हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma) complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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उस वक्त वे गेलरियों से गुजर रहे थे जब आबू सलेम का मोबाइल बजने लगा । व्हील चेयर के साथ चलते-चलते आबू सलेम ने अपनी जेब से मोवाइल निकाला जो किसी भी सूरत में "मेच बाँक्स' से बड़ा नहीं था । एक नजर मोबाइल की स्कीन पर डाली । आवाज के साथ वही एक नाम बार-बार स्पार्क कर रहा था…-संगीता चावला !!

उस नाम को पढकर आबू सलेम के गुलाबी होंठो पर बडी ही प्यारी मुस्कान उभरी थी !


उसका धंधा चौपट हो जाएगा । मैं उसे फायदा उठाने दे रहा हुं , वह मुझे । यह अलग बात है कि हम दोनों ही अपने सम्बधों को दोस्ती या प्यार के आवरण में ढांपे रखते हैं ।"


क्या कहता मोहम्मद इकराम?


चुप ही रहा ।


अबू सलेम नंगी सच्चाई को कबूल कर रहा था ।



फिर, अनेक गैलरियों से गुजरने के बाद जब व्हील चेयर एक कमरे में दाखिल हुई तो मारे हैरत के मोहम्मद इकराम उछल पड़ा । एक पल को तो ऐसा लगा जैसे जादू के जोर से उसे उसके ड्राइंग रूम में पहुचा दिया गया हो ।



दीवारों पर वैसा ही पेंट । वेसा ही फर्नीचर । उसके ड्राइंग रूम में रखे फोटो तक मोजूद थे वहाँ ।



"य. . .ये सब क्या है?” इकराम ने बौखलाए से अंदाज में चारों तरफ देखते हुए पूछा ।


आबू सलेम ने मुस्कराते हुए पूछा- "तुम्हारा ड्राइंग रूम लग रहा न?"



"ह....हॉं ! मगर....."


"फिल्म लाइन से जुड़े हो । मंत्री हो इंडरुट्री के । किसी और आदमी के साथ यह सब हुआ होता और वहं आश्चर्य व्यक्त करता तो बात समझ में जाती । मगर तुम.. तुम्हें इतना आश्चर्य क्यों हो रहा है । जब लोग स्टूडियोज मेॉ स्विजरतैड की वादियाँ बना देते हैं तो क्या हम तुम्हारा बेडरूम नहीं बना सकते?


कितना टाइम लगता है ये सब बनाने में?" "



" लोकिन मेरे ड्राइंग रूम का सेट यहां क्यों बनाया गया है?"


" बाताते हैं बताते हैं ।" कहने के बाद चमचों से कहा…"खड़े क्यों हो भाई? अपना काम करो?”


हड़बड़ाकर वे इस तरह काम में जुट गए जैसे यदि एक पल की भी देरी की तो कत्ल कर दिए जाएंगे ।



करना ही क्या था उन्हें? बस, मोहम्मद इकराम को व्हील चेयर से उठाकर सोफे पर बैठाना था । सो, पलक झपकते ही कर दिया ।


दो उनका काम खत्म होते ही आबू सलेम ने कहा-"टीम को मेज दो !
वे बगैर कुछ कहे व्हील चेयर को साथ लिए कमरे से बाहर चले गए ।



मोहम्मद इकराम समझ नहीं पा रहा था यह सब हो क्या रहा है । वह पूछना चाहता था मगर हिम्मत नहीं पड़ रही थी । हालाकि आबू सलेम ने अभी तक उससे कोई सख्त बात नहीं की थी । उस वक्त तक मोहम्मद इकराम अपने सवाल पूछे, न पूछे की 'उहापोह' में ही था कि एक साथ अनेक लोग कमरे में प्रविष्ट हुए !


उनके साथ एक कैमरा भी था। कैमरा स्टैंड भी ! ट्रॉली भी। रिफ्लेक्टर भी !



सूचना एवं प्रसारण मंत्री था मोहम्मद इकराम । देखते ही समझ गया…वह किसी टी.वी. चेनल की शूटिंग टीम थी ।



वे सब बगैर कुछ कहे अपने-जपने काम में जुट गए ।


जैसे जो कुछ होना था, पूर्व निर्धारित था !



उस वक्त कैमरामैन मोहम्मद इकराम के ठीक सामने स्टैंड पर कैमरा फिट कर रहा था ! साइडों में लाइटें और रिफ्लेक्टर लगाए जा रहे थे जब मोहम्मद इकराम चीख…सा पड़ा -------" बाताया क्यों नहीं जा रहा मुझे । ये सब हो क्या रहा है?"



- आबू सलेम ने संक्षिप्त सा जवाब दिया---- " शूटिंग की तैयारी ।"



' वो तो ये लाइट, ये कैमरा, ये रिफ्लेक्टर आदि देखरकर मैं भी समझ गया । मैं ये भी समझ गया मेरी मौजूदगी मेरे ड्राइंग रूम में दिखाने की कोशिश की जाएगी मगर मैं ये जानना चाहता हूं ----- ये सब हो क्यों रहा है? कौन से चैनल से है आप लोग ? मेरे इंटरव्यू का आप क्या उपयोग करेंगे !


