली ।



सामने हैरी को देखते ही उस सोफे से उछलकर खडा हो गया जिस पर अब तक बैठा था ।


हैरी के हाथ में प्लास्टिक की एक बाल्टी थी । वह बाल्टी जिससे भरा पानी उसने विकास के जिस्म पर, खासतौर पर चेहरे पर डाला था ।


सामने खडा लड़का वहुत ही मोहक अंदाज में मुस्करा रहा था ।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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