दुल्हन मांगे दहेज complete

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Jemsbond
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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गधों को पी.ए.सी के जावनों ने अपने घेरे में ले रखा था !


गोडास्कर इस घेरे का नेतृत्व करता सा अागे-जागे चल रहा था----भीड़ को चीरकर कर्नल जयपाल अागे आ गया----जाने कहां से वह अपने हाथ काले कर लाया था, चीखकर गोडास्कर से बोला--" मुझे कभी रिश्वत न लेने बाले इस मजिस्ट्रेट का मुंह काला करना है इंस्पेक्टर । "



" नहीं , इजाजत नहीं है ।" मगर कर्नल ना माना ।


गोडास्कर से जिद करता ही रहा वह-उसके समर्थन में ढेर सारे लोग जुट गए और विवश गोडास्कर को उसे इजाजत देनी पडी़ गुस्से की ज्यादती के कारण पागल-सा हुआ जा रहा जयपाल अपने काले हाथ लिए, गधे परे बैठे बिशम्बर गुप्ता के सामने जाकर चीखा-----" हकीकत यह है बिशरम्बर----- ये है असली चेहरा !"


कहते हुए उसने बिशम्बर गुप्ता का चेहरा काला कर दिया ।
रास्ते में जाने कितने लोग, कहां से अपने हाथों में स्याही लगा लाए और कुछ ही देर बाद ललिता देवी तथा हेमन्त के चेहरे भी काले नजर आ रहे थे !


उफ !


इतनी जिल्लत-----इतना अपमान !


वह भी उस शख्सियत का जिसके सामने कभी किसी ने आखें उठाकर बात नहीं की ----- बिशम्बर गुप्ता सह न सके ------ कोर्ट पहुचने से पहले ही उनके दिल में दर्द की तीव्र लहर उठी----हथकडियों युक्त हाथों से उन्होंने सीने को भींचा ।



ललितादेवी के अलावा किसी का ध्यान उनकी तरफ न था !




कुछ देर तक वे गधे पर बैठे दर्द के कारण तड़पते रहे और फिर गथे से नीचे गिर गए--पी.ए.सी. के जवान उन्हें उठाने के लिए लपके मगर सड़क पर पडे़ वे जल बिन मछली के समान तड़प रहे थे।

"कोई डॉक्टर को बुलाओ-इन्हे दिल का दौरा पड़ा है शायद ।" पी.ए.सी. के जवान का वाक्य पूरा होते-होते बिशम्बर गुप्ता का जिस्म ठंडा पड़ गया ।
"दहेज के लोभी------हाय हाय !"


" बहू के हत्यारे------हाय हाय !"


"हत्यारे ससुर को-----बाहर निकालो !"


"कातिल पति--हाय हाय । "



"अरे हत्यारी सास को-फांर्सीं दो ।"



थाने के आसपास का इलाका इस किस्म के जाने कितने नारों से थर्रा रहा था-लोग वहुत उत्तेजित थे-जबरदुस्त भीड़ ।



ऐसा महसूस देता था कि जैसे सारा शहर सिर्फ और सिर्फ थाने के बाहर इकट्ठा हो "गया" है--उनकी गिरफ्तारी का समाचार पेट्रोल पर दौड़ने बाली आग के समान सारे शहर में फैल चुका था-साथ ही यह भी कि जब पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची तो हत्यारा देवर भागने के प्रयास में मारा गया ।


सुनकर किसी को हमदर्दी न हुई ।


थाने के अंदर ललितादेवी और रेखा दहाड़ें मार-मारकर रो रही थीं----हथकडि़यों में जकडे़ हाथों से कई बार रेखा ने पागल होकर अपने चेहरे की पट्टियां खोल डालने की असफल कोशिश की !



बिशम्बर गुप्ता आश्चर्यजनक रूप से शांत थे ।



हेमन्त के मुंह से कोई अाबाज न निकल रही थी पर आंखों से उबलते हुए गर्मपार्मं अांसू लगातार बह रहे थे नहीं जानता था कि ये अांसू अमित के लिए हैं या उन नारों की प्रतिक्रिया, जो इऩके कानों तक पहुंचा रहे थे ?




दस बजे तक थाने के बाहर इतनी भीड़ जमा हो गई कि अतिरिक्त फोर्स भी अब उस पर काबू पाने में असमर्थ थी---_---हर तरफ उत्तेजना ।



दहकते हुए नारे ।



गोडास्कर ने फोन पर किसी पुलिस अफसर को रिपोर्ट दी----"भीड़ बेकाबू और हिंसक होती जा रही है सर, अगर इनकी मांगें न मानी गई तो ये लोग थाने पर पथराव कर सकते हैं-----तोड़ फोड़ कर सकते हैं, कुछ भी हो सकता है सर ।"



"क्या मागें इन लोगों की ?"



"कुछ लोग जाने कहां से तीन चार गधे पकड़ लाए हैं सर, भीढ़ उन गधों पर बैठाकर सारे शहर में इनका जुलूस निकालना चाहती है ! "




थोडी देर के लिए दूसरी तरफ खामोशी छा गई, फिर कहा गया----"कोर्ट का टाइम हो गया है गोडास्कर----तुम ऐसा करो कि जिस तरह पब्लिक चाहती है यानी इन लोगों को एक जुलुस की शक्ल में लेकर कोर्ट पहुंचों !"



"स.....सर रेंखा ।"

"उसे जुलूस से अलग रखो अौर सुनो, इन लोगों के चारों तरफ सारे रास्ते तुम्हें पुलिस का ऐसा सशक्त घेरा रखना है कि कोई उनमें से किसी ऐसा नुक्सान न पहुंचा सके कि कल पुलिस के लिए कोर्ट के सबालों का जवाब देना मुश्किल हो जाए । "
" वह तो ठीक है सर, लेकिन ।"



" लेकिन ?"



"जुलूस निकालने के लिए मुझे पी.ए.सी की जरूरत पड़ेगी ।"




" हम भेज रहे हैं !" कहने के साथ दूसरी तरफ से रिसीवर रख दिया गया !



गोडास्कर थाने से बाहर निकाला--------भीड़ दुगने जोश के साथ नारे लगाने लगी, वडीं मुश्किल से भीड़ को शांत करके उसने चीखकर घोषणा की कि उनकी मांग मान ली गई है------शोर शराबा उत्तेजना बढ गई-----नारे पुलिस की प्रशंसा में लगने लगे----आबारा लड़के यूं नाचने लगे जैसे उन्हें खजाना मिल गया हो ।



और !



ग्यारह बजे बिशम्बर गुप्ता, ललितादेबी और हेमन्त को थाने से उठाकर बाहर खड़े गधों पर बैठा दिया गया-----जाने किसने उन तीनों के गले में एक--एक पट्टी डाल दी------बिशम्बर गुप्ता के गले में पड़ी पड़ी पट्टी पर बड़े बड़े अक्षर में लिखा था------" मैं सुअर हूं----दहेज का लोभी कुत्ता हूं !"


ललितादेबी के गले में------" मैं सास नहीं चुडैल हूं !"



