कठपुतली -हिन्दी नॉवल complete

Post Reply
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

अगले दिन पेपर्स में रूबी हत्या का समाचार छपा । तेरे पापा सहित किसी को मुझ पर शक होने का सवाल ही नहीं था । उसकी हत्या के हज्जाम में किसी को नहीं पकड़ा जा सका । एक दिन तेरे पिता मेरी झोपडी में अाए । रूबी के रूपजाल से फंसकर भटकने के लिए माफी मांगी और मुझें बंगले से वापस ले गए । चैन की सांस ली ही थी कि पवन प्रधान सामने अाकर खड़ा हो गया । उसने मुझे कैसिट दी । एकान्त में देखने के लिए कहा । देखते ही होश उड़ गए मेरे । अगले दिन वह पुन: उस वक्त अाया जब तेरे पिता घर नहीं थे । उसने बताया…ये शूटिंग उसने कमरे के रोशनदान से भविष्य में रूबी को ब्लैक मेल करने के इरादे से की थी मगर अंत होते-होते मैं उसके जाल में फंस गई उसने कहा-----वह इस कैसिंट की चाहे जितनी कापियां बना सकता है क्योकि मास्टर प्रिन्ट उसके पास है । इस तरह उसके द्वारा ब्लेक मेल होने का सिलसिला शुरु हुआ । तेरा जन्म हुआ । यह सच है---जव तू पांच साल का था तो ' हार्ट फेल' हो जाने तेरे पिता की मृत्यु होगई और या भी सच है------उस वक्त मसीहा बनकर तेरे मामा हमारी जिदगी मे अाए । पवन प्रधान की मांगो से मैं इस कदर त्रस्त हो चुकी थी कि एक दिन सारा भेद तेरे मामा को बता दिया---उसके बाद-उन्होंने ही पवन प्रधान को "टेकिल' करना शुरू कर दिया । कहा-'तुम्हें जो चाहिए, मुझसे मांगोगे पवन प्रधान । बहन को परेशान नहीं करोगे । उससे मिलोगे तक नहीं ।" पवन प्रधान ने कहा---'मुझे इससे क्या फर्क पड़ता है । मुझे तो रकम चाहिए तुम दो या कुंती ।' तव से भैया ही उसे हैडिल कर रहे थे !"
"लेकिन जिस रात बह मारा गया, तुमने तो उस रात भी यह दर्शाया जैसे . . .



"वह सब भैया की जिद पर करने के लिए मजबूर थी ।"


"क्या मतलब ?


"बात उस दिन की है जिस दिन तुमने उत्तेजित होकर टी.बी. सक्रीन तोड़ डाली थी ।" कुंती देवी कहती चली गई-----''" जिस कदर तुम उत्तेजित थे और स्कीन तोड़ने का जो कारण तुमने बताया उसे सुनकर मेरे होश उड गए । तुम्हारी अवस्था और उस अवस्था में तुम्हारे बिचार ठीक वैसे ही थे जैसे रू्बी की हत्या करते वक्त मेरे थे । इस ख्याल ने मेरे होश उड़ा दिए कि 'हैरिडिटी' के रूप में जैसे मां-बाप की वहुत-सी आदतें बच्चों में आ जाती हैं, क्या उसी तरह यह बात भी तुममें आ गई है? तुम्हें याद होगा! उस वक्त मैंने तुझे गले से लगाने के साथ कहा था---" हे भगवान । तेरे विधान में क्या ऐसा भी हो सकता है? यह सोचकर मैं वहुत डर गई थी कि कहीं तू किसी रोज सच में रूबी जैसी लड़की की हत्या न कर बैठे? अपनी शंका भैया को बताई । वे भी हैरान रह गए । दोनों जाकर "साइक्लोजिस्ट' से मिले । बगैर यह बताए उससे डिसकस किया कि केस हमारे ही बेटे का है । उसने स्पष्ट कहा---" बेशक ऐसा हो सकता है । बच्चा जब मां के गर्भ में होता है तो वही खाकर जीवित रहता है जो मां खाती है । इसी तरह, वह सब देखता और सुनता है जो मां देखती और सुनती है । मां अगर खुश है तो बच्चा भी खुश होता है । मां अगर पीड़ा में है तो बच्चा भी उस पीड़ा को उसी शिदूदत से महसूस ही नहीं करता, जीता भी है । फर्क केवल यह होता है कि जन्म होते ही यह सब उसके स्मृति पटल से मिट जाता है ।


बावजूद इसके, उन्हीं खास हालात में फंसने पर जिन हालात को उसने गर्भ में रहते शिदूदत से महसूस किया था, वह कर सकता है जो उन हालात में उसकी मां ने किया था । हालांकि यह समझ नहीं पाएगा कि उसने ऐसा क्यों किया ।।


अभिमन्यु का किस्सा अाप लोगों ने जरूर सुना होगा । उसने गर्भ में चकव्यहू तोड़ने की विधि सुनी थी । अर्जुन आधी ही विधि बता पाए थे कि सुभद्रा को नीद आ गई मां को नीद आ गई तो बच्चा भी सो गया । वह भी आधी ही विधि सुन पाया ।

सामान्य अवस्था में अभिमन्मु को पता तक नहीं था कि चक्रव्यूह भी कोई चीज होती है और वह उसे आधा तोड़ सकता है लेकिन जब पाण्डवों के सामने यह समस्या अाई चक्रव्यूह को कौन तोड़े तो अभिमन्यु खुद कह उठा…'आधा चक्रव्यूह को तोड़ना मुझे अाता है ।'
पांडव यह सोचकर हैरान रह गए-अभिमन्यू ने चक्रव्यूह तोड़ना कब सीख लिया? बाद में यह रहस्य कृष्ण ने बताया था कि चक्रव्यूह तोड़ने की
विधि अभिमन्यु ने गर्भ में ही सीख ली थी । उसी तरह--------यदि किसी गर्भवती स्त्री ने हत्या की है तो वैसी ही खास परिस्थति पैदा होने पर उसका बच्चा भी हत्या कर सकता है । इसमें हैरत की कोई बात नहीं है । हां । वह खुद हैरान जरूर होगा क्योंकि जान नहीं सकेगा हत्या उसने क्यों कर डाली?"


