चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
"हां !"
"बीबी-बच्चे ?"
"नीचे चौंक में । अक्षय ने बताया-- "मकतूल की बीवी का कहना है कि वह छत पर इसलिए नहीं सोती थी क्योंकि बच्चे वहीं सोते थे जहाँ वह सोती थी और छत पर बच्चों को सर्दी लगने का डर रहता था ।"
“किसी ने किसी को भागते देखा ?"
"नहीं ।"
"क्या मैं लाश को देख सकती हुं ?"
"देख तो सकती है मगर प्लीज, फिगर प्रिन्टृस विभाग वालों के अाने से पूर्व लाश या उसके अास-पास की किसी वस्तु के साथ छेड़खानी न करे---मैंने पोस्टमार्टम और फिगर प्रिन्टृस वालों को फोन कर दिया है ।"
"चलिए ।" किरन ने कहा ।
और नब्बे गज में बने दो कमरों के छोटे से एक मंजिल मकान की "दुबारी' से वे चौक में पहुचे---मकान के बाहर वाकी भीड़ जमा थी परन्तु दरवाजे पर तैनात पुलिस वाले किसी को अंदर नहीं ----जाने दे रहे थे ।
अंदर वाले कमरे रोवा-राट मचा हुआ था ।
चौक के एक कोने से शुरू होकर छत तक चले गए इतने कम चौड़े जीने पर अक्षय के पीछे चढ़ती किरन छत पर पहुंची जिसमें से एक समय में एक ही व्यक्ति गुजर सकता था ।"
छत पर तेज धूप खिली हुई थी ।
टूटे बानों वाली ढीली चारपाई पर चाकू-विक्रेता की लाश पडी थी ।
आँखे बंद किये ।
मानो सो रहा हो ।
गोली उसके मस्तक के दाई तरफ, कनपटी के नजदीक यानि करीब-करीब वहाँ मारी गई थी जहाँ के लोग अक्सर आत्महत्या के इरादे से मारते हैं----काफी बडा 'सुराख' नजर अा रहा था वहां और सुराख के चारों तरफ जम चुका था मक्तूल का गाढा लहू।
खून का रंग काला पड़ चुका था ।
बहती रक्त उसके गाल से होकर दाढी के बालों और चारपाई के 'बानों' को भिगोत्ता छत पर गिरा था-इस वक्त सारा का सारा खून सूख चुका था और उस पर मक्खियां भिन्न-भिना रही थीं । भिनभिनाती मक्खियां मक्तूल की कनपटी पर बने गोली के सुराख के अन्दर तक घुसी हुई थी !
लाश पर नजरें टिकाये किरन ने कहा---"हत्यारे को मालूम था कि गोली की आवाज लोगों को जगा देगी और उसे दूसरी गोली चलाने का अवसर नहीं मिलेगा इसलिए उसने पहले ही गोली ऐसे स्थान पर मारी कि मक्तूल के मर जाने में किसी किस्म का सन्देह न रहे ।"
"गोली मक्तूल की कनपटी से रिवॉल्वर की नाल को बिल्कुल सटाकर चलाई गई है क्योंकि गोली के सुराख के चारों तरफ़ बारूद के कण 'जमे हुए' साफ नजर आ रहे है ।"
"ये "फुट स्टेप्स' किसके हैं ?" किरन ने कीचड द्वारा विलकुल साफ वने जूर्तों के निशानों की तरफ संकेत करके पूछा ।
"सम्भावना तो यही है कि निशान हत्यारों के जूतों के होने चाहिए ।”
"कमाल है ?" किरन चारपाई से लेकर छत की छोटी-सी पिछली 'मुंडेर' तक स्पष्ट वने जूतों के निशानों को देखती हुई बोली…“हत्यारा अपने जूतों के इतने स्पष्ट निशान छोड़ गया ।"
"मज़बूरी थी उसकी ।" अक्षय ने कहा'……'"यहां यानि मकान की छत पर पहुचने का उसके पास सबसे आसान रास्ता मकान के पीछे मौजूद वह अत्यंत संकरी गली थी जिसमें आसपास के सभी मकानों का पानी और मैल गिरता था तथा गली में इतनी कीचड़ है कि उससे बचकर कोई यहां पहुंच ही नहीं सकता ।”
अक्षय की बात खत्म होते-होते किरन सूखी कीचड़ से बने फुट-स्टैंप्स से खुद को बचाती छत की पिछली मुंडेर के नजदीक पहुंची, नीचे झांका-मुश्किल से एक मीटर चौड़ी और छत से केवल पन्द्रह फूट गहरी कीचड भरी गली थी वह…एक तरफ़ से दूसरी तरफ एक सड़क पर खुलती-दोनों तरफ़ बने मकानों के बंद, गन्दे पानी के पाइपों के मुह गली में खुलते थे…चाकू विक्रेता के मकान के पाइप के साथ-साथ दीवार पर उन्हीं जूतों के निशान थे । "
अच्छी तरह निरीक्षण करने के बाद पलटती किरन ने कहा---"हत्यारा आया भी इधर ही से था और गोली मारने के बाद भाग भी इधर से ही गया ।"
"जी हां ।"
अपने हाथ की "बिंलांद' से फुट-स्टेप्स को नापने का प्रयत्न करती किरन ने अक्षय से सवाल किया---" क्या रधिया की गर्दन या तहखाने से मिले बल्ब पर से उठाये गये अंगुलियों के निशानों की रिपोर्ट आ गई है ?"
"हां , मगर रिपोर्ट निराशाजनक है ।"
"क्यों ?"
"हत्यारे ने गलब्स पहन रखे थे ।"
"ओह ।" किरन ने निराशाजनक अन्दाज में उसकी तरफ देखा ।
पंचनामा होने के बाद लाश के पोस्टमार्टम के लिए रवाना होने तक लंच टाइम हो गया और "इंस्पेक्टर अक्षय को विदा करके किरन लंच हेतु उसी इलाके के एक होटल में दाखिल हुई ।
डायनिंग हॉल में ज्यादा भीड़ थी ।
एक कोने की मेज पर जाकर तन्हा-सी बैठ गई वह' तथा लंच के दरम्यान प्रत्येक पल संगीता मर्डर केस के बारे में सोचती रही---एक-एक किरदार जहन के पर्दे से गुजरता रहा, परन्तु किसी ठोस नतीजे पर न पहुंच सकी!!
लंच के बाद 'कसाटा' का इन्तजार कर रही थी कि अचानक चौंक पड़ी !!
बल्कि अगर यह कहा जाये तो गलत न होगा कि इस तरह उछल पड़ी जैसे सैकडों बिच्छुओं ने यूनियन बनाकर डंक मारा हो और उसके उछल पड़ने का कारण था शेखर मल्होत्रा ।
हालांकि शेखर मल्होत्रा की हालत ऐसी कतई न थी कि वह चल-फिर न सकता हो, मगर डॉक्टर ने आराम की सलाह दी थी वह स्वयं भी सख्ती से, विस्तर से न उठने के लिए कह कर अाई थी । मगर वह उसकी आंखों के सामने मौजूद था ।
वहां मौजूद था जहाँ उसके होने की किरन कल्पना तक नहीं कर सकती थी ।
उसके जिस्म पर इस वक्त एक ढीली-ढालीं, आंखों को चुभने वाले चटक लाल रंग की शर्ट थी-अत्यन्त घिसी हुई जीन , गले में हरे रंग का ऐसा मफ्लर जिस पर काले रंग के सर्प बने हुए थे !!!
पैरों में जूतों पर जैसे महीनों से पालिश नहीं हुई थी !!!
हॉल के दरवाजे पर खडा वह चारों तरफ खोजी दृष्टि ‘ से देख रहा था, किरन पर नजर पड़ते ही उसकी तरफ बढ गया
नजदोक पहुंचते-पहुचते शेखर मल्होत्रा के होंठ मुस्कुराने के अन्दाज में फैल चुके थे ।
किरन न मुस्कुरा पाई ।
लगभग गुड़क पड़ी वह…"तुम इस वक्त यहां क्या कर रहे हो ?"
"आप ही को दूढ रहा था !"
"क्यों ?"
"लगता है कि अाम लोगों की तरह आप भी धोखा खा रही है ।"
" धोखा -कैसा ? "
" आप मुझे शेखर मल्होत्रा समझ रही हैं न ?"
"समझ रही हूं मतल्ब ?" किरन उछल पड़ी----"त-तुम शेखर मल्होत्रा हो नहीं कया ? "'
"मैं तो शेखर मल्होत्रा ही हूं मगर बह शेखर मल्होत्रा नहीं है जिसे अाप शेखर मल्होत्रा समझती हैं ।"
" क -- क्या बक रहे हो तुम ?" आश्चर्य की पराकाष्ठा के कारण किरन के हलक से किल्ली सी निकल गई !!
' "वह मेरा जुड्रवां भाई है, विनोद मल्होत्रा ।"
"व-विनोद मल्होत्रा" किरन की हैरानगी का कोई ठिकाना न रहा----" ज---जुड़वा भाई ?"
“जी हां ।"
"म-मगर ऐसा कैसे हो सकता है ?" किरन चीख-सी पड़ी----“असम्भव--नामुमकिन-हालांकि तो उसका कोई भाई ही नहीं है और अगर होता, तब भी दोनों की शक्ल इस हद तक नहीं मिल सकती---जुड़वा भाइयों में भी कोई-न-कोई फर्क जरूर होता है----कद काठी, चेहरा-मोहरा ........सव कुछ सेम-टु-सेम नहीं हो सकता ।'"
" यही तो आश्चर्य की बात है किरन जी, हम दोनों सेम हैं --- यहां तक की आवाज भी मिलती है !"
