दुल्हन मांगे दहेज complete

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Jemsbond
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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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" इतनी देर कैसे ही गई ?" बिशम्बर गुप्ता ने पूछा !!



स्टेचर को फर्श पर पटकते हुए हेमन्त ने कहा-----" बंसल अंकल जान को उलझ गए थे, मदद के लिए वे अंदर अाना चाहते थे !"



"फ़...फिर ?" ललितादेबी की सांस रुक गई ।



"बडी मुश्किल से उन्हें रिक्शा लाने के बहाने टरकाया है!"


तैयार किए गए तिरपाल के टुकडे का नेफा रट्रेचर की बाही में डालते हुए हेमन्त ने कहा---"खड़े-खडे़ मेरा मुह क्या देख रहे हो-दूसरी तरफ का नेफा बाही में डालो, जल्दी करो-----" हमसे पहले रिक्शा लेकर वे पहुच गए तो दरवाजा अंदर से बंद देखकर संदिग्ध हो उठेंगे ।"


बिशम्बर के जिस्म में जैसे बिजली भर गई ।



तिरपाल में 'स्ट्रैचर' फंसाकर उन्होंने सुचि की ताश उसमें डाली ।



किंकतव्यविमूढ़ सी खड़ी ललितादेबी और रेखा सब कुछ देख रही थी, हेमन्त ने कहा----"लेट जाओ मम्मी, जल्दी करो-क्विक !."




"म...म...!" सुचि की लाश के ऊपर लेटने की कल्पना मात्र से ललितादेबी मिमिया उठी, जबकि हेमन्त किसी हिंसक पशु की तरह-----'"जल्दी करो। "



ललितादेबी बुरी तरह डर गई ।



विशम्बर गुप्ता ने कहा-----"अब कदम पीछे हटाने का वक्त निकल चुका है ललिता-जल्दी से लेट जाओ,, वरना सब मारे जाएंगे !"

बेचारी ललितादेबी !


उन्हें लेटना ही पड़ा ।


हेमन्त ने तेजी से झपटकर एक ‘फुलसाइज़' कम्बल उनके ऊपर डाल दिया, बिशम्बर गुप्ता ने कम्बल को इस तरह कर दिया कि ललितादेवी का चेहरा साफ चमकता रहे---सुचि की लाश के ऊपर लेटे मारे दहशत के वे मरी जा रही थीं ।




एक तरफ से स्ट्रेचर हेमन्त ने उठा लिया, दूसरी तरफ से बिशम्बर गुप्ता ने, कुछ दूर चले तब अचानक हेमन्त ने रेखा से कहा-----"सुचि-की लाश कहीं से चमक तो नहीं रही है ?"



"न.. नहीं । "



"ठीक से देखकर बताओ, ऐसा लग तो नहीं रहा है कि स्ट्रेचर दो मंजिला है ।"


रेखा ने ठीक से देखा, बोली---"नहीं सब ठीक है । "



"चलो बाबूजी । " एक तरफ से स्ट्रैचर को पकडे वह दरवाजे की तरफ बढता हुआ बोला-----''रिक्शा के पहुंचते ही हमें स्ट्रेवर वहुत फूर्ती से रिक्शा में रख देना है बाबूजी----बंसल अंकल हमारी मदद करने की कोशिश करेंगे, मगर उन्हें इतना मौका नहीं देना है कि स्ट्रेचर के नजदीक पहुंच सके-अगर उन्हें स्ट्रैचर के बीच से सहारा देने का मौका मिल गया तो वहीं खेल खत्म समझ लेना !"




बिशम्बर गुप्ता के मुंह से कोई आबाज नहीं निकली ।


" ओर रेखा, हमारे निकलते ही तुम दरवाजा अंदर से बंद कर लेना !"


दरवाजा खोलकर वे स्ट्रैचर को बाहर ले आए-रेखा दरवाजे के बीच में खड़ी उन्हें देख रही थी और वे देख रहे थे
सुनसान पड़ी सड़क पर चौपले की तरफ से अाते एकमात्र रिक्शे को-रिंक्शे में बैठा बंसल ठंड से सिकुड़ रहा था ।




" तुम अंदर जाओ रेखा, दरवाजा बंद कर लो ।"


बेंमन से रेखा को ऐसा करना पड़ा ।



बिशम्बर गुप्ता और हेमन्त रुट्रेचर को उठाए सड़क पर आ गए-रिक्शा रुकते ही बंसल उसमें से उतरा और मदद के लिए उसे कोई भी अवसर दिए बिना स्ट्रेचर रिक्शा में ।



बिशम्बर गुसा ने औपचारिकता के नाते कहा----"थेक्यू बंसल, हम याद रखेंगे कि बुरे वक्त में सिर्फ तुम हमारे काम आये !"

"तुम भाभी को लेकर चलो, मैं कपडे पहनकर पहुंचता हूं !"


