अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

Post Reply
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--14 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

अधूरा प्यार--14

"क्या हुआ? बात हुई क्या उस'से?" अमन जैसे घर पर रोहन और रवि का ही इंतजार कर रहा था," बात बनी कि नही?"

रोहन ने आकर बिस्तेर पर पसरते हुए अपना सिर 'ना' में हिला दिया," गेट तक आई थी.. वापस भाग गयी.. एक और लड़की थी उसके साथ!" रोहन ने सीधा लटेकर अपने चेहरे को तकिये से ढक लिया...

"मैने तो बोला था इसको.. सीधी बात करनी चाहिए थी.. जनाब तो गेट के पास खड़ा होने से भी डर रहे थे.. ऐसे बात थोड़े ही बन'ती है यार..." रवि हताश होता हुआ बोला...

अमन रवि की और देखकर मुस्कुराया,"बन जाएगी यार.. पर सब्र तो करना पड़ेगा ना.. ये काम इतनी जल्दी नही होने वाला है.. एक मिनिट! मैं गौरी से बात करता हूँ!" कहकर अमन ने फोन निकाल लिया....

"हेलो!"

"हाँ अमन, बोलो!"

"क्या रहा? क्या बात हुई शीनू से?" अमन ने सीधे बात पर ही आते हुए पूचछा....

"वो... मैं आजकल कॉलेज नही जा रही.. मैने शिल्पा को बोला था बात करने के लिए.. सब समझा भी दिया था उसको! उसका नंबर. देती हूँ.. तुम उसी से बात कर लो.." गौरी ने जवाब दिया...

"हूंम्म.. लाओ! दो नंबर." अमन ने कहते हुए नंबर. नोट करने के लिए रोहन का फोन उठा लिया...

गौरी ने अमन को शिल्पा का नंबर. लिखवा दिया," एक मिनिट अमन! क्या इस सबके लिए शेखर नही फोन नही कर सकता उसको?"

"हां हाँ! मुझे क्या प्राब्लम है..? शेखर कर लेगा! कोई खास वजह है क्या?" अमन ने पूचछा....

"नही.. बस ऐसे ही.. वो.. वो उस'से बात भी करना चाहती है..." गौरी ने टालते टालते भी बात कह ही दी...

"ठीक है! मैं अभी उसको बोल देता हूँ... वो बात कर लेगा!" अमन मुस्कुराया और फोन काट दिया..

"एक मिनिट! मैं शेखर को उठाकर लाता हूँ... शिल्पा ने बात की हैं नीरू के साथ.. वोही बताएगी क्या पोज़िशन है?" अमन ने कहा और बाहर निकल गया...

------------------------------------------------------------------------

"क्या बात है बे? तू तो सेट्टिंग कर भी आया और मुझे बताया तक नही!" अमन ने दूसरे कमरे में घुसते ही सो रहे शेखर को पकड़ कर ज़ोर से हिला दिया.. शेखर हड़बड़कर उठ बैठा," क्या? ... क्या हुआ?"

"ले.. ये ले तेरी शिल्पा का नंबर., उसको तुझसे बात करनी हैं.. और हां.. ये पूच्छना मत भूलना की नीरू का क्या रेपोंस रहा.." अमन ने शेखर का फोन उठा शिल्पा का नंबर. डाइयल किया और फोन शेखर को पकड़ा दिया..

शेखर ने फोन काटा और अमन को घूर्ने लगा....

"जा रहा हूँ साले.. करले फोन अकेले अकेले.." अमन हंसा और बाहर निकल गया...

शिल्पा के बारे में सोचते ही शेखर की धड़कने बढ़ गयी.. 'आख़िर क्या बात करनी हैं उसको' सोचते हुए शेखर ने दरवाजा अंदर से बंद किया और रिडाइयल करके फोन कान से लगा लिया..

"हेलो!" शिल्पा की मीठी सी आवाज़ फोन पर उभरी..

"हाई शिल्ल्लपा! मैं, ... शेखर!" शेखर ने आवाज़ से शिल्पा का परिचय करवाया..

"ओह्ह.. हाई! .... आपके पास मेरा नंबर. कहाँ से आया..?" शिल्पा की ज़ुबान लड़खड़ा गयी...

"मुझे तो यही बताया गया है कि आपको मुझसे कुच्छ बातें करनी हैं.. इसीलिए मैं तो समझा की आपने ही दिया होगा!" शेखर ने आराम से बिस्तेर पर पसरते हुए कहा...

"नही तो.. मैने तो कोई... मतलब.. मुझे तो..." शिल्पा ने कयि तरह से अपनी बात पूरी करने की कोशिश की.. पर कर नही पाई.. कॅंटीन में लगे शीशे के सामने खड़ी हो अपने आपको यूँ निहारने लगी मानो शेखर उसको देखने ही आ रहा हो...

"सॉरी देन! होप आइ डिड्न'ट डिस्टर्ब यू.. आइन्दा ऐसी ग़लती नही करूँगा..." शेखर ने उसकी ना-नुकर पर रूठ जाने का नाटक सा किया....

"नही.. नही.. मेरा मतलब था.. हां.. मुझे.. मुझे करनी थी बात.. वो..." शिल्पा के मुँह से अनायास ही निकल गया...

"थॅंक्स!... वो क्या?" शेखर मन ही मन मुस्कुराता हुआ बोला...

"वो... कब जा रहे हो यहाँ से?" शिल्पा को और कुच्छ सूझा ही नही....

"कहो तो... आज ही निकल जाउ?" शेखर ने अपने होंतों पर जीभ फेरते हुए आँखें बंद कर शिल्पा का सलोना चेहरा याद किया...

"नही.. नही.. मेरा मतलब है कि...." शिल्पा फिर रुक गयी...

"हूंम्म.. बोलो भी अब.. बोल भी दो यार!" शेखर के दिमाग़ पर मस्ती सवार हो गयी...

"क्कक्या?" शिल्पा हड़बड़ी के साथ बोली...

"और कुच्छ नही तो 'आइ लव यू!' ही बोल दो..." शेखर कहकर हँसने लगा..

"क्कैसे.. मतलब..." शिल्पा की हालत फोन पर ही खराब हो गयी...

"मतलब में ही उलझी रहोगी या कुच्छ काम की बात भी करोगी.." शेखर ने फिर उसको छेड़ा...

"क्क्या बात... करनी हैं.. मेरी समझ में नही आ रहा.." शिल्पा की साँसे उखाड़ने लगी थी.. उसकी समझ में ही नही आ रहा था की क्या बोले और क्या नही...

"वही.. वो नीरू ने क्या जवाब दिया.. रोहन के बारे में..." शेखर के इस सवाल को सुनते ही शिल्पा का ध्यान खुद पर से हटकर नीरू पर चला गया... और इसी के साथ वा सामान्य भी हो गयी.....

"ओह्ह! शी ईज़ इंपॉसिबल शेखर. मैने उसको समझाने के क्या क्या नही किया! पर उस'से इस बारे में बात करना ही बेकार है... पहली बात तो वो मानती ही नही की 'प्यार-प्रेम' जैसा कुच्छ वास्तव में होता भी है.. दूसरे रोहन के बारे में वो समझती है कि 'वो' बस में मिलने के बाद से ही उसके पीछे पड़ा है.. 'सपने' वाली बात उसको 'ड्रम्मा' से ज़्यादा कुच्छ नही लगी..."

"कुच्छ उम्मीद है अभी...तुम्हारी तरफ से..?" शेखर ने भी संजीदा होकर पूचछा..

"मुझे नही लगता उस पर कोई फ़र्क़ पड़ेगा.. पर तुम कहो तो मैं एक बार और कोशिश करूँ!" शिल्पा ने शेखर की बात को तवज्जो देते हुए कहा...

"नही.. अभी रहने दो.. अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं बता दूँगा... बाइ दा वे, थॅंक्स फॉर नाउ!"

"ये.. कैसी बात कर रहे हो.." शिल्पा ने बात पूरी भी नही की थी कि फोन कट गया.. फोन शेखर ने जानबूझ कर काटा था.. उसको विस्वास था कि अगर 'कुच्छ' होगा तो फोन वापस ज़रूर आएगा.. और उसका विस्वास सही निकला...

"फोन क्यूँ काट दिया था" शिल्पा हताश सी होकर बोली...

"मुझे लगा बात हो गयी है.. सॉरी!" शेखर ने कहा...

"नही.. हां.. मेरा मतलब था कि.... " शिल्पा फिर अटकने लगी...

"क्‍या बात है.. बोलो भी..?"

"हम.... वो... एक बार मिल सकते हैं क्या?" शिल्पा ने हड़बड़ाहट में जल्दी से कहा और जवाब को दिल की गहराई तक उतारने के लिए अपनी आँखें बंद कर ली...

"हां.. क्यूँ नही? पर कहाँ...?" शेखर का दिल मचल उठा....

"कहीं भी.. जहाँ तुम कहो!" शिल्पा की खुशी का कोई ठिकाना नही था...

"ओके! मैं बाद में फोन करता हूँ.. और कुच्छ?" शेखर ने कहकर फोन को चूम लिया.. इस चुंबन की आहत शिल्पा को अपने कानो में सुनाई पड़ी...

"आइ लव यू!" शिल्पा ने झट से कहा और जवाब सुन'ने से पहले ही फोन काट दिया....

"मम्मी! कोई लड़की आई थी क्या?" नीरू ने घर के अंदर घुसते ही दरवाजा बंद करते हुए पूचछा...

"नही तो! किसी को आना था क्या शीनू?" दरवाजा खोलकर वापस अंदर जा रही मम्मी जी पलट गयी...

"नही.. पर कॉलेज में कोई मुझे पूच्छ रही थी.. इसीलिए.." नीरू ने आनमने ढंग से जवाब दिया और उपर चढ़ने लगी...

"अरे.. खाना तो खा ले बेटी.. सुबह भी ऐसे ही निकल गयी थी तू!" मम्मी जी ने नीचे से आवाज़ लगाई....

"आ रही हूँ मम्मी! ज़रा कपड़े बदल लूँ..." नीरू ने जवाब दिया और उपर कमरे में घुस गयी..

अंदर घुसते ही उसकी निगाह टेबल पर पेपर वेट के नीचे फड्फाडा रहे कागज पर जाकर जम गयी.. उत्सुकता से उसने कागज निकाला और यूँही पढ़ने लगी.. पर जैसे जैसे वह पहली लाइन से दूसरी और दूसरी से तीसरी लाइन पर पहुँची.. उसके हाथ पैर जमने लगे और वह उसमें लिखे शब्दों के जाल में उलझती चली गयी...

"नाम बदल लेने से तकदीर नही बदल जाती नीरू! और खास तौर से तब; जब तकदीर की 'वो' गाढ़ी रेखायें शदियो पुराने इश्क़ का गला घोंट कर एक दूसरे के लिए प्यासी दो आत्माओ के एक हो चुके लहू में डुबोकर सातवें आसमान से भी उपर लिखी गयी हों."

नीरू अचंभित सी उस कागज के टुकड़े को निहारती रही, फिर दनदनाती हुई नीचे की और भागी..

"मम्मी! कौन गया था उपर? कौन आया था घर में?" नीरू का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था...

"बता तो रही हूँ, कोई नही आया.. मैं तो सुबह से ही यहाँ हूँ.. क्या हो गया?" मम्मी ने बेफिक्री वाले अंदाज में बैठे बैठे ही कहा...

बिना कुच्छ बोले नीरू बाहर निकली और दूसरी गली पर लगे गेट की कुण्डी देखी.. पर वहाँ तो ताला लगा हुआ था...

'उनकी इतनी हिम्मत हो गयी कि दीवार फांदकर चोरों की तरह घर में घुसने लगे' बड़बड़ाती हुई नीरू ने कागज के टुकड़े टुकड़े किए और डस्टबिन में फैंक वापस उपर चली गयी...

"सीसी...क्क्क...कौन.. है?" नीरू जड़ सी होकर कमरे से अटॅच्ड बाथरूम के दरवाजे के सामने खड़ी हो डर के मारे सूखे पत्ते की तरह काँपने लगी.. दोबारा उसकी हिम्मत दरवाजे को छ्छूने तक की नही हुई...

"मुंम्म्मममय्ययययययययययययी" अचानक नीरू की इश्स चीख से पूरा का पूरा घर दहल गया...

नीरू की आवाज़ सुनकर मम्मी जी बदहवास सी दौड़ी दौड़ी उपर आई.. देखा; नीरू दरवाजे के सामने ही खड़ी खड़ी काँप रही थी...," क्या हुआ शीनू? क्या हुआ बेटी?" किसी अनहोनी की आशंका से घबराकर उपर दौड़ी आई मम्मीजी को जब नीरू सही सलामत खड़ी नज़र आई तो उसको थोड़ी राहत मिली.. उसके पास आते ही उन्होने नीरू को बाहों में लेकर अपने साथ चिपका लिया...

"ववो.. बाथरूम में कोई है?" मम्मी जी से चिपकी नीरू ने आँखें तक नही खोली...

"चुप कर.. डरपोक कहीं की.. कौन होगा?" कहते हुए मम्मी जी ने ज़ोर से दरवाजे को अंदर धकेला तो वो खुल गया.. अंदर कोई नही था..," देख.. कोई भी तो नही है...!"

"पर कोई था मम्मी.. यहाँ ज़रूर कोई आया था.. दरवाजा भी नही खुला था अभी.. !" नीरू ने डरते डरते आँखें खोल कर बाथरूम के अंदर झाँका..

"पागल.. तुझे पता है ना ये थोड़ा ज़ोर लगाने से खुलता है.. चल जा.. कपड़े बदल ले.. मैं तेरे साथ ही नीचे चलूंगी..." मम्मी ने उसको धाँढस बाँधते हुए कहा...

