अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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rajsharma
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

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अधूरा प्यार--27 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ..................................

"तू सोच क्या रही है शीनू? कम से कम मुझे तो खुल कर बता दे..." परेशान सी ऋतु ने अकेले होते ही नीरू से पूचछा...

".....आए ऋतु! मुझे शीनू मत बोल!" नीरू ने थोड़ी देर रुक कर कहा....

"हे भगवान! और तुझे मैं क्या बोलूं? अब ये नाम भी चेंज करेगी क्या?" ऋतु ने अपने माथे पर हाथ मार कर कहा....

"हां.. वापस वही रखूँगी... नीरू!" नीरू ने सहजता से कहा....

"तू मेरा दिमाग़ खराब मत कर यार.. पहले सही सही बता तूने सोचा क्या है.. रोहन के बारे में..." ऋतु ने ज़ोर देकर पूचछा...

"पता नही..." कहकर नीरू बेडरूम की छत की तरफ देखने लगी...

"पता नही मतलब? तुझे नही पता तो और किसको पता होगा... ये नाम फिर से क्यूँ बदल रही है तू?" ऋतु की कुच्छ समझ नही आ रहा था कि नीरू आख़िर सोच क्या रही है.....

"यार..." नीरू ने बीच में एक लंबी साँस ली..," आज सुबह से ही पता नही कैसे कैसे अहसास हो रहे हैं.. रात को मैने जो सपना देखा था.. वो टुकड़ों में रह रह कर इस तरह याद आ रहा है जैसे.. जैसे मेरे साथ कुच्छ आज कल में ही हुआ हो.. बहुत बुरा.. कभी मेरे मंन में आता है कि जैसे मुझे पता नही क्या मिल गया... अचानक ही लगता है जैसे मेरा कुच्छ खो गया है.. बहुत प्यारा...."

"रह रह कर मन में जाने कैसी लहरें सी उठ रही हैं.. मैने सपने में.. राजकुमारी का रोना देखा था.. सुबह से लेकर अब तक मुझे कयि बार ऐसा सा लगा है जैसे... वो राजकुमारी अब भी मेरे भीतर रो रही है.. किसी को पुकार रही है..."

"कभी लगता है कि देव राजकुमारी को वादा करके गया है.. लौट कर आने का... ख़याल आता है जैसे उसने वादा राजकुमारी से नही.. मुझसे किया हो.. बड़ा अजीब सा फील हो रहा है यार..."

"ऐसा लगता है जैसे वो राजकुमारी मैं ही हूँ.. पता नही क्यूँ? पर मन ही मन जैसे मैं अब भी देव को पुकार रही हूँ... कुच्छ तो बात है ऋतु.. कुच्छ तो बात है..."

"वो तो मैं भी कह रही हूँ कि कुच्छ तो है.. पर तूने सोचा क्या है.. ये तो बता दे मेरी अम्मा!" ऋतु ने उसको बोलते हुए टोक दिया...

"मैने सोचा है कि जो होता है होने दूँ... ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा.. सोच सोच कर पागल ही हो जाउन्गि ना.. पर वो भी यूँ बीच भंवर में फँसे रहने से तो बेहतर ही होगा.. मैं जान'ना चाहती हूँ.. देव को किसने मार दिया? मैं जान'ना चाहती हूँ.. कि राजकुमारी के साथ फिर हुआ क्या? ... एक बात और.. जिस लॉकेट के बारे में रोहन ने जिकर किया था कि मेरा 'दिल' उसमें अटका हुआ है.. मुझे ये भी याद आ रहा है कि आख़िरी बार जाते हुए देव ने राजकुमारी को एक लॉकेट दिया था.. अगर पूरी बात का पता नही चला तो मैं तो सोच सोच कर ही पागल हो जाउन्गि... पता नही क्या हो रहा है मुझे....?" नीरू बोल कर रुक गयी...

ऋतु पूरी कहानी जान'ने को बेचैन सी हो गयी," सपने में तूने जो कुच्छ देखा है.. वो कितना याद आ गया है..?"

"हूंम्म... राजकुमारी ने देव को पहली बार कहाँ देखा.. ये याद आ रहा है.. देव की शकल याद आ रही है... राजकुमारी भेष बदल कर देव के घर गयी थी.. वहाँ खाना खाया था... फिर... एक मिनिट.. सोचने दे मुझे..." नीरू ने आँखें बंद कर ली....

"कैसा था देव.. दिखने में.." ऋतु से रहा ना गया...

"तू अपने मानव के बारे में सोच.. मेरे देव के बारे में क्यूँ पूच्छ रही है..." कहकर नीरू हँसने लगी....

"ओहू.. बड़ी आई राजकुमारी...!" ऋतु नीरू पर व्यंग्य करके खिलखिला कर हंस पड़ी... फिर अचानक सीरीयस होकर बोली..," तू ढंग से सारा सपना याद कर ले.. फिर डीटेल में सुनाना... मैं उनको बुला लाउ ना?"

"हूंम्म... ठीक है.. 10-15 मिनिट के बाद बुला लेना... तब तक चुप बैठ जा.. मुझे याद करने दे..." कहकर नीरू आँखें बंद करके लेट गयी....

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"बुला लाउ अब? 20 मिनिट हो गये....." ऋतु 20 मिनिट तक चुप चाप बैठी रही थी...

"ष्ह्ह्ह्ह्ह्ह....." नीरू ने अपने होंटो पर उंगली रख कर ऋतु को चुप रहने का इशारा किया... उसके हाव भाव से ऐसा लग रहा था जैसे.. उसको सपना याद आ रहा है... या फिर सपने से भी आगे का कुच्छ....

ऋतु स्तब्ध सी उसके पास बैठी उसको देखती रही... नीरू के चेहरे के भाव पल पल बदलने लगे.. ऋतु चुप चाप उठी और रोहन और रवि को बेडरूम में बुला लाई....

...............................................

"सुनो.. सुनो.. सुनो.. राज्य के सभी निवासियों को सूचित किया जाता है कि महाराज वेदवरत के मैत्री प्रस्ताव को ठुकराने वाले... दोनो राज्यों की जनता को युद्ध की आग में झौंकने वाले... और.. राजकुमार अभिषेक सहित हज़ारों सेनिकों के कतल के दोषी होने के कारण; मौत की सज़ा को निसचीत जान कर राजा वीर प्रताप आत्महत्या कर चुके हैं. महारानी ने भी आत्मदाह कर लिया है... राजकुमार यूधभूमि में मारे गये हैं..; आज से इस राज्य की बागडोर यससवी महाराज वेदवरत के आशीर्वाद से सेनापति कुँवरपाल के हाथों में है....कल महाराज वेदराट उनके राज्याभिषेक के लिए राज्य में पधार रहे हैं.. सुनो सुनो सूनो...."

बदहवास सी भागी भागी राजमहल में आई लता को द्वार पालों ने बाहर ही रोक लिया," रूको!!! अंदर जाने की आग्या किसी को नही है!"

"परंतु.. परंतु मेरा राजकुमारी से मिलना आती अनिवर्य है... अभी और इसी समय....!" लता के चेहरे पर भय सपस्ट द्रिस्तिगोचर हो रहा था...

"राजकुमारी प्रियदर्शिनी अब राजा कुँवरपाल के आदेशानुसार राजमहल में बंदिनी के तौर पर हैं.. और उनके आदेशानुसार उनसे मिलने की इजाज़त किसी को नही दी जा सकती...." द्वारपाल ने दोहराया....

अचानक अंदर टहल रहे पूर्व सेनापति और अब यहाँ के राजा, कुँवरपाल का ठहाका गूँज उठा...," हा हा हा हा हा! राजकुमारी की सखी! आने दो इसको अंदर.. शायद इसी की बात पर विश्वास करके राजकुमारी हक़ीक़त के धरातल पर वापस आ जायें.. वो अब भी देव का इंतजार कर रही है.. हा हा हा.. जाओ.. और जाकर उसको सच्चाई से अवगत करा दो.. बता दो उसको कि देव को हमने इस दुनिया से मिटा दिया है.. अब वो अपना पागलपन छ्चोड़ें और महाराज वेदवरत की पत्नी बन'ने के लिए अपने आपको मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर लें... महाराज उसको पलकों पर बिठा कर रखेंगे.. आख़िर वो भिक्षुक योगी उसको दे ही क्या सकता था, जो वो नही दे पाएँगे!"

