कठपुतली -हिन्दी नॉवल complete

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Jemsbond
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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" व--बिनम्र।। बिनम्र ।।" भयभीत क्रिस्टी नजरें उसके चेहरे पर जमाये, सहमी हुई दरवाजे की तरर्फ सरक रही थी---'क-क्या हो गया है तुम्हें? ये तुम क्या कह रहे हो?"



दांत पीसते विनम्र ने कहा'--'"तू यह जानना चाहती है न कि मैंने बिदु की हत्या क्यों की? तो सुन-मुझे मरते वक्त किसी लड़की का जिन्दगी के लिए छटपटाना बहुत अच्छा लगता है । मैं वो रोमांचकारी मंजर एक बार फिर देखना चाहता हूं लड़की । तेरी ये सुराहीदार गर्दन कुछ और लम्बी हो जाएगी । आ । मैं तेरी गर्दन दबा दूं ।"



भयाक्रांत क्रिस्टी चीख पड़ी---“वचाओ...... .बचाओं!"'


उसी क्षण ।


किसी ने कमरे का बंद दरवाजा बहुत जोर से पीटा ।


साथ ही एक मर्दानी दहाड़ गूंजी-----"दरवाजा खोलो ।।"
परन्तु ।।


अब विनम्र पर किसी आवाज का कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।।


किसी 'बाहरी' आवाज को अब मानो वह सुन ही नहीं पा रहा था ।।



दिलो-दिमाग और पूरे वजूद पर अब केवल एक ही आवाज का कब्जा था।।


उस आवाज का, जो उसके जेहन में गूंज रही थी । जो बार--बार 'लडकी' को मारने के लिए प्रेरित कर रही थी ।


दरवाजे के उस तरफ़ से नाटे की आवाज सुनकर क्रिस्टी के हौंसले में थोड़ा इजाफा हुआ ।


दरवाजा खोलने के लिए वह उस तरफ़ झपटी ही थी कि विनम्र कबूतरी पर झपटने वाले बाज की तरह लपका । अगले पल-क्रिस्टी की नाजुक गर्दन उसके मजबूत हाथों की गिरफ्त में थी ।


क्रिस्टी छटपटाई ।


वह उसकी गिरफ्त से निकलने की कोशिश कर रही थी । मुह से "गूं-गूं'' की आवाज निकलने लगी ।


दरवाजा अब जुनूनी अवस्था में पीटा जाने लगा था । मानो उसे तोड़ डालने की केशिश की जा रही तो । मर्दानी आवाजं के साथ ही अब एक जनानी आवाज भी बार-बार दरवाजा खोलने के लिए चिल्लाने लगी । वह आवाज मारिया की थी मगर, विनम्र पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा । उस शख्स पर फर्क पड़ना भी क्था था जिसे वे आवाजे सुनाई ही नहीं दे रही थी ।

अपनी ही दुनियां मे खोया था वह । क्रिस्टी की गर्दन दबाता, दांत , भींचे कह रहा था---"हां । अब अा रहा है मजा । वाह । क्या तड़पन है तेरी । तड़प । और तड़प । वाहा ।। तेरी ये बाहर को उबलती हुई आखै कितनी आकर्षक लग रही हैं । देख, तेरी जीभ बाहर निकल अाई है । कुत्ते की जीभ की तरह लटक रही है ये । वाह ! क्या मंजर है । कुतिया ही तो है तू ! तुझे मर जाना चाहिए । तू इसी लायक है । तू इसी लायक है ।

बार--बार यही शब्द दोहराता विनम्र अपने हाथो की पकड मजबूत और मजबूत करता चला गया ।


और फिर ।


" क्रिस्टी के हाथ-पांव ढीले पड़ गए । कोई छटपटाहट बाकी नहीं रही गई उनमें ।। गर्दन खरगोश की गर्दन की तरह उसके हाथों के बीच झूलती रह गई ।।
विनम्र ने जब राख हुआ चेहरा, फ़टी हुई आंखें और लटकी हूई जीभ देखी तो मस्तिष्क को झटका सा लगा ।


बडी तेजी से उसके बजूद पर हाबी जुनून सा उतरता चला गया । ऐसा महसूस किया उसने जिस्म के अंदर से कोई परछाई निकलकर अभी-अभी बाहर गई हो ।


क्रिस्टी की गर्दन को अपने हाथो में देखकर यूं चौंका जैसे अपनी हथेली पर रखे दहकते अंगारे को देखकर चौंका हो ।


"है भगवान ।"' दिमाग में वाक्य कौधें-----"ये क्या हो गया? कैसे हो गया? क्या कर डाला मैंने ? "



घबराकर उसने क्रिस्टी की गर्दन से हाथ हटा लिए ।


लाश 'धाड' की आवाज के साथ फर्श पर जा गिरी ।


अब वह फटी-फटी आंखों से लाश को देख रहा था । हेरानियां ही हैरानियां थी उसके चेहरे पर ।


दिमाग मे उसकी अपनी आवाज गूंज रही थी----'तूने एक और हत्या कर डाली विनम्र बिंदू की तरह तुने इस लड़की को भी मार डाला ।'


पहली बार ध्यान बंद दरवाजे पर पड़ रही चोटों पर गया ।


कानो में मारिया और नाटे की आवाजें घुसी ।


याद अाया------वह यहाँ ब्लैक मेलर को दो करोड रुपये देने आ्या था । "लडकी ने उसे लुभाने की केशिश की और ........ उसके बाद का सब कुछ उसे एक स्वप्न की तरह याद था । स्वन टूटा तो मरी हुई लडकी की गर्दन हाथों में झूल रही थी ।


वह समझ गया---दरवाजे के उस पार लड़की के साथी हैं ।


दरवाजा तोड़ने की कोशिश वही कर रहे है ।


अगर वह उनके हाथ पड़ गया तो मारा जाएगा या जेल की हवा खायेगा । बौखलाकर उसने चारो तरफ़ देखा----तलाश किसी ऐसी खिडकी की थी जिसके के जरिए कमरे से भाग सके मगर, ऐसा काई रास्ता नहीं था । खिड़की थी जरूर लेकिन उस पर मंजबूत ग्रिल लगी हुई थी । और फिर उसने सोचा'-"भागने से क्या होगा? इसके साथियों ने उसे इसकी हत्या करते देख लिया है । वे पुलिस को सब कुछ बता देगे ।



बिज्जू के द्वारा खीचें गए फोटो भी हैं उनके पास ।

फोटुओं के सामने अाने का मतलब है------उसका खेल खत्म ।


नहीं । वह खेल इतनी आसानी से खत्म नहीं होने देगा ।


कुछ करना होगा ।
क्या कर सकता है ?


एक ही रास्ता है---किसी भी तरह फोटो हासिल किए जाये ।



विनम्र इस नतीजे पर पहुंचा ही था कि वातावरण में' धड़ाम की जोरदार आवाज गूंजी ।


किवाड़ क्रमरे कै फर्श पर आगिरा था।



किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए विनम्र ने जेब से रिवॉल्बर निकाल लिया ।


एक चार फुटा शख्स ओंर वेहद मोटी औरत उसके सामने थे । चेहरे पर दहशत लिए चौखट के उस पार खड़े वे फ़टी-फटो आंखी से लड़की कीलाश को देख रहे थे । लाश के देखते ही देखते नाटे पर जाने कैसा जुनून सवार हुआ कि विनम्र की तरफ देखता हुआ दहाड उठ-----" तुने -मेरी बीवी को मार डाला हरामजादे ! मेरी क्रिस्टी को मार डाला तूने ?"


नाटा गेंडै की तरह गुर्राकर उसपर झपटा ।।

गुस्से की ज्यादती के कारण उसे विनम्र के हाथ में मौजूद रिवॉल्बर तक नजर नहीं आया था ।


और ......


