कठपुतली -हिन्दी नॉवल complete

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Jemsbond
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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बिनम्र ने एक बार फिर सफाई देनै के दिए मुह खोला मगर इससे पहले कि उसकी कोई आवाज निकल पाती दूसरी तरफ ने रिसीवर पटक दिया गया । उसके कैडिल पर पटके जाने की अानाज 'धमाका’ बनकर विनम्र के कानों के पर्दे से टकराई थी । जहां का तहां खड़ा रह गया ।।


काफी देर तक सूझा ही नहीं क्या करे----क्या न करें?


फिर अचानक ।


उसे होश-अाया ।


दिमाग में ख्याल उभरा------कौन है रुम नम्बर दो सौ छः में?


कौन है वह जिसकी बजह से ब्लैक मेलर के चंगुल से निकलता-निकलता रह गया?



जिसे ब्लैक मेलर उसका साथी समझ रहा था ।।


देखना तो चाहिये ।


ऐसा सोचकर उसने मोबाईल आँफ किया ।


जेब में डाला ।



नजर दरवाजे की तरफ उठाई ही थी कि रोंगटे खड़े हो गए ।



सारे शरीर में सनसनी-सी दौड गई ।

उसने महसूस किया था-------" की होल से सटी एक आंख उसे घूर रही ।

एक पल को तो विनम्र सकपका ही गया ।। अगले पल हलक से गुर्राहट निकली---" कौन है?"
आंख फौरन 'की-होल' से गायब हो गई ।।


कदमो की आवाज आई ।।


जैसे कोई भागा हो ।।


बिनम्र तेजी से दरवाजे की तरफ लपका ।



एक झटके से उसे खोलकर गेलरी में पहुंचा ।


दोड़ती हुई परछाई-सी दो सै छ: में दाखिल होती देखी ।


'धाड़' की आवाज के साथ दरवाजा बंद हो गया ।


और।।


ऐसा देखते हो विनम्र का खून खौल उठा । झपटकर एक ही जम्प -में दरबाजे के सामने पहुचा ।


इतना ही नहीं ।।


भन्नाए हुए विनम्र के जूते की ठोकर दरवाजे पर पड़ी ।


'भड़ाक’ की जोरदार आवाज के साथ दरवाजा खुल गया । निःसन्देह उसकी चटकनी भी दो सौ पांच के दरवाजे की चटकनी जैसी मरियल सी थी ।।


दरवाजा खुलते ही बिनम्र ने कमरे के अंदर जम्प लगा दी । अभी सम्भल भी नहीं पाया था कि आवाज गुंजी---"जरा भी हिले तो गोली मार दूंगा ।।


बिनम्र बौखलाकर अावाज की दिशा में घूमा ।। उसके सभी मसानों ने एक साथ पसीना उगल दिया ।।


वह ओवर कोट, फेल्ट हैट और काले लेंसों वाला चश्मा पहने घनी दाढी-मूंछ बाले शख्स के एक हाथ में छड़ी थी, दूसरे में रिवॉल्वर ।। शायद लिखने की ज़रूरत नहीं है कि रिवात्वर विनम्र की तरफ तना हुआ था । उसी ने उसके सारे मसानों को पसीना उगलने पर मज़बूर कर दिया था । मुंह से केवल एक ही सेन्टेन्स निकल सका----"कोन हो तुम?"



"मैं जो भी हूं , याद रखना । पीछा करने की कोशिश की तो गोली मार दूगा ।। धरघराती-सी आवाज़ में कहने के साथ यह दरवाजे की तरफ बढ़ा । "


और....... बिनम्र के दिमाग की जाने कौन सी नस सिग्नल-सा देने लगी ।


उसे लगा---इस आवाज को पहचानता है । यह भी लगा…बोलते वक्त इस शख्स ने आवाज बदलने की कोशिश की है ।।



क्यों ?
कारण एक ही हो सकता है ।


यह कि वह भी जानता है…मैं उसकी आवाज ने पहचान सकता हूं ।


'कौन है यह?' यह सवाल हथोड़े की तरह विनम्र के जेहन की दीबार पर टकराया------- "कौन है ?"


लगा---अगर एक वार और आवाज सुने तो उसे पहचान सकता है । बोलने के लिए मज़बूर करने हेतू विनम्र ने उसकी तरफ कदम बढाया । वही हुआ । ठिठकर यह पुन: घरघराती-सी आवाज में गुरर्रया'----'स्टॉप ।"


विनम्र रुक गया ।


एक बार फिर लगा---आवाज को वस पहचानने ही वाला है ।


जेहन पर जोर डाला । दिमाग नाम बस उगलने ही वाला था कि आंखो ने पुन: उसे दरवाजे की तरफ़ सरकते देखा ।


विनम्र ने अंधेरे में तीर चलाया----"मैं तुम्हें पहचान चुका हूं।"


उसके चेहरे पर धनी दाढ्री-मूंछे होने के बावजूद विनम्र ने महसूस किया------उसका वाक्य सुनकर दाढी-मूंछ के पीछे छूपे चेहरे पर बौखलाहट के भाव उभरे । जवाब में वह कुछ बोला नहीं, रिबाँत्वर उस पर ताने पहले की अपेक्षा थोड़ी तेजी के साथ दरवाजे की तरफ वढ़। ।


विनम्र को लगा---अगर निकल गया तो शायद सारे जीवन नहीं जान पाएगा, यह कौन है?

उसे रोकना होगा ।


मगर कैसे?


उसके हाथ में रिवॉल्वर है ।



अंगुली की जुम्बिश भर उसका खेल खत्म कर सकती है ।


अचानक विनम्र के जेहन मे वेद प्रकाश शर्मा के किसी उपन्यास का दृश्य कौधा ।


उसी दृश्य की नकल-की उसने । दाढी बाले शख्स के पीछे दरवाजे की तरफ देखता चीखा-------" नहीं बिरजू।"


दाढी वाला चौंकर घूमा । और--


काम बन गया ।
उपन्यास के पात्र की तरह विनम्र ने अपने जूते की ठोकर पूरी ताकत से रिवाल्वर बाले के हाथ मे मारी । रिवॉल्वर दाढ़ी बाले के मुंह से निकली चीख के साथ हाथ से निकला ।


हवा में लहराया।


छत से टकराया और सेन्टर टेबल पर रखे जग को अपने साथ लेता कार्पेट पर जा गिरा । इस बीच विनम्र ने जबरदस्त फुर्ती के साथ झपटकर दाढ़ी वाले को दबोच लिया था ।जोरदार धक्के के कारण दाढ़ी वाला कार्पेट पर जा गिरा । उसी के साथ जा गिरा उससे लिपटा विनम्र ।


