दुल्हन मांगे दहेज complete

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Jemsbond
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

Post by Jemsbond »



जगदीश ने कहा---“में तो चीरघर जा सकता हूं ?" एक पल जाने क्या सोचा गोडास्कर ने, फिर बोता---"अापजा सकते हैं, परंतु याद रखें कल सुबह से पहले न तो आपकी किसी से हकीकत का जिक्र करना ,न ही यह बताना है कि गुप्ता परिवार से अापका क्या संबंध है और यह सब कानून की मदद करने के साथ-साथ आपको अपनी हिफाजत के लिए भी करना है । ' ‘

"जी ! " जगदीश ने सिर्फ इतना ही कहा !
जेब से सुचि के पत्रों का गट्टा निकालकर हेमन्त की तरफ बड़ाते हुए गोडास्कर ने कहा----"' अपनी अमानत संभालिए मिस्टर हेमन्त--------इन्हें पढ़ने के बाद इतना ही कह सकता हूं कि मुझे आपके दाम्पत्य जीबन पर फख्र है-इत्तने मधुर संबंध कम लोगों के होते हैं ।"



"थैक्यू !"कहकर हेमन्त ने पत्र ले लिए !



यह सोचकर उन सबकी बाछे खिल गई थीं कि पत्रों के रूप में उनके विरुद्ध एकमात्र जो सबूत गोडास्कर के कब्जे में था उन्हें भी उसने लौटा दिया है-अपनी खुशी को बडी मुश्किल से दबाए अमित ने पूछा--"क्या उन दोनों पत्रों के संबंध में एक्सपर्ट की रिपोर्ट आ गई है ?"



"जी हां और वह भी आपकी फेवर में है । "


" क्या मतलब ?"



अपनी रिपोर्ट में एक्सपर्ट ने साफ लिखा है कि दोनों पत्र भिन्न व्यक्तियों द्वारा लिखे गये है !"



हेमन्त का दिल-चाहा कि झपटकर गोडस्कर का मुहं चूम ले !
" हा---हा---हा !" हेमन्त गगनभेदी कहकहों के साथ हंस रहा था--खुश सभी थे, मगर हेमन्त तो पागल ही हुआ जा रहा था-गोडस्कर के कुछ देर बाद जगदीश चीरघर चला गया और उसके जाने के बाद तो जैसे वहां दीबाली मनाई गई ।"



हेमन्त निरंतर हंसता चला गया ।



इतनी देर तक कि बिशम्बर गुप्ता चौंक पडे, हेमन्त को झंझोढ़ते हुए चीख पडे़ वह----"हेंमन्त---हेमन्त---संभालो खुद को-खुशी से कहीं पागल ही न हो जाना । "



" हा---हा---हा.......आपने देखा बाबुजी…मैँ कहता था न कि मेरी स्कीम सफल होगी-----मैं कामयाब हो गया------गोडास्कर हार गया बाबूजी--------आपकी पुलिस, आपका कानून हार गया-----वही सोच रहे हैं जो मैंने चाहा. . .हा. . .हा. . .मैंने कहा था न बाबूजी कि पुलिस और कानून उस झूठ को सच मानते हैं जिसके सबूत है. . . .उस सच को झूठ जिसके सवूत नही । "


"मान गए कि-तुम ठीक कहते थे । " बिशम्बर गुप्ता बोले----"' खुद क्रो संभालो बेटे------झूठ को सच साबित करके इतना खुश होने की जरूरत नहों-----खुश उस दिन होना जब सच को सच साबित करो------तुम्हें समय मिला है-----यह जानने का समय कि सुचि किस चक्कर में उलझी हुई थी-------बीस हजार का उसने क्या किया-------अगर वह ब्लैकमेल होरही थी तो , ब्लेकमेलर कौन है-उसने आत्महत्या क्यों कि ?"





"हां । " हेमन्त ने चौंककर एक झटके से कहा----"मैं यह सव पता लगाकर रहूंगा--------ब्लैकमेलर के दुकड़े-दुकड़े कर दूंगा मैं----------अपनी सुचि की मौत का बदला उससे लेकर रहूंगा--अब मुझे मौका मिला है, सुचि के हत्यारे को मैं पाताल से भी खोज निकालूगा ।"



बिशम्बर गुप्ता के चेहरे पर छाया तनाव कम होता चला गया ।
जगदीश रात के आठ बजे चीरघर से लौटा उसने बताया कि पोस्टमार्टम हो चुका है पोस्टमार्टम रिपोर्ट कल पता लगेगी । खुशीसे झूमते हुए बिशम्बर गुप्ता ने कहा-----" पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में होता ही क्या है-डाक्टर सिर्फ यह बताता है कि मुत्यु कब और कैसे हुई-----जाहिर है कि कल रात किसी समय सुचि ने गले में फंदा डालकर आत्महत्या की…रिपोर्ट भी यहीँ बताएगी यह नहीं कि आत्महत्या सुचि ने अपने कमरे में की या उस पेड़ पर लटककर अत: हमें किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है ।



बात बिशम्बरं गुप्ता को जमी ।



सारी रात विना किसी नए हंगामे के आराम से गुजर गई !


सुबह !


पाच बजे !



नियमानुसार बिशम्बर गुप्ता को बिस्तर छोड़ देना चाहिए था परंतु आज ऐसा नहीं हुआ--परिवार के अन्य सदस्यों कीं तरह लिहाफ में दुबके वे अब भी लम्बे-लम्बे खरटि भर रहे थे और ऐसा शायद इसलिए था, क्योंकि पिछली रात इनमें से कोई भी सो नहीं पाया था, बल्कि अमित वेचारा तो दो रात का जगा हुआ था ।


दूसरे !


जब वे सोए, दिमाग चिंतामुक्त भी थे ।


हां-जगदीश की स्थिति जरूर भिन्न थी, सो दूसरी बार~कॉलबेल के चीखने पर उसकी नींद टूटी--जल्दी से उठा । "



"जीजाजी------जीजाजी !" उसने विशम्बर गुप्ता को झंझोडा़ तो वह हड़बड़ाकर उठ बैठे------इसके बाद ललिता, अमित और हेमन्त को भी उसी तरह झंझोड़क़र उठाया गया…यह सोचकर सभी के चेहरों पर आंतक फेल गया कि इतनी सुबह कौन हो-सकता है, जबकि उस आतंक को देखकर हेमन्त ठहाका लगा उठा, बोला------" चेहरों पर बारह क्यों बजा रखे हैं अब हमारे लिए डरने जैसी बात नहीं है !"


कोई कुछ न बोला, कॉलबेल पुन: घनघनाई ।



"मैं खोलता हूं दरवाजा, इंस्पेक्टऱ शायद आज का अखबार लेकर आया है । " कहने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया। '



जाने क्यों--अज्ञात अांशकाओं से धिरे उनके दिल धाड़-धाड़ करके बज रहे थे----चेहरों पर हवाइयां और मन कुछ बोलने को न कर रहा था !



"क...क्या हुआ बाबूजी---कौन अाया है ?" हाथ दाएं-बाएं फैलाए अपने इर्द--गिर्द टटोलती रेखा ने ड्राइंगरूम में कदमं रखा-तड़पकऱ ललितादेबी उसकी तरफ झपटीं और सहारा देती हुईं बोली----"तु-बिस्तर से क्यों उठ गई बेटी ? "


उधर !


दरवाजा खोलते ही हेमन्त को गोडास्कर के दर्शन हुए है हेमन्त के दिमाग में एक ही बात आई--------------कम्बख्त सोता भी है या नहीं ???

"हैलो मिस्टर हेमन्त ! " गोडास्कर का व्यंग्यात्मक स्बर ।


"हैलो, गुड मार्निंग इंस्पेक्टर । " कहते हुए हेमन्त की नजर उसके साथ आई फोर्स पर पडी़ और इस, क्षण उसका
माथा ठनक गया-इतनी फोर्स के साथ वह पहली बार अाया था-मकान के ठीक सामने दो जीपें और एक पुलिस एम्बेसडर खड़ी थी ।


हेमन्त के मुंह से अभी कोई आबाज निकल पाई थी कि गोडास्कर ने अपनी बगल में खडे़ अफसर का परिचय दिया ---- " इनसे मिलो हेमन्त , यह हमारे एस.पी सिटी आर.एन शुक्ला हैं !"
दिमाग घूम गया हेमन्त का।


असामान्य फोर्स और एस. पी. की मौजूदगी ने उसे हजार शकाओं में घेर लिया, परंतु स्वयं को सामान्य दर्शाते हुए हाथ जोइ दिए । गोडास्कर ने बत्ताया------"इन्हीं की दरियादिली कल सुचि की लाश की बरामदगी की सूचना सिर्फ तुम्हें दी गई थी । "



"ह.....हम आपके एहसानमंद हैं शुक्लाजी ।" हेमन्त बड़ी मुश्किल से कह सका---"दरअसल सुचि के गायब होने से ही क्योकि सारा शहर हम पर शक कर रहा था, इसीलिए हम लोग जबरदस्त टेंशन में थे और अापने हमें उस टेंशन से मुक्त किया !*


मिस्टर शुक्ला कुछ बोले नहीं ।



जिस आज में वे हेमन्त को घूर रहे थे उस अदाजं को देखकर हेमन्त के प्रान खुश्क हुए जा रहे थे , जबकि गोडास्कर ने कहा-----" क्या हम लोंगों को यहीं खड़ा रखेंगे मिस्टर हेमन्त ?"



"ओह सॉरी…अाईए , अंदर अाइए ।"



इस तरह, वे लोग अंदर प्रविष्ट हो गए-हेमन्त को लगा कि कुछ सशस्त्र सिपाही दरबाजे पर रुक गए हैं----उसने महसूस किया कि पुलिस मकान के चारों तरफ घेरा डाल रही हेै----ऐसा महसूस करते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए थे कि इस संबंध में लह कुछ पूछ नहीं सकता था !