" त-तो - तो ये है मेरे हाथों से हुई हत्याओं का रहस्य ।" विनम्र बड़बड़ा उठा ।


"हमने साइक्लोजिस्ट से ऐसे बच्चे के इलाज के बारे से पूछा । उसने कहा 'हां, उसका इलाज हो सकता है । मेडिकल साइंस से ऐसी दवाएं है । वह उस खास परिस्थिति में फंसने पर भी वेसे रियेक्ट नहीं करेगा । कहने का मतलब ये, ऐसा मरीज बिल्कुल ठीक हो सकता है लेकिन उसे लेकर मेरे क्लिनिक पर आना होगा और जब तक उसे दवाओं की मुकम्मल डोज न दे दी जाए तब तक उन खास हालात से बचाकर रखना होगा जिनमें वह किसी की हत्या कर सकता है ।"



"तो फिर तुमने मेरा इलाज क्यों नहीं कराया मां? क्यों हो जाने दी मेरे हाथों से हत्याएं?"



"मैं और भैया दुविधा से फंस गए थे । तुम्हे डाक्टर के पासं ले जाएँ या नहीं ? दो समस्याएं थी । पहली-------तुम क्या सोचोगे । दूसरी---कम से कम उस डॉक्टर को तो पता लग ही जाएगा कि शहर का प्रतिष्ठित कालोनाइजर विनम्र भारद्वाज इतनी खतरनाक बीमारी का मरीज हो सकता है । यहाँ इस बात पर खास ध्यान दो…"मरीज हो सकता है, जरूरी नहीं कि हो ही ।' साईक्लोजिस्ट ने हमसे यहीं कहा था-------ऐसा बच्चा मरीज हो भी सकता है, नहीं भी ।' उसमें मरीज के 'सिम्टम्स' नहीं हुए तो व्यर्थ ही धिछालेदारी हो जाएगी । और भी कुछ नहीं तो डॉक्टर को यह तो पता लग ही जाएगा कि मैं यानी विनम्र की मां एक हत्या कर चुकी हैै मुमकिन है…तुम्हें भी पता लग जाए । इन्हीं कारणों से 'ऊहापोह' में फंसे थे कि भैया को स्टाफ मेम्बर से पता लगा-नागपाल ने तुम्हें ओबराय में बुलाया है । इस बात का जिक्र भैया ने मुझसे किया । कहा------" मुमकिन वह विनम्र के सामने लड़की पेश करे, ऐसा वह पहले भी एक अन्य कालोनाइजर के लिए कर चुका हेै-मगर पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता वह ऐसा ही करने वाला है । मुमकिन है, सचमुच गगोल के आदमियों की लिस्ट देने वाला हो ।
एक बार फिर हम दुबिधा में थे । समझ नहीं पा रहे थे क्या करें?


कहीं ऐसा न हो कि तुम खुद को लुभाने की कोशिश कर रही लड़की को मार डालो । और कहीं ऐसा न हो जाएं कि इस वहम के शिकार होकर हम कम्पनी का नुकसान कर बैठे ।


हालात के मुताबिक तय ये हुआ कि भैया तुम पर नजर रखेंगे । इसीलिए उन्होंने सुईट के ठीक सामने बाला कमरा लिया । पांच बजे बहां पहुंच गए । अपने कमरे की "की होल' से वे सुईट के दरवाजे पर नजर हुए थे ।


उन्होंने सुईट में नागपाल और बिंदू को आते फिर नागपाल को जाते देखा और तुम्हें अाते देखा । आधे घंटे ' के बाद तुम्हें निकलते देखा और देखा तुम्हारे ठीक पीछे निकलते बिज्जू को ।। बिज्जू को उन्होंने सुईट के अंदर जाते नहीं देखा था। इसलिए चौंके । यह तो वाद में पता लगा वह पांच बजे से पहले से ही सुईट में छुपा हुआ था । उसके जाने के काफी देर बाद भी जब विंदू सुइंट से बाहर नहीं अाई तो भैया अपने कमरे से निकले । दवे पांव सुईट के दरवाजे के नजदीक पहुचे । आंख "की होल' से सटाई और होश उड़ गए । सामने बिंदू की लाश पड़ी थी । समझ सकते हो उसे देखकर भैया की क्या हालत हुई होगी । उनके पैरों तले की मानो जमीन ही सरक गई थी । दौड़ते-हाफंते अपने कमरे में अाए । मुझे मोबाईल से बताया-"कुंती वही हो गया जिसका डर था ।' पूरी बात सुनकर मेरे होश भी फाख्ता हो गए । क्या'-"भैया, जैसे भी हो विनम्र को बचाओ ।' उन्होंने कहा----"तू चिन्ता मत कर कुंती, मैं अपने बेटे को कुछ नहीं होने दूगा ।'


उसके बाद मनसब की मदद से तेरे मामा ने जो किया वह तू जानता है ।

सुईट से लाश उन्होंने यह सोचकर हटवाई --वहांसे मिली तो सीधे तुम ही फंसोगे ।"





यानी मामा ने जो किया मुझे बचाने केलिए किया जबकि गोडास्कर ने ठीक इसके विपरीत सौचा---उसकै ख्याल से हत्या खुद करके मामा
मुझे फंसारहे थे।"


"गोडास्कर के ये विचार तूने मुझें बताये । मैंने भैया को । तव भैया ने कहा…"हाला'कि इसकी कोई सम्भावना नहीं है लेकिन फिर भी पहले ही से कह रहा हूं कुंती । अगर ऐसे कोई हालात बने कि गोडास्कर मुझें बिंदू की हत्या के इल्जाम में पकडे तो तू खामोश रहेगी । एक लफ्ज नहीं ।' मैंने उनकी इस बात का पुरजोर विरोध किया । कहा-----ये तुम क्या कह रहे हो मैया? मैं बेटे को बचाने के लिए भाई की बलि कैसे चढ़ा सकती हूं ?