बुरी तरह हैरान किरन ने कहा--लेकिन उसने तो नहीं बताया कि उसका कोई जुड़वां भाई है ।"
"वह भला क्यों बताने लगा हैं" कथित शेखर मल्होत्रा रहस्यमय ढंग से मुस्कुराया ।
"क-क्यों ...... नहीं बतायेगा ?"
“मेरे अस्तित्व तक को नकारता है वह ।"
" मगर क्यों ?" सस्पेंस की ज्यादती के कारण किरन चीख पडी ।
"आपकी इस छोटी सी क्यों के पीछे एक लम्बी कहानी छुपी है किरन जी-इतनी लम्बी कि मेरे पास उसे सुनाने का वक्त नहीं है ।"
उसे घूरती हुई किरन गुर्राई----अगर तुम यह सोच रहे हो कि मैं इस बकवास पर यकीन कर रही हू तो तुम बड़े भुलावे में हो मिस्टर ! "
"क्या मतलब ? "
“जुड़वां की बात ही दुर तुम शेखर मल्होत्रा के भाई हो नहीं सकते ।"
"पहली बात तो ये कि आप विनोद मलहोत्रा को वार-बार शेखर मल्होत्रा कह ऱही है "और दूसरी ये _कि अगर मैं उसका भाई नहीं हु, तो क्या अाप बता सकती है कि मेरी शक्ल उससे इतनी ज्यादा क्यों. मिलती है कि अाप अभी तक मेरी शक्ल और उसके बीच फर्क नहीं दूंढ पाई है ?"
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
“तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि असली शेखर मल्डोत्रा तुम हो और उसका नाम विनोद मल्होत्रा है जिसे सब लोग और मैं भी आज़ तक शेखर मल्होत्रा समझती रही हूं ?"
"जी हां असलियत यही है ! ”
“और तुम उसके जुड़वा भाई हो ?"
"निःसन्देह ।"
"बैठो ।" किरन उसे वहुत ध्यान से देख रही थी !"
वह मेज के पार, उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया !!!
तभी वेटर "कटासा ले जाया ।
किरन ने पूछा----" कसाटा लोगे ?"
“नो थेंक्स ।" उसने सभ्य स्वर में कहा !
किरन अपने अंतरिक्ष में मंडराते दिमाग को काबू में करने की भरपूर चेष्टा कर रही थी----निश्चय नहीं कर पा रही थी कि यह मुजरिम की कोई नई चाल है अथवा यह शख्स शेखर मल्होत्रा का भाई है, हकीकत पता लगाने के मकसद से उसने सवाल किया…“कहां रहते हो तुम?"
“इस शहर में नहीं रहता !" कथित शेखर मल्होत्रा ने जवाब दिया---- " बल्कि अगर कहा जाये तो गलत न होगा कि चाहकर भी उस शहर में नहीं रह सकता जिसमें विनोद रहता है !"
"क्यों ?"
"कभी विनोद ऐसा चाहता था और अाज मैं नहीं चाहता ।"
"पता नहीं तुम क्या कह रहे हो, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है ।"
“अगर मेरी और विनोद की कहानी की 'डैफ्थ' मेँ जायेगी तो निश्चित रूप से दिमाग चकराकर रह जाएगा, अत बेहतर यहीं होगा र्कि उसकी "डेपथ' में घुसने की चेष्टा न करें और वह सुने जो कहने अाया हूं ।"
“क्या कहना चाहते हो ?"'
"आप विनोद को बेगुनाह साबित करने के अपने मिशन से हाथ वापस खींच लें ।"
" क्यो ?"
"वाक्य सुनते ही किरन संभलकर बैठ गई , बोली---" क्यों ?"
"क्योंकि वह आपकी बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है-क्योंकि वह एक नम्बर का धूर्त, हरामी, चालाक, खतरनाक, लालची और क्रिमिनल है… क्योंकि वह आपकी दया और सहानुभूति का पात्र नहीं है, इसलिए नहीं क्योंकि उसने सचमुच संगीता की हत्या की है-गुलाब चन्द का हत्यारा भी बही है ।"
"तुम अपने भाई के बारे में यह सब कह रहे हो ?"
“हुंह, किसका भाई. . .कैसा भाई ?" नफरत से मुह सिकोड़कर---"सच्चाईं को मुझे इसलिए कबूल करनी पड़ती है क्योंकि दुर्भाग्य से हमने एक ही कोख से जन्म लिया था-इसके अलावा हम दोनों के बीच भाई तो भाई, ऐसे सम्बन्ध भी नहीं हैं जैसे दो अजनबियों के बीच होते हैं--मैं उसके लिए कलंक हूं और वह मेरे लिए-कभी वह मेरी शक्ल नहीं देखना चाहता था, आज मैं उसकी शक्ल नहीं देखना चाहता, उसकी हरचंद कोशिश यह है कि मुझे दुनिया से गारद कर दे और मेरा प्रयास भी यह है कि वह इस दुनिया से उठ जाये ।"
"और इसलिए मुझसे यह कहने आये हो कि मैं उसकी मदद न करूं ?"' किरन ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा !!!
उसने निःसंकोच स्वीकारा-था --" हां !"
चकित किरन ने कहा-“यानि मैं जानते-बूझते तुम्हरे कहने से उसकी मदद बंद कर दू कि तुम उसे इस दुनिया से उठा देखना चाहते हो ?'
कथित शेखर मल्होत्रा ने एक लम्बी और गहरी सांस ली बोला--इसका मतलब है कि अपनी लम्बी कहानी के कुछ महत्वपूर्ण अंश मुझे सुनाने ही पड़ेगे ।"
"अगर जरूरी समझते हो तो सुनाओ ।"
"सबसे पहली बात तो अाप अपने दिमाग में यह बैठा लें कि मेरी जान विनोद मल्होत्रा की मुटठी में बंद है ।"
"क्योंकि वह आपकी बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है-क्योंकि वह एक नम्बर का धूर्त, हरामी, चालाक, खतरनाक, लालची और क्रिमिनल है… क्योंकि वह आपकी दया और सहानुभूति का पात्र नहीं है, इसलिए नहीं क्योंकि उसने सचमुच संगीता की हत्या की है-गुलाब चन्द का हत्यारा भी बही है ।"
"तुम अपने भाई के बारे में यह सब कह रहे हो ?"
“हुंह, किसका भाई. . .कैसा भाई ?" नफरत से मुह सिकोड़कर---"सच्चाईं को मुझे इसलिए कबूल करनी पड़ती है क्योंकि दुर्भाग्य से हमने एक ही कोख से जन्म लिया था-इसके अलावा हम दोनों के बीच भाई तो भाई, ऐसे सम्बन्ध भी नहीं हैं जैसे दो अजनबियों के बीच होते हैं--मैं उसके लिए कलंक हूं और वह मेरे लिए-कभी वह मेरी शक्ल नहीं देखना चाहता था, आज मैं उसकी शक्ल नहीं देखना चाहता, उसकी हरचंद कोशिश यह है कि मुझे दुनिया से गारद कर दे और मेरा प्रयास भी यह है कि वह इस दुनिया से उठ जाये ।"
"और इसलिए मुझसे यह कहने आये हो कि मैं उसकी मदद न करूं ?"' किरन ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा !!!
उसने निःसंकोच स्वीकारा-था --" हां !"
चकित किरन ने कहा-“यानि मैं जानते-बूझते तुम्हरे कहने से उसकी मदद बंद कर दू कि तुम उसे इस दुनिया से उठा देखना चाहते हो ?'
कथित शेखर मल्होत्रा ने एक लम्बी और गहरी सांस ली बोला--इसका मतलब है कि अपनी लम्बी कहानी के कुछ महत्वपूर्ण अंश मुझे सुनाने ही पड़ेगे ।"
"अगर जरूरी समझते हो तो सुनाओ ।"
"सबसे पहली बात तो अाप अपने दिमाग में यह बैठा लें कि मेरी जान विनोद मल्होत्रा की मुटठी में बंद है ।"
" कैसे ?"
"वह मेरे जीवन का ऐसा रहस्य जानता है जिसे मरने के बाद भी 'आम' नहीं होने देना चाहूगा क्योंकि अगर वह रहस्य लोगों की पता लग गया तो लोग मेरी लाश तक पर थूकेंगे, दुनिया का कोई भी शख्स मुझे कंधा देने के लिए तेयार-नहीं होगा.......औरा शायद गिद्ध भी मेरा मांस खाने से इंकार कर दें ।"
" ऐसा क्या रहस्य है ?"
"आप समझ सकती हैं कि उस रहस्य के बारे में मैं कुछ नहीं बता सकूंगा ।"
"क्यों ?"
"अगर बता सकता---अगर मुझे गंवारा होता कि वह रहस्य किसी को पता लगे तो विनोद से इतना डरने की जरूरत हीं क्या थी-उसके जुल्म क्यों सहता मैं ?"
"कैसे जुल्मों की बात कर रहे हो तुम ?"'
"अपनी बूड़ी मां के हम दो बेटे थे-विनोद और मैं---विनोद शुरू से गुन्डागर्दी और आवारागर्दी किया करता था-चोरी, गिरहकटी और राहजनी उसके पेशे थे-शराब, जुआ और ऐय्याशी उसके शौक-मां उससे परेशान बी---मैं आगरा के कॉलिज में पढा करता था ।"
"त-तुम आगरा के कॉलिज में 'तुम' पढते थे ?”
"इसका मतलब विनोद ने आपसे यह कहा होगा कि पढ़ता 'वह' था?"
