चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़) complete

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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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माखनचोर तो सारी वास्तविकता जानते थे । दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिज्ञ ने उसे अपने शब्दजाल में फंसाया-वड़े बेवकूफ हो तुम । मां ने कहा और तुन युद्ध के लिए निकल पडे । हम तो देख हैं है कि तुम्हारे तरकश में तीर भी सिर्फ तीन ही हैं ।
युद्ध क्षेत्र मे पहुचने कुछ ही देर बाद तुम्हारे ये तीनों तीर खत्म हो जाएंगे, फिर क्या करोगे ?



गर्व से मुस्कराया बभ्रुवाहन, बोला…'मेरे पास तीन तीर है महाराज ! मुझे मालूम है कि मुझे दूसरा तीर प्रयोग करने की भी जरूरत नहीं पडे़गी । मैं एक ही तीर से सारे दुश्मनों का संहार कर दूंगा ।'



चतुर कृष्ण ने आश्चर्य प्रकट किया…"कैसी बेवकूफी की बात कर रहे हो ? भला यह कैसा तीर है जो संबक्रो एकसाथ मार देगा ?'


'मेरे तीर में ऐसी ही विशेषता है महाराज !' उसने कहा --- और यह सुनकर चौंकेंगे के सबको मारने के बाद भी मेरा तीर नष्ट नहीं-होगा बल्कि सुरक्षित वापस मेरे तरकश में आ जाएगा ।'


-"शायद कोई बेवकूफ ही तुम्हारी इस बात पर यकीन कर सकता है ।'



मुस्कराकर बभ्रुवाहन ने कहा-'युद्ध क्षेत्र में आप स्वयं देख लीजिएगा ।'



तुमने बात कुछ ऐसी कही है कि हम उस पर यकीन नहीं कर सकते ।' कन्हैया ने कहा…"और न ही युद्ध होने तक प्रतीक्षा कर सकते हैं ।‘




" गर्व में फंसे बभ्रुवाहन ने कहा-'तौ फिर आपको मेरी बात की सच्चाई का यकीन कैसे हो ?'



मन-हीँ-मन मुस्कराए मनमोहन । नीति-निपुण ने समीप के ही एक इमली के पेड़ की ओर संकेत करके कहा 'इस पेड़ को देखो, अगर तुम्हारे धनुष से छोड़ा गया एक ही तीर इस वृक्ष के सारे पतों को बेंधकर तरकश में वापस आ जाए तो मुझे तुम्हारी बात का यकीन हो जाएगा ।'



अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए आतुर बभ्रुवाहन ने सहर्ष माखनचोर की यह वात मान ती । उसने तीर छोड़ा ।



कृष्ण तो जानते ही है कि क्या होना है । उधर बभ्रुवाहन का तीर दरख्त के एकएक पते को बेंधने लगा और इधर माखनचोर ने उस दरख्त का एक पत्ता बभ्रुवाहन की दृष्टि बचाकर अपने पैर के नीचे दवा लिया ।।


अपनी इस नीति पर सांवरा मुस्करा रहा था ।


परन्तु-अन्त में सभी पतों को वेंधकऱ तीर जब श्रीकृष्ण के पैर पर लपका तो जल्दी से श्रीकृष्ण ने पैर हटा लिया, एक क्षण के लिये भी विलम्ब हो जाता तो तीर महाराज कृष्ण के पैर को जख्मी तो कर ही देता । उस अन्तिम पते को भी बेंधने के बाद तीर सीधा तरकश में पहुच गया । उसके बाद क्या हुआ ? श्रीकृष्ण ने वध्रुवाहन को युद्ध में भाग लेने से कैसे रोका ?
यह तो महाभारत का कथानक है, और उसे यहाँ कहने की मैं कोई जरुरत महसूस नहीँ करता ।



मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि आज के बैज्ञानियों ने क्या कोई रिवॉल्वर ऐसी बना ली है, एक ही गोली से सारे दुश्मनों को माररकर वापस पुन: अपनी पूर्णशक्ति' जितनी क्षमता कें साथ रिवॉल्वर में अा जाए ?