वे ड्राइंगरूम में पहुंचे ।


बिशम्बर गुप्ता जगदीश ललितादेबी , रेखा और अमित वहां किसी संगतरांश द्वारा तैयार कीं गई मूर्तियों के समान खडे़ थे, एकाएक रेखा ने कहा-----"वया बात है मम्मी…कोई . खतरा तो नहीं हैं ?"


हेमन्त के छक्के छुट गए, यह सोचकर वह कांप उठा कि पुलिस के आगमन से अनंभिज्ञ रेखा कहीं कोई ऐसा वाक्य मुंह से न निकाल दे, जो उनकी सभी कारगुजारियों का पर्दाफाश क़र दे, अत जल्दी से बोला----"बैठिए एसपी साहब, अाप भी बैठिए इंस्पेक्टर ।"



"क....क्या पुलिस अाई है मम्मी ?"
"हां बेटी ?" ललितादेवी ने कहा---"'मगर अब डरने की कोई बात नहीं है, पुलिस बहू की आत्महत्या का असली कारण जान चुकी है !"



शुक्ला या गोडास्कर में से कोई भी बेठा नहीं था, व्यग्र हेमन्त ने सवाल किया-----"आज का अखबार सबके सामने हमारी स्थिति साफ कर देगा न इंस्पेक्टर ? "



"बेशक !" गोडास्कर ने कहा---"'मगर सुबह का नहीं, शायद आज शाम का अखबार सारे शहर के सामने इस केस की असलियत रख देगा !"



" शाम का क्यों, आपने तो कहा था कि अाज सुबह का अखबार ?"



" अभी हम लोगों की इनवेस्टीगेशन पूरी नहीं हो सकी है मिस्टर हेमन्त ! " उसका वाक्य बीच ही में काटकर गोडास्कर ने कहा------"हम लोग आपके मकान की तलाशी लेना चाहते हैं।"



"ह...हमारे मकान की । " हेमन्त उछल पडा---" क....कयों ?"



"इनवेस्टीगेशन पूरी करने के लिए । "



"म. ..मगर । हकलाते हुए बिशम्बर गुप्ता बोले…"हमारे मकान की तलाशी से अब आपकी इंनवेस्टीगेशन का क्या ताल्लुक रह गया हेै…आप लोग तो जान चुके है कि...।"




"बात दरअसल यह है गुप्ताजी कि अभी तक हमे शंकर का कुछ पता नहीं लगा है, मुमकिन है कि सुचि ने मकान में कहीं शंकर के बारे में कुछ लिखकर छोड़ रखा हो ? "



"म.....मगर तलाशी तो तुम कल ही ले चुके हो ? "



"केवल सुधि के सामान और उसके कमरे की ।" गोडास्कर का सपाट लहजा---"'जबकि आज हम आपके पूरे मकान की तलाशी अच्छी तरह लेना चाहते हैं "



"उससे क्या होगा ?"


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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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"क्या आपको हमारे तलाशी लेने से कोई आँब्जेक्शन है ? " काफी देर से खामोश खडे़ शुक्ला ने एकाएक पूछा तो हेमन्त बोल उठा----"ब...बिलकुल नहीँ…हमें भला क्या आँब्जेक्शन हो सकता है, परंतु...... . । "
" परंतु ? "



"ब.. .बात कुछ समझ में नहीं अाई अगर शंकर के बारे में सुचि ने कुछ लिखकर छोड़ रखा होता तो उसके कमरे या सामान में ही होता-----"मकान की तलाशी से क्या होगा ?"




"आप इन सवालों पर सोचकर अपना दिमाग खराब न करें !" शुक्ला का स्वर बेहद कठोर था-----"यह सब सोचना पुलिस का काम है अाप सिर्फ यह बताइए कि हमें तलाशी की इजाजत दे रहे हैं या सर्च वारंट की जरूरत है ? ”



"सर्च वारंट का अंड़गा अपने बचाव के लिए अपराधी डालते हैं सर । " गोडास्कर ने कहा---" जो बेगुनाह हो, उन्हें भला पुलिस को सहयोग देने मैं क्या आपत्ति हो सकती है,क्यों मिस्टर हेमन्त--क्या मैं गलत कहरहा हूं ?"



"ब...बिलकुल नहीं । " अपने ही शब्दों के जाल में फंसे हेमन्त को कहना पडा…"हमे भला क्यों आपत्ति होने लगी-अाप शौक से तलाशी लीजिए !"




"काम शुरु करो गोडास्कर ।" शुक्ला ने उसे हुक्म दिया और गोडास्कर ड्राइंग-रूम में मौजूद आधे सिपाहियों को लेकर मकान के भीतरी भाग में चला गया-हेमन्त ने महसूस किया कि जो सिपाही यहां बचे हैं वे परिवार के सभी सदस्यों के चारों तरफ ऐसे अंदाज में फैल गए हैं जैसे घेरे में ले रहे हों !!!!



हेमन्त को आसार अच्छे नहीं लगे !!



पुतिस की कार्यवाही और रवैया इतना संदिग्ध था कि जगदीश सहित सभी के चेहरे खुद-ब-खुद 'फक्क' पड गये-----अमित और ललिलादेबी के चेहरों पर हवाइयां उड़ रहीं थी-------बिशम्बर गुप्ता को काटो तो खुन नहीं !


रेखा बेचारी सस्पैंस में फंसी खड़ी थी !



हेमन्त को लग रहा था कि कहीं-न-कहीं-कुछ-न-कुछ गड़बड़ जरूर होगई है ।


लेकिन कहां ?


क्या ?



उसकी समझ में कुछ न आ सका ।


सारी स्कीम में कहीं भी तो कोई 'लूज प्वॉइंट' नहीं था----योजना पूरी तरह कामयाब थी----कहीं,, किसी गडबड़ की संभावना नहीं ----- फिर, पुलिस के इस बदले हुए रवैये और संदिग्ध कार्यवाही की आखिर वजय क्या है ?
करीब तीस मिनट बाद जब गोडास्कर ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तब उसकी भूरी आंखों में गजब की चमक थी, होंठों पर सफलता से लबलंबाई मुस्कान !



शुक्ला ने पूछा-----"कुछ मिला गोडास्कर ?"



"इन्हें ऊपर ले चहिए, सर, मकान की छत पर ।"



" क.....क्या है वहां ?" हेमन्त पागलों की तरह सीख पड़ा ।



गोडास्कर ने बडे शांत स्वर में कहा…" "चलकर अपनी आंखों से देखलें तो बेहतर होगा ।"


इस तरह घर का हर सदस्य अजीब सस्पैस में फंस गया ।


उन्हें ठीक इस तरह छत पर ले जाया गया जैसे वे सब पुलिस की हिरासत में हों---------सूरज शायद उदय होना चाहता था-----पूर्वी गगन लालिमा से ओत प्रोत हो चुका था और वातावरण में फैल चुका था सुरमई प्रकाश ।



" पानी की उस टंकी को चैक करिए सर । ' गोडास्कर ने शुक्ला को टॉर्च देते हुए कहा-----"सारी गुत्थियां खुद-ब खुद सुलझ जाएंगी । "



सस्पेंस की ज्यादती बिशम्बर गुप्ता और हेमन्त आदि को पागल किए दे रही थी----दिल जोर …जोर से पसलियों पर चोट कर रहे था-----यह बात उनकी समझ में न आकर दे रही थी कि पुलिस आखिर चाहती क्या है…एकाएक ही उनकी स्थिति हिरासतियों सी किस बजह से होगई है और पानी की उस टंकी में आखिर है वया़ ?
आवाज़ किसी के मुंह से न निकली । शुक्ला लोहे की सीढी़ पर चढ़ गया--पानी की टंकी का ढक्कन गोडास्कर ने शायद उसी के लिए खुला छोड़ दिया-था--------शुक्ला ने टॉर्च की रोशनी में टंकी का निरीक्षण किया, कुछ देर तक ध्यान से न जाने क्या देखता रहा-----हेमन्त सस्पेंस के कारण मरा जा रहा था, जबकि एकाएक शुक्ला के मुंह से निकला------मार्वलस गोडास्कर-इन चीजोंकी यहां मौजूदगी ने सब कुछ साबित कर दिया ।



" क्या है वहां !" आतंक और दहशत में फसा हेमन्त इस बार चीख ही जो पड़ा--"क्या साबित हो गया है, आप लोग हमें भी तो कुछ बताइए ।"




"अब अनजान बनने की कोशिश से कोई फायदा नहीं मिस्टर हेमन्त ।" शुक्ला सीढ़ी से सीधा छत पर कुदता हुआ बोला----" तुम्हारी चालबाजियां, सारी योजनाएं धरी रह रह गई ।"


"'क्या बक रहे हैं अाप ? " हेमन्त दहाड़ उठा----" कैसी स्कीम ? क्या है टंकी में ?"



"अभी मालुम हो जाता है ।" कहने के बाद शुक्ला ने सिपाहियों को पानी की टंकी में मौजूद सामान निकाल लेने का हुक्म दिया और जब सिपाहियों ने हुक्म का पालन किया तो हेमन्त ही नहीं बल्कि बिशम्बर गुप्ता जादि सभी को लकवा मार गया ।


र्किकर्तंव्यविमूढ़ से खड़े रह गए वे ।



टंकी से सुचि अटैची ही नहीं, बल्कि विशम्बर गुप्ता का लाइसेंसी रिवॉल्वर' भी निकला, हेमन्त हलक फाड़कर चिल्ला उठा--" य.....ये सब यहां, पानी की टंकी में ?"


" जी जीहां, आपकी पानी की टंकी में !"



"य. . .ये सब कैेसे हो गया…ये सारा सामान टंकी में कहाँ से आ गया, हम कुछ नहीं जानते इंस्पेक्टर भगवान कसम इस बारे में हम . . ।"



"श...... शटअप !" शुक्ला इतनी जोर से दहाड़ा कि हेमन्त सकपकाकर रह गया-गुप्ता, ललिता, अमित और रेखा कांप गए-जगदीश हक्का-बक्का !"




