चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

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Jemsbond
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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किरन गर्दन झुकाए सुनती रही और जब महसूस किया कि माता-पिता का गुबार निकल चुका है तो आहिस्ता से बोली----"भविष्य में आपको इस किस्म की शिकायत का मौका नहीं मिलेगा पापा ।"



"जब तक तुम्हारे दिमाग पर उस महामक्कार, धूर्तसम्राट और जालसाजों के शहंशाह को बेगुनाह साबित करने का भूत सवार है तब तक शिकायतों का मौका हमें मिलता रहेगा !




"जिसे अाप भी भूत कह रहे हैं वह भूत ही था सो समझिये पापा कि भूत उतर चुका है ।"


"उतर चुका है ?"


'सच ।


"कैसे......... इतनी जल्दी कैसे उतर गया भूत ?


"केवल छ: घन्टे रह गए हैँ…ठीक नौ बजे मैं सभी गणमान्य व्यक्तियों के सामने असली हत्यारे को बेनकाब कर दूंगी-केक्ल जुबान से नहीं बल्कि सबूतों के साथ ऐसे अकाट्य सबूतों के साथ जिन्हें अाप शहजाद_राय, अक्षय श्रीवास्तव और जज साहब तक नहीं काट सकेगे ?"


"किसे हत्यारा साबित करने जा रही हो तुम ?"


"सॉरी पापा, इस सवाल का ज़वाब आपकी सुबह नौ बजे मिलेगी' '

बैरिस्टर साहब सकपकाकर रह गए जबकि किरन ने कहा----'आपने अभी-अभी शेखर मल्होत्रा को महामक्कार और जाने क्या-क्या कहा उन शब्दों का मतलब नहीं समझती मैं ।"


"हमने वही कहा है जो वह है ।"
किरन ने चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे, बोली---" आप अब भी ऐसा सोच रहे है पापा ---- अब जबकि अपनी आखों से उसे मौत के मुहं में दाखिल होते देख चुके हैं ---


------ उसके कंधे से कधां मिलाकर मुझे हत्यारे के चंगुल से निकालने के मिशन पर काम कर चुके है-----

----इतना सब कुछ होने के बावजूद अगर अाप उसे वही समझते है, जो पहेले समझते थे तो किस आधार पर-----


-----क्या अाप यह कहना चाहते हैं कि अपने जिस्म में दो गोलियां उतरवा लेना भी शेखर मल्होत्रा का नाटक है ?"



"क्या उसका मौत के मुह में पंहुच जाना एक दुर्घटना नहीं हो सकती है"'



"दुर्घटना ?"


"हां, ऐसी दुर्घटना जो उसके प्लान का हिस्सा नहीं थी !"



"मैं समझी नहीं कि अाप क्या तिकड़म जोड़ने कोशिश कऱ रहे है ?"


"परसों रात तक की घटनाओं का विश्लेषण हम कर चुके थे-अव उससे आगे बढते हैं । बैरिस्टर विश्वनाथ ने कहना शुरू किया-----" सबके फोटो कलेक्ट करते देखकर शेखर समझ गया कि तुम चाकू-विक्रेता से मिलोगी---

-----उससे पूछोगी कि फ़र्स्ट अप्रैल वाले दिन शेखर के अलावा वैसी ही चाकू "इनमें" से किसने खरीदा था---शेखर मल्होत्रा जानता था कि चाकू-बिक्रेता यह कहेगा कि 'किसी' ने नहीं और उसके ऐसा कहते ही तुम उस पटरी से हट जाओगी जिस पर वह तुम्हें चला रहा था अत: उसी रात चाकू-----

-----विक्रेता की हत्या कर दी…तुम समझो क्रि चाकू-बिक्रेता को इसलिए मार डाला गया क्योंकि तुम्हारे पास मौजूद फोटुओं में कोई हत्यारा है और चाकू-विर्केता उसे पहचान सकता था----फिर उसने तुम्हें उलझाने के लिए एक नई और बेमिसाल तरकीब यानि पहनावे में थोड़ा-सा परिवर्तन करके होटल में मिला, तुम उसे शेखर मल्होत्रा समझी दरअसल तुम बिल्कुल ठीक समझी थी----वह था ही शेखर मलहोत्रा मगर अपनी घुमावदार बातों से तुम्हे यकीन दिला दिया कि वह 'वह' नहीं है जो तुम समझ रही हो ।"


चकित किरन ने पुछा----"यानि कि वह शेखर मल्होत्रा ही था मगर कह ये रहा था 'वह' शेखर मल्होत्रा नहीं है जिसे मैं शेखर मल्होत्रा समझती हूं-वह विनोद मल्होत्रा है और संगीता का हत्यारा है-कहने का मतलब ये कि शेखर मल्होत्रा खुद कह रहा था कि शेखर मल्होत्रा संगीता का कातिल है?"


"हां ।"


"वजह ?"


"तुम्हारे दिमाग को चकरा डालना, जबरदस्त उलझन में फंसा देना ।"


आपकी कल्पनाएं तो सभी सरहदों को पार करती जा रही हैं पापा ! खैर' "आगे कहिये, आपकी बाते सच्चाई से भले ही चाहै जितनी "परे" हीं "मगर हैं इंट्रेस्टिड-तो बताइये, उसके बाद शेखर मल्होत्रा ने क्या किया ?"


"तुम्हें बेवकूफ बनाकर कमरा नम्बर चार भी बासठ में ले गया--खुद बेहोश किया और आंख खुलने पर तुमने खुद को डाक बंगले की चेयर कर कैद पाया ।"‘


" रील काट ली आपने ।" किरन ने मजा लिया--" यह कहना कह गये कि मैंने सफेद नकाबपोश और गिरथारीलाल के बीच होने वाली वे बाते सुनी थी जो वे मुझे बेहोश जानकर कर रहे थे ।"


"तुम बेवकूफ हो जो यह सोचती हो कि वे तुम्हें बेहोश समझ रहे थे-उन्हें मालुम था कि तुम्हारी चेतना लोट चुकी है और वे सब बाते तुम्हारे दिमाग में यह बैठाने के लिए की जा रही थी कि सच्चा शेखर मल्होत्रा ही है और गिरथारीलाल नाम के आदमी ने झूठी "कहानी सुनाकर तुम्हारी नजरों में शेखर को विलेने साबित करने की कोशिश की थी जो नाटक शुरू किया गया था उसका अन्त भी शेखर के पक्ष में ही किया जाना था इसलिए 'बॉस' ने नकली रिवॉल्वर के धमाके किये तथा शेखर मल्होत्रा ने गिरधारी के मरने का खूबसूरत ड्रामा ।"



"शाबाश ........ शाबाश पापा ।" किरन हौले-हौले तालीे बजा 'उठी-"यह स्पीच अगर अाप स्टेज पर दे रहे होते तो कम-से-कम दस मिनट तक हॉल तालियों की गड़वड़ाहट से गूंजता रहता-शहर के सबसे कविल वकील माने जाने वाले विश्वनाथ कह रहे है कि एक व्यक्ति ने नकली रिवॉल्वर के धमाके किए और दूसरे ने मरने का इतना खूबसूरत नाटक किया कि अकेली किरन नहीं बल्कि वहां मौजूद अन्य शख्स भी यह समझें कि शेखर मल्होत्रा सचमुच मर गया है-उसका चेहरा जादु के खेल से लहू लहान हो गया, चमत्कार ने उसके चिथड़े उड़ा दिये और चेहरे में धंसी मिली थीं मिठाई की गोलियां ।"



"वह ताश किसी और की हो सकती है किरन ।"



"जरा स्पष्ट करके बताइये कि क्या हूआ होगा ?"


"कल्पना करो कि शेखर मल्होत्रा केवल एक व्यक्ति को विश्वास में लेता हे…उसे, जो सफेद नकाब पहनता है चन्दू और जग्गा को उसी ने किराये पर अंगेज किया-वे नहीं जानते थे कि उनके बॉस के पीछे खुद शेखर मल्होत्रा है-जग्गा और चन्दू के गिरोहों को भी भ्रम में रखा गया जिसमें तुम्हें रखा जा रहा था यानि वे भी समझ रहे थे कि शेखर मल्होत्रा, शेखर मल्होत्रा न होकर बडौदा का गिरधारी लाल हे ---उसका बच्चा बॉस के कब्जे में है और बॉस उसका इस्तेमाल कर रहा है-जव उस ड्रामे को खत्म करना था-सो सफेद नकाबपोश ने जग्गा और चन्दू के गिरोह से अलग एक अन्य व्यक्ति को किराये पर लिया
जिस वक्त तुम सब हॉल में थे उस वक्त वह आदमी झोपड़ी से बच्चे को ले गया, जूता ढलान पर डाल लिया और कुछ ऐसा किया कि बच्चा चीखा---चन्दू चीख का कारण जानने बाहर गया-सारी सिच्चेशन देखकर लगना ही था कि बच्चा नदी में गिरकर मरं गया है यह खबर उसने बॉस को दी गिरधारी लाल वना शेखर दहाड़ उठा तथा उसके मरने का नाटक स्टेज पर किया गया----गिरधारी लाल के नाम पर झोंपडी में हमने जो लाश देखी उसे पहले ही चेहरे पर गोलियां मारकर खत्म कर दिया था ।"



"किसकी लाश रही होगी वह ?"


"इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।"


"खैर आगे बढिये ।"


"सफेद नकाबपोश ने ऐसा नाटक किया जैसे उसे मिस्टर राय के फोटो और चिट्ठियां चाहिएं ।"



"और फोन पर शेखर के यह मेसेज देने की तरकीब मेरे दिमाग में शेखर मल्होत्रा ने घुसेढ़ दी कि मैं किडनैप हूं !"



"वह तरकीब तुम्हारे दिमाग की उपज थी ।"



"खैरियत है ।" किरन ने ठंडी सांस ली-“आपकी नजर में मैंने कोई काम तो अपने दिमाग से किया ।"


"तुम कुछ भी सोचती या न सोचती किन्तु शेखर मल्होत्रा का उदेश्य हमें साथ लेकर तुम्हें किडनैप की कैद से मुक्त करना था-इस घटना से तुम्हारे साथ-साथ वह हमें भी भ्रमित और प्रभावित करना चाहता था !"



"अपनी जान गंवाकर ?"
"जान गंवाने वाली सिच्चेशन अचानक और आनन-फानन में वन गई ।" लम्बी सांस लेने के बाद बैरिस्टर विश्वनाथ कहते चले गए-----“हालत ने ऐसा पलटा खाया जिसकी शेखर मल्होत्रा को स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी-वह कल्पना नहीं कर पाया था कि चुन्नूू गुस्से में इतना ज्यादा ------ पागल हो जायेगा कि तुम्हें ही मारने का इरादा कर बैठेगा, चन्दू की वह हरकत अप्रत्याशित थी और शेखर तुम्हें मरने नहीं दे सकता था क्योंकि तुम्हारी मौत का मतलब था खुद को बेगुनाह साबित करने वाले उसके लम्बे-चौड़े प्तान का ध्वस्त हो जाना-लिहाजा, तुम्हें बचाने के लिए वह पागल हो उठा और तब गुस्से में भरे चन्दू ने उसी के जिस्म में आग भर दी----याद रहे चन्दू को नहीं मालूम था कि जिस पर वह गोलियां चला रहा वह 'वॉस का बॉस है ।"


"फिर ?"


"फिर क्या, शेखर मल्होत्रा की अब तक की गतिविधियों की कहानी खत्म ।"


"क्या आपके पास कोई ऐसा सबूत, शहादत, गवाह या तर्क है जो उस कहानी को प्रमाणित कर सके ?"


"दुर्भाग्य से नहीं ।"



"और जो शख्स सबूत, गवाह और शाक्ति के अभाव में हर कहानी को सिर्फ कहानी मानता था, सच्चाई नहीं वह शख्स बार-वार, हजार तर्क-कुतर्कों के साथ मेरे दिमाग में यह ठूंसने की कोशिश कर रहा है कि यह सच्चाई है---- अाप ही की दी हूई शिक्षा के मुताबिक मैं इस कहानी को तब तक 'सच' नहीं मान सकती जब तक कि आप पर्याप्त सबूत प्रस्तुत न करें ।"


"' बैरिस्टर विश्वनाथ लाजवाब हो गये।"


किरन कहती गयी----आपकी कहानी का एक भी लफ्ज मेरे लिए इस वजह से मायने नहीं रखता पापा, क्योंकि जानती दूं कि यह सब मेरे दिमाग में आप क्यों ठूंसना चाहते हैं, कौन-सा भय सता, रहा है, अपको ।"



"कैसा भय ?"



"आपको वही भय सता रहा है जिसने कभी गुलाब चंद को सताया था ।"
"क्या मतलब ? "



"आप ऐसा महसूस का रहे है कि मैं भावनात्मक रूप से शेखर मल्होत्रा के नजदीक होती जा रही हू।"



बैरिस्टर विश्वनाथ की आँखों में आंखें डालकर किरन कहती चली गयी-------“आपक्रो यह खौफ सता रहा है कि कहीं मैं शेखर मल्होत्रा से मुहब्बत न कर वैठूं और कहीं वह दिन न आ जाये जव अपको शेखर मल्होत्रा से मेरी शादी करनी पड़े ।"



बैरिस्टर विश्वनाथ सकपका गए ।


ऐसी हालत हो गई उनकी जैसी रंगे हाथो पकड़े जाने वाले चोर की होती है ।"



जबकि एक-एक शब्द पर जोर देती किरन ने पूछा-----जवाब दीजिए, पापा यह खौफ आपको सता रहा है या नहीं ?"



"अगर सता भी रहा है तो क्या यह खौफ बेबुनियाद है ?"



"सवाल इस बात का नहीं है पापा कि आपके खौफ की बुनियाद है या नहीं ।" किरन ऐसी मुस्कान के साथ कहती चली गई जैसी किसी व्यक्ति के होंठों पर जव उभरती है जब वह किसी के मन में घुसकर बैठे चोर को पकड़ लेता है--------

-------"सवाल यह है कि मैरे दिमाग में' ठूंस-ठूंसकर आप यह बात क्यों भर देना चाहते हैं कि शेखर मल्होत्रा मुजरिम है, वजह स्पष्ट हो चुकी है--------येन, केन, प्रकरण और उल्टे-सीधे तर्कों से भरी एक नितांत अविश्वसनीय कहानी के जरिए अाप उसे मुजरिम इसलिए साबित करना चाहते हैं ताकि मेरे दिल में उसके प्रति नफरत भर सकें-----

-------उस भावनात्मक आर्कषण को खत्म कर सकें जो अापकी समझ के मुताबिक मेरे और उसके बीच पैदा हो चुकी है मगर ------ मगर ये कंहूगी पापा कि अाप वहूत ही कच्ची ---- ओछी और बचकाना कोशिश कर रहे है -----


---- दो व्यक्तियों के बीच अगर भावात्मक लगाव पैदा दो चुका है तो वैसी हरकत से उसे दुनिया का कोई शख्स नहीं मिटा सकता जैसी आप कर हैं------ आपकी यह चाल कामयाब नहीं होगी इसलिए नहीं होंगी क्योंकि आप सिर्फ एक स्वार्थ भरी कहानी सुना रहे है और मैं हकीकत 'जान चुकी हू------अगर हकीकत न जान चुकी होती तो----


---- मुमकिन है आपकी बातों में आ जाती------आप अभी तक सम्भावनाओं के अंधेरे में भटक रहे है जबकि मेरे मस्तिष्क में सच्चाई का प्रकाश फेल चुका है, सारा केस शीशे की तरह साफ है-आप सम्भावना व्यक्त कर रहे है कि सफेद नकाबपोश शेखर मल्होत्रा का अरेंज किया हुआ व्यक्ति हो . सकता है जबकि मैं जानती हूं कि वह कौन है और मेरा दावा है कि जब अाप जानेगे तो यह नहीं कह सकेंगे कि वह शेखर का अरेंज किया हुआ हो सकता है----------वह हस्ती किसी के द्वारा अरेंज की जाने लायक नहीं है-----------खैर मुझे डर है के कहीं अपके प्रयास से उत्तेजित होकर वह सब अभी ही न कह बैठूं जो नौ बजे के बाद कहना है इसलिए फिलहाल अपने कमरे में जाने की इजाजत चाहती हूं-------कल हत्यारे का रहस्य खोलने के बाद शेखर के बारे में आपके ख्याल जरूर पूछूंगी ।" कहने के बाद वह तेज कदमी के साथ अपने कमरे . में चली गई ।
सुबह के नौ बजे ।


केवल एक व्यक्ति गायब था ।


बाकी सभी आमन्त्रित व्यक्ति शेखर मल्होत्रा के ड्राइंग-रूम में मौजूद थे ।

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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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जज साहब, बैरिस्टर विश्वनाथ, शहजाद राय, इंस्पेक्टर अक्षय, बुन्दू, रमन, अतर जैन, सुमित्रा, संगम, राकेश, कमल और शेखर मल्होत्रा के साथ मौजूद थे उसका आपरेशन _करने वाले सीनियर सर्जन ।

शेखर मल्होत्रा के अलावा सभी लोग कुर्सियों पर पक्तिबद्ध बैठे थे---.उस तरफ़ थे जिधर एक मेज पडी हुई और मेज के पार थी वह कुर्सी जिस पर किरन को बैठना था ।



अन्य सारा फर्नीचर हॉल से हटा विया गया था । शेखर किरन की कुर्सी के नजदीक एक पहियों वाले बेड पर लेटा था---डॉकटर की राय के मुताबिक शेखर की हालत में काफी सुथार था-जब बह ठीक से बोल सकता था, देख और समझ सकता था ।


केवल उसी के नहीं बल्कि हाल में मौजूद सभी लोगो के चेहरों पर हत्यारे का नाम जानने की बेचैनी के भाव नाच रहे थे.



सुर्ख बूटों वाली सफेद साडी में सजी किरन उस वक्त शेखर मल्होत्रा से बातें कर रही थी जब देखमुख ने कहा-----" अपने मेहमानों के धैर्य की और ज्यादा परीक्षा न लो वेटी, बताओ कि हत्यारा कौन है----


-----चक्रब्यूह क्या है?"



"ओ. कै. अंकल ।" कहने के बाद अपनी कुर्सी पर बेठते ही कहा उसने ----""हत्यारा सुब्रत जैन का लड़का है !"


