रहस्यमई आँखें complete

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Jemsbond
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Re: रहस्यमई आँखें

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मैं होटल पहुंची और उसके कमरे का दरवाजा खटखाया. कुछ ही देर में उसने दरवाजा खोला.
आओ अन्दर आ जाओ.
यह एक फाइव स्टार होटल का शानदार कमरा था. अन्दर तीन-चार अजीबो-गरीब पेंटिंग्स लगी हुई थी. सामने एक ५२” की बड़ी एलइडी टीवी लगी हुई थी. बीच में एक बड़ा सा पलंग था, जिसके पास ही एक टी-टेबल और दो कुर्सियां लगी हुई थी. टी टेबल पर एक गिलास ज्यूस, एक गिलास पानी और एक कॉफ़ी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था जैसे पूरी तैयारी कर के बैठा हुआ था. मुझे आश्चर्य हुआ कि आखिर इतना पैसेवाला लड़का मुझ जैसी आम लड़की के पीछे क्यों पड़ा हुआ हैं?
तुम्हे मेरे रूम पर अकेले आते हुए डर नही लगा? उसने मुझे कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा.
क्यों...तुम्हे लगता हैं कि मुझे तुमसे डरने की जरुरत हैं? मैंने उसकी और देखते हुए कहा. मैं जानना चाहती थी कि मेरा उस पर भरोसा करना कितना सही हैं.
नही...बिलकुल नही...लेकिन फिर भी अचानक तुम्हारा इरादा कैसे बदल गया?
तुम मेरे पिता के बारे में क्या जानते हो?
यही की जो तुम जानती हो वो सही नही हैं.
मैंने अपने पर्स से वो फोटो निकाली और टेबल पर रख दी. मैं लगातार उस फोटो को ही ताक रही थी. मेरी आँखे भर आई थी. वो भी कुछ देर तक उस फोटो को घूरता रहा और फिर उसने मेरी तरफ देखा.
तुम्हे यह फोटो कहाँ से मिला?
मेरे घर के स्टोर रूम से....काश मैं वहां न जाती. मैं रोने लगी.
तुम्हे कभी न कभी तो हकीकत का सामना करना ही था. तुमने अपनी माँ से कुछ कहा?
मुझमें इतनी हिम्मत नही हैं कि अपनी माँ से यह सब पूछ सकूँ.
देखो ताश्री..मेरी बात सुनो....उसने कहते हुए मेरा हाथ पकड़ा. वो अचानक रुक गया. उसने मेरे सिर को छुआ.
तुम्हे तो बुखार हैं! उसें कहा.
नही...बस थोडा सा सिरदर्द हैं.
बुखार और सिरदर्द में फर्क होता हैं. चलो हॉस्पिटल चलते हैं.
नही...मैं ठीक हूँ. पहले मैं जानना चाहती हूँ कि सच क्या हैं?
मैं तुम्हे सब बता दूंगा लेकिन अभी तुम हॉस्पिटल चलो.
उसने मुझे जबरदस्ती उठाया और हॉस्पिटल ले गया. मुझे १०३° का बुखार था. उसने डॉक्टर को बताने के बाद दवाई ली और फिर हम बाहर आ गये. हम ऑटो का इंतज़ार कर ही रहे थे कि अंतस की नज़र सामने पड़ी एक जीप पर पड़ी.
ये यहाँ क्या कर रहा हैं? अंतस ने कहा.
कौन?
राणा ठाकुर!
मुझे आश्चर्य हुआ. यह राणा ठाकुर की ही जीप थी.
मुझे मिले थे वो...
कब?
परसों...मॉल के बाहर...मुझसे माफ़ी मांग रहे थे.
किसलिए?
मुझे उन लडको ने छेड़ा था इसलिए...और तुम्हे पीटा था इसलिए भी...
मुझे पीटा था इसलिए भी माफ़ी मांगी थी. उनसे हँसते हुए कहा.
हाँ..क्यों?
नही कुछ नही. इतने में ऑटो आ गया. हम ऑटो में बैठ गये. घर पहुँच कर जब में उतरने लगी तब उसने कहा.


ताश्री! मैं जानता हूँ कि तुम सच जानना चाहती हो, लेकिन सच तो तुम पहले से ही जानती हो। तुम्हे बस उसे स्वीकार करना होगा। सत्य कहना आसान हैं, सुनना मुश्किल हैं लेकिन उसे स्वीकार करना सबसे मुश्किल हैं।

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पिछले एक घंटे से नंदिनी और एसीपी चतुर्वेदी की मीटिंग चल रही थी. चतुर्वेदी इस थाने के विभिन्न मामलो से एसीपी को अवगत करा रहे थे. बड़े-बड़े गुनाहगार जो पुलिस के लिए सिरदर्द बन गये थे, राजनैतिक चेहरे जो खुद किन्ही गुंडों से कम न थे. किससे कैसे निपटना हैं, किसको नज़रन्दाज करना हैं...सब वो नंदिनी को विस्तार से बता रहे थे. वो भी सारी बातें ध्यान से सुन रही थी. अंत चतुर्वेदी बोले.
कल विजय किसी फाइल के बारें में पूछ रहा था.
हाँ...वो ताश्री मर्डर केस के बारे में कुछ पूछना था.
ताश्री मर्डर केस! उसमें क्या पूछना हैं? वो तो केस ही बंद हो चूका हैं.
बंद हो गया था या कर दिया गया था. नंदिनी ने चतुर्वेदी की आँखों में झांकते हुए पूछा.
आप कहना क्या चाहती हैं मैडम?
जब तक आरोपी कानून की पकड़ में न हो केस बंद नही माना जाता.
हमें कोशिश की थी...लेकिन आरोपी फरार हो चुका था.
आपने फोटो सर्कुलेट किये थे? क्योंकि जहाँ तक मुझे याद हैं इस केस से जुड़ा कोई भी फोटो मेरे थाने में तो नही आया था.
फोटो नही था...हमने स्केच बनवाया था, सर्कुलेट भी करवाया था, हो सकता हैं किसी कारणवश आपके पास न आ पाया हो.
...और अब वो स्केच कहाँ हैं और साथ में एक डायरी भी तो थी?
दोनों यही थे इस फाइल के साथ में...और नंदिनी उस डायरी को वैसे भी सबुत के तौर कैसे पेश किया जा सकता हैं? वो डायरी किसी काल्पनिक कहानी जैसी थी, एक लड़की जिसके पास ऐसी शक्ति हैं कि वो किसी को भी सम्मोहित कर सकती हैं, उसका दिमाग पढ़ सकती हैं. भई जब वो सबका दिमाग पढ़ सकती हैं तो कोई भला उसे मार ही कैसे सकता हैं? वो अपने कातिल का दिमाग क्यों नही पढ़ पायी थी?
यह तो आपको जांच करनी चाहिए थी कि कैसे, क्यों और किसने ताश्री को मारा था?
तो आपको क्या लगता हैं कि हमने किसी के दबाव में जांच रोक दी थी?
मुझे तो इस केस में दो ही बातें लगती हैं...या तो किसी को बचाने की कोशिश की जा रही थी या फिर किसी को फँसाने की कोशिश की जा रही थी.
मिस नंदिनी....सत्य अक्सर वो नही होता हैं जो कि हमें दीखता हैं. हम बस उसकी परछाई का पीछा करते रहते हैं जबकि वो ठीक हमारे पीछे खड़ा होता हैं. हमें जब लगता हैं कि हम उस तक पहुँच चुके हैं...हम उसे पीछे छोड़ आये होते हैं.
सच कही भी छुपा हो एसीपी साहब! मैं उसे ढूंढ ही निकलूंगी.
इसके बाद एसीपी चतुर्वेदी चले गये. नंदिनी को एक बात तो समझ में आ गयी थी कि यह केस वो नही था जो कि दिख रहा था इसे काफी उलझाया गया था. बहुत कुछ छुपाने की कोशिश की जा रही थी. लकिन एक बात फिर भी उसे समझ में नही आ रही थी. एक सवाल जो कि चतुर्वेदी सर ने उठाया था कि अगर ताश्री किसी का भी दिमाग पढ़ सकती थी तो कोई उसे कैसे मार सकता था? क्यों वो अंतस का दिमाग नही पढ़ पा रही थी? क्यों वो नही जानना चाहती थी कि अंतस के दिल में क्या हैं? शायद ताश्री अंतस पर विश्वास करती थी. इतना विश्वास की जो वो आसानी से जान सकती थी वो भी नही जान पा रही थी. अपने सामने खड़े सच को नही देख रही थी. ऐसा विश्वास तो सभी करते हैं. नंदिनी ने भी तो किया था... बेइन्तहा विश्वास...और वो भी नही देख पाई थी जो उसकी आँखों के सामने था....