"तुम लोगों का खेल खत्म हो चुका है। " शुक्ला कहता चला गया--" अब बेहतरी इसी में है कि हर किस्म का नाटक करना वंद करदो।"



"न-नाटक ?" बिशम्बर गुप्ता कह उठे----" हम कोई नाटक नहीं कंर रहे हैं शुक्ला जी, भगवान कसम खाकर कहते हैं, हम नहीं जानते कि चीजे टंकी में कहां से अा गईं !"
"भगबान की कसम खाकर तो आप यह भी कह सकते है कि आपने सुचि की हत्या नहीं की---- अमित और हेमन्त लाश को पेड़ पर टांग कर नहीं अाए । "'



बिशम्बर गुप्ता स्टेचू में बदल गए ।



सभी के साथ-साथ वहुत जोर से गड़गडाकर बिजली हेमन्त के दिलोदिमाग पर भी गिरी, परंतु उसके मुंह से निकला-----'"क-क्या मतलब ?"



शुक्ला ने कहा-----"इसे मतलब समझाओ गोडास्कर, यह बेवकूफ अब भी यही समझ रहा है कि हम उसी गलतफहमी के शिकार हैं, जो इसने फैलाई थी ।"




गोडास्कर ने कहना शुरू किया----" सचमुच तुम लोगों ने केबल एक स्कीम बनाई मिस्टर हेमन्त बल्कि उस पर ऐसी सफाई से अमल भी किया कि मैं धोखा खा गया-----यह स्वीकार करने में मुझे कोई हिचक नहीं कि लाश मिलने पर मैं तुम्हें निर्दोष समझने लगा-था----जिस धारा में पुलिस को तुम बहाना चाहते थे उसी में बहता हुआ यह समझ बैठा कि सुचि ने शंकर नाम के ब्लेकमेलर से त्रस्त होकर आत्महत्या कर ली है, सैं तुम्हारी कल्पनाओं के घढ़े गए काल्पनिक शंकर की तलाश में जुट गया था, परंतु तभी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने सारी कलई खोल दी ?"


'"प…पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ?"



" जी ,हां ।" गोडास्कर का स्वर व्यंग्य में डूब गया----"रिपोर्ट में साफ लिखा था कि सुचि की हत्या दस्ताने युक्त हाथों ने गला घोंटकर की है, ,रस्सी का फंदा जीती-जागती सुचि के गले में नहीं, बल्कि लाश के गले में डाला
गया ।"




"य. . .यह आप क्या कह रहे हैं ?"



"रिपोर्ट पढकर मैं चौंक पड़ा, क्योंकि अगर यह हत्या थी तो सुचि द्वारा लिखा गया इतना लम्बा सुसाइड नोट कहां से आ गया------मैं फोरन पोस्टमार्टम बाले डॉक्टर से मिला---------उसने दुढतापूर्वक अपनी रिपोर्ट का समर्थन करते हुए कहा कि यह केस किसी भी हालत में आत्महत्या का नहीं हैं, क्योंकि यदि पेड़ पर फंदे में झूलने के बाद सुचि ने अपने पैरों से चट्ठे की ऊपरी ईटें हटीई होती तो उसके पैर में कहीं चोट का निशान जरूर होता
जबकि लाश के पैर के अंगूठे पर कहीं हल्की खरोंच तक नहीं है---------डॉक्टर ने दावा किया गला घोंटकर सुचि की हत्या करने के बाद हत्यारे ने लाश के गले में फंदा डालकर पेड़ पर इस मंशा से, इस ढंग से लटका दिया है कि पुलिस इसे आत्महत्या का मामला समझे----------वास्तव में सुचि रस्सी के फंदे से नहीं, बल्कि किन्हीं मजबूत हाथों द्वारा गरदन दंबाए जाने के कारण मरी है ।"


हेमन्त मूर्ति के समान खड़ा रह गया ।


गोडास्कर कहता चला जा रहा था-------डॉक्टर के दावे ने मेरा दिमाग घुमाकर रख दिया, क्योंकि उसकी रिपोर्ट पर संदेह नहीं किया जा सकता और अगर यह आत्महत्या नहीं थी तो सुचि के अंतिम पत्र का क्या मतलब था-----डाँक्टर के यहां से उठकर मैं सीधा राइटिंग एक्सपर्ट के पास गया-अपनी रिपोर्ट में सिर्फ उसने यह लिखा था कि मेरे द्वारा दिए गए दोनों पत्र भिन्न व्यक्तियों ने लिखे हैं…मैंने उससे पूछा कि इनमें से कौंन-सा पत्र "वास्तविक राइटिंग'' में है और कौन-सा नकल की गई राइटिंग में एक्सपर्ट ने तुम्हारा पत्र निकालकर कहा ---कि यह फर्जी है, बस-----फिर क्या था-----मैं ये समझ गया कि तुममे से कोई राइटिंग की नकल मारने में माहिर हेै------चैक करने वाद एक्सपर्ट ने यह भी बता दिया कि लाश से बरामद पत्र उन्हीं हाथों ने लिखा , जिन्होंने तुम्हारा दिया पत्र-----सुचि की वास्तविक राइटिंग को नकली और नकली को वास्तविक साबित करने की तुम्हारी कोशिश की कलई खुल गई-----मेरे सामने शीशे की तरह यह बात साफ थी लाश तुम्ही ने वहां पहुंचाई है और सुसाइड नोट वाला पत्र भी तुम्हीं ने लिखवाकर वहां रखा है और उसका मजमून पुलिस को वास्तविक लाइन से भटकाने वाला, कल्पनाओं का सहारा लेकर बनाया गया । "


खेल--खत्मा !


ये दो शब्द हेमन्त के साथ-साथ बिशम्बर, ललिता, अमित और रेखा के जेहन से टकराए, जबकि गोडास्कर अब भी कहता चला जा रहा था---''मैँ समझ गया कि मुजरिम अाप लोग हैं, ब्लेकमेलिंग की कहानी सिरे से काल्पनिक है, मगर अभी सबूत-जुटाने वाकी थे------मैं बस अड्डे पर गया--------
पुछताश--करने पर पता लगा कि बुलंदशहर से खुर्जें तक के जो टिकट तुमने मुझे दिए वह उस बस के थे, जो सुबह साढ़े चार बजे बुलंदशहर से होती हुई खुर्जा जाती है, उसके कंडक्टर का कहना है कि कल बस में बुलंदशहर से खुर्जा तक की दो सवारियां कम थीं-खुर्जे बुंलदशहर के टिकट तुमने खुर्जें से यहां अाई दो सवारियों से खरीदे थे----इसी तरह एक ऐसे कार मालिक ने जिसके पास गैराज नहीं है, पुलिस में रपट लिखवाई कि रात जब उसने फुटपाथ पर गाडी खड़ी की थी तो मीटर में रीडिंग और थी…सुबह कुछ और अत: उसे शक है कि रात के समये किसी चोर ने फुटपाथ से गाड़ी चुराई, सारी रात इस्तेमाल की और सुबह होने से पहले ही यथास्थान खडी कर दी-----यह गाडी मैंने डॉक्टर अस्थाना को दिखाई, उनका बयान है कि रात पेशेंट को इसी गाड़ी में लाया गया था--इन सब जानकारियों के बाद मेरे दिमाग में बिलकुल स्पष्ट हो गया कि लाश को वहां पहुंचाने के लिए अापने इसी गाडी का इस्तेमाल किया, परंतु तुम्हारी पूरी कार्यप्रणाली अब भी ठीक से नहीं समझ सका था----सुचि की उस अटैची की तलाश थी मुझे, जिसे तुम लोग गायब बता रहे थे-अब से करीब डे़ड़ घंटा पहले एस.पी. साहब की कोठी पर जाकर इनसे मिला-सारी सिच्युएशन बताईं------इन्होने कहा कि अटैची गुप्ता के मकान ही में कहीं होनी चाहिए---सो आपके सामने है।"




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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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सबकी टांगें कांप रहीं थी, बोल किसी के मुंह से न फूटा ।

"और अब । " गोडास्कर ने गहरी सांस लेने के बाद कहा-----" मैं इनके द्वारा लाश यहीं से उस पेड़ तक पहुंचाई जाने की सारी वारदात ज्यों---की--त्यों सुना सकता हूं सर ।"



" सुनाओ ।" शुक्ला ने कहा--कम-से-कम इन्हें भी तो पता चले कि सबूत किस हद तक सच बोलते हैं, भरपूर चालाकी के बावजूद गलतियां कहां रब जाती हैं ?"




"मकान की तलाशी में हमे एक स्ट्रैचर जो शायद इनके सामने रहने वाले बंसल का है…तिरपाल, जिसमें से इतना बड़ा कटा हुआ है कि उसे स्ट्रेचर की बाहियों में डालकर आराम से स्ट्रेचर को दोमंजिला बनाया जा सकता है----मिले हैं
ये दोनों चीजें साफ कह रही हैं कि ललितादेवी की बेहोशी के ड्रामे के साथ यहा से सुचि की लाश निकाली गई-पिंछली रात सुचि की हत्या करने बाद इन्होंने.......….... । "



" यह गलत है, झूठ है । " एकाएक अमित चिंल्ला उठा-----"हमऩे भाभी को नहीं मारा-----भगवान कसम हमने भाभी को नहीं मारा ।"




" क्या यह भी झूठ है कि रेखा किसी की भी राइटिंग मारने में एक्सपर्ट है----झूठ मत बोलना मिस्टर अमित-मैं दीनदयाल से मिलकर इस बारे में सवाल का चुका हूं----वह मुझे बता चुके हैं, बातों बातों में एक दिन सुचि ने उन्हेॉ बताया था कि उसकी ननद आश्चर्यजनक रूप से किसी की भी
राइर्टिग की नकल उतार देती हे ।"



"यह सच है । " अमित चिल्लाया----"यंह भी सच है एस.पी. साहब कि कल रात हमी ने भाभी की लाश यहां से पेड़ तक पहुंचाई-रेखा का लिखा हुआ पत्र छोड़ा-पुलिस को भ्रमित करने की कोशिश की…यह सब सच है, मगर'यह गलत है कि हमने भाभी की हत्या की !"



