चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

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Jemsbond
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

Post by Jemsbond »


"अब तुम समझी कि चक्रव्यूह मेरे नहीं तुम्हारे चारों तरफ रचा गया था, मैं तो रचयिता था मगर अव समझी तो क्या समझी-------पर वह काम तुम पूरी कर चुकी हो जिसके लिए जरा-सी चूक के कारण 'बेवकूफ' चन्दू की रिवॉल्वर की गोलियां तक सहनी पड़ी---उस वक्त भला मैं तुम्हें कैसे मरने दे सकता था बेबी, तुम न रहती तो वह दिन कैसे उगता जिस दिन तुमने मुझे बेगुनाह साबित किया---------दुख है तो सिर्फ ये कि मैं पत्नी के रूप में तुम्हें भोग न सका ।"




"म-मगर संगीता का मर्डर करने की तुम्हें जरूरत क्या थी?


"क्या तुम यह कहना चाहती हो बेबी कि मुझे उस वेश्या को सिर पर बैठाये रखना चाहिए था जिसे एक चुटकी स्मैक देकर अनगिनत विदेशी लड़के भोग चुके थे ?"
ओह ! तो तुमने संगीता की हत्या दौलत की खातिर नहीं की बल्कि इसलिए की क्योंकि तुम उसके लंदन वाले चरित्र से वाकिफ हो गए थे ।।।



“मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि कोई भी मर्द अपनी उस बीबी का चुम्बन तक नहीं ले सकता जिसे स्मैक की तरंग में डूबकर एक दिन वह मुझे खुद बता बैठी थी-----------'मैंने उसी दिन संगीता से पीछा छुडाने का फैसला कर लिया और पीछा छुड़ाने के दो तरीके थे--------तलाक या संगीता का खात्मा----मुझे दूसरा तरीका चुनना पडा क्योंकि 'तलाक' की अवस्था मैं करोड़पति से फ़कीरपति वन जाता ।"


“और गुलाब चन्द की हत्या क्यों की तुमने ?"



बहुत जोर से, दरिन्दे की मानिन्द हैंसा वह…"हकीकत ये है बेवकूफ लड़की कि गुलाबचन्द की हत्या न मैंने की------न किसी अन्य ने----उसकी हत्या नशे ने की, नशे की ज्यादती ने की-----बह सचमुच एक दुर्घटना थी, केवल दुर्धटना-----हत्या तो तुम्हारी नजरों में उसे मैंने साबित कर दिया ।"



“क्या मतलब ?"


“तुम्हारे साथ रहते-रहते मैंने महसूस किया कि तुम व गुलाव चन्द की मौत को भी मर्डर मानने के लिए तैयार बैठी हो, अत: हिल एरिया में गया--------खाई में पड्री गाडी के 'ड्रम्म से "शू निकाले और अक्षय को पकड़ा दिये-बस, मेरी इतनी-सी मेहनत के बाद तुमने अपना 'व्रिलिएन्टपना' दिखाया तथा जो वास्तव में दुर्धटना थी उसे मर्डर साबित कर दिया ।"



"म-मगर इस कैसिट से तुम्हारे खिलाफ़ साबित तो कुछ नहीं किया जा सकता ।"



"जो रहस्य इसमें है उसे तब तक साबित किया जा सकता है जब तक इंसपेक्टर जीवित

किरन ने एक पितल का फूलदान पूरी ताकत से फेककर मारा ।


परन्तु !


हल्के से झुककर वह खुद को बचा गया ।


तेवर विकराल हो उठे,गुर्राया-------"ओह । तुम मुझे ही खत्म करने का इरादा वना बैठी ।"

किरन उछलकर खडी अवश्य हो गई परन्तु टांग इस कदर कांप रही थी कि वह 'ज्यादा देर तक खडी नहीं रह सकती थी-----मारे खौफ के चीखकर दरवाजे की तरफ भागी ।


चीता झपटा !!!!


वनमानुष के हाथों ने उसके बाल पकडे और इतना जोरदार झटका दिया कि वह चीखती हुई पुन: फर्श पर जा गिरी-चेहरे पर वहशियाना भाव लिए वह किंसी दैत्य की तरह किरन की तरफ बढा ।



फर्श पर पडी किरन पीछे की तरफ़ रेंगती हुई भयभीत अन्दाज में चीखी---" न-नहीं --- तुम मुझें मार नहीं मार सकते----तुम एक बेगुनाह के खून से हाथ नहीं रंग सकते ।"



"अफसोस की बात है बेबी तुमने मुझे ठीक से नहीं पहचाना खुद क्रो बेगुनाह साबित करने के लिए मैं हजार बेगुनाहों का खून कर सकता हुं-----जरा सोच, रधिया, चाकू-बिकेता और टेलर को मैंने क्यों मार डाला है"'

" त--तुम ...... तुम नहीं ...... नहीं ......