बौखलाहट में हां -- उसे विनम्र की बौखलाहट ही कही जाएगी । अंगुली ने ट्रेगर दबा दिया ।


" धांय ।"


सारा मकान दहल उठा ।


एक दहकता शोला नाटे के दिल में धुस गया ।


उस वक्त हबा में था । हबा में ही पलटियां सी खाई और मुंह से निकली अंतिम चीख के फर्श पर पर पड़े किबाड़ पर जा गिरा ।।

मारिया ने जा नाटे का जब यह हाल देखा तो दरवाजे ही पर सै "बचाओ बचाओ' चीखती हुई पलटक्रर लॉबी की तरफ भागी ।।।


विनम्र चीखा ---" रूक जाओं ! भागने की कोशिश की तो गोली मार दूंगा ! "


जहां की तहां खड़ी रह गयी मारिया ।।

यु जैसे जादुके जोर से स्थिर कर दी गई हो ।
भला मरने से कौन नहीं बचना चाहता । विनम्र के बगैर कुछ कहे उसने समर्पण की मुद्रा में दोनो हाथ हवा में उठा दिए ।



उसकी इस हरकत पर विनम्र का हौंसला बढ़ा । हुक्म सा दिया'---" मेरी तरफ़ घूमो!"



मारिया ने आदेश का पालन किया ।


उफ्फ! मौत का खौफ क्या होता है, अगर किसी को यह देखना होगो इस वक्त मारिया के चेहरे को देखे।।।


पूरी तरह निस्तेज । बेजान । कान्ति विहीन चेहरा ।

श्मशान की राख-सी उड़ती नजर आ रही थी यहाँ ।


ब्लेड मारा जाए तो खून का एक कतरा तक बरामद न हो सके ।


मारिया जीवित थी मगर आंखों मे जीवन का कोई चिन्ह नजर नहीं आ रहा था । उसकी इस हालत ने विनम्र में साहस का संचार किया ।


रिवॉल्वर उसी पर ताने धीरे धीरे उसकी तरफ बढा ।


मारिया को वह यमराज के दूत से कम नजर नहीं आ रहा था ।


वह, जो आहिस्ता-आहिस्ता उसके नजदीक बेहद नजदीक आ गया ।


उस वक्त मारिया के जिस्म ने खून की जगह मौत का खौफ़ गर्दिश कर रहा था जब विनम्र ने रिवॉल्वर की दहकती नाल उसके माथे के बीचों-बीच रख कर कहा---“बिज्जू द्धारा खींचे गए फोटो और उनके निगेटिब्ज कहां है ?"


मरने से बचने की अभिलाषा ने मारिया से कहलवाया ।

" म- मेरे 'बार' में । बार में मौजुद मेरे पर्सनल बेडरुम में ।।"
" बस करो.. बस करो। प्लीज ।" इलैक्ट्रीक शॉक्स ने चक्रधर चौबे को मानो तोड़ डाला------"कुबूल करता हूं । विंदु की हत्या मैंने ही की है । मैंने ही गला दबाकर मारा था उसे ।"


" क्यो?" टमाटर खाते गोडास्कर ने पूछा ।


"कारण वही है जिस तक तुम पहले ही पहुंच चुके हो ।" इलेक्ट्रिक चेयर पर बैठा चक्रधर चौबे हाल वैहाल हो चुका----"मैं उसकी हत्या के ईल्जाम में विनम्र को फंसाना चाहता था ताकि मुकम्मल
'भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कम्पनी" उसी तरह मेरे कब्जे में आ जाए जिस तरह मेरे द्वारा विनम्र को सोंपने से पहले थी ।"


"अगर तुम यही स्थिति बहाल करना चाहते थे तो विनम्र को सौंपी ही क्यों थी? सारा होल्ड तो तुम्हारा था ही ।
विनम्र को अपने नीचे काम करने पर मजबूर कर सकते थे ।"



" ब-बताता है । सव कुछ बता दूंगा । मगर प्लीज, पहले उसे वहाँ से हटा दो । मैं और नहीं सह सकता ।" कहने के साथ उसने गर्दन से उस कांस्टेबल की तरफ इशारा किया जो इलेक्ट्रिक मशीन के नजदीक खड़ा था ।



गोडास्कर के इशारे पर बार--बार बहीं चक्रधर चौबे को इलैक्ट्रिक शाक दे रहा था ।



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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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गोडास्कर ने अपने उस हाथ से कांस्टेबल को मशीन से दूर हटने का इशारा किया जिसमें टमाटर था ।


कांस्टेबल एक तरफ हट गया ।।



गोडास्कर ने टमाटर में एक और "बुड़क' मारने के साथ कहा----"चालू हो जाओं मामा जानी ।"


"विनम्र के पिता यानी मेरे जीजा की मौत के बाद व्यापार को सम्भालने वाला क्योकि कोई और नहीं था इसलिए मुझें मौका मिला । अगर ये कहूं तब भी गलत नहीं होगा, जिस तरह बिल्ली के भाग्य से कभी-कभी छींका टूट जाता है । उसी तरह जमा-जमाया बिजनेस मेरी झोली में अा गिरा था । खुद को बहन और भांजे का सबसे वड़ा शुभचिन्तक दर्शाया और मुकम्मल कंस्ट्रक्शन कम्पनी का मालिक वन बैठा । मुझे उस वक्त विनम्र को पालने-पोसने और पड़ाने-लिखाने में कोई बुराई नजर नहीं अाई । अाज कह सकता हूं ---मैं दूरदर्शिता से काम नहीं ले सका या । पहला झटका तब लगा जब विनम्र जवान हो गया । अमेरिका से बिजनेस मेनेजमेन्ट का कोर्स करके वापस अाया । कुंती कहने लगी--------" भैया वह वक्त अा गया है जब हमे विनम्र की अमानत उसे सोंप देनी चाहिए । वहुत मेहनत कर ली आपने । अब आपके आराम का बक्त्त अाया है । विनम्र मेहनत बनेगा और अाप चेन से लाइफ़ इन्जॉय करेगे । मैं कुंती की इस किस्म के बातो को सुनकर टालता रहा मगर कब तक टाल सकता था? उन बातों को ज्यादा अनसुनी करने का मतलब था-मेरी नीयत पर कुंती को शक हो जाना । एक दिन ऐसा आ ही गया जब मुझें सारी बागडोर विनम्र को सौंपनी पड़ी । उस वक्त भी ज्यादा झटका नहीं लगा था ।


कारण

विनम्र की यह कहना था---"काम भले ही मैं देखूंगा । मामा असली मालिक आप ही रहेगे ।" मेरा दिल उस वक्त गदगद हौगया था ।।।
सोचा था---कमान विनम्र को सौंपकर मैं कोई ज्यादा बड़ी भूल नहीं कर रहा हूं ।' बहरहाल, एक दिन बाप को भी बेटे के जबान हो जाने पर सव कुछ उसी के हवाले करना होता है मगर थीरे-धीरे मेरी समझ में यह अाता चला गया'----बातो और 'प्रैक्टिकल‘ में बड़ा फर्क होता है । मैं यह नहीं कहूंगा कि विनम्र या कुंती ने मुझे उपेक्षित किया ।। बस यूं समझो-उपेक्षित होता चला गया मैं । बात स्वाभाविक भी थी । कम्पनी का मालिक तो बहीं होता है जो मालिक बाले काम करे । वे सारे काम विनम्र कर रहा था । सो, स्टाफ की नजरों मैं बही मालिक था । अब किसी की आखों में मैं अपने लिए वह सम्मान नहीं देखता था जो देख पाने की आदत मालिक रहते पड़ गई थी। वस । ऐसे ही हालात मुझे कचोटने लगे मालिक का सम्मान पाने की इच्छा बलवती होती चली गई यह काम तभी हो सकता था जब्र विनम्र न रहे । झूठ नहीं बोलूंगा ।। । कई बार विनम्र की हत्या करने का ख्याल भी दिमाग मे आया परन्तु अंजाम देने का साहस न जुटा सका । उस दिन मैंने अपने षडृयंत्र का ताना-बाना बुन लिया । जिस दिन एक -स्टाफ मेम्बऱ से पता लगा-नागपाल ने विनम्र को ओबराय में बुलाया है और बतोर रिश्वत बह उसे लडकी पेश करने वाला है । मैंन सोचाे -खांत्मा विनम्र का नहीं, लड़की का करना चाहिए इस तरीके से कि हत्या के इल्जाम मैं विनम्र फंस जाए । उसके बाद मैंने जो कुछ जैसे किया, वह तुम जानते ही हो ।" इतना कहकर चक्रधर शांत होगया ।



“फिर भी बताओ-कैसे, क्या किया?"


