चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़) complete

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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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" देख लिया साले ने घुसकर तमाशा ?"

" जिस समय विकास मुझे - यह सब कुछ बता रहा था, उस समय वतन भी मेरे पास था । " अलफांसे ने बताया----" इसने भी सब कुछ सुना और उसी समय से वतन भी गायब है ।"


" कहां चला गया ?


"कदाचित विकास की तरह घुसकर … तमाशा देखने !"


--"क्या मतलब ।"



" वतन के यहां से जाने के बाद मुझे वतन का 'एक पत्र मिला है ।" "कैसा पत्र ?"


'"मैं पढकर सुनाता हूँ तुम्हे ।" कहने के उपरांत अलकांसे ने पत्र सुनाना किया, "प्यारे अलकांते चचा ! मुझे विदित हो गया है कि चीनी कुत्ते न सिर्फ मेरी फिल्में लेकर पिकिंग जा रहे हैं, बल्कि मेरे यार को भी कैद कर लिया है । बस----इतना जान लेना मेरे लिए काफी है । अब चीन में वतन जो तबाही मचाएगा, उसे आप ही नहीं… सारा दुनिया-सुनेगी ।।

इस हरामजादी कौम को मैं बताऊंगा कि वतन के फार्मूले पर दृष्टि डालने अौर वतन के यार को बन्दी बनाने का परिणाम क्या होता है ? मैं जा रहा हूँ चचा, मेरे बिषय में किसी भी प्रकार की फिक्र न करना है बस---पिचासनाथ को समझा देना कि मैंने उसे जो कुछ समझाया है, वही करे ।" यह बहुत आवश्यक है कि बीच-बीच में दुनिया पहचानती रहे कि वनत चमन में है और इलाज करा रहा है-आपका भतीजा -- वतन ।"



"ये साला बटन कहां चला गपा ?" पुरा पंत्र सुनते ही विजयं ने कहा ।


"यह तो मैं स्वयं नहीं जानता विजय ।" अलफांसे ने केहा----' जैसे ही उसे यह पता लगा कि विकास, बागारोफ, बाण्ड, नुसरत और तुगलक चीनी जासूसों के चूंगल में पहुंच चुके हैं और दोनों फिल्में लेकर वे जलपोत के माध्यम से पिकिंग की तरफ बढ़ रहे हैं तो उसके चेहरे पर कुछ ऐसे भाव उभरे जैसे वह इसी धटना का प्रतीक्षक था । उसके बाद से मुझे वतन नहीं, सिर्फ वतनं का यह पत्र मिला है ।"

"इसका मतलव ये हुआ लूमड़ भाई कि दोनों छोकरे तुम्हारा बजरबटटू बना गए ?"



" शायद तुम्हारी बनाने चीन आ रहे हैं ।"
"इसका मतलव ये हुआ लूमड़ भाई कि दोनों छोकरे तुम्हारा बजरबटटू बना गए ?"



" शायद तुम्हारी बनाने चीन आ रहे हैं ।"


" मेरी फिक्र मत करें प्यारे लूमड़ भाई । अपने राम ने तो बजरबटटू बनाना सीखा है बंनना नहीं ।" विजय कहे चला गया ---" उचित समझो तो तुम भी चीन आ जाओ, किन्तु आने से पूर्व जो हिदायत तुम्हें पिशाचनाथ को देनी है, वह न भूलना ।"


" हैरी का क्या करू ?"


अलकांसे द्वारा पूछे गए इस प्रश्न ने एक पल के लिए .. विजय को निरुत्तर-सा कर दिया, फिर बोला, "अजी लगता है लुमड़ मियाँ कि अपनी बुद्धि का कुछ भाग तुम भी डाई अान किलो के हिसाब से बेचकर खा गए हो । अमां. उय साले का करना ही क्या है ? पिशाचनाथ के हवाले कर अाना यह जरूर वता देना उसे कि अपने गुरु का वह पट्ठा हरामी कितना है । कहीं ऐसा न हो कि वह किसी तरह कैद निकल भागे ।"


" ठीक है ।" अलफांसे ने यह कहकर सम्बन्ध विच्छेद कर दिया--" मैं चीन आ रहा हूँ ।"


"सम्बन्ध विच्छेद होते ही विजय ने क्रिस्टीना की तरफ देखा है उसके चेहरे पर चमक थी कदाचित उसने विजय और अलफांसे के बीच होने वाली संपूर्ण 'वार्ता सुन ली थी ।


विजय ने कहा-----" तुम्हारा सारा चेहरा बिल्ली की आंखें बन रहा है क्रिस्टी !"


" क्या मतलब ?"

-"'अपने शिकार को देखकर जिस तरह बिल्ली की आंखें चमकती हैं, उसी तरह इस समय तुम्हारा चेहरा चमक रहा है ।"


हल्के से हंसीं क्रिस्टीना बोली-"मैंने कौन-सा शिकार देख लिया है?"




…"बटन ।" विजय ने कहा--"बोलो, क्या कुछ गलत कहा मैंने ?"




"शिकांर बाली तो कोई बात नहीं है विजय भैया ।"



क्रिस्टीना--- ने कहा --" "लेकिन हां, यह जानकर खुशी अवश्य हुई कि जिस वतन को हमने कुछ ही देर पहले टीबी पर देखा था, वह वतन नहीं था है वतन पहले जैसा ही खूब' सूरत है, वह चीन आ रहा है ।"



-'"इसी को कहते हैं अड़गीमार इश्क है"' कहने के पश्चात विजय किसी अन्य से सम्बन्ध स्थापित करने का
प्रयास करने लगा । उसे ऐसा अवश्य लगा था कि उसकी बात का क्रिस्टीना ने कोई जवाब दिया है, किन्तु उस जवाब को सुनने का उसने कोई प्रयास न किया ।
विजय निरन्तर किसी से सम्बन्ध स्थापित करने के प्रयास में व्यस्त था । क्रिस्टीना की आवाज उसके कानों में पडीं --- " किससे बातें करता चाहते हो विजय भैया ?"


उसकी बात का कोई जवाव देने के स्थान पर विजय ने हाथ उठाकर उसे चुप रह का संकेत किया । उसका पूरा ध्यान ट्रांसमीटर की तरफ था, और धीरे धीरे बह सेट पर कह -कह रहा था ---"हैलो हैलो" प्यारे झानझरोखे ।"

"हेलौ !" दूसरी तरफ से स्वर उभरा---"में बोल हूं ।"



"कौन ?" विजय ने पुछा---"झानझरोखे ?"



"'झानझरोखे नहीं बिजय लेटे, यह हम बोल रहे है ।" दूसरी तेरफ से आवाज आई ।



हल्के से चौक पडा विजय, मुंह से निकला--" कौन… गुरुदेव ?"



"ठीक पहचाना बेटे ।" दुसरी तरफ से सचमुच जैकी वोल रहा था ।


" -पांव लागूं गुरु !" स्वर को संभालते हुए विजय ने एकदम कहा-. "लेकिन इस ट्रांसमीटर पर आप कहाँ से टपक पड़े ।


'"तुम समझ सकते हो विजयकि तुम्हारा झानझरोख इस समय हमारी ही कैद में है ।'.' जैकी ने कहा-"मुझे अफसोस है कि अशरफ यहां से 'आँपरेशन --वेवज. एम से सम्बन्धित सारी सूचनायें तुम्हें देता रहा, किन्तु हम उसके बिषय में कुछ न जान सके।। उसने पीछा भी किया, किन्तु मैं न जान सका कि कोई मेरे पीछे है । सच मुझे सख्त अफसोस है , किन्तु-अफसोस अब तुम्हें भी होगा ।"


" अरे हम तो तुम्हारे बच्चे हैं गुरुदेव ।" विजय ने कहा---अपने झानझरोखे को तुमने कैसे पकड़ लिया ?"


"उसने सोचा था कि वह जैकी बनकर, हैलीकॉप्टर लेकर चमन से हैरी को लेने चला जाएगा ।" जैकी ने बताया -"यह सोचकर वह मेरे घर में घुस आया मुझ पर और --- जूलिया पर उसने एक साथ हमले किए, किन्तु............"


" उसी समय बांण्ड आ गया और उसने झानझरोसे सहित तुम सबका तीया-पांचा कर दिया ।" जैकी की बात पूर्ण होने से पहले ही विजय ने कहना शुरू कर दिया-जो काम अपना झानझरोखे करना चाहता था, वह जेम्स वाण्ड ने किया ।"

जैकी के चौकने का स्वर----"यह सब कुछ तुम्हें कैसे मालूम ?"