"नही.. मैं नीचे ही बदल लूँगी... चलो!" अपने कपड़े उठती हुई नीरू मम्मी जी के साथ साथ नीचे चल दी...

-------------------------------------------------

"मम्मी!" नीरू ने खाना खाते हुए कहा...

"हां बेटी!"

"मेरा नाम पहले नीरू था ना?"

"क्यूँ बेवजह उठाती है पुरानी बातों को.. तुझे मना किया है ना किसी को भी वो नाम बताने से!" मम्मी जी थोड़ी नर्वस हो गयी...

"मम्मी!" नीरू ने खाना खाते हुए कहा...

"हां बेटी!"

"मेरा नाम पहले नीरू था ना?"

"क्यूँ बेवजह उठती है पुरानी बातों को.. तुझे मना किया है ना किसी को भी वो नाम बताने से!" मम्मी जी थोड़ी नर्वस हो गयी...

"मैं किसी को नही बताती मम्मी.. पर फिर भी.. बताइए ना! आप सब को क्यूँ 'उस' नाम से इतनी एलेयर्जी है?" नीरू के मंन में रह रह कर कागज पर लिखी पंक्तियाँ कौंध रही थी..

"कह दिया ना! कोई बात नही है.. हमें 'वो' नाम पसंद नही है बस.. तेरा नाम शीनू ही है.. और कुच्छ नही.. अब बिना सिर पैर की बातें छ्चोड़ और खाना खाकर पढ़ाई कर ले.." मम्मी जी ने कहा और उठकर बाहर चली गयी.. पर इस'से नीरू का कौतूहल शांत नही हुआ, उल्टा नाम के पिछे छिपि सच्चाई जान'ने की उसकी जिगयसा बढ़ गयी..

ऋतु के आने के बाद दोनो पढ़ने के लिए उपर चली गयी....

---------------------------------------------------------

रात करीब 12 बजे! नीरू को लाइट बंद करके अपनी किताबें बिस्तेर के साथ लगी टेबल पर रख कर लेटी हुए मुश्किल से आधा घंटा ही हुआ था.. अचानक कमरे में फैले हुए से प्रकाश से उसकी आँखें खुल गयी.. खिड़की के सामने कमरे में एक साया उभर आया था और रोशनी उसके पिछे से उत्सर्जित होती प्रतीत हो रही थी.. इसी कारण वह 'साए' के हवा में लहराते कपड़ों के अलावा कुच्छ भी देख पाने में समर्थ नही थी...नीरू डर के मारे इतनी सहम गयी कि उसकी चीख भी ना निकल सकी..बिस्तेर पर बैठकर नीरू पिछे दीवार से चिपक गयी. वह कुच्छ समझ पाती, इस'से पहले ही 'साए' ने बोलना शुरू कर दिया..

"घबराओ मत नीरू! तुम्हे किसी तरह की तकलीफ़ नही होगी.. ना ही मेरा मकसद तुम्हे डराना है. तुम्हे लग रहा होगा कि तुम जाग रही हो.. पर ऐसा नही है! दर-असल मैं तुम्हारे सपने में हूँ.. हां! तुम सपना ही देख रही हो.. अब मेरी बातें ध्यान से सुन'ना.. मेरा मकसद सिर्फ़ तुम्हे तुम्हारे अतीत से अवगत कराना है.. ऐसा अतीत, जिसको सुनकर तुम्हारी आँखें भर आएँगी... तुम चाहो तो मुझसे सवाल भी कर सकती हो.. ठीक है ना?"

"आ..आ.. हां!" नीरू के माथे पर पसीना छलक आया... उसके पास 'हाँ' बोलने के अलावा कोई चारा भी नही था...

"एक लड़की थी, प्रिया दर्शिनी.. और एक लड़का था देव! दोनो एक दूसरे से बे-इंतहा मोहब्बत करते थे.. मोहब्बत भी इतनी कि मर कर भी उनकी रूहें एक दूसरे के लिए तड़पति रही.. जन्मो-जनम! प्रिया का प्यार आज भी अपने देव का इंतजार कर रहा है.. और देव को अपनी प्रिया की तलाश में दर दर भटकना पड़ रहा है.. देव की तलाश आख़िरकार पूरी हुई. उसको पता चल चुका है कि उसकी 'प्रिया' इस जनम में कौन है.. पर प्रिया का दिल इस जनम में उसकी रूह के साथ ना होने की वजह से वो अपने प्यार को पहचान नही पा रही... तुम सुन रही हो ना?"

"आ..हां!" बड़ी मुश्किल से नीरू के गले से आवाज़ निकल पाई...

"तुम्हे पता है वो दोनो कौन हैं?" साए ने शालीनता से फिर पूचछा...

"हहाँ.. नही!" नीरू एकदम सिमट'ती हुई बोली...

"जान'ना नही चाहोगी?"

"नही.. एम्म.. हन!" नीरू की धड़कने धीरे धीरे संतुलित होती जा रही थी और उसके दिमाग़ ने काम करना आरंभ कर दिया था...

"तो सुनो! इस जनम में उस लड़के का नाम है रोहन! और लड़की का नाम है नीरू; यानी की तुम!" कहकर साया नीरू के जवाब की प्रतीक्षा करने लगा...

नीरू के मुँह से कोई प्रतिक्रिया नही निकली.. साथ रखी टेबल पर उसका हाथ 'कुच्छ' ढूँढने लगा...

"तुम सुन रही हो ना?" साए की आवाज़ कमरे में गूँज उठी....

नीरू ने आव देखा ना ताव.. पेपर वेट हाथ में आते ही उसने ज़ोर से उसको साए की तरफ दे मारा.... निशाना एकदम सटीक था.. पर....

साया नीरू के हाथ की हरकत देख संभलते हुए एक तरफ को झुक गया.. और आवाज़ उसके पिछे से आई,"ओये तेरी मा... मार डाला रे!"

टॉर्च उसके हाथ से छ्छूट कर फर्श पर जा गिरी और वह अपना सिर दोनो हाथों में दबाकर वहीं बैठ गया..

साया तेज़ी से पिछे घूमकर अपना सिर पकड़े बैठे आदमी पर झुका और ज़बरदस्ती उसको उठाने की कोशिश करने लगा,"जल्दी भाग यार.. वरना फँस गये समझो!"

"अबे तुझे भागने की पड़ी है, यहाँ सिर फूट गया मेरा.. रुक एक मिनिट.. बीच में परदा नही होता तो गया था मैं तो काम से.." उठने की कोशिश करता हुआ वह बोला...

नीरू को आवाज़ जानी पहचानी सी महसूस हुई... उसने हिम्मत दिखाते हुए झट से उठकर लाइट ऑन कर दी..

"तूमम्म्मम???????" नीरू ने अपनी आवाज़ को दबाने का भरसक प्रयास किया..

रोहन और रवि दोनो उसके सामने मुजरिमों की तरह सिर झुका कर हाथ बाँधे खड़े थे.. हैरान परेशान नीरू की समझ में ही नही आया कि क्या बोले और क्या नही.. वह अजीब सी नज़रों से बिस्तेर के पास खड़ी उन्हे घूरती रही..

आख़िरकार वो मिनिट भर का मौन रोहन ने ही तोड़ा,"तेरा ही प्लान था ना ये.. अब भुगत!" नज़रें चुराते हुए उसने नीरू को पल भर के लिए देखा और फिर नज़रें झुका ली... नीरू भव्शुन्य सी खड़ी अब भी उन्हे घूर रही थी...

पेपर वेट हालाँकि सीधा रवि के सिर में नही लगा था.. फिर भी पेपर वेट के आधे साइज़ का गोला उसके सिर पर उभर आया था.. उसको सहलाते हुए वो रोहन पर बरस पड़ा," साले.. ऐसे करते हैं क्या भूतों की आक्टिंग? तू तो ऐसे बोल रहा था जैसे रामलीला के डाइलॉग पढ़ पढ़ कर बोल रहा हो.. 2 घंटे की रेहेअर्स्सल की ऐसी की तैसी करवा दी.. फिर प्लान में क्या कमी थी.. तूने ही तो बोला था कि अगर मैं नीरू के सपने में आ सकूँ तो बात बन सकती है...."

"चल छ्चोड़.. अब खिसक ले यहाँ से...!" रोहन ने नीरू की और देखते हुए धीरे से कहा और रवि को खिड़की की तरफ घुमा दिया....

जैसे ही रवि ने खिड़की से बाहर पैर रखा; नीरू लगभग चिल्लाते हुए बोली,"आए!"

और रवि ने अपना बाहर निकाला हुआ पैर वापस खींच लिया," सॉरी भ.. भा.. नीरू जी! आइन्दा ऐसी ग़लती नही होगी.. मैं कान पकड़ता हूँ..."

"मरना है क्या? जीने से उतर कर जाओ!" नीरू लगभग गुर्राते हुए बोली....

"ज्जई.. पर..!" रवि नीरू की ओर क्रितग्य नज़रों से देखने लगा...

"आज के बाद घर में इस तरह कदम रखे तो बचकर नही जाने दूँगी.. शोर मचा दूँगी मैं.. चलो अब.. मेरे पिछे पिछे आओ! आवाज़ मत करना!" नीरू ने कहा और कमरे से बाहर निकल गयी...

दरवाजे से बाहर निकलते हुए रोहन ने मूड कर नीरू की और देखा.. मन में एक कसक सी उठी.. जैसे वापस अंदर चला जाए.. नीरू को उसकी और अपनी कहानी सुनाने के लिए.. उसको हमेशा के लिए अपना बनाने के लिए.. पर नीरू की आँखों में झलक रहा हूल्का सा गुस्सा उसको अहसास करा रहा था कि नीरू ने सिर्फ़ उनको बख्शा है.. माफ़ नही किया...

नीरू ने बिना आवाज़ किए दरवाजे की कुण्डी लगाई और वापस उपर आ कर अपना पेट पकड़ कर बुरी तरह हँसने लगी.. और हँसती रही.. जाने कितनी ही देर!

कहानी जारी है .................................

Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--15 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"हा हा हा हा हा....हा हा हा हा हा... फिर? हा हा हा हा हा" सुबह अमन और शेखर कभी रवि के सिर पर उभरे गोले और कभी उसकी चेहरे पर उभरे शिकायती अंदाज को देख देख लोटपोट हो रहे थे...

"फिर क्या? वो तो अच्च्छा हुआ उसको हम पर रहम आ गया.. अगर चिल्ला देती तो वहाँ हमारा क्या होता.. खुद ही सोच लो... मरवा दिया था साले ने!" रवि ने रोहन को घूरते हुए कहा..

"ये लो.. खुद का प्लान.. ज़बरदस्ती ले गया.. और अब मुझे कोस रहा है.. मैने कहा था क्या? ये सब करने को..." बोलते बोलते रोहन की भी हँसी छ्छूट गयी...

"प्लान में क्या कमी थी बोल? यहाँ आधे घंटे तक तेरे साथ थूक रगड़ाई की.. तू सही बोलने भी लग गया था.. वहाँ जाकर तेरी क्या ऐसी तैसी हो गई? आधे घंटे की बात को तूने 2 मिनिट में बोल दिया.. मैं क्या करता...?" रवि ने शेखर और अमन से अपने लिए समर्थन माँगा...

"पता नही यार.. उसके सामने जाते ही सब कुच्छ भूल गया.. क्या का क्या निकलने लगा मुँह से.. मेरी खुद समझ में नही आ रहा था..." रोहन ने अपनी ग़लती खुद ही स्वीकार कर ली...

"होता है... होता है बॉस! प्यार में ऐसा ही होता है.." अमन बीच में ही बोल पड़ा," पर ये बात तो सॉफ है कि नीरू को तुम्हारी हरकत पर ज़्यादा गुस्सा नही आया... इसका मतलब.. चान्स तो हैं!" कहते हुए अमन ने आइयिने में खुद को एक नज़र देख रहे शेखर को टोका,"तू कहाँ की तैयारी में है भाई?"

"मुझे किसी से मिलने जाना है.." शेखर के चेहरे पर खुशी और उत्साह सॉफ झलक रहा था...

"कौनसी 'किस' से मिलने जा रहा है बे? तू तो कुच्छ बताता ही नही है.. हमसे भी किसी की बात कर लिया कर यार..." अमन ने उसके चेहरे के भावों को ताड़ते हुए उसको छेड़ा....

"बात बन गयी तो ज़रूर बताउन्गा... शाम को लौटकर.. हे हे!" शेखर मुस्कुराया और बाहर निकल गया....

"वाह भाई वाह! सब सेट होते जा रहे हैं भाई रवि! कहो तो सलमा को बुला लूँ आज.. आख़िर हम भी इंसान हैं..." अमन रवि को देखते हुए बोला...

रवि अचानक संजीदा हो गया.. कुच्छ देर सोचता रहा; फिर बोला," नही यार! खाली सेक्स से ज़्यादा मज़ा तो ऐसे पत्थर खाने में ही आ जाता है" रवि ने अपने गोले की ओर इशारा किया," मैं इसकी जगह होता तो भाभी जी को ज़बरदस्ती उठा कर टीले पर ले जाता.. उसके बाद तो उसको याद आ ही जाएगा ना...!"

"डॉन'ट वरी! मेरे दिमाग़ में एक और प्लान है..." अमन ने कुच्छ सोचते हुए कहा...

"पर अब की बार मैं साथ नही जाउन्गा.. पहले बोल देता हूँ.. !" रवि ने सिर पर बने गोले को सहलाया...

