चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

Post Reply
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »


सड़क के पार खडी टैक्सी की तरफ बढते हुए शेखर ने कहा---आओ किरन ।"



“नहीं शेखर, हम टैक्सी से नहीं, बस से चलेंगे ।"



"वजह ?-"'



"वस में भीड़ होगी और क्राइम करने वाले भीड़ से कतराते हैं ।"'



“मैं सहमत हूँ और तुम्हारे दिमाग की दाद भी देता हैं ।" मुस्कुराता हुआ शेखर तुरन्त कह उठा ।


मुस्कान का जवाब मुस्कान से देती किरन ने कहा… "तो आओ, बस-सटॉप की तरफ चलें ।"



कुछ देर वाद वे भीड़ से ठसाठस, भरी बस में यात्रा कर रहे थे । दो स्टॉप बाद दो व्यक्तियों के लिए बनाई गई एक सीट मिल गई थी उसे तब शेखर ने कहा----"मैं यह नहीं समझ ' पाया किरन कि तुम हत्यारा किसे मानकर चल रही हो… रमन को या शहजाद राय को ?"




किरन के होंठों पर मोहक मुस्कान उभर आई, बीली !!!



इन्वेस्टीगेटर किसी के सामनें बाते कुछ और कर रहा होता है और दिमाग में कुछ और सोच रहा होता है-बैसे मेरे ख्याल से कल मुझे यह बात पता लग जानी चाहिए कि हत्यारा कौन है ???"



"क-कल .......कल तुम्हें यह बात पता लग जाएगी है"' शेखर उछल पड़ा है !!



Page no 129


किरन की मुस्कुराहट रहस्यमय हो उठी, बोली--. "सम्भावना तो है ।"



" क-- केसे ।" प्रसन्नता की ज्यादती के कारण शेखर का लहजा कांप रहा था।



"मैँने सबके फोटो मांगे हैं, वे बता देगे कि हत्यारा कौन है ?"




. "फ-फोटो तुम्हें संगीता का हत्यारा बता देगे । मैं कुछ समझा नहीं ।"



रहस्य से लबालब भरी मुस्कान के साथ किरन ने .कहा---"'हर चीज बोलती है शेखर, सुनने वाले के पास दिमाग होना चाहिए और मजे की बात ये कि कुदरत ने मुझे दिमाग देते वक्त किसी किस्म की कंजूसी नहीं वरती ।"
"कहां चली गई थी तू ??"' सुलोचना देबी किरन को देखते ही चढ़ दोड़ी----“और अपने पापा से फोन पर ऐसा क्या कहा था जिसे सुनते ही वे पागल हो गए, इतने उत्तेजित, उद्धलित, घबराये हुए और बोखलाये हुए मैंने उसे कभी नहीं देखा ।"



मुस्कुरा उठी किरन, बोली--, "पापा हैं कहाँ ?"




"शहजाद राय के यहाँ गए हैं ।"



"श-शहजाद राय के यहां…क्यों ??"'



"तुझे देखने ........ और क्यों ?" सुलोचना दैवी गुर्रां उठी----“तेरे फोन के तुरन्त बाद से वे शहजाद राय को फोन मिलाने की कोशिशे करते रहे परन्तु नहीं मिला-----बेल जा रही थीं लेकिन रिसीवर नहीं उठाया जा रहा था-----वे इस नतीजे पर पहुचे कि शहजाद राय का फोन खराब है और फिर फियेट लेकर आंधी… तूफान की तरह निकल गये !!!!"

Page no 130



"ओह" !" किरन को अफसोस हुआ----“मेरे फोन की वजह से पापा को इतनी परेशानी हूई ?"'



"फोन पर तूने कहा क्या था और--- तेरी गाड़ी कहां गई?"



"वर्कशॉप में है ।"


"क्यों ?"



"एक्सीडेन्ट हो गया था ।" कहने के बाद किरन ने रिसीवर उठाकर टैक्सी यूनियन के आँफिस का नम्बर डायल किया सम्बन्थ स्थापित होने पर बोली----बैरिस्टर विश्वनाथ की बेटी बोल रही हूं पता नोट कीजिए ।"


"क्यों ??"' दूसरी तरफ़ से पूछा था ।


“नोट कीजिए, काम भी बताऊंगी ।"


"बोलिए ।"


पता लिखवाने के बाद किरन ने कहा-----"टैक्सी नम्बर यू वी एक्स 4889 जब भी आँफिस पहुंचे अाप उसे लिखवाये पते पर भेज दे और ड्राइवर से कहें कि इनाम के पांच सौ
रुपये मिलेगे ।"



"" एेसा क्या काम किया है ड्राइवर ने है"' चकित स्वर !!!!



"इस सवाल का जबाव तो अभी उस बेचारे को भी मालूम नहीं है----यहां अाने पर ही पता लगेगा कि उसने अनजाने में कितना महान् काम कर दिया !!!" कहने के साथ किरन ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।



इस वक्त वह अपनी कोठी के ड्राइंग-कम-डायनि'ग हॉल में थी…उसमें , जिसकी दो, दीवारें चौखटों में लगे पारदर्शी शीशों की थी.....…पर्स को लापरवाही के साथ सोफे पर डालने के बाद वह डायनिंग टेबल की तरफ बडी और एक कुर्सी खींचकर उस पर बैठ गई । ......

सुलोचना देवी को अभी अपने दिमाग मैं घुमड़ रहे सबालों में से किसी एक का भी जबाब नहीं मिला था इसलिए उसके नजदीक पहुची और सवाल करने के लिए मुंह खोला ही था कि--------------


“छनाक ...... छनाक ...... छनाक !"


“धम्म ...... धम्म ...... धम्म !"



कांच टूटने और कुछ व्यक्तियों के फर्श पर आ गिरने की आवाजें गूंजी ।


दोनों महिलाओं की हलक से चीखें निकली, और अभी कुछ समझ भी नहीं पाई थी कि एक साथ चार नकाबपोश फर्श पर कलाबाजियां खाते और फिर नटों की मानिन्द उछल---उछलकर खड़े होते नजर आये ।



सारे हाँल में कांच बिखरा हुआ था ।


दो एक दीवार का कांच तोड़ते हुए हाँल में पहुंचे थे, दो दूसरी तरफ़ से !



पहले तो किरन कुछ समझ ही न पाई------जव तक समझी तब तक चारों के हाथ में चमक रहे रिवॉल्वरों पर नजर पड़ चुकी थी !!!!


सुलोचना देबी चीखने वाली मशीन की तरह चीखें जा रही ।



"खामोश !" उनमें से एक दहाड़ा ।



सुलोचना देबी की सीट्टी-पिटी तुरन्त गुम हो गई ।


मानो बिजली से चल रही मशीन गुल हो जाने की वजह से चुप हो गई हो !




" किरन अपनी मम्मी की तरह चीख तो नहीं रही थी परन्तु मारे खौफ के बुरा हाल था उसका।

"तू मानेगी नहीं लड़की ?" एक नकाबपोश नकाब से झांकती सुर्ख आंखें किरन पर जमाकर गुर्राया ------ " गाड़ी की धज्जियां उडाकर हमने जो इशारा किया था, उसे शायद तू समझी नहीं ?"



" क-कौन-सा इशारा ?" किरन ने हकलाकर पूछा ।

तभी !!


कोठी में ऐसी आवाज गूंजू जैसे कुछ लोग लोग दौड़ कर आ रहें हों !