जज साहब ने पुछा----"कौन सुव्रत जैन है"'


"सुब्रत जैन का परिचय मिस्टर अतर जैन देंगे ।"


किरन ने कहा ।


अतर हिचका किन्तु सबके अनुरोध के बाद उसे वह सब बताना पड़ा--जो शेखर मल्होत्रा ने किरन को बताया था ।


उसके चुप होते ही किरन बोली------“पन्द्रह साल पहले हुआ वह पारिवारिक कलह इस हत्याकांड का मुख्य कारण है----- हस्तिनापुर से चले जाने के कुछ दिन बाद एक ट्रेन दुर्घटना में सुब्रत जैन और उसकी पत्मी की मृत्यु हो गई मगर मरने से पहले अपने बेटे के दिलो-दिमाग में. सुव्रत जैन अपने पिता और गुलाब चन्द के प्रति इतना जहर भर चुका था कि बेटे ने पिता द्वारा खाई गई कसम क्रो पूरा करने की कसम खाई-जव तक वह बदला लेने लायक यानि बड़ा हुआ तब तक उसके दादा यानि सुव्रत जैन के पिता की मृत्यु स्वत: हो चुकी थी------अब उसके शिकार थे गुलाब चन्द और संगीता-पहले उसने गुलाव चन्द को चुना-गुलाव चन्द शराब के शौकीन थे मगर इतने 'गाफिल' कभी नहीं होते थे कि "बैक-पैडिल समझकर' एक्सीलेटर को दबाते रहे---उस दिन हुआ यह कि हिल स्टेशन से लौटते वक्त दुर्धटना-स्थल से ही पहले एक बार में व्हिस्की पी-पूरी एक बोतल ली थी उन्होंने, जितनी पी सके पी और बाकी गाडी में रख ली-सुव्रत जैन का लडका बहुत दिन से ऐसे मौके की तलाश में था, जिसका लाभ उठाकर गुलाब चन्द को खत्म भी कर दे और पकडा भी न जाये ------साये की तरह गुलाब चन्द के पीछे लगे सुब्रत के लड़के को लगा कि मौका अच्छा है…गुलाब चन्द बार में तीन धन्टे रहे क्योंकि पीने के बाद लंच भी लिया था उन्होंने और इन तीन घन्टों में सुब्रत जैन के लड़के ने फियेट के चारों "ब्रेक-ड्रम' खोले, उसमें से "ब्रेक-शू' निकले और ड्रम बन्द करके चारों पहिए पुन: लगा दिये----बार से अागे की यात्रा गुलाब चन्द ने बगैर 'बेक-शु' के गाडी से जारी की और परिणाम बहीं हुआ जो होना था-ढलान पर गाडी रुक नहीं रही थी----सो गुलाव चन्द ब्रेक मारने के बावजूद बौखला गये मगर उस अवस्था में कर भी क्या सकते वे-लिहाजा गाडी सहित सैकडों फुट गहरी खाई में जा गिरे ।“

"तुम कैसे कह सकती हो कि उस गाडी के ब्रेक-ड्रमों के ब्रेक गायब थे ?" बैरिस्टर साहब ने पूछा।


"कल दिन में मैं वहीं गई थी पापा-------गुलाब चन्द की गाडी का मलबा अाज भी उसी खाई में पड़ा है-उस इलाके का पुलिस इंस्पेक्टर भी मेरे साथ था और वह गवाह है कि मेरे आदेश पर एक हवलदार तथा दो सिपाहियों ने जब ब्रेक-ड्रम खोले तो उनमे 'ब्रेक-शू' नहीं थे --- दुर्घटना की जांच करने वाले इंस्पेक्टर यानि इंस्पेक्टर ने ड्रम खेलने की जरूरत नहीं समझी थी ---- ब्रेक पैडिल -- ब्रेक आयल और ब्रेक-पाइप को चैक करने के बाद वह ,इस नतीजे पर पहुचा कि ब्रेक' बिल्कुल ठीक काम कर रहे थे और चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर उसकी यह थ्योंरी वनी कि नशे की ज्यादती के कारण गुलाब चन्द ब्रेक के स्थान पर एक्सीलेटर दबाता रहा-जिस 'बार' में गुलाब चन्द ने लंच और व्हिस्की लिए थे वहां का कायदा कि लोग विल पर ग्राहक के साईन कराते हैं-पन्द्रह नवम्बर के दिन कटे एक विल की कार्बन कॉपी पर गुलाव चन्द के साइन मौजूद हैं---- इन सब बातों की पुष्टि विना किसी बाधा के की जा सकती है ।"



अक्षय ने पूछश्चा-“मगर आपको यह कैसे पता लगा कि "बेक-शू' सुब्रत जैन के लड़के ने गायब किये थे ?"



"क्योंकि बेक-शू सुब्रत जैन के लड़के ने अाज भी सम्भालकर अपने घर में रखे हैं ।"


"धर कहां है उसका ?" रमन आहूजा ने पूछा ।


" घर बाद में पूछना मिस्टर रमन, पहले इसे देखो ।” कहने के साथ किरन ने एक ब्रेक 'शू' निकालकर सबको दिखाते हुए कहा ---गुलाब चन्द की गाडी के चार में से एक शू ये है ।"


कमल ने पूछा --" आप पर शू कहां से आ गया ?"



"परसों रात उसके घर से चुराया था मैंने ।"


“घर ...... घर ...... घर ! "



"खबरदार .........खबरदार !" कोई खतरनाक स्वर में दहाड़ा------""अगर किसी ने हिलने-की कोशिश की हो भूनकर..... रख दूगा ।"

सबने चौंककर उसकी तरफें देखा ।

----



इंस्पेक्टर अक्षय के हाथ में उसका रिवॉल्वर था, आंखों में खून" और चेहरा लोहार की भटृठी की मानिन्द धधक रहा था ।


सभी सहम गये !
अवाक रह गये ।


जिस्मों में सनसनी दौड़ रही थी-हरेक के चेहरे को, खूंखार नजरों से घूरता इंस्पेक्टर अक्षय पुन: गर्जा --- "अगर किसी ने अंगुली भी हिलाई तो मैं उसका भेजा उड़ा दूंगा ।। म-मुझे कोई नहीं रोक सकता, कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता - जा रहा हूं मैं याद रहे ---हिलना नहीं है किसी को !



धीरे-धीरे वह दरवाजे की तरफ़ बढने लगा ।



किरन ने कहा-"अपने हाथों में दबे रिवॉल्वर के बूते पर तुम इस हॉल से भले ही निकल जाओं इंस्पेक्टर, मगर कानून के लम्बे हाथों की रेंजं से बाहर नहीं जा. सकोगे…तुम्हारी एक-एक करतूत का मैं न सिर्फ भेद जान गई हूं बल्कि मुकम्मल सबूत भी हैं मेरे पास-बेहतर यह होगा कि रिवॉल्वर फेंककर खुद को कानून के हंवाले कर दो ।"

"मैँने तुम्हें एक बेवकूफ़ लडकी समझा था…स्वप्न में भी कल्पना न कर पाया था कि तुम मेरे भेद तक पहुंच सकती हो------अगर जरा भी इत्म हो गया होता तो मैं यहां न आत्ता बल्कि,कल रात ही खत्म कर देता तुन्हें रात तक मुझें भ्रम में रखा लेकिन अगर यह सोच रही हो कि इतने सारे लोगों की मौजूदगी के कारण यहां तुम्हें छोड दूंगा तो यह तुम्हारी भूल है----मैं अपना खेल बिगाड़ने वालों , का खेल नहीं चलने दे सकता ।"

सबकी आँखों में खौफ मंडरा रहा था-बैरिस्टर विश्वनाथ की आंखों में चिंता के लक्षण भी नजर आने लगे, मगर किरन के होंठों पर नृत्य करती मुस्कराहट और गहरी हो गई--- उस वक्त अक्षय हॉल के दरबाजे पर पहुंच चुका था जव किरन ने कहा-“ट्रेगर दबाने से पहले चैक कर लेना इंस्पेक्टर कि तुम्हारे रिवॉल्वर में गोलियां भी है या नहीं ?
अक्षय के चेहरे पर बौखलाहट के भाव उभरे !


पर्स से गोलियां निकालकर मेज पर बिखेरती हुई ---किरन बेली---मुझे मालूम था कि कहानी के बीचच में ही तुम समझ जाओगे कि मैं सारा भेद जान चुकी हूं---- से यह कल्पना भी कर ली थी कि अपने चेहरे से नकाब नुचते ही तुम्हारा 'एक्शन' क्या होगा, अत: आज सुबह तुम्हारे घर घुसकर मैंने तुम्हारा रिवॉल्वर खाली कर दिया था ! "


अक्षय का चेहरा पीला पड़ गया ।

बुरी तरह हड़बड़ा उठा वह ।



बौखलाहट में वह दनादन हाथ में दवे रिवॉल्वर का ट्रेगर दबाता चला गया ।



परन्तु ! कोई गोली नहीं चली ।



केवल "क्लिक...... क्लिक' की आवाजे गूंजकर रह गई ।



किरन खिलखिलाकर हँसी बोली---- यह खेल बन्द करो इंस्पेक्टर, दरअसल तुम यहां से भाग नहीं सकते ।"


मगर ! . .


किरन की बात पर ध्यान न देकर अक्षय तेजी से पलटा और दरवाजे के पार जम्प लगा दी-----उसने--- एक क्षण भी नहीं गुजरा था कि दर्दनाक चीख के साथ हवा में उछलता हुआ वापस हॉल के फर्श पर आ गिरा !

