दुल्हन मांगे दहेज complete

Post Reply
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

दुल्हन मांगे दहेज complete

Post by Jemsbond »

दुल्हन मांगे दहेजby ved prakash sharma


मेरे प्यारे पापा,


सादर नमस्ते !


अच्छी तरह जानती हूं कि इस पत्र को पढ़कर अापके दिल को धक्का पहुंचेगा, परंतु फिर भी आपकी यह जालिम और बेरहम बेटी लिखने पर मजबूर हो गई है, सच पापा--आपकी यह नन्हीं बेटी वहुत मजबूर है---------जो कुछ हो रहा है यह शायद आपकी बेटी के दुर्भाग्य के अलावा औऱ कुछ नहीं है, वरना----आपने भला क्या कमी छोडी थी----खूब धूम धाम से मेरी शादी की-दहेज में वे सब चीजे दी, जो अापकी हैसीयत से बाहर थीं !



देखने-सुनने में रिटायर्ड जुडीशियल मजिरट्रेट श्री बिशम्बर गुप्ता का परिवार सारे बुलन्दशहर के लिए एक आदर्श है------जिधर निकल जाएं लोग इनके सम्मान में बिछ--बिछ जाते हैं और देखने-सुनने में हेमन्त भी योग्य है, छोटी ही सही, मगर 'लॉक मैन्युफैक्चरिंग' नामक फेक्टरी का मालिक है, परंतु यह जानकर आपको दुख होगा पापा कि वास्तव में ये लोग वैसे नहीं हैं जैसे दिखते है !



पिछले करीब एक महीने से ये लोग मुझ पर आपसे बीस हजार रुपए मांगने के लिए दबाब डाल रहे ---मैं टालती अा रही थी, क्योकि आपकी हालत से अनजान नहीं हूं----जानती हूं इन जालिमों की मांग पूरी करना आपके लिए असंभव की सीमा तक कठिन है, मगर...ये लोग बात-बात पर मुझे ताने मारते हैं . . . . . . . . तरह-तरह से मानसिक यातनाएं दे रहे हैं ।

समझ में नहीं आ रहा है पापा कि मैं क्या करूं----हेमन्त कहता है कि अगर उसे रुपए नहीं मिले तो मुझे तलाक दे देगा-----सोचती हू कि मैं खूद को फांसी लगा लूं---कोशिश की, लेकिन आपका ख्याल आने पर सफल न हो सकी…दिल में ख्याल उठे कि अाप मुझे कितना प्यार करते हैं पापा, मेरी मृत्यु से आप पर क्या गुजरेगी-----बस मरने का साहस टूट गया---आपके फोटो के सामने बैठी बिलख-बिलखकर रोती रही मैं ।


में चार तारीख को अापके पास अा रही हूं …हालांकि जानती हूं शादी के कर्ज से अभी तक आपका बाल--बाल बिंधा पड़ा है, इस मांग को पूरा करने के लिए मेरे पापा की खाल तक बिक सकती है, परंतु फिर भी, यह लिखने पर बहुत विवश हूं पापा कि जहाँ से भी हो, जैसे भी हो----बीस हजार का इंतजाम करके रखना !



और हां, इन लोगों ने मुझे धमकी दी है कि अगर इस बारे में आपने इनसे कोई बात की तो मेरी खेर नहीं है------अाप मेरा अच्छा चाहते हैं तो इस बारे में इनसे जिक्र न कीजिएगा-----बाकी बातें मिलने पर बता सकूंगी ।


आपकी बेटी --- सुचि


दीनदयाल ने कम-से-कम बीसवीं बार अपनी बेटी के पत्र को पढ़ा और इस बार भी उस पर वही प्रतिक्रिया हुई, जो उन्नीस बार पहले हो चुकी थी-------लगा कि कोई फौलादी शिकंजा उसके दिल को जोर से भींच रहा है ।


असहनीय प्रीड़ा को सहने के प्रयास में जबड़े कस गए उसके, आंख भिंच गई और उनसे फूट पर्डी गर्म पानी की नदियां ।