"न.. नही ?" मारे खौउ के बिशम्बर गुप्ता लगमग चीख पडे…"इसकी क्या जरूरत है बंसल हम देख लेगे--तुम आरामकरो ।"



"तुम चलो तो सही मैं कपड़े बदलकर अा रहा हूं । "

" कहता हुआ बंसल दौढ़कर अपने मकान के दरवाजे पर पहुंच गया ।


चलते हुए रिक्शा में से हेमन्त चिल्लाया-------" आप अस्पताल मत अाना----बंसल अंकल, बरना कोई नई बात बनी तो आपको भी हमारा साथी कहा जाएगा !"



बंसल की तरफ से कोई ज़वाब न आया !



शायद वह अपने मकान के अंदर जा चुका था-बिशम्बंर और हेमन्त ही के नहीं बल्कि सुचि की लाश के ऊपर लेटी ललितादेबी का दिल भी धाढ़-धाड करके बज रहा था !



"यह बंसल मरबा कर छोड़ेगा, शायद वह अस्पताल अाए । "



हेमन्त ने तेजी से उन्हें चुप रहने का संकेत करके यह अहसास दिलाया कि इस वक्त उनके साथ एक रिक्शा बाला भी है, बोला---" बंसल अंकल बडे अच्छे आदमी हैं । "



"सच ! " मजबूर बिशम्बर गुप्ता को कहना पड़ा-----"मुसीबत में पडोसी इतना साथ कहां देते हैं और फिर वेचारा अस्पताल में जाने को तैयार है!"



"जरा तेज़ चलो रिक्शा बाले, पेशेट की हालत सीरियस है !"



रिक्शा बाले ने तेजी से पैंडल मारने शुरु कर दिए-उनके बीच खामोशी छा गई-दरअसल तीनों यहीँ कल्पना कर रहे थे कि अगर बंसल अस्पताल पहुंच गया तो क्या होगा ?



शंकाएं उम्हें पागल किए दे रही थीं ।


रिक्शा हस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के सामने रुका और यहाँ पहुंचते ही एकं बार फिर उनके दिलोदिमाग पर बिजली गिरी पड़ी ,, बिशम्बर गुप्ता की शंका ठीक साबित हुई थी !



इमरजेसी में पहले ही कोई पेंशेंट आया हुआ था !

नर्सें और वार्डन दौडे़ दौड़े फिर रहे थे ।



बरामदे में टहलने वाले शायद पेशेट के शुभचिंतक थे ।



वातावरण हेमन्त की कल्पना के ठीक विपरीत !


दिमाग जाम होकर रह गए, समझ में न अाया कि क्या करें-इस माहौल मे, बरामदे में मौजूद लोगों की नजर से
बचाकर सुचि की लाश को किसी भी में कार में नहीं रखा जा सकता था, ऊपर से बंसल के यहाँ पहुचने का डर ।



बरामदे में खड़े लोग उसे देखने लगे थे ।


अगर या 'कहा जाए तो गलत न होगा कि उन्होंने किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में स्ट्रैचर रिक्शा से उतारकर गैलरी में रखा, रिक्शा वाले का पेमेंट करके उसे विदा किया ।


बरामदे में खडे तीन व्यक्तियों में से एक ने पूछा----"इन्हें क्या हुआ भाई साहब ?"


उसकी बात का कोई जवाब न देकर हेमन्त इमरजेंसी की तरफ तेजी से दौडी चली जा रही नर्स, की तरफ झपटा, बोला----"एक इमरजेंसी है सिस्टर । "


"देखते-नहीं, इमरजेंसी बिजी है ---- वेट करो । "



"केस बहुत ही सीरियस... ।"



सुनने के लिए नर्स रूकी नहीं !



तेजी से भागकर इमरजेंसी में चली गई--हेमन्त अपना-सा मुंह लिए स्ट्रैचर के पास खड़े बिशम्बर गुप्ता के नजदीक पहुंचा----वहाँ खड़े वे इस तरह कांप रहे थे, जैसे तेज हवा में पीपल का सूखा पता कांपा करता है ।

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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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उन्हें लग रहा था कि अब पकडे़ जाने में देर नहीं है !



तभी अस्पताल के दरवाजे में एक कार दाखिल होती नजर आई, हेमन्त ने तेजी से कहा----जहां तो देर लगेगी बाबूजी इमरजेंसी बिजी है ।"


" हां ।" विना सोचे-समझे वे इतना ही कह सके ।



"इससे बेहतर तो यह है कि मम्मी को किसी प्राइवेट डाक्टर के यहां ले चलें।"


"हाँ !"


गेलरी में खडे उनकी बात सुन रहे तीन व्यक्तियों में से एक ने कहा---"ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, हमारे पेशेंट की पट्टियां हो चुकी हैं मगर इन्हें हुआ क्या है भाई साहब ?"