नाक से खून बह रहा था ।

जाहिर था कि किसी ने उसकी नाक पर घूंसा मारा था ।
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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बैरिस्टर, रमन और शहजाद राय ने लपककर फ़र्श से उठने की कोशिश कर रहे अक्षय को दबोच लिया और फिर कमरे में दाखिल हुआ वह शख्स जिसने एक ही घूंसे में अक्षय को उछालकर हॉल में फेंक दिया था-उसे देखते ही किरन के अलावा सबके हलक से चीखे निकल गई है !!!
बुंदू की तो घिग्घी बंध गई ।


यह लाश थी गुलाब चन्द की लाश ।



"य-यही है?" बुंदू चीखा-----" व-वह लाश यही है मेमशाव, जिसने अपनी गर्दन दबाने की कोशिश की थी ।"



लाश आहिस्ता-आहिस्ता हाल में आ गई ।


तेजी से धड़कते दिलों के साथ सभी आँखों में खौफ लिए लाश को देख रहे थे-------सबसे ज्यादा आश्चर्य के भाव अक्षय की आंखों में थे --------वैरिस्टर रमन और शहजाद राय के बंधनों में कैद वह गुलाब चन्द की ताश को इस तरह देख रहा था जैसे दुनिया के बड़े अजूबे को देख रहा हो जबकि अजूबा किरन के नजदीक पहुंचकर कुछ देर सीधा खडा रहा फिर अपना _सड़ा-गला हाथ पेट पर रखकर इस तरह झुका जैसे करोड़पति का ड्राइवर गाडी का दरवाजा खोलते वक्त झुकती है ।।।।



"यहां खडे़ हो जाओ ।" किरन ने उसे आदेश दिया ।

"अजूबा ठीक वहां खड़ा हो गया जहाँ किरन ने कहा था ।"



बैरिस्टर सहित सभी लोग चकितं हुए किरन की तरफ देख रहे थे, उसने कहा------ सब लोग अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ जाए-केवल बुंदू और रमन इंस्पेक्टर को पकड़े रखेंगे, तुम हॉल का दरवाजा अन्दर से बन्द कर दो कमल ।"



सबने मशीनी अन्दाज से उसके आदेश का पालन किया ।



अक्षय भी अब किसी किस्म का विरोध करता नजर नहीं जा रहा था ।



आंखों में खौफ लिए बुंदू उस वक्त भी गुलाब चन्द की लाश को घूर रहा था, जब एकाएक किरन ने हाथ बढाकर लाश के चेहरे पर चढा सड़ा, गला और जला हुआ-सा नजर जाने वाला फेसमास्क नोंच लिया ।

"न-निवकू ..... ?" बुन्दू के हलक से चीख निकल गई-------शाब की लाश तू बना था निवकू ?"



आश्चर्य से परिपूर्ण चीखे़ वेड पर पड़े शेखर मल्होत्रा से लेकर अतर जैन एण्ड फैमिली तक के हलक से निकली थी, मगर सबसे बुरा हाल बुंदू का था जबकि निवकू इस तरह मुस्कुरा रहा था जैसे स्टेज पर उसे "बेस्ट एक्टर' का एवार्ड मिलने वाला हो-जज साहब, बैरिस्टर और शहजाद राय चक्ति निगाहों से निक्कू को देख रहे थे।।।।



हाँल में छाई मुक्मल सनसनी का आनन्द लूटने के बाद किरन ने बताया--"इस वक्त गुलाब चन्द की लाश निवक्रू ज़रूर बना हुआ है बुंदू मगर वह निवकू नहीं था, जिसने तुम्हारी गर्दन दबाने की कोशिश की थी ।"


“तो वह कौन था मेमशाब ?"



"वही जिसकी गर्दन इस वक्त तुम्हारे हाथों में है ।"



"तो इस वक्त ताश का-सा चेहरा निवकू क्यों वना हुआ है मे-मसाहब-----ये लाश का-सा चेहरा, ये मालिक के अधजले कपड़े और अंगूठियां निवकू पर कहाँ से आ गयी ?"


"मैंने दिए थे ?"


" अापने---क्यों ?"



"ताकि भागने की कोशिश करते इंस्पेक्टर को रोके उसे देखकर इसके रहे सहे हौंसले भी पस्त हो जाये !"
कहने के साथ किरन ने फेसमास्क के वने गले-सड़े से नजर अाने बाले ग्लब्स निक्कू के दोनों हाथों से जुदा किए----ग्लब्स कोहनियों तक थे और-अंगुठियां ग्लब्स की अंगुलियों के ऊपर चढी हुई थी ।



बैरिस्टर ने पूछा------" “यह सारा" सामान तुम्हारे पास कहां से अाया ?"
" ब्रेक शु-के साथ इंस्पेक्टर अक्षय के घर से चुराया था----अाप देख रहे हैं न जज साहब, फेसमास्क और ग्लबज कितने शानदार बने हुए हैं-इन्हें बनाने वाला कारीगर कोर्ट को बताएगा कि उसने अक्षय के लिए बनाये थे ।"



"तुम्हें यह कैसे पता लगा कि अक्षय सुब्रत जैन का लडका है?"



“सबसे पहले मैं अक्षय को डाक बंगले में पहचानी ।” किरन ने कहना शुरू किया-----"और यह सुनकर शायद अाप हँसेंगे कि पहचाना कैसे-दरअसल इसने चेहरे पर सफेद नकाब पहन रखा था, आंखों में कान्टेक्ट लेस लगा रखे ये यानि अपनी तरफ़ से पूरी तरह से सावधान था कि इसे कोई न पहचान सके मगर अपनी जुबान को क्या करता यह-आमतोर पर लोग कहते हैं कि पुलिस वाले गालियां इतने फर्राटे से देते हैं जैसे इन्हें ट्रेनिंग में में सिखाई जाती हों-------

--------सफेद नकाबपोश की गालियां सुनकर मुझे लोगों का यह कथन याद आ गया और दिमाग में विचार उभरा कि कहीं यह कोई पुलिस वाला ही तो नहीं ? दिमाग में यह ख्याल उभरते ही अक्षय का ख्याल आया क्योंकि संगीता मर्डर केस से अक्षय ही कनैक्टिड था--------


--------;डाक बंगले में श्योर नहीं हो पाई थी, केवल शक था या यूं कहा जाना चाहिए कि दिमाग में एक सम्भावना हुई थी, सम्भावना में कितना दम हे--- है भी या नहीं-यह जांचने में उस वक्त उसके रेजीड़ेस पर पहुची पापा, जव आप एम्बुलेंस में बैठे अस्पताल जा रहे ये-------


------जानती थी कि इस वक्त पर अक्षय घर पर नहीं है----बहीं उसकी पत्नी और दोनों बच्चे मिले--पत्नी का नाम कमला है, लड़की का स्वीटी और लड़के का बीशु--दोंनो बच्चे सोये हुए थे--कमला को मैंने अपना नाम . शकुन्तला बताया और कहा कि किसी अावश्यक काम से इंस्पेक्टर साहब से मिलना चाहती हु--उसके यह कहने पर कि इंस्पैक्टर साहब घर पर नहीं हैं, मैंने कहां, अाप ही से बात कर लूगी

अगर कोई मर्द होता तो रात के उस वक्त कमला कभी उसे घर के अन्दर अाने की इजाजत न देती मगर लेडीज होने का लाभ मिला-कमला मुझे ड्राइंगरूम में ले गई------



------वहां, दो जोडी के फोटो लगे हुए और दोनों ही पर मालाएं चढी हुई थीं जो इस बात का द्योतक थी कि दोनों जोड़े स्वर्गीय ---एक फोटो के नीचे लिखा था मिस्टर . एण्ड मिसेज राजेश श्रीवास्तव तथा दूसरे के नीचे लिखा था---मिस्टर एन्ड मिसेज सुब्रत जैन----इस नाम को पड़ते ही बिजली की तरह यह बात दिमाग में कौंध गई कि सुब्रत जैन, अतर जैन और गुलाब चन्द का भाई था-----


-------एक लिंक और मिल गया था मुझे अत: बातों-ही-बातों में कमला से पूछा--"ये फोटों किसके हैं है"'
"इनके माता-पिता के ?"


"हां ।"'


ऐसा कैसे हो सकता है, इनमें से एक ही जोडी तो इंस्पेक्टर साहब के माता-पिता होंगे ?"


कमला अजीब अन्दाज में मुस्करा: बोली-नी दोनों ही जोडे 'इनके' मां बाप हैं---ठीक उसी तरह जैसे कृष्णा के दो मां-बाप थे यानि एक जोडे ने इन्हें जन्म दिया दूसरे ने पाला ।"



जन्म किसने दिया ? मैंने पूछा---“और पाला किसने ?"'


"जन्म देने वाले मां-बाप वे है ।" कमला ने सुब्रत जैन की तरफ इशारा दिया और फिर दूसरे फोटो की तरफ इशारा करके बोली---'"पालने वाले वे ।"


"क्या मतलब ?"