क्या है आघनिक युग में ऐसा हथियार ? नहीं ।



तो फिर हम कैसे कह सकते है कि आज का बिज्ञान सबसे ऊंचा है ? उपयुक्त किस्म के अनेक उदाहरण देकर मैं यह सिद्ध कर सकता हू प्राचीन युग विज्ञान के मामले में आधुनिक युग से पीछे नहीं बल्कि कुछ आगे ही था ।



वह सभ्यता समाप्त हो गई । उस युग में क्या था, क्या नहीं--' हम पूर्णतया नहीं जानते है ।




हां , भारत के चार महान ग्रन्थ हैं----चार वेद'-उन चारों ही वेदों में अलग-अलग-चार क्षेत्रों का गहरा ज्ञान है, सब जानते हैं क्रि ऋग्वेद में विज्ञान से सम्बन्धित ज्ञान थे । उस महान भारतीय ग्रन्थ के एक-एक दोहे में एक-एक फार्मुला था । भारत का पिछला इतिहास खून से लिखा गया है । पूरा अनगिनत लड़ाइर्यों से भरा पडा है । उन्हीं लड़ाइर्यो के चक्रवात में भारत की न जाने जितनी विशेष चीजें गुम होकर रह गई । चारों वेद भी गुम हो गए ।



कुछ पता न लग सका कि कौन कौन-सी लडाई में उन वेदों की प्रतिलिपियां किसके हाथ लगी ।



सम्भावना यह प्रकट करते हैं कि कोई भी उन वेदों की मूल प्रतिलिपि न'कब्जा सका । वे महान ग्रन्थ पृष्ठों में बदल गए । कोई पृष्ठ किसी के हाथ लगा और कोई पृष्ठ किसी के । अत: उन महान ग्रन्धों में जो ज्ञान था, वह पूर्णतया किसी को भी प्राप्त न हो सका । उस लूटखसोट से संस्कृति का जो ज़र्रा--ज़र्रा जिसके हाथ लगा, वह ले उड़ा ।



ऋग्वेद का भी यही हाल हुआ ।



उसके भी विभिन्न पुर्जे लोगों के हाथ लगे ।



और आज-मेरा बिश्वास है कि आधुनिक युग में जितने भी चमत्कृत करने वाले आविष्कार है, उसमें ज्यादातर का आइडिया उसी ऋग्वेद में से लिया गया है । मेरे विचार से कहीं किसी ने कोई नई बात नहीं निकाली है, आधुनिक युग का समूचा विज्ञान ऋग्वेद की देन है ।


मेरा यह आविष्कार' जो मैंने क्रिया है-यह भी ऋग्वेद की देन है ।



अब सुनिये कि मैंने यह आविष्कार कैसे किया ?


मुझे अपने माता-पिता और बहन से बहुत प्यार था । फलवाली बूढी दादी मां से भी असीम प्यार करता था । न जाने क्यों मेरा दिल चाहता था कि मैं अपने माता-पिता की आवाज पुन: सुनूं



बचपन में मेरी बहन से जो बातें हुंई थीं…उन्हें सुनू ?



लेकिन...सवाल यह था कि कैसे ?



कैसे मैं उनकी बातें सुन सकता हूं ?


आवश्यकता आविष्कार की जननी है ।

मुझे याद अाया--ऋग्वेद में लिखा है कि आवाज कभी नहीं मरती । आवाज आत्मा की तरह अजर अमर है । हम जो कुछ बोलते हैं, आज तक जितने भी इन्सानों ने जो कुछ बोला है, वह " ब्रह्मंड में सुरक्षित है । ऋग्वेद में लिखी इस जानकारी से भी कहीं
ज्यादा मेरा अपना विचार था कि व्रह्मांड में न सिर्फ यह सुरक्षित है जो इन्तान ने बोलता है बल्कि इससे भी ज्यादा यह भी सुरक्षित है जो कभी किसी ने सिर्फ सोचा है, बोला नहीं है । ऋग्वेद ईंसी जानकारी और माता-पिता की आबाज सुनने की आवश्यकता ने मुझे यह प्रेरणा दी कि क्यों न मैं किसी यन्त्र का आविष्कार करूं जिससे ब्रह्माण्ड में बिखरी अपने माता-पिता, बहन और फलबाली दादी मां की आबाज समेट सकू। मैं किसी ऐसे यन्त्र का आविष्कार करने में व्यस्त हो गया ।

इस यन्त्र को बनाने का विचार मेरे दिमाग में चमन की सत्ता संभालने के दो महीने बाद अाया था, अत: चार महीने में मैंने अपनी लगन, परिश्रम और प्रतिभा से वह यन्त्र बनाने में सफलत अर्जित कर ली है ।




आज़ अपने-वनाए इस यन्त्र के माध्यम से मैं खोई हुई आवाजें स्पष्ट सुनता हू!


