चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

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Jemsbond
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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"डॉक्टर को फोन करो इंस्पेक्टर ।” विश्वनाथ चीखे----"शेखर मल्होत्रा बच सकता है ।"


किरन के बंधन खोल रहे अक्षय के हाथ रुक गये----जाने क्या सोचते रह गया वह कि बैरिस्टर साहब स्वयं आकरर फोन के नजदीक पहुचे और जल्दी-जल्दी नम्बर डायल करने लगे ।



जाहिर था कि फायरिंग रुक चुकी थी ।


जंग समाप्त हो गयी थ्री ।


कुम्भकरण व्यक्ति सहित तीन नकाबपोश मारे गये थे… बाकी जख्मी हूये थे और इस वक्त वे पुलिस के चंगुल में थे…अक्षय ओर बरिस्टर के साथ पुलिस के दस सिपाही ।

सभी हाथों में मोजूद टॉर्चे इस वक्त अॉन थी ।
हॉल में भरपूर प्रकाश था ।


उधर डॉक्टर को फोन करने के बाद बैरिस्टर विश्वनाथ ने रिसीवर क्रेहिल पर रखा । इधर अक्षय ने किरन के बंधन खोल दिये, अाजाद होते, ही उसने शेखर का सिर अपनी गोद में रख लिया और उसे पुकारने लगी ।



किरन बैरिस्टर विश्वनाथ ने कहा…"खुद को सम्भालो वेटी इस वक्त उसे जगाने की कोशिश मत करो ।"

किरन ने एक झटके से अपने पापा की तरफ देखा और उस वक्त उसके चेहरे पर कुछ ऐसे भाव थे कि बैरिस्टर विश्वनाथ के समूचे जिस्म में मोत की झुरझुरी दौड़ गई…फूल -सा कोमल चेहरा और चांद के रंग का चेहरा इस वक्त कोयले की मानिन्द काला और खुरदरा नजर आ रहा था-आंखों में आंसुओं के साथ-साथ तैर रहा था खून -----खून भरी वे आंखें अपने पापा के चेहरे पे गाड़कर उसने कहा-----"मैं हत्यारे को पहचान चुकी हूं पापा ।



"क-कोन है ?"' बैरिस्टर विश्वनाथ की जुबान लड़खड़ा गई ।



"नहीं ।" किरन ने अजीब से स्वर में कहा----'-" नहीं बताऊंगी ।"


"क-क्यो ?"


"आपको यकीन नहीं आयेगा।”


" म म मतलब ?"


"विना सबूत, विना तर्क, विना शहादतों और विना गवाह के आपने किसी पर विश्वास करना नहीं सीखा न. . . इसलिए अभी मैं उसका नाम नहीं लूंगी ......अभी तो मैं केवल उसका मनहूस चेहरा देख पाई हूं…सबूत, गवाह और शाहदतें जुटानी बाकी हैं, मगर आप फिक्र न करें-----मुझे मालूम है कि वह सब आसानी से जुटा लूंगी------

अगर शेखर मर गया असली हत्यारे को फांसी कराना मेरी उसे श्रद्धांजलि होगी ।"



"फिक्र मत करों बेटी शेखर शायद बच जायेगा । बैरिस्टर साहब ने कही---"संयोग से एक भी गोली जिस्म के किसी नाजुक हिस्से में नहीं लगी है…एक पेट में और एक कंधे में-हालांकि खून काफी निकल चुका है, गोलियों का जहर भी जिस्म में फैल रहा होगा----अगर शीघ्र ही मैडिकल एड मिल जायेगी तो

" ये - ये किसकी लाश है ?"' झोंपडी के फर्श पर पडी लाश की तरफ संकेत करके बैरिस्टर विश्वनाथ ने पूछा है

किरन अपने पापा के सवाल का ज़वाब न दे सकी-गले में मफ्लर डाले, लाल कमीज, मुडी हुई चीन और घिसे . हुए जूते पहने युवक की लाश से उनकी नजरे" हट न रही थी-------------याद आ रहा था वह दृश्य जब इसे देखकर शेखर मल्होत्रा का भ्रम हुआ था फिर इसने, शेखर मल्होत्रा को विनोद मल्होत्रा और खुद को शेखर मल्होत्रा बताते हुए एक ऐसी चक्करदार कहानी सुनाई थी कि वह चकराकर रह गइं-यह कहना गलत न होगा कि उस वक्त किरन को 'यह' सच्चा और शेखर मल्होत्रा झूठा लगा था-सबसे सशक्त कारण था इसकी शक्ल--आवाज ।


मगर इस वक्त ।।।।।



इस वक्त कोई नहीं कह सकता था कि उसकी शक्ल का शेखर मल्होत्रा की शाल से कोई सम्बन्य रहा होगा ।



चेहरे के चिथड़े उड़ गए थे…हत्यारे की तीन गोलियां चेहरे ही पर लगी थीं.........लहूलुहान और उघड़ गये चेहरे की शिनाख्त करना किसी के वश में नहीं था-झोपड्री की दीवार में लगी टूयूब अॉन थी---भरपूर प्रकाश था वहाँ किन्तु किरन स्वयं यकीन न कर पा रही थी कि यह शख्स मल्होत्रा का इतैवट्रोस्टैट कापी धा ।



झोंपडी के एक कोने में कुर्सी पड़ी थी ।


कुर्सी के नजदीक पड़ी थी रेशम की डोरी।


इस बार इंस्पेक्टर अक्षय ने पूछा-“क्या अाप जानती हैं किरन जी कि यह किसकी लाश है ?"




"मेंरे ख्याल से नाम तो इसका गिरधारी लाल था मगर------


"मगर ?"


" यह वह शख्स है जिसकी शक्ल और आवाज के जाल में फंसकर मैं हत्यारे की कैद में फंस गई !"



"क्या मतलब ?"



"क्या लाश को देखकर आप कल्पना कर सकते है कि इसकी शक्ल और आवाज शेखर मल्होत्रा से हू-ब-हू मिलती थी ?"


"क-क्या बात कर रही हो बेटी ?" बैरिस्टर विश्वनाथ कह उठे---"भला ऐसा कहीं होता है ?"


"मुझे नहीं मालूम पापा कि कैसा होता है और कैसा नहीं---बस इतना जानती हूं कि आपने खुद को उन सिद्धांतों और मान्यताओं में बांधकर रख लिया है जो आपको आपके तजुर्बै ने दिये हैं---अपने सिद्धांतो और मान्यताओं के दायरे से बाहर निकलकर न अाप कुछ सोचना चाहते हैं, न मानते हैं, मगर मैं उन सबको भला झुठला सकती हूं जो अपनी आंखों से देखा है, कानों से सुना है ?"


"क्या देखा-सुना है तुमने ?"



एक ही सांस में किरन ने होटल में गिरधारी लाल के मिलने से लेकर उसकी मौत तक का वृतांत कह सुनाया -----
विश्वनाथ और अक्षय की आंखें मारे हैरत के फेल गई थी जबकि किरन कहती चली गई-"जव इसे पता चला कि इसका बेटा मर गया है तो यह पागल हो उठा बॉस के नाम का पर्दाफाश करने ही वाला था कि हत्यारे ने मजबूर होकर अपने रिवॉल्वर से इसके चेहरे में आग पर दी 'मजबूर' शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रही हूं क्योंकि हत्यारा दिल से इसे मारना नहीं चाहता था-उसफे दिमाग से इसके बहूत से इस्तेमाल थे ।"



"इसका इस चेयर पर कैद रहा होगा ।" अक्षय ने क्या ।



"कुर्सी के नजदीक पडी रेशमी ड़ोरी से जाहिर है कि 'अंकुर' को वहां बांधकर रखा गया था मगर बच्चा होने के कारण, अपने हाथ पैर नन्हे-नन्हे होने के कारण किसी तरह वह आजाद हो गया और झोंपडी से बाहर निकल पड़़ा ---- आप लोग देख चुके हैं कि झोपडी और डाक बंगले की मुख्य इमारत के बीच सीधी नदी की तरफ़ चला गया है कितना जबरदस्त ढलान है---अंकुर उस ढलान पर लुढ़कने से खुद को न रोक सका और नदी में जा गिररा ।"



"सबसे ज्यादा हैरत की बात यह है कि डाक बंगला सरकारी है और हत्यारा इसे अपने अडडे के रूप में इस्तेमाल कर रहा था ।" बैरिस्टर साहब कहते चले गये---, "सवाल ये है कि ऐसा हुया तो कैसे , डाक बंगला इन दिनों किसके नाम से बुक है और यहीं का चौकीदार कहाँ चला गया है"' …


एक कांस्टेबल मानो उनके इसी सवाल का इंतजार कर रहा था, झोंपडी में दाखिल होते हुए उसने बताया---" डाक बंगले के किचन में यहाँ का चौकीदार मिलाहै सर…उस बुडूढे के हाथ-पेर किसी ने कसकर बांधे हुए थे, मुंह में कपड़ा ठूंसा पड़ा था और इससे ज्यादा वह कुछ नहीं बता क्या है कि कल दोपहर कुछ नकाबपोशों ने अचानक हमला किया

उसे बांधकर किचन में डाल दिया तथा डाक बंगले पर कब्जा कर लिया !

