चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़) complete

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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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बिकास अभी कुछ कहना ही चाहता था कि वह रुक गया । दूसरी तरफ से बिजय ने उपयुक्त अल्फाज बोलकर सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया था । एक पल तो लह सांय-सांय करते रिसीवर को घूरता रहा, फिर उसे क्रेडिल पर रखकर बिस्तर से उतारा ।



तभी हाथ में चाय लिए कमरे में प्रविष्ट हुई रैना ।



"अरे मम्मी ।" रैना को देखते ही विकास ने कहा…"आप खुद चाय लाई ! नौकर नहीं था क्या ?"


" चाय लाने के बहाने कम-से-कम तेरी सूरत तो देख ली ।" रैना ने शिकायत-भरे स्वर में कहा---"बहुत आवारा हो गया है तू । सुबह-ही-सुबह न जाने कहाँ निकल जाता है, और फिर रात को उस समय अाता है जब सब सो जाते हैं । मालूम है वो क्या कह रहे थे ?"



'"क्या " ?" विकास ने रैना के हाथ में है कप प्लेट लेते हुए पूछा ।



" यह कि उन्हें तो एक ही घर में रहने के बावजूद भी तू कई-कई दिन तक नहीं मिलता ।" रैना ने कहा'…" कुछ तो यह पुलिस की नौकरी ही ऐसी है कि वे कब घर में रहते और कब बाहर ? फिर, एक तू है कि सारा दिन घर से बाहर रहता है ।"



"'क्या बात करती हो मम्मी । हां । इसे इत्तफाक ही कहा जा श्री सकता है कि जब डैडी घर में अाते है तो मैं नहीं होता और जब मैं घर में होता हूँ तो डैडी नहीं आ पाते ।" कहने के बाद बिकास ने चाय का एक लम्बा घूंट भरा ।



"'ऐसी बात नहीं विकास ।" रैना ने कहा…"वे नौकरी करते हैं, फिर भी तुम से ज्यादा देर घर में रहते हैं । .और एक तू ' _ है कि कुछ न करते हुए भी जाने सारे दिन कहां रहता है ?
अरे बिकास, जाना है क्या ?"



विकास चौंका ---बौखलाया , कहने लगा---"क्यों-नहीं तो मम्मी ।"


" बहका रहा है मुझे ?" रैना ने कहा-----देख नहीं रही हूं कि तू चाय जिस ढंग से पी रहा है ?"



"नहीँ' मम्मी ऐसी तो कोई बात नहीं है ।" विकास खुद को सभालता हुआ बोला ।।
"अच्छा, यह बता, काला लड़का कौन है ?"



और-रैना के इस सवाल पर विकास इतनी बूरी तरह उछल पडा जैसे एकाएक किसी बिच्छू ने उसे डंक मारा हो परन्तु चौंकने का एक भी भाव उसने अपने चहरेे पर नहीं आने दिया । उसने संभलकर सवाल किया…"काला लड़का-कौन काला लडका ?"



"औंर...ये गुप्त भवन क्या है ?"



विकास के सिर पर जैसे बम गिरा । कप प्लेट जैसे उसके हाथ से छूटते छूटते बचे,बोला---"गुप्त भवन ?"



दूसरे फोन पर तुम्हारी बातें सुन ली हैं जो तेरे और विजयं भैया के बीच हो रही थीं ।"



रैना के इस वाक्य ने विकास के दिमाग में चकराते इस प्रश्न का ज़वाब 'तो दे दिया क्रि रैना 'काले लड़के' और 'गुप्त पवन-के बारे में कैसे जानती है मगर-रैना का इतना जान लेना ही कम खतरनाक नहीं था । वह बोला-----"ओह । मम्मी ! अाप उस फोन की बात कर रही हैं । वह तो विजय अकल का फोन था न । तुम्हें तो मालूम ही है----वे मजाक करते हैं । कुछ दिन से उन्हें न जाने क्या भूत सवार हुआ है कि अपनी कोठी -को गुप्त भवन कहने लगे और उनका एक दोस्त है-उसे काला लडका कहते है ।"



"'काले लड़के को तुझसे क्या काम हैं. ?" रैना ने कहा…"यानी उससे मिलने के लिए विजय भैया ने तुम्हें क्यों बुलाया है । "



"ओह, हाँ, विजय गुरू का वह दोस्त अमेरिका से अाया हुआ है । आजकल वह मुझे जूडो और कराटे सिखाया करता है ।"

" मुझसे कुछ छुपा रहे हो बिकास !” उसे घूरती हुई रैना ने कहा ।



विकास यह महसूस कर रहा था कि वह बुरी तरह फंस गया है । फिर भी, बात क्रो सभालने की कोशिश करता हुआ वह बोला…"मैँ आपसे क्या और क्यो छिपाऊगा मम्मी ?"



" तो बता कि रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, चीन आदि से क्या के रिपोर्ट अाने वाली है ?"



एक बार पुन: विकास का दिमाग बुरी तरह झनझना उठा । बोला-"'वो मम्मी, इन सब देशों से अकल .ने कुछ और लोग बुलाए हैं न ! मुझे दांब सिखाने के लिए ।
अंकल का कहना वे दुनिया का कौई भी दांवं ऐसा नहीं छोडेंगे जो मुझे ना आता ।"



"क्या तुझे दांव सिखाने की जरूरंत है है ?" रैना ने पूछा ।


"'क्यों नहीं मम्मी, अभी मैंने सीखा ही क्या है ?"


" कुछ सीखा ही नहीं है तूने ।"रैना ने कहा-----" लोग जल्लाद के नाम तुझे जानने लगे हैं । देश-विदेश के जासूस तेरे कटटर दुश्मन बन गए हैं । यहाँ तक सुना है कि तू पूरी पूरी फौजों के के वश में 'नहीं अाता और कहता ये है कि तूने अभी सीखा ही क्या ?"



"ओह मम्मी?" प्यार से कहता हुआ वह रैना से लिपट गया…"बड़ी पगली हो तुम भी । इतने बड़े दुश्मनों से निबटने के लिए अंकल मुझे दुनिया का हर दांव सिखा रहे हैं-क्या गलत रहें हैं वह ?"



" लेकिन वेटे, तुझे इतने -खतरनाक जासूस और मुजरिमों से दुश्मनी लेने की जरूरत ही क्या है है"' रैना ने कहा---" तुझे क्या जरूरत पड़ी है कि इतने खतरनाक लोगों से उलझे ?विदेशों के मामलों को हमारे देश की सरकार जाने, देश की फौजें और जासूस जाने ।"




"‘मम्मी !" रैना से लिपटा विकास बोला-----" ये तो तुम जानती हो कि जेम्स बाण्ड, माइक,फुचिंग और ग्रीफित से तो मेरी दुश्मनी है तुम्हारे देश गुलशनगढ़ में ही गई थी । उस 'अभियान में तुम भी थी -- तुम्हें सब कुछ मालुम ही है ।"

(गुलशनगढ़ के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए पढे, क्रांति सीरीज. की दो पुस्तकें-"पहली दूसरी क्रांति‘ तथा 'क्रांति का देवता । )

""वह दुश्मनी वहीं की वहीं खत्म हो जानी चाहिए थी ।" रैना ने कहा…" और फूंचिंग और ग्रीफित को तो तूने मार ही डाला ।"



" मैं तो खत्म ही समझता हूं मम्मी, लेकिन जब वे अपने को खत्म नहीं समझते तो मैं क्या करू ?" विकास ने कहा---"फूचिंग क्रो मैंने मार डाला इसलिए पूरा चीन मेरा दुश्मन है । ग्रीफित को मार डाला इसलिए जेम्स बाण्ड और पूरा ब्रिटेन मेरा दुश्मन है । माइक मुझे अपना दुश्मन इसलिए समझता है । क्योंकि गुलशनमढ में वह मुझसे हार चुका है । अब तुम ही बताझो मम्मी, जब वे मुझे अपना दुश्मन समझते हैं तो कभी मुझ पर हमला कर सकते हैं । क्या ये ठीक नहीं होगा कि उनसे सुरक्षा के मैं सारे दांव सीख लूं ?"
" न जाने क्यों रैना की आंखें छलछला उठी । क्रिसी भावना के वशीभूत रैना ने उसे बांहों में कस लिया । रोती हुई वह बोली…"विकास कैसा पागल है रे तू । मुझे तो डर लगता है, केसे-केसे खतरनाक लोगों को तूने अपना दूश्मन वना लिया है ।"
बडी मिन्नतें करने के बाद भगवान ने मेरी गोद भरी है । मेरी गोद में सिर्फ एक तू हेमेरे लाल । तुझे कुछ हो गया तो...तो.... और फूट फूटकर रो पड़ी रैना ।




कौन समझाए ? कौन समझाए ममता में पागल हुई इस मां क्रो कि जिसे उसने गले से लगा रखा है, उसके नाम मात्र से दुश्मनों के कलेजे थर्रा उठते हैं । रूह कांप जाती है । अमेरिका और चीन में मौत के नाम से मशहूर है उसका यह लाल !