गुत्यमगुत्था हुए वे कुल दूर तक लुढ़कते चले गए । विनम्र की कोशिश उसके चेहरे से दाढ़ी-मूंछ नोचने की थी । दाढी वाले को उसके 'प्रयास' का इल्म हो गया था ।।


विनम्र के दोनों के हाथ कब्जा लिए उसने ।


कुछ देर तक संघर्ष होता रहा । अंतत: कामयाबी विनम्र को मिली ।


दाई कलाई दाढ़ी वाले के हाथ से आजाद की । अगले पल दाढी उसकी मूठी में थी । तभी, दाढी वाले ने पूरी ताकत से उसके पेट में लात मारी । मुंह से चीख निकालता विनम्र दुर जा गिरा । उस वक्त वह उठने की कोशिश कर रहा था ।। जब दाढी बाले ने सीधी जम्प दरवाजे की तरफ़ लगाई ।


दाढी विनम्र के हाथ में थी ।।


वह केवल दरवाजे के तरफ जम्प लगाने बाले की पीठ देख सका ।

वह भाग रहा है ।।


ऐसा खयाल अाते ही विनम्र ने भी जम्प लगा दी ।

परन्तु ।


चेहरा 'धाड़' से कमरे के दरवाजे पर टकराया ।


बाहर निकलने के साथ दाढी बाले ने दरवाजा गैलरी की तरफ़ से बंद कर दिया था ।।


विनम्र ने झुंझलाकर दरवाजे को झंझोड्रा । यहाँ तक कि उसे तोड़ डालना चाहा । परन्तु गोली की तरफ़ से लगा 'डंडाला' शायद अंदर की तरफ़ लगी चटकनी जितना कमजोर नहीं था ।


गेैलरी मे कूछ भागते कदमों की आवाज ने जब विनम्र के जेहन को यह 'मैसेज’ दिया------ वह पकड से दूर होता जा रहा है तो हलक फाड़कर चिल्ला उठा'--""पकडो . . . . . .पकडो ।"
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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मगर । उसके कानों में अपनी ही आवाज गूंजती रहीं । ऐसा लग रहा था जैसे आबाज सुनने बाला उसके अलावा यहाँ कोई था ही नहीं ।।


दूर होती भागते कदमों की आवाज अंतत: उसके कानों तक पहुंचनी बंद हो गई ।।


अब । विनम्र ने चीखना और दरवाजा पीटना बंद कर दिया ।


जैसे समझ गया हो-----यह सव करते रहने का कोई फायदा नहीं है ।


दाढ़ी अभी-भी उसके हाथ में थी । विनग्र ने उसे देखा । मगर फायदा क्या था? दाढ़ी उस चेहरे के बारे में तो कुछ बता नहीं सकती थी उसने कुछे देर पहले तक उसने छुपा रखा था ।


दाढी नोचने के बाद वह उस चेहरे को देख नहीं पाया था ।


किसका चेहरा था वह?


निश्चित रूप से उसे देखता तो पहचान लेता ।


इस वात को शायद 'वह' भी जानता था । तभी तो दाढ़ी -- मूंछ लगाए हुये था । अावाज बदलकर बोल रहा था ।


आवाज का ख्याल अाते ही विनम्र को एक बार फिर लगा--" आवाज़ के मालिक का चेहरा बस मस्तिष्क पटल पर वस उभरने ही वाला है । दिमाग पर जोर दिया । याद करने की कोशिश की…क्रिसकी आवाज है वह? कहां सुनी है उसने?



यूं लग रहा था जैसे चेहरा स्पष्ट -हौंते धुंधला हो जाता हो ।


याद करने की कोशिश करता दरवाजे के नजदीक से हटा ।


ष्ठोंटे से कमरे में चहलकदमी की ।


नजर रिवॉल्वर पर अटकी । दाढ़ी बाले का रिवॉल्वर था वह । जग से बिखरे पानी से गीले हुए कार्पेट पर पड़ा था । नजदीक ही जग भी लुढका पड़ा था ।


विनम्र के जान में एक और विस्फोट हुआ ।।


लगा----"इस रिवॉल्वर को बह पहचानता है ।"



लपका । गीले कालीन के नजदीक पहुचा । झुका । और रिवाल्वर उठा लिया ।।
'यह तो मामा का रिवॉल्वर है ।' दिमाग चिंधाड़ा---"मामा का !"


आंखें हैरत से फटी रह गई।


इस रिवॉल्वर को मामा के पास उसने कई बार देखा था ।


'स्मिथ एण्ड वेसन' कम्पनी का वना प्वाईट थ्री -फाईंव रिवॉल्वर ।


वही है ।


'मगर ।' एक और ख्याल कौधा---क्या जरूरी है यह वही है?


"स्मिथ एण्ड वेसन' कम्पनी के बने सारे प्वांइट थ्री फाईव रिवॉल्वर देखने में एक जैसे होते हैं ?


कैेसे पता लगे? कैसे पता लगे रिवॉल्वर मामा का है या बैसा ही कोई दूसरा ।


केवल एक ही तरीका है ।


उसने रिवॉल्वर को उलट-पुतट-कर देखा । नजरे उस पर 'गुदे‘ नंबर पर अटक गई ।


'हां । अब तो यह नम्बर ही 'फाईनल' कर सकता है ।’


एक नम्बर के दो रिवॉल्बर कभी नहीं होते । ठीक वैसे ही जैसे दो आदमियों के फिंगर प्रिन्टस एक जैसे नहीं हो सकते ।


मगर । मैने मामा के रिवॉत्वर का नम्बर कभी नहीं देखा । न कभी इसकी जरूरत थी, न ध्यान दिया । मामा के रिवॉल्वर का नम्बर कैसे पता लगे?


एक ही तरीका है ।


मामा का लाइसेंस देखा जाए ।


लाइसेंस में हथियार की पूरी पहचान लिखी होती है । नम्बर भी ।


अपना दिल उसे जोर से 'धाड़-धाड़' करता महसूस हो रहा था ।


यह एहसास उसे कंपकंपाये दे रहा था कि दाढी-मूछ बाले शख्स मामा थे । एक फिर दाढ़ी वाले की आवाज कानों में गूंजी ।


जेहन में विस्फोट-सा हुआ और सारे मस्तिष्क में प्रकाश फैल गया । उस प्रकाश में मामा का चेहरा साफ़ नजर अा रहा था हां, उन्ही की आवाज थी वह । वे आवाज को बदलने के कोशिश कर रहे थे ।


" मगर क्यों? "


गोडास्कर के शब्द ठीक उस तरह मस्तिष्क में गूंजने लगे जैसे इंसान के मुह से निकली आवाज चारों तरफ से बंद कमरे मे गूंजती है । हर प्वाइंट चीख-चीखकर कह रहा धा-'वे मामा ही थे ।' बावजूद इसके, दिल मानने को तैेयार नहीं था ।