क्योंकि आबू सलेम ने कोई जवाब नहीं दिया-इसलिए किसी ने जवाब नहीं दिया । सभी बस अपने काम में जुट गए।



आबू सलेम आगे बढा । एक लड़के के कं पर हाथ रखा । उसे साथ लिए मोहम्मद इकराम के नजदीक पहुंचा । बोला----" इनका नाम खालिद मिस्त्री है । इस टीम का ये डायरेक्टर भी है, राइटर भी।" थोड़ा-सा विराम देने के बाद उसने खालिद मिस्त्री से कंहा---" इनके डायलॉग दो ।"


खालिद मिस्त्री ने जेब से एक कागज निकलकर इकराम को पकडा दिया !
थोडा भन्नाए, थोड़ा दहशत में डूबे मोहम्मद इकराम ने कागज़ लिया । उसकी तहें खोली और पढा ।



लिखा था…" जी हां । मैं आज भी जम्मू में कहे गए अपने शब्दों पर कायम हूं ! बेवजह हंगामा मचा रखा हेिन्दू कटटरपंथियों ने आखिर क्या गलत कह दिया मैंने । मैं फिर कहता हूं , जोर जोर देकर कहता हूं जम्मू धाटी में मुसलमानों को बसा देना चाहिए और कश्मीर में हिन्दुओं को ! मुसलमानों पर हिंसा करके ये मेरी ही बात सच साबित कर-रहे है । जम्मू में वे लोग इतना बवाल इस वजह से ही कर रहे हैं क्योंकि वहां मुस्लिम आबादी कम है ।"



पढ़ते पढ़ते मोहम्मद इकराम का चेहरा सुर्ख हो उठा । कनपटियां गर्म हो गई । चेहरा ऊपर उठाते ही मुंह से गुर्राहट की निकली----" ये सब नहीं कहूंगा ।"


" क्यों?"


"इ. . .इन. ..इन शब्दों से तो हिन्दुस्तान में आग लग जाएगी ।'"


‘ वो तो लगी पडी है ।”


“त. . .तो. . जो ये शब्द उस आग में घी का काम करेगे । आग और भडक जाएगी ।"



"मुमकिम है वही हो जो तुम सोच और कह रहे हो ।" आबू सलेम लहजा अभी भी पूरी तरह शांत और संयत था…"मगर एक मुस्लिम नेता होने के नाते न तुम्हें इतना भड़कना बाकी न ही सोचना चाहिए । सोचने का काम डायलाग राइटर का है या डायरेक्टर का । खालिद मिस्त्री है न । यह ये सोचेगा कि कौन से डायलॉग का ओडियंस पर क्या रियेक्शन होगा । तुम क्यों अपना भेजा खराब करते हो ।"



"नही । मैं कैमरे के सामने ये सब किसी कीमत पर नहीं कहुंगा ।" कहने के साथ उसने गुस्से में कागज एक तरफ फेंक दिया था ।



आबू सलेम ने अब भी शांत स्वर में कहा ---" मुझे दुख है । तुम भेजे का इस्तेमाल नहीं कर रहे हो ।"


"क...क्या मतलब?"

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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मतलब समझाने से पहले उसने जेब से डनहिल का पैकेट और लाइटर निकालकर एक सिगरेट सुलगाई । हल्का सा कश लगाने के बाद बोला -----" पहले यह सोचो तुम्हें अभी तक क्यो जिंदा रखा गया है ?"

मोहम्मद इकराम का दिल धाड़-धाड़ करता रहा।


“मार क्यों नहीं दिए गए और मारने के लिए खास एफटर्स करने की जरूरत भी नहीं थी । तुम्हारी दोनों टांगों में दो गोलिया लग चुकी थी । समय रहते उन्हें न निकाला जाता तभी मर जाते उनके जहर ही से । मगर ऐसा नहीं होने दिया गया । बाकायदा आपरेशन करके गोलियां निकाली गई । क्यों? सोचो मिस्टर इकराम । अगर तुमसे कैमरे के सामने यह न कहलवाया जाना होता तो तुम पर क्यों इतना खर्चा किया जाता?"


इकराम पर कुछ कहते न वन पड़ा ।


"अब एक बात और सोचो ।” आबू सलेम का अंदाज ऐसा था जैसे बच्चे को समझा रहा हो----" अगर तुम खालिद मिस्त्री के लिखे डायलाग नहीं बोलोगे तो किस काम के रह जाओगे । क्यों लादे फिरेंगे तुम्हें । मार क्यों नहीं दिए जाऊंगे ।"’


मोहम्मद इकराम के चेहरे का रंग फक्क से उड़ गया । मुह से जो आवाज निकली वह खौफ से लबरेज थी…“अ. ..आप मुझे मार डालने की धमकी दे रहे है ।"


“गलत बात । ये वैसी ही गलत बात है जैसी कटृटरपंथी हिन्दुओं ने तुम्हारे साथ की । कहने का मतलब तुम्हारा कुछ अोर था, यार लोग कुछ और ले उडे । उसी तरह समझाने वाले के किसी काम के नहीं रहते तो वह हमारा बोझा ढोता और समझ तुम यह रहे हो…मैं तुम्हे धमका रहा हू ।



"काम का तो मैं तुम्हारे यह बयान देने के बाद नहीं रहूंगा ।"



“बिल्कुल करेक्ट । पहली बार भेजे का इस्तेमाल किया तुमने ! मुझे खुशी हुई । ज्यादातर लोग सामने वाले से अपना काम करवाने के बाद उसे रव्रत्म कर देते हैं । बात वही आम और गुठली बाली है । मगर मैं तुमसे वादा करता हूँ । तुम्हारे साथ ऐसा नहीं होगा । गुठली बनने के बाद फेंक नहीं दिया जाएगा तुम्हें ।"



"क्या गारंटी है?”