एक नकाबपोश ने कहा---"नौकर आ रहे है सरदार, जल्दी करो !"


तब !!


सुर्ख आंखों वाले नकाबपोश ने रिवॉल्वर ताना और जल्दी से गुर्राया----“तेरा पर्स कहां है…फौरन बता वर्ना गोली मार दूंगा ।"


अातंकित किरन ने सोफे पर पड़े पर्स की तरफ इशारा का दिया ।



भागते कदमों की आवाज नजदीक आ गई ।


एक नकाबपोश ने झपटकर पर्स उठा लिया ।


सुर्ख आंखों वाला गुर्राया----अगर इशारा नहीं समझती तो सीधे--सीधे सुन…।"



परन्तु । "


वाक्य पूरा न हो सका !!


" भागते हुम नौकर दरवाजा पार करके हाल में पहुंचे ही थे कि एक नकाबपोश दहाड़ा-"रुक जाओ, वरना एक-- एक की खोपड़ी में सुराख वना दिए जायेंगे ।"


हाय--तौबा में अाए नौकर बौखलाकर ठिठक गए ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »


वे तीन थे, तीनों की सांसें धौकनी की मानिन्द चल रही थी ।


और चेहरे !!



चेहरों पर हो रहा था--- मौत का कत्थक !!!




अपनी तरफ तने रिवॉल्वरों देखकर उनके प्राण खुश्क को गए थे !!


आंखों में खौफ-ही-खौफ !!


"चलो सरदार ।" एक अन्य नकाबपोश ने कहा ।
सुर्ख आंखों वाला किरन पर नजर टिकाये, अपने साथियों के साथ पीछे हटता हुआ बोला…"अगर तूने इस मामले में दिलचस्पी लेनी बंद नहीं की तो तुझ अकेली को नहीं बल्कि तेरे मां-बाप को भी मीत के बाट उतार दिया जायेगा ।"



किरन सिहर गई, मुह से बोल न फूटा !!



। और फिर !



चारों एक साथ----ठीक इस तरह कलाबाजियां खाकर टूटे कांच से गुजरते हुए हाल से गायब हो गए जैसे एक ही स्विच से हरकत में आने वाली चार मशीने हों ।



नौकर कांच की दीवारों की तरफ दौडे ।



"रुक जाओ!" किरन चीखीं-----" कोई फायदा नहीं है । उन सबके पास रिवॉल्वर है ।"



नकाबपोश हातिमताई के जिन्न की तरह हाल में आये थे और उसी तरह गायब हो गए ।
टाक् ......चटाक......चटाक !!



सुर्ख आंखों वाले के गाल पर एक ऐसा शख्स चांटे पर चांटे बरसाता चला गया जिसका चेहरा सफेद नकाब के पीछे छुपा था और जब मारता-मारता थक गया तो चीखा…“मैंने तुमसे फोटो और चिट्टियां लाने के लिए कहा था हरामजादे या पर्स ?"

"म-मगर बॉस ।" सुर्ख आंखों वाला बोला----“आप ही ने तो कहा था कि चिट्ठियां उसके पर्स में हैं ।"



"चुप रह उल्लू के पटृठे !" सफेद नकाबपोश दहाड़ा----" कहां है बता......कहां है चिट्ठियां और फोटो ?"



सुर्ख आंखों वाले ने जमीन पर खुले पड़े पर्स की तरफ़ देखा । उसके तीनों साथियों की नजर पाले ही जमीन पर 'मुह बायें' पड़े पर्स पर स्थिर थी…पर्स के अन्दर से निकला सामान भी उसी के इर्द-गिर्द बिखरा पड़ा था परन्तु उसमें काम की कोई न थी ।



सुर्ख आंखों बाले उनके उन साथियों के चेहरों पर इस वक्त नकाबे नहीं थी जो उनके साथ बैरिस्टर विश्वनाथ के ड्रॉइग रूम डायनिंग हाल में हंगामा मचाकर अाये थे-नकाब थी तो सिर्फ उसके चेहरे पर जिससे मार खाने के बावजूद सुई आंखों वाला गिड़गिड़ा रहा था ।



वह और उसके साथी शक्ल से ही शहर के छटे हुए गुन्डे नजर आ रहे थे ।



गर्दन झुकाये सुर्ख आंखों वाला बोल----“गलती हो गई बॉस ।"



"गलती हो गई हैं' नकाबपोश भड़का-----“बस.......कहकर छुट गये कमीने कि गलती हो गई…...इतना तक नहीं सोचेंगे कि गलती हो क्यों गई, चिट्ठियां और फोटो गये तो कहाँ गये । जग्गा उस्ताद! "



"एक राय पेश करू बॉस ?"' डरते हुए जग्गा उस्ताद ने पूछा ।


“बक !"


"कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि फोटो और चिट्टियां उसने शेखर मल्होत्रा को दे दी हों ?"



सफेद नकाब के अन्दर झांकतीं आँखे सोचने वाले अन्दाज में सिकुड़ गयी और फिरें लगातार एक मिनट तक सोचते रहने के बाद बोला वह-“हो सकता है, विल्कुल हो सकता है और फिर मान लिया कि फोटो और चिट्ठियां उस हरामी के पास न भी हुई तो उसे मालूम जरूर होगा कि कहाँ हैं ?

-------------
---------

"म-मगर अाप तो 'चुन्नु पहलवान' को हुक्म दे चुके है बॉस कि अपने साथियों के साथ शेखर मल्होत्रा का सफाया कर दे?"



"ओह !' उसके मुंह से ऐसी अवाज निकली जैसे गलती का अहसास हुआ हो तथा फौरन पैंट की जेब से पांच किलोमीटर की रेंज' वाला 'वाकी-टाकी' निकालकर किसी से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करने लगा ।



थोडी देर बाद दूसरी तरफ से आवाज़ उभरी !



"पहलवान बोल रहा हूं ।"



"हम एक्स वाई जेड बोल रहे हैं पहलवान ।" सफेद नकाबपोश ने कहा ।



"क्या हुक्म है बॉस?”



"शेखर मल्होत्रा अभी तक तुम्हारे चंगुल में नहीं फंसा?



अभी वह यहां पहुंचा ही नहीं बाँस ।"


"कहां से बोल रहे हो ?"



"हम उसकी कोठी के बाहर सड़क के दोनों तरफ छुपे हैं…-आप फिक्र न करें, अपने पेरों से चलकर वह कोठी अन्दर दाखिल नहीं हो सकेगा---हां नोकरों को उसकी लाश उठाकर ले जाने से मैं रोक नहीं सकता।”



"तुम उसे एकदम से शूट नहीं करोगे चुन्नु पहलवान ।"



"पहले तो आपने वही हुक्म दनंदनाया था बॉस !"



"हुक्म अब भी उसका काम तमाम करने का ही है, मगर एकदम से नहीं बल्कि आराम से, थोडा ठहरकर ।"


"वजह ? "



"उसके पास या उसकी जानकारी में कुछ फोटो और चिट्टियां हैं-दाम उसे तब लक खत्म नहीं करोगे जब तक कि फोटो औरे चिट्ठियां बरामद न कर तो अथवा यह न उगलवा तो कि वे कहाँ हैं----" फोटो और चिट्ठियों का पता लगने के बाद उसे एक पल के लिए भी जीवित नहीं छोड़ना है ?"


"ओ. के . बॉस !"