यह कोई पांच साल पहले की बात हैं नंदिनी आईपीएस एक्साम्स की तैयारी कर रही थी. वह दिन-रात पढाई में ही लगी हुई थी. उसका बस एक ही लक्ष्य था किसी भी तरह इन परीक्षाओ में पास होना. इसके लिए नंदिनी ने शहर की सर्वश्रेष्ठ कोचिंग क्लासेज ज्वाइन की थी. सुबह जाना, शाम को आना, फिर पढाई, रिवीजन.... यही उसकी रोज़ की दिनचर्या बन गयी थी. लकिन एक दिन यह सबकुछ बदल गया.
उस दिन नंदिनी रोज़ की तरह कोचिंग जाने के लिए ऑटो का इन्तेजार कर रही थी. हल्की-हल्की बारिश हो रही थी, जिसने माहौल को काफी ठंडा बना दिया था. कुछ देर इंतज़ार के बाद नंदिनी को एक ऑटो मिला, नंदिनी ने ऑटो रुकवाया और उसमें बैठ गयी. तभी किसी ने पीछे से ऑटोवाले को आवाज दी.
भैया कहाँ जाओगे? एक २४ साल के नौजवान ने पास आकर पूछा.
माफ़ करना भैया! सवारी मिल गयी हैं. ऑटो वाले ने कहा. आप कोई दूसरा ऑटो देखो.
आप जा कहाँ रहे हैं...सिटी हॉस्पिटल?
हाँ भैया लेकिन ऑटो बुक हो चूका हैं.
उस लड़के ने कुछ देर सोचा और नंदिनी की तरफ देखते हुए कहा, सुनिए...अगर आपको कोई तकलीफ न हो तो मैं साथ आ सकता हूँ क्या? मेरी गाडी खराब हो गयी हैं और मैं काम के लिए पहले ही लेट हो चूका हूँ. उसने पास ही मेकेनिक के यहाँ पड़ी अपनी बाइक की तरफ इशारा करते हुए कहा. यहाँ ऑटो बहुत मुश्किल से मिलते हैं और आपको भी सिटी हॉस्पिटल ही जाना हैं, किराया पूरा मैं दे दूंगा.
ठीक हैं. नंदिनी ने बस इतना ही कहा. वो लड़का ऑटो में बैठ गया और ऑटो चल पड़ा.
आप कोचिंग जा रही हैं?
हम्म... नंदिनी ने बाहर देखते हुए ही कहा.
शाह कोचिंग क्लासेज?
हां.
आप आकांक्षा को जानती हैं, मेरी कजिन हैं, वो भी वही तैयारी कर रही हैं.
नही...वहां इतने सारे स्टूडेंट्स हैं कि सबसे जान-पहचान नही हो पाती.
वैसे मेरा नाम याग्निक हैं, पास ही सिटी हॉस्पिटल में काम करता हूँ, कोई काम हो तो याद कर लीजियेगा.
शुक्रिया...नंदिनी ने कहा. नंदिनी का कोचिंग सेंटर आ गया था. नंदिनी वही उतर गयी.
दोपहर को कोचिंग ख़त्म होने पर नंदिनी ऑटो का इंतजार कर रही थी. तभी याग्निक वहाँ पहुँच गया. वो नंदिनी को देख कर मुस्कुराया.
आपके क्लास ख़त्म हो गयी. उसने नंदिनी से पूछा.
हम्म...आपके छुट्टी हो गयी?
अरे नही...लंच ब्रेक हुआ हैं...बाइक लेने जा रहा हूँ, शाम को ऑटो की दिक्कत रहती हैं न. नंदिनी कुछ नही बोली. कुछ देर चुप्पी के बाद याग्निक बोला.
ऑटो शेयर कर ले.
किराया आप ही देंगे. नंदिनी के चेहरे पर हलकी सी मुस्कान तैर गयी.
हां...हां...क्यों नही.
दोनों ऑटो में बैठ गये. रास्ते में याग्निक कुछ-कुछ देर में बात करता रहता था. नंदिनी समझ रही थी कि वो उससे बात करना चाह रहा था लेकिन इसमें कुछ गलत भी नही था...आजकल हर लड़का दूसरी लड़की से बात करना चाहता हैं और लडकियाँ भी...
अगले दिन सुबह नंदिनी कोचिंग के लिए ऑटो का इंतजार कर रही थी. वो आज वैसे ही आधा घंटा लेट हो गयी थी और ऊपर से ऑटो मिल ही नही रहा था. तभी सामने बाइक पर याग्निक आकर रुका.
लिफ्ट चाहिए. उसने हेलमेट उतारते हुए कहा.
जी...नही...मैं चली जाउंगी.
आज मुझे आप लेट लग रही हैं, मेरे पास अहसान चुकाने का अच्छा मौका हैं. उसने हँसते हुए कहा.
नही....कोई बात नही...मैं चली जाउंगी.
ठीक हैं...जैसी आपकी मर्जी... याग्निक ने वापस हेलमेट लगा लिया.
रुको. नंदिनी ने इधर-उधर देखा कोई ऑटो दिख ही नही रहा था. मैं आती हूँ. और नंदिनी बाइक पर बैठ गई.