"ठीक है.. अब की बार तू घर पर आराम करना.. मैं जाउन्गा रोहन के साथ!" अमन हँसने लगा...,"आख़िर मुझे भी तो भाभी जी को देखना है.."

----------------------------------------------------------------

"तूने उनको ऐसे ही निकल जाने दिया? पकड़वाया क्यूँ नही..? उनकी तो धुनाई होनी चाहिए थी.. ऐसे कैसे घुस गये घर में..? अजीब आदमी हैं!" कॉलेज के बाद नीरू के घर बैठी ऋतु ने उसकी आपबीती सुन'ने के बाद प्रतिक्रिया दी...

"पता नही यार.. मैने भी पहले ऐसा ही सोचा था.. फिर जाने क्यूँ उनकी दया सी आ गयी.. शरीफ ही लगते हैं बेचारे.. वरना कमरे में घुसने के बाद तो वो मेरा मुँह भी दबा सकते थे.. मैं क्या कर लेती? मेरे लाइट जलते ही उनके चेहरे ऐसे सफेद हो गये थे कि अगर और कोई होता तो उन्हे चोर समझ लेता..." नीरू हँसने लगी....

"ये बात तो है शीनू...पर हैं दोनो अजीब! भला ये भी कोई तरीका है लड़की पटाने का... शराफ़त से दिन में सीधे आकर बात करनी चाहिए थी.. 'सपने' में आने की नौटंकी क्यूँ की?" ऋतु ने बात आगे बढ़ाई...

"हूंम्म.. ये आइडिया अब तू उनको दे दे.. सीधे आकर बात करनी चाहिए थी!" नीरू ने मुँह बनाकर ऋतु की नकल की.. जैसे मैं उनका इंतजार ही कर रही हूँ यहाँ...!"

"अरे किसी ना किसी से तो शादी करनी ही है तुझे.. फिर उसमें क्या कमी है? स्मार्ट है.. शरीफ है... मुझे कहता तो मैं तो झट से तैयार हो जाती.. पर भगवान देता ही उसको है, जिसको उसकी ज़रूरत ना हो.. तू सारी उमर ऐसे ही बैठी रहेगी क्या?..... इस घर में?" ऋतु ने अपने मन की बात कह दी...

"हां! बैठी रहूंगी ऐसे ही.. मुझे तो शादी के नाम से ही नफ़रत है..!" नीरू ने जवाब दिया....

"पर क्यूँ यार? तू ऐसी क्यूँ है?" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा....

"पता नही ऋतु.. पर मैं पक्का शादी नही करूँगी.. मुझे पता है... अब इस टॉपिक को बंद कर और किताब खोल ले.. आइन्दा अगर उन्होने कोई हरकत की तो मैं उन्हे छ्चोड़ूँगी नही...!" नीरू ने कहते हुए अपनी किताब निकाल ली....

.............................................................

"हाई शिल्पा!" शेखर ने कॉलेज से थोड़ी दूर हटकर खड़ी उसका इंतजार कर रही शिल्पा के पास गाड़ी रोकते हुए कहा...

शिल्पा नज़रें तक ना उठा सकी.. हाथ में पकड़ी कॉपी को यूँही सीने से चिपकाए खड़ी रही,"हाई"

शेखर ने दूसरी तरफ झुक कर खिड़की खोल दी..," आओ, बैठो ना!"

शिल्पा ने नज़रें उठाकर दायें बायें देखा और फिर नज़रें झुका गाड़ी के आगे से निकल कर झट से गाड़ी में बैठ गयी.. शेखर ने गाड़ी घुमाई और शहर से बाहर निकल कर सरपट दौड़ने लगी...

"कहाँ जा रहे हो?" शिल्पा ने अपने चेहरे पर लटक आई बालों की लट को पिछे करते हुए नज़रें हल्की सी शेखर की ओर उठाते हुए पूचछा...

"कहाँ चलना चाहिए?" शेखर ने गाड़ी की रफ़्तार धीमी की और मुस्कुरकर उसकी और देखते हुए पूछा.. शिल्पा सहमी हुई सी बैठी थी...

"मुझे क्या पता? कहीं भी चलो!" शिल्पा उचक कर थोडा संभाल कर बैठ गयी...

"पर बुलाया तो तुम्ही ने था.. अब और किसको पता होगा?" शेखर शरारत से मुस्कुराने लगा...

"मतलब तुम आना नही चाहते थे! है ना?" शिल्पा ने शंकित निगाहों से शेखर की आँखों में झाँका...

"ये किसने कहा?" शेखर हँसने लगा...

"ऐसे क्यूँ हंस रहे हो? मैने बुलाकर कोई ग़लती कर दी क्या?" शिल्पा का चेहरा उतर गया...

"तुम तो अब भी वैसी ही हो.. बात बात पर चिड जाती हो.. मैं तो सोचा करता था कि तुम बड़ी होकर समझदार हो गयी होगी.. हा हा हा..."

शिल्पा के चेहरे पर अनायास ही शेखर की बात सुनकर चमक आ गयी," क्या तुम सच में मेरे बारे में सोचा करते थे...?"

"और नही तो क्या?" शेखर ने कहा और अचानक चुप हो गया...

शिल्पा के बदन में 'रज़ाई' वाली बात याद करते ही झुरजुरी सी दौड़ गयी.. अपनी बाँह से अपने सीने को छिपाती हुई सी वह बोली...,"क्या सोचा करते थे?"

शेखर से रोड से गाड़ी नीचे उतार कर एक टीले पर ले जाकर खड़ी कर दी.. और शिल्पा को अजीब सी निगाहों से घूर्ने लगा.. शिल्पा को उसकी नज़रें अपने कमसिन बदन में गडती हुई सी महसूस हो रही थी... उसने अपना चेहरा घुमा लिया और बाहर की और देखने लगी," बोलो ना.. क्या सोचा करते थे..?"

"यही कि मैं तुम्हे भूल क्यूँ नही पता..." शेखर ने थोड़ा रुक कर फिर बोलना शुरू किया..," ये भी कि तू भी मुझे याद करती होगी या नही... करती थी क्या?"

शिल्पा ने अचानक चेहरा घूमकर अपनी नज़रें उसकी नज़रों से मिला दी.. शेखर का उसको 'तू' कहकर बोलना उसे बहुत प्यारा और 'अपना' सा लगा.. वह यूँही उसकी आँखों में देखती रही.. पर कुच्छ बोली नही...

"तुम सच में.... बड़ी हो गयी हो शिल्पा.." शेखर उसकी आँखों में आँखें डाले हुए ही बोला...

शिल्पा की नज़रें शर्म के मारे झुक गयी और गोरे गालों पर हया की लाली नज़र आने लगी," ऐसा क्यूँ कह रहे हो?"

"और नही तो क्या? बड़ी नही हो गयी होती तो मुझसे प्यार होने के बावजूद इतने दिन बाद यूँ मिलने पर अब तक चुप ना बैठी रहती.. मुझसे लिपट गयी होती अब तक.." शेखर ने अपना हाथ बढ़ा उसके गालों को छू लिया.. उसका छूना ही था कि शिल्पा उसकी बाहों में ढेर हो गयी.. बाहें शेखर के गले में डाल उस'से चिपकती हुई सिसकने लगी," तुम नही जानते शेखर.. एक एक पल में तुम्हे कितनी बार याद किया है मैने.. कितनी तदपि हूँ मैं.. तुम्हारे लिए.. अब तो मैने उम्मीद ही छ्चोड़ दी थी.. तुम्हारे लौट कर मेरी जिंदगी में आने की..."

शिल्पा का सारा बदन प्यासा होकर अकड़ गया.. मधुर मिलन की आस में.. उसकी चूचियाँ ठोस होकर शेखर के सीने में चुभने सी लगी..,"अब वापस नही जाओगे ना!" शिल्पा के मुँह से 'आह' सी निकली...

"ज़ाउन्गा!" शेखर मुस्कुराने लगा," पर तुम्हे साथ लेकर..."

शिल्पा चौंक कर पिछे हटी और विस्मय से उसकी आँखों में देखने लगी.. फिर एक ज़ोर का घूँसा उसकी छाती में जड़ा और वापस चिपक गयी.. दुगने जोश के साथ!

"मैने मम्मी पापा से बात कर ली है.. वो शाम को तुम्हारे घर पर फोन करेंगे.. नंबर. दे देना अपना!" शेखर अब भी मुस्कुरा रहा था...

शिल्पा इस असीम खुशी को दिल में दबाकर ना रख सकी.. उसकी आँखों से झार झार आँसू बहने लगे.. भाववेश में उसने शेखर के गालों पर अपने तपते होन्ट रख दिए," आइ लव यू, शेखर!"

रात को कमरे में बैठकर पढ़ रही नीरू को रह रह कर कुच्छ अजीब सा लग रहा था.. जाने ऐसा क्यूँ था? पर वह बार बार सामने वाली खिड़की की और देख रही थी.. पर्दे की हल्की सी हुलचल भी उसका ध्यान अपनी और खींच लेती.. कल रात रोहन और रवि इसी खिड़की से अंदर आए थे.. अचानक कुच्छ याद करके नीरू उठी और खिड़की के पास गयी.. परदा हटाकर उसने देखा.. खिड़की आज बंद थी.. उसने चितकनी खोली और बाहर झाँकने लगी.. खिड़की के साथ साथ एक पाइप उपर पानी की टंकी तक जा रहा था.. वो ज़रूर इसी के सहारे उपर चढ़े होंगे...

अचानक नीरू को हँसी आ गयी.. वह मूडी और हंसते हुए ही बिस्तेर पर जाकर पसर गयी," ईडियट्स!" नीरू के मुँह से निकला.. लाइट जलती ही छ्चोड़ उसने किताबें टेबल पर रखी और कंबल में घुस गयी... कल रात के ख़यालों में खोए खोए ही उसको कब नींद आ गयी.. पता ही नही चला..

"क्कऔन है?" अचानक कमरे में हुई आहट से उसकी नींद खुल गयी और चौंकते हुए उसने अपनी आँखें खोल दी... आज उसके मन में डर कम और गुस्सा ज़्यादा था.. वह सीधी पर्दे की और देखती हुई बोली," कौन है वहाँ? मैं शोर मचा दूँगी..!"

पर उधर से कोई जवाब नही मिला..

पर्दे की हुलचल नीरू को सामान्य नही लग रही थी.. उसने झट से एक बार फिर पेपर वेट अपने हाथों में थम लिया," लगता है, आज फिर तुम्हारा सिर फूटेगा.... चुपचाप वापस जाओ!" नीरू ने मारने के लिए अपना हाथ उपर उठाया और कुच्छ सोचकर वापस नीचे कर लिया,"तुम्हारी प्राब्लम क्या है? अंदर आ जाओ!"

कोई जवाब ना मिलने पर नीरू चुपके से उठी.. और सावधानी से खिड़की की और बढ़ने लगी.. पर्दे के पास जाकर वह कुच्छ देर खड़ी रही और अचानक परदा एक तरफ सरका दिया.. वहाँ कोई नही था..

"हे भगवान!" नीरू ने खिड़की से बाहर झाँका.. पर पूरी सड़क सुनसान थी.. अपने माथे पर हाथ रखकर नीरू ने लंबी साँस ली और खिड़की अंदर से बंद कर दी.. पर वापस मुड़ते ही उसकी साँस, उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी..

बिस्तेर पर, जहाँ से वो अभी उठकर आई थी; पेपर वेट के नीचे दबा एक कागज का टुकड़ा फड्फाडा रहा था.. अचंभे और दह्सत से नीरू सिहर उठी.. "ये कैसे हो सकता है?" नीरू अपने आप में ही बड़बड़ाई और कमरे में चारों तरफ किसी की मौजूदगी को महसूस करने की कोशिश करने लगी..

पर कुच्छ होता तो मिलता! भारी और थके हुए कदमों से नीरू बिस्तेर की ओर बढ़ी और कागज का टुकड़ा पेपरवेट के नीचे से निकाल कर पढ़ने लगी...

" प्यार अमर होता है नीरू, वो कभी नही मरता! तुम्हे सोच भी नही सकती कि तुम दोनो एक दूसरे से कितना प्यार करते थे.. आज खुद रोहन को भी अहसास नही है कि तुम उसके लिए क्या थी.. और वो तुम्हारे लिए क्या था.. मुझे पता है कि तुम्हे कुच्छ याद नही है.. पर नियती तुम दोनो को फिर से मिलाना चाहती है.. इस बात को नज़रअंदाज मत करो! अपने अतीत को जान'ने की कोशिश करो! जान'ने की कोशिश करो की तुम्हारे घर वाले तुम्हारा नाम नीरू से बदल कर शीनू करने पर मजबूर क्यूँ हो गये... रोहन से मिलो! उसके दिल में तुम्हारे लिए उसके ज़ज्बात और असीम प्यार को महसूस करने की कोशिश करो!"

नीरू का दिमाग़ चकरा गया.. उसने डर के बावजूद कमरे का कोना कोना छान मारा.. पर कुच्छ नही मिला.. मुश्किल से एक मिनिट के अंदर ये सब हो गया.. कोई अंदर आया और लेटर रख गया.. हुल्की सी भी आहट किए बिना.. कौन ऐसा कर सकता है..?

अचानक बाथरूम में शुरू हुई पानी की 'टॅप - टाप' ने तो उसकी जान ही निकाल कर रखी दी... ज़ोर से चीखते हुए वह बाद-हवास सी होकर बाहर निकली और नीचे की और भागी...

चीक्ख सुनकर पहले ही मम्मी पापा बाहर निकल कर आ चुके थे," क्या हुआ बेटी?" दोनो ने लगभग एक साथ पूचछा...