"'हमारा नाम विजय दी ग्रेट है गुरुदेव !" सीना अकड़ाकर विजय ने कहा…"हमें तो यह भी मालूम है कि इस समय हैरी कहां है ? लेकिन पहले तुम यह बताओ कि अपने झांनझरोखे मियां इस समय कहां हैं ?"


--'"हमारी कैद में ।"



" उसे छोड़ दो !"



" क--क्या मतलब ?" निश्चित . रूप से विजय के इस विचित्र आदेश पर जैकी चौका था -"यह बात तुमने "कैसे-कही?"



-"गुरुदेव !" विजय ने मानो जैकी को पुचकार'-"और उसका करोगे क्या ?'"



" आँपरेशन वेवज एम' वाले इस अभियान से तुम्हें हटाने के काम तो अशरफ ही आएगा ।'" जैकी ने कहा------."सुनो विजय, ध्यान से मेरी बात सुनो । इस अभियान पर तुम्हारे बच्चे को भेजा गया है…हैरी को उसका काम है, . वेवज एम का फामुँला सुरक्षित अमेरिका पहुँचाना । मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि वह अपने इस अभियान में उस समय तक सफल नहीं होगा जब तक कि बीच में तुम हो, यह समझो कि तुम्हें आदेश देता हैं मैं---तुम इसअविन्यान से हट जाओं ! अगर तुमने मेरे इस आदेश की अवहेलना की तो याद रहे, तुम्हें जीवित अशरफ को देखने का अवसर कभी नहीं मिलेगा ।"



…"वाहं गुरुदेव----यह भी खूब रही ।" विजय ने कहा----"आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी फि चूहे के हाथ कत्तर लग गई तो वह स्वयं को बजाज यानी कपडे का व्यापारी ही समझ बैठा ।"

"'क्या कहना चाहते हो ?"



"यह कि हैरी हैमारीे कैद में है ।" विजय ने कहा--" तुम्हारा मेकअप करके वाण्ड आया था तो हैरी के भेष में उससे विकास मिला । हैरी को विकास ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था ।"



"यह सब बकवास है ।" जैकी चीख पड़ा ।




"कभी--कभी बकवास भी सच होती है गुरुदेव !" विजय ने यहा---" बकवास ही सही, लेकिन सच है । हैरी इस समय हमारी कैद में है और आप भी यह याद रखें कि जो कुछ आपकी कैद में पड़े हमारे झानझरोखे के साथ होगा ठीक वही हैरी के साथ ।"



" बकवांस मत करो विजय ।" दूसरी तरफ से बोलने वाला जैकी चीख पड़ा था--- "जासूसी तुम्हें मैंने सिखाई है । उसी जासूसी का पैतरा तुम मुझ पर चला रहे हो, । मैं जानता हूँ कि हैरी-वेरी कोई नहीं है तुम्हारे पास है यह 'झूठ तुम इस लिये बोल रहे हो, क्योंकि अशरफ को मारने की धमकी जो दी है मैंने । मैं तम्हारी इस चाल में आने वाला नहीं हूँ विजय । "



"अगर इस गलतफहमी में रहें , तो निश्चित रुप से आप वहुत बड़ा धोखा खायेंगे" । विजय ने कहा--" ये सच है कि हैरी हमारे पास है और झानझरोखे के साथ जो भी करो, इस बात को अच्छी तरह-सोच-समझकर करना वही व्यवहार हैरी के साथ भी हो रहा होगा। एक क्षण के लिये सेट पर सन्नाटा छा गया, फिर जैकी की आवाज---" मुझे तुम्हारी बात पर बिलकुल यकीन नहीं है ।"




" और मैं आपकों यकीन दिलाना भी नहीं चाहता ।"


'"तुम्हारे पास क्या सबूत है ?"

"'क्या ये सबुत कम| है मुझे यह पता है कि तुम्हारे मेकअप में हैरी को लेने जेम्स बाण्ड आया था ।” विजय ने
कहा----"जरा सोचो गुरुदेव, अमेरिका में घटी धटना की जानकारी मुझे कैसे हो गई ? एक ही माध्यम था---ये कि
विकास ने हैरी को गिरफ्तार कर लिया था । स्वयं विकास हैरी के मेकअप में बाण्ड से मिला । उसने वाण्ड को पहचान लिया । तुम स्वयं समझ सकते हो कि विकास ने बाण्ड का क्रिया-कर्म किस ढंग से किंया हौगा ।। बस, स्वयं बाण्ड ने वताया कि क्या कुछ हुआ था ।"



-"ये झूठ है ।" जैकी चीख पड़ा---- "तुम्हारी यह बात प्रभावित नहीं करती कि हैरी तुम्हारी कैद में है सम्भव है कि किसी अन्य माध्यम से तुम्हें यह जानकारी हुई हो । तुम्हारी इस खोखली दलील मैं नहीं मान सकता कि हैरी--------!"



"अगर में ये कहूं गुरूदेव कि आप भी झूठ बोल रहे है----अशरफ आपके पास हैं ही नहीं तो ?"



"'मैं तुम्हारी तरह खोखली धमकियां नहीं दिया करता ।"' जैकी ने कहा---"अशरफ मेरी कैद में है, इसका प्रमाण मैं तुम्हें अभी ट्रांसमीटर पर उसकी आवाज सुनाकर भी दे सकता हूं बोलो----वया तुम सुनवा सकते हो हैरी की आवाज ?"



" गुरु चाहूँ तो अभी अपने ही मुंह से हैरी की आवाज निकालकर आपको यकीन दिला दू ।।" विजय वे कहा…लेकिन फिलहाल मुझे यह हथकंडा अपनाने की कोई अाबश्यकता नहीं है । यह भी जानता हुं कि आपके लिये भी अशरफ की आवाज की नकल करना कोई कठिन काम नहीं है, किन्तु मुझे विश्वास है कि अपना झानझरोखेे आपकी कैद में है और तुम्हें भी विश्वास करना पड़ेगा गुरुदेव----यह कि हैरी हमारी कैद में है । याद रखना, जैसा व्यवहार उसके साथ होगा, वैसा ही हैरी के साथ..........!"कहते के पश्चात् विजय ने एकदम सम्बन्ध विच्छेद कर दिया । दूसरी तरफ से जैकी हैलो -हैलो ही करता रह गया है
पनडुब्बी से बाहर समुंद्र के अथाह जल में जो व्यक्ति अभी-अभी कूदा था उसके हाथ में एक छड़ी थी ।



सम्पूर्ण जिस्म पर गोताखोरी का लिबास ।


पीठ पर दो आक्सीजन के सिलेण्डर रखे थे और पनडुब्बी से कूदते- ही उसने जलपोत के उस हिस्से में मौजूद एक रॉड पकड़ ली थी जो पानी में डूबी थी ।

मस्त हाथी की भांति जलपोत्त सागर के कलेजे पर दनदना रहा था ।


छड़ी को सम्बाले वह रॉड के सहारे चलता हुआ सागर की सतह पर अा गया ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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इस समय उसका गर्दन से ऊपर का भाग पानी के ऊपर था शेष पानी के अन्दर । धीरे धीरे पानी के अन्दर का भाग भी ऊपर आता जा रहा था ।



रॉड के सहारे चलता हुआ वह जलपोत के पिछले भाग में आ गया है । फिर छपकली की तरह वह जलपोत की ऊंची और चिकनी दीवार पर चिपक गया ।


उसके हाथ-पैरों के चारों पंजों में विचित्र-सी किस्म के दस्ताने थे । ऐसा प्रतीत होता था मानो उसके दस्तानों में हवा भरी हुई हो ।जलपोत को दीवार से उसने दायाँ हाथ हटाया उस हाथ का दस्ताना इस प्रकार फूलता चला गया जैसे किसी माध्यम से उसमें हवा भरी जा रही हो । उसने हाथ सीधा किया, कुछ ऊपर, जलपोत की दीवार पर उसने हाथ रखा ।


उस हाथ के दस्ताने की हवा निकलती चली गई । ज्यों-ज्यों हवा निकलती जा रही पी त्यों-त्यों उस हाय की उंगलियाँ एक विचित्र से ढंग से जलपोत की दीबार पर जमती जा रही थी ।। जब वह हाथ पूर्णतया दीवार पर जम गया तो उसने बायां हाथ दीवार से हटाया । दांयें हाथ की भांति दीवार से हटते ही उस हाथ के दस्ताने में भी हवा भरत्ती चली गयी, फिर दायें हाथ से ऊपर, दीवार पर उसने बायां हाथ जमाया । दस्ताने की हया निकंली और यह हाथ दीवार पर जम गया । फिर दायां हाथ उसने दीवार से हटाया। उसमें हवा भरी दायें से ऊपर चिपकाया ।। इस प्रकार ठीक किसी छपकली की भांति यह जलपोत की ऊंची , सपाट और चिकनी दीबार पर चढ़ता चला गया । जलपोत अपनी स्थायी गति से बढ़ता चला जा रहा था ।