एक पल के लिए सुर्ख हुआ अबू सलेम का चेहरा ।


मगर । केवल एक ही पल के लिए । अगले पल उस पर सामान्य भाव उभर आए । सिगरेट में एक कश लगाया । गुलाबी होंठों पर मुस्कान बिखेरी । उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला----“मेरे ख्याल से इतनी गारंटी काफी होनी चाहिए कि यह बात आबू सलेम कह रहा है !"
मोहम्मद इकराम पर बोलने के लिए जैसे कुछ रह नहीं गया ।


केवल एक पल के लिए आबू सलेम के चेहरे पर दौड़ी सुर्खी ने उसे बता दिया था----"मुंह से निकला एक भी गलत लफ्ज उसकी जान ले सकता है । जान उसे बैसे ही साफ-साफ खतरे में नजर आ रही थी !


उसे चुप देखकर आबू सलेम ने खालिद मिस्त्री से कहा----" 'डायलॉग वाला पेपर उठाकर दे दो ।"


खालिद मिस्त्री ने यह काम इस तरह किया जैसे, रोबोट ने किया ।



कागज़ लेते वक्त मोहम्मद इकराम के दिमाग में अंधड़ चल रहे थे । समझ नहीं पा रहा था क्या करे। एक तरफ जान थी दूसरी तरफ़ जानता था-पूरा भारत सुलग उठेगा ।


"डायलॉग्स याद कर तो ।" आबू सलेम ने कहा…“ज्यादा रिटैक हुए तो तुम्हें दिक्कत हो जाएगी ।"


सहमे हुए मोहम्मद इकराम की नजरे कागज पर दौडने लगी ।


उसकी नज़रे भले ही कागज पर दौड रही पी मगर दिमाग कागज पर लिखे अक्षरों पर नहीं था ।


एक ही बात सोच रहा था वह अबू सलेम की बात मान लूं या नहीं ।



आबू सलेम उसकी वर्तमान मानसिक अवस्था को अच्छी तरह समझ रहा था, इसलिए अराम से उसके सामने वाले सोफे पर बैठता हुआ बोला…"मिस्टर इकराम, कुछ देर पहले संगीता के संबंध में बात करते वक्त मैंने तुम्हें समझाया था ----- लोग एक दूसरे का फायदा उठा रहे हैं । ये दुनिया यूं ही चल रही है ! हालांकि तुम जानते हो कि तुम्हारे साथ इस स्टेटमेंंट से हमें क्या फायदा होगा मगर तुम्हें इसके बोरे में नहीं सोचना चाहिए । तुम्हें यह सोचना चाहिए---- ' तुम्हें क्या फायदा होगा?' नहीं सोच पा रहे तो मैं बता देता हू-तुन्हें यह फायदा होगा कि तुम जिंदा रहोगे । जान है तो जहान है । जब तुम रहोगे ही नहीं तो तुम पर क्या फ़र्क पडेगा इस बात से कि भारत में क्या हो रहा है !


मौहम्मद इकराम का जेहन अब सांय-सांय का रहा था ।
"दूसरी, अंतिम और सबसे वड़ी बात ।" आबू सलेम ने अपने एक-एक शब्द पर जोर दिया ----- "'हमारा काम तुम्हरे "न रहने' पर भी नहीं रुकेगा । तुम जानते हो । बॉलीबुड में ऐसे ऐसे मेकअपमेन भी है जो अपनी मेहनत से इकराम भी बना देगे । वाकी काम कैमरामेन कर देगा । ऐसे एंगल से शूटिंग की जाएगी कि देखने वाले बिल्कुल नहीं ताड़ पाएंगे कि बोलने वाला इकराम नहीं है । इसी दुनिया में जुड़े होने के नाते तुम्हें मालूम है कि टेक्नीशियंस ऐसा कर देंगे । बोलो-----'' ऐसा कर देते या नहीं?"


“क. . कर देगे ।" ये शब्द मोहम्मद इकराम के मुह से बडी मुश्किल से निकले ।



"फिर क्यों मुफ्त में जान गंवाने पर आमादा हो?”



मोहम्मद इकराम पर कुछ कहते न वन पड़ा ।


किसी और बात ने मोहम्मद इकराम पर असर किया हो या न किया हो मगर अंतिम बात ने जरूर किया था ।



यह बात झटके से उसकी समझ में आ गई थी कि अपनी कुरबानी देकर भी वह इन लोगों को अपने मंसूबे पूरे करने से नहीं रोक सकेगा ।



"फैसला करने के लिए केवल दस मिनट देता दूं तुम्हें ।" कहने के साथ आबू सलेम ने एक सिगरेट सुलगाई-----"मैं कई बार देख चुका हू। मेरी एक सिगरेट दस मिनट में खत्म होती । तुम इसके अतिंम सिरे को मेरे जूते से कुचलने को मोका न ही दो तो बेहतर हेगा ।”



इसके बाद कमरे में खामोशी छा गई ।

आबू सलेम आराम से सिगरेट पीता रहा। उसकी सिगरेट पर नजर गडाए मोहम्मद इकराम के चेहरे पर पसीने की बूंदे उभरने लगी । खालिद मिस्त्री सहित कमरे में मौजूद अन्य लोगों को जैसे इस सबसे कोई मतलब ही नहीं था । "



वे सब अपने काम में जुटे रहे थे ।



सिगरेट तब तक आधी ही हुई थी जब इकराम ने टूटे स्वर में कहा----" मैं तेयार हूं ।"

"गुड ।” आबू सलेम ने कहा…“अपने फैसले के लिए मे तुम्हें बधाई देता दूं


“म...मुझे यह सब याद करना पडेगा ।" मोहम्मद इकराम ने कागज की तरफ इशारा किया ।
"आराम से करों । कोई जल्दी नहीं है । मैं यहीं बैठा हूं !



