कठपुतली -हिन्दी नॉवल complete

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Jemsbond
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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अब उसकी आंखों में वैसे भाव थे जैसे कामयाबी हासिल करते पर 'इन्वेस्टिगेटर' की आंखों में होते है । चाबी वापस उठाई । उस पर लिखा 'सात' नम्बर पढ़ा । कुछ देर तक चाबी को यूं उलट-पुलट कर देखता रहा जैसे चाबी, चाबी न होकर पहेली हो । फिर, चाबी वापस काउन्टर पर रखी ।
एक सिगरेट सुलगाई । काफी देर तक जाने क्या सोचता रहा । कश लगाने के बाद सारा धुवां लम्बी नाक के दोनो नथुनों से निकालना उसका प्रिय 'शगल‘ नजर अाता था । सिगरेट अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि काउन्टर पर रखा फोन अपनी तरफ खींचा । एक नम्बर डायल किया और दूसरी तरफ से रिसीवर उठाया जाते ही बोला-"इंस्पेक्टर गोडास्कर से वात करनी है !"


"आप कौन?" दूसरी तरफ़ से पूछा गया ।


"गोडास्कर को बताऊंगा । उसे दो ।"

कडक लहजे में कहा गया----"गोडास्कर ही बोल रहा है ।"


''अ--औह ! गोडास्कर साहब आप ही बोल रहे हैं !" वह थोड़ा बौखला गया'---‘"मैं ओबराय होटल का सफाई इंचार्ज बोल रहा हूं ।


दुर्गा प्रसाद खत्री अाप यहां अाते रहते हैं । मैं कई बार आपसे मिल चुका हूं !!!


" हां ।" याद है । तुम्हारा होटल गोडास्कर के इलाके में है इसलिए अाना-जाना तो लगा ही रहता है ।" जावाज से जाहिर था कि दूसरी तरफ मौजूद गोडास्कर बोलने के साथ-साथ कुछ खा भी रहा था--"तुम वही दुर्गा प्रसाद खत्री हो न जिसे फिल्मों के शोक ने फाईव स्टार होटल में ला पटका ।"


"जी हां " जी हां इंस्पेक्टर साहब । बिल्कुल ठीक पहचाना आपने! मैं वही दुर्गा प्रसाद खत्री हूं । बचपन से एकही शोक है…फिल्में देखना । फिल्म स्टारों का दीवाना हूं । उनसे मिलने, उनसे हाथ मिलने से मुझे वेसा ही रोमांच होता है जेसा छक्का मारने मे सचिन तेंदुलकर-को होता होगा । लोगों ने कहा----" स्टार, फाईव स्टार होटल में अाते रहते हैं । यहाँ ठहरते हैं । इसलिए यहीं नोकरी कर ली और लोगों ने ठीक ही कहा था । मेरी अॉटोग्राफ बुक में पांच सौ पैंसठ साईन हो चुके हैं ।"



"मगर मिस्टर खत्री गोडास्कर कोई स्टार नहीं है ।"



"म-मैंने कब कहा अाप स्टार है ।"

"तो फोन क्यों किया?"


"जीवन मृत्यु देखी थी आपने?"


साफ जाहिर हो रहा था, दूसरी-तरफ ते उखड़कर पूछा गया---""जीवन-मृत्यु?" .

. "ये फिल्म ताराचंद वड़जात्पा ने बनाई थी । हीरो धमेन्द्र था । हीरोईन राखी ।"



"मिस्टर दुर्गा प्रसाद खत्री! तुम्हारा दिमाग हिल गया लगता है दूसरी तरफ़ से गुर्राकर कहा गया-"थाने में फोन करके एक इंस्पेक्टर से फिल्म के बारे में डिस्कसन करने भी सजा जानते हो ?"

"स-सारी सर ।" खत्री हड़बड़ा-सा गया--मगर मैं आपसे फिल्म पर डिस्कसन नहीं कर रहा हूं। यह कहना चाहता हूं कि कि उस फिल्म में धमेन्द्र एक बैक मेनेजर था । वह अपने बेंक में के डकैती के केस मे फंस जाता है । बाद में, यानी फ्लैश बैक मे उसे याद अा्ता है कि एक दिन जब वह बैक से वापस आया था और अपने बाथरूम में जाकर हाथ धोए थे तो बगैर साबुन लगाए उसके हाथों में इस तरह के झाग बनने लगे थे जैसे साबुन लगाने के वाद हाथ धो रहा हौ ।"
गुर्राहट कुछ और कर्कश हो गई…-"ये तुम फिल्म के बारे में के डिस्कसन नहीं कर रहे हो तो क्या कर रहे हो?"