द्वारपालों ने उसको अंदर जाने दिया... भागती हुई जाकर लता कुनरपाल से कुच्छ आगे जाकर रुक गयी," कहाँ हैं राजकुमारी जी?"

"वो अपने शयन कक्ष में ही हैं.. ध्यान रहे.. महल में चप्पे चप्पे पर हमारे गुप्चर निगाह रखे हुए हैं.. किंचित भी चालाकी करने की कोशिश की तो इनाम सज़ा-ए-मौत होगा!.. जाओ.. जाकर समझा दो उसको.. पागलपन एक हद तक ही सहन किया जा सकता है.. जो जा चुका है.. रह रह कर उसका ढोल पीटने से वो वापस नही आ जाएगा....!" कुँवरपाल उत्साह में मगन होकर बोल रहा था....

लता ने नज़रें झुकाई और फिर शयन कक्ष की और दौड़ पड़ी.. शयन कक्ष के बाहर खड़े पहरेदारों ने एक बार फिर उसका रास्ता रोक लिया....," अंदर जाने की इजाज़त किसी को नही है...!"

"म्म.. मुझे.. सीसी.. राजा कुँवरपाल ने राजकुमारी के पास जाने की आग्या दी है..." लता ने जवाब दिया... पहरेदारों ने एक दूसरे की नज़रों में देखा और उसको अंदर जाने दिया.....

"लताअ!" बेचैन सी बैठी राजकुमारी ने जैसे ही लता को देखा.. उसकी आँखों से अश्रु धारा उमड़ पड़ी," तू कहाँ थी अब तक..? हम कब से तेरा इंतजार कर रहे हैं.. देख ना! हमें हमारे देव से दूर रखने के लिए पिता श्री कैसी कैसी चाल चल रहे हैं.. .. मैं जानती हूँ कि देव के शौर्या से हम अब तक विजय श्री का दामन चूम चुके होंगे... पर हूमें जाने क्या क्या बताया जा रहा है.. पिता श्री और माता श्री हमारे सामने नही आ रहे.. वो कुंवर कहता है.. कि देव.. मेरा देव... तू बता ना.. पूरी बात.. हमें बाहर भी निकलने नही दिया जा रहा... बता ना सखी.. मेरा देव.. और कितना इंतजार करवाएगा...? और कितना तडपाएगा हमें.. अपने दर्शन देने से पहले...!"

लता की नज़रें झुक गयी.. एक लंबी सी आ टीस बनकर उसके सीने से निकली.. राजकुमारी की हालत देख कर वह रो भी नही पाई...," आप यहाँ से निकलो राजकुमारी.. अपने कपड़े मुझे दो!"

"नही.. हमे तेरे मुँह से पूरी बात सुने बगैर चैन नही आएगा.. और देव के आए बगैर हम यहाँ से जाने वाले नही हैं... उन्होने हमें इंतजार करने को कहा था... तू पूरी बात बता ना... जितनी खूबसूरती से तू उनकी बहादुरी की व्याख्या करती है.. और कोई नही कर सकता... तू जल्दी से हमें सब सच सच सुना दे.. अगर पितश्री को पता चल गया कि तू आई है.. तो वो तुझे यहाँ नही रहने देंगे..."

लता के चेहरे पर मौत से भी भयावह सन्नाटा पसरा हुआ था," राजकुमारी जी.. युद्ध में देव को परास्त करना शायद खुद देवो के वश में भी नही होता.. देव युद्धभू..."

लता को राजकुमारी ने बीच में ही टोक दिया.. उत्साहपूर्ण निगाहों से उसको देखती हुई उसके पास सरक कर वह बोली..," आ सखी.. 'मेरा देव' बोल के बता ना! हमें बड़ा प्यारा लगता है जब तू ऐसे बोलती है..."

लता की आँखों से आँसू थम ही नही रहे थे.. पर प्रेम पीपसी प्रिया इस आँसुओं का अर्थ नही समझ पा रही थी..," हां राजकुमारी जी.. आपका देव पूरी रणभूमि में..... ऐसे छाया हुआ था .....जैसे...... सारी दुश्मन सेना को वो 'वीर' अकेला ही स्वाहा कर देगा.. गगन में एक सुर्य के समान अकेला ही 'देव' दुश्मन सेना का कलेजा चीरता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था.. किसी में उसका सामना करने की हिम्मत नही थी...

मूर्ख अभिषेक अपनी सेना में मची भगदड़ को देख बिलबिलता हुआ देव के सामने आ गया," क्यूँ रे? एक 'खेल' में विजयी क्या हो गया.. तूने तो बड़े बड़े खवाब देखने आरंभ कर दिए... युद्ध में आकर 'अभिषेक' को ललकार्ने की जुर्रत तुझ जैसा कोई 'मूर्ख' ही कर सकता है... हमारी सेना को छिन्न भिन्न करके तू ये मत समझना कि तू 'योद्धा' हो गया है.. युद्ध में तो हमारे सामने तू नादान ही है.. 'मूर्ख' समझ कर मैं तुझे यह बता देना चाहता हूँ की मेरी लड़ाई तेरे राज्य के खिलाफ नही है... हमारा लक्ष्या सिर्फ़ राजकुमारी को हासिल करना है... और अगर तू हमारे रास्ते से हटकर अपनी जान बचाना चाहे तो हम तुम्हे अभयदान दे सकते हैं... जा 'चला' जा!"

"आपके देव के चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी मुस्कान तेर उठी..,"मेरी तरफ से दी गयी ये आख़िरी चेतावनी समझना राजकुमार... मैं भी आपका राज्य जीतने नही.. अपने राज्य की 'आन' जीतने के लिए यहाँ आया हूँ... मेरी तुमसे या युद्ध में हमारे खिलाफ लड़ रहे किसी सैनिक से कोई दुश्मनी नही है.... तुम्हारी सेना भाग रही है.. और तुम देख रहे हो कि हमारी सेना किसी की पीठ पर वार नही कर रही....तुम्हारे पास भी मौका है... तुम अभी भी वापस जा सकते हो.. !"

"अपनी हार सामने जान कर बौखलाया हुआ अभिषेक देव की ओर लपका.. और पलक झपकते ही देव की सनसनाती हुई तलवार हवा में द्रुत गति से लहराई .. अभिषेक दिग्भ्रमित सा हो गया.. पगलाया हुआ सा वह अपने आपको बेबस सा जान कर हवा में यूँही वार पर वार करने लगा.. जैसे ही वा देव के नज़दीक आया.. उनकी तलवार लहराई और अभिषेक का सिर उनके धड़ से दूर जा गिरा...."

"उसके बाद तो बचे हुए सैनिक भी मैदान छ्चोड़ कर भागने लगे.. और मैदान खाली होने से स्वत ही महाराज वेदवरत का सामना आपके देव से हो गया.. महाराज ने एक बार देव की 'खून' से सनी तलवार की ओर देखा और फिर देव के 'रौद्रा' रूप धारण किए हुए चेहरे को.. अचानक उनकी नज़र नज़दीक ही अभिषेक के 'सिर' कटे धड़ पर पड़ी और भय से वह काँपने सा लगा... अगले ही पल उसने 'सारथि' को उल्टी दिशा में भागने को बोल दिया... तभी किसी ने देव को सूचना दी कि महाराज वियर प्रताप' घायल हो गये हैं...

देव सब कुच्छ छ्चोड़ कर तुरंत महाराज के पास पहुँचे ही थे कि पूर्वा सेनापति 'कुँवरपाल' उनके सामने आकर क्षमा याचना करते हुए अपने प्राणो की भीख माँगने लगा....

"सेनापति देव! हमें अच्छि तरह मालूम है कि हमारा गुनाह-ए-गद्दारी किसी सूरत में 'सज़ा-ए-मौत' से कम के लायक नही है.. फिर भी.. मैं आपके चरनो में गिरकर प्राण-रक्षा की भिक्षा माँगता हूँ.. मुझे अभयदान दें.." उसने अपने घोड़े से उतर कर देव के चरण पकड़ लिए....