तब उन्होंने समझाया----' कुछ नहीं होगा पगली । हत्या ज़ब की ही नहीं है तो अदालत से सजा कैसे होगी ?
तू देख़ना-सुवूतों के अभाव में कोर्ट को मुझे बाइज्जत बरी करना होगा ।

जबकि तु-बोली तो विनम्र फंस जाएगा ।। वह फंसा तो बच नहीं पाएगा क्योकि हत्या सचमुच उसी ने की है ।


कानून को चकमा देने का यहीं एक रास्ता है-----वह फंस जाए जिसने जुर्म किया ही नहीं है । जव किया ही नहीं है तो साबित भी कुछ नहीं हो पायेगा ।


लिहाजा बरी होगा---असली मुजरिम इसीलिए बच जाएगा क्योंकि उसे कोर्ट मे पेश ही नहीं किया गया है ।


भैया के सारे तर्कों से सहमत होने के बावजूद मैं तुम्हें बचाने के लिए उसे फंसने के तैयार नहीं थी ।


तब उन्होंने तुम्हारी कसम देकर ऐसी कोई परिस्थिति अाने पर चुप रहने का वचन लिया ।


कलेजे पर पत्थर रखकर मैंने इस वचन को निभाया ।


सच्चाई यही है विनम्र, तेरे मामा तेरे लिए उतना कर रहे हैं जितना शायद एक बाप भी नहीं कर सकता ।।


उस वक्त तू हम ही से बात कर रहा था जव तेरे मोबाईल पर ब्लैक मेलर का फोन जाया ।

बात करता हुआ तू लांन में चला गया था मगर तेरी भाव-भंगिमाओं ने हमें बता दिया-फोन ब्लैक मेलर का है ।


बिज्जू की लाश मिलने, उसके कैमरे से गायब होने वाली रील ने इस बात सम्भावना पहले ही वना दी थी कि तुम किसी ब्लेक मेलर के चक्कर में फंसोगे।

यह फोन भैया ने खुद सुना । जिसके जंरिए तुम्हें अजंता होटल में एक करोड के साथ बुलाया गया था ।


पवन प्रधान से ब्लैक मेल हो रहे मैं और भैया जानते थे ब्लैेक मेलर किस तरह खून चूसते हैं । तुम्हें झमेले से बचाने के लिए भैया दाढी वाला बनकर अजंता पहुंचे । मगर उस रात ब्लैक मेलर वहाँ पहुचा ही नहीं ।।


तुम जानते हो वहाँ क्या हुआ ?"

----


"और तुम । तुम ‘मारिया वार' कैसे पहुच गई मां"'


कुंती देबी कहती चली गई------" भैया को जब गोडास्कर पकड़कर ले गया तो तेरी 'हिफाजत' के लिए मेरे अलावा कौन आगे अाता?


मेरी आंखें तो चौबीस घंटे तुझी पर ज़मी थी । इधर ने वैंक से एक करोड और निकला । उससे पहले करोड के साथ अटैची में भरा ।।

बिला में टैक्सी बुलाई ।।

मैं समझ गई…तू ब्लैक मेलर से मिलने जा रहा है । तेरे टैक्सी बैठने से पहले ही मैं ड्राईवर की नजर बचाकर पिछली सीट के नीचे छुप चुकी थी ।


तेरे साथ सुनसान इलाके में बने मकान पर पहुंची है जब तू और ड्राईवर डिवकी से अटैची निकाल रहे थे ।। तब मैं टैक्सी से निकलकर झाडियों में छुप गई टेक्सी बाला चला गया । तुम मकान के अंदर गए ।


मैं गेलरी में खडी वेन में जा छुपी थी । मकान के अंदर से जव गोलियां चलने की आवाज अाई तो मेरा कलेजा हिल गया था ।।
मगर जब देखा----तुम मारिया को कवर किए चले आ रहे हो तो सोचा-----जो हो रहा है, ठीक ही हो रहा है ।


मैं और भैया भी तो यही चाहते थे ।

यह कि कुछ ऐसा हो जाए जिससे तुम ब्लेक मेलर के चंगुल से निकल जाओं । यही तुम कर रहे थे ।


मारिया बार में तुम मारिया को लेकर उसके बेडरूम में चले गए । मुझे लग रहा था---काम हो गया मगर तभी बहां गोडास्कर पहुच गया ।


एक बार फिर मेरे होश उड गए लेकिन खैर, अंत भला तो सब भला ।" कहने के बाद कुंती देवी सांस लेने के लिए रुकी थी ।



पुन: बोली-------"'हालात ये है विनम्र, तुमने जो भी किया या हालात ने कराया, किसी का कोई सुबूत कहीं नहीं है । सारे फोटो और रील हमारे कब्जे में है । नाटा, क्रिस्टी मारिया मारे जा चुके है ।


केवल यही जानते थे कि बिंदू की हत्या तुमने की है । यह हमारे लिए बहुत अच्छा रहा कोई सूत्र नहीं है जिसे पकड़कर पुलिस तुझ तक पहुच सके । इससे लगता है…भगवान भी हमारे साथ है ।


बैसे भी, कुसूर क्या है तेरा? तू मेरी तरह बेकसूर है बेटे ।


'हैरीडिटी' वश तूने जो किया यह मेरी देन है, तेरी मां की देन । मैं तेरा इलाज कराऊंगी । वहुत जल्द तू ठीक हो जाएगा । वैसे हालात में फंसने पर भी कोई आवाज तुझे किसी लड़की की हत्या के लिए नहीं उकसाएगी ।"



"मगर मामा । मामा का क्या होगा मां?"