उसने फैसला किया -- -लाइसेंस देखे बगैर इस बात पर विश्वास नहीं करेगा।
बिनम्र भरद्वाज विला पहुचा ।


उसके अादेश पर टैक्सी ड्राईवर ने हार्न बजाया है, लोहे के विशाल दरवाजे में एक मोखला खुला ।

सिक्योरिटी गार्ड ने टार्च की रोशनी टेक्सी पर डालने के साथ पूछा--"कौन?" ड्राईवर की बगल वाली सीट पर बैठे विनम्र ने चेहरा खिडकी से बाहर निकालकर कहा-----दरवाजा खोलो राजवीर ।"


मालिक की आबाज पहचानते ही राजवीर नामक सिक्योरिटी गार्ड मानो बौखला गया । तेजी से टांर्च बाला हाथ "मोखले' से खीचा ।


अगले पल लोहे का भारी-भरकम दरवाजा खुलता चला गया ।

ड्राईवर ने विनम्र के आदेश पर टैक्सी अागे बढाई । कायदे से होना ये चाहिये था टैक्सी सीधी पोर्च के नीचे जाकर रूकती मगर गेट क्रॉस करते वक्त विनम्र को जाने क्या सूझा, तेजी से ड्राईवर के टैक्सी रोकने के लिए कहा ।

ड्राईवर ने जोर से ब्रैक मारा ।

टैक्सी जहां की तहां जाम हो गई ।।


राजवीर दोड़कर विनम्र बाली खिड़की के नजदीक आया बोला--------"यस सर ।’"


"मामा हैं विला में?" विनम्र ने पूछा ।


"हां साव । बस कुछ दी देर पहले अाए हैं ।" राजवीर ने ज़वाब. ।


विनम्र ने दूसरा सवाल पूछा---"कितनी देर पहले?"


"मुश्किल पन्द्रह मिनट हुए हैं साव ।"


विनम्र का दिल "धक्क' से रह गया ।


जिस बात को वह स्वीकार नहीं करना चलता था, हालात उसी की पुष्टि किए दे रहे थे ।


मामा अगर होटल नारंग से ही अाए थे तो लगभग पन्द्रह मिनट पहले ही अाने चाहिये थे । वह खुद वहाँ से दाद्री बाले के पन्द्रह मिनट बाद चला था ।


"कैसे अाए थे मामा?" विनम्र ने अगला सवाल किया---"टैक्सी से, या अपनी गाड्री में?"



"टैक्सी मे साव ।"


"क्या पहन रखा था उन्होंने?"

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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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राजबीर चकरा गया । ऐसे सवाल इस घर के किसी मेम्बर ने दूसरे मेम्बर के बारे में कभी नहीं पूछे थे । जवाब तो देना दी था । हड़बड़ाकर बौला----'"म-मैंने ध्यान नहीं दिया साब ।"
उसके हड़ब्रड़ाने पर बिनम्र ने महसूस किया--सचमुव लह अपने मामा के बारे में नौकर से बड़े विचित्र सवाल पूछ रहा था । इस बार उसने सीधे टैक्सी ड्राईवर से कहा…"चलो ।"


ड्राईवर ने टैक्सी अागे बढा दी ।


धनुषाकार सड़क पर दौडती टैक्सी पोर्च की तरफ बडी़।

पोर्च करीब पांच सौ मीटर दूर था । उसके और लोहे बाले गेट के बीच इतने पेड़ थे कि पोर्च नजर नहीं आता था ।


टैक्सी पोर्च के ठीक नीचे जाकर रुकी ।

अपनी अटैची निकली और ड्राईवर को पेमेन्ट देकर विदा किया ।


उधर "यूटर्न’ लेने के बाद टैक्सी लोहे वाले गेट की तरफ गई इधर, विनम्र इमारत के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ा । जेब से चाबी निकाली । ' की होल ' में डाली और गेट खोल दिया ।।


शाम के वक्त जाने वाना घर का हर मेम्बर एक चाची जेब मैं डालकर ले जाता था । ताकि लेट हो जाए तो किसी भी दूसरे मेम्बर को डिस्टर्ब किए बगेैर इमारत के अंदर पहुच सके ।


चौखट पार करके दरवाजा लॉक किया ।


अब, वह लम्बी-चौड़ी लाबी में था ।


मां और मामा के कमरे की तरफ़ देखा-----दोनों कमरों की लाईट आँफ थी । कुछ देर अपने स्थान पर खडा सोचता रहा…अपने कमरे , की तरफ , या मामा कै? फैसला किया---मामा के कमरे की तरफ ही बढना चाहिए ।


वह वढ़ा और बढने के साथ ही दिल की थड़कन की गति भी बढ़ती चली गई ।।



जव हम चोरी से कोई काम कर रहे होते हैं, भले ही अपने घर में, अपने कमरे में कर रहे हों---हमारे दिमाग पर अजीब-सा खौफ सवार हो जाता है ।


पकडे जाने का खौफ ।


दिलो-दिमाग पर वही खौफ लिए विनम्र दबे पांव चक्रधर चौबे के कमरे के दरवाजे के नजदीक पहुंचा । यह देखने के लिए चारो तरफ नजर घुमाई-कहीं कोई है तो नहीं ।



संतुष्ट होने के बाद झुका । आंख 'की होल' पर सटा दी ।


रोंगटे खड़े हो गये विनम्र के ।।


दिमाग फिरकनी की तरह घूम गया ।।
पलक झपकते ही न केवल चेहरा बल्कि सारा शरीर पसीने-पसीने हो गया था । कमरे मे ग्रीन रंग के नाईट बल्ब का मद्धिम प्रकाश था जो उसे लाबी मे नजर नहीं आ सका था!



एक शख्स के सामने खड़े मामा को विनम्र सामने देख रहा था । शख्स का रंग कब्बे के रंग जितना काला था । सिर पर घने, दुध जैसे सफेद बाल । उसकी भवों तक के बाल सफेद थे । औसत कद का था था । अधेड । चेहरे से क्रूर नजर अाता था । वह सफेद पैंट, सफेद शर्ट और सफेद ही पीटी-शू पहने हुए था ।


चक्रधर चौबे ने उससे अभी-अभी कहा था---" कितनी बार कह चुका हूं, तुम्हें जो चाहिये एक वार मुंह फाड़कर मांग लो ।"


काले शख्स के काले होठो पर मुस्कान फैल गई वहुत ही ज़हरीली मुस्कान थी वह । ऐसी की स्याह चेहरों कुछ और क्रूर नजर आने लगा । एक-एक लफ्ज को चबाता-सा बोला---"तो यह कहना चाहते की मैं सोने के अंडे देने बाली मुर्गी को हलाल कर देने की बेवकूफी कर डालूं ?"



