चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़) complete

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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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सारे चमन में एक कोलाहल सा मच गया था । वे चारों राष्ट्रपति भवन से बाहर जाए ।



मुख्यद्वार पर ही ड्राइवर सहित वतन की सफेद कार खड़ी थी । वे कार में बैठे और कार हवा की तरह चमन की साफ और चिकनी सड़क पर दोड़ पड़ी थी ।



रात का समय होने के कारण सड़के शांत और वीरान पड़ी थी ।




शीघ्र ही वह मैदान के करीब पहुंच गई ।
दूर से ही उन्होंने देखा-मैंदान में अंधेरा व्याप्त था । कुछ रोशन टॉर्चो के झाग इधर-उधर घूमते नजर आ रहे थे । मैदान की तरफ से लोगों की आवाजें भी आ रही थी । मैदान के द्वार पर ही गाडी को रोक लिया गया ।



अपोलो ने गर्दन को झटका दिया तो अंधेरे, में घण्टियां टनटना उठी ।




“महाराज आ गए-महाराज आ गए ।" मैदान के अंधेरे में से निकलकर अनेक स्वर उनके कानों से टकराए ।


एक साथ कईं टॉर्चों की रोशनी झनाक से कार पर जा पड़ी ।

कार प्रकाश से नहा उठी ।


कार की हैडलााइटें सीधी मैदान पर पड़ रही थी । और मैदान का सिर्फ वही भाग प्राकाशमग्न हो रहा था




कई सैनिक भी कार की हैडलाइट की रोशनी में आगए थे । सभी सेनिक यह जान चुके थे कि वतन आगए हैं।



अपोलो खिडकी के रास्ते से कार के बाहर कूद चुका था । एक झटके के साथ वतन कार का दरवाजा खोलकर बाहर आया और फिर, अंधेरे में वतन की आवाज गूंजी मनजीत ।"



"मैॉ आ रहा हूं महाराज ।" मैदान के अंधेरे भाग में सें मनजीत की आवाज़ गुंजी ।
वतन सहित प्रत्येक की दृष्टि उधर जम गई ।


एक व्यक्ति -हाथ में रोशन टॉर्च लिये उन्हीं की तरफ दौड़ा चला अा रहा था । धनुषटंकार को न जाने क्या सूझा कि अपनी जेब से टॉर्च निकालकर उसने रोशनी के सीधे झाग उस व्यक्ति पर डाले तो देखा मनजीत दौडा़ चला आ रहा था ।




वतन की उपस्थिति से सर्वत्र सन्नाटा-सा व्याप्त हो गया ।



मनजीत करीब पहुचा । अभी वह अभिवादन करके निबटा ही था किं---




" मिले वे लोग ?" गम्भीर स्वर में वतन ने प्रश्न किया ।



" ज---ज---जी नहीं महाराज ।" मनजीत बौखला गया ।
सबका ख्याल था कि मनजीत पर अब वह बरस पडेगा, किंतु नहीं-----उस वक्त सब दंग रह गए जव बेहद शांत स्वर, में वतन ने कहा…"तो यंहा खडे क्या कर रहे हो मेरे बहादुर साथियों, मैदान के इसी अंधेरे में वे यहीं पे होंगे । उन्हें तलाश करो ।"



मनजीत सहित सैनिक तेजी साथ चारों और तलाश करने लगे ।




" और सुनो ।" वतन का वहीँ सन्तुलित स्वर -"उनमें से किसी को मारना नहीं है, जिन्दा ही गिरफ्तार करना है ।"

इधर तो वतन सैनिकों से यह सब कुछ कह रहा था, उधर अलफांसे एक सैनिक से छीनी टॉर्च का प्रकाश प्रयोगशाला की बेहद ऊंची और किसी शीशे की तरह चिकनी दीवार पर मार रहा था । उसकी टॉर्च का गोल प्रकाश दायरा प्रयोगशाला दीवार पर नृत्य कर रहा था ।



इधर वतन का आदेश पाते ही सभी सैनिक मैदान में इधर-उधर छिटक गए ।"



हालांकि काफी टॉर्चें रोशन थी किन्तु फिर भी…मैदान में एक… अजीब-सा अंधेरा व्याप्त था ।



अलफांसे के करीब जाकर वतन ने कहा----"द्रीवार पर क्या तलाश कर रहे हो चचा ?”



'"यह कि इस दीवार पर कोई चढ़ तो नहीं रहा है ।"



जबाव में धीमे-से हंस पड़ा वतन, बोला---"' आप भी अजीब आदमी हैं चचा ! इस दीवार की जड़ों में खुदी खाई को शायद आप भूल गए ? इस दीवार की चिकनाहट भी भूल गए शायद इसमें करेंट दौड़... ।"
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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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"हमें सब याद है वतन, हम कुछ नहीं भूला करते ।" टॉर्च की रोशनी से दीबार के जर्रें जर्रें को चेक करता हुआ अलफांसे बोला-----'' भूल तुमसे हो रही है । अपनी सुरक्षा पर जरूरत से ज्यादा यकीन 'गुमान' होता है और मेरी राय तो यही होगी कि तुम गुमान न करो । यह बात अच्छी तरह से समझ लो कि विश्व के जासूसों से तुम्हारा टकराव है, उन्हें अगर यह जिद हो जाये कि पत्थर बोलना चाहिये तो हकीकत यह है कि पत्थर को बोलना ही पडे़गा । मुझे अपना काम करने दो--तुम् अपना करो ।" _

" मैं तो नहीं समझता चचा, कि कोई अादमी इस दीवार पर कैसे चढ़ सकता है ?"




"न तो तो तुम समझ सकोगे वतन, और न ही मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं' अलफांसे ने कहा----"हां, इतना तुम समझ लो कि जल्दी ही यहाँ कोई वड़ा घपला होने बाला है ।" "कैसा घपला है"



"जैसा कि मनजीत का विचार है कि इन चार सर्चलाइटों को तोड़ने में कम-से-कम दो आदमियों का हाथ है ।" अलफांसे ने कहा---"बेशक उसका यह अनुमान ठीक है । निस्सन्देह कोई भी अकेला आदमी इतने कम अन्तराल में चारों सर्चलाइटों पर फायर नहीं कर सकता क्योंकि तुम्हारी यह प्रयोगशाला इतनी बड़ीं है कि कोई भी अकेला आदमी एक ही स्थान पर खड़ा होकर चारों को नहीं तोड़ सकता । मेरे ख्याल से तो इन चार सर्चलाइटों को तोड़ने वाले चार ही आदमी होने चाहीए । किन्तु कम-से कम दो तो हैं ही ताकि एक आदमी इमारत की एक साइड पर खडा होकर दो सर्चलाइटों को कवर कर सके । खैर, मतलब इस बात से नहीं कि उनकी सख्या कितनी रही होगी । सोचना यह है कि सर्चलाइटों को तोड़कर वे एकदम खामोश क्यों हो गये हैं । इस खामोशी के पीछे कोई बहुत बड़ा रहस्य है ।"




" कुंछ भी रहस्य नहीं है, चचा--मुझसे पूछो ।" वतन ने कहा…"असल बात यह है कि जितना वे कर सकते थे, उन्होंने कर दिया । उनका मुख्य काम प्रयोगशाला में दाखिल होना है और यह वे सोच नहीं पा रहे हैं कि प्रयोगशाला में वे दाखिल केसे हों ?"