"उनकी फिक्र मत कर । एक दिन की भी सजा नहीं होगी भैया को । बे पूरा प्लान वना चुके हैं ।" कुंती देबी ने कहा----'थोड़ा-सा टॉर्चर होने पर वे वह सब कुबूल कर लेगे जो गोडास्कर कुवूलवाना चाहता है मगर कोर्ट में मुकर जाएंगे । कहेंगें----उन्होने बिंदू की हत्या नहीं की । सुबूतों के अभाव में कोर्ट को उन्हे छोड़ना ही पडे़गा ।"



बात हर एंगिल से विनम्र को ठीक लग रही थी ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »


थैक्यू भैया । थैेक्यू वेरी मच ।" श्वेता ने झपटकर गोडास्कर के गाल का चुम्बन ले लिया था ।



खीरा खाते गोडास्कर ने कहा-----"किस बात पर इतनी खुश है?"



" मेरा अनुरोध जो मान लिया तुमने । इतनी जल्दी सलाखों के पीछे जो पहुंचा दिया विंदू के हत्यारे को ।"'
कहने के साथ श्वेता ने वह अखवार
डायनिंग टेबल पर पटका जिसमें चक्रधर चौबे की गिरफ्तारी की ख़बर
थी । कहती चली गई वह--"विनम्र बेचारा किस कदर टेंस था । मगर, बात है हैरतअंगेज भैया । हालांकि तुमने पहले ही मामा पर शक जाहिर कर दिया था । मगर न विनम्र को यकीन अाया था, न मुझे । मैं और विनम्र तो सोच तक नहीं सकते थे कि बाहर से इतना प्यार जताने वाला मामा अंदर से इतने काले हैं । ये दौलत भी सभी से क्या-किया गुल खिलवाती है । जो कम्पनी एक दिन खुद मामा ने ही बिनम्र को सौंपी थी, उसी कम्पनी का मालिक बनने के लिए उन्होंने विनम्र को हत्या जैसे जघन्य जुर्म में फंसाने की कोशिश की ।"



"तू अगर चोंच बंद करे तो गोडास्कर भी कुछ कहे बहना?"



बहुत खुश थी श्वेता । बीली--'"बोलो भैया ।"




“अखबार से छपी यह खबर रात की है और रात की ज्यादातर चीजें सुबह तक 'बासी' हो जाती हैं ।"



"क्या मतलब?" “गोडास्कर" के चैनल से सुबह के बुलेटिन की ताजा खबर ये है कि बिंदू का हत्यारा चक्रधर चौबे नहीं है ।"



" क-क्या ?" श्वेता उछल पड़ी--"क्या कहा अापने?"



"वही । जो तूने सुना ।" गोडास्कर खीरा चिंगलता रहा ।




“पर ऐसा केसे हो सकता है? अखबार में तो लिखा है------इस केस को अाप ही ने वर्क आऊट किया है । अाप ही ने पकड़ा है मामा को । वे अाप ही की हवालात में हैं ।"




"एक-अक लफ्ज ठीक लिखा है ।"




"और अब अाप कह रहे हैं-हत्या मामा ने नहीं की । बात कुछ समझ में नहीं आई ।




" गोडास्कर ने हालांकि पहली बार गच्चा खाया । लेकिन खा तो गया ही ।। वस एक ही गनीमत रही । यह कि पूरा गच्चा नहीं खा पाया । आधा खाकर रह गया । चक्रधर चौबे को कोर्ट में पेश कर देता तो पूरा ही गच्चा खा चुका होता । गोडास्कर का यह रिकार्ड टूट जांता कि उसके द्वारा कोर्ट में पेश किया गया मुजरिम बगैर मुजरिम सबित हुए नहीं रहता । और इसके लिए शुक्रिया अदा करना पड़ेगा पिछली रात को ।। उस रात को जिसमे घटनाएं काफी तेजी से घटी ।।"



"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा भैया । तुम कह क्या रहे हो?"




"छोटा-सा दिमाग है गोडास्कर की नन्हीं-सी बहन का । ज्यादा पेंचदार‘ बाते समझने की कोशिश मत कर । वलास्ट हो जाएगा । बस इतना समझ ले…चक्रथर चौबे धोखे में पकडा़ गया । असली हत्यारा कोई और है । पिछली रात उसने तीन हत्याएं और कर दी ।"
"त-तीन हत्याए'?"




"उनने से एक हत्या ठीक उसी तरह की गई । जिस तरह विंदू की थी । बाकी दो को गोली मार दी । दो हत्याएं सुनसान इलाके में बने एक मकान में ।। गोडास्कर मुआयना कर अाया है । एक हत्या मारिया बार में की । खुद मारिया की । यह हत्या तो पटूठे ने एक तरह से गोडास्कर के देखते ही देखते कर दी ।"



"और वह घटनास्थल से भागने में कामयाब हो गया?"




"यही तो करिश्मा किया पटृठे ने । गोडास्कर को अपनी शक्ल तक नहीं देखने दी । "




" पर एक रात में तीन हत्याएं ? श्वेता के चेहरे पर खौफ था-----"वह पागल है क्या?"





"मारिया का तो यहीं कहना है । कि वह पागल है । हत्या करने का जुनून सवार होता है उस पर । किसी मर्द को लुभाने की कोशिश कर रही लडकी को देखते ही गर्दन दबाकर उसे मार डालता है ।"



"धक्क ।" से रह गया श्वेता का दिल ।




"क--क्या कहा?" मुंह से निकला-……'"क-क्या कहा भैया?"





गोडास्कर अपने शब्द दोहराने लगा । दरअसल ये शब्द उसके अपने नहीं, मारिया के थे । उन्हें सुनते वक्त श्वेता की आंखों के सामने नाच रहा था-------स्वीमि'ग पूल में अधेड से अठखेलियां कर रही लड़की का दृश्य । उस दृश्य को देखकर भभके हुए विनम्र का चेहरा वह आज तक नहीं भूली थी ।


वह उस वक्त भी उस चेहरे को देख रहीं थी जब गोडास्कर ने झंझोड़ा ---“कहां चली गई बहना?"