दर्द सहा न जा रहा था ।



पीड़ा के उसी सैलाब से ग्रस्त सामने बैठी पार्वती ने जब देखा कि पति ने अपने दांतों से होंठ जख्मी कर लिए हैं तो कराह उठी----" बस कीजिए मनोज के पापा, बस कीजिए-दिल फटा जा रहा है । "



दीनदयाल कुछ बोला नहीं, शून्य में घूरते हुए उसका चेहरा एकाएक चमकने लगा-हौंठ से खून रिस रहा था और जबड़ों के मसल्स फूलने-पिचकने लगे-जाने वह क्या सोच रहा था कि गुस्से की ज्यादती के कारण सारा शरीर कांपने लगा------

जाने वह क्या सोच रहा था कि गुस्से की ज्यादती के कारण सारा शरीर कांपने लगा------ मुटि्ठयां भिंचती चली गई, साथ ही बेटी का पत्र भी-----एकाएक उनके मुंह से गुर्राहट निकली---"विशम्बर गुप्ता को कच्चा चबा जाऊगा, खुन कर दूंगा उसका ।"



पार्वती घबरा गई, बाली----"क्या कह रहे है आप होश में आइए । "



"ऐेसे कुत्तो' का यही इलाज है मनोज की मां----फिर इन हालतों में एक लइकी का गरीब बाप और कर भी क्या सकता है-दहेज के इन लोभी भेडियों की बोटी बोटी काटकर चील कौवों के सामने डाल देनी चाहिए । "



" मैं आपके हाथ जोड़ती हुं---यह हमारी बेटी का मामला है, अगर जोश में आपने कोई उल्टा-सीधा कदम उठा दिया तो अंजाम हमारी सुचि को भुगतना होगा, जाने वे उसके साथ क्या सलूक करें ? "



"क्या करेंगे वे कमीने--- क्या वे हमारी बेटी को मार डालेंगे ? "



' 'आए दिन बहुएं जलकर मर रही हैं, ऐसा करने वालों का ये समाज और कानून भला क्या बिगाड लेता है ?"


दीनदयाल का सारा जिस्म पसीने-पसीने हो गया, बूढ़ी आंखों ने अाग की लपटों से घिरा बेटी का जिस्म देखा तो चीख पड़ा----" न-नहीं---ये नहीं हो सकता मनोज की मां, वे ऐसा नहीं कर सकते । "


" दहेज के भूखे दरिदें कुछ भी कर सकते हैं । "


सारा क्रोध, सारी उत्तेजना जाने कहाँ काफूर हो गईं---वड़े ही, मर्मातक अंदाज में दीनदयाल कह उठा--------"वे लोग ऐसे लगते तो नहीं थे पार्वती, सारे बुलंदशहर में यह बात कहावत की तरह प्रसिद्ध है कि अपनी सर्विस के जमाने में विशम्बर गुप्ता ने कभी एक पैसे की रिश्वत नहीं ली । "


"भ्रष्ट आदमी पद और रुतबे में जिनता बड़ा होता है उसके चेहरे पर शराफत और ईमानदारी का उतना ही साफ-सुथरा फेसमास्क होता है मनोज के पापा । " पार्वती कहती चली गई-----" हम लोगों के अलावा यह भी किसको पता होगा कि विशम्बर गुप्ता दहेज के लोभी हैं---बात खुलने पर भी लोग शायद यकीनन कर सके ।"


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: दुल्हन मांगे दहेज

Post by Jemsbond »

रिटायर्ड जूडिशियल मजिस्ट्रेट बिशम्बर गुप्ता आराम-कुर्सी पर अखबार पड़ रहे थे कि ललितादेबी ने आँगन में कदम रखते हुए कहा---"अखबार में ऐसा क्या है, जिसमेॉ अाप चिपककर रह गए ?"