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28/01/2013
तीन दिन तक मैं बिस्तर में ही पड़ी थी. वायरल हो गया था. आज थोडा ठीक हुआ हुआ हैं. परसों माँ ने NGO से छुट्टी ले ली थी. कल वैसे भी रविवार की छुट्टी थी. माँ से अब मैं बहुत ही कम बात कर रही थी, लेकिन माँ ने बुखार को इसकी वजह मान कर कुछ नही कहा. अंतस रोज़ फोन कर हालचाल पूछ लेता था, मैं अब उसके साथ थोड़ी सामान्य हो गयी थी. माँ से मेरी जो दुरी बनी थी शायद उसे अंतस भर रहा था. वो मेरे इस अकेलेपन का साथी था.
आज थोड़ी तबियत ठीक हुई तो मैं कोलेज गयी थी. माँ तो मना कर रही थी लेकिन मेरा अब घर में दम घुटता था. पूजा आज भी घुमसुम लग रही थी.
तेरी तबियत कैसी हैं? उसने पूछा.
अब थोड़ी ठीक है. मेरा गला एकदम बैठा हुआ था. मैंने एक दबी आवाज में कहा.
तुझे क्या हो गया हैं? मैंने पूछा.
नही...कुछ भी तो नही...ठीक हूँ.
इतनी उदास उदास क्यों लग रही हैं, कोई परेशानी हैं क्या?
नही कुछ नही... उसने मुझसे भी धीरे आवाज में कहा.
तू मिलने भी नही आई. मैंने अब वो बात कही जो मुझे सबसे पहले कहनी थी.
सोरी यार! वो थोडा बिजी हो गयी थी.
तो कम से कम फोन ही कर लेती.
उसने कुछ नही कहा. मुझे वो अजीब लग रही थी. लेकिन हो सकता उसको भी कोई परेशानी हो. वैसे भी मेरी ज़िन्दगी में भी कौनसी कम मुसीबते थी?
दो पीरियड बाद ही वो चली गयी. कह रही थी कोई काम हैं. हाफ ब्रेक के बाद मैं भी बाहर आ गयी. मैंने कोलेज से बाहर आकर अंतस को फोन किया.
तुम कहाँ हो? मैंने पूछा.
कहाँ आना हैं? ये कभी सवाल का जवाब नही देता. हमेशा प्रतिप्रश्न ही पूछता हैं.
मैं कोलेज के यहाँ हूँ.
ठीक हैं...तो तुम कैफे में पहुँचो में वही आ रहा हूँ.
नही...वहां नही वो कोलेज के पास ही रहता हैं..कोई पहचान वाला आ जाएगा तो दिक्कत रहेगी.
हम्म...तो स्वीट कैफ़े आ जाओ.
ठीक हैं. मैने कहा.
यह सिलसिला धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा. नंदिनी को याग्निक पहली नज़र में ही भा गया था. उसकी बातें नंदिनी पर जादू करती थी. नंदिनी जैसे एक नयी ही ज़िन्दगी जी रही थी. इधर नंदिनी की छुट्टी होती उधर याग्निक के लंच ब्रेक हो जाता, दोनों साथ ही खाना खाते. उनकी बातें ऐसी थी की खत्म ही न होती. नंदिनी अब दिन रात याग्निक के ही ख्वाबो में खोयी रहती थी. कुछ दिनों बाद याग्निक ने नंदिनी को मोबाइल लाकर दे दिया. अब दोनों को दिन में जब भी वक़्त मिलता फोन पर बात कर लेते, पुरे दिन एसएमएस-चैटिंग तो थी ही. नंदिनी इस सब में इतना खो गयी कि उसकी पढाई पर भी अब असर होने लगा था. महोब्बत चाहे जितना भी सुकून दे मगर पढाई का तो यह सत्यानाश ही करती हैं. महीने भर बाद ही उसके एग्जाम थे और उसका आधा कौर्स भी न हो पाया था. अब उसकी कोचिंग ख़त्म हो गयी थी और वो घर पर ही पढाई कर रही थी. अंजनी माँ को भी यह बदलाव नज़र आ रहा था, उन्होंने नंदिनी से पूछा भी था लेकिन उसने परीक्षा की टेंशन बता कर इसे टाल दिया था.
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यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
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Jemsbond
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एक दिन नंदिनी शाम को अपनी परीक्षा का प्रवेश पत्र डाउनलोड करने बाज़ार में गयी थी. साइबर कैफ़े से बाहर आते वक़्त उसने बाइक पर याग्निक को जाते हुए देखा.
उसके पीछे साडी में एक लड़की बैठी थी. नंदिनी ने घर आकर याग्निक को फोन किया.
हेल्लो याग्निक... कहाँ हो?
घर पर हूँ.
तुम अभी मार्किट गए थे.
हाँ...क्यों?
नहीं ऐसे ही तुम्हे देखा था सो...तुम्हारे साथ वो लड़की कौन थी?
क्यों क्या हुआ? याग्निक ने हँसते हुए कहा.
ऐसे ही पूछ रही हूँ बताओ न?
अरे बाबा! मेरी भाभी थी.
तुम्हारे भैया कब से हो गए? तुमने कभी बताया नहीं.
तुमने कभी पूछा ही नही. अरे वो मेरे पड़ोस में रहती हैं. उसके पति बाहर रहते हैं. उन्हें कुछ सामान लाना था तो माँ ने मुझे भेज दिया था उनके साथ में. तुम भी कितना शक करती हो.
याग्निक मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, अगर कुछ भी ऐसा वैसा-हुआ तो मैं मर जाउंगी.
ऐसा कुछ नही हैं. कहो तो बात कराऊँ तुम्हारी उनसे?
नही उसकी कोई जरुरत नही हैं...मैं ऐसे ही पूछ रही थी.

एक दिन नंदिनी बैठ कर पढाई कर रही थी कि उसका फ़ोन बजा. यह याग्निक ही था.
तुम मिलने आ सकती हो?
अभी?
हाँ...अभी...
अभी क्यों?
कुछ नही आज छुट्टी थी तो सोचा कि मिल लेते हैं.
कहाँ पर आना हैं?
मरुधरा होटल.
होटल! नंदिनी चौंकी. होटल में क्यों? रोज की तरह कैफे में ही मिल लेते हैं न.
कैफ़े में अच्छे से कहाँ बात हो पाती हैं? होटल में शांति से मिल पाएंगे.
नंदिनी इस 'शांति' का मतलब अच्छी तरह से समझ रही थी.
नही याग्निक में होटल-वोटल में नही आउंगी. मिलना ही ही हैं तो कही भी मिल लेते हैं.
तुम्हे मुझ पर भरोसा नही?
नही वो तो हैं लेकिन...
तो फिर तुम मुझसे प्यार नही करती.
हां...वो भी करती हूँ.
तो फिर उस प्यार के वास्ते आ जाओ.
याग्निक ने नंदिनी को एक बड़े धर्म संकट में डाल दिया था. उसे प्यार और विश्वास के बीच में से एक को चुनना था.....और उसने प्यार को चुना. नंदिनी ने अपना सर्वस्व याग्निक को अर्पित कर दिया. अब ऐसा और कोई नही था जिस पर नंदिनी को और भरोसा हो, ऐसा कोई नहीं जिससे वो और ज्यादा प्रेम कर सके, अब उसका सब कुछ बस वो एक ही था.

एक दिन नंदिनी ने याग्निक को फोन किया.
याग्निक, मुझे तुम्हारी माँ से मिलना हैं.
ये अचानक तुम्हे क्या हो गया हैं?
कब तक हम ऐसे ही छुप-छुप कर मिलते रहेंगे. तुम अपने घरवालो से बात करो, मैं भी नंदिनी माँ को सब बता रही हूँ.
और फिर क्या? पढाई-वडाई सब छोड़ कर घर बैठ जाओगी. अपना करियर भी बनाना हैं या नही? पहले अपने एग्जाम की तैयारी करो...शादी का बाद में देखते हैं...ओके?
हम्म....ठीक हैं.

अभी तो नंदिनी मान गयी थी, लेकिन उसके मन में अजीब भय बैठ गया था. कोई लड़की बहुत कम ही किसी से प्यार करती हैं, लेकिन जब करती हैं तो वो उसपर पूरा अधिकार चाहती हैं.