विकास----वह जल्लाद-देखों तो सही, मौत को थर्रा देने वाला दरिंदा कैसे मासूम और अबोध बच्चे की तरह अपनी मां के कलेजे के से लिपट गया ! कह रहा है--‘"अरे...रोती क्यों हो मम्मी ! तुम डरती क्यों हो ? विजय गुरु और अलफांसे अंकल जो मेरे साथ है ।"


-"'न जाने क्यों ये कुत्ते… मेरे मासूम लाल को अपना दुश्मन समझने लगे हैं ।" भावावेश के भंवर फसीं रैेना कहती ही चली गई-"कहों वे हत्यारे जासूस और कहां मेरा अबोघं लाल ।"




कौन समझाए उस मां को कि उसका अबोध लाल दरिंदा है, दुर्दान्त,बेरहम और वक्त पढ़ने पर राक्षस है । कौन समझाए उसे जिन्हें वह खतरनाक समझ रही है, वे विकास की परछाईं से भी कांपते हे । कौन समझाए.......


बड़ी कठिनाई से विकास रैना को संभाल सका । . . अपनी मां को भावनाओं के भंवर से निकाल सका । बड़ी कठिनाई से वह रैना से इजाजत ले सका कि वह विजय की कोठी पर चला जाए ।



तैयार होने के बाद जब यह कार लेकर सडक पर अाया तो वह पूरे आधे घण्टे लेट था ।




उधर-विकास कोठी से बाहर निकला या, इधर रैना ने रिसीवर उठाकर विजय की कोठी के नम्बर रिग किए । कुछ देर तक दूसरी तरफ से बजने वाली घण्टी की आवाज जाती रही । काफी देर के बाद दूसरी तरफ़ से फोन उठाया गया ।


आवाज अाई-----"' कौन साहब बोल रहे हैं ?"


"' कौन पूर्णसिंह ?'-' विजय के नौकर की आवाज पहचानकर रैना ने कहा --यह मैं बोल रही हूं रैना ।"

" ओह, बीबीजी !" पुर्णसिंह ने कहा------" हां मैं पूर्णसिंह ही हूं ।"



"विजय भैया को फोन दो ।"



" वे तो यहां हैं नहीं, बीबीजी !"




प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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पुर्णसिह के इस वाक्य ने रैना के मस्तिष्क में एक भयानक विस्फोट क्रिया । एक बार तो उसे चक्कर सा ही अा गया । खुद को संभालकर वह बोली…'कहां गए हैं कब गए?”



" वे तो अाज सुबह-सवेरे ही चल गए बीबीजी !" पूर्णसिंहृ ने वताया-" किसीं का फोन अाया और वे बिना नाश्ता किए ही चले गए ।"



रैना के मस्तिष्क में जैसे रह-रहकर विस्फोट होने लगे । उसने पूछा…"बिजय भैया से मिलने आज कोई आदमी अाया था ?"

--"नहीँ तो बीबीजी ! लेकिन बात क्या है ? आज अाप कुछ परेशान-सी हो?"



"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है ।" खुद को संभालकर रैना ने कहा-"हां सुना, कुछ देर बाद विकास वहीं पहुंचेगा । उसके पहुंचते ही तुम फोन कर देना ।" उसकी बात का पूर्णसिंह ' ने क्या जवाब दिया यह सुने बिना ही रैना ने रिसीवर फेडिंल पर पटक दिया ।

धम्म से सोफे पर गिर पड़ी ।।


वह बेहद परेशान हो उठी थी ।।



रह…रहकर उसके दिमाग में विचार उठ रहे थे कि विकास ने उससे झूठ क्यों बोला ?



"काला लड़का' "गुप्त भवन' ये सब क्या है ?


विदेशों से क्या रिपोर्ट अाने वाली है, और इससे विकास का क्या सम्बन्ध है ?



काफी देर तक इन्हीं ख्यालों में खोई. वह फोन की घण्टी बजने का इन्तजार करती रही, किन्तु वह नहीं बजी ।



कुछ देर बाद तब, जबकि उसे यकीन हो गया विकास अगर विजय की कोठी पर गया होगा तो पहुंच गया होगा, उसने पुन: विजय की कोठी के नम्बर डायल किए और दूसरी तरफ से बोलने वाले पूर्णसिंह से विकास के बारे में पूछा तो नकारात्मक जवाब दिया ।


फिर…लगातार दो घन्टे तक विजय की कोठी पर दो बार फोन करने के बावजूद भी रैना को यह सुनने को न मिला कि ,विकास वहाँ पहुच गया है ।
"ये मामला तो बड़ा गलत हुआ प्यारे दिलजले ।" गुप्त भवन के 'साउण्डप्रूफ कमरे में बैठा विजय बिकास की सारी बात सुनने के बाद कह रहा था…"खैर, फिर भी तुमने अच्छा किया कि गुप्त भवन मेरी कोठी को बना दिया काला लड़का "अमेरिका से अाया जूडो और कराटे का मेरा एक दोस्त ! अगर रैना बहन को पता लग जाए कि काला लडका उसका भाई ही है तो गजब हो जाए ।"



'
"सर !" सीक्रेट सर्विस के चीफ की कुर्सी पर बैठे अजय ने कहा…"मेरा ख्याल है कि अागे से इस बात का प्रबन्ध किया जाना चाहिए कि जिस तरह आज रैना बहन ने फोन पर सब कछ सुन लिया, अागे से, कोई न सुन सके, वरना सीक्रेट सर्विस का राज-र-राज नहीं रहेगा । वैसे अगर रैना बहन क्रो विकास की बातों पर यकीन नहीं आया होगा तो मामला बढ़ सकता है ।"


" सीक्रेट सर्विस का राज तो हमें राज ही रखना हे प्यारे ।" विजय ने कहा…"चाहे जैसे भी हो ।"


"'लेकिन रैना बहन जान गई तो ।"


"'अंकल ।" ब्लैक व्वाय की बात बीच में ही काटकर विकास-गुर्रा उठा --" मम्मी पर तो क्या, सीक्रेट सर्विस का कोई भी राज कभी किसी पर नहीं खुलेगा और अगर खुल भी गया तो किसी दूसरे को बताने के लिए वह जिन्दा नहीं रहेगा । अपने हाथ से मैं मैं मम्मी को गोली मार दूंगा ।"



"विकास ।।" ब्लैक ब्वाय के मुंह से तो चीख-सी निकल पड़ी ।



और विजय-वह तो विकास के चेहरे को देखता ही रह गया । विकास का चेहरा तमतमा रहा था । उसने विजय की तरफ देखा, गम्भीर स्वर में बोला--"क्यों गुरु, क्या गलत कहा मैंने ? सीक्रंट सर्विस का हर सदस्य बनते से पहले हर सदस्य यही कसम तो खाता है ।"




" विकास । " विजय के नेत्र छलछला गए । विकास को उसने अपने कलेजे से लिपटा लिया । मुंह से सिर्फ एक ही लफ्ज निकला-"मेरे बेटे ।"



मगर जल्दी ही विजय ने खुद को संभाल लिया था । एक मिनट , के लिए उसके दिमाग में यह बिचार अाया कि वह भावुक हो गया है, और अगले पल उसने अपने सिर को झटका देकेर खुद को सामान्य किया और बोला-----" छोड़ो। तुम विदेशों से अाए एजेण्टों की रिपोर्ट सुनो ।"


"हाँ ।" विकास-सामान्य स्थिति में अा गया बोला…"जल्दी बताइए क्या हुआ ?"
-"सबसे पहले चीन की रिपोर्ट सुनो तुम ।" विजय ने कहा-"'चीन में हमारी एक लेडी जासूस है । वेसे उससे तुम पहले भी मिल चुके हो । उस समय जब तुम तलवारों के सिलसिले में चीन गये थे ।"




