वक्त ने बदले रिश्ते ( माँ बनी सास ) complete

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Re: वक्त ने बदले रिश्ते ( माँ बनी सास )

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ज़ाहिद अपने दिल में इस जोरे से रिश्वत लेने का मंसूबा तो बना ही रहा था.

साथ ही साथ उस ने कपड़े पहनती लड़की के जिस्म पर भी अपनी नज़रें जमाए रखी. जो कपड़े पहनते हुए अभी तक आहिस्ता आवाज़ में रोए जा रही थी.

उस लड़की का रंग बहुत गोरा और जिस्म शीशे की तरह सॉफ शफ़फ़ था. उस के कसे हुए गोल गोल मम्मे और उन के उपर हल्के ब्राउन रंग के छोटे छोटे निपल्स थे.

ज़ाहिद ने उस के मम्मों को देखते हुए अपने दिल में अंदाज़ा लगाया कि उस के मम्मों का साइज़ 36सी हो गा.

उस की टाँगे लंबी और गुदाज थीं और उस की फुद्दि से हल्का हल्का पानी निकल कर उस की गुदाज टाँगों के ऊपर बैठा हुआ सॉफ नज़र आ रहा था.

यह मंज़र देख कर ज़ाहिद को अंदाज़ा हो गया कि यह लड़की बहुत ही गरम और प्यासी चीज़ है. और उस (ज़ाहिद) के अचानक छापा मारने की वजह से लड़की के जिस्म की प्यास पूरी तरह नही बुझ पाई.

लड़की का हुश्न और जवानी देख कर ज़ाहिद का लंड उस की पॅंट से बाहर निकल कर उस लड़की की चूत में जाने को मचलने लगा.

तो ज़ाहिद अपने दिल में प्लान बनाने लगा कि वो इन दोनो को थाने लेजा कर पहले लड़के से रिश्वत वसूल कर के उसे छोड़ दे गा. उस के बाद वो इस लड़की की चूत का मज़ा ले कर उसे भी जाने दे गा.

इतनी देर में लड़का और लड़की दोनो अपने अपने कपड़े पहन कर तैयार हुए तो ज़ाहिद ने उन को अपने साथ बाहर चलने को कहा.

“क्या में एक मिनिट के लिए बाथरूम से हो कर आ सकती हूँ” लड़की ने अपनी रोटी हुई आवाज़ में ज़ाहिद से पूछा.

ज़ाहिद: क्यों?

लड़की: में ने बाथरूम से कुछ लेना है.

ज़ाहिद: अच्छा मगर जल्दी करो.

लड़की ज़ाहिद की इजाज़त मिलते ही तेज तेज चलती हुई बाथरूम में घुसी और चन्द मिनट के बाद बाहर आ गई.

ज़ाहिद ने देखा कि बाथरूम से वापसी पर लड़की ने अब बुर्क़ा ओढ़ा हुआ है. जिस के नकाब से उस का मुँह छुप गया था.


उस लड़की को बुर्क़े में देख कर नज़ाने ज़ाहिद को क्यों यह अहसास हुआ. कि उस ने इस लड़की को पहले भी कहीं देखा है. कब और कहाँ इस बात की ज़ाहिद को समझ ना आई.

फिर ज़ाहिद के दिमाग़ में यह ख्याल आया कि बंदे जैसा बंदा होता है और शायद मुझे कोई ग़लत फहमी हो रही है.

इस लिए वो अपने ख्याल को नज़र अंदाज़ करता हुआ उन दोनो को साथ ले कर बाहर खड़ी पोलीस वॅन की तरफ चल पड़ा.

होटेल से बाहर निकल कर जब ज़ाहिद उन दोनो लड़का और लड़की को पोलीस वॅन की तरफ ले जाने लगा. तो उस लड़के ने आगे बढ़ कर ज़ाहिद से एक गाड़ी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा” सर आप ने हमे पोलीस स्टेशन ले कर जाना ही है तो चलिए में आप को अपनी गाड़ी में ले चलता हूँ”.

ज़ाहिद ने गाड़ी की तरफ देखा तो वो एक नये मॉडेल में ब्लॅक कलर की टोयटा कोरोला थी.

गाड़ी को देख कर ज़ाहिद का शक यकीन में बदल गया कि यह एक माल दार असामी है.

ज़ाहिद ने अपने साथी पोलीस वालों को ग्रिफ्तार इस्तियारी मुलज़िम थाने ले जाने को कहा और खुद उस लड़के के साथ गाड़ी की फ्रंट सीट पर आन बैठा.

जब के लेडकी खामोशी से आ कर गाड़ी की पिछली सीट पर बैठ गई.

ज़ाहिद ने लड़के को पोलीस चोकी काला गुजरं झेलम जाने को कहा तो उस लड़के ने गाड़ी को दीना सिटी से निकाल कर झेलम की तरफ मोड़ दिया.

दीना से झेलम के पूरे रास्ते वो लड़का अपनी तरफ से इस बात की पूरी कॉसिश करता रहा कि ज़ाहिद उन दोनो को मियाँ बीवी तसल्ली कर ले.

और साथ ही साथ वो ज़ाहिद की मिन्नत करता रहा. कि वो पैसे ले कर उन दोनो को पोलीस स्टेशन ले जाने की बजाय रास्ते में ही छोड़ दे.

ज़ाहिद ने अपने दिल में पक्का प्लान पहले ही बनाया हुआ था कि वो इन दोनो से रिश्वत ले कर छोड़ तो ज़रूर दे गा. मगर उन को छोड़ने से पहले वो एक बार इस लड़की की गरम फुददी का मज़ा ज़रूर लेना चाहता था.