"माफी तुम्हे राज्य से माँगनी चाहिए कुँवरपाल.. मैं तो महाराज की ओजस्वी सेना का एक अड़ना सा सैनिक हूँ.. और अपने राज्य का एक देशभक्त नागरिक.. तुम देश द्रोही हो.. राज्य ही तुम्हारे बारे में फ़ैसला करेगा..." देव ने बेहोश पड़े महाराज को उठाने की कोशिश करते हुए कहा...

"तब भी.. मैं यहीं पासचताप करना चाहता हूँ सेनापति! मुझे आदेश दीजिए..." कुंवर देव के चरणों में नतमस्तक सा हो चला था...

"हुम्म.. आप खुद सेना के सेनापति रहे हैं कुँवरपाल जी.. आपको आग्या लेने की आवश्यकता क्या है? दुश्मन सेना भाग रही है.. मुश्किल से 'वो' अपनी सेना के आधे ही अब बचे हैं.. आप जाकर सेना को संभालिए... मैं महाराज को राजमहल छ्चोड़ कर आता हूँ..." कहकर देव जैसे ही महाराज को संभालने के लिए मुड़ा.. कायर और कपटी 'कुँवरपाल' ने देव की पीठ में खंजर भोंक दिया...

"अया...." राजकुमारी ने ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे खंजर देव की नही.. उनकी पीठ में भोंका गया हो..," हां.. हमने देखा था उनका घाव... फिर क्या हुआ लता?" राजकुमारी असहाया सी होकर तड़प उठी....

"वो मामूली घाव नही था राजकुमारी.. उनके शरीर के आर पार हो गया था.. शायद उनको उसी वक़्त अहसास हो गया था की...." लता आगे ना बोल सकी...

"क्क्या.. बकवास कर रही है तू.. क्या अहसास हो गया था उनको.. ? मुझे तुझसे ये उम्मीद नही थी.. तू भी पिता श्री के दिए लालच में आख़िर आ ही गयी.... मैने कभी ना सोचा था कि चंद स्वर्ण मुद्राओं के लालच में तू भी मुझे दिग्भ्रमित करेगी.. मेरे देव से मुझे दूर करने के लिए...." राजकुमारी विचलित और क्रोधित होते हुए बोली....

लता कुच्छ नही बोली.. बस उसकी आँखों से दो आँसू लुढ़क कर प्रिया की हथेली पर जा गिरे...

"हमें डराना चाहती है ना.. देव आने ही वाला है ना.. देख... देख.. तू जल्दी से बोल दे.. वरना हम... हम महाराज से तेरी शिकायत करेंगे... हम... देव को भी बता देंगे......"

"लाताआ! तू बोलती क्यूँ नही.. क्या हो गया है तुझे....?" प्रियदर्शिनी अचानक चिल्ला उठी....

"अब... अब बोलने को रह ही क्या गया है राजकुमारी... महाराज... नही रहे.. राजकुमार नही रहे... कुमार दीक्षित का पता नही चल रहा....महारानी ने ..... आत्मदाह कर लिया... " लता के आँसू थमने का नाम नही ले रहे थे.... वह बीच बीच में सिसकियाँ सी लेकर बोल रही थी,"देव...."

"नही.. नही... देव के बारे में हम तेरी कोई बकवास नही सुनेंगे... देव को कोई नही हरा सकता... देव को हमसे कोई नही छ्चीन सकता.. देव सिर्फ़ हमारा है... पिता श्री नही रहे तो क्या हुआ? अब देव ही इस राज्य के राजा हैं... आने दो देव को.. हम तेरी शिकायत उनसे करेंगे... " बोलते बोलते राजकुमारी थक गयी और कुच्छ रुक कर फिर बोलने लगी..,

" बता दे ना सखी.. तू हमें तडपा क्यूँ रही है.. अभी तो तू हमारे देव के अद्वितीया शौर्या के बारे में सुना रही थी.. तू बता रही थी ना.. देव युद्ध भूमि में इस तरह छाया हुआ था, मानो.. मानो सारी दुश्मन सेना को अकेले ही स्वाहा कर देगा.. तू ही बता रही थी ना कि कैसे दुश्मन देश का राजा उनके सामने आने से कतरा रहा था... और देव के सामने आते ही भाग खड़ा हुआ था.... तूने ही तो बताया था कि दुष्ट अभिषेक का सिर किस तरह हमारे देव के एक ही वार में कयि गज दूर जाकर गिरा था.... देव तो अपराजय है ना सखी... तू ही तो कल बता रही थी... उनका कोई कैसे सामना कर सकता है.. उनको कोई कैसे मार..... नहियीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई"

"संभलो.. अपने आपको.. राजकुमारी! सबसे पहले यहाँ से निकलो आप.. वो दुष्ट वेदवरत अब आपको अपनी रानी बनाने की लालसा लिए हुए है... आप यहाँ से निकलो जल्दी.." लता भी उसके साथ ही रो रही थी....

"हमारा विवाह तो हो चुका है लता... जनम जनम के लिए.. हमारे देव के साथ! सुना है कि इस जीवन के उस पार भी जीवन होता है.. अगर ऐसा सच है तो देव वहाँ हमारा इंतज़ार कर रहा होगा... मेरा तो कब से सब कुच्छ उनका हो चुका है लता! अगर वो अब इस दुनिया में नही हैं, तो मेरे प्राण अभी तक मेरे शरीर में कैसे हैं.. नही नही... तू झूठ बोल रही है.. वो अभी यहीं हैं.. ये देख.. उन्होने खुद को 'हमारे' हवाले कर दिया था..." प्रिया अपने गले से 'देव' का दिया हुआ ताबीज़ निकलते हुए बोली...," ये देख.. ये रहा मेरा देव.. देव ने भगवान को अपना सब कुच्छ देकर हमें माँग लिया था... भगवान ऐसा निस्तूर कैसे हो सकता है लता... भगवान हमें अलग अलग कैसे रख सकता है... कह दे की सब कुच्छ झूठ है.. कह दे ना सखी..." प्रिया के आलाप से राजमहल की दीवारें भी मानो भरभरा सी गयी हों.. उसका क्रंदान दूर दूर तक सुनाई पड़ रहा था....

तभी शयन कक्ष में कुँवरपाल ने तालियाँ बजाते हुए प्रवेश किया," वाह! क्या प्रेम है..? मृत्यु जैसे शाश्वत सत्य को भी स्वीकारने से इनकार कर रहा है प्यार! वाह..! तो 'ये है तुम्हारा देव!"

कुँवरपाल ने पास आकर प्रिया के हाथों से ताबीज़ लगभग छ्चीन ही लिया.....

"इसको अपने पापी हाथों से छ्छू मत दरिंदे.. वरना इसके तेज की अग्नि से भश्म होते तुझे देर ना लगेगी... 'मेरा' देव मुझे वापस कर.. मेरा देव मुझे लौटा दे..." राजकुमारी उस'से ताबीज़ छ्चीन'ने के प्रयास में जैसे ही शैया से उठी.. ज़मीन पर गिर गयी.. जान जैसे बची ही ना थी.. उसके शरीर में.. सिर्फ़ चंद आहें बची थी.. जो रह रह कर अपने 'देव' को पुकार रही थी....

"अच्च्छा? ज़रा देखें 'तुम्हारे' देव के 'तेज' की अग्नि को... देखें कितनी उष्मा सहन कर पता है ये....?" अट्टहास सा करता हुआ कुँवरपाल रसोई गृह की तरफ चल दिया जहाँ कल के सार्वजनिक शाही भोज के लिए एक विशालकाय भत्ती तैयार की गयी थी... प्रिया गिरते पड़ते उसके पिछे पिछे जा रही थी....

"ये ले! उष्मा को उष्मा में स्वाहा कर दिया... अब तो ये मुझे भश्म नही करेगा ना.. हा हा हा....." कुँवरपाल ने ताबीज़ को भत्ति में फैंक दिया...

पर प्रिया को तो जैसे उसकी बातों से सरोकार ही नही था.. उसका लक्ष तो सिर्फ़ 'उसका देव था.. बाकी तो उसको कुच्छ दिखाई दे ही नही रहा था.. अब उसको भी देव तक जाने का रास्ता मिल गया था... अब उसके कदम ना लड़खड़ाए.. ना डगमगाए.. और वो सीधी भत्ति में प्रवेश कर गयी..... स्वाहा!!!