"मैँ अपने कमरे के दरवाजे के "की होल' से सुईट के दरवाजे पर नजर रखे हुए था । ज्यादा विस्तार में न जाकर अगर केवल यह बता दू तो शायद आपके लिए काफी होगा कि आधे घंटे के अंदर मैं विनम्र के वापस जाने पर चौंका था । क्योंकि जो दावत बिदू के रुप मैं उसे दी गई थी वह इतनी जल्दी खत्म नहीं होनी चाहिए थी । यह तो मुझे बाद में पता लगा----विनम्र ने विदु की दावत ठुकरा दी थी । तव बाद अाया सुईट से निकलते वक्त विनम्र थोडा भन्नाया हुआ था । उस ववत मैंने इस बात पर बस ध्यान नहीं दिया था । देता भी कैसे? दिमाग तो अपने प्लान को कामयाब करने में उलझा हुआ था । उसी के तहत सुईट के दरवाजे पर पहुचा । कालबेल बजाई । बिंदू ने दरवाजा खोला था । अपने सामने एक अजनबी को देखकर अभी, वह ठीक से चौंकी भी नहीं थी कि मैंने झपटकर उसकी गर्दन दबा दी और तभी छोडा़ जब वह मर चुकी थी ।।
जब वह मर चुकी । हत्या के वाद सोचा---पुलिस को उसकी गर्दन से मेरी अगुलियों के निशान मिल जायेगे । बाथरूम में गया । एक टॉवल लाया । लाश की गर्दन से अपनी अंगुली के निशान साफ किए और फिर गर्दन के चारों तरफ इस तरह लपेट दिया जेसे हत्या उसी से दवाकर की गई हो ।"




" बिज्जु-तुम्हारे पंजे में कैसे फंस गया?"



"बात तब की है जब में बिंदू की लाश पर टांबल लपेट रहा था ।" ' चक्रधर चौबे इस तरह कहता चला गया जैेसे यह सव कहना उसकी मजबूरी हो-----"परछाई सी सुईट के बेडरूम से निकलकर मुख्य द्वार की तरफ लपकी । मैं चौंका । वह डरा जा था । इतना काफी था-उसने मेरे हाथो से होती बिंदू की हत्या देखी है । मैं झपटा । जेब से डोरी निकलकर उसके गले में डाली और…

'एक मिनट । गोडारकर ने टोका । सारा टमाटर गडप किया ओंर पूछा…"डोरी तुम्हारी जेब में कहाँ से आगई?"



"घ-घर से लेकर चला था ।" चक्रधर चौबे थोडा गड़बड़ाया ।


टिमाटर चबाते गोडास्कर ने अगला सवाल पूछा ।


" किसलिए?"


"म-मेरा इरादा बिंदू को उसी डोरी से खत्म करने का था । "


' "मगर खत्म किया विज्जू को ?"


" हां । "


"ओंर बिदू की ईह लीला हाथों से समाप्त कर दी?"

"वता चूका हूं । "


"बता तो चुके हो मामा जानी मगर बात जम नहीं रहीं ।" इन शब्दों के साथ गोडास्कर कुर्सी से खड़ा होगया ।


चक्रधर चौबे के मुंह से लड़खड़ाती आवाज निकली-----" मतलब?"



'"मामला थोड़ा उल्टा बल्कि थोड़ा नहीं पूरा का पूरा ही उल्टा हो गया है ।" कहने के साथ गौडास्कर ने टॉर्चर रूम मैं चहलकदमी सी शुरू कर दी । जेब से ट्रपल फाईव का चॉकलेट निकालता हुआ बोला------ "डोरी का इस्तेमाल तुम्हें बिंदू को मारने में करना चाहिए था , बकौल आपके जैसा कि सोचकर गए थे क्योंकि उसका मर्डर करते वक्त तुम शान्त दिमाग थे । मानसिक रूप से मर्डर करने के लिए तैयार थे । तुम्हें मालूम था-दृरवाजा खुलेगा । सामने बिंदू होगी ।
उसका क्रियाकर्म करना है । गोडास्कर के ख्याल से तो डोरी उस वक्त हाथ में तैयार होनी चाहिए थी क्योकि उसे लाये ही बिंदू पर इस्तेमाल करने के लिए थे मगर यूज नहीं की और फिर यूज की तो वहां के जहां उसे यूज करने का होश ही नहीं होना चाहिए था । बिज्जू का कत्ल अचानक करना पड़ा । हड़बड़ाहट में करना पड़ा । तुम्हरि पास डोरी निकालने का वक्त कहाँ रहा होगा उस वक्त । उसका कल्ल भी हाथों से होना चाहिए था । बिंदू का डोरी से । यहां सब उल्टा-पुल्टा है । नहीं ।" उसने चाकलेट में बूड़क मारने के साथ कहा---"बात ज़मी नहीं दोस्त । इसने कोई पेच है ।" चक्रधर चौबे के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी थी । बोला------" जो मैंने किया या हालत ने मुझसे कराया बह बता रहा हूं। अब आपको यह जम नहीं रहा तो इसमे मैं क्या कर सकता हूं ?"


" जानता हूं मामा जानी, तुम कुछ नहीं कर सकते । करना तो सब कुछ गोडास्कर को ही पड़ेगा । खैर !! ये बताओ-उसके बाद क्या हुआ? तुम्हें कब और कैसे पता लगा कि विज्जू ने फोटो खींचे हैं?''


"भागते वक्त कैमरा उसके हाथ में था जो उसकी मौत से पहले ही क्रापेंट पर गिर क्या था । उसे देखने के बाद कुछ भी समझने की जरूरत बाकी नहीं रह गई थी । मैंने कैमरा उठाया । शटर खौला । रील निकालकर अपनी जेब के हवाले की और कैमरा बंद करके बिज्जू की जेब से ठूंस दिया । उसके बाद अाप जानते ही हैं, बिज्जू की लाश को ।


"रील कहाँ है?" गोडास्कर ने चाकलेट 'कुतरी' ।



"उसे मैं जला चुका हूं ।" चौबे के पास जवाब तैयार था ।


"शाबास । काफी अच्छा जवाब सोच रखा था । यहां अाकर तुमने गोडस्कर की बधिया बैठा दी । अागे बड़ने के सारे रास्ते बंद कर दिए ।"


" क्या मतलब?"



"मतलब सीधा है मामा जानी । काफी घुटे हुए हो तुम । पहले ही सोच चुके हो----जो बयान टॉर्चर चेयर पर दिया है, कोर्ट के कटघरे में खड़े होकर उस सबसे मुकर जाना है । एक ही बात कहनी है-हवालात में तुमने जो कुछ कहा पुलिस ने टॉर्चर करके जबरदस्ती कहलवाया था । यह सब झूठ है और.... .यह सब सच है, यह साबित करने बाला गौडास्कर के पास कोई प्रूफ नहीं होगा । नहीं मामा जानी, गोडास्कर इतना वड़ा गधा नहीं है । तुम्हें कोर्ट में पेश करने से पहले गोडास्कर के पास इस बयान को सच साबित करने बाला प्रूफ होगा ताकि तुम मुकर ना सको और
प्रूफ बिज्जू द्वारा खींचे गए फोटुओं से शानदार क्रोई हो नहीं सकता । नतीजा ये ---- तुम्हें बताना होगा, फोटो या रील कहां हैं?"


"कह चुका है । रील मैने जला दी । भला ऐसी चीज को छोड़ता ही क्यों जो मेरे गले का फंदा वन सकती थी?"