"आं !! " वह चौंकी…“क-कहीं नहीं । मैं यहीं हूं ।"



"मगर तू चिन्ता मत कर । तेरा भाई जल्दी ही असली मुजरिम को पकडकर विनम्र को टेंसन मुक्त कर देगा ।" उसे सान्तवना देने के लिए गोडास्कर जाने क्या…क्या कहता चला जा रहा था ? उसे नहीं मालुम था, कि श्वेता के कानों तक उसका एक शब्द भी नहीं पहुच पा रहा ।
"त-तुम । तुम यहाँ श्वेता?" विनम्र अचानक उसे अपने बेडरूम में देखकर चोंक पड़ा ?”




श्वेता चहकी-----" क्या मैं यहाँ नहीं आ सकती?"



"आ क्यों नहीं सकती । घर है तुम्हारा मगर...... ..


"मगर?" श्वेता ने उसकी आँखों में झांका ।




" पहले कभी बगैर फोन के नहीं अाई । इसी कारण थोडा आश्चर्य हुआ और...........




"और ?" वह जरूरत से ज्यादा चहक रही थी ।





उसे ऊपर से नीचे तक देखते 'बिनम्र ने कहा------"ड्रेस भी आज तुमने कुछ अलग पहन रखी है ।"




"क्यों, क्या बूराई है इस ड्रैस में?" कहती हुई श्वेता थोड्री पीछे हटी---"स्कर्ट-ब्लाऊज पहना है । अच्छा नहीं लग रहा?"





"अच्छा तो लग रहा है मगर.......




"बात अधूरी वहुत छोड़ रहे हो आज तुम । मगर क्या?"




"ऐसी ड्रेस में मैंने तुम्हें कम देखा है । बल्कि शायद पहली बार देख रहा हूं ।"




गनीमत है, मैंने कुछ पहन तो रखा है । तुम तो कुछ पहने हुए भी नहीं हो । कहने के साथ वह हंसी थी ।।



विनम्र झेंप गया । सचमुच उसके जिस्म पर "वी शेप' अण्डरवियर के अलावा कुछ नहीं था ।



बाथरूम से नहाकर निकला था वह । बेडरुम में कदम रखा ही था कि सामना श्वेता से हुआ । शायद इसीलिए ज्यादा बौखला गया था । जाने वह कब वहाँ आ गई थी ।




जव उसने नग्नता का ध्यान दिलाया तो उपने कपडों के वार्डरोब की तरफ लपका ।




जिस्म पर डालने के लिए शर्ट निकाली ही थी कि अपने दोनों कंधों पर श्वेता के कोमल हाथ महसूस किए ।



सारे शरीर में विधुत तरंगे दौड़ती महसूस की उसने ।



जबकि श्वेता ने अपना गाल उसकी पीठ पर रख दिया । साथ ही बहूत रोमांटिक लहजे मे कहा था-------"कोई जरूरत नहीं है ।"




"क-क्या मतलब? " वह चौंककर कहता हुआ घूमा ।



श्वेता उसके नजदीक खडी थी ।

वेहद नजदीक ।


इतनी ज्यादा कि वह उसकी गर्म सांसों को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था ।।



आंखे 'बरबस ही श्वेता की आंखों से जा टकराई ।


शायद 'बरबस' कहना गलत है । असल में ऐसा इसीलिए हुआ था क्योकि वह उसकी आंखों में झांक रही थीं ।


एकटक ।


अपलक ।



"मुझे तुम ऐसे ही अच्छे लग रहे हो ।" कहने के साथ वह उसके सीने के बालों से खेलने लगी थी ।।
"क-क्या वात कर रही हो श्वेता ।" विनम्र कधें के नज़दीक से उसके दोनों बाजू पकड़कर खुद से अलग हटाता बोला-----""' तुम्हें हो क्या गया है?"





"आज मैं खुश हूं । बहुत खुश ।" कहने के साथ वह उसके हाथों से निकलकर फिरकनी की तरह घूम गई कुछ इतनी तेज कि स्कर्ट ऊचे उड़कर हबा में घूम गई थी । इतने ऊचे कि स्कर्ट के नीचे श्वेता द्वारा पहना गया चुस्त अण्डरवियर तक चमक गया । स्कर्ट थी ही इतनी ऊंची कि यूं घूमने पर उसे चमकना ही था ।




"मगर क्यों, ऐसी क्या बात हो गई है? विनम्र ने खुद को नियंत्रित रखने की कोशिश करते हूए कहा ।




"बिंदू का हत्यारा जो पकड़ा गया । टेंसन मुक्त जो हो गए तुम ।। क्या तुम खुश नहीं हो?" कहने के बाद फिरकनी की तरह घूम रही श्वेता रुक गई थी और विनम्र.......ने पहली बार महसूस किया…....ब्लाऊज के नीचे वह कुछ भी नहीं पहने थी ।




विनम्र ने उसके उठानों को थरथराते महसूस किए थे ।



हे भगवन ।। ये क्या है ??



श्वेता को तो इस तरह उसने कभी नहीं देखा ।



वह हमेशा ब्रा पहनकर रहती थी ।




और गला....... ब्लाऊज का गला भी काफी बड़ा था ।



इतना ज्यादा कि चोटियों का उपरी हिस्सा नजर आ रहा था ।




ब्लाऊज में कोई बटन या हुक नहीं था ।



अपने पेट पर उसने दोनों 'पल्ली' की गांठ-सी बांध रखी थी ।


बह भी इतनी उपर कि नाभि साफ़ चमक रही थी ।।



विनम्र चाहकर भी कुछ न बोल सका । जुबान तालु से जा चिपकी थी ।




श्वेता उसे बहुत ध्यान से देख रही थी । पता लगाने की कोशिश कर रही धी कि उस पर उसकी ड्रैस और अब तक की हरकतों का क्या प्रभाव पड़ा है? सोच रही थी-----क्या इतना मासूम चेहरे वाला जुनूनी हत्यारा हो सकता है? किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी वह । ।




"तुमने जवाब नहीं दिया विनम्र ।"



"आं । " वह हड़बड़ाकर बोला----“कौन सी बात का जवाब?"