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मैं वहां पहुंची तो अंतस वहां पहले से ही मौजूद था. अजीब बात हैं मुझे बस कोई आधा घंटा ही लगा होगा यहाँ आने में, लेकिन फिर भी वो मुझसे पहले आ गया था. उसने ज्यूस-कोफ़ी सब पहले से ही आर्डर कर रखा था.
तुम्हारे कोई काम-धंधा नही हैं क्या? मैंने बैठते हुए कहा.
वही तो कर रहा हूँ. वो मुस्कुराया.
ये लड़कियां पटाने का काम कौन करवाता हैं?
तुम्हे लगता हैं मैं तुम्हे पटाने की कोशिश कर रहा हूँ?
करना भी मत..मेहनत बेकार जाएगी.
वो फिर से हंस दिया. अब कैसी तबियत हैं तुम्हारी?
अब ठीक है...वैसे थैंक्स... मैंने कहा.
वो किसलिए.
वो तो तुम भी मुझे लेकर गयी थी.
हाँ सो तो हैं लेकिन.....मैं कहते कहते रुक गयी.मेरी नज़र सामने की टेबल पर पड़ी. ये तो पूजा थी और उसके साथ वो लड़का भी था वही जो उस दिन मॉल के बाहर उसके साथ बाइक पर था. हम्म....तो ये काम था मैडम का जिसके लिए यह कॉलेज छोड़कर आई थी. मैं आज इसे रंगे हाथो पकड़ना चाहती थी ताकि इसके पास झूठ बोलने का कोई बहाना न रहे. मैं उठकर उसकी टेबल के पास गयी.
हाय पूजा! वो मुझे देखकर एकदम सन्न रह गयी.
ताश्री...पूजा ने धीरे से कहा. वो लड़का भी मुझे ऐसे देख रहा था जैसे में कबाब में हड्डी बन कर आई थी. अपने दोस्त से नही मिलवाओगी मुझे. मैंने चेहरे पर झूठी मुस्कान लाते हुए कहा.
हां...वो...ये याग्निक हैं..मेरे पड़ोस में रहता हैं. पूजा ने कहा.
नंदिनी के एग्जाम सिर पर थे और वो पूरी जी-जान से तैयारी में जुटी हुई थी. अच्छे से अच्छे ऑथर्स की बुक, अलग अलग टीचर के नोट्स, खुद के बनाये गए नोट्स.... जो हो सके सब रेफर कर रही थी. लेकिन समय इतना कम रह गया था कि सारा कोर्स कर पाना संभव ही नही हो पा रहा था. नंदिनी याग्निक से भी कम ही बात कर रही थी. दिन में एक आध बार फ़ोन पर हाय-हेल्लो कर लेती थी. मिलना तो अब हो ही नही पाता था.

आज सुबह कोचिंग से फ़ोन आया था कि रिवीजन क्लास थी. नंदिनी भी पहुँच गयी. क्लास ख़त्म होने के बाद नंदिनी वापस आ रही थी कि रास्ते में उसने किसी को सब्जी खरीदते हुए देखा. अरे हाँ...यह तो वही भाभी थी जो उस दिन याग्निक की गाडी के पीछे बैठी थी. एक बार तो नंदिनी ने सोचा कि उन्हें इग्नोर कर दे लेकिन फिर जाने उसे क्या सूझा वो उसके पास गयी.

नमस्ते भाभी....
नमस्ते....! आप कौन? उसने चोंकते हुए कहा.
नंदिनी...मैं याग्निक की दोस्त हूँ.
नंदिनी! अरे हाँ...तुम यग्निक के साथ काम करती हो... याग्निक ने बताया था मुझे तुम्हारे बारें में...लेकिन तुमने मुझे कैसे पहचाना?
मैंने दो दिन पहले आपको याग्निक के साथ देखा था यहीं मार्केट में.
हाँ...वो मेरे लिए साडी लेने आये थे. अनिवर्सिरी गिफ्ट....कल हमारी शादी की सालगिरह हैं ना...उन्होंने तुम्हे बताया तो होगा?

क्या....अनिवर्सिरी?!! नंदिनी की आँखे फटी की फटी रह गयी.
मुझे मालुम था वो बताना भूल गए होंगे. मैंने कहा था अपने ऑफिस के सभी कलीग्स को इन्वाइट करे....कम से कम तुम्हे तो लेकर आये. बहुत तारीफ़ सुनी थी तुम्हारी.... कम से कम मिलना तो हो. ठीक हैं अब मैं चलती हूँ. कल तुम जरुर आना..मैं यग्निक से भी फोन करवा दूंगी, एक नंबर के डफर हैं वो भी....
जी...बिल्कुल...

नंदिनी जैसे सुधबुध खो बैठी थी. उसके तो पैरो तले से ज़मीन ही खिसक गयी थी. उससे चला तक नही जा रहा था, जैसे किसी ने उसके पैरो में बेड़ियाँ बाँध दी हो. उसे अपने सुने पर विश्वास ही नहीं हो रहा था...हो सकता हैं उसी ने गलत सुना हो. याग्निक कभी उसके साथ धोखा कर ही नही सकता. इतना मासुम सा शख्स भला कैसे इतनी बड़ी चाल चल सकता हैं? उस्ने घर आते ही याग्निक को फोन किया. यह लम्हा उसके बहुत ही डरावना था. वो ईश्वर से बार-बार दुआ कर रही थी कि काश उसने जो सूना जो समझा वो सब गलत हो, एक गलत फहमी हो.

हेल्लो यग्निक...
हाँ जान...कैसी हो? क्लास कैसी रही तुम्हारी?
अच्छी थी....नंदिनी ने दबी-सी आवाज में कहा.
क्या हुआ तबियत तो ठीक हैं तुम्हारी..मुझे मालुम हैं तुम खाना खाकर नही गयी होगी. मैंने कितना बार तुमसे कहा हैं...
याग्निक मुझे तुमसे कल मिलना हैं. नंदिनी फोन पर यह बात नही करना चाहती थी या शायद वो एक रात और प्यार के भ्रम में गुज़ारना चाहती थी.
कल...कल तो मुश्किल होगा.
क्यों क्या दिक्कत हैं...कल तो वैसे भी सन्डे की छुट्टी हैं.
नहीं वो घर पर कोई फंक्शन हैं. नंदिनी का शक अब यकीन में बदलने लगा था.
कैसा फंक्शन?
मम्मी-पापा की शादी की सालगिरह हैं.
नंदिनी के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान-सी आ गयी. जैसे ज्वालामुखी का लावा निकलने से पहले धरती पर एक छोटी सी दरार पड़ती हैं.
मम्मी पापा की या तुम्हारी?
क्या बकवास कर रही हो, पागल तो नही हो गयी हो? याग्निक ने चोंकते हुए पूछा.
मुझे तुम्हारी वो भाभी मिली थी आज मार्किट में...कल तुम्हारी और उसकी शादी की सालगिरह में इन्वाइट कर के गयी हैं.
वो...वो...तुम्हे कोई गलतफहमी हुई है....मैं तुमसे अभी आकर मिलता हूँ. याग्निक ने हड़बड़ाहट में कहा.
नही..कल ही मिलते हैं न.... शांति से.... होटल में....
मैं अभी आ रहा हूँ...तुम बस स्टैंड के पास वाले गार्डन में आ जाओ.


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रात की आठ बज रही थी. बरसात के बाद की सर्द हवा शरीर को ठिठुरा रही थी. उस गार्डन में इक्के दुक्के लोग ही बचे होंगे. एक बेंच पर एक साया अकेला घुमसुम सा बैठा था. निष्प्राण, निर्जीव किसी वृक्ष के समान...मानो काटो तो भी उफ़्फ़ तक न करे. जिस व्यक्ति से मिलने के लिए वो दिन रात बैचेन रहती थी आज उससे मिलने में भी उसे कोफ़्त हो रही थी. याग्निक से उसकी डोर तो टूट ही चुकी थी अब तो केवल वजह जाननी बाकि रह गयी थी. कुछ ही देर में याग्निक सामने था.

हैप्पी अनिवर्सिरी जानू.....आंसुओ से डूबे उस चेहरे ने एक झूठी मुस्कान बिखेरते हुए कहा. उसकी आँखों से आंसुओ का झरना बह रह था. वो टूट चुकी थी और केवल वाष्प बन कर उड़ जाना चाहती थी. नंदिनी देखो तुम्हे कोई ग़लतफ़हमी हुई हैं...वो दरअसल.... याग्निक ने सफाई देनी चाही.

बस....याग्निक बस....नंदिनी ने थर्राती आवाज में कहा. मुझे सिर्फ एक सवाल का जवाब दो...क्या वो औरत तुम्हारी पत्नी हैं?

याग्निक कुछ पल रुका. हाँ....उसने एक लंबी निश्वास लेते हुए कहा. लेकिन....