कार उनकी बगल में आ रुकी ।

हेमन्त जल्दी से बोला----" गाड़ी भी आ गई है बाबूजी, उठाओ मम्मी को ।"


यह हकीकत है कि बिशम्बर गुप्ता की समझ में न आ रहा था कि क्या किया जाए, क्या नहीं, क्या उचित , क्या गलत----अतः जो हेमन्त ने कहा कर दिया, यानी उसके साथ एक तरफ से पकड़कर उन्होंने स्ट्रेचर उठा लिया ।



उधर अमित ने अपना काम बिलकुल मशीनी अंदाज में किया था ।



गाडी का पिछला दरवाजा खोलते वक्त जब उसने देखा वे सुचि की लाश को नहीं, बल्कि समूचे स्ट्रैचर को ही उठाए गाड़ी की तरफ अा रहे हैं तो बौला--"यह क्या ?"



"यहाँ इमरजेंसी बिजी है, मम्मी को कहीं अोर ले चलते है । उसे बात पुरी करने का अवसर दिए बिना हेमन्त ने तेजी कहा----"गाड़ी चलाओ, जल्दी ।"


अमित की खोपडी उलट गई ।



हालांकि उसने बरामदे में खडे़ तीन व्यक्तियों को देख लिया था, परंतु समझ कुछ न सका----स्ट्रैचर को तेजी से गाड़ी में रखते हुए हेमन्त ने उससे एक बार पुनः जल्दी चलने के लिए कहा तो अमित ड्राइविंग सीट पर लपका । बरामदे में खडे़ तीनों व्यक्ति उनकी हड़बड़ाहट और फुर्ती को अजीब से अंदाज में देख रहे थे---हेमन्त और बिशम्बर गुप्ता स्ट्रैचर सहित गाड़ी में समा गए, गाड्री स्टार्ट हुई और एक झटके से आगे बढ़ गई ।



पिछला दरवाजा बंद की होने की आवाज सारे अस्पताल में गुंज गई । फर्राटे भरती हुई गाड़ी अस्पताल के द्धार से बाहर निकल गई तो तीनों में से एक कह उठा--" अजीब आदमी थे, रिक्शा में अाए और कार में भाग गए । "


" बड़ी घबराहट और जल्दी में थे !"



" घबराहट तो हो ही जाती है, पता नहीं बेचारी को क्या हुआ था ? " यह वही व्यक्ति था, जिसके दो बार सवाल करने पर भी बिशम्बर या हेमन्त में से किसी ने जवाब नहीं दिया था !!!


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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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सुनसान सड़क पर गाडी तेज रफ्तार से भागी चली जा रही थी, सबसे पहला सबाल अमित ने किया-----"यह क्या चक्कर है भइया स्कीम में कुछ चेंज कर लिया है क्या--मां और स्ट्रैचर को तो शायद गाड़ी में । "



" तुम बिलकुल बेवकूफ हो अमित !" उसके साथ-साथ हेमन्त बिशम्बर गुप्ता के दिमाग पर भी झुंझला रहा था-"क्या तुमने देखा नहीं था कि बरामदे में एक नहीं तीन-तीन आदमी खडे थे…उनके सामने भला लाश केैसे अलग की जा सकती थी ? "



"मगर अब क्या होगा ? स्ट्रेैचर पर पडी़ ललितादेबी के मुंह से भयभीत आवाज निकली---"मुझे कहां कहां उठाए फिरोगे ?"




" तुम चुप रहो माँ, अभी तुम बेहोश हो । हैमन्त ने कहा-----" उफ-बडी मुशकिल से बचे हैं, अगर समय रहते तरकीब दीमाग में ना आ जाती तो सब वहीं धरे गए थे !"




" ल.....लेकिन वे हमारो इस आननफानन कार्यवाही को देखकर क्या सोच रहे होगें ?"



" इसके अलाबा सोच भी क्या सकते हैं कि हमारा पेशेट ज्यादा सीरियस था-------इमरजेंसी को बिजी देखकर जल्दी में किसी प्राइवेट डाक्टर के यहाँ चले गए हैं । "'

" मगर वास्तव में इस वक्त हम कहाँ जा रहे हैं ?" ड्राइविंग करते अमित ने पूछा------"रात के इस वक्त जबकि सड़को पर ट्रेफिक न के बराबर है, चोरी की कार लिए हमारा यू शहर की सड़कों पर घूमते रहना खतरनाक है !"



"क्या इस गाड़ी मालिक को गाड़ी चोरी चली जाने के बारे में मालूम है !"





" कैंसे कह सकते दो ? "



"बहुत से लोग हाथी पाल तो लेते हैं, मगर उनके घर का दरवाजा इतना बडा नहीं होता जिसमें हाथी घुस सके, यानी गाड़ी तो रखते हैं मगर गैरेज नहीं-----ऐसे लोग रात को गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी कर देते हैं, यह उन्हीं में से एक हे-----चोरी से बेखबर इसका मालिक अपने लिहाफ मैं घुसा खर्राटे ले रहा होगा !"