" कौन क्रिस्टीना ?" विकास ने पूछा ।



" हां" विजय ने कहा---"यह काम हमने क्रिस्टीना को ही सौंपा था । उसने रिपोर्ट भेजी है कि वतन का स्टेटमेंट पड़ते ही चीन में हलचल मच गई और फौरन ही सीक्रेट सर्विस के सभी सदस्यों 'की एक आपातकालीन मीटिंग बुलाई गई । उसके फैसले के मुताबिक चीन के तीन जासूसों, जो चीन के अच्छे जासूस माने जाते हैं , के नेतृत्व में छ: जासूसों की एक टुकडी चमन के लिए रवाना होगी । उन तीन जासूसों के नाम है…सांगपोक,
हवानची
और एक लेडी जासूस है
सिंगसी ।
तुम्हारी जानकारी के लिए यह बता दूं कि सांगपोक फूचिंग का लड़का है और इसी से तुम अनुमान लगा सकते हो कि वह किस कदर तुम्हारे खून का प्यासा होगा । यूं समझो कि अब अगर दुनिया में रहने का उसका कोई मकसद है तो वह है सिर्फ तुम से अपने पिता की मौत का बदला लेना । उसने कसम खाई कि वह फूचिंग़ की कब्र को तुम्हारे खून से धोएगा ।"



"ओह !"' विकास के मुंह से निकला ।


" जहां तक मैं समझता हूं प्यारे दिलजले, चीनियों को यह अनुमान हो गया है कि वतन कि हिमायत में तुम जरूर आओगे । इसीलिए उन्होंने तुम्हारे सारे दुश्मनों को एकत्रित कर लिया है !"



"क्यों ?" इनमें से और किसको मुझसे व्यक्तिगत दुश्मनी है ?"



"हवानची को जानते हो, कौन है ?"'


"कोंन है ?"



"हुचांग का साला ।" विजय ने बताया-उसने भी हथियार तुमसे अपने जीजा की मौत का बदला लेने के लिए उठाए हैं ।



उसने बडी़ अजीव कसम खाई है । उसका कहना है कि अपनी जिन्दगी का अाखिरी कत्ल वह तुम्हारा करेगा ।"

हल्के से सकराया विकास, बोला'-"उसने तो बहुत गलत कसम खाई गुरू । मेरा कत्ल करने के बाद तो उसे और कत्ल करने होंगे, जैसे आपका, क्राइमर अकल का वरना आप दोंनो उस वेचारे को कत्ल कर दोगे ।"
" सवाल ये नहीं प्यारे कि कौन किसको कत्ल करेगा ।" विजय ने कहा…"सवाल यह है कि इन दोनों का परिचय मैंने तुम्हें इसलिए दिया है ताकि तुम मामले की भयानकता को समझ सको। हर कदम संभालकर उठाना है ।"



" वह तालीम तो आप मुझे दे ही चुके हैं ।"



" मेरा मतलब ये है कि इस मामले में विशेष सावधानी की आवश्यकता है ।" विजय ने कहा ।



"विशेष सावधानी तो मैं हर मामले में रखता हूं।" विकास ने मुस्कराते हुए कहा----"बस , यूं कहो कि आपकी भूमिका से यह बात मेरी समझ में अा गई है कि इस बार टकराव में मजा खूब जाएगा ।"



"सोचने का अपना-अपना अलग तरीका है प्यारे दिलजले?" विजय ने कहा-----"जहाँ तक सवाल विजय दी ग्रेट के सोचने का है, वह हमेशा ही अाम के अचार की तरह खटटा किन्तु स्वादिष्ट होता है । इससे पहले कि तुम मेरी बात का मतलब पुछो, मैं तुम्हें पहले ही बताए देता हूं । वतन का स्टेटमेंट अखबार में छपते ही हमने कह दिया था कि यह स्टेटमेंट रंग जाएगा----लही हुआ । अब हमारा सीधा-सा सवाल है कि चीन सरकार यह समझ गई हैं कि वतन की हिमायत में तुम जरूर जाओगे और मौत के दरवाजे खोलने के लिए ही सांगपोक और हवानची को मैदान में लाया गया है । तुम कहते हो कि इनके रहते केस में मजा अाएगा और मैं कहता हूं कि दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए ।"




"लेकिन अाप बार-बार उन दोनों के नाम लेकर क्या मुझे डराना चाहते हैं हैं" विकास ने पुछा ।



" मालूम है कि तुम किसी से डरने वाली चीज नहीं बल्कि दुनिया को डराने वाली चीज हो ।"



"'तो फिर गुरु !" विकास ने यह बार-बार मुझे सांगपोक और हवानची की धमकी क्यों ?"



"'एक बात याद रखना प्यारे दिलजले, यानी कि गुड़ के डले ।" विजय ने कहा---“जब डूबता है तो तैराक डूबता है जो तैरना नहीं जानता, वह ज्यादा गहराई में ही नहीं जाता, तो डूबेगा ही केसे ? बिल्कुल नहीं डूवेगा है वार-बार उनकर नाम लेने के पीछे मेरी यह भावना बिल्कुल नहीं कि तुम्हें डरा दू वल्कि सचेत करना चाहता हूं कि इस में बहुत संभलकर अागे बढने की जरूरत है ।।
" ऐसा ही करूंगा ।"



"जानते हो, चीन से रिपोर्ट भेजने वाली क्रिस्टीना ने क्या लिखा है ?"



"क्या ?"



" उसने लिखा है के इस अभियान पर विकास को न भेजा जाये । उसका कहना है कि सांगपोक और हवानची प्रतिशोध की अाग में जलती उस नागिन की तरह हैं जिसके नाग की किसी नाग ने हत्या कर दी हो । उन दोनों की आंखों में विकास की तसवीर है, और जानते हो-ये भी लिखा है क्रिस्टीना ने कि उसने तुम्हें देखा है । वह जानती है कि तुम मासूम हो । उसने कहा है---मासूम और प्यारे विकास को इन दरिन्दों के सामने न जाने दिया जाए है"



" फिर ?” विकास ने गम्भीर स्वर में पूछा'-"क्या आप मुझे इस केस में नहीं जाने देगे?"


हल्के से मुस्कराया विजय, बोला ---" तुम्हें न भेजने वाली बात होती तो यहां बुलाते ही नहीं प्यारे दिलजले ! वैसे ही हम जानते हैं कि किसी के रोकने से रुकोगे नहीं तुम । लेकिन हा, सारा काम एक योजनाबद्व तरीके से हो, इसलिए तुम्हें यहा बुलाया है ।"


"तो हुक्म कीजिए।"



" अभी तो चीन की ही रिपोर्ट सुनी हे-अन्य देशों की तो -- अन्य देशों की तो सुनो ।"


"जरूर ।"



"अमेरिका में मौजूद हमारे जासूस नागपाल ने रिपोर्ट भेजी हैअमेरिकन सीक्रेट सर्विस ने यह काम हेरी को सौपा' है कि वह चमन में वतन के बनाए यन्त्र और उसके फार्मूले को गायब करें । हैरी सीक्रेट सर्विस के चीफ की तरफ से यह खास हिदायत दी गई है कि इस सारे अभियान में कोई यह न जान सके कि वह हैरी हैं । सच पूछा जाए तो अमेरिकन सरकार वतन से बहुत डरने लगी है और यह नहीं चाहती कि वतन को पता लगे कि अमेरिका पुन: उसके खिलाफ कोई कदम उठा रहा है ।"



" ब्रिटेन से क्या रिपोर्ट है गुरू ?" विकास ने पूछा ?


""यह कि इसी काम के लिए वहां से जेम्स बाण्ड को भेजा जा रहा हैं। पाकिस्तान से दो जासूस-तुगलक अली और नुसरत खान ।

रूस से बागारोफ को यह काम सौपा गया है । इन सभी को अलग अलग इनके देशों ने यह काम सौंपा है कि ये चमन से यन्त्र और फार्मूला गायब करें ।"
" क्या इम सव 'देशों के जासूस को यह जानकारी है कि उसकी तरह ही दूसरे देशों ने अपने जासूसो को यह काम सौंपा है ?"