"कुछ दिन पहले तक मैं खुद नहीं जानती थीं कि इनके मां-बाप दो हैं ।" कमला कहती चली गई---", तो इन्हें श्रीवास्तव साहब का बेटा ही समझती थी-मेरे पिता ने शादी भी यही सोचकर की थी कि ये श्रीवास्तव हैं---------

मगर कुछ ही दिन पहले मेरे हाथ इन्की पर्सनल डायरी लग गई
उसमें जैन दम्पति का फोटो रखा था और इनके पर्सनल जीवन की बोहत-सी बातें लिखी थीं-अन्य बातों के साथ-साथ डायरी में यह भी लिखा था कि करीब बारह वर्ष पूर्व 'ये’ अपने मां-बाप यानि जैन दम्पति के साथ ट्रेन में यात्रा कर रहे थे-इनके सामने वाली सीट पर श्रीवास्तव दम्पत्ति बैठे थे जो कि निःसन्तान थे और उन्हें 'इनकी' शरारत बहुत लुभा रही थीं अचानक उस ट्रेन का एक्सीडेंट हुआ जैन-दम्पत्ति मारे गये-------
---------श्रीवास्तव दम्पत्ति के हाथ ये लगे और उस घटना के बाद उन्होंने इन्हें अपना बेटा वना लिया-श्रीवास्तव दम्पती नितांत नये शहर में जाकर बस गये-बहां उन्हे कोई नहीं जानता था-कि ये उनके बेटे नहीं हैं-यह रहस्य किसी को न बताने के लिए श्रीवास्तव दम्पत्ति ने इन्हें भी समझा दिया-उन्होंने इनका नाम वही यानि अक्षय रखा केवल कास्ट चेंज कर दी यानि जैन की जगह श्रीवास्तव कहने लगे ।"

"ओह ।"



एक दिन इनका मूड देखकर यह बात कह दी कि मैंने डायरी पढ़ ली है-पहले तो ये "सन्न' रह गये मगर जब मैंने प्यार से पूछा कि यह बात आपने मुझसे छुपा क्यों रखी थी तो बोले, 'डरता था कि कहीं हकीकत जानने के बाद तुम मुझसे नफरत न करने लगो,-----मैंने कहा----इसमें भला नफरत करने की क्या बात है, भगवान् श्री कृष्ण के मां-बाप भी तो दो थे ।।"


"यानि इंस्पेक्टर साहब ने कुबूल कर लिया कि वे वास्तव में जैन हैं?"


"हां ।" कमला ने बताया----" तब मैंने यह फोटो डायरी से निकालकर खुद यहा, उतने ही सम्मान के साथ लगाया,जितने सम्मान साथ श्रीवास्तव दम्पत्ति का लगाया था, उस दिन यह इतने भावुक हो उठे कि रो पडे ।"
"यह जानकारी मेरे लिए धमाकेदार थी ।किरन कहती चली गई---"'बल्कि अगर यह कहा जाये तो गलत न होगा कि इस जानकारी ने मुझे हत्यारे का नाम साफ-साफ बता दिया था-अब तो जरूरत केवल यह जानने की थी कि अक्षय जैन ने क्या, कैसे किया है और जो किया है उसे साबित कैसे किया जा सकता है----बातों-ही-बातों में मैंने कमाला से यह पता लगा लिया था कि अक्षय का पर्सनल कमरा कौन -सा है----- बच्चे दूसरे कमरे में सोये हुए थे, सो मैं समझ गई कि मेरे जाने और अक्षय के अाने तक कमला उसी में बच्चों के पास सोयेगी------जानती ही थी कि डाक बंगले वाले केस में उलझा अक्षय तीन चार घन्टे से पहले घर अाने वाला नहीं है-----तीस मिनट तक कमला के सो जाने का इंतजार करके पाईप के जरिये छत पर पहुंची, वहाँ से आंगन में और आंगन से दवे पांव खाली पड़े अक्षय के कमरे में-दूसरे कमरे में बच्चों के साथ मौजूद कमला तब तक सो चुकी हो या न सो चुकी हो, मगर यह सच है कि मैं अपना काम मुकम्मल करके स्थान से निकल गई और कमाला को मेरे आने-जाने की भनक तक न लगी ।


"वहां क्या किया तुमने ?




“कमरे की तलाशी ली------इत्तनी सावधानी के साथ कि बाद में किसी को भनक तक न लगे कि कोई चीज छेडी गई है-कमरे में एक सेफ थी-उसकी चाबियों का गुच्छा वेड पर गद्दे के नीचे रखा मिल गया-सेफ़ का लॉकर तक खंगाल लिया मैंने किन्तु काम की कोई भी चीज हाथ न लगी । हर जगह की तलाशी लेने के बाद निराश-भी हो गई मैं-----अब नजर केवल राइटिंग टेबल पर जो एक कोने में दीवार से सटी रखी थी'----तीन दराजें थीं उसमें तीनों में ताले---- चाबी कमरे में कहीं न थी और इसलिए लग रहा था कि मेरे काम की वस्तु उसमें होगी---- चुंकि एक बार कमला उनकी पर्सनल डायरी पढ़ चुकी थी----अब वह डायरी को ऐसे स्थान पर नहीं रखता होगा--- जहां कमला के हाथों पहुच जाए, दराज की चाबी निश्चित रूप से किसी ऐसे स्थान पर होगी जहाँ से कमला को न मिल सके----"तलाश करते-करते जब दांतों तले पसीना अा गया मगर चाबी न मिली तो मैंने दूसरी तरकीब इस्तेमाल की ।"



“क्या ?"'



प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »

“पूरी मेज लकडी की थी और आप लोगों को अनुभव , होगा कि मेज का पिछला हिस्सा यानि उसके विपरीत हिस्सा जहाँ मेज का मालिक बैठकर लिखता है अक्सर कमजोर होता है-दरवाजों की बैक साइड में तो ज्यादातर लकडी का एक हत्का-सा "फ़ट्टा' भर लगा रहता है-----उस मेज में भी ऐसा ही फट्टा था और उस फट्टे को मैंने आराम से तोड़ दिया-दरबाजे के पिछले हिस्से मेरे सामने थे और उनमें था यह सामान जो मेरे काम का था-दरवाजों में हाथ डालकर मैं आराम से जो चाहू निकाल सकती थी ।"


"क्या-क्या था वहां ?"


"चार ब्रेक-शु काला नकाब, काला चौंगा, कीचड-युक्त जूते, ठीक वेसा चाकू जिससे संगीता का मर्डर हुआ था, प्योंइन्ट फाइव का "एक रिवॉल्वर गुलाब चन्द की लाश हन सकने वाला यह सामान और इन सबसे बढकर महत्वपूर्ण थी अक्षय जैन के नितान्त निजी जीवन को नंगा करती तीन डायरियां ? "



"तीन डायरियां ?"


"हां, तीन डायरियां थीं वे-उन्हें पढ़कर यह बात मेरी समझ में अाई कि कमला ने डायरी पढ़कर यह क्यों जान लिया कि अक्षय फो जन्म देने वाले मां-बाप जैन दम्पत्ति है और यह क्यों नहीं जान पाई वह हत्यारा भी है ।"


"ऐसा कैसे हुआ ?"
"इंस्पेक्टर साहब को काफी विस्तार से डायरी लिखने का शौक हैं-उसी शौक के कारण दो डायरियां भर चुकी है और तीसरी चल रही है------

-----इत्तेफाक से कमला के हाथ डायरी नम्बर एक लगी थी और उसका अंत वही था जहां इस्पेक्टर साहब ने यह लिखा है कि मैं अक्षय श्री वास्तव नहीं, अक्षय जैन हूं!"



"ओह !" सबके मुंह से एक साथ निकला ।



“अगर डायरी नम्बर दो कमला के हाथ लग जाती तो वह जान जाती कि पतिदेव कितने खतरनाक आदमी हैं---------उसकी शुरूआत ही इन पंक्तियों से है कि "मैं उस मंजर को कभी नहीं भूल सकता जब मेरे दादा और बड़े चाचा ने हमें धक्कै देकर निकल दिया था और न ही वह भूल सकता हू कि अपने पिता का अधूरा काम मुझे पुरा करना है ।" कहने का मतलब ये कि उसमें सब कुछ लिखा है _।"




"तुमने तीनों डायरियां पढ़ी हैं ।"



" हाँ ।" किरन ने कहा---" मगर उनका मजमून जानने से पहले ये जान लीजिए कि मैंने दराज में से केवल एक शू तीन डायरियां और गुलाब चन्द की लाश जानने बाला यह सामान गायब किया-बाकि सव अभी तक वहीं है !"


"बाकी सामान क्यों छोड़ दिया तुमने?" जज साहब ने पूछा ।



"ताकि इस मीटिंग के वाद अाप स्वयं उसे बरामद करें और आगे चलकर बचाव पक्ष के वकील को यह कहने का मौका न मिले कि मैंने वास्तव में यह सामान इंस्पेक्टर अक्षय की दराज से नहीं बल्कि अन्य से हासिल किया है ।"



शहजाद राय तपाक से बोले---- मुमकिन है कि सारा सामान तुम इसकी दराज में रखकर आई हो ?"



"अगर मैं रखकर आईं हूंगी तो उस सामान पर से इंस्पेक्टर साहव की अंगुलियों के निशान कैसे मिलेगें ?"
"क्या निशान मिलेंगे ?"