"फिर तुम क्यो डर रहे हो ?"



"अगर किसी फ्लाइंग दस्ते ने रोक लिया तो उनके सवालों के जवाब देने मुश्किल हो जाएंगे भइया सबसे बड़ा सवाल मेरे ड्राइविंग लाइसेंस का उठेगा ।"




" डॉक्टर एस डी अस्थाना के क्लिनिक पर चलो !"



" ओ.के !"



बिशम्बर गुप्ता ने पूछा------" वहां क्या होगा ?"



"अस्थस्ना का रेजीडेंस क्लिनिक के ऊपर है-वहां अापको वही कराना है जो अस्पताल के इमरजेंसी बार्ड में कराना था, हम आपको वहां छोड़कर गुलावठी की तरफ निकल जाएँगे ।



"अपना ध्यान रखना बेटों । "




"आप फिक्र न करें । हेमन्त ने कहा… 'स्ट्रैचर की निचली मंजिल सुचि की लाश के साथ अलग करने में मेरी मदद-कीजिए,,, उठना मम्मी । "



का्पंती हुई ललितादेबी सुचि की लाश के ऊपर से उठ गई !!!
बाउंड्री बॉल के उपर से हवा में लहराता हुआ धप्प की है आबाज के साथ बिशम्बर गुप्ता के मकान के छोटे से लॉन में जो व्यक्ति पहुंचा उसके तन पर गर्म पतलून ओवरकोट और एक हैट था ।

संभलने के चक्कर में उसका हैट उतर कर लॉन में गिर गया, परन्तु उसे शीघ्र ही उठाकर वापस उसने सिर पर रख लिया-----कुत्ते की तरह उसने दाएं वाएं का निरीक्षण किया----हर तरफ सन्नाटा अंधेरां----वह स्वयं मी इस अंधेरे का ही एक भाग लगरहा था।



सारा कोठियात मुहल्ला सौया पड़ा या ।


दबे पांव आगे बढा !



कुछ ही देर बाद वह बन्दर के समान एक रेनवाटर पाइप पर चढ रहा था-----पांच मिनट बाद बिशम्बर गुता के मकान की छत पर पहुंचा !




सीढियों की तरफ बढा !!





जीने में कोई दरवाजा नहीं था…हां, वहाँ इतना अंधेरा ज़रूर था कि अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो गई उसकी आंखें भी कुछ न देख पा रही थी । भी अपने ओवरकोट की जेब से एक टॉर्च निकाल ली ।



उसकी रोशनी में वह मकान की निचली मंजिलों ही तरफ बढा !!!!
रेखा घर अकेली थी । हालांकि मकान बहुत बड़ा नहीं था किंतु इस ववत उसे ऐसा लग रहा था जैसे मीलों में फैली किसी विशाल और उजाड़ हवेली में बह अकेली हो ।


हर तरफ सांय -सायं करता सन्नाटा ।


निस्तब्धता !


अपने पलंग पर लेटे रेखा के हाथ में एक उपन्यास था-----अपनी ही कल्पनाओं से डरकर वह उपन्यास पढने लगती, मगर जब एकं भी शब्द उसके पल्ले न पढ़ता तो उसे छाती पर रखकर छत को घूरने लगती ।



यह याद अाता कि कुछ देर तक इस घर में एक लाश थी तो रोंगटे स्वत: खडे हो जाते------यह विचार तो उसके होश उड़ा देता कि लाश सुचि भाभी की थी और घर के वाकी सभी सदस्य इस वक्त उससे मुक्ति पाने, उसे ठिकाने लगाने गए हैं ।



क्या वे कामयाब हो सकेंगे ?


जो आरोप बेवजह धर के हर सदस्य के माथे का कंलक बन गया है, क्या वह धुल सकेगा-----उनमें से अभी तक कोई लोटा क्यों नहीं ?


अमित और हेमन्त भइया का काम तो लम्बा है, मगर मम्मी और बाबूजी को तो अभी तक लौट आना चाहिए धा------वे क्यों नहीं अाए हैं, कहाँ रह गए ?


अभी यह सब कुछ वह सोच ही रही थी कि---------



'टक.......टक.......'



गेैलरी में किसी की पदचाप गुंजी !



कानों के साथ ही रेखा के रोंगटे भी खडे़ हो गए---हर तरफ छाई निस्तब्धता भंग होते उसने खूब अच्छी तरह सुनी थी और दिमाग में बडी तेजी से कौंध गए इस विचार ने उसके छक्के छूड़ा दिये कि गैलरी में कोई है !


कौन ?

अब कहीं से कोई आवाज़ न अा रही थी-हर तरफ खामोशी-------रेखा ने सोचा कि शायद मुझें वहम हुआ था--------मकान का मुख्य दरवाजा अंदर से बंद है, मेरे खोले विना
भला कोई अंदर कैसे जा सकता है ?