" हर आदमी के सोचने का अपना एक अलग तरीका होता है । वतन बेटे ।" अलफांसे ने कहा…"फिलहाल की घटनाओं से सोचने का जो तरीका मेरे सामने आया है, उससे मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि तुमने अपने गुरु से उसकी कमियां भी सीख ली हैं । दुश्मन का सर्चलाइट फोड़कर चुपचाप बैठ जाना, खामोशी साध इस बात का प्रमाण है कि दुश्मन वेहद चालाक है । वह मूर्ख नहीं कि सर्चलाइट तोड़कर यह प्रदर्शित करे कि वह वह यहां आ चुका है सर्चलाइर्टे तोड़ने का उसका मकसद--मेदान में अंधेरा करना और मैं दावे से कह सकता हूं कि वह किसी-न-किसी ढंग से इस अंधेरे का लाभ अवश्य उठा रहा है ।"



…'"आपके ख्याल से वह क्या लाभ उठा सकता है ?"
"यही पता होता तो अभी तक वह पकढ़ में आ चुका होता ।"




" आपके ख्याल से वह क्या इस अंधेरे का लाऊ उठाकर प्रयोगशाला के अन्दरा जा सकता है ?”



" कोशिश तो उसकी यही होगी ।"



" और मैं जानता हूं कि इस कोशिश मैं वह नाकाम हो जायेगा ।" वतन ने बेहद दृढता के साथ कहा ।
"'वतन ।" अलफांसे ने कहा-"तुम्हारी इस वक्त की बातों में वैसा ही आत्मविश्वास झलक रहा है जेसा कि बचपन में उस वक्त होता था जब यह कहा करते थे के-मैं चमंन का राजा बनूंगा ।' मगर याद रखो बेंटे ! जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास गरूर का रूप धारण कर लेता है, और तुम जानते हो कि गुरूर रावण का भी नहीं रहा ।"


'"मेरा आत्मविश्वास उस वक्त तक नहीं टूटेगा, चचा, जव तक तुम मुझे कोई ऐसी तरकीब न बता दो जिससे कोई आदमी अन्दर पहुच सके ।" वतन ने कहा---" मेरे कहने का मतलब यह है कि मैं यहां खड़ा हूं । एक मिनट के लिये यह सोचिये कि आपको प्रयोगशाला के अन्दर जाना है, मैदान में अंधेरा है, इस अंधेरे का
लाभ उठाकर अाप, जाइये अंदर---या--या-मुझे बता दीजिये कि कैसे जायेगे ?"




"मेरे द्विमाग में तो फिलहाल ऐसी कोई तरकीब है नहीं ।"



…-"बस, यहीं तो कारण है मेरे आत्मविश्वास का ।" वतन ने झट से कहाृ-"आप अन्तर्राष्टीय मुजरिम हैं, -- बड़े बड़े किलों की सुरक्षा भंग करके आपने अपने काम किये है । मैं जानता हूँ कि दुनिया का अगर कोई भी जासूस किसी काम को कर सकता है तो अाप उससे पहले उसे कर सकते हैं ! जब अभी तक अाप ही के दिमाग में प्रयोगशाला के अन्दर पहुचने की तरकीब नहीं अाई तो यह बात पक्की है कि अन्य किसी के दिमाग में भी नहीं आ सकती । और----मेरे आत्मविश्वास, निश्चिन्तता का सबसे बड़ा की कारण यहीं है ।"

"तुम्हरि सोचने के सारे आसार ही गलत हैं वतन !"




वतन मुस्कराया, बोला ----" यह कोई ऐसा वाक्य नही है चचा, जिसे मैं पहली बार सुन रहा हूं। मेरे सोचने का तरीका मेरे गुरू महान सिपाही को भी कभी पसन्द नहीं अाया । वे हमेशा यही वाक्य बोलते रहे जो अभी-अभी आपने कहा है ।"



" सही कहते थे वे ।"





"‘लेकिन मजबूरी यह है`चचा, कि जब तक कोई मुझे अपने तर्क से सन्तुष्ट न कर दे, तब तक मैं अपनी धारणाएं वहीं बदला करता ।" वतन कं लहजे में वही दृदता थी जो आज से बारह साल पहले उसकी विशेषता थी---------------आप जानते हैं कि बचपन में सब मुझसे कहा करते थे कि मैं राजा नहीं-वन सकता, लेकिन मेरे इस प्रश्न का जवाब कोई नहीं देता था कि क्यों नहीं बन सकता --न ही अभी मुझे इस सवाल का जवाब मिला और न ही इस बात को मैं कभी अपने दिलो--दिमाग से निकाल सका ।"
"खैर...तुम यहां आराम से खड़े होकर मुस्कराते रहो, मैं अपना काम करता हूँ ।" कहने के बाद अलंफासे उसका कोई भी जवाब सुने बिना मैदान के अंधेरे में गुम होगया । हा, वतन को, उसके हाथ रोशन टॉर्च अवश्य चमक रहीँ थी ।



बहुत-से सैनिक अपने हाथ में दबी टॉर्चों से मेदान मैं प्रकाश करने का प्रयास करते हुए दुश्मनों को इस तरह तलाशं कर रहे थे, जैसे कोई सूई तलाश कर रहे हों । कुछ देर पश्चात् वतन के लिये यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि हाथ में रोशन टॉर्च लिये इतने व्यक्तियों में से अलफांसे कौन-सा है । उसने अपने अास-पास देखा--धनुषटंकार भी गायब था । हाँ-----अपोलौ जरूर उसके करीब खड़ा था ।

और अलफांसे?