"'हवलदार ।" गोडास्कर ने इलैक्ट्रानिक मशीन के नजदीक खडे़ शख्स को पुकारा ।




"यस सर ।" वह मुस्तेद था ।


"समझ ही गए होगें , मामा जानी को खुराक की जरूरत है ।"


समझ चक्रधर चौबे भी गया गोडास्कर क्या कह रहा है । उधर हवलदार मशीन के स्वीच की तरफ बढा इधर आतंकित चौबे चीख पड़ा।


" प प्लीज । ऐसा मत करो गोडास्कर । मैं सच कह रहा हूं । रील मेरे पास नहीँ हैे ।"


अागे के शब्द चीख में तब्दील हो गए । सारा शरीर विधुत तरंगों से थरथरा उठा था ।


उसके बाद तो मानो यह सिलसिला ही चल पड़ा । हवलदार इलेैक्ट्रिक शाक दे रहा था । चक्रधर चौबे बार-बार कह रहा धा-‘रील मेरे पास नहीं है हूँ चाकलेट खाते गेडास्कर को रील चाहिए थी । रील जव चक्रधर चौबे पर थी ही नहीं तो वे कहां से देता?


अंतत: 'चीखता-चिल्लाता' चौबे बेहोश हो गया ।


यहीं वक्त था जब हवालात का दरवाजा खुला ।। दौलतराम नजर
अाया ।।।



गोडास्कर उस पर घुड़का----" तुं कहां था वे?"



"आप ही ने तो भेजा था सर । फिंगर प्रिंटृस एक्सपर्ट के पास ।"



"औह ।। हां । याद अाया । क्या खबर लाया वहां से?"



दौलतराम जानता था…यह गोडास्कर की स्टाईल है, वरना याद उसे सव रहता था । बोला----"रिपोर्ट अापकी मेज पर रखी है सर ।"


‘रिपोर्ट वहां है तो गोडास्कर यहां क्या कर रहा है? ' कहने के साथ बुलडोजर-सा दरवाजा की तरफ लुढ़का ।



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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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कुछ देर बाद उसकी टेबल पर रखा टेबल लेम्म अॉन था । वह फिंगर चिप्स चबाता हुआ कुर्सी पर बैठा रिपोर्ट का अध्ययन कर रहा था ।।।
एकाएक उसने अपना भारी-भरकम चेहरा उपर उठाया । मेज के उस पार सावधान की मुद्रा में खडे़ दौलतराम से कहा ।



"इस बार तो गोडास्कर भी गच्चा खा गया दौलतराम?”



"ग-गच्चा? और अाप! नहीं सर । मैं नहीं मान सकता ।"



"अबे जब गोडास्कर ही मान रहा है तो तेरे मान लेने से कौन सा तेरी शान घट जाएगी ।"



" ज- जी ?" वह सकपकाया ।



" इलैक्ट्रिक चेयर पर पड़ा जो शख्स कुछ देर पहले हाय-हा्य कर रहा था, कातिल बह नहीं है ।"



"क-वया बात कर रहे है सर?" दौलतराम उछल पड़ा -----"मैं नहीं मान सकता । आपसे और गलती । हो ही नहीं. . .




"हो चुकी है दौलत राम । गल्ती तो हो चुकी है और हो भी गई है तो अनर्थ नहीं हो गया । गोडास्कर भी इंसान है है आसमान से उतरा फरिश्ता नहीं है । इंसान तो साला है ही गलतियों का पुतला ।"



"मगर सर, इतनी बड्री बात आप कह किस वेस पर रहे है?”



"बेस सामने पड़ा है गोडास्कर के । ये रिपोर्ट । सुईट के अंदर से नागपाल की अंगुलियों के निशान मिले है।। बिंदू के निशान मिले है । बिनम्र और बिज्जू के निशान मिले हैं ।। नहीं मिले है तो मामा जानी के निशान नहीं मिले है । एक ही मतलब हैं इस बात का । यह शख्स सुईट के अंदर गया ही नहीं । गया होता तो कहीं न कहीं से निशान जरूर मिलते ।"



" सर । हो सकता है उसने अपने निशान मिटा दिए हो ?"


'"मिटाता तो मिटाने के निशान होते ।वे भी नहीं हैं उस पोजीशन में इन चारों के निशान भी कहीं न कहीं से मिटे हुए जरुर होने चाहिएं थे । नहीं दौलतराम । गोडास्कर मान ही नहीं सकता कि मामा जानी सुईट गए थे ।"




"तो फिर उन्होंने हत्याएं करनी क्यों कुबूल कर ली ?"




"गोडास्कर तुझे इलाक्ट्रिक चेयर पर बैठ देता है । दो चार झटकों से ज्यादा झटके नहीं देने पड़ेंगें । गोडास्कर तेरे सामने खडा होगा और तू कुबूल कर लेगा कि कि तूने गोडास्कर का कत्ल एक साल पहले करके दो गज जमीन के नीचे दफना चुका है ।"


दौलतराम के जिस्म में झुरझुरी-सीं दौड़ गई बोला---"कह तो आप ठीक रहे हैं सर ।"


"अब दूसरी ठीक बात सुन ।"
" सुनाइए ! "



"बिज्जू का कत्ल भी मामा जानी ने नहीं किया ।"



"तो मामा जानी ने किया क्या है सर?"



"उस पर खोपडी बाद में घुमाएंगे । फिलहाल किस्सा इस रिपोर्ट का है । रिपोर्ट कह रही है…कैमरे पर भी मामा जानी की अंगुलियों का कोई निशान नहीं है । जबकि कहलवा तो गौडास्कर ने उससे यह भी लिया है कि विज्जू का कत्ल करने के बाद उसके कैमरे से रील उसी ने निकाली थी । जो गोडास्कर ने चाहा, कहता गया वेचारा । अटका बहां जंहा मजबूरी थी ।।। रील जव उसके पास है ही नहीं तो दे कहाँ से देता ?"




"तो रोल किस पर है सर ?"


" किसी लड़की पर !"


" लड़की पर?"



"कैमरे पर बिज्जूके अलावा केवल एक लड़की की अगुलियों कै निशान है "



" बिन्दू के अलावा इस केस में और कौन-सी लडकी आ घुसी?"




" म-मारिया ।" गोडास्कर मेज पर जोरदार घुसा मारने के साथ एक झटके से खडा हो गया--'"मारिया ही हो सकती है वहां या उसकी वहन । क्या नाम था उसका? शायद क्रिस्टी । गोडास्कर को उन दोनों की अंगुलियों के निशाने लेने होंगे ।"


"इस वक्त सर?"


"क्यों इस बत्त क्या हुआ ?"


"रात कै बारह बज रहै है ।"


"तू बार-बार भूल जाता है दौलतराम ? याद रखा कर । पुलिस वालो की ड्यूटी चीबीस घंटे की होती है । तू यहीं रह ।। सीट सम्भाल गौडास्कर की । गोडास्कर मारिया बार, यूं गया और यूं अाया ।" कहने के बाद दौलतराम को वह अफिस के दरबाजे से बाहर निकलता नज़र अाया । उसे यूं लगा-जैसे नजदीक से हबा का झोंका गुजरा हो ।
" य-यकीन करो मेरा ! मेरा यकीन करो मेरा ! " पीले जर्द चेहरे बाली
मारिया का लहजा कांप रहा था--"मैंने सब कुछ तुम्हें दे दिया है । निगेटिब्ज की पूरी रील और सारे पोजिटिव । अब इन फोटुओं का मेरे पास कोई प्रिन्ट नहीं है ।"


रिवॉल्वर उसके मस्तक पर रखै विनम्र गुर्राया--"अगर इनमे से एक भी फोटो का एक भी प्रिंट तेरे पास निकल आया तो. . .



