चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़) complete

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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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अत: इस व्यूह का केन्द्र चमन में है, और केंन्द्र पर हमने तुम्हें नियुक्त किया है । जहाँ तक हमारा अनुमान है, अगर सारे जासूस एक ही समय पर चमन में पहुंचे तो चमन में बेशक दुनिया के महान जासूसों का जबरदस्त टकराव होगा । हमारी राय यह है कि उस टकराव में तुम शरीक नहीं होगे ।”'



" तो फिर वहाँ क्या तमाशा देखूंगा ?"



-"'बेशक ।"


"'क्या मतलब हैं" विकास चौंका।



" वैसे तो हम जानते हैं प्यारे दिलजले कि काम अपने ढंग से करोगे और हमारे समझाने से कुछ नहीं होगा ।" ने , कहा-"लेकिन फिर भी आदत खराब हो गई-समझाए बिना रहेंगे नहीं । सुनो, तुम वहा पहुंचोगे, लेकिन वतन के अलावा कोई यह नहीं जान सकेंगा कि विकास वहां पहुच गया है तुम्हारा काम् वतन, उसके आविष्कार और फार्मूले की हिफाजत करना होगा । जिस वक्त हैरी, बागारोफ, जेम्स बाण्ड, तुगलक अली , नुसरत खान, सांगपोक, हवानची और सिंगसीं वहां पहुंच जाएंगे तो एक-दूसरे के बारे में निश्चित रूप से पता लग जाएगा । लक्ष्य एक ही है । अत: मिलकर वे काम नहीं कर सकेंगे। एक
दूसरे का विरोध करेंगें टकराव होगा । सम्भव है कि उस टकराव में इनमें से एकाध का कल्याण हो जाए । इनके बीच नहीं कुदोगे । आपसी लड़ाई में जीतने के बाद जो भी वतन तक पहुंचने की कोशिश करे, उसे संभालना तुम्हारा काम होगा ।"
लेकिन अाप सब लोग चीन, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और पाकिस्तान में क्या करेंगे ?"




" अखण्ड कीर्तन ।" झुझलाकर विजय ने कहा---"अवे, पहले पूरी बात सुन लिया करो, तब चोंच खोला करो । ये माना कि तुम अभिमन्यु बनकर उस व्यूह में घुसे होगे, लेकिन प्यारे, मालूम है न कि अभिमन्यु व्यूह में फंस कर ही रह गया था । बही डर हमें भी है, माना कि तुम कामयाब न हो सहे और इनमें से कोई यन्त्र और फार्मूला प्राप्त करने में कामयाब हो गया तो क्या केरोगे ?"



"मेरे ख्याल से ऐसा होगा ही नहीं गुरु ।"



" तुम्हारे ख्याल रेत की दीवारों से ज्यादा मज़बूत नहीं होते प्यारे ।" विजय ने कहा…"और हमारे ख्याल अक्सर पत्थर की लकीर कहलाते हैं । अपने ख्यालों को जेब में रखो और हमारी बात को कान में आंवले का अचार डालकर सुनो । तुम्हें एक विशेष ट्रांसमीटर दिया जाएगा। उसकी मदद से जब चाहो----- विक्रमादित्य, झान-झरोखे, गोगियापाशा से सम्बन्ध्र स्थापित कर सकते हो । माना कि दुश्मनों में से कोई अपने अभियान में कामयाब हो गया तो तुम यह सूचना उसके देश में मौजूद हममें से किसी 'को भी दे दोगे । मानो कि जेम्स बाण्ड कामयाब हो जाता है तो तुम फौरन यह सूचना मिस रोगियापाशा को दे दोगे, क्यों ? …-वयोंकि ब्रिटेन में वही होगी । अत: फिर जेम्स बाण्ड को अपने चीफ तक न पहुंचने देने का काम उसका होगा है"



"मतलब यह कि अगर चीनी जासूस कामयाब हो तो उसकी सुचना मैं आपको दे दूं ?" बिकास ने कहा ।



" वो मारा साले पापढ़ वाले को--अब समझे न हमारी बात…गधे की लात ।"-विजय ने कहा--"हेरी कामयाब हो जाए तो झानझरोखे क्रो, तुगलक और नुसरत कामयाब हों, तो परवेज को कहने का तात्पर्य ये कि जिस देश का कामयाब हो, उसी देश में मौजूद भारतीय सीक्रेंट सर्विस के एजेण्ट को सूचना दे दी जाएगी!"




"यह तो मैं समझ गया गुरू !" विकास ने कहा’--“लेकिन माना कि चचा बागारोफ कामयाब हो जाते हैं, तो सीधी…सी बात है कि मैं रूस में मौजूद- विक्रम अंकल को सूचित कर दूं, वे हरकत में अा जायेगे । यह ठीक है-मगर अन्य देशों में मौजूद साथी जैसे चीन में आपका क्या काम रह जायेगा ?"

"पीर्किग की ठण्डी सडकों पर टहलकर वापस आ जाएंगे ।"
मेरे ख्याल से तो बेकार में इतना लम्बा लफड़ा फैला रहे हो गुरु ।" विकास ने कहा ।



" जिस दिन से तुम्हारी तुच्छ बुद्धि में हमारी महान बातें फिट होने लगेंगी प्यारे दिलजले, उस दिन से लोग तुम्हे विकास नहीं, विजय कहेंगे ।" विजय कहता ही चला गया…"तुम एक ही बार में यह योजना सुन लो जो हमने बनाई है, उसे शान्तिपुर्वक सुनने के बाद शायद तुम्हें किसी तरह का कोई सवाल करने की जरूरत न पडे । सुनो-हम सब लोग उन देशों को रवाना होंगे जो वतन के स्टेटमेंट से हरकत में अाए है । हमारी सबसे पहली कोशिश यह होगी कि हम उस देश के जासूस को चमन तक न पहुंचने दे, जहा तुम हों । माना कि मैं चीन जाता हूं । मेरा प्रयास यह होगा
कि सागपोक एण्ड पार्टी को मैं चमन में न पहुंचने दूं लेकिन अगर वो मेरे चीन पहुंचने से पहले ही चीन से निकेल लें अथवा अपनी कोशिश के बावजूद भी मैं उन्हें न रोक पाऊं तो चमन में उनका टकराव 'तुमसे होगा । हालांकि तुम भी उन्हें उनके अभियान में कामयाब नहीं होने दोगे लेकिन अगर मान भी लिया जाए कि कामयाब हो जाते हैं तो चीन में हम फिर होंगे ! क्योंकि अभी यह कोई नहीं कह सकता कि कौन कामयाब होगा ? जो भी सफल होगा उसी के देश में मौजूद भारतीय सीक्रेटस सर्विस का एजेण्ट हरकत में अा जाएगा । बाकी लोग चुपचाप भारत लौट जाएंगे ।"



"चक्रव्यूह तो आपने बनाया गुरू ।"



" अजी हमारे क्या कहने ।" विजय सीना तानकर बोला----" हम तो न जाने क्या-क्या बना डालते हैं ।"



विकास और ब्लेक बंवाय सिर्फ मुस्कराकर रह गए ।



फिर कुछ देर की बातों और ब्लेक व्वाय द्वारा दिया गया कुछ ऐसा सामान जो इस अभियान में उसके काम आने वाला था-लेकर वह गुप्त भवन से निकल गया । दुनिया के महान जासूसों से टकराब के ख्वाब देखता विकास घर पहुंचा । "



पहुंचते ही रैना ने उसे आडे़ हाथों लिया । बिकास जब इधर-उधर के बहाने वनाने लगा तो रैना ने कहा ---मुझे मालूम है कि अब तू वतन के पास जाएगा ।"



खोपड़ी बुरी तरह झन्ना उठी उसकी, बोला…"क्या मतलब ?"



"मतलब ये ।" कहने के साथ ही रैना ने उसके हाथ पर एक कागज रख दिया ।


धड़कते दिल से यह सोचता हुआ विकास कागज की तह खोलने लगा कि यह कागज किसका अौर इसमें क्या लिखा है ।


और उसने खोला,-पढा---


"प्यारे गुरुदेव, चरण सपर्श !"