बिशम्बर गुप्ता ने नाक पर रखे चश्में के अंदर से पत्नी की तरफ देखा, अखबार की तह बनाकर गोद में रख और चश्में को दुरुस्त करते हुए बोले-----"एक और बहू को उसके ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला । "



" हे भगवान ।" ललितादेबी कह उठी----घोर कलियुग आगया है ।"



बिशम्बर गुप्ता ने उसे ध्यानपूर्वक देखा, फिर समीप पडे स्टूल की तरफ इशारा करके बोले----' 'बैठो ललिता । "



पति के चेहरे पर छाई गंभीरता ने ललिता को विवश का दिया । वह स्टूल पर बैठती हुई बोली-"कहिए, क्या बात है ?"



बिशम्बर गुप्ता ने तुरन्त कुछ न कहा । पहले रहस्यमय अंदाज में चारों तरफ देखा , फिर ललितादेबी पर झुककर _अत्यंत धीमे स्वर में पूछा----"हेमन्त और बहू कहां हैं ?"


"उपर-अपने-कमरेमे ।"



बिशम्बर गुप्ता ने उसी अंदाज में पुन: पूछा---" रेखा और अमित ?"


" अमित अपने कॉलेज के ड्राइविंग कप्पीटि'शन की तैयारी हेतु ड्राइविंग करने गया है और रेखा छत पर पढ़ रही है, मगर आप इस तरह घरके हर सदस्य के बारे में क्यो पूछ रहेहैं ?"



बिशम्बर गुप्ता ललितादेबी पर कुछ और ज्यादा झुक गए । पहले से कई गुना ज्यादा रहस्यमय स्वर में बोले…"खाना बनाते बनाते वक्त अगर हमारी बहू भी किसी दिन जल कर मर जाये तो कैसा रहे ?"

" क-क्या ? " ललिलदेबी उछल पड़ी ।


"बात को समझने की कोशिश करो ललिता! " कहते वक्त बिशम्बर गुप्ता के बूढे परंतु रोबदार चेहरे पर हिंसा नाचने लगी----सुचि घर में भी हर वक्त रेशमी साड़ी पहने रहती है-----" गैस के चूल्हे से निकली आग का एक जर्रा यदि उसके पल्लू को स्पर्श कर ले तो ।"

"न-नहीं !‘" उनकी बात पूरी होने से पहले ही ललितादेवी चीख पडी़, उन्होंने झपटकर दोनों हाथों से पति का गिरेबान पकडा और हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़ी----" अाप वे नहीं हो सकते या-या फिर आपका दिमाग खराब हो गया है---पागल हो गए हैं अाप । "


''सोच तो ललिता, एक करोड़पति सेठ की लडकी सुचि से कहीं ज्यादा खूबसूरत है-----दहेज़ में वह लाखों रुपए देगा, मगर इसके लिए सुचि को ठिकाने लगाना जरुरी है ।"


ललितादेबी अवाक् ।


बोले भी तो कैसे ?


मुंह में जुबान ही न थी----' हत्या की कल्पना' मात्र से उनके जिस्म का रोयां रोयां खडा होगया ।



" बोलो, इस काम में तुम हमारी मदद करने के लिए तैयार हो या नहीं ?"



ललितादेवी को जवाबे देने का होश कहां । जैसे लकवा मार गया था उन्हें । चेहरा कोरे कागज सा सफेद , हवाइयां उड़ रहीं थीं वहां----आंखों की जैसे रोशनी गायब हो गईं-जिस्म के सभी मसानों ने एक साथ ढेर सारा पसीना उगल दिया था ।



मारे खौफ के पत्थर की मुर्ति में बदलकर रह गई थीं वह ।


ललितादेबी की आंखें उनके चेहरे पर स्थिर र्थी-और ऐसा देखकर एक बार को तो बिशम्बर गुप्ता के समुचे जिस्म में मौत की सिहरन दोइ गई, परंतु अगले ही पल जाने क्यों, उनके होठो पर, जीवन्त, मुस्कान उभर अाई । पत्नी के दोनों कंधे पकड़कर बोले---"क्या सोचने लगी तुम, होश में आओ । "



" न--नहीं-----अाप 'वे' नहीं हो सकते । डरे हुए अन्दाज़ में ललितादेबी बड़बड़ाती चली गईं--"उनके रूप में मेरे सामने कोई नरपिशाच खडा है, मेरे पति तो ऐसी घिनौनी बाते सोच भी नहीं सकते ।"