तो फिर तुमने मेरे साथ यह खिलवाड़ क्यों किया? क्यों तुमने मेरे प्यार का मज़ाक बनाया?
मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी नंदिनी...प्लीज मेरी बीवी को इसके बारें में कुछ मत बताना.

नंदिनी जैसे सन्न रह गयी. याग्निक को अब भी केवल अपनी बीवी की परवाह थी.

तुमने कभी मुझसे प्यार किया भी था याग्निक...? नंदिनी ने आखिरी सवाल पूछा.
हाँ...प्यार तो करता हूँ लेकिन....

बस जैसे नंदिनी को अपने सारे सवालो के जवाब मिल गए थे. यह 'लेकिन' बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द हैं. यह भावनाओ के मायने बदल देता हैं. अगर वाक्य के पहले लग जाए तो किसी भी परिस्थिति में रिश्ते को ताउम्र निभाने की शक्ति दे देता हैं. वही अंत में लगे रिश्ते के ख़त्म होने का संकेत दे देता हैं. इसके बाद यग्निक ने हज़ारो दलीले दी लेकिन सब किसी बहाने जैसी थी. जिस रिश्ते की नींव ही खोखली हो उस पर चाहे जितना सीमेंट पत्थर लगा दिया जाए वो दिवार नहीं टिकती.


इस घटना ने नंदिनी को पूरा तोड़ कर रख दिया था. दो दिन तक तो वो सिर्फ रोती रही थी. उसके बाद बीमार ही हो गयी थी. एग्जाम देने भी नही जा सकी थी. अंजनी माँ ने जब नंदिनी को पूछा तो उसने सबकुछ बता दिया. उन्हें भी यह जान कर गहरा सदमा लगा था. विश्वास टूटने पर कैसा लगता हैं वो अपने अनुभव से खूब जानती थी. लेकिन वो भी नंदिनी को ढाढस बंधाने के अलावा और कुछ न कर सकी.

खैर...उसके बाद ज़िन्दगी धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी.नंदिनी अब पहले से कई गुना मज़बूत हो चुकी थी. जैसे लोहा आग में तपने के बाद और भी कठोर हो जाता हैं. उसके स्वाभाव में भी गंभीरता आ चुकी थी. इस बार उसने जी-जान से परीक्षाओ की तैयारी की और पहली ही बार में साक्षात्कार के लिए चयनित हो गयी.

-----------------
मेम! वो हवलदार रामनायक पर फायरिंग हुई हैं. कहते हुए विजय ने केबिन में प्रवेश किया.नंदिनी जैसे किसी नींद से जागी थी. उसकी आँखे आंसुओ से भीगी हुई थी.

कम से कम नोक करके तो आया करो.
नंदिनी ने उल्टा घूम कर अपने आंसू पौंछते हुए कहा.

सॉरी मेम वो अर्जेंट था इसलिए ...
फायरिंग कहाँ पर हुई हैं?
वो टोल नाके पर गश्ती पर गया था. कोई ट्रक वाला ठोक कर चला गया.
अब कहाँ हैं वो?
सिटी हॉस्पिटल में एडमिट करवाया हैं.

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ये मेरी दोस्त ताश्री हैं याग्निक. पूजा ने कहा.
अच्छा तो तुम ताश्री हो, बड़ी तारीफ़ सुनी हैं तुम्हारी. उस लड़के ने चेहरे पर झूठी मुस्कान लाते हुए कहा.
हाँ...लेकिन मैंने तुम्हारे बारें में कभी नहीं सुना. मैंने पूजा को घूरते हुए कहा.
वो.... ताश्री..... मैं तुम्हे बताने ही वाली थी....
चलो कोई बात नही एन्जॉय करो.

मैं वापस अपनी टेबल पर आ गयी.
चलो अंतस चलते हैं यहाँ से.
क्यों क्या हुआ?
कुछ नही यहाँ घुटन सी हो रही हैं.
हाँ वायरल का असर होगा. इतनी जल्दी ठीक भी नही होता.

वायरल का नही यह विश्वास टूटने का असर था. मेरी माँ के बाद पूजा दूसरी इंसान थी जिस पर मैंने सबसे ज्यादा विश्वास किया था...मेरी सबसे अच्छी दोस्त! मेरी माँ की तो मैं आँखे नहीं पढ़ सकती थी, लेकिन पूजा को तो मैंने खुद चुना था. मैंने कभी उसका दिमाग नही पढ़ा था क्योंकि मैं किसी पर विश्वास करना चाहती थी...और किसी के बारें में सबकुछ जानने बाद यह संभव न था.

लेकिन मैं गलत थी....दुबारा. मेरी माँ की तरह पूजा ने भी मुझसे झूठ बोला था. साफ...मेरे मुंह पर....यह बात मैं अब तक समझ नही पा रही थी कि आखिर यह बात पूजा ने मुझसे क्यों छुपाई थी?
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Jemsbond
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Re: रहस्यमई आँखें

Post by Jemsbond »

अब तो मेरी यह हालत हो गयी हैं कि न तो घर में रुकते बनता हैं और न ही कॉलेज जाते बनता हैं. घर में मैं माँ से बात नही करना चाहती थी और कॉलेज में पूजा से चिढ हो रही थी. मगर फिर मैंने आज घर रहना ही बेहतर समझा. माँ आज सुबह जल्दी ही एनजीओ चली गयी थी, मेरे उठने से भी पहले...वैसे मैं उठी भी तो 9.00 बजे थी.

मुझे अंतस के फोन ने उठाया था.

कॉलेज जाओगी?
क्यों? मैंने पूछा.

नहीं ऐसे ही पूछ रहा था.

...ताकि तुम बाहर चाय वाले के याहं खड़े रह कर तांका-झांकी कर सको. मैंने चुटकी लेते हुए कहा.

हाहा...मुझे अब उसकी जरुरत नही हैं. मुझे जो चाहिए था वो मिल चूका हैं.

ओये मिस्टर...ऐसे किसी भरम में मत रहना...तुम्हे कुछ भी मिला-विला नहीं हैं.

तुम्हे ऐसा लगता हैं क्योंकि शायद तुम्हे पता नहीं हैं कि मुझे क्या चाहिए.

मुझे जानना भी नही हैं...

तबियत तो ठीक हैं तुम्हारी?

हाँ अब बेहतर हैं..

उसके फोन रखने के बाद मैंने चाय-नाश्ता किया और नहा कर ध्यान करने बैठ गयी. आज थोडा दिमाग सही लग रहा था.

मैं आसन लगाकर पद्मासन मैं बैठ गयी. मैंने अपनी आँखे बंद कर ली और सिर्फ अपनी साँसों का आना जाना महसूस कर रही थी. मैंने अपना पूरा ध्यान अपनी दोनों आँखों की भोंहो के बीच केन्द्रित कर दिया. कुछ देर बाद में मुझे वहां एक लाल प्रकाश दिखा जो कि सफेद हो गया.

मैं एक रेगिस्तान में थी. लेकिन यह बिलकुल गर्म नही था, आसमान में काले बादल छाए हुए थे. चारो तरफ रेत ही रेत फैली हुई थी. कुछ ही दूर एक पानी की झील थी. जिसके किनारे पर एक सफ़ेद घोडा खड़ा था. यह वहीँ घोडा था मगर आज इसके पंख भी थे. मैं उसके पास गयी और उसे सहलाया. वो एक बार हिनहिनाया और फिर दूर जाकर खड़ा हो गया. पता नही इसकी मुझसे क्या दुश्मनी हैं, मैं जब भी इसके पास जाती हूँ यह मुझसे दूर चला जाता हैं. मैं फिर से इसके पास गयी, मैंने अपने एक हाथ की हथेली उसके सर की ओर कर दी और अपनी नज़रे झुका ली. मैंने सुना था कि घोड़े आँखों में देखने पर वो बिदक जाते हैं. मैं धीरे से अपना हाथ इसके पास ले गयी और इसके सिर पर रख दिया. इस बार यह शांत खड़ा था. मैं इसे प्यार से सहलाने लगी.

