अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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rajsharma
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अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...

इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:

"मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "

नीचे महफ़िल जम चुकी थी.. कुच्छ देर रवि का इंतजार करने के बाद अमन ने वहीं प्रोग्राम जमा लिया.. गिलासों को खड़खड़ाते अब करीब आधा घंटा हो चुका था.. शराब के नशे में रोहन वो सब कुच्छ बोलने लगा था जिसको बताने में अब तक वो हिचक रहा था...

"ओह तेरी.. फिर क्या हुआ?" अमन जिगयासू होकर आगे झुक गया...

"छ्चोड़ो यार.. क्यूँ टाइम खोटा कर रहे हो.. आइ डॉन'ट बिलीव इन ऑल दीज़ फूलिश थिंग्स.. एक सपने को लेकर इतना सीरीयस और एमोशनल होने की ज़रूरत नही है.. " शेखर सूपरस्टिशस किस्म की बातों में विस्वाश नही कर पा रहा था...

"पूरी बात तो सुन ले डमरू... रोहन ने शेखर को डांटा और कहानी सुनाने लगा....

"कौन डमरू.. मैं.. हा हा हा...!" शेखर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...," डमरू.. हा हा हा!"

"तुझे नही सुन'नि ना.. चल.. जाकर सामने बैठ.. और अपना मुँह बंद रख.. मैं मानता हूँ.. और मुझे सुन'नि हैं..." अमन आकर सामने वाले सोफे पर शेखर और रोहन के बीच में फँस गया.. शेखर उठा और बड़बड़ाता हुआ सामने चला गया," डमरू.. हा हा हा!"

बातें अभी चल ही रही थी की मुस्कुराते हुए रवि ने कमरे में प्रवेश किया..," अच्च्छा.. अकेले अकेले..!"

शेखर उसके आते ही खड़ा हो गया," साले डमरू! अकेले अकेले तू फोड़ के आया है या हम.. ? बात करता है...

"भाई तू मेरे को डमरू कैसे बोल रहा है.. वो तो रोहन बोलता है..." रवि ने उसके पास बैठते हुए कहा...

"क्यूंकी मेरे अंदर रोहन का भूत घुस आया है.. हे हे हा हा हो हो!" शेखर ने भूतों वाली बात का मज़ाक बना लिया....

"चुप कर ओये जॅलील इंसान.. ऐसी बातों को मज़ाक में नही लेते.. किसी के साथ भी कुच्छ भी हो सकता है..." अमन ने प्यार से उसको दुतकारा...

"किस के साथ क्या हो गया भाई? मुझे भी तो बता दो.." रवि ने अपना गिलास उठाया और सबके साथ चियर्स किया...

"वो बात बाद में शुरू से शुरू करेंगे.. अब सबको सीरीयस होकर सुन'नि हैं.. पहले तू बता.. दी भी या नही.. मुझे तो उसकी चीख सुनकर ऐसा लगा जैसे तू अपना हाथ में पकड़े उसके पिछे दौड़ रहा है.. और वो बचने के लिए चिल्लाती हुई कमरे में इधर उधर भाग रही है...हा हा हा.. साली ने नखरे बहुत किए थे पहले दिन... मैं ऐसी नही हूँ.. मैं वैसी नही हूँ.. पर डालने के बाद पता लगा वो तो पकई पकाई है..." अमन ने अपना अनुभव सुनाया....

रवि ने छाती चौड़ी करके अपने कॉलर उपर कर लिए," देती कैसे नही... !"

"अरे... सच में.. चल आ गले लग जा.. बधाई हो बधाई.." अमन आकर उसके गले लग गया..," हां.. यार.. बात तो तू सही कह रहा है.. सलमा की खुश्बू आ रही है तेरे में से.... पर वो चिल्लाई क्यूँ यार.. साली एक नंबर. की नौटंकी है.. तुझे भी यही कह रही थी क्या कि पहली बार मरवा रही हूँ.." अमन ने वापस रोहन के पास बैठते हुए कहा...

" नही यार.. वो तो साना की चीख थी... उसकी पहली बार फटी है ना आज!" रवि ने अपनी बात भी पूरी नही की थी कि अमन ने गिलास रखा और उच्छल कर खड़ा हो गया..," तूने साना की मार ली????"

"हां.. कुच्छ ग़लत हो गया क्या?" रवि ने मरा सा मुँह बनाकर कहा...

"ग़लत क्या यार..? ये तो कमाल हो गया.. साली को तीन बार बुला चुका हूँ.. सलमा के हाथों.. पर वो तो हाथ ही नही लगाने देती थी यार.. तूने किया कैसे.. अब तो ज़ोर की पार्टी होनी चाहिए यार.. ज़ोर की.. तूने मेरा काम आसान कर दिया...!" अमन जोश में पूरा पैग एक साथ पी गया...

"वो कैसे? " रवि की समझ में नही आई बात....

"क्या बताउ यार.. तुझे तो पता होगा.. वो और सलमा दोनो सग़ी बेहन हैं..!"

अमन को रवि ने बीच में ही टोक दिया," क्या? सग़ी बेहन हैं.. ?"

"हां.. चल छ्चोड़ यार.. लंबी कहानी है.. उसके बारे में बाद में बात करेंगे... पहले रोहन भाई की सुनते हैं.. चल भाई रोहन.. अब सब इकट्ठे हो गये हैं.. शुरू से शुरू करके आख़िर तक सुना दे.. पहले बोल रहा हूँ शेखर.. बीच में नही बोलेगा.. देख ले नही तो...!" अमन शेखर को चेतावनी सी देते हुए बोला..

"नही बोलूँगा यार... चलो सूनाओ!" कहकर शेखर भी रोहन की और देखने लगा....

रोहन ने कहानी सुननी शुरू कर दी.....

"आबे, ये क्या था?" रोहन अचानक ही आसपास की घनी झाड़ियों से अपनी और उच्छल कर आए गिलहरी नुमा जानवर को देखकर उच्छल कर तीव्रता से एक और हट गया.. जानवर की उछाल में जिस प्रकार की तीव्रता थी, उस'से यही प्रतीत हुआ की उसने उन्न पर हमला करने का प्रयास किया था...," तूने इसके दाँत देखे?"

करीब 10 - 10 फीट की लंबी छलान्ग लगाता हुआ वो उस उबड़ खाबड़ रास्ते के दूसरी तरफ की झाड़ियों में खो गया..

दोनो 2 पल वहीं खड़े होकर उस अजीबोगरीब गिलहरी को आँखों से औझल होते देखते रहे.. और फिर से अपनी अंजान मंज़िल की और बढ़ चले..

"अफ.. कहाँ ले आया यार...? कितना सन्नाटा है यहाँ? यहाँ पर तो आदमी की जात भी नज़र नही आती... कितना अजीब सा लग रहा है यहाँ सब कुच्छ... तुझे लगता है यहाँ तुझे तेरी नीरू मिल जाएगी..? ... देख मुझे तो लगता है किसी ने तेरा उल्लू बनाया है.. क्यूँ बेवजह अपनी रात बर्बाद कर रहा है... और मेरी भी.. चल वापस चल!" नितिन ने बोलते हुए सावधानी बरत'ने के इरादे से रिवॉल्वेर निकाल कर अपने हाथ में ले ली..

"ऐसी बात नही है यार.. वो यहीं रहती है.. आसपास, देखना! कोशिश करेंगे तो वो हमें ज़रूर मिलेगी.. वो अगर नही मिली तो मैं पागल हो जाउन्गा यार!" रोहन ने आगे चलते चलते ही बात कही...

नितिन आगे आगे बहुत चौकन्ना होकर चल रहा था.. चौकन्ना होना लाजिमी भी था.. जहाँ इस समय वो थे, उस जगह के आसपास कोई शहर या गाँव नही था.. हर तरफ सन्नाटे की भयावह सी चादर पसरी हुई थी... आवाज़ें अगर आ रही थी तो मैंधको के टर्रने की, और रह रह कर झाड़ियों के झुरपुट में कुच्छ रेंगते होने की...दूर दूर तक कृत्रिम रोशनी का नामोनिशान तक नही था.. बस आधे चाँद और टिमटिमाते हुए तारों की हुल्की फुल्की रोशनी ही थी जो उनको रास्ता दिखा रही थी.. रास्ता भी ऐसा जो ना होने के ही बराबर था.. कहीं उँचा, कहीं नीचा.. बीच बीच में गहरे गहरे गड्ढे.. इतने गहरे की ध्यान से ना चला जाए तो अचानक पूरा आदमी ही उनमें गायब हो जाए.. दोनो और करीब 4 - 4 फीट ऊँची झाड़ियाँ थी...

"अब रास्ता सॉफ होता तो गाड़ी ही ले आते.. तुझे क्या लगता है..? यहाँ पर कोई इंसान रहता होगा.. और वो भी लड़की.. सच बताना, खुद तुझे डर नही लग रहा, यहाँ का माहौल देख कर..." नितिन ने चलते चलते रोहन से सवाल किया...

"डर लग रहा है तभी तो तुम्हे लेकर आया हूँ भाई.. नही तो मैं अकेले ही ना चला आता.." रोहन ने जवाब दिया..और अचानक ही उच्छल पड़ा," नितिन देख.. आगे पक्की सड़क दिखाई दे रही है.. मैं ना कहता था.. हम ज़रूर कामयाब होंगे... आगे ज़रूर कोई बस्ती मिलेगी... देख लेना!"

"आबे बस्ती के बच्चे.. उस'से कोई ढंग का रास्ता भी तो पूच्छ सकता था तू.. आख़िर वो लोग भी तो शहर जाते होंगे..?" नितिन को भी आगे का रास्ता पिच्छले रास्ते के मुक़ाबले बेहतर देख कर कुच्छ उम्मीद बँधी....

"यार, क्या करूँ, जब यही एक रास्ता बताया उसने...!" रोहन ने तेज़ी से चलना शुरू कर चुके नितिन के कदमों से कदम मिलाते हुए कहा....

"अजीब प्रेमिका है तेरी.. एक तो रात में मिलने की ज़िद करी और उपर से रास्ता ऐसा बताया.. चल देख.. लगता है हम पहुँचने ही वाले हैं.. उधर लाइट दिखाई दे रही है.." नितिन ने अपनी बाई तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए कहा...

दोनो बाई तरफ मुड़े ही थे की अचानक ठिठक गये..," यहाँ तो पानी है..यार!" रोहन ने अपने कदम वापस खींचते हुए कहा..

"हुम्म.. कोई तालाब लगता है..चल.. आगे से रास्ता होगा... !" नितिन ने रोहन से कहा और दोनो फिर से सीधे रास्ते पर चल पड़े..
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

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कुच्छ आगे जाकर उनको एक पगडंडी सी बाई और जाती दिखाई दी.. दोनो ने आँखों ही आँखों में उस रास्ते पर सहमति जताई और उस और बढ़ चले...

"ओह तेरी मा की आँख.. यहाँ तो कीचड़ है..! चल वापस चल.. ये रास्ता नही है.." मन ही मन नितिन उस लड़की को कोस रहा था जिसके प्यार में पागल रोहन अपने साथ साथ उसकी भी दुर्गति कर रहा था...

"यार, आधे रास्ते तो आ ही चुके हैं... आगे चलकर तलब में धो लेंगे पैर.. अब वो लाइट भी नज़दीक ही दिखाई दे रही है..." रोहन ने मायूसी से नितिन को देखते हुए कहा..

"चल साले.. अगर फिर भी लड़की नही मिली तो देख लेना... ऐसी बकवास जगह मैने आज तक नही देखी" बड़बड़ाता हुआ नितिन फिर से रोहन के आगे आगे चलने लगा...

"देखी क्यूँ नही है? तू तो मास्टर है ऐसे ठिकानो का... आधी जिंदगी तो तूने जंगलों में गुज़ार दी.. मुझ पर अहसान करने के लिए बोल रहा है क्या?" रोहन ने उस पर मजाकिया व्यंग्य किया...