नीरू नीचे जाते ही मम्मी से लिपट गयी.. उसका शरीर थर थर काँप रहा था..," उपर...! उपर कोई है मम्मी!" नीरू की उपर देखने की हिम्मत तक नही हो रही थी...

नीरू की बात सुनते ही पापा उपर की और भागे.. कमरे में जाकर उन्होने एक एक चीज़ का जयजा लिया.. बिस्तेर पर रखे उस कागज के टुकड़े के अलावा उनको वहाँ कुच्छ भी नही मिला... अच्छि तरह देख भाल कर नीचे आए पापा ने नीरू से पूचछा," ये क्या है शीनू? "

"पता नही.. मैं बस एक मिनिट के लिए बिस्तेर से उठी थी.. वापस आई तो वहाँ 'ये' रखा हुआ मिला.. पता नही किसने रख दिया..." कहकर नीरू रोने लगी...

"रो क्यूँ रही है बेटी? कोई परेशान कर रहा है क्या?" मम्मी ने नीरू को पापा से अलग ले जाते हुए पूचछा...

सवाल सुनते ही नीरू के जहाँ में रोहन और रवि की तस्वीर उभर गयी.. फिर कुच्छ देर रुक कर बोली," नही मम्मी! ऐसा तो कुच्छ नही है..!"

"कहीं ऐसा तो नही किसी ने तेरी किसी किताब में ये डाल दिया हो.. और खोलते हुए बिस्तेर पर गिर गया हो...."पापा ने पास आते हुए पूचछा....

"नही पापा! बिस्तेर पर ये पेपर वेट के नीचे दबा हुआ था.. किसी ने अभी रखा है.. थोड़ी देर पहले..." नीरू ने पापा की और देखते हुए कहा...

पापा का चेहरा लटक गया और माथे पर चिंता और गुस्से की लकीरें उभर आई.. अचानक कुच्छ सोच कर उसने फोन निकाला और मानव का नंबर. डाइयल किया..

"नमस्ते अंकल जी! इतनी रात को कैसे याद किया...?" मानव किसी गस्त से वापस आ रहा था...

"कोई शीनू को परेशान कर रहा है बेटा.. टाइम मिले तो आ जाना एक बार.. यहीं बैठकर बात कर लेंगे...

"क्यूँ नही अंकल जी? प्राब्लम ज़्यादा सीरीयस हो तो अभी आ जाता हूँ.." मानव ने विनम्रता से कहा...

"नही... ऐसी कोई बात नही है.. तुम कल आ जाना.. मैं तो सुबह जल्दी ही निकल जाउन्गा.. तुम्हारी आंटिजी से बात कर लेना.. समय रहते ही समस्या का कुच्छ इलाज हो जाए तो बेहतर होता है..." पापा ने फोन पर कहा...

"नो प्राब्लम अंकल जी.. मैं कल जल्द से जल्द आने की कोशिश करूँगा...!"

"ठीक है बेटा.. अब रखता हूँ.." कहकर पापा ने फोन रख दिया....

तीनो नीचे ही लेट गये थे.. नीरू मम्मी के पास थी.. उसकी आँखों में नींद का नामोनिशान तक नही था... वह इसी उधेड़-बुन में थी कि कल मानव के सामने रोहन और रवि का जिकर करे या ना करे..

सोचते सोचते उसका दिमाग़ लेटर में लिखी उस बात पर चला गया " अपने अतीत को जान'ने की कोशिश करो! जान'ने की कोशिश करो कि तुम्हारे घर वाले तुम्हारा नाम नीरू से बदल कर शीनू करने पर मजबूर क्यूँ हो गये..."

"मम्मी! " नीरू उठकर बैठ गयी..

"हां बिट्टू! क्या बात है?" मम्मी ने प्यार से पूचछा..

"तुम मुझे बताते क्यूँ नही, मेरा नाम क्यूँ बदला..." नीरू असहज हो गयी थी...

"सो जा बेटी.. सुबह बात करेंगे!" मम्मी ने नीरू का हाथ खींचकर उसको ज़बरदस्ती लिटाने की कोशिश की...

नीरू चिड गयी,"मुझे नींद नही आ रही मम्मी.. आख़िर ऐसी क्या बात है जो आप बार बार टाल रहे हैं.. बताइए ना पापा!" नीरू ने उठकर बैठ गये पापा की तरफ देखा....

"शीनू अब बड़ी हो गयी है.. मेरे ख़याल से बताने में कोई हर्ज़ नही.." पापा ने मम्मी से राय ली...

"पर बाबा जी ने माना किया था!" मम्मी ने आशंकित नज़रों से पापा की और देखा...

कुच्छ देर चुपचाप सोचते रहने के बाद पापा अतीत की यादों में खोते चले गये....

"तू जब 5 साल की ही थी शीनू! एक दिन अचानक मुझे तुम्हारे प्रिन्सिपल ने फोन करके हॉस्पिटल पहुँचने को बोला... मेरी तो जान ही निकल गयी थी... बदहवास सा हॉस्पिटल पहुँचा तो जाकर पता लगा; तुम कोई नाम बार बार चिल्लाते हुए बेहोश हो गयी थी... नाम याद नही आ रहा.." पापा ने दिमाग़ पर ज़ोर देते हुए कहा और फिर आगे बताने लगा.....

"हॉस्पिटल से छुट्टी के बाद मैं तुम्हे सीधा घर ले आया... आँखें खोलने के बाद भी तुम सहमी सहमी सी लग रही थी.. पहले पहल हुमने इस बात को ज़्यादा तवज्जो नही दी.. पर तुम्हारा अजीब व्यवहार बढ़ता ही चला गया.. ना तुम ज़्यादा बात करती थी.. और ना ही उसके बाद बच्चों के साथ खेलना पसंद था तुम्हे.. गुम्सुम सी यूँही रहने लगी.. "

"इस बात को भी हम नज़रअंदाज कर देते.. पर जब तुमने सोते हुए चिल्लाना शुरू कर दिया तो हमे बड़ी चिंता होने लगी.. कयि अच्छे डॉक्टर्स को दिखाया.. पर कहीं बात नही बनी.. कुच्छ डॉक्टर्स ने बताया भी कि इस उमर तक बच्चों की स्मृति में पूर्वजनम की बातें संचित रहती हैं.. हो ना हो ये उसी का असर है..."

"रिश्तेदारों के बार बार कहने पर हम तुम्हे एक सिद्ध बाबा जी के पास ले गये.. मुझे तो यकीन था ही नही कि कुछ असर होगा.. पर उन्होने तो चमत्कार ही कर दिया.. एक यग्य करके उन्होने तुम्हारा नाम 'नीरू' से शीनू रखने को कहा... उन्होने बताया था कि तुम्हारे शरीर में घुसकर कोई आत्मा तुम्हारे पूर्वजनम की दुखदायी यादों को जगाने की कोशिश कर रही है... उन्होने ज़्यादा कुच्छ नही बताया.. सिर्फ़ इतना ही कहा था कि नाम बदल कर यहाँ से ले जाने पर वो आत्मा दिग्भ्रमित हो जाएगी.. और दोबारा परेशान नही करेगी... उन्होने ये भी हिदायत दी कि तुम्हे इस बारे में कभी कुच्छ ना बताया जाए.. तुम्हारे इस बारे में ज़्यादा सोचने से पूर्वजनम कि वो दर्दनाक यादें फिर से जीवंत हो सकती हैं..."

"उसके बाद हम तुम्हे घर लेकर आ गये.. मुझे ये सब मज़ाक जैसा लग रहा था.. पर तुम्हारे चेहरे पर लौटी मुस्कुराहट ने मेरी सोच बदल दी... फिर मैने हर रेकॉर्ड में तुम्हारा नाम बदलवा दिया... यही बात है जो हम तुम्हे बताकर बेवजह परेशान नही करना चाहते थे..." कहकर पापा चुप होकर नीरू की आँखों में देखने लगे....

नीरू हतप्रभ सी रोहन और उस रहस्मयी लेटर के बारे में सोचने लगी.....

नीरू ऋतु के साथ कॉलेज जाने के लिए निकली ही थी कि घर के सामने पोलीस ज़ीप आकर रुकी. गाड़ी को खुद मानव ही ड्राइव करके लाया था. अंदर बैठा हुआ ही मानव तब तक उसको अपलक देखता रहा जब तक वा उसकी नज़रों से औझल नही हो गयी.. पर नीरू ने अपनी नज़रें तक नही मिलाई और उसके पास से निकल गयी....

इस पूरी दुनिया में एक नीरू ही थी जो मानव को पसंद थी.. बेहद पसंद! नीरू के चेहरे की अनुपम सुंदरता और नज़ाकत, उसका संजीदा स्वाभाव और नज़रें हमेशा नीची करके चलना मानव को हमेशा चित्ताकर्षक लगता था.. पर ये भी नीरू का स्वाभाव ही था जिसने मानव को आज तक अपने दिल की बात उसके आगे जाहिर करने से रोक रखा था.. यही वजह थी कि वह सोचता था कि उसको 'प्यार' जताना ही नही आता.....

मानव की नज़रें मूड कर दूर तक जाती हुई नीरू का पिच्छा करती रही.. अचानक उसने एक लंबी साँस ली और गाड़ी से उतर कर घर की डोर बेल बजाई.... 6 फीट लंबे, गतीले शरीर पर 26 साल की उमर में ही पोलीस की वर्दी खूब जम रही थी.. और उस पर लगे तीन स्टार तो किसी भी लड़की का सपना हो सकते थे...

"आ गये बेटा! शीनू अभी अभी कॉलेज के लिए निकली है..." मम्मी जी ने दरवाजा खोलते हुए कहा....

"हाँ आंटी जी.. देखा था मैने उसको रास्ते में...!" मानव अंदर आकर बैठते हुए बोला... मम्मी जी किचन में चली गयी...

"अरे! उसको वापस क्यूँ नही ले आए.. उसी के बारे में तो बात करनी थी...!" मम्मी ने अफ़सोस सा जताया...," मैं उसकी सहेली के पास फोन करके उसको वापस बुलाती हूँ!" मम्मी ने बाहर आकर एक फोन किया और वापस अंदर चली गयी...

"मुझे तो उस'से बोलते हुए डर सा लगता है आंटी जी.. वो तो कभी देखती तक नही मेरी और... जाने कितनी ही बार आमना सामना हो जाता है हमारा.. पर अंजानों की तरह साइड से निकल जाती है..! अब बताओ भला मैं उसको कैसे टोकता, रास्ते में!" मानव कहकर हँसने लगा....

"अरे नही बेटा! तू तो जानता है.. उसका स्वाभाव ही ऐसा है.. मुझे तो डर लगा रहता है, पराए घर की अमानत है... शादी के बाद भी उसका व्यवहार नही बदला तो...!" मम्मी ने चाय बनाकर मानव को दी और उसके पास बैठ गयी....

"क्क..क्या उसकी शादी पक्की कर दी..?" बनावटी आस्चर्य और खुशी प्रकट करते हुए मानव बोला....

"अभी कहाँ? पर कोई ढंग का रिश्ता हो तो बताना.. इसके पापा उतावले हो रहे हैं इसकी शादी के लिए... तुम तो सब जानते ही हो!" मम्मी ने मुस्कुरकर कहा..

"ओह्ह.. ज़रूर!" मानव के कलेजे को ठंडक मिली," वो अंकल जी कुच्छ जिकर कर रहे थे... क्या माम'ला है....?"

मम्मी उठी और ड्रॉयर में रखा 'वो' कागज का टुकड़ा मानव को पकड़ा दिया.. मानव खोल कर पढ़ने लगा....

" प्यार अमर होता है नीरू, वो कभी नही मरता! तुम्हे सोच भी नही सकती कि तुम दोनो एक दूसरे से कितना प्यार करते थे.. आज खुद रोहन को भी अहसास नही है कि तुम उसके लिए क्या थी....." इतना पढ़कर हो मानव रुक गया...

"ये... रोहन कौन है? मैने सुना है कहीं...!" मानव ने दिमाग़ पर ज़ोर डाला.. पर 'रोहन' का नाम और उसके द्वारा लिया गया 'नीरू' नाम उसके जहाँ से उतर गया था...

"पता नही बेटा...! पर शीनू को भी पता होता तो वो ज़रूर बता देती.. उसको भी मालूम नही है कुच्छ.. कल रात को भागती हुई नीचे आई थी.. बहुत डरी हुई थी.. किसी ने उसके कमरे में ये लेटर डाल दिया... इसी से इतनी परेशान हो गयी बेचारी... फिर मामले के बढ़ने से पहले ही निपट लें तो बेहतर होता है.. लड़की की जात है.. बात बाहर निकल गयी तो लोग जाने कैसी कैसी बातें करने लगते हैं..." मम्मी ने दुख भरे लहजे में कहा....

"पर ये लेटर तो नीरू के नाम पर लिखा गया है.." कहते हुए मानव फिर से पहली लाइन से पढ़ना शुरू हो गया...

"यही बात तो हमारी समझ में नही आ रही बेटा.. दर-असल पहले शीनू का नाम 'यही' था.. पर बहुत छ्होटी थी तभी बदल दिया था ये नाम... जाने किस मुए को ये बात पता चल गयी... और अब इसको परेशान करने पर तुला है...."

"हां.. मैने भी सुना था एक बार.. शीनू का नाम पहले 'नीरू' होने के बारे में.."

मम्मी जी की बातें सुनते सुनते मानव लेटर पढ़ता जा रहा था.. अचानक एक जगह रुक कर उसकी आँखें सिकुड गयी... और कुच्छ सोचकर वह उच्छल पड़ा..,"ओह्ह माइ गोड!"