किरन, बैरिस्टर विश्वनाथ और इंस्पेक्टर अक्षय के बीच कुछ देर के लिए सन्माटा छा गया ।


फिर वे झोंपडी से बाहर निकल आए ।


ढलान वाकई बेहद खतरनाक था-ऐसा कि अगर एक बार उस पर कोई लुढक जाए तो निश्चित रूप से सीधा नदी में जाकर गिरे-ढलान पर पड़े पत्थरों के बीच पैर फंसा-फंसाकर वे उतरने लगे और उस स्थान पर पहुच गए जहाँ दो पत्थरों के बीच एक छोटा-सा जूता पड़ा था ।



जूते को उठाकर ध्यान से देखते हुए अक्षय ने कहा… "अंकुर की उम्र दस साल के आसपास रही होगी !"


कोई कुछ नहीं बोता ।


सम्भल-सम्भलकर और पैर जमाते हुए वे खाई में उतर गए, नदी तट पर खडे तेज बहाव के बीच बच्चे का शव ढुंढने की कोशिश कर रहे थे-एकाएक किरन की नजर पत्थर पर पडी जिस पर 'हल्का-सा खून लगा हुआ था,मुंह से बरबस ही वे शब्द निकल गए…“ढलान से लुढ़कने बाद अंकुर शायद इस पत्थर से टकराया था ।"



"बहाव इतना तेज है कि बच्चे की लाश मिलने की हमें उम्मीद ही छोड़ देनी चाहिए ।"



बैरिस्टर साहब ने लगभग सच कहा था इसलिए किसी ने विरोध नहीं किया---हॉं किरन ने यह जरूर पूछा-"आप लोग इतनी फोर्स के साथ अचानक यहाँ कैसे पहुच गए ?"


"हमेँ तुम्हीं ने बुलाया था ।"


किरन उछल पडी--" म म मैंनें ?'


"कह तो शेखर मल्होत्रा यही रहा था ।"

" श -शेखर कह रहा था, क्या कहा उसने ?"
"तुम सुबह नौ बजे की घर से निकली हुई थी, हम फिक्रमन्द थे और जहा-जहा तुम्हारे होने की सम्भावना थी वहां फोन करके पूछ रहे थे कि वहां पहुची हो या नहीं ---शेखर मल्होत्रा को भी फोन किया, उस वक्त उसने कहा कि तुम उसके पास नहीं पहुंची थी मगर करीब पन्द्रह मिनट बाद स्वयं शेखर मल्होत्रा ने हमें फोन किया और कहा कि हमारे फोन के तुरन्त बाद ही उससे फोन पर बात की है----उसने यह भी कहा कि तुम्हारी बातो से उसने यह अन्दाजा लगाया है कि तुम किसी की कैद में हो !"



"ओह इसका मतलब मेरा मेसेज शेखर मल्होत्रा की समझ में आ गया था ?"



"हत्यारा मुझसे राय अंकल के पत्र और फोटो चाहता था ।" किरन ने कहना शुरू किया---उस वक्त मेरे दिमाग में यह बात कोंधी कि हत्यारे की इस गर्ज का लाभ उठाकर अपने शुभचिन्तर्कों को न सिर्फ यह पैसेज पहुचा सकती हूं कि मैं किडनेप कर लीगई बल्कि यह भी बता सकती हूं कि कहाँ हूं और अपनी सकीम को अंजाम देने के लिए मैंने कह दिया कि फोटों और चिट्टियां शेखर मल्होत्रा के पास हैं, पहले तो उन्होंने मेरी इस बात को झूठ माना कहने लगे कि पिछली रात वे शेखर मल्होत्रा की तलाशी ले चुके हैं-फोटो और पत्र उसके पास नहीं है-मैंने पूछा कि क्या तुमने उसके जूतों की तलाशी ली थी उन्होंने इंकार किया---बस-मैंने बात पकडकर कहा कि फोटो और पत्र . उसके जूतों में थेे…अब हत्यारे को यकीन हो गया कि मैं सच बोल रही है तो वही हुआ जिसकी मुझे उम्मीद घी यानि उसने शेखर से बात का हुक्म दिया, इस कागज पर वे बातें लिखी जो मुझे शेखर से करनी थी…-साथ ही, जबरदस्त तरीके से धमकाया कि अगर मैंने कागज पर लिखी बातों से हटकर कोई अन्य बात, खासतौर पर ऐसी वात कहने की बेवकूफी की जिससे यह ध्वनित होता हो कि मैं किसी के द्वारा किडनैप हूं या 'ये' बाते किसी के दबाव में कर रही हू तो बेहिचक मुझें शूट कर देगा-मैंने सहमते हूये कहा कि वही करूंगी जो वह कहेगा और तव ..... प्रैक्टकत शुरू हुआ-शेखर मल्होत्रा का नम्बर मिलाकर मेरे हाथ में रिसीवर तथा दुसरे में कागज पकडा दिया--स्वयं हत्यारे के एक हाथ में उसी फोन के 'एक्सटेंशन' का रिसीवर तथा दूसरे में रिवॉल्वर था… रिवॉत्त्वर उसने मेरी कनपटी से सटा दिया, सखत हिदायत दी कि अगर एक भी बात इधर से उधर करने की कोशिश की तो खोपडी का तरबूज बना दिया जाएगा ।"



बैरिस्टर विश्वनाथ ने धड़कते दिल से पूछा----"फिर तुमने शेखर को यह 'मैसेज़' कैसे दिया कि तुम किडनैप और जो कुछ कह रही हो किसी के दबाव के कारण मजबूर होकर कह रही हो ?"



प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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किरन के होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान उभरी, ऐसी टैक्नोक से जिसे हत्यारा सात जन्म के बावजूद नहीं समझ सकता था-मुझें फोन पर वे और सिर्फ "वे ही' शब्द कहने थे जो हत्यारे ने पर्चे पर लिखे थे और शेखर मल्होत्रा को उन्हीं शब्दों से समझ जाना था कि मैं किडनैप हूं किसी की कैद में है और जो कुछ कह रही हूं मज़बूर होकर कह रही हुं ।"



"कैसे समझ जाना था उसे ?"



"मैंने सोचा था, जव कहुंगी कि फोटो और चिट्ठियां लेकर नटराज के मन्दिर में पहूंच जाओं तो शेखर स्वत: समझ जाएगा कि मैं किसी की कैद में हूं दबाव में हूं --क्योंकि असल में फोटो और चिट्ठियां शेखर के पास थी ही नहीं--मैंने सोचा था कि शेखर मेरी यह बात सुनते ही सोचेगे कि जव किरन को मालूम है कि फोटो और चिट्ठियां मेरे पास नहीं है तो वह ऐसा कह ही क्यों रही है-कि......मैं किसी के द्वारा किडनैप हूं या 'ये' बाते किसी के दबाव में कर रही हू तो बेहिचक मुझें शूट कर देगा-मैंने सहमते हूये कहा कि वही करूंगी जो वह कहेगा और तव ..... प्रैक्टकत शुरू हुआ-शेखर मल्होत्रा का नम्बर मिलाकर मेरे हाथ में रिसीवर तथा दुसरे में कागज पकडा दिया--स्वयं हत्यारे के एक हाथ में उसी फोन के 'एक्सटेंशन' का रिसीवर तथा दूसरे में रिवॉल्वर था… रिवॉत्त्वर उसने मेरी कनपटी से सटा दिया, सखत हिदायत दी कि अगर एक भी बात इधर से उधर करने की कोशिश की तो खोपडी का तरबूज बना दिया जाएगा ।"



बैरिस्टर विश्वनाथ ने धड़कते दिल से पूछा----"फिर तुमने शेखर को यह 'मैसेज़' कैसे दिया कि तुम किडनैप और जो कुछ कह रही हो किसी के दबाव के कारण मजबूर होकर कह रही हो ?"



किरन के होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान उभरी, ऐसी टैक्नोक से जिसे हत्यारा सात जन्म के बावजूद नहीं समझ सकता था-मुझें फोन पर वे और सिर्फ "वे ही' शब्द कहने थे जो हत्यारे ने पर्चे पर लिखे थे और शेखर मल्होत्रा को उन्हीं शब्दों से समझ जाना था कि मैं किडनैप हूं किसी की कैद में है और जो कुछ कह रही हूं मज़बूर होकर कह रही हुं ।"



"कैसे समझ जाना था उसे ?"