" मैं पति नहीं हत्यारा हूं ।" यह पट्टी हेमन्त के गले में पडी़ थी !



जलूस चल दिया !



गधों को पी.ए.सी के जावनों ने अपने घेरे में ले रखा था !


गोडास्कर इस घेरे का नेतृत्व करता सा अागे-जागे चल रहा था----भीड़ को चीरकर कर्नल जयपाल अागे आ गया----जाने कहां से वह अपने हाथ काले कर लाया था, चीखकर गोडास्कर से बोला--" मुझे कभी रिश्वत न लेने बाले इस मजिस्ट्रेट का मुंह काला करना है इंस्पेक्टर । "



" नहीं , इजाजत नहीं है ।" मगर कर्नल ना माना ।


गोडास्कर से जिद करता ही रहा वह-उसके समर्थन में ढेर सारे लोग जुट गए और विवश गोडास्कर को उसे इजाजत देनी पडी़ गुस्से की ज्यादती के कारण पागल-सा हुआ जा रहा जयपाल अपने काले हाथ लिए, गधे परे बैठे बिशम्बर गुप्ता के सामने जाकर चीखा-----" हकीकत यह है बिशरम्बर----- ये है असली चेहरा !"


कहते हुए उसने बिशम्बर गुप्ता का चेहरा काला कर दिया ।
रास्ते में जाने कितने लोग, कहां से अपने हाथों में स्याही लगा लाए और कुछ ही देर बाद ललिता देवी तथा हेमन्त के चेहरे भी काले नजर आ रहे थे !


उफ !


इतनी जिल्लत-----इतना अपमान !


वह भी उस शख्सियत का जिसके सामने कभी किसी ने आखें उठाकर बात नहीं की ----- बिशम्बर गुप्ता सह न सके ------ कोर्ट पहुचने से पहले ही उनके दिल में दर्द की तीव्र लहर उठी----हथकडियों युक्त हाथों से उन्होंने सीने को भींचा ।



ललितादेवी के अलावा किसी का ध्यान उनकी तरफ न था !




कुछ देर तक वे गधे पर बैठे दर्द के कारण तड़पते रहे और फिर गथे से नीचे गिर गए--पी.ए.सी. के जवान उन्हें उठाने के लिए लपके मगर सड़क पर पडे़ वे जल बिन मछली के समान तड़प रहे थे।

"कोई डॉक्टर को बुलाओ-इन्हे दिल का दौरा पड़ा है शायद ।" पी.ए.सी. के जवान का वाक्य पूरा होते-होते बिशम्बर गुप्ता का जिस्म ठंडा पड़ गया ।
बिशम्बर गुप्ता की मृत्यु की खबर भीड़ में तेजी से फैल गई और इस खबर से सिर्फ इतना फर्क पड़ा कि नारे लगने बंद हो गए-दहेज के लोभी, बहु-के हत्यारों से सहानुभूति अब भी किसी को न थी ।


करीब तीन बजे उन्हें अदालत में पेश किया गया ।


मजिस्ट्रेट ने सूचना दी----" यह जानकर शायद अाप लोगों को दुख होगा कि श्री बिशम्बर गुप्ता का देहांत हो गया है, डाक्टरी रिपोर्ट के मुताबिक दिल का दौरा पढ़ने से उनकी मृत्यु हुई !"



कटहरे में खड़ी रेखा फूट फूटकर रो पड़ी ।


हेमन्त गर्दन झुकाये चुपचाप आंसू बहा रहा था और कटहरे में खड़ी ललितादेबी पर इस समाचार की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई----वह आंखें फाड़े, लगातार--पागल की तरह मजिरट्रेट तरफ देखती रही----कुछ ऐसे अंदाज़ में कि एक बार को तो न्यायाधीश महोदय भी सकपका गए!



कुछ देर बाद न्यायाधीश ने उनसे सवाल क्रिया-----" आपने गला घोंटकर अपनी बहूकी हत्या की है ललितादेबी ?"



ललितादेवी हंस पड़ी ।


एक बार उन्होंने हंसना शुरू किया तो फिर हंसती चली गई-----बड़े ही डरावने अंदाज में हंस रही थी वह और समूचा अदालत कक्ष उनकी हंसी से कांप उठा ।



हेमन्त ने चौंककर उनकी तरफ देखा!



उन्हें ध्यान से देखते हुए न्यायाधीश महोदय ने अपना सवाल दोहराया--जवाब दीजिए ललितादेवी-सुचि का गला आपमें से किसने घोंटा ?"




"हा--हा--हा--हा-मैंने घोटा था उसका गला----मैंने मारा है उसे-हा-हा-हा-मुझे दहेज चाहिए----वह हरामजादी दहेज नहीं लाई थी---हा--हा----जो दहेज नहीं लाएगा मैं उसे मार डालूंगी-----मैं तुझे भी मार डालूंगी-------ह्वा-- हा--तूने मुझे दहेज नहीं दिया तो तुझे भी खत्म कर दूंगी----------मैं सास नहीं चुडैल हूं------हा--हा---मैं चुडैल हूं-मुझसे बचकर रहो-----मैं सबको खा जाऊंगी---- हा---हा !"


"मम्मी-मम्मी । " हेमन्त हलक फाढ़कर चिल्लाया ।



ललितादेवी उस चिल्ला उठी----"चिल्लाता क्या है---तेरे चिल्लाने से क्या चुड़ैल डर जाएगी---जिंदा रहना चाहता है तो दहेज लेकर आा-वरना तुझे भी खा जाऊंगी मैं------हा-हा गला घोंटकर खत्म कर दूंगी । "


हेमन्त के जबडें भींच गए, कसमसाकर कटहरे के रैतिंग पर उसने इतनी जोर से मारा कि अदालत कक्ष गूंजकर रह गया, न्यायाधीश ने फैसला सुनाया---"' इस मामले की सुनवाई बिलकुल मुमकिन नहीं हैे----यह सुनबाई बीस तारीख को होगी तब तक के लिए ललितादेवी मेंटल हॉस्पिटल, रेखा को सरकारी अस्पताल और मिस्टर हेमन्त को जेल में रखा जाए--मिस्टर हेमन्त चाहें तो पुलिस की निगरानी में अपने पिता और भाई का अंतिम संस्कार अपने हाथों से कर सकते हैं ।


ललितादेबी के कहकहे अदालत कक्ष मे अब भी गूंजते रहे !"
अगले दिन सुबह !



हाथ में लाठियां लिए पुलिस कर्मियों ने दोनों चिताओं को चारों तरफ से घेर रखा था----कूल्हे पर होलस्टर लटकाए जेलर साहब सादर मुद्रा में एक तरफ खडे़ थे और पुलिस के इसी घेरे के बीच खड़ा हेमन्त देख रहा था अाग की लपलपाती उन लम्बी लम्बी जीभों को जो उसके छोटे भाई और पिता की चिताओं से आकाश की तरफ उठ रही थीं ।



दहकती आग की लपलपाती वे जीभें हेमन्त को मुंह चिड़ाती सी महसूस हो रही र्थी-जब लकडियां चटकतीं तो उसे महसूस होता कि एक-एक करके उसके दिमाग की नसें चटक रही हैं-----निर्दोष पिता और भाई की चिता में अपने हाथों से अग्नि दी थी उसने, मगर अपनी सुचि की लाश के साथ तोऐसा भी नहीं कर सका !