“बिल्कुल मिलेगे ।" किरन ने अपने एकाएक शब्द पर जोर देते हुए कहा----इसलिए मिलेंगे क्योंकि उन्हें वहीं वास्तव में अक्षय ने रखा है और मैंने रिवॉल्वर, चाकू या बाकी तीनों शू को छेड़ा तक नहीं है ।"

"गुड ।" बैरिस्टर विश्वनाथ कह उठे ।

' "सामान निकालने के बाद मैंने मेज यथास्थान ठीक उसी पोजीशन में रख दी जैसी मेरे छेड़ने से पहले थी और मैं वह पोजीशन ऐसी थी कि जो हिस्सा मैंने उखाड़ा था वह दीवार से सटा हुआ था यानि हिस्सा उखाड़ा हुआ था, यह बात तब तक किसी को पता लगने वाली नहीं थी जब तक कि मेज को वहां से हटाकर कहीं अन्य रखने का प्रयास न किया जाये और मेरी जनरल नॉलिज यह कहती थी कि मेज ऐसी चीज नहीं है जिसका स्थान कोई अाये दिन चेंज करता होगा-----“जनरल नॉलिज ने ठीक ही कहा था, यह बात इस बात से साबित हो जाती है कि इंस्पेक्टर साहब को अपने यहाँ चोरी को भनक यहाँ अाने तक नहीं थी ।"



"" डायरियों से तुमने क्या पढ़ा ?” जज साहब ने ।



"लिखने को तो इंस्पेक्टर साहब ने काफी लम्बी चौड़ी रामायण लिख रखी है मगर मैं संक्षेप में वे बांते बता देती हूं जिम्हें सुनने के बाद अाप लोगों के जहन में यह केस क्लियऱ हो जाये ।" कहने के बाद किरन शुरू हो गई"--------श्रीवास्तव दम्पत्ति को अक्षय ने अपनी उस 'आग' के बारे में कुछ नहीं बताया था जो सुव्रत जैन-ने उसके अन्दर भरी थी- श्रीवास्तव दम्पत्ति ने इन्हें पढाया, लिखाया और शादी की…पुलिस इंस्पेक्टर यह शादी के बाद बना-गुलाब चन्द की हत्या का विवरण तो मैं आपको बता ही चुकी हू-उसके बाद इसने अपना ट्रांसफ़र उस थाने में करा लिया जिस क्षेत्र में यह कोठी अाती थी..........कोठी की भगोलिक स्थिति देखने के लिए एक रात इसने खुद संगीता के जेवरों की चोरी की--------उन्ही में गुलााब चन्द की अंगूठियाँ थी…चोऱी की रिपोर्ट लिखवाई जाते ही इन्क्वायरी के लिए आ गया और इन्वेस्टीगेशन के बहाने सारी कोठी में घूमा -------

------ उन दिनो शेखर मल्होत्रा बिजनेस के काम से कलकत्ते गया हुआ था---छानबीन करते वक्त इसने शेखर और संगीता के बेडरूम की बाई दीवार से 'अटेच्ड' एक लोहे की आलमारी भी खुलबाई----एक नजर में देखने पर वह मात्रा आलमारी लगती धी…अक्षय को तो चूकि कोठी के चप्पे-चप्पे की जानकारी लेनी थी अत: अालमारी के सारे कपडे बाहर फिकवाकऱ खुद उसमें घुस गया--आलमारी आदमकद थी--- उस वक्त वह दीबारों को ध्यान से देख रहा था जब लगा कि आलमारी के टीन के फर्श पर जूतों की वैसी आवाज नहीं हो रही है जैसी होनी चाहिए-उसका ध्यार्व फर्श पर गया और यह देखकर चौ'क पड़ा कि फर्श आलमारी की दिवारों से ज्याइंटं नहीं बल्कि अलग था और 'स्क्रुज' द्वारा कसा हुआ था------


------घूंसे मार-मारकर उसे बजाते हुए संगीता से पूछा-----"इसके नीचे क्या है "


तब-मजवूर होकर संगीता को यह बताना पड़ा जो नहीं बताना चाहती थी यानि उसे कहना पडा कि कोठी में एक तहखाना है और यह तहखाने का रास्ता है ।”


"त-तो तहखाने का दूसरा रास्ता बह है ?" पलंग पर पड़ा शेखर मल्होत्रा बड़बड़ा उठा ।



“कहने का मतलब ये कि उस इन्ववायरी के बहाने अक्षय ने संगीता से यह जान लिया जो उसने शेखर मल्होत्रा तक को नहीं वताया था--हालांकि शेखर मल्होत्रा गुलाव चन्द के परिवार का सदस्य नही कहा जा सकता, मगर अक्षय की नजर में वह भी इस वजह से जीवित रहने का हकदार नहीं था क्योंकि उसने संगीता से शादी करने की हिमाकत की थी ---- हालात्त ऐसे थे जिनमें संगीता का कत्ल होने पर लोगों का सबसे पहले शक शेखर पर ही जाना था, अत: इस बार अक्षय ने एक तीर से दो शिकार करने की योजना बनाई यानि ऐसे मौके की ताक में लग गया जब संगीता का मर्डर करके शेखर मल्होत्रा को फंसा सके-इसके हाथ की लिखी डायरी साफ-साफ़ कहती है कि उन दिनों यह साये की तरह शेखर मल्होत्रा के पीछे लगा हुआ था जब "ताज पैलेस' में शेखर और संगीता के बीच फ़र्स्ट अप्रेल को लेकर चेतावनियों का आदान-प्रदान हुआ----बगल वाली सीटपर बैठकर इसने वे सारी बातें सुनी थी परन्तु उस वक्त कल्पना नहीं कर पाया था कि जिस मौके की उसे तलाश है वह मौका इसी बहस के कारण मिलने जा रहा है--------------------


----------चौंका वह जब अगले दिन शेखर को काला कपडा खरीदकर टेलर को नकाब और चौगा 'सीने' का आर्डर देते हुए देखा-इसने भी उसी दिन टेलर को नकाब काला कपड़ा देकर चोगा और नकाब सीने के लिए कहा-कहने का मतलब ये कि शेखर के प्लान का आभास हो गया इसे तथा इधर, इसने रधियां बुन्दू के सम्बन्धों का भेद जान लिया---------------


----------- अनपढ नौकरानी को भेद खोल देने और दोनों को जेल में डाल देने की धमकी भी दे दी कि अगर इस बारे में बुन्दू से कुछ कहा तो दोनों को जेल में सड़ा देगा-कम अक्ल रधिया इसके जाल में फंस गई-घटना वाली रात का उसने तीन दो -पांच खेलने के बहाने बुन्दू-निक्कू को जगाये रखा-चीख की आबाज सुनते ही उन्हें बेडरूम में ले गयी-औंर खुद इसी के द्वारा लये गये नम्बर पर फोन कर दिया-अाप जानते ही हैं कि यहां से थाने का रास्ता पांच मिनट से'ज्यादा का नहीं है ।"


"फिर ?”


“फिर -- क्यी इसका प्लान अक्षरश: कामयाब हुआ
शेखर इस हद तक फंस गया कि आज शायद इसे फांसी की सजा हो जाती, किसी ने इस बात पर गौर करने की जरूरत नहीं समझे कि हत्यारा कोई और भी हो सकता है-शेखर की नॉलिज में दूर--दूर तक अक्षय का खुद से या संगीता के परिवार से कोई लिंक न था, फिर भला बेचारा कैसे कल्पना कर सकता था कि चक्रव्यूह का रचियता इंस्पेक्टर अक्षय है---इसके ग्रह तो विपरीत दिशा में चलने तब शुरू हुए जब शेखर की बातों से प्रभावित होकर में रि-इन्वेस्टीगेशन लिए निकल पडी---------



---------बह शेखर की प्रत्येक गतिविधि पर तब तक नजर रखना चाहता था जव तक संगीता के कत्ल के जुर्म में सजा न हो जाये बल्कि कहना चाहिए कि नजर रख रहा था-तभी इसे पता था कि शेखर से प्रभावित होकर मैं रि'-इन्वेस्टीगेशन पर निकल चुकी हूं---मुझे आतंकित करने के लिए किराये के गुन्डों से हमला करवाना इसकी पहली भूल थी-इसने सोचा था कि मैं डरकर कदम वापस खींच लूंगी मगर जब इसकी सभी उम्मीदों के विपरीत मैं कोठी पर यानि यहाँ पहुच गई तो यह सोचकर बौखला गया कि अनपढ राधिया कोई बेवकूफी-भरी बात कहकर इसके किये---धरे को चौपट कर सकती है अतः मजबूर होकर रधिया को कल्ल किया-- गुलाब चन्द की लाश के रूप में बून्दू का गला दबाने की कोशिश का मकसद केवल आतंक और मुझे भ्रमित करने की चेष्टा करना था-यह बताने की जरूरत शायद बाकी नहीं बची है कि स्टडी का दरवाजा बन्द करके यह किस रास्ते से निकला और थाने में जा बैठा ।"


"क्या इस बारे में भी पता लगा कि हमारे फोटो रधिया के कमरे में कैसे पहुचें ??"' शहजाद राय ने पूछा !!!

“डायरी में इसने आपके फोटो और चिट्टियों के बारे में भी लिखा है, कि वह लिफाफा इसे तहखाने से उस मिला जब चोरी की इन्कवायरी करने के बहाने कोठी की भौगोलिक स्थिति जानने आया था-ब्लैक-मेल भी अपको यही करता रहा है परन्तु रधिया की मौत के बाद लिफाफा मेरी तवज्यो आपकी तरफ मोड देने के मकसद से उसके कमरे में रख दिया ।"



“इसने यह कैसे जाना कि तुम सबके फोटुओं का क्या करोगी ? "



"चाकू विक्रेता के कत्ल के बाद लिखे पुष्ट परे इसने साफ लिखा है कि अाज मैं ‘अहमद' का सफाया कर अाया क्योंकि वह किरन को बता सकता था कि शेखर के तुरन्त बाद ठीक वेसा ही चाकू मैंने खरीदा था-------मैं इतना बेवकूफ नहीं हुं कि इतना भी अन्दाजा न लगा सकू" कि उसने सबके फोटो क्यू कलेक्ट किये है !"