पूरी दीवार पर चढ़ कर: डेक पर पहुंचने में उसे तीस मिनट लग गये ।


डेक पर पहुंचकर उसने निरीक्षण किया । किसी इन्सान की मौजूदगी न पाकर वह डेक पर उतर गया । छडी़ सम्बाले वह एक शेड के नीचे पहुंचा है सर्वप्रथम उसने अपनी पीठ को सिंलेण्डरों के भार से मुक्त किया, कैप उतारी । उसके चेहरे पर चौडे फ्रेम वाला काला चश्मा लगा हुआ था ।

गोताखोरी का लिबास उतरा तो जिस्म पर मौजूद सफेद कपडे चमचमा उठे ।



पैरों में क्रैपसोल के सफेद जूते थे , अपना शेष सामान वहीं छोड़कर उसने छड़ी उठाई और डेक से नीचे जाने वाली सीढियों की तरफ बढ़ गया । उसका रंग गोरा था…दृध जैसा । कद लम्बा । विकास की भांति ही लम्बा ।। लम्बे-लम्बे कदमों के साथ वह बढ रहा था ।।



सीढियां उतरकर वह एक गैलरी में पहुंचा ।


सीढ़ियों के नीचे समीप ही खडे़ एक चीनी सैनिक ने उसे देख लिया था । देखते ही सैनिक ने फुर्ती के साथ उसकी तरफ गन तान ली और चिल्लाया…"कौन हो तुम ? कहां चले आते हो ? "



किन्तु जबाब में दूध जैसे कपडों बाला उसके ऊपर अा गिरा था ।



सफैद बूट की ठोकर इतनी जोर से उसकी कनपटी पर पडी थी कि अपने कंठ से चीख निकालता हुया वह धड़ाम से जलपोत के फर्श पर गिरा उसके हाथों से निकलकर गन तो हवा में लहराती हुई बहुत दूर जा गिरी थी ।।



वह फुर्ती के साथ खड़ा हुआ।



अब भी नहीं पहचाना मुझे गुलाबी अधरों से निकली वाणी के साथ ही उसके मस्तक पर बल पड़ गया----" मै
" व....व....वतन !" सैनिक का पोर-पोर कांप उठा ।।

एक जहरीली मुस्कान गुलाबी होंठों पर उभरी । ऐसे, जैसे कोई लड़का म्यान से तलवार निकाले । छडी के अन्दर से खींचकर हहिडयों का बना मुगदर निकाल लिया वतन ने ।



सैनिक की आंखों में साक्षात मौत नृत्य कर रही थी । भय के कारण चेहरां पीला पड़ा हुआ था । वह पीछे हट रहा था और धीरे-धीरे लम्बे कदमों के साथ वतन उसकी तरफ बढ रहा था ।



सैनिक के पीछे दीवार आ गई । अब वह और अधिक पीछे नहीं हट सकता था ।


वतन का मुगदर वाला हाथ ऊपर उठा मुगदर हवा में लहरा उठा और सन्नाकर वह अभी सैनिक के जिस्म के किसी भाग से टकराने ही वाला था कि सैनिक गिड्रगिड़ा उठा-"न---न---नहीं मुझे मत मारो , मैंने कुछ नहीं किया ।" हाथ रुक गया वतन का , मस्तक पर पडा बल, गहरा बहुत गहरा हो उठा। बोला---"' तुम्हारे चेहरे पर आतंक देख रहा हूँ । मौत के भय की परछाइयां कभी यह परछाइयां मैंने अपनी मां और बहन के चेहरों पर देखी थीं किन्तु किन्तु उन-जालियों ने उन्हें छोड़ा नही था ।। मैं तुम्हें छोड सकता हूँ।"



रो पडा सैनिक--" तुम्हें छोड़ने की कुछ शर्त हैं मेरी ।"


सैनिक की आंखों में प्रश्न उभर आया । जैसे पूछ रहा हो…" क्या ?"



"बताओ कि विकास इत्यादि इस जलपोत में कहा कैद हैं ?"



सैनिक के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभर अाये ।

"'तुम्हारा नाम तो नहीं जानता मैं ।" बेहद गम्भीर स्वर में वतन ने कहा--"यह भी सुन लो कि तुम्हारी कौम से घृणा है मुझे । नजानते हो, क्यों? इसलिये, क्योंकि तुम समझते हो कि दुनिया में जीवित रहने का अधिकार सिर्फ तुन्हीं का है ।
तुम्हारा वस चले तो सारी दुनिया को अाग लगा दौ तुम । स्वयं जीवित रहने के लिये दूसरों को फाड़कर खा जाओ । मैं अहिंसा को मानने वाला हूँ, हिंसा का क्या परि'गाम होता है, वह मैंने अपनी मां, बहन और पिता को लाशों पर देखा है । सोचता हूं कि मेरे कारण दुनिया का कोई भी इन्सान उस हिंसा का शिकार न हो, किंतु ऐसी बात भी नहीं कि मैं हिंसा का प्रयोग नहीं कर सकता । मैग्लीन और उसके बेटे का अंजाम सारी दुनिया को पता है । मैं महात्मा गांधी की तरह महान नहीं, जो हिंसा का प्रयोग करने की कसम ही उठा लूँ । हां यह अवश्य मानता हूं कि जहाँ अहिंसा से काम हो सके वहां हिंसा प्रयोग नीच व्यक्ति करते हैं । जो सोदेश्य के लिए हिंसा का प्रयोग नहीं करता, मैं उसे भी नीच समझता हूँ । मेरे सिद्धान्त पर गौर करो और फिर सोचो कि तुम्हें क्या करना है, वे लोग कहाँ कैद हैं ? यह बताना है या.....?"


" मैं वता रहा हूँ ।" बुरी तरहसे गिड़गिड़ा उठा सैनिक ।


" बोलो ?"


"जलपोत की सबसे निचली मंजिल के कमरा नम्बर दस में ।" 'सैनिक ने जबाब दिया ।



मुगदर छडी के अन्दर रख लिया वतन ने बोला------"इस बात के लिए धन्यवाद कि तुमचे मुझे-हिंसा का प्रयोग करने पर विवश नहीं किया, लेकिन याद रखना, तुम जहां खड़े हो जिस, पोजीशन में खड़े थे, उसी. तरह वही खडे हो जाओगे । मेरे विषय में किसी से भी कुछ नहीं कहोगे। यूं समझो कि तुम्हें यह पता ही नहीं है कि वतन यहाँ से गुजरा . है"


" जी हां ।" उसकी जुबान सूख गई थी ।




"उम्मीद हैकि तुम मुझे हिंसा अपनाने के लिए विवश नहीं करोगे ।" कहने के साथ ही वतन उसके पास से मुडा है छड़ी टेकता हुअा वह गैलरी में इस प्रकार आगे बढ गया, मानो उसके पीछे कोई हो ही नहीं । लम्बे लम्बे कदमों के साथ वह गैलरी में ठीक इस प्रकार बढा चला जो रहा था, मानो वह चमन के राष्ट्रपति भवन में ही टहल रहा हो ।
जैसे ही वह गेलेरी कें एक मोड पऱ मुड़ा उसने देखा एक सैनिक उसकी तरफ आ रहा था ।

वतन को देखते ही वह बुरी तरह चौककर ठिठका । गजब की तेजी के साथ उसने कन्धे पर से गन उतारी, किन्तु अभी वह उस गन को किसी पर फायर करने की पोजीशन में भी नहीं ला पाया था कि वतन का मुगदर इतनी जोर है उसकी कनपटी पर पड़ा कि वह चीख पडा ।



एक ही वार में उसकी कनपटी की कोई नस फट गई ।।



कोई बाँध टूट गया मानो---- फव्बारे जैसा रूप धारण करके बह उठा । गन तो कभी की उसके हाथ से निकलकर फर्श पर गिर चुकी थी । उसके कंठ से निकलने वाली वह भयानक चीख--उसके इस जीवन की अन्तिम चीख थी ।



वतन से डरी हुई रूह, उसके जिस्म पर लात मारकर ईश्वरपुरी जा पहुंची थी और अब इस प्रयास में थी कि यमराज अपने खाते-में उसकी एण्ट्री कर ले जब तक उसके शरीर को जलपोत के फर्श पर पड़ा देखकर वतन के मस्तक पर बल पड़ गया ।