बस, जब इस यन्त्र में एक और विशेषता यह भी भरनी है यह ब्रह्माण्ड से आवाजों के अलावा उन विचारों को भी समेट ले जो अभी मेरे माता-पिता ने सोचे थे । उम्मीद है, सारी दुनिया क्रो मेरा यह आविष्कार पसन्द आया होगा ।


हर समाचार-पत्र में इसी अाशय का समाचार था ।


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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

Post by Jemsbond »



अलग-अलग अखबारों ने अपनी अलग-अलग शेली-में यह खबर दी थी ।


इस खबर ने'सारी दुनिया में जैसे एक हलचल सी मचा दी ।


चीन, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान इत्यादि दुनिया के सभी राष्ट्र चोंक पड़े ।


खुद को बहुत धुरन्धर वैज्ञानिक समझने वालों की तो खोपड़ी ही झन्ना गई।
सोचने लगे…यह महान आविष्कार हमारे पास क्यों नहीं है । जिस दिन यह समाचार अखबार में प्रकाशित हुआ था, उस दिन विकास को झंझोड़कर धनुषटंकार ने ज़गाया था ।



धनुषटकार के जगाने पर विकास चौंका ।


यह पहला ही मौका था कि जब धनुषटंकार ने उसे सोते से जगाया था । अभी उसने आंखें खोली ही थी, कि उसकी नजर अपनी आंखों के सामने पडे हुए एक अखबार पर पडी, नीद से भरी मिचमिचाती आंखों से उसने वे शब्द पढे जो-अखवार में उसे सबसे ज्यादा मोटे चमके थे । लिखा था…


------चमन के राजा वतन का आबाजों पर कब्जा ।


चौंक कर उठ बैठा विकास !


'जल्दी-जल्दी यह सारी खबर पढ़ गया, पड़ने के बाद उसने' धनुषटंकार की तरफ देखा । बेड के समीप ही एक 'कुर्सी पर बैठा धनुषटंकार बड़े आराम से सिगरेट के सुटॄटे लगा रहा था ।



विकास को अपनी ओर देखकर वह मुस्कुराया, मुस्कराने के प्रयास में बन्दर के मुंह की अजीब-सी आकृति बन गई ।


खुशी की एक किलकारी के साथ विकास को उसने आंख भी मारी और हाथ बढा दिया । विकास ने गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया । वह उसकी खुशी का अनुमान लगा सकता था कि अखबार में अपने भाई वतन की इस सफलता के विषय में पढकर मोण्टी को कितनी खुशी हुई होगी ।।

…तभी तो हाथ मिलाते हुए विकास ने उससे कहा---"बधाइं हो मोण्टो ?"


और खुशी में उछलकर धनुषटंकार विकास की गर्दन पर लटक गया और उसके चेहरे पर बेशुमार चुम्बन लेने लगा ।




विकास सोचने लगा-कैसा मजबूर है मोण्टो । जुबान से अपनी खुशी भी जाहिर नहीं कर सकता। न जाने कब तक वह विकास का चेहरा चूमता रहा, अगर उसी वक्त फोन की घण्टी न बज गई होती, वह विकास से अलग हुआ , विकास ने रिसीवर उठाया और बोला---" यस ,मैं विकास बोल ' रहा हूं ।"


" रोका किसने है---बोलते रहो ।" दूसरी तरफ से आवाज आई ।



" कौन, गुरु ?" बिकास ने कहा-"गुरु आपने आज का अखवार पढ़ा हैं" -



"पढा नहीं प्यारे, बल्कि यूं कहो कि चाट लिया है ।" विजय ने कहा ---" जिस लिये तुम पूछ रहे हो, वह खबर भी हमने पढ ली है ।"

-'"तो फिर बधाई हो गुरु !" विकास ने कहा"--"वाकई मानना पडेगा कि वतन दुनिया का सबसे बहा वैज्ञानिक है । उसका पहला आविष्कार यानी समुद्र के पानी से असली गोल्ड जैसा ही नकली गोल्ड बनाना तो तारीफ के लायक था ही, लेकिन यह,यह ब्रह्माण्ड में बिखरी आवाज को. समेटना-वास्तव में गुरु, वतन इस युग में सबसे महान वैज्ञानिक है ।"