किरन की सलाह के मुताबिक शेखर मल्होत्रा उसके घर से अपनी कोठी के लिए टैक्सी के स्थान पर बस में रवाना हुआ । इस रूट की यह अन्तिम बस थी !! इसलिए भीड़ जरूरत से ज्यादा थी !! सीट न मिल सकी, खड़े-खड़े सफर करना पड़ा उसे । बसो के सफ़र का अभ्यस्त वेसे ही ना था !!


सो !



लोगों की धक्का--मुक्की में फंसे-फंसे 'चूं' बोल गया ।



किसी तरह बस उसके 'स्टॉप' पर पहुंची, वह यूं उतरा जैसे बहुत बड्री मुसीबत से पीछा छूटा हो…स्टॉप से उसकी कोठी करीब डेढ फ्लॉग दूर थी---सो, बस अपने रूट पर भागे चली गयी और वह पैदल ही कोठी की तरफ़ बढ गया ।



कोठी के ठीक नजदीक पहुचा ही था कि…



दायें बायें हल्की-स्री हलचल महसूस हुई ।



तेजी से पलटकर दोनों तरफ़ देखा और फिर दोनों ही तरफ से खुद पर लपकते दो काले नकाबपोशों को देखकर रिवॉल्वर से छूटी गोली की मानिन्द कोठी के लोहे वाले गेट की तरफ़ दौड़ा ।



दोनों नकाबपोश उससे ज्यादा रफ्तार के साथ भाग रहे थे, मगर फिर भी वह उनके खुद तक पहुंचने से पहले ही कोठी के लोहे वाले द्वार पर पहुच जाता परन्तु -------


दो नकाबपोश ठीक सामने नजर अाये!


उनके हाथों में दबे रिवॉल्वर भी शेखर मल्होत्रा ने साफ--साफ देख लिये थे !!
आतंकित अन्दाज में वह हलक फाड़कर चिल्लाया-----" हैल्प ...... हैल्प ...... हैल्प !''


सन्नाटे में आवाज दूर…दूर तक गूंज गयी ।


किन्तु ।


मदद के लिए किसी भी तरफ़ कोई हलचल नजर नहीं आयी ।



लगातार चिल्लाते हुए शेखर ने दौड़ लगानी शुरू की भी लेकिन अभी सडक पर ही था यानि फुटपाथ पर भी नहीं पहुच सका था कि चारों नकाबपोश अत्यन्त निकट आ गए ।



एक गुर्राया----" अगर हलक फाडने की कोशिश की तो गोली मार दी जायेगी ।"



चीखने के लिए मुंह खुला ही रह गया ।


बुरी तरह आतंकित था वह, भयभीत स्वर में बोला--- "कौन हो तुम लोग ?"


"फोटो और चिट्टियां कहां हैं ?" पीछे से गुर्राकर किसी ने पूछा ।



शेखर तेजी से पलटा !


हाथ में रिवॉल्वर लिए कुम्भकरण सरीखा नकाबपोश खतरनाक अन्दाज में उसकी तरफ़ बढ़ रहा था !



पीछे हटते हुए शेखर मल्होत्रा ने 'पुछा---"कोन से फोटो और चिट्टियां?"


"जिनकी हमें तलाश है ।"


"म-मुझे क्या मालूम कि आपको ।"



वाक्य अधूरा रह गया ।


बल्कि अगर यह कहा जाये कि अागे के शब्द हलक से उबल पड़ने वाली लम्बी चीख में तबदील हो गए तो गलत न होगा ।
पीछे वाले नकाबपोश ने अपने बूट की ठोकर उसकी पीठ में इतनी जोर से मारी थी कि 'पट्ठा' सड़क पर सीधा उस नकाबपोश के कदमों में जाकर गिरा जिसने फोटो और चिट्टियों के बारे में पूछा था !!


शेखर अभी सड़क से उठने की कोशिश शुरू भी नहीं कर पाया था कि जिसके कदमों में गिरा था उसने झुककर बाल पकडे तथा पूरी बेरहमी के साथ ऊपर उठाता हुआ गुर्राया----""ज्यादा चालाक बनने के कोशिश करोगे तो जिस्म से छलनी कर दिया जाएगा और लाश यहीं इसी सडक पर आवारा कुत्ते की लाश की तरह डाल दी जाएगी ।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »



शेखर के हलक से चीखें उबल रही थीं ।


कुम्भकरण सरीखा नकाबपोश गुर्राया----“तुम अच्छी तरह जानते हो कि हम कौन से फोटो और चिट्ठियों की बात कर रहे हैं?"



"म-मैं-मैं ........।" शेखर मिमियाकर रह गया ।


तभी एक नकाबपोश ने कहा-इससकी तलाशी लेनी चाहिए पहलवान !"



"'लो।" कुम्भकरण सरीखा नकाबपोश चुन्दू पहलवान था ।


तब !


दो नकाबपोशों ने आगे बढ़कर तलाशी ली किन्तु जिन फोटो और चिट्ठियों की तलाश थी वे न मिले----इस निराशा ने चुग्नू पहलवान को कुछ ज्यादा ही उग्र कर दिया-वह अभी तक शेखर मल्होत्रा के बाल कब्जाये हुए था । दांतों पर दांत जमाकर गुर्राया---“बता दे बेटे, बता दे कि फोटो और चिट्टियां कहां हैं ?"



" मुझे नहीं ......!"

रिवाल्वर का दस्ता 'फटाक' से शेखर के पेट में पडा, अभी इसी चोट की पीड़ा से विलविला रहा था कि चुन्नू पहलवान के कसरती घुटने की चोट सीने पर पडी ।



इस बार चीख के साथ शेखर मल्होत्रा सड़क पर चारों खाने चित्त जा गिरा ।


उठने के चेष्टा कर ही रहा था कि चारों का एक-एक बूट उसके जिस्म पर अाकर टिक गया ।



बिलबिलाकर रह गया वह ।


चुग्नू पहलवान झुका , अपने रिवॉल्वर की नाल शेखर की कनपटी पर रख दी उसने और बर्फ की मानिन्द ठ'डे स्वर में गुर्राया----"आखरी वार पूछ रहा हूं ---बता दे, नहीं बतायेगा तो गोली भेजे के अार-पार हो जाएगी ।"



"बताता हूं .... बताता हू।” शेखर मल्होत्रा चीखा तभी !



दाई तरफ हेडलाइंट नजर अाई ।


"कोई आ रहा है पहलवान ।" एक नकाबपोश चिल्लाया !"


"प-पुलिस !" दूसरा चीखा--वह पुलिस की जीप है!


चुन्नू पहलवान दहाड़ा---“तुझें कैसे पता ?"


"व-वह अभी-अभी एक 'पोल' के नीचे से गुजरी थी, मैंने उस पर लिखा "पुलिस" पढ़ा है ।"



“भागो पहलवान ।" दूसरा चिल्लाया---"जीप नजदीक आ रही है ।"


"और !"



एक झटके से चारों के पैर शेखर मल्होत्रा के जिस्म से हट गए ।


जव उसे भी सड़क पर फैला जीप की हैडलाईंट का प्रकाश दिखाई देने लगा था और उसी प्रकाश में दिखाई दिए सिर पर पैर रखकर भागते चारों नकाबपोश ।

जीप की तरफ से अक्षय की दहाड़ सुनाई दी----“कौन है, रुक जाओ ।"



परन्तु ।



रूकना किसे था ?