वह लाश दीनदयाल को सौंपी-गई थी ।


चंद पुलिस कर्मियों और जगदीश के अलावा इस वक्त यहां उसका अपना कोई भी तो न था----जिसके अंतिम संस्कार में सारे शहर को शामिल होना चाहिए था उसकी चिता के नजदीक रह गई थी पुलिस-पुलिस का पहरा ।


उसके दिमाग में सवाल उठ रहे थे कि यया मैं अपने पिता की उस प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित कर सकूंगा जिसे "सुचि हत्याकांड'' ने खाक में मिला दिया है--क्या मैं इस शहर के
निवासियों को कभी यकीन दिला सकूंगा कि हमने कभी दहेज नहीं मांगा, सुचि की हत्या नहीं की?


शयद नहीं !



ऐसा करने का कानून मुझे मोका ही कहां देगा ?


अभी हेमंन्त यह सब सोच ही रहा था कि जगदीश ने कहा----"कपाल क्रिया करो बेटे । "



वह चौंका !


एक लाठी लिए आगे बढा ।


महापंडित द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ "कपाल क्रिया" की उसने और अपने छोटे भाई के 'काक' पर लाठी मारते समय दहाड़े मार-मारकर रो पड़ा वह-अग्नि शिखाएं कुछ और भड़ककर उछलने लगी ।


रस्म के मुताबिक चिता के समीप से हटकर वह महापंडित के साथ मंदिर के अंदर गया----जेलर और सिपाही जगदीश सहित बाहर खड़े रहे ।
एक सिपाही के हाथ में वह हथकडी थी जो अतिम संस्कार की रस्में समाप्त होते ही पुन: हेमन्त को पहना दो जाने हैं बाली थी, मगर जब पांच मिनट होग्ए और मंदिर के अंदर से हेमन्त या महापंडित में से कोई भी बाहर नहीं आया तो जेलर का माथा ठनका ।



उसने सवालिया नजरों से इधर-उधर देखा ।


सभी सिपाहियों के चेहरों पर आश्चर्य के चिह्न थे, जब जेलर पर रहा न गया तो उसने जगदीश से पूछा----------"इतनी देर ,क्यों लग रही है !"



‘मैं' भी यही साचकर हैरान हूं !"



जेलर ने ऊंची आवाज में पुकारा-----"हेमन्त !"



कोई जवाब नहीं !


एक सिपाही द्वारा महापडि़त को पुकारा गया ।



सन्नाटा !



"तुम देखो रामकुमार ! " जेलर ने होलस्टर से रिवॉल्वर खींचते हुए हुक्म दिया----"मंदिर के अंदर जाकर देखो कि ये कहां गए ! "



रामकुमार नाम का सिपाही तुरंत जूते उतारकर मंदिर में घुस गया-भीतरी भवन में पहुंचते ही उसके हलक से चीख निकल गई------महापंडित का बेहोश जिस्म शिवलिंग के समीप पड़ा था और मंदिर का पिछला दरवाजा चौपट ।



" ब.....भाग गया है सर !" चीखता हुआ रामकुमार बापस, दौड़ा-------"पंडित को बेहोश कंरके वह पिछले दरबाजे से भाग निकला है!"




"पीछा करों उसका अभी दूर नहीं गया होगा । "



हड़कम्प मच गया ।



भगदड़ ।



मगर हेमन्त श्मशान में कही भी तो न था ।
"अंकल अंकल ।" चीखता हुआ वह कर्नल जयपाल की कोठी के कम्पाउंड में दाखिल हुआ-----बूरी तरह हांफ रहा था वह---वेतहाशा भागता हुआ अंदर दाखिल होना ही चाहता था कि


"मैं यहाँ हूं ।"


हेमन्त की नजर आवाज़ की दिशा में उठ गई----"स्टडी के दरवाजे पर खड़ा कर्नल उसे ही घूर रहा था, हेमन्त -अधीर होकर उनकी तरफ भागा, परंतु अभी वह नजदीक पहुंचा भी न था, कर्नल ने कड़ककर कहा-----''खबरदार हेमन्त, वहीं रुक, जाओ !"



हेमन्त जाम होकर रह गया !



'" कर्नल जयपाल अग्रवाल के घर में मुजरिमों के लिए कोई जगह नहीं है !" उसने हेमन्त को घूरते हुए सख्त स्वर में कहा----" तुम्हें तो इस वक्त जेल में होना चाहिए । "



" मुझे अमित और बाबूजी का अंतिम संस्कार करने की छूट दी थी…किसी तरह वहां से भागकर अापके पास आया हूं !"


" किसलिए ?"


“म. ..मुझे अापसे कुछ बात करनी है अंकल । "



"मुजरिमों से बात करना तो दूर, मैं उनकी परछाईं तक देखना नहीं चहता--यहां अाकर-तुमने बहुत बड़ी भूल की है हेमन्त ।"




" मैं आपकी कसम खाकर कहता हूं अंकल कि हम लोग, निर्दोष हैं…हमने सुचि की हत्या नहीं की--मुसीबत की इस घड़ी में एकमात्र अाप ही मुझे नजर अाते हैं----अाप ही मेरी मदद कर सकते हैं, क्योकि मेरी नजर में अाप ही, सच्चाई के साथी ।"



" हम सच्चाई के साथी हैं, मुजरिमों के नहीं !"



"हम मुजरिम नहीं हैं, एक बार…सिर्फ एक बार मेरी बातें ठंडे दिमाग से सुन लीजिए अंकल । हेमन्त बुरी तरह गिड़मिड़ा उठा…"मुझें यकीन है कि मैं अापको यह यकीन दिलाने में कामयाब हो जाऊंगा कि हम मुजरिम नहीं हैं-----"हमने सुचि की हत्या नहीं की-कोई दहेज नहीं मांगा उससे----------हम किसी षडयंत्र के शिकार हुए हैं-----मैं अापके पैर पकड़ता हूं अंकल-एक-----सिर्फ एक मौका दीजिए, अगर तब भी आपको मुजरिम लगूँ तो बेशक कानून के हवाले का दीजिएगा । "
हेमन्त की गिड़गिड़ाहट में कुछ ऐसा जरूर था, जिससे प्रभावित होकर कर्नल इस बार तुरंत ही दहाड़ा नहीं, वल्कि चेहरे पर कठोरता लिए सिर्फ उसे घूरता रहा…हेमन्त ने पुन: रिक्वेस्ट की तो उसने इतना ही कहा---"आ जाओ ।"



" थ. . .थैक्यू अंकल । कहता हुआ वह उनकी तरफ लपका----वे दरवाजे के बीचोबीच से हट गए----यह हेमन्त को स्टडी में दाखिल हो जाने की इजाजत थी ।


स्टडी के बीचोबीच खड़ा हेमन्त अपनी फूली हुई सांस को नियंत्रित करने की चेष्टा के साथ ही यह भी सोच रहा था कि कर्नल साहब को यकीन दिलाने के लिए उसे बात कहाँ से शुरू करनी चाहिए-----अभी वह निश्चय न कर पाया था कि चटकनी चढ़ाने के बाद जयपाल घूमे, उसे घूरते हुए बोले-----"बैठ जाओ !"