"नो सर । मैं फिल्म के बारे में डिस्कसन नहीं कर रहा मगर फिर भी कहना पड रहा है…उस दृश्य के बाद धमेन्द्र की समझ में यह बात अाई थी कि बगैर साबुन लगाए उसके हाथो में साबुन कहाँ से जा गया था ।"

"कहां से अाया था?" गुस्से में पूछा गया ।


"असली डकैतों ने उन चाबियों के अक्स साबुन पर लिए थे जो बैक मैंनेजर होने के नाते धमेन्द्र के कब्जे में रहती थी । डकैतों ने उन अक्सों के जरिए चाबियां बनवाई और डकैती डाली । फंस गया बेचारा थमेन्द्र क्योंकि चाबियां उसी के चार्ज में रहती थी ।"


"फोन रखो । "' इस बार इंस्पेक्टर का धैर्य मानो जवाब है गया…-गोंडास्कर तुम्हें गिरफ्तार करने वहीं अा रहा है ।"

"आईए । जरूर इाईए इसलिए तो फोन किया है मगर मुझे गिरफ्तार करने नहीं । मैं धमेन्द्र की तरह लेट नहीं हुआ उसकी तरह फ्लैश बैक में याद नहीं अा रहा है मुझे यह सब । गड़बडी हाथों हाथ पकड ली है । बल्कि मैंने तो वह चाबी भी खोज निकाली है जिस पर साबुन लगा है । यकीनन क्रिमिनल्स ने इसी चाबी का एक्स लिया है । फलोर नम्बर सेविन की "मास्टर की' है ये । एक फ्लोर की एक ही 'मास्टर की' होती है । होटल में पन्द्रह फलोर हैं । पन्द्रह की पन्द्रह चाबियां : मेरे चार्ज में रहती है । बाकी चौदह चाबियां एकदम साफ़ हैं । केवल सात नम्बर पर साबुन लगा है । इससे जाहिर है क्रिमिन्लस सातवीं मंजिल पर कोई क्राईम करने वाले हैं ।"


इस बार थोड़े सतर्क और गम्भीर स्वर में पूछा गया…"सेबिन्थ फ्लोर की 'मास्टर की‘ पर साबुन लगा है?"


"जी ।"

"तुमने कैसे जाना?"

"इसमे कैसे की क्या बात है! यहां आकर अाप खुद देख सकते हैं ।"
" मुर्ख , जिन चाबियों से तुम अपनी चाबी की तुलना कर रहे हो वे बैक की चाबियां थी । होटल कमरों में ऐसा क्या होता है जिसे लूटा जा सके ।"

खत्री गडबडा-सा गया । गड़वड़ाने का कारण था-सचनुच उसे नहीं सूझा कोई शख्स किसी फ्लोर की चाबी का अक्स लेकर क्या फायदा उठा सकता है । उसने तो बस 'जीवन-मृत्यु’ के सीन का ध्यान आते ही अति उत्साह मे फोन कर दिया था । हकलाता-सा हुआ कहता चला गया--"'य-वाकई सर । यह बात तो मैंने सोची ही नहीं । मुझे तो बस इतनां सूझा--कही मैं भी किसी लफड़े में न फंस जाऊं । बाद मे, थमेन्द्र के तरह फ्लेश बैक मे सब कुछ याद करने का शायद मुझे कोई फायदा न मिल सके । इसलिए फोन कर दिया अगर गलती हो गई तो माफ़ ..........

"पर ये तो देखना ही पडेगा------किसी ने उस चाबी का अक्स लिया क्यों है?"


"हां सर।।" खत्री ने मुर्खों के मानिन्द कहा…"यह तो देखना ही पडेगा ।""


"और देखने के लिए गोडास्कर को वहाँ आना ही पडेगा ।" कहने के साथ दूसरी तरफ़ से रिसीवर रख दिया गया ।


अब----दुर्गा प्रसाद खत्री की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि गौडास्कर को फोन करके उसने होशियारी की या बेवकूफी?


वेसे जब उसने फोन किया था बह खुद को दुनिया का सबसे वड़ा होशियार समझ रहा था । ......
दुसरी बार ओबराय की लाबी में दखिल होते वक्त बिज्जू मारे खूशी के बल्लियों उछल रहा था !!!


उछलता भी क्यों नहीं? "मास्टर की' की डुप्लीकेट उसकी जेब में जो थी!!!



अभी केवल चार ही बजे थे । चाबी बनाने बाले ने रुपये तो कुछ ज्यादा लिए । पांच सौ रुपये! मगर मिनट केवल दस ही लगाए । पांच सौ रुपये की फिलहाल विज्जू की नज़र में कोई अहमियत नहीं थी ।


लॉबी में कदम रखते ही सामना एक बार फिर उसी 'अटैण्डेन्ट से हुआ जिसने लिपट नम्बर फोर के बारे में बताया था ।। वह उसे देखकर मुस्कराया ।जवाव बिज्जू ने भी मुस्कूराकर दिया ।


ना तो इस बार उसे कोइ हड़बड़ाहट हुइ ।। ना ही अटेण्डेन्ट को अपनी तरफ बड़ने का मौका दिया ।।।


देता भी क्यों-------उसे अच्छी तरह मालूम था कहां जाना है ।

सीधा लिपट नम्बर फोर की तरफ गया ।


उसमें सबार होकर सेविन्थ फ्लोर पर।।


चाबी उसने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ इस अंदाज में लॉक के छेद में डाली थी जैसे सुइट उसका अपना हो ।।।


हल्की सी क्लिक के साथ दरबाजा खुल गया !