"क्या हुआ बेटा?" मम्मी ने आशंकित होकर पूचछा...

"एक मिनिट.." मानव बाहर गया और ज़ीप से सी.डी. केस डाइयरी निकाल कर लाया... वापस आकर उसने कुच्छ पेज पलते और कागज का एक टुकड़ा उसमें से निकाल कर दोनो को टेबल पर साथ साथ रख लिया....

"ये क्या है बेटा?" मम्मी को उसकी हरकत समझ में नही आई...

"कुच्छ नही.. आप निसचिंत रहें.. आपकी प्राब्लम तो सॉल्व हो ही गयी समझो.. अब मैं चलता हूँ..." कहकर मानव तेज़ी से खड़ा हो गया....

"ठीक है बेटा.. 'उनसे' अगर इस बारे में कुच्छ बात करनी हो तो फोन कर लेना.." मम्मी जी साथ खड़े होते हुए बोली....

"एक बात कहूँ आंटी जी.. अगर बुरा ना मानो तो!" मानव ने वापस पलट'ते हुए कहा...

"हां बोलो ना बेटा.. क्या बात है..?" मम्मी ने उसके चेहरे की और देखा...

"वैसे तो.... ये बात घर के बड़ों को ही करनी चाहिए... पर.... मुझे शीनू बहुत पसंद है... आप.. और पापा अगर..." कहकर मानव चुप हो गया.. आयेज उसको समझ ही नही आया की कैसे बात पूरी करे!

बात समझ में आते ही मम्मी जी का चेहरा खिल उठा," ये तो उसके लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी बेटा... मैं इसके पापा के आते ही बात करती हूँ.. वो तुम्हारे घर फोन कर देंगे.."

खुशी से फूली नही समा रही मम्मी जी ने अपने हाथ उठा मानव के सिर पर हाथ रख दिया... मानव का भी यही हाल था.. जाने कितने दीनो के बाद वह किसी से अपने दिल की बात कह पाया था...

जैसे ही मानव बाहर निकला, उसको सामने से नीरू वापस आती दिखाई दी.. उसने लाख कोशिश की उसको टोकने की.. पर उसके मुँह से 'हाई' तक ना निकल पाया.. नीरू सिर झुकाए हुए ही साइड में खड़ी होकर मानव के रास्ता छ्चोड़ने का इंतजार करने लगी..

मानव सिर खुजाता हुआ उसके सामने से हटकर गाड़ी में जा बैठा.. और नीरू उसको बिना देखे ही अंदर चली गयी....

क्रमशः

Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--16 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"ओहू! आप एक बार बात तो कर लो उनसे.. इतना अच्च्छा रिश्ता खुद चलकर आया है.. मैं तो कहती हूँ, बात बन जाए तो चट माँगनी पर ब्याह कर देंगे अपनी शीनू का...." मानव के निकलते ही मम्मी जी ने फोन लगा लिया था...

"अच्च्छा ठीक है.. मैं अभी बात करके बताता हूँ... पर उनको बोलूं क्या?" पापा ने असमन्झस से पूचछा...

"अब ये बात भी क्या मैं ही सम्झाउ? बोल देना की मानव को पसंद है.. और हम भी बहुत खुश हैं इस रिश्ते से....." मम्मी ने बात पूरी भी नही की थी कि नीरू दरवाजा खोलकर अंदर आ गयी

"किसके रिश्ते की बात हो रही है मम्मी..?" नीरू आते ही मम्मी से लिपट गयी...

"अच्च्छा रखती हूँ जी.. आप बता देना मुझे भी..." मम्मी ने कहा और फोन रख दिया...

"क्या हुआ मम्मी? मानव आया था! कुच्छ पता चला...." नीरू ने मम्मी के फोन रखते ही पूचछा...

"मानव आया था!" मम्मी ने मुँह चढ़ा कर मज़ाक मज़ाक में उसकी नकल उतारी," तू तो जैसे घर वालों के अलावा किसी को जानती ही नही.. सामने से बोल नही सकती थी क्या?"

"मैं क्यूँ बोलूं..? मुझे अच्च्छा नही लगता ऐसे किसी को राह चलते में टोकना.. बताओ ना.. आपने उस लेटर की बात की या नही..... और मुझे क्यूँ बुलाया है?" नीरू ने जवाब देते हुए पूचछा....

"हां.. कह रहा था कि अब मैं सब संभाल लूँगा... और कुच्छ हो ना हो.. हमें बहुत अच्च्छा दूल्हा मिल गया; अपनी गुड़िया रानी के लिए.." मम्मी ने नीरू का चेहरा अपने हाथों में लेकर गालों को चूमते हुए कहा...

नीरू बात सुनते ही बिदक गयी," ये क्या कह रही हैं मम्मी.. मैने कह दिया ना मुझे नही करनी शादी वादी.. आप बार बार ये जिकर ना किया करें.. मेरा दम घुटने लगता है...."

"अरी.. सुन तो ले एक बार की रिश्ता किसका आया है... अपने 'मानव' का.. कितना सुंदर और छैल छबिला है.. और थानेदार है.. तू मौज करेगी उसके साथ!" मम्मी ने समझाते हुए कहा...

"थानेदार होगा, अपने घर में.. मुझे नही करनी किसी से शादी... देख लेना, आगे बात बढ़ाई तो!" गुस्से से भरी नीरी ने अपनी किताब उठाई और पैर पटकती हुई वापस चली गयी.. कॉलेज में....!

"ये लड़की भी ना!" मम्मी ने बड़बड़ाते हुए अपने माथे पर हाथ मारा ही था की फोन की घंटी बज उठी..,"मम्मी ने लपकते हुए झट से फोन उठा लिया...,"हां जी!"

"सच में आज का दिन तो बहुत ही शुभ है... वो भी बहुत खुश हुए बात सुनकर.. झट से तैयार हो गये..!" पापा की आवाज़ थी...

"आच्छाआअ!" मम्मी जी चहकति हुई बोली और फिर अचानक नीरू की बात याद आते ही मायूस हो गयी," पर शीनू का क्या करें? ये तो उल्टी ही रामायण पढ़ रही है..."

"क्यूँ क्या हुआ? पापा ने आशंकित होकर पूचछा...

"कह रही है, इसको नही करनी शादी वादी.. मुझसे लड़ाई करके वापस गयी है..." मम्मी का चेहरा उतर गया....

"ओह्हो.. तुमने तो मुझे डरा ही दिया था.. ऐसा तो होता ही है.. लड़की है आख़िर! और क्या शादी की बात सुनकर नाचने लग जाएगी..! लड़कियाँ तो ऐसे करती ही हैं.. तुम उसकी चिंता मत करो.. वो तो इस शनिवार को ही देखने आने की बात कह रहे हैं...." पापा ने बात को आगे बढ़ाया...

"हाई राम! पर शनिवार में तो तीन ही दिन बचे हैं...." मम्मी सोच कर बोली...

"तो हमें क्या करना है.. उनकी देखी भाली तो है ही.. बस आ जाएँगे और 'अपनाकर' चले जाएँगे... तुम किसी बात की चिंता मत करो! मैं रखता हूँ अब.." कहकर पापा ने फोन काट दिया...

मम्मी जी फूली नही समा रही थी.....

------------------------------------

"एक्सक्यूस मी, मिस नीरू!"

नीरू कॉलेज के अंदर कदम रखने ही वाली थी कि अपना नाम सुनकर चौंक कर पलटी..

"मैं अमन हूँ.. रोहन का दोस्त!" अमन ने मुस्कुराते हुए कहा...

पहले से ही गुस्से में भरी हुई नीरू की थयोरियाँ चढ़ गयी,"तो?"

एक बारगी नीरू के तेवर को देख अमन भी सहम सा गया.. इस बात को जानते हुए कि नीरू ने उस रात रोहन और रवि को ऐसे ही निकल जाने दिया था, उस'से काफ़ी विनम्रता की उम्मीद थी.. कुच्छ देर रुक कर संभालते हुए बोला," तो.... मुझे आपसे कुच्छ बात करनी थी.. इसी बारे में.. आप चाहे तो अपनी सहेलियों को साथ ले सकती हैं...."

"नही... मुझे किसी से कोई बात नही करनी..." कहकर वो पलटी ही थी कि ऋतु और शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ लिया," सुन तो लो शीनू! सुन'ने में क्या हर्ज़ है..?" ऋतु ने कहा....,"मुझे रोहन की बातें सच्ची लगती हैं...."

"अब तुम भी?" नीरू ने ऋतु को घूरा....

"मुझ पर विस्वास नही है क्या?" ऋतु ने उसका हाथ दबाकर कहा...

"यार.. इसमें विस्वास की क्या बात है? बस, मुझे कोई बात नही करनी..." नीरू अपने फ़ैसले पर अडिग थी...

"देख! मैं तुझे रोहन की बातों में सच्चाई के बहुत से सबूत दे सकती हूँ.. पर तू एक बार हमारे साथ चल.. बस!" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा...

"साथ चलूं? ... पर कहाँ?" नीरू ने नरम पड़ते हुए कहा...

"चल आजा... " ऋतु ने कहा और लगभग ज़बरदस्ती सी करते हुए उसको अमन की गाड़ी में बैठा लिया.. साथ ही शिल्पा भी बैठ गयी......

अमन के घर पर सब लोग साथ साथ बैठे थे.. शिल्पा और शेखर एक दूसरे के साथ बैठे थे.. अमन और रोहन एक दूसरे के साथ.. उनके सामने ऋतु के साथ बैठी हुई नीरू खुद को अजीब सी स्थिति में पा रही थी... अगर ऋतु उसके साथ ना होती तो एक पल भी उसका वहाँ ठहरना नामुमकिन था... उसने ऋतु का हाथ कसकर पकड़ा हुआ था..

अचानक दारू की बॉटले छिपाने गया रवि जैसे ही उनके सामने आया.. उसके सिर पर गोला बना देख ऋतु की हँसी छ्छूट गयी.. नीरू ने भी जैसे ही अपना चेहरा उपर उठाया, अपना मुँह दबाकर हँसने से खुद को रोक ना पाई...

"प्रणाम भाभी जी!" रवि ने पहली बार नीरू के चेहरे पर सितारों की चमक जैसी मुस्कुराहट देखी थी.. मौके का फायडा उठाते हुए उसने नीरू को भाभी कह ही दिया....

नीरू ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और ऋतु से बोली," हां.. अब बताओ.. क्या बात करनी थी.. जल्दी बोलो.. मुझे जाना है...

रोहन ने बोलने के लिए जैसे ही मुँह खोला.. सब चुप होकर उसकी बात सुन'ने लगे.. अपने सपनो से शुरुआत करके आज तक की सारी कहानी रोहन ने विस्तार से बयान कर दी.. सिर्फ़ उसमें से श्रुति के साथ हुए उस दर्दनाक हादसे को वह खा गया.. इस दौरान श्रुति को याद करते हुए उसकी आँखें भर आई.. और एकाएक सब भावुक हो गये.. जिनको श्रुति के बारे में पता था.. वो श्रुति को याद करके.. और जिन्हे नही पता था.. वो ये समझ कर कि रोहन नीरू को कहानी सुनाते हुए बहक गया है....

"आई बात समझ में....?" ऋतु ने रोहन की बात ख़तम होते ही नीरू से पूचछा...

नीरू का दिमाग़ कहानी सुन'ते हुए सुन्न सा होकर अपना नाम बदले जाने वाली कहानी से तड़ातम्मया बिठा रहा था.. पर प्रत्यक्ष में उसने सिर्फ़ इतनी ही प्रतिक्रिया दी," चलें!"

"अब ये क्या बात हुई...? कुच्छ बोलो तो सही.. आख़िर सब तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहे हैं..." ऋतु ने गुस्से में भरकर कहा....

नीरू कुच्छ बोलने की सोच ही रही थी कि अगले ही पल मानो उसको बिजली का सा झटका लगा..

"उम्मीद करता हूँ कि मैने आप सब को डिस्टर्ब नही किया होगा..." बिना इजाज़त अंदर आने के बाद एक एक चेहरे को घूर्ने के बाद मानव की आँखें नीरू पर आकर टिक गयी....," ओह्हो! इतनी शराफ़त और नज़ाकत भरी शरारत... आइ'एम इंप्रेस्ड!" मानव के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तेर गयी.....

"आइए ना इनस्पेक्टर साहब. बैठिए... हम उस दिन इन्ही 'नीरू' की बात कर रहे थे.." अमन इनस्पेक्टर के स्वागत में खड़ा हो गया....

नीरू कुच्छ बोल सकने की हालत में नही थी.. वह उठकर बाहर जाने ही लगी थी की मानव ने उसको टोक दिया,"अरे नही नही... ये तो बहुत ही अच्च्छा हुआ कि आप यहीं मिल गयी.. रोहन को हथकड़ी लगाने से पहले मुझे आपके बयानों की भी ज़रूरत पड़ेगी... हा हा हा!"

मानव की बात सुनकर सभी चौंक कर उसकी और देखने लगे..

"ये क्या कह रहे हैं आप..? रोहन को हथकड़ी?" अमन ने आसचर्यचकित होते हुए पूचछा....

"चिंता ना करें.. मैं सब कुच्छ सपस्ट करके ही इसको यहाँ से ले जाउन्गा..." मानव कुर्सी पर बैठ गया...

रोहन कभी मानव को और कभी नीरू को अजीब सी निगाहों से देखने लगा.....

"तो रोहन जी; आप रात को शीनू के घर में घुसपैठ करते हैं?" सबके चेहरों को अपनी और ताकता छ्चोड़ कर अपनी इनटेरगेशन शुरू कर दी....