हुक्म का गुलाम-सा वह 'धम्म' से सोफे पर गिर गया ।



उसके नजदीक जाते हुए कर्नल ने पूछा-----"बोलो क्या कहना है तुम्हें ?"



हेमन्त अंजू' के नाम से मिलने वाले टेलीग्राम से शुरु हो गया और फिर ज्यों का त्यों सब कुछ सुनाता चला गया ।


सब कुछ !


यह भी सुचि की लाश घर से निकालकर उन्होंने क्यों और केसे गुलावठी पहुंचाई----भागकर अपने यहाँ अाने तक की पूरी कहानी सुनाने के बाद वह बोला…"सच्चाई यही है अंकल, आपके दिमाग में ऐसे बहुत से सवाल उभर सकते है ! जिनका मेरे पास कोई जवाब नहीं हैं और इसी वजह से आपको लग सकता है कि मैं झूठ बोल रहा हूं --लेकिन यकीन मानिए अंकल---" उस बच्चे की कसम खाकर कहता हूं, जो मेरी सुचि की कोख में पल रहा था कि सच्चाई यही है----इस सच्चाई को साबित करने के लिए मेरे पास कोई ,सबूत नहीं है, लेकिन आप यकीन कीजिएं-मैनै रत्ती बराबर भी झूठ नहीं बोला है । "



" अगर मान लिया जाए कि तुम सच बोल रहे हो तो मैं इसमेँ क्याकर सकता हूं ?
"अदालत मुझे फांसी या उम्र कैद से कम सजा नहीं देगी---जानता हूं कि वहाँ से मुझें न्याय नहीं मिलेगा, क्योकि जो कुछ अापको बताया उसे साबित नहीं का सकता और अदालत मेरे अंकल की नहीं कि बिना सबूत के मुझ पर यकीन कर ले--- उल्टे ऐसे सबूत हैं कि जिनसे मैं हत्यारा साबित हो जाऊंगा, यदि सच्चाई पूछें अंकल तो यह यह है कि इन तीन-चार दिनों में मैं अपना सब कुछ खो चुका हूं---इत्तना कुछ कि जव अदालत से किसी तरह का न्याय पाने की हसरत भी दिल में नहीं है ।"



"फिर क्या चाहते हो तुम ?"




प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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" यह जानना चाहता हूं कि सुचि ने वह झुठा पत्र क्यों लिखा-----वह कौन हैं जिसने सुचि की हत्या करने के बाद लाश हमारे बेडरूम में लटका दी--------ऐसा क्यों किया और सुचि की अटैची, बाबूजी का रिवॉल्वर तथा वीस हजार रुपए पानी की टंकी में कैसे पहुंच गए----अदालत द्वारा दी जाने बाली सजा भोगने से पहले मैं ऐसे ढेर सारे सवालों का जवाब चाहता हुं और इनके जवाब तलाश करने में अाप मेरी मदद कर सकते हैं !


" बेशक मैं तुम्हारी मदद जरूर करूगां !"



" थैंक्यु अंकल----थैक्यु वैरी मच---------मुझे पूरा विश्वास था अाप मेरी मदद जरूर करेगे----जो हो गया उसे बापस नहीं लाया जा सकता-------मैं इस शहर को यह बताना चहता हूं कि जो हुआ वह गलत ही नहीं, अनर्थ हुआ-मरने से पहले मैं इस शहर को बता देना चाहता हूं कि विशम्बर गुप्ता उसी सम्मान----उसी इज्जत के हकदार थे जो सारा शहर 'सुचि स्कैंडल’ से पहले उन्हें देता था---- इस शहर के बच्चे------बच्चे को यह बात समझा देना चाहता हूँ अंकल कि जिन बिशम्बर गुप्ता को अपमानित करके मार डाला गया वे देवता थे है श्रद्धा के पात्र थे----मरने से पहले अपने बाबूजी की खोई हुई प्रतिष्ठा को स्थापित करना ही मेरा लक्ष्य है ।"
''ऐसा तुम नहीं कर सकोगे !" कर्नल साहब का सपाट स्वर ।


" क्यों ?" हेमन्त चोंक पडा----" जब आप मेरी मदद करोगे तो मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकूंगा अंकल ? "


''मैं इसमें तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा । "



"क्यों अंकल ? "


''मैं सिर्फ उन सवालों के जवाब दे सकता हूं जिनकी तुम्हें तलाश है, लेक्रिन विशम्बर की खोई हुई प्रतिष्ठा को स्थापित करने में तुम्हारी कोई मदद नहीं का सकता । '



"मैं समझा नहीं अंकल ऐसा क्यो ?"



"क्योंकि वह आदमी मैं ही हूं जिसने तुम्हे, तुम्हारे सारे परिवार को इस बदतर हालत तक पहुंचाया !" सपाट स्वर में कर्नल साहब कहते चले गये-----" विशम्बर की प्रतिष्ठा धूल में खुद मैंनें मिलाई हेै । "


"अ.. .अाप झूठ बोल रहे है अकल, मजाक कर रहे हैं !"



'"और यह तमन्ना उसी दिन से मेरे दिल में थी जिस दिन बिशम्बर ने सुरेश को फांसी का हुँक्म सुनाया------कुछ भी हो, इंसान चाहे जितना सिद्धांतबादी हो, मगर जवान बेटे की मौत सारे सिद्धांतों को जलाकर राख कर देती है बेटे-----------बिशम्बर गुप्ता के विरूद्ध उसी दिन से मेरे सीने में इंतकाम की अाग धधक रही थी------ना---ना उठने की कोशिश मत्त करो हेमन्त---अगर तुम हिले भी तो मेरे रिवॉल्वर की गोली वक्त से पहले ही तुम्हे हमेशा के लिए शांत कर देगी !"कठार स्वर में कहने के साथ ही कर्नल जयपाल ने अपनी जेब से रिवॉलबर निकालकर उस पर तान दिया ।


गुस्से की ज्यादती से भन्नाता हुआ हेमन्त ज्यों-का-त्यों रह गया ।


"मैं तुम्हें वेहिचक गोली मार दूंगा, क्योंकि उसके बाद भी कानून मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । कर्नल जयपाल गुर्राहटधार स्वर में कहता चला गया-"अपनी और मेरी -स्थिति के फर्क को समझो बेटे--- तुम इस बक्त एक फरार मुजरिम हो-मैं सच्चा और सम्मानित नारिक--मेरा केवल इतना ही बयान काफी होगा कि तुम यहाँ मेरे, द्वारा अपने बाप का मुंह काला किए जाने का बदला लेने अाये थें----मैंने पुलिस को फोन करना चाहा+--मगर तुम बदला लेने पर तुले थे और आत्मरक्षा हेतु मुझें गोली चलानी पड़ी !"