" पर हर चीज की एक सीमा होती है पवन प्रधान ।" चक्ररधर चौबे कहता चला गया---"उस हादसे को आज पच्चीस साल हो गए । कब तक 'हमारी' मजबूरी का फायदा उठाते रहोगे?"


वह हंसा । वह, जिसे चक्रधर चौबे ने पवन प्रधान कहकर पुकारा था । बड़ी ही भयंकर हँसी थी उसकी । ऐसी, जैसे भेडिया-हंसा हो । काले होंठों के बीच सफेद दांत बेहद डरावने लगे थे । उन्हें चमकाता बौला-" तुम्हें तो केवल पच्चीस साल हुए हैं चौबे । मेरे पास तो ऐसी-ऐसी 'असामियां' हैं जिन्हे पचास साल से भी ऊपर हो चुके हैं । पैेर कव्र में लटक चुके है उनके, मगर 'फांसी' के डर से आज भी मैं जो मांगता हूं --'बाइज्जत' देदेते हैं ।। मैं जौंक' हूँ चोबे । ऐसी 'जोक' एक बार अगर किसी के जिस्म पर अपने पंजे गाड दे तो सारे जीवन

कतरा-कतरा करके खुन पीती रहती हे । हर 'ब्लैक मेकर' जौंक होता है । हमारा तो धंधा ही तुम जैसे 'दान दाताओं' से चलता है । एक ही बार में मुर्गी हलाल कर दें तो बाकी जीवन क्या खाएंगे? बहुत लम्बी होती है लाईफ ।"


" खैर ।" चक्रधर चौबे का लहजा उसके सामने हथियार डालने जैसा था---'बोलो अब क्या चाहिए तुम्हें?"
" एक लाख झटको ।"


"पचास हजार मिलेगे ।'"


"क्यो?"



" इस महीने की पहली तारीख को एक लाख ले जा चुके हो ।। बाकी पचास हजार ही बचे ।। हमारे बीच एक महीने में डेढ़ लाख का सौधा हो चुका है । इससे ज्यादा न तुम मागों, न 'हम' देगे ।"



"मुझे कोई समझोता याद नहीं है चोबे । कह दिया सो कह दिया । मुझें एक लाख चाहीए ।"



एक वार को चक्रधर चौबे गुस्से में नजर जाया है चेहरै भभका । मगर अगले पल उस पर कसमसाहट के भाव उभरे ।। ऐसे, जेसे बहुत कुछ करने की इच्छा के बावजूद कुछ न कर पा रहा हो । उसी मुद्रा में अलमारी की तरफ बड़ा ।


पवन प्रधाम अपने स्थान पर पड़ा मुस्कुराता रहा ।


काले होठो पर कामयाबी मे लबरेज मुस्कान थी ।


चौबे ने अलमारी से नोटो की एक गडडी निकाली । घूमने के साथ उसकी तरफ फेंका।। गुर्राया--" लो और फूटो यहां से । "


पवन प्रथान ने कहा-'कितनी बार कहा है चौबे लक्ष्मी को फैंका मत करो ।"


"तुम जा सकते हो ।" चक्रधर चौबे गुस्से को दबाने का प्रयास करता नजर आया ।


" जाता हू यार । जा रहा हूं । घुड़की क्यों दे रहे हो ?" कहने के वह कमरे की खुली पडी़ खिड़की की तरफ बड़ा ।।


विनम्र जानता था -- उस खिड़की को क्रास करके विला के किचन लॉन में पहुंचा जा सकता है ।।


विचार बहुत तेजी से विनम्र के जेहन में कौधें ।।


" कया करू मैं ? क्या करू ?"


" कौन है पवन प्रधान ? उससे क्यों मांमा ब्लैक मेल हो रहा है ! 25 साल से क्यों चल रहा है ये सिलसिला ?? सारे सबालों के जबाब तभी मिल सकते हैं जब मैं उसे पकड़ु । यह हिम्मत मुझे दिखानी होगी ।"
विनम्र को अपनी जेब में पड़े रिवॉल्वर का ख्याल आया । हौसला वढ़ गया उसका । सोचा----'रिवॉल्बर के सामने पबन थरथर कांपने लगेगा ।"


'जो होगा देखा जाएगा ।' ऐसा सोचकर आंख 'की होल' से सटाए विनम्र ने एक साथ दोनों हाथो से दरवाजा पीटा । साथ ही चिल्लाया-"दरवाजा खोलो मामा!"



उसने खिड़की के नजदीक पहुंच चुके पवन प्रधान और अलमारी के करीब खड़े चक्रधर चौबे को इस तरह हडबड़ाते देखा जैसे दोनों ने अपने बीच सांप को 'फुंकारते देख लिया हो ।


बौखलाकर दोंनों दरवाजे की तरफ देखा ।

फिर ।


चक्रधर ने प्रधान को भाग जाने का इशारा किया । प्रधान ने खिड़की से बाहर जम्प लगा दी । अब बह नजर आना बंद हो गया था । विनम्र समझ गया-मामा उसे पकडबाने में मदद करने वाला नहीं हैं । वह पवन प्रधान के फरार होने से पहले कमरे का दरवाजा नहीं खोलेगा । सो, विनम्र ने जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया ।



आंधी-तूफान की तरह अपने कमरे की तरफ दोड़ा ।


'धाड' की आबाज के साथ दरवाजा खोलकर अंदर पहुचा ।


बंद खिडकी की तरफ लपका । बह भी किचन लॉन में खुलती थी । एक झटके से खिड़की खोली । सफेद कपड़े पहने होने के कारण पवन प्रधान बाऊन्ड्री की तरफ दौड़ता साफ नजर आया ।


"रुक जाओ वरना गोली मार दूंगा । " विनम्र की दहाड़ विला में छाए सन्नाटे को चीरती चली गई ।।


परन्तु पवन प्रधान नहीं रूका ।



और-----रिवॉल्वर उसकी तरफ ताने विनम्र ने दांतो पर दांत जमाकर ट्रेगर दबा दिया ।


"घांय ।"


गोली की आवाज़ ने चैन की नीद सो रहे सन्नाटे को झकझोर कर उठा दिया ।


'साथ ही दौडता हुआ पवन प्रधान मुह के बल गिरा । गोली उसके दाए' पेर की पिण्डली में लगी थी । बावजूद इसके तेजी से उठा । और पुन: सख्ती बाऊन्ड्री वाल की तरफ दौड़ा ।।
विनम्र ने एक गोली और चलाई । साथ ही चौखट पर पैर रखकर किचन लान में कूदा और पवन प्रधान की दिशा की तरफ दौड़ता चला गया । वह बार-बार चिल्लाकर उसे रुक जाने के लिए कह रहा था ।।

साथ ही फायरिंग भी कर रहा था ।।


और फिर, एक गोली पवन प्रथान के सिर में लगी ।


वह गिर गया ।


विनम्र दौड़कर नजदीक पहुचा ।।


बह मर चुका था।


विनम्र जहां का तहां खड़ा रह गया ।।
ठगा सा।



महसूस किया---वंगले की ज्यादातर लाईटें अान हो चुकी हैं ।
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लोंगो के बोलने की आबाजे आ रही थी । सिक्योरिटी के कई लोगों के हाथ में टार्चें थी । उनकी रोशनी इधर उधर दौड़ाते वे खुद भी दौड़े फिर रहे थे ।। वे उनका नाम ले लेकर पुकार रहे थे ।।


उनमे मामा की आवाज भी थी और मां की भी ।



एक टार्च का प्रकाश उसके जिस्म पर पड़ा और वहीं स्थिर होकर 'रह गया ।


"विनम्र बेटे ।" आवाज कुंती देबी की थी---" तुम ठीक तो हो ?"