-"हां ।"
.""तब तो उसने यह भी वताया होगा कि उसके दिल में संगीता के लिए उसी दिन से 'मौन प्यार' पल रहा था जिस दिन संगीता ने कॉलिज में एडमिशन लिया !"
"हां, यह सब उसने बताया है ।" "इसका मतलब उसने कहानी तो सच्ची सुनाई है थोडी उलट पलट करके !!!
फीकी मुस्कान के साथ कथित शेखर मल्होत्रा ने कहा----"अब अाप इस कहानी को संक्षेप में यू समझ सकती हैं कि संगीता के साथ कॉलिज में 'मैं' पढता था--उत्तेजित होकर नगर विधायक के बेटे से मैं मिड़ा था-संगीता से मुहब्बत मुझे थी और जव ये सब बातें विनोद को पता लगी तो उसकी लार टपक पडी ।”
“लार टपकने से क्या मतलब ?"
"मेरी जुबानी उसे पहले ही से पता था कि संगीता कितनी खूबसूरत है और यह भी कि वह एक करोड़पति सेठ की इकलौती वेटी है-जब मैंने बताया कि अनाज मैं संगीता के लिए नगर विधायक के बेटे से भिड़ गया तो उसके दिमाग में तुरन्त यह स्कीम कौंध गई कि वह शेखर मल्होत्रा बनकर न के केवल खूबसूरत संगीता को हासिल कर सकता है बल्कि करोडों की सम्पत्ति का मालिक भी बन सकता है----उसने तुरन्त घोषणा कर दी कि कल से मेरी जगह कॉलिज वह जायेगा- मैं सकपका गया--मगर उसकी मुटूठी में मेरा रहस्य था उसने धमकी दी कि अगर मैंने वह नहीं किया जो वह चाहता है तो मेरे रहस्य को 'आम' कर देगा-मेरे छक्के छूट गए…तब उसने बताया कि चार दिन पहले उसने एक पेट्रोल पम्प लूटा है-हालांकि किसी को भनक तक नहीं है कि लुटेरा वह है मगर 'मुझे' खुद को विनोद मल्होत्रा के रूप में पुलिस के समक्ष प्रस्तुत कर देना है, पुलिस मुझे साल -दो साल के लिए जेल भेज़ देगी-विनोद का यह प्रस्ताव सुनकर मैं दहल उठा-उसके पेरों में पड़कर गिडगिडाने लगा-बार-बार रिक्वेस्ट की कि मुझे जेल मत भेजो----उसने मुझसे कहा…ऐसे बीज तू बो चुका है कि उसे फ़साने में मूझे दिक्कत पेश नहीं आयेगी ....
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
उसने मुझसे कहा…ऐसे बीज तू बो चुका है कि उसे फ़साने में मूझे दिक्कत पेश नहीं आयेगी ......लेकिन अगर तू इस शहर में रहा तो संगीता को भी हकीकत पता _लग सकती है और ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है कि तू इस शहर से हमेशा के लिए दफा हो जा ।"
"म म मगर ।" मैंने कहा--“मेरे गायब होने पर मां का कहेगी?"
"उसे यह पता नहीं लगेगा कि शेखर गायब हुआ है बल्कि यह पता लगेगा कि विनोद गायब है और तू जानता है कि उसे शेखर मल्होत्रा की परवाह है, विनोद की नहीं---विनोद के लिए तो वह चाहती ही यह है कि वह कहीं दफा के हो जाए !"
" ल ल लेकिन !" मैंने प्रतिरोध करना चाहा, कठोर स्वर में उसने मेरी बात काट दी…“मां की आंखों में मोतियाबिंद उतर आया है-जब तक हम अपने नाम न बतायें तब तक वह स्वयं नहीं जान पाती कि सामने शेखर खडा है या विनोद--फिक्र मत कर-मां को यकीन दिला दूगा कि शेखर ही हूं और जो गायब हुआ है वह विनोद था जिसके दिमाग पर हीरो बनने का भूत सवार था अत: मुम्बई भाग गया होगा !"
मेरे मुंह से बोल न फूटा !
उसकी मुटृठी में कैद रहस्य के कारण मैं उसकी हर बात मानने लिए मज़बूर था ।
"उसने धमकी दी कि मैं, उस शहर में कभी कदम न रखूं जिससे वह हो-------ऐसा वह इसलिए चाहता था कि संगीता पर यह 'राज' कभी न खुल सके कि जिसे शेखर समझ रही थी वह विनोद है, उसका हुक्म मानने के अलावा मेरे पास कोई चारा न था-सो मैं हमेशा के लिए अपनी मां को छोड़कर चला गया ।'"
“कहां चले गए ?"
"बहुत लम्बी कहानी है किरन जी, जाने कहां…कहां धक्कै खाएं हैं मैंने, पार उन धक्कें के बोरे में जानने से---आपको कोई ताम नहीं होगा…आपको लाभ होगा शेखर मल्होत्रा वने विनोद मल्होत्रा की कहानी जानने से-और वह कहानी ये है कि अगले दिन विनोद ' मैं ' अर्थात् शेखर बनकर कॉलिज गया -- वहां नगर विधायक के बेटे और उसके चमचों ने जमकर उसकी ठुकाई की---ठुकाई ही थी जिसकी वजह से संगीता मेरे भुलावे में उसकी गोद में जा गिरी-विनोद ने उस दिन जो खुद को 'शेखर' के रूप में स्थापित किया तो अाज तक किये हुए है और असली शेखर मल्होत्रा यानि मैं दर-दर की ठोकरें खा रहा हुं !"
किरन का दिमाग चकरधिन्ती की तरह घूमकर रह गया था ।
"उसके हुम के एक _हफ्ते बाद तक मैं आगरे में ही रहा था…यह अलग बात है कि खुद तो प्रकट नहीं किया, कर भी नहीं सकता था…बिनोद के जरिए अपना रहस्य खुल जाने का खौफ जो था । मगर मैंने अपने प्यार को, अपनी संगीता को, उसकी झोली में गिरते उसके षडूयंत्र में फंसते अपनी आँखों से देखा था और फिर............
उस मंजर को मैं एक हफ्ते से ज्यादा न देख ,सका तथा खून के आँसू, रोता चुपचाप आगरे से विदा हो गया---
शहर दर शहर भटकता रहा और उन दिनों सहारनपुर में था जब अखबार में संगीता के मर्डर और विनोद की गिरफ्तारी के बारे में पढा-मुझे वेहद खुशी हुई, यह सोचकर झूम उठा कि विनोद की शैतानियत का प्याला भर चुका है और अब उसे सजा हो जायेगी--सजा के साथ ही दफन हो जाएगा वह रहस्य जिसकी वजह से मुझे वनवास भोगना पड़ रहा है, सारा मामला क्या है और शेखर बने विनोद की संगीता की हत्या के जुर्म में क्या सजा होगी ?
जुर्म में क्या सजा होगी…यह सब जानने की उत्सुकता मुझे इस शहर में तो नहीं परन्तु इस शहर से केवल वीस किलोमीटर दूर एक छोटे कस्बे तक जरूर ले आई-गुप्त रूप से और किराये के अदमियों द्वारा मैंने उस पर चल रहे मुकदमें की पूर्ण जानकारी रखी !"
. "क्या किराये के आदमी तुम्हें और उसे देखकर चकराते नहीं हैं जिसको माना तुम्हारे मुताबिक विनोद मल्होत्रा है ? "
“किराये के आदमियों ने कभी मेरी शक्ल नहीं देखी, मैं उनके सामने चेहरे पर नकाब डालकर जाता है ।”
. ""' ओह !"
"कल सुबह तक मैं बेहद खुश था--------जिस तरह सबको यकीन था कि विनोद 'शेखर' को फांसी से कम सजा न ’होगी, उसी तरह मुझे भी यकीन था और मैं खुशी-खुशी . उस शुभ दिन की प्रतीक्षा कर रहा था जिस दिन विनोद के साथ मेरा रहस्य हमेशा के लिए दफन हो जाएगा परन्तु आज सुबह-उस वक्त इस शहर में स्थित मेरे आदमी ने फोन पर सुचना दी कि आप उसे बेगुनाह साबित करने निकल पडी और इतना सुनते ही हाथों के तोते उड़ गये-आपसे रिक्वेस्ट. करने दौडा चला आया कि प्लीज़, आप उसे बेगुनाह साबित करने के फेर में न पड़े ।"
"अगर बह बेगुनाह है तो मुझे उसे बेगुनाह साबितं वयो नहीं करना चाहिए ? "
“वह बेगुनाह नहीं है किरन जी, संगीता का हत्यारा वही है !"
"तुम कैसे कह सकते हो ?"
" म म मेरे पास सबूत है !"
"" कैसा सबूत ?"
"' एक वीडियो फिल्म'…ऐसी "वीडियो फिल्म' जिसे देखने के बाद आपको इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाएगा कि हत्यारा वही है-फिल्म में वह स्पष्ट रूप से हत्या करता हुआ नौकरों द्वारा पकड़ा जाता दिखता है !"
चकित किरन ने पूछा'-""अगर कोई ऐसी फिलम है तो तुमने उसे कोर्ट में पेश क्यों नहीं किया ?"
"जरूरत भी नहीं पडी और....... और… !"
"और ?"
"उसे कोर्ट में पेश करने वाले के सामने बहुत-भी अड़चनें आयेंगी ।"
“जैसे ?"
"यह पूछा जाएगा कि क्लिप कैसे तेयार-हुई और पेश करने वाले के पास कहाँ से अाई !"
"क्या तुम इन सवालों का जवाब नहीं दे सकते !"
"नहीं ।"
“क्यों ?"