"हां.. गुज़ारी है.. मगर ऐसे थोड़े ही.. पूरे बंदोबस्त के साथ चलना पड़ता है.. तू तो मुझे ऐसे ले आया जैसे हम उनके जन्वाइ हैं और हमारे इंतज़ार में वो किसी एरपोर्ट पर पलकें बिच्छाए बैठे होंगे.. राम जाने किस घड़ी कौन जानवर बाहर निकल आए? वो तो अच्च्छा हुआ में कम से कम अपनी रिवॉल्वेर साथ रखता हूँ.. कोई भरोसा है ऐसी बीहड़ सुनसान जगह का.." नितिन ने संभाल संभाल कर पैर रखते हुए बोला... दोनो की पेंट कीचड़ के छ्चींटों से घुटनो तक सन गयी थी..

उसके बाद ज़्यादा देर उनको चलना नही पड़ा.. कुच्छ दूर और चलने पर वो एक सॉफ सुथरे रास्ते पर पहुँच गये.. रास्ता पुराने जमाने की छ्होटी छ्होटी ईंटों से बना हुआ था.. वो जगह कोई चौराहा लग रही थी.... पानी का 'वो' तालाब यहाँ तक भी फैला हुआ था.. " चल, अपने पैर सॉफ करके आगे चलते हैं.. अब वो घर भी ज़्यादा दूर नही लगता..." रोहन ने गहरी साँस लेते हुए कहा..

दोनो ने वहाँ पानी में अपने पैर धोए और फिर से आगे बढ़ गये...

"यार, यहाँ गलियाँ और दीवारें तो इतनी दिखाई दे रही हैं.. पर घर कहाँ हैं.. ? क्या इस गाँव में वो एक ही घर है जहाँ लाइट जल रही है...?" नितिन ने हैरानी से रोहन की और देखा...

"मैने पूचछा नही यार.. क्या पता एक ही हो.. चल.. तू चलता रह!" रोहन ने खिसियाई हुई बिल्ली की तरह से बेतुका सा तर्क दिया और अपने प्यार को पाने की उम्मीद में आगे बढ़ता रहा.. नितिन के साथ साथ..

बड़े ही विस्मयकारी अनुभव का सामना दोनो को करना पड़ रहा था.. काफ़ी देर तक चलने के बाद भी वो 'रोशनी' उनसे अभी भी उतना ही दूर लग रही थी.. उन्होने गलियाँ भी बदली, पर हर बार कुच्छ दूर चलते ही फिर से वो रोशनी ठीक उनके सामने आ जाती.. और फिर से उनको उसी रास्ते पर चलते रहने का अहसास होता...

"धात तेरे की... देख.. रोहन.. मुझे तो सब कुच्छ गड़बड़ लग रहा है.. भला ऐसी जगह पर भी आजकल कोई घर बनाता है.. 'वो' लड़की सच में यहाँ होगी ना...?" नितिन थक हार कर खड़ा हो गया...

"है ना भाई.. तू मेरा.. अरे.. देख बच्चा!" रोहन एक दम उच्छल पड़ा..

रोहन की बात सुनते ही नितिन का दिल उसकी बल्लियों पर आ गया..," बच्चा.. रात के 11 बजे.. घर से बाहर, वो भी ऐसी सुनसान जगह पर? आख़िर तू मुझे बात क्लियर क्यूँ नही कर रहा.. कौन है वो लड़की.. यहाँ आख़िर करते क्या होंगे उसके घर वाले..!" नितिन का दिमाग़ चकराने लगा था.. जिस तरह सी परिस्थितियाँ वहाँ उत्पन्न हो रही थी.. ऐसा होना लाजिमी ही था...

रोहन ने बिना कुच्छ बोले नितिन का हाथ पकड़ा और उस 'बच्चे' की और लपका..

दीवार के साथ खड़ा वो बच्चा झुक कर कुच्छ कर रहा था.. जैसे ही वो दोनो उसके करीब पहुँचे.. वो पलट कर मुस्कुराया...

बड़ा ही मासूम सा बच्चा था.. करीब 8 साल की ही उमर होगी.. दोनो उसकी शकल देखते ही हैरान रह गये.. उसके मुँह पर ऐसा लगता था जैसे किसी चोट का घाव बना हुआ हो.. ताज़ा घाव.. उसके होंटो के पास से खून रिस रहा था.. उसकी आँखों में गहरी चमक थी.. और चेहरे पर अजीब सा मैलापन...

दोनो उस'से कुच्छ दूरी पर ठिठक गये.. बच्चा उनकी और लगातार, बिना पलकें झपकाए देख रहा था.. उसकी आँखों में ना तो आसचार्य का भाव था.. ना ही किसी तरह के भय का.. पर आँखों की तेज चमक में भी अजीब से सूनेपन ने उनको चौंका दिया...

नितिन ने उस'से फासला बनाए हुए ही सवाल किया," यहाँ क्या कर रहे हो, बेटा.. इतनी रात को...?"

"अपने पैरों का कीचड़ सॉफ कर रहा हूँ अंकल.." बड़ी ही मासूमियत से बच्चे ने जवाब दिया.. उसकी आवाज़ और बात करने के ढंग से उनको कहीं से भी ये अहसास नही हुआ की उसकी उमर 4 साल से उपर होगी.. हालाँकि कद काठी से पहले उन्होने उसके 7-8 साल का होने का अनुमान लगाया था...

"यहाँ कोई नीरू रहती है.. ? बता सकते हो उसका घर कौनसा है?" रोहन का दिल बैठने लगा था.. यहाँ तो सब कुच्छ अजीब ही हो रहा था.. उसने जल्दी से वहाँ से टलने में ही भलाई समझी...

लड़के ने उंगली उठा कर रोशनी की और इशारा कर दिया..," वहाँ! हम सब वहीं रहते हैं.. उस हवेली में!"

"मतलब... मतलब तुम.. तुम्हारी कुच्छ लगती है क्या वो?" रोहन को रह रह कर झटके से लग रहे थे....

"पर उस 'हवेली' का रास्ता किधर से है.. हम तो ढूँढते ढूँढते थक गये.. और तुम घर क्यूँ नही गये अभी तक.. यहाँ क्या कर रहे हो..?" नितिन ने बच्चे से सवाल किया..

"मैं खो गया हूँ अंकल.. मुझे भी रास्ता नही मिल रहा.. इतने दीनो से ढूँढ रहा हूँ.." लड़के ने उतनी ही मासूमियत से जवाब दिया..

"क्क्कितने दीनो से..?" लड़के के हर जवाब के साथ दोनो के दिल की गति बढ़ती जा रही थी..

" 74 साल से....?"

"भाग नितिन.. भाग.. हम फँस गये नही तो.. समझ ले मारे गये.." रोहन ने नितिन का हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा.. भागने के लिए.. पर जाने क्यूँ नितिन वहाँ से हिल नही पाया...शायद उत्सुकतावश," क्यूँ मज़ाक कर रहे हो यार? क्यूँ झूठ बोल रहे हो..?"

इस बार लड़के के चेहरे पर शिकन और शदियो पुरानी तड़प उभर आई," मैं मज़ाक क्यूँ करूँगा अंकल? मरे हुए लोग झूठ नही बोलते!"

रोहन की वहीं खड़े खड़े घिघी बाँध गयी.. जिस तरह की अजीबोगरीब परिस्थितियाँ वहाँ उत्पन्न हो रही थी, जिस तरह से वो बच्चा उन्हे मिला और जो कुच्छ उसने बोला.. दोनो के कलेजे बाहर निकल आने पर उतारू हो गये.. रोहन को अहसास हो रहा था की उसने यूँ पागलपन में यहाँ आकर कितनी बड़ी भूल की है.. वो खड़े पैर वहाँ से भागना चाहता था, पर नितिन को वहाँ छ्चोड़कर कैसे भागे.. वो बस नितिन के इशारा करने का इंतज़ार कर रहा था, जिसने घबराहट में अपनी रिवॉल्वेर उस बच्चे पर तान दी," गेट आउट फ्रॉम हियर?"

"क्या अंकल?" नन्हे से बच्चे के चेहरे से नादानी और मासूमियत छू छू कर टपक रही थी..

"दफ़ा हो जाओ यहाँ से! भाग जाओ..."

" पर मुझे एक बार घर छ्चोड़ आओ ना.. मुझे घर नही मिल रहा है..!" बच्चे ने विनम्रता से प्रार्थना की...

सिर्फ़ उस लड़के की वो प्यारी सी आवाज़ ही थी जो अब तक उन्हे पैरों पर खड़े रहने लायक साहस दे रही थी.. पर आगे बढ़ने की तो बात सोचना भी अब दुश्वार था.. नितिन ने रोहन की आँखों में देखा और वो उल्टे पाँव हो लिए.. कुच्छ दूर तक यूँही सावधानी पूर्वक पिछे देखते देखते जब वो उस बच्चे की आँखों से औझल हो गये तब जाकर रोहन की आवाज़ निकली," रास्ता याद है ना भाई...?"

"सीधा चलता रह.. अब अपनी बकबक बंद रख थोड़ी देर" नितिन ने गुस्से से उसको झिड़क दिया..

उसके बाद तो उन्होने कीचड़ वाले रास्ते से होते हुए सड़क पर जाकर ही दम लिया.. तब तक तो शायद साँस भी गिन गिन कर ले रहे थे... दोनो तेज़ी से एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए आगे बढ़ने लगे.. अब मेंधकों का टर्राना उनको किसी भूत नगरी में चल रहे रहस्यमयी संगीत से कम नही लग रहा था.. झाड़ियों में ज़रा सी भी सरसराहट होते ही दोनो की साँसे जम जाती थी.. राम का नाम जप्ते जप्ते आख़िरकार वो अपनी गाड़ी तक पहुँच ही गये... पर जहाँ पैदल जाने में उनको एक घंटे से भी ज़्यादा का समय लगा था.. वापस आने में आधा घंटा भी नही लगा...

"साले, कहाँ मौत के मुँह में ले गया था तू मुझे..?" नितिन ने गाड़ी स्टार्ट करके बे-इंतहा पसीने से सना अपना चेहरा पौच्छा..

"सॉरी भाई.. मुझे नही पता था कि...." रोहन भी अब ढंग से साँसे ले पा रहा था..

"आबे सॉरी के बच्चे.. ये बता आख़िर नीरू है कौन? क्या लॅफाडा है तेरा उस'से.. और उसने तुझे यहाँ क्यूँ बुलाया था..." नितिन ने बनावटी गुस्से से कहा.. उसको इस बात का सुखद अहसास था कि वो सकुशल वापस लौट आए.. 'वहाँ से'

गाड़ी ने जैसे ही रफ़्तार पकड़ी.. उसको अहसास हो गया की कुच्छ ना कुच्छ गड़बड़ ज़रूर है," गाड़ी पंक्चर हो गयी है.. शायद.. अब क्या करें?" कहकर नितिन ने गाड़ी की रफ़्तार धीमी करते हुए उसको साइड में रोक दिया...

रोहन सहमी हुई नज़रों से नितिन को देखने लगा," सॉरी यार.. मेरी वजह से..."

नितिन उसकी बात पर ध्यान दिए बिना गाड़ी से उतरा और टाइयर चेक किए.. चारों टाइयर ज़मीन में धाँसे हुए से थे.. सबकी हवा गायब थी.. नितिन वापस गाड़ी में आया और अपना सिर पकड़ कर बैठ गया...," अब क्या करें.. एक में पंक्चर होता तो.."

"अगला गाँव कितनी दूर है भाई.." रोहन खुद की नासमझी से नितिन को भी परेशानी में डाल देने के कारण शर्मिंदा था..

"होगा कोई 5-7 काइलामीटर और.. क्यूँ?" नितिन अब सामान्य हो चुका था.. जो होना था वह तो हो ही चुका था.. गनीमत थी जो हो सकता था, वह नही हुआ..