विशम्बर गुप्ता ठहाका लगा उठे, बेसाख्ता हस पडे बह ।



ललितादेबी के चेहरे पर मौजूद आंतक के भावो से उलझन के चिह्न भी आ मिले----कुछ कहने के प्रयास में उनके होंठ हिले जरुर थे, मगर कोई आवाज न निकल सकी, जबकि खुलकर हंस रहे बिशम्बर गुप्ता ने कहा--" खूद को संभालो हेमन्त की मां, मम सचमुच सुचि की हत्या करने बाले नहीं हैं, बल्कि एक प्रयोग कर रहे थे ।"
" कैंसा प्रयोग ? " ललितादेबी के मुंह से हठात् निकल पडा । "

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: दुल्हन मांगे दहेज

Post by Jemsbond »



"यह कि वह भारतीय नारी जो अपने पैर तले दबकर मर जाने वाली चीटीं तक को देखकर कांप उठती है, क्या दहेज के लोभ में सास बनते ही अपनी बहूकी हत्या कर सकती है । "



"मैं समझी नहीं। "



"दरअसल जब शुरू शुरू में दहेज की बलिवेदी पर चढ जाने वाली बहुओं से सम्बन्धित समाचर पढ़े तो हमेँ मासूम बहुओं से सहानुभूति और उनके ससुराल वालों से नफरत हुई मगर देखते-ही-देखते यह समाचार- चमत्कारी ढंग से अखबार के हर कॉलम पर छा गए--इस कदर कि कभी-कभी तो एक ही अखबार में तीन या चार बहुओं के जलाए जाने की खबरें छपने लगीं…ऐसा नजर आने लगा जैसे हर सास-ससुर, ननद-देयर और पति बहुओं को जला रहा हो…धीरे-धीरे यह सवाल हमारे जेहन में उग्र रूप धारण करता चला गया कि क्या यह -सभी समाचार सच हैं, क्या हत्या करना इतना आसान हो गहु है क्रि उसे साधारण पारिवारिक लोग इतनी तादाद में कर सकें ? "



ललितादेवी अपने पति की तरफ देखती भर रही ।



जबकि बिशम्बर गुप्ता कहते चले गए--" हम जुडीशियल मजिरट्रेट रहे हैं ललिता---हमने एक-से-एक क्रूर और जालिम मुजरिम को देखा है और अपने अनुभव-के आधार पर हम या बात दावे के साथ कह सकते हैं कि 'हत्या' जैसा संगीन जुर्म करने के नाम पर बड़े-से-बड़े मुजरिम के भी छक्के छुट जाते तो हैँ-इसीलिए हम इन खबरों पर यकीन न कर सके---------- हरगिज नहीं मान सकते कि जिस जुर्म को करने की कल्पना मात्र से पेशेवर मुजरिमों को भी पसीने आ जाते हैं उसे साधारण पारिवारिक लोग इतनी तादाद में कैसे कर सकते हैं ।"


"म. ..मगर इन सब बातों का मेरे सामने सुचि की हत्या का प्रस्ताब रखने से क्या मतलब ?"

" तुम भी एक साधारण भारतीय नारी हो ललिता, साय ही 'सास‘ भी-वैसी ही 'सास' जैसी इस देश की निन्यानवे प्रतिशत महिलाएं हैं…हम यह देखना चाहते थे कि 'सास' का लेबल चिपकते ही क्या सचमुच भारतीय महिला इतनी क्रूर और जालिम हो उठती है ?" कहने के खाद बिशाम्बर गुप्ता सांस लेने के लिए रुके फिर कह उठे-----और हमने देखा-----भय से सराबोर तुम्हारा चेहरा, खौफ की ज्यादती के कारण कांपती तुम्हारी आवाज----शर्त लगाकर कह सकते है कि हमारे जिन शब्दों ने जो हालत तुम्हारी कर दी, वे शब्द वही हालत इस मुल्क की निन्यानवे प्रतिशत महिलाओं की कर सकते हैं--महिलाओं को बहुअों की हत्यारी केसे स्वीकार किया जा सकता है, 'हत्या की कल्पना' मात्र से ही जिनके छक्के छूट जाएं ?"