"पहली बात ये है कि इन सवालों के मेरे पास जवाब ही नहीं जिनसे कोर्ट सन्तुष्ट हो सके-दूसरे ये कि कम-से-कम मैं तो तब तक खुलकर सामने आ ही नहीं सकता जब तक कि विनोद इस दुनिया में है ।"
"ऐसा क्यों ? "
"जब तक संगीता जीवित थी तब तक विनोद ने कभी नहीं चाहा कि मैं उसकी परछाई के अास-पास नजर आऊं-----" मेरी याद तक नहीं आई उसे और फिर तब ..........
जबकि संगीता की हत्या के में एक बार पकड़ा जाने के बाद जमानत पर छूटा---- उसने जोर-शोर से मेरी खोज शुरू कराई-उसकी 'मंशा' संगीता की हत्या के जुर्म में अपनी जगह मुझे फांसी पर चढवा देने की थी…मैं घबरा गया । घबराकर खुद को और ज्यादा छिपा लिया मैंने---आज तक छुपाये हुए हूं अगर आज भी वह मेरे सामने जा जाए और मेरे रहस्य को खोलने की धमकी देकर की कि ही उसके स्थान पर मुझे फांसी के फंदे पर झूलना है तो यह सच है किरन जी कि मेरे सामने उसका हुक्म मान लेने के अलावा कोई रास्ता न बचेगा इसलिए उसके जीते-जी मैं खुद क्रो प्रकट नहीं कर सकता !"
"मगर मेरे सामने तो तुमने खुद को प्रकट कर दिया है !"
“मजबूर होकर, इस उम्मीद के साथ कि हकीकत जान लेने के बाद अाप उसकी कोई मदद नहीं करेंगी और न ही मुझसे हुई मुलाकात का जिक्र करेंगी, मजबूरी यह थी कि मेरे आदमियों ने सुचना दी कि अगर मैंने आपको विश्वास न दिला दिया कि हत्यारा विनोद ही है तो अाप उसे बेगुनाह साबित कर देंगी-इस शहर में घुसने की हिम्मत इसलिए पड़ पाई क्योंकि मेरे अन्दमियों की सूचना के मुताबिक विनोद जख्मी हालत में अपनी कोठी पर पड़ा है ।"
"तुम्हें कैसे पता लगा कि मैं इस वक्त यहाँ हूं ?"
"' मेरे आदमियों ने वताया ।"
"इसका मतलब वे मुझ पर नजर रखे हुए थे ?"
"जी हां ।"
किरन को इल्म हुआ कि उसका यह अहसास कितना सही था कि कुछ रहस्यमय आंखें हर पल उसे घूर रही हैं--कछ देर तक कथित शेखर मल्होत्रा को घूरती रहने के बाद .....
वह बोली…“वीडियो फिल्म का क्या चक्कर है !'
"मैं नहीं जानता कि वह किसने, कब, कैसे और क्यों तैयार की बस, इतना जानता हूं कि केसिंट मैंने सैकडों वार देखी है और उसे देखने क बाद इस बारे में आपको कोई शक नहीं रह जायेगा कि हत्यारा विनोद ही हैे ।"
"तुम पर कहाँ से आई ?"
"जिन दिनों विनोद जमानत पर था उन दिनों मैं इस मकसद के साथ उस पर बराबर नजर रखे हुए था कि अगर वह अपने बचाव का कोई प्रपंच रचे तो मैं उसे नाकाम कर दूं---ऐसी ही एक रात में मैं उस कोठी के पिछवाडे़ टहल रहा था कि एक रहस्यमय नकाबपोश ने झाडियों में खीच लिया-अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि सिर के पिछले हिस्से पर उसने रिवॉल्वर के दस्ते का वार किया-मैं वेहोश हो गया । होश आाया तो खुद को एक ऐसे कमरे में पाया जहां वी. सी. आर. की मदद से टी. बी पर एक फिल्म चल रही थी----------यह फिल्म संगीता के मर्डर की थी---फिल्म के खत्म होते ही टी. बी और वी. सी आर आँफ़ हो गए तथा कमरे की लाईट आन होते ही मैंने सामने रव्रड़े नकाबपोश को देखा-जो बातें उसने की उनका लब्बो-लुबाब यह निकला कि वह मुझे विनोद शेखर समझ रहा था तथा ब्लैकमेल करता हुआ फिल्म के पचास हजार रुपये मांग रहा था-- मेरे पास पचास हजार नहीं थे, किन्तु दिमाग में यह बात समा चुकी थी कि अगर इस फिल्म को कब्जा लूं तोविनोद चाहे जैसा प्रपंच रच ले मगर मैं उसे फांसी से कम सजा नहीं होने दूंगा और तब, मैंने ब्लेक-मेलर को इसी भुलावे में रखा कि मैं वही हूं जो वह सोच रहा है तथा मौका लगते ही उससे भिड़ गया…मेरी उसकी उठा-पटक के परिणामस्वरूप वह बेहोश हो गया और कैसिट कब्जाये मैं सिर पर पैर रखकर भागा ।"
"म म मगर ।" मैंने कहा--“मेरे गायब होने पर मां का कहेगी?"
"उसे यह पता नहीं लगेगा कि शेखर गायब हुआ है बल्कि यह पता लगेगा कि विनोद गायब है और तू जानता है कि उसे शेखर मल्होत्रा की परवाह है, विनोद की नहीं---विनोद के लिए तो वह चाहती ही यह है कि वह कहीं दफा के हो जाए !"
" ल ल लेकिन !" मैंने प्रतिरोध करना चाहा, कठोर स्वर में उसने मेरी बात काट दी…“मां की आंखों में मोतियाबिंद उतर आया है-जब तक हम अपने नाम न बतायें तब तक वह स्वयं नहीं जान पाती कि सामने शेखर खडा है या विनोद--फिक्र मत कर-मां को यकीन दिला दूगा कि शेखर ही हूं और जो गायब हुआ है वह विनोद था जिसके दिमाग पर हीरो बनने का भूत सवार था अत: मुम्बई भाग गया होगा !"
मेरे मुंह से बोल न फूटा !
उसकी मुटृठी में कैद रहस्य के कारण मैं उसकी हर बात मानने लिए मज़बूर था ।
"उसने धमकी दी कि मैं, उस शहर में कभी कदम न रखूं जिससे वह हो-------ऐसा वह इसलिए चाहता था कि संगीता पर यह 'राज' कभी न खुल सके कि जिसे शेखर समझ रही थी वह विनोद है, उसका हुक्म मानने के अलावा मेरे पास कोई चारा न था-सो मैं हमेशा के लिए अपनी मां को छोड़कर चला गया ।'"
“कहां चले गए ?"
"बहुत लम्बी कहानी है किरन जी, जाने कहां…कहां धक्कै खाएं हैं मैंने, पार उन धक्कें के बोरे में जानने से---आपको कोई ताम नहीं होगा…आपको लाभ होगा शेखर मल्होत्रा वने विनोद मल्होत्रा की कहानी जानने से-और वह कहानी ये है कि अगले दिन विनोद ' मैं ' अर्थात् शेखर बनकर कॉलिज गया -- वहां नगर विधायक के बेटे और उसके चमचों ने जमकर उसकी ठुकाई की---ठुकाई ही थी जिसकी वजह से संगीता मेरे भुलावे में उसकी गोद में जा गिरी-विनोद ने उस दिन जो खुद को 'शेखर' के रूप में स्थापित किया तो अाज तक किये हुए है और असली शेखर मल्होत्रा यानि मैं दर-दर की ठोकरें खा रहा हुं !"
किरन का दिमाग चकरधिन्ती की तरह घूमकर रह गया था ।
"उसके हुम के एक _हफ्ते बाद तक मैं आगरे में ही रहा था…यह अलग बात है कि खुद तो प्रकट नहीं किया, कर भी नहीं सकता था…बिनोद के जरिए अपना रहस्य खुल जाने का खौफ जो था । मगर मैंने अपने प्यार को, अपनी संगीता को, उसकी झोली में गिरते उसके षडूयंत्र में फंसते अपनी आँखों से देखा था और फिर............
उस मंजर को मैं एक हफ्ते से ज्यादा न देख ,सका तथा खून के आँसू, रोता चुपचाप आगरे से विदा हो गया---
शहर दर शहर भटकता रहा और उन दिनों सहारनपुर में था जब अखबार में संगीता के मर्डर और विनोद की गिरफ्तारी के बारे में पढा-मुझे वेहद खुशी हुई, यह सोचकर झूम उठा कि विनोद की शैतानियत का प्याला भर चुका है और अब उसे सजा हो जायेगी--सजा के साथ ही दफन हो जाएगा वह रहस्य जिसकी वजह से मुझे वनवास भोगना पड़ रहा है, सारा मामला क्या है और शेखर बने विनोद की संगीता की हत्या के जुर्म में क्या सजा होगी ?
जुर्म में क्या सजा होगी…यह सब जानने की उत्सुकता मुझे इस शहर में तो नहीं परन्तु इस शहर से केवल वीस किलोमीटर दूर एक छोटे कस्बे तक जरूर ले आई-गुप्त रूप से और किराये के अदमियों द्वारा मैंने उस पर चल रहे मुकदमें की पूर्ण जानकारी रखी !"
. "क्या किराये के आदमी तुम्हें और उसे देखकर चकराते नहीं हैं जिसको माना तुम्हारे मुताबिक विनोद मल्होत्रा है ? "
“किराये के आदमियों ने कभी मेरी शक्ल नहीं देखी, मैं उनके सामने चेहरे पर नकाब डालकर जाता है ।”
. ""' ओह !"