"मैंने सोचा था, जव कहुंगी कि फोटो और चिट्ठियां लेकर नटराज के मन्दिर में पहूंच जाओं तो शेखर स्वत: समझ जाएगा कि मैं किसी की कैद में हूं दबाव में हूं --क्योंकि असल में फोटो और चिट्ठियां शेखर के पास थी ही नहीं--मैंने सोचा था कि शेखर मेरी यह बात सुनते ही सोचेगे कि जव किरन को मालूम है कि फोटो और चिट्ठियां मेरे पास नहीं है तो वह ऐसा कह ही क्यों रही है
जाहिर है कि ये शब्द किरन स्वेच्छापूर्वक नहीं कह रही है वल्कि किसी के दबाव में कह रही है-यानि अपनी समझ के मुताबिक मैंने उसे 'मैसेज' दे दिया था कि मैं खतरे में हूं-इस टेकनीक में ऐक ही गड़बड़ हो सकती थी…यह कि मेरी बात की गहराई न समझ कर कहीं यह न कह बैठे कि 'कौन-से-फोटो, और अपनी बेवकूफी में वह ऐसा कह भी बैठा-परन्तु मैंने तुरन्त यह कहकर बात सम्भाल ली कि वे ही जिन्हें कल रात तुमने अपने जूते के अन्दर रखा था'…अब यह डर या कि कहीं शेखर यह न कह बैठे "मैंने कल रात अपने जूते में कौन से फोटो रखे थे‘----


और वह ऐसा कह देता तो सारा खेल बिगड जाता-एक-एक हरुफ सुन रहा हत्यारा समझ जाता कि मैं उसे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही हूं परन्तु मैंने शेखर को ऐसी बेवकूफी करने का मौका ही नहीं दिया…



उसे बोलने का अवसर दिए बगैर वह सब कहती चली गई जो पर्चे पर लिखा था और अपनी बात पूरी करते ही सम्बन्ध विच्छेद कर दिया-विना हत्यारे को यह भनक दिए कि मैं मैसेज दे चुकी दूं, जिस टैक्नीक से मैसेज दे सकती थी दे दिया-----


अब यह दूसऱी तरफ़ वाले की अक्ल पर निर्भर था कि वह मैसेज को समझे या नहीं--हालंकि शेखर के अंतिम एक दो वाक्यों से लगा था कि वह समझ गया है



परन्तु जब उसे 'बेहोश' दिखने जैसी हालत में कुर्सी के नजदीक लाकर डाला गया तो लगा कि वह बेवकूफ मेरा मेसेज नहीं समझा था और खुद भी हत्यारे के चंगुल में फंस गया ।"



"नहीं ऐसी बात नहीं थी किरन ।" बैरिस्टर साहब बोले----" शेखर ने खुद स्वीकार किया कि शुरू में वह तुम्हारा मेसेज नहीं समझा धा-इसलिए चौंके हुए स्वर में पूछ बैठा कि "कौन से फोटो' मगर जब तुम उसे कुछ भी कहने का मौका दिये बगैर अपनी बात कहती चली गई----तव वह समझ गया जो तुम समझाना चाहती थी और तुम्हारे फोन के तुरन्त वाद हमें फोन मिलाकर यही कहा कि किरन किसी किडनैपर के चंगुल में है और उसे वहाँ से निकालने की कोशिश की जानी चाहिए-सच्चाई ये है कि हम उस पर विश्वास न कर सके----


लगा कि वह झूठ बोलकर हमें अपने जाल में फंसाने के चेष्टा कर रहा है और इसी शंका के वशीभूत हमने उसके सामने शर्त रखी कि हमारे साथ इंस्पेक्टर अक्षय भी नटराज के मंदिर चलेगा-शेखर समझ गया कि हम उस पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं परन्तु उसने कहा कि "मुझे कोई एतराज नहीं है'-तव हम थाने में, अक्षय के पास इकटृठे--



-इसे सारी सिचुवेशन समझाई, और फिर यह स्कीम इसी ने बनाई कि प्रत्यक्ष में नटराज के मंदिर में केवल शेखर जायेगा----

हम इंस्पेक्टर और अन्य सिपाही छिपे रहेगे-वही किया गया, हालांकि हम उस वक्त भी प्रकट हो सकते थे जब कुम्भकरण सरीखा व्यक्ति मन्दिर में शेखर की धुनाई कर रहा था किन्तु इसलिए प्रकट नहीं हुए क्योंकि हमारा उददेश्य बदमाशों के हेडक्वार्टर अर्थात यहाँ पहुंचना था---- कहने का मतलब ये कि अपनी मदद के लिए हम लोगों को तुमने अपनी चालाकी से खुद यहां लाया है ।"'



"वह सब तो ठीक गया पापा, आपकी वेटी बच गई, इंस्पेक्टर अक्षय को इतनी शानदार 'ट्रिप' मिल गई..........नुकसान हुआ है तो सिर्फ शेखर मल्होत्रा को, वह बुरी तरह पिटा और इस वक्त बेचारा मौत और जिन्दगी के बीच झूल रहा है ।"



"लो ।" अक्षय ने ऊपर आ रही हैड़लइटस ही तरफ इशारा करके कहर-"एम्बुलेंस आ गई है ।"



उत्साहित किरन ने बहुत तेजी से ढलान पर चढ़ना शुरु किया ।


बैरिस्टर विश्वनाथ चीख पड़े-“सम्भलकर बेटी कही लुढ़क मत जाना ।" किरन को सुनने का होश कहां था ?
पांच सशस्त्र सिपाही अक्षय के साथ जीप में अाये थे, पांच बैरिस्टर विश्वनाथ की फियेट मे-डाक बंगले पर की जाने वालो अागे की कार्यवाही का दारोमदार इंस्पेक्टर अक्षय पर छोड़कर किरन ने फियेट की ड्राइविंग सीट सम्भाल ही थी कि बाई तरफ का दरवाजा खोलकर उसकी बगल में बैठते हुए बैरिस्टर साहब ने पूछा…“कहां जा रही हो ?"



"अस्पताल ।" किरन ने संक्षिप्त में जवाब दिया ।



"तो हमेँ यहाँ क्यों छोड़े जा रही हो ?"


"यह सोचकर कि शायद आप अस्पताल चलना पसन्द के न करें।"


"'क-क्यों ? "


किरन ने यहीं गहरी नजरों से देखा उन्हें बोली----"मामला शेखर मल्होत्रा का है न ?"



बैरिस्टर विश्वनाथ "तुरन्त' जवाब न दे सके-कूछ देर तक अपनी वेटी को अजीब-सी नजरों से देखते रहे और फिर गम्भीर स्वर में बोले---.. तुम यह सोचती हो किरन कि हमे शेखर मल्होत्रा से नफ़रत है तो गलत सोचती हो !"



"नफरत तो आपको उससे है पापा ।" किरन ने अपना एक-एक शब्द चबाया था ।


"सोचने बाली बात है, भला हमें उससे नफरत क्यों होगी ?"



“जरूरी नहीं कि अभी ही अपके सारे सवालों का जवाब दूं…
खैर क्या एाप मेरे साथ चल रहे है हैं?"



अपनी तरफ वाला दरवाजा बंद करते हुए बैरिस्टर विश्वनाथ ने कहा---" श-श्योर !"



"एक बात मानोगे मेरी ?"


"बोलो ।"


"आप एम्बुलेंस में बेठिए ।"


"'ऐ-एम्बुलेंस में ?"' बैरिस्टर साहब चकराये ।


"हां, शेखर के पास कोई तो होना चलिए---जब अकेली थी तब मजबूरी थी क्योंकि गाड़ी भी अपने साथ ले जाना चाहती थी मगर जब अाप साथ है तो कायदा कहता है कि हममें से एक एम्बुलेंस में होना चाहिए-अगर आपको उसमें बैठना पसन्द नहीं है तो मैं बैठ जाती के अाप गाडी से जाइए ।" कहने के बाद उसने गाडी का दरवाजा खोला ही था कि---------------



"ठहरो किरन----एम्बुलेंस में हम बैठ जाते हैं ।" कह कर वे फियेट से बाहर निकल गये और उसे एम्बुलेंस की तरफ बढते देखकर किरन के होंठों पर जो मुस्कान उभरी वह, वह धी जो किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर तब उभरती है-जब उसकी मन मांगी मुराद पूरी हो जाये ।



बैरिस्टर साहब एम्बुलेंस के पिछले हिस्से मैं, रट्रेचर के नजदीक सीट पर बैठ गए ।



अस्पताल के कर्मचारी ने दरवाजा बन्द कर दिया ।



और फिर शुरू हुई यहाँ से अस्पताल तक की यात्रा ।



यात्रा की समाप्ति पर जब बैरिस्टर साहब अस्पताल के प्रांगण में उतरे तब फियेट कहीं नहीं थी…उस क्षण उनके दिमाग में यह विचार आया कि किरन पीछे रह गई होगी परन्तु यह विचार स्थाई न रह सका क्योंकि पांच दस और फिर धीरे-धीरे पन्द्रह मिनट गुजर गये ।


किरन नहीं अाई ।
सैकडों सवाल और शंकाएं नम्हें-नन्हें सर्पं बनकर जहन में गिजबिजाने लगे ।



अस्पताल के कर्मचारी स्ट्रेचर को उठाकर एमरजेंसी वार्ड की तरफ ले गये मगर उस तरफ़ बैरिस्टर विश्वनाथ का ध्यान कहां था-उनका ध्यान अटका दुआ था किरन में ।



कहाँ गायब हो गई वह?