''तो क्या अाप मुझे सिर्फ आजमा रहे थे ?" ललितादेबी का स्वर अभी तक हैरत में डूबा हुआ था---"द्रेखना चाहते थे कि दहेज के लालच में मैं सुची की हत्या कर सकती हूं या नहीं ?"



' 'सिर्फ तुम्हें नहीं ललिता, बल्कि तुम्हारे माध्यम से हम तमाम भारतीय 'सासों' की मानसिकता और उनके हौंसले को आजमा रहे थे-देखना चाहते थे कि क्या अखबार में छपी सभी खबरें सही होती हैं ?"




" क्या आप सच कह रहे हैं ?" स्वर में अभी तक शंका थी और उस शंका के कारण ही बिशाम्बर गुप्ता एक बार फिर ठहाका लगाकर हैंस पडे----वे आगे बढ़े, ललिता के डरे हुए एवं पसीने से तर-बतर चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच भरकर प्यार से कह उठे---"उफ तुम तो वहुत डर गई हो ललिता, क्या तुम समझती हो कि हम सचमुच. . . । "


" न--नहीं ऐसी र्तों मैं कल्पना भी नहीं कर सकती, तभी तो… । " अपने शब्द स्वयं ही बीच में छोड़कर ललितादेवी उनसे लिपट गई अोर जाने क्यों फफक-फफककर रो पड़ीं, बोली---" बहुत डर गई थी हेमन्त के पापा । "




"पगली ! " कहकर बिशम्बर गुप्ता ने बाँहो में भीच लिया और प्यार से उनके बाल सहलाने लगे ।
गुनगुनाती सुचि ने बाथरूम में लगा ‘फव्वारा‘ आँफ कर दिया---उसके तन पर पड़ रही बारिश रुक गई-उसके दूध से गोरे स्वस्थ एवं गदराए जिस्म पर पानी की बूंदें झिलमिला रही थी, जैसे पारदर्शी शीशे, पर देर सारे हीरे बिखरे पडे़ हो----
लम्बे घने एवं काले बालों क्रो उसने हौले से झटका और 'हैंडिल' से वड़ा 'टॉवल' उठाकर अपने बदन पर डाल लिया । फिर उसने टावल के नीचे से वे दो मात्र कपडे निकाले, जिन्हें पहने वह नहा रही थी-इस सारी क्रिया के बीच सुचि क्रिसी मधुर फिल्मी गाने को गुनगुनाए जा रही थी !



गरदन के पास टॉवल में उसने गाठ लगाई ।


पहले आहिस्ता से दरवाजा खोलकर उपने बेडरूम में झांका और आश्वस्त होने के बाद दरवाजा पूरी तरह खोलकर कमरे में पहुच गई---फर्श पर नन्हे-नम्हे पदचिह्न बनाती यह पूरी स्वच्छंदता के साथ एक कोने में रखी अलमारी की तरफ बढ़ रही थी…इस सच्चाई से बेखबर कि पीछे वाली दीवार से सटा हेमन्त उसे देख रहा है ।


हेमन्त की वृष्टि उसकी नग्न लम्बी सुडौल और केले के तने जैसी चिकनी टांगों पर स्थिर थी-----होंठों पर नाच रही थी शरारत से सराबोर मुस्कान-सांस रोके वह दबे पांव सुचि के पीछे बढा ।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: दुल्हन मांगे दहेज

Post by Jemsbond »


शायद वस्त्र निकालने के लिए सुचि ने अभी अलमारी खोली ही थी कि हेमन्त उसके बेहद समीप जाकर दहाडा-----"हा... ! "



"उई !" बुरी तरह डरकर सुचि चीख पडी ।



खिलखिलाकर हंसते हुए हेमन्त ने उसे बांहों में भर लिया----सुचि की समझ में क्षण भर में अपने पति की शरारत अा गई, अलग हटी और बनावटी क्रोध के साथ बोली-----" यह क्या बदतमीजी है हेमू ?"