"कल सुबह तक मैं बेहद खुश था--------जिस तरह सबको यकीन था कि विनोद 'शेखर' को फांसी से कम सजा न ’होगी, उसी तरह मुझे भी यकीन था और मैं खुशी-खुशी . उस शुभ दिन की प्रतीक्षा कर रहा था जिस दिन विनोद के साथ मेरा रहस्य हमेशा के लिए दफन हो जाएगा परन्तु आज सुबह-उस वक्त इस शहर में स्थित मेरे आदमी ने फोन पर सुचना दी कि आप उसे बेगुनाह साबित करने निकल पडी और इतना सुनते ही हाथों के तोते उड़ गये-आपसे रिक्वेस्ट. करने दौडा चला आया कि प्लीज़, आप उसे बेगुनाह साबित करने के फेर में न पड़े ।"
"अगर बह बेगुनाह है तो मुझे उसे बेगुनाह साबितं वयो नहीं करना चाहिए ? "
“वह बेगुनाह नहीं है किरन जी, संगीता का हत्यारा वही है !"
"तुम कैसे कह सकते हो ?"
" म म मेरे पास सबूत है !"
"" कैसा सबूत ?"
"' एक वीडियो फिल्म'…ऐसी "वीडियो फिल्म' जिसे देखने के बाद आपको इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाएगा कि हत्यारा वही है-फिल्म में वह स्पष्ट रूप से हत्या करता हुआ नौकरों द्वारा पकड़ा जाता दिखता है !"
चकित किरन ने पूछा'-""अगर कोई ऐसी फिलम है तो तुमने उसे कोर्ट में पेश क्यों नहीं किया ?"
"जरूरत भी नहीं पडी और....... और… !"
"और ?"
"उसे कोर्ट में पेश करने वाले के सामने बहुत-भी अड़चनें आयेंगी ।"
“जैसे ?"
"यह पूछा जाएगा कि क्लिप कैसे तेयार-हुई और पेश करने वाले के पास कहाँ से अाई !"
"क्या तुम इन सवालों का जवाब नहीं दे सकते !"
"नहीं ।"
“क्यों ?"
"पहली बात ये है कि इन सवालों के मेरे पास जवाब ही नहीं जिनसे कोर्ट सन्तुष्ट हो सके-दूसरे ये कि कम-से-कम मैं तो तब तक खुलकर सामने आ ही नहीं सकता जब तक कि विनोद इस दुनिया में है ।"
"ऐसा क्यों ? "
"जब तक संगीता जीवित थी तब तक विनोद ने कभी नहीं चाहा कि मैं उसकी परछाई के अास-पास नजर आऊं-----" मेरी याद तक नहीं आई उसे और फिर तब ..........
जबकि संगीता की हत्या के में एक बार पकड़ा जाने के बाद जमानत पर छूटा---- उसने जोर-शोर से मेरी खोज शुरू कराई-उसकी 'मंशा' संगीता की हत्या के जुर्म में अपनी जगह मुझे फांसी पर चढवा देने की थी…मैं घबरा गया । घबराकर खुद को और ज्यादा छिपा लिया मैंने---आज तक छुपाये हुए हूं अगर आज भी वह मेरे सामने जा जाए और मेरे रहस्य को खोलने की धमकी देकर की कि ही उसके स्थान पर मुझे फांसी के फंदे पर झूलना है तो यह सच है किरन जी कि मेरे सामने उसका हुक्म मान लेने के अलावा कोई रास्ता न बचेगा इसलिए उसके जीते-जी मैं खुद क्रो प्रकट नहीं कर सकता !"
"मगर मेरे सामने तो तुमने खुद को प्रकट कर दिया है !"
“मजबूर होकर, इस उम्मीद के साथ कि हकीकत जान लेने के बाद अाप उसकी कोई मदद नहीं करेंगी और न ही मुझसे हुई मुलाकात का जिक्र करेंगी, मजबूरी यह थी कि मेरे आदमियों ने सुचना दी कि अगर मैंने आपको विश्वास न दिला दिया कि हत्यारा विनोद ही है तो अाप उसे बेगुनाह साबित कर देंगी-इस शहर में घुसने की हिम्मत इसलिए पड़ पाई क्योंकि मेरे अन्दमियों की सूचना के मुताबिक विनोद जख्मी हालत में अपनी कोठी पर पड़ा है ।"
"तुम्हें कैसे पता लगा कि मैं इस वक्त यहाँ हूं ?"
"' मेरे आदमियों ने वताया ।"
"इसका मतलब वे मुझ पर नजर रखे हुए थे ?"
"जी हां ।"
किरन को इल्म हुआ कि उसका यह अहसास कितना सही था कि कुछ रहस्यमय आंखें हर पल उसे घूर रही हैं--कछ देर तक कथित शेखर मल्होत्रा को घूरती रहने के बाद .....
वह बोली…“वीडियो फिल्म का क्या चक्कर है !'
"मैं नहीं जानता कि वह किसने, कब, कैसे और क्यों तैयार की बस, इतना जानता हूं कि केसिंट मैंने सैकडों वार देखी है और उसे देखने क बाद इस बारे में आपको कोई शक नहीं रह जायेगा कि हत्यारा विनोद ही हैे ।"
"तुम पर कहाँ से आई ?"
"जिन दिनों विनोद जमानत पर था उन दिनों मैं इस मकसद के साथ उस पर बराबर नजर रखे हुए था कि अगर वह अपने बचाव का कोई प्रपंच रचे तो मैं उसे नाकाम कर दूं---ऐसी ही एक रात में मैं उस कोठी के पिछवाडे़ टहल रहा था कि एक रहस्यमय नकाबपोश ने झाडियों में खीच लिया-अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि सिर के पिछले हिस्से पर उसने रिवॉल्वर के दस्ते का वार किया-मैं वेहोश हो गया । होश आाया तो खुद को एक ऐसे कमरे में पाया जहां वी. सी. आर. की मदद से टी. बी पर एक फिल्म चल रही थी----------यह फिल्म संगीता के मर्डर की थी---फिल्म के खत्म होते ही टी. बी और वी. सी आर आँफ़ हो गए तथा कमरे की लाईट आन होते ही मैंने सामने रव्रड़े नकाबपोश को देखा-जो बातें उसने की उनका लब्बो-लुबाब यह निकला कि वह मुझे विनोद शेखर समझ रहा था तथा ब्लैकमेल करता हुआ फिल्म के पचास हजार रुपये मांग रहा था-- मेरे पास पचास हजार नहीं थे, किन्तु दिमाग में यह बात समा चुकी थी कि अगर इस फिल्म को कब्जा लूं तोविनोद चाहे जैसा प्रपंच रच ले मगर मैं उसे फांसी से कम सजा नहीं होने दूंगा और तब, मैंने ब्लेक-मेलर को इसी भुलावे में रखा कि मैं वही हूं जो वह सोच रहा है तथा मौका लगते ही उससे भिड़ गया…मेरी उसकी उठा-पटक के परिणामस्वरूप वह बेहोश हो गया और कैसिट कब्जाये मैं सिर पर पैर रखकर भागा ।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
"इस वक्त कैसिट कहां है ?" किरन ने सीधा सवाल किया ।
“मेरी जेब में मौजूद है ।"
"लाओ ।"
"स-सोरी किरन जी ।" वह मानो गिड़गिड़ाया---कैसिट मैं आपको दे नहीं सकता-----दिखा सकता हूं ।"
"यहां कैसे देखाओगे ?"
"आप यहां करीब डेढ धन्टे से बैठी हैं---लंच लिया है आपने जबकि फोन द्वारा मुझे आपके इस होटल में दाखिल होते ही सूचना मिल गई थी---मैंने तुरन्त अपने अादमी को एक कमरा लेने का आदेश भी दे दिया था----शायद आप जानती होगी कि इस होटल के प्रत्येक कमरे में कलर टी. वी. मोजूद है तथा पोर्टेबल बीसी. पी. कमरा लेने के बाद मेरे आदमी ने वहाँ पहुचा दिया है ।"
किरन ने गहरी नजरों से घूरते हुए कहर-"पूरो तैयारियां हैं?"
"मालूम था कि मेरी बातों पर आप तब तक यकीन नहीं करेंगी, जब तक कैसिट नहीं देख लेगी और 'मै' आपको कैसिट दे नहीं सकता तथा न ही आपको वहां ले जा सकता हू जहाँ रहता हुं, तब, मैंने सोचा कि सबसे 'इंजी' यही रहेगा कि एक दिन का किराया देकर इसी होटल का कोई कमरा इस्तेमाल कर लिया जाये ।"
"किस नम्बर का कमरा मिला है तुम्हें ?"
कथित शेखर मल्होत्रा ने जेब से चाबी निकाली और होटल के 'की-रिग पर लिखा नम्बर पढा-“चार सौ बासठ ।"
"यह कमरा मेरे यहां वेठे-वेठे किराये पर लिया गया है ?"
"जी हां ।"
किरन असमंजस में पड़ गई ।
निश्चय न कर पा रही थी कि कथित शेखर मल्होत्रा जो कह रहा है वह सच है अथवा मुजरिम ने यह खूबसुरत चाल उसे भ्रमित करने या भुलावे में डालने के लिए चली ?
क्या उसे इस व्यक्ति के साथ कमरा नम्बर चार भी बासठ में जाना चाहिये ?
कहीं यह षडूयंत्र तो नहीं है ?
अगर षडूयंत्र है तो सामने बैठा शख्स कहां से आ गया ------ इसकी शक्ल शेखर मल्होत्रा से हू ब हू क्यों और कैसे मिलती है ? एकाएक किरन के जहन में विचार उठा कि अगर इस तरह डरेगी तो क्या रि---इन्वेस्टीगेशन करेगी और क्या रहस्य तथा अपराधी का पर्दाफाश करेगी ?