वह जान-बूझकर उन सैनिकों में धुल-मिल गया था जिनके हाथों में रोशन टॉर्चे थी । उनमें मिलकर कुछ देर बाद उसने टॉर्च बुझा दी और स्वयं अंधेरें छुपता हुआ एक तरफ को बढा ।



शीघ्र ही बह खाई के किनारे पहुचां ।।



खाई के किनारे पर पेट के बल लेट गया वह और फिर किनारे-किनारे तेजी के साथ रेंगने लगा । ऐसा लगता था, जैसे खाई के किनारे पर कुछ तलाश करने की कोशिश का रहा हो ।



एकाएक उसकी इच्छित वस्तु उसके हाथ की उंगलियों में फंस गई ।




और कुछ नहीं वह एक पतली किन्तु मज़बूत रेशम की डोरी थी ।।।




उसका ज्यादातर भाग खाई में लटका हुआ था और जो ऊपर था, उसे टटोलकर उसने वह भाग दूंढ़ लिया, जहां रेशम की यह डोरी मैदान के बीच जमीन में गड़ी एक छोटी-सी कील में बंधी थी

" खाई में कूदकर क्या करना किसी को ?” एक अन्य ने कहा ।



किन्तु खाई के पानी पर अनेक टॉर्चों का प्रकाशं नृत्य करने लगा ।




……"इससें कोई कूदा जरूर है ।" किसी ने कहा-वह देखो, पानी में बुलबुले उठ रहे हैं ।"



" मगर वह होगा कौन----- अरे !" कहते-कहते एकदम किसी के चौकने का स्वर-----" ये तो वाकई कोई है । वह देखो मगरमच्छ ने किंसी आदमी को मुंह में दबा रखा है।। यह देखो, उसे निगलता जा रहा है ।।।
"अरे !" एक अन्य अवाज-"ये तो हमारा ही कोई साथी है----- देखो उसकी वर्दी ।"



मैदान की उस दिशा में मौजूद ज्यादातर सैनिक उसी जगह एकत्रित हो गए अलफांसे चुपचाप अपनी टॉर्च बुझाकर उनके बीच से खिसक लिया ।



खिसकता भी क्यों नहीँ? वह जानता
था की अगली हरकत करने के लिए उसे इससे उचित अवसर न मिलेगा ।


इधर वतन भी उसी जगह पहुच गया था, पहुचते ही बोला---क्या बात है साथियों "



"महाराज....." एक सैनिक ने सम्मान के साथ कहा--"इस खाई में कोई कूदा है ।"
" हमारा कोई साथी ।" दूसरे ने कहा----“उसकं जिस्म पर वर्दी थी ।"



तीसरी अवाज----"उसे मगर खा गया । "



"हमारां कोई भी साथी इस खाई में कूदने की वेवकुफी नही करेगा ।" वतन का संयत स्वर--"या तो वह हमारे साथी की वर्दी में कोई दुश्मन था और नहीं तो धोखे में हमारा ही कोई साथी इसमें गिर गया है ।"



अभी वतन की बात पूरी हुई नही थी कि…छपाक ! उस स्थान से थोडी दूर हटकर पुनः किसी के पानी में गिरने की आवाज । झट से कई टॉर्चों की रोशनी अबाज पर जा ठहरी । एक पल के लिए उन्होंने अपनी ही जैसी वर्दी पहने एक जाने को देखा और अगले ही पल वह खाई में भरे पानी की गहराई में डूब गया ।


अब वतन चौंका ।


उसके किसी दूसरे सेनिक का खाई में गिर जाना महज इत्तफाक नहीं हो सकता । वतन के दिमाग में यहीं तेजी से विचार कौंधा…'क्या उसके सिपाहियों के लिबास में कोई दुश्मन हैं अगर है-तो-तो । सोचकर वतन के होंठों पर मुस्कान दौड़ गई ।


व्यर्थ ही दुश्मन मौत के कुएं में कूद रहे हैं ।



उसे पूर्ण विश्वास था कि खाई में मौजूद खतरनाक जानवर उसे छोड़ेंगें नहीं ।।



किंन्तु ----दुश्मन इस खाई में कूदे किस मकसद से होंगे ? प्रयोगशाला के अन्दर पहुंचने के लालच से उसके विवेक ने जबाव दिया ।

" नहीं ! भला वे इसमें क्यों कुदेंगे ?" 'वतन ने सोचा…यह रास्ता प्रगोगशाला के अन्दर नहीं, मौत के मुंह में जाता है ।'




"लेकिन...लेकिन.…दुश् मनों को इस खाईं के भेद का क्या पता ?"



अभी वह अपने दिमाग में इन विरोधी विचारों का तर्क-वितर्क कर ही रहा था कि पुनः-छपाक ।



वैसी ही तीसरी आवाज़ ।



अन्य सब तो पहले ही चिन्तित थे, लेकिन अब वतन भी बिना चिन्तित हुए न रह सका । उसके सैनिक 'जान-बूझकर तो खाई में कूद नहीं सकते और इतने सैनिकों के साथ खाई में गिरने का संयोग हो नहीं सकता । तो-----फिर यह हो क्या रहा है ?




उसके सैनिकों के कपड़े पहनकर दुश्मन खाई में कूद रहे हैं ? "



हां----शायद यही एक बात हो सकती है । बह भी तव जबकि कि दुश्मनों क्रो पता न हो कि यह खाई मौत का मुह है । अभी वह सोच ही रहा था कि चौथी बार किसी के खाई में कूदने की आवाज । अब तो वतन से रहा नहीं गया ।


अंधेरे का कलेजा चीरकर उसकी आवाज मैदान में गूंज उठी-"साथियो दुश्मनों की तलाश जोर-शोर से करो ।"



अजीब वातावरण था ।

इतने सैनिकों के वावजूद उन्हें मिल नहीं रहे थे । वतन के अादेशनुसार पुनः सभी सैनिकों ने तलाश जारी कर दी वतन मैदान के अंधेरे में खड़ा कुछ सोच ही रहा था कि हाथ में रोशन टॉर्च दबाए एक साये को इसने अपनी तरफ बढते देखा ।




"'कहो वतन बेटे 1" अलफांसे की आवाज-"क्या अब 'भी तुम्हारा ख्याल है कि दुश्मन यहा सक्रिय नहीं है ।"




-“यह मैंने कब कहा चचा ?" वतन ने कहा-“ज़ब सर्चलाइटें फूटी हैं तो निश्चित रूप से -दुश्मन सक्रिय है ही । इस बात का विरोध करता रहा हूँ और अब भी करता हूं कि मेरी सुरक्षाओं क्रो तोडकर दुश्मन प्रयोगशाला के अन्दर नहीं पहुंच सकता ।"




"जानते हो कि सैनिकों द्वारा इतनी देर की -खोज के बावजूद भी दुश्मन क्यों नहीं मिले ?"

" इसलिए कि वे भी हमारे ही सैनिक बने हुए थे ।"



" थे नहीं वतन, बेटे, हैं, कहो ।" अलफासे ने कहा ---" मेरा दावा है कि इन सेनिकों में अब भी दुश्मन छुपे हुऐ है ।"
" छुपकर करेंगे क्या वतन का अजीब-सा स्वर उभरा --"प्रेयोगशाला के अन्दर तो जा नहीं सकेंगे वे ।"



"खाई में कूदने वाले चार सैनिकों के बारे में तुम्हारा किया ख्याल ?"