" डायरी में गिरधारी लाल के बारे में लिखा है कुछ ?"'


बैरिस्टर विश्वनाथ ने पूछा ।


"लिखा है कि आज एक ऐसी घटना घटी जिसे मैं इस दुनिया का नौवां आश्चर्य कह सकता हु, और साथ ही मुझे यह विश्वास हो गया कि मेरे सितारे बुलन्दी पर हैं किरन तो है क्या चीज , दुनिया की कोई ताकत कभी नहीं जान सकती कि संगीता की हत्या मैंने की है---' पुलिस जीप में मैं अकेला चीथड़ रोड से गुजर रहा था कि लम्बी दाढी वाले एक युवक ने मुझें रोका, किसी के द्वारा अपनी जेब कटी जाने की शिकायत की मगर मेरा ध्यान उसके शब्दों पर नहीं, शाल पर था-लम्बी और धनी दाढी के पीछे मुझे शेखर मल्होत्रा का चेहरा नजर आ रहा था…एक बार तो मन में शंका उठी कि कहीं शेखर मल्होत्रा को आगे करके किरन मुझे किसी के जाल में तो नहीं फंसा रही है-मगर दाढी असती यी अत: लगा कि चक्कर कुछ और है---- उसके साथ एक बच्चा भी था -जीप में बैठाकर मैं उन्हें डाक बंगले पर ले गया ।
दाढ़ी साफ होते ही यह देखकर दंग रह गया कि वह हू-ब-हू शेखर मल्होत्रा नजर आ रहा था…काफी पूछताछ के वाद इस नतीजे पर पहुचा कि शेखर मल्होत्रा से उसका दूर का भी कोई सम्बन्थ नहीं है… उसका नाम गिरधारी लाल हैं बडौदा का रहने बाला है, बच्चा उसका बेटा है-जव भी उसकी शक्ल याद आती है तो सोचता हु, कि यह कैसे सम्भव है विश्वास नहीं होता मगर जो सामने है उसे झुठला भी नहीं सकता, अंत: यह सोचकर संतोष कर लेने के अलावा "कुछ नहीं है कि दुनिया के आश्चर्यों में से वह मैं एक आश्चर्य है-------
----- गिरघारीलाल को अपनी अंगुलियों पर नचाकर अब मैं किरन को ऐसे-ऐसे खेल दिखाऊंगा कि जीवन में फिर कभी किसी केस की रि-इन्वेल्टीनेशन के बारे में सोचने तक से थर्राया करेगी ।"



रमन ने पूछा…"उस पत्र का क्या चक्कर था किरन जी, जो कल रात आपने मुझे दिखाया था ?"



"एक पत्र तो हमेँ भी दिखाया था तुमने ।" शहजाद राय ने कहा ।



किरन हौले से मुस्कुराई बोली----“वे दोनों पत्र खुद मैंने लिखे थे !"



" त-तुमने !" दोनों उछल पड़े-“क-क्यों?"


“मैटर ऐसा बनाया था कि अाप दोनों के दिमाग उसमें उलझ जाये और वे पत्र आपकी पढ़ाने के पीछे जो मेरा
असंली मकसद था उस तक अापकी तवब्जो न पहुच सके !"


"तुम्हारा मकसद क्या था ?"


"आपकी अंगुलियों के निशान लेना ।"


"अंगुलियों निशान ----- मगर उनका तुमने क्या किया ?"



"कल रात किसी-न-किसी बहाने से मैंने सभी की अंगुलियों के निशान लिए थे, जैसे अाप दोनों के लेटर्स पर अक्षय के रिवॉल्वर पर, जज साहब के पैन पर अतर एण्ड फेमिली के निवकू और बुंदू को साफ-साफ़ कहकर ।"


"लेकिन जव तुम जान चुकी थी कि हत्यारा केवल इंस्पेक्टर अक्षय है तो हम सबकें निशान लेने की क्या जरूरत थी ?"




"क्योंकि एक भेद ऐसा था जिसे अक्षय की डायरी न खोल सकी थी ।"



"वह क्या ?"



"अक्षय ने अपनी डायरी में साफ लिखा है कि तहखाने का बल्ब होल्डर से निकालकर ड्रम पर मैंने नहीं रखा हालांकि किरन को मैंने यह कहकर टाल दिया है कि बल्ब पर कोई निशान नहीं मिले मगर वास्तविकता ये है कि फिंगर प्रिन्टृस एक्सपर्ट कहता है कि बल्ब पर किसी की अंगुलियों के निशान हैं-ऐसे, जैसे बल्ब को वहुत दिन पहले किसी ने छेडा हो, इस पंक्तियों को पढ़कर मन
में यह जानने की उत्सुकता जागी कि आखिर बल्ब होल्डर से उतारकर ड्रम पर किसने रखा और इस सवाल का
जवाब पाने के लिए सम्बन्धित सभी लोगों की अंगुलियों के निशान रात ही मैं एक्सपर्ट को देकर अाई । आज सुबह वह अपनी रिपोर्ट दे चुका है ।"'


"किसके निशान वे ?"


"बल्ब पर रधिया की अंगुलियों के निशान हैं ।"


"रधिया के ?"'


."'इनसे स्पष्ट होता है कि रधिया तहखाने के अस्तित्व से वाकिफ थी !"


"मगर रधिया के अंगुलियों के निशान तुमने एक्सपर्ट को कहां से दिए ?"


"रधिया के निशान तो एक्सपर्ट के पास थे ही-तब के, जब उसने तहखाने से निशान उठाये थे---चूक यह हूई थी कि-------

उन निशानों का मिलान बल्ब पर मिले निशानों से नहीं किया रात जब मैंने रधिया के निशानों का मिलान भी बल्ब पर मिले निशान से करने के लिए कहा तो सुबह परिणाम सामने था ।"

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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »

बडी गहरी नजरों से उसे देखती हुई किरन ने पूछा---"अब कहिए पापा----- अब कहिए कि हत्यारा शेखर मल्होत्रा, इस्पेक्टर अक्षय जैसी हस्ती को अरेंज कर रखा था उसने
और---------



"बस-------उस ।" बैरिस्टर साहब ने झपटकर उसका मुंह भींच लिया, बोले----".लोगों के सामने और ज्यादा
बेइज्जती मत करो, हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगे !"



" अरे!" जज साहब चौंके-“ये क्या हो रहा है बैरिस्टर साहब, किरन को बोलने क्यों नहीं देते ?"



"व-वा-------- वो --------- बात ये है सर कि हमारी इस बेटी ने हमे "धोबी-पाट' मारा है……ऐसा धोबी पाट कि हम मुंह के बल जमीन पर पड़े अभी तक जमीन चाट रहे है !"



"हम समझें नहीं ?"


" बात यह है सर कि हम रात तक यह कह रहे वे कि--------


वाक्य बैरिस्टर साहब भी पूरा न कर सके ।


उनके मुंह पर हाथ रखे कह रही थी किरन----नहीं पापा नहीं ।"



बेटी की इस अदा पर बैरिस्टर साहब के ह्रदय से उसके प्रति मुहब्बत का सैलाब-सा उमड़ पड़ा, प्यार की ज्यादती के कारण आंखें भर अाई और मुंह से उसका हाथ हटाकर
कुछ कहना ही चाहते थे कि जज साहब ने कहा----“अरे क्या खेल हो रहा है भई, तुम उसे नहीं बोलने दे रहे-बह तुम्हें नहीं बोलने दे रही, आखिर हमेँ भी तो बताओ कि क्या बात है ?"



"दरअसल मेरे और किरन के बीच में यह बहस छिड्री हुई थी सर कि हत्यारा शेखर मल्होत्रा है या कोई और रात तक हम इसी बात पर अड़े हुए थे कि हत्यारा शेखर ही है मगर---------अब-------मैं फ़ख्र के साथ का सकता है सर कि मेरी बेटी ने मुझे शिकस्त दे दी, इसने साबित कर दिया कि यह बैरिस्टर विश्वनाथ की बेटी है ।"


“ओह तो तुम शिकस्त कुबूल कर रहे हो ?"'


"यस सर ।"


"भला ये भी शिकस्त कुबूल करने का कोई तरीका है ?"


"ज-जी--------क्या मतलब ?"