हैरत अौर आंतक से घिरा हेमन्त अवाक् अंदाज में कर्नल के उस चेहरे को देखता रह गया जो इस वक्त उसे किसी खूनी भेडिए के चेहरे जैसा नजर आ रहा था ।
उसे कवर किए कर्नल ने कहा----"किसी पर भी अपना राज खोलने का मेरा कोई इरादा नहीं था, लेकिन जिस अवाज
में तुम मेरे सामने गिड़गिड़ाए-रोए----मदद्ग के लिए चिल्लाए उसने मूझे प्रभावित किया-जी चाहा कि तुम्हें उन सवालों का जबाब दूं, जिनकी तुम्हें तलाश है----काफी सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि अगर में तूम पर बना राज खोल दूं तब भी मेरा कुछ बिगढ़ने वाला नहीं है और इसीलिए निश्चय किया कि कम से कम तुम्हारे सवालों का जवाब तो मुझे दे ही देना चाहिए !"



'"क. ..कुत्ते-हरामजादे !" अाये से बाहर होकर हेमन्त चीख पड़ा---'‘मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था सूअर की औलाद कि वह तू है…मैंने तो ये. . . ।


"'खामोश ।" कर्नल दांत भीचकर गुर्राया'--"अब अगर एक भी लफ्ज जुबान से निकाला तो हलक गोलियों से भरदूंगा----अहर वक्त से पहले मरना नहीं चाहते, अगर अपने सवालों का जबाब चाहते हो तो मुंह पर ताला लटकाकर सूनो-----तुम्हारे बाप पर मैंने यह कभी जाहिर नहीं क्रिया कि मेरे , सीने में इंतकाम की आग धधक रहीं है-----एक न्यायप्रिय और सिद्धांतवादी जिन्दगी होने का मुखौटा चढ़ाए मैंने उससे पुराने संबंध बनाए रखे-यह तुम्हारे बाप की बेवकूफी थी जो वह यह समझता रहा कि एक बाप कभी अपने जवान बेटे के हत्यारे को माफ कर सकता है-तुम्हारे बाप ने इज्जत और सम्मान के अलावा सारी जिदगी में कुछ भी नहीं कमाया था और उसकी यह कमाई सुरेश जैसे ही चंद मुकदमों की वज़ह से थी-मैंने निश्चय किया कि मौका मिलते ही बिशम्बर के उस सम्मान औक प्रतिष्ठा को धूल में मिता दूंगा, जिसके पाए बेटे की लाश पर टिके हैं-----मैं मौके की ताक में था मगर यह कमीना ऐसा कोई काम करता ही न था जिसका लाभ उठाकर इस शहर के, लोगों की नजरों में गिरा सकुं----तभी एक दिन, जव मैं हापुड़ गया तो दीनदयाल की बेटी को एक युवक के साथ पार्क में घूमते देखा…उसके संबंध समझने में मुझे देर न लगी-------वह पहला क्षण था जब मेरे दिमाग में एक स्कीम नाच उठी----एक लम्बी किंतु सशक्त योजना----जिससे मैं अपना बदला ले सकता था ।
कर्नल सांस लेने के लिए रुका ।


हेमन्त सांस रोके सुन रहा था, उसे एक क्षण की इंतजार थी जब कर्नल एक पल के लिए असावधान हो जबकि वह कहता चला गया-----बच्चा भी जानना है क्रि आज के जमाने में अगर किसी परिवार पर यह आरोप लग जाए क्रि उसने अपनी बहू से दहेज मांगा उसकी हत्या की तो जो बेइज्जती होती है, वह किसी अन्य तरीके से नृहीं हो सकती और . बिशम्बर गुप्ता अपनी बहु, से दहेज मांगने, बाला नहीं था-अत: उस दिन के बाद मैं सुचि और उस लड़के के पीछे साया बनकर पढ़ गया, जिसका नाम संदीप था----मैं उनके ऐसे संवेदनशील क्षणों के फोटो खंचिने में कामयाब हो गया, जिनके बूते पर सुचि को जिस तरह चाहूं नचा सकता था-मेरी योजना थी कि किसी भी स्थिति में सुचि की शादी संदीप से नहीं होने दूंगा-----दीनदयाल को बुरी तरह भड़का दूँगा और इसी सुचि को तुम्हारी दुल्हन, बिशम्बर गृप्ता की बहू बनाकर तुम्हारे घर में पहुंचा दूंगा--------जानता था कि सूचि और संदीप एकदूसरे से इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि दीनदयाल को भड़काने के बावजूद अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मुझे काफी दिक्कत पेश अाएंगी, किन्तु मैं अपने इरादों पर दृढ़ था और तभी, कुदरत ने मेरा साथ दिया-संदीप एक कार एक्सीडेंट में मारा गया-सुचि बेचारी छुपकर रोने के इलाबा कुछ न कर सकी-----अब उसे किसी कों यह बताने से भी कोई लाभ न होने बालां था कि कार एक्सीडेंट में मरने वाला युवक वास्तव में उसका गुप्त पति था-अब मेरा काम आसान हो गया------सुचि को तुम्हारी दुल्हन बना दिया…शादी के दिन के कुछ दिन तक शामोश रहा, धैर्य से काम लिया और 'मकडा' बन गया--कुछ ऐसा भेष बनाकर सुचि से मिला कि यह मुझे पहचान न सके-----मेरी एक ऐसी चाल थी कि ससुराल वाले दहेज न मांगे, तो न सही----दुल्हन खुद ही अपने पिता से दहेज मांगे-----संदीप के साथ उसकी फोटुओं ने सुचि से यह पत्र लिखवाया----बीस हजार ऱूपए मंगवाए और अंत में मैंने उसे एक रात के लिए होटल में वुलाया--वह आई, क्योंकि उसे आना ही था------होटल के उसी कमरे में मैंने गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी-------उसी रात बॉंल्कानी वाले दरवाजे से लाश तुम्हारे बेडरूम में पहुंचाई और वहां उसे इस ढंग से टांगा कि जैसे उसने आत्महत्या की हो-----उसका सारा सामान और
विशम्बर का रिवॉल्वर पानी की टंकी में डाल अाया-
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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मेरा ख्याल था कि लाश को देखते ही तुम लोग पुलिस को सूचित करोगे क्रि सुचि ने आत्महत्या कर ली है------------आत्महत्या का कोई कारण न तुम पुलिस को बता सकोगे न पुलिस को मिलेगा------अतः पुलिस की नजरों में संदिग्ध तो तुम इसी क्षण से हो जाओगे----उधर पोस्टमार्टम के बाद पुलिस पर राज खुलेगा कि सूचि की हत्या की गई है, तब तक दीनदयाल भी सुचि का पत्र लेकर पुलिस तक पहुंच चुका होगा, अत: साबित हो जाएगा कि दहेज के लिए सुचि की हत्या तुम लोगों ने की है-टंकी से रिवॉल्वर और सुचि के सामान की बरामदगी यह साबित कर देगी कि तुम पुलिस को धोखा देना चाहते थे ।