बोलने की इच्छा के बावजूद विनम्र के मुंह से एक लफ्ज न निकल सका ।दिमाग में 'सांय-सांय' की आवाज के साथ मानो आंधी चल रहीं थी ।


कुंती देबी के साथ दौड़ते सिक्योरिटी के लोग और चक्रधर चौबे उसके नजदीक पहुचे ।

चक्रधर चौबे । उसका मामा ।


बिनम्र का मस्तिष्क सुलग उठा ।।


ममंता से पगलाई कुंती देबी उसके सारे जिस्म को टटोलती कह उठी---"'तू ठीक तो है ?"
"हुआ क्या था?" राजबीर ने पूछा । इस सवाल ने बिनम्र को मानो सुलगा लगाकर रख दिया । दहाड उठा वह --" तुम सिक्योरिटी के इंचार्ज होने के बावजूद पूछ रहे हो कि हुआ क्या था ? मैं पूछता हूं करते क्या रहते हो ? पूरे चार लोग हो । विला की सिक्योरिटी के लिये रखे गये हो । एक आदमी विला में आता है ।

अपना काम करके निकल भी जाता है, और तुम कुछ करना तो दूर उसकी परछाई तक को देख तक नहीं पाते ।।

यह तक नहीं जान पाते यहाँ कोई अाया भी था । केसी सिक्योरिटी के लोग हो तुम?"


बेचारा राजबीर… ।


क्या जवाब देता?

मुंह पर ताला लटक गया उसके ।
सन्नाटा छागया ।और फिर उस सन्नाटे को कुंती देवी ने तोड़ा ।।

उन्होने विनम्र से पूछा था------''किया यहाँ कोई था बेटा ?"


" जो था, यह रहा ।" कहने के साथ जो वह सामने से हटा तो एक साथ सबकी नजर झाड़ियों में पड़ी लाश पर पडी ।


चीखे निकल गई सबके मुंह से ।


सिक्योरिटी बालो की टार्चों का प्रकाश लाश पर स्थिर हो गया?

हैरान तो सभी रह गए थे मगर चक्रधर चौबे के चेहरे पर तो हबाईयां ही उड़ने लगी । उसने कुंती देबी की तरफ देखा---इनके चेहरे पर भी बेसी ही हवाइंयां उड़ रही थी ।


"यह ठीक नहीं हुया ।" चक्रधर चौबे का लहजा दहशत में डूबा हुआ था ।



"पर यह था कौन?" कुंन्ती देवी ने पूछा ।


"मामा से पूछो मां । मामा से ।"


'"चक्रधर भैया से?" कुंती देबी चौंकी । चक्रधर चौबे की तरफ है पलटकर बोला---" क्यों भैया? कौन था यह? क्या तुम जानते हो ?"


"हां ।" चक्रधर चौबे ने अपराधी की तरह कहा -- "यह मेरा

एक र्दोस्त था----" पवन प्रधान ।"


भड़का हुआ विनम्र दहाड़ उठा --" दोस्त या ब्लैक मेलर ?"

"म-मगर । ब्लैेकं मेलर से तुम्हारा क्या सम्बन्ध भैया ? "



" 25 साल पहले मुझसे एक गुनाह होगया था ।। पबन प्रधान के पास उस गुनाह के फोटो है । वह तभी से मुझे ब्लैक मेल कर रहा है । कोई मुजरिम नही चाहता उसके द्वारा किए गये गए गुनाह का भेद लोगों पर खुले ।"
"पर भैया, ऐसा क्या गुनाह हो गया था तुमसे?"


"कहा न, गुनाहगार अपना गुनाह किसी पर खोलना नहीं चाहता ।" वह कहता चला गया---“खोलने लायक ही होता तो पच्चीस साल से ब्लैकमेल क्यों हो रहा होता?"


"क्या मुझे भी नहीं बताओगे भैया ।"


चक्रधर चौबे के होठों पर फीकी मुस्कान दोड़ गई बोला---" एक गुनाह ही तो ऐसी चीज है कुंती जिसे इंसान अपनों से सबसे ज्यादा छूपाता है । प्लीज, उस बारे में कुछ भी जानने की कोशिश मत करो । सजा तौर पर अगर तुम यह भी कहोगी कि मैं हमेशा के लिए "बिला" छोडकर कहीं और चला जाऊं तो मुझे मंजूर होगा । मगर यह कभी किसी को पता लगने देना पंसद नहीं करूंगा जो पवन प्रधान को पता था. ।"



"तब तो आपका काम फ्री में हो गया मामा ।मैंने कर डाला ।" विनम्र के हर लफ्ज में व्यंग्य था -- " जो काम आप पच्चीस साल में न कर सकै उसे मैंने चुटकियों में कर दिया । अब यह भेद किसी को नहीं वता सकता जिसे अाप किसी को पता नहीं लगने देना चाहते ।"


बड़ी ही फीकी मुस्कान उभरी चक्रधर चौबे के होठों पर । बोला---"उस सैंन्टेन्स पर ध्यान नहीं दिया विनम्र जो इसकी लाश देखते ही मेरे मुंह से निकला, मेने कहा---" यह ठीक नहीं . हुअा ?"


" क्या मतलब ?"


उसने मुझसे अनेक बार कहा था---"अगर मुझें कुछ होगया तो मेरे साथी तुम्हारे गुनाह के सारे फोटो पुलिस को दे देगें ।"



विनम्र को लगा --" यह बात चक्रधंर चौबे ने उससे और केबल उससे कही है ।।


इतना तो तय था -- बह जानता था कि वह ब्लैक मेल हो रहा है ।।
यह भी जरूर जानता होगा-क्यों ? क्यों ब्लैक मेल हो रहा है वह? यानी मामा जानता है---विंदू की हत्या मेरे हाथों हुई है । तो क्या इस वक्त वह उस भेद को मां पर खोल देने की धमकी दे रहा है या ब्लैक मेल न होने की सीख?