वे शब्द याद करने में इकराम ने आधा धंटां लिया । उसके बाद शूटिंग शुरू हुई मगर दो घंटे की कोशिश के बावजूद ओके शाट नहीं लिया जा सका । बार-वार रिटेक होते रहे । कभी मोहम्मद इकाराम डायलॉग ठीक सें नहीँ बोल पाता था कभी खालिद मिस्त्री उसके फेस एक्सप्रेशन से संतुष्ट नहीँ था तो कभी कैमरामेन को भरपूर लाइट नहीं मिल पाती थी । वह बीसवां रिटेक था जो लगभग ठीक ही चल रहा था किं अचानक आबू सलेम का मोबाइल एक बार फिर बज उठा ।


अबू सलेम ने आन करने के साथ कहा----" यस ।"

"जैक बोल रहा हूं भाई जी ।" दूसरी तरफ से आवाज आई ।

"काम हो गया?" आबू सलेम ने पूछा ।


" हां भाई जी । उसके साथ एक ऐसा काम भी कर दिया है जिसके बारे में सुनकर शायद आपको अच्छा लगेगा ।"


" ऐसा क्या काम कर दिया?"


"विजय विकास इस वक्त मेरे कब्जे में हैं ।"



"क.. .क्या?” सचमुच उछल पड़ा आबू सलेम ---" क्या तुम उन्हीं विजय-विकास की बात कर रहे हो, जो... ।"



" हां भाई जी । उन्हीं की बात कर रहा हू मैं । इस वक्त वे पूरी तरह मेरे कब्जे में हैं !"


आबू सलेम ने बुरी तरह उद्विग्न स्वर में पूछा…"हो कहां तुम? "


दूसरी तरफ से आवाज आई---"मैं वहीं आ रहा हू।" कह कर आबू सलेम भागता- सा कमरे से बाहर निकल गया ।
अगले पल जो हस्ती नमूदार हुई । जिसने बेडरूम की चौखट पार ड्राइंग रूम में कदम रखा उसे देखकर विकास और अलफॉसे के हलक से चीखें निकल गई । आश्चर्य से सराबोर थीं वे चीखें ।


कारण ।


वे अपने सामने संगीता को देख रहे थे ।

नजमा कहीं थी ही नहीं ।
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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विकास जैसे शख्स की आखें मारे हैरत के फ़टी की फटी रह गई थी !



"म.....मार्वलस ।" ये शब्द अलफांसे के मुह से निकल सके जब वह खुद आश्चर्य के सागर से बाहर निकल आया- “मार्वलस विजय । मुझे लग ही नहीं रहा यह वह लड़की है जो कुछ देर पहले हमारे साथ थी ।"



“सर !” नजमा ने कहा-"मुझे भी देखने दीजिए खुद को !


“क्यों ...क्या तुम खुद को इन दोनों के थोंबड़े के आइने में नहीं देख रही?”


"सर प्लीज !" उसने सिर झटका।



"ये झटके अब भी बंद नहीं हुए तुम्हारे ।"


" सोरी सर ।"



"अपनी आवाज भी भूल जाओ ।'"


"समझिए भूल गई ।" ये शब्द उसने संगीता की अवाज में कहे थे ।


विकास ने पूछा-"क्या तुमने अभी तक खुद को आइने में नहीं देखा?"



"सर ने देखने ही नहीं दिया ।

अलकांसे झपटकर बाथरूम में पहुचा । वाश-बेसिन के ऊपर टंगा बडा-सा आइना उतारा और उसे साथ लेकर बापस ड्राइंग रूम में आ गया ।

वहां आकर भी उससे सांस नहीं ली । सांस तभी ली जब आइना लेकर नजमा के ठीक सामने जा खड़ा हुआ !
खुद को देखकर नजमा के हलक से चीख निकल गई ।


उसके दोनों हाथ अपने चेहरे पर जा लगे थे ।


अपने कहां?


संगीता के चेहरे पर !


उसे लग ही नहीं रहा था वह उसका अपना वहीं असली चेहरा है !



"बहुत हो लिया लूमड़ प्यारे! आइना हटा तो वरना वह हो जाएगा भी आज से पहले कभी नहीं हुआ।"


"क्या नहीं हुआ?"


"अपनी नजर खुद को नहीं लगी कभी।"


उसकी बात का मलतब समझ में आया तो तीनों के मुंह से ठहाके फूट पड़े ।

नजमा अब हस भी रही थी तो संगीता के अंदाज में !



अलझासे ने कह ही दिया-'"विजय ऐसा जादू तो पी सी सरकार भी नहीं कर सकता ।"


“लेकिन गुरु ।" विकास ने पूछा'----"'नजमा अभी तक नाइट गाउन में क्यों है? जैक आता ही होगा ।"


"इसी लिए ।"

"क्या मतलब?"


"यह तैयार होने के बहाने जैक को कुल देर यहाँ बैठाएगीं ।"



"क्यों?"


"ताकि उस बीच हम अपना काम कर सकें !"


"कैसा काम"



विजय के जवाब देने से पहले कालबेल बजी !


चारों सतर्क हो गए । अलफासे फुसफुसाया-'" शायद वह आ गया है !


"तुम उसे संभांल लोगी न?" विजय ने धीमी आवाज में नजमा से पूछा !


उसने कहा-----'' फिक्र ना करें ।"


"आओ प्यारे ।" कहने के साथ विजय ने बेडरूम की तरफ जम्प लगाई ! विकास और अलफांसे उसके पीछे थे । जब तक कालबेल दूसरी बार बजी तब तक खिड़की के जरिए वे तीनों फ्लैट से बाहर निकल चुके थे !