भागते हुए वे सडक के पास हैडलाइटृस की रेंज से बाहर चले गए ।




जिस्म का जोड़-जोड़ दुख रहा होने के बावजूद शेखर मल्होत्रा उछलकर इस तरह खडा हो गया जैसे कुछ हुआ ही न हो----सम्पूर्ण जिस्म पुलिस जीप की हैडलाइटृस में नहाया हुआ-सड़क के वीचों-बीच ख़ड़ा वह दोनों हाथ हवा में नचाता हुआ 'मदद' के लिए रुकने की दुहाई करने लगा ।



अचानक एक गाडी का इंजन जाग उठा ।



"धांय.......धांय !"



दो गोलियों चली ।



'झनाक-झनाक' की जोरदार आवाजों के साथ जीप की हैडलाईट बिखर गई !



शेखर मल्होत्रा ने खुद को न सिर्फ सड़क पर गिरा लिया बल्कि किसी तरह फुटपाथ की तरफ लुढ़कता चला गया-अधंकार से एक काली एम्बेसेडर प्रकट होकर सडक पर आई और कमान से छूटे तीर की तरह विपरीत दिशा में दौड़ ली ।


"धांय.......धांय .......धांय.......धांय !"


जीप से एम्बेसेडर के पिछले हिस्से पर गोलियां बरसाईं गयी ।


शक्तिशाली टॉर्चों के प्रकाश फेंके गए !


परन्तु व्यर्थ !



न कोई गोली उसके किसी टायर को 'शहीद' कर सकी, न ही नम्बर पढा जा सका, प्लेट गायब थी…पीछा करने में जीप इसलिए असमर्थ थी क्योंकि हैडलाइंट के अभाव से किसी भी तरह बिना नम्बर वाली काली एम्बेसेडर की रफ्तार के साथ नहीं दौड़ सकती थी---- हां बायरलैस पर अक्षय दहाड़ निःसन्देह रहा था !

आसपास की कोठियों में जाग होगयी थी !!!!

विश्वनाथ ने गाडी मैरेज में खडी करके कदम नाहर निकाला ही था कि सुलोचना देबी ने उन्हें लपक लिया और भयभीत स्वर में लगी उस घटना को बयान करने जो कुछ देर पहले घटी यी ।


वे चौंक पड़े ।


हॉल में पहुंच वहां की हालत देखी ।


टूटी हुई कांच की दीवारें और फर्श पर किरचे-किरचे बिखरा कांच ।



बैरिस्टर विश्वनाथ ने धीर--गंभीर स्वर में पूछा----“किरन कहाँ , कहाँ है ?"


"बिटिया तो तभी से अपने बेडरूम में है मालिक ।" सबसे पुराने नौकर ने बताया ।


विश्वनाथ ने किरन के बेडरूम की तरफ बढने के लिए कदम बड़ाया ही था कि ड्राइंग-कम-डाइनिंग हॉल में किरन की आवाज गूंजी…“मैं आ गई हूं पापा ।"


विश्वनाथ सहित सबकी दृष्टि आवाज की दिशा मैं घूम गई !


दरवाजे, मैं प्रविष्ट होती किरन के अधरों' पर 'चित्ताकर्षक' मुस्कान थी ।



विश्वनाथ ने मुकम्मल गम्भीरता के साथ फर्श पर बिखरे कांच की तरफ इशारा करते हुए पुछा--"' सब क्या है

Page no 142


"संगीता के हत्यारे का पेट दर्द ।" किरन ने ज़वाब दिया है !


“क्या मतलब ? "


“मैंने रि-इंवेस्टीगेशन शुरू की थी---शेखर मल्होत्रा की कोठी की तरफ जा ही रही थी कि "अम्बेडकर मार्ग' पर मेरी गाडयी पर हमला हुआ, अंधाधुंध गोलियां चलाकर पहले उसके टायर 'शहीद' कर दिए गए और गोलियों की दूसरी 'खेप' में शीशे-अब यह हमला हुआ है, मुजरिम समझा कि मैं उसका इशारा नहीं समझती हूं, अत: इस बार उसके चमचे साफ-साफ कह गए कि अगर मैंने संगीता मर्डर कैस में दिलचस्पी लेनी बंद नहीं की तो अकेली को नहीं, बल्कि मेरे मां-बाप को भी मार डालेंगे । अाप तो बैरिस्टर है अनुभवी हैं-समझ सकते हैं कि इन शब्दों में मुजरिम की बौखलाहट छुपी है-क्या मैं आपसे सवाल कर सकती हू कि अगर संगीता का हत्यारा शेखर मल्होत्रा है तो किसी के पेट में इसलिए दर्द क्यों हो रहा है कि मैं इस केस में दिलचस्पी ले रही हुं ?"



"तो म यह सोच रही हो कि हत्यारा शेखर नहीं है और तुम्हारे 'एक्टिव' होते ही असल हत्यारे के पेट में दर्द शुरू गया है तथा वह तुम्हें डरा'-धमकाकर इस केस में दिलचस्पी न लेने से रोकना चाहता है ?"



"जाहिर है ।" किरन कहती चली गई-----"और केवल सोलह घंटे की मेहनत के बाद मैं ऐसी स्थिति में पहुंच गई पापा कि फैसले वाली डेट पर संगीता का मर्डर का फैसला नहीं होने दूगी, बल्कि इस केस के सम्बन्थ में हुई अब तक की अदालती कार्यवाही को निरस्त करा दुंगी , मुक्म्मल मुकदमें को ही गैरकानूनी साबित कर दूंगी मैं !

"वह कैसे ?"


"ये फोटो और चिट्ठियां देखिए ।" कहने के साथ ही किरन ने अपना दायां पांव डायनिंग टेबल के साथ ही एक कुर्सी पर रखा, सलवार का पायंचा थोड़ा ऊपर सरकाया 'हेयर-बैण्ड' की मदद से अपनी पिंडली के साथ चिपकाया लिफाफा निकालकर उसे पकड़ाती हुई बोली----"यह वह लिफाफा है जिसमें वे फोटो और चिट्टियां हैं जिनके चक्कर में हमलावर मेरा पर्स ले गए…ऐसी घटना का मुझे अंदेशा था, लिफाफा पर्स से निकालकर तभी यहां रख लिया था जब राय अंकल के घर से बस द्वारा यहाँ आ रही थी ।"


"इस लिफाफे में वे फोटों और चिट्ठियां हैं न जिनसे यह स्पष्ट होता है कि संगीता की मां के मिस्टर राय से अवैध सम्बन्ध थे और संगीता मिस्टर राय की बेटी थी ?"



“आप राय अंकल के यहाँ से अा रहे हैं ।" किरन ने कहा---“ओर आपकी इस बात का अर्थ ये हुआ कि राय अंक्ल ने आपको फोटो और चिट्ठियों के बारे में बता दिया है ?"


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »


"हां ।" बैरिस्टर साहब ने गम्भीर स्वर में क्या…"उन्होंने हमें सब कुछ बता दिया है--फोटो और चिट्ठियों के बारे में भी, तुमसे हुई बातों के बारे में भी और यह भी कि तुम क्या सोच रही हो…उनका कहना है कि इसमें कोई शक नहीं कि संगीता उनकी बेटी है, मगर यह गलत है कि उन्होंने संगीता का मर्डर इसलिए कर दिया क्योंकि वह इस रिश्ते को सार्वजनिक बना देना चाहती थी---संगीता को तो हकीकत मालूम भी न थी और शेखर के केस के बारे में वे कहते हैं कि जानबूझकर कुछ नहीं किया बल्कि जब शेखर ने अपनी कहानी सुनाई थी तो उन्हें वाकई ऐसा लगा कि कहानी में दम नहीं है, कोर्ट में नहीं चलेगी और इसीलिए उन्होंने अपनी बनाई हुई कहानी पर केस लड़ा ।"
"अगर कल कोर्ट में खडी होकर मैं अपनी बात कहू और वे अपनी, तो जज को कौन-सी ज्यादा सटीक लगेगी ?"