हौसला रखकर उसे दिलेरी से काम लेना चाहिए !
एक झटके से कहा उसने --- " चलो !"
किरन ने महसूस किया कि उसके मुंह से हल्की-हल्की कराह निकल रही थीं ।
सिर के पिछले हिस्से में अभी तक तीव्र पीड़ा थी ।
समझ गई कि चेतना लौट रही है---कोशिश के बावजूद नेत्र न खोल सकी, दिमाग की नसों ने ठीक से काम करना शुरू किया ही था कि कानो में आवाज पडी… "और अब अाप मुझे मेरा बेटा लौटा दीजिए न.. . ।"
" खामोश !" किसी गुर्रांहटदार आवाज के मालिक ने जोर से चीखकर पहले बोलने वाले का वाक्य काटा और फिर गुर्राता हुआ बोला…“यहाँ तुम मेरा नाम नहीं लोगे सिर्फ 'हॉस' कहोगे मुझे ।"
"स-सॉरी ।” यह आवाज शेखर मल्होत्रा की थी, डरा हुआ और गिड़गिड़ाता-सा-“म-मैं यह कह रहा था कि मैंने आपका काम कर दिया, ठीक उसी तरह जैसे आपने मुझे बताया था…मैंने 'इसे' वही कहानी सुनाई जो आपने कहीं थी और उसके परिणामस्वरूप यह अपके कब्जे में है अव . मुझे मेरा बेटा लौटा दीजिये ताकि उसे लेकर वडोदा लोट जाऊ ।”
“अभी नहीं गिरधारी लाल !" गुर्राहटदार अावाब गूंजी…"अमी तो तुमसे वहुत काम लेने हैं-तुम्हारी शक्ल और आवाज बडीं जालिम है, हमारे वहुत काम की है ये तुम्हारी मदद से शेखर मल्होत्रा और उसके शुमचिन्तकौ को खेल दिखा सकते है कि वे बेचारे समझ तक नहीं पायेंगे कि कहां क्या और क्योंहो रह् है ?"
किरन ने जबड़े भींच लिए, मुंह से निकलने वाली कराह पर अंकुश पाया ।
" उधर, शेखर मल्होत्रा की आवाज कानों में पड़ी---- " म-मगर आपने तो कहा था कि अगर मैं यह काम कर दूंगा तो मेरा बेटा तोटा देगे और बडोदा जाने देंगे ।"
रोकते-रोकते किरन के मुंह से कराह निकल गयी ।
"चुप रहो ।" गुर्राहटदार आवाज गूंजी-“इसे होश आ रहा है शयद-ध्यान रहे अगर इसके सामने तुमने अपने बेटे या शहर बडोदा की वात की तो देखने के लिए तुम्हें अपने बेटे की लाश मिलेगी ।"
बस ।
सन्दाटा छा गया ।
नेत्र अभी तक मुदे हुए भी वह…महसूस कर रही ही कि किसी के साथ ररिसयों की मदद से बंधी हुई है--जहन में बेहोश होने से पूर्व के क्षण गुजरे---कमरा नम्बर चार सौ बासठ में कदम रखते ही कथित शेखर मल्होत्रा ने रिवॉल्वर निकल लिया था और अभी 'धोखा' शब्द दिमाग में कौधं ही था कि कथित शेखर मल्होत्रा ने सिर के पिछले हिस्से पर रिवॉल्वर के दस्ते का भरपूर वार किया ।
चीखने के लिए मुंह खुला ।
मजवूत हाथ कुकर के ढक्कन की मानिन्द होंठों परं चिपक गया ।
मुह से निकलने वाली चीख कुकर की सीटी में तब्दील हो गयी…आंखो के सामने आतिशबाजी वाले मानो सैकडों अनार एक साथ फूट पड़े और फिर जैसे काजल की कोठरी में कैद होती चली गई वह ।
"अब चेतना लौटी थी, अनुमान न लगा पाई कि कितना समय गुजर चुका है ?"
आंखें खुलते ही उसने खुद को एक ऐसे वहशी के चंगुल में पाया जिसके सम्पूर्ण जिस्म पर काला लबादा था चेहरे पर सफेद नकाब ।
किरन ने दाई तरफ, करीब दो मीटर दूर खड़े शख्स को देखा-य-यह वही शख्स था जिसने खुद को असली शेखर मल्होत्रा और शेखर को विनोद मल्होत्रा वताया था ।
निश्चित रूप से शेखर मल्होत्रा की इतैवट्रोस्टेट कॉपी था वह ।
नाम गिरधारी लाल, रोने वाला बडोदा का और उसका बेटा शायद नकाबपोश के चंगुल में है ।
ये तीनों बाते किरन समझ चुकी थी ।
हैरानी थी तो इस बात पर कि ऐसे दो व्यक्तियों की शक्ल ही नहीं बल्कि अबाज तक कैसे मिलती है जिनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है-अपने चारों तरफ की भांगोलिक स्थिति देखते ही किरन समझ गई कि इस वक्त ' वह किसी पहाडी इलाके में, पहाड़ पर वने 'कॉटेज' में है ।
चारों तरफ लकडी की दीवारें थी ।
बन्द दरवाजों और खिड़कियों में पारदर्शी शीशे लगे थे ।
शीशों के बाहर नजर आ रहे थे…सन्नाटे में डूबे ऊंचे-ऊंचे पर्वत ।
विभिन्न दीवारों के सहारे आठ नकाबपोश खडे थे---उनके चेहरों पर चढे नकाबों का रंग काला 'था ।
स्वयं वह एक कुर्सी के साथ मजबूती से बंधी हुई थी ।
सफेद नकाबपोश उसकी आंखों में झांकता हुआ मजेदार स्वर में बोला----“क्यो सच जानने की कोशिश कर रही न किइस वक्त तुम कहां हो ?"
उसकी आंखों में झांकती किरन ने पूछा---"कौन हो तुम ?"
"वाह !” उसने खिल्ली उड़ाने वाले अन्दाज में कहा--- "यानि कि मैं खुद बता दूँ ---अरे, अगर बताना ही होता तो बेवकूफ लड़की चेहरे पर भला नकाब क्यों पहनता और हां, तुम मुझे मेरी आखोम से पहचानने की कोशिश कर रही हो…लो, देखो.... जितने ध्यान से देखना चाहो और पहचान कर सकती हो तो पहचानो ।"
किरन सकपका गई ।
इस व्यक्ति के कॉन्फिडेन्स पर आश्चर्य हुआ उसे ।
जो कह रहा था उसका सीधा-सादा मतलब ये था कि वह जानता था कि किरन आखें देखकर उसे पहचान नहीं सकती, भूरे रंग की आंखों को घूरती हुई वह बीली---"अपनी आंखों पर शायद तुमने "कन्टैक्ट लेंस' लगा रखे है ?"
"समझदार हो ।" वह कह उठा-तुम वाकई समझदार हो छोकरी और बात सही भी है----' समझदार न होती तो तुम्हें पकड़कर यहाँ लाने की जरूरत क्यों पड़ती ?"
"म मुझे यहाँ क्यों लाया गया है ?"
“हाँ ये हुई बात--- ये हुआ वह सवाल जिसका जवाब देने में हमें खुद दिलचस्पी.......।"
वाक्य अधूरा रह गया ।
कॉटेज के बाहर कहीं ऐसी आवाज गूंजी जैसे कोई बच्चा चीखा हो ।
और चीख की आवाज क्रमश: दूर होती हुई वातावरण में लुप्त हो गई ।
सभी चौंके थे ।
गिरधारी लाल चीखा-"य-ये तो मेरे 'अंकुर' की ,आवाज थी ।"
"खामोश !" नकाबपोश दहाड़ा ।
गिरधारी लाल सहम गया ।
तभी सफेद नकाबपोश तेजी से पलटकर एक काले नकाबपोश से बोला---"'" तू किस तरह बांधकर आया था उसे, जल्दी देख क्या हूआ है ?"
हुक्म मिलते ही काले नकाबपोश ने कॉटेज से बाहर जम्प लगा दी ।
ममता का मारा गिरधारी भी उसके पीछे झपटा था कि--------
"पकडो इस हरामजादे को ।" सफेद नकाबपोश दहाड़ा ।
दो काले नकाबपोशों ने गोरित्लों की तरह झपटकर उसे दबोच लिया ।
सफेद नकाबपोश गुर्राया---उत्तेजित अन्दाज में गिरधारी लाल गिड़गिड़ा उठा---" म म म -मुझे देखने दो बॉस कि मेरे अंकुर को क्या हुआ-म म-मैं भागूगा नहीं---- वादा करता हूं कि वही करूंगा जो तुम ........ ।"
"बको मत ।" सफेद नकाबपोश ने पुन: दहाड़कर उसे चुप कर दिया और फिर गुर्राया जुबान वहुत चलती है तेरी, इस जुबान का इलाज लिए विना काम नहीं चलेगा ।"
इस वार गिरधारी कुछ बोला नहीं ।
दोनों नकाबपोशों की गिरफ्त में कैद कसमसाकर रह गया । कुर्सी के साथ बंधी किरन सारे ड्रामे को हैरत के साथ कि देख रही थी…इतना तो समझ चुकी थी कि चीख उसी बच्चे की थी जिसे अपने चंगुल में करके ये लोग गिरधारी लाल को इस्तेमाल कर रहे थे । कॉटेज के हॉलनुमा कमरे में सन्नाटा छा गया ।
धड़कते दिल से सभी उस नकाबपोश के लौटने का इंतजार कर रहे थे जो बच्चे की खैर-खबर और उसके, चीखने का सबब जानने बाहर गया था ।।
धीरे -- धीरे तनावपूर्ण क्षण गुजर गए---उस वक्त सफेद नकाबपोश किसी अन्य को बाहर जाने का हुक्म देने ही वाला था कि नकाबपोश बुरी तरह हड़बड़ाया हुआ कॉटेज में दाखिल होता दुआ चीखा-----" गजब हो गया बॉस -- व- वो लडका ........