"वहाँ तक ले चलो किसी तरह.. शायद वहाँ कोई पंक्चर लगाने वाला मिल जाए.."

और कोई चारा भी नही था.. नितिन ने गाड़ी धीरे धीरे लुढ़कानी शुरू की...

गाँव आते ही उन्होने पहले ही घर के सामने गाड़ी रोक दी.. ये घर गाँव से बाहर था.. कुच्छ अलग हटकर," यहाँ पूछ्ते हैं.. गाँव में कोई पंक्चर लगाने वाला हो तो..."

दोनो गाड़ी से उतरे और दरवाजे के सामने जाकर उस पर थपकी लगाई..

"कौन?" घर के अंदर से आई निहायत ही मीठी आवाज़ ने उनके कानो में मिशरी सी घोल दी... आवाज़ किसी नवयौवना की लगती थी..

"जी.. हम बाहर से आए हैं.. थोड़ी मदद चाहिए..!" नितिन ने रोहन के बोलने से पहले ही जवाब दे दिया...

"बापू! वो आ गये.." अंदर से लड़की की वही सुरीली आवाज़ बाहर तक आ रही थी..

यहाँ तो रह रह कर झटके लग रहे थे.. नितिन ने रोहन की और देखा और धीरे से बोला," ये तो इस तरह से कह रही है जैसे ये हमारा इंतजार ही कर रहे थे.." कहकर दोनो सावधान हो गये....

'छर्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर..' दरवाजा पुराना था.. इसी आवाज़ के साथ खुला.. एक बार को तो इस आवाज़ ने भी उनको डरा दिया था.. कहते हैं ना 'दूध का जला छाछ को भी फूँक फूँक कर पीता है...

करीब 60 साल के अधेड़ आदमी ने दरवाजा खोला.. उसकी आवाज़ में भी उतनी ही मधुरता थी.. उपर से नीचे तक दोनो को देखा और बोला," पुराने टीले से आए हो ना...?"

"ज्जई.. क्या मतलब? पुराना टीला? हम कुच्छ समझे नही..." दोनो की हालत देखने लायक थी.. रोहन मन ही मन सोच रहा था.. ये रात किसी तरह से गुजर जाए..

"तुम्हारे पैरों में ये चिपचिपा सा कीचड़ लगा है ना.. इसीलिए पूचछा.. ये वहीं का कीचड़ है!" बुड्ढे ने बिना किसी शंका के उनसे कहा..

दोनो ने जैसे ही नीचे झुक कर देखा..," हां पर..?"

"तुमने खूनी तलब के पास से गुज़रे होगे बेटा... आ जाओ.. अंदर आ जाओ!" बुद्धा कहकर पिछे घूमने लगा...

"ज्जिई.. जी.. नही.. धन्यवाद.. वो.. हमें बस.. यही पूच्छना था कि.. यहाँ पंक्चर कोई लगाता हो तो.. हमारी गाड़ी.." रोहन के लिए पल पल काटना मुश्किल हो रहा था...

"हे हे हे हे.. आ जाओ.. अंदर आ जाओ..!" बुड्ढे ने बड़े प्यार से रोहन की बाँह पकड़ी और हौले से अंदर खींच लिया... रोहन में जैसे प्रतिरोध करने की ताक़त बची ही ना हो.. कठपुतली की तरह वो अंदर उसके साथ घुस गया...

अब नितिन के पास भी कोई चारा नही बचा.. रोहन को यूँ छ्चोड़कर भागता कैसे? नही तो हालत अब तक उसकी भी पतली हो चुकी थी.... वो भी पिछे पिछे हो लिया....

"आओ बैठो! यहाँ आ जाओ..अर्रे भाई शर्मा क्यूँ रहे हो? आओ बैठो ना!" बुड्ढे ने उनको कमरे में ले जाते हुए पूरी शराफ़त के साथ उन्न पर हक़ जताते हुए बात कही.. पर शराफ़त और मासूमियत के पिछे छिपि भयावहता को उन्होने घंटा भर पहले ही महसूस किया था.. इसीलिए दोनो के मन में उथलपुथल जारी थी.. दोनो ने एक दूसरे की आँखों में देखा और पूरी सतर्कता बरत'ते हुए दीवार के साथ बिछे पलंग पर जा बैठे.. उनकी कमर के पिछे सिर्फ़ एक सपाट दीवार थी.. वो वहाँ इसीलिए बैठे ताकि कमरे में होने वाली हर गतिविधि पर नज़र रख सकें...

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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

" श्रुति बेटा.. ज़रा कुच्छ पानी वानी ले आओ.. इतनी देर क्यूँ लगा रही हो..?" बुड्ढे ने उन्न दोनो के सामने बैठते हुए बाहर मुँह करके आवाज़ लगाई...

"लाई बापू..!" बाहर से वही सुरीली आवाज़ दोनो के कानो में पड़ी...

"तो.. वहाँ क्या करने गये थे तुम लोग? शहरी मालूम होते हो..!" बुड्ढे ने बड़ी ही आत्मीयता से दोनो से पूचछा..

"ज्जई.. हम रास्ता भटक गये थे..!" नितिन ने बात को गोलमोल करते हुए जवाब दिया.. ये कहना उनको कतयि मुनासिब नही लगा की वो किसी लड़की की तलाश में वहाँ अपनी ऐसी तैसी करने गये थे...

"हुम्म.. तुम दो ही गये थे या कोई वहीं रह गया...?" बुड्ढे ने सहजता से बात कही...

"जी.. क्या मतलब?.. हम दो ही थे बस..!" इस बार भी नितिन ने ही जवाब दिया.. रोहन तो चुपचाप ही उनकी बातें सुन रहा था.. वो इसी उधेड़बुन में था की यहाँ से निकलेंगे कब...

"शुक्र है.. दोनो ठीक ताक वापस आ गये..!" बुड्ढे ने गहरी लंबी साँस लेते हुए बीड़ी सुलगा ली," पीते हो क्या?" कहकर बुड्ढे ने बीडीयों का बंड्ल उनकी और बढ़ाया..

"जी नही.. शुक्रिया...!" नितिन ने विनम्रता से मना कर दिया..

तभी रोहन पलंग से लगभग उच्छल कर खड़ा हो गया," नी...?"

नितिन ने चौंकते हुए पहले रोहन की और देखा और फिर उसकी नज़रों का अनुसरण करते हुए निगाहें दरवाजे पर जमा दी..

"क्या हुआ बेटा? तुम खड़े क्यूँ हो गये...?" बुड्ढे ने भी रोहन से बात कहकर दरवाजे की और देखा," ये मेरी बेटी है.. श्रुति.. आ जाओ बेटी.. "

रोहन की साँसें उसके हलक में ही अटकी हुई थी अभी तक.. दरवाजे से अंदर आने वाली लड़की नीरू ही तो थी.. वही नीरू जिसके लिए रोहन पागल हुआ जा रहा था.. सुंदरता की अद्भुत मिशाल थी वो.. सिर से लेकर पाँव तक.. छर्हरा लंबा बदन, हल्की सी लंबाई लिए हुए लगभग गोलाकार गोरे चेहरे पर अद्भुत कशिश लिए हुए लंबी कजरारी आँखें.. हल्का गुलबीपन लिए हुए रसीले होंठ, सुरहिदार लुंबी गर्दन.. और..

खैर यूँ कहें की सौंदर्या रस उसके बदन में सिर्फ़ दिख ही नही रहा था.. मानो टपक रहा हो.. उसकी मासूमियत से, उसके शर्मीले पन से, उसके यौवन से.. उसकी हर अदा से..

बिना एक बार भी पलकें उठाए उसने उनके सामने टेबल पर पानी रखा और वापस चलने लगी..

"बेटी.. खाना बना देना.. जाने कब से भूखे होंगे बेचारे..!"

"जी बापू.. मैने सब्जी रख दी है.." नज़रें झुकाए हुए ही उसने मुड़कर अपने लरजते होंटो से बात कही और बाहर निकल गयी..

"जी नही.. हमें भूख नही है.. हम अब बस निकलेंगे.. आप बस किसी टाइयर पंक्चर वाले का घर बता दें" नितिन ने खड़ा होते हुए कहा.. दरअसल रोहन को इस तरह चौंकते देख नितिन के मन में अनेक सवाल खड़े हो गये थे.. और वह जल्द से जल्द बाहर निकल कर सब क्लियर करना चाहता था...

"नही भाई.. ऐसे कैसे जाने दूँगा तुम्हे? ये भी कोई जाने का टाइम है.. और इस गाँव में कोई पंक्चर लगाने वाला भी नही है.. अभी आराम से खाना खाकर सो जाओ.. सुबह देख लेना.." बुड्ढे ने नितिन का हाथ पकड़ कर उसको वापस चारपाई पर बैठा दिया...

नितिन ने रोहन की और देखा.. उसकी आँखों की चमक बता रही थी की उसको अपनी मंज़िल मिल गयी है..

" ठीक है अंकल जी.. जब आप इतना दबाव डाल रहे हैं तो यही सही.. आपका बड़ा अहसान होगा.." रोहन को मानो मुँह माँगा मिल गया...

"इसमें अहसान की क्या बात है बेटा..! आदमी ही आदमी के काम आता है.. और फिर मेहमान तो भगवान होता है अपने देश में.. किसी बात की चिंता मत करो.. इसे अपना ही घर समझो!" बुड्ढे ने बड़ी आत्मीयता से मुस्कुराते हुए कहा...

बुड्ढे की बातों ने दोनो को तसल्ली सी दी.. कम से कम यहाँ अब तक कुच्छ वैसा नही हुआ था, जिसस'से उन्हे यहाँ भी कुच्छ अजीबोगरीब होने का डर रहे..

"अंकल जी.. ये खूनी तालाब का क्या चक्कर है?" नितिन ने हिचकिचाते हुए बात चला ही दी...

नितिन के ज़िक्र करते ही बुड्ढे की आँखें अतीत का कुच्छ याद सा करने के अंदाज में सिकुड सी गयी," उसके बारे में हम गाँव के लोग किसी को बताते नही बेटा.. बस इतना ख़याल रखना की दोबारा कभी उस तरफ भूल कर भी मत जाना.. और ना ही किसी से इसका जिकर करना.. तुम सही सलामत वापस आ गये, इसके लिए भगवान का धन्यवाद करो..!"

" हम किसी से नही कहेंगे.. पर बताने में हर्ज़ क्या है? कुच्छ तो बताइए..!" नितिन और रोहन दोनो उत्सुकता से कुच्छ बताने का मूड बना रहे बुड्ढे की और देख रहे थे...

"हूंम्म.. किसी से भूल कर भी जिकर मत करना.. हमारे बड़े कहते थे कि पुराने टीले की 'आत्मायें' बाहर के लोगों से नफ़रत करती हैं.. एक बार कोई अंग्रेज तुम्हारी ही तरह भटक कर वहाँ चला गया था.. सुबह उसकी लाश तालाब के किनारे पर मिली थी.. इतने बड़े बड़े कीड़े चल रहे थे उसकी आधी खाई हुई लाश में.." बुड्ढे ने कीड़ों का साइज़ बताने के लिए अपनी उंगली को लंबा कर दिया.. लाश का सिर तो बिल्कुल ही गायब था.. उसके पेट को चीर सा दिया गया था.. और दिल छाती से बाहर लटक रहा था.. बस फिर क्या था.. उसकी मौत का कारण जान'ने के लिए अँग्रेज़ों ने वहाँ डेरा डाल लिया... बहुत कोशिश की पर किसी को कुच्छ हासिल ना हुआ.. पर उसके बाद मौत बहुत हुई.. पर सारी बाहर के लोगों की.. इसीलिए अब हम किसी को कुच्छ नही बताते.. पढ़े लिखे लोग इन्न बातों में विस्वाश नही करते ना.. फिर कोई वहाँ का 'राज' जान'ने जाएगा और खम्खा मारा जाएगा.. क्या फायडा..?" कहकर बुद्धा अपने चेहरे पर पीड़ा के भाव लिए चुप हो गया..