सवाल सुनते ही रवि ने अपने सिर के गोले को हाथ से ढक लिया... मानो सबूत छिपाने की कोशिश कर रहा हो...

रोहन ने मायूस होकर शिकायती नज़रों से नीरू की और देखा.. उसको यही अंदाज़ा हुआ कि नीरू ने उसके घर में घुसने की रिपोर्ट करवा दी है... सिर झुका कर वह कबूल करने को बोलने ही वाला था कि चौंक कर उसने नीरू की और देखा...

"नही! ये हमारे घर में कभी नही आया...!" नीरू के जवाब ने सबको हैरत में डाल दिया...

मानव नीरू के बोलने से झल्ला उठा.. उसको नीरू की आवाज़ से ही पता चल गया था कि वो रोहन को बचाने के लिए ऐसा बोल रही है...

"आर यू शुवर मिस.. शीनू उर्फ नीरू जी!" चेहरा नीचे किए हुए ही नज़रें उपर उठा कर मानव ने नीरू की और घूरा....

"हां.. ये कभी हमारे घर नही आया...!" नीरू ने नज़रें झुकाए हुए ही जवाब दिया.. बात सुनकर रवि भी उच्छल पड़ा,"हां हां.. हम भला रात को क्या करने जाएँगे.. हैं ना रोहन!"

रोहन ने नज़रें उपर करके उसके 'गोले' को देखा और उसकी हँसी छ्छूट गयी.. अब रोहन काफ़ी रिलॅक्स महसूस कर रहा था.. जब मियाँ बीवी राज़ी, तो क्या करेगा काज़ी!

"वाह वाह! रोहन को बचाने की आपकी कोशिश काबिल-ए-तारीफ़ है नीरू जी! पर अफ़सोस! इसको हथकड़ी लगाने के लिए जो वजह मेरे पास है.. उसमें आप भी इसकी कोई मदद नही कर सकती.... इसके इस जुर्म के लिए तो मैं इसको समझा कर ही छ्चोड़ने वाला था.... आख़िर तुम्हे भी इसके साथ कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते... और मेरी तरह कोई भी इज़्ज़तदार मर्द ये नही चाहेगा कि उसकी होने वाली धरमपत्नी इस तरह की छ्होटी छ्होटी बातों के लिए कोर्ट के झमेले में पड़े.."

मानव ने अपनी आख़िरी बात को चबा चबा कर कहा और नीरू के घर मिला खत उसके सामने टेबल पर रख दिया...," अब ये मत कहना कि ये खत भी आपको नही मिला.. आंटी जी ने मुझे दिया है.."

नीरू ने अपनी नज़रें झुका ली.. कुच्छ देर मौन रहने के बाद बोली,"हां.."

मानव कुटिलता के साथ मुस्कुराया,"वेरी गुड!... पढ़ना ज़रा इसको!" कहकर मानव ने खत रोहन को पकड़ा दिया....

रोहन रवि शेखर और अमन आस्चर्य से खत को पढ़ने के बाद एक दूसरे की आँखों में देखने लगे.. किसी की समझ में नही आ रहा था कि ये 'लेटर' वाला क्या फंडा है.. सब एक दूसरे से इशारों ही इशारों में सवाल सा कर रहे थे....

"पढ़ लिया?" मानव ने आराम से पिछे सिर टिकते हुए पूचछा....

"जी हां.. पर इस'से हमारा कोई लेना देना नही...!" रोहन ने ज़ोर देकर कहा....

"मान लिया! चलो अब इसको पढ़ो ज़रा...." मानव ने एक और लेटर रोहन के सामने टेबल पर फैला दिया...

"ययए.. ये तो श्रुति का है...." रोहन ने हाथ में पकड़े श्रुति के स्यूयिसाइड नोट की पहली लाइन पढ़ते ही कहा....

मानव मुस्कुराया," ना! ये श्रुति ने नही लिखा... पहले में मान चुका था कि श्रुति ने आत्महत्या की है... और ये स्यूयिसाइड नोट अपने हाथों से लिखा है... पर अब नही मानूँगा... श्रुति की हत्या हुई है...!"

"क्क्या मतलब..." सभी उच्छल कर खड़े हो गये.. बेचारी नीरू को तो अब तक ये भी पता नही था कि श्रुति अब इस दुनिया में नही है.... सब हैरत से मानव की ओर देख रहे थे....

"दोनो लेटर्स एक साथ रख कर देखो... सॉफ पता चल रहा है कि दोनो एक ही आदमी ने लिखें हैं..." मानव के चेहरे पर सफलता की चमक उभर आई थी....

सबने अपने अपने हाथों में लेटर लेकर देखे.... मानव की बात शत प्रतिशत सच थी.... पर किसी की कुच्छ समझ में नही आ रहा था....

"इसका क्या मतलब है?" अमन ने हड़बड़ा कर पूचछा....

"इसका मतलब ये है कि स्यूयिसाइड नोट श्रुति ने नही लिखा... किसी और ने लिखा है.. और जिसने भी लिखा है.. उसी ने श्रुति का कत्ल किया है...!" मानव तीर छ्चोड़ कर चुप हो गया.... उसको कहीं से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नही मिली तो मजबूरन उसको खुद ही सारी बात समझानी पड़ी....

"देखो! श्रुति मर चुकी है.. इसीलिए नीरू के घर मिला लेटर श्रुति के हाथ का लिखा नही हो सकता... अब क्यूंकी दोनो खातों में राइटिंग हूबहू एक जैसी है.. इसका मतलब ये हुया कि श्रुति का स्यूयिसाइड नोट भी उसी व्यक्ति ने लिखा है जिसने ये दूसरा खत लिखा...

सॉफ बात है कि उसी व्यक्ति ने ही श्रुति की हत्या भी की है... अब अगर उस दिन के घटनाक्रम पर नज़र डालें तो रोहन ने खुद कहा है कि लास्ट में वो कुण्डी लगाकर श्रुति को अंदर छ्चोड़ आया था.. उसके बाद नितिन ने स्वीकार किया है कि जब वो श्रुति के पास अंदर गया तो श्रुति लाश बन चुकी थी... अगर नितिन बाहर होता तो मैं एक पल को मान भी लेता कि हो सकता है हत्या नितिन ने की हो.. पर उसकी जमानत तो कल होगी.. फिर वो कैसे नीरू के घर लेटर भेज सकता है... नही ना?"

इसका मतलब कहानी शीशे की तरह बिल्कुल सॉफ हो गयी.... नितिन ने श्रुति को जबरन रोहन के पास भेजा और रोहन ने श्रुति की मजबूरी का फायडा उठाते हुए उसके साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की.. पर जब वो नही मानी तो ज़बरदस्ती के चक्कर में ही इसने उसका गला घोंट दिया... और उसको पंखे से लटका कर बाहर से कुण्डी बंद करके आ गया... समझे! नितिन पर सिर्फ़ ब्लॅकमेलिंग का आरोप रहेगा.. बाकी सारा काम तो जनाब ने अपने हाथों से ही किया है...." मानव ने एक लंबी साँस छ्चोड़ कर अपनी कहानी को विराम दिया....

"आप बेवजह रोहन पर शक कर रहे हैं इनस्पेक्टर... ये सपने में भी ऐसा नही कर सकता....!" अमन ने ज़ोर देकर कहा....

"तो किस पर करूँ प्रोफ़्फेसर साहब!" मानव हंसा," क्या आप पर करूँ? या बाकी लोगों पर... उस रात कोई और मौजूद था ही नही.. अगर आप में से कोई क़ुबूल कर रहा है कि ये कत्ल और दोनो खत आप में से किसी ने किए हैं तो ठीक है.. मैं विचार कर लेता हूँ... वरना सारे सबूत तो रोहन की तरफ ही इशारा कर रहे हैं..." मानव ने कहा...

"हम जायें!" नीरू के चेहरे पर कड़वाहट सॉफ झलक रही थी......

"जी क्यूँ नही..? वैसे अब भी कोई मुग़ालता बचा हो तो आप भी सवाल कर सकती हैं..." मानव ने तीखी नज़रों से नीरू की और देखते हुए कहा...

नीरू, ऋतु और शिल्पा बिना कुच्छ कहे बाहर निकल गयी....

"हम भी चलते हैं लव गुरु.. तुमसे टिप्स लेने फिर कभी आउन्गा.." मानव ने सलाम ठोंकने के अंदाज में अपना हाथ अमन की और उठाया और रोहन का हाथ पकड़ कर खड़ा हो गया....," रोहन को मैं कल सुबह कोर्ट में पेश कर दूँगा.. पर मुझे नही लगता कि 4-5 महीने से पहले इसकी बैल अप्लिकेशन लगाने का कोई फायडा होगा..."

रात को करीब 12 बजे जाकर मानव को बिस्तेर नसीब हुआ.. सारे दिन की भगा दौड़ी से उसको थकान महसूस हो रही थी... रोहन से उसने श्रुति वाले केस से ज़्यादा नीरू के बारे में पूचछा था... ये जानकार उसको सुकून मिला था कि अभी तक रोहन उसके दिल में जगह बनाने में नाकामयाब रहा है... उसको खुद अहसास हो रहा था कि रोहन का नाम नीरू के साथ जुड़ा होने की वजह से वह केस में कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट ले रहा है.. दोपहर को नीरू के सामने ही सारा खुलासा करने के पिछे भी उसका यही मकसद था...

पर मानवीयता और शायद आत्मीयता सी दिखाते हुए उसने रोहन को अपने साथ ही खाना खिलाया और स्टाफ के ही आदमी के बिस्तेर पर सो जाने को कह दिया... ताकि वह अपने ही मंन के द्वारा धिक्करे जाने से बच सके... वह खुद भी थाने में बने अपने रिटाइरिंग रूम में ही लेट गया...

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी नींद टूट गयी,"कौन है?"

पर उसके सवाल का किसी ने भी जवाब नही दिया और वह करवट बदल कर फिर सोने की कोशिश करने लगा...

थोड़ी ही देर बाद दरवाजा लगातार 2 बार जल्दी जल्दी खटखटाया गया.. वह झल्ला कर उठ बैठा और पॅंट पहन कर उठ खड़ा हुआ...

"क्या बात है?" दरवाजा खोल कर मानव ने पास ही खड़े संतरी से पूचछा...

"कुच्छ नही जनाब! क्या हो गया...?" संतरी भाग कर दरवाजे के पास आया...

"दरवाजा क्यूँ खटखटा रहे हो?" मानव ने हुल्के से गुस्से से कहा...

"नही तो जनाब! मैं तो आधे घंटे से यहीं खड़ा हूँ.. दरवाजा तो किसी ने नही खटखटाया...."

मानव ने अजीब सी नज़रों से उसको घूरा और बाहर गेट की तरफ टहलने चला गया.. वापस लौट'ते हुए वा रोहन के कमरे में घुस गया.. रोहन जाग ही रहा था...

"कोई दिक्कत तो नही है भाई?" मानव ने पूचछा...

"आपके रहते दिक्कत क्या हो सकती है?" रोहन ने व्यंग्य सा किया.. मानव ने कुच्छ बोलना उचित नही समझा और बाहर निकल कर अपने कमरे में जाकर लाइट ऑफ की और फिर लेट गया...

मुश्किल से उसको लेटे हुए 5 मिनिट भी नही हुए होंगे की अचानक कमरे की लाइट जल गयी...

हड़बड़ते हुए चौंक कर मानव एक दम उच्छल कर बैठ गया," कौन है?"

पर एक बार फिर किसी से कोई जवाब नही मिला...

मानव के दिल की धड़कने बढ़ने लगी.. वह बिस्तेर से उठा और धीरे धीरे चलते हुए अलमारियों के पिछे बने स्विच बोर्ड की और बढ़ा... वहाँ पर किसी चूहें तक का भी नामोनिशान ना पाकर उसका दिल उसकी बल्लियों पर आ जमा," क्या मुसीबत है?" वह बड़बड़ाया और लाइट बंद कर दी... फिर जाने क्या सोच कर वह पलटा और लाइट फिर से ऑन कर दी....

वापस बिस्तेर की तरफ आते ही मानो उसको बिजली का कोई तेज झटका लगा हो.. हैरत और भय के मारे उसकी आँखें बाहर को निकल आई... धीरे धीरे चलकर उसने बिस्तेर पर पड़े कागज के टुकड़े को उठाया.. लाल रंग से कागज पर सिर्फ़ इतना ही लिखा हुआ था, डेड नेवेर लाइ!

आसमन्झ्स में वहीं जमकर खड़े हो चुके मानव को सपस्ट अहसास हो रहा था कि कमरे में कोई है... पर कौन है; ये उसकी समझ से परे था.. इतना तो तय था ही कि जो कोई भी था.. तीनो राइटिंग एक ही आदमी की थी...

हैरानी से पागल हुए जा रहे मानव ने बिस्तेर के नीचे देखा, दोबारा अलमारियों के पिछे देखा.. पर कहीं आदमी होने का चिन्हा तक उसको नज़र नही आया...

"कौन है भाई? ये आँख मिचौली सी कैसी खेल रहे हो... सामने आकर बात करो ना.." मानव एक जगह खड़ा खड़ा ही चारों तरफ घूम घूम कर देख रहा था...

"अगर तुम रोहन या नितिन को बचाने के इरादे से आए हो तो सामने आ जाओ! मैं भी सच जान'ना चाहता हूँ... सामने आ जाओ यार!" मानव इस तरह बात कर रहा था जैसे किसी से फोन पर बात कर रहा हो.. बोलते हुए उसकी आँखें सामने दीवार पर ठहरी हुई थी.... उसकी बातों और चेहरे से लग रहा था की उसको 'भूतों' के कॉन्सेप्ट पर यकीन हो चला है...