एक झटके से चाबी की हॉल से बापस खींची ।।


सुइट के अन्दर दाखिल हुआ और धाड़ से दरबाजा बंद कर दिया ।।।।
रिसेप्शन से चाबी लेने के बाद वह लिफ्ट नम्बर फोर की तरफ बढा ही था कि पीछे से आवाज आई--'मिस्टर नागपाल ।"



सूअर की धूथनी वाला शख्स घूमा और हैरान रह गया । इतना मोटा पुलिसिया उसने जीवन में पहली बार देखा था । वह गोडास्कर था ।

इन्सपेक्टर गोडास्कर ।


उम्र तो कम ही थी उसकी । पच्चीस के आसपास रही होगी मगर लगता तीस केऊपर का था।


कारण था उसका शरीर ।


वह शरीर जो 'सूमो' पहलवानों जैसा भारी था । एकदम मोटा । मोटे-मोटे पैर और जाघे । जांघों से बहुत बाहर निकल हुआ पेट । अागे की तरफ़ जितना पेट निकला था उसी अनुपात में पीछे की तरफ़ निकले हुए थे उसके नितम्ब । लगता था पेट और नितम्बो ने उसका पैलेस बनाया हुआ है । पेट कम होता तो नितम्बो का वेट पिछे गिरा देता और नितम्ब कम होते तो पेट के कारण आगे के गिर पड़ता । भुजाएं, कंथे, छाती, चेहरा और सिर सभी कुछ 'सूमो' पहलवानों से मिलता था ।।।।


कद छः फुट से भी निकलता हुआ था ।।।

मुगदर जैसो लम्बी-लम्बी भुजाएं । चौड़े कंधे । गैंडे जैसी गर्दन । चौडा चेहरा । गोल सिर । सिर पर एक भी बाल नहीं था ।। रंग गुलाबी था ।। ऐसा जैसे दूध मे थोडा ज्यादा रुह अफ़जाह मिला दिया गया हो ।

आंखे नीली ।


टी बैेसी जैसा स्वीमिंग पूल का पानी नजर अाता है ।

कुल मिलाकर वजन दो सौ क्विंटल के आस पास रहा होगा ।।।।
रेडीमेड कपड़े तो उसके जिस्म के नाप के मिल ही नहीं सकते थे । पेट-शर्ट में यकीनन डबल कपडा लगता होगा । इस सबके बावजूद वह 'थुलथनल‘ नहीं बल्कि ठोस था ।



जिस्म में मोजूद थी-आश्चर्यंजनक फुर्ती ।


गजब की तेजी से वह लम्बे-लम्बे कदमों के साथ उसकी तरफ आ रहा था । अगर नागपाल ने उसे 'बैठा' देखा होता तो कभी कल्पना नहीं कर सकता या यह इतना तेज भी चल सकता है । उसके दाए हाथ में 'बरगर' था । बरगर में एक "बुडक' मारा जा चुका था । उसका मुंह जुगाली करने जैसे अंदाज मे चल रहा था ।


नज़दीक अाते अाते उसने वर्गर बाए हाथ में ट्रांसफर कर लिया था । दायां हाथ उसकी तरफ बढाता हुआ बोला-----''"मेरा नाम गोडास्कर है । वर्दी आपकी बता ही रही होगी----इन्सपेक्टर हूं।"


"कहिए ।" नागपाल ने रूखे स्वर में पूछा…"मुझसे क्या चाहते हैं? "



"आपका नाम नागपाल है न?"


"मैं जल्दी में हूं ।। केवल काम की बाते करे तो बेहतर होगा ।।।


फिर भी, गोडास्कर ने बरगर में एक बुड़क मारा । मुंह चलाने के साथ पूछा---“अाज की रात के लिए सुईट नम्बर सेबिन जीरो थर्टीन अाप ने बुक कराया है न ?"



"हां!...क्यो?”


“क्या अाप किसी पतले-दुबले आदमी को जानते हैं? किसी ऐसे आदमी को जैसे गोडास्कर में से एक-दो या तीन नहीं वल्कि चार आदमी वन सकें?"


खुद को गोडास्कर द्वारा रोका जाना नागपाल को बिल्कुल पसंद नहीं अाया था इसलिए दिमाग पर जरा भी जोर डाले वगैर जवाब दिया------'" मैं ऐसे किसी आदमी को नहीं जानता ।"


" मगर वह आपको जानता हैं ।"


"कौन ?"


"वही जो गोडास्कर में से चार बन सकते है ।"

"मैं इसमें क्या कर सकता हूं! ऐसा अक्सर हो जाता है, कोई आपको जानता है मगर अाप उसे नहीं जानते ।"


"उसके मुताबिक आपने उसे मिलने का टाईम दिया था ।"


" मैंने टाईम दिया था ? किसे ?"
" क्या ये बात हर सेन्टेस के बाद रिपीट करनी पडेगी कि बात एक दुबले-पतले आदमी की चल रही है? "


नागपाल झुंझला उठा----"मैंने किसी को टाईम नहीं दिया ।"


आज दोपहर दो बजे अापने उसे सुईट नम्बर सेबिन जीरो थर्टीन में नहीं बुलाया था?"