हेमन्त का दिमाग फिरकनी की तरह घूम रहा था ।



"मगर तुम लोगों ने वह नहीं किया जो मैंने सोचा था , बचने की कोशिश की और यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है कि बचने की तुम्हारी कोशिश काफी खूबसूरत थी, अफसोस---------तुम कामयाब न हो सके----पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने सब चौपट कर दिया और अंतत: अंजाम वही हुजा जैसा मैंने सोचा था, जैसा मैं चाहता था--सारे शहर की नजरों में मैंनें विशम्बर गुप्ता के जीवन की एकमात्र कमाई यानी, प्रतिष्ठा धुल में मिला दी-लोगों ने गधे पर बैठाकर मेरे बेटे के हत्यारे का जुलूस निकाला-------इतना अपमान किया कि गधे पर बेठा-बैठा ही मर गया कमीना----खुशी है कि सबके सामने अपने हाथों से उसका मुंह काला कर सका----मुझे इस बात की भी खुशी है कि मेरे बेटे के हत्यारे ने अपनी आंखी से अपने बेटे की लाश देखी----तेजाब से जला अपनी वेटी का चेहरा देखा-अफसोस यह है कि वह अपनी पत्नी को कहकहे लगाते न देख सका--------तुम्हें मेरे सामने गिड़गिड़ाते न देख सका-मगर मैं खुश हू क्योंकि सुरेश के हत्यारे से भरपूर बदला लेने में कामयाब रहा-------------उसका और उसके परिवार का नाम लेकर इस शहर का वच्चा-वच्चा वर्षों नफरत से थुकता रहेगा-------किसी को पता नहीं लगेगा कि दहेज बिशम्बर गुप्ता ने नहीं, बल्कि खुद तुम्हारी दुल्हन ने मांगा था-----हत्या विशम्बर गुप्ता और उसके परिवार ने नहीं, कर्नल जयपाल अग्रबाल ने की थी ।"

"म. ..मैं यह सावित करके रहूंगा । " हेमन्त चिल्लाया-------"मैं अपने बाबूजी' की प्रतिष्ठा स्थापित करने के बाद ही मरूंगा !"



कर्नल ने बड़ा ही जबरदस्त ठहाका लगाया । वोला-----"कभी नहीं बेटे, जो कुछ मैंने बताया वह भी एक ऐसी ही कहानी है, जिसे तुमने जान तो लिया, लेकिन साबित नहीं कर सकोगे, क्योंकि !"



"क्योंकि ?



"जिस तरह खुद को बेगुनाह सावित करने के लिए तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है-----उसी तरह इस कहानी को भी सच साबित करने के लिए तुम्हें कोई सबूत नहीं मिलेगा और सबूतों के अभाव में यह कहानी भी सिर्फ कहानी हीं बनकर रह जाएगी--तुम अदालत को चीख-चीखकर वह सब कुछ बताओगे जो मैंने बताया है, मगर मैं अदालत में यह कहूंगा कि यह कहानी तुमने सिर्फ इसलिए 'घढ़ी' है, क्योंकि मैंने तुम्हारे बाप का मुंह काला किया था-जो शख्स पहले ही एक काल्पनिक ब्लैकमेलर की कहानी 'धढ़' कर पुलिस को 'धोखा' देने की नाकाम कोशिश कर चुका हो------सबूतों के बिना अदालत उस शख्स की इस कहानी को भी नितांत मनघड़ंत करार देगी !"



हेमन्त दांत भींचकर कह उठा-"सबूत मैं इकट्ठे करूंगा कुत्ते !"



"सबुत तो तुम तब इकट्ठे करोगे मेरे बच्चे, जब कहीं होगें ।" कर्नल ने व्यग्यात्मक लहजे में कहा----"सच्चाई यह है कि अब अगर मैं खुद भी चाहूं तो इस कहानी को सच्ची साबित नहीं कर सकता । "




" क्या मतलब ?"




" जो मैंने किया उसका कहीं कोई सबूत नहीं छोड़ा-----आज से चार रात पहले होटल के जिस कमरे में मैंने हत्या की, आज मैं साबित नहीं कर सकता कि वह कमरा मैंने कभी किराए पर भी लिया था-----रजिस्टर तक में मेरे स्थान पर किसी अन्य के हस्ताक्षर हैं-होटल के स्टाफ का कोई भी शख्स मुझे पहचान नहीं सकता, क्योकि किसी अन्य नाम से वे मुझे मकड़ा बाले चेहरे में पहचानते हैं और उस चेहरे को मैं खुद राख में बदलकर फ्लश में बहा चुका हूं-----कमरे में हत्या का निशान जब आज तक ना मिल सका तो अब क्या मिलेगा----

जबकि बहां हर रोज-नये ग्राहक अाते-जाते रहते है-----हत्या क्योंकि, मैंने गला घोंटकर की थी, अत: किसी किस्म के चिह्न आदि का स्थान ही नहीं उठता-----सुचि क्योंकि स्वयं को , छुपाकर वहां पहुंची थी अत: उस रात उसके वहां पहुंचने का कौई गवाह नहीं-----हत्या से लाश को तुम्हारे बेडरूम तक पहुंचाते समय जो दस्ताने मैंने पहन रखे थे, उन्हें आज मैं खुद भी दोबारा हासिल नहीं कर सकता----लाश ले जाते मुझे किसी ने नहीं देखा-उन नेगेटिव तक को जलाकर राख कर चुका हूँ जो मैरे द्वारा सुचि को ब्लैकमेल किए जाने के प्रमाण थे-----मत्तलच यह कि अपनी कारगुजारी मैं किसी को बता तो सकता हूं मगर साबित नहीं कर सकता और सिर्फ बताने से तो अंदालत मेरे बयान को भी झूठा मानेगी------इस अवस्था में तुम इस कहानी को सच्ची साबितं नहीं कर सकते और जो साबित न हो वह हकीकत नहीं, सिर्फ कहानी होती है ।


हेमन्त किकर्तव्यविमूढ़-सा बैठा रह गया ।



कर्नल के स्पष्ट करने पर शायद पहली बार उसे यह अहसास हुआ कि वास्तव में उसकी स्थिति वहीं है जो कर्नल ने बयान की-----हर सवाल का जवाब मिल जाने, सारी सच्चाई जान जाने के बाबजूद वह कुछ नहीं कर सकता था ।


कुछ भी तो नहीं !



अदालत को यह सब बता देने, सिर्फ बता देने ले कोई लाभ होने वाला न था और प्रूव करने के लिए कोई सबूत नहीं, जबकि होंठों पर अपनी सफलता की मुस्कान लिए कर्नल राइटिंग टेबल पर रखे फोन की तरफ बढा ।

हेमन्त को कवर किए उसने एक नम्बर रिंग किया, संबंध स्थापित होने पर बोला----" हैलो मैं कर्नल जयपाल बोल रहा हूं--एस.पी. साहब से बात करना चाहता हूं । "


दूसरी तरफ से कुछ कहा गया ।


. "थेंक्यू ।" कहकर कर्नल शांत हो गया ! रिवॉ्ल्वर से उसे कवर किए………दूसरे हाथ में रिसीवर कान से लगाए कर्नल उसे देखता हुआ मंद मंद मुस्कराता रहा और कुछ देर बाद एकदम चौंकता हुआ बोला-----"जी हां, मैं कर्नल बोल रहा हू । "

हेमन्त ने अंदाजा लगाया कि दूसरी तरफ से कहा गया होगा---" कहिए !"