"क्या तुम्हें बिंदू मर्डर केस खुल जाने की खुशी नहीं हुई ?"'


" ह-हुआ क्यों नहीं मगर.......


" तुमने फिर बात अधूरी छोड़ दी ।"
"मुझे दुख है, उसके हत्यारे मामा निकले ।"




" दुख भी ज्यादा हैरत की वात है विनम्र ।" कहने के साथ वह ' पॉलिसी ' के तहत विनम्र की तरफ बढी । एक बार फिर उसके बेहद नजदीक पहुंची । बोली ।





" हम सोच तक नहीं सकते थे । मामा' ऐसा कर सकते हैं । भैया ने पहले ही शंका जाहिर कर दी थी । कभी-कभी हम दिल से सोचने वाले लोग वहुत गलत सोच बैठते हैं । इसीलिए धोखा खाते हैं । दिमाग से सोचने वाले भैया जैसे लोग कभी धोखा नहीं खाते । अक्सर इंसान बाहर से और नजर जाता है, अदर से विपरीत निकलता है । ऐसा कि उसके बाहरी रूप को देखकर जैसे की कल्पना तक नहीं की होती ।"




प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »


विनम्र कुछ नहीं बोला । बह सोच तक नहीं सकता था श्वेता 'कहां' बोल रही है ।





"क्या बात है । तुम इतने गुमसुम क्यों हो?" कहने के साथ श्वेता ने अपना हाथ वालों से भरे विनम्र के बलिष्ठ सीने पर रख दिया ।।


" कुछ बोल क्यों नहीं रहे तुम ?"




"मामा की हरकत से शॉक लगा है ।"





"मानती हूं । बात है भी शोक लगने की ।" इस बार अागे बढ़कर उसने अपना मुखड़ा बालों पर रख दिया ।





"मगर विनम्र, अच्छा ही हुआ ।। वक्त रहते मामा की असलियत सामने आ गई ऐसे लोगों का भेद जितनी देर से खुलता है, उतना ही ज्यादा नुकसान पहुचा चुकें होते हैं ।"




अब, विनम्र का ध्यान श्वेता के शब्दों पर नहीं, उसकी हरकतों पर था । वे हरकतें उसे वड़ीं विचित्र लग रही थी ।



यह सोचकर तो कुछ ज्यादा बिचित्र कि वे हरकतें श्वेता कर रही थी ।


वह श्वेता जिसने कभी शालीनता की सीमाएं नहीं लाघीं थी ।



"श्वेता । आज हो क्या गया है तुम्हें?" विनम्र ने अपने दोनों हाथ उसके कंधों पर रखे-----“क्यों इतनी लिपटी जा रही ही?”





श्वेता ने अपना चेहरा ऊपर उठाया । उसके चेहरे की तरफ । आंखों में निमन्त्रण भरा । होंठ सैक्सी अंदाज में कंपकंपाए । उनके बीच से वासना में डूबी आवाज निकली ।



"इस रूप मे पहले तुम्हें कभी देखा भी तो नहीं था ।"




" क-किस रूप में?" विनम्र खुद को दुनिया के सबसे ज्यादा 'वोल्टेज' वाले करेंट से धिर गया महसूस कर रहा था ।
"जिस रूप में आज़ हो । बगैर कपडों के ।" सैक्सी आवाज में कहने के साथ श्वेता ने जानबूझकर अपने बगैर 'ब्रा' वाले बक्ष उसके सीने पर टिका दिए------"विनम्र अाज पहली बार जाना-----"तुम्हारा जिस्म इतना ठोस है । पत्थर जैसा । क्या तुम जानते हो----हम लड़कीयां ऐसे ही जिस्म की दिवानी होती है ।"




विनम्र ने 'निप्पल्स' की चुभन सीने में महसूस की तो---------





जहन मे विस्फोट हुआ ।



वहीं विस्फोट जो इन खास हालात में होता था ।


"मार डाल विनम्र । मार डाल इसे!" दिमाग से अज्ञात आवाज़ टकराई।




विनम्र घबरा गया ।



खुद को आवाज के प्रभाव से मुक्त के लिए सिर को जोर से झटका दिया ।




"मुझें अपनी बांहों में भींच जो विनम्र ।" श्वेता अपने उठानों को उसके सीने पर रगड़ रहीं थी ।"




"मुझे तो तुम्हें इस रूप मे देख कर आज पहली बार पता लगा कि मैं कितनी प्यासी हूं ।"




"ये भी वही है । ये भी वही है विनम्र ।' आवाज ने उसके मस्तिष्क में शोर मचा दिया ।



" सारी लड़कियाँ मर्दों को बेवकूफ वनाने वाली होती हैं । यह भी रूबी, बिदू ओर क्रिस्टी की तरह मार डालने लायक है । वाह !! मरने के बाद कितनी खूबसूरत लगी थी । यह भी उतनी ही खूबसूरत लगेगी । उनसे भी ज्यादा । हाथ बढा विनम्र । गर्दन दबा दे । देख । इसकी गर्दन तेरे हाथों के कितने नज़दीक है । मार डाल ।। मार डाल ।। मार डाल इसे !"




"नहीं ।' वह अज्ञात आवाज से लड़ा-'यह वैसी नहीं है । यह श्वेता है । मेरी श्वेता । पाक । साफ । मैं इससे प्यार करता हूं ।"





'प्यारा हू! क्या है तू! बेवकूफ़ है! ये अलग होती तो क्या वही सब कर रही होती जो इस वक्त कर रही है ??