गाड़ी अभी जीटी रोड पर वाकीया पोलीस चोकी से थोड़ी दूर ही थी. कि ज़ाहिद ने लड़के को गाड़ी एक सड़क पर मोड़ने को कहा. और फिर उसी सड़क के किनारे पर बने हुए एक छोटे से मकान के बाहर ज़ाहिद ने गाड़ी को रुकवा दिया.

जब से ज़ाहिद चोकी इंचार्ज बना था. तब से उस ने यह मकान किराए पर ले रखा था.

क्योंकि वो इस मकान में उन मूल्ज़मो को ले कर बंद करता था. जिन की ग्रिफ्तारी उस ने अभी पोलीस रिपोर्ट में नही डालनी होती.

वो लोगो के साथ रिश्वत की लेन दैन भी इधर करता और कभी कभी किसी गश्ती को इधर ला कर उस को चोद भी लेता था.

जब गाड़ी मकान के बाहर रुकी तो लड़के ने हैरत से ज़ाहिद की तरफ देखा और कहा” यह पोलीस स्टेशन तो नही”.

ज़ाहिद: हां तुम खुद ही कह रहे थे कि तुम लोगों को पोलीस स्टेशन ना ले जाऊं तो में तुम को इधर ले आया. कि इधर बैठ कर बात करते हैं चलो अब अंदर चलो”.

ज़ाहिद ने दरवाज़े का ताला खोला और वो दोनो उस के साथ मकान के अंदर चले आए.

वो मकान एक किचन,बाथरूम और एक बेड रूम पर मुश्तिमल था.

वो तीनो मकान के सहेन से गुज़र कर बेड रूम में चले आए.

उस कमरे के एक तरफ एक सोफा पड़ा हुआ था और दूसरी तरफ एक बड़े साइज़ का पलंग बिछा हुआ था.

जब कि कमरे की तीसरी दीवार के सामने एक छोटा सा टीवी पड़ा हुआ था.

ज़ाहिद ने उन दोनो को सोफे पर बिठाया और खुद उन के सामने पलंग पर जा बैठा.

लड़की को शायद कमरे में गर्मी ज़्यादा महसूस हो रही थी. इस लिए उस ने सोफे पर बैठते साथ ही अपने मुँह से बुर्क़े का नकाब उठा दिया. जिस से उस का चेहरा ज़ाहिद के सामने आ गया.

ज़ाहिद ने पलंग पर बैठ कर दोनो की तरफ देखा.वो दोनो अपनी नज़रें झुकाए बिल्कुल खामोशी से सोफे पर बैठे थे.

ज़ाहिद लड़की के चेहरे की खूबसूरती को देख कर लड़के की किस्मत पर रशक करने लगा. कि बरा किस्मत वाला है जो इस जबर्जस्त गरम जवानी की फुददी का मज़ा ले रहा है.

साथ ही साथ उन दोनो को इस तरह मजबूर अपने सामने बैठा देख कर एक पोलीस वाला होने के बावजूद ज़ाहिद को उन पर तरस आया और उस ने ने पहली बार बड़े नर्म लहजे में उन से पूछा” तुम दोनो के नाम क्या हैं,और सच सच बताना कहाँ से और कितने का लाए हो यह माल”

लड़के ने जब ज़ाहिद को इस तरह अपने साथ नर्म लहजे में बात करते देखा तो शायद उस ने भी थोड़ा सकून की सांस ली और उस ने आहिस्ता से जवाब दिया “ मेरा नाम जमशेद है और मेरी बीवी का नाम नेलोफर है”.

“ यार तुम क्यों बार बार इस बात पर इसरार कर रहे हो कि तुम दोनो मियाँ बीवी हो.अच्छा अगर वाकई ही तुम मियाँ बीवी तो दिखाओ मुझे अपना निकाह नामा” ज़ाहिद ने जमशेद से पोलीस वालों का रवायती सवाल पूछा.

(हर पोलीस वाला जब भी किसी लड़की और लड़के को चुदाई करते या आवारा फिरते पकड़ लेते है तो उन का हमेशा यह ही मुतलबा होता है कि देखाओ निकाह नामा. हाला कि सब लोग जानते हैं कि कोई शादी शुदा जोड़ा कभी अपना निकाह नामा साथ ले कर नही घूमता.. )
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जमशेद: सर आप को पता है कि हमारे पास इस वक्त निकाह नामा नही.

ज़ाहिद: तो फिर यह कैसे साबित हो गा कि तुम लोग मियाँ बीवी हो?.

“अच्छा आप बताएँ कि आप को कैसे मुत्मीन किया जा सकता है” जमशेद ने इंड्र्सेट्ली ज़ाहिद से पूछा कि वो कितने पैसे ले कर उन की जान बक्शी करे गा.

एएसआइ ज़ाहिद जमशेद की बात सुन कर दिल ही दिल में मुश्कुराया क्योंकि वो अब जान गया कि जमशेद अब सही लाइन पर आ गया है और अब उस के लिए उस से सीधे तरह रिश्वत का मुतालबा किया जा सकता है.

“वैसे तो तुम लोग जानते हो कि ज़ना करी का केस हदोद ऑर्डिन्स के ज़ुमरे में आता है. और इस लिए मुझे तुम लोगो के खिलाफ केस रिजिस्टर ना करने का 50000.00 रुपये चाहिए.

ज़ाहिद ने जान बूझ कर पैसे थोड़े ज़्यादा बताए. उस का इरादा था कि 10 से 15 हज़ार रुपये और नीलोफर की चूत ले कर वो उन को जाने दे गा.

जमशेद: सर यह तो बहुत ज़्यादा रकम है,हम इतने पैसे नही दे सकते.