मगर अपना यह विचार भी उसे न जंचा ।


इस बार गैलरी में उभरने वाली पद्चाप उसने बिलकुल साफ सुनी ।



टक.....टक..टक....टक..टक ।



कोई नजदीक आ रहा था था !

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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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" क.....कौन है ?" बुरी तरह भयभीत वह हलक फाढ़कर चिल्ला उठी ।



स्पष्ट गूंजती कदमो की आवाज के अलावा कोई जवाब नही !



रेखा बेड से उछलकर खड़ी हो गई और यहीं क्षण था जब पदचाप दरवाजे पर पहुंची-------ढलका हुआ दरवाजा भड़ाक से खुला और रेखा के हलक से चीख निक्ल गई ।



दरवाजे के बीचो--बीच खड़ा वह अपनी लाल-लाल आंखों से एकटक रेखा को घूर रहा था और आतंक की ज्यादती के मारे रेखा मानो स्टेचू में बदल गई----सारा शरीर पसीने से भरभरा उठा उसका----- जड़ हो गई थी वह, मुंह में मानो जुबान न थी ।




और वह, जिसके चेहरे पर भूकम्प के भाव थे--वह जिसका चेहरा ज्वालामुखी के लावे समान भभकता नजर अा रहा था-निरंतर रेखा को ही घूरे जा रहा था वह ।



"त.........तुम ?"' रेखा की घिग्धी बंध गई-------"त...तुम यहाँ ?"



"हाँ ।" दरिंदगी भरी गुर्राहट निकली थी उसके मुंह से । "



"म......मगर दरवाजा तो बाहर से बंद है, तुम अंदर कैसे आ गये मनोज ? और रात के इस बक्त त.....तुम यहां आये क्यों हो ?"




वह मनोज ही था जिसके ज़बडे भिचें हुए थे--गुस्से की ज्यादती के कारण जो पागल हुआ जा रहा था और रेखा के सवालों पर कोई ध्यान न देकर एक खतरनाक बला की तरह उसकी तरफ बदता चला गया ।
" रेखा पीछे हटी चीखी-----"म...मनोज-क्या हो गया है तुम्हें ?"



"तेरी मां---बाप और भाई कहां हैं ? " वह गुर्राया ।



"व..वे तो अस्पताल गए हैं----मम्मी बेहोश हो गई थी !"



"ओह-तो इतने बड़े घर में तु इस वक्त अकेली है ? " कहते समय मनोज की आंखों हिंसक चमक उभर अाई--------"बहुत खूव--अब मैं अपनी बहन की मौत का बदला ¸ उसी तरह से ले सकूंगा----मगर जाऊंगा नहीं, यही-----उनके लोटने का भी इंतजार करूगां------लाशें बिछा दूंगा------एक एक को मार डालूँगा-अपनी सुचि के एकाएक हत्यारे का खून पी जाऊंगा मै !"



"म...मनोज------हमने भाभी को नहीं मारा है !"



"झूठ ?" वह गुर्राया झूठ बोलती है-------मेरी फूल--सी बहन को मारकर झूठ बोलती है--कया तू समझती है कि मैं तुझे छोड़ दूंगा ?"



मारे खौफ के रेखा का बूरा हाल था-------मौत के भय से उसका सुदंर चेहरा बूरी तरह विकृत हो उठा, पीछे हटती हुई वह बोली------"यकीन करो मनोज, भगवान कसम हमने भाभी को नहीं मारा-हमने कभी उससे दहेज... ।"



"खामोश । दीवानगी के अालम में मनोज ने चीखकर जेब से एक शीशी निकाली----उसका कार्क खोला और गुर्राया-------" मैं तुझे मारूगां नहीं, बल्कि जिंदा लाश बना दुगां----ऐसी लाश, जिससे कोई शादी करने के लिए तैयार न हो !"




रेखाक्रो लगा कि मनोज को नहीं समझाया जा सकता ।


प्रतिशोध की आग में उसका रोम-रोम सुलग रहा है अत: बचाव का कोई अन्य रास्ता न देखकर यह चिल्ला उठी…"वचाओ--बचाओ ।"



"हा----हा-----हा !" मनोज वहशियाना अंदाज से हंसा--एक-एक शब्द को चबाता हुआ गुर्राया--"इसी तरह , मेरी बहन भी चीखी होगी--------इसी तरह मेरी सुचि भी चिल्लाई होगी , मगर तुमने उस पर रहम नहीं किया------जान से मार डाला उसे--तुम---तुम भी तो उसके हत्यारों में से एक हो ? ”



रेखा लगातार चिल्ला रही थी ।



मनोज ने अचानक शीशी में भरा सारा तरल पदार्थ रेखा की तंरफ उछाल दिया-------पदार्थ रेखा के चेहरे पर जाकर गिरा और---------