अचानक ही रसोई गृह धधक कर चीत्कार उठी अग्नि की लपटों से दाहक उठा...

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

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नीरू के पल पल रंग बदल रहे चेहरे पर अब अचानक अजीब सी शांति छा गयी थी.. रसोई गृह में लपटें शांत होने पर उसको भत्ति के बाहर भश्म हो चुकी एक लाश दिखाई दी.. कुँवरपाल की...!!!

कुच्छ देर यूँही शांत लेटी रहने के बाद नीरू ने आँखें खोल दी.. सामने बैठा रोहन कब से उसके आँखें खोलने का इंतजार कर रहा था.. उसके आस्चर्य का ठिकाना ना रहा जब नीरू आँखें खोलने के बाद नम आँखों से उसकी और निरंतर देखती रही.. दर्दनाक सपने से लौट कर आई उसकी गीली आँखों में उतनी पीड़ा नही थी.. जितनी राजकुमारी प्रिया के रूप में कुच्छ देर पहले ही उसने महसूस की थी.. आख़िरकार प्रिया का देव लौट आया था.. भगवान को उनके अनोखे प्यार की खातिर झुकना ही पड़ा.. और अब इस जनम में उनके मिलन में कोई बाधा शेष नही थी.... शायद!!!

"ऐसे क्या देख रही हो नीरू? हम एक घंटे से तुम्हारे जागने का इंतजार कर रहे हैं.. कुच्छ याद आया कि नही?" ऋतु ने उसको पकड़ कर हिला दिया...

"मुझे टीले पर जाना है!" नीरू बैठ गयी.. पर अब भी उसकी नज़रें रोहन पर ही जमी हुई थी...

"हां.. हां.. चलो! हमने कब मना किया है?" रवि खुश होकर बोला...

"नही.. हम दोनो अकेले ही जाएँगे.. तुम यहीं रहना प्लीज़!" नीरू ने रवि की ओर देख कर कहा....

"मैं नही जाउन्गि.. तेरे साथ अकेले टीले पर.. मुझे तो रोहन के मुँह से वहाँ की कहानी सुनते हुए ही डर लग रहा था.. हम दोनो लड़कियाँ हैं यार..." ऋतु ने तुनक कर कहा....

"मैं तुझे नही बोल रही ऋतु... मैं और देव.स्स्सोररी... रोहन वहाँ जाएँगे.... सिर्फ़ हम दोनो!" रोहन को देव कहने की भूल करने के बाद नीरू झिझक सी गयी और बाकी की बात उसने नज़रें झुका कर पूरी की....

नीरू के 'देव' कहते ही वहाँ बैठे तीनों की नज़रें आपस में मिलकर चमक उठी.. खुश होकर ऋतु ने नीरू को अपनी बाहों में भर लिया.. नीरू नज़ाकत से मुस्कुराइ और शर्मकार दूसरी तरफ चेहरा कर लिया....

"मुबारक हो देव साहब! आख़िर आपको भाभी जी मिल ही गयी.." रवि ने रोहन कोछेड़ते हुए उसका गाल पकड़ कर खींच लिया..

"क्या है यार?" रोहन उपरी मंन से गुस्सा दिखता हुआ बोला और फिर हँसने लगा.. दिल को मिले इस बेपनाह सुकून को भला कब तक छिपाता...

"क्या है? आबे लल्लू तेरा ब्याह है.. अब तो.. और क्या रह गया अब..? " रवि खुश होकर बोला....

नीरू से ज़्यादा देर रोहन से नज़रें मिलाए बिना रहा ना गया.. वह फिर से सीधी होकर रह रह कर रोहन को देखने लगी...

"लेकिन भाभ.. सॉरी..." रवि अपनी बात अधूरी छ्चोड़ कर नीरू की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा.. नीरू ने दो पल उसको घूर कर देखा और फिर खिलखिला कर हंस पड़ी... उसके हंसते ही मानो माहौल में मोती से बिखर गये हों.. सभी रवि की और देख कर हँसने लगे...

"मतलब.. अब लाइन क्लियर है.. भाभी जी बोल सकता हूँ ना आपको..?" रवि ने भी कह कर दाँत निकल दिए....

"हूंम्म.." नीरू ने इतना ही कहा और नज़रों को शरारती अंदाज में सिकोड कर रोहन की और देखने लगी," इनसे पूच्छ लो!"

"ये तो कब का इसी फिराक़ में धक्के खा रहा है भाभी जी.. इस'से क्या पूच्छना.. पर अब टीले पर जाकर करना क्या है..? और आप अकेले क्यूँ जाओगे.. मैं भी चलूँगा.. मैं नही मान'ने वाला इस बार!" रवि ने पहले नीरू को और फिर रोहन को देख कर कहा...

"नही.. जाना तो पड़ेगा ही.. रोहन के सपने में प्रिया ने क्या कहा है.. याद नही क्या?" नीरू ने सवाल किया....

"हां यार.. मेरी बेहन का दिल तो वहीं पर है.. यही बात है ना?" ऋतु ने नीरू से पूचछा....

"ओह्ह हां.. पर अकेले क्यूँ? मैं भी साथ चलूँगा...!" रवि ने कहा..

"पर पापा को इस बारे में पता नही चलना चाहिए कि हम टीले पर जा रहे हैं... वो हमें वहाँ नही जाने देंगे.. अकेले तो बिल्कुल भी नही.. मैं अपने आप उनको कुच्छ कह दूँगा.. तुम सब ध्यान रखना.. उनको खबर नही होनी चाहिए..." रोहन ने सबको चेतावनी दी....

"ठीक है यार.. देख लेंगे.. पर नीरू तुम पूरी कहानी सूनाओ ना.. मैं कब से सुन'ने को बेकरार हूँ....!" ऋतु मचल कर बोली...

"हां हां.. भाभी जी.. जो कुच्छ आपको याद आया है.. सब सूनाओ..!" रवि ने कहा...

"सब कुच्छ याआद आ गया है.. बीच में मत बोलना!" नीरू ने कहा और सब शांत हो गये....

नीरू ने उनको देव को पहली बार देखने से लेकर कहानी सुनानी शुरू कर दी....

सपने की कहानी पूरी होने के बाद काफ़ी देर तक चारों सन्न होकर बैठे रहे.. किसी की समझ में नही आ रहा था कि कैसी प्रतिक्रिया दें... रोहन को तो विश्वास ही नही हो रहा था कि वह कभी 'देव' रहा होगा...

"कब चलें टीले पर..?" रवि नीरू के चुप होने के बाद बोलने वालों में सबसे पहला था...

"तुम नही जा रहे हो! सिर्फ़ हम दोनो जाएँगे वहाँ.." नीरू ने ज़ोर देकर कहा...

"पर मैं क्यूँ नही भाभी जी? मुझे भी चलना है.. मैं भी देखूँगा कि आपको सब याद आ जाएगा तो आप क्या करोगे?" रवि ने मचलते हुए कहा तो रोहन ने उसकी और घूर कर देखा.. शायद ग़लत मतलब निकल लिया था उसकी बात का...

"पर किसी ना किसी को तो लेकर जाना ही पड़ेगा... वैसे भी वहाँ रात को जाना है.. हमारा अकेले चलना ठीक नही है..." रोहन ने रवि की बात का समर्थन किया...

"हां.. यही तो मैं कह रहा हूँ.." रवि ने अपनी टाँग फँसाई...

"ओके.. तो फिर चारों चलते हैं... पर तुम दोनो टीले के पास बाहर खड़े हो जाना.. अंदर तो हम अकेले ही जाएँगे...." नीरू ने उनकी बात मान ही ली....

"तो आज ही चलें क्या? " रवि ने खुश होकर कहा...

"और क्या? चलना है तो आज ही चलो.. फिर हमें वापस भी तो जाना है..." ऋतु ने भी रवि की बात का समर्थन करते हुए कहा...

"हुम्म.. ठीक है.. मैं पापा को फोन करके गाड़ी मंगवा लेता हूँ.. उनको मैं यही बोलूँगा कि हम दोस्त के पास जा रहे हैं.. !"

---------------------------------------------------------------

"क्या हुआ तुम्हे.. दार लग रहा है क्या? अभी तो गाँव में ही है यार.. तू ऐसा करेगा तो हमारा क्या हाल होगा..." रवि ने रोहन की आँखों में आँसू देख कर पूचछा...