“तुम्हारी ।"


"बस ।" किरन मुस्कुरा उठी---"ये है मेरी आपक्रो पहली पटकी ।"


"क्या मतलब ?"


"फैसले की तारीख वाले दिन मैं इन चिट्ठियों और फोटो के बूते पर कोर्ट से विशेष अनुमति लेकर यह साबित कर दूंगी कि मुकम्मल केस के दरम्यान शेखर मल्होत्रा का बचाव किसी वकील ने नहीं किया----दोनों वकीलों का मकसद शेखर को मुजरिम साबित करना था-क्या ऐसे केस की अब तक सम्पूर्ण अदालती कार्यवाही निरस्त नहीं हो जाएगी पापा, और क्या वह केस पुन: ए बी भी डी से शुरू नहीं होगा । जिसमें यह साबित हो जाये कि बचाव पक्ष का वकील बचाव नहीं बल्कि बचाव का नाटक कर रहा था, उसका असली मकसद भी वही था जो सरकारी वकील का था ।"



"'निसन्देह तुम इस केस की अब तक के सम्पूर्ण अदालती कार्यवाही को निरस्त करा सकती हो ।"



.""आदाब अर्ज है पापा ।" बेहद प्यारी मुस्कुराहट के साथ किरन 'आदाब' के अन्दाज में झुकी और इसी अन्दाज में झुके-झुके बोली---" साथ ही इस बात के लिए भी बधाई देती हूं आपने इस पहले प्वाँइन्ट पर खुले दिल से शिकस्त कुबूल की ।"



"यह सब तो ठोक है, मगर क्या तुम यह सोच रही हो कि हमले मिस्टर राय ने कराये हैं ?"


किरन ने कहा---पहले वह सुन लिजिए जो मैंने सुबह से अब तक किया है अथवा मेरे साथ घटा है क्योंकि उस सबको जाने विना आपके पल्ले यह नहीं पडेगा कि मैं क्या कर रही हूं !!!

“बोलो ।"

एक बार शुरू होने के बाद किरन ने सांस तक न ली---सब कुछ धाराप्रवाह बताती चली गई वह और जैसे-जैसे बताती गई वैसे-वेसे बैरिस्टर विश्वनाथ के चेहरे पर हैरत के भाव स्थायी होते चले गए ।



लम्बी सीस लेने के बाद वह बोली…“अब बस पहले यह बताइये कि सारे दिन की वारदातें सुनने के बाद भी क्या आप शेखर मलहोत्रा को उतनी ही दृढ़ता के साथ हत्यारा मानते हैं जितना दृढता के साथ सुबह तक मान रहे ये ?"



"यह सवाल हमसे क्यों पूछ रही हो ?"



“अगर आप इस वक्त भी शेखर मल्होत्रा को उतनी ही दृढता के साथ हत्यारा मानते हैं तो बाकी किरदारों के वारे में सोचना या विचार करना बेकार है और यदि आपकी द्रुढ़ता में कहीं कमी आई हो तो बात पर गोर किया जाये कि अन्य किरदारों में से कोई हत्यारा हो सकता है या नहीं और अगर हो सकता है तो कौन ?"'



"तो सबसे पहले किस किरदार को ले रही हो ?"


"आपको !"


"ह-हमें ?" बैरिस्टर साहब उछल पडे़।



किरन उनकी आंखों में झांकती हुई बोली---"क्यों, क्या अाप इस केस के एक अहम किरदार नहीं हैं ?"



"संगीता हमारे दोस्त की बेटी थी--------- अगर हम दोस्त के लिए करना चाहते थे तो संगीता का नहीं वल्कि शेखर का मर्डर करते यानि उदेश्य नदारद है और कोई भी हत्या निरुद्देश्य नहीं हो सकती अर्थात् नहीं लगता कि हम कातिल हैं ।"


किरन मुस्कुराकर बोली…“अपने-आपक्रो बड़ी जल्दी बरी कर लिया आपने ?"


"क्या दलील स्वीकार नहीं की गई है"'


"सम्भावित हत्यारों की लिस्ट में से किसी का भी नाम तव तक नहीं कट सकता जब तक असती हत्यारा पकडा न जाये !"



“अगला प्रत्याशी कौन है ?"


"राय अंकल ।"


" उनके बोरे में अपने पवित्र विचार प्रस्तुत कर ही चुकी !"


"अभी उनसे इस सवाल का जवाब हासिल करना है फोटो और चिट्टियां रधिया के कमरे में क्या कर रहे ?!!


"जवाब वे हमें दे चुके हैं ।"


"क्या ? "


“कोई रहस्यमय शख्स इन फोटुओं और चिट्ठियों के बूते पर उसे ब्लैकमेल कर रहा था--कई बार मोटी रकम ऐंठ भी चुका था वह…काफी कोशिश के बावजूद मिस्टर राय न जान सके कि ब्लेकमेलर कौन है, इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं है कि सारा माल रधिया के कमरे में कैसे था ?"



खेर ! इस वक्त हमारा विषय यह जानना नहीं है कि ब्लैकमेलर कौन था, अत: इस मुद्दे पर कभी फिर विचार करेंगे-"फिलहाल हमारा अगला प्रत्याशी है इंस्पेक्टर अक्षय ।"

"क्या वह तुम्हारे सन्देह के दायरे में है !"


"है !"


"कैसे ?"


"अपनी इन्वेस्टीगेशन के दरम्यान उसने रधिया से वह सवाल क्यों नहीं किया जो कि सबसे पहले किया जाना चाहिए था--यह कि रधिया को थाने का नम्बर कैसे मालूम था ?"

उसके द्वारा संगीता की हत्या का उद्देश्य ?"


"अभी तक अज्ञात है ।"


"'अगला प्रत्याशी ?"


" गुलाब चन्द जैन ?"


"ग-गुलाब चन्द जैन ?" बैरिस्टर साहब उछल पडे़---"यानि तुम्हें मरे हुओं पर भी शक हो रहा है ?"


"मत भूलिए कि गुलाब चन्द की लाश ठीक से पहचानी नहीं गई थी-क्या ऐसा नहीं हो सकता कि संगीता का मर्डर करने से पहले उन्होंने खुद अपनी मौत का नाटक रचा हो ?"


"संगीता की हत्या वह क्यों करेगा ?"


“शायद पता लग गया हो कि संगीता वास्तव में राय अंकल की बेटी है ।"


"कारण मजबूत है मगर है जरा दूर. की अगला प्रत्याशी ? "


"स्वयं संगीता ।"

" क- क्या बात है ?" बैरिस्टर साहब उछल पड़े-“तुम तो मुर्दों को जिन्दा करने पर आमादा हो गई हो ।"


“लाश अगर पहचानी न जा सके तो इन्वेस्टीगेटर को लगातार इस बात पर गोर करते रहना चाहिए कि लाश उसकी थी या नहीं जिसको दर्शाने की कोशिश की जा रही है !"



"यानि संगीता ने खुद अपने मर्डर का नाटक स्टेज किया हो सकता है ?"