अब तक क्यों नहीं पहुंची?


क्या उसका इरादा पहले से ही गायब होने का था?


क्या उसने उन्हें एम्बुलेंस में इसलिए बैठाया था ?


धीरे धीरे तीस मिनट गुजर गये मगर किरन नहीं अाई----बैरिस्टर विश्वनाथ पुरी तरह व्याकुल हो उठे--अस्पत्ताल में मौजूद सार्वजनिक टेलीफोन से घर पर बात की-वहाँ भी नही पहुची थी वह ।



एक. ..दो…और फिर तीन घन्टे गुजर गये ।


तब कहीं उनकी आंखों ने अपनी फियेट को पार्किंग में रुकते देखा----. तब तक मारे गुस्से के हाल इतना बुरा हो चुका था कि बरामदे में खड़े--खड़े किरन को गाडी से बाहर निकलते और उसे लॉक करते देखते रहे ।



गाडी की तरफ बड़े नहीं थे वे ।



देखते ही-देखते तेजी के साथ चलती हुई किरन उनके नजदीक आ गई-------इस वक्त उसके चेहरे पर बेहद अनोखी और दुर्लभ आभा देदीप्यमान आंखें कीमती डायमंडृस के मानिन्द जगमगा रही थीं और उस वक्त तो मानो बैरिस्टर विश्वनाथ के सम्पूर्ण जिस्म में सुलग रही क्रोधाग्नि में पूरा एक टिन धी डाला गया जब किरन ने कहा----"अाप यहां बरामदे में खड़े क्या कर रहे हैं ?"



“सोच रहे थे कि हमें' पिकनिक पर कहाँ जाना चाहिये !"
"ओह हो-अाप तो बहुत गुरसे में है पापा------सॉऱी ।"



बैरिस्टर साहब गुर्रा उठे----"हम यह जानना चाहते है कि तुम कहाँ गई थी?"



"हत्यारे के खिलाफ़ सबूत ढूंढने !"



"सबूत ------- सबूत कहीं पड़े थे क्या ?"



बड़े आराम से कहा किरन ने---- "ऐसा ही समझिये ।"



" त तुम ..... बहुत बिगड़ती जा रही हो किरन ।" बैरिस्टर साहब अपने गुस्से पर काबू नहीं कर 'पा' रहे थे-------अगर तुम्हें कहीं जाना था तो हमें बताकर नहीं जा सकती थी---क्या तुम कल्पना कर सकती हो कि इन तीन धन्टों में हमारी क्या हालत हूई है ?"



"सौरी पापा मगर यह सच है कि मैंने आपकी जानबूझकर नहीं बताया ।"



"कयों ?"



"क्योंकि पिछली रात मैंने आपको बता दिया था कि सबके फोटो क्यो" कलेक्ट किये है और उसी रात चाकू-विक्रेता का कत्ल हो गया ।"



" क क्या मतलब ?" विश्वनाथ बौखला गये----क्या कहना चाहती हो तुम ?"



"किसी भ्रम में न फंसे, पापा, कम-से-कम आपक्रो हत्यारा कहने का फिलहाल मेरा कोई इरादा नहीं है-इस वक्त मैं केवल इतना कहना चाहती हूं कि हत्यारा जो भी है, किसी तरह मेरे और अपके बीच होने वाली बातें सुन लेता है और मेरा रास्ता की बंद कर देता है---- ऐसा सोचकर मैंने आपको नहीं बताया कि कहां, किस मकसद से जा रही हू !"



"सॉरी पापा ----सॉरी प्लीज माफ कर दीजिये ।"

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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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किरन के लहजे में जाने क्या था कि इस बार बैरिस्टर साहब गुर्रां न सके--गुस्से पर काबू पाने की भरपूर चेष्टा कर रहे थे
वे, एकाएक किरन ने पूछा--"शेखर के अॉपरेशन का क्या हुआ है"'



"हमें नहीं मालूम कि अस्पताल का स्टाफ उसे कहां ले गया हैं अॉपरेशन हुआ भी है या नहीं और हुआ है तो क्या रहा…तुम्हार बारेे में सोचने से फुरसत मिली होती तो मालूम रखते !"



किरन के चेहरे पर जो भाव उभरे उन्हें देखकर बैरिस्टर साहब गारन्टी के साथ कह सकते डाके उसे उनका जवाब नागवार गुजरा है-----शेखर के प्रति उनकी उपेक्षा अच्छी नहीं लगी है वे महसूस कर रहे थे कि डाक बंगले में घटू घटना किरन को भावात्मक रूप से शेखर मल्डोत्रा कै अत्यन्त नजदीक ले गई है ।




"आइए !" कहने के साथ वह बिजली की-सी तेजी के साथ आगे बढ़ गई ।



अॉपरेशन थियेटर के नजदीक पहुंचकर उसने एक वार्ड वॉय से शेखर मल्होत्रा के वारे में पूछा, वार्ड वॉय ने थियेटर के मस्तक पर लगे लाल रंग के बल्ब की तरफ उंगली उठाकर कहा…“आँपरेशन चल रहा है ।"




उस वक्त चेहरे पर जबरदस्त तनाव लिए किरन सुनी-सूनी आंखों से लाल बल्ब को धूर रही थी जब बैरिस्टर विश्वनाथ ने स्नेहपूर्वक उसके कंधे पर हाथ रखा ।



किरन चिहुंक पड़ी ।


बिचारमाला के मोती जैसे टूटकर बिखर गए हों ।



बैरिस्टर साहब ने गैलरी में पडी बेच की तरफ इशारा करके आहि्स्ता से कहा…"आओं किरन, उधर बैठते हैं ।"



"नहीं मैं ठीक हूं।"



बैरिस्टर विश्वनाथ बोले-----समझने की की कोशिश करो बेटी अॉपरेशन सीरियस और लम्बा है…ऐसे अॉपरेशन के निपटते-निपटते मरीज के सगे-समर्थ और उससे वेइन्तहा प्यार करने बाले भी थक जाते हैं
गैलरी में जगह-जगह वे बेंचें अस्पताल वालों ने उन्हीं की सुविधा के लिए बिछाई हैं !"



"मैं भी यही सोच रही थी पापा ।"


"हम समझे नहीं ।"


"यह कि इस वक्त ओंपरेशन थियेटर में एक ऐसा आँपरेशन हो रहा है जिसके नाकाम होने के नब्बे प्रतिशत चांस हैं और आँपरेशन नाकाम होने का मतलब होगा मरीज की मृत्यु, मगर फिर भी, इन बेचों पर बैठने के लिए कोई मौजूद नहीं है----


------कितना भाग्यहीन है शेखर मल्होत्रा मैं तो खेर अभी छोटी हूं----आप काफी बसन्त देख चुके हैं-क्या आपने कभी ऐसा देखा है पापा कि कोई शख्स जिन्दगी और मौत के झूले में झूल रहा हो तथा इस बात की परवाह करने वाला कोई नहीं कि वह मरेगा या ..............



" ऐसा तो हम आज भी नहीं देख रहे किरन ।"



"तात्पर्य ?"


"परवाह करने वाली तुम जो मौजूद हो ?"



"आप मुझ पर व्यंग्य कर रहे हैं क्या ?"



"नहीं ।"



"अगर व्यंग्य कर रहे हैं. तो मुझे इस व्यंग्य पर बहतु दुख होगा पापा, क्योंकि आपको नहीं भूलना चाहिए कि जो शख्स इस वक्त जिन्दगी से दूर तथा मौत के नजदीक है उसने आपकी बेटी पर झपट पड़ने वाली मौत का वरण किया है !"



बैरिस्टर विश्वनाथ चुप रह गए ।



लगा कि अगर इस वक्त उन्होंने किरन को यह समझाने की कोशिश की कि उसे भावनाओं में नहीं बहना चाहिए तो असर उलटा पडेगा अत: कुछ भी कहने का विचार त्याग दिया ।


बाप--बेटी के मध्य खामोशी पुन: फन उठाकर खड़ी हो गई।
किरन के खूबसूरत चेहरे पर छाया तनाव कहीं जाकर तब कम हुआ जब सीनियर सर्जन ने "आपरेशन थियेटर' से बाहर निकलते वक्त बताया कि अॉपरेशन सफ़ल रहा है तथा दोपहर में किसी वक्त शेखर को होश आ सकता है ।



किरन ने रात के तीन बजा रही रिस्टवॉच पर नजर डाली और बैरिस्टर विश्वनाथ के नजदीक पहुंचती हुई बोली-----पापा अाप मेरे कुछ सवालों का जवाब देगे पापा ?"



"कैसे सवाल ?"


"जब अाप मेरे लिए फिक्रमन्द थे यानि जब शेखर मल्होत्रा को फोन किया था उस श्रृंखला में और किस-किस को फोन किया था आपने?"


बैरिस्टर विश्वनाथ समझ गए कि शेखर मल्होत्रा को खतरे से बाहर पाते ही किरन का दिमाग पुन: इन्वेस्टीगेशन की तरफ़ घूम गया है बोले----" हमने शहजाद राय, रमन आहूजा और अक्षय को फोन किए थे ।"


"क्या जवाब दिया था उन्होंने ?"



“तीनों में से कोई फोन पर नहीं मिला था ।"


“इंस्पेक्टर अक्षय थाने में नहीं था ।"


“सब-इंस्पेक्टर ने बताया था कि वह "रुटीन गश्त' पर निकला हुआ था ।"



"रमन और राय अंकल ?"



“दोनों में से कोई अपने रेजिडेन्स पर नहीं था, रमन के वहाँ 'वेल' जाती रही परन्तु रिसीवर नहीं उठाया गया जबकि मिस्टर राय की मिसेज को मालूम था कि मिस्टर राय कहाँ गए हैं ?"



"रमन आहूजा के बारे में आपका क्या ख्याल है ?"


"किस बारे में ?"'


"संगीता का हत्यारा होने के बोरे में ।"
"क्या तुम्हारे ख्याल से हत्यारा रमन आहूजा है ?"



रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा किरन ने-"मैंने आरका ख्याल पूछा है पापा ।"



"एक तरफ दावा पेश करती हो कि हत्यारे को पहचान चुकी हो, दूसरी तरफ़ रमन आहूजा के बारे में हमारा ख्याल जानना चाहती हो------------------दोनों बातों का तालमेल समझ से बाहर है, जब तुम पहचान ही चुकी हो तो हमारा ख्याल पूछने का क्या मतलब ?"




"ख्याल तो सभी का पूछना चाहिए न----मुमकिन है कि जो मैं समझी हू गलत समझी होऊं-मामला छोटे-मोटे अपराधी का नहीं बल्कि हत्यारे का है-----हत्यारे का नाम जुबान से पूरी तरह पुष्टि कर लेने के बाद ही निकलना चाहिए न ?"



"क्या तुम किसी डाउट में हो ?"



छोड़िए पापा, केवल इस सवाल का जवाब दीजिए कि आपके ख्याल से रमन आहूजा..........



"अगर सच्चाई जानना चाहती हो तो वह ये है कि इस सम्बन्थ में हमारा दिमाग कुछ भी सोच पाने में असमर्थ है-हम तो यह _भी नहीं समझ पा रहे हैं कि घटनाएं आखिर इतनी तेजी के साथ क्यों घट रही हैं ?"



किरन ने पुन: प्रश्न किया----बैरिस्टर विश्वनाथ का जवाब इस बार भी गोल-मोल ही रहा…सवाल और जवाबों का सिलसिला चलते-चलते सुबह के पांच बज गए ।



शेखर मल्होत्रा को आंपरेशन थियेटर से एक कमरे मे-----"शिफ्ट' कर दिया गया…इस वक्त सवा पांच बज रहे थे-जब वह एक लेडी टॉयलेट में घुसी, साढे पांच तक भी जब बैरिस्टर साहब ने किरन को टॉयलेट से बाहर निकलते न देखा तो असमंजस में पड़ गए-----तभी, एक वार्ड वॉय उनके समीप आया तथा बोली---'" आपकी बेटी ने आपके लिए दिया है !"
बैरिस्टर विश्वनाथ चौंके ।


कागज का पुर्जा लगभग छीना उससे, पढा-“सौऱी पापा, एक बार फिर मुझे आपको विना कुछ बताये गायब होना पड़ रहा है ।"



बस-इतना ही लिखा था ।



बैरिस्टर विश्वनाथ का दिल 'धक्क से रह गया, बिजली की-सी तेजी के साथ वे एक खिडकी की तरफ लपके, झाकंकर नीचे देखा और पार्किग से अपनी फियेट गायब देखते ही मस्तक पर बल पड गए ।



बे सोचने की भरपूर चेष्टा कर रहे वे कि किरन कहाँ गई होगी ?

"पन्द्रह नवम्बर सन् उन्नीस सौ सत्तासी की शाम के करीब पांच बजे अपके इलाके में एक एक्सीडेंट हुआ था ।" किरन कहती चली गई-"गाडी फिथेट थी, नम्बर यू टी एक्स 9775-माना यह गया था कि चालक नशे में था और ब्रेक के भ्रम में एक्सीलेटर दबाता चला गया लिहाजा गाडी सैक्डो़ फूट गहरी खाई में गिरी ।"




"हुआ होगा, इसमें मैं क्या कर सक्ता हूं !" इंस्पेक्टर देवेन्द्र गौड ने उखड़े हुए स्वर में कहा----"उस वक्त यह थाना कम-से-कम मेरे चार्ज में नहीं था बल्कि अगर यह कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा कि तब से अब तक दसियों इंस्पेक्टर इस थाने में आ चुके होंगे ।"



"लेकिन उस घटना की फाइल तो थाने के रिकार्ड में होगी ?"



"अगर पुलिस जांच हुई थी तो फाइल भी जरूर होगी परन्तु ?"
" परन्तु ?"


" क्या मैं जान सकता हूं कि अाप कौन हैं और इतने पुराने-पुराने गड़े मुर्दों को उखाड़ने का मकसद क्या है ?"



"मैं एक वकील हू ।" कहने के साथ उसने अपना वकालतनामा मेज पर रखा और कहती चली गई-----आजकल एक ऐसे केस की इन्देस्वीगेशन कर रही हूं जिसका एक्सीडेंट से गहरा ताल्लुक है ।"



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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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देवेन्द्र गौड ने उसके शब्दों पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया था, वकालतनामा उठाकर जरूर देखा और उसे देखते ही चौंक पड़ा बोला-“अरे जाप बैरिस्टर विश्वनाथ की वेटी हैं ?"'



"जी हां ।"



"कमाल है, आपने पहले क्यों नहीं बताया-मैं तो एक तरह से "फेन हू उनका, अपने अब तक के जीवन में मैंने उनसे धाकड़ सरकारी वकील नहीं देखा, एक पैसा रिश्वत का नहीं लेते है ये-अगर आपका केस लड़ रहे हैं तो ----- !"



"उस दुर्घटना में उनके दोस्त की मृत्यु हुई थी ।" देवेन्द्र गोड़ की बात काटकर किरन उसे पटरी पर लाने का प्रयत्न करती बोली----“हालांकि जांच के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहूंची थी कि वह सचमुच घटना ही थी किन्तु अब कुछ ऐसे हालात उत्पन्न हो गए कि मामला मर्डर का भी हो सकता है ।"



"मैँ आपकी क्या मदद कर सकता हूं ?"


"दुर्घटना से सम्बन्धित फाइल देखना चाहती हू मैं ।"



"श्योर ।" कहने के बद उसने एक सिपाही को बुलाया, पहले नाश्ता'और फिर फाइल लाने के लिए कहा जिसकी किरन को जरूरत थी-मतलब ये कि उसकी हर किस्म की मदद करने के लिए तत्पर तैयार हो उठा वह ।



किरन समझ सकती थी कि यह सब उसके पापा के नाम का प्रताप है !!
नाश्ते के दरम्यान वह सम्बधित फाइल का अध्ययन करती रही, फाइल ज्यादा मोटी नहीं थी, नाश्ता रखती हुई बोली-----" इसमें दुर्घटना स्थल का नक्शा है, एक ट्रक ड्राइवर और चालक के बयान हैं-धटना का विवरण है और अन्त में इंस्पेक्टर गहलौद द्वारा लगाई गई फाइनल रिपोर्ट हे-ड्राइवर का बयान है कि वह पहाड़ पर चढ रहा था जबकि दुर्घटनाग्रस्त होने बाली कार उतर रही बी, क्या रफ्तार वाकी तेज थी और अपनी, "विंड स्कीन' से उसने चालक को बार-बार ब्रेक मारने की भरपूर कोशिश करते देखा था मगर उसकी हर कोशिश के बाद गाडी की रफ्तार बढती चली गई और फिर देखते ही-देखते सैकडों फूट गहरी खाई में जा गिरी-खाई के तल से टकराते ही वातवरण में जोरदार विस्फोट गूंजा तथा गाडी 'धू-घू' करके जल उठी-ट्रक-ड्राइवर ने यह भी कहा है कि वार चालक ब्रेक के भ्रम में वार-बार शायद एक्सीलेटर दवा रहा था ।"



" कार चालक क्या कहता है ?"


"उसके बयान के मुताबिक दुर्घटनाग्रस्त होने वाली गाडी उससे अागे थी अनियरित्रत थी और उसके देखते-हैं-देखते खाई में जा गिरी-उसके ख्याल से गुलाब चन्द नशे में 'धुत्त' थे ।"



" कौन गुलाब चन्द ?"



"इस में मरा व्यक्ति, पापा का दोस्त ।"


"ओह !"


फाइल के मुताबिक ये दोनों दुर्घटना के चश्मदीद गवाह थे, इनकी गवाही के बाद इंस्पेक्टर गहलौद ने अपनी इन्वेस्टीगेश'न का विवरण लिखा है-जिसका लव्बो--लुबाव ये है कि एक हवलदार और तीन सिपाहियो के साथ वह खाई में उतरा वहाँ दूर'-दूर तक कार का मलबा बिखरा पड़ा था और उस मलवे का सबसे बड़ा हिस्सा यानि इंजन सहित बॉडी बुरी तरह जल चुकी थी कार चुकि खाई की दीवार पर लुढ़कती-पुढ़कती और पत्थरों से टकराती तल तक पहुंची थी इसलिए 'तल' तक पहुचने से पहले. ही उसके अजर-मंजर बिखर चुके थे…बचे हुए सबसे बड़े टुकड़े में विस्फोट के साथ अाग लग गयी थी-लाश बुरी तरह जली और स्टेयरिंग के बीच फंसी हुई थी, खाई में कार के कांच के अलावा "जॉनीवाकर' की एक बोतल का कांच भी बिखरा मिला और बाद में पोस्टमार्टम ने बताया कि मृतक ने काफी शराब पी थी-इस सबके बाद गहलौद इस नतीजे पर पहुंचा कि नशे की ज्यादती के कारण ही यह दुर्घटना हुई है और यही लिखकर उसने फाइल क्लोज कर दी--सबसे अन्त में लिखा है कि उसने गाडी के ब्रेक चेक किये, बेक पाइप और ब्रेक आंयल बिल्कुल ठीक था और पैडिल भी सही काम कर रहा था यानि अगर सचमुच बेक मारा जाता तो गाडी निश्चित रूप से रुक जाती, लगता है नशे की अधिकता के कारण मृतक सचमुच ब्रेक की जगह एक्सीलेटर दबाता रहा ।"



देवेन्द्र गोड ने कहा---"मेरे ख्याल से हवलदार अनोखेलाल अापकी मदद कर सकता है ।"



"अ-अनोखैलाल ?" किरन चौंकी---- नाम तो फाइल में भी लिखा है…इंस्पेक्टर गहतौद के साथ खाई में. उतरने वाले हवलदार का नाम यही था ।"




" इसीलिए तो कह रहा हूं कि वह आपकी मदद कर सकता है ।" देवेन्द्र गोड़ ने बताया-“पिछले पांच साल से वह इसी थाने में है ।"




किरन को उम्मीद की किरण नजर आई बोली---" उसे बुलाओ इंस्पेक्टर ।"
"अभी लीजिए ।" कहने के बाद उसने घन्टी बजाई और कुछ ही देर बाद हवलदार अनोखेलाल किरन के सामने हाजिर था किरन ने कहा-“मैं तुमसे एक दुर्घटना के बारे में बात करना चाहती हूं अनोखेलाल !"

"पहाडी इलाका है मेम साहब, दुर्घटनाएं तो यहाँ होती ही रहती हैं-अव सवाल ये है कि मैं यह कैसे जानूं कि आप कौन-सी दुर्घटना के वारे में बात करने की ख्वाहिशमन्द हैं ?”


उसके बात करके के ढंग पर किरन हौले-से मुस्कुराई, मेज से फाइल उठाकर अनोखेलाल को देती हुई बोली वह…“इसे पढ़ लो, मैं इस बारे में बात करूगी !"




अनोखेलाल ने वहीं खड़े-खड़े तारीख, सन्, जांचकर्ता का नाम, गाडी नम्बर और मृतक का नाम पढने के बाद फाइल मेज पर रखते हुए कहा----सब याद आ गया मेमसाहब-इस कार दुर्घटना में मरने वाला व्यक्ति करोढ़पति था मगर शराब के चक्कर में मारा गया साला, जॉनीवाकर की पूरी बोतल हलक में उतारने के बाद ड्राइविंग कर रहा था…-पटठा एक्सीलेटर को ब्रेक समझकर दबाता रहा और. .. .



"मैँ यह जानना चाहती हुं अनोखेलाल कि गाडी के मलवे का क्या हुआ था ?"'



" म-मलवे का ?" अनोखेलाल ने कहा-मलबे का क्या होता और फिर मलवे के नाम पर वहां था ही क्या जो काम आ सकता-कहने का मतलब ये है कि मलवे में शायद ही कोई काम की वस्तु बची हो और अगर बची भी होनी तो उसकी कीमत इतनी न होती जितने 'नोट‘ उसे खाई से निकालने में लग जाने थे ।"



"मतलब ये कि मलबा आज भी वहीं पडा होगा ?"


"अब इस बारे मैं क्या कह सकता दूं मेम साहब--- होना तो वहीं चाहिए क्योंकि आसपास इतना वड़ा सनकी कोई नहीं रहता जो सैकडों फूट गहरी खाई में मटर'गस्ती करने जाये मगर सवाल ये उठता है कि अगर मलवा वहां हुआ भी भो इतने दिन बाद किस हालत में होगा--बारिश और बर्फ ने उसे इस कदर गला दिया होगा कि जिस चीज को अाप छेड़ेंगीं वह 'बुरादे' की तरह बिखर जायेगी ।"



किरन एक झटके से खडी होती हुई बोली----" मैं मलबे का निरीक्षण करना चाहती हुं इंस्पेक्टर !"


"म मलबे का निरीक्षण ?"


"क्या आप मेरे साथ चलने का कष्ट करेगे ?"


खडे होने हुए देवेन्द्र गोड़ ने कहा-" अगर अाप ऐसा चाहती हैं तो जरुर चलुगा ।"



"थेवयू ।" किरन बोली-अगर 'टूल-बाक्स' साथ ले लें तो ज्यादा बेहतर होगा ।"



"ट टूल-बोंक्स क्यों ?”


रहस्यमयी अंदाज से बोली किरन-इसकी जरूरत पडेगी ।"
खाई इतनी ज्यादा गहरी थी कि उसे तल पर पड़े विशालकाय पत्थर सडक के किनारे पर खडे होकर देखने से कंकर से लगते थे-हवलदार अनोखेलाल और सिपाही के यह सुनते ही पसीने धूट गये कि उन्हें खाई में उतरना है-परन्तु इंस्पेक्टर साहव का अदेश था ।


बजाना तो उन्हें था ही ।


यात्रा शुरु हो गयी ।


सम्भल सम्भलकर, एक-एक पत्थर पर पैर जमाते हुए वे करीब एक घंन्टे में खाई के 'तल' तक पहुचे

अनोखेखाल और दोनों सिपाही नहीं बल्कि इंस्पेक्टर गोड़ तथा खुद किरन भी थक गई थी, एक सिपाही ने जब कहा _ कि 'टांगे टूट गयी' तो अनोखेलाल बोला----"अभी क्या टांगे टूटी हैं बेटा, अभी तो उतरा है…अपनी सात पुश्तों के नाम तो तुझे तब याद आयेंगे जब चढेगा ।"



किरन ने दोनों तरफ खड़े गगनचुम्बी पर्वतों के चोटियों को देखा तो यूं लगा जैसे स्वयं पाताल में आकर खडी हो गयी हो और फिर शुरू हुई खाई में गुलाब चन्द की फियेट के मलवे की खोज ।


सबसे बड़ा हिसा यानि जली हुई बॉडी और इंजन उसे अासानी से चमक गया…बुरी तरह जंग खाया हुआ था वह लेकिन उसे तो मानो उससे कोई मतलब ही न था…जैसे पहले से ही जानती थी कि उसे क्या चेक करना है-उसकी आंखें रह-रहकर पुरी तरह जल चुके चारों 'ब्रेक-ड्रम्स' को देख रही थी । केवल एक "बेक-ड्रग्स' पर पहिया चढ़ा हुआ था बाकी तीन रॉड से टूटकर मुख्य बॉंडी से अलग हो चुके थे और खाई के जाने कौन-से हिस्से में पड़े हुए थे ।




"तुम ढांचे के उपर चढकर चारों "बेक-ड्रग्स' खोलो अनोखेलाल ।" किरन ने कहा ।



अनोखेलाल ने इंस्पेक्टर गोड की तरफ़ देखा----"गोड़ ने उसे किरन के आदेश का पालन करने का हुक्म दिया ।


हुक्म देना आसान था…लेकिन पालन करना उतना ही मुश्कि्ल---------- सारे स्क्रू इस कदर जंग खा चुके थे कि ब्रेक-ड्रम्स' खोलने में अनोखेलाल के दांतों के तले पसीना आ गया ।


, ड्रग्स खुल गये ।
किरन इंस्पेक्टर गौड के साथ ढांचे के नजदीक पहुंचीं -ड्रम्स का निरीक्षण करते-करते उसकी अांखें हीरों की मानिन्द चमक उठी, उत्साह भरी इंस्पेक्टर गोड से बोली वह ----" देखा इंसपेक्टर , किसी भी ड्रम के अंन्दर ब्रेक-- शू नहीं है !"


" कहां गये ब्रेक शू ?"


" एक तो ये रहा !" किरन ने अपने पर्स से निकाल कर उसे दिखाया !



इंसपेक्टर चकित रह गया --- " इस गाड़ी का ब्रेक -- शू आपके पास ?"



" गुलाब चंद ब्रेक भुलावे एक्सीलेटर नहीं बल्कि ब्रेक ही दबा रहे थे !" रहस्मयी स्वर में किरन कहती चली गई ---- " मगर ब्रेक लगते तो तब , गाड़ी रूकती तो तब जब ड्रम में ब्रेक शू होते ---- इंसपेक्टर गहलौद ने पैडिल ब्रेक आयल और ब्रेक पाइप को दरूसत पाया तथा नतीजा निकाल लिया कि ब्रेक ठीक है ---- गल्ती उसकी भी नहीं , ड्रम खोलकर देखने की जरूरत ही नही थी कि शू है भी या नही !"



" ओह ! माई गॉड !" गौड़ कह उठा ---"यह तो हत्या थी !"

सारा दिन पहाडी इलाके में गुजर गया । . शाम के ठीक सात बजे किरन अस्पताल के उस कमरे में दाखिल हुई जिसमें शेखर मल्होत्रा पड़ा था----आंखे बंद थी उसकी-एक कलाई के जरिए ब्तड चढ रहा था, दूसरी के जरिए ग्लूकोज ।


एक नर्स वेड के नजदीक बैठी थी ।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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किरन ने उससे पूछा-इन्हें होश आाया या "नहीं ?” होंठों पर उंगली रखकर किरन को चुप रहने का संकेत करती नर्स स्टूल से खडी हो गयी और यही क्षण था जब , विस्तर पर पडे़ शेखर मल्होत्रा ने आहिस्ता-आहिस्ता आंखें खोली ।
होंठों से कराह-सी निक्ली-“क-किरन..…क-किंरन !"



"हां शेखर !" बह मानो टूटकर उसकी तरफ़ लपकू-----“मैँ आ गई हूं तुम फिक्र मत करना !"

उसके होंठ हिले----कुछ बड़बड़ाया था वह मगर आवाज किरन के कानों तक न पहुंच सकी सुनने के लिए अधीर किरन ने अपना कान उसके होंठों के नजदीक ले जाकर , कहा-----" हां ...... हां ..... बोलो, क्या कहना चाहते हो ?"

“तु-तुम........ जीवित हो न ?"' बहुत कमजोर-सी आवाज में पूछा उसने ।



"म-मैं ......मैं भला जीवित क्यो नहीं होऊंगी पगले ?" कहते-कहते आंखें भर आई किरन की…“म-मेरी मौत को तो तुमने अपने गले से लगा लिया था मगर फिक्र मत करो अब तुम ठीक हो जाओगे ।"


शेखर के होंठ कांपे ।


कुछ कहा था मगर किरन सुन न सकी…नर्स उसे लगभग घसीटती हुई वेड से दो कदम दूर ले गई और फूस--फूसाकर बोली-"प्लीज मेंडम,उससे बात मत कीजिए -----डॉक्टर ने उसे बोलने के लिए सख्त मना किया है ।"



" ओह, होश कब आया इन्हें ?"



' नर्स ने अपनी रिस्टबॉंच पर नजर डालते हुए बताया-"चार बजे सबसे पहले े इन्होंने पानी मांगा और उसके बाद से लगातार आपका और सिर्फ आप ही का नाम ले रहे हैं, बीच-बीच में थककर मानो 'गाफिल' हो जाते हैं-आपका नाम बड़बड़ाने लगते हैं…अब शायद इन्होंने आपकी आवाज सुनकर ही आंखे खोली हैं ।"


शेखर के होठ अभी भी कांप रहे ये, आंखें किरन को देख रही थी !!
बह बोली-----"शेखर शायद कुछ कहना चाह रहा है ।"



"आप समझती क्यों नहीं बोलने की सखंत मनाही है उसे ।'



'मैं उसे नहीं बोलने दूंगी, केवल मैं बोलूगी-उसे वह बताऊंगी जो जानना चाहता है-जब तक उन सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे उसे जो उसके दिमाग में घुमड़ रहे हैं तब तक वह बोलने की और मुझसे सवाल करने की चेष्टा करता रहेगा और बोलने के प्रयास को भी वह मेरे कहने से ही छोड़ेगा ।'


बात नर्स की समझ में आ गयी ।



किरन पुन: तेजी से वेड के नजदीक पहुंचकर बोली--"बोलने की कोशिश मत करों शेखर डॉक्टर ने मना किया है-जानती हू कि तुम क्या जानना चाहते हो-तुम्हारे सवालों का जवाब मैं बगैर तुम्हरे सवाल किये दे सकती हूं ------


--------सुनो, ध्यान से सुनो मैंने मुजरिम का चक्रव्यूह तहस-नहस कर दिया-उसका नाम जान चुकी हूं मैं, काफी हद तक सबूत भी जुटा चुकी हूं------सारी स्थिति संक्षेप में समझ सकते हो कि मेरे पास रस्सी भी है और यह जानकारी भी कि इस रस्सी का फंदा बनाकर किसकी गर्दन में डालना है-कमी है तो सिर्फ रस्सी के एक सिरे को फन्दे की शक्त देने की और मैं अच्छी तरह जानती हू कि आज की रात फन्दा तैयार कर लूंगी ।"



शिखर के होंठ कांपे, आवाज तो किरन के कानो तक न पहुंच सकी पर समझ गई कि वह हत्यारे का नाम पूछ रहा होगा अत: बोली----" अभी शेखर, कल सुबह सभी लोगों के सामने उसके चेहरे से नकाब नोचूंगी मैं-----नहीं, जिदद नहीं-अव आंखें बन्द करो और सो जाओ-तुम्हें कसम है मेरी ।"



आहिस्ता-आहिस्ता आंखें बन्द जरूर हो गयी परन्तु

बन्द होती उन आंखों में शिकायत का भाव था, किरन ने तेजी के साथ नर्स की और पलटते हुए कहा----"इस ववत्त डॉक्टर कहां हैं ?"



" आपने आँफिस में ।”



जवाब मिलने के बाद एक सेकेंड के लिए भी किरन वहां नहीं रुकी--हवा के झोंके की तरह डॉक्टर के आँफिस में दाखिल हुई और उसे देखते ही डॉक्टर कह उठा… अ अाप कहां हैं मिस किरन इधर मरीज सफ़लता की हालत में लगातार आपका नाम ले रहा है, उधर आपके पापा के बीसों फोन आ चुके हैं ----उनका मेसेज है कि यहाँ पहुचते ही फोन पर बात कर ले ।”



“सबसे पाले यह बताइये डॉक्टर कि इस वक्त शेखर किस कन्डीशन में है ?"


वह कुर्सी पर बेठ गई ।


"खतरा पूरी तरह टल चुका है, अब तो,बस उसे दवाओं और आराम की ज़रूरत है !"



"वेरी गुड ।” किरन का चेहरा चमचमा उठा----" क्या कल सुबह अाप उसको छुट्टी दे सकते हैं?"



"क-कल सुबह ?" डॉक्टर उछल पड़ा ----“नहीं इतने सीरियस केस में भला इतनी जल्दी छुट्टी कैसे दी जा सकती हे!"


" अभी अभी अाप ही ने तो कहा कि उसे आराम और दवाओं की जरूरत है---मैं इन दोनों बातों की गारन्टी लेने के लिए तैयार हूं दवायें उसे टाइम से दी जायेगी, भरपूर आराम दिया जायेगा----आठ आठ घन्टे के हिसाब में तीन नसें रख लूंगी मैं---सुबह-शाम आप खुद चैकअप करने आ सकते है ।"


“घर. . .घर ही होता है मिस किरन... और अस्पताल. . . अस्पताल ही ।" डाक्टर ने कहा-----" पेशेण्ट को जो आराम अस्पताल में मिल सकता है वह घर पऱ किसी हालत में नहीं मिल सकता ।"

"उसे यहाँ से बेहतर आराम मिलेगा डॉक्टर साहब, मैं आपको विश्वास दिला सकती हू ।"


“म मगर आखिर बात क्या है, छुट्टी के लिए इतनी जल्दी अाप क्यों कर रही हैं ।"



शांत लहजे में किरन ने कहा--"'' आप| तो जानते हैं न कि कल इस शख्स को कोर्ट में सजा होने वाली है"'



'हे, अखबारों के जरिये हमें संगीता मर्डर केस की मुकम्मल डिटेल मालूम है और हम ही क्या अखवार पढने बाला शायद हर व्यक्ति जानता है कि अपनी बीती की हत्या इसी ने की थी और इसे सजा होकर रहेगी ।"



किरन यूं मुस्करा उठी जैसे डॉक्टर ने कोई बचकानी बात कह दी हो, बोली-“अदालत का फैसला कोर्ट खुलने के बाद यानि ग्यारह बजने के आसपास होगा जबकि उससे पहले मैं एक और अदालत लगाना चाहती हूं ---- अपनी अदालत-यह अदालत करीब नौ बने शेखर मल्होत्रा की कोठी के ड्राइंग-हॉल में लगाना चाहती हूं मैं !"



"'उस अदालत में क्या होगा ?"



"शेखर की पत्नी यानि संगीता के असली हत्यारे के चेहरे से नकाब मैं खुद नोचूंगी ?"


"क-क्या मतलब ?" डॉक्टर उछल पड़ा----"क्यों वास्तविक हत्यारा शेखर मल्होत्रा नहीं है ?"



"गारन्टी से नहीं है ।"



'" फिर कौन है ?"



"कल सुबह समी लोगों की मौजूदगी मे, मैं उसका नाम लूंगी, न सिर्फ नाम तूगी बल्कि अकाट्य सबूत भी पेश करूंगी मेरी अदालत वास्तविक अदालत को अपना फैसला बदलने पर विवश कर देगी और यह मेरी दिली इच्छा है कि उस वक्त बेड पर पड़ा शेखर उनकी बौखलाहट को अपनी आंखों से देखे जिन्होंने उसे चक्रव्यूह में फंसाया था ।"



" यह हैरतअगेंज खेल तो हम खुद भी देखना चाहेॉगें !"


" मैं बाकायदा आपको आमन्त्रित करती हूं ! "

"अ-आप..............आप सुबह से कहाँ हैं ?" उसे देखते ही अक्षय कह उठा---" बैरिस्टर साहब बीसों बार फोन कर चुके हैं…उनका मेसेज है कि अगर अाप यहाँ अाएं तो सबसे पहले फोन पर उनसे बात कर लें ।"



"पापा से मेरी बात हो चुकी है ।" झूठ बोलने के बाद किरन ने उसके सामने बाली कुर्सी पर बैठते हुए पूछा------"डाक बंगले से गिरफ्तार किए गए बदमाशों से कुछ पता लगा ?"


"वे छोदे--मोटे दो गिरोह हैं-एक चुन्दा पहलवान का गिरोह, दूसरा जग्गा उस्ताद का गिरोह-जग्गा उस्ताद जीवित गिरफ्तार हो गया है किन्तु काम की बात न वह बता पा रहा है न ही कोई अन्य गुन्डा ।"


“क्या कहते हैं वे ?"



"कहते हैं कि सफेद नकाबपोश ने उम्हें किराये पर 'अरेंज' कर रखा था----केवल वही करते थे जो आदेश सफेद नकाबपोश की तरफ से मिलता था ।"



"और यह वे जानते नहीं है कि सफेद नकाबपोश कौन था ।"


"हां ।"


"काली एम्बेसेडर के बारे में कुछ पता लगा ?"


"चेसिस नम्बर के आधार पर ,उसका रजिरट्रेशन नम्बर पता लगाया तो रहस्य ये खुला कि उस नम्बर की गाडी पांच दिन पहले चोरी हो गई थी मगर उसका रंग हल्का नीला था ।"



"यानि हत्यरे ने हल्के नीले कलर को काले र'ग में बदल दिया?"

"मतलब तो यही निकला ।"


"क्या जग्गा आदि गिरधारी लाल के बारे में कोई नई बात बता सके ?"



"उसका कहना है कि पहले वे गिरधारीलाल को बॉस के साथ देखकर चौकें क्योंकि उसे वे यही शख्स यानि शेखर मल्होत्रा समझते थे जिसे 'वॉस' की तरफ से खत्म कर देने के आदेश थे, परन्तु शीध्र ही 'बॉस' ने रहस्य खोला कि वह शेखर मल्होत्रा नहीं गिरधारीलाल है और फिर .........




"यानि केवल वही बता सके जितना हमें मालूम है ।"



"इंस्पेक्टर अक्षय श्रीवास्तव को पुन: काना पड़ा, हां ।"



"खैर ।" एकाएक किरन ने कहा-----"भले ही इंस्पेक्टर होने के बावजूद तुम कुछ पता न लगा पाये हो इंस्पेक्टर मगर मैंने सब कुछ पता लगा लिया है-----कल सुबह तक , साढे आठ बजे तुम्हें शेखर मल्होत्रा की कोठी पर पहुचना है-सभी लोग पहुंचेगें -----मैं सबके सामने मुजरिम का असली चेहरा और चक्रव्यूह के चिथड़े पेश करूगीं----उसे गिरफ्तार करने की डूयूटी तुम्हें ही निभानी है ।"



"आखिर वह है कौन है"' अक्षय श्रीवास्तव ने व्यग्रतापूवंक पूछा ।



"इस सवाल का जवाब मैं कल, सव लोगों के सामने देना पसन्द करूंगी मगर हां, इस वक्त आपको एक चीज दिखा सकती हूं।"


“क्या ? "


किरन ने पर्स से सफेद रूमाल में लिपटी कोई वस्तु निकाली बोली-----“मैंने यह रिवॉल्वर बरामद कर लिया है ।"


“र-रिवॉल्वर जिससे चाकू विक्रेता को गोली मारी गई ।" कहने के साथ उसने रिवॉल्वर रूमाल से अलग करके उसे पकड़ते हुए कहा-“आप देखकर पुष्टि कीजिए कि रिवॉल्वर वही है या नहीं ?"

“हत्यारे के फिगर प्रिन्टृस तो नहीं हैं इस पर ?'



"मेरे ख्याल से नहीं थे और अगर होंगे भी तो मिट चुके होंगे क्योंकि मैंने "इसे खुद काफी छेड़ा है…ऐसा इसलिए किया क्योंकि रिवॉल्वर को हत्यारे का साबित करने के लिए मुझे इस पर उसके फिगर प्रिन्टस की जरूरत नहीं पड़ेगी ।"'



अक्षय ने रिवॉल्वर उठा लिया---नम्बर और मार्का पढा, चेम्बर खीचकर देखा-गोलियां चेक की और चौंकता हुआ बोत्ता-“मुझे लगता है किरन जी कि आप किसी भ्रम का शिकार हो गई हैं ।"'



“मतलब ?"



"कम-से-कम चाकू-विक्रेता को तो इस रिवाल्वर से नहीं मारा गया ।"'



"क-क्या मतलब है"' किरन इस तरह उछल पड़ी जैसे असंख्य बिच्छुओं ने मिलकर डंक मारा हो ।



अफसोस-सा जाहिर करता अक्षय बोला----“अगर आपने इस बात को 'बेस' बनाकर कोई थ्योंरी बनाई थी कि चाकू-विक्रेता की हत्या इस रिवॉल्वर से की गई है तो मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अाप गलत रास्ते पर भटक रही हैं----थ्योरी का वेस ही गलत है क्योंकि यह रिवॉल्वर प्योंइन्ट थ्री थ्री का है जबकि चाकू विक्रेता को प्योंइन्ट फाइव के रिवॉल्वर से मारा गया है ।"



"क-क्या यह सच है ?" किरन ने नाल पकड़कर रिवॉल्वर उसके हाथ से लेते हुए पूछा ।



"मैं भला झूठ क्यो बोलूंगा ?"



"म-मगर ।"‘ किरन के चेहरे पर ऐसे भाव थे मानो उसके बुलंद इरादों पर तुषांरापात हुआ हो, रिवॉल्वर को बहुत ध्यान से देखती हुई बोली वह----"मुझे पक्का यकीन था चाकू-विक्रेता की हत्या इसी रिवॉल्वर से की गई होगी !"



" कैसे यकीन था अपको ?"



"अब छोडिये ।" उसने रिवॉल्वर पर्स में डाला----"जब थ्योंरी ही गलत सिदृद्र हो गई तो क्या बताऊ ?"




इंस्पेक्टर अक्षय ने व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा ---" क्या नये हालात में सुबह को मल्होत्रा की कोठी पर अाप मीटिंग करेगी ?"



"क्यों नहीं, आप शायद यह सोच बैठे कि हत्यारे का पर्दाफाश करने का इस रिवॉल्वर से जुडी थ्योंऱी से कोई सम्बन्ध----नहीं, बिल्कुल नहीं-मीटिंग जरूर होगी और आपको जरूर आना है क्योंकि.......... "



"क्योंकि ?"



"क्योंकि मेरे "इन्वाइट' करने के बावजूद अगर कोई नहीं अाएगा तो सिर्फ हत्यारा नहीं अाएगा ।" इतना कहने के बाद किरन यह जा, वह जा ।

उसे देखते ही रमन आहूजा के प्राण खुश्क हो गए… "अ-अाप ?"


"मैं तुम्हें इन्वाइट करने अाई हूं ।"


"ज-जी...क्रोई फंक्शन है क्या ?"



"ऐसा ही समझो ।"


"न समझने से क्या मतलब, फंक्शन है नहीं क्या ?"



"फक्शन तो है मगर छोटा-सा है-बहूत कम लोगों को इन्वाइट किया है, मैंने उनमें तुम्हारा नाम भी है ।"



" कल सुबह साढे आठ शेखर मल्होत्रा की कोठी पर सभी सम्बन्धित लोगों के सामने संगीता के असली हत्यारे के चेहरे पर चढा नकाब नोचूंगी-आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है ।"

रमन आहूजा अवाक् रह गया ।


बडी मुश्किल से बोला सका---" य-ये कैसा फंक्शन है ?"

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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