अगले ही पल उसने बड़ी मुश्किल से खुद को बेहोश होने से रोका... उसकी टेबल पर रखा पेन पहले सरका और फिर हवा में उठ गया.. अगले ही पल पेन टेबल पर इस तरह जाकर खड़ा हो गया मानो किसी ने पेन हाथ में लेकर टेबल पर हाथ रख दिया हो....

आअस्चर्य में मानव पलकें झपकना तक भूल गया.. वह दो कदम पिछे हटा और अपने हाथ अलमारी से चिपका लिया... उसकी आँखें हैरत से फटी जा रही थी.. गला सूख चुका था.... पर बोलती बिल्कुल बंद थी.. अब तो उसके साँस भी गिने जा सकते थे... और दिल की धड़कने भी सुनी जा सकती थी....

कुच्छ पल पेन हवा में ही लहराता रहा.. फिर अचानक उसकी सी.डी. (केस डाइयरी) के पन्ने पलटने लगे... आख़िरकार जब पन्ने पलटने बंद हो गये तो पेन डाइयरी के पन्ने से सटकार खड़ा हो गया... और इस तरह लहराने लगा जैसे पन्ने पर कुच्छ लिखा जा रहा हो....

मानव साँस रोके डाइयरी पर पेन का नृत्या देखता रहा.. आज से पहले उसने कभी सोचा भी नही था कि ऐसा भी कभी देखने को मिल सकता है.. हालाँकि अभी तक उसको किसी तरह की हानि नही हुई थी.. पर फिर भी वह पछ्ता रहा था कि रिवॉल्वर उसने टेबल के ड्रॉयर में ही क्यूँ छ्चोड़ दी.. अगर पेन उठ सकता है तो रिवॉल्वेर भी तो..

अचानक डाइयरी पेन को अपने पन्नों में ही समेटे बंद हो गयी.. कुच्छ ही देर बाद चितकनी नीचे हुई और दरवाजा अपने आप खुल गया...

मानव अभी तक सम्मोहित सा दरवाजे की और देख रहा था कि संतरी भगा भगा आया,"जी जनाब! आपने बुलाया..!"

अब तो मानव संतरी को भी शक की निगाहों से ही घूर रहा था.. ,न..नही तो!"

"ज्जई.. वो आपने दरवाजा खोला, इसीलिए मुझे लगा..." संतरी सिर झुका कर बाहर निकलने लगा....

"अरे सुनो!" मानव ने आवाज़ लगाई...

संतरी झट से सेवा में पुन्ह: हाज़िर हो गया.....

"वो... रोहन को यहीं भेज दो.. मेरे पास!"

क्रमशः .........................

Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--17 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"जी! आपने बुलाया?" रोहन अंदर आकर विनम्रता से बोला.....

"हां याअर.. मरता क्या ना करता! आओ..." केस डाइयरी अब मानव के हाथ में थी...

"आओ.. बैठ जाओ आराम से.. यहीं सो जाना.. कल सुबह उठकर घर चले जाना!" मानव ने बिस्तेर पर बैठते हुए कहा.. कुच्छ देर पहले हुए पारलौकिक अनुभव का असर उसकी आँखों में अब भी सॉफ दिखाई दे रहा था...

रोहन ने आस्चर्य से मानव की और देखा,"इस रहमत की वजह जान सकता हूँ क्या?"

"लो.. ये पढ़ो!" कहकर मानव ने 'वो' पन्ना खोल कर डाइयरी रोहन के हाथों में दे दी....

"ये क्या है?" रोहन ने बिना डाइयरी में देखे ही पूचछा...

"अरे यार.. पढ़ो तो सही.. बाद में सब बताता हूँ...." मानव ने मुस्कुराने की कोशिश की.. पर मुस्कुराहट सिर्फ़ उसकी कोशिश में ही रही.. चेहरे पर आ नही पाई...

रोहन ने डाइयरी को सामने रखा और पढ़ने लगा....

" आपकी दुनिया के इस पार की दुनिया अजीब होती है इनस्पेक्टर साहब! हम जिंदा नही होते; पर कयि बार मरते भी नही. आप मुझको महसूस करके बेचैन हो गये हो; पर सच कहूँ तो हम आत्मायें धरती के जिंदा इंसानो से डरती हैं. लालच, हवस, साज़िश, विस्वश्घात; क्या क्या नही होता यहाँ... हुमारी दुनिया आप लोगों से लाख दर्जे बेहतर है...

हम में से ज़्यादातर आपकी दुनिया से दूर ही चैन से रहना चाहते हैं.. मैं भी शायद वापस लौट कर आने की कभी सोचती भी नही.. पर 'अधूरा प्यार' हम में से कुच्छ को मरने के बाद भी अपने प्रियतम से बाँधे रखता है... और हम आपकी और हमारी दुनिया के बीच आधार में ही लटक कर रह जाते हैं....

ये प्यार चीज़ ही ऐसी है इनस्पेक्टर साहब.. ये पानी की तरह तरल भी है और बर्फ से ज़्यादा ठोस भी... ये नाज़ुक भी है और सर्वशक्तिशाली भी.. ताकतवर इतना कि भगवान भी इसके आगे घुटने टेक देता है.. प्यार के कच्चे धागे से बँधे लोगों को मरने के बाद भी भगवान पूरी तरह अपने में समाहित नही कर पाता.. हम जहाँ रहना चाहते हैं; वहीं रहते हैं... और अक्सर अपने प्रियतम के साथ साथ..

नीरू को लिखा वो खत मैने ही लिखा था, ठीक वैसे ही जैसे अभी आपके सामने लिख रही हूँ.. आपको डराना मेरा मकसद नही था.. पर आपको अपनी मौजूदगी का सबूत देना ज़रूरी था.. माफ़ करना!

ज़रूरत पड़ी तो अपने 'अधूरे प्यार' की खातिर फिर आउन्गि!"

रोहन अचरज से काफ़ी देर तक डाइयरी में ही देखता रहा, फिर सिर उठा कर बोला,"ये किसने लिखा?"

"श्रुति आई थी !" मानव ने लंबी साँस लेते हुए जवाब दिया...

................................................

"अभी तक तेरा मूड ऑफ है? अब भूल भी जा!" ऋतु ने अगले दिन भी नीरू को इसी तरह मुँह लटकाए देखा तो उसको समझाने लगी," मेरी ही ग़लती है.. मैं ही तुझे वहाँ ले गयी..."

"अरे वो बात नही है यार... मुझे क्या फ़र्क पड़ता है.. किए की सज़ा तो मिलेगी ही..." नीरू ने मुँह लटकाए हुए कहा...

"तो फिर क्या बात है? चेहरे पर 12 क्यूँ बजे हुए हैं तेरे.." ऋतु ने पूचछा...

"घर वाले मेरी शादी करना चाहते हैं.. परसों आ रहे है मुझे देखने के लिए..." नीरू ने नाराज़गी के अंदाज में अपने होन्ट बाहर निकाल लिए...

"अर्रे वाह.. कॉंग्र्रर्रर..." ऋतु अचरज और गुस्से से उसकी और देख रही नीरू को देखते ही बीच में ही पलटी मार गयी,"...ओह्ह्ह..सॉरी.. ये तो बहुत बुरा हुआ! सच में यार... अब तू क्या करेगी?" ऋतु ने अपने चेहरे पर बनावटी दुख के भाव लाते हुए कहा....

"मेरी तो कुच्छ समझ में नही आ रहा... पापा ने तो सॉफ कह दिया है.. इस बार मेरी नही चलेगी...." नीरू ने बिगड़ते हुए कहा....

"क्यूँ इस बार क्या हो गया? पहले भी तो मान जाते थे वो...!" ऋतु बात को कुरेदते हुए बोली....

"कह रहे हैं कि ये रिश्ता हमें किस्मत से मिला है.. इसको किसी भी हालत में वो हाथ से नही जाने देने वाले.....!" नीरू ने कहा...

"अच्च्छा! ऐसा किसका रिश्ता आया है?" ऋतु ने उत्सुकता से पूचछा...

" वो.. इनस्पेक्टर नही है जो कल वहाँ आया था.. मानव! " नीरू ने मुँह बनाकर कहा....

"ऊऊ..वॉववव..."ऋतु ने इतना ही कहा था की नीरू ने उसको मारने के लिए अपनी किताब उठा ली....

"मेरा ये मतलब नही था यार.. पर घरवालों की बात से भी मैं सहमत हूँ.. क्या कमी है आख़िर उसमें...?" ऋतु कहे बिना ना रह सकी....

"तो तू करले ना शादी... इतना ही पसंद है तो.... मुझे शादी नही करनी तो नही करनी... बस!" नीरू के एक एक शब्द से उसका गुस्सा झलक रहा था....

"हाए.... काश मेरे लिए ऐसा रिश्ता आया होता.. मैं तो फट से हाँ कर देती.." ऋतु ने बत्तीसी निकाल कर कहा और फिर संजीदा हो गयी,"पर तू टालेगी कैसे... परसों आकर वो तुझे 'अपना' लेंगे... फिर इनकार करने पर तो दोनो ही घरों की इन्सल्ट होगी... ऐसा मत करना प्लीज़.. तुझे शादी नही करनी तो पहले ही मना कर देना..."

"वही तो मैं सोच रही हूँ यार... कैसे टलू.. कुच्छ समझ में नही आ रहा....

"एक बात और हो सकती है?" ऋतु ने कुच्छ सोचते हुए कहा...

"वो क्या?" नीरू ने उसको गौर से देखते हुए पूचछा....

" मानव ने हमें कल रोहन के पास देखा था... क्या पता वो खुद ही इस रिश्ते से मना कर दे...?" ऋतु ने दिमाग़ लड़ाते हुए कहा....

"नही... उसको कोई फ़र्क नही पड़ा शायद... कल शाम को फिर आया था घर पर... ये बताने की अब कोई परेशान नही करेगा... मम्मी से बड़ा हंस हंस कर बातें कर रहा था... मेरे तो दिल में आ रहा था कि 'मोगरा' उठा कर उसके सिर में मार दूं.. ना रहेगा बाँस.. और ना बजेगी बंसूरी..." नीरू ने अपना दुखड़ा रोया...

"हे हे हे... आज कल तुझे सिर फोड़ने में बड़ा मज़ा आने लगा है... कल उसका सिर देखा था? मुझे तो बड़ा मज़ा आया.. हे हे हे...." ऋतु ने हंसते हुए कहा...

"तू मेरी बात को सीरीयस क्यूँ नही ले रही....!" नीरू ने गुस्से से कहा...

"ले तो रही हूँ यार... तू ही बता, क्या कर सकते हैं...?" ऋतु ने सीरीयस होकर पूचछा...

"भाग जाउ घर से?" नीरू ने इतनी आसानी से कह दिया मानो ये बच्चों का खेल हो....

"पागल हो गयी है क्या? ये क्या कह रही है तू.. 'भागने' का मतलब पता है तुझे?" ऋतु ने उसकी और घूरते हुए कहा...

"हां.. पता है.. मैं बदनाम हो जाउन्गि... कोई मुझसे शादी नही करेगा.. हमेशा के लिए प्राब्लम सॉल्व्ड..." नीरू ने विस्वास के साथ कहा.....

"कैसी बातें कर रही है यार... अंकल आंटी पर क्या गुज़रेगी.. सोचा भी है...? वो कैसे रहेंगे....? ज़रा सोच! इतनी भी अकल नही है क्या?" ऋतु झल्ला उठी....

"ओह्हो.. मज़ाक कर रही हूँ यार... पर ये भी सच है.. शादी तो मुझे किसी भी सूरत में नही करनी है....परसों तक घर वाले नही माने तो मैं 2-4 हफ्ते के लिए कहीं खिसक जाउन्गि...!" नीरू ने कुच्छ सोचते हुए कहा....

ऋतु इस बात पर कुच्छ कहती.. इस'से पहले ही शिल्पा लगभग दौड़ती हुई उनकी और आई...," कॉनग्रेट्स!!!"

ऋतु और नीरू ने चौंक कर उसको देखा....,"तुम्हे कैसे पता लगा?" ऋतु ने अचरज से पूचछा....

"अरे, मुझे तो सब पता लग गया है.. तुम्हे ही नही पता!" शिल्पा ने उनके पास बैठते हुए खुशी से कहा....

"क्या?" दोनो एक साथ बोल पड़ी....

"रोहन वापस आ गया है... वो बिल्कुल निर्दोष था.. कल रात ही 'उस' इनस्पेक्टर को सारी बात पता चल गयी...." शिल्पा ने बताया...

ऋतु का मन कर रहा था कि शिल्पा को बता दे की नीरू के लिए उसका रिश्ता आया है.. पर नीरू के वहाँ रहते उसकी हिम्मत नही हुई...

"अच्च्छा... पर कैसे?" ऋतु ने पूचछा...

"सारी बात आकर बताउन्गि... अभी मुझे कहीं जाना है.. मेरी प्रॉक्सी लगवा दोगे ना प्लीज़...!" शिल्पा ने मिन्नत सी करी...

"जा जा.. ऐश कर.. आजकल तू गायब बहुत रहने लगी है.. बाद में पूच्हूँगी कि आख़िर राज क्या है...!" ऋतु ने हंसते हुए कहा....

क्रमशः............................

Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--18 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"आज तो बड़ी सी पार्टी होनी चाहिए... क्यूँ?" अमन रोहन और रवि के साथ आज सारा दिन घर पर ही रहा.. शेखर घंटा भर पहले ही यहाँ से निकल कर गया था...