"जरा सोचिये पापा कि यह बात कितनी रोमांचकारी होगी कि "संगीता मर्डर केस' की मुजरिम खुद संगीता निकले--क्या आपके जीवन में कभी ऐसा हुआ है कि जिसके हत्यारे की आप खोज कर रहे हो, हत्यारा वहीं
निकले ?"
"मगर संगीता को यह सब करने की क्या जरूरत थी?"


"भारत में आकर वह सती सावित्री भले ही बन गई हो, पर लंदन में उसका जो कैरेक्टर मैंने अपनी आंखो से देखा , अगर उस पर गोर फरमाया जाये तो दावे के साथ कह सकती हुं, कि संगीता कुछ भी कर सकती है, कहने का मतलब यह कि फिलहाल उसे अपने सन्देह के दायरे से बाहर नहीं रख सकती ।"


"यह कौडी गुलाब चन्द के कातिल होने से भी ज्यादा ऊंची है---खेर, अगला प्रत्याशी ?"


"अतर एन्ड फेमिली का कोई मेम्बर, विशेष रूप से मेरा शक कमल पर है ।"


“इसीलिए न कि वे वारिस नम्बर दो हैं ?"


"यह एक सशक्त वजह है !"


"बून्दू निक्कू तुम्हारे सन्देह से बाहर है ?"



" सन्देह के दायरे से बाहर मैं तब तक किसी को नहीं निकाल सकती जब तक कि मुजरिम पकड़ न लिया जाये---इतना अवश्य कह सकती हूं कि बुन्दू-निवकू के हत्यारा होने की सम्भावना सबसे कम है ।"


"अगला प्रत्याशी है"'


"रमन आहूजा ।" किरन कहती चली गई-----" इस शख्स के हत्यारे होने की सस्थावनाएं काफी ज्यादा हैं----पहती बात ये कि हमले के तुरन्त बाद उससे हुई मुलाकात को मैं इत्तेफाक मानने के लिए तेयार नहीं हूं---दूसरी ये कि शेखर मल्होत्रा के 'फर्स्ट अप्रैल' प्लान की जानकारी उसे होने की सम्भावनाएं सबसे ज्यादा हैं ।"
"अगला प्रत्याशी है"'


"सुब्रत जेन या उसका बेटा जिसकी उमर इस वक्त पच्चीस साल होगी ।"



"ये कहां से पैदा हो गए !”


"हमें नहीं भूलना चाहिए कि सुव्रत जैन ने गुलाब चन्द और उनके सम्पूर्ण परिवार को खत्म करने की कसम खाई थी-- जहर उसने अपने बेटे में भी भर दिया हो सकता है ।"


“अगला प्रत्याशी ?"

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

Post by Jemsbond »



" मेंरे ख्याल से बस.........लगभग सभी प्रमुख किरदारों पर हम गौर कर चुके हैं ।"


बैरिस्टर साहब के होंठों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान उभरी बोले-तुम सबसे मुख्य किरदार को भूल गई ।”


" किसे ?"


"शेखर मल्होत्रा को ।"


"और आप शेखर मल्होत्रा को भूल नहीं सकते ।" किरन के होंठों पर उनसे ज्यादा व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट उभरी----इतने झमेले के बावजूद नहीं भूले ।"



"इसलिए नहीं भूले क्योंकि अभी भी उसके हत्यारा होने की सम्भावनायें ज्यादा हैं !"


"बह कैसे ?"



"हम तुम्हें एक कहानी सुनाते है ।" लम्बी सांस लेने ने बाद बैरिस्टर साहब ने कहना शुरू किया…“यू मानकर चलो कि हत्यारा शेखर मल्होत्रा ही है…संगीता की जुबानी उसे यह घटना मालूम थी कि एक बार जब वह चोर साबित हो चुकी थी तो तुम्हारे पास आई-पैरों में पडकर रोई-गिड़गिड़ीाई, कहा कि वह चोर नहीं है और तब तुम भावुक होकर उसे बेगुनाह साबित करने निकल पड़ी-केहने का मतलब ये कि शेखर मल्होत्रा को तुम्हारा 'कैरेक्टर' मालूम था-वह जानता था कि तुम भावुक हो और अगर कोई तुमसे प्रभावशाली ढंग से कहे कि वह बेगुनाह है तो तुम उसे बेगुनाह मान लेती हो----ते वह ठीक संगीता की-सी तर्ज पर तुम्हें फंसाने आँफिस में अाया ।"
"'आप तो बडी ऊंची उडान भर रहे है पापा हैं'


"टोको मत, सुनती रहो किरन-तुम उसके जाल में फंस गई यानि रि'-इन्वेस्टीशन करने निकल पडी । दिमाग में बस बैठाने के लिए कि तुम्हारे रि-इन्वेस्टीगेशन पर निकल पड़ने से ‘असली हत्यारे' के पेट में दर्द शुरू हो गया है, उसने किराये के आदमियों द्वारा अम्बेडकर मार्ग पर हमला करवाया-तुम्हारे शेखर की कोठी पर पहुंचने और अतर एन्ड फेमिली के सामने यह कहने से उनमें खलबली मचनी ही थी कि तुम शेखर को बेगुनाह साबित करने के अभियान पर निकली हो-इसलिए नहीं कि संगीता की हत्या से उसका कोई सम्बन्थ है बल्कि इसलिए कि अगर शेखर बेगुनाह साबित हो गया तो जो दौलत भगवान ने उन्हें छप्पर फाड़कर दी है वह हाथ से निकल जाएगी-इत्तेफाक से उनकी बाते बुन्दू ने सुन ली और तुम्हें आकर बता दीं…तुम उनसे बात करने कोठी के ड्राइंग हॉल में गई…वहां शेखर ने अपने किसी राजदार अथवा मददगार द्वारा पहले ही गुलाब चन्द की ताश बाला ड्रामा "स्टेज" कर रखा था जो_ बुन्दू की गर्दन दबाने की नाकाम कोशिश के साथ तुम तक लाया गया…पुलिस की मदद से तुम स्टडी का दरवाजा तोडकर तहखाने तक पहुंची जहाँ तुम्हें दिखाने के लिए शेखर ने पहले ही रधिया का काल करके लाश डाल रखीं थी और ऐसे सबूत छोडे हुए थे कि जिन्हें तुम आसानी से पकड तो-शेखर ने तुम्हें संगीता के काल्पनिक हत्यारे का वही 'कद' बताया जो कि उसने रधिया के हत्यारे का तहखाने में 'प्लांट' किया गया था----यहाँ तुम्हें पूरा यकीन हो गया कि हत्यारा शेखर मल्होत्रा नहीं है-यही वह चाहता था-इतना समझदार वह है कि यह समझ सके कि तुम कब क्या सोचोगी और क्या "स्टेप लोगी' यानि वह जानता वा कि रधिया की मौत के बाद तुम उसके कमरे की तलाशी ले सकती हो ------सो, वहाँ मिस्टर राय के फोटो और चिट्ठियों का लिफाफा प्लांट कर दिया यानि जिन फोटो और चिट्ठियों के बूते पर वह मिस्टर राय को ब्लैकमेल किया करता था उनका इस्तेमाल अब उसने तुम्हारा ध्यान मिस्टर राय पर केन्दित करने में किया-जिस सवाल की तुमने इतनी हाय-तीजा मचा रखी है उसका जवाब बडा सीधा-सा है, यह कि रधिया को थाने का नम्बर इसलिए मालूम था क्योंकि गहने चोरी होने के बाद संगीता अक्सर अक्षय से फोन पर बात करती धी और उसके लिए नम्बर मिलाती थी रधिया-यहीं हम यह भी कहेगे कि गहनों का चोर भी कोई नहीं बल्कि खुद शेखर मल्होत्रा ही था, इसलिए अक्षय आज तक चोर पकड़ नहीं पाया…सुब्रत जैन से जुडी कहानी भी उसने तुम्हें बुरी तरह उलझाने के लिए सुनाई-वह यह भी जानता था कि लन्दन में संगीता को चोरी के इल्ताम में पकड़वाने वाला रमन आहूजा ही है और अच्छी तरह जानता था कि उसे पहचानते ही तुम्हारे दिमाग पर क्या प्रतिक्रिया होगी-उस प्रतिक्रिया को होने देने के लिए वह तुम्हें वहां ले गया…अम्बेडकर मार्ग पर रमन आहूजा का तुम्हें मिलना इसलिए इत्तेफाक नहीं था क्योंकि शेखर मल्होत्रा जानता था कि उसकी फैवट्री का लंच टाइम क्या है और रमन आहूजा वहां से लगभग कितने बजे गुजरेगा अपने किराये के गुन्डों से शेखर ने हमला ठीक उसी समय कराया जबकि वहाँ से रमन आहूजा को गुजरना था…सोचा तो शेखर ने यही होगा कि तुम रमन को वहीं पहचान जाओगी मगर इत्तेफाक से वैसा न होकर रमन आहूजा के फ्लैट पर हुअी----मिस्टर राय की कोठी से बस द्वारा यहाँ अाते वक्त तुमने शेखर के सामने ही लिफाफा पिंडली पर लगाया होगा----सो, उसे मालूम था कि पर्स में कुछ नहीं है मगर अपने आदमी भेजकर उसने तुम पर यह जता दिया कि अपराधी फोटो और चिट्ठियां हासिल करने के लिए मरा जा रहा हे-अपनी इस हरकत से उसने अपने दो उल्लू सीथे किये-पहला यह कि तुम यह सोचने लगी कि अगर हत्यारा शेखर होता तो उन फोटो और चिट्ठियों को तुम्हारे चंगुल से निकालने की कोशिश क्यो करता जिनसे तुम अब तक के मुकदमें की कार्यवाही निरस्त करा दोगी-----दूसरा ये कि तुम्हारे दिमाग में यह सब ठूंसनै के बावजूद मुकदमें को निरस्त कराने का मसला तुम्हारे पास पहुचा ही दिया-तात्पर्य ये कि तुम्हारे दिमाग को विभिन्न किरदारों में उलझाकर वह खुद को तुम्हारे जरिए : एक ऐसे केस से निकल लेना चाहता है जिसमें गर्दन तक फंस चुका था ।"