हेमन्त ठहाका लगाकर हैंस पड़ा, बोला…"यही बदतमीजी करने के लिए तो पंद्रह मिनट से उस दीवार के सहारे लाठी की तरह खडे थे मेरी जान ।



दोनों कलाइयों को बाबर उसने ‘पल्लू’ का काम लेने की असफल कोशिश के साथ अपनी दृष्टि से उसे जख्मी करती सुचि ने कहा---"तुम अपनी बदमाशियों से बाज़ नहीं आओगे ?"




"लानत है उस पर जो पानी से भीगी अाग को देखकर भी शरीफ वना रहे !" कहने के साथ ही हेमन्त ने अपनी आंखों को एक्सरे मशीन में बदल दिया था ।

सुचि ने नखरा किया---" मुझे क्रंपड़े़ चेंज करने दो हेमू ।"



" कर लो चेंज , मैनें कब मना किया ?"


" प--प्लीज हेमू, तुम कमरे से बाहर जाओ ।"



ओ के ।" 'कहने के साथ होंठों पर चंचल मुस्कान लिए हेमन्त उसकी तरफ बढ़ गया और उसके इरादे भांपते ही पीछे हटती हुई सुचि बोली---"प प्लीज हेमन्त , यह कोई समय नहीं है।"



"मैं अभी--अभी पंडित से पूछकर आया हूँ सुचि डार्लिंग यहीँ समय सबसे ज्यादा उपयुक्त और शुभ हैं, कहने के साथ ही वह बाज़ की तरह झपट पड़ा, क्रितु पहले ही से सतर्क सुचि फुदककर बेड पर चढ़ गई । "


हेमन्त पुन: झपट पड़ा …



खिलखिलाती सुचि बेड के दूसरी तरफ ।।



और फिर सुचि हेमन्त को पलंग के चक्कर कटाने लगी---- कमरे में गूंज रहीं थी एक सुखी दम्पति की खिलखिलाहटें ।

हेमन्त फैक्टरी चला गया तो सुचि अपने कमरे की सफाई में लग गईं ।



लिहाफ़ आदि की तह बनाने के बाद उसने बेडशीट दुरुस्त की और झाडू संभालकर बॉंलकनी में पहुच गई ।



अभी उसने बहां झाडू लगानी शुरु की ही थी कि, एक सिगार का टुकडा झाडू से उलझ गया ।


जुते से पूरी बेरहमी के साथ कुचले गए सिगार के इस टकड़े पर नजर पड़ते ही जाने क्यो चमत्कारिक ढंग से सुचि का चेहरा 'फफ्फ‘ पड़ गया-मात्र एक पल में उसके चेहरे पर , पसीने की नन्ही-नन्हीं बूंदें झिलमिलाने लगी----झाडू़ हाथ से छूट गई थी ।



आंखों में खौफ के कुछ वैसे ही चिह्न थे, जैसे वह सिगार के टुँकड़े को नहीं, बल्कि किसी वहुत ही जहरीले सर्प को देख रही हो ।


सुचि इस कदर आतंकित हो गई थी कि बहीं जड़ होकर रह गई --ठीक पत्थर की किसी मूर्ति के समान--यह वहीं जाने कि उस वक्त उसका मस्तिष्क दहशत कि किन वादियों में भटक रहा था ।


‘बहू-ओ बहु!' लेलितादेबी की आवाज ने उसे चौंकाया ।


सुचि बौखला गई ।


हड़बड़ाकर वह खडी़ हुईं, अपनी तरफ बढ़ती ललितादेवी को देखकर उसने जल्दी सिर ढांपा और उनके चरणी में झुकती हुई बोली------" "प्रणाम मांजी ! "



" तुम्हारा सुहाग वना रहे बेटी, चांद-सा बेटा हो ।"


घबराहट पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करती हुई सुचि सीधी खड़ी हुई ही थी कि ललिता-देबी ने कहा------" आज तू फिर झाडू लगाने लगी "





" मां........मांजी ।"