मुझे तुम पर विश्वास हैं. मैंने धीरे से इसके कानो में कहा.

वो फिर से हिनहिनाया.

तुम्हे मुझसे डरने की जरुरत नही हैं. तुम भी मुझ पर विश्वास कर सकते हो. इस बार उसने अपने पंख जोर से फद्फदाये और नीचे बैठ गया. यह बिलकुल अजीब बात हैं घोड़े कभी जमीन पर नहीं बैठते. मैं कुछ देर उसे देखती रही और फिर उसके ऊपर बैठ गयी, वो कुछ दूर भागा और फिर हवा मैं उड़ गया.

यह आजतक का मेरा सबसे शानदार मुझे अनुभव था. मैं अपने सपनो की दुनियां की उड़ान भर रही थी. मुझे डर तो लग रहा मगर यह रोमांचक भी था. पहले हम इस रेगिस्तान के उपर से गुजरे जिसके किनारे पर एक समुद्र था जिसके दुसरे छोर पर था एक जंगल जो की एक पहाड़ के करीब ख़त्म हो रहा था...इस पहाड के दूसरी और बर्फ जमी थी. आगे पूरी एक बर्फ के पहाड़ो की श्रंखला थी. उस घोड़े ने मुझे एक पहाड़ पर लाकर उतार दिया. यहाँ चारो और बर्फ ही बर्फ थी मगर ठण्ड नही थी. मुझे नीचे उतार कर वो घोडा उड गया. मैने देखा कि उसने मुझे जहां उतरा हैं उसके ठीक सामने एक गुफा थी. आखिर यह घोडा मुझे यहाँ इतनी दूर क्यों लाया? जरुर यहाँ कुछ न कुछ हैं जो वो मुझे दिखाना चाहता हैं. मैं उस गुफा में घुसने ही वाली थी तभी आसमान एक बिजली कड़की. मगर इसके गरजने की आवाज थोड़ी अलग थी. मै ध्यान से ऊपर देखने लगी. वहां एक और बिजली कडकी मगर इस बार आवाज और भी अलग थी यह किसी घंटी जैसी बिलकुल पतली आवाज थी...फिर दो तीन बार और घंटी बजी. तभी मेरे पास आकर एक बीजली गिरी....बिलकूल अँधेरा हुआ और मेरी आँखे खुल गयी.

मैं ध्यान से बाहर आ गयी थी. कोई लगातार डोरबेल बजाये जा रहा था. मैं सामान्य हुई और मैंने दरवाजा खोला. यह पूजा थी.

क्या कर रही थी? इतनी देर क्यूँ लगा दी गेट गेट खोलने में... उसने अन्दर घुसते हुए पूछा.

कुछ नही...वो हेडफ़ोन लगा रखे थे. मैंने झूठ बोलते हुए कहा.

ओह! मुझे लगा सो रही थी.

तू कोलेज नही गयी? मैंने कहा.

गई थी, लेकिन तू नही थी तो वापस आ गयी. वो अब तक अन्दर आकर बैठ चुकी थी.

मैं तो पहले भी दो-तीन दिन कोलेज नही आई थी. मैंने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

तो तू मुझसे अबतक नाराज हैं.

...और क्या पता...आज भी अपने बॉयफ्रेंड से मिलने के लिए ही छुट्टी मार ली हो. इस बार मैंने थोडा सा गुस्से में ही कहा.

वो मेरा बॉयफ्रेंड नही हैं.

इस तरह छुप-छुपकर अकेले कैफे में बॉयफ्रेंड के साथ ही जाते हैं.

तो वो जो तुम्हारे साथ था वो तुम्हारा बॉयफ्रेंड था. उसने इस बार फिर से तीर मेरी और घुमा दिया.

कम से कम तुम उसके बारें में जानती तो हो...मैंने तुम्हारे मुंह पर झूठ तो नही बोला. मैं तैश में आ गयी थी. वो चुप हो गयी और सर झुकाकर बैठ गयी.

मैं कुछ शांत हुई और फिर बोली.

हम्म...तो तुम्हे मुझ पर विश्वास नही हैं. मेरी सबसे अच्छी दोस्त को ही मुझ पर विश्वास नही हैं. पता हैं जब तुम बीमार होने का बहाना बनाकर घर जाती थी, तब मुझे हमेशा पता होता था कि तुम झूठ बोल रही हो...मगर क्यों बोल रही हो यह मुझे कभी समझ में नही आया. मैं उस लड़के के बारे में ज्यादा तो नही जानती पूजा मगर एक बात मैं उसे देखकर ही बता सकती हूँ कि वो लड़का तुम्हारे लायक नही हैं.

मैं जानती हूँ ताश्री...वो एक नंबर का कमीना हैं.

मतलब?

तुम जानकार भी क्या करोगी? तुम दिमाग पढ़ सकती हो मगर अतीत नही बदल सकती.

क्या हुआ? बताओ तो सही.

वो लड़का मुझे ब्लैकमेल कर रहा हैं.

तुमने ऐसा क्या किया था जो वो तुम्हे ब्लैकमेल कर रहा हैं.

तुम्हे अंकित तो याद होगा?

हाँ...वो लड़का जो तुम्हारे पीछे पड़ा था.

हां वो ही...मुझे भी उससे प्यार हो गया था.

अंकित से!!? मैंने आँखे फाड़ कर पूछा.

...और मैं प्रेग्नेंट हो गयी थी. ये मेरे लिए असली झटका था. मेरा सर चकरा गया.

तुम प्रेग्नेंट हो?

नही, अब नही हूँ.

मतलब तुमने एबॉर्शन करवाया था.

हम्म...

कब?

तुम्हे याद हैं मैंने महीने भर पहले दो तीन दिन की छुट्टियां ली थी कॉलेज से....

तो तुमने अपने घरवालों को क्या बोला?

दोस्त की शादी में जा रही हूँ.

...और तुम्हारे घरवाले मान गए?

हां...क्योंकि मैंने कहा था कि तुम्हारे साथ जा रही हूँ.

मैंने अपना सिर पिट लिया. लेकिन इससब का उस लड़के से क्या कनेक्शन हैं.

वो मेरे पड़ोस में रहता हैं और सीटी हॉस्पिटल में काम करता हैं. मैं वही एबॉर्शन करवाने के लिए गई थी. मुझे क्या पता था वो इतना कमीना निकलेगा. उसने मेरी सोनोग्राफी की रिपोर्ट देख ली थी. उसने उनकी कोपी देख ली थी और उसके बाद मुझे ब्लैकमेल करने लगा.

वो तुझसे क्या चाहता हैं?

लड़के लड़कियों से क्या चाहते हैं?

कमीना कहीं का... मेरे मुंह से निकला.

कल उसने मुझे होटल में मिलने के लिए बुलाया हैं.

...और तू जाएगी?

मेरे पास और रास्ता ही क्या हैं?

तू अपने घरवालो को क्यों नही बता देती?

उससे तो अच्छा हैं कि मैं आत्महत्या ही कर लूँ.

पागल हैं क्या? अंकित ने क्या कहा?

वो मेरा एबॉर्शन करवाने के बाद दिल्ली चला गया.

और तु यहाँ इस चक्कर में फंस गयी.

वो रोने लगी. काश! वो मनहूस दिन मेरी ज़िन्दगी में आया ही नही होता. जिस दिन मैं उस हॉस्पिटल गयी थी.

मैं सोचने लगी थी. मुझे अपनी दोस्त के लिए अफ़सोस हो रहा था. तभी अचानक मेरे दिमाग में कुछ आया.