“ अच्छा तो कोई बात नही में अभी मीडीया वालों को खबर कर देता हूँ. कि हम ने छापा मार कर एक जोड़े को चुदाई करते हुए रंगे हाथों पकड़ा है. और फिर थाने ले जा कर तुम्हारे खिलाफ केस रिजिस्टर कर लेता हूँ”ज़ाहिद ने यह कहते हुए अपनी पॉकेट से अपना मोबाइल फोन निकाला और नंबर मिलाने लगा.

“ प्लीज़ ऐसा ना करें मीडीया पर खबर आने से ना सिर्फ़ मेरा घर उजड़ जाए गा बल्कि मेरी और भाई की जिंदगी भी बर्बाद हो जाय गी” जब नीलोफर ने ज़ाहिद को फोन मिलाते देखा तो वो एक दम अपनी जगह से उठी और ज़ाहिद के कदमो में गिर कर उस के पाँव पकड़ लिए.

“ भाईईईईईईईईईई क्या तुम दोनो बेहन भाई हो” नेलोफर की बात सुन कर ज़ाहिद का मुँह हैरत और गुस्से से खुला का खुला रह गया..और उस के फोन उस के हाथ से फिसल कर फर्श पर जा गिरा और गिरते ही टूट गया.

नीलोफर को फॉरन ही अपनी ग़लती का अहसास हो गया. मगर अब किया हो सकता था.क्योंकि “तीर तो कमान“से निकल चुका था.

कमरे में बिल्कुल एक सन्नाटा सा छा गया.

ज़ाहिद हैरत जदा और गुस्से की हालत में कभी जमशेद को देखता और कभी अपने कदमो में बैठी नेलोफर पर अपनी नज़रें जमा लेता.

जब कि जमशेद और नीलोफर दोनो “गुम सुम” एक बुत की तरह बे जान हो कर बैठे हुए थे. और उन को समझ में नही आ रहा था कि बोलें भी तो क्या बोलें.

थोड़ी देर बाद ज़ाहिद ने थोड़ा झुक कर नेलोफर को उस के कंधो से पकड़ कर उठाया और उस को अपने साथ पलंग पर बैठा लिया.

यूँ खुद अपने मुँह से ही अपना इतना बड़ा राज़ अफ्शान हो जाने पर नेलोफर पर एक कप कपि सी तरी हो गई थी. और घबराहट के मारे उस का बदन काँपने लगा था.

ज़ाहिद के साथ वो एक पलंग पर बैठ तो गई मगर शरम के मारे उस का जिस्म पसीने पसीने होने लगा था.

दूसरी तरफ ज़ाहिद अपनी ही सोचों में गुम था. उस ने अपनी अब तक की पोलीस सर्विस में ज़ना और चुदाई के काफ़ी केस देखे और सुने थे. मगर एक बेहन भाई की चुदाई का यह पहला केस था जो उस के सामने आया था.

इस बारे में सोचते हुए ज़ाहिद की आँखों के सामने वो मंज़र दौड़ने लगा . जब उस ने होटेल के कमरे का दरवाज़ा खोल कर अपनी आँखों के सामने एक बेहन को अपने भाई के लंड कर उपर बैठ कर मज़े से चुदवाते देखा था.यह मंज़र याद आते ही ज़ाहिद के बदन में एक अजीब सी मस्ती छाने लगाई.

ज़ाहिद ने इस से पहले भी कई दफ़ा लोगो को गश्तियो को चोदते रंगे हाथों पकड़ा था.

मगर अब यह पता चलने के बाद कि आज जिस लड़के,लड़की को उस ने चुदाई करते हुए पकड़ा है .वो एक आम कपल नही बल्कि सगे बेहन भाई हैं.

तो यह बात जानते हुए भी कि बेहन भाई का इस तरह आपस में जिस्मानी ताल्लुक़ात कायम करना एक बहुत बड़ा गुनाह है.

ना जाने क्यों ज़ाहिद के दिमाग़ में सेक्स का नशा चढ़ने लगा. जिस की वजह से उस का लंड उस की पॅंट में हिलने लगा.

और गुस्से का जो आलम एक लम्हा पहले उस पर तरी हुआ था. अब उस में भी कमी आने लगी थी.

“तुम लोगो को पता है ना कि यह जो कुछ तुम दोनो ने आपस में किया है वो काम निहायत ही ग़लत है” ज़ाहिद ने जमशेद और नेलोफर की तरफ देखते हुए उन से सवाल किया.

“जी हम जानते हैं कि ना सिर्फ़ यह काम ग़लत है बल्कि गुनाह भी है” जमशेद ने आशिता से जवाब दिया.

“जब सब जानते हो तो फिर क्यों और कब से कर रहे हो यह सब कुछ” ज़ाहिद ने फिर पूछा.

दोनो बेहन भाई ने इस बार कोई जवाब ना दिया और खामोश सिर झुका बैठे रहे.

“जवाब दो में तुम लोगों की इस हरकत की वजह जानना चाहता हूँ ” ज़ाहिद ने दुबारा थोड़े सख़्त लहजे में पूछा.

जमशेद और निलफोर दोनो ने इस बार भी ज़ाहिद के सवाल का जवाब नही दिया और अपना अपना मुँह बंद ही रखा.

ज़ाहिद के दिल में उत्सुकता थी कि वो यह जान सके कि आख़िर वो कौन सी वजह थी. जिस की खातिर दोनो बेहन भाई आपस में चुदाई करने पर मजबूर हुए थे.

इस लिए जब उस ने देखा कि वो उस के सवालो का जवाब नही दे रहे तो उस ने उन को एक ऑफर देने का सोचा.