" नहीं ।"



" तो अव हुक्म बोलिये गुरू ।" विकास ने पूछा ।


"सुनो, धनुषटकार को साथ लेकर तुम्हें चमन के लिए रवाना हो जाना है ।" विजय ने कहना शुरु किया----" हम चीन जाएंगे,
प्यारे विक्रमादित्य को रूस भेजा जाएगा।
अशरफ को अमेरिका,
परवेज पाकिस्तान और
आशा को ब्रिटेन ।"



"यानी आपने तो पूरी सीक्रेट सर्विस को ही हरकत में ला दिया ।"


" काम उसी ढंग से करना चाहिए प्यारे, जिस ढंग की जरूरत हो ।" विजय ने कहा---अलग-अलग देशों से मोहरे चले हैं, कह नहीं सकते के इनमें से कामयाब कौन हो ? सबसे महत्त्वपूर्ण काम , तुम्हारे हवाले किया गया । हर देश का जासूस चमन में पहुंचेगा।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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अत: इस व्यूह का केन्द्र चमन में है, और केंन्द्र पर हमने तुम्हें नियुक्त किया है । जहाँ तक हमारा अनुमान है, अगर सारे जासूस एक ही समय पर चमन में पहुंचे तो चमन में बेशक दुनिया के महान जासूसों का जबरदस्त टकराव होगा । हमारी राय यह है कि उस टकराव में तुम शरीक नहीं होगे ।”'



" तो फिर वहाँ क्या तमाशा देखूंगा ?"



-"'बेशक ।"


"'क्या मतलब हैं" विकास चौंका।



" वैसे तो हम जानते हैं प्यारे दिलजले कि काम अपने ढंग से करोगे और हमारे समझाने से कुछ नहीं होगा ।" ने , कहा-"लेकिन फिर भी आदत खराब हो गई-समझाए बिना रहेंगे नहीं । सुनो, तुम वहा पहुंचोगे, लेकिन वतन के अलावा कोई यह नहीं जान सकेंगा कि विकास वहां पहुच गया है तुम्हारा काम् वतन, उसके आविष्कार और फार्मूले की हिफाजत करना होगा । जिस वक्त हैरी, बागारोफ, जेम्स बाण्ड, तुगलक अली , नुसरत खान, सांगपोक, हवानची और सिंगसीं वहां पहुंच जाएंगे तो एक-दूसरे के बारे में निश्चित रूप से पता लग जाएगा । लक्ष्य एक ही है । अत: मिलकर वे काम नहीं कर सकेंगे। एक
दूसरे का विरोध करेंगें टकराव होगा । सम्भव है कि उस टकराव में इनमें से एकाध का कल्याण हो जाए । इनके बीच नहीं कुदोगे । आपसी लड़ाई में जीतने के बाद जो भी वतन तक पहुंचने की कोशिश करे, उसे संभालना तुम्हारा काम होगा ।"
लेकिन अाप सब लोग चीन, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और पाकिस्तान में क्या करेंगे ?"




" अखण्ड कीर्तन ।" झुझलाकर विजय ने कहा---"अवे, पहले पूरी बात सुन लिया करो, तब चोंच खोला करो । ये माना कि तुम अभिमन्यु बनकर उस व्यूह में घुसे होगे, लेकिन प्यारे, मालूम है न कि अभिमन्यु व्यूह में फंस कर ही रह गया था । बही डर हमें भी है, माना कि तुम कामयाब न हो सहे और इनमें से कोई यन्त्र और फार्मूला प्राप्त करने में कामयाब हो गया तो क्या केरोगे ?"



"मेरे ख्याल से ऐसा होगा ही नहीं गुरु ।"



" तुम्हारे ख्याल रेत की दीवारों से ज्यादा मज़बूत नहीं होते प्यारे ।" विजय ने कहा…"और हमारे ख्याल अक्सर पत्थर की लकीर कहलाते हैं । अपने ख्यालों को जेब में रखो और हमारी बात को कान में आंवले का अचार डालकर सुनो । तुम्हें एक विशेष ट्रांसमीटर दिया जाएगा। उसकी मदद से जब चाहो----- विक्रमादित्य, झान-झरोखे, गोगियापाशा से सम्बन्ध्र स्थापित कर सकते हो । माना कि दुश्मनों में से कोई अपने अभियान में कामयाब हो गया तो तुम यह सूचना उसके देश में मौजूद हममें से किसी 'को भी दे दोगे । मानो कि जेम्स बाण्ड कामयाब हो जाता है तो तुम फौरन यह सूचना मिस रोगियापाशा को दे दोगे, क्यों ? …-वयोंकि ब्रिटेन में वही होगी । अत: फिर जेम्स बाण्ड को अपने चीफ तक न पहुंचने देने का काम उसका होगा है"



"मतलब यह कि अगर चीनी जासूस कामयाब हो तो उसकी सुचना मैं आपको दे दूं ?" बिकास ने कहा ।



" वो मारा साले पापढ़ वाले को--अब समझे न हमारी बात…गधे की लात ।"-विजय ने कहा--"हेरी कामयाब हो जाए तो झानझरोखे क्रो, तुगलक और नुसरत कामयाब हों, तो परवेज को कहने का तात्पर्य ये कि जिस देश का कामयाब हो, उसी देश में मौजूद भारतीय सीक्रेंट सर्विस के एजेण्ट को सूचना दे दी जाएगी!"




"यह तो मैं समझ गया गुरू !" विकास ने कहा’--“लेकिन माना कि चचा बागारोफ कामयाब हो जाते हैं, तो सीधी…सी बात है कि मैं रूस में मौजूद- विक्रम अंकल को सूचित कर दूं, वे हरकत में अा जायेगे । यह ठीक है-मगर अन्य देशों में मौजूद साथी जैसे चीन में आपका क्या काम रह जायेगा ?"

"पीर्किग की ठण्डी सडकों पर टहलकर वापस आ जाएंगे ।"
मेरे ख्याल से तो बेकार में इतना लम्बा लफड़ा फैला रहे हो गुरु ।" विकास ने कहा ।



" जिस दिन से तुम्हारी तुच्छ बुद्धि में हमारी महान बातें फिट होने लगेंगी प्यारे दिलजले, उस दिन से लोग तुम्हे विकास नहीं, विजय कहेंगे ।" विजय कहता ही चला गया…"तुम एक ही बार में यह योजना सुन लो जो हमने बनाई है, उसे शान्तिपुर्वक सुनने के बाद शायद तुम्हें किसी तरह का कोई सवाल करने की जरूरत न पडे । सुनो-हम सब लोग उन देशों को रवाना होंगे जो वतन के स्टेटमेंट से हरकत में अाए है । हमारी सबसे पहली कोशिश यह होगी कि हम उस देश के जासूस को चमन तक न पहुंचने दे, जहा तुम हों । माना कि मैं चीन जाता हूं । मेरा प्रयास यह होगा
कि सागपोक एण्ड पार्टी को मैं चमन में न पहुंचने दूं लेकिन अगर वो मेरे चीन पहुंचने से पहले ही चीन से निकेल लें अथवा अपनी कोशिश के बावजूद भी मैं उन्हें न रोक पाऊं तो चमन में उनका टकराव 'तुमसे होगा । हालांकि तुम भी उन्हें उनके अभियान में कामयाब नहीं होने दोगे लेकिन अगर मान भी लिया जाए कि कामयाब हो जाते हैं तो चीन में हम फिर होंगे ! क्योंकि अभी यह कोई नहीं कह सकता कि कौन कामयाब होगा ? जो भी सफल होगा उसी के देश में मौजूद भारतीय सीक्रेटस सर्विस का एजेण्ट हरकत में अा जाएगा । बाकी लोग चुपचाप भारत लौट जाएंगे ।"



"चक्रव्यूह तो आपने बनाया गुरू ।"



" अजी हमारे क्या कहने ।" विजय सीना तानकर बोला----" हम तो न जाने क्या-क्या बना डालते हैं ।"



विकास और ब्लेक बंवाय सिर्फ मुस्कराकर रह गए ।



फिर कुछ देर की बातों और ब्लेक व्वाय द्वारा दिया गया कुछ ऐसा सामान जो इस अभियान में उसके काम आने वाला था-लेकर वह गुप्त भवन से निकल गया । दुनिया के महान जासूसों से टकराब के ख्वाब देखता विकास घर पहुंचा । "



पहुंचते ही रैना ने उसे आडे़ हाथों लिया । बिकास जब इधर-उधर के बहाने वनाने लगा तो रैना ने कहा ---मुझे मालूम है कि अब तू वतन के पास जाएगा ।"



खोपड़ी बुरी तरह झन्ना उठी उसकी, बोला…"क्या मतलब ?"



"मतलब ये ।" कहने के साथ ही रैना ने उसके हाथ पर एक कागज रख दिया ।


धड़कते दिल से यह सोचता हुआ विकास कागज की तह खोलने लगा कि यह कागज किसका अौर इसमें क्या लिखा है ।


और उसने खोला,-पढा---


"प्यारे गुरुदेव, चरण सपर्श !"