"अपनी इस बकवास का मतलब तो शायद तुम्हारी भी समझ में नहीं आ रहा होगा यंगमेन । " शुकला ने कहा-----"जब कत्ल तुमने नहीं किया तो लाश वहाँ पहुचा, पुलिस को धोखा देने की कोशिश क्यों की--यह अटैची और रिवॉल्वर टंकी में कैेसे बरामद हुए हैं ?"




"हम नहीं जानते, यकीन करो हम कुछ नहीं जानते------भाभी की लाश हमें उनके कमरे में लटकी मिली थी-----जाने किसने उन्हें मारकर बहाँ टांग दिया----जाने किसने उनका सामान इस टंकी में पहुचा दिया, हम कुछ नहीं. . . ।"





"शटअप----बकबास बंद करों । " शुक्ला चिल्ताया-------"इन्हे गिरफ्तार कर तो गोडास्कर, अब समय गंवाने की कोई वजह बाकी नहीं रह गई है-हथकडियां पहनाअो । "




"म-मुझे क्यों ?"' जगदीश मिमिया उठा ।



' "हत्या करते या ताश को टिकाने लगाते समय तुम इनके साथ भले ही न रहे हों, मगर इनके झूठ में जरूर शामिल थे-----तुमने झूठ बोला कि कल रात ये तुम्हारे पास खुर्जा गए ।"
" नो सर----मैंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया ।" बुरी तरह हड़बडाए हुए जगदीश ने कहा;-----"अ...आप इंस्पेक्टर गोडास्कर से पूछ सकते है-----इन्होने मुझसे सवाल किया जरुर था, मगर मैंने ज़वाब नही दिया, मैं चुप रहा था । "



"क्यों इंस्पेक्टर ?"



"यह ठीक कह रहे हैं सर, इन्होंने अपनी जुबान से झूठ नहीं बोला।"




*ठीक है, इन्हें छोड़कर सबको हथकडि़यां पहना दो ! " जगदीश के चेहरे पर राहत फैल गई, जबकि हेमन्त, ललिता और विशम्बर गुप्ता के चेहरे पीले ज़र्द होते चले गए-रेखा की टांगें कांप रहीं थीं और अमित का चेहरा भभक रहा था, बिशम्बरं गुप्ता हारे हुए स्वर में बोले-----"मैं कहता था न हेमन्त कि कानून से टकराने की कोशिश मत करो…जीत उसी की होती है, अब शायद हमारे लिए यह साबित करना , असंभव हो जाएगा कि हमने बहू की हत्या न्हीं की । "


हेंमन्त के होश उड़े हुए थे, जीभ तालू मे जा छुपी !
बिशम्बर गुप्ता, ललितादेबी, रेखा और हेमन्त के बाद गोडास्कर अमित के हाथ में हथकडियां डालने के लिए उसकी तरफ बढ़ा------अमित की स्थिति उन सभी से भिन्न थी----- भय से कांप रहे थे, जबकि अमित गुस्ते की ज्यादती के कारण-उनके चेहरे पीले थे, जबकि अमित का चेहरा-------ज्वालामुखी के समान भभक रहा था----गोडास्कर के नजदीक आते ही उसने ऐसी हरकत की कि --जिसकी यहां मौजूद लोगों में से किसी को ख्वाब में भी उम्मीद नहीं थी------होश तब आया जब गोडास्कर का रिवॉल्वर उसी की कनपटी से सटाए अमित गुर्रा रहा था-----"अगर कोई भी हिला तो मैं इंस्पेक्टर के भेजे के परखच्चे उड़ा दूंगा----खबरदार, कोई अागे न बढे!"


सभी अवाकृ हैं !


हतप्रभ !



शुक्ला तक दंग रह गया ।



अमित ने यह हरकत विजली की-सी गति से की था-इतनी तेजी से कि कई पल तक तो सब हक्के-बक्के रह गए, कोई कुछ समझ ना सका और जब अमित की हरकत समझ में आई तो बिशम्बर चीख पड़े-------ये क्या बेवकूफी है अमित, गोडास्कर को छोड दो ।"



" न-नहीं । अमित चिंल्लाया--"यह बेबकूफी नहीं बाबूजी----अब यहीं होगा, मैं अपनी बहन पर फैंके गए तेजाब और अपने परिवार पर किए गए अपमान का बदला लेकर रहूंगा-----पता लगाकर रहूंगा कि ये राज क्या है ।"



"होश में आओ अमित । चुपचाप हथकड़ी पहन लो । "



"क्यों पहन लूं हथकडी ?" भावावेश में वह दात भौंचकर चीख पड़ा----"क्या किया है मैंने--क्या हमने भाभी को मारा है-अगर नहीं तो क्यों पहन लूं हथकडी-----जब हमने भाभी को नही मारा है तो क्यों-क्यों बाबूजी ?"


" ये लोग हमें मुजरिम…!"



"इनके समझने से क्या होता है और अगर है समझते हैं तो समझते रहे…अमित नहीं डरता-अब यहीं होगा बाबूजी-अमित सचमुच मुजरिम बनेगा----हिलो मत गोडास्कर वरना भूनकर रख दूंगा----लाश बिछा दूंगा!"



''उफ ।" बिशम्बर _गुप्ता तड़प उठे !



'"यह वया होगया है भगवान----अमित को तुम ही समझाओ हेमन्त-पागल हो गया है यह !"


"रुक जाओ अमित ।" हेमन्त ने कहा "रिवॉल्वर फेंक दो ।"



"क्यों रूक जाऊं-क्यों फेंक दूं रिवॉल्वर । " अमित चीखता चला गया-----''जब हमने भाभी को नहीं मारा तो हम लोगों को गिरफ्तार क्योंकर रहे हैं ये------तुम्हा कहो भईया, क्या तुमने मारा है भाभी को-----अगर नहीं तो हथकड़ियां क्यों पहनी हैं-------मैं तुम्हारी तरंह बुजदिल नही भइया-मैं कायर नहीं जो हथकडी पहन लूं ।"



" म.....मगर अब यह हरकत करने से फांयदा क्या है पगले ?"


मैं मनोज से बदला लूँगा-उसे यह बताकर रहूंगा भइया कि रेखा के भाइयों ने हथकडियां नहीं पहन रखीं
कोई मजाक है जो मेरी बहन के चेहरे पर तेजाब फेंक गया ?"



"भ. . .भइया !" रेखा चीख पड़ी ।
त् फिक्र मत कर रेखा-----डरती क्यों है पगली-----" ये भाई उस कुत्ते की लाश तेरे कदमों में डालकर रहेगा !"




"न. . .नही भइया--मुझे कुछ नहीं चाहिए ।"



रेखा चीखती रही मगर जिसके सिर पर जुनून सवार हो, वह भला सुनता कहां है--अपना सारा ध्यान गोडास्कर पर केंद्रित किए वह गुर्राया----आगे बढो इंस्पेक्टर और तुम सुनो एस.पी. साहब-----तुमने या किसी भी पुलिस वाले ने हरकत की तो मुझे मौत का गम नहीं, मुझसे पहले इंस्पेक्टर मरेगा ।"



शुक्ला ने अपने होलस्टर से रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया, बोला----"गोडास्कर को छोड़ दो अमित-इस तरह तुम यहां से निकल नहीं सकोगे । "




" "अगर मेरे साथ गोडास्कर की मौत मंजूर हो तो बेहिचक गोली चला देना एस.पी. साहब । " उसे कवर किए अमित जीने की तरफ बढा…"मगर मैं जानता हूं कि अाप ऐसी बेवकूफी नहीं कोंगे । "



"यह तुम्हारा वहम है अमित----मैं तीन तक मिनूंगा, अगर तुमने तब भी खुद को पुलिस के हवाले न किया तो अपनी मौत के जिम्मेदार खुद होगे । "
यह वाक्य गोडास्कर के लिए एस.पी का संकेत था--यह कि 'तीन' पर उसे बचाव करना है !



एस.पी. ने गिनती शुरू की ।


बिशम्बर, हेमन्त, ललिता और रेखा ही नहीं बल्कि जगदीश भी चीख चीखकर अमित को रुक जाने के लिए कह रहा था मगर अमित नहीं रुका-उसे पूरा विश्वास था कि जब तक उसका रिवॉल्वर गोडास्कर की कनपटी पर है तब तक एस.पी. लाख धमकियां देता रहे किंतु गोली नहीं चला सकता…"तीन' तो क्या 'सौ' गिनतियां पूरी होने पर भी वह फायर नहीं करेगा-----यह विश्वास अमित को इसलिए था, क्योंकि बहुत सी फिल्मों में उसने मुजरिम को इसी तरकीब के जरिए पुलिस के घेरे से निकलते देखा था !"



अमित क्या जानता था कि वे केवल फिल्मी बातें होती है !
उस बेचारे को तो स्वप्न में भी गुमान न था कि एस.पी 'कोड' में गोडास्कर को बता चूका है कि हमला कब होगा----- गोडास्कर ने खुद को स्तर्क कर लिया था !



शुक्ला के रिवॉ्ल्वर की नाल अमित की टागों पर थी !


" एक दो के बाद मुंह से तीन निकालते ही शुक्ला ने अपने रिवॉ्ल्वर से ट्रेगर दबा दिया ! उधर ठीक उसी समय गोडास्कर नीचे बैठ गया !


गोली अमित की बाईं पिड़ली में लगी !