"दो बजे ?'' नागपाल चिहुंका--"मेरी समझ में नहीं आ रहा मिस्टर गोडास्कर आप कह क्या रहे हैं । रिसेप्शन पर जाईए! कम्यूटर देखिए! उसमें साफ-साफ लिखा है कि मैं रात को अाठ बजे अाऊंगा और इस वक्त आठ बोजे है । ऐसी अवस्था में भला मेरे द्वारा किसी को सुईट में दोपहर दो बजे का टाईम देने का सवाल ही कहां उठता है?”


"यानी आपने टाईम नहीं दिया?" .

"ये बात मुझे स्टाम्प पेपर पर लिखकर देनी पडेगी क्या?" नागपाल पूरी तरफ़ उखड़ गया-------" अगर किसी ने ऐसा दावा पेश किया है तो उसे मेरे सामने पेशकरो।"


"मुसीबत ही ये है । उस साले की पेशी अभी तक गोडास्कर के सामने नहीं हो सकी है तो आपके सामने कहां से पेश कर दूं?" गोडास्कर कहता चला गबरू-"अभी तक तो गोडास्कर उसे केवल चोर समझ रहा था मगर अब . . .अब अापसे बात करने के बाद पता लगा-----वह झूठा भी है । आपने टाईम नहीं दिया और उसने सफाई करने बाली से कहा..........


"मिस्टर गोडास्कर ।" इस बार नागपाल के मुंह से गुर्राहट सी निकली थी ।। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि इंस्पेक्टर कह क्या रहा है इसलिए उसकी बात बीच से काटकर पूछना पड़ा---"क्या मैं जा सकता हूं ?"


"हां क्यों नहीं! जरूर जा सकते है । आप जाईए" कहने के साथ गोडास्कर ने अपनी जेब से चॉकलेट निकाल ली थी ।


"थंक्यू!'जले-भूने लहजे में कहने के साथ नागपाल घूमा और तेज कदमों के साथ लिफ्ट नम्बर फोर की तरफ बढ गया । अभी मुश्किल से चार पांच कदम ही वढ़ पाया था कि पीछे से फिर गोडास्कर की आवाजआई-----“मिस्टर नागपाल !"
नागपाल भन्ना उठा । कुछ ऐसे अंदाज में घुमा जैसे गोडास्कर का सिर फोड देगा । मगर उसके जिस्म पर पुलिस की वर्दी देखकर ठंडा पड़ जाना पड़ा । अगर वह पुलिसिया न होता तो नागपाल यकीनन पलटते ही उसकी नाक पर घूंसा जमा देता । वर्त्तमान हालात' में झूंझलाकर केवल इतना ही पूछ सका-------" क्या है?"


चॉकलेट से रेपर उतारते हुए गोडास्कर ने पूछा-----"क्या गोडास्कर जान सकता है, अापने आज रात के लिए इतना शानदार सुईट क्यों बुक कराय् है?"


उसके सवाल पर पहले नागपाल को झटका-सा लगा ।


दिमाग में सवाल कौंधा---"गोडास्कर ने यह सवाल क्यों किया? फिर सोचा-"उससे यह सवाल करने वाला इंस्पेक्टर होता कौन है?''


ऐसा ख्याल दिमाग में आते ही दिमाग का फ्यूज ड़ड़ गया । इस बार गोडास्कर के सवाल का जवाब देने की जगह उसने चारों तरफ को देखते हुए जोर जोर से आवाज लगाईं--- " लॉबी मैनेजर! लाँबी मेनेजर कहां है ?"



सफेद शर्ट, काला सूट और काली ही 'बो' लगाए लॉबी मैंनेजर दूर से दौड़ता हुआ उसके नजदीक अाया ।


नागपाल के जोर जोर से बोलने-के कारण लॉबी में मोजूद अन्य लोगों का ध्यान भी उसी तरफ आकर्षित हो गया था ।


"यस सरा" मैनेजर भागकर अाने के कारण हांफ रहा था । नागपाल ने गुस्से में पूछा…"ये होटल है या थाना?"


"ज-जी?"


"क्या हर कस्टूमर से अब पुलिस द्वारा यह पूछा जाएगा कि उसने कमरा क्यो बुक कराया है?"

"न-नोसर ।" स-सॉरी ......

"तुम्हरि सॉरी कहने से क्या होता है? क्यों खड़ा किया गया है इस इंस्पैक्टर को यहां? मुझे नहीं चाहिए तुम्हारे होटल में कमरा । जिस होटल में किसी की प्राइंवेसी ही न हो वहां रहने से क्या फायदा?" कहने के साथ वह पैर पटकता हुआ चाबी वापस करने के लिए रिसेप्शन की तरफ बढा था ।


"प-प्लीज । प्लीज सर । लॉबी मेनेजर दौड़कर नागपाल का रास्ता रोकता हुआ बोला------'"" बात तो सुनिए ।"


"मुझें कुछ नहीं सुनना! या तो अाप उस इंस्पेक्टर को लाबी से हटाएंगे या. . .