आप तों विजयं गुरु के केहने में चलते हो ना ? न जाने वतन की मदद के लिए चमन में कव आओगे, शायद उस वक्त जव मेरे भाई का अन्जाम खत्म हो चुका होगा जो डॉक्टर भावा-का हुआ । मगर...मैं चुप नहीं बैठ सकता । मैं आज़ ही चमन जा रहा हूं अापके चरणों की कसम, वतन की तरफ कोई आंखें भी उठाए तो मैं उसकी आखें न निकाल लूं तो मेरा नाम मोणटो नहीं । मैं जा रहा हूं---मगर जरूरत समझो तो अपने बच्चे की मदद के लिए चमन जा जाना । ज़रूरी न समझो तो आपकी इच्छा । "


अपका धनुषंटकार ।


विकास ने पढ़ा । एक पल के लिए तो-दिमाग चकराकर रह गया उसका।


उसने देखा…कागज में सबसे ऊपर तारीख पड़ी थी । पिछले दिन की तारीख । सचमुच कल शाम से ही धनुषटंकार उसे नहीं चमका था ।


मगर उसे तो ख्वाबों में भी उम्मीद नहीं थी कि धनुषटंक्रार अकेला ही चमन पहुच जाएगा ।
घण्टियों की आवाज सुनते ही धनुषटंकार उछलकर खड़ा हो गया था । वह जान गया था कि उसका भाई आ रहा है वतन ! उसने जाल्दी से पब्बे का ढक्कन, बन्द करके जेब में डाला, और जैसे ही उसने कक्ष के दरवाजे की तरफ देखा-- दूध जैसा सफेद बकरा कमरे में प्रविष्ट हो रहा था । धनुषटंकार उसकी तरफ झपटा, अपोलो धनुषटंकार की तरफ । बड़े अजीब ढंग से एक दूसरे के गालों को प्यार क्रिया उन्होंने । अभी वे प्यार कर ही रहे थे कि दरवाजे पर नजर आया-वतन । दूध जैसे सफेद कपडे, आखों पर चढ़ा सुनहरे फ्रेम और गाढे-काले शीशों का शानदार चश्मा ।



इस बार वतन के हाथ में एक नई चीज थी…एक छडी़ का रग भी दूध जैसा सफेद था । उसे देखते ही धनुषटंकार अपालो से अलग हुआ ।



उसकी तरफ देखता वतन मुस्करा रहा था ।।



धनुकांकार ने एकदन जम्प लगा-दी और बांहें वतन के गले में डालकर उसके सीने पर लग गया, न सिर्फ झूल गया, बल्कि पागलों की, तरह वह वतन गाल चूम रहा था । वतन ने भी प्यार से उसे लिपटा लिया ।



"अकेले ही आए हो क्या ?" वतन ने सबसे पहला सबाल यही किया था ।



धनुषटंकार ने इशारे से ‘हां' कहा । .

यह थी वतन और धनुषटकार की वह पहली मुलाकात जब भारत से चमन पहुचने पर लह वतन से मिला ।



राष्ट्रपति भवन के मुलाजिमों ने उसे यह कहकर कक्ष में बैठा दिया था, कि वे अभी महाराज को सूचना देते हैं ।



और-----कुछ ही देरे बाद कक्ष में अपोलो और वतन पहुंचे थे ।



फिर-राष्ट्रपति-भवन में धनुषटंकार की जबरदस्त खातिर की गई । अतिधि हॉल में तब, वे नाश्ता कर रहे थे । वतन की छडी उसकी कुर्सी से सटी रखी थी । नाश्ते के 'बीच ही वतन ने उससे पूछा था…"मोण्टो !. यूं ही घूमने चले अाए या कोई खास बात ?"



जवाब में धनुषटंकार ने उसे अपनी डायरी का एक लिखा हुआ पृष्ठ पकडा दिया । उस कागज में धनुषटंकार ने लिखा था आपने आविष्कार के विषय में अख़बारों में स्टेटमेंट देकर अच्छा नहीं क्रिया । दुनिया क्री महाशक्तियां, माने जाने वाले राष्ट्र, उस आविष्कार को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे । इस आविष्कार के कारण ही आपकी (वतन) जान भी खतरे में है । आपकी मदद के लिए ही मैं यहां आया हुं । "



पढ़कर बडे आकर्षक ठंग से मुस्कराया वतन, बोला --"तुम वहुत ही पगले हो, मोण्टो ।"


"क्यों ?" धनुषटंकार ने इशारे से पूछा ।



" इसलिए कि तुम व्यर्थ ही चिन्तित हो उठे ।" वतन ने कहा…"जिस देश का शासन मैं चला रहा हूं , वह छोटा जरुर है, लेकिन इस देश का शासक दुनिया की महाशक्तियों के हथकण्डों
से पूर्णतया परिचित है । मैं जानता हूं कि मेरे स्टेटमेंट से दुनियां में खेलती मच गई है । यहीं चाहता भी था मैं ।"




"क्यो ?" धनुषटंकार ने पुन: इशारे से पूछा ।



"इसलिए कि सारी दुनिया को यह बता सकू कि दुनिया में सिर्फ अमेरिका और रूस ऐसे देश नहीं हैं जिनके बिज्ञान की दुनिया पर एकाधिकार है । मैंने साबित कर दिया कि उनके मुकाबले चमन जैसा छोटा राष्ट्र भी कुछ कर सकता है । क्या दुनिया की महाशक्तियां चमन के इस आविष्कार से चिंतित न ही उठी है?"
"'दुनिया की ये महाशक्तियां सिर्फ चित्तित होकर ही नहीं रह जाती हैं ।" धनुषटंकार ने डायरी के पेज पर लिखकर वतन को दिया--"बल्कि जलने लगती हैं । ईर्ष्या से जलती ही रहे -तब भी वे शायद हमारा कुछ न बिगाड़ सकें, लेकिन इनकी आदत है कि ये किसी: भी तरह उस शक्ति को समाप्त कर डालती है, जो उनके करीब जाना चाहती हैं । डाँक्टर भावा का नाम तो सुना ही होगा भैया, उन्होंने भी तुम्हारी ही तरह यह धोषणा कर दी थी कि उन्होंने एक ऐसा आविष्कार कर लिया है जिससे वे समूचे है भारत पर किरणों का एक ऐसा जाल बिठा देगे कि दुनिया का कोई भी अणु/बम भारत को लेशमात्र भी क्षति ऩ पहुचा सकेगा उनका अन्जाम तो तुम..."



" अच्छी तरह जानता हूं ।" हल्के से मुस्कराकर वतन ने कहा-"लेकिन मैं डॉक्टर भावा नहीं हू मोण्टो ! डॉक्टर भावा-इन दरिन्दो को जानते नहीं थे और ठीक उनके विपरीत मैं इन हरामजादों की नस-नस से वाकिफ हूं । मैं अच्छी तरह जानता हू कि कौन-से पल में, क्रिस हद तक घिनोनी चाल चल सकते हैं । तो ऐसा नहीं है मोण्टो, कि मैंने अखबारों को बिना कुछ सोचे समझे स्टेटमेंट दे दिया है । अखबारों को मैंने जो कुछ दिया है, बहुत अच्छी तरह सोच-समझकर दिया है । मुझे मालुम था कि मेरे इस स्टेटमेंट से दुनिया में हलचल मचेगी । महाशक्तियों को चमन के रूप में मंडराती अपने उपर मौत नजर आएगी । अपनी ताकत के मद में चूर जो राष्ट्र अन्धे हुए जा रहे हैं, उन्हें एक ठोकर लगेगी । वे पलटकर चमन की शक्ति का कारण यानी वह यन्त्र छीन लेना चाहेंगे जो मैंने बनाया है । उनका प्रयास तो यही होगा कि वे चमन की शक्ति के ,स्रोत यानी वतन को ही खत्म कर दें ।"




धनुषटंकार ने पुन: लिखा----" इतना सब कुछ जानते हुए यह स्टेटमेंट..... "



वतन ने पढा, धीरे…से मुस्कराया, बोता-----" हां , क्योंकि मैं उन्हें बता देना चाहता था कि हर भारतीय डॉक्टर भावा नहीं है । मैं तो चाहता ही यह हूं कि वे अपनी कोशिशें करें । तुम लोगों को यहाँ से गये छ: महीने हुए हैं न मोण्टो ! हां छ: महीने हुए हैं, मेरे चमन को आजाद हुए । इन छ: महीनों में मैंने यही एकमात्र काम किया ' है । जो तुमने अखबारों में पढ़ा है, इसके अतिरिक्त भी बहुत-से काम किए हैं । ऐसे कि इन महाशक्तियों को इनकी किसी भी गलत हरकत का मुंह-तोड़ जवाब दे सकू।"
"जैसे ?"' धनुषटंकार ने लिखा ।


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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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वतन ने पढा, पढकर जबाव दिया-----"अभी तो बताने का वक्त नहीं है । यहीं रहोगे तो सब कुछ अपनी आंखों से देख लोगे । अाओ चलें ! फिलहाल दरबार का समय हो रहा है । बाकी बाते दरबार के बाद करेंगे ।" कहने के साथ ही वतन अपनी छड़ी संभालकर उठ खड़ा हुआ ।


तभी धनुषटंकार ने एक हाथ उठाकर उसे एक मिनट रुकने का इशारा किया । "


" बोलो ।" वतन मुस्कुराया-" क्या पुछना चाहते हो ?"