"हम ऐसी ग़लती नही करेंगे अंकल जी.. किसी से कुच्छ कहेंगे भी नही.. बताइए ना.. और.. ऐसा क्या है वहाँ? और वो खूनी तालाब..?" नितिन की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी...

"तुम अब मानोगे नही पूच्छे बिना.. दरअसल वो तालाब बहुत पुराना है.. हज़ारों साल पुराना.. उसका पानी कभी नही सूखता.. पर जो वहाँ से तुम्हारी तरह बचकर वापस आ जाते हैं.. वो बताते हैं कि रात को तालाब का पानी लाल हो जाता है.. खून के जैसा.. इसीलिए हम उसको खूनी तालाब कहते हैं... 'आत्मा' के प्रकोप से बचने के लिए गाँव वाले वहाँ खड़े पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं.. देखने वाले बताते हैं की रात भर पेड़ पर रोशनी रहती है.. पर रात में आज तक कोई उसके पास पहुँच नही पाया.. या जो पहुँचा होगा.. मरा गया होगा.. सुना है वहाँ एक छ्होटे बच्चे की आत्मा भी भटकती रहती है.."

"हाँ.." रोहन बच्चे के बारे में बोलने ही वाला था की नितिन ने उसका हाथ दबा दिया और उसने अपनी बात पलट दी," हां.. आत्मा होती हैं.. मैने भी सुना है!"

"सुना क्या है बेटा.. गाँव वालों ने तो उस बच्चे को देखा भी है.. बताते हैं की 'वो' बच्चा वहाँ जाने वाले लोगों को उसके घर छ्चोड़ आने को कहता है.. पीपल के पेड़ पर....

" पर वो आत्मायें आख़िर हैं कौन? और बाहर वाले लोगों से ही नफ़रत क्यूँ करती हैं वो?" बुड्ढे के हर खुलासे के साथ नितिन की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी.. सब कुच्छ जान लेने के लिए.. हालाँकि वो 'आत्मा' के चक्कर को नही मानता था.. पर आज रात का अनुभव उसको उनके बारे में और सुन'ने को विवश कर रहा था...

"अब सच्चाई तो भगवान ही जानता है बेटा.. हुमारे पास तो सुनी सुनाई बाते हैं.. कहते हैं कि उस पीपल के पेड़ की जगह पहले किसी राजा का महल हुआ करता था.. तीन रानियाँ थी उसकी.. तीनो एक से एक सुंदर.. फिर किसी मुघल स्म्रात ने उस राजा को हरा कर रानियों के सामने ही उस पर चकला (रोलर) चलवा कर मरवा दिया और उस महल को अपना 'हरम' बना लिया.. तीनो रानियों समेत महल की सभी औरतों को अपना बंदी बनाकर रखा... जो कुच्छ 'वो' उन्न रानियों और औरतों के साथ करता था वो बताने लायक है नही.. तुम मेरे बेटों के जैसे हो.. पर हां.. हर सुबह एक अर्थी उठती थी महल से.. ये सिलसिला तब तक जारी रहा जब तक की महल में एक भी औरत बची... कहते हैं की ये 'आत्मायें' उसी राजा और उन्ही रानियों की हैं..."

"ऑश..!" नितिन ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा...

तभी श्रुति खाना ले आई और उसको टेबल पर सजाने लगी.. रोहन लगातार उसकी आँखों की और देख रहा था.. इस ताक में की श्रुति उसकी और देखे और वो उसकी आँखों में अपने लिए 'अपनापन' ढूँढ सके.. पर बदक़िस्मती से ऐसा हुआ नही.. श्रुति ने नज़रें उपर ही नही उठाई और खाना लगाकर बोली," आपके लिए भी ले आउ बापू?" आवाज़ में इतनी मिठास थी की रोहन उसके मुँह से अपना नाम सुन'ने को तरस गया.. अगर बापू ना होता तो वो कब का उसको टोक चुका होता...

"नही बेटी.. थोड़ी देर पहले ही तो खाया था.. तुम जाओ.. जाकर सो जाओ.. मैं आता हूँ थोड़ी देर में..."

"अच्च्छा बापू.. मैं कुण्डी नही लगाउन्गी.. आप आकर बंद कर लेना.." श्रुति ने अपने पिता की और देखते हुए कहा और फिर वापस मूड गयी...

"आपके घर में और कौन कौन हैं अंकल जी?" रोहन का इंटेरेस्ट सिर्फ़ नीरू के बारे में जान'ने को ही था..

"बस हम दो जान ही हैं बेटा.. बीवी इसको जनम देते ही गुजर गयी थी.. सो और कोई औलाद नही है.. कुच्छ दिन बाद तो मैं अकेला ही रह जाउन्गा.." बुड्ढे ने जवाब दिया..

"वो क्यूँ?" खाना खाते हुए ही रोहन ने उसकी और देखा...

" शादी नही करूँगा क्या बेटा.. लड़की तो पराया धन होती है.."

रोटी का टुकड़ा रोहन के हलक में ही अटक गया," कब.. कब कर रहे हैं शादी..?"

"अभी तो ये मान ही नही रही.. कहती है पढ़ाई पूरी करने के बाद सोचूँगी... नादान और भोली है पर जिद्दी भी बहुत है.. जो सोच लिया वो सोच लिया.. फिर किसी की नही सुनती ये.."

"श.. " रोहन की जान में जान आई.. पहले उसको लगा था कि कहीं शादी पक्की ना हो गयी हो इसकी..

खाना खाने के बाद बुड्ढे ने बर्तन उठाए और उनको सुबह मिलने को कहकर चला गया..

उसके जाते ही रोहन ने आँखें मटकाते हुए नितिन की और देखा," क्यूँ..? कैसी लगी..?"

"यही है वो?" नितिन को शक तो था.. पर ताज्जुब उस'से कहीं ज़्यादा...

"हुम्म.." रोहन खुशी से फूला नही समा रहा था.. अजीब सी खुमारी में उसने तकिये को अपनी छाती के नीचे दबाया और पेट के बल लेट गया..

"पर इसका नाम तो श्रुति है.. तू तो नीरू कह रहा था..?" नितिन ने दूसरे पलंग पर लेट'ते हुए दूसरा सवाल किया...

"नाम में क्या रखा है यार.. बस.. इतना जान ले, जिसके लिए मैं आया था.. मुझे मिल गया है.. मैं तेरे इस अहसान का बदला कभी नही चुका पाउन्गा.. मैं ना कहता था.. मेरी नीरू मुझे ज़रूर मिलेगी.." रोहन पर प्यार का भूत सवार था..

"आबे साले.. इसने तेरे को देखा तक नही और तू ऐसे उच्छल रहा है.. कहीं तुझे भूल ना गयी हो... कितने टाइम पहले मिली थी..?" नितिन उठकर बैठ गया..

"वो सब मैं तेरे को बाद में बताउन्गा.. पर तू ये तो बता की लगी कैसी तुझे..?"

"बहुत प्यारी है.. सच बोलूं तो.. इसके जैसी कोई लड़की मैने आज तक नही देखी.. अगर ये नीरू ना होती तो मैं इसके बारे में अपने लिए सोच रहा था.. और अब भी क्या पता.. ये श्रुति ही हो.. तेरी नीरू की हमशकाल.. तेरी नीरू तो तुझे वहीं मिलेगी.. पुराने टीले पर... हे हे हे" नितिन ने शरारती मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए कहा...

" ऐसी बात मत कर यार.. मुझे अच्च्छा नही लगता.." रोहन ने मुँह बनाकर कहा..

"मज़ाक कर रहा हूँ बे.. पर एक बात मेरी समझ में नही आई...!" नितिन ने को जैसे कुच्छ अचानक याद आ गया हो..

"वो क्या?" रोहन भी उठकर बैठ गया..

"इसने तेरे को वहाँ क्यूँ बुलाया..? और बुलाया भी तो वहाँ मिलना चाहिए था.. अब किसको पता था कि हुमारी गाड़ी में पंक्चर हो जाएगा और हम वापस आकर इसी घर का दरवाजा खटखटाएंगे.. अगर हम सीधे निकल जाते तो शायद ही कभी दोबारा आते.. यहाँ पर.." नितिन की बात में दम था...

"हां यार.. वो तो है.. जब बात करेगी तो ज़रूर पूछोन्गा ये बात..." रोहन ने जवाब दिया...

" पर अब तो बता दे ये तुझे कहाँ मिली? कैसे मिली.. और कैसे पाटी?" नितिन जान'ने के लिए उत्सुक था...

"एक बार बात हो जाने दे.. फिर सब कुच्छ बताउन्गा.. हमारा मिलना अंकल जी की भूतो वाली कहानी से कम दिलचस्प नही है.. मुझे खुद विस्वास नही था कि मैं इस'से मिल पाउन्गा..."

"अभी बता दे ना.. अभी क्या दिक्कत है..?" नितिन ने इस बार ज़ोर देकर कहा था..

"ना.. अभी नही.. बहुत दिलचस्प बात है.. पर अभी कुच्छ नही कह सकता.. पहले इस'से बात कर लूँ...!" रोहन ने कहा और वापस लेट गया," चल अब सो जाते हैं.. सुबह जल्दी उठना है.."

"ठीक है बेटा.. लोग मतलब निकल जाने के बाद किस कदर रंग बदलते हैं.. ये मैं देख रहा हूँ.. चल अच्च्छा है.. मैं इंतजार करूँगा, तेरी इस'से बात होने की.. गुड नाइट!"

"गुड नाइट भाई गुड नाइट!" रोहन ने कहा और सिर के नीचे से तकिया निकाल कर सीने पर रख लिया.. दोनो हाथों में दबोच कर.....

कहानी अभी बाकी है फिर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ

दोस्तो ये कहानी आपको कैसी लगी बताना मत भूलना
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--2 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

रात करीब 2 बजकर 17 मिनिट...... रोहन दरवाजे पर पैरों की आहट सुनकर चौंक गया.. उसकी उम्मीद को पूरी तरह पंख लगे भी ना थे की कमरे में रोशनी च्छा गयी.. हल्की सी नाराज़गी जताती हुई नीरू उसकी आँखों में आँखें डाले उसको घूर रही थी.. हौले हौले चलती हुई वो उसके पैरों के पास आकर उसके पलंग पर बैठ गयी..

"ये कौन है?" नीरू ने झुकते हुए धीरे से नितिन की और इशारा करते हुए पूचछा..

"मेरा दोस्त है.. मेरे भाई जैसा है.. क्यूँ?" रोहन ने भी उसी के अंदाज में जवाब दिया..

"इसको क्यूँ लेकर आए..? मैने अकेले आने को बोला था ना..?" नाराज़गी अब भी नीरू की नाक पर बैठी थी..

"कमाल करती हो? ऐसी ख़तरनाक जगह पर अकेले.. जान लेने का इरादा था क्या?" रोहन ने लेटे लेटे ही जवाब दिया...

"जान तो मैं तुम्हारी लूँगी ही.. एक बार समय आने दो" कहकर नीरू कातिल अदा से मुस्कुराने लगी.. उसकी इसी अदा का तो रोहन दीवाना था," चलो ठीक है.. तुम्हारी ये बात मान लेती हूँ.. इसको लेकर आ जाओ.. पर इसको दूर ही खड़ा कर देना.. मुझे तुमसे ज़रूरी बातें करनी हैं.. जाने कब से तुम्हारे लिए तड़प रही हूँ.. तुम्हे तो अहसास भी नही होगा, मेरी मोहब्बत का.."

"तुम्हारी यही बात मेरी समझ में नही आ रही.. कहती हो मुझसे प्यार करती हो.. पर आज तक कभी छूने की इजाज़त नही दी.. मैं भी तुम्हारे लिए पागल हो चला हूँ.. प्लीज़ एक बार.. एक बार मुझे तुम्हे छू कर महसूस कर लेने दो.. कितनी प्यारी हो तुम.. तुम्हारे लिए मैं यहाँ तक भी आ गया.. एक बार मेरे आगोश में आ जाओ ना.. प्लीज़!" रोहन उसके शरीर से उत्सर्जित हो रही यौवन बयार को अपने अंदर तक महसूस करने को तड़प उठा...