" क क क्या हुआ अंकुर को ?" सफेद नकाबपोश से पहले गिरधारी लाल चीख पड़ा ।
काला नकाबपोश सकपकाकर चुप रह गया ।
"अबे बोलता क्यों नहीं मुर्गी के ?" सफेद नकाबपोश दहाड़ा---- " कहां गया लड़का ...... ? "
"व-वह नहीं है वॉस ।"
" तो कहां गया ?"
" म म मुझे तो लगता है कि ढलान पर से तुढ़ककर नदी में जा गिरा है ।"
गिरधारी लाल को मानो लकवा मार गया ।
" क-- क्या बक रहा है उल्लू के पटूठे ?" सफेद नकाबपोश दहाड़ा----""तुझे कैसे मालूम कि वह नदी में गिर गया ?"
"ढलान बर उसका एक जूता पड़ा है बांस ।"
सफेद नकाबपोश की मानो सिटूटी-पिटृटी गुम हो गई---उस एक पल के लिए कॉटेज से मौत का सन्नाटा व्याप्त हो गया था और फिर वह चीखा--“तूने उसे बांधा किस तरह था जो खुलकर ढलान पर पहुंच-----!"
"हरामजादे ....... कुत्ते !" सिंह की तरह दहाड़ ने क ेसाथ गिरधारी ने इतनी जोर से झटका दिया कि उसे अपनी गिरफ्त में लिए नकाबपोश दायें-बांये जा गिरे-गिरधारी लाल का चेहरा लौहार की भटृटी की मानिन्द दहक रहा था और अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि चीते की
तरह झपटा ।
पलक झपकते ही दोनों हाथों से सफेद नकाबपोश का गिरेबान पकड़ लिया उसने और बुरी तरह झंझोड़ता हुआ गरजा---“तूने मेरे बेटे को मार डाला…"म-मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा कच्चा चबा जाऊंगा तुझे ! " बौखलाये हुए नकाबपोश पैंट की जेब से रिवॉल्वर निकाला । "
मगर ।
गिरधारी लाल को यह सब देखने का होश कहां था ---- उसे तो इस खबर ने मानो पूर्ण पागल कर दिया कि उसका बेटा नदी में गिर गया है, दोनों हाथों से सफेद नकाबपोश को झंझोड़ता हुआ वह चीखा----" म मैं तुझे जानता हुं----, सारी दुनिया को बता दूगा कि तू कौन है ?"'
सफेद नकाबपोश ने "फड़ाक' से अपने सिर की टक्कर उसके सिर पर मारी ।
गिरधारीलाल के हलक से चीख निकल गई ।
अभी संभल भी नहीं पाया था कि नकाबपोश ने हवा में उछलकर उसकी छाती पर "फ्लाइंग किक' रसीद की, इस बार की चीख के साथ गिरधारी लाल किरन की कुर्सी के पीछे जा गिरा, अब किरन उसे देख नहीं सकती धी क्योंकि गर्दन घुमाने की पोजीशन में नहीं थी वह परन्तु सफेद नकाबपोश अभी भी उसकी आंखों की रेंज में था ।
हाथ में दबे रिवॉल्वर को किरन की कुर्सी के पीछे ताने दहाड रहा था…“अगर तूने अपने नापाक मुंह से मेरा नाम निकालने की कोशिश की तो उसी वक्त ढेर कर दूगा ।"
कुर्सी के पीछे से वह चीखा----" म मुझे मरने की चिन्ता नहीं कमीने-त-- त - तू............!"
"खामोश ........ खामोश .......... खामोश ।" गगनभेदी गर्जना के साथ नकाबपोश ने तीन बार ट्रेगर दबाया ।
प्रत्येक 'खामोश' के साथ एक धमाका गूंजा ।
साथ ही गूंजी गिरधारीलाल की चीखें ।
तीनों गोलियां मानो उसके शरीर पर लगी थी--- सम्पूर्ण चेहरा लहूलुहान हो गया और हलाल होते बकरे की तरह डकराता हुआ लहराकर कॉटेज के फर्श पर गिरा ।
गिरने से पहले ही उसकी चीखों ने दम तोड़ दिया था ।
हालांकि किरन उसके चेहरे को लहू से रंगते, मछली की मानिन्द तड़पकर गिरते न देख पाई थी परन्तु अच्छी तरह है जानती थी कि चेयर के पीछे क्या हुआ है और वह अहसास के इतना खौफनाक था कि जिस्म का रोयां रोंया खड़ा हो गया ।
सफेद नकाबपोश के हाथ में दबे रिवॉल्वर से धुएं की लकीर अभी भी निकल रही थी !!!!!
रोंगटे सभी के खडे़ हो गये ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
"हरामजादे, नमक हराम, उल्लू के पटूठे !" सफेद नकाबपोश के मुह से गालियों का सैलाब उमड़ पड़ा---अबे, अगर पिल्ला मर भी गया था तो ये बात तुझे उसके बाप के सामने कहने की क्या जरूरत थी--ये साला, मेरा नाम लेने वाला था -- मजबूर होकर मुझे इसका खेल खत्म करना पडा…वरना तो की काम का अादमी था ये-इसके जरिए मैं ऐसे-ऐसे खेल दिखाता कि … 'उफ्फ' "जी तो चाहता है कि तुझे भी गोली से उड़ा दूं भूतनी के !"'
"म-मगर मैं बता कहां रहा था बॉस.....।" काला नकाबपोश बोला------"वो....वो तो अाप ही ने मजबूर करके मुझ से पूछा. . .
"जुबान को लगाम दे चोट्टी के वरना सचमुच तेरा भेजा उड़ा दूगा ।"
इस बार काला नकाबपोश कुछ न बोला ।
कॉटेज में सन्नाटा छाया रहा ।
सफेद नकाबपोश मानो अपने गुस्से को नियंत्रित करने का प्रयत्न कर रहा था-उसकी अवस्था से स्पष्ट था कि जो कुछ हुआ है उसका उसे वेहद अफसोस है कुछ देर थोडा नियंत्रित होकर बोला----" मेरे मु'ह को क्या तक रहे हो कुत्ते, इस लाश को उठाकर वहाँ डाल दो जहां इसके लड़के कैद को रखा था ।"
एक साथ चार नकाबपोश औधें पड़े गिरधारीलाल पर झपटे ।
" आपके लिए फोन है शेखर शाब हैं' निक्यू ने सपाट स्वर में कहा ।
"किसका ? "
"बैरिस्टर साहब का ।" कहने के बाद बह चला गया ।
"शेखर मल्होत्रा यह सोचकर चकरा उठा कि बैरिस्टर विश्वनाथ ने उसे फोन क्यों किया है ?"
विस्तर से उठा ।
ड्राइंग-हाँल में मौजूद फोन के नजदीक पहुचा ।होल्ड-स्टैन्ड से रिसीवर उतारकर बोला---"हैलो ।"
"किरन तो वहां नहीं है ?" बैरिस्टर साहब की आवाज उभरी ।
"जी, नहीं तो---किरन तो आज अाई ही नहीं जबकि मुझे पूरी उम्मीद थी कि वह अायेगी ।"
"फिर कहां गई ?" बैरिस्टर साहब का स्वर चिंता में डूबा हुआ था---“तुम्हरे नामुराद केस की रि'-इन्वेस्टीगेशन के चक्कर में सुबह नो बजे की निकली हुई है और अव रात के नौ बज रहे थे-लंच टाइम के आसपास वह चाकू------विक्रता के मकान पर देखी गई थी ।"
" क- कौन चाकू विक्रेता ।"
"वही, जिससे तुमने संगीता को मारने के लिए चाकू खरीदा था ।"
यह सोचकर शेखर के होंठों पर फीकी मुस्कान रेग गई कि उसके प्रति बैरिस्टर साहब के रवैये में अभी तक कोई परिवर्तन नहीं अाया था, हां…थोड़े चौंके हुए स्वर में उसने सवाल जरूर किया-----“किरन वहाँ क्यों गई थी ?"
"तुम्हें नहीं मालूम ?" व्यंग्यात्मक स्वर ।
"जी-जी-मुझे क्या मालूम हैं'"
"पिछली रात चाकू-बिक्रेता का किसी ने कल्ल कर दिया है ।"
चौंके हुए स्वर में शेखर मल्होत्रा कुछ कहने ही जा रहा था कि दूसरी तरफ से इतनी वेहरेमी के साथ रिसीवर पटका गया कि शेखर के कान में धमाका होता महसूस हुआ और फिर ...... किर्र ..रं .... किर्र .... र्र ... की आवाज गूंजती चली गइं-रिसीवर वापस क्रेडिल पर रख कर अभी ठीक से मुड भी नहीं पाया था कि वेल पुन: बजने लगी ।
रिसीवर उठाकर बोला---" शेखर मल्होत्रा हियर ।"
जवाब तुरन्त न मिला , कम-से-कम पन्द्रह सेकेंड बाद धीमे से कहा गया----"किरन बोल रही हूं शेखर ।"
"क-किरन ?" वह उत्तेजित हो उठा-----"त-तुम आखिर हो कहा, तुम्हारे पापा तुम्हारे लिए बहुत परेशान हैं ।"
“वह सब छोडो शेखर !" किरन ने बात काट दी----“इस वक्त केवल वह सुनो जो 'मैँ' कहना चाहती हूं।"
" हा", बोलो क्या वात है ?"