ज़ाहिद: अच्छा अगर तुम लोग मुझे अपने बारे में सब कुछ सच सच बता दो गे तो में वादा करता हूँ कि में तुम लोगो से बहुत ही मामूली ही रिश्वत ले कर तुम दोनो को जाने दूं गा.

ज़ाहिद की ऑफर सुन कर दोनो बेहन भाई ने सर उठा कर एक दूसरे की आँखों में आँखे डाल कर देखा.

जैसे वो आँखों ही आँखों में एक दूसरे से पूछ रहे हों कि ज़ाहिद को अपनी कहानी सुना दी जाय या नही.

जमशेद ने थोड़ी देर बाद अपनी बेहन की आँखों में देखने के बाद हां में अपना सर हिलाया तो फिर नीलोफर ने आहिस्ता आवाज़ में अपनी कहानी ज़ाहिद को सुनानी शुरू कर दी.

नेलोफर ने बताया कि उन का ताल्लुक झेलम से ही है. उस की शादी 2 साल पहले हुई. शादी के वक्त उस की उमर 24 साल थी.

उस का शोहर मसकॅट ओमान में जॉब करता है. शादी के बाद उस का शोहर एक महीना उस के साथ रहा और फिर अपनी जॉब के सिलसिले में वो वापिस मसकॅट चला गया.

उस का शोहर साल में एक दफ़ा एक महीने के लिए पाकिस्तान आता है. और छुट्टी गुज़ार कर फिर वापिस चला जाता है.

जब कि वो अपने बूढ़े सास और सुसर के साथ प्रोफेसर कॉलोनी झेलम में रहती है.इतना बता कर नेलोफर खामोश हो गई.

“ में ने तुम से कहा था कि पूरी बात बताओ, तुम ने आधी बात तो बता दी मगर अपना और अपने भाई के अफेर की बात गुल कर गई हो क्यों” ज़ाहिद ने नेलोफर को उस की बात ख़तम होने के बाद कहा.

“आप से इल्तिजा है कि आप इस बात को मज़ीद मत कुरेदिये और हमे जाने दो आप की बड़ी मेहरबानी हो गी” नेलोफर ने ज़ाहिद की मिन्नत करते हुए कहा.

“में ने वादा तो किया है कि तुम दोनो को जाने दूं गा मगर पूरी कहानी सुनने के बाद,अब बताओ कि अपने ही भाई के साथ क्यों और कैसे चक्कर चलाया तुम ने” ज़ाहिद अब एक बेहन की ज़ुबानी अपने ही भाई के साथ उस के इश्क की दास्तान सुन कर चस्का लेने के मूड में था.

जब नेलोफर ने महसूस किया कि यह बे गैरत पोलीस वाला इस तरह उन की जान नही छोड़े गा तो उस को “चारो ना चार” अपनी कहानी मज़ीद सुनानी ही पड़ी.
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नेलोफर ने हिचकिचाते हुए आहिस्ता आहिस्ता अपनी बात दुबारा शुरू की.

“इंसेपकटेर साब बात यह है कि यह जवानी बड़ी ज़ालिम चीज़ है. आप को पता है कि हमारी जाति में एक लड़की को ज़्यादा तर शादी के बाद ही मियाँ बीवी के “ इज़दवाजी” (सेक्स) ताल्लुक़ात का पता चलता है”. इतना कह कर नेलोफर की ज़ुबान जैसे लड़ खदाने लगी और वो रुक गई. सॉफ पता चल रहा था कि शरम के मारे उस की ज़ुबान उस का साथ नही दे रही थी.

नेलोफर ने अपनी बात को रोक कर ज़ाहिद और अपने भाई जमशेद की तरफ देखा.तो उस ने उन दोनो को अपनी तरफ ही देखते पाया.

उन से नज़रें मिलते ही नेलोफर ने अपने माथे पर आते हुए पसीने को हाथ से साफ किया और अपने मुँह में आते हुए थूक को निगल कर अपनी बात अहिस्ता से दुबारा स्टार्ट की.

जब मेरी शादी के एक महीने बाद मेरा शोहर मुझे छोड़ कर चला गया तो मेरे लिए अपने शोहर के बगैर रहना बहुत मुस्किल हो गया.

दिन तो घर के काम काज में गुज़र जाता मगर रात को अपने बिस्तर पर अकेली लेटती तो अपना बिस्तर ही मुझे काटने को दौड़ता. मगर में जैसे तैसे कर के अपने शोहर से दूरी का सदमा बर्दाश्त करने लगी.

इस दौरान मुझे मोहल्ले के लड़कों और कुछ अपने क़जन्स ने भी दोस्ती की ऑफर्स कीं. मगर आप तो जानते है कि हमारे मज़हब में अगर किसी लड़की का चक्कर किसी लड़के से स्टार्ट हो जाय. तो इस किस्म की बात ज़्यादा देर तक लोगों से छुप नही सकती.

इसी डर से में ने किसी और तरफ ध्यान नही दिया और अपनी जवानी की प्यास को अपने अंदर ही अंदर कंट्रोल करने की कोशिस करती रही.

इस तरह मेरी शादी को तकरीबन एक साल होने को था कि ईद-उल-फितर (छोटी) ईद आ गई.

में शादी के बाद अपनी पहली ईद मनाने अपने मेके आई.तो मेरे अम्मी अब्बू और भाई जमशेद सब मेरे आने पर बहुत खुश हुए.

फिर चाँद रात को में अपने हाथों में मेहन्दी और चूड़ियाँ चढ़वाने मोटर साइकल पर भाई के साथ बाज़ार गई.

चूड़ी की दुकान पर बहुत रश था और रश की वजह से औरते और मर्द सब एक दूसरे में घुसे जा रहे थे.