और अगर सचमुच वो दिन तुम्हारी ज़िन्दगी से निकल जाए तो?

क्या? पूजा ने चौंकते हुए पूछा.

तुमने कहा था न कि मैं अतीत नही बदल सकती....शायद तुम गलत हो.
31/01/2013

कल जो हुआ उसके बाद डायरी लिखने की हिम्मत ही नहीं बची. आज भी सर से फट रहा हैं. मुझे कल सुबह से मुझे घबराह हो रही थी. मैं आज एक ऐसा काम करने वाली थी जो आज से पहले मैंने कभी नही किया था. यह एक प्रयोग की तरह था.

मैं हमेशा से ही अपने अवचेतन में उस सफ़ेद घोड़े को देखती रही हूँ. मैंने उसे देखा था, छुआ था मगर कभी उसकी सवारी नही की थी. वो घोड़ा दरअसल मेरी कुण्डलिनी उर्जा का प्रतीक था. उसकी सवारी का अर्थ था की मैं अब अपनी कुण्डलिनी उर्जा को नियंत्रिंत कर सकती हूँ. इसका कैसे प्रयोग करना हैं ये मैं अच्छी तरह से जानती हूँ.

मैंने पूजा को कॉलेज बुलाया था ताकि मैं एक बार देख सकूँ कि मैं कितनी तैयार हूँ. यह किसी बड़े काम से पहले एक टेस्ट की तरह था. पूजा अचरज में थी कि मैं क्या करने वाली हूँ, वो बार-बार मुझसे पूछ रही थी कि मैं क्या करने वाली हूँ, मगर मैं उसे सिर्फ इन्तजार करने के लिए कह रही थी. पहला पीरियड ख़त्म होते ही सब बाहर आ गए थे, दूसरा पीरियड वैसे भी खाली था. वो लड़का रोहित जिसने मुझे प्रेमपत्र दिया था वो भी बाहर गार्डन में आकर बैठ गया.

मुझे एक पेन दे. मैंने पूजा से कहा. उसने मुझे अपने बैग से एक पेन निकल कर दे दिया.

तुझे रोहित को थप्पड़ मारना हैं. मैंने रोहित की तरफ इशारा करते हुए कहा.

तेरा दिमाग खराब हैं क्या! मैं भला उसे क्यों थप्पड़ मारने लगी? उसने मुझे घूरते हुए कहा.

तुझे उस याग्निक से मुक्ति पानी हैं.

हाँ.

तो फिर जैसा में कह रही हूँ वैसा कर...और उसे थप्पड़ मारने के बाद अपनी आँखे बंद कर लेना.

वो मुझे गुस्से से देख रही थी. मैं उसका हाथ पकड़ कर उसे गार्डन में ले गयी. हमें देख कर रोहित खड़ा हो गया.

मैंने पूजा को इशारा किया. उसने मुझे मना कर दिया. मैंने फिर से उसे थोडा गुस्से से इशारा किया. इस बार उसने खींच कर रोहित को एक थप्पड़ जड़ दिया.

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Jemsbond
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Re: रहस्यमई आँखें

Post by Jemsbond »

इससे पहले की रोहित कुछ बोल पाता, मैंने अपना चश्मा उतारा और उसकी आँखों में देखने लगी.

आधे मिनट बाद वापस मैंने अपना चश्मा पहन लिया. रोहित एकदम सामान्य लग रहा था.

तुम दोनों यहाँ...क्या हुआ, कोई काम हैं क्या? उसने पूछा.

नहीं...वो बस उस दिन के लिए सोरी बोलने आई थी. मैंने कहा और पुजा को लेकर वापस आ गयी.

तूने क्या किया था उसके साथ? मैंने उसे थप्पड़ मारा फिर भी वो कुछ नही बोला. पूजा ने पूछा.

मैंने उसकी पिछली पांच मिनट की यादाश्त मिटा दी थी.

क्या...मगर कैसे?

वो सब छोड़...अब मैं याग्निक के साथ भी यही करने वाली हूँ. वो भूल जाएगा कि कभी तू हॉस्पिटल भी गई थी.

तुझे पता भी हैं ताश्री तू क्या बोल रही हैं? ये एक महीने पहले की बात हैं.

इसीलिए मुझे ढेर सारा वक्त और एकांत चाहिए.

....और वो तुझे कहाँ मिलेगा?

किसी होटल के कमरे में...मैंने उसे आँख मरते हुए कहा.

---------------------------------------

नंदिनी और विजय हॉस्पिटल के लिए निकल गए. नंदिनी विजय की और देख ही नही रही थी. विजय ड्राइव कर रहा था मगर चुपके से नंदिनी की और देख भी रहा था. नंदिनी गुमसुम सी एक ओर देख रही थी. उसने अपनी आँखों पर चश्मा लगा रखा था.

मेम मैं माफ़ी चाहती हूँ, मैं...वो अचानक केबिन में आ गया था.

नही....कोई बात नही...मगर अपने सीनियर के केबिन में पूछ कर ही जाना चाहिए.

आप परेशान लग रही थी...चतुर्वेदी सर ने कुछ कहा था क्या?

नंदिनी समझ गई थी कि विजय उसके आंसुओ के बारे में पूछ रहा था.

नही...ऐसा कुछ नही हैं. वो बस कुछ पुरानी बात याद आ गयी थी.

विजय भी बातों के जरिये नंदिनी का मन बहलाना चाहता था.

मैंने सुना हैं कि आपके भी माता-पिता...?

हाँ...वो इस दुनिया में नही हैं. मैं अनाथ आश्रंम में ही पली बढ़ी हूँ. नंदिनी ने एक सेकंड रुक कर कहा. आपके भी मतलब...तुम्हारे भी माता-पिता नही हैं क्या?

नही..मेम...मैंने कभी उनकी सूरत नही देखी थी.

तुमने देखी होगी...बस तुम्हे यादं नही होगा. नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा.

विजय भी मुस्कुराया.

वैसे मेम आप बहुत मेहनती हैं...अनाथाश्रम में पलने के बावजूद भी आप यहाँ तक पहुँच गयी.

इंस्पेक्टर तो तुम भी बन ही गए.

हाँ...पर मुझे गोद ले लिया गया था.

अब तक वो हॉस्पिटल पहुँच गये थे. नंदिनी एक पल तो ठिठकी मगर फिर अन्दर चली गयी. उसने रिसेप्शन पर देखा, मगर वहां कोई नही था. याग्निक यहीं तो काम करता था इसी रिसेप्शन काउंटर पर.

नंदिनी आगे बढ़ी और आईसीयू में पहुंची. हवलदार से मिलकर उसका हालचाल पूछा. उसके साथ वाले हवलदार को आवश्यक निर्देश दिए और वापस नीचे आ गयी.

उसने रिसेप्शन पर कड़ी लड़की से पूछा. पहले यहाँ एक लड़का काम करता था?

कब? दो साल से तो मैं ही यहाँ काम कर रही हूँ.

हम्म...और उससे पहले.

हाँ उससे पहले एक लड़का था.

उसने कहीं और ज्वाइन कर लिया?
नहीं...कहते हैं उसकी यादाश्त चली गयी.

क्या? नंदिनी ने आश्चर्य से पूछा.

नंदिनी बाहर जाने के लिए मुड़ी. विजय उसके पीछे ही खड़ा था.

आप उस ताश्री वाले केस की वापस तहकीकात कर रही हैं? उसने जीप में बैठते हुए कहा.

क्यों?

आप जिस लड़के के बारे में पूछ रही थी वो तो उसी केस से ही जुड़ा हुआ हैं न?

तुम याग्निक से मिले थे? नंदिनी ने पूछा.