" इन सैनिकों के रूप में वे दुश्मन थे ।" वतन ने बतायाा-“ओर प्रयोगशाला के अॉदर जाने के लिए है खाई में कूदे ।"

"क्यों, क्या दिमाग खराब था उनका ?" अलफांसे ने कहा…"जो जान-बूझकर मौत के मुंह में छलांग लगाएंगे ?"

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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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हमें सब याद है वतन, हम कुछ नहीं भूला करते ।" टॉर्च की रोशनी से दीबार के जर्रें जर्रें को चेक करता हुआ अलफांसे बोला-----'' भूल तुमसे हो रही है । अपनी सुरक्षा पर जरूरत से ज्यादा यकीन 'गुमान' होता है और मेरी राय तो यही होगी कि तुम गुमान न करो । यह बात अच्छी तरह से समझ लो कि विश्व के जासूसों से तुम्हारा टकराव है, उन्हें अगर यह जिद हो जाये कि पत्थर बोलना चाहिये तो हकीकत यह है कि पत्थर को बोलना ही पडे़गा । मुझे अपना काम करने दो--तुम् अपना करो ।" _

" मैं तो नहीं समझता चचा, कि कोई अादमी इस दीवार पर कैसे चढ़ सकता है ?"




"न तो तो तुम समझ सकोगे वतन, और न ही मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं' अलफांसे ने कहा----"हां, इतना तुम समझ लो कि जल्दी ही यहाँ कोई वड़ा घपला होने बाला है ।" "कैसा घपला है"



"जैसा कि मनजीत का विचार है कि इन चार सर्चलाइटों को तोड़ने में कम-से-कम दो आदमियों का हाथ है ।" अलफांसे ने कहा---"बेशक उसका यह अनुमान ठीक है । निस्सन्देह कोई भी अकेला आदमी इतने कम अन्तराल में चारों सर्चलाइटों पर फायर नहीं कर सकता क्योंकि तुम्हारी यह प्रयोगशाला इतनी बड़ीं है कि कोई भी अकेला आदमी एक ही स्थान पर खड़ा होकर चारों को नहीं तोड़ सकता । मेरे ख्याल से तो इन चार सर्चलाइटों को तोड़ने वाले चार ही आदमी होने चाहीए । किन्तु कम-से कम दो तो हैं ही ताकि एक आदमी इमारत की एक साइड पर खडा होकर दो सर्चलाइटों को कवर कर सके । खैर, मतलब इस बात से नहीं कि उनकी सख्या कितनी रही होगी । सोचना यह है कि सर्चलाइटों को तोड़कर वे एकदम खामोश क्यों हो गये हैं । इस खामोशी के पीछे कोई बहुत बड़ा रहस्य है ।"




" कुंछ भी रहस्य नहीं है, चचा--मुझसे पूछो ।" वतन ने कहा…"असल बात यह है कि जितना वे कर सकते थे, उन्होंने कर दिया । उनका मुख्य काम प्रयोगशाला में दाखिल होना है और यह वे सोच नहीं पा रहे हैं कि प्रयोगशाला में वे दाखिल केसे हों ?"

" हर आदमी के सोचने का अपना एक अलग तरीका होता है । वतन बेटे ।" अलफांसे ने कहा…"फिलहाल की घटनाओं से सोचने का जो तरीका मेरे सामने आया है, उससे मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि तुमने अपने गुरु से उसकी कमियां भी सीख ली हैं । दुश्मन का सर्चलाइट फोड़कर चुपचाप बैठ जाना, खामोशी साध इस बात का प्रमाण है कि दुश्मन वेहद चालाक है । वह मूर्ख नहीं कि सर्चलाइट तोड़कर यह प्रदर्शित करे कि वह वह यहां आ चुका है सर्चलाइर्टे तोड़ने का उसका मकसद--मेदान में अंधेरा करना और मैं दावे से कह सकता हूं कि वह किसी-न-किसी ढंग से इस अंधेरे का लाभ अवश्य उठा रहा है ।"



…'"आपके ख्याल से वह क्या लाभ उठा सकता है ?"
"यही पता होता तो अभी तक वह पकढ़ में आ चुका होता ।"




" आपके ख्याल से वह क्या इस अंधेरे का लाऊ उठाकर प्रयोगशाला के अन्दरा जा सकता है ?”



" कोशिश तो उसकी यही होगी ।"



" और मैं जानता हूं कि इस कोशिश मैं वह नाकाम हो जायेगा ।" वतन ने बेहद दृढता के साथ कहा ।
"'वतन ।" अलफांसे ने कहा-"तुम्हारी इस वक्त की बातों में वैसा ही आत्मविश्वास झलक रहा है जेसा कि बचपन में उस वक्त होता था जब यह कहा करते थे के-मैं चमंन का राजा बनूंगा ।' मगर याद रखो बेंटे ! जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास गरूर का रूप धारण कर लेता है, और तुम जानते हो कि गुरूर रावण का भी नहीं रहा ।"


'"मेरा आत्मविश्वास उस वक्त तक नहीं टूटेगा, चचा, जव तक तुम मुझे कोई ऐसी तरकीब न बता दो जिससे कोई आदमी अन्दर पहुच सके ।" वतन ने कहा---" मेरे कहने का मतलब यह है कि मैं यहां खड़ा हूं । एक मिनट के लिये यह सोचिये कि आपको प्रयोगशाला के अन्दर जाना है, मैदान में अंधेरा है, इस अंधेरे का
लाभ उठाकर अाप, जाइये अंदर---या--या-मुझे बता दीजिये कि कैसे जायेगे ?"




"मेरे द्विमाग में तो फिलहाल ऐसी कोई तरकीब है नहीं ।"



…-"बस, यहीं तो कारण है मेरे आत्मविश्वास का ।" वतन ने झट से कहाृ-"आप अन्तर्राष्टीय मुजरिम हैं, -- बड़े बड़े किलों की सुरक्षा भंग करके आपने अपने काम किये है । मैं जानता हूँ कि दुनिया का अगर कोई भी जासूस किसी काम को कर सकता है तो अाप उससे पहले उसे कर सकते हैं ! जब अभी तक अाप ही के दिमाग में प्रयोगशाला के अन्दर पहुचने की तरकीब नहीं अाई तो यह बात पक्की है कि अन्य किसी के दिमाग में भी नहीं आ सकती । और----मेरे आत्मविश्वास, निश्चिन्तता का सबसे बड़ा की कारण यहीं है ।"

"तुम्हरि सोचने के सारे आसार ही गलत हैं वतन !"