धनुषटंकार जल्दी-जल्दी डायरी में कुछ लिख रहा था। वतन को कुछ ही देर इन्तजार करना पड़ा कि धनुषटकरर को जो लिखना था, यह लिखकर उसके हाथ में डायरी पकड़ा दी । वतन ने उसे अपने होंठों पर मुस्कान लिए पड़ना शुरू किया, पर पूरा पड़ते-पड़ते उसके होंठों मुस्कान गायब हो गई । मस्तक पर एकमात्र बल उभर आया । उसने उस इबारत को पढा, लिखा था--पिछली बार जब हम सब यहां से गए थे तो किसी ने भी तुम्हारे हाथ में कभी कोई छड्री नहीं देखी थी भैया, लेकिन इस बार देख रहा हूं अाप इस छडी को एक मिनट के लिए भी खुद से जुदा नहीं कर रहे हैं । जिस तरह बेदाग सफेद कपडे और ये काला चश्मा आपकी प्रिय है उसी तरह इस बार यह छडी भी लग रही है । क्या मैं इस लायक हूं कि इस छडी के बारे में कुछ जान सकू ?"



धनुषटकार ने देखा-इबारत को दोबारा पढ़ने के बाद वतन के मस्तक पर पडा़ बल और ज्यादा गहरा हो गया । उसने धनुषटंकार की तरफ देखा, फिर उसके होंठों से एक अत्यन्त ही गम्भीर स्वर निकला----"छड़ी के बारे में जाऩना चाहते हो--------देखो ।"


कहने के साथ ही उसने छडी को ऊपर उठाकर एक हाथ से उसका उपरी हैंडिल पकडा ।


फिर-----एक तेज झटका दिया।


ठीक इस तरह, जैसे क्रिसी म्यान में से तलवार निकले । छड़ी के अन्दर से मुगदर निकल आया हडिडयों का बना मुगदर । वह मुगदर अभी तक खुन से सराबोर था । हडिडयों के बने मुगदर पर लगा खून सूखकर काला पढ़ चुका था । धनुषटंकार अभी अवाक-सा को देख ही रहा था


कि वतन की आवाज ने उसकी तद्रा भग की ।


वह कह रहा था----"इसे पहचाना मौण्टो यह मेरी माँ और बहन की' हुहिड़यों का बना वही मुगदऱ है जिसे विकास ने बनाया था । जिसके वार सहता-सहता कमीना मैग्लीन मर गया । ये इस पर लगा खून देख रहे हो न…ये मेग्लीन का खून है ये मुगदर कभी नहीं धुलेगा मोण्टों, कभी नहीँ ! अपनी मा आर बहन की इन. हडिडयो को कभी साफ नहीं करूंगा मैं, मैंने कसम खाई है कि हर जुल्मों के खून का कुछ-न्-कुछ अंश इस हडिडयों पर, जरूर लगेगा । इसे हमेशा अपने साथ रखूंगा मैं -- हमेशा ।"


धनुषटंकार के जिस्म का रीयां रोयां खडा हो गया ।


आगे कुछ पूछने के लिए उसे जैसे कोई प्रश्न ही न मिला ।।


वतन ने खुद को -संभाला, मुगदर को छड्री-रूपी म्यान में रखा और बेला---"आओ दरबार में चलें ।"


धनुषटंकार ने ऐक नजर छड़ी को देखा, फिर चुपचाप वतन क पीछेे चल दिया । अपोलो वतन से आगे अपने गले में पड़ी घण्टियां बजाता चला जा रहा था । धण्टियों की वह आवाज वतन के आगमन का प्रतीक था ।
दरबार में प्रविष्ट होते ही धनुषटंकार की खोपड़ी सनसना कर रह ग ई ।




दरबार में अन्य जो-विशेष बातें थीं, वे तो थी हो, किंतु वह - चीज जिसने धनुषटंकार क्रो चकरा दिया था----------वह थी---फलवाली वह वुढिया , जिसे वतन दादी मां कहा करता था । वह दरबार के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान थी ।




मस्तक पर वही ताज जो वतन ने उसे पहनाया था ।



धनुषटंकार के दिमाग में विचार-उभरा-पह बुढ़िया तो मर गई धी, उसकी तो जलती चिता भी सबने देखी है फिर ..... फिर क्या चक्कर है हैं फ़लवाली बूढी दादी मां इस सिंहासन् पर कैसे धनुषटंकार का दिमाग| बुरी तरह चकरा रहा था ।




उस पर रहा न गया तो झपटकर वह वतन के कधो पर चढ़ गया । फिर सांकेतिक भाषा में उसने वतन से उस बुढिया कें बारे में पूछा । तब-जबकि वतन उसका इरादा समझा हंस पड़ा था । दरबार के कोने कोने में उसकी खिलखिलाहट गूंज उठी ।।


धनुषटंकार आश्चर्य के साथ उसे देखने लगा । पहली बार उसने वतन को इस तरह खुलकर हंसते देखा था । न सिर्फ उसने ही बल्कि दरबार में मौजूद हर इन्सान-ने वतन को जिन्दगी में पहली बार इस कदर हंसते देखा था ।



सारा दरबार उसकी हंसी की आवाज से गूंज रहा था । कुछ देर बाद अपनी हंसी को काबू में करके वतन बोला…"विकास जैसे जासूस का शिष्य होकर तुम धोखा खा गए मोण्टो । अब तो मानना पडेगा कि चमन के संग तराश दुनिया में बेमिसाल है ।"




धनुषट'कार ने इशारे से पूछा -"क्या मतलब ?”



…"जरा दादी मां को करीब से जाकर देखो । मतलब तुम्हें खुद पता लग जाएगा ।" वतन कह रहा था…"ये दादी मां नहीं, उनका स्टैच्यू है । चमन के ही एक संगतराश ने इसे तैयार किया है । जब वह सगतराश इसे लेकर दरबार में पहुंचा तो हम सहित दरबार में मौजूद हर इन्सान की मनोदशा बैसी ही थी जैसी कि इस वक्त तुम्हारी है । सचमुच दूर से देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि सचमुच की दादी मां नहीं बल्कि स्टैच्यू हैं । जैसा कि तुम जानते हो मोण्टो, चमन पर असती हुकूमत इन्हीं की है, मैं इनका प्रतिनिधि हूं ।" यह सव कहता हुआ वतन उस सिंहासन के बराबर ही मौजूद अपने सिंहासन पर बैठ रहा था ।



वतन का सिंहासन फलवाली बूढ़ी मा से कुछ नीचा था । सिंहासन पर बैठने का संकेत था । धनुषटंकार उस दूसरे सिंहासन पर बैठ गया ।




बैठने के बाद पहली बार उसने दरबार को ध्यान से देखा ।



अभी तक दरबार में अाने के बाद उसने देखा ही क्या था? दादी मां के स्टैव्यू के अलावा वह कुछ भी तो नहीं देख सका था, अब…दरबार की स्थिति को भरपूर नजर से देखा ।



बेहद खूवसूरती से सजा दरबार ।


बेशकीमती झालरें । हाँल की छत से लटके फानूस ! दाईं तरफ कतार में कई रंग की बर्दी पहने सशस्त्र सेनिक सावधानी की मुद्रा में खडे़ थे । उन कतारों के अागे एक कतार कुर्सियों की भी पड़ी थी ।