में अपने हाथों में चूड़ियाँ चढ़वाने में मसरूफ़ थी. कि इतने में एक ज़ोर दार धक्का पड़ा और मेरे बिल्कुल पीछे खड़े मेरे भाई का बदन पीछे से मेरे जिस्म के साथ चिपकता चला गया.

ज़ोर दार धक्का लगने से मेरा हाथ सामने पड़े दुकान के शो केस से टकराया. जिस की वजह से मेने जो चूड़ियाँ अभी तक चढ़वाई थी वो एक दम से टूट गईं.

भाई ने गिरते हुए अपने आप को संभालने की कॉसिश की. जिस की वजह से उस का एक हाथ मेरे दाएँ कंधे पर पड़ा जब कि उस का बाया हाथ बे इख्तियारी में मेरी बाईं छाती पर आन पड़ा.

चूँकि गर्मी की वजह से में ने लवन और भाई जमशेद ने कॉटन के पतले शलवार कमीज़ मलबूस-ए-तन ( पहने हुए ) किए हुए थे.

यह शायद हमारे पतले शलवार कमीज़ की मेहरबानी थी.कि भाई का यूँ मेरे साथ चिपटने से जिंदगी में पहली बार मेरे भाई का मर्दाना हिस्सा (लंड) बगैर किसी रुकावट के मुझे अपने जिस्म के पिछले मकसूस हिस्से (गान्ड) में चुभता हुआ महसूस हुआ.और उस का सख़्त और गरम औज़ार (लंड) मुझे अपनी मौजूदगी का अहसास दिला गया.

(नीलोफर अपनी कहानी बयान करते वक्त पूरी कॉसिश कर रही थी.कि जहाँ तक मुमकिन हो वो अपनी ज़ुबान से कोई गंदा लफ़्ज अदा ना करे. इसी लिए लंड और गान्ड का ज़िक्र भी वो ढके छुपे इलफ़ाज़ में कर रही थी)

जमशेद भाई को ज्यों ही अहसास हुआ कि इस धक्के की वजह से अंजाने में उस के हाथ और जिस्म मेरे जिस्म के उन हिस्सो से टकरा गये हैं. जो एक भाई के लिए शजरे ममनुआ ( ग़लत ) हैं. तो वो शर्मिंदगी की आलम में मुझे सॉरी करता हुआ दुकान से बाहर निकल गया.

इस वाकये के वक्त तक मेरी शादी के बाद मेरे शोहर को मुझ से दूर गये एक साल बीत चुका था.

और इस एक साल में यह पहला मोका था. जब किसी मर्द ने मेरे जिस्म के नज़ाक हिस्सो को इस तरह छुआ था. और वो मर्द कोई गैर नही बल्कि मेरा अपना सगा भाई था.

यूँ तो मेरे भाई का मुझ से यूँ टकराने का दौरानिया बहुत ही मुक्तिसार था.

लेकिन इस एक लम्हे ने भाई के जिस्म में क्या तब्दीली पेदा की मुझे उस का उस वक्त तो अंदाज़ा ना हुआ.

मगर भाई के मुझे इस तरह छूने से मेरे तन बदन में भाई की इस हरकत का शदीद असर हुआ. और मेरे जवान जिस्म के सोए हुए अरमान जाग उठे.

मुझे अपने बदन मे एक सर्द सी आग लगती हुई महसूस हुई. और मुझे यूँ लगा कि मेरे जिस्म के निचले हिस्से में से कोई चीज़ निकल कर मेरी शलवार को गीला कर गई है.

जमशेद भाई के दुकान से बाहर निकल जाने के बाद में ने दुबारा अपनी तवज्जो मुझे चूड़ी पहनाने वाले सेल्स मॅन की तरफ की. तो में ने नोट किया कि सेल्स मॅन के होंटो पर हल्की सी मुस्कराहट थी.

“बाजी शायद आप को अभी अंदाज़ा नही कि चाँद रात के इस रश में इस किस्म के आवारा लड़के ऐसी हरकतां करते हैं” सेल्स मॅन ने मुझे हल्की आवाज़ में बताया.

उस ने शायद मेरे भाई का हाथ और जिस्म मेरे बदन से टकराते हुए देख लिया था. मगर उस को यह अंदाज़ा नही हुआ कि जिस को वो एक आवारा किस्म का लड़का समझ रहा था. वो कोई और नही बल्कि मेरा अपना सगा भाई है.

जब मुझे पता चला कि सेल्स मॅन ने सब कुछ देख लिया है तो में बहुत शर्मिंदगी महसूस करने लगी. और में ने मज़ीद चूड़ियाँ नही चढ़वाई और सिर्फ़ वो चूड़ीयाँ जो मेरे हाथ में पहनाने के बाद टूट गईं थी.में ने उन की पेमेंट की और जल्दी से दुकान से बाहर निकल आई.

दुकान के बाहर मेरा भाई अपनी मोटर साइकल पर गुम सूम बैठा हुआ था.

उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझ में अपने भाई का सामना करने की हिम्मत ना थी.

में खामोशी से अपनी नज़रें झुकाए हुए आई और आ कर भाई के पीछे उस की मोटर साइकल पर बैठ गई.

ज्यों ही भाई ने मुझे अपने पीछे बैठा हुआ महसूस किया उस ने भी मुझे देखे बगैर अपनी मोटर साइकल को स्टार्ट करने के लिए किक लगाई और मुझे ले कर घर वापिस चला आया.

रास्ते भर हम दोनो में कोई बात ना हुई और थोड़ी देर में हम अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच गये.

ज्यों ही भाई ने घर के बाहर मोटर साइकल रोकी तो में उतर कर घर का दरवाज़ा खोलने लगी. तो शायद उस वक्त तक भाई की नज़र मेरी चूड़ियों से खाली हाथों पर पड़ चुकी थी.