रेखा हल्क फाढ़कर चीख पड़ी ।



उसकी इस चीख ने सारे कोठियात मोहल्ले को झेझोड़ डाला--तेजाब ने रेखा का चेहरा बुरी तरह जला डाला था और

दीवानगी के आलम में मनोज पागलों की तरह हंस रहा था ।
गुलावठी से नजदीक के किसी गांब की तरफ जा रही है अधपक्की सड़क पर कार हिचकोले खाती हुई आगे बढ रही थी-----सड़क की हालत बेहद खराब थी-----बारिश के कारण जगह-जागह गड्ढे हो गए थे और रोडि़यां कंकर में बदलकर बिखरी पड़ी थी-------


-----------------अमित को ड्राइविंग करने में दिक्कत हो रही थी इसीलिए पूछा------------"इस सड़क पर और कितना अागे बढना है ?"



" यहीं रोक दो ।"



अमित ने तुरंत गाडी रोक दी, बोला------"अब ?"


" सुचि की लाश हमें ऐसे पेड़ पर लटकानी है जो अाम रास्ते में न पड़ता हो । "


''उससे फायदा ?"


"लाश कल रात से यहाँ लटकी है । " हेमन्त ने कहा----"'आम रास्ता होता तो आज दिन में किसी के द्वारा देख ली जाती-लाश का पता गांव बालों को भी तब पड़ता है---- जब गिद्ध मंडराने लगते हैं !"




''मैं समझ गया मगर ऐसी जगह हमे कहाँ मिलेगी ?"

" गाड़ी को यहीं छोड़कर, लाश को उस बाग में ले चलते हैं---------बहां कोई-न-कोई पेड जरूर मिलेगा, जिस पर आसानी से किसी राहगीर कि नजर न पडे । "



"ओ के । " कहकर अमित ने इंजन बंद कऱ दिया ।



हेमन्त ने गाडी के अंदर की लाइट अॉन की------जेब से दस्ताने निकालकर पहंनता हुआ बोला------"तुम भी दस्ताने पहन लो अमित !"


अमित ने उसके हुक्म कर पालन किया ।


लाश को तिरपाल और चादर से अलग करके हेमन्त ने अपने कंधे पर लादा-अमित ने गाड़ी लॉक की और जेब से एक टार्च निकालकर हेमन्त के आगे बढ़ गया ।

रेखा की चीखों ने एक बार फिर सारे कोठियात मोहल्ले को बॉंल्कनी या सडकों पर ला खड़ा कर दिया ! सभी -सभी के बीच यह चर्चा थी कि बिशम्बर गुप्ता के मकान में आखिर अब क्या हो रहा है, ये चीखे केसी हैं ?



कुछ लोग गालियां बक रहे थे !



कह रहे थे कि जाने कैेसे लोग मोहल्ले में बसे हुए हैं----सारी रात खराब कर दी ।


कुछ देर बाद रेखा की मर्मातक चीखें गूजंनी बंद होगई ।


अजीब सस्पैंस छा गया ।


चार पांच लोगों के बीच खड़ा बसल कह रहा था…’" इस वक्त रेखा मकान में अकेली है और ये चीखें उसी की थीं ! "

"उसे ऐसी क्या आफत अा गई है ?"


" मालूम करना चाहिए ।"


''हुंह !" एक मोहल्ले बाले ने मुंह बिसूरा----"ऐसे कमीने लोगों पर तो अाफतें आंएगी ही, क्या मालूम करना और क्या इनकी मदद करनी ? "



" बहू के साथ जो उन्होंने किया वह वास्तव में बडा बुरा किया शर्मा जी !" बंसल बोला--" उसकी सजा तो भगवान इन्हें देगा ही-----लेकिन अगर वे किसी दूसरी मुसीबत में फंसते तो मौहल्ले वाले और पडोसी होने के नाते मदद करने का न सही मगर हमारा यह फर्ज तो बनता ही है कि उनकी मुसीबत मालूम करें । "


"अरे जो बहूकी हत्या करेगा, क्या वह कभी चेन से रह सकता है । "



" फिर भी ।" वंसत ने कहा------"समझने की कोशिश करो शर्माजी, अगर सुबह पता लगता है कि कोई ऊंच--नीच वात हो गई है तो पुलिस मोहल्ले वालों से भी पूछेगी
कि जब तुमने चीखों की अाबाज सुनी थी तो कुछ लिया क्यों नहीं ?"

" हम कर ही क्या सकते हैं !"