झुंझलाकर उसने फायर झोंका परन्तु गोली हबा में गुम होकर रह गई---- इधर अमित के लड़खड़ाते ही गोडास्कर ने उसकी गुद्दी पर कराटे का वार किया !


मुंह से चीख निकालता हुआ अमित जीने में लुढ़कता चला गया !


ये सारे काम मात्र एक पल में हो गये थे------ गोडास्कर जीने में उसके पीछे लपका , मगर नीचे पहुंचने तक अमित लाश में बदल चुका था !



बिशम्बर गुप्ता आदि की चीख से सारा मोहल्ला दहल उठा !
"दहेज के लोभी------हाय हाय !"


" बहू के हत्यारे------हाय हाय !"


"हत्यारे ससुर को-----बाहर निकालो !"


"कातिल पति--हाय हाय । "



"अरे हत्यारी सास को-फांर्सीं दो ।"



थाने के आसपास का इलाका इस किस्म के जाने कितने नारों से थर्रा रहा था-लोग वहुत उत्तेजित थे-जबरदुस्त भीड़ ।



ऐसा महसूस देता था कि जैसे सारा शहर सिर्फ और सिर्फ थाने के बाहर इकट्ठा हो "गया" है--उनकी गिरफ्तारी का समाचार पेट्रोल पर दौड़ने बाली आग के समान सारे शहर में फैल चुका था-साथ ही यह भी कि जब पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची तो हत्यारा देवर भागने के प्रयास में मारा गया ।


सुनकर किसी को हमदर्दी न हुई ।


थाने के अंदर ललितादेवी और रेखा दहाड़ें मार-मारकर रो रही थीं----हथकडि़यों में जकडे़ हाथों से कई बार रेखा ने पागल होकर अपने चेहरे की पट्टियां खोल डालने की असफल कोशिश की !



बिशम्बर गुप्ता आश्चर्यजनक रूप से शांत थे ।



हेमन्त के मुंह से कोई अाबाज न निकल रही थी पर आंखों से उबलते हुए गर्मपार्मं अांसू लगातार बह रहे थे नहीं जानता था कि ये अांसू अमित के लिए हैं या उन नारों की प्रतिक्रिया, जो इऩके कानों तक पहुंचा रहे थे ?




दस बजे तक थाने के बाहर इतनी भीड़ जमा हो गई कि अतिरिक्त फोर्स भी अब उस पर काबू पाने में असमर्थ थी---_---हर तरफ उत्तेजना ।



दहकते हुए नारे ।



गोडास्कर ने फोन पर किसी पुलिस अफसर को रिपोर्ट दी----"भीड़ बेकाबू और हिंसक होती जा रही है सर, अगर इनकी मांगें न मानी गई तो ये लोग थाने पर पथराव कर सकते हैं-----तोड़ फोड़ कर सकते हैं, कुछ भी हो सकता है सर ।"



"क्या मागें इन लोगों की ?"



"कुछ लोग जाने कहां से तीन चार गधे पकड़ लाए हैं सर, भीढ़ उन गधों पर बैठाकर सारे शहर में इनका जुलूस निकालना चाहती है ! "




थोडी देर के लिए दूसरी तरफ खामोशी छा गई, फिर कहा गया----"कोर्ट का टाइम हो गया है गोडास्कर----तुम ऐसा करो कि जिस तरह पब्लिक चाहती है यानी इन लोगों को एक जुलुस की शक्ल में लेकर कोर्ट पहुंचों !"



"स.....सर रेंखा ।"

"उसे जुलूस से अलग रखो अौर सुनो, इन लोगों के चारों तरफ सारे रास्ते तुम्हें पुलिस का ऐसा सशक्त घेरा रखना है कि कोई उनमें से किसी ऐसा नुक्सान न पहुंचा सके कि कल पुलिस के लिए कोर्ट के सबालों का जवाब देना मुश्किल हो जाए । "
" वह तो ठीक है सर, लेकिन ।"



" लेकिन ?"



"जुलूस निकालने के लिए मुझे पी.ए.सी की जरूरत पड़ेगी ।"




" हम भेज रहे हैं !" कहने के साथ दूसरी तरफ से रिसीवर रख दिया गया !



गोडास्कर थाने से बाहर निकाला--------भीड़ दुगने जोश के साथ नारे लगाने लगी, वडीं मुश्किल से भीड़ को शांत करके उसने चीखकर घोषणा की कि उनकी मांग मान ली गई है------शोर शराबा उत्तेजना बढ गई-----नारे पुलिस की प्रशंसा में लगने लगे----आबारा लड़के यूं नाचने लगे जैसे उन्हें खजाना मिल गया हो ।



और !



ग्यारह बजे बिशम्बर गुप्ता, ललितादेबी और हेमन्त को थाने से उठाकर बाहर खड़े गधों पर बैठा दिया गया-----जाने किसने उन तीनों के गले में एक--एक पट्टी डाल दी------बिशम्बर गुप्ता के गले में पड़ी पड़ी पट्टी पर बड़े बड़े अक्षर में लिखा था------" मैं सुअर हूं----दहेज का लोभी कुत्ता हूं !"


ललितादेबी के गले में------" मैं सास नहीं चुडैल हूं !"



" मैं पति नहीं हत्यारा हूं ।" यह पट्टी हेमन्त के गले में पडी़ थी !



जलूस चल दिया !



प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

Post by Jemsbond »

गधों को पी.ए.सी के जावनों ने अपने घेरे में ले रखा था !


गोडास्कर इस घेरे का नेतृत्व करता सा अागे-जागे चल रहा था----भीड़ को चीरकर कर्नल जयपाल अागे आ गया----जाने कहां से वह अपने हाथ काले कर लाया था, चीखकर गोडास्कर से बोला--" मुझे कभी रिश्वत न लेने बाले इस मजिस्ट्रेट का मुंह काला करना है इंस्पेक्टर । "



" नहीं , इजाजत नहीं है ।" मगर कर्नल ना माना ।


गोडास्कर से जिद करता ही रहा वह-उसके समर्थन में ढेर सारे लोग जुट गए और विवश गोडास्कर को उसे इजाजत देनी पडी़ गुस्से की ज्यादती के कारण पागल-सा हुआ जा रहा जयपाल अपने काले हाथ लिए, गधे परे बैठे बिशम्बर गुप्ता के सामने जाकर चीखा-----" हकीकत यह है बिशरम्बर----- ये है असली चेहरा !"


कहते हुए उसने बिशम्बर गुप्ता का चेहरा काला कर दिया ।
रास्ते में जाने कितने लोग, कहां से अपने हाथों में स्याही लगा लाए और कुछ ही देर बाद ललिता देवी तथा हेमन्त के चेहरे भी काले नजर आ रहे थे !


उफ !


इतनी जिल्लत-----इतना अपमान !


वह भी उस शख्सियत का जिसके सामने कभी किसी ने आखें उठाकर बात नहीं की ----- बिशम्बर गुप्ता सह न सके ------ कोर्ट पहुचने से पहले ही उनके दिल में दर्द की तीव्र लहर उठी----हथकडियों युक्त हाथों से उन्होंने सीने को भींचा ।



ललितादेवी के अलावा किसी का ध्यान उनकी तरफ न था !




कुछ देर तक वे गधे पर बैठे दर्द के कारण तड़पते रहे और फिर गथे से नीचे गिर गए--पी.ए.सी. के जवान उन्हें उठाने के लिए लपके मगर सड़क पर पडे़ वे जल बिन मछली के समान तड़प रहे थे।

"कोई डॉक्टर को बुलाओ-इन्हे दिल का दौरा पड़ा है शायद ।" पी.ए.सी. के जवान का वाक्य पूरा होते-होते बिशम्बर गुप्ता का जिस्म ठंडा पड़ गया ।
"दहेज के लोभी------हाय हाय !"


" बहू के हत्यारे------हाय हाय !"


"हत्यारे ससुर को-----बाहर निकालो !"


"कातिल पति--हाय हाय । "



"अरे हत्यारी सास को-फांर्सीं दो ।"



थाने के आसपास का इलाका इस किस्म के जाने कितने नारों से थर्रा रहा था-लोग वहुत उत्तेजित थे-जबरदुस्त भीड़ ।



ऐसा महसूस देता था कि जैसे सारा शहर सिर्फ और सिर्फ थाने के बाहर इकट्ठा हो "गया" है--उनकी गिरफ्तारी का समाचार पेट्रोल पर दौड़ने बाली आग के समान सारे शहर में फैल चुका था-साथ ही यह भी कि जब पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची तो हत्यारा देवर भागने के प्रयास में मारा गया ।


सुनकर किसी को हमदर्दी न हुई ।


थाने के अंदर ललितादेवी और रेखा दहाड़ें मार-मारकर रो रही थीं----हथकडि़यों में जकडे़ हाथों से कई बार रेखा ने पागल होकर अपने चेहरे की पट्टियां खोल डालने की असफल कोशिश की !



बिशम्बर गुप्ता आश्चर्यजनक रूप से शांत थे ।



हेमन्त के मुंह से कोई अाबाज न निकल रही थी पर आंखों से उबलते हुए गर्मपार्मं अांसू लगातार बह रहे थे नहीं जानता था कि ये अांसू अमित के लिए हैं या उन नारों की प्रतिक्रिया, जो इऩके कानों तक पहुंचा रहे थे ?




दस बजे तक थाने के बाहर इतनी भीड़ जमा हो गई कि अतिरिक्त फोर्स भी अब उस पर काबू पाने में असमर्थ थी---_---हर तरफ उत्तेजना ।



दहकते हुए नारे ।



गोडास्कर ने फोन पर किसी पुलिस अफसर को रिपोर्ट दी----"भीड़ बेकाबू और हिंसक होती जा रही है सर, अगर इनकी मांगें न मानी गई तो ये लोग थाने पर पथराव कर सकते हैं-----तोड़ फोड़ कर सकते हैं, कुछ भी हो सकता है सर ।"



"क्या मागें इन लोगों की ?"