उन पर बैठे उच्च सेनिक अधिकारी ।



बाई तरफ-सफेद वर्दी में और जल सेनिर्कों की कतारे,



कतारों के अागे कुर्सियोॉ पर दोनों सेनाओं के अधिकारी । सिंहासन
के ठीक नीचे कपडों में बैठे कुछ व्यक्ति । उनके बैठने का स्थान और तरीका ही बता रहा था कि इस दरबार में उन्हें सम्मानित स्थान _प्राप्त है ।



सिंहासन के ठीक सामने कुछ कुर्सियां पड़ी थी ।



उन पर चमन के साधारण नागरिकों को बड़े सम्मान के साथ बैठाया गया था ।
-"अब दरबार की कार्यवाही प्रारम्भ की जाए ।"



इन शब्दों के साथ वतन अपने सिंहासन से खड़ा हो गया । साथ ही दरबार में बैठा हर व्यक्ति खडा हो गया । वतन अपने करीबी यानी दादी मां के सिंहासन के करीब पहुंचा और बडी श्रद्धा से हाथ जोडकर नतमस्तक होता हुआ बोला-"तुम्हारा बच्चा, तुम्हें साक्षी मानकर, तुम्हारे दरबार की कार्यवाही शुरु करता है ।"




सभी दादी मा के समक्ष नतमस्तक हो गए ।



फिर दादी मां' की स्तुति की गई…ऐसे, जैसे वह कोई देबी रही हो ।



स्तुति के बाद…




सभी ने अपनी-अपनी रिपोर्ट वतन को देनी शुरु की ।


सिंहासन के ठीक नीचे सादे वस्त्रों में जो लोग बैठे हुए थे, धनुषटंकार ने जब उनकी रिपोर्ट सुनी तो उसने जाना ये चमन के गुप्तचर विभागों से सम्बन्धित हैं ।



दरबार की सम्पूर्ण कार्यवाही को धनुषटकार भी चुपचाप सुनता रहा ।



हा, इस सारी कार्यवाही के बीच उसने यह जान लिया कि वतन ने चमन का शासन बेहद निपुणता के साथ चला रखा है सेनिक अधिकारियों और जासूसों की रिपोर्ट लेने के बाद उसने चमन के नागरिकों की शिकायतें सुनकर उनका समाधान क्रिया ।।



सबसे अन्त में दरबार में कुछ पेटियां खोली गई ।


परन्तु वे सब खाली ही निकली ।


अंतिम पेटी की सील तोड़कर यह देखने पर कि वह भी खाली है, पेटियाँ खोलने बाला मुलाजिम बोला----" ये सारी पेटियों आज भी खाली हैं महाराज ।" एक पल चुप रहकर वतन ने कहा----"' विभिन्न स्थानों पर ये पेटियों इसलिए रखी जाती है कि चमनके किसी भी निवासी क्रो हमसे यानी चमन के वर्तमान शासन से किसी तरह की शिकायत हो अथवा किसी भी विषय से सम्बन्धित कोई ऐसी शिकायत हो जिसे कोई अपने नाम के साथ किसी वज़ह से हम तक न पहुचाता हौ, यह शिकायत इसमें लिखकर डाली जा सकतती हैं । अावश्यक नहीं कि शिकायतकर्ता अपना नाम भी लिखे ।



" इसमें किसी भी शिकायती पत्र का न पाया जाना इस बात का द्योतक है महाराज,कि चमन के किसी नागरिक को ऐसी कोई शिकायत नहीं है जिसको अाप तक पहुंचाने के लिए किसी को अपना नाम छुपाने की जरूरत पड़े ।"
"अगर ऐसा है तो शायद हम दुनिया के सबसे खुशनसीब शासक हैं ।" वतन ने कहा---"लेकिन आवश्यक नहीं कि शिकायत-पत्र के न होने का यही कारण हो ! इसका एक और कारण भी हो सकता है, और वह यह कि इन पेटियों का अभी चमन में व्यापक प्रचार न हुआ हो । "


--"ऐसी बात नहीं है महाराज ! इन पेटियों के बारे में चमन का हर नागरिक जानता है ।" मुलाजिम ने बताया ।



--"फिर भी ।" वतन ने कहा----"इन पेटियों का प्रचार बढ़ाया जाए । हम नहीं चाहते कि हमारे शासन से कोई घुटता रहे ।"



" जो आज्ञा !" यह कह कर मुलाजिम नतमस्तक हो गया ।



इस तरह दरबार बरखास्त हुआ।


दोपहर के भोजन के बाद वतन ने धनुषटंकार को अराम की सलाह दी, उसने यह भी कहा बह उस दरबार की कार्यवाही के बाद उसे अपनी विशेष प्रयोगशाला दिखायेगा । वह प्रयोगशाला जिसमें दरबार की कार्यवाही के वाद वह ज्यादातर वक्त गुजारा करता है, जिसमें उसने ब्रह्मांड से आवाज कैच करने वाला यन्त्र बनाया है ।



धनुषटंकार ने तो जिद की थी कि वह आज ही उस प्रयोगशाला में घूमना और उस यन्त्र को देखना चाहता है । किंतु न जाने क्यों वतन धनुषटंकार की यह ,जिद टाल गया ।।




धनुषटंकार आराम से राष्ट्रपति भवन के उस कमरे में सो गया जिसमें उसके रहने का प्रबन्थ किया गया था । उसका अपना ख्याल था कि वतन और अपोलो प्रयोगशाला में चले गए हैं । वह शाम को पांच बजे उठा-उठते ही उसने देखा कि राष्ट्रपति भवन का एक मुलाजिम उसकी सेवा हेतु हाथ बांधे खड़ा हैं । उसने एक कागज पर लिखकर उसे दिया---" भैया कहां हैं ।"



" प्रयोगशाला में ।" कागज पढने के बाद मुलाजिम ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया ।




….."प्रयोगशाला कहां है ।" धनुषटंकार ने लिखकर पूछा…"मुझे भी वहीं ले चलो ।"

…"क्षमा कीजिए ।" मुलाजिम का जवाब-----" इस वक्त महाराज अपने प्रयोगशाला में व्यस्त होंगे । किसी को भी वहाँ जाने की इज्जत नहीं हैं ।"



अभी धनुषर्टकार अपनी डायरी पर कुछ और लिखने के लिए उंगलियों में दबे पेन को सीधा कर ही रहा था कि एकाएक राष्ट्रपति भवन में धण्टियों की मधुर आवाज गूंज उठी ।



मुलाजिम ने एकदम कहा-महाराज़ अा गए ।"




उसका वाक्य पूरा होते ही कमरे में प्रविष्ट हुअा--अपोलो ।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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उसके बाद दूध जैसे बेदाग सफेद कपडों में कैद वतन । आंखो पर सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा, हाथ में छडी…वह छड़ी, जिसके अन्दर उसकी मां और बहन की हडिड़यों का बना मुगदर था । कमरे में वतन की आवाज गूंजी…"मैं जा गया हूं मोण्टों ।"



इसके बाद रात के बारह बजे तक धनुषटंकार की जबरदस्त खातिर चलती रही ।



अगले दिन तब जबकि दरबार में पेटियां खुल रही थी-उस वक्त सारा दरबार चौका जब आखिरी पेटी खुली । पैटी में से फर्श पर गिरे शिकायत-पत्र पर प्रत्येक की दृष्टि स्थिर-सी होकर रह गई । ज्यादातर दरबारिर्यो के चेहरों पर आश्चर्य के भाव उभर अाए । "



धनुषटंकार, अपोलो और वतन की निगाह भी उसी पर थी ।



चमन के विभिन्न स्थानों पर ये पेटियों रखने का कार्यक्रम' पिछले चार महीनों से चल रहा था । प्रतिदिन दरबार में इन पेटियों को खोला जाता था, कभी कुछ नहीं निकला । इन पेटियों के खुलते … समय दरबारी बड़े इत्मीनान के साथ खडे रहते थे, 'क्योंकि सभी जानते थे कि उनमें से कुछ निकलने वाला नहीं है । चार महीने में यह पहला कागज था जो पेटी के माध्यम से दरबार में अाया था ।



तभी तो प्रत्येक की दृष्टि उसी कागज पर केद्रित थी ।



अजीब-सी धढ़कनों मैं साथ दिल धड़कने लगे थे ।



ज्यादातर लोग एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे, जैसे पूछ रहे हों कि क्या वह जानते कि कागज में क्या लिखा होंगा ?