विनम्र समझ न सका ।


सबाल और भी कौध रहे थे दिमाग में । जैसे दाढी वाला बनकर मामा होटल नारंग में क्यों गए? उनका मकसद उसे ब्लैक मेलर से बचाना, उससे छुटकारा दिलाना था या खुद को ब्लेक मेल कर रहे पवन प्रधान का पेट भरने के लिए रकम हासिल करना?


गोडास्कर के लळ्ज दिमाग में गुजें । तो क्या विदु की लाश मामा ने गायब की? क्यों?

इस किस्म के किसी भी सवाल का जवाब नहीं सूझ रहा था और सबाल मां की मौजूदगी में कर नहीं सकता था ।


वे सवाल करने का मतलब था--मां पर अपने 'कुकृत्य' का भेद खोल देना और ऐसा कर नहीं सकता था , सो इस बिषय पर चुप रह जाना मजबूरी थी ।। यह जरूर कहा --- " तो अब आपको यह डर सता रहा है कि इसके साथी आपकी करतूत के सबूत पुलिस के पास ले जाऐंगे ?"


" इसके जिन साथियों के बारे मैं यह तक नही जानता बह है कौन , वे इसकी मौत के बाद क्या करेंगे, क्या कह सकता हूं ? इस वक्त तो केवल एक ही बात कहने की स्थिति में हूं । यह कि जो होगा देखा जाएगा । "


" वह आगे की बात है भैया ।" कुंती देवी ने कहा ---" हम लोगों के सामने समस्या इसकी लाश की है ।"



" कोई समस्या नहीं है मैडम ।" राजबीर ने कहा -" ये चोर है । चोरी के इरादे से विला में घुसा था ।। मैनें देख लिया । रूकने की चेतावनी दी । नहीं रूका तो गोली मार दी । मेरा काम ही ये है । विला की सिक्योरिटी के लिये ही रखा गया है मुझे ।"

बात सबको जमी। कहने के लिये किसी के पास मानो कुछ रह नहीं गया था ।


वातावरण मे छा गये अजीब-से सन्नाटे को को चक्रधर चौबे ने तोड़ा ---" अब तुम्हें ही फैसला करना है विनम्र , मै विला में रहूं या हमेशा के यहां से चला जाऊ ।" कहने के बाद वह घूमा और इमारत की तरफ बढ गया ।


"भैया- भैया ।" कुंती देवी उसके पीछे लपकी ।


रुकना तो दूर, चक्रधर चौबे ठिठका तक नहीं ।।


"विनम्र ।" कुंती देवी ने कहा…"अपने मामा को रोक बेटे । उन्होंने हर मुसीबत में हमारा साथ दिया है । अगर वे खुद किसी मुसीबत में है तो हम उनका यूं साथ नहीं छोड़ सकते।"

विनम्र को पुकारना पड़ा--"मामा! मामा?"

चक्रधर अपने कमरे की तरफ बढता चला गया ।
अगले दिन सुबह दस बजे फोर्स के साथ आए गोडास्कर ने चक्रधर चौबे की कलाई में हथकड़ी पहना दी ।


" य-ये-ये तुम क्या कर रहे हो गोडास्कर ।" कुंती देबी यह सोचकर बुरी तरह चीख उठी कि शायद पवन प्रधान के साथियों ने अपना काम कर दिया है----"क्या बदतमीजी है ये?”


गोडास्कर वड़े इत्मीनान से पीछे हटा । जेब से बिस्कुट का पेकिट निकाला । उसका रेपर फाड्रा । एक बिस्कुट मुंह में रवाना करने के बाद बोला-----"आपको तो गोडास्कर की बदतमीजी पर खुश होना चाहिये । गोडास्कर ने विंदू कै हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया है ।"


"ब-विंदू कै हत्यारे को?"


"जी हाँ । उसके हत्यारे को जिसकी लाश फांसी का फंदा बनकर आप के बेटे के गले लिपटने वाली थी ।। "


"ह-हमारी समझ में कुछ नहीं अा रहा । आखिर तुम कहना क्या चाहते हो ?"


"केवल इतनी ही बात कहना चाहता हूं माता जी बिंदू की हत्या आपके भाई जान ने की । इसलिए की ताकि उस हत्या के इल्जाम में आपका बेटा फांसी पर झूल जाए ।"



"विनम्र हमें तुम्हारी बक्वास के वारे में बता चुका है ।। कुंती देवी भड़क उठी----" तुम सोच रहे हे---भैया ने "भारद्वाज कंस्ट्रकंशन कम्पनी" को कब्जाने के लिए ऐसा किया है मगर यह केवल और केवल तुम्हारी कल्पना है गोडास्कर ।"


"कल्पना जरूर की थी गोडास्कर ने ।। मगर केवल कल्पना के बेस पर ये हथकड्री नहीं डाल दी । ऐसा करना होता तो यह काम कल ही कर लिया होता । किसी भी मुजरिम को गोडास्कर हथकड़ी तब पहनाता है जब उन्हें जम्बूरे से पकड़ चुका हो ।
गोडास्कर एक नहीं, अनेक सुबूत जूटा चुका है ।"



"स-सुबूत । क्या सुबूत है तुम्हारे पास भैया के खिलाफ?"


"इनसे पूछिए परसों शाम के पांच बजे से रात के पौने बारह वजे तक कहां रहे, सुबूत खुद -ब-खुद अापकी झोली में आ टपकेगा ।"


कुती देवी की अवस्था ऐसी थी जैसे कुछ भी समझ न पा रही हो । बौखलाए हुये अंदाज में एक बार गोडास्कर की तरफ देखा । फिर बिनम्र की तरफ और अंत में चक्रधर चौबे की तरफ । बिनम्र भी खामोश चक्रधर चौबे भी । सुवह के दस बजे थे । इस वक्त वे सब भारद्वाज विला की लाबी में खड़े थे । अंतत: कुंती देवी चक्रधर चौबे के दोनो कंधों को पकडंकर उसे झंझोड़ती हुई हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पडी…तुम चुप क्यों हो भैया! चुप क्यों हो तुम? बता क्यों नहीं देते गोडास्कर को कि तुम कहां थे ?"