ज्यादा कुछ न सही, दरवाजा खुलवाकर रेखा से यह तो पूछ ही सकते हैं कि वह चीख क्यों रही थी------उनमे इंसानियत भले ही न रही हो, मगर हममे तो है, लइकी घर में अकेली है----इंसानियत के नाते उसकी खबर तो हमे लेनी ही चाहिए ।

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Re: दुल्हन मांगे दहेज

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इस तरह, वंसल ने जनमत तैेयार किया और बिशम्बर गुप्ता के दरवाजे पर पहुंचकर कॉलबेल दबा थी----------रेखा बेहोश हो चुकी थी ।



सारा चेहरा बुरी तरह जल गया था उसके चेहरे पर-वड़े-बड़े फफोले पड़ गए थे और उन फफोलो को देखकर मनोज की आंखों में एक अजीब सुकून अजीब-सी शांति झांक रही थी कि कॉलवेल की आवाज सुनकर वह चौंक पडा ।


दिमाग में एक ही विचार अाया-----------इसके मां-बाप और. भाई शायद अा गए हैं ।


इस विचार से वह डरा या बौखलाया नही ।


बल्कि चेहरा कठोर हो गया ।


आंखो में एक बार फिर वैसी ही हिंसक चमक उभर अाई, जैसी रेखा के चेहरे पर तेजाब फेंकतें बक्त थी-अभी तक अपने हाय में दबी शीशी एक तरफ फेंककर उसने जेब से चाकू निकाल लिया।


बटन दबाते ही 'क्लिक’ की आवाज के साथ चाकू खुल गया।


ट्यूब की रोशनी में चाकू का फल चमचमा उठा और उसी फल घूरता, हुऐ मनोज गुर्राया----"मैं एक को भी जिंदा नहीं छोडूंगा----तेरे एक-एक हत्यारे की लाश बिछा दूंगा सुचि---------कानून उन्हें क्या सजा देगा-मनोज भाई अभी जिंदा है !"



कॉंलबैल पुन: बजीं ।


वह घूमकर गुर्राया----" अा रहा हूँ हरामजादो-घंटी बजा-बजाकर अपनी मौत को बुला रहे हो-मनोज को अपने-अंजाम की परवाह नहीं है---------ज्यादा-----से ज्यादा कानून मुझे फांसी पर लटका देगा, मगर उससे पहले मैं तुम सबको मौत के घाट उतार दूंगा !"

" हाथ में खुला चाकू लिए वहआगे वढा । दूढ़त्तापूर्वक गैलरी पार करके ड्राइंगरूम में पहुचा----एक पल के लिए भी ठिठका नहीं वह-ड्राइंगरूम पार करके आगे बढा----वह प्रतिशोध की ज्वाला ने जिसे घायल कर दिया था---इस हद तक कि यह सोच ही न सका कि दरवाजे पर कोई और भी हो सकता है ।



इंतकाम की आग में झुलसे उसके दिमाग में यह विचार अाया ही नहीं कि जितनी जोर-जोर से रेखा चीखी है, उनसे पडोसियों का जग जाना कितना स्वाभाविक है ।

किसी ने ठीक ही कहा है, बदले की आग इंसान को पागल बना देती है-------उसके सोचने -समझने की शक्ति को, जलाकर राख कर देती है ।

दरवाजे तक पहुंचने वाली गैलरी उसने दवे पांव पार कीं ।


धीरे से चटकनी गिराकर एक झटके से दरवाजा खोला…वार करने के लिए उसने अपना चाकू हवा में उठाया किंतु दरवाजे पर खडे़ लोगों को देखकर चौंक गया ।



इधर, दरवाजा खुलते ही बंसल और मोहल्ले के दूसरे लोगों ने जिस स्थिति का सामना किया उसे देखकर उनके
छक्के छूट गये ।


पलटे और रिवॉल्वर की गोली के समान चीखते हुए उलटे पैर भागे ।



मनोज को पहली वार यह अहसास हुआ कि कॉलबेल बजाने जाले उसके शिकार नहीं, वल्कि और हैं----इस अहसास ने जैसे कंपकंपाकर रख दिया----- बंसल और उसके साथियों को इस तरह भागते देख चारों तरफ से आवाजें आने लगी------" क्या हुआ----क्या हुआ ?"




इन आवाजों को सुनकर मनोज कौ रेखा की चीखों का ख्याल आया----यह समझते उसे देर न लगी कि उन चीखों ने सारे मोहल्ले को जगा दिया है और उस क्षण उसे पहली बार महसूस हुआकि वह भयानक खतरे में धिर चुका है ।



लोगों के अपने आमने से भाग जाने उसका साहस बढा ।

दिमाग में एक ही विचार अाया जितनी जल्दी हो उसे यहां से भाग जाना चाहिए------अतः हाथ में नंगा चाकू लिए दौड़कर सड़क पर पहुंचा----सड़क के दोनों तरफ खडे़ मोहल्ले के डरे सहमे लोग उसे देख रहे थे ।


सबको आतंकित करने की मंशा से वह चीखा---" अगर कोई भी आगे बढा़ या किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तो मै अंतडियां फाड़ ड़ालूंगा ।



सभी कांप उठे ।



मनोज खुद डरा हुआ था ।


चाकू हाथ में लिए वह एक तरफ को भागा, विपरीत दिशा की भीड़़ उसके पीछे-लपकी, जबकि उस तरफ की भीड 'काई' की तरह फट गई जिस तरफ वह भाग रहा था ।


तेजी से भागने के कारण उसका हैट सडक पर गिर गया ।



"अरे ?" कोई चीखा-----"यह तो हेमन्त का साला है !"