"मैं भी तो उतनी ही तड़प रही हूँ देव! तुम्हे क्या पता, मेरा एक एक पल कैसे बीत'ता है.. उस पल के लिए जब मैं और तुम 'हम' होंगे.. ये फ़ासले कितना तड़पते हैं, मुझसे ज़्यादा कौन समझेगा.. बस इंतज़ार करो... " नीरू की आँखों से उसके लिए बे-इंतहा ज़ज्बात झलक रहे थे...

"कितनी बार बताउ कि मैं रोहन हूँ.. अगर तुम किसी देव के धोखे में मेरे पिछे पड़ी हो तो माफी चाहता हूँ.. पर फिर भी यही कहूँगा कि अब मैं तुम्हारे बिना रह नही पाउन्गा.. तुम्हारे प्यार में जाने.... तुमने मुझे पागल सा कर दिया है.."

"दुनिया के लिए तुम चाहे कुच्छ भी हो.. पर मेरे लिए तो मेरे देव ही हो.. मुझे तुम्हारा यही नाम अच्च्छा लगता है.. मैं तो यही कहूँगी.." आँखों में गहरी प्यास और मादक अहसास लिए नीरू उसकी और टकटकी लगाकर देखती रही...

"तुम मुझे पूरी तरह पागल बना कर ही छ्चोड़ॉगी.. मुझ रोहन को तुम देव कहती हो और अपना नाम नीरू बता रही हो जबकि तुम्हारे पिताजी तुम्हे श्रुति कहते हैं.. मैं क्या समझू और क्या नही.." रोहन नाम के चक्कर से अभी तक भी निकल नही पाया था..

"वहाँ आओगे तो सब समझ आ जाएगा.. अब यहाँ मैं तुम्हे क्या बताउ?" नीरू ने बेबस नज़रों से उसको देखते हुए कहा..

"अजीब लड़की हो.. यहाँ मेरे सामने बैठी हो.. उस वक़्त नज़र उठा कर भी तुमने नही देखा.. और अब ये छ्होटी सी बात बताने के लिए मुझे वहाँ बुला रही हो.. इतनी ख़तरनाक और डरावनी जगह मैने आज तक नही देखी.. पता है.. ?" रोहन के चेहरे पर उस अजीबोगरीब जगह की डरावनी यादों की टीस छा गयी..

"क्या? तुम वहाँ गये थे? पर मैने तुम्हे 12 बजे के बाद आने को कहा था ना.. रुके क्यूँ नही वहाँ पर..." नीरू अधीर होते हुए बोली...

" कैसे रुकते..हम वहाँ गये तो हमें वहाँ एक बच्चा मिला.. इतना खौफनाक मंज़र था कि मेरी तो जान ही निकल गयी होती.. और तुम्हे पता भी है.. वहाँ भूत रहते हैं.. तुम्हारे पिताजी ने ही बताया था.." रोहन ने स्पष्ट किया...

"असमय गुजर चुके लोगों को भूत कहकर उनका मज़ाक ना बनाओ देव.. तुम्हे हम... उनकी पीडाओं का अहसास नही है.. हर पल किस वेदना और दर्द की भत्ति में तपते रहना पड़ता है.. ये तुम्हे क्या मालूम.. तुम तो आज़ाद हो.. कहीं भी आ जा सकते हो.. पर वो हर तरह से एक दायरे में बँधे हैं.. हरपल उसी दर्दनाक मंज़र को आँखों में लिए तड़प्ते रहते हैं.. जिस घड़ी जिंदगी ने बड़ी क्रूरता से उनके सिर से अपना हाथ हटा लिया.. वो हर पल इसी इंतज़ार में रहते हैं कि कब कोई रहनुमा आएगा और उनको वहाँ से, उस जहन्नुम से मुक्ति दिलाएगा.. आ जाओ ना देव.. सिर्फ़ एक बार आ जाओ.. मैं हर पल तुम्हारा इंतजार करती हूँ.. एक बार वहाँ आ जाओ मेरी जान.. मुझे जहन्नुम से निकल कर जन्नत में ले चलो.." नीरू बोलते बोलते भावुक होकर गिदगिडाने सी लगी..

"ऐसे क्यूँ कर रही हो.. मुझसे तुम्हारी ये बेचैनी देखी नही जाती.. पर ऐसा क्या है जो यहाँ नही बता सकती.. वहीं जाना क्यूँ ज़रूरी है नीरू..?"

"वहाँ जाना ज़रूरी नही है देव.. पर मुझे डर है.. मैने यहाँ बता दिया तो तुम वहाँ शायद कभी नही आओगे.." मायूस नीरू की आँखों से आँसू छलक उठे..

"इसका मतलब तुम्हे मेरे प्यार पर भरोसा नही है.. इसका मतलब कुच्छ ऐसा ज़रूर है जो तुम मुझसे छिपा रही हो.. जब तुम मुझ पर विश्वास नही करती तो मैं तुम पर क्यूँ करूँ..?" रोहन बात जान'ने को लालायित लग रहा था..

"तुम्हारे अंदर के देव पर मुझे पूरा विस्वास है.. पर बाहर के रोहन पर नही.. वक़्त जाने कितनी करवटें बदलता है.. इस दरमियाँ जाने तुम कितनी बार बदले होगे.. मैं इसीलिए डर रही हूँ.." नीरू अपना हाथ बढ़कर उसके चेहरे को छूने को हुई पर कुच्छ याद आते ही तुरंत वापस खीच लिया...

"देखो नीरू या श्रुति, तुम जो भी हो.. तुमने अपने प्यार में तो मुझे पागल कर ही दिया है.. अब असलियत में पागल होना नही चाहता.. पहेलियाँ मत बुझाओ.. पर इतना जान लो कि जब तक तुम मुझे सब कुच्छ सच सच नही बताती, मैं वहाँ वापस नही जाउन्गा.. हरगिज़ नही.." रोहन ने दो टुक जवाब दिया..

"ऐसा क्यूँ कह रहे हो देव.. क्या मैं यूँही तड़पति रहूंगी..? तुम मेरी बात समझते क्यूँ नही हो.. आ जाओ ना प्लीज़..." नीरू की हालत दयनीय हो चली थी..

"मैं तो सब समझ रहा हूँ.. अगर समझता नही तो यहाँ तक आता ही क्यूँ.. अच्च्छा चलो.. मैं वादा करता हूँ कि अगर तुम अभी सब कुच्छ बता दोगे तो तुम जहाँ कहोगी, वहाँ आने के लिए तैयार हूँ.."

कुच्छ देर सोचते रहने के बाद नीरू बोली," ये रोहन का वादा है या फिर देव का.."

रोहन झल्ला उठा..," क्या है यार.. देव.. रोहन.. दोनो का वादा रहा.. देव का भी.. और रोहन का भी.. अब तो बता दो..."

"सोच लो.. देव के वादे सूली पर जाकर भी नही टूट'ते.." नीरू को कुच्छ उम्मीद सी बँधी..

"हुम्म.. सोच लिया... वादा रहा.. देव का!" रोहन ने कहते हुए अपना हाथ बढ़ाया पर नीरू की तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिली....

नीरू ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए छत की और देखा.. और अचानक ही बोलना शुरू कर दिया..," वो बच्चा.. जिसकी तुम बात कर रहे हो.. मेरा छ्होटा भाई है..

"क्याआ?" रोहन नीरू की इस बात को पचा नही पाया और नींद में ही अंदर तक काँप गया.. हड़बड़ा कर लगभग चीखते हुए वह उठ बैठा.. चीख के साथ ही नितिन एक पल में ही उठ कर पलंग से खड़ा हो गया..," क्या हुआ?"

"ये.. ये लाइट क्यूँ बंद कर दी.. नीरू कहाँ गयी.." रोहन का सिर चकरा रहा था.. बंद आँखों में जहाँ उसको उजाला ही उजाला दिख रहा था.. आँखें खोलते ही.. अंधेरे के सिवा उसको कुच्छ नज़र ना आया.. वहाँ तो पहले से ही अंधेरा था.. उजाला तो सपने में नीरू साथ लेकर आई थी...

"नीरू, यहाँ? साले तू पागल हो गया है क्या? सपना देख रहा था या?" नितिन ने रोहन को कंधे से पकड़ कर हिला दिया...

रोहन ने जैसे तैसे खुद को संभाला," हां भाई.. सपना ही था.. सॉरी.. सो जा.."

"अब थोड़ी बहुत रात बची है.. उसमें तो चैन से सो लेने दे तू.. क्या हो गया है तुझे.. बता ना.. तू खुलकर क्यूँ नही बताता..?" नितिन ने उसके कंधे पर हाथ रख कर प्यार से पूचछा...

"कुच्छ नही यार, सो जा.. सुबह बात करेंगे..!" कहते हुए रोहन मुँह ढक कर लेट गया..

"देख.. कोई बात मन में नही रखनी चाहिए.. गाँठ बन जाती है.. और फिर मुझसे छिपा कर तुझे मिलेगा क्या? बाकी तेरी मर्ज़ी है.. सुबह का इंतजार करूँगा.." नितिन ने कहा और दूसरी और करवट लेकर सो गया...

रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था.. पिच्छले करीब 2 महीने से उसकी रातों की नींद और दिन का चैन हराम था.. कारण नीरू ही थी.. हर रात को वो उसके सपनो में आती और दिन भर वो उसके सपनो में खोया रहता.. जिंदगी अचानक कितनी बदल गयी थी उसकी.. हमेशा मस्त कलंदर की तरह जीने वाला रोहन शुरू शुरू में तो इन्न सपनो का आनंद लेता और रात को उसके पास आकर उसको पुकार रही इस हसीना के बारे में दिन भर सोच कर आनंदित होता रहता.. नितिन की बात सच ही थी.. नीरू के जितनी प्यारी लड़की उसने भी आज तक नही देखी थी.. पर जल्द ही ये आनंद बेचैनी में और फिर वो बेचैनी एक अंजाने से लगाव में बदल गयी.. आख़िर यही लड़की रोज उसके सपनो में क्यूँ आती है.. क्या रिश्ता है इस लड़की का उसके साथ.. लड़की का सिर्फ़ सपने में आना भर ही होता तो बात अलग थी.. पर वो तो उसको दोनो के प्यार की दुहाई देती थी.. अपने पास बुलाती थी.. सपने में उसकी आवाज़ यूँ लगती थी जैसे किसी गहरी खाई से बोल रही हो.. रुक रुक कर कही गयी उसकी बातें प्रतिध्वनित होकर बार बार उसके कानों में गूँजती रहती थी.. रात भर.. दिन भर...

अपने मस्त अंदाज का मलिक रोहन दोस्तों में उसके हँसी मज़ाक और लड़कियों को भाव ना देने के कारण हमेशा छाया रहता था.. पर अचानक ही वो गुम्सुम सा रहने लगा.. पूच्छने की कोशिश बहुतों ने की.. पर बताता भी तो क्या बताता रोहन.. अंत में जब उसकी बेचैनी और अपने आपको नीरू कहने वाली लड़की के प्रति उसका लगाव चरम को पार कर गया तो उसने एक बार उसके पास जाने की ठान ली.. पर नीरू की एक शर्त ने उसको नितिन का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया.. एक तो सिर्फ़ रात को ही मिल पाने की बेबसी और दूसरा उसके पास आने के लिए बताए गये रास्ते की जियोग्रफी..

नितिन उसके सबसे नज़दीकी दोस्तों में से एक था.. वो अग्यात जगह पर जाने, घूमने फिरने और बीहड़ और दूर दराज के इलाक़ों में जाकर वहाँ के लोगों की दिन चर्या जान'ने का शौकीन था.. इनफॅक्ट, अड्वेंचर उसकी लाइफ का एक हिस्सा था...