“ गुड पापा, वेरी गुड !" किरन इस वार व्यंग्य से केवल मुस्कुराई ही नहीं बल्कि ताली बजा 'उठी-"अपनी बेटी को तो आपने दिमाग से बिल्कुल ही पैदल साबित कर दिया-आपको तो हर तरफ शेखर मल्होत्रा ही शेखर मल्होत्रा नजर आ रहा है, मैं जो कर रही हु, वह शेखर मल्होत्रा ही करा रहा है-मैं सोच रही हूं वह भी शेखर मल्होत्रा सुचवा रहा है-आपकी इस कहानी का तो सीधा- साधा मतलब यह निकला कि किरन अग्निहोत्री न अपने दिमाग से कुछ कर रही है, न सोच रही है---' किसी को अपने विचारों पर दृढ रहना सीखना हो तो वह आपसे मिले ---अापने एक बार जिसे मुजरिम मान लिया, सो मान लिया, आप उसके फेवर में कोई दलील सुनने तक की गुंजाइश अपने दिमाग में नहीं रखते मगर ।"


"मगर ? "


"संगीता मर्डर केस की रि'-इन्वेस्टीगेशन के पीछे मेरा मकसद केवल शेखर मल्होत्रा को बेगुनाह साबित करना नहीं बल्कि चक्रव्यूह के पीछे छुपे असली हत्यारे को बेनकाब करके सामने लाना है ......
और जो बात मैं नहीं समझा पा रही हू वह बात आपको उस दिन समझा दूंगी जिस दिन असली मुजरिम को कानून के हवाले करूंगी ।"



बैरिस्टर साहब कुछ कहना ही चाहते थे कि फोन की घन्टी घनघना उठी ।



विश्वनाथ ने रिसीवर उठाया और कहा---“बैरिस्टर विश्वनाथ हियर ।"



"इंस्पेक्टर अक्षय बोल रहा हू ।" दूसरी तरफ़ से कहा गया …"क्या किरन जी घर पर हैं ?"



"हां, बोलो क्या बात है ?"



और फिर !



जो दूसरी तरफ़ से कहा गया उसे सुनकर बैरिस्टर साहब उछल पड़े बोले----" क्या.....कब हुआ ये, कहां और केसे हुआ, क्या हमलावर पकडे़ गये ?"



"दूसरी तरफ़ से उसके सभी सवालों का जवाब मिला ।



किरन ने तब पूछा जबकि रिसीवर क्रेहिल पर रख चुके…"क्या हुआ पापा ?"


"इंस्पेक्टर अक्षय का फोन था…शेखर मल्होत्रा पर उसकी कोठी के ठीक बाहर उस वक्त हमला हुआ जब वह बस स्टॉप से कोठी की तरफ जा रहा था, अक्षय के हमलावर विना नम्बर प्लेट वाली वाली एम्बेसेडर में सवार थे और मल्होत्रा का बयान ये है कि वे उनसे किन्हें फोटो और चिट्ठियों का पता पूछ रहे थे ।"



चिंतित किरन ने सवाल किया…“इस वक्त शेखर कहा' है ?"


"अस्पताल में ।"


किरन के होंठों पर जहर बुझी व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट नाच 'उठी-"आप थोडा गलत बोल गए पापा ।”


"क-क्या ?"


" आपको ये कहना चाहिए था कि शेखर मलहोत्रा ने खुद को इसलिये जख्मी करा लिया ताकि किरन अग्निहोत्री यह सोचे कि वे गुन्डे भला उसके कैसे हो सकते हैं !"


बैरिस्टर साहब सकपकाकर रह गये !


किरन तेज कदमों के साथ हॉल से बाहर निकल गई !
"अरे !" बैरिस्टर साहब चोंकै-“रात के इस वक्त तुम कहाँ चल दीं ?"


"अस्पताल ।" किरन ने संक्षिप्त जवाब दिया ।


"दिमाग खराब हो गया है क्या ?" बैरिस्टर साहब बिगड गए-“ये कोई टाइम है कहीं जाने का और उस पर भी तब जबकि आज ही अाज में तुम पर दो हमले हो चुके हैं ! "



एकाएक किरन उनके नजदीक आईं, बोली--"आपको यकीन है न कि वे हमले मल्डोत्रा ने कराए थे ?"



" फिर ? ”


"तब तो आपको मेरे बाहर जाने से डरना ही नहीं चाहिए !"

" क्यों ?"


" कयोंकि शेखर मल्होत्रा हमले चाहे जितने करवाए मरवा नहीं सकता मुझे , अगर मैं मर गई तो क्रोर्ट में अव तक हुई संगीता मर्डर केस की कार्यवाही को निरस्त कौन करायेगा , बेगुनाह कौन साबित करेगा उसे ?”