मैं एक नहीं सुंनूगीं तेरी-----कल भी कहा था कि इस हालत में ऐसे काम नहीं करते, चल जाकर कमरे में बैठ झाडू मैं लगा लूंगी ।।।



दिल उछलकर सुचि के कंठ में फंस गया । इस संभावना ने उसके छक्के छुडा दिए कि अगर "मांजी" ने सिगार देख लिया तो क्या होगा, उसने जल्दी से सिगार पर पैर रखा और बोली---"'अ.. .अाप भी कमाल करती हैं मांजी़ं, झाडू लगाना भी कहीं ऐसा काम है कि....... । "


"बस-ज्यादा बातें न बना, जरा अपने चेहरे को देख------इतनी सर्दी के बावजूद पसीने से तर है। कमजोरी की निशानी है-कुछ खाया--पिया कर वरना बच्चा भी कमजोर होगा । "



"'ज......जी " कहने के साथ ही अपनी घबराहट को छुपाने की कोशिश में वह सिगार ही पर बैठ गई…......हाथ बढ़ाकर झाडू उठाई ही थी कि ललितादेवी ने कलाई पकड़ ली, बोली.....…"मुझे दे झाडू़ ।"


"न.....नहीं मांजी, मैं लगा लूंगी । "


"फिर वही जिद, मैं कहती हूं तू ......!"


"प....प्लीज मांजी !" सुचि बिल्कुल गिढ़गिड़ा उठी----" बस आज और लगाने दीजिए ----कल से सारे काम
आप ही करना ।"


"तुने कल भी यही कहा था ?"



सुचि ने इस हद तक जिद की कि ललितादेवी को हथियार डालने पड़े---" वह यह कहकर बहां से चली गई कि कल से वे उसके हाथपैर बांधकर रखेंगी ।"


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: दुल्हन मांगे दहेज

Post by Jemsbond »


सुचि ने राहत की सांस ली ।



झाडू से फारिग होने के बाद वह अपने नियमानुसार फ्रिज पर रखी अलार्म घड़ी में चाबी भरने हेतु बढ़ी--- फ्रिज से घडी उठाते ही वह चौंकी ।


वहां तह किया हुआ एक कागज रखा था । कागज की स्थिति बता रहीं थीकि उसे कुछ ही देर पहले यहां रखा गया है, घड़ी एक तरफ रखकर उसन कागज उठाया, खोला, पढा़ ।।।






मेरी प्राण प्यारी सुचि !

फैक्टरी के बाद मैं शाम को घर नहीं आऊंगा, बल्कि ठीक साढे पांच बजे गांधीं पार्क पहुंचूंगा ----तुम्हे भी वहीं पहुचना है, आज ’इवनिंग शो' पिक्चर देखेंगे, उसके बाद 'अलका' में डिनर। और _हां या सब तुम्हें मम्मी-पापा या अमित-रेखा में से किसी को नहीं बताना हे…घर से इस बहाने के साथ निकलोगी क्रि अपनी सहेली सरोज के घर जा रही हो---तुम जरूर सोच रहीं होगी कि मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूं या ऐसे रहस्यमय ढंग से प्रोग्राम क्यों बनाया है-जवाब यह जानेमन कि चोरी से, सबसे छुपकर मुलाकात का मजा ही कुछ और हेै----मेरी कसम है तुम्हें इस मुलाकात का जिक्र घर में किसी से नही करोगी ।

तुम्हारा गुलाम-हेमन्त ।


पत्र पढकर एक पल को सुचि उलझन में पढ़ गईं-शायद यह सोचकर कि अगर हमन्त को ऐसा कोई प्रोग्राम बनाना ही था तो पत्र की क्या जरूरत थी-स्वंय कह सकता था, परंतु अगले पल उसे अपने पति की शरारतें याद आई और मंद-मंद मुस्कान के साथ घडी में चाबी भरने लगी ।

गांधी पार्क में एक पेड़ के नीचे खड़ी सुचि रह--रहकर अपनी कलाई पर बंधी रिस्टबाच पर नजर डाल रही थी।।