रोहन ने नितिन को एक कहानी बनाकर सुनाई.. उसको यकीन था अगर सपने वाली बात उसको बताएगा तो साथ देना तो दूर.. उल्टा दोस्तों मैं उसकी किरकिरी करने में भी कसर नही छ्चोड़ेगा.. उसने नितिन को बताया कि बहुत पहले एक लड़की से वो मिला था और अब उसको पता चला है कि वो लड़की उस'से बे-इंतहा प्यार करती है.. और उसको मिलने के लिए बुला रही है.. पहले पहल तो नितिन ने उसको इन्न खाम-खाँ के चक्करों से दूर रहने की हिदायत देकर सॉफ मना कर दिया.. पर जब उसको काई दीनो तक लगातार रोहन का चेहरा उतरा हुआ दिखाई दिया तो एक दिन उसने खुद ही रोहन को टोक दिया," कहाँ है वो लड़की.. चल मिला लाता हूँ.."

"यार.. उनका घर गाँव से दूर है.. काफ़ी आगे चलकर.. " रोहन इस बात को खा गया कि लड़की ने उसको बताया था कि उसको काफ़ी दूर पैदल चलना पड़ेगा....

"अच्च्छा.. फट'ती है तेरी.. इसीलिए मुझको बोला.. है ना.. नही तो तू मुझे बताता भी नही कि तू मजनू बन गया है आजकल..." नितिन ने मज़ाक किया...

"कुच्छ भी समझ ले यार.. पर मुझे उस'से एक बार मिलकर आना है...!"

"हूंम्म.. चल फिर कल ही चलते हैं..!" नितिन तैयार हो गया उसके साथ जाने को...

और वो कल 'आज रात' ही थी...

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पर जो कुच्छ भी आज रात को उन्होने देखा.. उसने उसकी व्याकुलता कम करने की बजाय और बढ़ा दी.. खास तौर से तब, जब उसने सपनो में रोज आने वाली लड़की को साक्षात अपनी नज़रों के सामने देखा.. श्रुति के रूप में.. उस वक़्त तक तो टीले से वापस आते हुए वह यही सोच रहा था कि ये सब महज उसके दिमाग़ के फीतूर के अलावा कुच्छ नही था.. पर अब; अब तो वो कतयि ऐसा नही सोच सकता था.. उसके सपनो की रानी यथार्थ बनकर उस'से रूबरू हो चुकी थी.. भले ही उसका अंदाज बेरूख़ा रहा हो.. भले ही उसका नाम श्रुति रहा हो.. कुच्छ ना कुच्छ तो बात ज़रूर है.. वरना इसी गाँव की लड़की उसके सपने में क्यूँ आती...

पर अब.. आज रात के सपने को वो कैसे ले.. कहीं 'नीरू' सच में कोई भूत तो नही.. उसने टीले पर मिलने वाले बच्चे को 'अपना भाई बताया.. चक्कर क्या है.. और फिर भूत तो डराते हैं.. प्यार थोड़े ही करते हैं.. फिर भूत भी माने तो कैसे माने.. लड़की तो उसके सामने थी ही.. रोहन को लग रहा था जैसे वो भी उस लड़की के प्यार में बुरी तरह जकड़ा जा चुका हो.. वो फिर से उसको अपने सपने में लाना चाहता था.. अपने अनगिनत सवालों के जवाब लेने के लिए.. उस'से उसका संबंध क्या है.. ये जान'ने के लिए... इसी उधेड़बुन में वो कब खो गया और कब खुद को नीरू बताने वाली श्रुति फिर उसके सपने में आ गयी उसको पता ही नही चला...

"क्या हो गया था.. तुम चले क्यूँ गये थे, बीच में ही.." नीरू वहीं बैठी थी.. उसके पैरों के पास..

"मैं कहाँ गया था.. चली तो तुम गयी थी.. मेरे सपने से.." रोहन नींद में बड़बड़ाया...

"हां.. मगर सपना तो तुम्हारा ही था ना.. तुमने वो तोड़ दिया.. मुझे जाना पड़ा..!"

"तुम सपने में ही क्यूँ आती हो..? उठकर आ जाओ ना.. बराबर वाले कमरे में ही तो हो..." रोहन ने जवाब दिया...

नीरू ने यहीं पर उसको सब कुच्छ बताने का इरादा कर लिया था.. उसके देव ने वादा जो किया था.. इस जनम में उसका साथ देने का... " समझने की कोशिश करो देव.. मैं वो नही हूँ.. जो तुम समझ रहे हो.. वो तो श्रुति ही है जिसे तुम अपने सामने बैठी देख रहे हो.... मैं देव की प्रियदर्शिनी हूँ.. और इस जनम की तुम्हारी नीरू.."

रोहन किसी तरह अपने आप पर काबू पाए रहा.. उसको सब कुच्छ जान लेना था.. आज ही,"मतलब हमारा पिच्छले जनम का कोई संबंध है?"

"पिच्छले जनम का नही.. पिच्छले कयि जन्मो का.. प्रियादरिशिनी के हर जनम में मैने तुम्हारा इंतजार किया.. पर मैं तुम्हे इसी जनम में ढूँढ सकी.." नीरू ने जवाब दिया..

"पर तुम मुझे पहले भी तो ढूँढ सकती थी.. मतलब पिच्छले जन्मों में.." रोहन ने तर्क दिया...

"हां.. और मैने बहुत ढूँढा भी.. पर मेरी एक सीमा है... हम एक दायरे से बाहर नही निकल सकते.. 2 महीने पहले तुम इस गाँव के पास से गुज़रे.. और मैने तुम्हे पहचान लिया.. तब से मैं इस बात का इंतजार कर रही हूँ कि तुम कब आओगे मेरे पास.. मतलब नीरू के पास.. कब हमारा मिलन होगा.. इसी वजह से मैने इस घर में रहने वाली लड़की का रूप चुराया.. ताकि तुम्हे इसके आकर्षण में बाँध कर अपने पास ला सकूँ... क्यूंकी इस'से सुंदर कोई और लड़की मुझे आसपास दिखाई नही दी.." नीरू लगातार बोल रही थी कि रोहन ने उसको टोक दिया..

"पर अगर तुम आत्मा हो तो हम कैसे मिल सकते हैं.. बताओ.."

"नही मैं आत्मा नही हूँ.. मैं भी जनम ले चुकी हूँ.. कयि बार.. इस बार भी.. नीरू के रूप में.. सिर्फ़ उसका दिल उस लॉकेट में अटक कर वहीं महल में ही रह गया था जो देव ने प्रियदर्शनि को दिया था.. यानी तुमने मुझे.. प्यार की पहली और आख़िरी निशानी के रूप में.."

"ये लॉकेट का क्या चक्कर है?" रोहन ने उसको फिर टोका..

"वो एक लंबी कहानी है.. हमारे प्यार की.. हमारे मिलने की और मिलन पूरा होने से पहले ही हमारी जुदाई की.. कभी फ़ुर्सत में बताउन्गि.." नीरू अब उसका जवाब सुन'ने को उतावली थी...

रोहन को कुच्छ कुच्छ पल्ले पड़ रहा था.. पर बहुत कुच्छ नही," और अब असली नीरू को कौन ढूंढेगा? कहाँ कहाँ भटकू मैं.. और क्यूँ भटकू?"

"तुम्हे भटकने की ज़रूरत नही है.. हर जनम में वो मेरे संपर्क में रही है.. आख़िर मैं भी उसका हिस्सा हूँ.. अमृतसर से 50 किलोमीटर दूर बतला कस्बे में रहती है वो.. गवरमेंट. कॉलेज के आसपास घर है उसका...मुझे इस बात पर गर्व है कि हर जनम में वो अंजाने में ही सही पर कुँवारी ही रही.. तुम्हारे अलावा मैने किसी के बारे में सोचा तक नही देव.. तुम्हारे अलावा मुझे कोई छू भी नही पाया.." नीरू का गला भर आया..

"ओह.. और मैं..?" रोहन को उसकी अजीब मगर मीठी सी कहानी में मज़ा आने लगा था...

"तुम्हारा मुझे नही पता.. और इस जनम की तो तुम खुद ही जान'ते होगे..." नीरू ने उसको प्यार से देखते हुए कहा...

"तो क्या वो मुझे देखते ही पहचान लेगी..?" रोहन के मन में सवालों की झड़ी लगी हुई थी....

"बस यही एक समस्या है.. उसके लिए तुम्हे उसको वहीं लाना होगा.. महल में.." नीरू के चेहरे पर उदासी छा गयी..

"अब ये महल का क्या चक्कर है?" सवालों में से ही इतने सवाल निकल रहे थे कि पुराने सवाल रोहन भूलता जा रहा था...

"जहाँ तुम गये थे.. वहाँ एक पीपल का पेड़ है.. उसके नीचे ही हमारा महल है.. तुम्हे नीरू को वहीं लेकर आना होगा.."

"एक मिनिट.. एक मिनिट.. जो लड़की मुझे जानती नही, पहचानती नही.. उसको मैं कैसे ला सकता हूँ.. और वो भी ऐसी जगह पर जहाँ के बच्चे भी इतने ख़तरनाक हैं.." रोहन का सिर चकरा गया..

"इसका जवाब मेरे पास नही है.. पर अगर तुम उसके दिल में प्यार जगाओगे तो वो आ सकती है.. तुम्हारे साथ.. तुम्हे उसका प्यार भी जीतना होगा और भरोसा भी... ये काम तुम्हे अपने तरीके से करना होगा...."

" मुझे नही पता कि लड़कियों का दिल कैसे जीत'ते हैं.. इस मामले में एकदम अनाड़ी हूँ... तुम ही कुच्छ बताओ!" रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था..

"तुम जब देव थे, तब भी ऐसे ही थे.. शर्मीले और झेंपू.. पर तुम्हे कुच्छ ना कुच्छ तो करना ही होगा..." नीरू अपने देव की यादों में खोकर मुस्कुराने लगी....

" सॉरी नीरू.. ये सब मैं नही कर सकता.. किसी अंजान लड़की से मैने आज तक बात भी नही की है.. और तुम उसको यहाँ लाने को कह रही हो.. ये नही हो सकता.. और फिर उसको भी रात को ही लाना होगा.. है ना?"

"हाँ देव.. ये मेरी मजबूरी है.."

"शिट.. नेवेर पासिबल.. ऐसा कभी नही हो सकता.. और फिर तुम ही बताओ.. मैं तुम्हारी बातों पर क्यूँ विस्वास करूँ.. और विस्वास कर भी लूँ तो मैं इतनी बड़ी टेन्षन मोल क्यूँ लूँ..? ये जान'ने के बाद की तुम कोई भटकती हुई आत्मा हो; मेरे दिल में तुम्हारे लिए सहानुभूति के अलावा कुच्छ नही है.. पर फिर भी मैं माफी चाहता हूँ.. मेरी जिंदगी से निकल जाओ.. तुमने मेरी हँसती खेलती जिंदगी बर्बाद कर दी है.. मैं पागल सा हो गया हून.. तुम्हारी बात को सच मान भी लूँ तो मुझे अब कुच्छ याद नही है.. फिर मैं तो किसी भी लड़की से प्यार कर सकता हूँ.. शादी कर सकता हूँ.. सच बोलूं तो मैं सुबह श्रुति के पापा से अपने रिश्ते के बारे में बात करना चाहता हूँ.. मैने अपनी जिंदगी में इसी लड़की के सपने देखे हैं, जिसका चोला पहने अभी तुम मेरे सामने बैठी हो.. मुझे इस'से प्यार हो गया है.. तो क्यूँ ना मैं नीरू के आगे पिछे बेवजह चक्कर लगाने की बजाय श्रुति पर ही डोरे डाल लूँ..? प्लीज़.. मेरा पिच्छा छ्चोड़ दो.. आज के बाद मेरी जिंदगी में मत आना.. मैं तंग आ गया हूँ तुम्हारी बातें सुनकर... मैं और कुच्छ जान'ना नही चाहता.." रोहन ने सीधे और निर्दयी शब्दों में अपनी बात कह दी...