शायद आपको पता लग गया होगा की श्मशान से हेमन्त पुलिस का घेरा तोड़कर भाग निकला है----जी हां, बह मेरे पास कोठी पर पहुंचा-----------कम्बख्त के सिर पर अभी तक खून सवार है, कहता था कि, मेरा कत्ल करने यहां आया है क्योंकि इन्हें सबसे ज्यादा अपमानित मैंने किया----अगर वक्त रहते मैं इस पर काबू न पा लेता तो शायद अपनी वाइफ की तरह मेरी भी हत्या कर देता, मगर फिलहाल मेरे रिवॉल्वर
की नोक पर है-----जी हां, आप फोर्स के साथ स्वयं आकर इसे लेजाइए ।"


हेमन्त का खून खौल उठा ।



संबंध--विच्छेद करने के लिए कर्नल ने रिसीवर क्रेडिल पर रखना चाहा, क्रितु दृष्टि हेमन्त पर स्थिर होने की वजह से सही स्थान पर न रख सका------सही स्थान देखने के लिए जैसे ही उसकी नजर हेमन्त से हटी बैसे ही हेमन्त ने सेंटर टेबल पर रखा पेपर वेट उठाकर उसे पर खींच मारा । "



पेपरवेट कर्नल के सिर से टकराया ।



कर्नल दर्द के कारण चीखा और अभी अपनी बौखलाहट पर काबू न पाया था कि जख्मी चीते ही तरह चीखता हुआ हैमन्त उसके उपर जा गिरा ।


मेज को साथ लिए दोनों फर्श पर जा गिरे ।


रिवॉल्वर कर्नल के हाथ से निकल गया ।


दोनों बुरी तरह गुत्थ गए ।



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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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आयु का फर्क होने की वजह से कुछ तो हेमन्त उस पर वैसे ही भारी था, दूसरे, सारे रास्ते बंद होने की वजह से हेमन्त पर वैसे भी खून सवार था--------उसने शीघ्र ही स्वयं को कर्नल की मैं पकड़ से मुक्त करके फर्श पर पड़े रिवॉल्वर पर जम्प लगाई ।



इधर उसके हाथ में रिवॉल्वर आया उधर कर्नल उछलकर के खड़ा हो गया, किंतु अपनी तरफ तने रिवॉल्बर को देखते भी उसके छक्के छुट गए-------वही हालत हो गई जो होटल के कमरे मैं सुचि के सामने हुई थी और हेमन्त का समूचा चेहरा भभक रहा था, गुस्से की ज्यादती के कारण सारा शरीर बुरी तरह कांप रहा रहा था उसका, मुहं से गुर्राहट निकली---"अब तू वच नहीं सकता हरामजादे !"

"ह.....हेमन्त फायर मत करना बेटे । " भयभीत कर्नल गिड़गिड़ा उठा----"रुको मेरी बात सुनो ।"



"बहुत सुन चुका कुत्ते । " हेमन्त दांत भीच कर गर्जा--"जब से आया तेरी ही सुने जा रहा हूं और अब समझ चुका हूं कि अपने बाबूजी की खोई प्रतिष्ठा स्थापित नहीं कर सकता--अदालत और इस शहर को सच्चाई बता तो सकता हूं मगर उसे प्रूव नही कर सकता, लेकिन अपनी वरबादी, अपने परिवार की बदनामी, सुचि, अमित और बाबूजी की मौत, रेखा की बदसूरती और अपनी मां के पागलपन का बदला तो ले ही सकता हूं मैं !



"ऐसी बेवकूफी मत करना--------अगर मैं मर गया तो कभी साबित नहीं कर सकोगे कि मैं मकड़ा वना था, मैंने ही सुचि की हत्या की थी । "




"साबित तो तुम्हारे जीवित रहने से भी नहीं होगा । "



"म. ..मैं खुद अदालत को वह सच्चाई बताऊंगा जो तुम्हें कहीं है ।"





"तुम्हारे कहने से भी अदालत यकीन नहीं करेगी, तुम खुद प्रूव नहीं कर सकते कि यह सब सच है और विना सबूतों के..........!"



" स......सबूत मैं दूंगा-----मैँ अदालत में खुद इस कहानी की सच्चाई साबित करूंगा । "



"अभी तो तुम कह ऱहे थे कि सारे सबूत नष्ट कर चुके हो ?"



"व...वह झूठ था----सच यह है कि मेरे पाँस सारे सबूत , मैं सावित कर सकता हूं कि मैंने ही सुचि को ब्लैकमेल किया, मैं ही मकड़ा बना और मैंने ही उसकी हत्या की । "



"साबित करो,इसी वक्त पेश करो--------क्या साबूत है तुम्हारे पास ।"


"म....म.....मैँ !" वह केवल गिड़गिड़ा कर रह गया ।



हेमन्त गुर्राया-------"तुम्हारे पास कोई सबूत है नहीं है------अगर है भी तो अदालत तक पहुंचते-पहुचते तुम मुकर जाओगे-----मैं तुम्हारे इस फरेब के जाल में फंसने वाला नही' हुं----------अपने हाथ से तुम्हारी लाश बिछाने के अलावा अब कोई इच्छा बाकी नहीं बची है कर्नल, मरने के लिए तैयार हो जाअो !"


"मैं-----मेरी बात तो सुनो-----बेटे----मैं तुम्हें !"


" धांय----धांय-----धांय !"


कर्नल जयपाल कटे वृक्ष के समान फर्श पर गिर पड़ा !
हेमन्त चुप हो गया;---मैं (वेद प्रकाश शर्मा) पूरी तरह स्तब्ध था-----शुरू से अंत तक मैंने इसी स्तब्ध अंदाज हेमन्त की कहानी सुनो थी और अब उसके बोलने का इंतजार कर रहा था-----जेल के मुलाकाती कक्ष में छाई खामोशी जव जरूरत से ज्यादा लम्बी हो गई और वह कुछ न बोला तो मैंने सवाल किया-----" उसके बाद ?"



"उसके बाद क्या?" हेमन्त ने उल्टा सबाल किया ।



" कर्नल जयपाल को मारने के बाद तुमने क्या क्रिया ?"



वह मेरे सामने से उठकर खड़ा गया…थीरे धीरे चलता हुआ कक्ष की सामने वाली दीवार तक गया और फिर अचानक तेजी से पलटकर बोला------"तुम्हारे ख्याल से क्या करना चाहिए था मुझें ?"