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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"एक मिनट सरा एक मिनट मैं उनसे बात करता हूं !" कहने के बाद वह तेजी से पलटकर दौड़ता हुआ गोडास्कर के नजदीक पहुंचा।
उस गोडास्कर के नजदीक जो इस वक्त मस्ती के साथ चौकलेट खा रहा था । नागपाल की चीख-चिल्लाहट का उस पर वाल बराबर असर नजर नहीं आ रहा था ।


" इंस्पेक्टर !" लॉबी मैनेजर के लहजे मैं हल्कीी-सी रूखाई थी…"आपकी यहां मौजूदगी की वजह से हमारे बिजनेस पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा ।"'



" तो ?" गोडास्कर ने चाकलेट चबाने के साथ पूछा ।


"मुझे यह कहते हुए विल्कुल अच्छा नहीं लग रहा कि अाप ।


"यहां से चले जाएं ।" बात गोडास्कर ने पूरी की ।

लाबी मैंनेजर बोला-------''' हमारे कॉफी शॉप से बैठकर चाहे जो खा सकतेहैं ८" श्री शि

" "इतने 'पोलाईट वे' मे गोडास्कर को क्यों हटा रहे हो मैंनेजर तुम तो 'सख्त' भाषा में भी गोडास्कर को जाने के लिए कह सकते हो ।।। इसलिए कह सकते हो क्योकि एसओ.सीटी से लेकर पुलिस कमिश्नर तक यहां अाते-जाते ही नहीं बल्कि 'ओब्लाईज' भी होते हैं।।। इस होटल के मालिक से कमिश्नर साहब की दोस्ती भी है । गोडास्कर यहां से नहीं हटा तो एक फोन तुम अपने मालिक को भी करोगे । दूसरा फोन मालिक कमिश्नर साहब को करेगा और तीसरा फोन कमिशनर साहब गोडास्कर के मोबाईल पर करेंगे । गोडास्कर को फोनों पर यहां से हट जाने का हुक्म मिलेगा! गौडास्कर ने 'अलाप-बलाय' गाई तो इस इलाके से ही हटा दिया जाएगा ।"


"आप तो खुद इतने समझदार है कि. . . ।" लाबी मेनेजर ने अपना वाक्य जानबूझकर अधूरा छोड़ दिया । "

" हां ,समझदार तो है गोडास्कर ।। गोडास्कर की समझदारी में तुम्हें कमी कोई कमी नजर नहीं अाएगी इसलिए लाबी से जा रहा हूं मगर ।"
उसने भी लाँबी मेनेजर की तर्ज पर वाक्य जानबूझकर अधूरा छोड़ा । चॉकलेट का आखिरी सिरा मुंह में डाला और उसे 'चिंगलता' हुआ बोला….-“मेजा घूमा हुआ है गोडास्कर का, किसी से यूंही पूछता फिरेगा कि उसने होटल में कमरा क्यों हुक कराया है साफ-साफ सुनो , गोडास्कर को आज रात तुम्हरे होटल , बल्कि उन 'साहैवान' के सुईट में कोई क्राइम होने की "सुगन्थ' आ रही है । वह क्राईम न हो पाए, इसलिए झक मार रहा हूं यहां! क्राईम हो गया तो काफी मशहूर हो जाता तुम्हारा ये होटल । शरीफ लोग फेमिली के साथ आने से पहले पांच भी पैंसठ बार सोचा करेगे । .....
फिर मत कहना-गोडास्कर ये तुमने क्या हो जाने दिया । क्राईम अभी हुआ नहीं है इसलिए फिलहाल तुम भी, तुम्हारा मालिक भी और कमिश्नर साहव भी गौडास्कर को यहाँ जाने लिए कह सकते है मगर एक बार यदि इस चार दीवारी के अंदर क्राईम हो गया तो सारे होटल में दनदनाता घूमेगा गोडास्कर उस वक्त कमिश्नर साहव तक गोडास्कर को यहां से जाने के लिए नहीं कह सकेगे । तुम्हारी और तुम्हारे मालिक की तो बिसात क्या है ।"' कहने के बाद गोडास्कर ने मेनेजर की प्रतिक्रिया तक जानने की केशिश नहीं की । घूमा और तेज कदमों के साथ पारदर्शी कांच के उस विशाल दरवाजे की तरफ़ बढ गया जिसे पार करके ओबराय से बाहर निकला जा सकता था ।


कुछ देर तक मेनेजर ठगा--सा अपने स्थान पर खडा रहा । फिर लपककर नागपाल के नजदीक पहुंचा जो अभी तक आ जहाँ का तहां खड़ा भुनभुना रहा था ।


मेनेजर ने कहा-"अ्पको जो कष्ट हुआ उसके लिए खेद है सर ।"