रोहन ने कोई जवाब नही दिया.. वो उस वक़्त श्रुति के घर के सामने से गुज़रे थे... घर का बंद दरवाजा देख रोहन की आँखें नम हो गयी थी... श्रुति का मासूम चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया था.. बेचारी!!!

"क्या हुआ?" पीछे बैठी नीरू ने रवि की बात सुनकर कहा...

"कुच्छ नही.. वो.." रोहन ने रुक कर एक लंबी साँस ली," पीछे वाला घर श्रुति का था..."

"कौनसा?" तीनो ने एकदम पलट कर पिछे देखने की कोशिश की..," ये.. जो अभी गया है.. अकेला सा घर..!" ऋतु ने पूचछा...

"हां!"

"हमें चलना चाहिए था वहाँ..." नीरू ने कहा...

"दिल तो मेरा भी कर रहा है.. पर हिम्मत नही हो रही..!" रोहन ने जवाब दिया...

"तुम तो पागल हो यार.. जो भी हुआ.. उसमें हमारी क्या ग़लती है...? फिर उसके बापू से मिलकर आना उसको अच्च्छा ही लगता..." रवि ने कहा...

"हां.. हां.. चलो.. एक बार हो आते हैं..!" ऋतु ने कहा....

"अभी तो ग्यारह बजने वाले हैं.. आगे गाड़ी नही जाएगी.. पैदल चलने में घंटा भर लग जाएगा.. 12 बजे तक वहाँ पहुँचना है हमें... आते हुए देख लेंगे...!" रोहन ने कहा और गाड़ी चलाता रहा...

"क्या? इस सुनसान रास्ते पर पैदल चलना पड़ेगा? वो भी इतनी रात में..?" ऋतु सिहर सी गयी," मुझे तो तुम वहीं उतार देते.. श्रुति के घर..!"

"हा हा हा हा.. अब क्या हो गया...?" रवि ने मज़ाक किया...

"तुम्हे कुच्छ कहा है मैने? अपना मुँह सीधा रखो..." ऋतु खिज कर बोली....

"कम से कम यहाँ तो मान जाओ! तुम्हारी तो कुत्ते बिल्ली जैसी दोस्ती है..." नीरू ने बीच बचाव करने की कोशिश की....

"हे हे हे... रवि को कुत्ता बोला..." ऋतु ठहाका लगा कर हँसने लगी....

"नही.. नही.. मैने ये नही बोला.. मेरा ये मतलब नही था..." नीरू हड़बड़ा कर सफाई देने लगी....

"कोई बात नही भाभी जी.. यहाँ सब चलता है.. पर इसको बिल्ली की जगह कोई बढ़िया सा नाम देना चाहिए था.... जैसे छिप्कलि.. हा हा हा!"

"लो.. गाड़ी यहीं खड़ी करनी पड़ेगी.. आगे पैदल ही चलना है... टॉर्च लाया है ना?" रोहन ने गाड़ी को साइड में खड़ा करते हुए रवि से पूचछा....

"हां.. लाया हूँ..." रवि ने कहा और सब गाड़ी से उतर गये....

रास्ता पिच्छली बार की तरह ही डरावना, बेढंगा और सुनसान था.. पर जाने क्यूँ रोहन को आज डर नही लग रहा था.. शायद वह खुद को आज देव के रूप में ही देखना और दिखाना चाह रहा था... या फिर नीरू के साथ होने से उसको मानसिक मजबूती सी मिल रही थी... नीरू भी उसके पीछे पीछे ध्यान से चल रही थी.. नीरू के पीछे ऋतु और सबसे लास्ट में टॉर्च को हाथ में लिए रवि था...

"इतनी तेज मत चल यार.. मैं पिछे रह जाती हूँ..." ऋतु ने नीरू का कमीज़ पकड़ कर खींच लिया....

"मैं क्या करूँ? यही भगा जा रहा है..." नीरू ने उसके साथ होकर कहा...

"आए भाई.. ज़रा आराम से चल ले... मैं पिछे रह गया तो वापस भाग जाउन्गा.. पहले बता रहा हूँ..." रवि ने नीरू की बात सुनकर कहा....

"बोलो मत यार.. चुपचाप चलते रहो... हमें 12 बजे से पहले ही पहुँच लेना चाहिए..." रोहन ने अपनी चल धीमी नही की....

"बोलो मत बोल रहा है.. यहाँ मेरी जान सूख रही है.. किसी ने पिछे खींच लिया तो.. तुम तो समझोगे मैं वापस भाग गया... मैं गुम हो जाउ तो मुझे ढूँढ लेना भाई... मुझे लग रहा है कि मेरे पिछे पिछे कोई चल रहा है...!" रवि ने चलते चलते कहा...

"आईईईईईईईईई..." ऋतु अचानक चीख कर नीरू से लिपट गयी....

सब अचानक चौंक कर खड़े हो गये," क्या हुआ ऋतु?" नीरू ने उसको संभालते हुए पूचछा....

"कुच्छ नही... ये खंख़्वाह डरा क्यूँ रहा है मुझे..." ऋतु रुनवासी सी होकर बोली....

"लो.. आगे पिछे मैं ही मिलता हूँ तुम्हे कोसने को.. मैने क्या किया है..." रवि ने पूचछा...

"ये... ऐसे क्यूँ बोल रहा है कि इसके पिछे कोई है.. मेरी तो जान ही निकल गयी थी.." ऋतु ने रवि के सवाल का जवाब नीरू को दिया... अब की बार उसने नीरू का हाथ नही छ्चोड़ा....

" क्यूँ नही बोलूं? किसी ने कहा था क्या साथ आने को...? मुझे तो लग रहा है... ऐसे भी लग रहा है जैसे कोई मेरा कॉलर पकड़ कर खींच रहा है... और झाड़ियों में से बड़ी बड़ी आँखें भी चमकती हुई दिखाई दे रही हैं... तू तो गयी आज!" रवि ने चटखारा लेकर कहा.... ऋतु ने एक बार फिर डर कर नीरू को कसकर पकड़ लिया...

"नही.. मुझे नही चलना आगे.. वापस चलो.. मुझे छ्चोड़ कर आ जाना.." ऋतु सहम सी गयी थी...

"क्यूँ बकवास कर रहा है यार... अब तो पहुँच ही गये... वो देखो लाइट जल रही है..." रोहन ने हाथ से इशारा किया.. तभी अचानक नीरू चक्कर खा कर गिरने को हो गयी...

"क्क्या हुआ.. शीनू...? ये.. शीनू को क्या हो गया?" उसको अपनी बाहों में संभाल कर ऋतु डर के मारे रोने लगी....

"कुच्छ नही.. यूँही चक्कर सा आ गया था..." नीरू अपने माथे पर हाथ लगाकर बोली.. और फिर से खड़ी होकर रोशनी की और देखने लगी...," तुम यहीं रुक जाओ.. आगे हम अकेले जाएँगे.."

"नही.. मैं यहाँ नही रहूंगी.. इसके साथ तो बिल्कुल भी नही.. ये तो मुझे डरा डरा कर ही मार देगा....!" ऋतु ने रवि की और अंधेरे में घूर कर कहा...

"पर ये क्यूँ नही चल सकते... मुझे तो... चलो ठीक है... रवि भाई.. क्या कर रहा है यार.. ये कोई मज़ाक का टाइम है?" रोहन ने रवि की ओर देख कर कहा....

"चलो ठीक है.. मैं कुच्छ नही कहूँगा.. पर अगर यहाँ पिछे से कोई आ गया तो....." रवि ने कहा....

"देख लो.. देख लो इसको.. मैं इसके पास नही रहूंगी.. इस'से अच्च्छा तो इसको भी ले जाओ अपने साथ.. मैं अकेली ही रह लूँगी....

"प्लीज़ रवि! मान जाओ ना..." नीरू ने प्यार से कहा तो रवि ने तुरंत अपनी दूम सीधी कर ली ( ) ठीक है भाभी जी... आप लोग जाओ.. मैं इसकी अपनी जान से भी ज़्यादा हिफ़ाज़त करूँगा...."

नीरू मुस्कुरा दी... और फिर रोहन की और देख कर बोली...," चलो!"

रवि और ऋतु को वहीं छ्चोड़ कर वो दोनो आगे बढ़ गये......