वसंल चिल्लाया-----" शायद रेखा का खून करके भाग रहा है वह पकडो?"



हर तरफ से पकडो-पकडो की आवाजे उठने लगी तो मनोज कुछ और ज्यादा बौखला गया----वह तेजी से भागा----मगर तभी बॉंल्कनी से आकर ईंट का अद्धा उसकी कमर पर लगा मुंह से चीख निकली और सड़क पर जा गिरा !



उठा, पुन: भागने का प्रयास कर ही रहा था कि इस इलाके के चौकीदार की--लाठी उसके सिर पर पडी !



इस बार गिरा तो उठने से पहले ही पीछे से दोड़ कर आ रही भीड़ ने दबोच लिया !
कार जहां से चुराई गई थी,उसी फुटपाथ पर उसी स्थिति में खड़ी करने तक सुबह के चार-बज चुके थे-----वे खुश थे----हेमन्त तो, कुछ ज्यादा ही खुश था-----शायद इसलिए कि जो स्कीम वे सफलता के साथ कार्यांवित करके अाए थे, वह उसकी अपनी स्कीम थी।



दिवकते आई जरूर थी, ऐसी कोई नहीं, जिसे वड़ी गड़बड़ कहा जा सके-या जिससे जो कुछ उन्होंने किया था उसके परिणाम आशाओं के विपरीत निकल सके ।


हेमन्त को तो पूरा यकीन था कि उसके परिवार से संकट के बादल छंट चुके थे !


उधर लाश पुलिस के हाथ लगी और इधर, पुलिस के साथ साथ समाज के भी सोचने की धारा बदल जाएगी---------लोंगों को उनके बयान पर यकीन करना पड़ेगा ।



मगर अपने मकान के दरवाजे पर पहुँचते ही वे ठिठक गए ।



बल्कि अगर यह कहा जाए कि दिमाग में खतरे की घंटी बजने लगी तो गलत ने होगा…हक्के-बक्के वे दोनों कभी दरवाजे पर झूल रहे मोटे ताले को देख रहे थे तो कभी एक-दूसरे के चेहरे को, अमित बोला----"क्या चक्कर है भइया ?"



हेमन्त का दिमाग हवा में नाच रहा था ।


"रेखा, बाबूजी और मम्मी कहां गंए ?"अमित ने दूसरा सवाल किया ।


हेंमन्त ने सड़क के देंनों तरफ देखा !



दूर तक खामोशी ।


सारा मोहल्ला सो रहा था !


जब अमित के सवालों का जवाब वह देता ही क्या----स्वयं कुछ अनुमान न लगा पा रहा था कि कहीं दूर से चौकीदार की आवाज सुनाई दी !



"आओ अमित ।" कहने के खाद हेमन्त चौकीदार की आवाज की दिशा में दौड़ा ।



" कहां ?"



हेमन्त ने कोई जवाब नहीं दिया, अमित उसके पीछे दौडता चला गया-शीघ्र ही वे चौकीदार के समीप पहुंचे, उन्हें देखते ही चौकीदार ने कंहा-----"अरे, अाप कहाँ गए थे शाब-यहां तो अापके घर में गजब हो गया । "


"क.....क्या हुआ? " हेमन्त ने धड़कते दिल से पूछा ।



"आपके साले ने अापकी बहन के मुहं पर तेजाब डालकर उन्हे बुरी तरह जता दिया !"



" क.. ..क्या ?" एक साथ दोनों पर बिजली गिरी ।



"हां शाब-----मोहल्ले के सब लोगों ने बड़ी मुश्किल उसे पकड़कर पुलिस के हवाले किया और आपके माता पिता आपकी बहन को लेकर अस्पताल गए हैं । "



पैरो तले से जमीन खिसक गई ।
जड होकर रह गए दोनों, अवाक् !


मुंह से बोल न फूटा !


यह एक ऐसी घटना हो चुकी चुकी थी, जो उनकी कल्पनाओं में कहीं न थी और इसीलिए वे हतप्रभ रह गए !



चौकीदार कह रहा था-----"यहां पुलिस अाई तो उन्होंने बाबूजी से अाप दोनों के बारे में पूछा ।"


"क्या जवाब दिया उन्होंने ?"


"'कहने लगे कि उन्होंने आपको डाक्टर अस्थाना के यहां से घर भेज दिया था, जाने रास्ते में कहां रह गए-----घर क्यों नहीं पहुंचे, अाप कहाँ रह गए थे शाब ? "


उसके सवाल पर कोई ध्यान दिए बिना हेमन्त ने पुछा---"ये सब किंतने बजे की बातें हैं ।"



"करीब बारह या साढे बारह की शाब ।"


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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