"मैं संगीता के हत्यारे को पहचान चुकी हूं ।"
" क -- क्या ?"' शेखर उछल पड़ा ।
"मगर थोडी गड़बड़ हो गई है ।"
" कैसी गड़बड़ ?"
"वह भी जान चुका है कि मैं उसका रहस्य जान गई हूं और वह पागल की तरह मुझें सूंघता फिर रहा है---सबसे ज्यादा मुसीबत की बात है कि उसकी पहुच से ज्यादा दूर नहीं हूं !"
"क-कहां हो तुम ?"' शेखर पुरी तरह व्यग्र नजर आने लगा-----" प्लीज , बताओ किरन, तुम क्या हो, मैं इसी वक्त...........
"नहीं, फोन पर बताना मुनासिब नहीं होगा ।"
"फ-फिर. ?"
"शहर के बाहर ठीक उस स्यान पर नटराज का मन्दिर है जहां से पहाडि़या शुरू होती हैं ।"
"मैँने देखी हैं ।"
"सारे फोटो लेकर तुम वहीं पहुंच जाओ ।"'
"फ़-फोटो ?"
" "हां वे फोटो जिन्हें कल रात मेरी कोठी से अपनी कोठी के लिए रवाना होते-वक्त तुमने जूतों के अन्दर रखे थे--समझ रहे हो, न, मैं संगीता की मां और शहजाद राय के "फोटुओं की बात कर रही हूं ।"
"म-मगर वे फोटो-----।"'
उसे ज्यादा बोलने का अवसर दिये बगैर किरन बोली---"फोटुओं के साथ शहजाद बाय की सारी चिट्ठियां भी ले आना----वहीं तुम्हें दो आदमी मिलेंगे-घबराना बिलकुल मत, अपने ही आदमी हैं वे ---- उनके साथ चले आना, वे तुम्हें मेरे पास ले आयेंगे, ज्यादा सवाल मत करो…टाइम कम है ।"
" ठ ठीक है ।" शेखर ने कहा ।
"और सुनो ।" किरन ने रहस्यमय स्वर में कहा… "अभी मेरे इस फोन का जिक्र किसी से मत करना क्योंकि" मुमकिन है कि जिसे तुम मेरा और अपना शुभचिन्तक समझकर फोन करो वही संगीता का हत्यारा हो ।"'
" न-- नाम तो बता दो उसका ।"
"मिलने पर !" इन शब्दों के साथ दूसरी तरफ से रिसीवर रख दिया गया ।
शेखर मल्होत्रा के होंठों पर पहेलीनुमा मुस्कुराहट उभरी थी ।
" गुड , वैरी गुड गर्ल ।“ कहने के साथ सफेद नकाबपोश ने किरन की कनपटी से सटा रिवॉल्वर जेब के हवाले किया और बोला----" वाकई तुम वड़ी प्यारी लडकी हो, हमें तुमसे यही उम्मीद थी ।"
किरन चुपचाप उसकी तरफ देखती रही ।
' नकाबपोश ने उसके हाथ से वह कागज छीन लिया जिस पर लगभग वही वाक्य लिखे थे जो किरन ने फोन पर बोले थे…उन वाक्यों पर सरसरी नजर डालने के बाद नकाबपोश ने कहा----"बिल्कुल ठीक, ये ही सब वाक्य बोले हैं तुमने----इस पर्चे में केवल वे वाक्य नहीं हैं जो तुमने शेखर मल्होत्रा के सवालों के जबाव में कहे-हम खुश हैं कि तुमने उसके सवालों के जवाब भी ठीक दिये अौर बात करने का तुम्हारा लहजा भी हमें पसन्द अाया-----'' मल्होत्रा सात जन्म लेने के बावजूद नहीं समझ सकता कि फोन पर तुम नहीं तुम्हारी कनपटी पर रखा रिवॉल्वर बोल रहा था !"
"म-मगर मैं अभी तक नहीं समझ पाई कि तुम आखिर चाहते क्या हो ?"
"लो-अभी -- तक इतना नहीं समझ पाई तुम----भाई कमाल है?" अजीब से चटखारे के साथ कहता चला गया व्रह-“वेसे तो यही बुद्धिमान समझती हो खुद क्रो-जज साहब, बैरिस्टर साहब, अक्षय श्रीशस्तव और शहजाद राय जैसे धुरंधरों को धूल चटाने की इच्छा से संगीता मर्डर कैस की रि’-इन्वेस्टीगेशन करने निकल पड्री ।
किरन पर कुछ कहते न वन पडा ।
उसकी कुर्सी के ठीक सामने पडी मेज पर दो फोन रखै थे ।
एक का रिसीवर अभी तक सफेद नकाबपोश के हाथ में था ---यह रिसीवर वह था जिस पर उसने किरन और' शेखर के बीच हुई भी अक्षरश: सुनी थी…इस रिसीवर को फोन के केहिल पर रखता हुआ बोला वह-"खैर तुम नहीं समझी तो हम बता देते है---. बात ये है कि केवल कल का दिन बीच में है, परसों संगीता मर्डर केस का फैसला होगा और शहजाद राय के फोटो तथा चिट्टियां उस फैसले 'की ऐसी…तैसी फेर सकते हैं --- बिना वजह के खून-खराबे में मैं विश्वास नहीं रखता इसलिए तुम दोनों में से किसी को मारूंगा नहीं----इतना करना है कि फोटो और चिट्ठियां तुम्हारे सामने जला दूगा तथा परसों सुबह तुम्हारा टीका - वीका करके विदा कर दूगा ।"
किरन अव भी चुप रही ।
सफेद नकाबपोश ने आठ में से दो को कहा…"नटराज के मन्दिर म दोनों जाओगे ।"
"ओ.के. बॉस ।" दोनों एक सुर में बोले ।
नटराज का मन्दिर एक उजाड़ स्थान पर था ।
चारों तरफ और दूर-दूर तक साये अधंकार को शेखर मेल्होत्रा आंखे फाड़कर घूर रहा था है ।।
दिल वहुत जोर'-जोर से धड़क रहा था उसका ।
" अचानक एक शक्तिशाली टॉर्च के 'प्रकाश झागों' ने अधंकार के मुंह पर जोरदार चांटा जड़ा ।
शेखर सतर्क हो गया ।
प्रकाश दायरा मन्दिर प्रांगण और दीवारों पर यात्रा करने के बाद उसके जिस्म पर अाकर ठहर गया-दायरा इतने व्यास का था कि शेखर का सम्पूर्ण जिस्म प्रकाश झागों से नहा उठा-मिचमिचाती आंखों से उसने टॉर्च की तरफ देखने की केशिश की मगर रंग-बिरंगे सितारों और प्रकाश दायरे के उदृगमस्थल के अलावा कुछ नजर न आ सका ।
फिर !
दायरे का उदृगमस्थल उसकी और बढने लगा ।
आंखों के आगे अपना हाथ अड़ाकर शेखर चुपचाप खडा रहा ।
सामने उसकी तरफ आता दायरे का उदूगम अभी दस-पांच कदम दूर ही था कि पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा…चिहुंककर शेखर पलता, लम्बी--लम्बी और मोटी मूंछों वाला एक कुम्भकरण सरीखा व्यक्ति उसके निकट खड़ा था…रंग काला भुजंग, चेहरा इतना चौडा जैसे रामलीला ग्राउण्ड में खडे कुम्भकरण के पुतले का हो ।
“फोटो और चिट्ठियां लाये हो ?“ उसके मुह से गड़गड़ाहटदार आवाज निकली ।
सहमते हुए शेखर ने कहा---"हां ।"
“कहां हैं ?"
"म-मेरी जेब में ।" उसने थूक सटका ।
, "मुझे दो ।"
"नहीं ।" शेखर ने कहा-“फोटो तुम्हें नहीं, केवल किरन को दूंगा ।"
"दिखा तो सकते हो ? कहाँ हैं वह है?"
"जरूर ।" कहने के साथ उसने जेब से एक लिफाफा निकालकर कुम्भकरण सरीखे व्यक्ति को दिखाया और उसने लिफाफा के लिए हाथ बढाया ही था कि शेखर ने फुर्ति के साथ वापस जेब में रखते हुए कहा----“कह चुका हू कि लिफाफा केवल किरन के हाथ में दूंगा ।"
कुम्भकरण सरीखे व्यक्ति ने कुछ ऐसे अन्दाजा में उसकी तरफ देखा जैसे जल्लाद अपने शिकार को देखता है--मुस्कुराने के प्रयास में उसके लम्बे-लम्बे और चौडे दांत जो चमके तो शेखर सिहरकर रह गया, वड़े ही कातिलाना अन्दाज में कहा उसने---"'' ऐसा चाहते हो तो ऐसा ही सही, चलो ।"
कहने के बाद वह मुड़ा और एक तरफ़ को चल दिया ।
शेखर उसके पीछे था ।
प्रकाश दायरा साथ-साथ चल रहा था ।
मुश्किल से पन्द्रह मिनट बाद वह 'बड' के घने वृक्ष के नीचे छुपी खडी विना नम्बर प्लेट बाली काली एम्बेसेडर के नजदीक पहुच गये-उस पर नजर पड़ते ही शेखर चीख पड़ा-“न-नही, तुम किरन के भेजे हुए अभी नहीं हो ..... ।"
चेहरे पर "भड़ाक" से घूंसा पड़ा ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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