क्रमशः ................................

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--28 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...........

"क्या हुआ? आप चुप क्यूँ हो?" नीरू ने चलते चलते रोहन को टोका...

"आ.. नही.. कुच्छ नही.. आगे कीचड़ है.. इसीलिए संभाल कर चल रहा हूँ..." रोहन ने नीरू के टोकने पर कहा.. ये पहली बार था जब वो दोनो अकेले थे.. और कोई नही था उनके साथ...

"नही आएगा.. आप आराम से चलते रहो!" नीरू ने चहकते हुए कहा...

"तुम्हे नही पता.. पिच्छली बार हमारी पॅंट घुटनो तक कीचड़ में सन गयी थी... एक बात पूच्छू...?" रोहन ने कहा...

"हुम्म.. कुच्छ भी पूच्छो.." नीरू उसी अंदाज में बोली...

"तुम्हे सच में डर नही लग रहा या तुम डर को च्चिपा रही हो...?" रोहन ने सवाल किया...

"नही.. डर नही लग रहा.. हमें डर क्यूँ लगेगा?" नीरू ने कहा...

" इतनी रात में हम यहाँ सुनसान रास्ते पर चल रहे हैं... तुम वैसे भी लड़की हो.. डर लगना तो लाजिमी है... अरे.. कीचड़ सच में नही मिला.. हम तालाब के पार पहुँच गये.." रोहन ने हैरत से कहा और अचानक उसको कुच्छ ध्यान आया..

वा तुरंत पिछे पलट कर खड़ा हो गया.. उसके रुकते ही नीरू भी एकदम वहीं खड़ी हो गयी...

"क्क्कऔन हो तुम?" रोहन उसको ग़ौर से देखता हुआ एक कदम पिछे हट गया...

नीरू मुस्कुराने लगी..," हम नीरू हैं.. और कौन? चलो भी अब!"

"नही.. क्कौनसी वाली नीरू? सच बताओ प्लीज़..." रोहन उसके मुँह से दो बार अपने लिए 'हम' शब्द सुन चुका था.. पहले तो नीरू ऐसे नही बोलती थी कभी... और उसने ये भी बता दिया कि कीचड़ नही मिलेगा... उसको अहसास हुआ शायद वो नीरू नही बुल्की 'प्रिया' है....

नीरू कुच्छ देर यूँही खड़ी मुस्कुराती रही फिर अचानक वह आगे बढ़ कर रोहन से लिपट गयी," हम आपकी नीरू हैं जान.. देव की प्रिया... और कौन?"

"नही... मतलब.. तुम.. आइ मीन.. तुम इस जनम वाली नीरू हो या.. प्रिया.." रोहन नीरू की इस हरकत से एकदम हड़बड़ा सा गया....

नीरू रोहन से यूँही लिपटी खड़ी रही.. उसने रोहन के सवाल का जवाब कुच्छ यूँ दिया," आप कैसे समझोगे..सदियों बाद मिले हो आप... कितने तडपे हैं आपके लिए.. कैसे बतायें...? क्या क्या नही किया! कहाँ कहाँ नही ढूँढा आपको! इस दुनिया के भी नियम तोड़े और उस दुनिया के भी... पर देख लो जान.. आख़िरकार हम आपके हो कर ही रहे.. हमने कहा था ना..आपके रहेंगे जनम जनम..! आपके ही रहे... हर जनम.. आपके सिवाय किसी के बारे में सोचा तक नही.. प्यार क्या होता है? मेरे शरीर ने जाना तक नही कभी... हमारा दिल यहीं तड़प्ता रहा.. आपके लिए.. यहाँ.. इस तन्हा वीराने में.. " बोलते हुए नीरू फफक फफक कर रोने लगी...

रोहन का गला भर आया.. उसने झिझकते हुए नीरू को अपनी बाहों में भर लिया....," आइ लव यू जान!" उसने नीरू को कसकर अपनी बाहों में भींच लिया...," ये सब तुम्हारे ही प्यार की वजह से हो पाया... मुझे तो कुच्छ याद ही नही था.. हां.. सब कहते थे.. तुम खोए खोए से लगते हो.. पर.. मैं.. मुझे कभी अहसास नही था कि मेरा क्या गुम हो रखा है.... हां.. ऐसा लगता था कि कुच्छ ढूँढ रहा है मंन... आज जाकर मंन शांत हुआ है..."

दोनो ना जाने कितनी देर यूँही खड़े रहे.. खामोश... अब सिर्फ़ उनके दिल धड़क रहे थे.. साँसें बात कर रही थी.... और वक़्त मानो वहीं ठहर सा गया था...

"अब क्या करें? " रोहन ने कुच्छ देर बाद चुप्पी तोड़ी...

"कुच्छ मत बोलो अभी.. हमें शादियों बाद ऐसा सुकून मिला है.. इस लम्हे को अपनी साँसों में समेट लेने दो..." नीरू रोहन से यूँही चिपकी खड़ी रही...

कुच्छ देर बाद वह नज़रें झुकाए उस'से दूर हटकर खड़ी हो गयी.. सिर्फ़ थोड़ी सी दूर...

"वापस चलें क्या?" रोहन ने पूचछा...

"नही.. वो लॉकेट लाना है.. जो आप मुझे पहना कर गये थे.. इसीलिए तो आपको यहाँ बुलाया था...." नीरू ने जवाब दिया....

"पर.. तुम तो.. मतलब नीरू ने सपने में देखा था कि लॉकेट उस.. कुँवरपाल ने भत्ति में फैंक दिया था.. वो जला नही क्या?" रोहन ने पूचछा...

"नही.. वो जल जाता तो हम यहाँ किसके सहारे रहते... वो तो शादियों से यूँही आसमान के सितारे की भाँति दमक रहा है... वो देखो.." नीरू ने रोशनी की ओर इशारा किया...

"क्या? वो.. लॉकेट है? वो तो किसी बल्ब की भाँति चमक रहा है.. और वो जगह तो हमें कभी मिली ही नही.... हमने उस दिन कितना ढूँढा था उसको...!" रोहन आस्चर्य से रोशनी की तरफ देखता हुआ बोला.....

"मिल जाएगा आज.. हम आपके साथ हैं ना.. चलो तो सही..." नीरू ने उसकी बाँह पकड़ी और आगे बढ़ गयी.....

उन्ही अंजानी सी गलियों से आगे बढ़ते हुए वो रोशनी की तरफ कुच्छ कदम आगे बढ़े थे कि रोहन को वही बच्चा खुशी से उच्छलता आता दिखाई दिया...

"दीदी.. मुझे ले चलो ना साथ!" उसने कहा और पास आकर खड़ा हो गया... उसके चेहरे पर वैसी ही मासूमियत थी.. वैसा ही सूनापन....

"ये कुमार दीक्षित था.. हमारा छ्होटा भाई.. आज इसकी मुक्ति का समय आ गया है... इसका हाथ पकड़ लो.. और दूसरे हाथ से मेरा हाथ थामे रहो..." नीरू ने कहा...

रोहन ने अचरज से उसकी और देखते हुए खुश होकर अपना हाथ उसकी और बढ़ा दिया... बच्चा भाग कर आया और रोहन से बोला," चलो.. आप भी हमारे साथ रहोगे क्या?"

रोहन मुस्कुरा दिया.. उसको अब लेशमात्रा का भी डर नही लग रहा था...," हाथ पकड़ लो मेरा....!"

"पकड़ा हुआ है इसने.." नीरू ने कहा और चलती रही...

पीपल के उस पेड़ तक पहुँचने में आज उनको उतना ही टाइम लगा जितना नितिन को दिन में आने पर उसके पास जाने में लगा था... रोहन आस्चर्य से पीपल की एक उँची शाखा पर किसी तारे की तरह चमक रहे लॉकेट को देखने लगा कि अचानक चौंक पड़ा..," वो.. बच्चा कहाँ गया... सॉरी.. तुम्हारा भाई..."

नीरू मुस्कुरकर बोली," चला गया वो.. उसको रास्ता मिल गया.. इस जहाँ से रुखसत होने का.. कितने सालों से भटक रहा था बेचारा... " नीरू आँखों से आँसू पौंचछते हुए बोली...," जाओ.. उस लॉकेट को उतार कर ले आओ अब!"