"लेकिन उसनै मुझसे पूछा ही क्यो, कि मैंने सुईट किसलिए लिया है?" लाबी मेनेजर के लगा'--अगर उसने वह सब बता दिया, जो गोडास्कर ने कहा था तो नागपाल पूरी तरह उखड जाएगा इसलिए बात बदलकर बोला---“सर, आमतौर पर तो हम लोग पुलिस को यहा' एन्टर ही नही होने देते । वह तो बात बस यह थी कि आज़ दोपहर होटल में एक संदिग्ध आदमी देखा गया । सफाई इंचार्ज ने फोन करके इन्सपैक्टर को बूला लिया । सफाई करने बाली महिला ने यह कह दिया कि बह संदिग्ध अादमी कह रहा था…"मुझे नागपाल ने दो बजे बुलाया था । बस इन्सपैक्टर ने इस बेस पर आपसे बातचीत करनी शुरू कर दी ।"


" पर बह था कौन? मैंने तो किसी को टाईम नहीं दिया ।"


"सर होगा कोई सिरफिरा आप क्यो टेंशन लेते है । वह अपके कमरे के आसपास ही सफाई करने वाली महिला को मिला था । महिला ने वहां टहलने का कारण पूछा । उसने आपका नाम लेकर बहाना मार दिया होगा ।"


नागपाल का जी चाहा, पूछे…"उसे मेरा नाम कैसे फ्ता लग गया---मगर तभी उसकी नजर, रिसेप्शन पर लगी बाल क्लॉक पर पड़ी---सवा आठ हो थे ! बिनम्र को ठीक नौ बजे पहुंचना था । उससे पहले बिंदू पहुचनी जरूरी थी ओंर बिंदू को तब पहुंचना जब वह ग्रीन सिग्नल देता ।

"टाईम बहुत कम रह गया है ।’ ऐसा सोचकर नागपाल ने लाँबी मैनेजर से 'थैक्यू' कहा और लिफ्ट नम्बर चार की तरफ बढ़ गया ।
फ्रिज के पीछे बिज्जू के कान खडे हो गए ।


आवाज "की होल में चाबी डाली जाने की थी । पलभर बाद चाबी के घूमने और फिर 'क्लिक' की आवाज अाई ।


दरवाजा खुलने की आवाज भी उसने साफ़ सुनी । फिर पदचापृ, कट की आवाज के साथ लाइट अॉन हो गई ।।


इस एहसास ने उसे रोमांचित कर दिया कि कोई कमरे मे अा चुका है । दिल असामान्य गति से धडकने लगा ।


अचानक उस वक्त वह बुरी तरह बौखला उठा जब फ्रिज जोर से हिला ।

एक बार को तो यही लगा फ्रिज को उसके स्थान से हटाया जा रहा है! शायद किसी को इल्प होगया है कि वह फ्रिज के पीछे छुपा है मगर नहीं, ऐसा नहीं था । केवल दरवाजा " खोला गया था।। पल भर बाद ही बंद कर दिया गया ।।


उसके बाद करीब दो मिनट तक बिज्जू को कोई आवाज सुनाई नहीं दी।।


फिर------धम्म की आवाज अाई ।

जैसे कोई सोफे पर बेठा नहीं बल्कि गिरा हो ।


एक लाईटर 'आन' हुआ शायद सिगरेट सुलगाई जा रही थी । कुछ देर बाद तम्बाकू के धुवें की गंथ आई।।

सिगरेट की तलब बिज्जूको भी लगी । वह तलब, जिसे वह लगातार दबाए रहा था ।। दबानी इसलिए पडी थी क्योकि उसने सोचा था कमरे में आने बाले को अगर अाते ही सिगरेट की गंध मिली तो चोंक सकता है ।



'तलब' को दबाए विज्जू ने हल्का सा सिर निकालकर झांका । सोफे पर बैठे शख्स का सिर दिखाई दिया । उसने सिर ही से पहचान लिया वह नागपाल था । जिस सोफे पर बैठा था, फ्रिज की तरफ़ उसकी बैक थी अतः आराम से देखते रहने पर विज्जू -को कोई दिक्कत नहीं हुई । नागपाल के सोफे से उठते ही लह अपना सिर बापस फ्रिज के पीछे खीच सकता था।। बिज्जू ने सेंटर टेबल पर रखी विस्लरी की बोतल भी देख ली थी । बह समझ गया-फ्रिज खोलकर नागपाल ने पानी निकाला था ।।।।।।।।।।।।।
फिर उसने नागपाल को मोबाईल पर एक नम्बर डायल करते देखा । नम्बर मिलाने के वाद मोबाईल कान से लगाया , और कुछ देर बाद बोला-----" कहां हो तुम?"


पता नहीं दूसरी तरफ से क्या कहा गया । जवाब मे नागपाल ने कहा-------," मैं पहुच चुका हूं ।"

दूसरी तरफ़ की आवाज बिज्जू के कानो तक पहुचते का सवाल ही नहीं था ।


' "हां ! मुझे यहां पहुचने में देर हो गई" नागपाल के लहजे में थोडी

झुंझलाहट थी---"था तो राईट टाईम ही मगर लाबी में एक सिरफिरा इंस्पेक्टर टकरा गया । पन्द्रह मिनट खा गया साला । पूछने लगा---" मैंने
सुइंट किस मकसद से लिया है?"