मगर हर आंख में यह सवाल था, जवाब कहीं नहीं ।



…"हम कहते थे न कि इन पेटियों का व्यापक प्रचार नहीं क्रिया गया ।" वतन ने कहा-----"कल के प्रचार का परिणाम सामने है ।"




--"'नहीं महाराज है" पेटियां खोलने वाला मुलाजिम थोडा आगे बंढ़कर बोला---" मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आपके शासन में चमन के क्रिसी भी नागरिक क्रो कोई शिकायत नहीं है । यह कागज यूं ही किसी ने मजाक में डाल दिया हो... ।"




…-""शमशेरसिंह ।" वतन की इस गुर्राहट ने दरबार में मौजूद हर आदमी क्रो कंपकंपा दिया-" जानते हो कि चटुकारिता हमें पसन्द नहीं । तुम कैसे कह हो कि सारे चमन-मैं किसी
क्रो हमसे कोई शिकायत नहीं हैं ।"



" ज जी जी मैं जानता हूं ।" शमशेरसिह नामक मुलाजिम बौखला गया ।
"तुम जैसे चादुकार अगर हमारे चारों तरफ रहें तो चमन के नागरिक घुट-धुटकर ही मर जाए वे परेशान होते रहे अोर तुम जैसे चाटकारों से घिरे हम इसी भ्रम में रहे कि हमारे शासन में किसी कौं कोई शिकायत नहीं है, कैसे जानते हो तुम ?"



सहमकर शमशेर सिंह ने गर्दन झुका ली ।



'"अगर तुम जानते होते तो यह कागज इस पेटी में से न निकलता ।" वतन का गम्भीर स्वर-----" रही मजाक की बात तो तुम्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि चमन का एक बच्चा भी इतना बदतमीज नहीं जो अपने राजा से इस तरह का मजाक करे । पेटी से निकला यह पत्र ज्वलन्त प्रमाण है क्रि क्रिसी को हमसे, हमारे शासन करने के ढंग से कोई शिकायत है तुम्हारी यह पहली गलती है, इसलिए क्षमा करते हैं, मगर इस शर्त पर की भविष्य में तुम हमसे ऐसी चाटुकारिता-भरी बात फिर कभी न कहोगे ।"


शमशेरर्सिंह चुप ।



" अपोलो !" वतन के मुह से निकला ।



जैसे इसी शब्द का प्रतीक्षक था बकरा, वह अपने सिहांसन से उछला । एक मिनट में वह पत्र लाकर उसने वतन को दिया, इधर अपोलो वापस अपने सिंहासन पर जाकर बैठा और उधर पत्र की तह खोलता हुआ वतन कह रहा था…"यह पत्र हम भरे दरबार में जोर-जोर पढेगे ताकि जिसने यह लिखा है, उसकी शिकायत आप लोग भी जान जाएं ।"



सबकी सांसें रूक गई जैसे !



सभी लोग जानना चाहते थे कि वतन के खिलाफ आज चमन के किसी नागरिक की क्या शिकायत हो गई है ।
वतन ने पड़ना शुरू क्रिया-


-----वतन बेटे?



वतन ने पत्र में लिखा ये सम्बोधन पढ़ा तो दरबारियों के रोंगटे खडे हो गए ।



परन्तु बिना अटके वतन आगे पढ रहा था…


" तुम्हारे शासन में कोई कमी न होते हुए भी एक सबसे बड़ी कमी यह है कि तुम्हारा गुप्तचर विभाग वहुत कमजोर है । तुम जानते होगे जिस देश का यह बिभाग कमजोर हो उस देश का भविष्य किसी भी समय अन्धक्रार में गर्तं में डूब सकता है । तुम शायद यह चाहोगे कि मैं इस कथन को प्रमाणित करू । तुमने अपने गुप्तचर विभाग को यह काम भी सौंप रखा है कि कोई भी अजनबी चमन में दाखिल होते ही
उनके नोटिस में अा जाए? मगर--यह नहीं हुआ । मैं चमन में आ गया और तुम्हारा कोई भी जासूस यह न जान सका कि कोई अजनबी चमन में आ पहुंचा , चमन में ही नहीं बल्कि इस वक्त जबकि यह पत्र दरबार में पढ़ा जा रहा है-यह सुन कर शायद सभी को हैरत होगी कि मैं इसी दरबार में मौजूद हूं तुम्हारे जासूस अगर मुझे अब भी पकड़ लें तो मैं यह शिकायत वापस ले लूंगा ।


तुम्हारा न-न-ना-अभी नाम नहीं ।


इस पत्र की समाप्ति तक सारे हॉल में सनसनी-सी दौढ़ गई ।


अजीब घबराए-से चेहरे नजर अाने लगे । सब एक-दूसरे क्रो संदेह-भरी दृष्टि से देख रहे थे ।


और --- सिंहासन के करीब बैठे गुप्तचर ?


उनके चेहरे तो हल्दी की भांति पीले पड़ गए ।


वतन की दृष्टि अभी तक पत्र पर जमी हुई थी एकाएक उसने पत्र पर से नजरें हटाई । गौर से एक-एक देरबारी को देखा । पत्र उसने अपनी जेब में रखा । दरबार में सन्नाटा छा गया-ऐसा जैसे कि मौत पर शोक मनाया जा रहा हो ।



फिर सबने देखा-वतन के होंठों पर उभरने वाली एक अजीब-सी मुस्कान ।



वह सिंहासनं से उठ खडा हुअा ।


धीरे-धिरे सन्तुलित से कदमों से वह नीचे उतरने लगा । सारे दरबार में ऐसा सन्नाटा छा गया था कि सूई भी गिरे तो बम जैसे विस्फोट की अावाज हो । हर दृष्टि इस वक्त वतन पर केन्द्रित थी ।



लह सिंहासन से नीचे अाया ।



सैनिको की कतारों क्रो देखता वह आगे बढने लगा ।


एकाएक शमशेरसिह के करीब जाकर यह उसके पैरों में झुक गया । पैर छू लिए उसने ।


" अरे अरे , महाराज..." शमशेर .ने बौखलाना चाहा तो... उसक पैर पकडकर वतन ने कहा-"आपका बच्चा आपको पहचान गया है अलफांसे चचा !" वतन के ये शब्द जैसे विस्फोट वन गए । सभी उछल पडे ।


धनुषटंकार तो अपने छोटे-से सिंहासन से गिरते-गिरते बचा ।


शमशेरसिह ने झुककर वतन के कान पकड़े और उसे ऊपर उठाता हुआ बोला-"पगला कहीं का ।"


अलफांसे का स्वर सुनकर तो धनुषटंकार उछल ही पड़ा ।
उधर…अलफांसे वतन को अपने गले से लगाए खडा था ओर इधर कूदकर धनुषटंकार उसके करीब पहुंचा वडी श्रद्धा के साथ उसने अलफांसे के चरण स्पर्श किए तो अलफांसे का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हुआ ।



वतन उससे अलग हुआ तो धनुषटंकार उसके गले में झूल गया ।



पागलों की तरह वह अलफांसे के चेहरे पर से शमशेर का मेकअप उतारने की कोशिश करने लगा तो..



हंसता हुआ अलफासे कहने लगा---"अबे रूक जा शैतान बान्दर...मैं खूद ही हटाता हू ।" इन शब्दों के साथ ही अलफासे ने अपने चेहरे पर से शमशेर के चेहरे की झिल्ली उतार दी ।



अलफांसे का चेहरा देखते ही सबके मुह से सिसकारियां सी निकल पड़ी । उसके गले में बांहें डाले छाती पर लटका धनुषटकार पागलों की तरह अलफांसे के चेहरे को चूमे चला जा रहा था, उधर-अपोलो ने भी करीब जाकर-उसके चरर्ण स्पर्श किए ।


धनुषटंकार को छोड़कर उसने अपोलो को गोद में उठा लिया । कुछ समय, इसी तरह की मौजमस्ती में गुज़र गया ।



फिर-दरवार में अलफांसे के लिए एक विशेष सिंहासन डलवाया गया । पुन: अपने सिंहासन पर जाकर जव वतन ने गुप्तचरों के अभी तक पीले पडे 'चेहरों को देखा तो ' -"चचा !" "उसने अलफांसे से कहा था- इस शिकायत-पत्र में तुमने जो मेरे गुप्तचर विभाग के बारे में जो लिखा है, उसे मैं सहीं नहीं मानता ।"



"क्यों ?" अलफांसे ने कहा----" मैं न सिर्फ चमन में बल्कि इस दरबार तक पहुंच गया, और इन्हें भनक तक न लग सकी, क्या ये ...."


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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