"हुम्म. अभी चढ़ता हूँ..." रोहन का उत्साह देखते ही बन रहा था... वह बिना डरे पीपल के पेड़ पर चढ़ा और लॉकेट के पास जाकर उसको निहारने लगा... लॉकेट किसी हीरे की तरह लग रहा था... रोहन ने टहनियों में अटकी हुई उसकी डोर सुलझाई और उसको लेकर नीचे आ गया...," ले आया मैं.. अपना लॉकेट... अब इसको पहन लूँ क्या?"

नीरू हँसने लगी," इसको आप हमें भेंट कर चुके हो.. याद नही है क्या..?" नीरू ने कहा और लॉकेट को देखने लगी...

"तो क्या करूँ इसका ?" रोहन ने पूचछा....

"हमें पहना दो.. और क्या करोगे....?" नीरू मुस्कुराती हुई बोली.. और फिर अचानक अपना हाथ उठा दिया....," हमें ले चलना यहाँ से.. कहीं यहाँ छ्चोड़ कर भाग जाओ...!"

रोहन उसकी और देख कर प्यार से मुस्कुराया और किसी वरमाला की तरह उसके गले में लॉकेट पहना दिया.... लॉकेट पहनते ही पहले से ही उसके हाथ पकड़ कर खड़ी नीरू उसकी बाहहों में झूल गयी....

रोहन एक पल के लिए तो घबरा ही गया था... अचानक उसको नीरू की कही बात याद आ गयी.. रोहन ने उसको बाँहों में उठाया और वापस चल पड़ा....

नीरू को अपने कंधे पर उठाए जैसे ही रोहन रवि और ऋतु को दिखाई दिया.. दोनों भय और आशंका के मारे उच्छल पड़े...," क्या हो गया?" दोनों के मुँह से एक साथ निकला....

रोहन के पास आने पर जब उन्होने उसको मुस्कुराता हुआ देखा तो दोनो की जान में जान आई...

"क्या हो गया भाई, भाभी जी को?" रवि ने पूचछा...

"कुच्छ नही.. ठीक है.. पर अब तक तो होश आ जाना चाहिए था..." रोहन ने कहा..," ज़रा बोलना इसको..."

"नीरू.. नीरू.. आए शीनू..." ऋतु ने उसके गालों को थपथपा कर देखा," क्या हो गया इसको?" ऋतु एक बार फिर घबरा गयी....

"कुच्छ नही.. हो जाएगी ठीक.." रोहन ने कहा.. पर अब उसको भी चिंता होने लगी थी," चलो.. जल्दी.. गाड़ी में चल कर देखेंगे..." रोहन उसको यूँही अपने कंधों पर डाले रहा.....

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गाड़ी तक पहुँचते पहुँचते रोहन की साँस फूल गयी थी...," ज़रा अंदर की लाइट ऑन करना.. मैं इसको पिछे लिटाता हूं.." रोहन ने रवि की तरफ चाबियाँ उच्छाल दी...

लॉक खुलते ही रोहन ने दरवाजा खोला और नीरू को अंदर लिटा दिया... चिंता में उसके चेहरे की ओर देखते हुए रोहन ने जैसे ही उसके गाल थपथपाए.. नीरू की हँसी छ्छूट गयी और उसने बैठ कर अपना चेहरा छिपा लिया....

उसके हंसते ही सबके चेहरे खिल गये.. ऋतु भी दूसरी तरफ से दरवाजा खोल अंदर आ चुकी थी," तुम ठीक तो हो ना....!"

नीरू की रेशमी लतें रोहन से उसका चेहरा च्छुपाए हुए थी.. उसने शर्मकार ऋतु की तरफ देखा," हां.. ठीक हूँ.. मुझे क्या हुआ है....?"

"तुझे नही पता? तू बेहोश हो गयी थी... रोहन तुझे कंधे पर उठाकर यहाँ तक लाया है.. 4-5 किलोमीटर तो होगा ही..." ऋतु ने कहा....

"हां.. पता है..!" नीरू ने जवाब दिया...

"क्या पता है...?" ऋतु ने फिर पूचछा....

नीरू उसके कान के पास अपने होन्ट लेकर गयी," यही कि ये मुझे इतनी दूर से उठाकर लाया है.. मुझे वहीं होश आ गया था.. हे हे हे" नीरू ने कहा और खिलखिला कर हंस पड़ी....

"हैं? पता था तो बोली क्यूँ नही? हम कितने डरे हुए थे.. तुझे पता है.. और रोहन बेचारा कितनी दूर से तुम्हे गोद में लेकर आया है... ये परेशान नही हुआ होगा क्या?" ऋतु ने राज बनाकर कान में कही गयी बात का खुल्लम खुल्ला ढिंढोरा पीट दिया... नीरू ने शर्मकार फिर से अपना मुँह छिपा लिया.. रोहन से!

"ले बेटा... अपने बड़े सही कहकर गये हैं.. आदमी शादी के बाद गधा बन जाता है.. हा हा हा.. तू तो पहले ही भाभी जी को ढोने लगा..." रवि भला मिला हुआ मौका कैसे छ्चोड़ता....

पर रोहन तो दूसरी ही दुनिया में खोया हुआ था... गाड़ी चलाते हुए वह सोच रहा था.. 'काश! गाड़ी थोड़ी और आगे खड़ी होती'

"तुम बोली क्यूँ नही पहले..? ऋतु ने बनावटी गुस्से से कहा और हँसने लगी...

"मुझे शर्म आ रही थी.. नीन्चे उतारने की कहते हुए..." नीरू ने ये बात भी उसके कान में कही....

"अब बताओ! क्या हुआ वहाँ?" रवि ने पूचछा...

"नही.. वो सब बाद में पूच्चेंगे.... श्रुति का घर आ गया है.. पहले उनके घर चलो..." ऋतु ने कहा.....

"पर इस वक़्त.. रात के 1:30 बजे...?" रवि ने कहा....

"हां हां.. क्या पता हमें कल ही वापस जाना पड़े.. नीरू के पापा आ रहे हैं ना...!" ऋतु ने कहा....

रोहन ने थोड़ी देर सोच कर गाड़ी श्रुति के घर के बाहर ही खड़ी कर दी... सब नीचे उतरे और दरवाजे पर जाकर खड़े हो गये....

रोहन सबसे आगे था.. उसने दरवाजा खटखटाया.. पर कोई जवाब नही मिला....

2 - 4 बार और दरवाजा खटखटने पर अंदर से श्रुति के पिता जी की आवाज़ आई," आता हूँ भाई.. कौन है?"

रोहन के मुँह से आवाज़ निकल ही नही पाई...

"नमस्ते अंकल जी!" जैसे ही छर्ररर की आवाज़ के साथ दरवाजा खुला.. सबने प्रणाम किया...

"कौन?" श्रुति के पिता जी ने ध्यान से देखा तो वह रोहन को पहचान गया," अरे आओ आओ.. बेटा.. आज फिर इतनी रात को...? आओ.. अंदर आ जाओ..."

रोहन को कुच्छ कहते सुनते ही नही बन रहा था.. अब कहे भी तो क्या कहे.. इतनी पुरानी बात को फिर से ताज़ा करके वह श्रुति के पिता जी के ज़ख़्मों पर नमक च्चिड़कना नही चाहता था....

"ये.. बच्चियाँ कौन हैं..?" उन्होने पूचछा और अंदर जाकर कमरे का दरवाजा खटखटा कर बोला," श्रुति बेटी.. ज़रा उठना एक बार !!!!!!!!!!!!!

"श्रुति!" सबके मुँह से अचानक एकसाथ निकला....

"हां.. मेरी बेटी है.. ये..." अंकल जी ने नाम याद करते हुए कहा," रोहन तो जानता है..." अंकल जी ने शायद ध्यान ने दिया कि सबसे पहले आसचर्या से उसी के मुँह से नाम निकला था.....

तभी दरवाजा खुला और बला की हसीन श्रुति अंगड़ाई सी लेते हुए बाहर निकली.. पर 2 लड़कों को सामने खड़ा देख शर्मा गयी और अचानक अपने हाथ नीचे कर लिए.. उनमें से एक को वा अच्च्ची तरह जानती थी......