आप तों विजयं गुरु के केहने में चलते हो ना ? न जाने वतन की मदद के लिए चमन में कव आओगे, शायद उस वक्त जव मेरे भाई का अन्जाम खत्म हो चुका होगा जो डॉक्टर भावा-का हुआ । मगर...मैं चुप नहीं बैठ सकता । मैं आज़ ही चमन जा रहा हूं अापके चरणों की कसम, वतन की तरफ कोई आंखें भी उठाए तो मैं उसकी आखें न निकाल लूं तो मेरा नाम मोणटो नहीं । मैं जा रहा हूं---मगर जरूरत समझो तो अपने बच्चे की मदद के लिए चमन जा जाना । ज़रूरी न समझो तो आपकी इच्छा । "


अपका धनुषंटकार ।


विकास ने पढ़ा । एक पल के लिए तो-दिमाग चकराकर रह गया उसका।


उसने देखा…कागज में सबसे ऊपर तारीख पड़ी थी । पिछले दिन की तारीख । सचमुच कल शाम से ही धनुषटंकार उसे नहीं चमका था ।


मगर उसे तो ख्वाबों में भी उम्मीद नहीं थी कि धनुषटंक्रार अकेला ही चमन पहुच जाएगा ।
घण्टियों की आवाज सुनते ही धनुषटंकार उछलकर खड़ा हो गया था । वह जान गया था कि उसका भाई आ रहा है वतन ! उसने जाल्दी से पब्बे का ढक्कन, बन्द करके जेब में डाला, और जैसे ही उसने कक्ष के दरवाजे की तरफ देखा-- दूध जैसा सफेद बकरा कमरे में प्रविष्ट हो रहा था । धनुषटंकार उसकी तरफ झपटा, अपोलो धनुषटंकार की तरफ । बड़े अजीब ढंग से एक दूसरे के गालों को प्यार क्रिया उन्होंने । अभी वे प्यार कर ही रहे थे कि दरवाजे पर नजर आया-वतन । दूध जैसे सफेद कपडे, आखों पर चढ़ा सुनहरे फ्रेम और गाढे-काले शीशों का शानदार चश्मा ।



इस बार वतन के हाथ में एक नई चीज थी…एक छडी़ का रग भी दूध जैसा सफेद था । उसे देखते ही धनुषटंकार अपालो से अलग हुआ ।



उसकी तरफ देखता वतन मुस्करा रहा था ।।



धनुकांकार ने एकदन जम्प लगा-दी और बांहें वतन के गले में डालकर उसके सीने पर लग गया, न सिर्फ झूल गया, बल्कि पागलों की, तरह वह वतन गाल चूम रहा था । वतन ने भी प्यार से उसे लिपटा लिया ।



"अकेले ही आए हो क्या ?" वतन ने सबसे पहला सबाल यही किया था ।



धनुषटंकार ने इशारे से ‘हां' कहा । .

यह थी वतन और धनुषटकार की वह पहली मुलाकात जब भारत से चमन पहुचने पर लह वतन से मिला ।



राष्ट्रपति भवन के मुलाजिमों ने उसे यह कहकर कक्ष में बैठा दिया था, कि वे अभी महाराज को सूचना देते हैं ।



और-----कुछ ही देरे बाद कक्ष में अपोलो और वतन पहुंचे थे ।



फिर-राष्ट्रपति-भवन में धनुषटंकार की जबरदस्त खातिर की गई । अतिधि हॉल में तब, वे नाश्ता कर रहे थे । वतन की छडी उसकी कुर्सी से सटी रखी थी । नाश्ते के 'बीच ही वतन ने उससे पूछा था…"मोण्टो !. यूं ही घूमने चले अाए या कोई खास बात ?"



जवाब में धनुषटंकार ने उसे अपनी डायरी का एक लिखा हुआ पृष्ठ पकडा दिया । उस कागज में धनुषटंकार ने लिखा था आपने आविष्कार के विषय में अख़बारों में स्टेटमेंट देकर अच्छा नहीं क्रिया । दुनिया क्री महाशक्तियां, माने जाने वाले राष्ट्र, उस आविष्कार को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे । इस आविष्कार के कारण ही आपकी (वतन) जान भी खतरे में है । आपकी मदद के लिए ही मैं यहां आया हुं । "



पढ़कर बडे आकर्षक ठंग से मुस्कराया वतन, बोला --"तुम वहुत ही पगले हो, मोण्टो ।"


"क्यों ?" धनुषटंकार ने इशारे से पूछा ।



" इसलिए कि तुम व्यर्थ ही चिन्तित हो उठे ।" वतन ने कहा…"जिस देश का शासन मैं चला रहा हूं , वह छोटा जरुर है, लेकिन इस देश का शासक दुनिया की महाशक्तियों के हथकण्डों
से पूर्णतया परिचित है । मैं जानता हूं कि मेरे स्टेटमेंट से दुनियां में खेलती मच गई है । यहीं चाहता भी था मैं ।"




"क्यो ?" धनुषटंकार ने पुन: इशारे से पूछा ।



"इसलिए कि सारी दुनिया को यह बता सकू कि दुनिया में सिर्फ अमेरिका और रूस ऐसे देश नहीं हैं जिनके बिज्ञान की दुनिया पर एकाधिकार है । मैंने साबित कर दिया कि उनके मुकाबले चमन जैसा छोटा राष्ट्र भी कुछ कर सकता है । क्या दुनिया की महाशक्तियां चमन के इस आविष्कार से चिंतित न ही उठी है?"
"'दुनिया की ये महाशक्तियां सिर्फ चित्तित होकर ही नहीं रह जाती हैं ।" धनुषटंकार ने डायरी के पेज पर लिखकर वतन को दिया--"बल्कि जलने लगती हैं । ईर्ष्या से जलती ही रहे -तब भी वे शायद हमारा कुछ न बिगाड़ सकें, लेकिन इनकी आदत है कि ये किसी: भी तरह उस शक्ति को समाप्त कर डालती है, जो उनके करीब जाना चाहती हैं । डाँक्टर भावा का नाम तो सुना ही होगा भैया, उन्होंने भी तुम्हारी ही तरह यह धोषणा कर दी थी कि उन्होंने एक ऐसा आविष्कार कर लिया है जिससे वे समूचे है भारत पर किरणों का एक ऐसा जाल बिठा देगे कि दुनिया का कोई भी अणु/बम भारत को लेशमात्र भी क्षति ऩ पहुचा सकेगा उनका अन्जाम तो तुम..."



" अच्छी तरह जानता हूं ।" हल्के से मुस्कराकर वतन ने कहा-"लेकिन मैं डॉक्टर भावा नहीं हू मोण्टो ! डॉक्टर भावा-इन दरिन्दो को जानते नहीं थे और ठीक उनके विपरीत मैं इन हरामजादों की नस-नस से वाकिफ हूं । मैं अच्छी तरह जानता हू कि कौन-से पल में, क्रिस हद तक घिनोनी चाल चल सकते हैं । तो ऐसा नहीं है मोण्टो, कि मैंने अखबारों को बिना कुछ सोचे समझे स्टेटमेंट दे दिया है । अखबारों को मैंने जो कुछ दिया है, बहुत अच्छी तरह सोच-समझकर दिया है । मुझे मालुम था कि मेरे इस स्टेटमेंट से दुनिया में हलचल मचेगी । महाशक्तियों को चमन के रूप में मंडराती अपने उपर मौत नजर आएगी । अपनी ताकत के मद में चूर जो राष्ट्र अन्धे हुए जा रहे हैं, उन्हें एक ठोकर लगेगी । वे पलटकर चमन की शक्ति का कारण यानी वह यन्त्र छीन लेना चाहेंगे जो मैंने बनाया है । उनका प्रयास तो यही होगा कि वे चमन की शक्ति के ,स्रोत यानी वतन को ही खत्म कर दें ।"




धनुषटंकार ने पुन: लिखा----" इतना सब कुछ जानते हुए यह स्टेटमेंट..... "



वतन ने पढा, धीरे…से मुस्कराया, बोता-----" हां , क्योंकि मैं उन्हें बता देना चाहता था कि हर भारतीय डॉक्टर भावा नहीं है । मैं तो चाहता ही यह हूं कि वे अपनी कोशिशें करें । तुम लोगों को यहाँ से गये छ: महीने हुए हैं न मोण्टो ! हां छ: महीने हुए हैं, मेरे चमन को आजाद हुए । इन छ: महीनों में मैंने यही एकमात्र काम किया ' है । जो तुमने अखबारों में पढ़ा है, इसके अतिरिक्त भी बहुत-से काम किए हैं । ऐसे कि इन महाशक्तियों को इनकी किसी भी गलत हरकत का मुंह-तोड़ जवाब दे सकू।"
"जैसे ?"' धनुषटंकार ने लिखा ।


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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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वतन ने पढा, पढकर जबाव दिया-----"अभी तो बताने का वक्त नहीं है । यहीं रहोगे तो सब कुछ अपनी आंखों से देख लोगे । अाओ चलें ! फिलहाल दरबार का समय हो रहा है । बाकी बाते दरबार के बाद करेंगे ।" कहने के साथ ही वतन अपनी छड़ी संभालकर उठ खड़ा हुआ ।


तभी धनुषटंकार ने एक हाथ उठाकर उसे एक मिनट रुकने का इशारा किया । "


" बोलो ।" वतन मुस्कुराया-" क्या पुछना चाहते हो ?"