"कुछ लोग जाने कहां से तीन चार गधे पकड़ लाए हैं सर, भीढ़ उन गधों पर बैठाकर सारे शहर में इनका जुलूस निकालना चाहती है ! "




थोडी देर के लिए दूसरी तरफ खामोशी छा गई, फिर कहा गया----"कोर्ट का टाइम हो गया है गोडास्कर----तुम ऐसा करो कि जिस तरह पब्लिक चाहती है यानी इन लोगों को एक जुलुस की शक्ल में लेकर कोर्ट पहुंचों !"



"स.....सर रेंखा ।"

"उसे जुलूस से अलग रखो अौर सुनो, इन लोगों के चारों तरफ सारे रास्ते तुम्हें पुलिस का ऐसा सशक्त घेरा रखना है कि कोई उनमें से किसी ऐसा नुक्सान न पहुंचा सके कि कल पुलिस के लिए कोर्ट के सबालों का जवाब देना मुश्किल हो जाए । "
" वह तो ठीक है सर, लेकिन ।"



" लेकिन ?"



"जुलूस निकालने के लिए मुझे पी.ए.सी की जरूरत पड़ेगी ।"




" हम भेज रहे हैं !" कहने के साथ दूसरी तरफ से रिसीवर रख दिया गया !



गोडास्कर थाने से बाहर निकाला--------भीड़ दुगने जोश के साथ नारे लगाने लगी, वडीं मुश्किल से भीड़ को शांत करके उसने चीखकर घोषणा की कि उनकी मांग मान ली गई है------शोर शराबा उत्तेजना बढ गई-----नारे पुलिस की प्रशंसा में लगने लगे----आबारा लड़के यूं नाचने लगे जैसे उन्हें खजाना मिल गया हो ।



और !



ग्यारह बजे बिशम्बर गुप्ता, ललितादेबी और हेमन्त को थाने से उठाकर बाहर खड़े गधों पर बैठा दिया गया-----जाने किसने उन तीनों के गले में एक--एक पट्टी डाल दी------बिशम्बर गुप्ता के गले में पड़ी पड़ी पट्टी पर बड़े बड़े अक्षर में लिखा था------" मैं सुअर हूं----दहेज का लोभी कुत्ता हूं !"


ललितादेबी के गले में------" मैं सास नहीं चुडैल हूं !"



" मैं पति नहीं हत्यारा हूं ।" यह पट्टी हेमन्त के गले में पडी़ थी !



जलूस चल दिया !



गधों को पी.ए.सी के जावनों ने अपने घेरे में ले रखा था !


गोडास्कर इस घेरे का नेतृत्व करता सा अागे-जागे चल रहा था----भीड़ को चीरकर कर्नल जयपाल अागे आ गया----जाने कहां से वह अपने हाथ काले कर लाया था, चीखकर गोडास्कर से बोला--" मुझे कभी रिश्वत न लेने बाले इस मजिस्ट्रेट का मुंह काला करना है इंस्पेक्टर । "



" नहीं , इजाजत नहीं है ।" मगर कर्नल ना माना ।


गोडास्कर से जिद करता ही रहा वह-उसके समर्थन में ढेर सारे लोग जुट गए और विवश गोडास्कर को उसे इजाजत देनी पडी़ गुस्से की ज्यादती के कारण पागल-सा हुआ जा रहा जयपाल अपने काले हाथ लिए, गधे परे बैठे बिशम्बर गुप्ता के सामने जाकर चीखा-----" हकीकत यह है बिशरम्बर----- ये है असली चेहरा !"


कहते हुए उसने बिशम्बर गुप्ता का चेहरा काला कर दिया ।
रास्ते में जाने कितने लोग, कहां से अपने हाथों में स्याही लगा लाए और कुछ ही देर बाद ललिता देवी तथा हेमन्त के चेहरे भी काले नजर आ रहे थे !


उफ !


इतनी जिल्लत-----इतना अपमान !


वह भी उस शख्सियत का जिसके सामने कभी किसी ने आखें उठाकर बात नहीं की ----- बिशम्बर गुप्ता सह न सके ------ कोर्ट पहुचने से पहले ही उनके दिल में दर्द की तीव्र लहर उठी----हथकडियों युक्त हाथों से उन्होंने सीने को भींचा ।



ललितादेवी के अलावा किसी का ध्यान उनकी तरफ न था !




कुछ देर तक वे गधे पर बैठे दर्द के कारण तड़पते रहे और फिर गथे से नीचे गिर गए--पी.ए.सी. के जवान उन्हें उठाने के लिए लपके मगर सड़क पर पडे़ वे जल बिन मछली के समान तड़प रहे थे।

"कोई डॉक्टर को बुलाओ-इन्हे दिल का दौरा पड़ा है शायद ।" पी.ए.सी. के जवान का वाक्य पूरा होते-होते बिशम्बर गुप्ता का जिस्म ठंडा पड़ गया ।
बिशम्बर गुप्ता की मृत्यु की खबर भीड़ में तेजी से फैल गई और इस खबर से सिर्फ इतना फर्क पड़ा कि नारे लगने बंद हो गए-दहेज के लोभी, बहु-के हत्यारों से सहानुभूति अब भी किसी को न थी ।


करीब तीन बजे उन्हें अदालत में पेश किया गया ।


मजिस्ट्रेट ने सूचना दी----" यह जानकर शायद अाप लोगों को दुख होगा कि श्री बिशम्बर गुप्ता का देहांत हो गया है, डाक्टरी रिपोर्ट के मुताबिक दिल का दौरा पढ़ने से उनकी मृत्यु हुई !"



कटहरे में खड़ी रेखा फूट फूटकर रो पड़ी ।


हेमन्त गर्दन झुकाये चुपचाप आंसू बहा रहा था और कटहरे में खड़ी ललितादेबी पर इस समाचार की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई----वह आंखें फाड़े, लगातार--पागल की तरह मजिरट्रेट तरफ देखती रही----कुछ ऐसे अंदाज़ में कि एक बार को तो न्यायाधीश महोदय भी सकपका गए!



कुछ देर बाद न्यायाधीश ने उनसे सवाल क्रिया-----" आपने गला घोंटकर अपनी बहूकी हत्या की है ललितादेबी ?"



ललितादेवी हंस पड़ी ।


एक बार उन्होंने हंसना शुरू किया तो फिर हंसती चली गई-----बड़े ही डरावने अंदाज में हंस रही थी वह और समूचा अदालत कक्ष उनकी हंसी से कांप उठा ।



हेमन्त ने चौंककर उनकी तरफ देखा!



उन्हें ध्यान से देखते हुए न्यायाधीश महोदय ने अपना सवाल दोहराया--जवाब दीजिए ललितादेवी-सुचि का गला आपमें से किसने घोंटा ?"




"हा--हा--हा--हा-मैंने घोटा था उसका गला----मैंने मारा है उसे-हा-हा-हा-मुझे दहेज चाहिए----वह हरामजादी दहेज नहीं लाई थी---हा--हा----जो दहेज नहीं लाएगा मैं उसे मार डालूंगी-----मैं तुझे भी मार डालूंगी-------ह्वा-- हा--तूने मुझे दहेज नहीं दिया तो तुझे भी खत्म कर दूंगी----------मैं सास नहीं चुडैल हूं------हा--हा---मैं चुडैल हूं-मुझसे बचकर रहो-----मैं सबको खा जाऊंगी---- हा---हा !"


"मम्मी-मम्मी । " हेमन्त हलक फाढ़कर चिल्लाया ।



ललितादेवी उस चिल्ला उठी----"चिल्लाता क्या है---तेरे चिल्लाने से क्या चुड़ैल डर जाएगी---जिंदा रहना चाहता है तो दहेज लेकर आा-वरना तुझे भी खा जाऊंगी मैं------हा-हा गला घोंटकर खत्म कर दूंगी । "


हेमन्त के जबडें भींच गए, कसमसाकर कटहरे के रैतिंग पर उसने इतनी जोर से मारा कि अदालत कक्ष गूंजकर रह गया, न्यायाधीश ने फैसला सुनाया---"' इस मामले की सुनवाई बिलकुल मुमकिन नहीं हैे----यह सुनबाई बीस तारीख को होगी तब तक के लिए ललितादेवी मेंटल हॉस्पिटल, रेखा को सरकारी अस्पताल और मिस्टर हेमन्त को जेल में रखा जाए--मिस्टर हेमन्त चाहें तो पुलिस की निगरानी में अपने पिता और भाई का अंतिम संस्कार अपने हाथों से कर सकते हैं ।


ललितादेबी के कहकहे अदालत कक्ष मे अब भी गूंजते रहे !"
अगले दिन सुबह !



हाथ में लाठियां लिए पुलिस कर्मियों ने दोनों चिताओं को चारों तरफ से घेर रखा था----कूल्हे पर होलस्टर लटकाए जेलर साहब सादर मुद्रा में एक तरफ खडे़ थे और पुलिस के इसी घेरे के बीच खड़ा हेमन्त देख रहा था अाग की लपलपाती उन लम्बी लम्बी जीभों को जो उसके छोटे भाई और पिता की चिताओं से आकाश की तरफ उठ रही थीं ।



दहकती आग की लपलपाती वे जीभें हेमन्त को मुंह चिड़ाती सी महसूस हो रही र्थी-जब लकडियां चटकतीं तो उसे महसूस होता कि एक-एक करके उसके दिमाग की नसें चटक रही हैं-----निर्दोष पिता और भाई की चिता में अपने हाथों से अग्नि दी थी उसने, मगर अपनी सुचि की लाश के साथ तोऐसा भी नहीं कर सका !



वह लाश दीनदयाल को सौंपी-गई थी ।


चंद पुलिस कर्मियों और जगदीश के अलावा इस वक्त यहां उसका अपना कोई भी तो न था----जिसके अंतिम संस्कार में सारे शहर को शामिल होना चाहिए था उसकी चिता के नजदीक रह गई थी पुलिस-पुलिस का पहरा ।


उसके दिमाग में सवाल उठ रहे थे कि यया मैं अपने पिता की उस प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित कर सकूंगा जिसे "सुचि हत्याकांड'' ने खाक में मिला दिया है--क्या मैं इस शहर के
निवासियों को कभी यकीन दिला सकूंगा कि हमने कभी दहेज नहीं मांगा, सुचि की हत्या नहीं की?


शयद नहीं !



ऐसा करने का कानून मुझे मोका ही कहां देगा ?


अभी हेमंन्त यह सब सोच ही रहा था कि जगदीश ने कहा----"कपाल क्रिया करो बेटे । "



वह चौंका !


एक लाठी लिए आगे बढा ।


महापंडित द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ "कपाल क्रिया" की उसने और अपने छोटे भाई के 'काक' पर लाठी मारते समय दहाड़े मार-मारकर रो पड़ा वह-अग्नि शिखाएं कुछ और भड़ककर उछलने लगी ।


रस्म के मुताबिक चिता के समीप से हटकर वह महापंडित के साथ मंदिर के अंदर गया----जेलर और सिपाही जगदीश सहित बाहर खड़े रहे ।
एक सिपाही के हाथ में वह हथकडी थी जो अतिम संस्कार की रस्में समाप्त होते ही पुन: हेमन्त को पहना दो जाने हैं बाली थी, मगर जब पांच मिनट होग्ए और मंदिर के अंदर से हेमन्त या महापंडित में से कोई भी बाहर नहीं आया तो जेलर का माथा ठनका ।



उसने सवालिया नजरों से इधर-उधर देखा ।


सभी सिपाहियों के चेहरों पर आश्चर्य के चिह्न थे, जब जेलर पर रहा न गया तो उसने जगदीश से पूछा----------"इतनी देर ,क्यों लग रही है !"



‘मैं' भी यही साचकर हैरान हूं !"



जेलर ने ऊंची आवाज में पुकारा-----"हेमन्त !"



कोई जवाब नहीं !


एक सिपाही द्वारा महापडि़त को पुकारा गया ।



सन्नाटा !



"तुम देखो रामकुमार ! " जेलर ने होलस्टर से रिवॉल्वर खींचते हुए हुक्म दिया----"मंदिर के अंदर जाकर देखो कि ये कहां गए ! "



रामकुमार नाम का सिपाही तुरंत जूते उतारकर मंदिर में घुस गया-भीतरी भवन में पहुंचते ही उसके हलक से चीख निकल गई------महापंडित का बेहोश जिस्म शिवलिंग के समीप पड़ा था और मंदिर का पिछला दरवाजा चौपट ।



" ब.....भाग गया है सर !" चीखता हुआ रामकुमार बापस, दौड़ा-------"पंडित को बेहोश कंरके वह पिछले दरबाजे से भाग निकला है!"




"पीछा करों उसका अभी दूर नहीं गया होगा । "



हड़कम्प मच गया ।



भगदड़ ।



मगर हेमन्त श्मशान में कही भी तो न था ।
"अंकल अंकल ।" चीखता हुआ वह कर्नल जयपाल की कोठी के कम्पाउंड में दाखिल हुआ-----बूरी तरह हांफ रहा था वह---वेतहाशा भागता हुआ अंदर दाखिल होना ही चाहता था कि


"मैं यहाँ हूं ।"


हेमन्त की नजर आवाज़ की दिशा में उठ गई----"स्टडी के दरवाजे पर खड़ा कर्नल उसे ही घूर रहा था, हेमन्त -अधीर होकर उनकी तरफ भागा, परंतु अभी वह नजदीक पहुंचा भी न था, कर्नल ने कड़ककर कहा-----''खबरदार हेमन्त, वहीं रुक, जाओ !"



हेमन्त जाम होकर रह गया !



'" कर्नल जयपाल अग्रवाल के घर में मुजरिमों के लिए कोई जगह नहीं है !" उसने हेमन्त को घूरते हुए सख्त स्वर में कहा----" तुम्हें तो इस वक्त जेल में होना चाहिए । "



" मुझे अमित और बाबूजी का अंतिम संस्कार करने की छूट दी थी…किसी तरह वहां से भागकर अापके पास आया हूं !"


" किसलिए ?"


“म. ..मुझे अापसे कुछ बात करनी है अंकल । "



"मुजरिमों से बात करना तो दूर, मैं उनकी परछाईं तक देखना नहीं चहता--यहां अाकर-तुमने बहुत बड़ी भूल की है हेमन्त ।"




" मैं आपकी कसम खाकर कहता हूं अंकल कि हम लोग, निर्दोष हैं…हमने सुचि की हत्या नहीं की--मुसीबत की इस घड़ी में एकमात्र अाप ही मुझे नजर अाते हैं----अाप ही मेरी मदद कर सकते हैं, क्योकि मेरी नजर में अाप ही, सच्चाई के साथी ।"



" हम सच्चाई के साथी हैं, मुजरिमों के नहीं !"



"हम मुजरिम नहीं हैं, एक बार…सिर्फ एक बार मेरी बातें ठंडे दिमाग से सुन लीजिए अंकल । हेमन्त बुरी तरह गिड़मिड़ा उठा…"मुझें यकीन है कि मैं अापको यह यकीन दिलाने में कामयाब हो जाऊंगा कि हम मुजरिम नहीं हैं-----"हमने सुचि की हत्या नहीं की-कोई दहेज नहीं मांगा उससे----------हम किसी षडयंत्र के शिकार हुए हैं-----मैं अापके पैर पकड़ता हूं अंकल-एक-----सिर्फ एक मौका दीजिए, अगर तब भी आपको मुजरिम लगूँ तो बेशक कानून के हवाले का दीजिएगा । "
हेमन्त की गिड़गिड़ाहट में कुछ ऐसा जरूर था, जिससे प्रभावित होकर कर्नल इस बार तुरंत ही दहाड़ा नहीं, वल्कि चेहरे पर कठोरता लिए सिर्फ उसे घूरता रहा…हेमन्त ने पुन: रिक्वेस्ट की तो उसने इतना ही कहा---"आ जाओ ।"



" थ. . .थैक्यू अंकल । कहता हुआ वह उनकी तरफ लपका----वे दरवाजे के बीचोबीच से हट गए----यह हेमन्त को स्टडी में दाखिल हो जाने की इजाजत थी ।


स्टडी के बीचोबीच खड़ा हेमन्त अपनी फूली हुई सांस को नियंत्रित करने की चेष्टा के साथ ही यह भी सोच रहा था कि कर्नल साहब को यकीन दिलाने के लिए उसे बात कहाँ से शुरू करनी चाहिए-----अभी वह निश्चय न कर पाया था कि चटकनी चढ़ाने के बाद जयपाल घूमे, उसे घूरते हुए बोले-----"बैठ जाओ !"


हुक्म का गुलाम-सा वह 'धम्म' से सोफे पर गिर गया ।



उसके नजदीक जाते हुए कर्नल ने पूछा-----"बोलो क्या कहना है तुम्हें ?"



हेमन्त अंजू' के नाम से मिलने वाले टेलीग्राम से शुरु हो गया और फिर ज्यों का त्यों सब कुछ सुनाता चला गया ।


सब कुछ !


यह भी सुचि की लाश घर से निकालकर उन्होंने क्यों और केसे गुलावठी पहुंचाई----भागकर अपने यहाँ अाने तक की पूरी कहानी सुनाने के बाद वह बोला…"सच्चाई यही है अंकल, आपके दिमाग में ऐसे बहुत से सवाल उभर सकते है ! जिनका मेरे पास कोई जवाब नहीं हैं और इसी वजह से आपको लग सकता है कि मैं झूठ बोल रहा हूं --लेकिन यकीन मानिए अंकल---" उस बच्चे की कसम खाकर कहता हूं, जो मेरी सुचि की कोख में पल रहा था कि सच्चाई यही है----इस सच्चाई को साबित करने के लिए मेरे पास कोई ,सबूत नहीं है, लेकिन आप यकीन कीजिएं-मैनै रत्ती बराबर भी झूठ नहीं बोला है । "



" अगर मान लिया जाए कि तुम सच बोल रहे हो तो मैं इसमेँ क्याकर सकता हूं ?
"अदालत मुझे फांसी या उम्र कैद से कम सजा नहीं देगी---जानता हूं कि वहाँ से मुझें न्याय नहीं मिलेगा, क्योकि जो कुछ अापको बताया उसे साबित नहीं का सकता और अदालत मेरे अंकल की नहीं कि बिना सबूत के मुझ पर यकीन कर ले--- उल्टे ऐसे सबूत हैं कि जिनसे मैं हत्यारा साबित हो जाऊंगा, यदि सच्चाई पूछें अंकल तो यह यह है कि इन तीन-चार दिनों में मैं अपना सब कुछ खो चुका हूं---इत्तना कुछ कि जव अदालत से किसी तरह का न्याय पाने की हसरत भी दिल में नहीं है ।"



"फिर क्या चाहते हो तुम ?"




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Re: दुल्हन मांगे दहेज

Post by Jemsbond »

" यह जानना चाहता हूं कि सुचि ने वह झुठा पत्र क्यों लिखा-----वह कौन हैं जिसने सुचि की हत्या करने के बाद लाश हमारे बेडरूम में लटका दी--------ऐसा क्यों किया और सुचि की अटैची, बाबूजी का रिवॉल्वर तथा वीस हजार रुपए पानी की टंकी में कैसे पहुंच गए----अदालत द्वारा दी जाने बाली सजा भोगने से पहले मैं ऐसे ढेर सारे सवालों का जवाब चाहता हुं और इनके जवाब तलाश करने में अाप मेरी मदद कर सकते हैं !


" बेशक मैं तुम्हारी मदद जरूर करूगां !"



" थैंक्यु अंकल----थैक्यु वैरी मच---------मुझे पूरा विश्वास था अाप मेरी मदद जरूर करेगे----जो हो गया उसे बापस नहीं लाया जा सकता-------मैं इस शहर को यह बताना चहता हूं कि जो हुआ वह गलत ही नहीं, अनर्थ हुआ-मरने से पहले मैं इस शहर को बता देना चाहता हूं कि विशम्बर गुप्ता उसी सम्मान----उसी इज्जत के हकदार थे जो सारा शहर 'सुचि स्कैंडल’ से पहले उन्हें देता था---- इस शहर के बच्चे------बच्चे को यह बात समझा देना चाहता हूँ अंकल कि जिन बिशम्बर गुप्ता को अपमानित करके मार डाला गया वे देवता थे है श्रद्धा के पात्र थे----मरने से पहले अपने बाबूजी की खोई हुई प्रतिष्ठा को स्थापित करना ही मेरा लक्ष्य है ।"
''ऐसा तुम नहीं कर सकोगे !" कर्नल साहब का सपाट स्वर ।


" क्यों ?" हेमन्त चोंक पडा----" जब आप मेरी मदद करोगे तो मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकूंगा अंकल ? "


''मैं इसमें तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा । "



"क्यों अंकल ? "


''मैं सिर्फ उन सवालों के जवाब दे सकता हूं जिनकी तुम्हें तलाश है, लेक्रिन विशम्बर की खोई हुई प्रतिष्ठा को स्थापित करने में तुम्हारी कोई मदद नहीं का सकता । '



"मैं समझा नहीं अंकल ऐसा क्यो ?"



"क्योंकि वह आदमी मैं ही हूं जिसने तुम्हे, तुम्हारे सारे परिवार को इस बदतर हालत तक पहुंचाया !" सपाट स्वर में कर्नल साहब कहते चले गये-----" विशम्बर की प्रतिष्ठा धूल में खुद मैंनें मिलाई हेै । "


"अ.. .अाप झूठ बोल रहे है अकल, मजाक कर रहे हैं !"



'"और यह तमन्ना उसी दिन से मेरे दिल में थी जिस दिन बिशम्बर ने सुरेश को फांसी का हुँक्म सुनाया------कुछ भी हो, इंसान चाहे जितना सिद्धांतबादी हो, मगर जवान बेटे की मौत सारे सिद्धांतों को जलाकर राख कर देती है बेटे-----------बिशम्बर गुप्ता के विरूद्ध उसी दिन से मेरे सीने में इंतकाम की अाग धधक रही थी------ना---ना उठने की कोशिश मत्त करो हेमन्त---अगर तुम हिले भी तो मेरे रिवॉल्वर की गोली वक्त से पहले ही तुम्हे हमेशा के लिए शांत कर देगी !"कठार स्वर में कहने के साथ ही कर्नल जयपाल ने अपनी जेब से रिवॉलबर निकालकर उस पर तान दिया ।


गुस्से की ज्यादती से भन्नाता हुआ हेमन्त ज्यों-का-त्यों रह गया ।


"मैं तुम्हें वेहिचक गोली मार दूंगा, क्योंकि उसके बाद भी कानून मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । कर्नल जयपाल गुर्राहटधार स्वर में कहता चला गया-"अपनी और मेरी -स्थिति के फर्क को समझो बेटे--- तुम इस बक्त एक फरार मुजरिम हो-मैं सच्चा और सम्मानित नारिक--मेरा केवल इतना ही बयान काफी होगा कि तुम यहाँ मेरे, द्वारा अपने बाप का मुंह काला किए जाने का बदला लेने अाये थें----मैंने पुलिस को फोन करना चाहा+--मगर तुम बदला लेने पर तुले थे और आत्मरक्षा हेतु मुझें गोली चलानी पड़ी !"


हैरत अौर आंतक से घिरा हेमन्त अवाक् अंदाज में कर्नल के उस चेहरे को देखता रह गया जो इस वक्त उसे किसी खूनी भेडिए के चेहरे जैसा नजर आ रहा था ।
उसे कवर किए कर्नल ने कहा----"किसी पर भी अपना राज खोलने का मेरा कोई इरादा नहीं था, लेकिन जिस अवाज
में तुम मेरे सामने गिड़गिड़ाए-रोए----मदद्ग के लिए चिल्लाए उसने मूझे प्रभावित किया-जी चाहा कि तुम्हें उन सवालों का जबाब दूं, जिनकी तुम्हें तलाश है----काफी सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि अगर में तूम पर बना राज खोल दूं तब भी मेरा कुछ बिगढ़ने वाला नहीं है और इसीलिए निश्चय किया कि कम से कम तुम्हारे सवालों का जवाब तो मुझे दे ही देना चाहिए !"



'"क. ..कुत्ते-हरामजादे !" अाये से बाहर होकर हेमन्त चीख पड़ा---'‘मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था सूअर की औलाद कि वह तू है…मैंने तो ये. . . ।


"'खामोश ।" कर्नल दांत भीचकर गुर्राया'--"अब अगर एक भी लफ्ज जुबान से निकाला तो हलक गोलियों से भरदूंगा----अहर वक्त से पहले मरना नहीं चाहते, अगर अपने सवालों का जबाब चाहते हो तो मुंह पर ताला लटकाकर सूनो-----तुम्हारे बाप पर मैंने यह कभी जाहिर नहीं क्रिया कि मेरे , सीने में इंतकाम की आग धधक रहीं है-----एक न्यायप्रिय और सिद्धांतवादी जिन्दगी होने का मुखौटा चढ़ाए मैंने उससे पुराने संबंध बनाए रखे-यह तुम्हारे बाप की बेवकूफी थी जो वह यह समझता रहा कि एक बाप कभी अपने जवान बेटे के हत्यारे को माफ कर सकता है-तुम्हारे बाप ने इज्जत और सम्मान के अलावा सारी जिदगी में कुछ भी नहीं कमाया था और उसकी यह कमाई सुरेश जैसे ही चंद मुकदमों की वज़ह से थी-मैंने निश्चय किया कि मौका मिलते ही बिशम्बर के उस सम्मान औक प्रतिष्ठा को धूल में मिता दूंगा, जिसके पाए बेटे की लाश पर टिके हैं-----मैं मौके की ताक में था मगर यह कमीना ऐसा कोई काम करता ही न था जिसका लाभ उठाकर इस शहर के, लोगों की नजरों में गिरा सकुं----तभी एक दिन, जव मैं हापुड़ गया तो दीनदयाल की बेटी को एक युवक के साथ पार्क में घूमते देखा…उसके संबंध समझने में मुझे देर न लगी-------वह पहला क्षण था जब मेरे दिमाग में एक स्कीम नाच उठी----एक लम्बी किंतु सशक्त योजना----जिससे मैं अपना बदला ले सकता था ।
कर्नल सांस लेने के लिए रुका ।


हेमन्त सांस रोके सुन रहा था, उसे एक क्षण की इंतजार थी जब कर्नल एक पल के लिए असावधान हो जबकि वह कहता चला गया-----बच्चा भी जानना है क्रि आज के जमाने में अगर किसी परिवार पर यह आरोप लग जाए क्रि उसने अपनी बहू से दहेज मांगा उसकी हत्या की तो जो बेइज्जती होती है, वह किसी अन्य तरीके से नृहीं हो सकती और . बिशम्बर गुप्ता अपनी बहु, से दहेज मांगने, बाला नहीं था-अत: उस दिन के बाद मैं सुचि और उस लड़के के पीछे साया बनकर पढ़ गया, जिसका नाम संदीप था----मैं उनके ऐसे संवेदनशील क्षणों के फोटो खंचिने में कामयाब हो गया, जिनके बूते पर सुचि को जिस तरह चाहूं नचा सकता था-मेरी योजना थी कि किसी भी स्थिति में सुचि की शादी संदीप से नहीं होने दूंगा-----दीनदयाल को बुरी तरह भड़का दूँगा और इसी सुचि को तुम्हारी दुल्हन, बिशम्बर गृप्ता की बहू बनाकर तुम्हारे घर में पहुंचा दूंगा--------जानता था कि सूचि और संदीप एकदूसरे से इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि दीनदयाल को भड़काने के बावजूद अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मुझे काफी दिक्कत पेश अाएंगी, किन्तु मैं अपने इरादों पर दृढ़ था और तभी, कुदरत ने मेरा साथ दिया-संदीप एक कार एक्सीडेंट में मारा गया-सुचि बेचारी छुपकर रोने के इलाबा कुछ न कर सकी-----अब उसे किसी कों यह बताने से भी कोई लाभ न होने बालां था कि कार एक्सीडेंट में मरने वाला युवक वास्तव में उसका गुप्त पति था-अब मेरा काम आसान हो गया------सुचि को तुम्हारी दुल्हन बना दिया…शादी के दिन के कुछ दिन तक शामोश रहा, धैर्य से काम लिया और 'मकडा' बन गया--कुछ ऐसा भेष बनाकर सुचि से मिला कि यह मुझे पहचान न सके-----मेरी एक ऐसी चाल थी कि ससुराल वाले दहेज न मांगे, तो न सही----दुल्हन खुद ही अपने पिता से दहेज मांगे-----संदीप के साथ उसकी फोटुओं ने सुचि से यह पत्र लिखवाया----बीस हजार ऱूपए मंगवाए और अंत में मैंने उसे एक रात के लिए होटल में वुलाया--वह आई, क्योंकि उसे आना ही था------होटल के उसी कमरे में मैंने गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी-------उसी रात बॉंल्कानी वाले दरवाजे से लाश तुम्हारे बेडरूम में पहुंचाई और वहां उसे इस ढंग से टांगा कि जैसे उसने आत्महत्या की हो-----उसका सारा सामान और
विशम्बर का रिवॉल्वर पानी की टंकी में डाल अाया-
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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