वतन मुस्कराया, बोला ----" यह कोई ऐसा वाक्य नही है चचा, जिसे मैं पहली बार सुन रहा हूं। मेरे सोचने का तरीका मेरे गुरू महान सिपाही को भी कभी पसन्द नहीं अाया । वे हमेशा यही वाक्य बोलते रहे जो अभी-अभी आपने कहा है ।"



" सही कहते थे वे ।"





"‘लेकिन मजबूरी यह है`चचा, कि जब तक कोई मुझे अपने तर्क से सन्तुष्ट न कर दे, तब तक मैं अपनी धारणाएं वहीं बदला करता ।" वतन कं लहजे में वही दृदता थी जो आज से बारह साल पहले उसकी विशेषता थी---------------आप जानते हैं कि बचपन में सब मुझसे कहा करते थे कि मैं राजा नहीं-वन सकता, लेकिन मेरे इस प्रश्न का जवाब कोई नहीं देता था कि क्यों नहीं बन सकता --न ही अभी मुझे इस सवाल का जवाब मिला और न ही इस बात को मैं कभी अपने दिलो--दिमाग से निकाल सका ।"
"खैर...तुम यहां आराम से खड़े होकर मुस्कराते रहो, मैं अपना काम करता हूँ ।" कहने के बाद अलंफासे उसका कोई भी जवाब सुने बिना मैदान के अंधेरे में गुम होगया । हा, वतन को, उसके हाथ रोशन टॉर्च अवश्य चमक रहीँ थी ।



बहुत-से सैनिक अपने हाथ में दबी टॉर्चों से मेदान मैं प्रकाश करने का प्रयास करते हुए दुश्मनों को इस तरह तलाशं कर रहे थे, जैसे कोई सूई तलाश कर रहे हों । कुछ देर पश्चात् वतन के लिये यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि हाथ में रोशन टॉर्च लिये इतने व्यक्तियों में से अलफांसे कौन-सा है । उसने अपने अास-पास देखा--धनुषटंकार भी गायब था । हाँ-----अपोलौ जरूर उसके करीब खड़ा था ।

और अलफांसे?



वह जान-बूझकर उन सैनिकों में धुल-मिल गया था जिनके हाथों में रोशन टॉर्चे थी । उनमें मिलकर कुछ देर बाद उसने टॉर्च बुझा दी और स्वयं अंधेरें छुपता हुआ एक तरफ को बढा ।



शीघ्र ही बह खाई के किनारे पहुचां ।।



खाई के किनारे पर पेट के बल लेट गया वह और फिर किनारे-किनारे तेजी के साथ रेंगने लगा । ऐसा लगता था, जैसे खाई के किनारे पर कुछ तलाश करने की कोशिश का रहा हो ।



एकाएक उसकी इच्छित वस्तु उसके हाथ की उंगलियों में फंस गई ।




और कुछ नहीं वह एक पतली किन्तु मज़बूत रेशम की डोरी थी ।।।




उसका ज्यादातर भाग खाई में लटका हुआ था और जो ऊपर था, उसे टटोलकर उसने वह भाग दूंढ़ लिया, जहां रेशम की यह डोरी मैदान के बीच जमीन में गड़ी एक छोटी-सी कील में बंधी थी

" खाई में कूदकर क्या करना किसी को ?” एक अन्य ने कहा ।



किन्तु खाई के पानी पर अनेक टॉर्चों का प्रकाशं नृत्य करने लगा ।




……"इससें कोई कूदा जरूर है ।" किसी ने कहा-वह देखो, पानी में बुलबुले उठ रहे हैं ।"



" मगर वह होगा कौन----- अरे !" कहते-कहते एकदम किसी के चौकने का स्वर-----" ये तो वाकई कोई है । वह देखो मगरमच्छ ने किंसी आदमी को मुंह में दबा रखा है।। यह देखो, उसे निगलता जा रहा है ।।।
"अरे !" एक अन्य अवाज-"ये तो हमारा ही कोई साथी है----- देखो उसकी वर्दी ।"



मैदान की उस दिशा में मौजूद ज्यादातर सैनिक उसी जगह एकत्रित हो गए अलफांसे चुपचाप अपनी टॉर्च बुझाकर उनके बीच से खिसक लिया ।

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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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खिसकता भी क्यों नहीँ? वह जानता
था की अगली हरकत करने के लिए उसे इससे उचित अवसर न मिलेगा ।


इधर वतन भी उसी जगह पहुच गया था, पहुचते ही बोला---क्या बात है साथियों "



"महाराज....." एक सैनिक ने सम्मान के साथ कहा--"इस खाई में कोई कूदा है ।"
" हमारा कोई साथी ।" दूसरे ने कहा----“उसकं जिस्म पर वर्दी थी ।"



तीसरी अवाज----"उसे मगर खा गया । "



"हमारां कोई भी साथी इस खाई में कूदने की वेवकुफी नही करेगा ।" वतन का संयत स्वर--"या तो वह हमारे साथी की वर्दी में कोई दुश्मन था और नहीं तो धोखे में हमारा ही कोई साथी इसमें गिर गया है ।"



अभी वतन की बात पूरी हुई नही थी कि…छपाक ! उस स्थान से थोडी दूर हटकर पुनः किसी के पानी में गिरने की आवाज । झट से कई टॉर्चों की रोशनी अबाज पर जा ठहरी । एक पल के लिए उन्होंने अपनी ही जैसी वर्दी पहने एक जाने को देखा और अगले ही पल वह खाई में भरे पानी की गहराई में डूब गया ।


अब वतन चौंका ।


उसके किसी दूसरे सेनिक का खाई में गिर जाना महज इत्तफाक नहीं हो सकता । वतन के दिमाग में यहीं तेजी से विचार कौंधा…'क्या उसके सिपाहियों के लिबास में कोई दुश्मन हैं अगर है-तो-तो । सोचकर वतन के होंठों पर मुस्कान दौड़ गई ।


व्यर्थ ही दुश्मन मौत के कुएं में कूद रहे हैं ।



उसे पूर्ण विश्वास था कि खाई में मौजूद खतरनाक जानवर उसे छोड़ेंगें नहीं ।।



किंन्तु ----दुश्मन इस खाई में कूदे किस मकसद से होंगे ? प्रयोगशाला के अन्दर पहुंचने के लालच से उसके विवेक ने जबाव दिया ।

" नहीं ! भला वे इसमें क्यों कुदेंगे ?" 'वतन ने सोचा…यह रास्ता प्रगोगशाला के अन्दर नहीं, मौत के मुंह में जाता है ।'




"लेकिन...लेकिन.…दुश् मनों को इस खाईं के भेद का क्या पता ?"



