चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़) complete

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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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उधर धनुषटंकार दूरबीन आंख से सटाये प्रयोगशाला की छत क्रो कवर किए दहकती किरणों के उस बारीक जाल को देख रहा था, उधर अलफांसे नंगी आंखों से उस जाल को देखने की असफल कोशिश का रहा था ।"
" इस तरह कोशिश करने से कोई लाभ नहीं है, चचा !" वतन ने कहा-----"इस विशेष दूरबीन की मदद के बिना, कुछ नहीं दिखेगा ।"



प्रयोगशाला की इमारत पर से नजरें हटाकर अलफांसें ने वतन पर नजरे गडा दीं, बोला…" उनकी विशेषता नहीं बताओगे ?"



" सुनिए ।" रहस्यमय ढंग से मुस्कराया वतन-----"भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर भावा का नाम तो सुना ही है सारी दुनिया जानती है कि उन्होंने किसी ऐसी किरणों का जिक्र किया था जिनकू मौजूदगी में अणुबम की विशेषता एक गेंद से बड़कर न हो । "



"'क्या कहना चाहते हो ?"



" मेरी प्रयोगशाला की छत को कवर किए जो किरणे आपने देखीं, वह डाँक्टर भावा का ही आविष्कार है ।"



"क्या मतलब?" अलफांसे बूरी तरह चौंका ।



"मतलब यह चचा कि जिन किरणों का आविष्कार भावा करने वाले थे, उन्हें तो दुश्मनों ने यह अविष्कार पुर्ण
करने से पूर्व ही मोत की गहरी नीद सुला दिया ।” गम्भीर स्वर में वतन कह रहा था-""मगर उनका वह अधूरा आविष्कार मैंने पूर्ण कर लिया है ।"


" कैसे ?"'


"वेवज एम' द्वारा ।"



"वेवज एम ।" अलफांसे ने दोहराया-"वेवज एम क्या है ?"'




" यह मेरे उसी यन्त्र का नाम है, जिसके बारे में विश्व के अखबारों में छपा है ।" वतन ने वताया ब्रह्माण्ड से आवाजें कैच करने वाले अपने यन्त्र का नाम मैंने 'वेबज एम' रखा है ।

इसी ’वेवज एम' द्वारा मैंने ब्रह्माड में-बिखरी डॉक्टर भावा की आबाज क्रो कैच क्रिया और उसी के आधार पर भावा के उस अधूरे कार्य को पूर्ण क्रिया । जिस आविष्कार क्रो करने से पहले डॉक्टर भावा दुश्मनों के षडृयन्त्र का शिकार हो गए, उसको मैंने उन्हीं की आवाज से पूर्ण कर लिया ।"



" क्या डॉक्टर भावा इन किरणों का फार्मूला तेयार का चुके थे ?"



-"बेशक ।" वतन ने बताया----"" ब्रह्मड में मुझे उनकी आवाजें मिली हैं तो बेशक वे फार्मूला तैयार का चुके ।"




"जरा स्पष्ट करके बताओ !"
"आपक्रो याद होगा कि डाक्टर भावा के साथ उस विमान में जिसके क्रेश होने पर वे मारे गए, उनका एक सहयोगी भी था जो उन्हीं के साथ मारा गया । व्रह्मांड में से मुझे डॉक्टर भावा और उनके उस सहयोगी की आवाजें मिली हैं, आवाजें उस वक्त की हैं जब वे दोनों इन किरणों के बारे में बांते कर रहे थे । मेरे ‘वेबज़ एम' ने सबसे पहले डॉक्टर भावा की वह आवाज पकड़ी ---"किरणों का फार्मूला मेरे दिमाग में बैठ चुका है ।"



" क्या अाप मुझे बतायेंगे ?" यह आवाज उनकें सहयोगी की थी ।"



" क्यो नहीं !" ‘वेवज़ एम' द्वारा ब्रह्मांड से कैच की गईडाँक्टर भावा की आवाज…'"दुनिया मेँ मात्र तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जिस पर हम आंखें बन्द करके विश्वास कर सकते हैं । गौर से सुनो-हम तुम्हें बता सकते हैं कि अणुबम की शक्ति को हीन करने वाली किरणे किस तरह बनाई जा सकती हैं । ध्यान से सुनना और जहाँ कहीं भी तुम्हें कोई कमी नजर अाए, फौरन रोक देना ।"




"इस तरहृ ....!" वतन ने कहा-"ब्रह्माण्ड में बिखरी डॉक्टर
भावा और उनके सहयोगी के बीच हुई समस्त बातें मैंने 'बेवज एम' द्वारा इकटृठी कर ली । उन आवाजों में डॉक्टर भावा ने अपने सहयोगी को किरणों का फार्मूला बताया था । बीच-बीच में उनका सहयोगी तरह तरह के प्रश्न करता था । बस, मुझे फार्मूला मिल गया और फिर मुझ जैसे व्यक्ति को फार्मूले के आधार पर किरणों का आविष्कार फेरने में भला क्या दिक्कत पेश आ सकती थी ? प्रयोगशाला के ऊपर उन किरणों का जाल आपने देखा ही है ।"



"क्या सचमुच ये वही किरणे हैं ?" अलफासे ने पूछा ।


"निसन्देह ।” वतन का जबाब था-"प्रयोगशाला में चलकर मैं डॉक्टर भावा और उनके सहयोगी ही आवाज आपको सुना सकता हूं । 'वेवज एम' द्वारा मैंने ब्रह्मांड से उन्हें कैच करके टेपरिकॉर्डर में भर लिया है । प्रयोगशाला के ऊपर आपने वहीं किरणे देखी हैं जिनकी छतरी के नीचे समूचे भारत क्रो अणुबम के भय से मुक्त रखना डॉक्टर भावा का ख्वाब था ।"



कई क्षण तक सोचता ही रह गया अलफांसे, फिर बोला ---" तुम महान हो वतन ! बेशक तुम आधुनिक दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक हो । जो तुमने किय् है, उसे आखों से देखने के बावजूद यकीन नहीं अाता कि तुम इतना सब कुछ कर सकते हो ।"
'मैंने क्या किया है, चचा ?" वतन ने कहा-"मैंने तो सिर्फ 'वेवज एम' का आविंष्कार क्रिया है वाकी ये किरणे तो डॉक्टर भावा का आविष्कार हैं । महान तो वे थे जिन्होंने इन अजीबोगरीब किरणों का… आविष्कार कर लिया था । मैंने क्या क्रिया----सिर्फ यहीं किया जो डॉक्टर भावा अपने सहयोगी को बताते रहे ।"



'‘दुनिया में इतने बड़े-बड़े वैज्ञानिक पडे़ हैं ।" अलफांसे ने कहा…"उन्होंने क्यों नहीं डाँक्टर भावा के इस अधूरे आविष्कार को पूर्ण कर लिया ?"