नजमा दरबाजा खोलने के लिये आगे बड़ी !
संगीता के फ्लैट के ठीक सामने एक सफारी खडी थी !



चमचमाती हुई टाटा सफारी ।


दो वर्दीधारी गनमैन उसके नजदीक खडे नजर नजर आ रहे थे । एक ड्राइविंग डोर पर था । दूसरा सफारी के उस तरफ ।



"जिसका डर था बेदर्दी वही वात हो गई ।" एक पिलर की बैक से निकलकर विकास सीधा सफारी की तरफ बढ गया जबकि विजय बौखला कर उसके पीछे लपकता हुआ बोला……"अबे. . .अबे. . .क्या कर रहा है दिलजले। यूं सरेआम मारपीट करना हमारे फेवर में नहीं होगा ।"



विकास रुका नहीं, उसने लगातार आगे बढ़ते हुए कहा…“जानता हूँ गुरु । आप फिक्र न करें ।"



अब!


लेकिन विजय के पास अगला वाक्य तक कहने का मौका नहीं था !



सफारी के काफी नजदीक पहुच चुका था विकास ।



विजय इस तरह एक तरफ़ को टहल लिया जैसे विकास से उसका कोई मतलब ही न हो ।



अलफासे पिलर के पीछे ही खड़ा रह गया है उसके होंठों पर मुस्कान थी ।


विकास ने उनमें से एक गनमैन के नजदीक पहुंचकर पूछा…"मिस्टर जैक के साथ आप ही आए हैं?”



"हां ।” उसका लहजा भी अक्खड़ था, अंदाज़ भी ---" क्यों?"


" वे आपको वहीं बुला रहे हैं ।"

" कहां? "


"संगीता के फ्लैट पर ।"


"हमेँ वहां ?" उसे हैरानी थी --- "क्यों?"


"नहीं मालूम ।" विकास ने भी अब अपनी आवाज में वेसा ही अवखड़पन पैदा कर लिया था--""चलना है तो मेरे साथ -चलो । नहीं चलना तो खड़े रहो । मैं उनसे कह दुंगा तुमने आने से इंकार कर दिया ।” कहने के बाद वह मुडा और वापस इमारत की तरफ़ चल दिया ।


"ठहर !" गनमैन ने कहा । विकास ठिठक गया ।
गनमैन ने दूसरे गनमैन से कहा-"लगता है टाइम लगने वाला है, इसलिए बॉस हमें भी वहीं बुला रहे हैं ।"


"चाहे जितना टाइम लगे । पहले ऐसा कभी नहीं हुआ?"


"अब हो रहा है तो क्या करें? मुमकिन है उन्हें हमसे कोई काम हो ।"


दूसरे गनमैन ने कई पल कुछ सोचने में गवाए ।


थोडी देर बाद बोला----"गाडी को लाक करके चलते हैं ।


’ “यही ठीक रहेगा ।" दूसरे ने कहा ।


विकास अकड़ा…-'"चलना है तो जल्दी करौ ।"


"चल रहे है यार । अकड़ क्यों रहा है ।” गाडी लॉक करने के बाद चाबी अपनी जेब में डालते हुए गनमैन ने कहा । फिर दोने विकास के ’ साथ फ्लैट की इमारत की तरफ बढ़ गए ।


सफारी से काफी दूर, विजय अभी चहलकदमी- सी कर रहा था ।


गनपैनों से नजर बचाकर हैं विकास ने विजय की तरफ देखा । नजर मिलते ही अपने होंठों पर शरारती मुस्कान लिए उसने विजय को आंख मारी । ‘


विजय बीखलाकर रह गया है !
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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उन्हें लिए विकास उसी पिलर की तरफ बढ रहा था जिसकी बैक में अलफासे था । एक क्षण केवल एक क्षण के लिए पिलर के नजदीक ठिठका । बोला-"दायां शिकार आपका है अंकल, बायां मेरा । इनके नुह से आवाज न निकल पाए"'



अचानक क्या बड़बड़ाने लगा तू?” एक गनमैन ने चौंककर पूछा ।


परंतु ।



न तो जवाब ही मिला उसे, न अगला लफ्ज मूंह से निकालने का मौका ।


पिलर के पीछे से झपटकर, अलफासे ने उसका मुंह दबोच लिया था । ठीक वैसी ही हालत उसके साथी की भी हुई ।


वह विकास के चंगुल में फंसा गूं -गूं कर रहा था ।


विजय ने दूर से उस दृश्य को देखा तो लपकता हुआ उस तरफ़ - बढा । जब तक वह पिलर के नजदीक पहुचा तब तक दोनों अपने-अपने शिकारी को बेहोश कर चुके थे ।


आँख मारते हुए विकास ने पूछा…- "अब इनका करें क्या?"



“उठाकर सफारी की तरफ ले चलो । उसकी डिक्की में डाल दो ! चाबी इसकी जेब में है ।"



" मेरे ख्याल से गुरू , उसके पहले हमें इनकी वर्दी पहन लेनी चाहिए !"



" एक दम दुरूस्त तुम्हारा ख्याल !" कहने के साथ विजय ने उनमें से एक के कपड़े उतारने शुरू कर दिये थे !



दूसरे के कपड़े विकास उतारने लगा !


अलफांसे बोला---" मेरा क्या होगा ?"