किरन चीखती रह गई ।



वनमानुष का-सा हाथ उसके ब्लाउज के अगले हिस्से यानि नोंच ले गया ।
"न-नहीं . ..नहीं ।" उसका इरादा भांपकर खौफ की ज्यादती के कारण किरन रो पडी, गिड़गिड़ा कर कह उठी --- '"त'---तुम ---- तुम मुझे मार डालो मगर ------ मगर वह मत करो जो तुम चाहते हो ।"


वह हँसा ।


मानो 'ड्राक्यूला' हँसा हो । बोला-तुम----- तुम समझ गयीं कि मैं क्या चाहता हूं ?"


"प्लीज ------ प्लीज -----मुझें बख्श दो------बुरी तरह किरन ने हाथ छोड़ लिए------म-मैँ तुम्हारे अागे हाथ जोड़ती हूं --- पैर पकड़ती है---- म-----मुझे मार डालो मगर छुओ मत ।"


"अरे वाह ?" वह 'हँसा----"भला विना छुए कोई किसी को कैसे मार सकता है---तुम्हारे साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहता----जबरदस्ती वाले हालात बने हैं वुन्दू की बेवकूफी से-------- "मैंने सुरक्षित जगह समझकर केसिट क्यारी में छुपा रखी थी-----वह बेवकूफ उठाकर यहां ले अाया ।


बचाव के लिए किरन को कोई रास्ता नजर न जा रहा या । "



वह चीखती रही, चिल्लाती रहीं । ।


परन्तु !!


गिद्ध के हाथ को अपनी बेजरी की तरफ बढने से न रोक सकी ।
हाथ ब्रेजरी को नोचकर फेंकने ही वाला था किं-"खट्ट' की आवाज हुई ।


दोनों की तवज्जो लॉन की तरफ खुलने बाती खिड़की की तरफ गई!!!!



किरन साड़ी से खुद को ढांप चुकी थी !


किसी ने बाहर से धक्का मारकर उसे खोल दिया था ।


" धांय--------- धांय -------- धांय------!"


तीन गोलियां एक साथ चली !!


एक ने उसका सिर फोड़ा, दूसरी ने दिल में शरण ली और----तीसरी ने चेहरे का भूगोल बदल डाला---किसी जानवर से मिलती-जुलती डकार जैसी चीख के साथ एक लाश बेडरूम के फ़र्श पर जा गिरी !



हाथ में रिवॉल्वर लिए खिड़की की चौखट पर पैर रखकर बैरिस्टर विश्वनाथ कमरे में कूदे ।


रिवॉल्वर से धुएं की लकीर निकल रही थी । "प-पापा---------' पागलों की मानिन्द किरन दौडी और उनसे लिपट गई ।


फूट-फूटकर रो रहीं थी वह ।



तभी, खिडकी के माध्यम से जज साहब भी बेडरूम में अाये ।


बुरी तरह रोती किरन ने पूछा-----" अ--आप यहाँ कैसे पहूंच गये पापा ?"


"'जोश में भरे लोग आत्महत्या का इरादा तो वना लेते हैं बेटी, जब मौत झपटती है तो जिन्दा रहने के लिए छटपटाने लगते हैं ---सचमुच , मौत इंसान को बुरी तरह डरा देती है-तोड़कर रख देती है ।"



"मैं समझी नहीं ।"


"इस अहसास ने इंस्पेक्टर को तोड दिया कि सुबह उसे फांसी पर चढा दिया जायेगा-----, जज साहब और जेलर साहब को सारी हकीकत बता दी उसने ।"


"ओह पापा ------ओह ----अाप जीत गये-----मैं हार गयी, खुले दिल से कुबूल करती हू् कि बड़ीं करारी शिकस्त खाई है मैंने ----- मगर------ मगर एक बात आपको भी कुबूल करनी पडेगी ।"


"क्या ? "


"वही जो शेखर मल्होत्रा कहा करता था ।"


"यानि ?"


"कि सच्चाई सभी तर्कों शहादर्तो, सबूतों और गवाहों से ऊपर होती है ।"


"बह कैसे ?"


" अब देखिए न --- सच्चाई क्या थी और मैनें क्या साबित कर दिया ?"


The end
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

Post by SATISH »

मेरे फेवरेट लेखक है वेद प्रकाश शर्मा उनके सारे उपन्यास मैंने पढ़े है सारे के सारे एकसे बढ़ कर एक भगवान उनकी आत्मा को शांति दे
Jemsbond
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

Post by Jemsbond »

shaziya wrote: 11 Dec 2018 14:51 Excellent story , waiting for next Novel

😠 😡 😡 😡 😡 😡
SATISH wrote: 17 Dec 2018 04:09 मेरे फेवरेट लेखक है वेद प्रकाश शर्मा उनके सारे उपन्यास मैंने पढ़े है सारे के सारे एकसे बढ़ कर एक भगवान उनकी आत्मा को शांति दे
thanks
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

Post by naik »

very very nice novel brother
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