" उनके पास 'बेवज एम' कहां'था ?"' '



" 'वेवज एम’ का आविष्कार ही तो तुम्हारी महानता है ।" अलफांसे ने कहा…"आज तक कोई सोच भी नहीं सका कि ब्रह्माण्ड से आवाजें कैच करने का कोई यन्त्र भी बनाया जा सकता है । तुमने यह यन्त्र बना लिया । उस यन्त्र की मदद से ब्रह्मांड में
डाँक्टर भावा... ।"



…"ओह-चचा !” उसे बीच में ही रोक दिया वतन र्ने-"आप तो मेरी तारीफ करने लगे । बात तो सिर्फ यह थी कि मैं आपको वे प्रबन्ध बता रहा था' जो प्रयोगशाला की सुरक्षा के लिए मैंने किए है । अाप तो एक ही प्रवन्ध देखकर उसी में खो गए ।"



अोर-वास्तव में जैसे वह उन्हीं किरणों में खोकर रह गया था अलफांसे ।


उसने उपने सिर को झटका देकर, मस्तिष्क को विचार मुक्त किया और फिर ब्रोला-" हां -- खैर, और क्या प्रबन्थ किए हैं ।



"आइए मेरे साथ ।" वतन ने उनसे कहा और कक्ष से बाहर की तरफ कदम बढ़ा दिए ।



धनुधटंकार भी अपनी जाल से दूरबीन हटाकर उनके के साथ-साथ चल दिया ।



वे चारों राष्टपति भवन के बाहर निकले, द्वार पर ही वतन की चमचमाती हुई सफेद कार खड़ी थी । दूध. जैसे सफेद कपडे पहने ड्राइवर ने उसका अभिवादन-क्रिया और स्वागतार्थ कार के दरचाजे खोले ।



कुछ ही देर बाद कार अपने गन्तव्य की तरफ रवाना हो गई ।



"लेक्रिन तुमने अखबारों में इन किरणों के बारे में तो कोई स्टेटमेंट नहीं दिया था वतन ?" अलफांसे वे कहा !



" तभी तो कहता हूँ कि मेरे स्टेटमेंट से जैसा आपने और विजय चचा ने सोचा, उतना मुर्ख नहीं हूं मैं ।वतन ने
वताया-अखबार बालों को मैंने उतना ही बताया जितना बताना चाहिए ।"
वास्तव में अलफांसे उस प्रयोगशाला की सुरक्षा, से प्रभावित हुआ ।।



परन्तु----जो उसे करना था, यह सुरक्षा उसे टाल नहीं सकती धी । वतन द्वारा प्रयोगशाला की सुरक्षा के प्ररयेक प्रबन्ध को ध्यान से देखता और दिमाग में बैठाता हुआ अलफासे उसके साथ चला ।




समुचे इन्तजाम को देखकर उसकी आंखों में जो चमक उमरी वतन, धनुषटंकार अथवा अपोलो में से कोई नहीं देख सका था । उनंके साथ चलता हुआ यह इमारत क्री तरफ बढने लगा । अभी वे इमारत से पचास गज दूर ही थे कि बीच में एक
खाई अा गई ।



वतन के साथ-साथ सभी उस खाई के क्रिनारे पर ठिठक गए ।



अलफांसे ने देखा---यह खाई इमारत की दीवार के साथ-साथ चली गई थी ।




…'"जरा इस खाई में झांकिए चचा ।।" वतन ने कहा ।



अलफांसे ने झांका तो उस आदमी कर दिल भी धक् से रह गया ।



खाई अत्यन्त ही गहरी थी । उसके अनुमान से पच्चीस गज नीचे पानी का ऊपरी तल नजर अा रहा था । उस तल से नीचे खाई और कितनी गहरी है, यह अलफांसे अनुमान न लगा सका । अभी वह झाक ही रहा था कि पानी में उसे जोरदार हलचल महसूस हुई ।




…"इमारत की दीवार के सहारे--सहारे चारों तरफ यह खाई बनाई गंई है ।" वतन ने बताया-----"तो आप इसकी "देख ही रहे हैं । यह चौडाई मैंने चेतक को ध्यान में रखकर बनाई है ।।




"चेतक कौन ?" अलफांसे ने पूछा ।



"कमाल है !" मुस्कराते हुए वतन ने कहा-"चैतक को नहीं जांनत्ते आप ।।चेतक वही-भारतीय इतिहास के महायोद्धा महाराणा प्रताप का घोडा । उसी को ध्यान में रखकर मैंने इस खाई की चौड़ाई 50 गज रखी है ।"
" घोडे़ का इस खाई से क्या मतलब ?"

" कभी कभी तो अाप ऐसी बात करते हैं चचा, जैसे कुछ जानते ही न हों !" वतन बोला-"हालांकि इस जमाने में 'चेतक' जैसा कोई घोडा है नहीं और होगा भी तो चेतक भी इतनी चौडी़ खाई को एक ही जम्प में कभी पार नहीं कर सकेगा ।"



-"ओह !" अलफांसे इस तरह बोला, जेसे अब वह वतन के कहने का मतलब समझा हो, बोला…"लेकिन क्रिसी घोड़े को जम्प लगाकर क्या इसमें मरना है ? मान तो कि कोई घोड़ा इस खाई को एक ही जम्प में पार कर भी जाता है तो जाएगा कहां ? इमारत की दीवार से टकरा जाएगा । नतीजा यह होगा कि वह खाई में जा गिरेगा ।"



-"अब मैं आपको यह भी बता दूंकि यह खाई कितनी गहरी है ।" वतन ने कहा…"क्योंकि अाप इसकी गहराई को सिर्फ वहीं तक देख सकते हैं जहाँ तक पानी भरा हुआ है पानी कितने भाग में भरा है-यह अाप नहीं जान सकते ।"




" तो बता दो !" अलफांसे ने कहा ।




खाई की गहराई का आइडिया मैंने कुम्भकरण की खोपड़ी से लिया था ।" वतन ने बताया ।



‘"कुम्भकरण की खोपडी़ ।।" अलफांसे चौंका ।



-"नर्डी समझे ना ? वतन पुन: मुस्काराता हुआ बोला-समझाता हूं आपको । यह उस समय की बात जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था । उसमें पाण्डवों की विजय और कौरवों की पराजय हो गई थी । अपनी इस विजय पर पाण्डवों को गर्व हो गया था । उन्होंने महाभारत जीता था इसलिए वे यह समझने लगे कि दुनिया में न उनसे बढकर कोई योद्धा हुआ है और न है ।

--उसी गर्व में चूर एक बार हंसते हुए भीम ने श्रीकृष्ण से कहा…'भगवान हम बहुत ही परेशान हैं ।' किसी नदी तालाब, नहर में इतना पानी ही नहीं है जिसमें हम आराम से नहा सकें । हर जगह नहाने की कोशिश की, किंतु घुटनों से ऊपर पानी ही नहीं जाता । मतलब यह कि बाकी शरीर पर पानी लोटो से डालना पड़ता है ।। आराम से नहाने की कोई जगह ही नहीं है ।"




" हंसी में कहे गए इन शब्दों में छुपे गरूर को श्रीकृष्ण ने नोट कर लिया । अब नीति-निपुण कन्हेैया क्रो उनका गरूर तोड़ना आवश्यक भी लगा । अपने सांवरे होंठो पर आकर्षक मुस्कान बिखेरते हुए बोले…चलोो,'आज हम तुम्हें नहलाते हैं ।।

इस तरह, वे पांचों पाण्डवों को लेकर चल दिये ।।

"एक बड़े-से तालाब के किनारे जाकर श्रीकृष्ण ने उन्हें खड़ा कर दिया और भीम से बोले…‘इसर्में तुम जितना चाहो, नहा सकते हो ।'



न सिर्फ भीम बल्कि पांचों ही पाण्डव मुस्करा उठे थे ।



----- सोचकर कि श्रीकृष्ण एक छोटे-से तालाब में उनसे नहाने के लिए कह रहे हैं ।





"भीम ने कहा-'क्यों मजाक करते हो भगवान ?"



"मजाक नहीं करते ।’ चतुर कृष्ण ने कहा…"अगर आराम से नहाना चाहते हो तो इस तालाब नहाओ ।"





"पांर्चों पाण्डवों में एकमात्र युधिष्ठिर ही ऐसे थे जो श्रीकृष्ण की बात की गहराई को पकड़ संके है । उन्होंने भीम क्रो उस तालाब में नहाने की आज्ञा दी । भाई की आज्ञा पाकर भीम उस तालाब में ही चले गए ।"





"बहुत नीचे जाने पर भी जब उन्हें तालाब का तल न मिला तो घबराए और हाथ-पांव चलाकर तैरने लगे । तालाब के ऊपर अाए तो नहाना भूलकर बाहर अाए । किनारे पर खडे सांवरे के होंठों पर मन्द मुस्कान थी ।



"आश्चर्य के साथ तालाब की अोर देखते हुए भीम ने पूछा…यह कैसा तालाब है भगवान ?


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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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"यह तालाब नहीं है भीम , यह कुम्भकरण नाम के एक योद्धा का सिर है ।' कृष्ण ने बताया-'किसी जमाने में यह रावण का भाई हुआ करता था । श्रीराम ने इसका संहार किया तो उसका धढ़ युद्ध-क्षेत्र में और सिर यहां अाकर गिरा । मगर उसके सिर में न कितनी बरसातों का पानी भर गया है । बस...ऐसा ही तालाब है यह ।'



पांचों पाण्डव आश्चर्य के साथ श्रीकृष्ण का मुखड़ा देखने लगे ।





" कन्हेया ने कहा-'जिसके सिर में बरसात के भरे पानी में तुम डूब गए, जरा अनुमान करो कि वह कुम्भकरण क्या होगा ? किस किस्म का योद्धा होगा ? और ऐसे को भी श्रीराम ने मार डाला, अतः तुम अपनी कौन सी शक्ति पर गरूर करते हो ।'




" पांचों पाण्डवों की अक्ल टिकाने आ गई । बस !”
किस्सा सुनाने के बाद वतन ने कहा'……."कुम्भकरण की खोपडी को दिमाग में रखकर मैंने इस खाई की गहराई बनवाई है ।"
"भारतीय इतिहास और ग्रन्थौ की तुम्हें अच्छी जानकारी है ।" मुस्कराता हुआ अलफांसे कह रहा था -----…"'अखबार में छपे स्टेटमेंट में भी तुमने महाभारत में प्रयुक्त होने वाले हथियारों का जिंक्र बडे अच्छे ढंग से किया था और अब 'चेतक' तथा 'कुम्भकरण की खोपडी' का उदाहरण भी बड़े अच्छे ढंग से दिया है । शायद उन ग्रन्थों के उदाहरण देना तुम्हारी आदत भी है ।"



मोहक ढंग से मुस्कराया वतन, कहने लगा…"बैज्ञानिक हूं न और यह भी जानता हूं कि भारत के प्राचीन ग्रन्थ विज्ञान से भरे पडे़ हैं । उन ग्रन्थों को अगर ध्यान से पढा जाए तो आज़ भी वे इस दुनिया को बहुत कुछ दे सकते हैं ।"

" खैर, छोडो़ ग्रन्थों को , तुम अपनी प्रयोगशाला की सुरक्षा के बारे में कुछ और बता रहे थे ।।"




…"हां" वतन ने कहा…"तो इस खाई की गहराई के बारे तो आप जान ही चुकें हो । यह खाई न सिर्फ इसलिए खतरनाक है इसलिए भी है कि इसमें भरे पानी के अन्दर वह हर खतरनाक किस्म के जानवर मौजूद है, जो समुंद्र में पाए जाते हैं ।। एक बार जो इस खाई में गया समझो, मैत के मुह में गया ।"




अलफांसे को याद अाई-----पानी की लह खलबली ।



एक वार पुन-: उसने खाई में झांककर देखा तो उसके जिस्म में झुरझुरी सी' दौढ़ गई । पानी के उपर तैरते एक भयानक मगरमच्छ को उसने साफ देखा था । न जाने क्यों अलफांसे जैसा' व्यक्ति भी थरथरा गया ।।



-"क्या किसी भी आदमी को प्रयोगशाला के अन्दर जाने से रोकने के लिए इतने प्रबन्ध कुछ कम हैं ?" वतन ने पूछा ।




-"नहीँ" बरबस ही अलफासे के होंठों से निकला-“काफी हैं ।"



…"तो आइए मेरे साथ ।" वतन ने कहा…"जरां ध्यान से देख लीजिए कि प्रयोगशाला की इस दीवार में कहीं कोई रास्ता तो नहीं है ?"




ध्यान से देखते हुए अलफांसे ने कहा ---" चमक तो रहा नहीं है ।"



इस बीच वतन उन्हें लिए इमारत के ठीक बीच में पहुंच गया ।

अलफासे ने देखा'-वतन ने एक अजीब से ढंग से अंपने दोनों हाथ उपर उठाए । इधर उसके हाथ ऊपर उठे, उधर खाई के पार ठीक उनके सामने प्रयोगशाला की दीवार में हल्की-सी एक गढ़गड़ाहट हुई और दीवार में न सिर्फ एक खिड़की के बराबर रास्ता खुल गया बल्कि उस रास्ते में से सरसराकर एक स्टील की चादर खाईं के इस किनारे की तरफ़ बढने लगी ।



यह चादर सिर्फ एक गज चौडी थी ।



सरसराहट पैदा करती हुई यह स्टील क्री चादर खाई के इस किनारे तक पहुची और किनारे की जमीन से सटकर रुक गई । जब खाई पर स्टील की उस चादर के रूप में एक गज चौडा और पचास गज लम्बा एक पुल बन गया । यह पुल प्रयोगशाला की दीवार में एक खिड़की नुमा दरवाजे तक गया था और वह दरवाजा खुला हुआ था ।




" आओ चचा !" वतन ने कहा…"यह है प्रयोगशाला के अन्दर जाने का एकमात्र रास्ता ।" कहने के साथ ही उसने स्टील की उस चादर पर पैर रखा और लम्बे लम्बे कदमों के साथ उस पुल क्रो तय करने लगा ।।।



यह बात और थी कि घण्टियां बजाता अपोलो अब भी उसके आगे था ।




धनुषटंकार अलफांसे के कन्धों पर चढ़ गया, और मुस्कराता हुआ अलफासे वतन के पीछे बढ़ रहा था । अपनी छडी को टक् टक् के साथ वतन बड़े शाही ढंग से उस अजीबो गरीब पुल को तय कर रहा था ।



कुछ ही देर बाद वे सब उस खिड़की में से होते हुए प्रयोगशाला के अन्दर पहुंच गए । अन्दर खिड़की के समीप ही दाहिनी तरफ़ एक सैनिक खड़ा था । उसने वतन को श्रद्धापूर्वक अभिवादन क्रिया ।

उसके करीब ठिठककर वतन ने अलफांसे से कहा-----" इस आदमी ने मेरा यह संकेत देखकर, जो खाईं के उस पार से लिया था…यह रास्ता खोला था । अब मान लिजिए कि मेरे पीछे-पीछे भागता हुआ कोई आदमी प्रयोगशाला में की आने की चेष्टा करता है तो .......?"
समीप की दीवार में ही लगा बटन वतन ले दबा दिया । गड्रगड़ाहट की आवाज के साथ खाई के पार वाला सिरा अपनी जगह से हटा और स्टील की चादर खाई की तरफ झुकती चली गई । इस हद तक झुकी कि वह पुल पूरी तरह खाई में लटक गया ।




"अंजाम की कल्पना अपना अाप स्वयं कर सकते हैं ।" कहते हुए वतन ने दूसरा बटन दबा दिया । स्टील की चादर सिमटकर अन्दर अाने लगी ।

कुछ ही देर बाद वह चादर भी अन्दर आ गई और खिड़की नुमा रास्ता भी वन्द हो गया ।



अब पहली बार अलफांसे ने उधर से ध्यान हटाकर यह देखा कि वह कहां आ गया है । इस वक्त लह एक बहुत की हॉल में था और उसकी छत ठीक उतनी ही ऊचाई पर थी जितनी ऊंची प्रयोगशाला की दीवारें थी ।




जगह-जगह रोशन रॉडों ने पूरे हॉल को प्रकाशमान कर रखा था ।




हॉल में सादगी के नाम पर कोई इक्का दुक्का ही नजर अाता था ।



एक कोने में बड़े-बडे चार जनरेटर रखे थे । उन जनरेटरों के अागे चार सैनिक मुस्तेदी के साथ बैठे थे ।




वतन ने बताया-कोई भी खतरे की बात होगी तो वह अभी जो मेरे लिए रास्ता खोला करता है, खतरे का साइरन बजा देगा ।। और खतरे का साइरन बजते ही वे चारों सेनिक जनरेटर अॉन कर देंगे । परिणाम यह होगा कि प्रयोगशाला की चारों दीवारों में करेंट बहने लगेगा । वैसे सारी रात तो वे जनरेटर आँन रहते ही हैं । "




उन्हें बताता हुआ वतन हॉल में एक तरफ बढ़ रहा था ।



"लेकिंन इस प्रयोगशाला के अन्दर आदमी गिने-चुने ही नजर अा रहे हैं हैं" अलफांसे ने कहा ।



"ज्यादा आदमियों का यहाँ करना भी क्या है ?” वतन ने बताया-"सिर्फ जरूरत के ही जादमी अन्दर हैं । एक बात अौर भी है जिसे सुनकर शायद आपकी आश्चर्य होगा । वह यह कि प्रयोगशाला अंन्दर का एक भी आदमी प्रयोगशाला से बाहर नहीं जा सकता ।"




" क्या मतलब ?" वाकई अलफांसे चौंका ।
‘"हा चचा !" वतन ने बताया----", चमन में मात्र मैं और अपोलो ही ऐसे जीव हैं जो हर रोज प्रयोगशाला के अन्दर और बाहर की दुनिया देखते हैं । वरना ज्यादा यह है कि जो लोग प्रयोगशाला के अन्दर हैं, वे कभी प्रयोगशाला से बाहर नहीं गए । जो लोग प्रशेगशाला से बाहर हैं…वे नहीं जानते कि प्रयोगशाला अन्दर से कैसा है कैसा ? चमन के कानून के मुताबिक प्रयोगशाला के अन्दर वाले किसी आदमी का बाहर जाना किसी बाहरी आदमी का अन्दर बना जुर्म है, और इस जुर्म को करने बाले की सजा यह है कि उसे खाई में डाल दिया जाएगा । किन्तु शुक्र है कि अाज तक किसी को ऐसी हिंसात्मक सजा देने की जरुरत नहीं पड़ी ।"

" तुम्हारे कहने का मतलब यह हैकि तुम्हारे और अपोलो के अलावा आज तक प्रयोगशाला के अन्दर का कोई आदमी बाहर नहीं निकला है ओर बाहर से कोई अन्दर नहीं अाया है ?"





"वेशक, मेरे कहने का यहीं मतलब है ।" वतन ने कहा----"इस कानून का यहाँ कठोरता से पालन हो रहा है ।"



“यह बात तो कुछ असम्भव-सी लगती है, वतन ।" अलफांसे ने कहा------" लोग इस प्रयोगशाला के अन्दर हैं, उनका मन अपने बीबी-वच्चों, माता-पिता_अथबा भाई-वहन से मिलने के लिए करता होगा ।"




अचान्क वतन के मस्तक पर बल उभर अाया ।



अलफासे ने उसे महसूस क्रिया । मगर कुछ बोला नहीं ।


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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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वतन गम्भीर स्वर में कह रहा था----" न किसी बेटे क्रो मां-बाप से जुदा करता हूं न किसी भाई को बहन से । जो लोग प्रगोगशाला के अन्दर हैं, उनका सब कुछ अनेदर ही है । यूं कहो कि उनके परिवारों की एक छोटी बस्ती है यहां ।"



"लेकिन फिर भी बाहर निकलने के लिए इनकी इच्छा होती ही होगी ?"




…"अपने छोटे-से चमन की हिफाजत के लिए ये लोग अपनी इच्छा को खुशी से दबाते हैं । "



एक बार तो निरुत्तर-सा हो गया अलफांसे फिर बोला----"' फिर भी यह प्रयोगशाला तो इनके लिए एक कैद जैसी हो गई ।"



"यूं तो हर आदमी के लिए यह दुनिया एक बड़ीं कैद है ।" वतन ने जवाब दिया ।
न जाने क्यों अलफांसे को ऐसा लगा कि वह एक व्यर्थ के विषय पर बहस करने लगे हैं, यह विचार दिमाग में अाते ही उसने बात का रुख बदल दिया----"तो और क्या इन्तजाम किए है तुमने अपनी प्रयोगशाला की सुरक्षा हेतु ?“




"पहले मुझे जरा यह बताइए कि क्रिसी भी जगह पहुंचने के लिए कितने किस्म के रास्ते हो सकते हैं ?"



"तीन किस्म के ।"



"कौन-कौन से ?"



-"हवा, भूमि और जमीन के नीचे से ।"



--"करैक्ट !” वतन ने कहा…“हवा के रास्ते से तो कोई अा नहीं सकता क्योंकि अाप देख चुके हैं कि पूरी प्रयोगशाला के ऊपर अणुनाशक किरणों का जाल बिछा हुआ है । थल के रास्ते से आगे का एक मात्र रास्ता देख ही चुके हैं, उस रास्ते से कोई अा सकता है या नहीं, इस बात का अन्दाजा अाप खुद लगा सकते है । रही जमीन के अन्दर की ब़ात, तो वह भी मुनासिब नहीं क्योंकि मैं आपको बता चुका हूं कि प्रयोगशाला के बाहर दीवार के सहारे-सहारे चारों तरफ जो खाई है वह कुम्भकरण की` खोपडी के बराबर गहरी है और कोई भी आदमी अगर बाहर से सुरंग खोदने की कोशिश करेगा तो खाई में खुलेगी और खाई निश्चित रूप से साक्षात् मौत का मुह हेै ।"




" निस्सन्देह यह प्रयोगशाला दुनिया की पहली और अपने ढंग की प्रयोगशाला है ।" प्रकट में तो उसने यही कहा लेकिन मन-ही-मन कह रहा था…'तुम्हारे इस किले की सुरक्षाओं
को तोड़कर मैं अपना काम करने से बाज नहीं अाऊंगा ।।।
प्रयोगशाला के विभिन्न स्थानों पर से गुजरता हुआ वतन उन्हें अन्त में एक लम्बे-से हॉल में ले आया ।



वह हॉल लम्बा ज्यादा और चौड़ा कम था । पूरा हॉल प्रयोग-शीटों से भरा पड़ा था । ठीक बीच में एक घूमने वाले कुर्सी पड़ीं थी और उस कुर्सी के चारों तरफ एक गोले की आकृति में छ: स्कीनें फिट थी ।



हाल में उनके अतिरिक्त इस वक्त अन्य कोई नहीं था ।



अलफांसे प्रयोगशाला की भौंगोलिक स्थिति और वह सब कुछ अच्छी तरह दिमाग में बैठा चुका था जो वतन उन्हें बताता जा रहा था । हर पल उसका दिमाग यहीँ सोचने में व्यस्त था कि वतन द्वारा फैलाए गए सुरक्षा के इस जाल को कैसे तोड़ा जा सकता है ?




उसके मनोबलों से एकदम अनभिज्ञ वतन कह रहा था…"यह वह कक्ष है जहा मैं प्रयोग किया करता हूं ।"



अलफासे ने जैसे कुछ सुना ही नहीं ।



" चचा ।" एकाएक वतन सीधा उसी से बोला…“क्या सोचने लगे ? "




अलफांसे की बिचार-तन्द्रा भंग हुई, चौकता सा वह बोला…"सोच रहा हूं वतन कि वैसे तो तुम सिंगहीँ के शिष्य हो, लेकिन उसने तुम्हें खुद से भी दो कदम-आगे ही निकाल दिया । अपनी जिन्दगी में न जाने कितनी बार सिगहीँ ने सिंगलैण्ड बसाया है ।


अपनी तरफ से उसने सुरक्षा के बड़े-बड़े इन्तजाम किए, लेकिन सच जिस तरह की सुरक्षा तुमने इस प्रेयोगशाला के लिए नियुक्त की है, वैसी सुरक्षा सिगहीँ कभी नहीं कर सका । निसंदेह तुम उसके शागिर्द हो, लेकिन.......!"




"न...न...न...चचा ।." वतन ने बीच में ही रोक दिया उसे----"मेरे लिए गुरु से बढ़कर कोई शब्द न कहना । कुछ भी सही , मेरे लिए तो देवता हैं वह । "
"न...न...न...चचा ।." वतन ने बीच में ही रोक दिया उसे----"मेरे लिए गुरु से बढ़कर कोई शब्द न कहना । कुछ भी सही , मेरे लिए तो देवता हैं वह । "


वतन कहता चला गया---"मेरी नजर हैं वह दुनिया के सबसे ज्यादा प्रतिभावान व्यक्ति हैं लेकिन बस, उनके सोंचने का तरीका थोड़ा-सा गलत हो गया है । सोचने के इस तरीके ने ही उनकी सारी प्रतिभा को दबा दिया है । अगर वे हिंसात्मक रूप से सारी दुनिया को झुकाने और उसका समाप्त करने का ख्याल दिमाग से निकाल दें तो दावा है कि अपने दिमाग और शक्ति से वे धरती को स्वर्ग वना दें ।"



कुछ देर तक उनके बीच बातों का बिषय सिगहीँ रहा ।


फिर------



-"देखिए !"


वतन ने उन स्क्रीनों के बटन अॉन करने शुरू कर दिए ।



टी०वी० स्क्रीनो चित्र पर चित्र उभरने लगे ।



प्रत्येक स्क्रीन पर अलग अलग स्थान का चित्र उभर रहा था । किसी पर राष्ट्रपति भवन के, किसी पर चमन की एक साधारण वस्ती का, क्रिसी पर चमन की एक अमीर बस्ती का, किसी पर प्रयोगशाला के बाहरी मैदान का । इसी तरह विभिन्न स्थानों के चित्र ।




" इसी कुर्सी पर बैठकर मैं अपने सारे देश पर नजर रख सकता हूं ।"वतन ने बताया---"जितने समय मैं, यहाँ रहता हूं यह सभी स्क्रीनें आंन रहती हैं ताकि मैं इस प्रेयोगशालासे बाहर की यानी चमन की स्थिति से नावाकिफ न रहूं ।"



कुछ देर स्कीनों को देखता रहा अलफासें और मन-ही-मन वतन की प्रशसां करता रहा ।



"आओ चचा । अव मैं आपको वह यन्त्र दिखाता हूं जिसकी घोषणा आपको यहाँ खींच लाई है ।" कहता हुआ वतन एक प्रयोग-डैस्क की तरफ वढ़ गया । लिखने की आवश्यकता नहीं कि धनुषटंकार, अपोलो और अलफांसे उसके साथ थे ।



डैस्क की दराज़ में से वतन ने एक रेडियों के आकार की छोटी-सी मशीनरी निकाली और उसे प्रयोग-सीट पर रखता हुआ वह वह बोला---"यह है वह यन्त्र जिसका नाम मैंने ' बेवज एम ' रखा है ।”



" ये ।" अलफांसे के मुंह से निकला----" इतनी छोटी !"




"क्या यह जरूरी है यन्त्र बहुत बड़ा ही होना चाहिए था ।" मुस्कराते हुए वतन ने कहा---असल में जितना वड़ा यह काम करता है, उतना दुर्लभ इसे बनाना नहीं है । बस-असल बात यह है इसं बारे में कभी किसी ने कुछ सोचा हीं नहीं ।" धनुषटकार अलफांसे वतन की शक्ल देख रहे थे ।
मैं आपको वैज्ञानिक भाषा में तो नहीं किंन्तु साधारण भाषा में बताता हूं कि 'वेवज एम' अन्तरिक्ष में बिखरीं आवाजों को किस तरह कैच करता है । आप देख रहे हैं कि यह बिल्कुल रेडियो की शक्ल का है । असल बात यह है कि रेडियो की मशीनऱी के सिद्धांत पर ही मैंने इसे बनाया है । आपके पास एक रेडियों है, उसका स्विच आंन कीजिए और जिस स्टेशन का प्रोग्राम आप लगाना चाहते हैं, उसे आराम से घर बैठकर सुन लीजिए । रेडियो पर किसी भी स्टेंशन से प्रसारित होने बाला कार्यक्रम ही लेना आजकल एक अाम बात हो गई है और यहीं कारण है आज ज्यादातर लोग यह सोचने की कोशिश नहीं करते कि ये आवाजें आ क्यों रही हैं ? इस प्रश्न में दिमाग खपाने का काम आज शायद ही कोई करता हो मगर, मैंने किया और 'वेवज एम' का आविष्कार करने में इसी वजह से कामयाब भी रहा ।"



तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि तुम्हारे ’वेवज एम' की माशिनरी रेडियो जैसी ही है ?"




" रेडियो जैसी नहीं बल्कि उससे मिलती-जुलती कहो ।" वतन ने कहा ---" अगर इसकी मशीनरी रेडियो जैसी होती तो मेरी क्या जरूरत थी ? रेडियो के आविष्कारक ने ही ’वेवज एम' भी वना दिया होता ।"



" तो फिर समझाओ कि रेडियों और इसकी मशीनरी में क्या फर्क है ?"




‘"वह फर्क तो मैं आपको बाद में समझाऊंगा, पहले जरा अाप इसका कमाल देखिये ।" कहने के साथ ही वतन ने 'वेवज एम’ की बाहरी बॉडी में लगे उनके स्विचों में से एक बटन दवा दिया ।


परिणामस्वरूप सेट पर अजीब सी सांय-साय की आवाज़ गूंजने लगी ।



एक नन्हा सा बल्ब यन्त्र के अंदर जल रहा था ।।



एक बटन-को वतन धीरे-धीरे दाहिनी तरफ घुमाने लगा ।



सेट पर सांय-सांय के बीच हल्की-हल्सी अस्पष्ट-सी आवाजें आने लगी । बटन को घुमाते वक्त वतन ने अपना कान ' बेवज एम' से उस आदमी की तरह सटा रखा था जैसे कोई व्यक्ति अपने थर्डक्लास ट्रांजिस्टर से कोई बहुत ही दूर का स्टेशन पकड़ना चाहता हो ।। ज्यों ज्यों वह बटन को घुमा रहा था, त्यों त्यों आवाजे तेज होती जा रही थीं ।


परन्तु अभी आवाजें अस्पष्ट थी ।



यह तो साफ था कि सेट पर आवाजें गूंज रही है ।
कौन-सी आवाज किसकी है और क्या कह रही है, यह बिल्कुल भी समझ में नहीं अा रहा था । मगर-वतन उन आवाजों को इस तरह ध्यान से सुन रहा था जैसे वह किसी आवाज को पकड़ने की चेष्टा कर रहा हो ।



इसी चेष्टा में वह बटन को घुमाता चला गया ।



अस्पष्ट आवाजे तेज होती चली गई ।



आवाजें इस कदर तेज हुई कि सारे कक्ष में जबरदस्त छोर मचने लगा ।


इस कदर शोर जैसे वहुत से पागल एक साथ चिल्ला रहे हों । आवाजें तो थी लेकिन स्पष्ट कोई नहीं ।



उधर, वे सब 'बेवज़ एम' पर उभरने बाले शोर में खोए थे । इधर धनुषर्टकार ने अपनी डायरी पर कुछ लिखा, लिखकर वतन को पकड़ा दिया । ' बेवज एम' पर से ध्यान हटाकर वतन ने वह कागज लिया और पढा, लिखा था---" भैया, आपका ‘वेवज एम' कहीं भारतीय लोकसभा से तो नहीं जा मिला है ? वहां उस वक्त ऐसी ही आवाजों का राज होता है जब पक्ष और प्रतिपक्ष के नेता आपस में एकदूसरे को गालियां देते हैं । बस, ऐसा लगता है, जैसे कुछ पागल चीख रहे हो, कौन किसको क्या कहता है, कुछ समझ में नहीं अाता ।" वतन ने पढ़ा, पढ़कर हल्ले-से मुस्करा दिया ।



धनुषटंकार का लिखा यह कागज पढ़, मुस्कराये विना नहीं रह सका था, बोला----" ये मत समझो मोण्टो, कि मैं भारतीय प्रतिनिधि ही पागलों की तरह चीखते हैं वल्कि प्रत्येक लोकतांत्रिक देश के नेता इसी तरह पागल हुआ करते हैं ।”





इसी बीच वतन ’वेवज एम' वाँल्यूम बटन को विपरीत दिशा में घुमा चुका था ।



आवाजों का शोर कछ कम हो गया था ।



"हो सकता है र्कि किसी भी देश की लोकसभा र्में ऐसा होता हो ।" वतन ने कहा…"लेकिन न तो यह किसी लोकसभा से ही सम्बन्धित हुआ है और न ही विधानसभा से । 'वेवज एम' पर अभी-अभी आपने जो अस्पष्ट आवाजों का छोर सुना, यह प्रत्येक पल ब्रझांड में होता रहता हैं ।"

" सुनिये ।" वतन ने कहा ---" जिसकी आवाज आप सुनना चाहते हैं उसका नाम और जन्म तिथी आपको जरूर मालुम होनी चाहिए । उसके नाम के अक्षरों के जोड़ में जन्म तिथी के अक्षरों को जोड़ दो , जो भी संख्या आये वह बटन दबा दो ।"


कहने के बाद वतन ने ' वेवज एम ' की बॉडी पर लगे दस बटन दिखाये उन बटनों पर जीरो से लेकर नौ तक गिनतियां लिखी थी ।



" ये क्या बात हुई ?" अलफांसे ने कहा --- " संभव है कि कई आदमियों के नाम जन्म तिथी का जोड़ एक की बैठे । तब तो उन सभी की आवाज सुनाई देगी ?"



हल्के से मुस्कराया , वतन ने कहा " हां हो सकता है, लेकिन होता नहीं ।"



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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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अलफांसे अभी कुछ कहना चाहता था कि वतन ने कहा ---" अब मैं आपको अपने प्रयोग द्वारा अपनी दादी मां की आवाज सुनाता हूं ।" कहने के बाद उसने फल वाली दादी मां के नांम के अंक बनाये , उनमें जन्म तिथी के अंक जोड़े और उपर्युक्त कार्य विधि के अनुसार ' वेवज एम ' को सैट करके बोला --" वेवज एम ' मैने सन् १६५० के नवम्बर माह , रात के समय पर फिक्स कर दिया है ।



अपनी बात पूरी करके उसने अन्तिम बटन दबा दिया ।



और --- उस तूफानी रात में फल बाली बूढ़ी मां और आठ बर्षीय न्नहें से वतन के बीच होने वाला वार्तालाप गूंजने लगा ।
काफी कुछ सुनने के बाद एकाएक अलफांसे ने कहा----""मान गए वतन अपने दिमाग से तुमने एक कमाल ही चीज बना ली है ।। मगर मुझे लगता है कि भावुकता के भंवर में फंसे तुम हर समय सिर्फ अपनी ही आवाज: ब्रह्माड से केच करके 'वेवज़ एम' पर सुनते रहे हो । भावुकता के उस भंवर में डूबकर तुम शायद यह भी भूल गए हो कि असल में तुम्हारा ये 'वेवज एम’ कितना उपयोगी साबित हो सकता है ।"



"'आप कहना क्या चाहते हैं ?"



" व्रह्मांड में एक से बढकर एक महापुरुष की आवाज़ है । अलफांसे ने कहा-"मेरा ख्याल है कि जरुर तुम उन सब आवाजों को समेटो तो दुनिया को बहुत् कुछ दे सकते हो । महापुरुषों के वे स्पप्न जो अधूरे रह गए, पूरे कर सकते हो ।"





" डॉक्टर भावा की आवाज पर 'अणुनाशक' किरणो का आविष्कार
किया तो है मैंने ।" वतन ने बताया ।



" और ....."



""आजकल मैं भारतीय महापुरुष रवीन्द्रनाथ टैगोर की आवाज़ ब्रह्यांड से समेटने में व्यस्त हूं ।" वतन ने वताया---"टैगौर की बहुत-सी आवाजें 'वेवज एम' से पकड़कर मैं टेप भी कर चुका हूँ। रविन्द्रनाथ टैगोर की आवाज इस दुनिया को वहुत कुछ दे सकती है ।"




" अगर ऐसा हे तो बेशक तुम अपने-आविष्कार का सदुपयोग कर रहे हो ।" अलफांसे ने कहा---"तुम्हारे लिए यहीँ राय मेरी कि तुम दुनियां के सभी महापुरुषों की-आवाज टेप कर लो ।"



कुछ देर तक इसी विषय पर बातें होती रहीं ।



वतन उन्हे टेगोर, लिंकन श्रीकृष्ण, राम, रावण, भगत सिंह, जवाहरलाल इत्यादि न जाने किन-किन महापुरुर्षों की आवाज "वेवज एम' पर सुनाता रहा ।




किन्तु अलफांसे का ध्यान उन आवाजों की अोर नहीं था ।



वह तो कुछ और सोच रहा था--कदाचित् कोई खतरनाक साजिश !




बातें हो रही थी कि एकाएक अलफांसे ने कहा…"वतन् लैट्रीन जाना है मुझे । प्रयोगशाला के अन्दर कोई प्रबन्ध है क्या ?"




"'कुछ ही देर पहले आपसे कहा था कि जो लोग प्रयोगशाला के अंदर रहते हैं उनका सब कुछ यहीं है ।" वतन ने 'कहां-"अपोलो चचा को अधिकारीयें के क्वार्टर्स के करीब बनी 'लेट्रीन में ले जाओ ।"



अलफांसे के साथ अपोलो गया । "



आधे घण्टे बाद वे लौटकर आए । "



कुछ और बातचीत करने के बाद वे चारों प्रयोगशाला से बाहर आए।



प्रयोगशाला का वह एकमात्र रास्ता पुन: बंद हो गया । शाम के वक्त अलफांसे एक धण्टे के लिए राष्ट्रपति भवन से गायब हुआ ।



जिसके लौटने पर वेतन ने पूछा…"कहां चले गए थे चचा ?"



" बस यूं ही----चमन की सैर करने चला गया था ।" मुस्कराते हुए जबाव दिया ।
उस रात आठ बजे वै सोने के लिए अपने अपने बिस्तरों पर जा लेटे।





चारों के विस्तर एक ही कमरे में
लगे थे और अभी उनमेंसे किसी को नीद भी नहीं आई थी कि ........


धांय ।




रात के सन्नाटे में गूंजने बाली इस आबाज ने उन सब को लगभग उछाल दिया ।



वे सव उछलकर एकदम अपने-अपने बिस्तरों पर बैठ गए ।



कमरे में नाइट बल्ब का मद्धिम प्रकाश बिखरा हुआ था । उसी प्रकाश में मूर्ख की तरह वे एकदूसरे को देख रहे थे ।



अभी उनमें से कोई कुछ बोल भी नहीं पाया था कि…


धांय ।




इस दूसरे फायर ने तो उन सबको जैसे बिस्तरों से उछालकर नीचे खड़ा का दिया ।



अलफांसे तेजी से बला---" ये क्या हो रहा है वतन ?"



धांय !



पुन: विस्फोट ।



" कह नहीं सकता चचा, मैं खुद चकित ......."



धायं ।




चौथे फायर ने तो जैसे उन सबके रोंगटे खडे़ कर दिये ।



अलफांसे ने तेजी से कहा---“मुझे लगता है वतन कि किसी देश के जासूस ......"



अभी उसका यह वाक्य भी पूरा ना हुआ था कि कक्ष में पिंक. पिक की ध्वनि गूंजने लगी ।।।


किसी चिते की तरह वतन एक दीवार की तरफ झपटा। उसने कोई गुप्त बटन दबाया। एक छोटे से भाग ने हटकर दीवार में खिड़की पैदा कर दी ।
खिड़की में एक शक्तिशाली ट्रासमीटर रखा था । पिक....पिक् की आवाज उसी में से निकल रही थी ।



बेहद फुर्ती का प्रदर्शन करते -हुए हेडफोन ओन करता हुआ बोला-..हेलो..हेलो.....वतन हियर है ।"



"महाराज़ ।" दूसरी तरफ से घबराया-सा स्वर-----"मैं बोल रहा हू…मनजीत ।"


" हां मनजीत , क्या बात है ।'' वतन ने तेजी से पूछा-----"ये…… धमाके कैसे थे ?"




“म...म...महाराज !” दूसरी तरफ से बोलने वाले मनजीत का लहजा कांप रहा था---"प्रयोगशाला के शीर्षों पर लगी सर्चलाइटें टूट गई हैं । चार फायर हुए और एक एक करके चारों

ही फूट गई ।"




"क्या ?'' इस तरह उछल पड़ा वतन जैसे अचानक किसी बिच्छू ने उसे डंक मार दिया हो!




--"ज...जी हां ।"




"कैसे ?" वतन के मुंह से दहाड़ निकल पड़ी ।




"'कुछ पता नहीं चल रहा है महाराज ।" मनजीत नामक व्यक्ति ने दूसरी तरफ से रिपोर्ट दी…..."‘सारे मैदान में अन्धेरा छा गया है हम पता लगाने के चक्कर में हैं कि ये सचंलाइटैं किसने फोडी हैं सर ! चारों ही कायर किसी शक्तिशाली गन से हुऐ हैं । वैसी ही जैसी हमारे पास हैं । महाराज, जितने अन्तराल चारों फायर हुए हैं उससे जाहिर होता है कि यह किसी एक आदमीं का काम नहीं । कम-से-कम दो आदमी एक साथ इतनी जल्दी चार सर्चलाईटों को फोड़ सकते है ।"




" लेकिन मैं पुछता हूं कि वे आदमी उस मेदान में पहुंचे कैसे ?” वतन ने उतेजनात्मक स्वर में पूछा ।


" वो...वो...महाराज...!" मनजीत बौखला गया ।



" मैं वहीं पहुंच रहा हूं ।" एकाएक वतन का लहजा सन्तुलित हो गया-----“जब तक हम वहाँ पहुंचें तब तक होना यह चाहिए कि जितने आदमियों ने यह गढ़बढ़ की है, वे सब पकड्र लिए जाये । "



" महा..."



दूसरी तरफ से कदाचित् मनजीत कुछ कहना ही चाहता था कि वतन ने सम्बन्ध्र-बिच्छेद कर दिया । वह तेजी से अलफांसे की तरफ पलटा ।

अलफांसे दंग रह गया । उसने तो यह कल्पना की थी कि इस वत्त वतन बुरी तरह क्रोधित एवं उत्तेजित होगा, मगर उसकी उसकी आशा के ठीक विपरीत वतन के चेहरे पर तेज था-गुलाबी अधरों पर मुस्कान ।



बेहद सन्तुलित स्वर में उसने वताया---किसी ने प्रयोगशाला की चारों सर्च लाईटें फोड़ दी हैं चचा ।"


मन-ही-मन वतन का संयम और धैर्य देखकर अलफासे चकित् था, बोला…"'इसका मतलब किसी महाशक्ति का जासूस यहां पहुंच गया है ?"




"'ऐसा ही लगता है ।" वतन का वहीँ शांत स्वर…“मगर मुझे यह यह उम्मीद नहीं थी यहां पहुंचते ही इतना बड़ा काम कर देंगें ।"




" अब तुम्हारा क्या इरादा हैं ?"



"मैं वहां जा रहा हूं जरा ।"




" मैं से क्या मतलब ?" चौंककर अलफांसे ने पूछा----"क्या वहां अकेले जाओगे ?"



"हां" वतन बोता----"' आप लोंगों का वहा जाना कोई जरूरी नहीँ है आखिर क्या दिवकत है ?"



परन्तु, इधर अपोलो वतन के साथ चलने के लिये दर पर तैयार खड़ा था और उधर धनुषटंकार अपनी दोनों बगलों में लटके होलस्टरों में रखे रिवॉल्वरों को चैक कर रहा था । एक नजर उन दोनों की तरफ देखता हुआ अलफांसे बोला…"अकेला जाने कौन देगा तुम्हे ? हम यहां क्यों अाए हैं ? इसलिये-कि हमें पहले ही सम्भावना 'थी कि दुश्मन के जासूस जरूर यहां कुछ गड़बड़ करेॉगे ।"


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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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वतन मुस्कराया, बोला---"' क्यों अपनी नीद खराब करते हो, चचा ? आराम से सोइये । मुझे पता है कि वहाँ आपकी कोई जरूरत नहीं पडे़गी ।"




"तुम तो इस तरह मुस्कुरा रहे हो वतन, जैसे कुछ हुआ ही न हो । "




" हुआ ही क्या है ?" सन्तुलित लहजे के साथ वतन के होंठों पर पुन: वहीं मुस्कान-----" सिर्फ सर्चलाइटे ही तो तोडी़ हैं उन्होंने ।"




-"क्या मतलब ?”




" मतलब यह चचा, कि वे जितना ज्यादा-से-ज्यादा कर सकते थे, कर चुके हैं ।" वतन ने कहा--" इससे ज्यादा वे कुछ नहीं कर सकेंगे । अाप भी जानते हैं कि वे किस काम के लिये यहां अाये हैं । उन्हें ’वेवज एम' का फार्मूला चाहिये है वह प्रयोगशाला के अन्दर है और अन्दर वे किसी भी तरकीब से पहुंच नहीं सकते । "
सर्च लाईटे फोड़कर वे मुझ पर, मेरे सैनिकों और चमन पर अपना आतंक जमाना चाहतें हैं सो उन्होंने कोशिश की है ।


मझे मालूम है कि इससे आगे वे कुछ नहीं कर सकते, इसलिए मैं र्निश्चित्त हू ।"




"बेवकूर्फ हो तुम । " अंलफांसे ने एकदम कहा---"जो गलती हमेशा तुम्हारा गुरू करता था, वहीं तुम भी कर-रहे हो । जानते हो वह गल्ती क्या है? अपनी फैलाई हुई सुरक्षाअों पर आवश्यकता से अधिक विश्वास । इतना अधिक बिश्वास ही सिंगही को हमेशा नाकाम करता है । तुम अभी इन जासूसो को जानते नहीं हो, ये विना रास्ता बनाए पहाड़ के गर्भ में से निकल सकते हैं ।"




…""कहना क्या चाहते हैं आप ?"




" यही कि यह वक्त बातों में जाया करने का नहीं, कुछ करने का है ।" अलफांसे ने तेजी से कहा ---"वक्त से पहले अगर इन जासूसों पर काबू न पाया गया, तो निश्चित रूप से ये कोई
बड़ा बखेड़ा कर देगें !"




"क्या आपके ख्याल से कोई मेरी प्रयोगशाला के अन्दर जा सकता है ?"



" ये ठीक है वतन, के 'तुम्हारी रक्षा बेहद कड़ी है ।" अलफांसे ने कहा्----"ऐसा प्रतीत होता है बाहर कोई चाहे जो करता रहे मगर प्रयोगशाला के अदर नहीं पहुंच सकेगा, परन्तु यादे रखो, आवश्यकता से अधिक विश्वास भ्रम पैदा करता है । उन जासूसों के लिए अन्दर पहुंचना कठीन अवश्य है, लेकिन असम्भव नहीं । चलो जल्दी ।" कहता हुआ अलफांसे दरवाजे की तरफ लपका ।



"चाहता तो मैं यही था चचा, कि अाप आराम करते ।" उसके-पीछे लपकता वतन बोला-किन्तु जब आपकी इच्छा है तो आपको रोक नहीं सकता मैं, चलकर देखना ही चाहते हो तो चलो ।"



इस तरह-सबसे आगे अपोलो । उसके पीछे अलफांसे और वतन, वतन के कधों पर बैठा था…थनुषटंकार ।




न सिर्फ राष्ट्रपति भवन में बल्कि सारे चमन में जाग हो गई थी । रात के सन्नाटे में गूंजने वाले किसी गन के उन चार फायरों ने चमन के ज्यादातर नागरिकों को जगा दिया था । जो उन फायरों से नहीं जगे थे, उन्हे उन फायरों की आवाज से जागने बालों ने जगा दिया था ।।।।
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