अभी वह अपने दिमाग में इन विरोधी विचारों का तर्क-वितर्क कर ही रहा था कि पुनः-छपाक ।



वैसी ही तीसरी आवाज़ ।



अन्य सब तो पहले ही चिन्तित थे, लेकिन अब वतन भी बिना चिन्तित हुए न रह सका । उसके सैनिक 'जान-बूझकर तो खाई में कूद नहीं सकते और इतने सैनिकों के साथ खाई में गिरने का संयोग हो नहीं सकता । तो-----फिर यह हो क्या रहा है ?




उसके सैनिकों के कपड़े पहनकर दुश्मन खाई में कूद रहे हैं ? "



हां----शायद यही एक बात हो सकती है । बह भी तव जबकि कि दुश्मनों क्रो पता न हो कि यह खाई मौत का मुह है । अभी वह सोच ही रहा था कि चौथी बार किसी के खाई में कूदने की आवाज । अब तो वतन से रहा नहीं गया ।


अंधेरे का कलेजा चीरकर उसकी आवाज मैदान में गूंज उठी-"साथियो दुश्मनों की तलाश जोर-शोर से करो ।"



अजीब वातावरण था ।

इतने सैनिकों के वावजूद उन्हें मिल नहीं रहे थे । वतन के अादेशनुसार पुनः सभी सैनिकों ने तलाश जारी कर दी वतन मैदान के अंधेरे में खड़ा कुछ सोच ही रहा था कि हाथ में रोशन टॉर्च दबाए एक साये को इसने अपनी तरफ बढते देखा ।




"'कहो वतन बेटे 1" अलफांसे की आवाज-"क्या अब 'भी तुम्हारा ख्याल है कि दुश्मन यहा सक्रिय नहीं है ।"




-“यह मैंने कब कहा चचा ?" वतन ने कहा-“ज़ब सर्चलाइटें फूटी हैं तो निश्चित रूप से -दुश्मन सक्रिय है ही । इस बात का विरोध करता रहा हूँ और अब भी करता हूं कि मेरी सुरक्षाओं क्रो तोडकर दुश्मन प्रयोगशाला के अन्दर नहीं पहुंच सकता ।"




"जानते हो कि सैनिकों द्वारा इतनी देर की -खोज के बावजूद भी दुश्मन क्यों नहीं मिले ?"

" इसलिए कि वे भी हमारे ही सैनिक बने हुए थे ।"



" थे नहीं वतन, बेटे, हैं, कहो ।" अलफासे ने कहा ---" मेरा दावा है कि इन सेनिकों में अब भी दुश्मन छुपे हुऐ है ।"
" छुपकर करेंगे क्या वतन का अजीब-सा स्वर उभरा --"प्रेयोगशाला के अन्दर तो जा नहीं सकेंगे वे ।"



"खाई में कूदने वाले चार सैनिकों के बारे में तुम्हारा किया ख्याल ?"



" इन सैनिकों के रूप में वे दुश्मन थे ।" वतन ने बतायाा-“ओर प्रयोगशाला के अॉदर जाने के लिए है खाई में कूदे ।"

"क्यों, क्या दिमाग खराब था उनका ?" अलफांसे ने कहा…"जो जान-बूझकर मौत के मुंह में छलांग लगाएंगे ?"



"उन बेचारों को मालूम क्या होगा कि वे कहां छलांग लगा रहे हैं ?”वतन ने कहा…"उन्हें इस खाई की विशेषता का क्या पता ? वे तो इसी आशा से कूदे होंगेकि खाई में से प्रयोगशाला के अन्दर जाने का उन्हें कोई मार्गमिल जाएगा ।"



"सचमुच तुम्हारे सोचने का तरीका हर वार गलत होता है ।"



-"क्यो ? अब क्या कहना चाहते है ?"



…"यह कि इस वक्त यहाँ जो दुश्मन सक्रिय हैं । उनेक काम करने के तरीके से ही प्रतीत होता है वे बेहद चालाक हैं । चारों सर्चलाइटें फोड़ने के बाद इतनी देर तक बिना क्रिसी हरकत के धैर्यपूर्वक रहना, फिर चार आदमियों का खाई में कुदना यह सब
कुछ जाहिर करता है वतन, कि दुश्मन जो भी हैं, वे चालाक है ओर जो कुछ कर रहे हैं, एक लम्बी योजना के आधार पर कर रहे है । ऐसे दुश्मनों के लिए यह सोचना कि वे खाई की वास्तविकता से ही परिचित न होंगे, एक मूर्खतापूर्ण विचार के अतिरिक्त कुछ न ।"



" यह तो उनकी अौर बड़ी मूर्खता होगी कि खाई की वास्तविकता जानते हुए भी वे इसमें कूद पडे़ है"



…"सन्भव है कि खाई में भरे पानी और जीवों से सुरक्षा का प्रबन्ध करके कूदे हों ?"
"ये हकीकत नहीं चचा, सिर्फ आपका ख्याल है ।" वतन ने कहा…“पानी में ही वे जल-जीवों का भोजन बन गए । घबराने की तो बात ही नहीं है, क्योंकि पहली बात तो उन्हें जल-जीव नहीं छोडेंगे ! दूसरी बात यह कि अगर किसी तरह वे जीवित भी बच गए तो खाईं में से प्रयोगशाला के अन्दर जाने का कोई रास्ता नहीं है । वे मरकर भी प्रयोगशाला में नहीं पहुच सकेंगें ।।
बूरी 'तरह चौंका वतन ।



न सिर्फ बल्कि अलफासे और सारे सैनिक भी चोंक पडे ।



उनको चौकाने वाली एक विस्फोट की आबाज थी ।।



भयानक विस्फोट !




और --- वतन के चौंकने का असली कारण यह था कि यह धमाका प्रयोगशाला के अन्दर हुअा था ।




…"‘वतन‘ !" इससे पहले कोई कुछ समझे अलफांसे तेजी से चीख पड़ा-----"जल्दी ही कुछ करो-दुशमन प्रयोगशाला के अन्दर पहुंच चुके हैं ।"



अब वतन का आत्मविश्वास डोल गया ।



डोलने की बात भी थी । अभी तक वह निश्चित था तो सिर्फ सिर्फ इसलिए कि प्रयोगशाला के बाहर दुश्मन चाहे जो करते रहें किसी तरह वे उदर नहीं पहुँच सकेंगे । और जब वे अन्दर नहीं पहुंचेंगे तब तक उनका कोई सों मकसद पूरा नहीं होगा ।।

परन्तु होने वाले विस्फोट ने वतन की निश्चिंतता भंग कर दी ।।





" लेकिन चचा ।" फिर भी वतन ने कहा---- दुश्मन् अंदर पहुंच कैसे गये ?"