हहिडयों से बने मुगदरं पर उसके खून का अंश आ गया था ।


वतन ने मुगदर छडी में ऱखा और निश्चित भाव से आगे वढ़ गया ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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इस मंजिल की शेष गौलरी में उसे कोई नहीं टकराया । सीढि़यां लय करता हुआ जब वह नीचे की मंजिल की तरफ़ बढ़ रहा था तो सीढियों के नीचे, खड़ा एक सैनिक सतर्क हो गया, किंतु', अभी वह अपनी सतर्कता का कोई लाभ भी नहीं , उठा पाया था कि हवा में संनाती हुई मुगदऱ ने कनपटी पर चोट करके उसकी रूह को भी शरीर त्यागकर ईश्वरपुरी की तरफ रवाना पर दिया ।।


पुन: मुगदर को छेड़ी में रखकर वतन आगे बढ गया ।


उस मंजिल को गैलरी में घूमतां वह एक हलि कमरे में गया ।

हाँल एकदम खाली था और हाँल जिस दरवाजे से अन्दर प्रविष्ट हुआ था, ठीक उसके सामने हाल का एक दूसरा दरवाजा चौपट खुला पडा़ था ।


हाँल मं से गुजरकर उस दरबाजे में से ही निकल जाने का निश्चय किया था वतन ने । अभी वह हाँल के ठीक बीचोबीच ही पहुँचा था कि बिधुत की सी गति से हाँल में खटाखट की आवाजें गुजं उठी ।


वतन ने देखा--पूरे-हॉल में अनगिनत दरवाजे उत्पन्न हो गये थे । प्रत्येक दरवाजे पर तीन-तीन सैनिक उसकी तरफ गन ताने खड़े थे ।


एक पल के लिये वतन ठिठका ।


चेहरे पर किसी भी प्रकार की घबराहट का एक भी चिन्ह न उभरा ।


अगले ही पल--वह इस प्रकार आगे बड़ गया मानो उसे किसी की उपस्थिति का आभास न हो ।


" वतन !"


इस आवाज ने विद्युत की सी गति से उसे पलटने पर विवश कर दिया ।



देखा-----एक नाटा चीनी खडा़ था । होठों पर कूर मुस्कान लिये वोला-----"मेरा नाम हवानची है ।"



वतन की दृष्टि हवानची के बराबर में खडे उस सैनिक पर स्थिर हो गई थी…जिसे वह अहिंसा का प्रयोग करता हुआ जीवित छोड़ आया था ।

हवानची के बराबर में खड़े उस चेहरे पर भी करीब-करीब हवानची जैसी मुस्कान थीं ।।


उसे घूरता हुआ वतन गुर्रा उठा…..."तुम जैसे व्यकित ही मेरे अहिंसा के सिद्धांत को ताक पर रखवा देते हैं ।"



"मूर्ख हो तुम, जो इस ज़माने में अहिंसा की पोटली को बांधे फिरते हो । सैनिक गुर्राया ।


उत्तर में तेजी के साथ उनकी तरफ बढा वतन ।


सहमकर सैनिक हवानची के पीछे आ गया ।


बेपैदी के लोटे की तरह घूमकर हवानची वतन की तरफ बढा, बोला-"हवानची है मेरा नाम ।"


एक पल के लिये वतन ठिठका, बोला---" तुम्हारा नाम नहीं पुछा मैंने ।"


"लेकिन मैंने बता दिया है।"
वतन ने वैसी दृढता के साथ ही उससे आगे बढ़करं कहा -----" तुम्हारा नाम कोई ऐसी तोप नहीं है, जिससे मैं डरूं । सच पूछो तो अपना नाम बताकर तुमने अपने अब तक के जीवन की सबसे बडी भूल की है । उम्मीद मुझे ये है कि यह तुम्हारे जीवन की अंतिम भूल सांवित होगी । इससे बड़ी या छोटी भूल करने के लिए मैं तुम्हें जिन्दा छोडुंगा नहीं । क्या बताया था तुमने अपना नाम एक बार फिर कहना ।



"हवानची ।" वह वतन से बिना तनिक भी प्रभावित हुए गुर्राया ।।


--"'हूं ।" जैसे जहर से बुझ गये वतन के के अधर ----" तो तुम हो वह हवानची जिसने अपनी जिदगी का आखिरी खून विकास का करने की कसम खाई है ? हुचांग का साला ? तुम । हत्या करोंगे विकास की ?"

पुन: मुस्कराया हवानची बोला----तुम्हें शक है कुछ ?"



" कभी देखा है विकास को ?" पूछा वतन ने ।



" मेरी कैद में है वह ।"



-"इसीलिये उसकी हत्या की बात सोच ली ।" वतन ने कहा---"स्वंतन्त्र होता तो स्वयं को बचाते फिरते!"




--"घवरांओ नहीं ।" हवानची ने कहा----" अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोडुंगा विकास की हत्या मेरे द्वारा की गई अंतिम हत्या होगी । अब यह आवश्यक है कि उससे पहले मैं तुम्हें मारू ।


" ख्बाब देखने छोड दो हवानची !" वतन मुस्कराया ----"मुझे तुमसे हमदर्दी है । शायद इसलिये कि तुम विकार से अपने जीजां के खून का बदेला लेना चाहते हो । अपनी बहन की मांग का सिंदुर उजड़ने का बदला लेना चाहते हो , किंन्तु ये सोचो कि बिकास ने तुम्हारे जीजा की हत्या , इसलिये की हैं क्योंकी वह मानवता के मस्तक पर एक कलंक था । धरती मां उसका बोझ नहीं सह सकती थी । "



" वतन ।" हवानची दहाड उठा ।



"’चीखो मत, चीखने से कोई समस्या हल नहीं होती है ।" वतन ने शान्ति के साथ कहा----" सच्चाई बदल नहीं जायेगी । तुम्हारे चीखने से नर्कमें पड़ा तुम्हारा जीजा उछल कर स्वर्ग में नहीं जा गिरेगा ।"

मैं कहता जुबान सम्भालकर बात करो !"



'"दूसरे की नही, अपनी जुबान पर ध्याना-दो हबानची , शायद तुम जानते नहीं कि वह क्या-वया कह रही है !"



वतन ने कहा--"तुम्हें तो पता है हिंसा का प्रयोग सिर्फ उसी स्थिति में करता हूं मैं, जब अहिंसा से काम न चले !"


"क्या कहना चाहते हो ?"



"यह कि तुम लोगों के बीच मैं अकेला जरूर हूं , लेकिन वास्तव में अकेला हूँ नहीं हूं !" वतन ने कहा-"यह याद रखना कि अगर मुझे , इस जलपोत में कुछ हो गया तो इसे जलपोत की पेंदी में एक वडा छेद हो जायेगा । वह छेद कहाँ हुआ है, यह रहस्य भी तुम्हें उस समय पता लगेगा, जव जलपोत डूबने लगेगा ।"



कुटिलता के साथ मुस्कराया हवानचीं, बोला---इस किस्म की झूठी बातों में-फंसने वाला नहीं हूँ मैं ।" -



" सच को झूठ समझना सबसे बड़ी बेवकूफी है ।"'



"अौर सबसे वडी बेवकूकी है समझदाऱ आदमी के सामने झूठ बोलना ,जो उसके सामने चल न सके!" हवानवी ने कहा -" मैं दावे के साथ कह सकता कि कम-से-कम तुम्हारा आदमी इस जलपोत में कोई ऐसा छद नहीं करेंगे जिसके परिणामस्वरूप यह जलपोत डूबे । जानते हो, क्यों ? इसलिये कि तुम उन्हें कभी ऐसा आदेश दे ही नहीं सकते है क्योंकि तुम्हे: मालूम है कि इम जलपोत पर विकास भी है । हम जलपोत में डूवेंगे तो विकास भी बचा नहीं रहेगा !"


वतन के मस्तिष्क की एक झटका सा लगा ।

यह बात सच थी कि उसने झूठ बोला था है इस मकसद से कि इस झांसे में आकर वे किसी भी प्रकार की हिंसात्मक वारदात करने का साहस न कर सकें, किन्तु…किन्तु हवानची? वतन को लगा सचमुच हवानची एक खतरनाक जासूस है ।



मगर अपने किसी भी भाव को वतन ने चेहरे से स्पष्ट न होने दिया ।
वतन बोला--"कभी-कभी अपने ही दिमाग का कोई… ख्याल, अपने लिये मौत का कारण बन जाता है !" वतन ने कहा-मेरा सिद्धान्त यह भी है कि अगर सौ नीच व्यक्तियों की मारना हो और एक सच्चा इन्तान भी मारना आवश्यक तो-----"



"छोडो इन बातों को ।" उसने वतनं का रोक दिया ----"यह जलपोत डूबने लगेगा तो मैं स्वयं फैसला कर लूगा कि मुझे क्या करना है फिलहाल तुम मुझे यह बताओ कि इस जलपोत पर क्या करने आये हो ?"



"अपने दोस्त विकास को यहां से निकालने और फिल्में लेने जो इस समय तुम्हारे कब्जे मैं है ।"




--"'मुझे दुख है कि इनमें से तुम्हारा कोई भी ख्वाब पूरां नहीं होगा ।"



"और मुझे दुख है कि तुम्हारा लोटे जैसा शरीर मुझे रोक नहीं सकेगा !"



कहने को वतन ने कह तो दिया, किन्तु प्रतिक्रियास्वरू� � उसने जब हबानची का चेहरा देखा, जो किसी शुगरमिल के बायलर की तरह तप रहा था । नेत्र मानो मोटे-मोटे खून के गोले बन गये थे ।


वतन ने उसके चेहरे को एक बिचित्र सी अनुभूती के बीच तनते देखा ।

उसने यह भी देखा कि चारों . . तरफ खडे सैनिक, सतर्क हो गए हैं ।


वतन ने स्थिति को भांपा स्वयं भी सतर्क हुआ और बीला-----"क्या लोटा शब्द अच्छा नहीं लगता तुम्हें ?'"




" कोई फायर नहीं करेगा !" इतनी जोर है चीखा …हवानची कि सम्पूर्ण जलपोत कांपता सा महसूस हुया-------- बहुत नाम सुना है इसका । इसे मैं ही देखूंगा । सुना है विकास के बाद दुनिया का सबसे खतरनाक लडका यही है ।"



मुस्कान थी वतन के होंठों पर, बोला…"तुम शायद हिसा का सहारा लेना.........!"




"मिस्टर वतन !" जैसे शेर की मौत पर शेरनी दहाड उठे------" सुना है कि विकास के बाद, दुनिया के दूसरे खतरनाक लडके तुम हो है चाहूँ तो मेरे एक ही इशारे पर सैकडों गोलियां तुम्हारे शरीर में धंस जायें है"



"कोशिश करके देख लो !" वतन मुस्कराया ।
"कोशिश तो ये है कि मैं तुम्हारा वह खतरनाकपन देखना चाहता हूं !" हवानची गुर्रा उठा--------"तुम पर कोई गोली नहीं चलेगी । मेरे अलावा कोई तुम पर किसी प्रकार का हमला नहीं करेगा मुझसे बचना है तुम्हें यह देखना है कि यह लोटा ...........!"



और अपनी बात बीच में ही छोड़कर नाटा हवानची उछल पड़ा । ठीक इस तरह, मानो उसके पैरों में स्प्रिंग लगे हो । ठीक किसी कबूतर की भांति हवा में कलाबाजियाँ खाता हुआ वह वतन के ऊपर पहुंचा और अपनी दोनों टागों का वतन के चेहरे पर इतना तेज प्रहार किया उसने कि वतन के कंठ से चीख निकल गई ।

हवा में उछलकर वतन दूर जा गिरा । आँखों से चश्मा उतरकर गिर गया था !




दूसरे ही पल उठा सिंगही का वह शिष्य तो उसने देखा--------



ठीक उसके सामने बडी-बड़ी आँखों से आग उगल रहा था हवानची !



वतन की नीली झील-सी गहरी आंखों में पानी तैर रहा था ।


स्थिर से नेत्रों से उसने हवानची को देखा और बोला----"मुझे मेरे सिद्धांत के दूसरे पहलू पर आने के लिये विवश न करो हवानची !"



किन्तु उसकी बात का जबाव अपनी जुबान से देने के मूड में नहीं था हैवानची ।


सचमुच उसका शरीर किसी बिना पेंदी के लौटे को तरह जमीन पर लुढ़का और कब वह जोक की तरह आकर वतन की टांगों से चिपट गया, यह स्वयं वतन भी न जान सका !


उसे तो इस बात का आभास उस समय हुआ, जब बह धड़ाम से गिरा !
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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टांगों में अंब भी हवांनची जोक बनकर चिपटा हुआ था। वतन को लगा, उसकी दोनों, टांगों की हड्डियां चरमरा-कर टूटने वाली हैं !. . उसे अब जाकर आभास हुआ कि सचमुच हवानची हर तरह से बहुत खतरनाक आदमी है ! उसके लोटे जैसे नाटे
शरीर में न सिर्फ विदुत से भी कहीं अधिक फुर्ती है, बल्कि----उसके शरीर में बला की ताकत भी है !

वतन को लगा कि उसकी टागें फौलादी सरियों के बीच फंस गई हैं ! वह समझ चुका था कि अगर शीघ्र ही किसी तरकीब से उसने अपनी टागों को हबानची की पकड़ से मुक्त न किया तो वह उसकी टागें तोड़ डालेगा ।



वतन का मस्तिष्क चेतन हुआ ।


अपनी पुरी शक्ति समेट कर उसने टांगों की एक तीव्र झटका दिया !


किन्तु झटका खाकर रह गया नाटा हवानची ! टागें उससे मुक्त होने की तो बात ही दूर, बन्धन की सख्ताई में लेशमात्र भी तो परिवर्तन नहीं आया । वतन के कंठ से अब टांग की पीड़ा के कारण चीख निकलने वाली थीं । एकाएक उसे अपने गुरु का सिखाया हुआ एक दांव याद आ गया ।

उसकी आँखों के सामने मुस्कराते हुए सिंगही का चेहरा उभरा । मानो वतन के गुरु ने उसे कोई निर्देश दिया !


अपनी टांगों को एकदम फैला लिया वतन ने । टांगो को उसी स्थिती में रखे वह बैठे गया, अव…वह आसानी के साथ अपनी टांगों से लिपटे हवानची को देख सकता था ।



उस समय टांगों की हड्डियां कड़-कड़ बोलने लगी थीं जव वतन के दायें हाथ का कैरेट हवानची की मेंढक जैसी गर्दन पर पड़ा ।


एक चीख के साथ हवानची का चेहरा थोडा सा झुका तो वतन का घुटना मुड़कर फटाक से उसकी नाक पर पड़ा । तुरन्त ही दूंसरी बार ,चीखकर हवानची दुसरी तरफ लुढ़क गया । घुटना ठीक नाक पर लगृने के कारण उसकी नाकं से खून बहने लगा था । वतन ने फूर्ती के साथ उठकर खड़ा होना चाहा, किन्तु खड़ा होते_ही लड़खड़ा गया वह ।


उसे लगा कि अगर उसने अपने जिस्म का भार टांगों पर डाला तो कोई न कोई हडडी अवश्य टूट जायेगी । अभी वह स्वयं को संभाल भी नहीं पाया था कि हवानची की दोनों टागें दो भारी मूसलों की तरह उसकी छाती पर पड़ी ।


न चाहते हुए भी वह चीखता हुआ गिरा।

अभी वह गिरा ही था कि उसने अपने, ऊपर लहराते इन्सानी जिस्म का आभास पाया । कुछ और न सूझा वतन को दो तीन करवटें ले गया वह 1 फटाक से हवानची खाली फ्लोर पर गिरा ! उछलकर खडा हुआ! इस बार जो वह गेंद की तरह वतन की तरफ उछल तो---------



लम्बी टांग घूम गई बतन की ।



प्रहार हवानची के चेहरे पर हुआ । गेंद की तरह्र ही उछल कर दूर जा गिरा ।


उठने से पहले ही उसने महसूस किया कि वह किसी के हाथों में है और उन हाथों ने उसे वापस फर्श, पर पटक दिया ।



कमाल कर दिया हवानंची ने।


बेशक उसके कंठ से चीख निकली किंन्तु फर्श से टकराते ही किसी रबर के बबुये की तृरह उछलकर खड़ा हो गया । सामने उससे तिगुना लम्बा लड़का खड़ा था वतन ।



हवानची ने अपनी पेटी वाले स्थान पर हाथ मारा और अगले ही पल उसके हाथ में सर्प की भांति एक कांटेदार पेटी लहरा रहीं थी । उसके अग्रिम भाग में पीतल का एक मोटा गोला था ।



वतन को आभास हो गया कि इस पेटी के एक भी बार का परिणाम क्या हो सकता है ।



अंपनी सम्पूर्ण' इन्द्रियों को सचेत करके वंह्र बोला…"बस खत्म हो गई मर्दानगी ?"

किन्तु------उछलकर बिजली के उस बेटे ने वतन पर पेटी का वार किया ।



स्वयं कों बचाने की खूब चेष्टा की वतन ने, किंतु बचा न सका ।


हाँ, इतना अवश्य हुया कि पीतल का गोला उसके सिर पर लगने के स्थान पर कन्धे पर लगा । पेटी की कांटों ने-उसकी खाल नोंचली ।


दर्द से, तिलमिलाकर वह गिरा ।


उसका भाग्य था कि यह अपनी छड़ी पर गिरा । पलक झपकते ही उसने छड़ी उठा ली अोर एक अनजाने से खतरे का मुकाबला करने के लिए उसेने छडी यूं ही हवा में ऊंपर उठा दी ।-हवानची की पेटीका अगला वार उस छड़ी पर रूक गया ।
जब तक हवानची पेटी को घुमाकर तीसरा वार करता, तब तक वतन न सिर्फ खड़ा हो गया था बल्कि हड्डियों का मुगदर -उसने छड़ी के अन्दर से खींच लिया था । अब अपने हाथ में दबी पेटी को हवानची लहरा रहा था तो वतन मुगदर को अपने जिस्म की ढाल बनाये हुए था ।



उसके दूसरे हाथ में खाली छड़ी थी । फिर-बिजली के उन दोनों बेटों के बीच शुरू हुआं एक भयानक युद्ध । निश्चित रूप से हवानची भी लड़ने के अच्छे तरीके जानता था और साथ ही उसके जिस्म में आश्चर्यचकित कर देने बाली शक्ति भी थी ।






इधर वतन ! मुजरिमों के बादशाह सिंगही का शिष्य ।


स्वयं सिंगही का कहना है कि वतन को उसने वह सब सिखाया है, जो स्वयं भी नहीं जानता ।… . .

एक-दूसरे से लड़ते-लड़ते लहूलुहान हो गए । न जाने वतन हबानची की पेटियों के कितने वार अपने शरीर पर झेल चूका था । न जाने हवानची के जिस्म की खवर किंतनी बार वतन के मुगदर ने ली थी !

वतन का सफेद लिबास खूँन के धब्बों से सज गया था ! उसमें कुछ उसका खून था और कुछ हवानची का ।

जगह-जगह से कपड़े फट भी गए थे ।


दोनों ही हिंसक भेडि़ये जैसे लग रहे थे ।

अन्त में-तब जबकि वतन के अपने मुगदर का वार पूरी ताकत से हवानची के चेहरे पर किया ।


पहले तो रंग-बिरंगे तारे नाच उठे हबानची की आँखों के सामने, फिर अंधेरे की एक गहरी चादर फैलने लगी । उसी समय हडिडयो का-मुगदर उसकी पसलियों से टकराया उसने महसूस किया कि वह बेहोश होता जा रहा है ।



अचेतना के सागर में खोते हुए-हबानची के मस्तिष्क मैं अाखरी बार यह आया कि अगर वह बेहोश हो गया तो वतन विकास इत्यादि को इस जलपोत से निकाल ले जाएगा उसने स्वयं को बेहोश होने से राकने की काफी चेष्ठा की, किन्तु उसने महसूस किया की वह लड़खड़ाकर गिर चुका है । पेटी उसके हाथ से छूट गई है और अब किसी भी तरह वह स्वयं को बेहोश होने से नहीं रोक सकेगा, तो बेहोश होने से पूर्व ही चीख पड़ा ----- " फॉयर !"
"फायर " और हवानची से वतन को यह उम्मीद जैसे पहले ही थी ।



हवानची का आदेश होते ही चारों तरफ से गनें गूंज उठी । सैकडों दहकते शोले वतन की तरफ लपके।


बस, खतरे का मुकाबला करने के लिए वतन अगर तैयार न होता तो न जाने कितनी गोलियां उसके शरीर में धंस चुकी होतीं ।




किन्तु वतन…उफ. । वतन ने साबित कर दिया कि विकास से किसी भी तरह कमं नहीं है बह । उसने एक ऐसी भयानक कला का प्रदर्शन किया, जिसका-प्रदर्शन एक बार स्वयं-विकास ने अमेरिका में किया था । वह कला विकास को स्वयं जैकी ने सिखाई थी ।

इस कला में सिंगहीं को महारत हासिल थी और इस समय वतन द्वारा उसी कला का प्रदर्शन इस बात का प्रमाण था कि सिंगही का यह कथन बिल्कुल सत्य है कि, उसके पास एक भी कला ऐसी नहीं है जो उसने वतन को न सिखाई हो ।


वह कला थी-लाठी की मदद से गोलियों से अपनी रक्षा करना ।



इस कला में लाठियाँ इस प्रकार धुमाई जाती हैं कि लाठी घूमाने वाले के चारों तरफ एक व्यूह-सा बना लेती है । कला का प्रवर्तन करने वाले के हाथ बिजली से भी कहीं अधिक. तेजी है घूमते-है । लाठी इस तेजी से शरीर के चारों तरफ घूमती, है कि एक व्यू-सा बन जाता है । चारों तरफ़ से चाहे जितनी भी गोलियां चलाई जायें, किन्तु गोली उसके शरीर तक नहीं पहुंच पाती । सारी गोलियां लाठी पर ही लगती हैं । प्रदर्शन करने वाला फूतींला और इस कला का माहिर हो।


प्रेरक पाठको, यहाँ मैं लिख देना आवश्यक समझता हूँ कि लाठी चलाने का यह तरीका मेरी कल्पना की देन नहीं है, बल्कि इस किस्म की लाठी चलाने वाले को मैं जानता हूँ और हाँ कोई चाहे तो मैं किसी को भी ' उससे मिलवा सकता ' हूं । लाठी का काम वतन छड़ी से ले रहा था।
एक व्यूह टानाए छड़ी उसके चारों ओर धूम रहीं थी । स्वयं वतन का जिस्म भी किसी फिरकनी की भाति धूम रहा था । छडी नजर नही आ रही थी, किन्तु धांय धायं के बीच गोलियों की छड़ से टकराने की आवाज भी गूंज रही थी ।



इस कला को देखकर चीनी हतप्रभ रह गए ।।



किसी की भी वतन की छडी़ नजर नहीं आ रही थी, किन्तु एक अजीब-सा-व्यूह वतन के चारों ओर देख रहेथे ।



साथ ही उनकी गोलियां वतन के-जिस्म तक पहुंचने से पहले ही उस व्यूह से टकराती और छिटककर दूर जा गिरती ।

नाजाने किस धातु की छड़ थी वह टूटी नहीं।


इस चमत्कृत कर देने वाला कला का प्रदर्शन तो कर है रहा था वतन क्रिन्तु स्वयं उसका मस्तिष्क परेशान था ।



गोलियां उस पर चारों तरफ से बरस रहीं थीं! जब तक वह अपने चारों और व्यूह बनाए हुए था तब तक बचा हुआ था परन्तु, व्यू बनाए हुए वतन के मस्तिष्क में प्रश्न था , आखिर कब तक इस छड़ को घुमाता रहेगा ।


कब तक इस व्यूह को बनाए रखेगा ।



एक घंटे--दो घंटे--तीन....चार.... कभी तो उसे रुकना ही पड़ेगा !


कभी तो वह थककर शिथिल होगा ही ? तब.....तब क्या होगा ? इनकी गोलियां उसके शरीर को छेद डालेंगी ?




तो तो इस खतरे से स्वयं को मुक्त करने क लिए वह क्या करे ?क्या ?



जिस तरह छडी को घुमाता हुआ वह स्वयं चकरा रहा था, उसी तरह उसके मस्तिष्क में यह प्रश्न चकरा रहा था।



' गोली चलाने वाले सैनिक उसकी यह कला देखकर गोली में चलाना भी भूल गए ।



हैरत से फिरकनी की भांति धूमते वतन और उसके चारों और चकराते उस अवेध व्यूह को देखने लगे थे जिसे गनों की गोलियाँ भी तोड़ न पा रही थीं ।

अपने मस्तिष्क में बस प्रश्न को लिए वहाँ कोई एक घंटे तक छड़ी घुमाता रहा । आखिर, अचानक उसके कानों में एक आवाज पड़ी--शाबाश-------शाबाश मेरे मिट्टी के शेर । कमाल कर दिया तुने ----" वाह !"
इस आवाज को वह पहचान गया ।

परन्तु सुन कर ठिठका नहीं । ब्यूह उसी प्रकार बना हुआ वह बोला----"मुझे बचाओ। बिजय चचा । अब मुझमें ज्यादा देर तक यह ब्युह बनाए रखने की ताकत नहीं है ।"

"अभी लौ बटन प्यारे ! तुम्हारी इस कला को देखकर रोंगटे खड़े हो गए हमारे, अब कमाल देखो हमारे ।"


विजय की इस आवाज के बाद फायरों की गति तेज हो गई !


फिर, कुछ ही देर बाद विजय की गुर्राहट स्वयं वतन ने भी सुनी । वह कह रहा था---""अपने-अपने हथियार फेक दो चीनी चमगादडों वरना तुम्हारा ये हवानची हमारे सामने फर्श पर बेहोश पड़ा है-हमारे रिवॉल्वर से एक ऐसी टाफी निकलेगी कि इसका सर तरबूज बन जाएगा । अमी तो इसके होश में आने की उम्मीद है ,किन्तु अगर ऐसा हो गया तो कभी होर्श में नहीं आ सकेगा हैं । वतन को नही पता कि चिनियों पर विजय के शब्दों की क्या प्रतिक्रिया हुई !


वह तो पागलों की तरह बस, अपने चारों-तरफ छड़ी घुमाए चला जा रहा था । उसका दिमाग बुरी तरह घूम रहा था । हर पल जैसे ऐसा लग रहा था कि वह अब गिरा---अब गिरा, मगर उस समय तक वह स्वयंको संभाले रखना चाहता था जब तक कि विजय की तरफ से उसे रुक जाने, का आदेश न मिले ।


पुन: विजय द्वारा चीनियों को दी गई चेतावनी उसके कानों में गूँजी-- ।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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तीसरी चेतावनी के बाद !


विजय की आवाज---"बस, मेरे मिट्टी के शेर ! अब बंद करो ये सर्कस का कमाल और-अपने हाथ से छड़ी छोडकर वंह लहराया और चक्कर खाकर धड़ाम से गिरा । इतनी देर से एक ही दिशा में धुमते-घूमते उसका दिमाग तरह भिन्ना गया था । सांस धोंकनी की भांति चल रही थी ।

यही कार था कि वह स्वय को संभालं नहीं सका ।


इसके बाद क्या हुया, वह कुछ न जान सका । उसकी आंखो के सामने काजल-सा अधकार छाता चला गया और मस्तिष्क को अवचेतना के गहन सागर में डूबने से वह न रोक सका, किन्तु होश के अन्तिम क्षण में उसे यह तसल्ली थी किं वह सुरक्षित है ।होश आया तो उसे छत दीवारें, फर्श अर्थात् सारा हाँल अब भी घूमता-सा प्रतीत हो रहा था । अभी तक उसका दिमाग हिलोरें ले रहा था । विजय का स्वर उसे ऐसा लग रहा था मानो वह स्वप्न में कहीं बहुत दूर से अारहा हो ।


विजय कह रहा था--"घबराओ मत बटन प्यारे,हमने संवार दिए हैं काम सारे ।"


आंखें खोल दी वतन ने, देखा-वह स्वयं एक लम्बी मेज पर पड़ा था । समीप ही विजय खड़ा था । सब कुछ तेजी के साथ घूमता प्रतीत हुआ उसे ।


उसने देखा उस हाँल में अनेक टी० वी० स्क्रीनें फिट थी ।

उनमें से सिर्फ एक टी० वी० अॉन था ।।


स्क्रीन पर जलपोत के चालक-कक्ष का दृश्य मौजूद था। दो चालक जलपोत को चला रहे थे ।। उनके चेहरे पर छाये भय को वतन स्पष्ट देख सकता था । अभी वह कुछ बोल भी न पाया था कि विजय ने कहा-----"घबराना मत बटन मियां, . साले सभी चीनी चमगादडों को मैंने निहत्थे करके एक कक्ष में बन्द कर दिया है, सिर्फ ये दोनों चालक ही स्वतन्त्र है और इतनी शराफत ये जलपोत को से इसलिए चला रहे हैं ,क्योंकि इन्हें पता है कि हम प्रत्येक पल इन्हें स्क्रीन पर देख रहे है और इनकी किसी भी हरकत से ईश्वरपुरी के लिए इनका टिकट कटा सकते हैं !"


वतन ने अपने दिमाग को नियन्त्रित किया । लम्बी मेज पर उठकर बैठ गया वह । पुन: सिर बुरी तरह चकराया ।


"अमां तुम, उठते क्यों हो, बटन प्यारे ? विजयं ने उसे रोकने का प्रयास किया ।। " चचा ।" होश में आने के बाद पहला शब्द कहा वतन ने ---" अपने चरणों की धूल तो लेने दो ।" कहने के साथ
ही मेज से उतरकर खड़ा हो गया वह। चरण स्पर्श करने के लिए झुका तो दिमाग ने एक इतना तेज झोंका खाया कि विजय के चरणों में गिर पड़ा ।।

" अमां , ये क्या उठा पटक करते हो ?" एकाएक बौखला गया विजय ।


वतन को चरणों से उठाया, गले से लगा लिया , बोला ---" तुम नई पौध की औलाद बहुत बदमाश हो । सालो ये नहीं सोचते कि क्या होगा , क्या नही ।"


" आपने ठीक समय पर आकर मुझे बचा लिया , चचा ।"



" साले ! " भर्रा उठा विजय का स्वर ---" पता होता है कि जहां छलांग लगा रहे हैं , वहां मौत ही मौत है, लेकिन नहीं --- दिमाग से काम नहीं लेंगें , बदले से मतलब , चाहे जो हो । दिमाग तो सालों ने टांड पर टागं दिया है ।"



" चचा । " वतन लिपट गया विजय से ----" बच्चा हूं आपका ।"



" अबे , हमारा बच्चा क्यों होता ?" छेड़ा विजय ने , " हमारा होता तो दिमाग से काम करता । साले तुम --- तुम विकास से कम नहीं । उसी की तरह मुर्ख हो---महामुर्ख ! तुममें से कोई सफल जासूस नहीं बन सकता । तुम दोनों को एक साथ लिखकर दे सकता हूं मैं कि तुममें से कोई सफल जासूस नहीं बन सकता । दोनों बहादूर हो , आवश्यकता से अधिक बहादूर हो और मेरा दावा है कि बहादूर आदमी कभी सफल जासूस नहीं बन सकता ।। जासूस आदमी बहादूरी या शरीरिक शक्ति से नही , बल्कि अपने दिमाग से बनता है और हकीकत ये है कि तुम्हारे पैदा होते ही 'तुम्हारा सारा दिमाग दीमक चाट गई ।"


" क्यों चचा , ऐसा क्या कर दिया मैंनें?"


" तो बेधड़क इस छड़ी के बूते पर इतने सैनिकों की मौजूदगी में हबानची से भिड़ना क्या दिमाग की बात थी ।?"

" उसने मुझे ललकारा था चचा ।"
"जो दुश्मन की ललकार पर तकरार कर बैठे, वह कभी सफ़ल जासूस नहीं बन सकता वटन प्यारे!" विजय कहता ही चला गया-"लेक्रिन जानता हूं कि मैं भैंस के आगे बीन बजा रहा हूँ । यह बीन साले उस दिलजले के आगे बजाते बजाते हम बूढे हो गए, लेकिन वंह भैस की तरह रेंकता ही रहताहै । एक छुटकारा मिला नहीं कि साले तुम पैदा हो गाए । उस साले नकली चचा की भी खोपडी खराब हो गई थी, जो तुम्हें पैदा कर दिया । तुम भी अपने गुरु का नाम रोशन. करोगे, क्योंकि दिमाग पैदल हो !"'

"ऐसी बात नही चचा !"


"तो और कैसी वात है बटन ?" उसी की टून में विजय ने प्रश्न किया ।



होश में आने के बाद पहली बार वतन के होंठों पर मुस्कान उभरी, बोला---" जिन बच्चों के ऊपर आप जैसों का साया हो चचा, वे मौत से क्यों डरें ? हम जानते हैं कि आप, अलकांसे चचा और महान सिंगही कवच बनकर हमेशा हमारी रक्षा करते हैं, फिर फिर क्यों न हम मौत से लड़े ?"



-'"ह्रम इत्तफाक से न पहुंचते बटन प्यारे, तब पता लगता ।"



"ऐसी उम्मीद न विकास को है चचा ,न मुझे । वतन ने कहा-बल्कि हमें विश्वास है कि जब भी मौत हम पर झपटेगी, आप तीनों मे से कोई उसे टाल देगा ।। इसी विस्वास पर तो मौत के कुऔ में कूद पड़ते हम । हमेँ यकीन है कि यमराज़ के हाथों में से भी झीन लायेंगे आप हमें ।"



-""साले हम-हम न हो गए, तुम जैसे सत्यवानों की सावित्री हो गए !"


विजय की इस बात पर उन्मुक्त ढंग से हंस पडा वतन ! उसके ठहाके की आवाज से मानो पूरे जलपोत पर फूलों की वर्षा हो उठी ।

विजय ने हंसते हुए वततं का चेहरा देखा---खून से लथपथ ! विजय ने देखा…हुंसंतै हुए भी उसकी आंखों में पानी था ।
समीप ही, मेज पर रखा वतन का चश्मा उठाकंर विजय अपने हाथों से वतन को पहनाता हुआ--बोला-"'इसे ,पहन लो बटन प्यारे, तुम्हारी आंखें नहीं देखी जातीं । ये आंखें एक कहानी कहती हैं ---- लम्बी कहानी । बचपन से लेकर तुम्हारे राजा बनने की कहानी !"


मस्तक पर बल पड़ गया वतन के ।


फिर मानो स्वयं को सम्भालकर बोला---" उस बात को छोडो चचा, ये बताओं कि ह्रवानची कहां है ?"



" वह साला तो अभी तक मेज के उस तरफ बेहोश पडा है ।" विजय ने कहा----"होंश में आ भी गया तो कुछ नहीं कर सकेगा । हमने बांध रखा है उसे, किन्तु आश्चर्य की बात ये है कि सारे जलपोत पर न कहीं सांगपोक है अौर न ही सिंगसी ! "



"वे दोनों कहां गये ?"



" यह भी जरुर पता लगायेंगे ।" विजय ने कहा लेकिन उससे पहले यह बताओं कि क्या तुम्हें मालूम हैं कि अपना दिलजला कहां है ?"



"सबसे निचली मंजिल के कमरा नम्बर दस मे ।" बतन ने बताया।



" हम जहां बैठे इन साले जलपोतों के चालक को देख रहे हैं ।" विजय ने कहा ----"तुम जाकर अपने दिलजले को ले आओ : याद रहे वहा किसी भी तरह की बहादुरी दिखाने की आवश्यक नहीं है । वहां जेम्स बाण्ड और बागारोफ जैसे महारथी होंगे फिलहाल उनमें से किसी को भी उस केैद से आजाद नहीं करना है । कमरे में से सिर्फ अपने दिलजले को निकालकर यहां लाना है ।"

" तब तो इस गन की आवश्यकता पड़ेगी चचा तो कहते हूये वतन ने गन उठा ली ।



""अवे....अबे !" बोखलाया बिजय-"इसकी क्या जरुरत है ?"


" यकीन रखो चचा, इसका दुरुपयोग नहीं करूंगा मैं ।" कहने के साथ ही-गन सम्हालकर हाँल से बाह्रर निकल गया वतन ।।


सूनी और साफ पड़ी गैलरी में से गुजरता हुआ वतन -अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ा । सबसे नीचे की मंजिल में कमरा नम्बर ढ़स के सामने ठिठक गया वह ।
दरवाजा बन्द था !



अन्दर से कुछ लोगों के आपस में बातचीत करने की आवाजें आ रही थीं ।


दरवाजा बाहर से बन्द धा । उसने धीरे के से सांकल खोली, इतनी धीरे से कि अन्दर किसी को सांकल खुलने का आभास न हो सका ।



फिर वतन ने एक तेज ठोकर दरवाजे में मारी ।


भड़ाक की आवाज के साथ किवाड़ खुलकर झनझना उठे !!


कमरे में उपस्थित बाण्ड , बागारोफ, नुसरत तुगलक औऱ विकास ने चौककर दरवाजे की तरफ देखा ।

उम पर दृष्टि पड़ते ही सबके मुंह से एक साथ निकला ----"वतन !"



"कोई भी हिला तो मेरी गन उसे स्थिर कर देगी ।" अपने स्वर में कठोरता उत्पन्न करके वतन ने कंहा----"सिर्फ विकास बाहर आए !"



सहित समी अवाक-से खडे़ वतन का चेहरा देख रहे थे !



और सभी पर दृष्टि रखे हुए वतन ने कहा------"तुमने सुना नहीं विकास ? तुम बाहर आओ ।"



एकाएक उसके आदेशात्मक स्वर को सुनकर सख्त हो गया विकास का चेहरा, गुरोंया----"क्या इस गन के बूते पर आदेश दे रहे हो ?"



वतन को लगा कि अगर उसने विकास को वास्तविकता नहीं समझाई तो र्वह भड़क उठेगा। यह भी वह समझता था कि उसके भड़काने से कोई भी जासूस कुछ भी लाभ उठा सकता है । बह सोचकर वतन ने विकास से नम्र स्वर में कहा-----"'ये गन तुम्हें आदेश देने के लिए तनी हुई नही है दोस्त, वल्कि इन सबको कक्ष, में रोक रखने के लिए तनी हुई हैं । बिजय चचा ने आदेश दिया है कि इस कमरे से सिर्फ तुम्हें निकालूं । उन्होंने हिदायत दी है कि इस कमरे से कोई और न निकल सके !"



"बिजय गुरु !" प्रसंनता से उछल पड़ा विकास--"वे पहुंच गए यहां' ?" " कहाँ है वह चिडीमार झकझका?" वागारोफ एक दम बिफर पड़ा-----"उस चौट्टी के ने ऐसा कहा !"

"बहको मत डबल चचा !" वतन ने गम्भीर स्वर में कहा--"डबल इसलिए क्योंकि विजय चचा तुम्हें खुद चचा कहते हैं । यह विजय चचा का ही आदेश है कि मैं फिलहाल सिर्फ विकास को ही इस कमरे से निकालूं !"




वतन की बात का तात्पर्य विकास अचछी तरह समझ चुका था ! तीव्रता के साथ वह लपका, औऱ वतन के समीप से गुजरकर कक्ष से बाहर आ गया ।



बाहर निकलने के लिए झपटा तो बागारोक भी था, किंन्तु इससे पूर्व कि वह दरवाजे तक पहुंचता, वतन ने एक झटके के साथ बागारोफ के मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया !



अन्दर बागारोफ भुनभुनता रहा अौर वतन बाहर से दरवाजे को सांकल लगाकर धूमा !



सामने खड़ा उसी की तरफ देख रहा था विकास !



दो बराबर की लम्बाईयां आमने-सामने खडी थीं । वतन तो विकास के नेत्रों में साफ-साफ झांक ही रहा था, लेकिन विकास को चश्मे के पीछे छुपी वतन की आँखों की स्थिति का आभास था । फिर दोनों एकसाथ एक-दूसरे की तरफ लपके -एक-दूसरे के गले से लग गये, बांहो में समा गए । उनके बीच छाई वह खामोशी उस महान प्रेम की सूचक थी, जिसकी अभिव्यक्ति के लिए कोई भी भाषा शब्द निर्माण न कर सकी । ।




-"ये तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है ?" विकास ने पूछा ।।



"तुम्हारी चाल में लंगड़ाहटं देखी है मैंने ।" वतन ने उल्टा प्रश्च किया----"क्या कारण है उसका ?"

जो कुछ विकास के साथ हुआ था, वह उसने वतन को बताया और जो वतन के साथ हुआ था, वह विकास को। जब 'यह भेद' खोला कि विकास हैरी के भेष में प्रयोगशाला से फार्मूलां चुराने गया था तो वतन का चेहरा खिल उठा, क्योंकि सारा काम वतन की योजना के अनुसार हो रहा था !

जब विकास को यह पता लगी कि हवानची इस समय कब्जे में है
और सांगपोक व सिंगसी गायब हैं, तो चेहरा सुखे पड़ गया उसका ! अपने चश्मे के पीछे से वतने ने देखा-----किसी खून पीने वाले भेंड़िये की तरह हो गया था विकास का चेहरा ।



तव, जबकि वे उस स्क्रीन कक्ष में पहुंचे ।


ऐक विचित्र ही दृश्य देखा उन्होने । न जाने कहाँ से विजय को एक रस्सी मिल गई थी । जिसे उसने कक्ष की छत में पड़े एक कुन्दे में डाल थी उस रस्सी पर ही हंबानची के उसने उल्टा लटका रखा था !!



न सिर्फ लटका रखा था जबिक हवानची होश में थां । विजय उसकी पसलियों में गुदगुदी कर रहा था !!



मजबूर से हवानची को एक विचित्र से अन्दाज में हंसना पड रहा था ।



"आशीर्वाद दो गुरु !" कहता हुआ विकास चरणों में झुक गया विजय के । श्रद्धापूर्वक उसने चरण स्पर्श कर लिए !



"किसका आशीर्वाद !" झुककर विकास के कान पकडकर विजय ने ऊपर उठाया और जब पूरी तरह से साबधान स्थितियों में खड़ा हुया-----------विकास तो कान पकडे बिजय के हाथ ऊपर उठ गए थे, बोला, "साले, तूं टाड हो गया है दिलजले, लेकिन अक्ल के पीछे अभी तक लठिया लिए घूम रहा है !"

" कहो तो सहीं गुरु, क्या गलती हो गई मुझसे ?"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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