"और इस दूनिया का सबसे बड़ा मूर्ख भी वही, प्यारे दिलजले?" विजय कहा ।




-"क्या मतलब नं गुरु ?" विकास चौंका ।




…"कई बार कहा प्यारे दिलजले कि जब तक मूंग की दाल में भीमसेनी काजल डालकर खाना शुरु नहीं करोगे तब तक हमारी बातों का मतलब तुम्हारी समझ में ना अायेगा । फिर भी अगर मतलब समझना चाहो तो हमारे दौलतखाने पर अा जाओ ।" इतना कहने के साथ ही दूसरी तरफ से विजय ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।

"क्या बात है गुरू, आप कुछ सुस्त से क्यों हैं ?" विकास के रिसीवर क्रेडिल पर रखते ही धनुषटंकार ने लिखा हुआ एक कागज का टुकडा उसकी आंखों के सामने का दिया ।



………"गुरु का कहना है मोण्टो प्यारे कि इस दुनिया में वतन से ज्यादा बढकर मुर्ख कोई नहीं ।" विकास ने कहा ।


धनुषटंकार चीखकर इशारे से पूछा-"ऐसी क्या बात हुई ?"



"बात का तो मुझे भी नहीं पता ।" विकास ने कहा---"लेकिन यह तो तुम समझते ही हो कि की बात कभी गलत नहीं होती । हम कई वार गलत सलत पर उनसे लढ़ पड़ते हैं ।--मगर थिंकिंग हमेशा उनकी ही सही निकलती है जब वतन को उन्होंने दुनिया का सबसे बड़े मुर्ख की संज्ञा _ दी है तो इसमें कोई शक नहीं कहीं ना कहीं कोई गड़बड़ जरूर है । "



-"तो क्या स्वामी के पास चलें ?" धनुषटंकार ने लिखकर पूछा ।


" बिल्कुल ।" विकास ने कहा…"बस पन्द्रह मिनट में मैं निबट लूं और फोरन चलते हैं ।"


कहने के साथ ही विकास ने सीधी जम्प बैड से बाथरूम में लगा दी ।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

Post by shubhs »

मस्त ☺continue
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

Post by Jemsbond »

shubhs wrote:मस्त ☺continue
thanks
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

Post by Jemsbond »

करीब तीस मिनट बाद वे दोंनों विजय के बेडरूम में, बेड के समीप पडे़ सोफों पर बैठे विजय का मुंह देख रहे थे वे और वेड पर समाधि-सी-लगाए बैठा था विजय । विजय उन्हें इसी पोज़ में मिला था और वे दोनों विज़य के चरणस्पर्श करने के बाद सोफों पर बैठ गये थे ।

" पुर्ण सिंह !" विजय के कुछ कहने से पहले विकास चीखा ।


" आया सरकार ।" इस तरह प्रविष्ट हो गया जैसे इस बात के इन्तजार में कमरे के बाहरं ही खडा था कि कब उसे आवाज लगे और कब बह अन्दर जाए । "



" गुरु की समाधि तोड़ने के लिए जरा एक बाल्टी पानी लाओ ।"


" नलों में पानी नहीं है बच्चा ।" बिजय उसी तरह समाधी लगाए किसी सन्त की तरह बोला…"ज़ब से हमारे देश ने दूसरी आजादी पाई है तब से पानी गायब है । बिजली गायब है, ये मत समझना कि सब कुछ गायब है---है भी वहुत कुछ । गुन्डागर्दी है, महंगाई ने भी पैंतरा बदल लिया है । अब जरा सौंने को बेचकर महंगाई को उल्टा करके पंखे पर लटकाने की तैयारी है ।"



. …"मैं अभी नहाकर अाया हूं…नल आ रहे है ।" विकास ने कहा-"पूर्णसिंह, तुम पानी लेकर आओ ।"



" अजी पानी साले को क्या अाते-जाते देर लगती है ।" विजय ने कहा---"जितनी देर में तुम अपनी क्रोठी से यहाँ तक अाये हो, उतनी देर में तो पानी हमारे नलों से गायब होकर गांवों की टूयूबवेल में पहुंच चुका होगा ।



"मैंने रात पानी भरकर रख लिया था । ठण्डा भी होगा ।पीते ही मजा आएगा ।" पुर्ण सिंह ने कहा --" हुक्म हो तो लाऊं ?"