"यह वक्त इस तरहकी ऊटपटांग बातें सोचने का नहीं है, वतन बेटे । " अलफांसे का तेज स्वर----" अंदर होने वाला धमाका इस बातका प्रमाण है कि दुशमन अन्दर पहुंच चुके हैँ ।। हमें यह सोचने-में वक्त जाया नहीं करना है कि वे कैसे पहुंचे , वरना हम यहाँ ही रहेंगे और दुश्मन जिस तरह अंन्दर तक पहुंच गए हैं, उसी तरह अपना काम के बाहर भी आ जाएंगे ।"




धनुषट'कार ' उसके कधों पर चढ़ा सांकेतिक भाषा में उससे कुछ करने के लिये कह रहा था ।



वतन का दिमाग ठस-सा होकर रह गया था ।। यह सोच नहीं पा रहा था कि क्या करे।



तभी अचानक…धड़ाम... धुम्म ...धुग्म... ।



प्रयोगशाला के अन्दर एक अन्य कर्णभेदी विस्फोट ।

और इस विस्फोट ने वतन के सम्पूर्ण चेहरे पर तनाव उत्पन्न का दिया ।



उसने तेजी से जेब में हाथ ड़ाला और द्रान्समीटर निकालकर उसे अॉन कर तेजी से बौला--'डैलो...हैलो...डैनी ।। क्या हुआ ? प्रयोगशाला के अन्दर यह धमाकों की आवाज़ कैसी है ?"
"महाराज !" दूसरी तरफ से ट्रांसमीटर पर उभरा डैनी का, बारीक स्वर, "कुछ समझ में नहीं अा रहा है, सर !" `



" उन धमार्को का परिणाम...!"




"प्रयोगशाला के अन्दर अधिकांश भाग में अंधेरा छा गया है सर ।" डैनी की आवाज उभरी----"इनर्मे से एक ने उन चार जनरेटरों को ध्वस्त कर दिया है जिनसे प्रयोगशाला की चारों दीवारों पर करेंट रहता था । दूसरे विस्फोट ने उन दो जनरेटरों को नष्ट का दिया है । जिसके कारण प्रयोगशाला के अधिकांश भाग में प्रकाश रहता था ।"



" कोई सदेग्ध आदमी नजर आ अाया ?”



'"हम तलाश कर रहे है । महाराज, लेकिन ये अंधेरा ..... ।।"



"वतन !" उसके बराबर में ही खड़ा अलफांसे तेजी से बोला----" डैनी को आदेश दो कि दु१मन को तलाश करने के स्थान पर वह अपनी ज्यादातर शक्ति ‘वेवज एम' और उसके फार्मूले की हिफाजत में लगाए ।"

ट्रांसमीटर के माइक पर हाथ रखकर वतन ने कहा…"डैनी क्या, किसी को भी नहीं मालूम है कि 'वेवज एम' और फार्मूला कहां रखें हैं !"



"तुम्हें तो मालूम है ?” झुंझलाए-से स्वर में अलफांसे ने पूछा ।




"'हां...सिर्फ मुझे... ।”



उसकी पूरी बात सुने विना ही अलफांसे ने तेजी से कहा‘----"‘तुम , डैनी को यह मत बताओ कि उसे ऐसा आदेश क्यों दे रहे हो ? तुम्हें पता है कि दुश्मन किस मकसद से यहाँ आया है, जिस जगह फार्मूला हो, उस जगह के अास-पास की कडी निगरानी का हुक्म डैनी को दो । "



"'डैनी.." माइक से हाथ हटाकर वतन ने तेज स्वर में कहा-“अपने ज्यादातर सैनिकों का जाल मेरे प्रयोगकक्ष के अासपास बिछा दो । सबकों हुक्म दे दो कि प्रयोगकक्ष के अास-पास कोई भी संदिग्ध आदमी आये तो उसे फोरन शूट का दें ।" कहने के साथ ही उसने ट्रांसमीटर आँफ़ का दिया ।



अब वतन के लहजे में उत्तेजना और चेहरे पर ऐसा तनाव था जैसा किसी भी जोशीले नौजवान के चेहरे पर देखा जा सकता है जिसका घर उसकी आंखों के सामने धू-थू करके जल रहा हो । जोर से चीखा वह---"मनजीत !"



"'हुक्म कीजिए महाराज ।" करीब ही खडे़ मनजीत ने कहा ।
एकाएक वतन पूर्णतया सक्रिय हो उठा था । उसने कहा-----"हम प्रयोगशाला के अन्दर जा रहे हैं । याद रहे-कोईं भी संदिग्ध आदमी इस मैदान से बारह न निकल सके । जो हुक्म मैंने डैनी को दिया है, वह अपने लिए भी समझो ।" मनजीत के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना वह तेजी के साथ दीवार के मध्य की तरफ बढ़ गया । ठीक उस स्थान पर पहुंचा जहाँ से उसने आज दिन में दरवाजा खुलने का संकेत दिया । उसी जगह खडे़ होकर उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिए । उसी के संकेत पर, मनजीन ने अपनी टॉर्च का प्रकाश उसके जिस्म पर डाला ।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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चुपचाप बढ़ता ही गया वह ।
अभी वह प्रयोग-कक्ष के समीप पहुचा ही था कि…धड़ाम !


ठीक कक्ष के अन्दर एक विस्फोट ।


वतन सहित सभी के रोंगटे खडे़ हो गए ।


वतन जोर से चिल्लाया-"डैनी ।"



"मैं यहां हूं महाराज ।" कक्ष की तरफ से डैनी का कथित स्वर- -"यहां खड़े क्या कर रहे हो तुम ।" पहली बार अलफांसे ने देखा कि वतन अपने किसी आदमी को डॉट रहा हैं…"ये अन्दर से विस्फोट की आबाज कैसी?"



"'ज...ज.…जी ।" डैनी बौखला गया ।



" कोई दुश्मन पहले मैदान में फिर प्रयोगशाला में और अब कक्ष तक पहुच गया और इतने सैनिकों में से कोई उसकी परछाई तक नहीं देख सका । क्या कर रहे हो तुम यहां ?"