दुसरी तरफ से पुन: कुछ कहा गया ।


कहा कुछ ऐसा गया था जिसे सुनकर नागपाल थोड़ा बौखला गया । जल्दी से बोला-------" नहीं! घबराने की कोई बात नहीं है । शुरू में मैं भी यह सोचकर हड़बड़ा गया था कि कहीं उसे हमारे द्वारा विनम्र को " फंसाए जाने की भनक तो नहीं लग गई है मगर यह बात नहीं निकली। उसे तो किसी पतले-दुबले शख्स की तलाश थी । पूछ रहा था----मैंने किसी को दोपहर दो बजे सुईट में मिलने का टाईम तो नहीं दिया था । मेरी तो समझ में नहीं अाया साला बक क्या रहा था । हंगामा मचा दिया मैंने । लॉबी मेनेजर को बुला लिया । उससे क्या---इंस्पेक्टर के किसी कस्टमर से ऐसे सवाल पूछने का क्या हक है । सुईट वापस करने तक की धमकी दे डाली । कहा-या तो इंस्पेक्टर को लॉबी से बाहर निकलो या मुझे इस होटल में नहीं रहना । अंतत: उन्हें इंस्पेक्टर को होटल से 'निकालना पड़ा ।"



जिस वक्त दूसरी तरफ़ से कुछ कहा जा रहा था उस वक्त यह "इन्फारमैशन' बिज्जू के होश उडाए दे रही थी कि किसी इंस्पेक्टर को उसकी तलाश थी और वह होटल कीं लाबी ने मंडरा रहा था ।


एक बार फिर उसके कानो में नागपाल की आवाज पडी । मोबाईल पर कह रहा था--“नहीँ! यह मीटिंग स्थगित नहीं की जा सकती । विनम्र पहले ही यहां अाने के लिए तैयार नहीं था । सचमुच यह बिजनेस की बाते अपने आँफिस के अलावा कहीं नहीं करता । उसे बुलाने के लिए मैंने क्या-क्या पापड बेले हैं, मैं ही जानता हूं ।।।।।।।।
अगर यह मीटिंग स्थगित की गई तो फिर कभी हमे विनम्र को शीशे में उतारने का मौका नहीं मिलेगा ।

इंरपेक्टर की मौजूदगी को इतनी गहराई से लेने की जरूरत नहीं है ।। वैसे भी बता चुका हुं, उसे लॉबी से निकाला जा चुका है ।"

बिज्जू समझ चुका था---नागपाल बिंदू से बात कर रहा है ।।।


वह कान वहीं लगाए रहा क्योंकि नागपाल की बाते बिंदू के काम की हों या न हों परन्तु उसके काम की ज़रूर थी । उसे उन्हीं वातों से 'बाहर' की स्थिति का पता लगना था । दूसरी तरफ से बोलने बाली बिंदु की बात सुनने के बाद नागपाल ने कहा------"ये तो ठीक है! होटल के बाहर रहंकर होटल के मुख्य द्वार की चौकसी करने से इंस्पेक्टर को. कोई नहीं रोक सकता । मगर, मेरे ख्याल से जरुरत से ज्यादा ही सोच रही हो । इंस्पेक्टर अगर ऐसा करता है तो मेरी या तुम्हारी सेहत पर क्या फर्क पड़ता है?

होटल में असख्य लोगों का आवागमन होगा । उनमें से एक तुम होगी । प्लान के मुताविक तुम्हें सेबिन फ्लोर तक आने बाले नम्बर फौर से सफर नहीं करना है । तुम्हें लिफ्ट नम्बर फिफ्थ में जाना है जो पन्द्रहवीं मंजिल तक जाती है सेविन फ्लोर तक वह कहीं रुकती ही नहीं । उसका पहला ‘स्टापेज' फ्लोर नम्बर आठ पर है । तुम्हें उससे "टेंथ फ्लोर' पर उतरना है । उसके बाद लिफ्ट नम्बर फिफ्थ के लिपट मैंन की नजर में तुम "टेथ फ्लोर पर कहीं गई होंगी । यह सारी 'प्रीक्रोशंस’ हमने इसलिए निर्धारित की थी ताकि कोई यह न जान सके कि इस सुईट मे विनम्र से मैं नहीं तुम मिली थी । अब मैं इस बात पर अाता हुं इंस्पेक्टर को या किसी और| को इस सुईट में होने वाली तुम्हारी और विनम्र की मुलाकात का पता लग जाता । तब भी हमारी सेहत पर क्या फर्क पड़ने वाला है । ऐसा क्राईम तो हम कर नहीं रहे जिसके एवज में कोई हमें फांसी पर चढा देगा । तुम्हारे जरिए, तुम्हारे समर्पण के जरिए विनम्र से एक ठेका लेने की कोशिश की जाएगी । ऐसा तो आजकल आमतौर पर होता है । एक बालिग के स्त्री और एक बालिग पुरुष अपनी सहमति से बंद कमरे में चाहे जो करें , कोई कानून नहीं टूटता । कानून तव टूटता है जव उनने से किसी की असहमति हो । कोई एक पक्ष दूसरे पक्ष साथ जबरदस्ती कर रहा हो । तुम जानती हो---यहां ऐसा कुछ होने वाला नहीं है । फिर इतना क्यों डर रही हो?"