" तुम एसे ही ठीक हो !" विजय ने कहा ----" वैसे तीसरा होता तो भी तुम्हारे साइज का होना मुश्किल था !"
जैक और संगीता के बाहर जाने तक दोनों गनमेन्स के जिस्म सफारी की डिवकी में ठूंसे जा चुके थे ।


अलफांसे अगली और पिछली सीट के बीच लेट गया था । वहुत अराम से था वह । उसके लेटने लायक काफी जगह थी ।


गने सम्भाले विजय-विकास सफारी के बाहर ठीक उसी तरह खड़े थे जैसे उन्होंने पिलर के पीछे से गनपैन्स को खड़े देखा था । बस इतना-सा परिवर्तन किया उन्होंने कि अपनी कैप्स के छज्जै ललाट पर झुका लिए थे ।



आंखें तक ढक ली थी।


वे नजदीक आए । विजय ने फौरन बाई तरफ बाला अगला गेट खौल दिया । नजमा संगीता वाली अदा में थ्रोड़ा उचककर सीट पर जा बैठी । उस वक्त जैक गाडी के आगे से घूमकर ड्राइविंग गेट की तरफ जा रहा था जब वह विजय की तरफ देखकर होलेे से मुस्कराई ।



विजय ने उसकी मुस्कान का जवाब देने की कोई कोशिश नहीं की ।


ड्राइविंग गेट उधर खडे विकास ने खोल दिया था ।


"तुम लोग पीछे बैठो ।" कहने के साथ उनकी तरफ़ कोई ध्यान न देते हुए जैक ने इग्नीशियन में मौजूद चाबी घुमा दी ।



विजय-विकास अपनी-अपनी साइड का… पिछला गेट खोलकर सफारी में सवार हो गए ।


सफर शुरू हो गया । गाडी के अंदर खामोशी छाई हुई थी ।



विजय-विकास यह देखकर संतुष्ट थे कि सफारी का रूख उसी तरफ था जिधर वह इमारत थी जिसके अंदर जाने के लिए इतने पापड बेले थे ।



उस वक्त गाडी एक सुनसान सडक से गुजर रही थी जब ड्राइविंग करते जैक ने कहा…"अनवर ।"

" हूं !" चौंक कर विजय-विकास एक साथ बोल पड़े थे ।


अगला वाक्य कहने से पहले जैक एक पल के लिए हिचका । मगर सिर्फ एक पल के लिए । अगले पल उसने कहा---" मैं तुन्हें अगले पेट्रोल पम्प पर उतार दूंगा । वहाँ से डीजल लेकर राउंड हाउस पहुचना है ।"


दोनों चुप रहे । क्षणिक खामोशी के बाद जैक ने पूछा ---"एनी प्राब्लम?"


"नो सर ।" विकास ने अपनी आवाज एक गनमैन की आवाज से मिलाने की केशिश की ।


और बस ।


उसके बाद जैक ने कुछ नहीं कहा ।



खामोशी के साथ गाडी ड्राइव करता रहा।


विजय-विकास के दिमाग वड़ी तेजी से काम कर रहे थे । उन्हें लग रहा था----जैक के अनवर कहते ही एक साथ दोनों के बोल पड़ने से गड़बड़ हो चुकीहै । बस यही निश्चय नहीं कर पा रहे ये----उस गड़बड़ को जैक ने पकड़ लिया है या नहीं? यदि पकड़ चुका था तो काफी खूबसूरत एक्टिग कर रहा था वह ।



जरा भी तो विचलित नजर नहीं आ रहा था । कुछ देर बाद !


दुर. . एक पेट्रोल पम्प का साइन बोर्ड नजर जाने लगा ।



विजय के दिमाग ने और तेजी से काम करना शुरू कर दिया ।


जैक ने गडबड को ताड़ा हो या न ताडा हो मगर यह तो पवका था कि वह उन्हें वहां उतारने वाला था । वहां कुछ ओंर लोग भी होंगे । कम से कम पेट्रोल पम्प का स्टाफ तो होगा ही । वहां किसी भी किस्म का 'एक्शन' करना मुनासिब नहीं होगा । उससे तो बेहतर है जो करना है, यहीँ गाड़ी ही में कर लिया जाए ।



विजय इस नतीजे पर पहुचा ही था कि कानो में विकास की अ्वाज पड़ी…“पेट्रोल पम्प पर गाडी रोकने की कोशिश मत करना मिस्टर जैक । सीधे चलते रहो ।"


“मैं जान चुका हूं ,तुम अनवर और सलीम नहीं हो ।" जैक के हलक से गुर्राहट सी निकली ।



"हम भी जान चुके हैं कि तुम जान चुके हो । इसलिए गन वक्त से पहले तुम्हारी पसलियों से सटानी पडी !
महसूस' कर रहे होंगे इसकी चुभन ओंर अब ये भी जान लो----जरा--सी भी गलत हरकत तुम्हें भी बहीं पहुचा देगी जहां अनवर और सलीम पहुच चुके हैं ।"
"अ. . .अरे. . .क. . ,क्या हो रहा है ये?" नजमा ने जबरदस्त एक्टिग की---" क. . .कौन हो तुम लोग?"



"ज्यादा मत 'फुदक्रो मेडम ।” कहने के साथ विजय ने अपनी गन की नाल उसकी पसलियों से सटा दी --" ये वो फिल्मी गन नहीं है जो केवल आबाज करती है । अगर इसने अवाज कर दी तो तुम्हारी आवाज हमेशा के लिए की बंद हो जाएगी ।"



"..अ अरे. . .म. . .मगर.. ।" बुरी तरह बोखलाकर उसने जैक की तरफ देखा ।


जैक का चेहरा पत्थर की तरह सख्त और सपाट नजर आ रहा था । उसने कहा---"' फिक्र न करें मेडम, ये हमारा कुछ नहीं निगाह सकेंगे ।"



‘ठीक कहा तुमने ।” विकास के मुँह से निक्लने को गुर्राहट अत्यंत सनसनीखेज थी…--"हमारा कहना मानते रहे तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा । "



पेट्रोल पम्प पीछे छूट गया था । जबड़े भीचे जेक ने पूछा- "क्या अनवर और सलीम को तुमने मार दिया?"