“बाजी आप ने चूड़ियाँ क्यों नही चढ़वाई” जमशेद ने मेरे खाली हाथो की तरफ देखते हुए पूछा.

“वो असल में जो चूड़ियाँ में ने पहनी थीं. वो धक्के की वजह से मेरी कलाई में ही टूट गईं तो फिर इस ख्याल से कि तुम को शायद देर ना हो रही हो में बिना चूड़ियाँ के ही वापिस चली आई” में ने बिना उस की तरफ देखे उस को जवाब दिया.

“अच्छा बाजी आप चलो में थोड़ी देर में वापिस आता हूँ” यह कहते हुए जमशेद मुझे दरवाज़े पर ही छोड़ कर अपनी मोटर साइकल पर कही चला गया.

में अंदर आई तो देखा कि रात काफ़ी होने की वजह से अम्मी अब्बू अपने कमरी में जा कर सो चुके थे.

में अपने शादी से पहले वाले अपने कमरे में आ कर बैठ गई.

दुकान में पेश आने वाले वाकये की वजह से मेरी साँसे अभी तक सम्भल नही पाईं थीं.

कुछ ही देर बाद मुझे मोटर साइकल की आवाज़ सुन कर अंदाज़ा हो गया कि भाई घर वापिस आ चुका है.

रात काफ़ी हो चुकी थी और इस लिए में अभी सोने के मुतलक सोच ही रही थी कि जमशेद भाई मेरे कमरे में दाखिल हुआ.

उस के हाथ में एक प्लास्टिक का शॉपिंग बॅग था. जो उस ने मेरे करीब आ कर बेड पर रख दिया और खुद भी मेरे साथ मेरे बिस्तर पर आन बैठा.

अब मुझे भाई के साथ इस तरह एक ही बिस्तर पर बैठने से शरम के साथ साथ एक उलझन भी होने लगी. और इस वजह से में भाई के साथ आँख से आँख नही मिला पा रही थी.
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कमरे में एक पूर सरार खामोशी थी और ऐसा लग रहा था कि वक्त जैसे थम सा गया हो.

जब भाई ने देखा कि में अपने पहलू में रखे हुए शॉपिंग बॅग की तरह ना तो नज़र उठा कर देख रही हूँ और ना ही उस के मुतलक कुछ पूछ रही हूँ.

तो थोड़ी देर बाद भाई ने वो मेरे पास से वो बैग उठाया और वो ही चूड़ियाँ जो कि में दुकान में चढ़वा रही थी.वो बैग से निकाल कर मेरी गोद में रख दीं और बोला” बाजी में आप की चूड़ियाँ दुबारा ले आया हूँ”

में ने उस की बात सुन कर अपनी नज़रें उठा और पहले अपनी गोद में रखी हुई चूड़ियों की तरफ और फिर भाई की तरफ देखा और बोली “रहने देते तुम ने क्यों तकलीफ़ की”

“तकलीफ़ की क्या बात है बाजी , आप को यह ही चूड़ियाँ पसंद थीं सो में ले आया” भाई ने मेरी बात का जवाब दिया.

भाई की बात और लहजे से यह अहसास हो रहा था.कि वो दुकान वाली बात को नज़र अंदाज़ कर के एक अच्छे भाई की तरह मेरा ख्याल रख रहा है.

जमशेद भाई का यह रवईया देख कर मेरी हालत भी नॉर्मल होने लगी और मेरे दिल में भी अपने भाई के लिए एक बेहन वाला प्यार उमड़ आया.


“अच्छा रात काफ़ी हो चुकी है इस लिए तुम जा कर सो जाओ में सुबह चूड़ीयाँ अम्मी से चढ़वा लूँ गी. “में ने भाई की लाई हुई चूड़ियों को बेड की साइड टेबल पर रखते हुए कहा.

“ईद सुबह है और चाँद रात आज, और आप मुझ से बेहतर जानती हैं कि चूड़ियाँ चाँद रात को ही चढ़वाई जाती हैं,लाइए में आप के हाथों में चूड़ीयाँ चढ़ा देता हूँ”. इस से पहले कि में उस को रोक पाती. जमशेद ने एक दम मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और टेबल पर पड़ी चूड़ीयाँ को मेरे हाथ में चढ़ाने लगा.

अपने नर्मो नाज़ुक हाथ अपने भाई के मज़बूत हाथों में महसूस कर के मेरी वो साँसे जो अभी कुछ देर पहले ही ब मुश्किल संभली थी वो दुबारा तेज होने लगीं.

मुझे ज्यों ही अपनी इस बदलती हुई हालत का अहसास हुआ .तो में ने भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कॉसिश की.

“रहने दो भाई में सुबह अम्मी से चूड़ीयाँ चढ़वा लूँगी” यह कहते हुए में ने ज्यों ही भाई के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. तो मेरे हाथ की उंगलियो के उपर आती हुई चूड़ियों में से एक चूड़ी टूट गई.जिस की वजह से मेरी एक उंगली ज़ख़्मी हो गई और उस में से खून निकलने लगा.

जमशेद भाई ने जब मेरी उंगली से खून निकलता देखा तो वो एक दम घबडा गया. और उस ने खून को रोकने के लिए बे इक्तियार में मेरी उंगली को अपने मुँह में डाला और मेरी उंगली से बैठे हुए खून को चूसना शुरू कर दिया.

मेरे भाई की इस हरकत ने मेरी जवानी के उन जज़्बात को जिन्हे में ने अपने शोहर के जाने के बाद बहुत सबर और मुस्किल से सुलाया था. उन को एक दम से भड़का दिया और मेरे सबर का पैमाना लब्राइज़ होने लगा.