सचमुच श्वेता बिंदू ओर क्रिस्टी की हरकतों से भी अागे निकल गई थी । बोंहे फैलाकर उसने विनम्र को कस लिया ।




विनम्र का जी चाहा----वह भी ऐसा ही करे । श्वेता की अपनी बांहों में भींच ले ।। बाहें अागे बढ़ी भी लेकिन तभी आवाज जेहन की दीवारों से टकराई-----'क्या कर रहा है विनम्र । यही कर दिया तो यह जीत जाएगी । क्या फर्क रह जाएगा तुझमें और तेरे बाप में ???????

उसने भी तो यही किया था जब रूबी उससे लिपटी तो उसने भी उसे बाहों में भरकर खुद से लिपटा लिया था । अंजाम कया हुआ उसका?



रूबी ने तेरे बाप 'बहका' कर कोरे स्टाम्प पेपर पर साईन ले लिए । यही पेशा है सब लड़कियों का ।



ये मर्द को बेवकूफ बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करती हैं । श्वेता भी उन्हीं में से है । ये भी मार डालने लायक है । विनम्र । मार डाल ।। किस्सा खत्म कर दे इसका भी !'




'हरगिज़ नहीं ।' दिमाग ही दिमाग में यह चिल्लाया-' मेरी श्वेता ऐसी नहीं हो सकती ।'




इस प्रकार, विनम्र के मस्तिष्क में जबरदस्त युद्ध छिड़ गया ।



एक तरफ उसे श्वेता की हत्या कर देने के लिए उकसाने वाली आवाज थी ।



दुसरी तरफ उसकी अपनी आवाज । श्वेता से प्यार करने वाली विनम्र की आबाज ।




हत्या के लिए उकसाने वाली आवाज से श्वेता को प्यार करने वाला विनम्र बुरी तरफ भिड़ा पड़ा था ।




दिमाग में जबरदस्त संघर्ष चल रहा था ।




उस संघर्ष से पूरी तरह बेखबर श्वेता यह जांचने पर आमादा थी---------------विनम्र जुनूनी हत्यारा हैं या नहीं?





उसने धीरे से, अपने ब्लाऊज की गांठ खोल ही थी ।




अज्ञात आवाज से संधर्ष करता श्वेता का प्रेमी जीत गया ।



उसने श्वेता के दोनों कंधे पकड़कर वहुत जोर से धक्का दिया ।



उधर , श्वेता ने लडखड़ाकर खुद को बड्री मुश्किल से गिरने से बचाया ।



इधर, विनम्र हलक फाड़कर चीखा था------"ये तुम क्या कर रही हो श्वेता । मुझे यह सब बिल्कुल पसंद नहीं है ।



भाग जाओ यहां..........


और ।




विनम्र बस इतना ही कह पाया ।




मुंह खुला का खुला रह गया था ।



आंखे स्थिर । वे श्वेता के उठानों को देख रही थीं ।



उसके सीने पर आंदोलित से नग्न उठानों को । इस बार, हत्या के लिए उकसाने वाली आवाज़ पुरजोर अंदाज मे चीखी-----'देख ! देख बिनम्र क्या कमी है इसमे और रूबी में । इसमे और बिंदू में ।। इससे और क्रिस्टी में । है कोई कमी? अगर वे मर जाने लायक थी तो श्वेता उस लायक क्यों नहीं है? '




' इधर उसके दिमाग में शोर मच रहा था उधर श्वेता बिनम्र के चेहरे को देख रही थी ।


दहककर आग का गोला बन गया था । आंखें सुलग लग रही थी । बिनम्र दरिंदा नजर अ रहा था । ठीक वैसी ही मुद्रा थी वह जैसी श्वेता ने स्वीमिंग पूल पर देखी थी ।

मारे खौफ के यह कांप उठी ।




चीखने के लिए मुंह खुला ही था कि…



विनम्र बाज की तरह झपटा ।



फौलाद के शिकंजो की तरह उसके हाथ श्वेता की गर्दन पर जम गए ।



हलक से चीख निकालनी चाही तो मुह खुला होने के बावजूद उसी में घुटकर रह गई ।


दम घुटने लगा ।


छटपटा उठी यह ।


जबकि हाथों का कसाव लगातार बड़ाते विनम्र के हलक से भेडिए जेसी गुर्राहट निकली-------'" नंगी होकर दिखाती है मुझे । मुझे बाप समझती है विनम्र का? मैं जानता हूं.....…मरने के बाद तेरे ये उठान और ज्यादा सुन्दर लगेंगे । पत्थर की तरह सख्त हो जाएंगे ये । कठोर ! कठोर और कठोर ! और कठोर , दांत भीचे वह बार - बार यही कहता हाथो का दवाब.....अौर दवाब बढ़ाता चला गया ।




श्वेता गर्म रेत पर पडी़ मछली की मानिन्द फड़फड़ा रही थी ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

जिस्म का सारा खून चेहरे पर इकटृठा होगया था ।


एक-एक नस फूल अाई थी उसकी । आंखे और जीभ बाहर निकलने लगी थी ।

मुंह से निकलने बाली "गू-गूं' की आवाज भी की बंद चुकी थी ।



श्वेता की उस हालत को देखकर दिमाग में उसके प्यार करने बाले विनम्र की आवाज गूंजी------------------ये तू क्या कर रहा है विनम्र? अपने हाथों से अपनी जिन्दगी का गला घोंट रहा है?


ये मर गई तो तूं जिन्दा कैसे रहेगा? क्या करेगा जिन्दा रहकर?