"नहीं निकलेगा । कसम खाकर कह सकती हूं ।। सव तुम्हें सौंप दिए है ।"



इस वक्त वे "मारिया बार' के बेसमेन्ट में स्थित मारिया के पर्सनल बेडरूम में अामने-सामने खड़े थे ।। सच्चाई ये है कि बिनम्र को अब इस खेल में आनन्द अा रहा था है अानन्द आने का कारण था-मारिया की हालत ।


बह तो यह सोचा करता था कि अगर किसी पर रिवॉल्वर तान दिया जाए तो उसकी सिटृटी-पिटृटी गुम हो जाएगी मगर हालत इतनी बदतर भी हो सकती है जितनी मारिया की थी , ऐसी कल्पना कभी नहीं कर पाया था । बिंदू ओर क्रिस्टी के कत्ल उससे किसी और ताकत ने कराए थे । नाटे को हडबडी मे गोली मार बैठा था । मारिया के मस्तक पर हालात ने रिवॉत्वर रखवाया था ।


उस वक्त बह और करता भी क्या मगर, उसके बाद के सारे खेल ने उसे आनन्दित कर दिया था । मारिया के चेहरे पर मौत के खौफ की कालिख देखी थी उसने ।


रिवॉल्वर की नोक पर मारिया को मकान से बाहर निकाला । गेलरी में खडी वैन की ड्राईविंग सीट पर बैठाया । उसकी कनपटी पर रिवॉल्वर रखकर बगल वाली सीट पर बैठ गया था । उसने कहा’-"गाडी स्टार्ट कर ।" तो उसने स्टार्ट कर दी । इतना ही नहीं, सारे रास्ते उसके आदेशों का इस तरह पालन करती रही जैसे सर्कस में रिंग मास्टर के कोडे़ पर शेर करता है ।


वेन उसके अादेश पर मारिया बार के बाहर रुकी ।।


ग्यारह बज चुके थे ।


बार बंद हो चुका था । स्टाफ़ का कोई आदमी नहीं था यहां और फिर जिस 'शराफत' के साथ मारिया उसे अपने बेडरूम में लाई । एक ही बार के कहने पर सारे पोजिटिब्ज और निगेटिव की रील सोंप दी ।


उससे बिनप्र को लगा---"सब कुछ कितनी आसानी से हो गया । बह सब कुछ जिसके बारे में यकीन ही नहीं थी ।। जिस काम के बह दो करोड तो क्या, उससे कई गुना ज्यादा तक खर्च करने को तेयार था बह फ्री में हो गया ।

कितने आराम से ।


दो करोड से भरी अटैची अभी भी वेन से पड़ीं थी ।


ये खूब रही । भला इससे आसान रास्ता और क्या हो सकता है?


चाहे जिसके सिर पर रिबॉल्बर रखो और चाहे जो करा लो ।



वस ।।



थोड़ी सी हिम्मत की जरुरत होती है ।
उसे यकीन था…मारिया सच बोल रही है ।



सब कुछ सौप चुकी है उसे । कुछ छुपाने या झूठ बोलने की स्थिति में ही कहां थी बेचारी?


अब विनम्र के सामने समस्या थी तो केवल एक ।


मारिया का क्या करें?


जीवित कैसे छोड सकता था उसे?


छोड़ने का मतलब था----अब तक के किए-कराए धरे पर पानी फेर देना ।


उस जैसी 'गवाह’ को भला कैसे छोड़ा जा सकता था । जबकि वह बेचारी उसके रिवॉल्वर की नोंक पर नाची ही अपनी जान बचाने के लिए थी । वह वच नहीं सकती थी । विनम्र को इस बात का अफसोस था ।


हालात को शायद मारिया ने भी अच्छी तरह 'रीड' कर लिया था । तभी तो कहा-----" व-- विनम्र मैं तुमसे वादा करती हूं --आज ही रात से शहर और फिर यह देश ही छोड़ दूंगी । कहीं और जाकर बस जाऊंगी । किसी ऐसी जगह जहां इण्डियन पुलिस के हाथ कभी मुझ तक न पहुच सकें?" मुस्करा उठा विनम्र !!


मरने के डर से किस कदर डर गई है बेचारी । सोचा-------" हां , एक सूरत इसे जीवित छोड़ देनेे की हो सकती है ।" बाएं हाथ में मोजूद फोटो और रील जेब में सरकाए ही थे कि…


बंद दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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दोनों उछल पड़े । पलक भी नहीं झपकी थी कि विनम्र के चेहरे पर भी मारिया जैसा खौफ उभर अाया ।


" क-कौन हो सकता है?" फुसफुसाकर विनम्र ने पूछा ।



मारिया बेचारी के हलक से तो आबाज तक न निकल सकी । इशारे ही से 'पता--नहीं' कहा ।


विनम्र ने रिवॉल्वर से इशारा किया-------" पूछो ।। "


मारिया पूरी ताकत लगाने के बाद हलक से आवाज़ निकाल सकी । । "क-कौन है?"

"गोडास्कर ।" यह आवाज गडगड़ाती हुई विजली बनकर दोनों पर गिरी ।


उस विनम्र की हालत देखने लायक थी जो बस एक ही पल पहले कामयाबी के कधों पर सवार होकर झूम रहा था ।


बुरी तरह हड़बड़ा गया बह । चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी । जिस्म जूडी के मरीज की मानिन्द कांप रहा था ।


मारिया की हालात भी उससे अलग नहीं थी ।


गोडास्कर की आवाज़ उभरी----"दरवाजा खोलो डार्लिग ।"


विनम्र बड़ी तेजी से मारिया के कान पर झुककर फुसफुसाया--"यहां से निकलने का कोई और रास्ता है?"
जैसे लाश की गर्दन इंकार में हिली ।


विनम्र का जी दहाड़े 'मार-मार कर रोने को चाह रहा था ।।



इस बार गोडास्कर ने दरवाजा न खोलने पर उसे तोड़ डालने की चेतावनी थी । वह चेतावनी इतने ठंडे लहजे में दी गई थी कि मारिया बरबस ही दरवाजे की तरफ बढ गई कांपता-हांफता विनम्र उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया । रिवॉल्वर की नाल एक बार फिर उसके मस्तक पर रख दी थी ।



सूखे होठों पर जीभ फेरती मारिया ने कहा-----“वह वगैर दरवाज़ा खुलवाए नहीं जाएगा ।"


"धीरे बोल ।" विनम्र दांत भींचकर गुर्राया ।



"समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे वि…


"धांय ।"


विनम्र ने उसके मुंह से अपना नाम निकलने से पहले ट्रेगर दबा दिया ।



एक चीख के साथ मारिया कटे वृक्ष सी गिरी ।।




उधर, फायर की आवाज ने मानो तहलका सा मचा दिया ।



"क्या हो रहा है अंदर?" गोडास्कर की इस दहाड़ के साथ यूं लगा जैसे दरवाजे से हाथी टकराया हो ।


विनम्र समझ गया----वह गोडास्कर का विशाल जिस्म होगा ।।


एक ही 'बार' में दरवाजा चरमरा गया ।


दूसरा 'वार हुआ ।



विनम्र को इस यकीन ने दहला दिया कि दरवाजा गोडास्कर का "तीसरा" वार नहीं झेल पाएगा ।


झपटकर खुद को दरवाजे के नजदीक दीवार से सटा लिया । 'तीसरे वार' पर किबाड़ का उपरी हिस्सा चौखट से अलग हो गया ।



चौथे वार पर उसे बेडरूम के अंदर गिर पड़ना था । विनम्र को कुछ और नहीं सूझा तो हाथ बड़ाकर 'डंडाला' खोल दिया ।


बाहर से गोडास्कर ने पूरी ताकत लगाकर 'चौथा वार' किया था मगर किवाड "सड़ाक' से खुल गया ।


झोंक में यह फर्श पर पड़ी मारिया के ऊपर जा गिरा ।


विनम्र पलक झपकते ही कमरे से बाहर निकला । यह काम इतनी तेजी के साथ किया था कि गोडास्कर उसे देख न सके । उसे दिखै भी तो केवल पीठ दिखे । जबकि हकीकत ये है----गोडास्कर उसकी पीठ तक नहीं देख पाया था । मारिया के जिस्म से ठोकर खाकर मुंह के वल गिरा था बह ।
जब तक सम्भलकर उठा । पलटा । तव तक "धाड़' की आवाज के साथ दरवाजा बंद हो चुका था । गोडास्कर ने अपने हाथ में मौजूद रिवाल्वर से फायर किया । गोली बंद किवाड़ पर टकराकर रह गई हालांकि वंह अगले ही पल झपटकर दरवाजे पर पहुच चुका था मगर तव तक दरवाजा बाहर से बंद किया जा चुका था । ऊपर की तरफ से चौखट से अलग हो गया दरवाजा जब केवल अंदर की तरफ खींचकर तोड़ा जा सकता था । मगर काफी टटोलने के बावजूद गोडास्कर को किवाड़ में ऐसी कोई चीज हाथ नहीं लगी जिसे पकड़कर उसे अपनी तरफ खींच सके ।।


कंधे के जैसे वार करके उसने बाहर से दरवाजे को तोड़ा था बैसे 'बार अंदर से करके नहीं तोड़ा जा सकता था ।



गोडास्कर कसमसाकर रह गया ।


दरवाजे को खोलने या तोड़ डालने की कोई जुगत नहीं थी । तभी कानो में मारिया के कराहने की आबाज आई ।

वह उसकी तरफ झपटा । मारिया वस मरने ही बाली थी । गोडास्कर फर्श पर बैठ गया ।


उसका सिर उठाकर अपनी जांघ पर रखा । करीब-करीब चीख पड़ा----"कौनं था ? कौन था वह?"