रोहन को छ्चोड़ कर दोनो के चेहरे खिले हुए थे.. हालाँकि सबको विस्वास था कि रोहन बे-कसूर है और जल्द ही वापस आ जाएगा... पर सुबह उनके थाने में जाने से पहले ही रोहन को वापस आया देख तीनो की खुशी का ठिकाना ही नही रहा था... तभी सुबह से ही सभी के चेहरे पर उल्लास सॉफ नज़र आ रहा था....

"काहे की पार्टी यार... बेवजह नीरू के सामने ज़िल्लत का सामना करना पड़ा.. पता नही क्या समझ रही होगी वो? मैं तो श्रुति वाला हादसा उसको बताना ही नही चाह रहा था.. बिना बात किरकिरी हो गयी..." रोहन ने कहा....

"अरे, कुच्छ नही होता.. शेखर ने शिल्पा को फोन करके सब कुच्छ बता दिया था....अब तक तो नीरू को पता लग भी गया होगा की तू बेक़ुसूर है.. पर यार ये तो कमाल ही हो गया.. श्रुति की आत्मा खुद चल कर तुझे बचाने गयी.. इट'स अम्ज़िंग यार!" अमन ने रोहन को निसचिंत करने की कोशिश की...

"अरे बचाना ही नही.. वो तो रोहन और नीरू को मिलवाना भी चाहती है... उसके घर पर भी तो लेटर मिला है.. कमाल हो रहा है यार..." रवि ने उनको बीच में टोका....

"हूंम्म... मुझे तो शाहरुख की उस फिल्म का डाइलॉग याद आ रहा है.. वो क्या है.. ' इतनी शिद्दत से मैने तुम्हे पाने की कोशिश की है, कि जर्रे जर्रे ने हमें मिलाने की साज़िश की है!' सच में यार.. तुमको मिलने के लिए तो जैसे पूरी कयनात ने अपनी ताक़त झोंक दी है... तुम्हे मिलने से अब कोई नही रोक सकता.. बेफ़िकर रहो.." अमन गहरी साँस लेते हुए रोहन की और देख मुस्कुराने लगा...

बात सुनकर रोहन का दिल खुश हो गया और वो भी मुस्कुराने लगा....

"अबे तू क्यूँ इतना खुश हो रहा है... कोशिश तूने नही, टीले पर तुम्हारे इंतजार में तड़प रही भाभी जी के दिल ने की है.. हम'में से किसी ने थोड़ी बहुत की है तो मैने.. ये देखो मेरा सिर.. मुझे तो लगता है, भाभी जी ने पर्मनेंट निशानी दे दी मुझे.. कम ही नही होता.." रवि ने कहा और तीनो हँसने लगे....

--------------------------------------------------------

" ऋतु!" शाम को नीरू ने सीरीयस होकर ऋतु से बात करनी शुरू की.. अगले दिन शाम को दोनो नीरू के घर पर ही थी....

"हुम्म.. बोल!" ऋतु ने कहा...

"अब क्या करूँ यार? मेरा तो दिमाग़ खराब हो रहा है सोच सोच कर.." नीरू ने अपना सिर पकड़ रखा था...

"देख... मैं तो यही कहूँगी की घर वालों की मान लेने में ही भलाई है.. क्या फायडा बेकार में उलझ कर.. जब कुच्छ हो ही नही सकता...!.... और फिर शादी करने में बुराई ही क्या है? मेरी ये समझ में नही आ रहा की तू शादी से इनकार क्यूँ कर रही है.. कोई और पसंद कर रखा है क्या?" ऋतु ने सीरीयस होते हुए कहा...

"तू बकवास क्यूँ कर रही है.. कुच्छ आइडिया है तो बता..!" नीरू ने गुस्से से कहा..," वो कल आ रहे हैं.. और तुझे मज़ाक सूझ रहा है..."

"मज़ाक नही कर रही यार... ठीक ही तो कह रही हूँ.. आख़िर बुराई क्या है शादी करने में.. वो तो सभी करते हैं...!" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा...

"मुझे नही पता.. पर मुझे पक्का पता है कि शादी करते ही मैं मर जाउन्गि.." नीरू ने उदास होकर कहा....

"अच्च्छा! आज तक तो कोई मरा नही... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है.." ऋतु लगातार जिरह कर रही थी...

"मेरा दिल कह रहा है, इसीलिए.. और मुझे पता है ये झूठ नही है.. मरना ही है तो क्यूँ ना शादी से पहले ही मर जाउ?" नीरू ने हताशा के भाव चेहरे पर लाते हुए कहा,"अपने घर में तो मरूँगी...."

"देख.. अब बकवास तू कर रही है... प्लीज़.. ऐसा मत बोल.. कुच्छ नही होगा.. अंकल आंटी तुम्हारा बुरा थोड़े ही चाहते हैं..." मरने की बात पर ऋतु को गुस्सा आ गया...

"ठीक है तो जा! तू भी उन्ही का ही पक्ष ले ले.. मुझे जो करना होगा मैं कर लूँगी..!" नीरू ने कहा और लॅटेकार तकिये के नीचे अपना चेहरा दबा लिया...

ऋतु ने नीरू के पास सरक कर उस'से तकिया छ्चीन लिया," अच्च्छा बोल.. क्या करना है.. मैं तेरे ही साथ हूँ पागल!" ऋतु उसके बालों में हाथ फेरने लगी....

ऋतु की बात सुनकर नीरू खुश होकर बैठ गयी....."देख.. मैं कल से ही मम्मी पापा के पिछे पड़ी हूँ... पर उनके कान पर जू तक नही रैंग रही.. अब तो बस एक ही इलाज है..." कहकर नीरू चुप हो गयी...

"वो क्या?" ऋतु ने संशय से पूचछा....

" गरिमा के पास होस्टल में चली जाउ 2-4 दिन के लिए.. उसको कुच्छ पता भी नही है इस शादी के चक्कर के बारे में.. मैं जाकर मम्मी को फोन भी कर दूँगी कि शादी ना करने का वादा करो तो मैं आ जाउन्गि.... फिर 'ये' आराम से मेरी शादी करने की अपनी ज़िद भी छ्चोड़ देंगे..." नीरू ने कहा....

"तूने अपनी तो सोच ली... उनकी जो बे-इज़्ज़ती होगी वो?" ऋतु ने उसको घूरते हुए कहा....

"तो मैं और क्या कर सकती हूँ यार.. मैने मम्मी से उनका नंबर. लेने की भी कोशिश की.. पर वो मानी ही नही... बता मैं क्या करूँ..." नीरू ने मायूस होकर कहा....

"हूंम्म.. देख, मैं तो सॉफ बता रही हूँ.. मुझे तो तेरा ऐसा करना अच्च्छा नही लगता... कल जो होता है होने दे.. बाद में सोच लेंगे....!" ऋतु ने समझाने की कोशिश की...

"अरे, तुझे पता नही है... वो कल मँगनी के लिए आ रहे हैं.. खाली देख कर जाने की बात होती तो मैं मान लेती.. पर घर वालों का जल्दी शादी करने का प्रोग्राम बन गया है... उन्ही के कहने पर... अब तू खुद ही सोच.. अब ज़्यादा बे-इज़्ज़ती होगी या बाद में...?" नीरू ने ज़ोर देकर पूचछा...

"देख, मैं कुच्छ नही कहती... तुझे जो करना है कर ले!" ऋतु गुम्सुम सी बैठकर कुच्छ सोचने लगी...

"देख! तू मेरा प्लान लीक तो नही करेगी ना?" नीरू ने उसको घूरते हुए पूचछा...

"कुच्छ नही करती मैं.. जो करना है कर ले.. मैं जा रही हूँ.." ऋतु खड़ी होते हुए बोली.. उसके चेहरे पर उदासी और बे'बसी सॉफ झलक रही थी.....

ऋतु को पूरी रात नींद नही आई.. सारी रात करवटें बदलते हुए वह नीरू के इस कदम के होने वाले असर के बारे में ही सोचती रही... केयी बार उसके मंन में आया की फोन करके आंटी जी को सब कुच्छ बता दे.. पर इसके लिए ज़रूरी हिम्मत वह जुटा नही सकी...

सुबह मम्मी उसको उठाने आई तो आते ही बोली," क्या बात है बेटी? तबीयत तो ठीक है?" मम्मी ने माथे पर हाथ लगा कर देखा.. वो तेज बुखार से तप रही थी.. उसकी आँखें लाल थी और चेहरा बोझिल सा लग रहा था....

"ओह्हो.. तुझे भी आज ही बीमार होना था... आज तो नीरू को देखने आने वाले हैं ना? चल चाय के साथ कुच्छ खा ले.. और गोली ले लेना... ठीक हो जाएगी..." मम्मी ने उसको पुच्कार्ते हुए कहा...

ऋतु फफक सी पड़ी... उसने अपना सिर घुटनो में दबा लिया और सिसकने लगी... अब तक तो सारे मोहल्ले को ही पता लग चुका होगा कि आज नीरू की मँगनी है.. अब क्या होगा....

अचानक उसको इस तरह से व्यवहार करते देख मम्मी जी विचलित सी हो गयी," क्या हुआ बेटा! ऐसा क्यूँ कर रही है तू..? कुच्छ बात है क्या?" मम्मी बुरा सा मुँह बनाकर उसके साथ बैठ गयी और उसका चेहरा अपनी छाती से लगा लिया...

"कुच्छ नही मम्मी!" और ऋतु और ज़्यादा तेज़ रोने लगी.....

"आए.. मेरी लाडली! ऐसा क्यूँ कर रही है? कोई बात है तो बता ना.. तू भी मुझसे कुच्छ छुपाती है कभी?" मम्मी अधीर होकर उसको दुलार करने लगी...

"ममियैयीई... वो... नीरू!" ऋतु लगातार मोटे मोटे आँसू गिराती हुई सिसक रही थी.....

"क्या हुआ? फिर से लड़ाई हो गयी क्या..? ले तू चाय ले.." मम्मी ने टेबल से ठंडी हो रही चाय उसको उठाकर दी.....

"वो शादी नही करना चाहती मम्मी... इससलिए घर से जा रही है..." अपने दिल का गुबार निकलते ही ऋतु फुट फुट कर रोने लगी.....

"हाए राम! ये क्या कह रही है तू? घर वाले समझाते क्यूँ नही... अब क्या होगा?" मम्मी के हाथ से चाय का कप छ्छूट'ते छ्छूट'ते बचा...

"उनको नही पता मम्मी... वो बिना बताए जाएगी....." ऋतु ने कहा...

"हे भगवाअन... मैं अभी उनके घर जाती हूँ.. ऐसे कैसे चली जाएगी...?" मम्मी ने एक पल भी गँवाए बिना अपनी चप्पल पहनी और तेज़ी से बाहर निकल गयी...

"उनको ये मत बताना मम्मी.. कि मैने बताया है.. वो बोलेगी नही कभी मुझसे.." ऋतु ने जब तक बात कही.. मम्मी जी बाहर निकल चुकी थी.. पता नही सुना या नही सुना....

---------------------------------------------------

ऋतु की मम्मी ने नीरू के घर की बेल बजाई.. बाहर उसकी मम्मी ही निकल कर आई," आओ बेहन.. हम तो आज बड़ी लेट उठे..." नीरू की मम्मी जी ने मुस्कुरकर उसका स्वागत किया...

"नीरू कहाँ है?" ऋतु की मम्मी ने सीधा यही सवाल किया....

"सो रही है उपर.. क्यूँ?"

"ज़रा बुलाना.. मुझे कुच्छ काम है.. चलो रहने दो.. मैं उपर ही चली जाती हूँ..." ऋतु की मम्मी उनको बात बताए बिना ही नीरू को समझाना चाहती थी....

"अरे क्यूँ परेशान होती हो... आओ चाय पी लो तब तक.. मैं बुलाकर लाती हूँ..." कहते हुए नीरू की मम्मी उपर चली गयी.....

---------------------------------------------

दिन निकलने से पहले ही नीरू घर से बाहर निकल चुकी थी.. जाने क्या बात थी, पर उसका शादी ना करने का दृढ़ निस्चय निसचीत तौर पर नियती द्वारा निर्धारित ही लगता था.. बाहर निकलने से पहले उसके मन में इतनी घबराहट नही थी, जितना वो घर से बाहर कदम रखने के बाद महसूस कर रही थी. ये तो शुक्र था कि उसके सामने एक मंज़िल थी.. अमृतसर का गर्ल'स होस्टल ! वरना क्या हाल होता उसका... कभी घर वालों का ख़याल और कभी उनकी इज़्ज़त का.. उसका मॅन कहीं ना कहीं उसको ऐसा करने से रोक रहा था... पर उसके कदम आगे ही आगे बढ़ते चले गये..

बस-स्टॅंड पर जाकर उसने अनमने मंन से अमृतसर की एक टिकेट खरीदी और बस में बैठ गयी......

--------------------------------------------

"हे भगवान! ये क्या हो गया...? क्या जवाब देंगे हम उनको... इस'से अच्च्छा तो हम उसकी मान ही लेते...." सारी बात का पता लगते ही मम्मी पापा दोनों के पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी.... ऋतु के पापा भी वहीं आ चुके थे... सबके माथे पर चिंता की लकीरें थी....

"मैं गाड़ी लेकर देख कर आता हूँ... " विचलित से पापा ने कहा और बाहर निकल गये....

........................................................

"अंकल जी! कितनी देर में चलेगी बस?" नीरू ने बस में चढ़े कंडक्टर से पूचछा...

"5-7 मिनिट और लगने हैं बेटी बस.. एक बार मिस्त्री क्लच ठीक कर दें.. फिर तो यहाँ से सीधी 5वें गियर में चलनी है...... हे हे" कंडक्टर ने कहा और आगे चला गया.....

----------------------------------------
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Post Reply