नीरू का चेहरा सफेद पड़ गया.. रोहन को इस बार पाकर भी खो देने के भय और गुस्से के वो काँपने सी लगी," देव.. तुम्हारे वादे का क्या होगा..?" नीरू के मुँह से कहते ही सिसकी सी निकली...

"भाड़ में गया वादा.. आइ डोंट केर.. मुझे मरना नही है अभी.. जीना है.. अपने लिए.. घर वालों के लिए..!"

नीरू खड़ी हो गयी," ठीक है देव.. मैं जा रही हूँ.. आइन्दा कभी नही आउन्गि.. मैने तो ये सोचकर तुम्हे कभी खुद को हाथ भी नही लगाने दिया कि मेरे द्वारा धारण की गयी देह किसी और की है.. उसको हाथ लगवाकर मैं तुम्हे दूषित करके खुद को पाप का भागी नही बनाना चाहती थी.. अगर तुम्हे यही पसंद है तो लो, नोच डालो अभी इसको, कर लो अपनी हवस पूरी..." कहते हुए नीरू ने गुस्से से अपना गले से पकड़ कर अपना कमीज़ खींच कर तार तार कर डाला.. श्रुति बनी नीरू अर्धनग्न अवस्था में नज़रें झुकाए सिसकियाँ ले रही थी..

रोहन की आँखें शर्म से झुक गयी.. उसको यूँ नज़रें झुकाए देख नीरू ने खड़े खड़े ही बोलना शुरू कर दिया," काश तुम्हे अहसास करवा सकती कि तुम क्या थे, काश तुम्हे देव और प्रियदर्शिनी की मोहब्बत से रूबरू करवा पाती.. तुम्हे देव के वादे की कीमत का अहसास होता तो तुम कभी ऐसा ना कहते, जान पर खेल जाते अपनी नीरू को अपने गले से लगाकर उसको कम से कम इस जनम में पूर्ण नारी बनाने के लिए.. बेशक उसके पास प्रियदर्शिनी का दिल नही.. फिर भी उसने देव को किया वादा हर जनम में निभाया है.. बेशक वो तुम्हारा इंतजार नही करती.. पर किसी का भी इंतजार नही करती वो.. इस जनम में भी ऐसे ही जाएगी.. और मेरा क्या है? काश मुझे तुम्हारे दिए गये लॉकेट से भी उतनी ही मोहब्बत ना होती जितनी कि तुमसे है.. तो मेरी आत्मा मेरे दिल को भी साथ लेकर निकल जाती.. यूँ ना तड़प्ता रहना पड़ता मुझे.. जनम जनम तुम्हारे आने के इंतज़ार में... " नीरू ने भरभराते गले से कहा और चुपचाप सिसकियाँ लेती उसके सपने से गायब हो गयी.....
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--3 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

अगली सुबह बुड्ढे ने आकर रोहन और नितिन को उठाया.. रोहन के सिर में दर्द था.. रात के सपने की बातें उसके दिमाग़ में अब हथोदे की तरह बज रही थी..

"क्या बात है? ठीक तो है ना?" नितिन ने उसको इस तरह सिर पकड़ कर बैठे देखा तो पूच्छ लिया..

"नही भाई.. सब ठीक है.. बस ऐसे ही सिर में दर्द हो रहा है.." रोहन ने नितिन की और देखते हुए कहा..

"तो अब चलें या तेरी नीरू से मिलने की तमन्ना है.." बुड्ढे के वापस जाते ही नितिन ने रोहन कोछेड़ा...

"उसका नाम भी मत ले यार मेरे सामने.." रोहन फट पड़ा...

"अरे मैं तुझे फोन करके टीले पर बुलाने वाली लड़की की बात नही कर रहा.. मैं इसकी बात कर रहा हूँ; श्रुति की.. मिली तो यही थी ना तुमसे.. काफ़ी पहले.. तू कह रहा था..." नितिन ने उसको खंगालना शुरू किया...

"अभी कुच्छ मत बोल यार.. प्लीज़.. मेरे सिर में दर्द है.." रोहन अब भी अपना सिर पकड़े बैठा था...

"चल छ्चोड़.. तू टेन्षन क्यूँ लेता है.. अभी निकलते ही हैं बस यहाँ से.." रोहन ने उस वक़्त बात को टाल दिया..

"मैं फ्रेश होकर आता हूँ यार.. टाय्लेट किधर है.. कुच्छ आइडिया है..?" रोहन खड़ा होते हुए बोला...

"बाहर निकल कर दाई तरफ सीधा चला जा.."

"थॅंक्स.." कहकर जैसे ही रोहन बाहर निकलने को हुआ, उनके लिए चाय बनाकर ला रही श्रुति उस'से टकराते टकराते बची..,"ओह सॉरी..!" रोहन ठिठक कर खड़ा हो गया..

श्रुति उसके सामने सिर झुका कर खड़ी हो गयी.. क्या गजब की मिठास थी उसके चेहरे पर.. सुंदरता का प्रतीक कहें तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी.. मारे लज्जा के उसने अभी तक अपनी आँखें उठाई ही ना थी उपेर.. एक बार भी उनसे आँखें चार नही की... काफ़ी देर तक जब रोहन उसको ठगा सा खड़ा देखता रहा तो उसको बोलना ही पड़ा," जी.. चाय.."

"श.. अंदर रख दो.. मैं आता हूँ अभी.. थॅंक्स!" कहकर रोहन उसको रास्ता देकर आगे निकल गया..

श्रुति चाय लेकर अंदर गयी और टेबल नितिन की और सरका कर चाय उस पर रख दी.. मुड़कर जैसे ही वा बाहर जाने के लिए पलटी.. नितिन ने उसको टोक दिया," क्या नाम है तुम्हारा?"

श्रुति के कदम वहीं ठिठक गये... शर्मीली थी पर पागल नही थी.. उसके बापू ने कितनी ही बार उसका नाम लिया उनके सामने.. वो समझ गयी.. लाइन मारने की फिराक में है... वह दो पल रुकी और फिर से आगे बढ़ने लगी..

"नीरू.. ये भी तुम्हारा ही नाम है ना..!" नितिन ने उसके बढ़ते कदमों पर फिर से विराम लगा दिया..

"जी.. जी नही.." श्रुति ने जवाब दिया..

"रोहन तुम्हारे लिए ही यहाँ आया है.. कोई तुम्हारा नाम लेकर उसको यहाँ बुला रही थी.. तुम मिले हो ना पहले.. वो ... तुम दोनो प्यार भी तो करते हो.." नितिन को जितना पता था.. उतना बोल दिया...

श्रुति को नितिन की बातें समझ में नही आई थी.. वह पलट कर कुच्छ बोलना चाहती थी.. पर उसकी हिम्मत ना हुई.. बिना पलटे, बिना रुके वा बाहर निकल गयी...

"अजीब लड़की है.." नितिन बड़बड़ाया... और न्यूसपेपर उठाकर पढ़ने लगा... श्रुति ने नितिन की आख़िर में कही गयी बातों को सुन लिया...

कुच्छ देर बाद रोहन वापस आया तो बुड्ढ़ा वहीं बैठा था... रोहन आते ही ठंडी हो चुकी चाय उठाने लगा तो बुड्ढे ने उसको रोक दिया," रहने दो बेटा.. ठंडी हो गयी होगी.. श्रुति कह रही थी वो और बनाकर ला रही है..

"ओह अंकल जी.. क्या ज़रूरत थी परेशान होने की..." रोहन ने अपनी बात ख़तम भी नही की थी श्रुति वहाँ हाजिर हो गयी.. ट्रे में एक कप चाय लेकर..

नितिन ने आँखों ही आँखों में रोहन की और इशारा किया.. मानो कह रहा हो.. "क्या बात है.. तुम पर तो बड़ी मेहरबान है.."

इस बार श्रुति सीधी आकर रोहन के सामने खड़ी हो गयी और ट्रे उसकी और बढ़ा दी... रोहन ने चेहरा उठाकर उसकी नज़रों में झाँका.. इस बार आसचर्यजनक रूप से वो उसकी ही और देख रही थी.. आँखों में आँखें डाले.. रोहन उसकी आँखों में देखते ही सम्मोहित सा हो गया.. अपनी आँखों में ही जहाँ भर की खुशियाँ समेटे वा उसकी और टकटकी लगाए खड़ी रही.. जब काफ़ी देर तक रोहन ने ट्रे नही पकड़ी तो श्रुति को बोलना ही पड़ा," चाय लीजिए...!"

"श हां.. थॅंक्स!" रोहन झेंप सा गया.. श्रुति के बापू वहाँ नही बैठे होते तो नितिन कोई ना कोई कॉमेंट ज़रूर करता.. उनके आँखे चार करने के अंदाज पर..

"अच्च्छा अंकल जी.. हम अभी निकलेंगे... बता सकते हैं कि पंक्चर लगाने वाला कहाँ मिल सकता है...?"

"क्या जल्दी है बेटा.. खाना वाना खाकर निकल जाते.." बुड्ढे ने अतिथिधर्म के नाते बात कही..

"नही अंकल जी.. पहले ही आप.. वैसे भी हम लेट हो रहे हैं.. पंक्चर भी लगवाना है.. जाने कहाँ मिलेगा... हमें आगया दीजिए अब.."

"ठीक है बेटा.. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.. पंक्चर की एक दुकान अगले गाँव में है.." बुड्ढे ने बताया ही था कि बाहर से श्रुति की आवाज़ आई," बापू.. एक बार आना!"

" एक मिनिट.." बुड्ढ़ा कहकर बाहर निकल गया... रोहन के कप रखते ही वो दोनो भी यूँही बाहर निकल कर गाड़ी के पास आ गये..

"नितिनन्न.. ये कैसे हुआ? तूने ढंग से देखा था ना रात को..." रोहन उच्छल पड़ा..

"क्या हुआ?"

"हवा तो देख टाइयर्स की..." रोहन जैसेचिल्ला सा रहा था...

"ओह माइ गॉड.. कमाल है.. हां मैने मोबाइल की लाइट जला कर देखा था.. तब तो किसी टाइयर में हवा नही थी.. हद हो गयी यार.. यहाँ भी?"

"क्या हुआ बेटा..?" रोहन की चीख सी सुनकर बुड्ढ़ा लगभग भागता हुआ बाहर आया..

"अंकल जी.. ये.. हवा.. रात को तो बिल्कुल गायब थी.. अब कहाँ से आ गयी...? रोहन ने टाइयर्स की और इशारा करते हुए कहा...

बुड्ढे के चेहरे पर शिकन तक नही आई," हम ऐसे चमत्कारों के आदि हो चुके हैं बेटा.. आज रात ही... श्रुति सुबह उठी तो उसका कमीज़ गले से फटा हुआ था.. नीचे तक.. बुरा मत मान'ना.. पर अगर कमरे की कुण्डी बंद ना होती तो मैं तुम लोगों के बारे में भी जाने क्या क्या सोचता... पर यहाँ कुच्छ भी हो सकता है.. "

नितिन ने आसचर्या से एक बार फिर रोहन की और देखा.. वो रात को सपने में आई नीरू के बारे में सोच रहा था.. सुन्न सा खड़ा खड़ा...

"चल ठीक है अंकल जी.. अब हम निकलें..." नितिन सब कुच्छ भूल कर जाने की तैयारी करने लगा...

"शहर की और ही जाओगे ना बेटा.." बुड्ढे ने विनम्रता से सवाल किया...

"हां.. शहर से होकर ही गुजरेंगे... क्यूँ?" नितिन ने जवाब देते हुए सवाल किया..