“सीधे खड़े होकर बेटी को जोरदार सैल्यूट मारो ।"


और फिर ।


बैरिस्टर विश्वनाथ ने सचमुच पूरे सम्मान के साथ किरन को सैल्यूट मारा ।


हाँल में ठहाके गूंज गये, जब साहब खुद जोर’-जोर से हँस रहे थे ।


लजा गई किरन, नन्हीं-सी गुडिया बनकर अपने पापा के सीने में चेहरा छुपा लिया उसने ।
केस खत्म हो चुका था ।


शायद यह देखकर-कि बचाव का कोई रास्ता नहीं बचा है इंस्पेक्टर अक्षय ने भी ज्यादा हाथ-पेर न मारे--मीटिंग के बाद कोठी धूमी गई, तहखाने का रास्ता नम्बर दो चैक किया गया और इंस्पेक्टर अक्षय की दराज से काफी सामान बरामद किया गया, हकीकत जानने के बाद कमला बेचारी दहाड़े मार-मारकर रोई थी ।



अतर एन्ड फेमिली को कोठी छोड़नी पडी ।


केस अदालत में पहुंचा ।


बचाव पक्ष के लिए कहने को कुछ था ही नहीं।


फिर भी कानूनी औपचारिकतायें तो निभाई ही जानी थी --सो, निभाई जा रही थी ।


सरकारी वकील के रूप में एक बार फिर बैरिस्टर विश्वनाथ कोर्ट में खड़े थे । मगर सच्चाई ये है कि करनेके लिए उनके पास भी कोई खास काम न था----सारा काम है अपनी रि-इन्वेस्टीगेशन के दरम्यान किरन ने कर दिया था । सबूत इतने पुख्ता थे कि दुनिया की कोई ताकत उन्हें काट नहीं सकती थी ।



सबसे बडी गवाह थी अक्षय जैन के अपने हाथ से लिखी डायरियां ।


तारीखें लग रही थी, केस आगे चल रहा था ।


और.........


इस गुजरते वक्त के साथ शेखर मल्होत्रा स्वस्थ होता चला गया ।



किरन ने ठीक ही कहा था कि अगर दो व्यक्तियों के बीच भावनात्मक लगाव पैदा हो चुका है तो दुनिया की की ताकत, दुनिया की कोई साजिश उसे पनपने और बढ़ने से नहीं रोक सकती!



इतिहास मानो स्वयं को दोहरा रहा था ।



वर्षों पहले जोश और जनून में फंसा शेखर मल्होत्रा सब कुछ भूलकर संगीता के लिए विधायक के बेटे पर टूट पड़ा था…उस घटना से संगीता के दिल में उत्पन्न हुई चिंगारी शेखर मल्होत्रा के जिस्म पर चढा प्लास्टर उतरने तक "मुहब्बत के रोशन चिराग' में तब्दील हो गया था…


करीब-करीब ऐसा ही पुन: हुआ, डाक बंगले में घटी घटना ने किरन के हृदय में चिंगारी पैदा की थी वह शेखर के स्वस्थ होते-होते 'मुहब्बत की रोशन मीनार' बन गई ।


बैरिस्टर विश्वनाथ सब समझ रहे थे ।


शुरू में तो थोडा अजीब लगा उन्हें मगर फिर जब गहराई से सोचा था तो पाया कि बुराई क्या है?



शेखर खूबसूरत है । युवा है-करोडों का व्यापार है उसका।


बेटी सुखी रहेगी ।

सो !


गुलाब चन्द की तरह नादानी नहीं दिखाई उन्होंने किरन को किसी किस्म के विद्रोह का अवसर न दिया बल्कि खुद जागे बढे-----------------------

-------- बेटी की इच्छा के अनुसार शादी तय कर दी उन्होंने ।


उस दिन "भावविहल' होकर किरन अपने पापा से लिपट गई थी ।
"रात के इस वात कहाँ जाने की तैयारी हो रही है पापा ?"



"जज साहब के पास जा रहे है, उनके साथ जेल जायेगे-सुबह अक्षय को फांसी दी जानी है न, हमें वहां मैजूद रहना होगा-सो सुबह का प्रोग्राम सैट करने जा रहे हैं । मगर हमारी बेटी ने कहाँ की तैयारी की है?"


किरन जवाब न दे सकी, लजा गई वह ।


बैरिस्टर विश्वनाथ ने किरन को ध्यान से देखा ।


झिलमिल करती सितारों टंकी काली साड़ी में किरन का रंग कुछ यूं निखरा नजर आ रहा था मानो कमल के बहुत बड़े फूल के निचले हिस्से को रेशमी काले कपडे से ढांप दिया था, बोले----शेखर से मिलने जा रही हो न ?"


जवाब आहिस्ता से गर्दन झुकाकर दिया उसने ।


बैरिस्टर साहब गम्भीर स्वर में बोले----''' बुरा न मानो तो एक-बात कहे किरन ।"



"ज-जी ?"' किरन ने अपना मुखड़ा ऊपर उठाया !'


"बोलिए ।"'


"शादी में केवल दस दिन बाकी रह गए हैं और तक अब तुम लोगों को मिलना जुलना बन्द कर देना चाहिए-यह अनुभव की बात है बेटी, जिससे रोज मिलती हो, उससे दस दिन के विरह के बाद मिलोगी तो मिलन अलौकिक होगा ।"



" ब-बस आज पापा !" उसने बच्चों की तरह जिदृद की------“आज़ के बाद, फिर शादी के बाद ।"


विश्वनाथ ठहाका लगा उठे, बोले-बड़ी शरारती हो गई हो तुम?"
"आइए ।" बुन्दू ने कहा…“आइए मेमशाब !" शेखर के बेडरूम में दाखिल होते किरन ने पूछा----"तुम्हारे मालिक साहब नहीं अाए अभी ?"


"फैकट्री से उनका फोन अाया था मेमशाब !" बुन्दू जानता था कि दस दिन बाद किरन उसकी मालकिन बनने बाली है-----" बता रहे थे अाप अयेंगी, आपको बैठा दूं !!! वे आठ बजे तक आ जायेगे ।"


पौने आठ बजा रही रिस्टवॉच पर नजर डालती वह टेप-रिकार्डर की तरफ़ बढ़ गई !!!!!


" कॉफी ------- चाय -------कुछ बनाऊं मेमशाब हैं"'



"नहीं ।" किरन, कैसिट स्टैण्ड में लगी कैसिटृस को देखती हुई बोली-----बह देखने का प्रयत्न कर रही थी कि पन्द्रह मिनट कैन-सी कैसिट सुनकर गुजारे जाये-------


--------अचानक उसकी नजर एक ऐसी केसिट पर पड़ी जिसके बॉंक्स पर ढेर सारी मिट्टी लगी हुई थी !! बोली-----" अरे इस पर इतनी मिट्टी कहाँ से लग गई बुन्दू ?'



"आज दिन में मुझे लॉन में मिली थी मेमशाब------जाने किस बेवकूफ़ ने लॉन में डाल दी और फिर मिट्टी के नीचे दब गई--------एक पौधे को रोपने के लिए मैं क्यारी में 'खुरपा' चला रहा था तो मिली जरूर यह हरकत अतर जैन के परिवार के किसी आदमी की होंगी------किसी चीज को सम्भालकर नहीं रखते थे वे-हुहहह उनके बाप का माल तो था नहीं ।"



किरन मुस्कुरा दी ।



न कैसिंट बॉक्स पर कुछ लिखा था, न कैसिट पर ।


उसने वही कैसिंट रिकॉर्डर में डाली और "प्ले" वाता स्विच अान कर दिया ।


बुन्दू ने हिचकिचाते हुए पूछे----""अगर इजाजत हो तो बेकरी बाले तक हो आऊं मेमशाब !"


" क्यों ?"


"सुबह के ब्रेकफास्ट के लिए डबल रोटी लानी है न !!!"



"निवकू कहां गया ?"



"गांव गया है मेमशाब ।"



"चले जाओ ।" कहने के बाद वह सोफे की तरफ़ बढ़ गई !


बून्दू चला गाया !!
सोफे पर बैठकर किरन ने अभी पहली ही सांस ली थ्री कि इस तरह उछलकर खडी हो गई जैसा सोफा…सोफा नहीं बल्कि दहकता हुआ तवा हो ।




दिल घक्क से रह गया ।


सांसें जहाँ की तहाँ रुक गई ।


टेपरिकॉंडर से इंस्पेक्टर अक्षय की आवाज निकली थी ।



"" सुनो कमला !" वह कह रहा था------“इस कैसिट के जरिए जो कुछ तुमसे कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो और जो कहू उस पर अमल करना----जिसके पास यह है वह इसे ठीक उस दिन तुम्हारे 'एड्रेस' पर पोस्ट कर देगा जिस दिन मैं "फांसी पर चढाया जा चुका हूंगा । यानि मेरी मौत के दूसरे, तीसरे या ज्यादा-से-ज्यादा चौथे दिन कैसिट _ तुम्हें मिल जाएगी ।"



किरन का दिमाग मानो 'कोमा' में पहुच गया था ।



टेपरिकार्डर कहे जा रहा था---“तुम्हें याद होगा एक दिन मैंने तुमसे कुछ फार्मों पर साइन कराए थे…इंगलिश के फार्म थे वे और तुम इंगलिश जानती नहीं हो,सो समझ न सकी थीं कि काहे के फार्म हैं-----तुमने पूछा भी था मगर मैंने यह कहते हुये वात मजाक में उड़ा दी कि फिक्र मत करो, तलाक के फार्म नहीं हैं-------चे फार्म "स्विस बैंक' के थे कमला और तुम्हारे साइन से स्विटूजरलेंड की राजधानी की "मेन ब्रांच' तुम्हारा एकाउन्ट खुल गया था---- उसमें तुम्हारे नाम बीस लाख रुपये जमा हैं नन्हीं-सी स्वीटी और प्यारे से वीशू के लेकर स्विटृज़रलेड चली जाना ।



मेरे बच्चों को पड़ाना-लिखाना ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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