"अपनी तो आदत ही ऐसी है ।” विजय ने कहा ।


"हो कौन तुम?"


विजय शायद कुछ कहता पर उससे पहले विकास बोल पड़ा-“बिजय- विकास ।”



“ओह ! " मुह से यह शब्द निकलने के साथ जैक का वह चेहरा पीला पड़ गया जो एक पल पूर्व सख्त नजर आ रहा था ! सारी सख्ती जाने कहाँ गायब हो गई थी । हवाइयां उडती नजर आ रही थी उस , पर ! यहीं तो चाहता था विकास, इसलिए तो अपने नाम उसने साफ…साफ बताए थे । वह जानता था…नाम की अपनी दहशत होती है । इस हथियार को वह अक्सर इस्तेमाल कर लेता था जबकि विजय अपने नाम को हथियार के रूप में कभी इस्तेमाल नही करता था । मगर अब.. जब इस्तेमाल हो ही चुका था और उसका असर वह जैक के चेहरे पर साफ़-साफ़ देख रहा था तो बोला----" तुम जानते होगे, इंसानों को हम इस तरह मारते हैं जेसे फुटपाथ पर सोया फकीर मच्छरों को मारता है ।"

"च. ..चाहते क्या हो?” पहली बार उसकी आवाज में हकलाहट उभरी !
"बडा अच्छा सवाल किया ।" विजय अपनी टोन मैं आ गया--"उतना ही अच्छा जवाब भी हाजिर है । आबू सलेम भाई से "मुलाकात' की तमन्ना है ।”



"क्यों?”



" तुम तो यार संतरियों वाले सवाल पूछने लगे ।"



“मेरा ख्याल है तुम्हारा मकसद मोहम्मद इकराम तक पहुचना है ।"



- "समझदार हो ।” विजय ने कहा…“उसी तक पहुंचना है। क्या तुम बता सकते हो ---"राउंड हाउस' में वह कहां मिलेगा?"
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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"वह वहां नहीं है ।"



"अब तुम झूठ बोल रहे हो प्यारे ।"



"यह सच है !"




विकास ने कहा----“हमने असलम को उसे यहाँ पहुंचाते देखा है ।"



"जरूर देखा होगा मगर बाद में उसे ट्रांसफर कर दिया गया !"



“कहां !"



"नुसरत-तुगलक के पास ।"



"अगर तुम उनका पता बता दो तो हम जिदगी भर तुम्हारे चरण धो-धो कर पानी पीएंगे ।”



“उनका हेडक्वार्टर किसी को नहीं मालूम । न मुझें, न भाई जी को ।"



"'चलते पुर्जे हो प्यारे । आबू सलेम तक की गारंटी ले बेठे । खेर, जो होगा देखा जाएगा । अब हम 'राउंड हाउस' पहुंचने वाले है । वहां के सुरक्षाकर्मी तुम्हारी इस टाटा सफारी को देखते ही गेट खोल देगे । अपने होने वाले बच्चों की 'भलाई चाहते हो तो कोई इशारा मत करना उन्हें !"


"इशारा किया तो बच्चे मैं होने ही कहाँ दूंगा गुरु ।" कहने के साथ विकास ने जैक को गन की नाल का एहसास करा दिया था ।


"ये भी ठीक है ।” विजय बोला…“बल्कि ठीक से भी कुछ ज्यादा ही है ।"

जैक चुप रहा ।



अलकांसे ने जानबूझकर खुद को खामोश और छुपाए रखा था ।


उसने सोचा था --- दुश्मन पर सारे कार्ड एकदम नहीं खुलने चाहिए । अगर जैक विजय विकास को चकमा देने की कोशिश करेगा तो वह उस पर अप्रत्याशित हमलावर बनकर टूट पड़ेगा ।
अभी दुर होने के बावजूद "राउंड हाउस' साफ नजर का रहा था ।



ठीक सामने था वह ।



सरल रेखा की मानिन्द एकदम सीधी चली गई सड़क के अंतिम छोर पर ।"

यदि यूं कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा-सड़क खत्म ही वहाँ होती नजर जा रही थी जहाँ "राउंड हाउस' का लोहे वाला विशाल गेट था । यह सडक केवल उसी इमारत तक जाने के लिए बनाई गई लगती थी । क्योंकि दाएं-बाएं, आगे-पीछे, कहीं कोई दूसरी इमारत नहीं थी ।



अलफांसे के साथ आकर उस इमारत को विजय विकास पहले भी देख चुके थे । यह बात उसी समय उनके दिमाग में आई थी कि इमारत का नाम "राउंड हाउस' शायद इसलिए रखा गया है क्योंकि वह गोल थी ।


देखने से ऐसा लगता था जैसे चारदीवारी से घिरे हजारों-हजार गज के भूखंड के बीचों बीच कंकरीट का एक बहुत वड़ा गिलास बनाकर खड़ा कर दिया गया हो । वह गिलास इतना ऊंचा था कि मीलों दुर से नजर आने लगता था । उसकी दीवारों में अनेक खिड़की और दरवाजे थे ।