"सर ! कक्ष में कोई नहीं ।"



"'बको मत... ।" वतन चीख पड़ा-“कक्ष में कोई नहीं गया तो यह धमाका क्या जादू से हुअा है ? तुम सब लापरवाह हो गए हो कोई आदमी सबकी आंखों में धुल झोंककर अन्दर पहुच गया और तुम मिट्टी के माधो की तरह पहरे पर खड़े हो ।"

"‘इन कामों के लिए यह वक्त नहीं है वतन ।" अलफांसे ने कहा---""जल्दी से अन्दर चलोे"


"‘याद रहे, कक्ष से बाहर उस वक्त तक कोई न निकल सके जब तक मैं न निकलूँ ।" कहने के साथ ही वह तेजी से कक्ष की तरफ बढ़ गया ।



कक्ष में दाखिल हुए तो वहा पूर्णतया अंधेरा था ।


पलटकर वतन ने कक्ष का दरवाजा, अन्दरसे वन्द कर लिया । साथ ही बोला-“अपोलो इमरजेन्सी लाइट जलाओ ।"



धनुषटंकार और अलफांसे की टॉर्चों का प्रकाश कक्ष में मौजूद प्रयोग-सीटों पर नृत्य का रहा था । कक्ष के अन्दर बारूद की दुर्गन्ध और धुआं भरा हुआ था । एक कोने में अाग के 'दहकते कुछ छोले पड़े थे ।



उस पर नजर पड़ते ही अलफांसे ने अपनी टॉर्च का प्रकाश उधर घुमा दिया ।



"अरे !" अलफासे के मुंह से निकला-'बिस्फोट के द्वारा इमरजेन्सी लाइट को भी नष्ट कर दिया गया है ।"


वतन, धनुषटकार और अपोलो ने भी देखा ।



" तुम जो भी कोई हो, जान चुके होंगे कि हम यहा पहुच चुके हैं ।"
वतन जोर से चीखा---" और अब यह भी तय समझो कि तुमने अगर कोई गलत हरकत की तो किसी भा किमत पर जिन्दे इस कक्ष से बाहर नहीं निकल सकोगे ।"




जवाब में का अाबाज नहीं -- सन्नाटा ।



"तुम जहां कहीं छुपे हो, ज्यादा देर तक छुपे नहीॉ रहोगे ।" इस बार सन्नाटे को अलफांसे की आबाज ने तोड़ाृ-"जिन्दा रहना चाहते हो तो बिना किसी प्रकार की हरकत किए शराफत से बाहर आ जाओं, वरना इस कक्ष से तुम्हारी लाश ही निकलेगी ।"


जवाब-ढाक के तीन पात !



मानो कक्ष में कोई हो ही नहीं । रह----रह अलफांसे और वतन चेतावनियां दे रहे थे परन्तु कोई दृश्मन नहीं अाया । हां इतनी देर में कक्ष में छाया धूआं रोशनदानोके मार्ग से बाहर निकल गया ।



अन्त में---चारों मिलकर सारे कक्ष में अनजाने दुश्मन की तलाश करने लगे ।



उस वक्त उन सभी के चेहरों पर आश्चर्य ठुमके लगा रहा था जव उन्होंने कक्ष का चपा चपा छान मारा उसे आदमी तो क्या, प्राणी के नाम पर एक चींटी तक मिली ।



वे उस इमरजेंसी लाइट के नजदीक पहुचे, जिसे किसी ने बम विस्फोट से नष्ट कर दिया था । टार्च की रोशनी में कुछ देर वे इमरजंसी लाइट के फर्श पर बिखेरे टुकड़ों को देखते रहे , फिर अलफांसे की टॉर्च का प्रकाश कक्ष की दीबार पर नृत्य करने लगा । "

फिर, वह एकदम चौकने के से अन्दाज में बोला----अरे यह क्या हैं और टॉर्च का प्रकाश दीवार के हिस्से पर केन्द्रित था । उस जगह से दीवार टूट गई थी । उधर ही ईट और मलवा पड़ा था । एक मोखला कक्ष की दीवार क आरे पार हो गया था ।



"यह मोखला वम के विस्फोट से बना है ।" अलफांसे ने कहा-"तगता है इसी में से बाहर निकल गया वह ।"




उसका इतना कहना था कि धनुषटंकार ने मोखले से बाहर जम्प लगा दी ।


अपोलो क्या कम था ?


वह भी बाहर निकल गया । वतन ने जैसे ही उधर वढ़ना चाहा, अलफांसे--- ने कहा---- "ठहरो वतन !"


ठिठक कर वतन ने अलफांसे की ओर देखा है - मान गए न कि दुश्मन उतना चालाक है जितना मैं कह रहा था ? वह इस कक्ष तक पहुंचा और फार्मुला निकालकर चलता बना ।"
वतन जोर से चीखा---" और अब यह भी तय समझो कि तुमने अगर कोई गलत हरकत की तो किसी भा किमत पर जिन्दे इस कक्ष से बाहर नहीं निकल सकोगे ।"




जवाब में का अाबाज नहीं -- सन्नाटा ।



"तुम जहां कहीं छुपे हो, ज्यादा देर तक छुपे नहीॉ रहोगे ।" इस बार सन्नाटे को अलफांसे की आबाज ने तोड़ाृ-"जिन्दा रहना चाहते हो तो बिना किसी प्रकार की हरकत किए शराफत से बाहर आ जाओं, वरना इस कक्ष से तुम्हारी लाश ही निकलेगी ।"

जवाब-ढाक के तीन पात !



मानो कक्ष में कोई हो ही नहीं । रह----रह अलफांसे और वतन चेतावनियां दे रहे थे परन्तु कोई दृश्मन नहीं अाया । हां इतनी देर में कक्ष में छाया धूआं रोशनदानोके मार्ग से बाहर निकल गया ।



अन्त में---चारों मिलकर सारे कक्ष में अनजाने दुश्मन की तलाश करने लगे ।



उस वक्त उन सभी के चेहरों पर आश्चर्य ठुमके लगा रहा था जव उन्होंने कक्ष का चपा चपा छान मारा उसे आदमी तो क्या, प्राणी के नाम पर एक चींटी तक मिली ।



वे उस इमरजेंसी लाइट के नजदीक पहुचे, जिसे किसी ने बम विस्फोट से नष्ट कर दिया था । टार्च की रोशनी में कुछ देर वे इमरजंसी लाइट के फर्श पर बिखेरे टुकड़ों को देखते रहे , फिर अलफांसे की टॉर्च का प्रकाश कक्ष की दीबार पर नृत्य करने लगा । "




फिर, वह एकदम चौकने के से अन्दाज में बोला----अरे यह क्या हैं और टॉर्च का प्रकाश दीवार के हिस्से पर केन्द्रित था । उस जगह से दीवार टूट गई थी । उधर ही ईट और मलवा पड़ा था । एक मोखला कक्ष की दीवार क आरे पार हो गया था ।



"यह मोखला वम के विस्फोट से बना है ।" अलफांसे ने कहा-"तगता है इसी में से बाहर निकल गया वह ।"




उसका इतना कहना था कि धनुषटंकार ने मोखले से बाहर जम्प लगा दी ।

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