'"अबे चल नमकहराम ।” विजय ने आंखें खोल एकदम पूर्णर्सिंह को डांटा-साले, हमारा ही नमक खाता है और उसी नमक में किरकिल मिलाता है । कल्लो भटियारी की कसम, जिस तरह देश से कांग्रेस का पत्ता साफ हो गया उसी तरह अपनी कोठी से हम तेरा सफाया कर देगे " इस तरह-काफी देर तक विजय ऊबड़-खाबड़ बाते करता रहा ।

इस हद तक कि आज तो विकास भी परेशान हो गया उससे
आज सुबंह-सुबह से न जाने उसे क्या दौरा पंडा था कि हर बात' को राजनीति में घसीट लेता ।



बडी मुश्किल से बह बिज़य को लाइन पर लाने में सफल हुआ ।



जब से यह आया था, न जाने जितनी बार वया प्रश्न कर चुका था कि फोन पर वतन क्रो उन्होंने मुर्ख क्यों कहा था ?


उस वक्त विकास को राहत मिली जब विजय ने कहा …'"मूर्ख नहीं प्यारे, दुनिया का सबसे बड़ा मूर्ख कहा था ।"


" लेकिंन क्यों ?"



इसलिये कि उसने अखबारों के द्वारा अपने इस आविष्कार का दिंढोरा पीटा ।"


"क्या मतलब है ?"

" लगाता है, मूंग की दाल खाकर नहीं अाए हो ?" विजय ने कहा ।"


" मेरा कहने का मतलब यह है गुरू कि अखबारों को उस आविष्कार के बारे में बताकर उसने क्या मूर्खता की ?" विकास ने पूछा…"जब भी कोई देश बड़ा काम करता है, बह अपनी सफलता को दुनिया के सामने रखता है । अमेरिका ने जब बम बनाया----- अखबार में दिया । न्युट्रान खबर भी अखबार दी गई । रूस या अमेरिका का भी यान अन्तरिक्ष की तरफ रवाना होता है तो महीनों पहले उसृका प्रचार क्रिया जाता है । इससे विश्व के अन्य राष्ट्रों की नजर में उस देश का सम्मान बढता हैं ।"



"‘मातूम है, ऐसी ही एक मुर्खता भारतीय वैज्ञानिक डाँक्टर भावा ने भी एक बार की थी ।" विजय ने कहा-"उसने कहा था कि वह भारत के ऊपर कुछ किरणों का जाल बिछा देगा कि अणुबम भारत का कुछ नहीं सकेगा ।"



-"क्या कहना चाहते हैं आप ?-"

" इस घोषणा के बाद मालूम हैं डॉक्टर भावा का क्या अन्जाम हुआ था ?" विजय ने पूछा ।


"उनका विमान क्रेश हो गया था और वे मारे गए थे ।" विकास ने कहा ।



"डॉक्टर भावा का विमान क्रेश हुआ नहीं था प्यारे दिलजले, बल्कि क्रेश किया गया था ।" विजय ने बताया-----"पहाडी पर विमान टकराकर चूर चूर हुआ था, मालूम है, बाद में परीक्षण में पाया गया कि उस पहाडी में कृत्रिम रूप से चुम्बकीय शक्ति पैदा की गई थी । यह तो आज तक पता नहीं लग सका कि यह हरकत किस देश की थी, मगर हां यह सारी दुनिया को पता था कि डॉक्टर 'भावा' का विमान उस पहाड़ी के उपर से गुजरेगा । बस दुश्मन ने उस पहाडी में चुबकीय शक्ति पैदा की और जिस उद्देश्य ' उन्होंने यह काम क्रिया था, बह पूरा हो गया यानी उस पहाडी की चुम्बकीय शक्ति ने विमान को अपनी और खींचा और पहाडी से टकराकर विमान टुकडे-टुकडे हो गया ।"



"मगर यह कहानी को -दोहराकर अाप कहना क्या चाहते हैं ?"



"यही कि विश्व की कोई शकित किसी दूसरे ढंग से इस कहानी को दोहरा सकती है ।"

सुर्ख हो गया विकास का चेहरा, गुर्रा उठा उस नापाक शक्ति को जलाकर खाक न कर दूंगा मैं ।"


"जब वह पहले ही वतन को समाप्त कर देगी तो तुम्हारे खाक करने से क्या लाभ होगा ?" विजय ने कहा---"तुम दिमाग से काम न लेकर व्यर्थ के जोश में अाते हो प्यारे दिलजले । मैं कहता हूं कि वतन के मरने के बाद अगर तम सारी दुनिया क्रो भी जलाकर खाक कर दो तो क्या वतन लौट अाएगा ? क्या उसका बह आविष्कार लौट अाएगा जो उसने किया है ?"


विकास ने उपने दिमाग को नियंत्रण में किया, बोला--" तो क्या करें गुरू ?"


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