खिड़की दरवाजे पर तैनात थे-हथियार बंद गार्ड ।


उनके जिस्मों पर वैसी ही वर्दी थी जैसी इस वक्त विजय-विकास ने पहन रखी थी ।


वैसी ही वर्दी वाले लोहे के गेट पर भी तैनात थे ।


एक जिप्सी भी खडी थी वहां ।


गेट पर तैनात गाडर्स ने दूर से आती सफारी को देखते ही गेट खोलना शुरू कर दिया था जो इतना भारी था कि हाथों से नहीं, एक लीवर को दबाने से खुलता था ।



गेट खुल चुका था । इसके वावजूद जैक ने गाडी रोक दी ।



"आगे चलो प्यारे, वर्ना ऊपर की तरफ पार्सल कर देंगे ।" विजय के मुंह से निकली गुर्राहट सख्त से सख्त व्यक्ति की रीढ की हडडी में मौत की सिहरन दीड़ाने वाली थी ।

“दरवाजा भले ही खोल दिया हो उन्होंने मगर मुझे भी यहां एक रजिस्टर पर साइन करके आगे बढ़ना होता है ।"



जैक ने बड़बड़ते से स्वर में कहा था…"साइन किए बगेर मेरे आगे बढ़ जाने से उन्हें शक हो जाएगा ।”



एक गार्ड रजिस्टर लिए सफारी की तरफ बढ़ता नजर आया।
"मैं सीट के पीछे से तुम्हें देख रहा हूं ।" इस बार विकास गुर्राया-"अगर तुमने साइन के बहाने रजिस्टर पर कुछ ओंर लिखने की कोशिश की तो वह तुम्हारे द्वारा इस जीवन में किया गया अंतिम काम होगा ।"


जैक कुछ बोला नहीं ।


रजिस्टर लिए गार्ड ड्राइविंग छोर पर पहुच चुका था ।


जैक ने 'पावर विंडो' का स्विच दबाकर कांच उतारा ।


गार्ड ने वहुत ही अन्दर के बाद रजिस्टर खिडकी के अंदर सरका दिया । पेन एक डोरी की मदद से रजिस्टर के साथ बंधा हुआ था ।


गार्ड ने गाडी के अंदर झांकते की कोशिश नहीं की । जैक ने साइन किए और वह रजिस्टर लेकर वापस चल दिया । इंजन बंद नहीं किया था जैक ने । गाडी गेयर में डालकर आगे बढा दी ।


अब वे चारों दीवारों के अंदर दूर-दूर तक फैेले गार्डन के बीच बनी सड़क पर थे । उस सडक पर जो धनुष की तरह घूमती हुई इमारत के पोर्च की तरफ चली गई थी । पोचं भी गोल और दर्शनीय था मगर विजय-विकास उसे नहीं देख रहे थे ।


वे देख रहे थे वहां की सुरक्ष-व्यवस्था को ।

धनुषाकार सड़क के दोनों तरफ ही नहीं, गार्डन में भी जगह जगह गाडूर्स तैनात थे । सैकडों की संख्या में थे वे । सभी के हाथो में स्वचालित गनें थी । अंदर की व्यवस्था देखने के बाद विकास को लगा-यहाँ आने के लिए तरकीब वही ठीक थी जो विजय ने अपनाई । बगैर किसी प्लानिंग के धूम धडाका करके अपनी जान तो गंवाई जा सकती थी मगर इमारत में दाखिल नहीं हुआ जा सकता था ।


जैक ने गाडी पोर्च के नीचे रोक दी ।


वहाँ तैनात अनेक गाडर्सं ने गाडी को चारों तरफ से घेर लिया ।


"बस एक ही बात दिमाग में रखना प्यारे, भले ही हम तुमसे जितनी दूर हों, लेकिन किसी भी किस्म की गडबड होने पर हमारी गनों से निकली गोलियों की पहली खेप तुम्हारे जिस्म में आग भर देगी ।"


जेैक ने बगैर कुछ कहे अपनी साइड का दरवाजा खोला ।


"तुम भी उतरो ।." विजय ने गुर्राकर नजमा से कहा ।



अपनी साइड का दरवाजा खोलकर विकास भी जैक के लगभग साथ ही बाहर निकल आया था ।



नजमा केवल जैक को दिखाने के लिए अपने चेहरे पर घबराहट का प्रदर्शन कर रही थी जबकि वास्तव में उसके होंठों पर संगीता बाली मुस्कान नाच रही थी । बाहर निकलने के लिए उसने भी दरवाजा खोला । अपनी साइड का दरवाजा खोलते विजय ने अलफग्रेसे के कंधे पर हाथ रखकर कहा…"बगेर वर्दी बाहर नहीं निकल जा सकता । तुम्हें यहीं का मोर्चा संभालना है ।"


अलफासे चुप रहा ।


उसके बोलने का इंतजार किया भी नहीं था विजय ने । नजमा के साथ ही साथ सफारी से बाहर आ गया था ।



अब वे जैक के पीछे उन सीढियों की तरफ की बड़े जो इमारत के मुख्य दरवाजे तक चली गई थी !


बहुत ही भव्य सीढियां थी वे । करीब पंद्रह ।



कुछ वैसी जैसे स्टेडियम में दर्शकों के बैठने के लिए होती हैं ।


जहां सफारी खडी थी, मुख्य द्वार उससे करीब बारह फुट ऊपर था !


सीढियों के दोनों तरफ़ गाडर्स तैनात थे: नजमा और जेैक अगल… बगल रहकर सीढिया चढ़ रहे थे ।



विजय-विकास पीछे थे । अन्य गार्ड्स उन्हें जैक के पर्सनल गाडर्स ही समझ रहे थे जबकि जैक जानता था-वाकई उसकी कोई भी हरकत उसे हमेशा के लिए सुला देगी !



कुछ देर बाद वे मुख्य द्वार पार कर गए ।

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