"नही.. कुच्छ खास बात तो नही थी.. पर वो.. श्रुति को भी शहर ही जाना है.. कॉलेज में.. अगर तुम ज़्यादा लेट ना हो रहे होते तो वो भी साथ ही चली जाती.. बस के इंतजार में बहुत टाइम खराब हो जाता है.. वो कह रही थी..." बुड्ढे ने कहा..

नितिन मन ही मन उच्छल पड़ा... खुशी से.. पर खुशी को मन में दबाकर रखते हुए बोला," ये भी कोई कहने की बात है.. वैसे हमें कोई जल्दी भी नही है.. अब तो पंक्चर भी नही लगवाना.. जितनी देर कहें हम रुकने को तैयार हैं.. "

"अच्च्छा बेटा!.. वैसे तो उसका कॉलेज अभी 2-3 घंटे बाद है.. पर मैं उसको कह देता हूँ.. वह जल्दी से तैयार हो जाएगी..." बुड्ढ़ा खुश होते हुए बोला..

"नही अंकल जी.. कोई जल्दी नही है.. हम तब तक एक काम कर आते हैं.. घंटे भर में आ जाएँगे.. तब तक वो भी तैयार हो लेंगी..." नितिन का मन सातवें आसमान पर था...

"ठीक है बेटा.. जैसी तुम्हारी इच्च्छा.. मैं श्रुति को बोल देता हूँ...." बुड्ढ़ा बड़ा ही खुश लग रहा था....

"हम बस घंटे भर में आते हैं अंकल जी..." नितिन कहते हुए गाड़ी में बैठ गया.. रोहन भी उसके साथ जा बैठा.. पर उसकी समझ में नही आ रहा था की ये नितिन आख़िर जा कहाँ रहा है... नितिन ने बुड्ढे के अंदर जाते ही गाड़ी स्टार्ट करके घुमा दी," क्यूँ बे.. अब तो खुश हो जा.. तेरे मन की हो गयी.. जी भर कर बात कर लेना.. मुझसे तो बात की नही ढंग से.." कहकर नितिन ने बत्तीसी निकाल दी..

"पर अभी तुम वापस कहाँ जा रहे हो?" रोहन ने पूचछा...

"पुराने टीले पर.. देखें तो सही आख़िर क्या ड्रामा है वहाँ.." नितिन ने गाड़ी की स्पीड तेज कर दी..

"तू.. पागल हो गया है क्या..? मुझे नही जाना वहाँ..." रोहन लगभग उच्छलते हुए बोला...

"तुझे लगता है.. कोई दम है बुड्ढे की बातों में.. मुझे तो बहुत बड़ा नाटक लग रहा है.. और मुझे लगता है कि बुद्धा भी इस नाटक में शामिल है.. देखा.. उसको गाड़ी में अपने आप हवा भरी जाने पर भी आस्चर्य नही हुआ.. उल्टा कहानी बनाने लगा.. बेटी का कमीज़ फट गया रात को.. हुन्ह.. और अब देख.. कैसे अपनी बेटी को हम जवान मुस्टांडों के साथ भेज रहा है.. भला इतना भी नादान है क्या कोई आज की दुनिया में... मुझे लगता है कि श्रुति ही नीरू बनकर तुझे फोने करती होगी.. कुच्छ ना कुच्छ चक्कर तो ज़रूर है प्यारे.. कहीं ये तेरी करोड़ों की संपत्ति हथियाने की तो नही सोच रहे.. तेरा उल्लू बनाकर..." नितिन बोलता ही जाता अगर रोहन उसको बीच में ही ना टोकता..

" चुप हो जा यार.. ऐसा कुच्छ नही है.. ये सब महज इत्तिफ़ाक़ है.. तू गाड़ी वापस मोड़ ले..." रोहन झल्लाया...

"गाड़ी तो अब खूनी तालाब पर ही जाकर रुकेगी बेटा.. मुझे वो पीपल का पेड़ देख कर आना है.. और उस बच्चे को भी ढूँढना है.. तुझे उतरना है तो उतर जा.. रोकू क्या?"

रोहन कुच्छ नही बोला.. कुच्छ सोचता हुआ गाड़ी के बाहर देखने लगा....

"लेट नही हो जाएँगे क्या? अब पैदल चलना पड़ेगा..." रोहन ने आगे रास्ते पर गहरा गड्ढा सा देखते हुए कहा..

"यहाँ से गाड़ी को रास्ते से नीचे उतार कर ट्राइ करता हूँ.. उसके बाद ज़्यादा दिक्कत नही आएगी... शायद निकल जाए... चलो यहाँ से तो पार हुए... चल तू बता अब.. क्या चक्कर है तेरा श्रुति के साथ.. अब तो मुझे लग रहा है कि आज तू कुँवारा नही रहेगा..तुझे क्या लगता है?" वो गाड़ी समेत धीरे धीरे चलते हुए बढ़ते जा रहे थे..

"कुच्छ नही लगता भाई.. मेरी समझ में तो कुच्छ नही आ रहा.. अब मैं तुझे कैसे बताउ?" रोहन ने उसकी और देखते हुए कहा...

"क्यूँ? मुझे नही बताएगा तो किसको बताएगा.. साले, दोस्त हूँ मैं तेरा... भाई हूँ..." नितिन ने उसपर बताने के लिए ज़ोर डाला..," अगर आज तूने सब कुच्छ नही बताया तो समझ ले.. फिर तेरा मेरा मामला यहीं ख़तम है..."

"तो ये तालाब है वो.. इसमें तो अच्च्छा ख़ासा सॉफ सुथरा पानी है... रात को लाल कैसे हो जाता होगा.." नितिन तालाब को देखते ही रोहन से कुच्छ भी पूच्छना भूल गाड़ी रोक कर वहीं उतर गया.. रोहन भी साथ ही नीचे आ गया..," चल ना यार.. वापस चलते हैं.."

"अबे क्यूँ फट रही है.. ताउ की बात मान भी लें तो दिन में तो यहाँ कुच्छ नही होता.. चल आजा.." कहकर नितिन एक रास्ता देख दाई और बढ़ चला..

"वो बात नही है यार.. पर मेरा मन नही है.. आगे चलने का.. मूड ऑफ है.." रोहन उसके पिछे पिछे चलता रहा...

"कमाल है यार.. अब तो कीचड़ नही है.. लगता है हम दूसरे रास्ते से आए हैं आज.."

रोहन कुच्छ नही बोला.. उसके दिमाग़ में नीरू की बातें कौंध रही थी.. अगर सपने में कुच्छ सच्चाई है तो वो उसको देख रही होगी ज़रूर.. कम से कम उसको पता तो चल ही गया होगा की मैं आया हूँ.. सोच कर ही रोहन चौकन्ना हो गया...

चलते हुए वो तालाब के पार जाकर उसी जगह खड़े हो गये जहाँ कल रात वो उस बच्चे से मिले थे... सूनापन वहाँ अब भी वातावरण में मौजूद था पर वो सूनापन अब भयावह नही था.. इसके उलट अजीब सी शांति वहाँ पसरी हुई थी.. इंसानो से रहित, हल्की हल्की बह रही हवा माहौल को और भी चित्ताकर्षक बना रही थी... ऐसा लगता था की यहाँ पहले कोई गाँव बस्ता होगा.. पर अब वहाँ कुच्छ नही था.. सिवाय पुरानी ईंटों की गलियों, टूटी फूटी आधी गिरी हुई दीवारों और एकाध आवारा जानवरों के...

"कहाँ मिल सकता है वो बच्चा.. साले ने रात को खूब उल्लू बनाया.. सच में डर गया था मैं.." नितिन एक जगह जाकर खड़ा हो गया...

"मैं भी.." रोहन के मुँह से निकला...

"मुझे लगता है वो किसी घूमंतू जाती का रहा होगा.. ये लोग ऐसी ही जगहों पर जाकर रहते हैं..." नितिन बच्चे के बारे में आइडिया लगाने लगा...

"तुझे वो आदिवासी लगता है.. कितना प्यारा था दिखने में.. क्या पता वो भी कोई आत्मा ही हो " रोहन धीरे धीरे उसको लाइन पर लाना चाहता था.. ताकि जब वो उसकी कहानी सुने तो हँसे नही...

"अब तू भी शुरू हो गया ताउ की तरह... और मुझे जेनेटिक्स मत सीखा.. आदिवासी क्या खूबसूरत नही हो सकते.. क्या पता किसी देसी आदमी का टांका फिट बैठ गया हो किसी आदिवासी औरत के साथ.. होता है यार... पर अब कहाँ गये वो..?" नितिन चारों और घूम घूम कर कुच्छ तलाश कर रहा था...

"कौन?" रोहन ने पूचछा..

"आदिवासी यार.. और कौन मिलेगा यहाँ.. अर्रे देख.. वही पीपल का पेड़.. जिसके बारे में ताउ बात कर रहा था.. आ.." नितिन उसकी और बढ़ चला...

"रहने भी दे अब.. चल वापस चल.. लेट हो रहे हैं..." रोहन वहीं खड़ा खड़ा बोला.. मन ही मन नीरू की याद और उसकी बताई गयी वो जगह रोहन को अजीब सा अहसास दे रही थी.. उसका मन नही कर रहा था.. एक पल भी वहाँ खड़ा रहने को..

"अबे आ ना.. 2 मिनिट में कुच्छ नही होता.. " नितिन ने वापस आकर रोहन का हाथ पकड़ कर अपने साथ खींच लिया..," वैसे भी देरी किस बात की.. उसको आज कॉलेज थोड़े ही जाना है.. तेरे साथ चौन्च भिड़ाएगी आज तो.. प्यार भरी बतियां करेगी.. सच में बहुत प्यारी है.. अगर इनकी तरफ से कोई साजिस ना हुई तो तू बेशक इस'से शादी कर लेना.. और नही तो होली पर तो.." कहकर नितिन खिलखिला कर हंस पड़ा...

"मुझे नही जाना यार आगे.. तुझे जाना है तो जा.." रोहन अपना हाथ छुड़ा कर वहीं खड़ा हो गया... नीरू की बातें उसके दिमाग़ में अब हथोदे की तरह बजने लगी थी.. उसका सिर भारी सा होने लगा...," मैं यहीं रुक जाता हूँ.."

"साले डरपोक.. मुझे नही पता था तेरी भी... चल तू यहीं रुक.. मैं अभी आया देखूं तो सही कैसा पेड़ है और कितने वॉट का बल्ब टंगा है उस पर.. जो सारी रात उस पर रोशनी रहती है..." कहते हुए नितिन उसको वहीं छ्चोड़कर आगे बढ़ गया...

रोहन अब अकेला रह गया था.. पर जाने क्यूँ उसको हवा की साय साय में से छन छन कर आ रही कुच्छ अजीब सी हुलचल सुनाई दे रही थी.. वो सच में ही मान'ने लगा था की कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर गड़बड़ है उसकी लाइफ में...नीरू की रात को कही गयी बातें रह रह कर उसके दिमाग़ में गूँज रही थी.. बेशक रोहन को वहाँ डर नही लग रहा था.. पर दिमाग़ में लगातार अजीबोगरीब तरीके से रात की यादों का भंवर उसके दिलो दिमाग़ को शिथिल सा कर रहा था...

अचानक रोहन को अहसास हुआ कि उसको पिछे से किसी ने छ्छू लिया है.. घबराकर उसने पिछे पलट कर देखा.. पर वहाँ कुच्छ नही था.. कुच्छ भी नही..," शिट.. ये मुझे क्या हो गया है...?" मन ही मन रोहन बड़बड़ाया.. और वापस मूड कर नितिन को देखने लगा.. नितिन पेड़ के पास ही खड़ा था...

तभी छ्होटी सी दीवार पर रखा पत्थर वहाँ से लुढ़क कर नीचे गिर गया.. इत्तिफाक से रोहन उधर ही देख रहा था.. अपने आप ही रोहन की धड़कने बढ़ गयी.. धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए उसने दीवार के दूसरी तरफ झाँका.. पर वहाँ कुच्छ नही था...

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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