" बह पागल है ।" मारिया अपने मुंह से हर लफ्ज अटक-अट्ककर निकाल पाई--" जुनूनी हत्यारा । क-किसी मर्द को लुभा रही लड़की " को देखते ही गर्दन दबाकर मार डालता है । क-क्रिस्टी को भी मार डाला ।"


"है कौन बो?" गोडास्कर चीखा--"सारी बाते भूलकर नाम बताओ मारिया ।"



" व-वो-वो-वि........."


"हा । हां । बोलो ।" गोडास्कर ने उसे झंझोड़ा मगर, सिर उसकी जांघ पर लुढक चुका था ।।।
मारिया के बेडरूम का दरवाजा बाहर से विनम्र ने नहीं, कुंती देवी ने बंद किया था ।


विनम्र को तो दरवाजा बंद करने का होश ही नहीं रह गया था । वह तो बाहर निकलते ही एक ही जंम्प में काउन्टर पार करके उस हाल में पंहुच गया था जहां शराबी लोग बैठकर पिया करते थे । रुख सीढियों की तरफ था मगर अपने पीछे दरवाजा बंद होने की आवाज सुनकर चौंका ।

ठिठका ।


उस तरफ से गोली चलने की आवाज भी आई थी । याद अाया----बाहर निकलते वक्त उसने एक साए को दरवाजे के नजदीक हरकत करते देखा था ।



दिमाग में बडी तेजी से विचार कौंधें------" कौन थी वह? दरवाजा किसने बंद किया?"


घूमा ।



और अभी ठीक से कुछ समझ भी नहीं पाया था कि दौड़ता हुआ साया उसके नजदीक अाया ।


हाथ पकडकर उत्तेजित स्वर में बोला…"भागो विनम्र ।। गोडास्कर दरवाजा तोड़कर बाहर निकल अाया तो हम वच नहीं सकेंगे ।"



विनम्र के जेहन में मानो अणु बम फटा ।


मां ।।



ये तो मां क़ी आंवाज है


कुंती देवी की ।


सच्चाई ये है कि हैरत की ज्यादती के कारण वह आवाज की आज्ञा का पालन करना भूल गया था । यह जानने के बावजूद भूल गया था कि 'यही उसके हित में है ।' जिन हालात में वह हैं, यही करना चहिए ।।



गोडास्कर बाहर निकल अाया तो सारे किए धरे पर पानी फिर जाएगा ।


वह आंखे फाड़े साए की तरफ़ देख रहा था । साया अब भी कम रोशनी कि के कारण साया ही नजर अा रहा धा । उसे यकीन अाकर नहीं दे रहा था कि वह उसकी मां ही है ।


इधर, कुंती के खींचने पर भी वह सीढियों की तरफ़ नहीं खिंचा तो कहा-"विनम्र प्लीज, सोचने के लिए हमारे पास एक पल भी नहीं है ।निकलो यहां से ।। "



बिनप्र को लगा--- बात सच है । सो, सीढियों की तरफ लपका । जेहन अभी भी फिरक्नी की तरह घूम रहा था ।



सीढियों पर पहुंचकर कुंती देबी ने वहाँ मोजूद दरवाजा भी बाहर की तरफ से बंद कर दिया । बिनम्र अागे था, कुंती देवी पीछे । सीढियां चढ़कर ऊपर कमरे में पहुचे । कुंती देबी ने वहाँ मौजूद दरवाजा भी बंद कर दिया ।


फुटपाथ पर खड्री बेन की तरफ दौडती बोली-"गोडास्कर ने तुम्हें देखा तो नहीं?"


" नहीं ।' वेन के नजदीक पहुंचकर विनम्र ने 'साए' की तरफ देखा ।
वहां स्ट्रीट लाईट के भरपूर प्रकाश के कारण उसने कुंती देवी को साफ देखा था ।।



वह हमेशा की तरह अपने परम्परागत लिबास में थी । सफेद साड़ी, खुले बाजू-वाला सफेद ब्लाऊज ।


विनम्र की हैरत कम होने का नाम नहीं ले रही थी । भागकर अाने के कारण दोनों की सांसे फूली हुई थीं ।


वावजूद इसके विनम्र चीख-सा पड़ा----" त-तुम यहां क्या कर रही हो मां?"


कुंती देवी हड़बड़ा-सी गई घबराकर इधर-उधर देखा ।। वेन के नजदीक ही गोडास्कर की जीप खड्री थी ।


कुंती देवी ने कहा-----'"यह जगह ऐसी बात करने केलिए मुनासिब नहीं है । यहाँ हमे किसी ने देख लिया और बाद में गोडास्कर को बता दिया तो अब तक किया गया सारा संघर्ष वेकार होजाएगा ।"



विनम्र को बात ठीक लगी ।


उसने भी चारों तरफ देखा ।


हालांकि बस्ती सुनसान पडी थी । मगर किसी भी वक्त कोई भी निकलकर सड़क पर जा सकता था ।



विनम्र ने जेब से वेन की चाबी निकली ।।



ड्राईविंग डोर खोला । कुंती देवी घूमकर कंडेक्टर गेट पर पहुंची ।


अगले पल वे विनम्र की बगल वाली सीट पर बैठी थी । इधर विनम्र ने इग्नीशियन में चाबी घुमाकर गाड़ी स्टार्ट की उधर सामने बाले मोड़ से लढ़खड़ाता हुआ एक शराबी मुड़कर इस सडक पर आया । मगर अब विनम्र या कुंती देबी में से किसी को उसकी परबाह नहीं थी ।। वेन कमान से निकले तीर की मानिन्द शराबी की बगल से गुजरी ही थी कि कुंती देवी ने पूछा ---" तुम सारे पाजेटिव और निगेटिव ले आए न?"'



"हां । मगर...........



उसे बोलने का मौका दिए वगैर कुंती ने अगला सवाल किया---" मारिया का क्या हुआ?"



"वह मर गई है ।"


"कैसे?"


“मैंनें उसे गोली मारी थी।"


"हां । कमरे के अंदर से मैंने फायर की अावाज सुनी थी । इसीलिए पूछा…उस आवाज को सुनकर गौडास्कर पर भी मानो जुनून सवार हो गया था । वह हाथी की तरह पीछे हट-हटकर की दरवाजे पर बार करने लगा परन्तु. . क्या तुम्हें यकीन है, मारिया मर गई थी ?"


"मतलब ? "
" अगर वह बच गई होगी तो गोडस्कर को बता देगी गोली मारने बाले तुम थे । ऐसा होगया तो .........


"नहीं होगा । वह मर चुकी थी ।"


कुंती देबी बड़वड़ा उठी---"भगवान करे ऐसा ही हो ।"


"मगर तुम यहाँ क्या करं रहीं थीं मां?" मौका लगते विनम्र एक बार फिर चीख पड़ा-" तुम क्या कर रही थी बंहां?"