सर से ले कर पैर तक मेरे जिस्म में एक करंट का दौड़ गया. और में कॉसिश के बाजूद अपने आप को रोक ना पाई.

मुझे अपने भाई के मुँह और होंठो की गर्मी और लज़्जत ने बे चैन कर दिया. और इस बेचैनी के मारे मेरी सांसो में एक हल चल मची और मेरे मुँह से एक “सिसकी” सी निकल गई.

बे शक मेरे भाई की अभी शादी नही हुई थी. मगर इस के बावजूद वो शायद एक माहिर खिलाड़ी था. जो यह जानता था कि जब किसी औरत के मुँह से इस किस्म की सिसकारी निकलती है तो उस का क्या मतलब होता है.

इसी लिए मेरे मुँह से सिसकारी निकलने की देर थी. कि मेरे भाई जमशेद ने मेरी आँखों में बहुत गौर से झाँका और इस से पहले के में कुछ समझती. मेरे भाई ने एक दम मुझे अपनी बाहों में भर लिया.

भाई की इस हरकत से में अपना तवज्जो खो बैठी और बिस्तर पर कमर के बल गिरती चली गई.

मेरे यूँ बिस्तर पर गिरते ही जमशेद भाई मेरे जिस्म के उपर आया और उस के होन्ट मेरे होंठो पर आ कर जम गये.

साथ ही साथ उस का एक हाथ मेरी शलवार के ऊपर से मेरी टाँगो के दरमियाँ आया और मेरे जिस्म के निचले हिस्से को अपने काबू में कर लिया.

में ने अपनी भाई को अपने आप से अलहदा करने की कोशिश की.मगर वो मुझ से ज़्यादा ज़ोर अवर था.

अपने शोहर से दूरी की सुलगती हुई आग को दुकान में मेरे भाई के हाथ और जिस्म ने भड़का तो दिया ही था. अब उस आग को शोले की शकल देने में अगर कोई कसर रह गई थी. तो वो मेरे भाई के प्यासे होंठो और उस के मेरे जिस्म के निचले हिस्से हो मसल्ने वाले हाथ ने पूरी कर दी थी.

में बेहन होने के साथ आख़िर थी तो एक जवान प्यासी औरत.

और जब रात की तरीकी में मेरे अपने घर में मेरे अपने ही भाई ने मेरे जिस्म के नाज़ुक हिस्सो के तार छेड़ दिए. तो फिर मेरे ना चाहने के बावजूद मेरा जिस्म मेरा हाथ से निकलता चला गया.

मुझे होश उस वक्त आया. जब मेरा भाई अपनी हवस की दास्तान मेरे जिस्म के अंदर ही रख कर के पसीने से शरा बोर मेरे पहलू में पड़ा गहरी साँसे ले रहा था.

होश आने पर जब हमे अहसास हुआ कि जवानी के जज़्बात में बह कर हम दोनो कितनी दूर निकल चुके हैं. तो हमारे लिए एक दूसरे से आँख मिलाना भी मुस्किल हो गया.

में अपने इस गुनाह से इतनी शर्मिंदा हुई कि बिस्तर पर करवट बदलते ही में फूट फूट कर रोने लगी.

जमशेद भाई ने जब मुझे यूँ रोते देखा तो वो खामोशी से अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकल गया.

दूसरे दिन ईद थी और ईद अम्मी अब्बू के घर गुज़ार कर में वापिस अपने सुसराल चली आई.

इस बात को एक हफ़्ता गुज़र गया और इस दौरान में ने अपने भाई से किसी किस्म का रबता ना रखा.
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Re: वक्त ने बदले रिश्ते ( माँ बनी सास )

Post by rajaarkey »

हफ्ते बाद मेरे सास और सुसर को अपने बड़े बेटे के घर सियालकोट जाना था. उन का प्रोग्राम था कि वो दो दिन उधर सायालकोट में ठहरेंगे.

उन की गैर मजूदगी में में घर पर अकेली रह गई.

में ने अपने अब्बू से कहा कि आप मेरे पास रहने के लिए आ जाए. मगर अब्बू ने खुद आने की बाजिय मेरे भाई को मेरे पास रहने के लिए भेज दिया.

फिर इस बात के बावजूद के अपनी अपनी जगा हम दोनो अपनी चाँद रात वाली “ख़ाता” पर शरम सार और रंजीदा थे.

मगर जब एक हफ्ते बाद हम दोनो का फिर आमना सामना हुआ. तो हम दोनो ही एक दूसरे को रोक ना पाए और जज़्बात की रूह में बहक कर फिर दुबारा पहले वाली ग़लती दुहरा बैठे.

चाँद रात के एक वाकीया ने हम दोनो बेहन भाई की जिंदगी बदल कर रख दी है.

अब वो दिन और आज का दिन में ने इतना टाइम अपने शोहर के साथ नही गुज़ारा जितना अपने ही भाई के साथ गुज़ार चुकी हूँ.

इस से पहले हम लोग ज़्यादा तर अपनी मुलाकात अम्मी के घर या फिर मोका मिलने पर मेरे घर ही करते हैं.

अब पिछली चन्द दिनो से मेरी नंद और उस के बच्चे हमारे घर आए हुए हैं. जब कि मेरे अम्मी अब्बू भी ज़्यादा तर घर ही रहते हैं. जिस वजह से हमे आपस में कुछ करने का चान्स नही मिल रहा था.

आज मुझे ना चाहते हुए भी अपने भाई के बहुत इसरार पर इस मनहूस होटेल में पहली बार आना पड़ा और यूँ हम लोग आप के हत्थे चढ़ गये.