चक्रधर चौबे अव भी कुछ नहीं बोला ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Jemsbond
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »




पूरी तरह खामोश था यह ।


चेहरा पत्थर की तरह सख्त और भावहीन नजर आ रहा था । काच की गोलियों की तरह चमकीली मगर बेजान आंखें सिर्फ और सिर्फ कुंती देबी की आंखों में झांक रहीं थी । जब वह कुंती द्वारा बार-बार झंझोड़े जाने के बाबजूद 'सोया' सा रहा तो



गोडास्कर बोला-----" हजूर शायद अभी भी यह सोच रहे हैं---- ये नहीं बताएंगे तो गोडास्कर को पता नहीं लगेगा कि हत्या वाली रात ये कहाँ थे जबकि गोडास्कर इस सवाल का जबाब पहले पा चुका है पाने के बाद ही यहाँ "धमका" है ।।
"तो तुम्ही बता दो कहां थे भैया? " कुंती देवी उसकी तरफ घूमी ।।




"ओबराय होटल के रूम नम्बर सेविन जीरी थर्टी थ्री में।" विस्कुट खाते गोडास्कऱ ने कहा----"आपकी जानकारी के लिए बता दूं--यह रूम उस सुईट के ठीक सामने है जहाँ विनम्र बिंदू से मिला था जहाँ बिदूं की हत्या हुई ।। यह कमरा मिस्टर चक्रधर चौबे ने अपने असली नाम से नहीं बल्कि किशोर साहनी के नाम से लिया था । क्यों चौबे जी, गलत तो नहीं कहा गौडास्कर ने?"




चक्रधर चौबे को लगा-अब कुछ भी कहने से कोई फायदा नहीं है ।।


बिस्कुट चबाता पुन: गोडास्कर ही बोला---" गेडास्कर गलत हो ही नहीं सकता क्योंकि यह बात मुह से निकालने से पहले चौबे जी का फोटो होटल के स्टाफ को दिखा चुका है । तस्दीक कर चुका है ।। किशोर साहनी की सुरत यही है ।"


"तुम बोलते क्यों नहीं भैेया ।" कुंती एक बार फिर चीखी----"कहते क्यो नहीं यह सब बकवास है?"


"दुनिया का नियम है-माताजी, आदमी की चुप्पी उसकी स्वीकृति होती है । अब एक ही जगह "अटके" रहने की जगह चौबे जी से यह पूछा जाना चाहिए ---इन्होंने किशोर साहनी के नाम से सुईट के ठीक सामने वाला रूम क्यों लिया ?"


"क्यों लिया?" पहली बीर बिनम्र के मुंह से निकला ।


"गोडास्कर से पूछ रहे हो तो बताए देता हूं ।" उसने एक और बिस्कुट मुह में डालने के साथ कहा'---" इन जनाब को पहले ही मालूम था तुम नौ बजे सुईट में बिदू से मिलने वाले हो । इन्होंने शाम के पांच बजे से अपने कमरे मे डेरा डाल दिया ।
जब तुंम वहाँ पहुंचे ये हुजूर "की होल' से गैलरी का सारा दृश्य देख थे । तुमने खुद बताया-तुम वहाँ ज्यादा देर नहीं रहे । विंदू कै समर्पण को ठूकराकर बापस अा गए । तुम्हारे निकलते ही मामा अपने कमरे से बाहर आये सुईट की बैल बजाई । बिंदू ने दरवाजा खोला । इन्होंने उसे कुछ भी-समझने का मौका दिए वगैर गर्दन दबा ली । यह मर गई । मगर इस बीच उसकी माला टूट चुकी थी । कार्पेट पर मोती बिखर गए । तभी किसी तरह इन्हें पता चला कमरे में एक शख्स और है । वह बिज्जूथा । उसके पास मोजूद कैमरा देखते ही ये समझ गए-उसने बिंदू की हत्या के फोटो खींचे लिए हैं । अब, इनके पास विज्जू की भी ईह लीला समाप्त कर देने के अलावा कोई चारा नहीं था ।

विज्जू को निपटा देना इनके लिए बिंदू को निपटा देने से भी आसान था ।।वही किया । कैमरे की रील निकालकर अपनी जेब में डाल ली ।। और उसकी लाश को लिफ्ट के कुए मे फेक दिया।।



"गोडास्कर । " बिनम्र ने कहा---"यह तुम किस वेस पर कह रहे हो ? "


"गोडास्कर ने अगले लफ्ज नहीं उगले थे ।" कहने के बाद 'गेप’ देने केलिए उसने बिस्कुट मुह में सरकाया और बोलना शुरू किया-----" कत्ल के बाद इन्होंने अपने एक चेले को फोन किया ।। जिसका पेशा ही ऐसे कामों को अंजाम देने का है जैसा ये उससे कराना चाहते थे ।। उसका नाम मनसब है ।। "


" मनसव !" विनम्र ने नाम दोहराया ।


" जी हां ।। मनसब के मोबाइल पर अपने मोबाइल से फोन किया था इन्होंने ।। बेस नः पहला यह ही है दोनों के मोबाइल और कंट्रोल रूम का रिकार्ड बता देगा इन्होने किस वक्त मनसब को फोन करके कितनी देर क्या बात की ? उस रिकार्ड के मुताबिक मनसब को सुईट से बिंदू की लाश हटाने का काम सौंपा था ।
इस काम को मनसब आसानी से कर सके, इस कारण उसके लिए रूम नम्बर सेविन जीरो सेबिन्टीन बुक कराया । यह काम करते वक्त इन्होंने इतनी सावधानी जरूर वरती कि कमरे की बुकिंग अपने मोबाईल से न कराकर पी . सी. ओं. के फोन से कराई । उस पी. सी. ओ से जो ओबराय के ठीक सामने सडक के उस पार है । ऐसा इसलिए किया ताकि होटल के रिकार्ड में इनके मोबाईल का नम्बर दर्ज न हो सके ।। ये…खुद किशोर साहनी के नाम से रुम नम्बर सेवन जीरो थर्टी में ठहरे हैं, यह बात मनसव को भी नहीं बताई । पी. सी . ओ. से फोन करने के बाद उजरत बापस कमरे में आ गए । हालस्कि जिक्र कर चुका हूं फिर भी एक बार पुन: बता देना मुनासिब होगा-------मनसब का कमरा अमरसिंह के नाम से ठीक दस पैंतीस पर कराया गया । मनसव ग्यारह बजे होटल पहुचा।। बारह बजकर तीस मिनट पर चॉक आऊट कर गया । बेस नम्बर टू---"गोडास्कर की इस बात की तस्दीक खुद होटल का रिकार्ड बनेगा ।। मनसब बहां एक अटैची के साथ पहुंचा था । ऐसी अटैची के साथ जिसमें बिंदू जैसी लड़की की लाश मोड़ तोड़कर रखा जा सकै । होटल का एक कर्मचारी गवाह है-अटैची जब लाई गई तो खाली थी लेकिन जब ले जाई गई तो भरी हुई थी । कहने का मतलब---डेढ़ धंटा मनसव ने विंदूकी लाश को अटैची में पैक करने, कार्पेट पर बिखरे मोती चुनने और कमरे की स्फाई करने में खर्च किया क्योंकि चौवे जी ने उससे कहा था…-किसी को सुईट में वारदात का पता न लग सके । मनसव अपना काम करके आराम से निकल गया । उस वक्त होटल का स्टाफ कल्पना तक नहीं कर पाया कि अटैची में लाश है ।। और फिर जो होटल में हुआ सब वताता चला गया गोडास्कर ।।



अमर सिंह को उन्होने मनसब के रूप में पहचाना था । इससे आगे गोडास्कर की जानकारी काम आई।।

गोडास्कर जानता था --- छटे हुए बदमाश मनसब का ना कोइ घर बार है , ना फैमली ।। यह परमानेट रूप से होटल अजंता के रूम नः आठ में रहता है ।

और दोलत राम को निगरानी का काम दिया । जैसे ही सुचना मिली मनसब को घेर लिया गया । बिंदू की लाश ही नहीं , उसका मोबाईल और माला के मोती भी मिल गये हैं ।।


वातावरण मे तनाब पूर्ण खामोशी छा गई ।

सचमुच गोडस्कर ने सबका मुहं बंद कर दिया था ।।


एकाएक चक्रधर चौबे ने पूछा ---" क्या मनसब इस वक्त तुम्हारी हवालात में है ?"