रोहन और रवि को तो जैसे अपनी आँखों पर विस्वास ही नही हुआ.... ," ययए.. यहाँ... कैसे आई....?"

श्रुति के साथ ही चौंक कर पिता जी ने भी रवि को देखा..," सपना देख रहे हो क्या बेटा... रात को ये अपने घर पर नही तो कहाँ होगी... !" तुम अंदर बैठो.. मैं आता हूँ.. बेटा.. कुच्छ खाना वाना....?"

"जी बापू... अभी बना देती हूँ... " कहकर वो रसोई घर की ओर चल दी... ऋतु और नीरू भी हैरत से कुच्छ जाने को उत्सुक होकर उसके साथ ही चली गयी....

रवि से अंदर बैठे ना रहा गया...," एक मिनिट अंकल जी... मैं अभी आता हूँ..." कहकर वो बाहर निकला और लड़कियों की आवाज़ सुनकर रसोई में ही घुस गया....

अब तक खिलखिला रही श्रुति रवि को देखते ही एकदम चुप हो गयी... ऋतु और नीरू रवि की ओर देखने लगी...

"एक मिनिट... तुम्हे छ्छू कर देख लूँ क्या?" रवि ने मरा सा मुँह बनाकर कह दिया....

श्रुति ने चौंक कर उसकी ओर देखा... वह उसकी बात का मतलब नही समझ पाई...

पर इतनी देर रवि को शांति कहाँ होती... उसने उंगली से श्रुति के हाथ को च्छुआ और आस्चर्य से बोला..," तुम तो.. बतला....?" कहकर वो चुप हो गया...

"बतला? क्या कह रहा है ये?" श्रुति ने नीरू की ओर देख कर धीरे से पूचछा....

"तुम जाओ.. हम बात कर लेंगे...!" ऋतु ने कहा और रवि की ओर घूर कर देखा...

रवि तो उसस्पर बतला से ही फिदा हो गया था...," तुम्हारी शादी हो चुकी है क्या?" उसने ऋतु की बात पर गौर नही किया....

श्रुति हंस पड़ी..,"क्या बोल रहे हो? मुझे कुच्छ नही पता...!"

"नही... मैं भी कुँवारा हूँ.. इसीलिए..." रवि अपनी बात को पूरी कर भी नही पाया था कि ऋतु ने उसको धक्का देकर रसोई से बाहर निकाल दिया....

"ये मुझे हाथ लगाकर क्यूँ देख रहा था..?" श्रुति ने मुस्कुराते हुए पूचछा....

"वो तो हमने भी लगाकर देखा था.. तुमने ध्यान नही दिया होगा..." ऋतु ने कहा," बहुत अजीब कहानी है .. तुम्हे विश्वास नही होगा....!"

"क्या? क्या हो गया?" श्रुति ने पूचछा....

ऋतु को जितनी कहानी पता थी.. उसने श्रुति को सुना डाली... और फिर बोली," ज़रूर वो तुम्हारी कोई हमशकाल होगी....."

ऋतु की आँखों से नितिन के साथ बिताई वो रात याद करके भर आई...," हां.. वो कमीना मुझे ज़बरदस्ती बतला ले जा रहा था, यही सब करवाने के लिए... और मजबूरी थी.. मुझे जाना भी था.. पर खुसकिस्मती से जाने कैसे वो मुझे नही ले गया.... उसने जहाँ मुझे बुलाया था.. वहाँ मैं 1 घंटा इंतजार करके वापस आ गयी.... वो नही आया... मैं तो 3-4 दिन तक डरी डरी कॉलेज जाती रही.. कि कहीं वो हरमज़दा फिर ना आ जाए....!" श्रुति ने अपने आँसू पौच्छे....

"तो.. तो फिर वो कौन थी...?" नीरू और ऋतु के मुँह आस्चर्य से खुले के खुले रह गये......

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"अंकल जी!" सुबह रोहन ने हिचकते हुए बात शुरू की....

"हां.. बेटा.. बोलो?"

"ववो... आप कह रहे थे मुझे... वो.. कि अगर श्रुति के लिए कोई अच्च्छा.. रिश्ता मिले तो बताउ..." रोहन ने रवि के ज़ोर डालने पर बात कह ही डाली....

"हां.. कोई हो तो ज़रूर बताओ बेटा.. अब तो श्रुति भी शादी करने को मान गयी है....

"मैं हूँ!" रवि रोहन के सोच कर टुकूर टुकूर बोलने का इंतजार कर ही नही पाया...

"हूंम्म..." अंकल जी की समझ में नही आया कि अचानक दागे हुए इस गोले का जवाब कैसे दे..," मैं पूच्छ कर बताता हूँ बेटा......" कहा और बाहर चला गया...

अंकल जी के जाते ही रोहन ने खींच कर रवि के कान के नीचे बजा डाला..," तुझे ये भी नही पता की कौनसी बात कब करते हैं.. मेरी भी इन्सल्ट करवा दी.. मैं बात कर रहा था ना....."

"अच्च्छा.. साले.. मतलब निकलते ही अपने आपको प्यार का पीएच.डी. मानने लग गया.. कल तक तो फट रही थी तेरी.... देख लेना.. वो जवाब हां में ही देगी......!" रवि बत्तीसी निकाल कर बोला....

कुच्छ देर में श्रुति के पिता जी वापस आ गये...," बेटा.. हम ग़रीब लोग हैं.. लेने देने को तो कुच्छ खास होगा नही.. सिर्फ़ मेरी बेटी के अलावा...!"

"कैसी बात कर रहे हो पापा.. ( ) .. मेरा तो इसीमें जीवन धन्य हो जाएगा.... दहेज के तो मैं एकदम... बिल्कुल... पूरा खिलाफ हूँ.." रवि चहक कर बोला.....

"ठीक है बेटा.. श्रुति को कोई ऐतराज नही है.. मैं तुम्हारे घर आ जाता हूँ रिश्ता लेकर.... वो मान तो जाएँगे ना..." अंकल जी ने पूचछा...

"आप चिंता मत करो पापा.. उनको तो मैं आपके आने से पहले ही मना कर रखूँगा... कहो तो मैं ही आ जाउ.. उनको लेकर..." रवि भी रवि था....

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"तुम्हे गाड़ी चलानी आती है क्या?" नीरू ने रवि से पूचछा...

"हां.. आपके शहर में ही सीखी है.. अमन भाई से.... क्यूँ?" रवि ने पूचछा...

"तो तुम क्यूँ नही चलते...." नीरू ने उसको कहा...

"ठीक है.. मैं चला लेता हूँ... नो प्राब्लम..." रवि ने रोहन के हाथ से चाबी छ्चीन ली....

"तुम्हे इसका पता नही है.. चलते हुए भी पिछे देखता रहेगा बात करते हुए.. कहीं भी घुसा देगा..." रोहन ने नीरू की तरफ देख कर कहा....

"तू चुपचाप बैठ जा.. भाभी जी ने क्या कहा है.. सुना नही क्या?" रवि ने कहा और खिड़की खोल कर धम्म से ड्राइविंग सीट पर जा बैठा... बेचारा रोहन साथ वाली सीट पर बैठ गया... ऋतु और नीरू के बैठते ही वो श्रुति और अंकल जी को बाइ करके निकल लिए.....

कुच्छ ही दूर गये होंगे.. अचानक रोहन को अपनी शर्ट खींचती हुई महसूस हुई... उसने पिछे देखा.. नीरू उसकी शर्ट को पिछे खींच रही थी....

"हूंम्म..." रोहन ने प्यार से उसकी और देखते हुए पूचछा....

नीरू ने उसको आँखों ही आँखों में कुच्छ इशारा किया..

"सॉरी मैं समझा नही..." रोहन ने जवाब दिया.....

नीरू के होन्ट धीरे से हीले.. पर वो बात भी रोहन के कानों के उपर से गुजर गयी....

"पता नही क्या कह रही हो.... ज़ोर से बोलो ना....!" रोहन ने थोड़ा तेज बोला.....

नीरू अंदर की बात को लीक होते देख गुस्सा हो गयी....," चुपचाप पिछे आ जाओ.. ऋतु बैठ जाएगी आगे...!"

समाप्त
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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saba
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

Post by saba »

Mast love story h bhai,,,👌👌😍
😘😘😘love is the most beautiful in the world 😊😊😍😍
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rajaarkey
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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