" घर चलो । सब बता दूंगी । तुम 'कठपुतली' क्यों वने, शायद यह बताने का वक्त अा गया है ।" कहने के बाद कुंती देवी ने सिर इस तरह कुर्सी की पुश्त पर टिका दिया था जैसे जीवन की दौड में दौड़ते--दौडते थक गई हो ।।



आंखें बंद करली थी उन्होंने ।


विनम्र ने महसूस किया---बह रो रही हैं । आंसूं बंद पलकों से झिरी बनाकर कपोलों पर लुढक अाए थे ।। विनम्र की हिम्मत यह तक पूछने की न पडी वे रो क्यों रहीं हैं । वेन को विला तक नहीं ले गए थे ।


रास्ते ही में एक जगह छोड़ दिया । अपनी अंगुलियों के निशान मिटा दिए ।

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अटैची निकली । कुछ देर पैदल सफर किया ।


फिर एक टैक्सी के जरिए विला पहुचे ।। अपने कमरे में ले जाकर कुंती देवी ने उसे एक कुर्सी पर बैठा दिया ।


बैठते वक्त यह कुर्सी विनम्र को कुछ अलग किस्म की लगी थी ।


बावजूद इसके वह कोई शक नहीं कर सका था लेकिन उस वक्त तो मारे हैरत के उसके रोंगटे खड़े हो गए जब कुंती देवी ने सामने रखे टी .वी ० के ऊपर से एक रिमोट उठाया ।


उसका एक बटन दबाया ।

और परिणाम स्वरूप "खटृट-खटृट’ की आबाज के साथ कु्र्सी के दोनों हत्थों से चमड़े के पटृटे निकले और पलक झपकते ही उन पट्टों ने विनम्र को कुर्सी के साथ जकड़ लिया ।

अब अपनी मर्जी से कुर्सी से उठना तो दूर वह हिल-ठुल तक नहीं सकता था ।

हलक फाड़कर दहाड उठा विनम्र--------" ये तुमने क्या किया मां? क्यो किया ऐसा? ये मै तुम्हारा कौन-सा रुप देख रहा हूं?”
विनम्र के पिता थे वे ।


वे जो अपने से काफी छोटी-उम्र की निहायत ही खूबसूरत लड़की से कह रहे थे-----" मेरा ख्याल है तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए । इसमे बुराई ही क्या है? ऐसे अनेक लोग हैं जिनकी दो या दो से ज्यादा पत्नियां भी एक छत के नीचे रहती हैं । मैंने उन्हे बहनों की तरह रहते देखा है ।

फिर भी, यह नहीं कहूंगा-----तुम कुंती की बहन की तरह रहना । पर इतना तो कर सकती हो----भले ही किसी नौकरानी की तरह सही मगर कुंती इस घर के किसी कोने में पड़ी रहे । मैं तुमसे बादा करता हूं रूबी, तुम्हारे अधिकार से कभी कोई कमी नहीं, अाएगी । सव कुछ तुम्हारा है और तुम्हारा ही रहेगा । "



" यह वह कह रहा है, वह शख्स जिसने मुझसे कोर्ट में शादी की है ।" रुबी नामक खूबसूरत लड़की कहती चली गई ----" जिसने शादी करते वक्त मुझसे हजार-हजार वादे किए थे । कहा था----" कुंती को हमेशा के लिए अपने घर से बाहर निकाल देगा ।"



"वही तो किया है रूबी । यही तो किया मैंने ।" विनम्र के पिता गिड़गिड़ा से रहे थे---" तुमसे किए गए वादे के मुताबिक मैंने अपनी ब्याहता को घर से निकाल दिया है अाज वह दर-की ठोकरें खाती घूम रही है । मुझे किसी ने बताया-----भीख मांगकर गुजारा कर रही है बह । प्लास्टिक की झोंपड़ी बनाकर फुटपाथ पर वहाँ रह रही है जहाँ बंगलादेश के शरणार्थी रहते हैं ।"



"और यह सब सुनकर तुम्हारा कलेजा हिल गया?"
" हां । ये सच है रुबी । कुंती के बारे में सुनकर मेरी आत्मा तक कांप उठी है । रह-रहकर धिक्कार रही है मुझे । कचोट रही है । कह रही है------"तेरी ब्याहता थी । कोई कुसूर भी नहीं था उसका । कुसूर तेरा है । तूने धक्के दे-देकर उसे धर से बाहर निकाला है । इसलिए आज वह गंदी नाली में रेंगने वाले कीडे जैसी जिन्दगी गुजार रही है ।"



"तो तुम यह चाहते हो---" कल वह जिन्दगी मैं गुजारू ?"



"नहीं । मैं ऐसा बिल्कुल नहीं चाहता । ऐसा कब कहाँ मैंने ।। मैं तो ये चाहता हूं कि तुम दोनों...........


" कह चुकी हूं शैलेष । एक बार नहीं, हजार वार कह चूकी हूं ।" रूबी दृढ़ता पूर्वक बोली ---"इस घर में या तो कुंती रहेगी या मैं । अगर तुम उसे यहां लाते हो तो मुझे जाना होगा । मुझे जीनी होगी वह जिन्दगी जिसे आज वह जी रहीं है मगर, कान खोलकर सुन लो मिस्टर शैलेष, मैं कुंती की तरह बेवकूफ़ नहीं हूं । जिसे तुम धक्के मारकर यहाँ से निकाल दोगे और मैं तब भी टसूवे बहाती तुम्हारे कदमों मे गिर जाऊंगी । तुम्हारे न मानने पर धर छोड़कर चली जा्ऊंगी । मुझे अपने अधिकार के लिए लड़ना आताहै ।तुम्हारी 'कीप' जब मैं थी , तब थी-------अब 'कीप' नहीं, पत्नी हूं । कोर्ट में शादी हो चुकी हैं। वह शादी जिसे करते वक्त तुमने मुझसे यहीं वादा किया था जो निभाया भी । कुंती को धर से बेदखल करने का बादा । मगर अब मुकर रहे हो । मैं तुम्हें मुकरने नहीं दूंगी शैलेष । क्यों ? क्यों मुकर रहे हो अब ?"
"रूबी ।। उसके पेट में मेरा बच्चा है ।"



"तो क्या हुआ? कल बैसा ही बच्चा मेरे पेट में भी हो सकता है ।"



"उफ्फ!" कसमसा उठा ---"तुम समझ क्यों नहीं रही?"



"तुम्हे कुंती की कोख मे मौजूद एक बच्चे का ख्याल है । उन दो बच्चों का ख्याल नहीं जो मेरे रखैल रहते तुमने मेरी कोख में डाले थे और फिर तुम्हारे ही कहने पर मैंने 'सफाई' करा ली थी ।"



"तुम भूल रही हो ।" पहली बार शैलेष की आवाज़ ऊंची हुई---“सफाई कराने के लिए मैंने नहीं कहा था । तुम्हारी मर्जी थी वह । अपनी फीगर का ख्याल था । फीगर बच्चे से ज्यादा प्यारी थी तुम्हें ।"




"क्योंकि फीगर ही पर तो कुरबान थे तुम मेरी । बरना कुंती ही में क्या कमी थी जो मेरी तरफ आकर्षित हुए ?"



"हां । ठीक कह रहीं हो । मेरी मति मारी गई थी जो शादी-शुदा होने के बावजूद तुम्हारे रूपजाल में फंसा । मुसीबत मोल ले ली मैने । आदमी साला जब "यौवनजाल' में फंसता है अागे के बारे में कुछ सोच ही नहीं पाता । मुझे पता होता ---- उस छोटे से सुख की इतनी वड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी तो .............