बैरिस्टर साहब सकपका गये !

" मगर मैं इतना इतेफाक नहीं रखती पापा,
मैं ये समझती हूं कि हमलावर जो भी है वह ज्यादा परेशान होकर मुझे खत्म भी कर सकता है इसलिए आपकी सेफ से ये रिवॉल्वर निकाल कर अपने साथ ले जा रही हूं ।" कहने के साथ उसने जपने दाये हाथ में मौजूद रिवॉल्वर उनहें दिखाया ।


किरन के भभकते चेहरे पर नजर पड़ते ही जाने क्यो ब्रैरिरटर साहब के सम्पूर्ण जिस्म में सनसनी-सी दौड़ गई, गुस्से को काबू करके बोले---समझने की कोशिश करों वेटी तुम एक ऐसे चवकर में उलझ गयी हो जिसमें उलझने की तुम्हारी उम्र नहीं है, भूल जाओं इस चक्कर को, अपने दिमाग को इस सनक से आजाद कर तो ।"



इस बार किरन के होंठों पर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण चेहरे पर व्यंग्यात्मक भाव फैल गए-आंखें जुगनुओं की मानिन्द चमक रही थी, बैरिस्टर साहब के बेहद नजदीक पहुंचकर बोली वह…“मैं एक किरदार के बारे में नए सिरे से अपनी राय व्यक्त करना चाहती हूं पापा !"


"किसके वारे में हैं"'


"किरदार नम्बर एक के बारे में, अपके बारे में ।"


"प-पागल हो गयी हो क्या है"'


"आप भी शुरू से वही चाहते हैं जो मुजरिम चाहता है…यह कि मैं इस मामले में दिलचस्पी न लूं , यह कि रि'-इन्वेस्टीगेशन छोड़ दूं और यह कि मैं अपने कदम वापिस खींच लूं ।"


"हम नहीं, एक बाप का दिल ऐसा चाहता है किरन ।"
"बाप का दिल एक आड़ भी हो सकती है ।" किरन कहती चली गई…"मुझे इंक्वायरी करनी होगी कि कहीं मुजरिम बाप के दिल की आड़ तो नहीं ले रहा है---कम-से-कम अापसे मैंने ऐसी अपेक्षा नहीं की थी कि अाप मुझें सच्चाई की खोज करने से रोकेंगे-----आपसे तो सहयोग मिलने की उम्मीद थी मुझे और यह कहते हुए अफसोस हो रहा कि----
इस मामले में आपकी हर गतिविधि मेरी उम्मीदों के एकदम विपरीत है ।" कहते ही वह एक झटके के साथ पलटी और ऊची ऐडी वाली सैंडिल से "खट -- खट" करती दरवाजे की तरफ बढ़ गई ।



अभी वह आधा ही रास्ता तय कर पाइं थी कि बैरिस्टर विश्वनाथ ने कहा ----“ठहरो किरन !"


किरन ठिठकी ।


पलटी और बोली----"प्लीज पापा, अब मुझे रोकने की कोशिश न कीजिएगा क्योंकि चक्रव्यूह के मध्य में पहुंचकर अगर कोई शख्स हथियार डाल दे उसकी मौत निश्चित !! "


"हथियार हम डाल रहे हैं बेवकूफ लड़की ।"


“क्या मतलब ?"'


"हमसे क्या सहयोग चाहती थी तुम ?" बैरिस्टर साहब का रुख और लहजा बदला हुआ था ।


किरन ने उन्हें ध्यान से देखा, कुछ देर अपने पापा के बदले रूख का सबब जानने की असफल चेष्टा करती रही और बोली---"अापसे वैचारिक सहयोग चाहती थी, कि अाप मुझें रोकें नहीं, बल्कि सच्चाई की खोज में अागे बढ़ने के लिए प्रेरित करें, मेरी पीठ ठोकें और जहाँ कहीं भटक रही होऊं वहाँ मुझे रास्ता दिखाएं, मार्ग दर्शन करें मेरा ।"


" ठीक है, अब से हम वही करेगे जो तुम चाहोगी !"


"यानि ?"


"हम तुम्हारे साथ अस्पताल चल रहे है ।" कहने के साथ व आगेे बढे ।"



किरन अपने पापा के इस निर्णय पर दंग रह गई और अभी वह इस बदले हुए निर्णय का कारण जानने की चेष्टा कर ही रही थी कि बैरिस्टर विश्वनाथ नजदीक पहुंचे, उसके सिर पर सनेह -भरा हाथ रखकर बोले----" चलो !'
वे चल दिए । तीनों नौकर और सुलोचना देबी असमंजस में पड़े उन्हें
जाता देखने के अलावा कुछ न कर सके और उस ववत बैरिस्टर साहब गेरेज़ से गाड़ी निकाल रहे थे जब टैक्सी नम्बर यू बी एक्स 4889 कोठी के ठीक सामने रुकी ।


किरन ने उसके ड्राइवर से बात की ।

पिछली सीट के नीचे से अपनी चीज निकाली और बैरिस्टर साहब से ड्राइवर को पांच सौ रुपये दिलवाकर उसे विदा किया-कुछ देर बाद उनकी फियेट सूनी पडी सड़को को रौंदती अस्पताल की तरफ भागी जा रही थी…कार ड्राइव करते बैरिस्टर साहब ने बगल में बैठी किरन से सवाल किया---“टैक्सी की पिछली सीट के पृष्ट भाग में तुमने क्या छुपा रखा था ?"



"संगीता की मां और राय अंकल के फोटुओं के निगेटिब्स । किरन ने बताया । '


“ओह !"


"शायद ये फोटो कल मुझे साफ-साफ़ बता देगे कि हत्यारा कौन है ?"


"कैसे ?"



"संगीता का कत्ल वैसे ही चाकू से हुआ है जैसा शेखर ने खरीदा था, अत: इस बात की बहुत ज्यादा सम्भावना है कि पहली अप्रैल वाले दिन शेखर के बाद इनहीं किरदारों में से किसी ने शेखर जैसा चाकू खरीदा हो---अगर ऐसा हुआ होगा तो चाकू विक्रेता बता सकता है कि चाकू किसने खरीदा था ।"


“वेरी गुड !" बैरिस्टर साहब कह उठे---"" तेज चल रहा है तुम्हारा दिमाग ।"


किरन ने पुन: व्यंग्य क्रिया---"क्या हमारा समझौता नहीं हो गया है ?"




बैरिस्टर साहब चुप रह गये । गाडी में खामोशी छा गई थी । लम्बी छाती जा रहीं खामोशी को पुन: बैरिस्टर साहब ने ही तोडा, बोले…“अन्यथा न ले तो एक बात कहें ?"

"बोलिए ?''


"रिवॉल्वर हमेँ दे दो !"


" क्यों ?"



"चलाना तो , रिवॉल्वर अपने हाथ में तुमने लिया ही पहली बार है ऐसे शख्स के हाथ में रिवॉल्वर हो जो उसे चलाना न जानता हो तो रिवॉल्वर किसी और को नहीं बल्कि उसी को चोट पहुंचा सकता है जिसके हाथ में हो---किसी भी किस्म के खतरे का मुकाबला करने के लिए हम तुम्हारे साथ हैं, रिवॉल्वर की बाकायदा ट्रेनिंग ली है हमने, अतः अगर हमारी जेब में रहे तो किसी भी किस्म के हमले के वक्त कारगर सिद्ध हो सकता है ।"


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply