दुल्हन मांगे दहेज complete

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Jemsbond
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

Post by Jemsbond »

इसं बार गोडास्कर की खोपडी नाचं गई, काफी देर तक वह हेमन्त को घूरता रहा, जबकि मन-ही-मन अपनी सफलता पर बल्लियों उछल रहे हेमन्त ने कहा-----"बडे शर्म की बात है इंस्पेक्टर कि मनोज के इस घिनौने और संगीन जुर्म के बाद भी हमें ही परेशान कर रहे हों----कदम-कदम पर हमारी ही गतिविधियों पर शक क्रिया जा रहा है । "



"मनोज ने जो किया उसके आरोप में उसे गिरफ्तार किया जा चुका है मिस्टर हेमन्त । गोडास्कर का लहजा खराब था---"उसने एक शर्मनाक और जघन्य जुर्म किया है----अदालत से उसके की पूरी-पूरी सजा दिलाने की में पुरजोर कोशिश करूगा !"






"लेकिन ?"


"उसके इस जुर्म से न अापके उस गुनाह में कोई कमी अाती है जो अाप कर चुके हैं और न ही वे गुनाह हल्के पडते हैं जो अभी तक कर रहे हैँ-वादा रहा, मुझम्मल सबूत हाथ लगते ही मैं न सिर्फ अाप सब लोगों को गिरफ्तार का लूंगा बल्कि अदालत से सजा दिलाने के लिए भी उतनी ही पुरजोर कोशिश करूंगा, जितनी मनोज को उसके कुकृत्य की सजा दिलबाने के लिए !"



" तभी न जब सबूत तुम्हे मिलेगे' ?" हेमन्त ने अपने अाप से कहा-'सुचि की लाश मिलते ही सारे पासे पलटने बाले है बच्चु----तुम्हारी खोपडी़ को भी हवा में न घुमा दिया और तुम बाबूजी से माफी मांगने घऱ न आए तो मेरा नाम भी हेमन्त नहीं।"
सब इंस्पेक्टर अब्दुल जिस समय फोर्स के साथ वहाँ पहुचा, तब तक घटनास्थल के चारों तरफ गांव वालों की भीड़ लग चुकी थी, मगर--------------पुलिस को देखते ही भीड़ ने कई की तरह
फट कर रास्ता दे दिया ।




शीघ्र ही अब्दुल को एक वृक्ष को शाख से लटकी लाश नजर आई।




उसे मिली इन्फॉरमेशन के मुताबिक लाश किसी विवाहिता युवती की ही थी----एक पल ठिठककर अब्दुल ने दूर ही से लाश का निरीक्षण किया-----फिर उसी पर नजरें टिकाए धीरे-धीरे अागे बढा ।


लाश के इर्द-गिर्द दुर्गध फैल चुकी थी ।



अब्दुल ने-ईटों के उस देर को है जिस पर ,खडे होकर संभवतया युवती ने आत्महत्या की थी---आधी-अधूरी ईंटों का वह चट्टा लाश के ठीक नीचे था और इतना ऊंचा था कि जिस पर खड़े होकर युवती ने रस्सी का एक सिरा आराम से शाख में बांधां होगा बहुत-सी ईंटे चट्ठे के चारों तरफ लुढकी पड़ी थी !


लाश के पैरों के अंगूठे चट्टे की शेष ईटों से बाल बराबर स्पर्श हो रहे थे ।



पहली नजर में अब्दुल के दिमाग में यह कहानी उभरी कि सबसे पहले युवती ने आत्महत्या के इरादे से, इधर-उधर से आधी अधूरी ईंटें ढूंढकर शाख के नीचे इतना ऊंचा चट्टा _ लगाया जिस पर खड़ी होकर एक सिरा शाख में बांध सके-----उसके बाद रस्सी के दूसरे सिरे पर बने फंदे में अपनी गरदन डालकर चट्टे पर खडी़ हो गई और तब उसने पैरों से चट्टे की ईटे हटानी शुरू की ।

ईंटे हटती गई, फंदा कसता गया ।



क्लाइमेक्स अाने पर ईहलीला खत्म !



अब्दुल को यह मामला शुद्ध आत्महत्या का लगा, किंतु दिमाग में यह विचार जरूर अटककर रह गया था कि युवती कौन है और उसने यहीं आकर आत्महत्या क्यों की ?


कहीं अन्य क्यों नहीँ ?


आत्महत्या बडे परिश्रम और समझंदारी के साथ की गई थी !




अब्दुल यह सोचने के लिए बाध्य था कि क्या आत्महत्या करने वाले के दिमाग में इतनी समझदारी रहती है और क्या वह चुन चुनकर ईंटों का चट्टा बनाने जैसी परिश्रम करने की स्थिति में होता है ?


यह रस्सी इसे कहां से मिली ?


क्या आत्महत्या करने के लिए यह रस्सी अपने साथ लेकर चली थी--अगर हाँ, तो यह बात कितनी स्वाभाविक है-जहां से यह रस्सी लेकर चली थी, वहीं आत्महत्या क्यों
नहीं की-यंहा अाकर क्यो ?



एकाएक उसके दिसठग में विचार उठा कि कहीं यह हत्या तो नंहीं ?


अासपास कदमों के निशान कैं लिए उसने नजर मारी, परंतु वहीं नंगे पैर गांव के इतने निशाने थे कि किसी निष्कर्ष तक पहुंचना असंभव था ।



अब्दुल का दिमाग पूरी तरह सक्रिय हो उठा । अह वह इसे पूरी तरह आत्महत्या नहीं मान रहा था, बल्कि यह सोचकर चल रहा था कि मुमकिन है किसी ने हत्या करके लाश यहीं इस ढंग से लटका दी हो कि आत्महत्या नंजर आए…अंतिम फैसला तो, वह यह पता लगाने पर ही कर सकता था कि युवती कौन हे और यहां केसे पहुंच गई ?
इसकै लिए लाश की तलाशी लेना जरूरी और फोटो आदि से पहले ताश को छेढ़ना उसने मुनासिब नहीं समझा । फिंगर प्रिंटृस विभाग और फोटोग्राफर के यहां आने में अभी समय था, अत: उसने सभी गांव बालों की तरफ देखते हुए ऊंची आवाज में पूछा---"क्या आपमें से कोई इस युवती को जानता है ?"



कहीं से कोंई जवाब नहीं !


कई बार पूछने पर भी जब कोई अागे न आया तों अब्दुल समझ गया कि युबती गांव बालों के लिए नितांत अपरिचित है,


बैसे भी लिबास से युवती शहरी लग रही थी ।



ऊंची आबाज में उसने दूसरा सवाल किया…"सबसे पहले लाश किसने देखी ?"



"मैंने साब ।" एक ग्रामीण ने कहा ।



"क्या तुम इधर से गुजर रहे थे ?" अब्दुल ने पूछा।



"नहीं साब, यह रास्ता तो है नहीं जो गुजर रहा होता ।"


"फिर तुम इधर केैसे आ निकले ?"



"कल रात से मेरी गाय खोई हुई है साब, रात को अच्छी भली छप्पर तले बांधी थी कि सुबह को गायब देखी, सो उस को ढूंढता फिर रहा था कि इधर आ निकला ----- लाश पर नजर पड़ी तो ऊपर का दम उपर रह गया साब-नीचे का नीचे---- चिल्लाता हुआ गांव की तरफ भागा और कुछ ही देरमें हम सब यहां इकट्ठे हो गए फिर आपको खबर देने का फैसला
किया गया । "




अपने अनुभव के आधार पर अब्दुल को लग रहा था कि लाश तीस पैंतीस घंटे पुरानी है, अतः उसने ऊंची आबाज में पूछा----"क्या इससे पहले किसी ने लाश देखी थी ?"



खामोशी ।



"कल रात या कल सारे दिन?"



कोई जवाब नहीं !


अब अब्दुल ने एक और सवाल किया.---"यह बाग 'किसका है ?"



" मेरा है साब ।" ऐक व्यय ग्रामीण आगे अाया ।


"क्या तुम हर रोज अपने बाग की देख-रेख नहीं करते हो ?" अब्दुल ने पूछा !

" लाश बता रही है कि वह परसों रात से यहाँ टंगी है-----कल दिन में तो तुम यहाँ आए होगे-----लाश पर तुम्हारी नजर तो पड़नी ही चाहिए थी ?"




"बाग पर चौबीस घंटे नजर रखनी पढ़ती है साहब मगर तब जबकि पेडों पर फ़ल लगे हों----आप देख ही रहे हैं , कि यह बाग अाम का है, आजकल अाम नहीं लगते सो, इधर अाए एक-एक हफ्ता गुज़र जाता है ।"




फोटोग्राफर और - फिंगर प्रिट्स विभाग के लोगों के जाने तक अब्दुल ग्रामीणों से इसी किस्म के सवाल करतां रहा-कोई खास सूत्र हाथ न लगा जबकि उन लोगों ने जाते ही यंत्रवत अंदाज में अपना काम शुरू का दिया ।



अब्दुल ने कई फोटो अपनी इच्छा के एंगल से खिंचवाए------कई ईटों से फिंगर--प्रिट्स उठवाए और उनका
काम खत्म होने के बाद पुलिस वालों की मदद से उसने खुद लाश उतरवाई-जब उसने लाश एम्बुलेंस के साथ अाए स्ट्रेचर पर रखवाई तब नजर एक कागज पर पडी़ ।



कागज का कोना लाश की छाती से बाहर झांक रहा था । अब्दुल की आंखें चमक उठी----उसे लेगा किं इस कागज से उसे युवती का नाम-पता मिल जाएगा-----कागज निकालकर खोला और पढा !



शंकर,



यह सोचकर मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है कि कभी मैंने तुमसे प्यार किया था----वह शायद युवावस्था का जोश ही था, जिसने मुझे तुम्हारी तरफ आकर्षित किया वरना आज सोचती हूकि लड़की के प्यार की तो बात ही दूर, तुम घृणा के लायक भी नहीं हो और 'उन दिनों' अगर जानती की भविष्य में तुम मेरे जीवन के कोढ़ बन जाओगे तो कभी तुमसे प्यार न क्रिया होता, पत्र न लिखे होते ।



प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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आज से दो साल पहले तुम मेरा सब कुछ लूटकर हापुड़ से इस तरह गायब हो गए जैसे कभी कहीँ थे ही नही-----उस कमरे पर गई जहां तुम रहते थे, परंतु मकान मालिक से पता लगा कि तुम कमरा छोड़ गए हो और मकान मालिक को भी तुम्हारा पत्ता-ठिकाना मालूम न था-कितना ढूंढा, कितना तलाश किया-मगर तुम न मिले और उन दिनों मुझे अपने अाप पर तरस आ रहा था
तरस आ रहा था----यह सोचकर कि मैंने तुम्हारे बारे में उस किराये के कमरे से अागे कभी जानने की कोशिश ही नहीं की-घर वाले शादी की जिद कर रहे थे, तुम्हारी तलाश थी--एक साल गुजार गया और तब मैंने अपने दिमाग में धोखेवाज करार दिया----वहीं शादी कर ली जहां पापा ने कही !



तुम मेरी जिदगी में दाग थे शंकर और यह दाग में किसी को दिखाना नहीं चाहती थी----संयोग से मुझे अच्छी ससुराल मिली, अच्छा पति और हंसी खुशी मेरे दिन गुजर रहे कि-------------एक बार तुम फिर मेरी जिदगी में आ गये----उस दिन मैं शाम के वक्त हेमन्त के साथ गांधी पार्क में टहल रही थी कि मेरी नजर तुम पर पडी----तुम किसी हिंसक पशु की तरह मुझे घूर रहे थे------उस वक्त मेरी जो हालत हुई उसे मैं बयान नहीं कर सकती-उस दिन के बाद तुम मेरी जिदगी के कोढ बन गए--तुम मेरे पुराने प्रेमी नहीं, बल्कि ब्लेकमेलर बनकर मिले---सुख चैन और हंसी-खुशी में गुज़र रहीं मेरी जिदगी को तुमने झंझोड़ डाला शंकर-----मेरे पत्र हेमन्त को दिखाने कीं धमकी देकर तुम मुझसे छोटी-मोटी रकम ऐंठने लगे-मैं अपने पत्र वापस के लिए रोई, "गिढ़गिडाई हाथ जोडे, तुम्हारे पैर पकडे मगर तुम न माने----पुरे कमीने हो तुम-कहने लगे कि पत्र तब दे सकते हो जव मैं तुम्हें बीस हजार दूं-----इतनी बडी रकम भला मैं कहां से लाती…जब यही बात तुमसे कही तो तुम ठहाका लगाकर हंस पडे-बताया कि मेरी राइटिंग में तुम एक ऐसा पत्र हापुढ़ डाल चुके हो जिससे बीस हजार का इंतजाम हो जाएगा, मुझे तुम्हारी किसी भी राइटिग की नकल उतार देने की वह स्मरण हो अाई, जिसका प्रदर्शन अाज से दो साल पहले करते थे-----जब तुमने पापा के पास डाले गए पत्र का मजमून बतलाया तो मैं ढंग रह गई-चीख पडी कि मेरे पापा इतने पैसों का इंतजाम नहीं कर सकेंगे मगर तुम वहशिाना अंदाज़ में हंसे---- बोले कि बाप चाहे जितना गरीब हो, मांग यदि लडकी की ससुराल से आए------------दुल्हन ही अपने बाप से मांगे तो उसे इंतजाम करना पड़ता है…मेरे डाले गए पत्र के मुताबिक तुम चार तारीख को वहां जाना, रकम मिल जाएगी ।
मुझे चारों तरफ---से जकड़ लिया था तुमने ।



बिबश होकर सोचा कि जब तुमने पत्र डाल ही दिया है तो क्यों न बीस हजार मुंह पर मारकर अपने पत्र वापस ले लूं----चार तारीख ससुराल वाले रोकते रह गए मगर मैं जिद
करके बुलंदशहर से हापुड़े गई…रकम लाई ।


मुझसे कहा था कि जिस दिन मेरे ससुराल में हापुढ़ से टेलीग्राम मिले उसी रात को मैं तुम्हें बीस-हजार सौंपने और अपने पत्र बापस लेने के लिए गुलावठी अड्डे पर पहुंच जाऊं------रूपये लाने के अगले दिन यानी आज ही हापुड़ से अंजू की शादी का टेलीग्राम पहूँचा, मैं समझ गई तुमने ही डाला है, क्योंकि तुम जानते थे अंजू मेरी सबसे प्यारी सहेली है !



जाने क्यों मुझे यकीन न अा रहा था कि तुम बीस हजार लेकर भी मेरे पत्र लौटा दोगे----यह सोच-सोचकर डर रही थी कि अगर तुमने अब भी पत्र न लौटाए तो क्या करूँगी----इसका हल मैंने बडा भयानक निकाला, इतना तक सोच डाला कि अगर ऐसा हुआ तो तो मैं तुम्हें खत्म कर दूंगी और खुद भी मर जाऊंगी--- यह निश्चय करके मैंने बाबूजी का रिवॉल्वर चुरा
लिया !



मैं ही जानती है कि किन-किन मुसीबतों से गुजरकर आज तुम से गुलाबठी में मिली उन्होंने अमित को मेरे साथ लगा दिया था---बडी मुश्किल से बहाना बनाकर उसे बराल से टाला----तुम मुझे गांव के टूटे-फूटे और कच्चे मकान में ले गये--वही हुआ जिसका मुझे पहले से डर था, तुमने बीस हजार ही नहीं बल्कि मेरे गहने भी ले लिए----कहा ससुराल
और पीहर बालों से कह दूंगी कि अटैची बस में ही गुम हो गई---तुमने कुत्तेपने की हद कर दी थी शंकर अत: उस कहानी का वहीं अंत करने का निश्चय कर लिया । जो सोचकर आई थी----मगर वह भी न हो सका…चालाकी से तुमने मेरा रिवॉल्वर भी छीन लिया और दो घंटे बाद अाने के लिए कहकर तुम मुझे कमरे में केैद करके चले गए हो, जहां बैठी मैं अपना आखिरी पत्र लिख रही हूं !



हां आखिरी पत्र । यह कहकर गए हो कि मेरे पत्र उस दिन लौटाओगे जिस दिन मैं तुम्हें एक लाख दूंगी---मगर मैंं जानती हूं कि पत्र मुझे कभी नहीं मिलेंगें
तुम मेरे दामन के क्रोढ़ बन गए हो वक्त के साथ यह कोढ़ बढ़ता ही जाएगा…जिदगी मेरे लिए नर्क बन गई है…ऐसे ही पत्र डाल ड़ालकर तुम मेरे पापा को भी जीतेजी मार दोगे…ऐसी जिदगी से तो मौत अच्छी-मेरी मौत के साथ ही यह सिलसिला रूकेगा, मगर छप्पर की इस छत में कहीं इतनी जगह भी तो नहीं है, जहाँ मैं आराम से मर सकूं--- मगर वह रस्सी जो इस कमरे में शायद कपड़े टांगने के लिए बंधी थी, मैंने कमर पर अपनी साडी के नीचे लपेट ली हैे---तुन शायद आने ही वाले होगे, भविष्य में है एक लाख देने का वादा करके मैं यहाँ से निकल जाऊंगी और फिर वह भविष्य कभी नहीं आएगा शंकर ।




यह पत्र तुम्हें मेरी ताश के साथ मिलेगा और मेरी लाश वहाँ मिलेगी, जहाँ इस रस्सी पर आराम से मरने की जगह होगी---यह पत्र लिखने का अभिप्राय सिर्फ यह है कि मां पापा, भइया-हेमन्त, अमित रेखा, मांजी और बाबूजी को यह पता लग जाए क्रि मैं उनमें से किसी को मुंह दिखाने के लायक न थी-----सबकी दोषी हूं मुझे माफ कर देना मगर शंकर नाम के राक्षस को कभी माफ न करना हेमन्त, मैं तुम्हारी कसम खाकर कहती हूं मेरे देवता कि मैं गंगा-सी पवित्र नहीं, मगर जब से तुम्हारी हुई तब से तुम्हारी ही हूं और शंकर वह दरिंदा है जो शादी से पहले लड़कियो को फंसाकर उनकी शादी हो जाने देता है ताकि बाद में उन्हें ब्लैकमेल कर सके-बाहर का दरवाजा खुला, शायद वह आ रहा है !




अंतिम शब्द बुरी तरह धसीट मारकर लिखे गए थे ।



पत्र पढते ही लाश के संबंध में अब्दुल के जेहन में जितनी गांठें थी, सब खुलती चली गई----उसकि आंखों के सामने आजका अखबार चकरा उठा ।



एक खबर वड़ी सुर्खियों में थी ।



बुलंदशहर के सम्मानित नमारिक रिटायर्ड मजिस्ट्रेट बिशाम्बर गुप्ता की बहू के गायब होने की खबर----- अब्दुल ने पढा था फि लइकी का ससुराल वालों पर दहेज मांगने का आरोप लगा रहा है-----सारे शहर के साथ-साथ पुलिस का भी यह अनुमान है कि ससुराल बालों ने सुचि की हत्या करके लाश कहीं ठिकाने लगा दी है !


अब्दुल ने महसूस किया कि लाश बरामदगी की सूचना सबसे पहले बुलंदशहर पहुंचनी चाहिए, अत: उसने आदेश दिया--"'लाश को एम्बुलेंस में रखवाओ । "

हापुड़ के दहेज विरोधी संगठनों व्यापारियों और महिला की एक संयुक्त आपात्कालीन बैठक पिछली रात ही हो चुकी थी----उसमें हापुड़ बंद का प्रस्ताव ध्वनि मत से पास हुआ ।



आज हापुड़ बंद था !



हापुड़ के नागरिकों से भरी बसें सुबह से ही बुलंदशहर पहुंचने लगीं ।



सारे शहर का वातावरण गर्म हो उठा ।


बुलंदशहर के नागरिक भी उनके साथ थे------सो आनन-फानन में बुलंदशहर बंद की भी घोषणा कर दी गई।


बुलंदशहर बंद ।



दहेज विरोधी नारे लगाता हुआ विशाल जुलूस निकला-----ज़नसमूह बिशम्बर गुप्ता परिवार के साथ ही पुलिस के विरूद्ध भी नारे लगा रहा था--सुचि का पता लगाने संबंधी सारे नारे लगा रहे थे-----हर तरफ उतेजित भीड़ गर्म नारे !



जालूस थाने के बाहर पहुचां !





लोग कुछ ज्यादा ही जोश में अा गए, नारे और ज्यादा गर्म हो उठे ।



इंस्पेक्टर गोडांस्कर ने भीड़ को शांतकरके कहा------" आप लोग यकीन रखें,, दोषी को सजा जरूर मिलेगी------ सुचि को ढूंढने की पुलिस पुरजोर कोशिश कर रही है-------बिशम्बर गुप्ता उसके परिवार के लोगों को गिरफ्तार करने में कुछ कानूनों पेचीदगियों हैं जो शाम तक राइटिंग एक्सपर्ट की रिपोर्ट आने पर हो जाएंगी----" मेरा विश्वास है कि आज शाम तक उन लोगों को जरूर गिरफ्तार कर लिया जाएगा । '"



गोडास्कर अभी इतना ही बोल पाया था कि एक कांस्टेबल ने आकर उसके कान में सुचना दी----"गुलावठी से सव इंस्पेक्टर अब्दुल का फोन है, वह आप से बात करना चाहते । "


गोडास्कर अंदर चला गया ।



भीड़ भला कहां संतुष्ट होने बाली थी -- नारे कुछ ज्यादा ही बुंलदी से उछलने लगे और फिर यह जुलूस जिलाधी को ज्ञापन देने चल पडा़ !!!
रेखा को सुबह सात बजे होश अाया !


आठ बजे तक वे हस्पताल से घर आ गए-चीखने चिल्लाने और रोने के बाद विस्तर पर पडी़ रेखा अब तो सो चुकी थी----बाकी लोग भूखे-प्यासे,, डरे सहमे से ड्राइंगरूम मेंं बैठे थे--------सुबह काअखबार पढ चुके थे !




शहर के वातावरण से भी अपरिचित न थे



उन्हें लग रहा था कि उत्तेजित जनसमूह को शांत करने के लिए पुलिस उन्हें किसी भी क्षण गिरफ्तार कर सकती है,, यह बात बिशम्बर गुप्ता ने अभी अभी कही थी !


जबाब में हेमन्त बोला------" अब आपको इतना डरना नहीं चाहिए बाबूजी,, यह हंगामा और शोर-शराबा केवल तभी तक है जब तक सुचि की लाश नहीं मिल जाती----लाश मिलते ही सब कुछ बंद हो जाएगा, उनके मुंह पर ताले लग जाए'गे !"



"मगर पहले पुलिस हमे गिरफ्तार तो कर सकती है ?"


" केवल लोगों को शांत करने के लिए----कानूनी रूप से न पुलिस अभी पुख्ता है, न हो सकेगी क्योंकि एक्सपर्ट की रिपोर्ट हमें फेवर करेगी-----लाश मिलने के बाद तो बाकी कुछ बचेगा ही नहीं--------गिरफ्तार हो भी गए तो पुलिस को तुरन्त छोड़ना पडेगा !"






'"म...मगर एक बज ,गया है, लाश आखिर कब मिलेगी?"



"इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, मुमकिन है आज सारे दिन ही न मिले, क्योंकि लाश को हम ऐसी स्थान पर छोडकर अाए हैं जहां उसे कोई आसानी से देख न सके ।"



बिशम्बर गुप्ता के कुछ कहने से पहले ही कॉंलवैल बज उठी !



सबने सवालिया नजरों से एक-दूसरे की तरफ देखा ,,यह लिखना गलत न होगा कि हैमन्त ने अपने पिता को आदेश दिया----" आप देखिए कौन है ?"
सस्पेंस में फंसे बिशम्बर गुप्ता दरवाजा खोलने चले गए-जब वापस आए तो उनके साथ एक व्यक्ति था और उस व्यक्ति को देखते ही ललितादेबी चीख पडीं ।




" भईया । " वह दौड़कर उस व्यक्ति से जा लिपटी ।



"बात क्या हुई ललिता, यह सब कैेसे और क्यों हो गया ? " कहते हुए उस व्यक्ति ने स्नेहपूर्वक उसके सिर पर हाथ फेरा-----ललितादेबी फफ्क--------फ़फककर रो रही र्थी-------इस कदर कि वह अपने भाई के सवाल का जवाब भी न दे सकी, पीड़ा युक्त स्वर में बिशम्बर गुप्ता ने कहा----" सब तकदीर का खेल है जगदीश-लोग हमे दहेज के, लोभी और हत्यारा कह रहे हैं…हमारे बारे में यह सब सोच रहे हैं जो कभी खुद हमने नहीं सोचा ! "




" लेकिंन हुआ क्या है जीजाजी, मुझें भी तो कुछ वताइए----टेलीग्राम और अाज का अखबार मुझे लगभग साथ ही मिले-----पढ़कर चौंक पड़ा मैं । "



बिशम्बर गुप्ता ने हेमन्त की तरफ देखा…जेसे पूछ रहे हो कि जगदीश को सच किस हद तक बताया जाए, जगदीश बोला-"बेहिचक से सब कुछ बता दीजिए, अगर कोई ऊक-चूक बात भी हो गई तब भी मैं आपके साथ हूं--ऐसा भला कैसे हो सकता है कि बहन मुसीबत में है और भाई साथ न दे !"



जगदीश के शब्द एक धूसां बनकर बिशम्बर गुप्ता के दिल पर लगे कराह से उठे वह------" क्या तुम्हे हमसे और अपनी बहन से भा यह उम्मीद है कि हमने दहेज मांगा होगा-----सुचि की हत्या की होगी ?"



" ऐसी बात नहीं है जीजाजी !"



" फिर तुमने सोच भी कैसे लिया कि कोई ऊक चूक बात हुई होगी ?"



"मैनें तो यूं ही---- शहर में इतना शोर जो मच रहा है, कोई बात तो होगी ही और मैं वही बात जानने के लिए बुरी तरह उत्सुक हूं !"



हेंमन्त ने सब कुछ बता दिया !


सब कुछ !


यह भी कि सुचि की लाश को उन्होनें घर से निकालकर क्यों कैसे और कहां पहुचाया है, सुनकर जगदीश गंभीर होगया,, बोला -----" मेरे ख्याल से आप लोगों ने बस यही ठीक नहीं किया !"
" क्या ?"



" आप तो मुझसे बेहतर जानते हैं जीजाजी क्रि जुर्म को जितनी सख्ती के साथ दबाने का प्रयास क्रिया जाए उतेंनी ही तेजी से उछलकर अोरों के सामने आता है-सुचि की लाश मिलने तक न आपने कोई गुनाह किया था न झूठ बोला था,, मगर उसके बाद जो कुछ किया वह ठीक नहीं था !"




"हमने तो कहा था जगदीश हेमन्त ही न माना । "



"क्यों हेमन्त?"



हेमन्त ने उल्टा सवाल किया-----------"आप हमारी जगह होते तो क्या करते ? "



"लाश मिलते ही पुलिस को सूचित कर देता ।"



"हुंह---कहना अासान् है मामाजी, करनां बहुत मुश्किल । "




"क्या मतलब?"



"पुलिस उसी समय सुचि की हत्या के जुर्म में हमारे हाथों में हथकडी डालकर थाने ले जाती ।"



" लेकिन झूठ-झूठ ही होता है, एक दिन सच्चाई अदालत और लोगों के सामने जरुर आती-मगर अब मुसीबतों का फंदा अपऩे गले तुम खुद डाल चुके हो !"


"सच्चाई सामने कभी नहीं आनी थी मामाजी, क्योकि उसे सामने लाने के लिए हमारे पास कोई सबूत न था-------आप बाबूजी से पूछ सकते है, सुचि के पत्र की रोशनी में हर आदमी को हमारी कहानी इतनी खोखली लगती कि वह व्यंग्य से हंसने लगता था----नक्वी और गोडास्कर उदाहरण हैं । "

"मगर अब ही तुमने क्या कर लिया है-मेरा ख्याल तो यह है कि तुम्हारी स्कीम बुरी तरह फ्लाप होगी---------"यह साबित होने में देर नहीं लगेगी कि लाश को वहां तुमने पहुचाया है ----- उसके बाद तुम लाख कहते रहना कि लाश तुमने पहुंचाई जरूर है मगर हत्या नहीं की-कोई विश्वास नहीं करेगा । "



" आप देखते लेना मामाजी सब बिश्वास करेंगें---- सारी दुनिया को यकीन होगा----
दुनिया को यकीन होगा-----अदालतें उस झूठ को सच, मानती हैं जिसके सबूत हों उस सच को सच नहीं जिसके सबूत न हों !




जगदीश के कुछ कहने से पहले ही कॉलबेल पुन बजी । इस बार दरवाजा खोलने हेमन्त खुद गया वापस आया तो साथ में गोडास्कर था----वह पहली बार बिना किसी पुलिस वांले को साथं लिए अाया था---हेमन्त के चेहरे पर तो हवाइयां उढ़ ही रहीँ थीं-----पुतिस को देखते ही जगदीश 'सहित अन्य ' सभी के चेहरे भी फक्क पड़ गए--बुरी बुरी आशंकाओं है दिल धड़कने लगे ।



गोडास्कर की भूरी आंखें जगदीश पर जम गई और जव जगदीश ने ऐसा महसूस किया तो उसके पेट में गैस का गोता उठकर दिल पर ठोकरें मारने लगा, गोडास्कर ने सीधे उसी से पूछा-----" आपका परिचय ?"



"ज.....जी--मेरा नाम जगदीश है, इन बच्चों का मामा हूं !"




"ओह अच्छा…जिनके यहां कल रात मिस्टर अमित और हेमन्त गए थे ?"



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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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जाने क्यों जगदीश की इच्छा उनके झूठ में शामिल होने की न हुई अौर सच शायद बहन के प्यार ने न बोलने दिया ! वह चुप ही रहा----गनीमत्त यह हुईं कि उसकी तरफ़ से किसी किस्म का जवाब मिलने का इंतजार किए बिना गोडास्कर ने हेमन्तं की तरफ घूमकर सवाल किया------" क्या आप किसी शंकर नाम के व्यक्ति को जानते हैं ? "



"हेमन्त का दिल बल्लियों उछल पड़ा !



गोडास्कर के पहले ही सवाल से जाहिर था कि वह न सिर्फ सुचि की लाश, तक पहुच चुका है, बल्कि पत्र भी पढ़ चुका हे-उसका दिल किसी ड्रम की तरह बजने लगा था !



"आपने ज़वाब नहीं दिया मिस्टर हेमन्त ?"



"ज---जी-----कौन शंकर-मैँ किसी शंकर को नहीं जानता ।"



"याद कीजिए, दरअसल यह बहुत जरूरी हेै----दिमाग पर जोर डालकर सोचिए, मुमकिन है कि सुचि ने कभी इस नाम के किसी आदमी का जिक्र किया हो ?"
" स...सुचि ने'?"



"जीहाँ । "



हेमन्त को लगा कि गोडास्कर वही सोच रहा है जो यह सुचबाना चाहता था, कामयाबी की चमक को अपने चेहरे पर उभरने से बड़ी मुश्कि्ल से रोका उसने, बोला…"नहीं-तो, मगर--------यह शंकर कौन है और सुचि को इस आदमी का जिक्र मुझसे क्यों करना चाहिए था । "


उसकी बात का जवाब देने के स्थान पर गोडास्कर ने बिशम्बर गुप्ता ललितादेबी और अमित की तरफ देखते हुए सबाल किया----"' अाप में से किसी ने कभी सुचि के मुंह से यह नाम सुना है ?"



" नहीं !" तीनों का संयुक्त स्वर ।




" मैं फिर कहता हूं कि ठीक से याद कीजिए !" गोडास्कर ने अपने शब्दों पर जोर दिया---" 'दरअसल शंकर नाम का यह अादमी अाप सब लोगों को बेगुनाह साबित कर सकता है ।"




"य.......यह तुम क्या कह रहे हो इंस्पेक्टर?" हेमन्त ने बडी ही खूबसूरत एक्टिंग की…..."क.....कौन है शंकर और यह हमें बेगुनाह कैसे साबित कर सकता है ?"



"वर्योंकि असली गुनाहगार वही है !"




"क. . .क्या मतलब, हम कुछ समझे नहीं-पहेलियां-मत बुझाइए इंसपेक्टर, साफ-साफ बताइए कि बात क्या है-कौन शंकक, क्या किया है उसने और इस केस में अचानक ही यह अजनबी नाम कहां से जुढ़ गया ?“




"सुचि के पत्र से । "



"स...सुचि का पत्र--क्या-पुलिस को मिला है, कहाँ से…प्लीज, जल्दी बताइए इंस्पैक्टर कि सुचि ने पत्र कहाँ से डाला है----कहाँ है वो, कहां है उसका पत्र ? "



"सुचि मर चुकी है !"




"क...क्या ?" योजना के मुताबिक हेमन्त, अमित और बिशम्बर गुप्ता मुंह फाडे़ किसी के स्टेचू के समान खडे़ रह गए और ललितादेबी दहाडें मार-मार रोने लगी…खबर सुनते ही हेमन्त के आदेशानुसार उसे इसी तरह रोना था ।


जगदीश अपनी बहन की खूबसूरत एक्टिंग को देखता रह गया ।
स...सुचि ने'?"



"जीहाँ । "



हेमन्त को लगा कि गोडास्कर वही सोच रहा है जो यह सुचबाना चाहता था, कामयाबी की चमक को अपने चेहरे पर उभरने से बड़ी मुश्कि्ल से रोका उसने, बोला…"नहीं-तो, मगर--------यह शंकर कौन है और सुचि को इस आदमी का जिक्र मुझसे क्यों करना चाहिए था । "


उसकी बात का जवाब देने के स्थान पर गोडास्कर ने बिशम्बर गुप्ता ललितादेबी और अमित की तरफ देखते हुए सबाल किया----"' अाप में से किसी ने कभी सुचि के मुंह से यह नाम सुना है ?"



" नहीं !" तीनों का संयुक्त स्वर ।




" मैं फिर कहता हूं कि ठीक से याद कीजिए !" गोडास्कर ने अपने शब्दों पर जोर दिया---" 'दरअसल शंकर नाम का यह अादमी अाप सब लोगों को बेगुनाह साबित कर सकता है ।"




"य.......यह तुम क्या कह रहे हो इंस्पेक्टर?" हेमन्त ने बडी ही खूबसूरत एक्टिंग की…..."क.....कौन है शंकर और यह हमें बेगुनाह कैसे साबित कर सकता है ?"



"वर्योंकि असली गुनाहगार वही है !"




"क. . .क्या मतलब, हम कुछ समझे नहीं-पहेलियां-मत बुझाइए इंसपेक्टर, साफ-साफ बताइए कि बात क्या है-कौन शंकक, क्या किया है उसने और इस केस में अचानक ही यह अजनबी नाम कहां से जुढ़ गया ?“




"सुचि के पत्र से । "



"स...सुचि का पत्र--क्या-पुलिस को मिला है, कहाँ से…प्लीज, जल्दी बताइए इंस्पैक्टर कि सुचि ने पत्र कहाँ से डाला है----कहाँ है वो, कहां है उसका पत्र ? "



"सुचि मर चुकी है !"




"क...क्या ?" योजना के मुताबिक हेमन्त, अमित और बिशम्बर गुप्ता मुंह फाडे़ किसी के स्टेचू के समान खडे़ रह गए और ललितादेबी दहाडें मार-मार रोने लगी…खबर सुनते ही हेमन्त के आदेशानुसार उसे इसी तरह रोना था ।


जगदीश अपनी बहन की खूबसूरत एक्टिंग को देखता रह गया ।
सबसे पहले नियंत्रित होने का नाटक हेमन्त ने किया, बौला----"क...कैंसे------कहां है वह;-----मेरी सुचि की लाश पुलिस को कहां से मिली थी ?"



जो कुछ उसे अब्दुल से पता लगा था वह सब बताने के बाद गोडास्कर ने सुचि की लाश से बरामद पत्र भी उन्हें पकड़ा दिया-----अकेले हेमन्त ही नहीं, बल्कि उसके उपर खुलकर जगदीश सहित सब लगभग सभी ने पढा और उस पर आंसू टपकाने की खूबसूरत एस्टिंग भी की, जबकि गोडास्कर का बता रहा था----" यह पत्र सुचि के गायब होने और आत्महत्या की सारी कहानी खुद सुना रहा है । "



"क्या पत्र यह नहीं बता रहा इंसपेक्टर कि हमारा बयान अक्षरश: सच था ?” हेमन्त ने जोश में भरकर कहा-----"वह बयान जिसपर यकीन न कर रहे थे ? "




"स......सॉरी हेमन्त, मैंने आपके साथ बडी ज्यादती की है----मगर आप तो जानते है गुप्ता जी----हम पुलिस बाले कर ही क्या सकते हैं----सामने खड़ा व्यक्ति झूठा या सच्चा यह जानने का हम पर एक ही पैमाना होता हेै…सबूत-और आपके खिलाफ सबसे ठोस सबूत वह पत्र था जो अब शंकर का लिखा साबित हो रहा है और शायद इस पत्र की मौजूदगी की वजह से ही आपका बयान भी एकदम , अस्वाभाविक, अटपटा और काल्पनिक लग रहा था---अाई एम रियली वैरी सोंरी गुप्ता जी । "



सारे परिवार का दिल चाह रहा था कि - वे बल्लियों उछलें----खुशियां मनाएं----नाचें, मगर उन जज्बातों को बडी मुश्किल से दबाए ललितादेबी ने कहा---"अब कहाँ है मेरी बहू मुझे उसके पास ले चलो।"




"सॉरी मांजी । " गोडास्कर पहली बार सम्मानपूर्वक बोला-----"अभी ऐसा नही हो सकता, आप लोगों को धैर्य रखना पडेगा । "




"क्यों ?" बिशम्बर गुप्ता के मुह से निकला । " लाश चीरघर में है---- पोस्टमार्टम के बाद आपको मिलेगी !"



"हम चीरधर जा रहे हैं, अपनी बहू कीं लाश को खुद यहां लेकर आएंगे । "
"सॉरी गुप्ताजी, अभी अाप ऐसा नहीं का सकते, पुलिस, कानून और व्यवस्था की मदद करनी होगी । "



"हम समझे नहीं । "




गोडास्कर ने एक सिगरेट सुलगाई, गहरे कश के बाद सारा धुआं गटकता हुआ बोला----"बात दरअसल यह है ,गुप्ताजी कि लाश और यह पत्र मिलने का राज अभी तक गुप्त रखा गया है।"



" क्योंकि लोग अभी इकट्ठा हैं, एक जलुस की शक्ल में हैं और उत्तेजित भी हैँ…वे पूरी तरह यह हैं कि सुचि को दहेज के लिए अाप ही ने मारा है…इस वक्त अगर उन्हें, सच्चाई बता दी जाए तो किसी को प्रिय नहीं लगेगी और इसीलिए वे इस सच्चाई पर यकीन भी नहीं करेंगे बल्कि उल्टे भढ़क उठेंगे----"पुलिस पर आपसे मिलीभगत या रिश्वत का इलजाम लगाएंगे…तोड़-फोढ़ और हिंसा भी भडक सकती है-----इस स्थिति से बचाने के लिए पुलिस के उच्चाधिकारियों ने यह निश्चय किया कि अाज का दिन निकल जाने दिया जाए--जुलूस आदि निकालने के बाद लोग ठंडे पढ़ जाएंगे------अपने-अपने घरों में जाकर सो जाएंगे ।"



"फिर ?"



"कल सुबह जब लोग सोकर उठेंगे तो अखबार में उन्हें सुचि की ताश के फोटो सारी कहानी और यह पत्र भी छपा मिलेगा उस वक्त लोगों को हकीकत जल्दी स्वीकार हो जाएगी !"





"ऐसा क्यों ?" बिशम्बेर गुप्ता ने कहाँ…"आंदोलन, हिंसक वारदातें-तोड़-फोड़ और पुलिस पर इलजाम आदि तो वे कल भी लगा सकंते हैं ?"

"हरगिज नहीं-उत्तेजित भीड़ और एक व्यक्ति की मानसिकता में जो फर्क होता' है उसे आपको समझना चाहिए-----इस वक्त हम एक-एक व्यक्ति को अलग-अलग सच्चाई बता नहीं सकते और भीड़ सुनेगी नहीं, समझेगी नहीं-कल सुबह अलग--अलग, अपने--अपने घरों में जब लोग सच्चाई जानेंगें और समझेंगे भी…ऐसा जाहिर करेंगे जैसे आज के जलूस में वे थे ही नहीं—
कोई सडक पर नहीं अाएगा, भीड नहीं लगेगी तो बलवा भी नहीं होगा-यदि किसी छोटे-मोटे संगठन ने भीड जुटाने की कोशिश भी की तो उसे जासानी से दबाया जा सकता है ।"




"यानी आज हम सारे दिन अपने खिलाफ नारे लगने, दें-गातियां सुनते रहें लोगों का यह सब कहना सहन करते रहे जो हमने नहीं किया ?"



"मजवूरी है गुप्ताजी, इतनी मदद तो कानून की आपकी करनी ही चाहिए और फिर, दूसरे लोगों की तरह अगर हकीकत अभी आपको भी नहीं बताईं जाती तब भी तो यह सब आपको सहन करना ही पडता ?"



'"तो फिर हमे हकीकत बताई ही क्यों गई ? "




" उच्चाधिकारियों की बैठक का नतीजा यह निकला कि , जब सच्चाई यह पत्र है तो गुप्ताजी के बेगुनाह परिवार को बेवजह उस तनाव में क्यों रखा जाए जिसमें रखने का कमसे कम हकीकत खुलने के बाद पुलिस को कोई हक नहीं है, अतः जिस क्षण से यह स्कैंडल उठा है उसी क्षण से अाप लोग जिस तनाव में हैं उससे मुक्त करने के लिम केवल आपको वास्तविकता बताने का निश्चय किया गया । "



" मगर चीरघर तो हम जा सकते है? "



"में एक बार फिर क्षमायाचना के साथ कहूंगा कि नहीं-----शहर के ज्यादातर लोग अापको और अापके परिवार के लोगोंको जानते हैं-यदि आप किसी भीढ़ में धिर गए या 'चीरघर पर आपको किसी ने देख लिया तो स्थिति बिगड सकती है ।"




" मगर मुझे तो हुई नहीं जानता । "


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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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जगदीश ने कहा---“में तो चीरघर जा सकता हूं ?" एक पल जाने क्या सोचा गोडास्कर ने, फिर बोता---"अापजा सकते हैं, परंतु याद रखें कल सुबह से पहले न तो आपकी किसी से हकीकत का जिक्र करना ,न ही यह बताना है कि गुप्ता परिवार से अापका क्या संबंध है और यह सब कानून की मदद करने के साथ-साथ आपको अपनी हिफाजत के लिए भी करना है । ' ‘

"जी ! " जगदीश ने सिर्फ इतना ही कहा !
जेब से सुचि के पत्रों का गट्टा निकालकर हेमन्त की तरफ बड़ाते हुए गोडास्कर ने कहा----"' अपनी अमानत संभालिए मिस्टर हेमन्त--------इन्हें पढ़ने के बाद इतना ही कह सकता हूं कि मुझे आपके दाम्पत्य जीबन पर फख्र है-इत्तने मधुर संबंध कम लोगों के होते हैं ।"



"थैक्यू !"कहकर हेमन्त ने पत्र ले लिए !



यह सोचकर उन सबकी बाछे खिल गई थीं कि पत्रों के रूप में उनके विरुद्ध एकमात्र जो सबूत गोडास्कर के कब्जे में था उन्हें भी उसने लौटा दिया है-अपनी खुशी को बडी मुश्किल से दबाए अमित ने पूछा--"क्या उन दोनों पत्रों के संबंध में एक्सपर्ट की रिपोर्ट आ गई है ?"



"जी हां और वह भी आपकी फेवर में है । "


" क्या मतलब ?"



अपनी रिपोर्ट में एक्सपर्ट ने साफ लिखा है कि दोनों पत्र भिन्न व्यक्तियों द्वारा लिखे गये है !"



हेमन्त का दिल-चाहा कि झपटकर गोडस्कर का मुहं चूम ले !
" हा---हा---हा !" हेमन्त गगनभेदी कहकहों के साथ हंस रहा था--खुश सभी थे, मगर हेमन्त तो पागल ही हुआ जा रहा था-गोडस्कर के कुछ देर बाद जगदीश चीरघर चला गया और उसके जाने के बाद तो जैसे वहां दीबाली मनाई गई ।"



हेमन्त निरंतर हंसता चला गया ।



इतनी देर तक कि बिशम्बर गुप्ता चौंक पडे, हेमन्त को झंझोढ़ते हुए चीख पडे़ वह----"हेंमन्त---हेमन्त---संभालो खुद को-खुशी से कहीं पागल ही न हो जाना । "



" हा---हा---हा.......आपने देखा बाबुजी…मैँ कहता था न कि मेरी स्कीम सफल होगी-----मैं कामयाब हो गया------गोडास्कर हार गया बाबूजी--------आपकी पुलिस, आपका कानून हार गया-----वही सोच रहे हैं जो मैंने चाहा. . .हा. . .हा. . .मैंने कहा था न बाबूजी कि पुलिस और कानून उस झूठ को सच मानते हैं जिसके सबूत है. . . .उस सच को झूठ जिसके सवूत नही । "


"मान गए कि-तुम ठीक कहते थे । " बिशम्बर गुप्ता बोले----"' खुद क्रो संभालो बेटे------झूठ को सच साबित करके इतना खुश होने की जरूरत नहों-----खुश उस दिन होना जब सच को सच साबित करो------तुम्हें समय मिला है-----यह जानने का समय कि सुचि किस चक्कर में उलझी हुई थी-------बीस हजार का उसने क्या किया-------अगर वह ब्लैकमेल होरही थी तो , ब्लेकमेलर कौन है-उसने आत्महत्या क्यों कि ?"





"हां । " हेमन्त ने चौंककर एक झटके से कहा----"मैं यह सव पता लगाकर रहूंगा--------ब्लैकमेलर के दुकड़े-दुकड़े कर दूंगा मैं----------अपनी सुचि की मौत का बदला उससे लेकर रहूंगा--अब मुझे मौका मिला है, सुचि के हत्यारे को मैं पाताल से भी खोज निकालूगा ।"



बिशम्बर गुप्ता के चेहरे पर छाया तनाव कम होता चला गया ।
जगदीश रात के आठ बजे चीरघर से लौटा उसने बताया कि पोस्टमार्टम हो चुका है पोस्टमार्टम रिपोर्ट कल पता लगेगी । खुशीसे झूमते हुए बिशम्बर गुप्ता ने कहा-----" पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में होता ही क्या है-डाक्टर सिर्फ यह बताता है कि मुत्यु कब और कैसे हुई-----जाहिर है कि कल रात किसी समय सुचि ने गले में फंदा डालकर आत्महत्या की…रिपोर्ट भी यहीँ बताएगी यह नहीं कि आत्महत्या सुचि ने अपने कमरे में की या उस पेड़ पर लटककर अत: हमें किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है ।



बात बिशम्बरं गुप्ता को जमी ।



सारी रात विना किसी नए हंगामे के आराम से गुजर गई !


सुबह !


पाच बजे !



नियमानुसार बिशम्बर गुप्ता को बिस्तर छोड़ देना चाहिए था परंतु आज ऐसा नहीं हुआ--परिवार के अन्य सदस्यों कीं तरह लिहाफ में दुबके वे अब भी लम्बे-लम्बे खरटि भर रहे थे और ऐसा शायद इसलिए था, क्योंकि पिछली रात इनमें से कोई भी सो नहीं पाया था, बल्कि अमित वेचारा तो दो रात का जगा हुआ था ।


दूसरे !


जब वे सोए, दिमाग चिंतामुक्त भी थे ।


हां-जगदीश की स्थिति जरूर भिन्न थी, सो दूसरी बार~कॉलबेल के चीखने पर उसकी नींद टूटी--जल्दी से उठा । "



"जीजाजी------जीजाजी !" उसने विशम्बर गुप्ता को झंझोडा़ तो वह हड़बड़ाकर उठ बैठे------इसके बाद ललिता, अमित और हेमन्त को भी उसी तरह झंझोड़क़र उठाया गया…यह सोचकर सभी के चेहरों पर आंतक फेल गया कि इतनी सुबह कौन हो-सकता है, जबकि उस आतंक को देखकर हेमन्त ठहाका लगा उठा, बोला------" चेहरों पर बारह क्यों बजा रखे हैं अब हमारे लिए डरने जैसी बात नहीं है !"


कोई कुछ न बोला, कॉलबेल पुन: घनघनाई ।



"मैं खोलता हूं दरवाजा, इंस्पेक्टऱ शायद आज का अखबार लेकर आया है । " कहने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया। '



जाने क्यों--अज्ञात अांशकाओं से धिरे उनके दिल धाड़-धाड़ करके बज रहे थे----चेहरों पर हवाइयां और मन कुछ बोलने को न कर रहा था !



"क...क्या हुआ बाबूजी---कौन अाया है ?" हाथ दाएं-बाएं फैलाए अपने इर्द--गिर्द टटोलती रेखा ने ड्राइंगरूम में कदमं रखा-तड़पकऱ ललितादेबी उसकी तरफ झपटीं और सहारा देती हुईं बोली----"तु-बिस्तर से क्यों उठ गई बेटी ? "


उधर !


दरवाजा खोलते ही हेमन्त को गोडास्कर के दर्शन हुए है हेमन्त के दिमाग में एक ही बात आई--------------कम्बख्त सोता भी है या नहीं ???

"हैलो मिस्टर हेमन्त ! " गोडास्कर का व्यंग्यात्मक स्बर ।


"हैलो, गुड मार्निंग इंस्पेक्टर । " कहते हुए हेमन्त की नजर उसके साथ आई फोर्स पर पडी़ और इस, क्षण उसका
माथा ठनक गया-इतनी फोर्स के साथ वह पहली बार अाया था-मकान के ठीक सामने दो जीपें और एक पुलिस एम्बेसडर खड़ी थी ।


हेमन्त के मुंह से अभी कोई आबाज निकल पाई थी कि गोडास्कर ने अपनी बगल में खडे़ अफसर का परिचय दिया ---- " इनसे मिलो हेमन्त , यह हमारे एस.पी सिटी आर.एन शुक्ला हैं !"
दिमाग घूम गया हेमन्त का।


असामान्य फोर्स और एस. पी. की मौजूदगी ने उसे हजार शकाओं में घेर लिया, परंतु स्वयं को सामान्य दर्शाते हुए हाथ जोइ दिए । गोडास्कर ने बत्ताया------"इन्हीं की दरियादिली कल सुचि की लाश की बरामदगी की सूचना सिर्फ तुम्हें दी गई थी । "



"ह.....हम आपके एहसानमंद हैं शुक्लाजी ।" हेमन्त बड़ी मुश्किल से कह सका---"दरअसल सुचि के गायब होने से ही क्योकि सारा शहर हम पर शक कर रहा था, इसीलिए हम लोग जबरदस्त टेंशन में थे और अापने हमें उस टेंशन से मुक्त किया !*


मिस्टर शुक्ला कुछ बोले नहीं ।



जिस आज में वे हेमन्त को घूर रहे थे उस अदाजं को देखकर हेमन्त के प्रान खुश्क हुए जा रहे थे , जबकि गोडास्कर ने कहा-----" क्या हम लोंगों को यहीं खड़ा रखेंगे मिस्टर हेमन्त ?"



"ओह सॉरी…अाईए , अंदर अाइए ।"



इस तरह, वे लोग अंदर प्रविष्ट हो गए-हेमन्त को लगा कि कुछ सशस्त्र सिपाही दरबाजे पर रुक गए हैं----उसने महसूस किया कि पुलिस मकान के चारों तरफ घेरा डाल रही हेै----ऐसा महसूस करते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए थे कि इस संबंध में लह कुछ पूछ नहीं सकता था !



वे ड्राइंगरूम में पहुंचे ।


बिशम्बर गुप्ता जगदीश ललितादेबी , रेखा और अमित वहां किसी संगतरांश द्वारा तैयार कीं गई मूर्तियों के समान खडे़ थे, एकाएक रेखा ने कहा-----"वया बात है मम्मी…कोई . खतरा तो नहीं हैं ?"


हेमन्त के छक्के छुट गए, यह सोचकर वह कांप उठा कि पुलिस के आगमन से अनंभिज्ञ रेखा कहीं कोई ऐसा वाक्य मुंह से न निकाल दे, जो उनकी सभी कारगुजारियों का पर्दाफाश क़र दे, अत जल्दी से बोला----"बैठिए एसपी साहब, अाप भी बैठिए इंस्पेक्टर ।"



"क....क्या पुलिस अाई है मम्मी ?"
"हां बेटी ?" ललितादेवी ने कहा---"'मगर अब डरने की कोई बात नहीं है, पुलिस बहू की आत्महत्या का असली कारण जान चुकी है !"



शुक्ला या गोडास्कर में से कोई भी बेठा नहीं था, व्यग्र हेमन्त ने सवाल किया-----"आज का अखबार सबके सामने हमारी स्थिति साफ कर देगा न इंस्पेक्टर ? "



"बेशक !" गोडास्कर ने कहा---"'मगर सुबह का नहीं, शायद आज शाम का अखबार सारे शहर के सामने इस केस की असलियत रख देगा !"



" शाम का क्यों, आपने तो कहा था कि अाज सुबह का अखबार ?"



" अभी हम लोगों की इनवेस्टीगेशन पूरी नहीं हो सकी है मिस्टर हेमन्त ! " उसका वाक्य बीच ही में काटकर गोडास्कर ने कहा------"हम लोग आपके मकान की तलाशी लेना चाहते हैं।"



"ह...हमारे मकान की । " हेमन्त उछल पडा---" क....कयों ?"



"इनवेस्टीगेशन पूरी करने के लिए । "



"म. ..मगर । हकलाते हुए बिशम्बर गुप्ता बोले…"हमारे मकान की तलाशी से अब आपकी इंनवेस्टीगेशन का क्या ताल्लुक रह गया हेै…आप लोग तो जान चुके है कि...।"




"बात दरअसल यह है गुप्ताजी कि अभी तक हमे शंकर का कुछ पता नहीं लगा है, मुमकिन है कि सुचि ने मकान में कहीं शंकर के बारे में कुछ लिखकर छोड़ रखा हो ? "



"म.....मगर तलाशी तो तुम कल ही ले चुके हो ? "



"केवल सुधि के सामान और उसके कमरे की ।" गोडास्कर का सपाट लहजा---"'जबकि आज हम आपके पूरे मकान की तलाशी अच्छी तरह लेना चाहते हैं "



"उससे क्या होगा ?"


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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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"क्या आपको हमारे तलाशी लेने से कोई आँब्जेक्शन है ? " काफी देर से खामोश खडे़ शुक्ला ने एकाएक पूछा तो हेमन्त बोल उठा----"ब...बिलकुल नहीँ…हमें भला क्या आँब्जेक्शन हो सकता है, परंतु...... . । "
" परंतु ? "



"ब.. .बात कुछ समझ में नहीं अाई अगर शंकर के बारे में सुचि ने कुछ लिखकर छोड़ रखा होता तो उसके कमरे या सामान में ही होता-----"मकान की तलाशी से क्या होगा ?"




"आप इन सवालों पर सोचकर अपना दिमाग खराब न करें !" शुक्ला का स्वर बेहद कठोर था-----"यह सब सोचना पुलिस का काम है अाप सिर्फ यह बताइए कि हमें तलाशी की इजाजत दे रहे हैं या सर्च वारंट की जरूरत है ? ”



"सर्च वारंट का अंड़गा अपने बचाव के लिए अपराधी डालते हैं सर । " गोडास्कर ने कहा---" जो बेगुनाह हो, उन्हें भला पुलिस को सहयोग देने मैं क्या आपत्ति हो सकती है,क्यों मिस्टर हेमन्त--क्या मैं गलत कहरहा हूं ?"



"ब...बिलकुल नहीं । " अपने ही शब्दों के जाल में फंसे हेमन्त को कहना पडा…"हमे भला क्यों आपत्ति होने लगी-अाप शौक से तलाशी लीजिए !"




"काम शुरु करो गोडास्कर ।" शुक्ला ने उसे हुक्म दिया और गोडास्कर ड्राइंग-रूम में मौजूद आधे सिपाहियों को लेकर मकान के भीतरी भाग में चला गया-हेमन्त ने महसूस किया कि जो सिपाही यहां बचे हैं वे परिवार के सभी सदस्यों के चारों तरफ ऐसे अंदाज में फैल गए हैं जैसे घेरे में ले रहे हों !!!!



हेमन्त को आसार अच्छे नहीं लगे !!



पुतिस की कार्यवाही और रवैया इतना संदिग्ध था कि जगदीश सहित सभी के चेहरे खुद-ब-खुद 'फक्क' पड गये-----अमित और ललिलादेबी के चेहरों पर हवाइयां उड़ रहीं थी-------बिशम्बर गुप्ता को काटो तो खुन नहीं !


रेखा बेचारी सस्पैंस में फंसी खड़ी थी !



हेमन्त को लग रहा था कि कहीं-न-कहीं-कुछ-न-कुछ गड़बड़ जरूर होगई है ।


लेकिन कहां ?


क्या ?



उसकी समझ में कुछ न आ सका ।


सारी स्कीम में कहीं भी तो कोई 'लूज प्वॉइंट' नहीं था----योजना पूरी तरह कामयाब थी----कहीं,, किसी गडबड़ की संभावना नहीं ----- फिर, पुलिस के इस बदले हुए रवैये और संदिग्ध कार्यवाही की आखिर वजय क्या है ?
करीब तीस मिनट बाद जब गोडास्कर ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तब उसकी भूरी आंखों में गजब की चमक थी, होंठों पर सफलता से लबलंबाई मुस्कान !



शुक्ला ने पूछा-----"कुछ मिला गोडास्कर ?"



"इन्हें ऊपर ले चहिए, सर, मकान की छत पर ।"



" क.....क्या है वहां ?" हेमन्त पागलों की तरह सीख पड़ा ।



गोडास्कर ने बडे शांत स्वर में कहा…" "चलकर अपनी आंखों से देखलें तो बेहतर होगा ।"


इस तरह घर का हर सदस्य अजीब सस्पैस में फंस गया ।


उन्हें ठीक इस तरह छत पर ले जाया गया जैसे वे सब पुलिस की हिरासत में हों---------सूरज शायद उदय होना चाहता था-----पूर्वी गगन लालिमा से ओत प्रोत हो चुका था और वातावरण में फैल चुका था सुरमई प्रकाश ।



" पानी की उस टंकी को चैक करिए सर । ' गोडास्कर ने शुक्ला को टॉर्च देते हुए कहा-----"सारी गुत्थियां खुद-ब खुद सुलझ जाएंगी । "



सस्पेंस की ज्यादती बिशम्बर गुप्ता और हेमन्त आदि को पागल किए दे रही थी----दिल जोर …जोर से पसलियों पर चोट कर रहे था-----यह बात उनकी समझ में न आकर दे रही थी कि पुलिस आखिर चाहती क्या है…एकाएक ही उनकी स्थिति हिरासतियों सी किस बजह से होगई है और पानी की उस टंकी में आखिर है वया़ ?
आवाज़ किसी के मुंह से न निकली । शुक्ला लोहे की सीढी़ पर चढ़ गया--पानी की टंकी का ढक्कन गोडास्कर ने शायद उसी के लिए खुला छोड़ दिया-था--------शुक्ला ने टॉर्च की रोशनी में टंकी का निरीक्षण किया, कुछ देर तक ध्यान से न जाने क्या देखता रहा-----हेमन्त सस्पेंस के कारण मरा जा रहा था, जबकि एकाएक शुक्ला के मुंह से निकला------मार्वलस गोडास्कर-इन चीजोंकी यहां मौजूदगी ने सब कुछ साबित कर दिया ।



" क्या है वहां !" आतंक और दहशत में फसा हेमन्त इस बार चीख ही जो पड़ा--"क्या साबित हो गया है, आप लोग हमें भी तो कुछ बताइए ।"




"अब अनजान बनने की कोशिश से कोई फायदा नहीं मिस्टर हेमन्त ।" शुक्ला सीढ़ी से सीधा छत पर कुदता हुआ बोला----" तुम्हारी चालबाजियां, सारी योजनाएं धरी रह रह गई ।"


"'क्या बक रहे हैं अाप ? " हेमन्त दहाड़ उठा----" कैसी स्कीम ? क्या है टंकी में ?"



"अभी मालुम हो जाता है ।" कहने के बाद शुक्ला ने सिपाहियों को पानी की टंकी में मौजूद सामान निकाल लेने का हुक्म दिया और जब सिपाहियों ने हुक्म का पालन किया तो हेमन्त ही नहीं बल्कि बिशम्बर गुप्ता जादि सभी को लकवा मार गया ।


र्किकर्तंव्यविमूढ़ से खड़े रह गए वे ।



टंकी से सुचि अटैची ही नहीं, बल्कि विशम्बर गुप्ता का लाइसेंसी रिवॉल्वर' भी निकला, हेमन्त हलक फाड़कर चिल्ला उठा--" य.....ये सब यहां, पानी की टंकी में ?"


" जी जीहां, आपकी पानी की टंकी में !"



"य. . .ये सब कैेसे हो गया…ये सारा सामान टंकी में कहाँ से आ गया, हम कुछ नहीं जानते इंस्पेक्टर भगवान कसम इस बारे में हम . . ।"



"श...... शटअप !" शुक्ला इतनी जोर से दहाड़ा कि हेमन्त सकपकाकर रह गया-गुप्ता, ललिता, अमित और रेखा कांप गए-जगदीश हक्का-बक्का !"




"तुम लोगों का खेल खत्म हो चुका है। " शुक्ला कहता चला गया--" अब बेहतरी इसी में है कि हर किस्म का नाटक करना वंद करदो।"



"न-नाटक ?" बिशम्बर गुप्ता कह उठे----" हम कोई नाटक नहीं कंर रहे हैं शुक्ला जी, भगवान कसम खाकर कहते हैं, हम नहीं जानते कि चीजे टंकी में कहां से अा गईं !"
"भगबान की कसम खाकर तो आप यह भी कह सकते है कि आपने सुचि की हत्या नहीं की---- अमित और हेमन्त लाश को पेड़ पर टांग कर नहीं अाए । "'



बिशम्बर गुप्ता स्टेचू में बदल गए ।



सभी के साथ-साथ वहुत जोर से गड़गडाकर बिजली हेमन्त के दिलोदिमाग पर भी गिरी, परंतु उसके मुंह से निकला-----'"क-क्या मतलब ?"



शुक्ला ने कहा-----"इसे मतलब समझाओ गोडास्कर, यह बेवकूफ अब भी यही समझ रहा है कि हम उसी गलतफहमी के शिकार हैं, जो इसने फैलाई थी ।"




गोडास्कर ने कहना शुरू किया----" सचमुच तुम लोगों ने केबल एक स्कीम बनाई मिस्टर हेमन्त बल्कि उस पर ऐसी सफाई से अमल भी किया कि मैं धोखा खा गया-----यह स्वीकार करने में मुझे कोई हिचक नहीं कि लाश मिलने पर मैं तुम्हें निर्दोष समझने लगा-था----जिस धारा में पुलिस को तुम बहाना चाहते थे उसी में बहता हुआ यह समझ बैठा कि सुचि ने शंकर नाम के ब्लेकमेलर से त्रस्त होकर आत्महत्या कर ली है, सैं तुम्हारी कल्पनाओं के घढ़े गए काल्पनिक शंकर की तलाश में जुट गया था, परंतु तभी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने सारी कलई खोल दी ?"


'"प…पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ?"



" जी ,हां ।" गोडास्कर का स्वर व्यंग्य में डूब गया----"रिपोर्ट में साफ लिखा था कि सुचि की हत्या दस्ताने युक्त हाथों ने गला घोंटकर की है, ,रस्सी का फंदा जीती-जागती सुचि के गले में नहीं, बल्कि लाश के गले में डाला
गया ।"




"य. . .यह आप क्या कह रहे हैं ?"



"रिपोर्ट पढकर मैं चौंक पड़ा, क्योंकि अगर यह हत्या थी तो सुचि द्वारा लिखा गया इतना लम्बा सुसाइड नोट कहां से आ गया------मैं फोरन पोस्टमार्टम बाले डॉक्टर से मिला---------उसने दुढतापूर्वक अपनी रिपोर्ट का समर्थन करते हुए कहा कि यह केस किसी भी हालत में आत्महत्या का नहीं हैं, क्योंकि यदि पेड़ पर फंदे में झूलने के बाद सुचि ने अपने पैरों से चट्ठे की ऊपरी ईटें हटीई होती तो उसके पैर में कहीं चोट का निशान जरूर होता
जबकि लाश के पैर के अंगूठे पर कहीं हल्की खरोंच तक नहीं है---------डॉक्टर ने दावा किया गला घोंटकर सुचि की हत्या करने के बाद हत्यारे ने लाश के गले में फंदा डालकर पेड़ पर इस मंशा से, इस ढंग से लटका दिया है कि पुलिस इसे आत्महत्या का मामला समझे----------वास्तव में सुचि रस्सी के फंदे से नहीं, बल्कि किन्हीं मजबूत हाथों द्वारा गरदन दंबाए जाने के कारण मरी है ।"


हेमन्त मूर्ति के समान खड़ा रह गया ।


गोडास्कर कहता चला जा रहा था-------डॉक्टर के दावे ने मेरा दिमाग घुमाकर रख दिया, क्योंकि उसकी रिपोर्ट पर संदेह नहीं किया जा सकता और अगर यह आत्महत्या नहीं थी तो सुचि के अंतिम पत्र का क्या मतलब था-----डाँक्टर के यहां से उठकर मैं सीधा राइटिंग एक्सपर्ट के पास गया-अपनी रिपोर्ट में सिर्फ उसने यह लिखा था कि मेरे द्वारा दिए गए दोनों पत्र भिन्न व्यक्तियों ने लिखे हैं…मैंने उससे पूछा कि इनमें से कौंन-सा पत्र "वास्तविक राइटिंग'' में है और कौन-सा नकल की गई राइटिंग में एक्सपर्ट ने तुम्हारा पत्र निकालकर कहा ---कि यह फर्जी है, बस-----फिर क्या था-----मैं ये समझ गया कि तुममे से कोई राइटिंग की नकल मारने में माहिर हेै------चैक करने वाद एक्सपर्ट ने यह भी बता दिया कि लाश से बरामद पत्र उन्हीं हाथों ने लिखा , जिन्होंने तुम्हारा दिया पत्र-----सुचि की वास्तविक राइटिंग को नकली और नकली को वास्तविक साबित करने की तुम्हारी कोशिश की कलई खुल गई-----मेरे सामने शीशे की तरह यह बात साफ थी लाश तुम्ही ने वहां पहुंचाई है और सुसाइड नोट वाला पत्र भी तुम्हीं ने लिखवाकर वहां रखा है और उसका मजमून पुलिस को वास्तविक लाइन से भटकाने वाला, कल्पनाओं का सहारा लेकर बनाया गया । "


खेल--खत्मा !


ये दो शब्द हेमन्त के साथ-साथ बिशम्बर, ललिता, अमित और रेखा के जेहन से टकराए, जबकि गोडास्कर अब भी कहता चला जा रहा था---''मैँ समझ गया कि मुजरिम अाप लोग हैं, ब्लेकमेलिंग की कहानी सिरे से काल्पनिक है, मगर अभी सबूत-जुटाने वाकी थे------मैं बस अड्डे पर गया--------
पुछताश--करने पर पता लगा कि बुलंदशहर से खुर्जें तक के जो टिकट तुमने मुझे दिए वह उस बस के थे, जो सुबह साढ़े चार बजे बुलंदशहर से होती हुई खुर्जा जाती है, उसके कंडक्टर का कहना है कि कल बस में बुलंदशहर से खुर्जा तक की दो सवारियां कम थीं-खुर्जे बुंलदशहर के टिकट तुमने खुर्जें से यहां अाई दो सवारियों से खरीदे थे----इसी तरह एक ऐसे कार मालिक ने जिसके पास गैराज नहीं है, पुलिस में रपट लिखवाई कि रात जब उसने फुटपाथ पर गाडी खड़ी की थी तो मीटर में रीडिंग और थी…सुबह कुछ और अत: उसे शक है कि रात के समये किसी चोर ने फुटपाथ से गाड़ी चुराई, सारी रात इस्तेमाल की और सुबह होने से पहले ही यथास्थान खडी कर दी-----यह गाडी मैंने डॉक्टर अस्थाना को दिखाई, उनका बयान है कि रात पेशेंट को इसी गाड़ी में लाया गया था--इन सब जानकारियों के बाद मेरे दिमाग में बिलकुल स्पष्ट हो गया कि लाश को वहां पहुंचाने के लिए अापने इसी गाडी का इस्तेमाल किया, परंतु तुम्हारी पूरी कार्यप्रणाली अब भी ठीक से नहीं समझ सका था----सुचि की उस अटैची की तलाश थी मुझे, जिसे तुम लोग गायब बता रहे थे-अब से करीब डे़ड़ घंटा पहले एस.पी. साहब की कोठी पर जाकर इनसे मिला-सारी सिच्युएशन बताईं------इन्होने कहा कि अटैची गुप्ता के मकान ही में कहीं होनी चाहिए---सो आपके सामने है।"




प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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