हाँ...चतुर्वेदी सर ने मुझे पूछताछ करने के लिए भेजा था उसके घर...मगर कोई फायदा नही हुआ.
नंदिनी ने विजय की और प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा जैसे पूछ रही हो क्यों? विजय आगे बोलता रहा.

उसे कुछ भी याद नही था. वो दस साल के किसी मासूम बच्चे की तरह था.

मासूम! नंदिनी ने धीरे से कहा.

मेम सुबह से भूख लग रही हैं कुछ नाश्ता कर ले क्या? विजय ने नंदिनी की तन्द्रा तोड़ते हुए पूछा.

आज तुम लंच नही लाये?

आअज टिफ़िन वाले की छुट्टी हैं.

हम्म...ठीक हैं आगे कहीं रोक लो.

विजय ने एक ज्यूस वाले के यहाँ जीप रोक दी. उसने ज्यूस वाले को दो गिलास ज्यूस के लिए कहा. वो दोनों गाडी में ही बैठे थे. कुछ ही देर में ज्यूसवाला ज्यूस ले आया.

यहीं मकान हैं उसका... विजय ने ज्यूस पीते हुए कहा.

क्या...किसका मकान?

वो उस लड़के याग्निक का...ये सामने वाला मकान ही हैं...और इस गली के अन्दर ही ताश्री की उस दोस्त का मकान हैं.

नंदिनी के ज्यूस हलक में ही रह गया.

फिर नंदिनी सामान्य हुई और अपना ज्यूस ख़त्म किया.

चलो चलते हैं.

कहाँ?

पूछताछ करके आते हैं....
हम दोनों तय समय पर होटल के नीचे पहुँच गये. मैंने पूजा को वहीँ रुकने को कहा.

तुम्हे कितना समय लगेगा. पूजा ने पूछा.

यहीं कोई लगभग आधा घंटा.

ताश्री! मुझे तो डर लग रहा हैं. अगर तुम यह नहीं करना चाहती तो रहने दे. मैं नहीं चाहती हूँ की मेरी वजह से तू किसी मुसीबत में पड़ जाए.

मेरी तू एक ही तो दोस्त हैं. अगर मैं तेरे ही काम नही आ सकती तो फिर मेरी इस शक्ति का मतलब ही क्या हैं? ये याग्निक आज के बाद कभी तुझे परेशां नही कर पायेगा ये मेरा तुझसे वादा हैं. तू मुझपर भरोसा रख कोई दिक्कत नही होगी. मैंने चेक किया वो पेन अब भी मेरी जेब में ही था.

अगर तू आधे घंटे के अन्दर नही आई तो मैं ऊपर आ जाउंगी.

ठीक हैं.

मैं होटल में चली गई. याग्निक के कमरे के बाहर जाकर मैंने डोरबेल बजाई. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, धड़कन दुगुनी रफ़्तार से चल रही थी. रोहित का मामला अलग था, वहां अगर मैं यादाश्त न भी मिटा पाती तब भी में उसे नियंत्रित कर ही सकती थी मगर यहाँ मामला दूसरा था.

कुछ देर बाद उसने दरवाजा खोला.

ताश्री...तुम! तुम यहाँ क्या कर रही हो? उसने चौंकते हुए पूछा.

अन्दर नही बुलाओगे मुझे? मैंने एक झूठी मुस्कान बिखेरते हुए कहा.

हाँ...हां...आओ न? वो सकपका गया था.

तुम आखिर पूजा से चाहते क्या हो? मैंने बेड पर बैठते हुए कहा.

वो...वो..उसने तुम्हे क्या बताया?

यहीं की वो आज नही आएगी.

मगर क्यों?

उसे कोई जरुरी काम आ गया था.

ऐसा कैसे हो सकता हैं? वो जानती हैं न आज उसका मुझसे मिलना कितना जरुरी हैं.

हां...बेशक...तभी तो उसने मुझे भेजा हैं. ज़रा मुझे देखकर बताओ...क्या मैं उससे कम खुबसूरत हूँ.

न...नही....तुम भी खुबसूरत हो...

तो ज़रा मेरी आँखों में झांककर बताओ क्या ये किसी झील से कम गहरी हैं. मैंने अपना चश्मा उतार दिया.

हम्म...बिलकुल नही....

मैं जिस दिन से तुमसे मिली हूँ तबसे तुमसे कुछ कहाँ चाहती हूँ याग्निक! मैंने उसके पास आते हुए कहा.

क्या?

भाड़ में जाओ!!

मेरी आँखों के सामने एक रौशनी चमकी और में उसके दिमाग में थी. नीचे हरा-भरा घांस का भरा एक मैदान... ऊपर बिजलियों से चमकता हुआ एक आसमान जिसमें बादल गरज रहे थे. पास ही एक नदी थी जिसमे उसकी यादो के प्रतिबिम्ब दिख रहे थे. यह नदी पास ही एक पहाड़ से आ रही थी.

मैंने एक सीटी बजाई और कुछ ही देर में एक नीला घोडा मेरे सामने हाज़िर था. यह याग्निक का अंतर्मन था. मुझे देखकर एक बार तो वो जोर से हिनहिनाया. जैसे किसी अजनबी की घुसपैठ से परेशान हो. मैं उसके पास गयी और उसकी गर्दन पर हाथ फिराया.

शांत रहो...मैं तुम्हारी दोस्त हूँ. मुझे वहां ऊपर जाना हैं. मैंने पहाड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा.

उसने एक बार मुझे देखा और फिर वो नीचे बैठ गया. अब मैं उसके ऊपर सवार थी और वो आसमान में उड़ रहा था. कुछ ही देर में हम उस पहाड़ पर थे. वहां चारो और टीवी स्क्रीन लगी हुई थी जिसपर उसकी यादे परिलक्षित हो रही थी. मैंने अपनी जेब से वो पेन निकाला और उसे घुर कर देखा, वो एक तलवार जितना बड़ा हो गया. अब मैं उन स्क्रीन्स के पास गयी और उन्हें एक-एक करके तोड़ने लगी.

यह देखकर वो घोडा जोर से हिनहिनाया.

चुपचाप वही खड़े रहो. मैंने उसे डपटते हुए कहा और वापस वो स्क्रीन्स तोड़ने लगी. यह उन यादो को मिटाने का एक तरीका था, इससे भले ही यादें पूरी तरह से न मिटे पर वो किसी काम की भी नही रहती थी. मैं पूरी मग्न होकर यह काम करने लगी तभी मुझे कुछ आवाज आई... मैंने पीछे मुड़ कर देखा, वो घोडा गायब हो चूका था और उसकी जगह एक जंगली कुत्ता खड़ा था.

अरे नही! अब यह एक दिक्कत थी. यह कुता वास्तव में अन्तर्मन का रक्षक था. मैं वहाँ से भागी. कुछ देर भागने के बाद में रुक गयी. मैं वापस उसी जगह आ गई थी. मैं पीछे मुड़ी और मैंने एक पत्थर उठा लिया. वो कुता रुक गया और वापस भाग गया जैसे वो डर गया हो. मैंने चैन की सांस ली और सामने मुड़ी. अब डरने की बारी मेरी थी. सामने वही तांत्रिक था. काला चोगा पहले, गले में रुद्राक्ष की माला और हाथ में एक त्रिशूल लिए हुए.

मेरे लिए यह वास्तव में डरने की बात थी. क्योंकि सपने में उस तांत्रिक का आना दूसरी बात थी और यहाँ अंतर्मन में आना एक दूसरी बात...मुझे अब समझ में आया था कि मैं जैसे-जैसे याग्निक के अंतर्मन की गहराइयों में उतरी थी, खुद के भी अंतर्मन की गहराई में उतरती गई थी और शायद इसी वजह से मेरा इस तांत्रिक से सामना हुआ हैं.

मैं भागने के लिए वापस पीछे मुड़ी मगर पीछे भी वो ही खड़ा था.
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