" शुक्र है ऊपर बाले का । आपने अपने गूंगे ना होने का सबूत तो दिया ।"

चक्रधर एक बार फिर चुप कर गया ।


इस बार गोडस्कर ने दौलतराम से कहा --" देख क्या रहा है दौलतराम । हजुर को ले जाकर बाहर खड़ी सरकारी जीप में बैठा ।"



पुलिस टीम चक्रधर चौबे को लेकर लॉबी के दरबाजे की तरफ बढ़ चुकी थी । गोडस्कर भी उनके साथ था ।।।।
रात के दस वजें।

विनम्र की टेक्सी सुनसान इलाके में एक मकान के बाहर रुकी । मकान करीब दो सौ गज में वना हुआ था दु मंजिला । ब्लैक मेलर के रूप में इस बार एक नई लड़की ने फोन किया था । उसने यहीं कहा था-उस मकान के चारों तरफ दूर-दूर तक खाली जगह पडी है ।। दूसरा कोई मकान नहीं है । मकान-दु-मंजिला है और वाहर लगी नेम प्लेट पर 'बसेरा' लिखा है ।



विनम्र ने टैक्सी मे बैठे ही बेठे नेम प्लेट पर नजर डाली ।


ग्रेनाईट पत्थर पर ब्रास के वड़े-वड़े अक्षरों में लिखा "वेसरा' बहां मौजूद अॉन बल्ब के कारण साफ नजर आया ।


विनम्र को कोई शक नहीं रह गया --वह वहां पहुंच चुका है, जहां बुलाया गया था ।



टैक्सी से बाहर निकला ।


ड्राईवर की मदद से खिडकी से अटैची निकलवाई । इस बार उसमें दो करोड़ थे ।।


फोनपर ब्लैक मेलर लड़की ने कहा था---" इस बार दो करोड़ लाने होगे तुम्हें। करोड़ फोटुओं की कीमत । एक करोड पहली बार की गई चालाकी का जुर्माना ।। साथ ही चेतावनी दी गई थी--" उम्मीद है समझ गये होंगे । तुम्हारी कोई भी चालाकी हमारी नजरों से छूप नहीं सकेगी । इस बार अगर कोई हरकत की गई तो अगली बार तीन करोड लाने होंगे ।"


विनंम्र ने कोई सफाई नही दी थी ।


नहीं कहा कि दाढी वाले से उसका कोई सम्बन्थ नहीं था ।

उन सब बातो का अंब कोई मतलब भी नही रह गया था । विनम्र को फोटुओं की जरूरत थी और उसके लिये दो करोड़ तो क्या, इससे कई गुना ज्यादा भी खर्च कर सकता था।। हां एक बात जरुर बार-बाऱ _ उसके मस्तिस्कै में गूंज रहीं थी । वह बात जो चक्रधर चौबे को ब्लैक मेल कर रहे पवन प्रघानं ने कही थी्--" हर ब्लेक मेलर एक जौक होता है ।वह सोने के अंड़े देने वाली मुर्गी को एक ही झटके से हलाल कर देने की बेवकूफी कभी नहीं करता बल्कि जौक बंनकर सारा खून पीने में विश्वास रखता है ।" यही है बात वाद में चक्रधर चौबे ने भी कही थी ।



विनम्र निश्चय कर चुका था…वह अपने साथ ऐसी कोई भी हरकत नहीं होने देगा ।। दो करोड मे सभी फोटो और
नेगेटिव उसे देगा तो ठीक वर्ना सख्ती से पेशं आएगा । अंटेची में विनम्र दो
करोड रुंपये लाया था तो जेब में रिवॉल्बर पडा था ।


दुढ़ निश्चय करके आया था वह--रिवींल्बर का भी इस्तेमाल करना पड़ा तो चूकैगा नहीं ।। निश्चय करते वक्त वह कांप-सा उठा था परन्तु सोचा था---जिस झमेले में फ'स गया है उससे निकलने के लिए हिम्मत तो दिखानी ही पडेगी । मजबूरी है । न तो फोटुओं को कोर्ट तक पहुचने देगा, न ही ब्लेक मेलर जौक बनने देगा ।


इनमे से किसी भी बात क्रो वह अफोर्ड नहीं कर सकता था । टैक्सी बाले को विदा करने के बाद विनम्र बसेरा के गेट की तरक बड़ा।।


अपने पहियों पर चलती अटैची उसके पीछे थी । डोरी विनम्र के हाथ मे ।


फौन पर कह दिया गया था------"बैल बजाने की कोई जरूरत नहीं है दरबाजा खोलकर सीधा अंदर चले आना ।"


विनम्र ने बैसा ही किया।।
लोहे वाला गेट खोलकर छोटी सी गैलरी मे पहुंचा ।। वहां खटारा भी नजर आने वाली मारूति वेन खड्डी थी ।


गैलरी में इमारत के अदर जाने के लिए लकडी का एक दरवाजा था ।

वह खुला हुआ था ।



विनम्र समझ गया---उसी के लिए खुला रखा गया है ।। अटैची को घसीटता वह अंदर दाखिल हो गया । मुश्किल से चार-पाच कदम चलने के बाद खुद को लाबी मे पाया । बहुत कम रोशनी थी वहां । अभी चारों तरफ का निरीक्षण कर ही रहा था कि वातावरण में फोन वाली लड़की की ख़नखनाती सी आबाज गूंजी-"उस कमरे में चले आओं मिस्टर विनम्र जिसकी लाईट आंन है ।।"


विनम्र ने चारों तरफ नजर दौड़ाई ।।।


लाबी में चार कमरों के दरबाजे थे ।।


चारों बंद । केवल एक रोशनदान के कांच पर रोशनी नजर अा रही थी, बाकी तीन एक लाबी में रोशन बल्ब के कारण चमक रहे थे ।।


विनम्र का दिल धाड़-धाड़ कर के बजने लगा था ।।
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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