श्वेता जैसी भी है, तेरी है । तूं इससे प्यार करता है । तू इसे नहीं मार सकता ।'





हत्या के लिए उकसाने बाली आवाज ने फिर शोर मचाया ।



"शटअप ।' श्वेता से प्यार करने वाला दिल उस पर चीख पड़ा-----'नहीं मारूगां अपनी श्वेता को । तूमुझ पर इतनी हावी नहीं हो सकती कि मेरे हाथों से मेरी अपनी जिन्दगी को खत्म करा दे । श्वेता मेरी जिन्दगी है । मैं विद्रोह करता हूं । अब नहीं बनूंगा तेरी कठपुतली! ले! नहीं मारता श्वेता को । अपनी श्वेता को मैं मार ही नहीं सकता ।' इस आवाज़ के प्रभाव स्वरूप विनम्र क् हाथ की पकड ढीली पड़ती चली गई जो श्वेता मरने के करीब पहुंच चुकी थी । उसकी सांस लोटने लगी । हत्या के लिए उकसाने वाली आवाज चीख अव भी रही थी मगर प्यार करने वाले विनम्र की आवाज उस पर हावी होती चली गई अंतत: वह जीत गई तभी तो उसके हाथ श्वेता की गर्दन से हट गए । चेहरे से दरिन्दगी खत्म होती चली गई ।। मासूमियत लोटने लगी । उधर, आजाद होने के बाद भी श्वेता को संम्भले, सामान्य होने में काफी टाईम लगा ।
नियंत्रित होते ही सबसे पहले उसने ब्लाऊज के उठान ढके ओर विनम्र की मानसिक अवस्था से पूरी तरह अंजान घृणा से चीख पडी ।

'"त-तुम्हीं हो । मैं समझ गई तुम्हीं वो दरिन्दे हो । तुम्हीं ने बिंदु की हत्या की है । तुम्हीं ने क्रिस्टी को मारा है ।"



"हां । वह मैं ही हूं श्वेता ।" वह श्वेता की तरफ बढा------'' कुसूर मेरा नहीं है । मैंने नहीं मारा है उन्हें । मैं तो मैं तो कठपुतली हूं । हत्यारा तो उनका कोई और ही था आज़ मैंने उसे हरा दिया है ।"




श्वेता अव उसके हाथ नहीं अाना चाहती थी । लगातार पीछे हटती हुई चीखी-----“तुम जुनूनी हो! दरिन्दे हो! वहशी और राक्षस हो! तुम्हें जेल में होना चाहिए । या पागलखाने में ।"




"समझने की कोशिश करो श्वेता । मैं तुमसे प्यार करता हूं ।"



" प-प्यार । और तुम जैसे नरभक्षी से? हत्यारे से? तुमसे कौन लड़की प्यार कर सकती है ?"


" मैने उसे हरा दिया है श्वेता । तुम्हारे प्यार के बूते पर ही, हरा सका हू उसे । अब शायद वह आवाज कभी अपनी कठपुतली नहीं बना सकेगी । अगर कोई कमी रह भी गई तो मां बता चुकी है । मेरा इलाज हो जाएगा । बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा मैं । तुम्हारे मेरे , मां और मामा के अलावा कभी कोई नहीं जान सकेगा मेरे हाथो कुछ कत्ल हुए है ।"




"औह ।। छूपाना चाहते हो ।" श्वेता की घृणा पराकाष्ठा पर पहुंच 'गई-----"इतने कत्ल करने के वावजूद जिंदा रहना चाहते हों ?"




"हाँ श्वेता । यह ख्वाहिश केवल तुम्हारे प्यार की खातिर है । उसी की ताकत से मैं खुद को मुक्त करा सका हूं।"




"मगर मैं इतने खतरनाक हत्यारे को खुले समाज में यूं घूमता नहीं रहने दे सकती । अभी जाकर भैया को वताऊ'गी जिस पागल हत्यारे की तुम्हें तलाश है, वह तुम्हीं हो ।" कहने के साथ वह उस दरवाजे की तरफ बढी जिसे यहां आने के बाद खुद अपने हाथो से वंद किया था ।





हाथ बढाकर चटकनी खोली ।
विनम्र चाहता तो श्वेता निकल नहीं सकती थी । वह एक ही जम्प में उसे दबोच सकता था मगर ऐसा किया नहीं उसने । ऐसा करने की जगह वहुत ही मार्मिक अंदाज में गिड़गिडाया----" ऐसा मत करो श्वेता । प्लीज ऐसा मत करो । मेरी अपनी जिन्दगी तो अब शुरू हुई है है अब तक की जिंदगी तो किसी और की कठपुतली बनकर जी थी मैंने । मैं जीना चाहता हूं श्वेता । प्यार करना चाहता हुं तुमसे । तुम्हारा प्यार पाना चाहता हूं । लोट आओ श्वेता ।। तुम नहीँ लोटी तो मैं जी नहीं सकूंगा । तुम्हारे बगैर जीकर करूगा भी क्या? सच कहता हूं ----" अगर तुम यंहा से गई तो गोडास्कर को मैं नहीं, मेरी लाश मिलेगी ।



परन्तु भन्नाई हुई श्वेता पर उसके किसी शब्द का कोई असर नहीं हुआ ।। कमरे से निकलते वक्त उसने 'धाड़' से दरवाजा बंद किया और तेज कदमों के साथ लॉबी पार करती चली गई अभी वह मुख्य द्वार तक पहुंची भी नहीं पाई थी कि ------------






"धांय ।" विनम्र के कमरे से गोली चलने की आवाज अाई ।।।।


पांव जहाँ के तहाँ ठिठककर रह गए ।



विला में हंगामा मच गया था ।। सारे नौकर हड़बड़ाए हुए से विनम्र के कमरे की तरफ़ दौड़ रहे थे ।।


कुंती देवी को भी उसने उधर ही दौडते देखा था ।।



और फिर, उधर से हुदय विदारक रुदन उभरा ।


THE END
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
User avatar
Kamini
Novice User
Posts: 2112
Joined: 12 Jan 2017 13:15

Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल complete

Post by Kamini »

Dimag ko hila dene vala novel
Post Reply