धनुषटंकार जल्दी-जल्दी डायरी में कुछ लिख रहा था। वतन को कुछ ही देर इन्तजार करना पड़ा कि धनुषटकरर को जो लिखना था, यह लिखकर उसके हाथ में डायरी पकड़ा दी । वतन ने उसे अपने होंठों पर मुस्कान लिए पड़ना शुरू किया, पर पूरा पड़ते-पड़ते उसके होंठों मुस्कान गायब हो गई । मस्तक पर एकमात्र बल उभर आया । उसने उस इबारत को पढा, लिखा था--पिछली बार जब हम सब यहां से गए थे तो किसी ने भी तुम्हारे हाथ में कभी कोई छड्री नहीं देखी थी भैया, लेकिन इस बार देख रहा हूं अाप इस छडी को एक मिनट के लिए भी खुद से जुदा नहीं कर रहे हैं । जिस तरह बेदाग सफेद कपडे और ये काला चश्मा आपकी प्रिय है उसी तरह इस बार यह छडी भी लग रही है । क्या मैं इस लायक हूं कि इस छडी के बारे में कुछ जान सकू ?"



धनुषटकार ने देखा-इबारत को दोबारा पढ़ने के बाद वतन के मस्तक पर पडा़ बल और ज्यादा गहरा हो गया । उसने धनुषटंकार की तरफ देखा, फिर उसके होंठों से एक अत्यन्त ही गम्भीर स्वर निकला----"छड़ी के बारे में जाऩना चाहते हो--------देखो ।"


कहने के साथ ही उसने छडी को ऊपर उठाकर एक हाथ से उसका उपरी हैंडिल पकडा ।


फिर-----एक तेज झटका दिया।


ठीक इस तरह, जैसे क्रिसी म्यान में से तलवार निकले । छड़ी के अन्दर से मुगदर निकल आया हडिडयों का बना मुगदर । वह मुगदर अभी तक खुन से सराबोर था । हडिडयों के बने मुगदर पर लगा खून सूखकर काला पढ़ चुका था । धनुषटंकार अभी अवाक-सा को देख ही रहा था


कि वतन की आवाज ने उसकी तद्रा भग की ।


वह कह रहा था----"इसे पहचाना मौण्टो यह मेरी माँ और बहन की' हुहिड़यों का बना वही मुगदऱ है जिसे विकास ने बनाया था । जिसके वार सहता-सहता कमीना मैग्लीन मर गया । ये इस पर लगा खून देख रहे हो न…ये मेग्लीन का खून है ये मुगदर कभी नहीं धुलेगा मोण्टों, कभी नहीँ ! अपनी मा आर बहन की इन. हडिडयो को कभी साफ नहीं करूंगा मैं, मैंने कसम खाई है कि हर जुल्मों के खून का कुछ-न्-कुछ अंश इस हडिडयों पर, जरूर लगेगा । इसे हमेशा अपने साथ रखूंगा मैं -- हमेशा ।"


धनुषटंकार के जिस्म का रीयां रोयां खडा हो गया ।


आगे कुछ पूछने के लिए उसे जैसे कोई प्रश्न ही न मिला ।।


वतन ने खुद को -संभाला, मुगदर को छड्री-रूपी म्यान में रखा और बेला---"आओ दरबार में चलें ।"


धनुषटंकार ने ऐक नजर छड़ी को देखा, फिर चुपचाप वतन क पीछेे चल दिया । अपोलो वतन से आगे अपने गले में पड़ी घण्टियां बजाता चला जा रहा था । धण्टियों की वह आवाज वतन के आगमन का प्रतीक था ।
दरबार में प्रविष्ट होते ही धनुषटंकार की खोपड़ी सनसना कर रह ग ई ।




दरबार में अन्य जो-विशेष बातें थीं, वे तो थी हो, किंतु वह - चीज जिसने धनुषटंकार क्रो चकरा दिया था----------वह थी---फलवाली वह वुढिया , जिसे वतन दादी मां कहा करता था । वह दरबार के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान थी ।




मस्तक पर वही ताज जो वतन ने उसे पहनाया था ।



धनुषटंकार के दिमाग में विचार-उभरा-पह बुढ़िया तो मर गई धी, उसकी तो जलती चिता भी सबने देखी है फिर ..... फिर क्या चक्कर है हैं फ़लवाली बूढी दादी मां इस सिंहासन् पर कैसे धनुषटंकार का दिमाग| बुरी तरह चकरा रहा था ।




उस पर रहा न गया तो झपटकर वह वतन के कधो पर चढ़ गया । फिर सांकेतिक भाषा में उसने वतन से उस बुढिया कें बारे में पूछा । तब-जबकि वतन उसका इरादा समझा हंस पड़ा था । दरबार के कोने कोने में उसकी खिलखिलाहट गूंज उठी ।।


धनुषटंकार आश्चर्य के साथ उसे देखने लगा । पहली बार उसने वतन को इस तरह खुलकर हंसते देखा था । न सिर्फ उसने ही बल्कि दरबार में मौजूद हर इन्सान-ने वतन को जिन्दगी में पहली बार इस कदर हंसते देखा था ।



सारा दरबार उसकी हंसी की आवाज से गूंज रहा था । कुछ देर बाद अपनी हंसी को काबू में करके वतन बोला…"विकास जैसे जासूस का शिष्य होकर तुम धोखा खा गए मोण्टो । अब तो मानना पडेगा कि चमन के संग तराश दुनिया में बेमिसाल है ।"




धनुषट'कार ने इशारे से पूछा -"क्या मतलब ?”



…"जरा दादी मां को करीब से जाकर देखो । मतलब तुम्हें खुद पता लग जाएगा ।" वतन कह रहा था…"ये दादी मां नहीं, उनका स्टैच्यू है । चमन के ही एक संगतराश ने इसे तैयार किया है । जब वह सगतराश इसे लेकर दरबार में पहुंचा तो हम सहित दरबार में मौजूद हर इन्सान की मनोदशा बैसी ही थी जैसी कि इस वक्त तुम्हारी है । सचमुच दूर से देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि सचमुच की दादी मां नहीं बल्कि स्टैच्यू हैं । जैसा कि तुम जानते हो मोण्टो, चमन पर असती हुकूमत इन्हीं की है, मैं इनका प्रतिनिधि हूं ।" यह सव कहता हुआ वतन उस सिंहासन के बराबर ही मौजूद अपने सिंहासन पर बैठ रहा था ।



वतन का सिंहासन फलवाली बूढ़ी मा से कुछ नीचा था । सिंहासन पर बैठने का संकेत था । धनुषटंकार उस दूसरे सिंहासन पर बैठ गया ।




बैठने के बाद पहली बार उसने दरबार को ध्यान से देखा ।



अभी तक दरबार में अाने के बाद उसने देखा ही क्या था? दादी मां के स्टैव्यू के अलावा वह कुछ भी तो नहीं देख सका था, अब…दरबार की स्थिति को भरपूर नजर से देखा ।



बेहद खूवसूरती से सजा दरबार ।


बेशकीमती झालरें । हाँल की छत से लटके फानूस ! दाईं तरफ कतार में कई रंग की बर्दी पहने सशस्त्र सेनिक सावधानी की मुद्रा में खडे़ थे । उन कतारों के अागे एक कतार कुर्सियों की भी पड़ी थी ।


उन पर बैठे उच्च सेनिक अधिकारी ।



बाई तरफ-सफेद वर्दी में और जल सेनिर्कों की कतारे,



कतारों के अागे कुर्सियोॉ पर दोनों सेनाओं के अधिकारी । सिंहासन
के ठीक नीचे कपडों में बैठे कुछ व्यक्ति । उनके बैठने का स्थान और तरीका ही बता रहा था कि इस दरबार में उन्हें सम्मानित स्थान _प्राप्त है ।



सिंहासन के ठीक सामने कुछ कुर्सियां पड़ी थी ।



उन पर चमन के साधारण नागरिकों को बड़े सम्मान के साथ बैठाया गया था ।
-"अब दरबार की कार्यवाही प्रारम्भ की जाए ।"



इन शब्दों के साथ वतन अपने सिंहासन से खड़ा हो गया । साथ ही दरबार में बैठा हर व्यक्ति खडा हो गया । वतन अपने करीबी यानी दादी मां के सिंहासन के करीब पहुंचा और बडी श्रद्धा से हाथ जोडकर नतमस्तक होता हुआ बोला-"तुम्हारा बच्चा, तुम्हें साक्षी मानकर, तुम्हारे दरबार की कार्यवाही शुरु करता है ।"