साढ़े पांच से पांच पैंतीस तक तो उसे फिर भी सब्र था, र्कितु जब घडी की सुईयां उससे भी अागे बढ़ने लगीं तो उसकी बैचेनी भी बढ़ने लगी ।।




वातावरण में अंधेरा छाने लगा ।


पौने छ: बज गए ।


यहाँ से चलने के वारे में अभी उसने सोचा ही था कि पेड़ से कूदकर कोई 'धम्म' से उसके ठीक सामने गिरा और यह सब कुछ ऐसे अप्रत्याशित ढंग से हुआ कि सुचि के कंठ से दबी-दबी-सी चीख-निकल गई ।



"हेलो भाभी !" यह आवाज अमित की थी ।।


सामने खडे अमित को देखते ही सुचि चकरा गई, मुंह से स्वत: निकला------"त--तुम यहां ?"


"जी, हम यहाँ ।" अमित के होंठों पर शरारती मुस्कान थी ।


बौखलाई हुई सुचि ने पुछा ---" तुम यहां क्या कर रहे हो ?"


" आपकी जासूसी ।"


" ज--जासूसी ?"


" यस -- मम्मी से आप कह कर आई हैं न कि सरोज के यहा जा रही हैं ?"


" हां --- मगर वो .......!"



" तो किसका इंतजार हो रहा था यहां ?"


कुछ कहने के लिए सुचि ने मुंह खोला ही था पीछे से आवाज आई---" हर आधे मिनट बाद घड़ी देखी जा रही थी, शायद भाभी का कोई ब्वॉय-फ्रेंड आने बाला था ।"



सुचि पलटते ही भौचक्की रह गई---" 'र रेखा तू ? "



"तभी इतनी बन ठनकर अाई र्थी---फूलदार गुलाबी साडी, जीनतकट हेयर स्टाइल और यह कयामत ढाता मेकअप ।" अमित ने कहा ।



सुचि उसकी तरफ घूमी जबकि सामने आती हुई रेखा ने कहा---" और हम बिना वजह यहां दाल-भात में मूसलचंद बनने चले आए ।"



सुचि इस कदर नर्वस हो गई थी कि मुंह से बोल ना फूटा, जबकि रेखा के चुप होते ही हमला अमित ने किया------" इवनिंग शो, अलका में डिनर ।"



"वाह क्या प्रोग्राम है ?"


"ओह ।" सुचि संभली-----" तो तुमने वह पत्र पढ़ लिया था ?"


" पढा नहीं था प्यारी भाभी । " रेखा ने कहा…"बल्कि लिखा था, खुद मैंने ।"


" त--तुमने…उनकी राइटिंग में…उफ.. । सुचि ने अपना माथा पीट लिया---"'तो तुमने अपनी इस अार्ट का इस्तेमाल मुझ पर भी कर दिया?


" जी हाँ।"



"क्यों" "



" आप से फिल्म देखने और डिनर लेनेके लिए । "



"क्या मतलब ?"




" मतलब बिल्कुल सीधा है , आप हमें इवनिंग शो दिखाने के साथ डिनर भी करा रहीं हैं, वरना...... वरना... । "


"वरना । "


"मम्मी-पापा के सामने आपकी पोल खोल दी जाएगी------साबीत कर दिया जाएगा कि आप सरोज के यहाँ नहीं, बल्कि यहां आईं र्थी ।"


" ब्लैकमेल ?"


"यकीनन-ऐसी कंजूस भाभी को ब्लेकैमेल करना कोई जुर्म नहीं है, जिसने शादी से अाज तक ननद-देवर को कोई फिल्म नहीं दिखाई ।"



"कोई फिल्म कोई डिनर नहीं, धर पर वे इंतजार का रहे हौंगे । "


"कोई इतजार नहीं का रहा है, हमने फोन कर दिया था। "


"फोन ?"


नजदीक आती हुई रेखा ने कहा…"हां भाभी, फोन पर हमने कह दिया कि सरोज के यहाँ जाती भाभी हमें मिल गई और वे आज हमें फिल्म दिखा रही हैं । "


" ऐसा !"


" हां !"



प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply