रहस्यमई आँखें complete

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Jemsbond
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Re: रहस्यमई आँखें

Post by Jemsbond »


महोब्बत मौत है मितवा,
बार बार नही होती,
हसरते खिलती हैं मगर,
गुलज़ार नही होती,
आँखे करती हैं हरगिज़ ज़फ़ा,
भर आती हैं मगर जार-जार नही रोती,
एक बार ओढ़ी थी वफ़ा की चादर,
बिखरती हैं मगर तार-तार नही होती..
जो उल्फत की थी तो हो गई महोब्बत भी,
अब फिर से इकरार नही होता, तकरार नही होती...

नंदिनी एक रेस्टोरेंट में अकेली बैठी थी. रेस्टोरेंट के चारो और ग्लास लगे हुए थे. यह देर शाम का समय था. रेस्टोरेंट के अन्दर मंद-मंद संगीत चल रहा था, जो माहोल को रोमांटिक बना रहा था मगर नंदिनी तो एक अजीब ही दुविधा में फंसी हुई थी. वो सोच रही थी कि आखिर वो कहाँ से कहाँ तक आ गयी हैं. उसने कभी सोचा भी नही था कि वो यहाँ तक आ पायेगी. लेकिन अजीब बात हैं, जब उसने शुरुआत की तब उसके साथ कितने लोग थे मगर आज वो बिलकुल अकेली थी. रास्ते में कुछ मुसाफिर मिले भी तो वो भी केवल दर्द ही देकर गए. शायद उसे भी अब अकेली रहने की आदत पढ़ चुकी थी या फिर किसी के साथ से ही डर लगने लगा था. मगर शायद वो अब अकेली नही थी, वो विजय के बारें में सोचने लगी थी. वो उसे शुरू से अच्छा लगता था, विजय में एक स्थिरता थी, उसकी आँखों में एक सम्मान था, उसके साथ में अपनापन था. वह सुलझा हुआ समझदार इंसान था मगर नंदिनी ने कभी उसे उस नज़रिये से नही देखा था. मगर इन दिनों उन दोनों के बीच नजदीकियां ज्यादा ही बढ़ रही थी. वो चाहती तो विजय को रोक सकती थी मगर उसे इसमें कुछ गलत भी नही लग रहा था...
नंदिनी रेस्टोरेंट के शीशे से बाहर देखते हुए यह सब सोच रही थी तभी नंदिनी की नज़र सामने एक दूकान पर पड़ी. यह एक पर्स की दूकान थी. अभी-अभी इस दूकान में कोई गया था. नंदिनी को वो शक्ल जानी पहचानी लगी. उसने फटाफट काउंटर पर बिल दिया और बाहर आ कर इंतज़ार करने लगी.
कुछ देर बाद उस दूकान से वो लड़की बाहर निकली. नंदिनी ने उसे ध्यान से देखा. उसकी आंख्ने फटी की फटी रह गयी. उसे अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था. यह तो ताश्री हैं!!
नीली टीशर्ट, काली जींस, गले में एक मफलर, चेहरे पर एक बच्चे जैसी मासूमियत...ऐसा लग रहा था एक बच्ची बस उम्र में बड़ी हो गयी हो. उसकी आँखों पर चश्मा नही था पर चेहरे पर एक मुस्कान थी. हाथ में बैग लिए, मन ही मन कुछ सोचते हुए मुस्कुराते हुए जा रही थी. जैसे अपने किसी करतब पर खुश हो रही हो. नंदिनी कुछ पल तक एक टक उसे निहारती रही जैसे किसी माँ को अपना खोया हुआ बच्चा मिल गया हो.
नंदिनी उसका पीछा करने लगी. कुछ देर चलने के बाद आगे बाइक पर एक लड़का हाथ में एक बेग लिए खड़ा था. शायद यह अंतस था. उसके बैग में ख़रीदे हुए कपडे थे.
अंतस- इतना वक्त लगता हैं तुम्हे एक बैग खरीदने में...मैंने सारे कपडे खरीद लिए और आधे घंटे से यहाँ खड़ा हूँ.
ताश्री- वो दूकान वाला सरासर पागल बना रहा था, ६०० का पर्स १५०० में बेच रहा था. मैंने भी कह दिया मैं उसके दिल्ली वाले सप्लायर वर्मा की बेटी हूँ. बेचारा फ्री में देने के लिए तैयार हो गया था. ताश्री ने चहकते हुए कहा.
अतंस- तुम कब इन भोले भाले दुकानदारो को ठगना छोडोगी ताश्री!
ताश्री- जब ये मुझे ठगना छोड़ देंगे. ताश्री ने मुस्कुराते हुए कहा.
नंदिनी का शक अब पक्का हो गया था, यह ताश्री ही थी. ताश्री बाइक पर बैठी ही थी कि नंदिनी दौड़ कर उनके पास पहुँच गई. उसने उनपर अपनी बन्दुक तान दी, रुक जाओ ताश्री...नंदिनी ने चिल्लाकर कहा.
ताश्री ने एक बार नंदिनी को घुरा.
तुम बहुत दूर आ चुकी हो नंदिनी. ताश्री ने नंदिनी को घूरते हुए ही कहा.
मतलब?
यह रास्ता सही नही हैं. ताश्री ने उधर देखा. वहां से एक ट्रक आ रही थी. ट्रक नंदिनी को चपेट में लेती हुई निकल गयी.
अचानक नंदिनी की नींद खुल गयी. बड़ा अजीब सपना था. वो पुरी पसीने तरबतर हो गयी थी. उसका सर भी काफी भारी हो रहा था. उसने घडी की और देखा तो सुबह के दस बज रहे थे. वो फताफट तैयार हुई और थाने के लिए निकली.


----------------------------------


-तुम शहर छोड़ कर जा रहे हो. तुम्हारा काम ख़तम हो गया?
-काम...मेरा कोई काम नहीं हैं...मैं यहाँ सिर्फ तुम्हारे लिए आया था.
तभी मेरा फोन बजा. यह माँ का फोन था.
-तू कौन से वार्ड में हैं?
-C-3 में क्यों?
-मैं यहाँ हॉस्पिटल में हूँ.
-आप यहाँ हॉस्पिटल में क्या कर रही हैं?
-तेरे लिए खाना लेकर आई हूँ और पूजा के मम्मी पापा से भी मिल लुंगी.
-आप निचे ही रुको मैं आती हूँ. मैंने फोन रखा.
कौन था. मेरे फोन रखते ही अंतस ने पूछा.
मेरी माँ हैं.
तुम्हारी माँ...यहाँ हॉस्पिटल में हैं?
हां...क्यों?
नही..कुछ नही. अंतस खड़ा हो गया.
तभी सामने से माँ आती दिखाई दी. माँ ने पहले मेरी और देखा और फिर अंतस की ओर...उनकी नज़रे अंतस पर ही टीक गयी. वो उसे घूरते हुए ही मेरे पास आई.
- अब पूजा कैसी हैं? उन्होंने मेरी और देखते हुए कहा.
- अभी कुछ पता नही चल रहा हैं, ऑपरेशन के लिए कह रहे हैं.
- तू रात यही रुकेगी?
- हां..मैंने धीरे से कहा.
- हम्म...मैं इसीलिए तेरे लिए खाना लेकर आई हूँ. परेशान मत होना सब ठीक हो जाएगा.
अंतस वापस बेंच पर बैठ गया था. माँ ने दो तीन बार नज़रे चुराकर अंतस की ओर देखा. फिर वो पूजा के माँ-बाप से मिलने चली गयी.
मैं अब चलता हूँ. माँ के जाते ही अंतस ने कहा.
हम्म...मैंने कोई जवाब नही दिया. जैसे मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ता हो.
उसके जाने के बाद मैं वही बैठ गयी. कुछ देर बाद माँ वापस आ गई.
- काफी महंगा ऑपरेशन हैं? माँ ने मेरा पास आकर कहा.
- हां...पूजा के परिवार वाले पता नही इतने पैसे कहा से लायेंगे.
-हम्म...वो जल्दी ही ठीक हो जाएगी. तू चिंता मत कर.
वो लड़का कौन था. माँ ने कुछ देर रुककर कहा.
-कौन...अंतस?
-हां..वही जो अभी यहाँ खड़ा था.
-वो पूजा का दोस्त हैं.
-हम्म...ठीक हैं मैं जा रही हूँ तुम अपना ख्याल रखना.

शाम को कोई 9.00 बजे का वक़्त था. पूजा की माँ और मैं दोनों बैठे हुए थे. कुछ दूर पूजा के पापा उनके रिश्तेदार के साथ कुछ बात कर रहे थे. शायद पैसो की व्यवस्था कर रहे हो. तभी एक अंकल आये.
जी वो पूजा के पेरेंट्स? उन्होंने हमारे पास आकर पूछा.
मैं उसकी माँ हूँ. पूजा की माँ ने कहा. अब तक पूजा के पापा और रिश्तेदार भी हमारे पास आ गए थे.
- मैं रोहित का पिता हूँ. उस व्यक्ति ने पूजा के पापा से कहा.
- रोहित? पूजा के पापा ने सवालिया अंदाज में कहा.
- वो लड़का जो पूजा को यहाँ लेकर आया था. मैंने उन्हें समझाते हुए कहा.
- मैंने ऑपरेशन का खर्चा काउंटर पर पे कर दिया हैं. डॉक्टर्स बहुत जल्दी ही ऑपरेशन शुरू कर देंगे. डॉक्टर माथुर मेरे फ्रेंड ही हैं. आपको चिंता करने की जरुरत नही हैं.
- जी..मगर...आपने...पूजा के पापा कुछ बोल ही नही पाए. शायद उन्हें कुछ समझ में नही आ रहा था.
-थैंक्स अंकल...पूजा के पापा हो सकेगा जितना जल्दी आपको वापस लौटा देंगे. मैंने कहा.
- नही बेटा उसकी जरुरत नही हैं. उन्होंने कहा. मैं और पूजा के पापा दोनों उन्हें आँखें फाड़ कर देखने लगे.
- शायद आपको मालुम नही हैं...मेरा बीटा आपकी बेटी से प्यार करता हैं. आज जब वो पूजा के ऑपरेशन के लिए मुझसे पैसे मांगने आया तो मैंने मना कर दिया. मगर फिर उसने सुसाइड करने की कोशिश की.
- सुसाइड!! हम सब चौंक गये.
- वो अब कैसा हैं? पूजा के पापा ने घबराते हुए पूछा.
- वो अब ठीक हैं...अच्छा हुआ की हम ऐन मौके पर पहुँच गए वरना कुछ भी अनर्थ हो सकता था.
- भगवान् का शुक्र हैं. हमने राहत की सांस ली.
- हम कई बार अपने बच्चो को समझने में कितनी बड़ी गलती कर देते हैं. हम जिसे उनकी नादानियाँ समझते हैं वो बड़ी जिम्मेदारी होती हैं. अगर आपको कोई ऐतराज़ न हो तो पूजा के ठीक होते ही मैं उसकी शादी रोहित के साथ करवाना चाहता हूँ.
पूजा के मम्मी-पापा की आँखे आसुओं से भर गयी थी. वे कुछ भी नही बोल पाए.

-तुम शहर छोड़ कर जा रहे हो. तुम्हारा काम ख़तम हो गया?
-काम...मेरा कोई काम नहीं हैं...मैं यहाँ सिर्फ तुम्हारे लिए आया था.
तभी मेरा फोन बजा. यह माँ का फोन था.
-तू कौन से वार्ड में हैं?
-C-3 में क्यों?
-मैं यहाँ हॉस्पिटल में हूँ.
-आप यहाँ हॉस्पिटल में क्या कर रही हैं?
-तेरे लिए खाना लेकर आई हूँ और पूजा के मम्मी पापा से भी मिल लुंगी.
-आप निचे ही रुको मैं आती हूँ. मैंने फोन रखा.
कौन था. मेरे फोन रखते ही अंतस ने पूछा.
मेरी माँ हैं.
तुम्हारी माँ...यहाँ हॉस्पिटल में हैं?
हां...क्यों?
नही..कुछ नही. अंतस खड़ा हो गया.
तभी सामने से माँ आती दिखाई दी. माँ ने पहले मेरी और देखा और फिर अंतस की ओर...उनकी नज़रे अंतस पर ही टीक गयी. वो उसे घूरते हुए ही मेरे पास आई.
- अब पूजा कैसी हैं? उन्होंने मेरी और देखते हुए कहा.
- अभी कुछ पता नही चल रहा हैं, ऑपरेशन के लिए कह रहे हैं.
- तू रात यही रुकेगी?
- हां..मैंने धीरे से कहा.
- हम्म...मैं इसीलिए तेरे लिए खाना लेकर आई हूँ. परेशान मत होना सब ठीक हो जाएगा.
अंतस वापस बेंच पर बैठ गया था. माँ ने दो तीन बार नज़रे चुराकर अंतस की ओर देखा. फिर वो पूजा के माँ-बाप से मिलने चली गयी.
मैं अब चलता हूँ. माँ के जाते ही अंतस ने कहा.
हम्म...मैंने कोई जवाब नही दिया. जैसे मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ता हो.
उसके जाने के बाद मैं वही बैठ गयी. कुछ देर बाद माँ वापस आ गई.
- काफी महंगा ऑपरेशन हैं? माँ ने मेरा पास आकर कहा.
- हां...पूजा के परिवार वाले पता नही इतने पैसे कहा से लायेंगे.
-हम्म...वो जल्दी ही ठीक हो जाएगी. तू चिंता मत कर.
वो लड़का कौन था. माँ ने कुछ देर रुककर कहा.
-कौन...अंतस?
-हां..वही जो अभी यहाँ खड़ा था.
-वो पूजा का दोस्त हैं.
-हम्म...ठीक हैं मैं जा रही हूँ तुम अपना ख्याल रखना.

शाम को कोई 9.00 बजे का वक़्त था. पूजा की माँ और मैं दोनों बैठे हुए थे. कुछ दूर पूजा के पापा उनके रिश्तेदार के साथ कुछ बात कर रहे थे. शायद पैसो की व्यवस्था कर रहे हो. तभी एक अंकल आये.
जी वो पूजा के पेरेंट्स? उन्होंने हमारे पास आकर पूछा.
मैं उसकी माँ हूँ. पूजा की माँ ने कहा. अब तक पूजा के पापा और रिश्तेदार भी हमारे पास आ गए थे.
- मैं रोहित का पिता हूँ. उस व्यक्ति ने पूजा के पापा से कहा.
- रोहित? पूजा के पापा ने सवालिया अंदाज में कहा.
- वो लड़का जो पूजा को यहाँ लेकर आया था. मैंने उन्हें समझाते हुए कहा.
- मैंने ऑपरेशन का खर्चा काउंटर पर पे कर दिया हैं. डॉक्टर्स बहुत जल्दी ही ऑपरेशन शुरू कर देंगे. डॉक्टर माथुर मेरे फ्रेंड ही हैं. आपको चिंता करने की जरुरत नही हैं.
- जी..मगर...आपने...पूजा के पापा कुछ बोल ही नही पाए. शायद उन्हें कुछ समझ में नही आ रहा था.
-थैंक्स अंकल...पूजा के पापा हो सकेगा जितना जल्दी आपको वापस लौटा देंगे. मैंने कहा.
- नही बेटा उसकी जरुरत नही हैं. उन्होंने कहा. मैं और पूजा के पापा दोनों उन्हें आँखें फाड़ कर देखने लगे.
- शायद आपको मालुम नही हैं...मेरा बीटा आपकी बेटी से प्यार करता हैं. आज जब वो पूजा के ऑपरेशन के लिए मुझसे पैसे मांगने आया तो मैंने मना कर दिया. मगर फिर उसने सुसाइड करने की कोशिश की.
- सुसाइड!! हम सब चौंक गये.
- वो अब कैसा हैं? पूजा के पापा ने घबराते हुए पूछा.
- वो अब ठीक हैं...अच्छा हुआ की हम ऐन मौके पर पहुँच गए वरना कुछ भी अनर्थ हो सकता था.
- भगवान् का शुक्र हैं. हमने राहत की सांस ली.
- हम कई बार अपने बच्चो को समझने में कितनी बड़ी गलती कर देते हैं. हम जिसे उनकी नादानियाँ समझते हैं वो बड़ी जिम्मेदारी होती हैं. अगर आपको कोई ऐतराज़ न हो तो पूजा के ठीक होते ही मैं उसकी शादी रोहित के साथ करवाना चाहता हूँ.
पूजा के मम्मी-पापा की आँखे आसुओं से भर गयी थी. वे कुछ भी नही बोल पाए.

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प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: रहस्यमई आँखें

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वो फटाफट तैयार हुई और थाने के लिए निकली. थाने पहुंची तो नंदिनी ने देखा की थाने में कोई नही था. उसने पहरेदार से पूछा कि सब कहाँ गए. पहरेदार ने बताया कि कोई केस आया हुआ हैं, विजय सर जाब्ता लेकर गए हुए हैं. नंदिनी ने विजय को फोन करके पूछा तो उसने बताया कि किसी पेट्रोल पम्प पर गाँव वालो का झगडा हो गया था. स्थित अब नियंत्रण में थी. वो कुछ ही देर में लौटने वाले हैं.
नंदिनी अपने केबिन में आ गई और कुछ फाइल्स देखने लगी. तभी उसे किसी फाइल की जरुरत महसूस हुई तो उसने पहरेदार को आवाज लगाईं. हो सकता हैं चाय पीने गया हो. नंदिनी ने मन ही मन में सोचा और खुद ही उठकर फाइल लेने चली गयी.
स्टोर रूम में ढेर सारी फाइलें थी. फाइलों का अम्बार लगा हुआ था. कुछ ही देर में नंदिनी को समझ में आ गया कि फाइलें इंडेक्स से नही जमी हुई हैं और उसे मेहनत करनी होगी. वो फाइल ढूढने के लिए इधर-उधर देखने लगी. कुछ रेक देखने के बाद उसकी नज़र एक अलमारी पर पड़ी, उसने उसमें ढूंढा मगर उसमें भी कुछ नही था. तभी उसकी नज़र कबडड के पीछे बनी अलमारी में गयी. कब्बड उसके आगे पड़ा था मगर एक छोटी सी दरार थी उसमें से एक पीला पैकेट दिख रहा था. नंदिनी ने हाथ उस दरार में हाथ डाल कर वो पैकेट बाहर निकाला. उस पैकेट के नीचे ही एक फोल्डर पड़ा था. नंदिनी ने वो फोल्डर भी उठा लिया. वो इन दोनों को लेकर वापस ऑफिस में आ गयी.
नादिनी ने वो फोल्डर खोला तो उसके अन्दर एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट पड़ी थी, दिव्या नाम की किसी लड़की की. रिपोर्ट देखने के बाद नंदिनी ने वो पैकेट खोला. उसमें एक डायरी थी. उसने डायरी खोलकर देखा. यह ताश्री की डायरी थी.

कुछ ही देर में विजय और बाकि सब लोग भी आ गए. थोड़ी देर बाद विजय नंदिनी के केबिन में आया.
तुम आ गयी. मुझे लगा आज छुट्टी पर हो. विजय ने बैठते हुए पूछा.
हम्म...नंदिनी जैसे उसे नज़रअंदाज किया. यह दिव्या कौन हैं? नंदिनी ने पूछा.
-दिव्या...कौन दिव्या मैडम? विजय ने थोड़े आश्चर्य से पूछा. मैडम सुनते ही नंदिनी ने विजय की ओर देखा.
आई मीन नंदिनी. विजय ने अपनी भूल सुधारते हुए कहा.
मुझे यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली थी. नादिनी ने रिपोर्ट विजय को दिखाते हुए कहा.
क्या नंदिनी? पहले वो ताश्री फिर यह दिव्या! तुम भी क्या गड़े मुर्दे उखाड़ने पर तुली हो? विजय ने नंदिनी के हाथ से वो रिपोर्ट लेकर देखते हुए कहा.
यह रिपोर्ट बिना किसी केस फाइल के पड़ी हुई थी. नंदिनी ने स्पष्ट करते हुए कहा.
अरे हां... याद आया. एक बार हॉस्पिटल वालो ने हमें गलत पेशेंट की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भेज दी थी. शायद यह वहीँ हैं. मैंने कहा था इसे रद्दी में दे देना.
अच्छा हुआ नही दी, वरना ताश्री की डायरी भी रद्दी में चली जाती. नंदिनी ने टेबल पर पड़ी डायरी की तरफ इशारा करते हुए कहा.
-अरे वाह..यह तुम्हे कहाँ मिल गयी. मैं ढूंढ-ढूंढ कर थक गया था.
-इसी रिपोर्ट के साथ ही पड़ी थी, कबडड के पीछे.
-तभी मुझे नहीं मिली. चलो अच्छा हुआ झंझट छुटा.
-...और वो रामनायक के शुटर्स से कुछ पता चला? नंदिनी ने डायरी अपनी रैक में रखते हुए कहा.
-हां मैडम...मूर्तियों की स्मगल्लिंग कर रहे थे.
-मगर एक ही तरह की इतनी सारी मूर्तियाँ कहा लेकर जा रहे थे.
-वो तो कुछ बता नही रहे हैं...कह रहे हैं किसी स्टेचू डीलर के पास ले जा रहे थे, मगर नाम नही बता रहे हैं.
-चलो मैं पूछती हूँ. मैं पूछ चूका हूँ मैडम...आपके हाथ का दर्द.
-अब ठीक हैं...चलो थोड़ी कसरत भी हो जाएगी.
-मैडम मुझे कहीं बाहर जाना हैं, मैं जाकर आता हूँ.
-हम्म...ओके...जल्दी ही जाना..हमें मदनलाल के केस पर भी काम करना हैं.
-जी मैडम...विजय ने कहा और फाइल लेकर बाहर चला गया.
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नंदिनी सेल में गयी और ड्राईवर से पूछताछ करने लगी मगर आधे घंटे तक पूछताछ करने के बाद भी कुछ ख़ास पता नही चला पाया.
बहुत ढीठ हैं साले. उगलना तो तुमको पड़ेगा. नंदिनी ने जेल का गेट बंद करते हुए कहा.
मैडम मुझे एक फोन करना हैं. तभी उनमें से एक ड्राईवर ने कहा.
किसे? नंदिनी ने पूछा.
जी मेरी घरवाली को...चार दिन से कुछ खोज-खबर नहीं हुई है तो परेशान हो रही होगी.
हम्म...ठीक हैं हवालदार इसे फोन करवा दो. नंदिनी ने हवालदार से कहा और अपने केबिन में आ गयी. फोन नंदिनी के केबिन के पीछे की तरफ ही था. जिसके ऊपर एक रोशनदान बना हुआ था. नंदिनी को बाहर की आवाज सुनाई दे रही थी.
जय महाकाल...मैं नीलकंठ...उस ड्राईवर ने फोन पर कहा.
....ट्रक को पुलिस ने पकड़ लिया हैं, अभी हम जेल में हैं...
जी हां...संगठन का कार्य हैं...मेरी उपस्थिति अनिवार्य हैं...आपको कोई न कोई उपाय अवश्य निकालना होगा. ...
...सभा का सञ्चालन मुझे ही देखना हैं....
धन्यवाद...आभार आपका..
ड्राईवर फोन रखकर वापस अपने सेल में चला गया. नंदिनी भी कुछ फाइल्स देखने लगी, तभी उसका फोन बजा. फोन कमिश्नर का था.
जी कमिश्नर साहब. नंदिनी ने सतर्क होते हुए कहा.
मिस नंदिनी आपने एमजी रोड के ढाबे से दो लोगो को गिरफ्तार किया हैं.
जी कमिश्नर साहब उन्होंने हमारें हवालदार पर फायरिंग की थी और वे मूर्तियों की स्मगलिंग कर रहे थे.
मिस नंदिनी...आपसे एक भूल हुई हैं, उनमें से एक व्यक्ति ट्रक का ड्राईवर हैं मगर दूसरा नीलकंठ, वो बेगुनाह हैं. वो तो बस उसके साथ वहां बैठकर खाना खा रहा था. आप उसे अभी रिहा कीजिये.
लेकिन सर उसने...
लेकिन वेकिन कुछ नही मिस नंदिनी. आप वैसे भी एक निर्दोष व्यक्ति को दो दिन जेल में रख चुकी हैं. उसका वकील अभी जमानत के कागजात लेकर आ रहा हैं. आप उसे अभी रिहा कीजिये.
इतना कह कर कमीशनर ने फोन रख दिया.
नंदिनी सीधा उठ कर उस ड्राईवर के सेल में गयी और खीच कर उसके कान के नीचे दो झापड़ लगाये.
किसे फोन गया था बे तूने? नंदिनी ने गुस्से में पूछा.
जी मैडम...वो..घरवाली को किया था...
और फोन करने के 5 मिनट में तेरे बाप का फोन आ गया. साले हैं कौन तू जो तुझे छुडाने के लिए खुद कमिश्नर फोन कर रहा हैं और यह संगठन क्या हैं?
संगठन...जी वो हमारा जयपुर ट्रांसपोर्ट आर्गेनाईजेशन हैं.
और तुझे कौनसी मीटिंग में जाना हैं?
हमारे आर्गेनाईजेशन की ही मीटिंग हैं?
कब?
कल ही हैं..
तभी हवलदार ने टोका. मैडम वो इसका वकील आया हैं.
अरे वाह! बड़ा जल्दी आ गया. नंदिनी ने सेल से बाहर निकलते हुए कहा.
एक काम करो, तुम चेक करो कल जयपुर ट्रांसपोर्ट ऑर्गनाइजेशन की कोई मीटिंग हैं क्या? नंदिनी ने हवालदार से कहा और अपने केबिन में आ गयी.
उसने बाहर आकर चेक किया सारे डॉक्यूमेंट सही थे, उसे छोड़ने के अलावा और कोई चारा नही था.
नंदिनी ने उसे रिहा कर दिया. उसके जाने के बाद उसने एक हवालदार को बुलाया.
एक काम करो, इस पर नज़र रखो. जहाँ इसका वकील इससे अलग हो वहां से इसे उठा कर वापस ले आओ.
कुछ ही देर में हवालदार उस ड्राईवर को पकड़कर वापस ले आया.
एक काम करो, इसे पीछे वाले लॉकअप में डाल दो. नंदिनी ने उस हवालदार से कहा.
कुछ देर बाद विजय भी वापस आ गया. नंदिनी ने पूरा माजरा विजय को बताया.
तुम्हे उस तरह जमानत पर रिहा किये हुए व्यक्ति को वापस नही लाना चाहिए था. विजय ने समझाया.
तो क्या करती जिसने मुझ पर गोली चलायी उसे ऐसे ही छोड़ देती.
मगर फिर भी अगर कमिश्नर ने खुद फोन किया था तो जरुर कुछ ख़ास रहा होगा.
कुछ भी हो जब तक मैं इन मूर्तियों और इस संगठन के बारें में पता नही कर लेती कोई रिहा नही होगा. नंदिनी गुस्से में थी.
कुछ देर बाद वो शांत हुई. मैं लंच लेकर आती हूँ. नंदिनी ने निकलते हुए कहा.
जी मैडम.

कुछ देर बाद नंदिनी वापस आई. वो विजय के साथ बैठकर कुछ फाइल्स डिस्कस करने लगी.
तभी एक हवालदार दोड़ते हुए आया.
वो...मैडम...
वो पसीने में भीगा हुआ था. उसकी सांस फुल गयी थी.
क्या हुआ? नंदिनी ने खड़े होते हुए पूछा.
मैडम...वो ड्राईवर ने आत्महत्या कर ली हैं.
उसने सांस लेते हुए कहा.

05/02/2013
3-4 दिन से हॉस्पिटल घर और घर से हॉस्पिटल यहीं रूटीन था. पूजा को होश आ गया हैं, उसकी तबियत अब ठीक हैं मगर एक पैर में फ्रैक्चर हैं. डॉक्टर ने कहा हैं कुछ दिन चलने में दिक्कत होगी मगर बाद में ठीक हो जाएगी. होश में आने पर वो थोड़े सदमे में थी. उसे कुछ समझ में नही आ रहा था कि अचानक यह सब कसी हो गया, उसे तो एक्सीडेंट कैसे हुआ यह भी कुछ याद नही था.
रोहित अगले दिन हॉस्पिटल आया था. मैंने उसे पैसो के लिए थैंक्स कहा मगर उसकी बेवकूफी के लिए उसे डांटा भी...उसने बताया कि उस दिन जब उसने घर जाकर अपने पापा से पैसे मांगे तो उन्होंने मना कर दिया. काफी मीन्नते करने के बाद भी जब वो नही माने तो उसका दिल बैठ गया और उसे इसके अलावा और कोई रास्ता ही नही सुझा.
हम कई बार लोगो को समझने में बड़ी गलती कर देते हैं. हम किसी को पहली बार देखते ही उसके बारें में कोई राय बना लेते हैं, उसे पसंद या नापसंद कर लेते हैं, उसे अच्छी तरह समझे बिना और फिर बाद में पछताते हैं. शायद कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता यह तो बस व्यक्ति के किरदार होते हैं, हमारा जिस किरदार से सामना होता हम उसे वहीँ मान लेते हैं. रोहित को जब मैंने पहली बार देखा तो उसे अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद समझा था. मगर मैं गलत थी.
अंतस उस दिन के बाद मुझे नज़र नही आया. शायद वो चला गया था. मगर मैं उससे मिलने के लिए बैचेन हो रही थी. पता नही मुझे क्या हो रहा हैं? जब वो सामने होता हैं तो उसपर गुस्सा आता हैं उससे झगड़ा करती हूँ. मगर जब वो सामने नही होता हैं तब मैं बैचेन हो जाती हूँ. उस दिन उसने कहा था कि उसने अपना सामान पैक कर लिया हैं तो शायद वो शहर छोड़ कर चला गया हो.
मगर मैं गलत थी...
शाम को मैं हॉस्पिटल के बाहर गार्डेन में बैठी थी. सूरज डूब चूका था, मौसम ठंडा हो गया था. ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी. गार्डन में कुछ पेशेंट्स के परिजन भी बैठे हुए थे. मैं उन्हें ही देख रही थी. तभी किसी ने मुझे आवाज दी. जैसे किसी सुखी धरती पर बारिश की पहली बुँदे गिरी हो. मैं बिना पीछे देखे ही इस आवाज को पहचान गई थी. यह अंतस ही था. वो मेरे पास आ गया.
तुम अब तक गए नही. मैंने अपनी मुस्कराहट को थामते हुए कहा. मुझे लगा तुम चले गए होंगे.
मैंने सोचा एक बार नींव को दुबारा भर कर देखा जाए. अब तक तो केवल दीवारे ही बनी हैं, मकान तो अब तक बना ही नही. उसने एक पहेली सी कही.
मतलब? मैंने उठते हुए कहा.
तुमने उस दिन कहा था न कि मैं रिश्तो की नींव ही साजिशो से भरता हूँ तो इस बार सच से भरने की कोशिश करता हूँ. एक नए रिश्ते की शुरुआत करते हैं. हम दोनों साथ-साथ चलने लगे थे.
और अगर मैं कहूँ की अब मुझे कोई रिश्ता बनाना ही नहीं हैं तो? मैंने मुस्कुराते हुए कहा. मैं उसका चेहरा पढ़ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ सोच रहा था.
रिश्ता तो बन चूका हैं, बात तो उसे निभाने की हैं. उसने कहा. हम दोनों चलते चलते एक गली में आ गए थे. रोडलेम्प की लाल रौशनी छाई हुई थी. सामने से कोई दो आदमी आ रहे थे.
हां...मगर रिश्ते को निभाने के लिए सच बोलने की जरुरत होती हैं और शायद तुम्हे उसकी आदत नही हैं. मैंने साफ़-साफ़ कहा.
हां...तुम ऐसा मान सकती हो मगर मैं बस सही वक्त का इंतज़ार कर रहा था.
और अब वो सही वक्त आ गया हैं. मैंने उसे घूरते हुए पूछा.
हां...शायद...
तभी सामने से आते वो आदमी हमारे सामने आकर खड़े हो गए. ये दो हट्टे कट्टे लोग थे.
अरे भाई सामने से हटो..क्यों रास्ता रोक कर खड़े हो? अंतस ने उनसे कहा.
शायद तुम ही गलत रास्ते पर चल रहे हो. उनमें से एक ने कहा. हमने ध्यान नही दिया था हमारे पीछे दो लोग और आ रहे थे. वो चारो हमें घेर कर खड़े हो गए.
बेहतर होता संगठन इससे दूर ही रहता. उसने अंतस को घूरते हुए मेरी और इशारा करते हुए कहा.
कितने आदमी हो. अंतस ने मुस्कुराकर कहा. मुझे आश्चर्य हुआ. मेरी डर के मारे हालत खराब हो रही थी. यह मुस्कुरा रहा था.
जितने भी हैं तुम्हारे लिए तो काफी हैं. उसने अंतस से कहा.
चलो देखते हैं. अंतस ने मेरी और देख कर कहा. ताश्री! अच्छा होगा तुम दूर चली जाओ.
हां...मेम..आप यहाँ से चली जाए. उनमें से एक ने कहा.
मैं चुपचाप वहां से दूर चली गयी. यह क्या हो रहा था मुझे कुछ समझ ही नही आ रहा था. मैं कुछ दूर आकर खड़ी हो गयी. मैं डर से थर-थर काँप रही थी.
उसमें से एक ने अंतस को पीछे से पकड़ने की कोशिश की...अंतस ने अपने कोहनी उसके पेट में मारी और फिर जैसे ही वो झुका उसके सर पर दे मारा...वो वहीँ नीचे बैठ गया...तभी अंतस ने उसके चेहरे पर एक लात मारी और वो जमीन पर पड़ा था.
यह किसी फिल्म के फाइट सीन जैसा था. पांच सेकंड के अन्दर ही वो शख्स जमीन पर पड़ा था.
फिर वो तीनो एक साथ अंतस पर झपट्टे. अंतस ने पीछे हटते हुए उन तीनो पर लात घुसे बरसाना शुरू कर दिए. कुछ ही देर में एक एक कर वो तीनो भी ढेर हो गए.
अगली बार उससे कहना की ढंग के आदमी भेजे. अंतस ने एक आदमी के पास जाकर कहा. वो चारो बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गए थे. वो धीरे उठे और भाग खड़े हुए. यह तुमने अच्छा नही किया लड़के, तुम्हे इसका अंजाम भुगतना होगा. जाते-जाते एक आदमी अंतस को धमकी देकर देकर गया.
अंतस फिर मेरी तरह आया. चलो ताश्री! उसने कहा. अंतस को भी कुछ छोटे आई थी.
चलो हॉस्पिटल चलते हैं. मैंने उसे सहारा देते हुए कहा.
नही उसकी जरुरत नही हैं...मैं ठीक हूँ. उसने कराहते हुए कहा.
ये लोग कौन थे? मैंने पूछा.
राणा के आदमी थे. उसने बिना मेरी और देखते हुए कहा. मेरा सर चकरा गया. राणा के आदमी!
मगर राणा ने क्यों तुम्हारे ऊपर....
मगर-वगर कुछ नही..तुम कल सुबह ग्यारह बजे मेरे रूम पर आ जाना. मेरे पास अब ज्यादा वक्त नही हैं.
उसने ऑटो रुकवाया और उसमें बैठ कर चला गया.
मैं वापस हॉस्पिटल में आ गयी. आखिर राणा ने क्यों अंतस पर हमला करवाया. और यह संगठन क्या हैं? मुझे कुछ भी समझ में नही आ रहा था.

तभी एक हवालदार दोड़ते हुए आया.

वो...मैडम...

वो पसीने में भीगा हुआ था. उसकी सांस फुल गयी थी.

क्या हुआ? नंदिनी ने खड़े होते हुए पूछा.

मैडम...वो ड्राईवर ने आत्महत्या कर ली हैं.

उसने सांस लेते हुए कहा.

क्या? नंदिनी और विजय दोनों चौंकते हुए उठ खड़े हुए. दोनों तेजी से लॉकअप की तरफ भागे. ड्राईवर एक रस्सी के सहारे पंखे पर लटका हुआ था. पास ही दो हवालदार खड़े थे.

इसे निचे उतारो. नंदिनी ने चिल्लाते हुए कहा.

हवालदार तेजी से दौड़कर उसके पास गए और उसे नीचे उतारा. वो अब तक मर चूका था. एक हवालदार सफ़ेद कपडा लाया और उस पर ओढा दिया.

यह फंदे पर लटक गया तब तक तुम लोग कहाँ थे? नंदिनी पहरेदार की तरफ देखकर चिल्लाई.

पहरेदार भी डर से थर-थर काँप रहे थे.

वो मैडम....यह सेल थोडा अन्दर की तरफ हैं तो हम इधर कम ही आते हैं. एक हवालदार ने डरते-डरते कहा.

...और यह रस्सी यहाँ तक कैसे पहुंची? विजय ने पंखे के ऊपर लटकी रस्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा.

वो...रस्सी...हवलदार आगे कुछ नही कह पाया. कुछ देर बाद नंदिनी और विजय दोनों केबिन में आ गए.

यह पता नही कैसे हो गया. नंदिनी ने बैठते हुए चिंता में कहा.

नंदिनी फंसे तो हम बेहद खतरनाक हैं. एसपी के खुद फोन करने पर तुमने उस ड्राईवर को रिहा किया. रिलीज़ डाक्यूमेंट्स पर तुम्हारे साइन हैं. फिर तुम उसे उठा कर वापस जेल में डाल देती हो और वो आत्महत्या कर लेता हैं. अगर बाहर किसी को भनक भी लग गयी तो हंगामा हो जाएगा कोई यकीन नही करेगा की यह आत्महत्या हैं मर्डर नही...हम सबका सस्पेंशन पक्का हैं. विजय ने स्थिति की गंभीरता समझाते हुए कहा.

स्टाफ में से कोई मिला हुआ हैं...या फिर यह भी हो सकता हैं कि उसने कपडे सुखाने की रस्सी उठा ली हो.

तब तो इस खबर के बाहर जाने की सम्भावना और भी जयादा हैं. अब हमें क्या करना चाहिए. नंदिनी खुद पसीने से तरबतर थी.

हमें एक झूठ को छुपाने के लिए दूसरा झूठ बोलना होगा. मगर हो सकता हैं यह तरिका तुम्हे ज्यादा पसंद नही आये. विजय ने नंदिनी की तरफ देखते हुए कहा.

तुम्हे जो करना हैं वो करो, मुझे तो कुछ सूझ ही नही रहा हैं.

विजय बाहर आ गया और एक हवालदार को बुला कर कुछ कहा. कुछ ही देर में तीन चार लोग एक गाडी लेकर आए और ड्राईवर की लाश को उठाकर ले गए.

यह उस ड्राईवर की लाश को कहाँ ले गए हैं? नंदिनी ने विजय से पूछा.

आज क्या हुआ था? विजय ने नंदिनी से प्रतिप्रश्न किया.

मतलब?

कमिश्नर का फोन आने पर तुमने उस ड्राईवर को रिहा कर दिया फिर?

...फिर हवालदार उसे वापस लेकर आया.

नही लाया.

नंदिनी ने विजय को सवालिया नज़र से देखा.

उस ड्राईवर ने यहाँ से छुटने के बाद आगे की सजा के डर से आत्महत्या कर ली. अभी कुछ ही देर में किसी गांववाले का थाने में फोन आएगा कि किसी पेड़ पर किसी लाश लटकी हुई हैं, हम जायेंगे और केस बनायेंगे.

..और अगर स्टाफ में से किसी ने बाहर खबर कर दी तो? नंदिनी ने परेशान होते हुए पूछा.

लोगो को एक आसान झूठ एक मुश्किल सच से कई गुना बेहतर लगता हैं. ये कहानी तुम्हारी वाली हकीकत से कई आसान हैं और ज्यादा भरोसेमंद भी...

तभी एक हवलदार आया. सर फोन आ गया हैं. उस हवालदार ने कहा.

तुम काफी थक चुकी हो. अब घर जाकर आराम करो. आगे मैं संभाल लूंगा. विजय ने कहा.

मगर....

मगर–वगर कुछ नही. तुम्हे मुझ पर विश्वास हैं न.

हां..बिलकुल. नंदिनी ने मुस्कुराकर कहा.

तो तुम सब मुझ पर छोड़ दो और निश्चिंत होकर घर जाओ.

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Re: रहस्यमई आँखें

Post by Jemsbond »


05/02/2013

अब किस पर विश्वास करना हैं और किस पर नही कुछ समझ में नहीं आ रहा था. कल जो हुआ सब अप्रत्याशित था. आखिर राणा ने अंतस पर क्यों हमला किया था? और उस आदमी ने कहा था कि संगठन मुझसे दूर रहे. आखिर यह संगठन क्या हैं और वो लोग क्यों मुझे उससे दूर रखना चाहते हैं? कहीं अंतस का इस सगठन से कुछ लेना देना तो नही हैं? कहीं अंतस से मिलना मेरे लिए खतरनाक तो नही हैं. और अंतस कह रहा था कि उसके पास ज्यादा वक्त नही हैं, आखिर वो किस बात से डर रहा था?

इन सारे सवालो से ही कल से मेरा दिमाग घूम रहा था. मुझे अंतस से मिलने से डर लग रहा था, मगर मेरे लिए इन सवालो का जवाब जानना भी जरुरी था. आखिरकार अब ये मेरे वजूद का सवाल था.

मैंने अंतस को फोन लगाया.

तुम आज आ रही हो न? उसने सामने से पूछा.

हां...मगर तुम्हारे रूम पर नही..हम गार्डन में मिलेंगे.

हा...हा...हा...वो हंसने लगा. तुम्हारा डर मैं समझ सकता हूँ, मगर तुम भी तो मेरा डर समझो. अगर इस बार वो लोग आये तो मैं उनसे नही लड़ सकूँगा.

तो इस बात की क्या गारंटी हैं कि वो तुम्हारे रूम पर नही आयेंगे? मैंने भी अपना दिमाग चलाते हुए कहा.

हां, मुझे पता हैं इसीलिए मैंने कल शाम को ही होटल चेंज कर लिया हैं. आज तुम्हे होटल लीला में आना हैं.

होटल लीला! मैंने चौंकते हुए कहा. वो मेरे घर से कोई सौ किमी दूर हैं.

बिलकुल...तुम बस अपनी गली से बाहर आ जाना..वहां एक कार तुम्हे लेने आ जाएगी.

कार! मगर मैं उसे पहचानूंगी कैसे?

तुम पहचान जाओगी.

हम्म...ठीक हैं. मैंने फोन रखते हुए कहा.

मुझे वास्तव में घबराहट हो रही थी. फिर भी मुझे सच तो जानना ही था. सो मैंने फैसला कर लिया की मैं उससे मिल कर ही रहूंगी.

मैं 10.30 बजे तक तैयार होकर घर से निकल गयी. मैं गली के बाहर जाकर खड़ी हुई ही थी कि एक कार आकर रुकी. मैं उसकी और देखने लगी तभी कार का

दरवाजा खुला और एक आदमी बाहर निकला.

अरे! मैं चौंक गयी. यह तो वहीँ ऑटो वाले काका हैं, जिससे मैं अक्सर कोलेज जाती हूँ. उन्होंने सफ़ेद रंग के ड्राईवर वाले कपडे पहन रखे थे. बिलकुल वासी ही जैसे अमीर लोगो के ड्राईवर पहनते हैं.

काका! आप कार भी चलाते हैं. मैंने उन्हें देखते ही पूछा.

बैठो बिटियाँ. उन्होंने पीछे का दरवाजा खोलते हुए कहा.

बैठो मतलब? आप मुझे लेने के लिए आये हैं? आप अंतस को जानते है?

हां...आप जल्दी से कार में बैठिये...हमें देर हो रही हैं.

मैं कार मैं बैठ गयी और वो ड्राइव करने लगे.

काका..आप अंतस को कैसे जानते हैं?

बेटा...आप अभी बहुत-सी बाते नही जानते हो लेकिन अब सब जान जाओगे.

..मगर उस दिन जब हम अंतस को हॉस्पिटल लेकर गये थे उसदिन आप ऐसे बर्ताव कर रहे थे जैसे आप उसे जानते ही नही हो...और उस दिन जब उन लडको ने मुझे छेड़ा था....

मैं कहते कहते रुक गयी. अब मुझे समझ में आ रहा था कि यह सब कुछ मेरी समझ से बड़ा था. मैने कभी गौर ही नही किया था कि हर बार जब भी मैं किसी मुसीबत में होती थी हर बार इन काका का ऑटो ही मुझे लेने आता था.

बच्चे...अभी तुम्हे बहुत कुछ जानना हैं मगर अभी के लिए बस इतना समझ लो कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं तुम्हारी भलाई के लिए ही कर रहे हैं.

मैं पीछे हज़ारो सवालो से गिरी हुई चुपचाप बैठी रही
………………………..
दो दिन मौसम शांत रहने के बाद आज फिर से आसमान में काली घटायें छा गयी थी। लगातार बिजलियाँ चमक रही थी। विजय थाने से नहाया था। दिन भर हुई कार्यवाही से वो काफी थक गया था। वो अभी कपडे पहन ही रहा था कि डोरबेल बजी। इतना लेट कौन हो सकता हैं? उसने मन ही मन सोचा। कहीं थाणे से तो कोई नही हैं? हो सकता हैं कोई इमरजेंसी हो। उसने फटाफट कपडे पहने और दरवाजा खोला, हाथ में बैग लिए नंदिनी खड़ी थी।
नंदिनी तुम यहाँ? इस वक्त....विजय ने कुछ चिंतित होते हुए कहा।
हाँ, वो मुझे घर पर अकेले काफी घबराहट हो रही थी तो मैं यहाँ आ गयी। उसने अंदर आते हुए कहा। सब ठीक से हो गया न, कोई प्रॉब्लम तो नही हुई। नंदिनी काफी परेशान लग रही थी और होना भी चाहिए, आखिर उसके करियर का सवाल था।
अंदर विजय के कपडे इधर उधर पड़े थे, घर भी पूरा अस्त व्यस्त था, विजय तेजी से अंदर गया और कपडे इकट्ठे कर अलमारी में रखने लगा।
नही कोई दिक्कत नही हुई। अब सब ठीक हैं। वैसे तुम फोन करके भी पूछ सकती थी। विजय ने कुछ पेपर ड्रावर में रखते हुए कहा।
क्यों, तुम्हे मेरा यहाँ आना अच्छा नही लगा? नंदिनी पलंग पर बैठी थी, उसने विजय को घूरते हुए कहा। विजय एक सेकंड के लिए रुक गया। उसने नंदिनी को देखा जैसे वो उसकी मनोस्थिति को समझना चाहता हो।
नही ऐसी तो कोई बात नही हैं...वो तो बस अँधेरा ही था सो...
तुमने खाना खा लिया? नंदिनी ने विजय को अनसुना सा करते हुए कहा।
नही मैं तो बस अभी आया हूँ..क्यों?
मैं तुम्हारे लिए खाना लेकर आई हूँ। नंदिनी ने बैग से टिफ़िन निकालते हुए कहा।
ओह थैंक्स, मगर तुमने इतनी तकलीफ क्यों की? विजय ने पास पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए औपचारिकतावश पूछा.
विजय नंदिनी के इस अजीब बर्ताव से अचम्भे में था. उसे समझ में नही आ रहा था की नंदिनी उसके प्रति इतना लगाव क्यों दिखा रही हैं? कहीं वो दिन में उसके द्वारा की गयी मदद को अहसान मान कर उसका बदला चुकाने की कोशिश तो नही कर रही हैं.
नही ऐसा कुछ नही हैं, वो तो मैं बस थाने से थोडा जल्दी आ गयी थी तो मैंने सोचा की मेरे साथ-साथ तुम्हारे लिए भी खाना बना दूँ. वैसे भी तुम बाहर का खाना खा-खाकर पक गए होंगे तो मैंने सोचा की तुम्हे अपने हाथ का बकवास खाना भी टेस्ट करवा दूँ. नंदिनी ने हँसते हुए कहा. विजय भी हंसने लगा इसके बाद दोनों बैठ कर खाना खाने लगे.
वो लोग कौन थे? खाना खाते हुए नंदिनी ने पूछा.
कौन?
वही जो उस लाश को लेने के लिए आये थे.
नंदिनी तुम तो जानती ही हो पुलिस की नौकरी में अच्छे से ज्यादा बुरे लोगो से काम पड़ता हैं. उनका काम ही यहीं हैं...ठिकाने लगाना.
नंदिनी ने एक सेकंड के लिए विजय को घुरा.
खैर जो भी हो..आज तो बाल-बाल बच गए. नंदिनी ने राहत की सांस लेते हुए कहा. वे अब तक खाना खा चुके थे.
हां सो तो हैं..मगर फिर भी हमें सावधान रहना होगा. यह बात किसी भी तरह बाहर नही पहुंचनी चाहिए. वरना कुछ भी हो सकता हैं...
तभी बरसात शुरू हो गई. आसमान में गर्जन के साथ बिजलियाँ चमकने लगी. तेज हवाओ से खिड़कियाँ टकराने लगी. विजय उठा और उसने खिड़कियाँ बंद कर दी. कुछ देर बाद लाइट भी चली गयी. विजय ने ढूंढ कर एक मोमबती जला ली.
कुछ देर तक दोनों खामोश बैठे रहे. उन दोनों के बिच ख़ामोशी शोर मचा रही थी.
यह बरसात भी न...विजय ने कुछ बात छेड़ने की कोशिश की. आजकल बिन मौसम भी बरसात आ जाती हैं. उसने शब्द ढूढ़ते हुए कहा.
मगर यह तो बरसात का मौसम ही हैं. नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा.
हां मगर फिर भी तुम अब घर कैसे जाओगी?
अब यह चिंता का विषय था. नंदिनी अब तक इस बारें में सोचा ही नही था कि अगर बरसात बंद नही हुई तो वह घर कैसे जाएगी? ऊपर से रात भी काफी हो गयी थी. 10.30 बजे का वक्त हो गया था.
वैसे अगर तुम चाहो तो यहाँ रुक सकती हो. विजय ने एक विकल्प सुझाया जिसके चुने जाने के आसार वो जानता था कि नगण्य हैं.
हां मैं भी यहीं सोच रही थी काफी लेट हो गया हैं तो अभी जाना सही नही रहेगा.
विजय यह जवाब सुनकर चौंक गया. उसे इसकी बिलकुल भी उम्मीद नही थी. बल्कि उसके पास तो इसकी कोई तैयारी भी नहीं थी. उसके पास एक ही बेड था, और बिस्तर भी गिने चुने ही थे. ऊपर से छत भी टपक रही थी. उसे लगा था कि नंदिनी जाने की बात करेगी तो वो छोड़ आएगा. मगर यहाँ तो कुछ उल्टा ही हो गया था.

रात की 12.00 बज चुकी थी. बाहर मद्धम- मद्धम बारिश हो रही थी. अन्दर नंदिनी और विजय दोनों अब भी बैठे थे और अपनी ज़िन्दगी की कुछ बाते कर रहे थे.
वाह क्या बात हैं, आपने सारे एग्जाम फर्स्ट एटेम्पट में ही पास कर लिए, मुझे तो एंट्रेंस भी दो बार देना पड़ा था.
सारे नही...फाइनल में एक अटेम्प्ट लगा था. नंदिनी ने कुछ याद करते हुए कहा. उसकी आवाज एक दम धीमी हो गयी थी.
क्या हुआ तुम कुछ अपसेट हो गयी. विजय ने नंदिनी का चेहरा पढ़ते हुए कहा.
नहीं कुछ नही. नंदिनी ने ना में सर हिला दिया.
उस दिन जब हम याग्निक से मिलने गए थे तब भी तुम अपसेट थी, तुम याग्निक को कैसे जानती हो?
ऐसे ही वो मेरा पुराना दोस्त था. नंदिनी ने और भी धीरे से कहा.
तुम उससे प्यार करती थी?
नंदिनी ने चौंक कर विजय की तरफ देखा. तुम्हे कैसे पता?
उस दिन मैंने तुम्हारी आँखों में एक दर्द देखा था. ऐसा दर्द किसी को न पाने के कारण होता हैं या फिर किसी को खोने पर होता हैं.
खोया तो तुमने भी किसी को हैं. कौन थी वो?
मेरा पहला और आखिरी प्यार...अफ़सोस मैं उससे कभी इज़हार नही कर पाया.
इज़हार नही कर पाए मतलब, वो नही जानती थी की तुम उससे प्यार करते हो.
शायद जानती थी.... विजय ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी जैसे आगे कुछ बताना नही चाहता था.
क्या हुआ था?
नंदिनी कुछ लोग हमारी ज़िन्दगी में आते ही दूर जाने के लिए हैं. वो हमारे लिए यादें छोड़ जाते हैं और कई बार एक मकसद भी, जिसे पूरा करने के लिए हम अपनी ज़िन्दगी भी लगा सकते हैं.
सही कहा तुमने विजय. अगर जो मेरे साथ हुआ था अगर न हुआ होता तो आज मैं शायद यहाँ तक न पहुँच पाती.
विजय ने अपना एक हाथ नंदिनी के हाथ पर रख दिया. दोनों के बीच फिर एक खामोशी छा गयी. मोमबती भी अब पूरी ख़त्म हो गयी थी, उसकी लौ अब बुझने से पहले फडकने लगी थी. नंदिनी ने विजय के कंधे पर सिर रख दिया था. विजय ने नंदिनी की पीठ पर हाथ रखा और उसे अपने में समा लिया. मोमबती बुझ चुकी थी, चारो और अँधेरा हो गया.

सुबह जब नंदिनी उठी तो यह उसकी ज़िन्दगी की एक नयी शुरुआत थी. एक ही रात में विजय के साथ उसका रिश्ता पुरी तरह से बदल चूका था. मगर नंदिनी इससे खुश थी. शायद विजय ही वो इंसान था जिसके साथ वो अपनी पूरी ज़िन्दगी गुज़ारना चाहती थी.
सुबह उठकर नंदिनी अपने घर गयी और वहां से तैयार होकर वापस थाने पहुंची. कुछ देर बाद नंदिनी ने हवालदार को आवाज लगाईं.
जी मैडम. हवालदार ने अन्दर आते हुए कहा.
मैंने तुम्हे ट्रांसपोर्ट ऑर्गनाइजेशन की मीटिंग के बारे में पता करने के लिए कहा था. कुछ पता चला?
हां..मैडम आज तो क्या इस पुरे महीने ट्रांसपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन की कोई मीटिंग नही हैं.
लगा ही था...और वो उस ड्राईवर का सामान कहाँ हैं?
लाकर में हैं मैडम.
लेकर आओ. इतने में विजय भी अन्दर आ गया था.
कुछ देर बाद हवालदार एक पैकेट लेकर आया. जिसमें ड्राईवर का पर्स, मोबाइल वगैरह थे.
नंदिनी ने जैसे ही पैकेट टेबल पर खाली किया एक चीज पर उसकी नज़र रुक गयी. यह गले में पहनने की चांदी की माला थी, जिसमें हु-ब-हु वहीँ त्रिशूल था जो उसने राणा के गले में देखा था.
हम्म...तो ये बात हैं. नंदिनी ने वापस हवालदार को बुलाया.
एक काम करो, मुझे भारत सेवा संस्थान के बारें में पूरी डिटेल निकालकर दो.
जी मैडम.
कोई आधे घंटे बाद गाडी होटल लीला के सामने जाकर रुकी.
फर्स्ट फ्लोर पर कमरा नंबर ११८. मैं जब कार से उतरी तो काका ने कहा. मैं अन्दर गयी और लिफ्ट से ऊपर पहुंची. मुझे अब भी डर लग रहा था. मैं अकेली अंतस से मिलने इतना दूर एक होटल के कमरे में जा रही थी, यह जानते हुए भी अंतस एक तांत्रिक हैं और ऊपर से राणा ठाकुर भी चाहता हैं कि मैं अंतस से दूर रहूँ. कही ऐसा तो नहीं की अंतस मुझे किसी साजिश में फंसा रहा हैं. मगर फिर भी अब मैं काफी दूर आ चुकी थी, अब मेरे लिए सच जानना काफी ज़रूरी था.
मैंने अंतस के कमरे के सामने जाकर दरवाजा खटखटाया. कुछ ही देर में अंतस ने दरवाजा खोला. ऐसा लग रहा था वो तैयार ही बैठा था.
-आओ अन्दर आ जाओ. कोई तकलीफ तो नही हुई न.
-नही...तुम काका को कैसे जानती हो? मैंने अन्दर आकर बैठते हुए पहला सवाल दागा.
-वो तुम्हारे पापा के पुराने दोस्त हैं. उसने सीधा जवाब दिया जो मेरी उम्मीद के विपरीत था, वरना तो वो एक सवाल के बदल दूसरा सवाल ही पूछता था. मगर फिर भी आज मैं इस सब में नही उलझना चाहती थी.
-ठीक हैं...अब तुम मुझे सब शुरू से बताओ. तुम कौन हो, मुझसे क्या चाहते हो और उस तस्वीर में मेरी माँ के साथ कौन हैं? आज मैंने भी सोच लिया था, आज तो मैं सच जान कर रहूंगी.
- ध्यान से सुनो. अंतस ने कुछ देर रुक कर कहा. मैं जो तुम्हे बताने जा रहा हूँ वो जानने के बाद तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी बदलने वाली हैं. क्योंकि अब तक तुम अपने और दुसरो के बारें में उतना ही जानती हो जितना तुम्हे बताया गया था. उसने एक घूंट पानी का पिया. तुमने भारत सेवा संस्थान के बारें में सुना हैं?
-बीएसएस? मैंने आसान भाषा में कहा.
-हां वही..
-बीएसएस के बारें में कौन नही जानता हैं, देश-विदेश में योग सिखाती हैं. बीएसएस देश की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था हैं. पुरे देश में धर्म की रक्षा का झंडा इन्होने ने ही तो उठा रखा हैं.
-बिल्कुल सही, मगर वो सब सिर्फ लोगो को दिखाने के लिए हैं, बिएसएस वास्तव में एक तांत्रिको का संगठन हैं. जिसे हम संगठन के नाम से जानते हैं.
-क्या बकवास कर रहे हो. बीएसएस और तांत्रिक...
-यही सच हैं ताश्री! सालो से या यूँ कहो सदियों से हमारे देश में तांत्रिको का यह संगठन राजनीति और धर्म को प्रभावीत करते आया हैं. देश की आज़ादी की लड़ाई से हो या फिर प्रधानमंत्री का चुनाव हो, इस संगठन का हमेशा हस्तक्षेप रहा हैं. वर्षो तक समाज में नकारात्मक छवि में रहने के बाद देश के तांत्रिको को समझ में आ गया कि अगर उन्हें अपने वजूद बचाना हैं तो उन्हें संगठित होना होगा. और कुछ सालो पहले उन्होंने एक संगठन बनाया और बिएसएस के छद्म आवरण के जरिये सारे तांत्रिको को एकजुट किया. आज पुरे समाज में तांत्रिक फैले हुए हैं. हम आम इंसानों की तरह ही रहते हैं, किसी रिक्शे के ड्राईवर से लेकर किसी राज्य के मुख्यमंत्री तक कोई भी व्यक्ति इस संगठन का सदस्य हो सकता हैं. हम लोग कोई काला चोगा नही पहनते हैं, कोई सार्वजनिक साधना नही करते हैं.
- मगर फिर भी तांत्रिको का इतना बड़ा संगठन छुपा हुआ कैसे रह सकता है? मुझे अब भी उसकी बातो पर विश्वास नही हो रहा था.
-क्योंकि संगठन के सदस्य संगठन के लिए जान दे भी सकते हैं और जान ले भी सकते हैं. संगठन के हर सदस्य को एक बात अच्छी तरह से सिखाई जाती हैं और वो हैं छल करना. कोई तब तक हमारे बारें में सच नही जान सकता जबतक हम खुद ऐसा न चाहे और अगर कोई जान भी जाए तब भी वो किसी दुसरे को बताने के लिए जिन्दा नही रहता हैं.
- फिर भी इस सब का मुझसे क्या लेना देना हैं?
- उस फोटो में तुम्हारी माँ के साथ जो आदमी हैं, वो श्री मृत्युंजय महाराज हैं. हमारे संगठन के प्रमुख.
- क्या? मैं चौंक कर उठ खड़ी हुई. तुम यह कहना चाहते हो की मेरी माँ इस सबके बारें में जानती हैं.
- तुम्हारी माँ खुद संगठन की प्रमुख रह चुकी हैं. पूरा संगठन उन्हें गुरु माँ के नाम से जानता हैं.
- क्या बकवास कर रहे हो.
मुझे सब कुछ पता चलने बाद भी कुछ समझ में नही आ रहा था. आखिर मेरी माँ देश के सबसे बड़े तांत्रिको के संगठन की प्रमुख कैसे हो सकती हैं? वो तो इतनी आम दिखती हैं, बिलकुल किसी आम गृहणी की तरह, मैंने जब से होश संभाला हैं उन्हें मेरी परवरिश करते हुए ही देखा हैं. वो तो किसी से ज्यादा बात तक नही करती हैं. मुझे अब लगने लगा था कि अंतस जरुर कोई न कोई बड़ा झूठ बोल रहा था.
- मैं नहीं मानती. मैंने कभी मेरी माँ को किसी संगठन के बारे में बात करते हुए नही सुना.
- हां क्योंकि तुम्हारी माँ ने संगठन ने छोड़ दिया था. वो दूसरी इंसान थी जिन्होंने संगठन से बगावत की थी और आज तक जिंदा हैं. उसने ऐसे कहा जैसे यह कोई गर्व की बात हो.
- और वो पहला इंसान कौन हैं? मुझे कुछ समझ ही नही आ रहा था अंतस क्या कह रहा हैं.
- राणा ठाकुर.
- मगर मेरी माँ ने संगठन क्यों छोड़ा?
तभी दरवाजे पर खट-खट हुई. हम दोनों काँप गए. कही यह राणा के आदमी तो नही थे. अंतस उठा और एक ड्रावर खोला उसमें पिस्तौल के पिस्तौल पड़ी थी, उसने वो उठाई और एक हाथ से पीछे छिपा ली. उसने मेरी और देखा. मैंने से सवालिए नजरिये से देखा. उसने इशारे इशारे में निश्चिंत रहने के लिए कहा.
वो धीरे से दरवाजे के पास गया और पिस्तौल को पीछे छिपा कर ही उसने दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही वो पीछे हट गया. जसी सम्मान में किसी को आने के लिए रास्ता दे रहा हो.
गुरु माँ आप? उसके मुंह से निकला.
यह मेरी माँ थी. पूरी गुस्से से भरी हुई. उन्होंने अन्दर आते ही अंतस को खींच कर एक तमाचा मारा.

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Re: रहस्यमई आँखें

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नंदिनी ने जैसे ही पैकेट टेबल पर खाली किया एक चीज पर उसकी नज़र रुक गयी. यह गले में पहनने की चांदी की माला थी, जिसमें हु-ब-हु वहीँ त्रिशूल था जो उसने राणा के गले में देखा था.

हम्म...तो ये बात हैं. नंदिनी ने वापस हवालदार को बुलाया.

एक काम करो, मुझे भारत सेवा संस्थान के बारें में पूरी डिटेल निकालकर दो.

जी मैडम.

हवालदार के जाने के बाद नंदिनी ने फोन निकाला और किसी को फोन किया. विजय चुपचाप यह सब देख रहा था.

- नमस्ते राणा साहब! नंदिनी ने एक बनावटी मुस्कान लाते हुए कहा.

- नमस्ते एसीपी साहिबा. आज हमारी याद कैसे आ गयी? उधर से राणा ने भी उसी अंदाज़ में कहा.

- जी आपको शुक्रिया कहना था.

- शुक्रिया..मगर किस बात का?

- आपने हवलदार के हमलावरों को पकडवाने में हमारी मदद की इसलिए.

- इसमें शुक्रियां वाली कौनसी बात हैं? आप मेरी मदद करते रहिये, मैं आपकी मदद करता रहूँगा.

- हम्म...मगर राणा साहब आपने मेरा एक काम नही किया.

- कैसा काम मिस नंदिनी?

- वो त्रिशूल वाला लॉकेट आपने अब तक नही भिजवाया. नंदिनी ने अपनी आवाज में एक कुटिलता लाते हुए कहा.

- मुझे लगा था आपने उसके लिए मना कर दिया था.

- हां..मना तो कर दिया था. खैर मुझे अब एक मिल चूका हैं.

- मिल चूका हैं...कहाँ से मिला हैं आपको?

- उस ड्राईवर की लाश से जिसे आपने पकड़वाया था. शायद वो भी शिवभक्त था.

- ड्राईवर...लाश...वो ड्राईवर मर चूका हैं? राणा ने अचरज में पूछा.

- जी हाँ...उस ड्राईवर ने आत्महत्या कर ली थी. शायद किसी को बचाना चाहता था.

- आप कहना क्या चाहती हैं नंदिनी?

- क्या यह भी एक संयोग ही हैं कि उस ड्राईवर के गले में भी वैसा का वैसा त्रिशूल था, जैसा आपके गले में हैं. जिस ड्राईवर को पूरा पुलिस डिपार्टमेंट नही ढूंढ पाया उसके बारें में भला आपको कैसे पता?

- तो आपको लगता हैं कि वो मेरा आदमी था! भला मैं अपने ही आदमी को क्यों पकडवाऊंगा?

- यह तो मैं नहीं जानती कि उस आदमी को पकड़वाकर आपको क्या मिला मगर जिस दिन में जान गयी यह आपके लिए अच्छा नही होगा.

- मैं आपकी मदद करना चाह रहा हूँ और आप उल्टा मुझ ही पर शक कर रही हैं? अगर कोई दोस्ती का हाथ बढाए तो उसके हाथ में खंजर घौपना अच्छी बात नही मैडम.

- मेरा भला-बुरा मैं अच्छी तरह से समझती हूँ, बेहतर हैं आप अपनी फिकर करे.

-शुक्रिया मुझे बताने के लिए, मैं आगे से ध्यान रखूँगा.

इसके बाद राणा ने फोन रख दिया. विजय इतनी देर नंदिनी की सारी बातों को सुन रहा था.

- ये तुमने क्या किया नंदिनी? राणा से दुश्मनी ठीक नही हैं.

- हम यहाँ पुलिस की नौकरी करने आये हैं विजय, दोस्त बनाने नही.

- वो तो ठीक हैं, फिर भी राणा ने तो ड्राईवर के बारें बता कर तुम्हारी मदद ही की थी.

- विजय, राणा के गले में भी मैंने ऐसा ही लॉकेट देखा था. नंदिनी ने ड्राईवर के लॉकेट की तरफ इशारा करते हुए कहा.

- ऐसा भी तो हो सकता हैं, कि यह मात्र एक संयोग हो.

- और अंतस के पास भी ऐसा ही लॉकेट था. उस ड्राईवर ने किसी संगठन का जिक्र किया था, ऐसे ही एक संगठन का जिक्र ताश्री की डायरी में भी था, उसने लिखा था कि राणा उस संगठन से जुड़ा हुआ हैं.

- नंदिनी वो एक डायरी हैं और यह हकीकत हैं, तुम दोनों को एक कैसे कर सकती हो?

- ...और अगर वो डायरी भी एक हकीकत ही हुई तो?

- मतलब?

- मतलब यह की अब तक इस केस की तहकीकात यह मान कर हुई हैं कि ताश्री का खून अंतस ने किया हैं, पर अगर उसका खून अंतस ने न किया हो और राणा ने किया हो तो?

- यह सिर्फ एक थ्योरी हैं, और हमारे लिए किसी थ्योरी का तबतक कोई मतलब नही हैं जब तक हमारे पास पर्याप्त सबुत न हो.

- वही तो...अब हमें केवल सबुत ढूंढने हैं...खैर छोड़ो..आज तुम खाना मेरे घर पर ही खाओगे. नंदिनी ने उठते हुए कहा. और उस टिफ़िन वाले को भी मना कर देना.

- क्यों कोई ख़ास वजह हैं? विजय ने मुस्कुराते हुए कहा.

- हां अब मैं तुम्हे और बाहर खाना नही खाने दूंगी. वैसे भी तुम अपनी हेल्थ काफी बिगड़ चुके हो.

- जो आज्ञा मैडम. विजय ने हँसते हुए कहा.

विजय और नंदिनी दोनों केबिन से बाहर आ गये.

- तुमने बिएसएस के बारें में डिटेल्स निकाली? नंदिनी ने हवलदार से कहा.

- जी मैडम. इसकी स्थापना सन १९२७ में हुई देश में धर्म की स्थापना, प्रचार और रक्षा के लिए हुए थी...

- बकवास मत करो, इसके प्रमुखों के बारे में बताओ.

- पहले इसके प्रमुख नित्यानंद महाराज थे कुछ साल पहले उनकी मौत हो गयी थी, फिर उनके बेटे मृत्युंजय महाराज बने थे, अभी वो जेल में हो और...

- जेल में? मगर किस आरोप में?

- मोरल ट्रेफिकिंग मैडम...

- मोरल ट्रेफिकिंग! भला इतने बड़े संगठन के प्रमुख को लड़कियों की तस्करी करने की कहाँ जरुरत पड़ गई?

- जी मैडम. दो साल पहले पुलिस ने इन्हें रंगे हाथो इनके हरिद्वार की शाखा से कुछ लडकियों के साथ पकड़ा था. अभी यह हरिद्वार की जेल में हैं.

- हम्म... नंदिनी ने कुछ सोचते हुए कहा. और अभी संगठन का प्रमुख कौन हैं?

- अभी...मैडम अभी तो कोई वेद सागर नाम का व्यक्ति हैं.

- क्या...वेद! इस वेद के बारें में और डिटेल्स निकालो.

- और डिटेल्स! और तो कोई डिटेल्स नही हैं मैडम.

- इतने बड़े संगठन के प्रमुख के बारें में कोई जानकारी नही हैं?

- वो दरअसल मैडम इनके तीन साल का दीक्षा काल होता हैं, बोले तो प्रोबेशन पीरियड, इस समय के दौरान इनके बारें में कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती हैं.

- वाह क्या बात हैं? फिर भी इसके बारें में हो सके जितना पता करो.

- इस वेदसागर महराज में तुम्हे इतनी दिलचस्पी क्यों हैं नंदिनी? विजय ने पूछा।

- पूजा ने बताया था कि अंतस किसी वेद नाम के आदमी से फोन पर बात कर रहा था। हो न हो यह वहीं वेद हैं।

- जहाँ तक मुझे याद हैं पुजा ने हमें ऐसा कुछ नही बताया था।

- हां, वो मेरी पूजा से एक और मुलाकात हुई थी, उसने तभी बताया था।

इसके बाद नंदिनी वापस अपने केबिन में चली गयी.

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शाम को थाने से घर जाने का समय था. नंदिनी अपने केबिन में घर जाने की तयारी कर रही थी. विजय केबिन में आता हैं.

-तुम भुलना मत आज तुम्हे खाना खाने मेरे घर पर आना है । नंदिनी ने विजय को देखकर कहा।

-बिलकुल मुझे याद हैं। तुम्हे कुछ चाहिए तो नही, मैं आते हुए लेता आऊंगा।

-नहीं, बस तुम आ जाना। नंदीनी ने मुस्कुराते हुए कहा।

- तुम कहो तो तुम्हारे साथ ही आ जाऊं। विजय ने चुटकी ली।

- रहने दो। इतना भी जरूरी नहीं हैं। नंदिनी उसके बाद थाने से निकल गयी।

रास्ते में वो विजय के बारें में ही सोचते हुए जा रही थी। यह उसके लिये एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसे कोई नया जन्म मिला हो। सबकुछ जैसे नया नया लग रहा था। नंदिनी का इस दुनिया को देखने का नज़रिया ही बदल गया था।

तभी नंदिनी को लगा की कोई उसका पीछा कर रहा हैं। काफी समय से एक वैन उसके पीछे लगी हुई थी। नंदिनी ने अपनी जीप रोकी तो वो वैन भी रुक गयी। अचानक उस वैन से एक गोली चली । नंदिनी नीचे झुकी, उसने अपनी जीप के ड्रावर से पिस्तौल निकाली, और वापस उस वैन पर गोली चलाई। मगर ये क्या! नंदिनी की पिस्तौल तो खाली थी। नन्दीनी ने देखा कि उस वैन से चार नकाबपोश लोग उतरे हैं। नंदिनी भी अपनी जीप से उतर गयी। वो लोग चलकर जीप के पास आ गए। वैन भी धीरे धीरे पास आ गयी थी।

-नमस्कार, एसीपी साहिबा! एक नकाबपोश ने कहा और दो नकाबपाशो ने नंदिनी को जबरदस्ती पकड़ कर वैन में डाल दिया।


………

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Re: रहस्यमई आँखें

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विजय थाने से घर आया था और वापस नंदिनी के घर जाने की तैयारी कर ही रहा था तभी उसको एक फोन आया. उसने फोन उठाया, यह थाने से एक कांस्टेबल का फोन था.
“सर वो एसीपी साहिबा....” सामने से कांस्टेबल ने कहा.
“क्या हुआ नंदिनी को?” विजय ने चौंकते हुए पूछा.
“एसीपी साहिबा का अपहरण हो गया हैं स .”
“क्या अपहरण...मगर कब? कैसे?”
“घर जाते वक्त अजमेर रोड पर कुछ गुंडों ने उनका अपहरण कर लिया हैं. किसी ने गुंडों को जबरदस्ती उन्हें वैन में डालते देखा था तो थाने फोन किया.”
तुम उस जगह पर पहुँचो, मैं भी आ ही रहा हूँ...और सुनो यह बात किसी भी हाल में थाने से बाहर नही पहुंचनी चाहिए, समझे?”
“जी सर.”
कुछ वक्त बाद विजय घटनास्थल पर पहुंचा. वहां सिर्फ नंदिनी की जीप पड़ी थी. पास ही उसे खाली पिस्तौल भी मिली. लेकिन उन्हें यह पता नही चला था कि पिस्तौलें पहले से खाली थी. उन्होंने यहीं माना था कि शायद बचाव में नंदिनी ने भी फायर किया होगा जिससे पिस्तौल खाली हो गयी होगी. नंदिनी के जीप के ऊपर फायरिंग के दो निशान भी मिले थे. वहां कुछ देर तफ्तीश करने के बाद विजय ने अलग अलग टीमे बनायीं और जगह-जगह ढूँढने भेजा. पुरे शहर में नाकाबंदी करवा दी गयी. पूरी रात विजय और उसकी टीम जगह जगह ढूंढती रही मगर उन्हें कुछ भी हासिल नही हुआ. सुबह वो वापस थाने आ गये. विजय एक कुर्सी पर निराश सा बैठा था. पास ही एक हवलदार भी खड़ा था.
“सर यह किसका काम हो सकता हैं? मैडम को तो यहाँ आये ही कुछ दिन हुए थे, आखिर उनकी किससे दुश्मनी हो सकती हैं?” हवालदार ने विजय से कहा.
“एक इंसान था जिसके साथ उसकी दुश्मनी हुई थी...चलो मेरे साथ...” विजय ने उठते हुए कहा.
“कहाँ सर?”
“राणा साहब के यहाँ... उनसे मुलाकात करने का वक्त आ गया हैं.”

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गुंडों ने नंदिनी को वैन में डालने के बाद क्लोरोफोम सुंघा कर बेहोश कर दिया. वो पूरी रात उस वैन में पीछे बेहोश पड़ी थी. गुंडों ने उसका मुंह और हाथ बाँध दिए थे. सुबह जब उसको होश आया तो वो अब भी उस वैन के पीछे ही थी, होश आने पर भी नंदिनी ने आँखे बंद ही रखी जिससे कि उन गुंडों को पता न चले की उसे होश आ गया हैं.
“...मुझे तो लगा था इसे उठाने में काफी दिक्कत होगी, मगर ये काम काफी आसानी से हो गया.” उनमें से एक गुंडे ने कहा.
“वो तो अच्छा हुआ इसकी गन खाली थी, वरना इसको पकड़ने मे फट कर हाथ में आ जाती.” दुसरे गुंडे ने कहा.
“हां भाई काम तो काफी मुश्किल था, एक एसीपी को किडनैप करना कोई मजाक काम थोड़ी हैं, मगर आखिर संगठन का सवाल था, खुद मृत्युंजय महाराज का आदेश था तो करना ही था.” तीसरे ने कहा.
“लेकिन आखिर इसे उठाने की जरुरत ही क्यों पड़ी?” पहले वाले ने पूछा.
“शायद यह सगठन के बारें में बहुत कुछ जान रही थी और खुद संगठन के लिए एक खतरा बन सकती थी.”
“तो अब?”
“अभी तक तो बस इसे उठाने के लिए कहा गया हैं बाकि अगले आदेश का इंतज़ार करना हैं...फिलहाल तो बहुत जोर से भूख लग रही हैं, पूरी रात से गाडी चला रहा हूँ.” ड्राईवर ने कहा.
“मगर आदेश हैं कि हमें बीच में कहीं नही रुकना हैं.” पास ही बैठे व्यक्ति ने कहा.
“भाई आदेश तो ठीक हैं मगर मेरे पेट में समस्या हो रही हैं उसका क्या? वो तो आदेश नही समझता हैं न? तीसरे न कहा.
“हम्म...ठीक हैं किन्तु सिर्फ आधा घंटा...और सुनो तुम यही रुको.” ड्राईवर के पास वाले आदमी ने एक आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा.
“जी महोदय...”
उसके बाद वैन एक ढाबे पर रुकी और सारें गुण्डे उतरकर ढाबे पर चले गए. कुछ देर बाद वो व्यक्ति भी वैन से उतारकर बाहर आ गया. उसके उतरने के बाद नंदिनी थोड़ी सी हिली मगर उसके हाथ पीछे बंधे हुए थे और पैर भी बंधे हुए थे. उसे ट्रेनिंग के दौरान ऐसी परिस्थिति से निपटना सिखाया गया था. वो सीधी लेटी और अपने हाथो को ऊँचा कर धीरे-धीरे आगे लाने लगी. यह काफी दर्दनाक प्रक्रिया थी यही एक मात्र रास्ता हैं, कुछ देर बाद उसके हाथ उसके सर से होते हुए उसके मुंह के सामने आ गए, उसने अपने मुंह से हाथो की रस्सी खोली और फिर पैरो की रस्सी भी खोली, उसने वैन में इधर उधर देखा, वहां एक लोहे का जैक पड़ा था, उसने उसे उठाया और धीरे से वैन के आगे आ गयी.वो आदमी कुछ देर खड़ा होकर फोन पर किसी से बात कर रहा था. नंदिनी धीरे से वैन से बाहर निकली और उस आदमी के सर पर जैक से वार किया. वो वही ढेर हो गया. नंदिनी तेजी से वहां से भागी.
उसका मोबाइल शायद उसकी जीप में ही रह गया था, थोडा थोडा उजाला हो गया था, जिससे उसने अनुमान लगाया कि शायद सुबह की छह-सात बज रही हैं. आगे जाकर एक गाँव आया, कोई औरत मटका लेकर पानी लेने जा रही थी.
“यह कौनसी जगह हैं?” नंदिनी ने उस औरत से पूछा.
“फालना गाँव...” उस औरत ने नंदिनी को घूरते हुए कहा.
“जिला कौनसा हैं?”
“हरिद्वार!” उस औरत ने कहा.

राणा ठाकुर उठने के बाद सुबह-सुबह जॉगिंग के लिए गए थे, वहां से वापस आकर नहाने के बाद नाश्ता कर रहे थे.
“काका...” उन्होंने अपने नौकर को आवाज लगाई.
“जी होकम.” एक नौकर दौड़ता हुआ आया.
“प्रताप अभी तक उठा नही?”
“होकम वो रात को देर से ही आये थे.”
“हम्म..यह इसका रोज का हो गया हैं, कल होटल से भी जल्दी ही निकल गया था... जाइए उसको उठाइये और यहाँ नीचे भेजिए.”
“होकम वो...” नौकर नज़रे नीची किये वहीँ खड़ा रहा. राणा समझ गये कि प्रताप को नींद से उठाने की जुर्रत नौकर नही कर सकते हैं.
“ठीक हैं...आप जाइए मैं खुद उठा लूँगा उसे” राणा वापस पेपर पढने लगे. तभी एक पहरेदार अन्दर आया.
“होकम वो इंस्पेक्टर विजय आपसे मिलने आये हैं.” पहरेदार ने कहा.
“इंस्पेक्टर विजय! वो इतनी सुबह यहाँ क्या करने आया हैं...ठीक हैं उसे अन्दर भेजिए.”
थोड़ी देर बाद विजय दो हवलदार के साथ अन्दर आया.
“विजय साहब..क्या बात हैं आज सुबह सुबह कैसे दर्शन दे दिए?” राणा ने उन्हें बिठाते हुए कहा. “काका...मेहमानों के लिए नाश्ता लाना.”
“नही राणा साहब उसकी कोई जरुरत नही हैं, हम यहाँ नंदिनी...आई मीन एसीपी साहिबा के बारें में पूछने के लिए आये हैं.”
“नंदिनी के बारे में! मैं कुछ समझा नही विजय.”
“एसीपी साहिबा का कल शाम को अपहरण हो गया हैं.”
“क्या! मिस नंदिनी का अपहरण हो गया हैं?” राणा ने चौंक कर कहा. “कमाल की बात हैं विजय हमारें शहर में खुद एसीपी सुरक्षित नही हैं तो बाकी जनता का क्या होगा? ...और आप इस बारें में मुझसे क्या पूछताछ करना चाहते हैं? कहीं आपका शक मुझ पर तो नही हैं?”
“राणा साहब...एसीपी साहिबा इस शहर में नयी आई थी और उनकी किसी और से दुश्मनी नही थी. अभी हाल ही में हमारे थाने में एक ड्राईवर ने आत्महत्या की थी और नंदिनी को लगता हैं कि इसके पीछे आपका हाथ था. कल आपकी नंदिनी से कुछ बहस हुई थी न?”
“हां वो उन्हें कुछ गलत फहमी हुई थी मगर इसका यह मतलब तो नही हैं कि मैं उनका अपहरण कर लूँगा.”
“हमें अभी तो सिर्फ आपके ऊपर ही शक हैं...आपको थाने चलना होगा.” विजय ने दृढ़ता से कहा.
“आप मुझे गिरफ्तार करने आये हैं?” राणा ने आखे तरेरते हुए कहा.
“गिरफ्तार नही बस पूछताछ के लिए.”
“आप किसी इज्जतदार व्यक्ति को ऐसे थाने नही ले जा सकते हैं.”
“मेरे पास इसका वारंट हैं...राणा साहब मैं आपकी बात समझता हूँ, मगर मामला काफी गंभीर हैं...”
“प्रताप उठ जाए तो उससे कहना हम किसी जरूरी काम से बाहर गए हैं.” राणा ने अपने नौकर से कहा.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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