सभी दादी मा के समक्ष नतमस्तक हो गए ।



फिर दादी मां' की स्तुति की गई…ऐसे, जैसे वह कोई देबी रही हो ।



स्तुति के बाद…




सभी ने अपनी-अपनी रिपोर्ट वतन को देनी शुरु की ।


सिंहासन के ठीक नीचे सादे वस्त्रों में जो लोग बैठे हुए थे, धनुषटंकार ने जब उनकी रिपोर्ट सुनी तो उसने जाना ये चमन के गुप्तचर विभागों से सम्बन्धित हैं ।



दरबार की सम्पूर्ण कार्यवाही को धनुषटकार भी चुपचाप सुनता रहा ।



हा, इस सारी कार्यवाही के बीच उसने यह जान लिया कि वतन ने चमन का शासन बेहद निपुणता के साथ चला रखा है सेनिक अधिकारियों और जासूसों की रिपोर्ट लेने के बाद उसने चमन के नागरिकों की शिकायतें सुनकर उनका समाधान क्रिया ।।



सबसे अन्त में दरबार में कुछ पेटियां खोली गई ।


परन्तु वे सब खाली ही निकली ।


अंतिम पेटी की सील तोड़कर यह देखने पर कि वह भी खाली है, पेटियाँ खोलने बाला मुलाजिम बोला----" ये सारी पेटियों आज भी खाली हैं महाराज ।" एक पल चुप रहकर वतन ने कहा----"' विभिन्न स्थानों पर ये पेटियों इसलिए रखी जाती है कि चमनके किसी भी निवासी क्रो हमसे यानी चमन के वर्तमान शासन से किसी तरह की शिकायत हो अथवा किसी भी विषय से सम्बन्धित कोई ऐसी शिकायत हो जिसे कोई अपने नाम के साथ किसी वज़ह से हम तक न पहुचाता हौ, यह शिकायत इसमें लिखकर डाली जा सकतती हैं । अावश्यक नहीं कि शिकायतकर्ता अपना नाम भी लिखे ।



" इसमें किसी भी शिकायती पत्र का न पाया जाना इस बात का द्योतक है महाराज,कि चमन के किसी नागरिक को ऐसी कोई शिकायत नहीं है जिसको अाप तक पहुंचाने के लिए किसी को अपना नाम छुपाने की जरूरत पड़े ।"
"अगर ऐसा है तो शायद हम दुनिया के सबसे खुशनसीब शासक हैं ।" वतन ने कहा---"लेकिन आवश्यक नहीं कि शिकायत-पत्र के न होने का यही कारण हो ! इसका एक और कारण भी हो सकता है, और वह यह कि इन पेटियों का अभी चमन में व्यापक प्रचार न हुआ हो । "


--"ऐसी बात नहीं है महाराज ! इन पेटियों के बारे में चमन का हर नागरिक जानता है ।" मुलाजिम ने बताया ।



--"फिर भी ।" वतन ने कहा----"इन पेटियों का प्रचार बढ़ाया जाए । हम नहीं चाहते कि हमारे शासन से कोई घुटता रहे ।"



" जो आज्ञा !" यह कह कर मुलाजिम नतमस्तक हो गया ।



इस तरह दरबार बरखास्त हुआ।


दोपहर के भोजन के बाद वतन ने धनुषटंकार को अराम की सलाह दी, उसने यह भी कहा बह उस दरबार की कार्यवाही के बाद उसे अपनी विशेष प्रयोगशाला दिखायेगा । वह प्रयोगशाला जिसमें दरबार की कार्यवाही के वाद वह ज्यादातर वक्त गुजारा करता है, जिसमें उसने ब्रह्मांड से आवाज कैच करने वाला यन्त्र बनाया है ।



धनुषटंकार ने तो जिद की थी कि वह आज ही उस प्रयोगशाला में घूमना और उस यन्त्र को देखना चाहता है । किंतु न जाने क्यों वतन धनुषटंकार की यह ,जिद टाल गया ।।




धनुषटंकार आराम से राष्ट्रपति भवन के उस कमरे में सो गया जिसमें उसके रहने का प्रबन्थ किया गया था । उसका अपना ख्याल था कि वतन और अपोलो प्रयोगशाला में चले गए हैं । वह शाम को पांच बजे उठा-उठते ही उसने देखा कि राष्ट्रपति भवन का एक मुलाजिम उसकी सेवा हेतु हाथ बांधे खड़ा हैं । उसने एक कागज पर लिखकर उसे दिया---" भैया कहां हैं ।"



" प्रयोगशाला में ।" कागज पढने के बाद मुलाजिम ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया ।




….."प्रयोगशाला कहां है ।" धनुषटंकार ने लिखकर पूछा…"मुझे भी वहीं ले चलो ।"

…"क्षमा कीजिए ।" मुलाजिम का जवाब-----" इस वक्त महाराज अपने प्रयोगशाला में व्यस्त होंगे । किसी को भी वहाँ जाने की इज्जत नहीं हैं ।"



अभी धनुषर्टकार अपनी डायरी पर कुछ और लिखने के लिए उंगलियों में दबे पेन को सीधा कर ही रहा था कि एकाएक राष्ट्रपति भवन में धण्टियों की मधुर आवाज गूंज उठी ।



मुलाजिम ने एकदम कहा-महाराज़ अा गए ।"




उसका वाक्य पूरा होते ही कमरे में प्रविष्ट हुअा--अपोलो ।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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उसके बाद दूध जैसे बेदाग सफेद कपडों में कैद वतन । आंखो पर सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा, हाथ में छडी…वह छड़ी, जिसके अन्दर उसकी मां और बहन की हडिड़यों का बना मुगदर था । कमरे में वतन की आवाज गूंजी…"मैं जा गया हूं मोण्टों ।"



इसके बाद रात के बारह बजे तक धनुषटंकार की जबरदस्त खातिर चलती रही ।



अगले दिन तब जबकि दरबार में पेटियां खुल रही थी-उस वक्त सारा दरबार चौका जब आखिरी पेटी खुली । पैटी में से फर्श पर गिरे शिकायत-पत्र पर प्रत्येक की दृष्टि स्थिर-सी होकर रह गई । ज्यादातर दरबारिर्यो के चेहरों पर आश्चर्य के भाव उभर अाए । "



धनुषटंकार, अपोलो और वतन की निगाह भी उसी पर थी ।



चमन के विभिन्न स्थानों पर ये पेटियों रखने का कार्यक्रम' पिछले चार महीनों से चल रहा था । प्रतिदिन दरबार में इन पेटियों को खोला जाता था, कभी कुछ नहीं निकला । इन पेटियों के खुलते … समय दरबारी बड़े इत्मीनान के साथ खडे रहते थे, 'क्योंकि सभी जानते थे कि उनमें से कुछ निकलने वाला नहीं है । चार महीने में यह पहला कागज था जो पेटी के माध्यम से दरबार में अाया था ।



तभी तो प्रत्येक की दृष्टि उसी कागज पर केद्रित थी ।



अजीब-सी धढ़कनों मैं साथ दिल धड़कने लगे थे ।



ज्यादातर लोग एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे, जैसे पूछ रहे हों कि क्या वह जानते कि कागज में क्या लिखा होंगा ?


मगर हर आंख में यह सवाल था, जवाब कहीं नहीं ।



…"हम कहते थे न कि इन पेटियों का व्यापक प्रचार नहीं क्रिया गया ।" वतन ने कहा-----"कल के प्रचार का परिणाम सामने है ।"




--"'नहीं महाराज है" पेटियां खोलने वाला मुलाजिम थोडा आगे बंढ़कर बोला---" मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आपके शासन में चमन के क्रिसी भी नागरिक क्रो कोई शिकायत नहीं है । यह कागज यूं ही किसी ने मजाक में डाल दिया हो... ।"




…-""शमशेरसिंह ।" वतन की इस गुर्राहट ने दरबार में मौजूद हर आदमी क्रो कंपकंपा दिया-" जानते हो कि चटुकारिता हमें पसन्द नहीं । तुम कैसे कह हो कि सारे चमन-मैं किसी
क्रो हमसे कोई शिकायत नहीं हैं ।"



" ज जी जी मैं जानता हूं ।" शमशेरसिह नामक मुलाजिम बौखला गया ।
"तुम जैसे चादुकार अगर हमारे चारों तरफ रहें तो चमन के नागरिक घुट-धुटकर ही मर जाए वे परेशान होते रहे अोर तुम जैसे चाटकारों से घिरे हम इसी भ्रम में रहे कि हमारे शासन में किसी कौं कोई शिकायत नहीं है, कैसे जानते हो तुम ?"



सहमकर शमशेर सिंह ने गर्दन झुका ली ।



'"अगर तुम जानते होते तो यह कागज इस पेटी में से न निकलता ।" वतन का गम्भीर स्वर-----" रही मजाक की बात तो तुम्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि चमन का एक बच्चा भी इतना बदतमीज नहीं जो अपने राजा से इस तरह का मजाक करे । पेटी से निकला यह पत्र ज्वलन्त प्रमाण है क्रि क्रिसी को हमसे, हमारे शासन करने के ढंग से कोई शिकायत है तुम्हारी यह पहली गलती है, इसलिए क्षमा करते हैं, मगर इस शर्त पर की भविष्य में तुम हमसे ऐसी चाटुकारिता-भरी बात फिर कभी न कहोगे ।"


शमशेरर्सिंह चुप ।



" अपोलो !" वतन के मुह से निकला ।



जैसे इसी शब्द का प्रतीक्षक था बकरा, वह अपने सिहांसन से उछला । एक मिनट में वह पत्र लाकर उसने वतन को दिया, इधर अपोलो वापस अपने सिंहासन पर जाकर बैठा और उधर पत्र की तह खोलता हुआ वतन कह रहा था…"यह पत्र हम भरे दरबार में जोर-जोर पढेगे ताकि जिसने यह लिखा है, उसकी शिकायत आप लोग भी जान जाएं ।"



सबकी सांसें रूक गई जैसे !



सभी लोग जानना चाहते थे कि वतन के खिलाफ आज चमन के किसी नागरिक की क्या शिकायत हो गई है ।
वतन ने पड़ना शुरू क्रिया-


-----वतन बेटे?



वतन ने पत्र में लिखा ये सम्बोधन पढ़ा तो दरबारियों के रोंगटे खडे हो गए ।



परन्तु बिना अटके वतन आगे पढ रहा था…


" तुम्हारे शासन में कोई कमी न होते हुए भी एक सबसे बड़ी कमी यह है कि तुम्हारा गुप्तचर विभाग वहुत कमजोर है । तुम जानते होगे जिस देश का यह बिभाग कमजोर हो उस देश का भविष्य किसी भी समय अन्धक्रार में गर्तं में डूब सकता है । तुम शायद यह चाहोगे कि मैं इस कथन को प्रमाणित करू । तुमने अपने गुप्तचर विभाग को यह काम भी सौंप रखा है कि कोई भी अजनबी चमन में दाखिल होते ही
उनके नोटिस में अा जाए? मगर--यह नहीं हुआ । मैं चमन में आ गया और तुम्हारा कोई भी जासूस यह न जान सका कि कोई अजनबी चमन में आ पहुंचा , चमन में ही नहीं बल्कि इस वक्त जबकि यह पत्र दरबार में पढ़ा जा रहा है-यह सुन कर शायद सभी को हैरत होगी कि मैं इसी दरबार में मौजूद हूं तुम्हारे जासूस अगर मुझे अब भी पकड़ लें तो मैं यह शिकायत वापस ले लूंगा ।


तुम्हारा न-न-ना-अभी नाम नहीं ।


इस पत्र की समाप्ति तक सारे हॉल में सनसनी-सी दौढ़ गई ।


अजीब घबराए-से चेहरे नजर अाने लगे । सब एक-दूसरे क्रो संदेह-भरी दृष्टि से देख रहे थे ।


और --- सिंहासन के करीब बैठे गुप्तचर ?


उनके चेहरे तो हल्दी की भांति पीले पड़ गए ।


वतन की दृष्टि अभी तक पत्र पर जमी हुई थी एकाएक उसने पत्र पर से नजरें हटाई । गौर से एक-एक देरबारी को देखा । पत्र उसने अपनी जेब में रखा । दरबार में सन्नाटा छा गया-ऐसा जैसे कि मौत पर शोक मनाया जा रहा हो ।



फिर सबने देखा-वतन के होंठों पर उभरने वाली एक अजीब-सी मुस्कान ।



वह सिंहासनं से उठ खडा हुअा ।


धीरे-धिरे सन्तुलित से कदमों से वह नीचे उतरने लगा । सारे दरबार में ऐसा सन्नाटा छा गया था कि सूई भी गिरे तो बम जैसे विस्फोट की अावाज हो । हर दृष्टि इस वक्त वतन पर केन्द्रित थी ।



लह सिंहासन से नीचे अाया ।



सैनिको की कतारों क्रो देखता वह आगे बढने लगा ।


एकाएक शमशेरसिह के करीब जाकर यह उसके पैरों में झुक गया । पैर छू लिए उसने ।


" अरे अरे , महाराज..." शमशेर .ने बौखलाना चाहा तो... उसक पैर पकडकर वतन ने कहा-"आपका बच्चा आपको पहचान गया है अलफांसे चचा !" वतन के ये शब्द जैसे विस्फोट वन गए । सभी उछल पडे ।


धनुषटंकार तो अपने छोटे-से सिंहासन से गिरते-गिरते बचा ।


शमशेरसिह ने झुककर वतन के कान पकड़े और उसे ऊपर उठाता हुआ बोला-"पगला कहीं का ।"


अलफांसे का स्वर सुनकर तो धनुषटंकार उछल ही पड़ा ।
उधर…अलफांसे वतन को अपने गले से लगाए खडा था ओर इधर कूदकर धनुषटंकार उसके करीब पहुंचा वडी श्रद्धा के साथ उसने अलफांसे के चरण स्पर्श किए तो अलफांसे का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हुआ ।



वतन उससे अलग हुआ तो धनुषटंकार उसके गले में झूल गया ।



पागलों की तरह वह अलफांसे के चेहरे पर से शमशेर का मेकअप उतारने की कोशिश करने लगा तो..



हंसता हुआ अलफासे कहने लगा---"अबे रूक जा शैतान बान्दर...मैं खूद ही हटाता हू ।" इन शब्दों के साथ ही अलफासे ने अपने चेहरे पर से शमशेर के चेहरे की झिल्ली उतार दी ।



अलफांसे का चेहरा देखते ही सबके मुह से सिसकारियां सी निकल पड़ी । उसके गले में बांहें डाले छाती पर लटका धनुषटकार पागलों की तरह अलफांसे के चेहरे को चूमे चला जा रहा था, उधर-अपोलो ने भी करीब जाकर-उसके चरर्ण स्पर्श किए ।


धनुषटंकार को छोड़कर उसने अपोलो को गोद में उठा लिया । कुछ समय, इसी तरह की मौजमस्ती में गुज़र गया ।



फिर-दरवार में अलफांसे के लिए एक विशेष सिंहासन डलवाया गया । पुन: अपने सिंहासन पर जाकर जव वतन ने गुप्तचरों के अभी तक पीले पडे 'चेहरों को देखा तो ' -"चचा !" "उसने अलफांसे से कहा था- इस शिकायत-पत्र में तुमने जो मेरे गुप्तचर विभाग के बारे में जो लिखा है, उसे मैं सहीं नहीं मानता ।"



"क्यों ?" अलफांसे ने कहा----" मैं न सिर्फ चमन में बल्कि इस दरबार तक पहुंच गया, और इन्हें भनक तक न लग सकी, क्या ये ...."


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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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" चचा, ये कमी इसलिए नहीं रही क्योंकि दरबार तक पहुचने बाले अाप हैं ।" वतन ने कहा'-"आप...जो दुनिया के माने हुए जासूसों को उंगलियों पर नचाते हैं न जाने कब से इण्टरपोल के लिए सिरदर्द बने हैं । अमेरिका के माफिया संगठन ने जिसके सामने घुटने टेक दिए , जिसने हर देश में जुर्म किए, लेकिन कोई भी सरकार आपको अपनी इच्छा के विरुद्ध कभी किसी जेल में न रख सकी…तो...तो...फिर आपके सामने इन छोटे गुप्तचरों की क्या बिसात है ? ये बेचारे क्या पकड़ पाते आपको ?"




" हम तो ये चाहते हैं वतन कि दुनिया के सर्वश्रेष्ट जासूसों से ज्यादा समझदार और खतरनाक चमन के जासूस हों ।" अलफासे ने कहा--हम यह चाहते हैं कि जिस को कभी कोई न पकड़ सका उसे चमन के जासूस पकड़ें ।"
-"यह तो आपका प्यार है मेरे प्रति जो अाप ऐसा सोचते हैं चचा !" वतन ने कहा'---'"आपका अाशीर्वाद रहा तो कुछ दिनों बाद चमन का गुप्तचर संगठन ऐसा ही होगा, फिलहाल दरखस्त है मेरी कि अाप अपने बच्चों को माफ कर दें ।" वतन का संकेत जासूसों की तरफ था ।


"‘माफ क्रिया ।" अलफांसे ने कहा…"लेकिन ये नहीं बताओगे क्रि तुमने मुझे एकदम कैसे पहचान लिया ?"



अब कहीं जाकर जासूसों के चेहरे सामान्य हुए ।



वे वतन की तरफ़ देखे रहे थे, यह जानने के लिए कि वह अलफांसे के प्रश्न का क्या जवाब देता है ।



धीमे से मुस्कराने के पश्चात् वतन ने कहा…"यहा आने के बाद आपने शेमशेर का मेकअप तो कर लिया चचा, लेकिन चूक आपसे यह हो गई कि शिकायत-पत्र आपने अपनी राइटिंग में लिख दिया जिसे थ्रोड़ा-सा ध्यान से देखने पर ही हैं पहचान गया था ।"




"ओह !" अलफांसे के मुंह से निकला-----", खैर मेरीं राइटिंग पहचानने के बाद यह तुम जान गए कि यह पत्र लिखने वाला मैं हूं लेकिन सवाल यह उठता है कि तुमने यह वैसे पहचान लिया कि मैं शमशेरसिह के मेकअप में हू ?।"




…"क्योकि आपके चेहरे पर अन्य दरबारियों की तरह घबराहट के चिन्ह नहीं थे ।"


वतन जब यह कहा अलफांसे ने उसे पुऩः अपनी बांहों में भींच लिया ।
"तो इसका मतलब यह है चचा, कि अाप भी इसी वज़ह से यंहा अाए है जिस वजह से मोण्टो भारत से अाया ?" अलफासे की सारी बाते सुनने के बाद वतन ने कहा था…"यानी आपकों भी यहीं खतरा हुअा कि मेरे स्टेटमेंट से महाशक्तियां मुझे घेरने की कोशिश करेंगी ?"


" और नहीं तो क्या ?" अलफांसे ने कहा ।


इस वक्त वे दोपहर का भोजन कर रहे थे और साथ-ही-साथ आपस में बातें भी भी करते जा रहे थे । यह भोजन कक्ष राष्ट्रपति भवन की तीसरी मंजिल पर था । कुछ देर तक वे यूं ही बातें करते रहे फिर जबकि वे भोजन कर चुकं तो धनुषटकार ने डायरी पर लिखा --


" वो कल का वादा याद है, भैया ?"


वतन ने पहा, पढकर मुस्कराकर बोला…" क्या तुम्हारी बात मैं कभी भूल सकता हूं मोण्टो ?"



धनुषटंकार कुछ और लिख पाता उससे पहले अलफासे ने पूछा --"दोनों भाई ही बात किए जाओगे या हमें भी पुछोगे ?"



" कोई विशेष बात नहीं चचा ।" वतन ने कहा-"लल मोण्टो से वादा क्रिया था कि इसे अपनी प्रयोगशाला दिखाऊंगा । उसी के लिए लिखकर पुछा है कि कहीं मैं भूल तो नहीं गया हुं ?”



"क्या ?" हल्के से चौककर-"तो क्या तुमने अपनी कोई प्रयोगशाला वना ली है ?"



"नहीं तो फिर आपके ख्याल से मैंने यह आविष्कार कहां किया होगा ?"




" तो तुम्हारी प्रयोगशाला तो हम भी देखेंगे भई ।"



"आप आज आराम कीजिए चचा-----कल देख लीजिएगा ।" वतन ने कहा।




"जिस तरह हिटलर की जिन्दगी में असंभव का कोई शब्द नहीं था उसी तरह हमारी डिक्शनरी में कहीं तुम्हें आराम नहीं मिलेगा ।" मुस्कराते हुए अलफांसे ने कहा…"आराम तो हराम है मेरे लिए । इच्छा तो हमारी है वतन, कि तुम्हारी प्रयोगशाला आज ही देखे, परन्तु कोई बात नहीं वतन । जैसी तुम्हारी इच्छा'-वैसे भी इस वक्त हम चमन में हैं, जर्रें जर्रे पर तुम्हारा हुक्म चलता-है-फिर भला हमारी क्या विसात है ।"




"ओह चचा!" वतन इस तरह बोला जैसे उसे बेहद दुख हुआ हो…"कैसी बातें करते हैं आप? कहीं भी सही लेकिन मेरा हुक्म आपसे बढ़कर नहीं । मैंने तो इसलिए कह दिया था कि अाप थक गये होंगे । आपकी इच्छा यह है कि अाज ही मेरी प्रयोगशाला देखें, तो अाइए ।" कहकर वतन उठा । छड़ी से टक- टक -टक की ध्वनि पैदा करता हुआ वह एक खिड़की के नजदीक पहुंचा ।




खिड़की खोली ।



बस, खिड़की से चमन की वस्ती का एक हिस्सा चमक रहा था । दूर-दूर तक बने हुए मकान, दूर किसी फैक्टरी की एक चिमनी भी चमक रही थी, मगर…यह सब कुछ एक सीमा तक ही चमक रहा था । सामने एक दीवार अड़ रही थी…बेहद ऊंची दीवार ।" जैसे किसी किले की रही हो ।
परन्तु-----वह दीवार किसी किले की थी नहीं इसलिए कि वह नई बनी हुई थी । मगर हां…दीबार भी कहां थी वह । वह तो एक इमारत ----वहुत ऊंची, किलेनुमा ! पूरे चमन में सबसे ऊंची इमारत राष्ट्रपति भवन की थी किन्तु वह साफ देख रहे थे, वह इमारत राष्ट्रपति भवन से भी बहुत ऊंची थी । उसी की और संकेत करते हुए वतन ने कह --"उस किलेनुमा इमारत को देख रहे है न अाप ? दरअसल वही मेरी प्रयोगशाला है जब तक चमन में वह नहीं बनी थी तब चमन की सबसे ऊंची इमारत थी, वह राष्ट्रपति भवन लेकिन अब वह है और थोडी-बहुत नहीं बल्कि इस राष्ट्रपति भवन से ठीक दूगनी ऊंचाई है उसकी । जहाँ उस इमारत का निर्माण' किया गया है, मैग्लीन के शासनकाल में वहा एक वहुत विशाल मैदान था । अपनी प्रयोग्शाला के लिए मैंने उसी जगह को उपयुक्त पाया और आज अाप देख रहे हैं-वहाँ खडी़ मेरी प्रयोगशाला ।"



" लेकिन इसकी यह दीवार इतनी चिकनी और सपाट क्यों है ?" अलफांसे ने पूछा…"कहीं कोई खिडकी, पाइप नजर नहीं अा रही । इतनी ऊंचाई तक जाने बाली इतनी चिकनी और सपाट दीवार बड़ीं अजीब-सी लगती है ।"



" न सिर्फ यहीं दीदार चचा, बल्कि प्रेयोगशाला की चारों ही दीवारें इसी तरह चिकनी' और सपाट हैं ।" वतन ने कहा…"कदाचित अाप समझ सकते हैं कि ये दीवारें प्रयोगशाला की सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं ।"



अलफांसे इस तरह मुस्कराया जैसे कोई बुजुर्ग' बच्चों की किसी बचकानी बात पर मुस्करा दे । बोला----"क्या तुम समझते हो कि इन दीवारों को इतनी चिकनी और सपाट बनवाकर तुमने सुरक्षा का कोई अच्छा प्रबन्ध क्रिया है ?" .



" सोचा तो यही है, चचा ! "



अलफासे कुछ बोला नहीं । हा, होंठों पर मुस्कान वही थी ।

वतन -ने उस मुस्कान का अर्थ समझा तो बोला…“यह मत समझियेगा चचा, कि प्रयोगशाला की सुरक्षा का मैंने यहीँ एकमात्र प्रबन्ध क्रिया है । इसे यूं समझो कि सुरक्षा के जितने भी प्रचन्ध मेरे दिमाग में आए, वे सभी मैंने इस प्रयोगशाला क्री सुरक्षा के लिए प्रयोग क्रिए हैं । मेरा दावा है, बल्कि यू समझिए कि आपके लिए भी चेलेंज है कि अगर आप स्वयं इस प्रेयोगशाला के अन्दर जाकर , अन्दर एक सूई भी उठाकर सुरक्षित बाहर अा जाएँ तो महान सिंगहीं के स्थान पर आपको गुरु मान लुंगा ।"
"ओंह !" अलफांसे धीमें से हसा…"इतना गर्व है अपने प्रबग्ध पर ?"




'"गर्व नहीं, विश्वास कहिए चचा । वतन ने कहा…"मैं गर्व नहीं करता क्योंकि सुना है…गर्व रावण का भी नहीं रहा ।"


" खैर !" अलफांसे बोला-----" सुरक्षा के वे क्या इन्तजाम किया तुमने ?"




-"बांकी इन्तजाम तो अाप प्रयोगशाला के करीब ही जाकर देख सकेंगे । हां, एक इन्तजांम अाप यहां से अवश्य देख सकते हैं, सो मैं आपको दिखाता कहने के बाद वतन ने अपोलो से नजरें मिलाकर कहा…अपेलो ।"




अपोलो जैसे जानता था कि उसे वया करना है ।



वह खिड़की-के पास से मुडा । एक ही जप्प-मेँ वह कमरे से बाहर निकल गया । करीब द्रो मिनट बाद जब यह वापस आया तो वह अपने दो पिछले पैरों पर चल रहा था । अपने अगले दो हाथों में उसने एक विशेष किस्म की दूरबीन क्रो संभाल रखा था ।



दूरबीन उसने वतन को दे दी ।




: अलफांसे की तरफ दूरबीन बढाता हुआ वतन बोला-----" ये लीजिए----, इसे से लगाकर प्रयोगशाला की तरफ देखिए ।"




अलफांसे-ने वैसा ही क्रिया तो देखा-
प्रेयोगशाला की पूरी छत को अजीब-सी किरणों के जाल से कवर कर रखा था । किरणों से जाल की एक छतरी-सी बन गई थी जिसके नीचे प्रयोगशाला की छत थी अलफांसे ने देखा-लाल और बारीक दहकती हुई-
किरणों का एक विशाल जाल । क्रिरणे क्रिसी पतले तार जितनी

मोटी थी । वे तार ऐक दूसरे में बुने हुए प्रतीत हो रहे थे । ठीक आटा छानने की छलनी का बडा रूप । कुछ देर तक अलफांसे उसे देखता रहा फिर दूरबीन आंख से सटाये ही बोला----"यह क्या है ?"



अलफांसे का यह कहना था कि धनुषटंकार ने उसके हाथ से दूरबीन 'ले ली ।



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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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उधर धनुषटंकार दूरबीन आंख से सटाये प्रयोगशाला की छत क्रो कवर किए दहकती किरणों के उस बारीक जाल को देख रहा था, उधर अलफांसे नंगी आंखों से उस जाल को देखने की असफल कोशिश का रहा था ।"
" इस तरह कोशिश करने से कोई लाभ नहीं है, चचा !" वतन ने कहा-----"इस विशेष दूरबीन की मदद के बिना, कुछ नहीं दिखेगा ।"



प्रयोगशाला की इमारत पर से नजरें हटाकर अलफांसें ने वतन पर नजरे गडा दीं, बोला…" उनकी विशेषता नहीं बताओगे ?"



" सुनिए ।" रहस्यमय ढंग से मुस्कराया वतन-----"भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर भावा का नाम तो सुना ही है सारी दुनिया जानती है कि उन्होंने किसी ऐसी किरणों का जिक्र किया था जिनकू मौजूदगी में अणुबम की विशेषता एक गेंद से बड़कर न हो । "



"'क्या कहना चाहते हो ?"



" मेरी प्रयोगशाला की छत को कवर किए जो किरणे आपने देखीं, वह डाँक्टर भावा का ही आविष्कार है ।"



"क्या मतलब?" अलफांसे बूरी तरह चौंका ।



"मतलब यह चचा कि जिन किरणों का आविष्कार भावा करने वाले थे, उन्हें तो दुश्मनों ने यह अविष्कार पुर्ण
करने से पूर्व ही मोत की गहरी नीद सुला दिया ।” गम्भीर स्वर में वतन कह रहा था-""मगर उनका वह अधूरा आविष्कार मैंने पूर्ण कर लिया है ।"


" कैसे ?"'


"वेवज एम' द्वारा ।"



"वेवज एम ।" अलफांसे ने दोहराया-"वेवज एम क्या है ?"'




" यह मेरे उसी यन्त्र का नाम है, जिसके बारे में विश्व के अखबारों में छपा है ।" वतन ने वताया ब्रह्माण्ड से आवाजें कैच करने वाले अपने यन्त्र का नाम मैंने 'वेबज एम' रखा है ।

इसी ’वेवज एम' द्वारा मैंने ब्रह्माड में-बिखरी डॉक्टर भावा की आबाज क्रो कैच क्रिया और उसी के आधार पर भावा के उस अधूरे कार्य को पूर्ण क्रिया । जिस आविष्कार क्रो करने से पहले डॉक्टर भावा दुश्मनों के षडृयन्त्र का शिकार हो गए, उसको मैंने उन्हीं की आवाज से पूर्ण कर लिया ।"



" क्या डॉक्टर भावा इन किरणों का फार्मूला तेयार का चुके थे ?"



-"बेशक ।" वतन ने बताया----"" ब्रह्मड में मुझे उनकी आवाजें मिली हैं तो बेशक वे फार्मूला तैयार का चुके ।"




"जरा स्पष्ट करके बताओ !"
"आपक्रो याद होगा कि डाक्टर भावा के साथ उस विमान में जिसके क्रेश होने पर वे मारे गए, उनका एक सहयोगी भी था जो उन्हीं के साथ मारा गया । व्रह्मांड में से मुझे डॉक्टर भावा और उनके उस सहयोगी की आवाजें मिली हैं, आवाजें उस वक्त की हैं जब वे दोनों इन किरणों के बारे में बांते कर रहे थे । मेरे ‘वेबज़ एम' ने सबसे पहले डॉक्टर भावा की वह आवाज पकड़ी ---"किरणों का फार्मूला मेरे दिमाग में बैठ चुका है ।"



" क्या अाप मुझे बतायेंगे ?" यह आवाज उनकें सहयोगी की थी ।"



" क्यो नहीं !" ‘वेवज़ एम' द्वारा ब्रह्मांड से कैच की गईडाँक्टर भावा की आवाज…'"दुनिया मेँ मात्र तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जिस पर हम आंखें बन्द करके विश्वास कर सकते हैं । गौर से सुनो-हम तुम्हें बता सकते हैं कि अणुबम की शक्ति को हीन करने वाली किरणे किस तरह बनाई जा सकती हैं । ध्यान से सुनना और जहाँ कहीं भी तुम्हें कोई कमी नजर अाए, फौरन रोक देना ।"




"इस तरहृ ....!" वतन ने कहा-"ब्रह्माण्ड में बिखरी डॉक्टर
भावा और उनके सहयोगी के बीच हुई समस्त बातें मैंने 'बेवज एम' द्वारा इकटृठी कर ली । उन आवाजों में डॉक्टर भावा ने अपने सहयोगी को किरणों का फार्मूला बताया था । बीच-बीच में उनका सहयोगी तरह तरह के प्रश्न करता था । बस, मुझे फार्मूला मिल गया और फिर मुझ जैसे व्यक्ति को फार्मूले के आधार पर किरणों का आविष्कार फेरने में भला क्या दिक्कत पेश आ सकती थी ? प्रयोगशाला के ऊपर उन किरणों का जाल आपने देखा ही है ।"



"क्या सचमुच ये वही किरणे हैं ?" अलफासे ने पूछा ।


"निसन्देह ।” वतन का जबाब था-"प्रयोगशाला में चलकर मैं डॉक्टर भावा और उनके सहयोगी ही आवाज आपको सुना सकता हूं । 'वेवज एम' द्वारा मैंने ब्रह्मांड से उन्हें कैच करके टेपरिकॉर्डर में भर लिया है । प्रयोगशाला के ऊपर आपने वहीं किरणे देखी हैं जिनकी छतरी के नीचे समूचे भारत क्रो अणुबम के भय से मुक्त रखना डॉक्टर भावा का ख्वाब था ।"



कई क्षण तक सोचता ही रह गया अलफांसे, फिर बोला ---" तुम महान हो वतन ! बेशक तुम आधुनिक दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक हो । जो तुमने किय् है, उसे आखों से देखने के बावजूद यकीन नहीं अाता कि तुम इतना सब कुछ कर सकते हो ।"
'मैंने क्या किया है, चचा ?" वतन ने कहा-"मैंने तो सिर्फ 'वेवज एम' का आविंष्कार क्रिया है वाकी ये किरणे तो डॉक्टर भावा का आविष्कार हैं । महान तो वे थे जिन्होंने इन अजीबोगरीब किरणों का… आविष्कार कर लिया था । मैंने क्या क्रिया----सिर्फ यहीं किया जो डॉक्टर भावा अपने सहयोगी को बताते रहे ।"



'‘दुनिया में इतने बड़े-बड़े वैज्ञानिक पडे़ हैं ।" अलफांसे ने कहा…"उन्होंने क्यों नहीं डाँक्टर भावा के इस अधूरे आविष्कार को पूर्ण कर लिया ?"