" अब पछताने से कुछ नहीं होगा शैलेष । बच्चे की ख्वाहिश है तो आओ । समा जाओ मुझमें । बच्चा पैदा करना कौन--सा मुश्किल है? दो इसीलिए नाली मे बहा दिए क्योंकि उस वक्त मैं तुम्हारी रखैल थी । अब पत्नी हूं । पैदा कर दूंगी बच्चा । नौ महीने बोझा ही तो उठाना होगा उसका ।"
"बच्चे के लिए जिस तरह की "लेग्वेज’ तुम इस्तेमाल कर रही हो वैसी लेग्वेज इस्तेमाल करने बाली औरत कभी मां बनने के असली सुख को महसूस नहीं कर सकती ।"



"अब तो जैसी हूं , तुम्हारी पत्नी हूं शैलेष । मुझ ही से बच्चा हासिल करना होगा । और कोई रास्ता नहीं है ।"



शैलेष के जबड़े भिंच गए ।गुर्राया---"एक रास्ता है ।"


"कौन-सा रास्ता? ज़रा मैं है तो सुंनू।"



"कानूनी रूप से आज भी कुंती ही पत्नी है ।"



"तुम भूल रहे हो---"हमारी शादी कोर्ट में हुई है ।'"



" भूल तुम रही हो! मैं शादी-शुदा था । तलाक नहीं दे दिया था कुंती को ।

ऐसी अवस्था में तुमसे की गई शादी खुद-व-खुद गैरकानूनी हो जाती है ।"



ऐसा सुनते ही रूबी अवाक रह गई ।।



हालत थी जैसे हवा से परवाज़ करती-करती अचानक जमीन पर आ पडी हो । बहुत देर तक शैलेष को केवल देखती रही । कुछ बोली नहीं । फिर होठो पर मुस्कान पैदा की ।


मादक मुस्कान ।


वह मुस्कान जिसके बारे में वह जानती थी------" शैलेष को अंदर तक रोमांचित कर देने के लिए काफी है ।"



मगर, आज़ शैलेष पर अपनी मुस्कान का उसे वह असर होता नजर नहीं आया जो होना चाहिए था ।। तभी तो कहा----"डार्लिग, आज हुआ क्या है तुम्हें? इतने उखड़े हुए क्यों हो? अाते ही ये किस किस्म की बाते करने लगे ?"






"बताया तो रूबी । मुझे एक आदमी मिला था । उसने कहा’ "कुंती वंगला देशियों की बस्ती में . . .
"छोडो न शैलेष । क्या बेकार की बातें ले वैठे । उसकी बात काटकर रूबी ने अपने जिस्म पर मौजूद गाऊन जैसा लिबास उतार दिया । गाऊन के नीचे वह केवल सफेद अदरूनी बस्त्र पहने हुए थी । वे दोनों कपड़े उसके सांचे से ढले गुलाबी जिस्म पर ऐसे लग रहे ये जेसे गुलाब की पंखुडी की जड़ में सफेद रंग का शेड ।।।




साफ महसूस हुआ…शैलेष का हलक सुख गया है ।



थूक सरकता वह साफ नजर आया ।


ऊंची एड़ी की सैंडिल पर अपने जिस्म को नचाती-सी रूबी अागे बढ़ी । शैलेष की तरफ़ । उसके नजदीक पहुची । नंगी गोल और गुदाज बांहें उसकी गर्दन में डाली ।



बोली------"सुबह से तुम्हारे आँफिस से लौटने का इन्तजार कर रही हूं । जाने क्या-क्या सोचे थी कि तुम्हरे अाते ही यह करूंगी, वो करूगी । सारे जिस्म को चूमूंगी तुम्हारे और तुम्हें भी ऐसा मौका दूंगी कि मेरे सारे जिस्म को चूम सको मगर एक तुम हो आते ही लगे झाड़ने । जानती हूं डार्लिंग आँफिस में सारे दिन का काम तुम्हें थका देता है । थोड़े-चिड़चिड़े हो जाते हो तुम है आओ. .मैं तुम्हारी थकान उतारू ।" कहने के साथ उसने शेलेष को बैड की तरफ खींचा था । शैलेष की मुख-मुद्रा से साफ लग रहा था बह कुछ कहना चाहता है परन्तु रूबी के निमंत्रण को ठुकरा नहीं पा रहा ।



रुबी ने जब महसूस किया-----वह बैड की तरफ खिंचते कुछ हिचक रहा है-------------


तो-------अपने होंठ ऊपर उठाकर शैलेष के होठों पर रख दिए ।
शैलेष कसमसाता नजर अाया । ऐसी कोशिश कर रहा था वह अपने होठो को उसके होठों से अलग करना चाहता हो मगर कब तक? कब तक कर सकता था वह ऐसी कोशिश? साफ नजर अा रहा था-साफ नजर आ रहा था----उसके होठों को चुसकवी रूबी ने ब्रा के अंदर से छलक पड़ने को तैयार अपने यौवन उभार शैलेष की छाती में पेवेस्त कर दिए । अभी तक हिचक रहे, कसमसा रहे शैलेष की बाहें स्वत: बड़ी । रूबी के कोमल जिस्म के चारों तरफ़ लिपट गई ।। रूबी को समेटकर उसने अपने बलिष्ठ जिस्म में यूं समेट लिया धा जेसे चंदन के वृक्ष से नागिन लिपटी रहती है । जाने कब? शायद उसे भी मालूम नहीं था, उसके हाथ रूबी के शरीर पर थिरकने लगे । जाधों से पकड़कर रूबी को उसने ऊपर उठाया । और अब. . वह उसके हेंठों को उससे कहीं ज्यादा जोश में भरकर चूस रहा था ।



"स्टॉप इट. . सटॉप इट ।" कुर्ती के साथ बंधा विनम्र हलक फाड़कर चीख पड़ा । यूं कसमसाया था वह कि सारी कुर्सी को भूचाल झेलना पड़ा ।



चेहरा उसी तरह भभका हुआ था जिस तरह इस किस्म के दृश्य देखकर भभक उठता था । जब तब भी टीबी. पर वही दृश्य चलता रहा तो एक बार फिर चीख पड़ा------''बंद करौ इसे । बंद कर दो वर्ना मैं पागल हो जाऊगां"



" नहीं विनम्र । यह बंद नहीं होगा ।" कुंती देबी ने कहा---" पूरा देखना होगा तुम्हें? मैं जानती थी-इसे देखते वक्त तुम्हारा यही हाल होगा । जुनून सवारं हो जाएगा तुम पर । एक वार फिर टी . वी. स्कीन तोड़ने पर आमादा हो जाओगे । ऐसा न कर सको, इसका इन्तजाम मैंने पहले ही कर दिया हैे । कुर्सी से बांध दिया है तुम्हें । वेसे भी, इस दृश्य को तुम पहली वार नहीं देख रहे । पहले भी द्रेख चुके हो । तभी, जब ये पहली बार हुआ था ।"



"नहीं ।" वह दहाड उठा----" यह शर्मनाक मंजर कभी नहीं देखा ।"




" देखा है विनम्र ।" कुंती देवी का लहजा वहुत ठोस था----" तुमने देखा है ।"


"कब । कब देखा है मैंने यह सब?"



" जब यह वास्तव में हुआ था-पच्चीस साल पहले ।'"



तुम शायद पागल हो गई हो मां । मेरी तो उम्र ही साढे चौबीस साल है । फिर ये सब मेरा देखा हुआ कैसे हो सकता है ?"



'" तुमने देखा है बेटे । देखा है तुमने ।" " देवी मानो सचमुच पागल हो गई थी । कहती चली गई---" देखते रहो, शायद कुछ याद आ जाए । ध्यान से देखो-----अभी तो बड़े-वड़े मोड़ अाएंगे इस कहानी में । जिस रात के दृश्य तुम देख रहे हो, बडी ही कयामत की रात थी वह । देखो-------चारों तरफ से ध्यान हटाकर टी . बी पर केद्रित कर लो ।"



विनम्र कुछ समझ नहीं सका ।।।



नजर स्वत: स्क्रीन की तरफ उठ गई थी और फिर बहीं चिपककर रह गई| ।।


अब यह कहना गलत होगा कि शैलेष को रूबी खींचकर बैड पर ले गई थी ।


अब तो यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा एक-दूसरे से गुथे दोनों बैड के नजदीक पहुंचे ।। विनम्र भभकते चेहरे और सुलगती आंखों सै देखता रहा-----रूबी और शैलेष वेड पर पलटियां खा रहे थे ।।



शैलेष की शर्ट के सारे बटन खोल चुकी थी । शैलेष भूल चुका था कि कुछ देर पहले वह रूबी से कुंती की पेरबी कर रहा था । बिनम्र ने देखा---------" जव पूरी तरह कामोत्तेजित हो चुका तो रुबी इस खेल की घुटी हुई खिलाडी की मानिन्द चिकनी मछली की तरह फिसलकर बांहों से निकलेगा ।।



"आओं न रुबी । आओ न ।" वासनायुवत स्वर में कहता शैलेष उस पर झपट पड़ा ।



रुबी हल्की-सी करवट के साथ खुद को बचा गई ।।।


खिलखिलाई । वड़ी ही सैक्सी खिलखिलाहट थी वह ।



प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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