अपनी सारी कहानी पूरी तफ़सील से बयान करने के बाद नीलोफर खामोश हो गई.

ज़ाहिद अपने सामने बैठे बेहन भाई के चेहरों का बगौर जायज़ा ले रहा था. और उस के दिमाग़ में नेलोफर की कही हुई आखरी बात बार बार घूम रही थी.

कि उस ने इतना टाइम अपने शोहर के साथ नही गुज़ारा जितना उस ने अपने भाई के साथ गुज़ारा है.

नेलोफर की यह बात याद कर के ज़ाहिद को बहादुर शाह ज़फ़र का लिखा हुआ एक शेर याद आ गया कि,


“में ख्याल हूँ किसी और का
मुझे सोचता कोई और है”


मगर अब नेलोफर की सारी कहनी सुन कर ज़ाहिद को यूँ लगा. कि अगर नेलोफर इसी किस्म का कोई शेर अपने मुतलक कहे गी तो वो शायद कुछ यूँ हो गा कि,

“में चूत हूँ किसी और की
मुझे चोदता कोई और है”


“ अच्छा अगर में तुम को बगैर कोई रिश्वत लिए जाने दूं तो तुम लोग खुश हो गे ना?.” ज़ाहिद ने उन दोनो की तरफ़ देख कर उन से सवाल पूछा.

“क्यों नही सर,हम तो आप के बहुत शूकर गुज़ार हूँ जी” जमशेद फॉरन बोला.

नीलोफर और जमशेद दोनो को ज़ाहिद से इस बात की तवक्को नही थी. इस लिए वो उस की बात सुन कर बहुत खुश हुए.

“तो ठीक है मुझे तुम से रिश्वत नही चाहिए,मगर जाने से पहले तुम को मेरी एक फरमाइश पूरी करनी हो गी” ज़ाहिद दोनो बेहन भाई की तरफ देखते हुए बोला.




“ठीक है सर हम आप की हर फरमाइश पूरी करने के लिए तैयार हैं” जमशेद ने बिना सोचे समझे जल्दी से जवाब दिया.

जमशेद की कॉसिश थी कि जितनी जल्दी हो वो अपनी और अपनी बेहन की जान इस खबीस पोलीस वाले से छुड़वा ले.

“ वैसे तो में ने तुम दोनो को चुदाई करते हुए रंगे हाथों पकड़ा है.मगर मुझे उस वक्त यह पता नही था कि तुम दोनो का आपस में क्या रिश्ता है. अब जब कि में सारी बात जान चुका हूँ.

तो मेरी ख्वाइश है कि में अपनी आँखों के सामने एक सगे भाई को अपनी बेहन चोदते देखूं”. ज़ाहिद ने उन के सामने अपनी गंदी ख्वाइश का इज़हार करते हुए कहा.

नीलोफर और जमशेद उस की फरमाइश सुन कर हैरत से दंग रह गये.




सब से छुप कर अपने घर या होटल के कमरे में दोनो बेहन भाई की आपस में चुदाई करना एक बात थी. मगर किसी गैर मर्द के सामने अपनी ही बेहन को नंगा कर के चोदना बिल्कुल अलग मामला था. और इस बात का जमशेद में होसला नही था.

“यह किस किस्म की फरमाइश है आप की, आप को हमारी जान छोड़ने के जितने पैसे चाहिए वो में देने को तैयार हूँ मगर यह काम हम से नही हो गा”. जमशेद ने सख़्त लहजे में जवाब दिया.

“बहन चोद वैसे तो तू हर रोज अपनी ही बेहन को चोदता है और अब मेरे सामने ऐसा करने में तुझे शरम आती है.मेरे बाथरूम से वापिस आने तक तुम दोनो को एक्शन में होना चाहिए. वरना वापिस आते ही में तुम दोनो को गोली मार कर जहली पोलीस इनकाउंटर शो कर दूं गा”. ज़ाहिद को जब अपनी ख्वाहिश पूरी होती नज़र ना आई.तो उस ने अपनी पिस्टल को निकाल कर गुसे में कहा और उठ कर कमरे के साथ बने बाथरूम में चला गया.

ज़ाहिद के बाथरूम जाते ही जमशेद तेज़ी से उठा और बिस्तर पर बैठी अपनी बेहन के पास आन बैठा.

दोनो बेहन भाई सख़्त घबराए हुए थे.उन की समझ में नही आ रहा था कि इस मुसीबत से कैसे निजात हासिल करें.

नीलोफर: भाई अब क्या हो गा.

जमशेद: बाजी में ने तो पूरी कॉसिश कर ली कि इस हराम के पिल्ले को पैसे दे कर जान छुड़ा लें मगर यह कमीना मान ही नही रहा.

नीलोफर: तो फिर इस मसले का हल किया है.

जमशेद: बाजी अब लगता है कि ना चाहते हुए भी इस खबीस की बात मानना ही पड़े गी.यह कहते हुए जमशेद ने बिस्तर पर बैठी हुई अपनी बेहन को अपने बाज़ुओं में लिया और उस के होंटो पर अपने होंठ रख कर उन्हे चूसने लगा.


“रूको भाई मुझे शरम आ रही है, मुझ से यह सब इधर नही हो गा ” नीलोफर ने अपने होंटो को अपने भाई के होंटो से अलग करते हुए कहा.

“बाजी अब अगर हम ने अपनी इज़्ज़त और जान बचानी है तो फिर हमें उस पुलिस वाले की ख्वाहिश को पूरा करना ही पड़े गा”. यह कहते हुए जमशेद ने दुबारा अपने होंठ अपनी बेहन के नरम और लज़्ज़ीज़ होंठो पर रखे और उन का रस पीने लगा.
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