" उनके पास 'बेवज एम' कहां'था ?"' '



" 'वेवज एम’ का आविष्कार ही तो तुम्हारी महानता है ।" अलफांसे ने कहा…"आज तक कोई सोच भी नहीं सका कि ब्रह्माण्ड से आवाजें कैच करने का कोई यन्त्र भी बनाया जा सकता है । तुमने यह यन्त्र बना लिया । उस यन्त्र की मदद से ब्रह्मांड में
डाँक्टर भावा... ।"



…"ओह-चचा !” उसे बीच में ही रोक दिया वतन र्ने-"आप तो मेरी तारीफ करने लगे । बात तो सिर्फ यह थी कि मैं आपको वे प्रबन्ध बता रहा था' जो प्रयोगशाला की सुरक्षा के लिए मैंने किए है । अाप तो एक ही प्रवन्ध देखकर उसी में खो गए ।"



अोर-वास्तव में जैसे वह उन्हीं किरणों में खोकर रह गया था अलफांसे ।


उसने उपने सिर को झटका देकर, मस्तिष्क को विचार मुक्त किया और फिर ब्रोला-" हां -- खैर, और क्या प्रबन्थ किए हैं ।



"आइए मेरे साथ ।" वतन ने उनसे कहा और कक्ष से बाहर की तरफ कदम बढ़ा दिए ।



धनुधटंकार भी अपनी जाल से दूरबीन हटाकर उनके के साथ-साथ चल दिया ।



वे चारों राष्टपति भवन के बाहर निकले, द्वार पर ही वतन की चमचमाती हुई सफेद कार खड़ी थी । दूध. जैसे सफेद कपडे पहने ड्राइवर ने उसका अभिवादन-क्रिया और स्वागतार्थ कार के दरचाजे खोले ।



कुछ ही देर बाद कार अपने गन्तव्य की तरफ रवाना हो गई ।



"लेक्रिन तुमने अखबारों में इन किरणों के बारे में तो कोई स्टेटमेंट नहीं दिया था वतन ?" अलफांसे वे कहा !



" तभी तो कहता हूँ कि मेरे स्टेटमेंट से जैसा आपने और विजय चचा ने सोचा, उतना मुर्ख नहीं हूं मैं ।वतन ने
वताया-अखबार बालों को मैंने उतना ही बताया जितना बताना चाहिए ।"
वास्तव में अलफांसे उस प्रयोगशाला की सुरक्षा, से प्रभावित हुआ ।।



परन्तु----जो उसे करना था, यह सुरक्षा उसे टाल नहीं सकती धी । वतन द्वारा प्रयोगशाला की सुरक्षा के प्ररयेक प्रबन्ध को ध्यान से देखता और दिमाग में बैठाता हुआ अलफासे उसके साथ चला ।




समुचे इन्तजाम को देखकर उसकी आंखों में जो चमक उमरी वतन, धनुषटंकार अथवा अपोलो में से कोई नहीं देख सका था । उनंके साथ चलता हुआ यह इमारत क्री तरफ बढने लगा । अभी वे इमारत से पचास गज दूर ही थे कि बीच में एक
खाई अा गई ।



वतन के साथ-साथ सभी उस खाई के क्रिनारे पर ठिठक गए ।



अलफांसे ने देखा---यह खाई इमारत की दीवार के साथ-साथ चली गई थी ।




…'"जरा इस खाई में झांकिए चचा ।।" वतन ने कहा ।



अलफांसे ने झांका तो उस आदमी कर दिल भी धक् से रह गया ।



खाई अत्यन्त ही गहरी थी । उसके अनुमान से पच्चीस गज नीचे पानी का ऊपरी तल नजर अा रहा था । उस तल से नीचे खाई और कितनी गहरी है, यह अलफांसे अनुमान न लगा सका । अभी वह झाक ही रहा था कि पानी में उसे जोरदार हलचल महसूस हुई ।




…"इमारत की दीवार के सहारे--सहारे चारों तरफ यह खाई बनाई गंई है ।" वतन ने बताया-----"तो आप इसकी "देख ही रहे हैं । यह चौडाई मैंने चेतक को ध्यान में रखकर बनाई है ।।




"चेतक कौन ?" अलफांसे ने पूछा ।



"कमाल है !" मुस्कराते हुए वतन ने कहा-"चैतक को नहीं जांनत्ते आप ।।चेतक वही-भारतीय इतिहास के महायोद्धा महाराणा प्रताप का घोडा । उसी को ध्यान में रखकर मैंने इस खाई की चौड़ाई 50 गज रखी है ।"
" घोडे़ का इस खाई से क्या मतलब ?"

" कभी कभी तो अाप ऐसी बात करते हैं चचा, जैसे कुछ जानते ही न हों !" वतन बोला-"हालांकि इस जमाने में 'चेतक' जैसा कोई घोडा है नहीं और होगा भी तो चेतक भी इतनी चौडी़ खाई को एक ही जम्प में कभी पार नहीं कर सकेगा ।"



-"ओह !" अलफांसे इस तरह बोला, जेसे अब वह वतन के कहने का मतलब समझा हो, बोला…"लेकिन क्रिसी घोड़े को जम्प लगाकर क्या इसमें मरना है ? मान तो कि कोई घोड़ा इस खाई को एक ही जम्प में पार कर भी जाता है तो जाएगा कहां ? इमारत की दीवार से टकरा जाएगा । नतीजा यह होगा कि वह खाई में जा गिरेगा ।"



-"अब मैं आपको यह भी बता दूंकि यह खाई कितनी गहरी है ।" वतन ने कहा…"क्योंकि अाप इसकी गहराई को सिर्फ वहीं तक देख सकते हैं जहाँ तक पानी भरा हुआ है पानी कितने भाग में भरा है-यह अाप नहीं जान सकते ।"




" तो बता दो !" अलफांसे ने कहा ।




खाई की गहराई का आइडिया मैंने कुम्भकरण की खोपड़ी से लिया था ।" वतन ने बताया ।



‘"कुम्भकरण की खोपडी़ ।।" अलफांसे चौंका ।



-"नर्डी समझे ना ? वतन पुन: मुस्काराता हुआ बोला-समझाता हूं आपको । यह उस समय की बात जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था । उसमें पाण्डवों की विजय और कौरवों की पराजय हो गई थी । अपनी इस विजय पर पाण्डवों को गर्व हो गया था । उन्होंने महाभारत जीता था इसलिए वे यह समझने लगे कि दुनिया में न उनसे बढकर कोई योद्धा हुआ है और न है ।

--उसी गर्व में चूर एक बार हंसते हुए भीम ने श्रीकृष्ण से कहा…'भगवान हम बहुत ही परेशान हैं ।' किसी नदी तालाब, नहर में इतना पानी ही नहीं है जिसमें हम आराम से नहा सकें । हर जगह नहाने की कोशिश की, किंतु घुटनों से ऊपर पानी ही नहीं जाता । मतलब यह कि बाकी शरीर पर पानी लोटो से डालना पड़ता है ।। आराम से नहाने की कोई जगह ही नहीं है ।"




" हंसी में कहे गए इन शब्दों में छुपे गरूर को श्रीकृष्ण ने नोट कर लिया । अब नीति-निपुण कन्हेैया क्रो उनका गरूर तोड़ना आवश्यक भी लगा । अपने सांवरे होंठो पर आकर्षक मुस्कान बिखेरते हुए बोले…चलोो,'आज हम तुम्हें नहलाते हैं ।।

इस तरह, वे पांचों पाण्डवों को लेकर चल दिये ।।

"एक बड़े-से तालाब के किनारे जाकर श्रीकृष्ण ने उन्हें खड़ा कर दिया और भीम से बोले…‘इसर्में तुम जितना चाहो, नहा सकते हो ।'



न सिर्फ भीम बल्कि पांचों ही पाण्डव मुस्करा उठे थे ।



----- सोचकर कि श्रीकृष्ण एक छोटे-से तालाब में उनसे नहाने के लिए कह रहे हैं ।





"भीम ने कहा-'क्यों मजाक करते हो भगवान ?"



"मजाक नहीं करते ।’ चतुर कृष्ण ने कहा…"अगर आराम से नहाना चाहते हो तो इस तालाब नहाओ ।"





"पांर्चों पाण्डवों में एकमात्र युधिष्ठिर ही ऐसे थे जो श्रीकृष्ण की बात की गहराई को पकड़ संके है । उन्होंने भीम क्रो उस तालाब में नहाने की आज्ञा दी । भाई की आज्ञा पाकर भीम उस तालाब में ही चले गए ।"





"बहुत नीचे जाने पर भी जब उन्हें तालाब का तल न मिला तो घबराए और हाथ-पांव चलाकर तैरने लगे । तालाब के ऊपर अाए तो नहाना भूलकर बाहर अाए । किनारे पर खडे सांवरे के होंठों पर मन्द मुस्कान थी ।



"आश्चर्य के साथ तालाब की अोर देखते हुए भीम ने पूछा…यह कैसा तालाब है भगवान ?


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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