मैं चुप रह गया ।


दरअसल उसके सवाल का कोई उचित जवाब मुझे सूझा ही न था, अत: सिर्फ उसकी तरफ देखता भर रहा, जबकि मुझे ऐसी मुद्रा में देखकर उसके होंठों पर फीकी मुस्कान उभर अाई, बोला…"दरअसल ठीक तुम्हारे जैसी -स्थिति मेरी भी हो गई थी-----कुछ सूझा ही नहीं, क्योंकि न मेरे लिए कोई लक्ष्य रह गया था,न दिल में जीने की आरजू----बाब्रूजी की यह बात समझ में आ चुकी थी कि हम कानून को तत्काल तो धोखा दे सकते हैं, परंतु हमेशा नहीं, अतः पुलिस के आने पर खुद को एस. पी. साहव के हवाले कर दिया । "



"क्या पुलिस को कर्नल की सच्चाई बताई ? "



"हां । " वह बापस मेरी तरफ अाता हुआ बोला----"मगर कर्नल के सारे घर की तलाशी लेने के बाद बाबजूद पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली जो उसे मकडा या सुचि का हत्यारा साबित करती-मरने से पहले उसने न मुझे उस होटल का नाम वताया था, ना कमरा नम्बर. जिसमें सुचि की
हत्या की-----

पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि मैनें उसी बजह से कर्नल की हत्या है जो उसने कोन पर एसपी,साहब को वताई थी ।"



"फिर ?"



"अदालत की कार्यवाही का, सिलसिला शुरू हुआ हर पेशी पर तोते की तरह वह सुना देता हूं जो कर्नल ने बताया था, अदालत सबूत मांगती हैं----मैं चुप रह जाता हूं और इस स्थिति में मेरे बयान को बचाव की खोखली दलील से ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता-सुचि के साथ-साथ मेरे सिर पर कर्नल की हत्या का इलजाम भी है और अब तो स्थिति यह आगई है कि जब भी चीख-चीखकर यह कहता हूं कि कर्नल ही सुचि का हत्यारा हे-उसी ने मकड़ा बनकर हमसे अपने बेटे की मौत का बदला लिया है तो सरकारी वकील द्वारा यह कहा जाता है कि मैं अदालत का कीमती वक्त जाया क्रऱ रहा हूं । "




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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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"मतलब अब तक इस केस का फैसला नहीं हुआ है? "



उसने मुझे घूर कर देखा, कुछ ऐसे अंदाज जैसे मुझें बेबकूफ करार देने वाला हो, सवाल किया उसने-----"क्या तुम्हे नहीं लगता-कि फैसला हो चुका है ?"



"क्या मतलब? "



"तुम शायद उस दिन इस केस का फैसला हुआ मानोगे जिस दिन अदालत विधिवत फैसला सुनाएगी, मगर मेरी समझ के मुताबिक फैसला कर्नल के मर्डर के साथ ही हो गया है । "


"मैं समझा नहीं ?"



" उसने मेरी आंखो में झांकते हुए सवाल क्रिया----"तुम्हारे ख्याल से क्या फैसला हो सकता ?"



"कुछ भी, जब तक हो न जाए, क्या कहा जा सकता है ?"



'‘तुम भले ही न कह सको-मगर मैं कह सकता हूं !"



हेमन्त कहता चला मैं गया---"अदालत मेरी एक न सुनेगी-----मुझे वही सजा सुनाई जाएगी जो अपनी बीबी के हत्यारे, कानून को धोखा देने की कोशिश करने वाले मुजरिम और कर्नल जैसे किसी सम्मानित व्यक्ति का मर्डर करने बाले को सुनाई जाती है-इसके अलाबा किसी अन्य फैसले के लिए केस में कोई गुंजाइश ही नहीं है, अगर हो तो सोचकर तुम बता दो !"

मैं चुप रह गया।


दरअसल हेमन्त के शब्दों की कोई काट नहीं थी मेरे पास--अत: विषय बदलने की गर्ज से पूछा----" ये सारी कहानी मेरठ से यहाँ बुलाकर तुमने मुझे क्यों सुनाई ?"



"अदालत को कहानी नहीं हकीकत चाहिए और सिर्फ हकीकत----मेरे और मेरे परिवार के साथ घटी घटनाएं हकीकत होते हुए भी सबूतों के अभाव में सिर्फ एक कहानी है, अत: वह अदालत के लिए नंहीं केवल तुम जैसे किसी लेखक के लिए रह गई ।"



" मगर विशेष रूप से मुझे ही क्यों, लेखक तो और बहुत हैं !"



एकाएक गुर्रा उठ हेमन्त------"बहु मांगे इंसाफ तुम्हीं ने लिखी थी न ?"


" हां !"



"इसीलिए खासतौर से तुम्हें बुलाया है । " वह सख्त स्वर में कह उठा--------"तुम लेखक लोग समस्या के पहलू को बड़े जोरदार ढंग से उठाते हो मगर सिर्फ एक पहलू को-----ठीक उसी तरह जिस तरह .'बहृ मांगे इंसाफ' में तुमने उठाया------दूसरे पहलू को देखकर भी अनदेखा कर देते हो तुम लोग ।"



" ऐसी बात नहीं है । "



“अगर नही तो दहेज के लिए मरने बाली बहुओं से संबंधित इस पहलू को भी उठाओ---जिन्हें तुमने 'बहू मांगे इंसाफ़' पढ़ाई हे,उन्हें यह भी बताओ कि ससुराल में मरने वाली दहेज के लिए नहीं मरती-----कुछ और बजह भी हो सकती है-----. बिना सोचे समझे किसी बिशम्बर परिवार को इतना जलील क्यों किया जाता है-क्यों रेखा के ऊपर तेजाब डाला जाता है-किसी अमित, किसी बिशम्बर या किसी हेमन्तु को किस गुनाह की सजा मिलती है, और----और----!" हेमन्त फफक-फफककर रो पडा…"क्यों किसी ललितादेबी को पागलखाने में कहकहे लगाने पर मजबूर किया जाता है ?"


मेरे रोंगटे खड़े हो गए !



बुरी तरह रोता हुआ वह दीवानगी के आलम में पागलों की तरह चीखता चला गया----" तुंम्हें तो अदालत की तरह किसी सबूत की जरूरत नहीं है न-फिर लिखो , समाज को यह बताओ कि किसी का जुलूस निकालने से पहले अच्छी तरह पुष्टि कर लेनी चाहिए, कि कहीं वह बिशम्बर गुप्ता, ललितादेबी अमित, रेखा या हेमन्त तो नहीं है-दहेज के लोभी, बहू के हत्यारों को सजा जरूर मिलनी चाहिए---गधों पर बैठाकर उनका जुलूस जंरूर निकाला जाना चाहिए मगर वे क्यों पिसें, क्यों मरें, जिन्होंने कुछ नहीं किया--कुछ भी तो नही किया? "



" मै लिखूंगा हेमन्त जरूर लिखूंगा------ये तो नहीं कहता मेरा उपन्यास तुम्हारे पिता की खोई हुई, प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित का देगा, क्योंकि प्रतिष्टा तो अदालत स्थापित करती है, हकीकत स्थापित करती है, जबकि सबूतो के अभाव में मेरा उपन्यास भी हकीकत नहीं एक कहानी मात्र होगा…सिर्फ एक कहानी। "'



THE END

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