जवाब में पुन: दूसरी तरफ से कुछ कहा गया ।।।।



" ठीक है । " नागपाल ने कहा -- " अब तुम जल्दी से यहां पहूंच जाओ । साढ़े आठ बज गये हैं । मुझे तुम ठीक पौने नौ बजे यहां चाहीए ।" कहने के बाद दूसरी तरफ से बिंदू को कुछ कहने का मौका दिए बगैर उसने मोबाईल अॉफ कर दिया ।।।।
कालबेल बजी ।

नागपाल ने यूं झपटकर दरबाजा खोला जैसे इसी धड़ी का इंतजार कर रहा था !

सामने बिंदू खड़ी थी ।

वह पांच मिनट लेट थी ।

इसी कारण झल्लाए हुए नागपाल ने बरस पड़ने के लिए मुंह खोला, मगर वह खुला का खुला रह गया ।।।


यह तो उसे मालूम था बिंदू सुंदर है, सैक्सी नजर आती है ।। इसलिए तो उसे इस काम के लिए चुना था । ।


इतनी मोटी रकम देनी कबूल की थी मगर , इतनी ज्यादा सुन्दर है। वनने सबंरने के बाद इस कदर सेक्सी नजर आएगी, इसकी तो कल्पना ही नहीं कर सका था ।


बिंदू पर नजर पड़ते ही उसका दिल धक्क से रह गया था ।

उस एक पल के लिये मानो धड़कना ही भूल गया था ।।


अपनी अबोध गति को रोक कर जैसे दिल भी बिंदू और सिर्फ बिंदू को ही देखता रह गया ।।


नागपाल का मुंह जो उस पर बरस पड़ने के लिये खुला था उससे केवल एक ही लफ्ज निकला ---" वंडरफुल ।"


बिंदू मुसकुराई|


उफ्फ ।।


नागपाल के कलेजे को वह मुस्कान ब्लेड की धार की मानिन्द चीरती चली गई ।


गुलाब की पंखुड़िओं जैसे होठों पर नेचुरल कलर की लिपिस्टिक में मिलाकर जाने उसने क्या लगाया था कि होंठ रसभरी गिलौरी जैसे लग रहे थे ।। बड़ी बड़ी आखें आई ब्रो के कारण कुछ और बड़ी नजर आरही थी । यू जगमगा रही थी मानो जैसे सूर्य की किरनें पड़ने पर स्वच्छ जल जगमगाया करता है ।।








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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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उसके जिस्म से निकलने बाली परफ्यूम की भीनी भीनी सुंगन्ध नागपाल के नधूनों में धूसने के बाद उसे अंदर तक आनन्दित करती चली गई ।।


जो हेयर स्टाईल उसने बनाया था वह उसके मुखड़े पर इतना फब रहा था जैसे बालों को उस स्टाईल से गूंथने का चलन बना ही उस मुखड़े के लिये हो ।।


वह काली ड्रैस पहने हुये थी ।


नागपाल को लगा -- गोरे जिस्म पर इस ड्रैस से ज्यादा और कोइ ड्रैस जंच ही नहीं सकती थी ।।


उसमें आगे की तरफ चैन लगी हूई थी , चैन इतनी खूली हूइ थी कि दोंनो कबूतरों के बीच की धाटी बस इतनी नजर आ रही थी कि देखने बालों का दिल चाहे --" थोड़ी सी और नजर आनी चाहिए ।"


नागपाल का दिल चाहा भी --- हाथ बड़ा कर चेन को थोड़ी सी और खोल दे ।।।


लिबास के अंदर की चोटियां गर्व से खड़ी थी । नागपाल झुका । काले भद्धे और मोटे होंठ चोटियों की और बड़ाये ।


" नो नो मिस्टर नागपाल ।" कहने के साथ ही बिंदू ने खुद को पीछे हटा लिया ।


नागपाल झुका का झुका ही रह गया । सुअर जैसे चेहरे पर एेसे भाव थे जैसे बिल्ली के सामने से मलाई से भरी हाड़ी हटा ली गई हो । वह बापस सीधा होकर बोला -- " क्यों नही ?"


" मैं पूछती हूं क्यों ? आज तो बिंदू की आवाज भी उसे खास खनकदार लगी ---" क्यों होने दूं ऐसा ?"


" म मैंने तुंम्हें पांच लाख में ........


" अपने लिए नहीं ।" बिंदू ने उसकी बात काटी --- " वे पांच लाख विनम्र के लिए दिये हैं । विनम्र भारद्वाज को शीशे में उतारने के लिये ।"
इतनी प्रोफेशनल भी न वनो । मैं एक बार इन्हे चूम ही लूंगा तो तुम्हारा क्या घिस जाएगा?"


बिंदू खिलखिलाकर हंस पड़ी । खिलखिलाहट का कारन था---नागपाल द्वारा बात को 'नदीदो' की तरह कहने का अंदाज और. . नागपाल को उसके खिल-खिलाने की आवाज ऐसी लगी जैसे संगमरमर के फर्श पर सच्चे मोती बिखरते चले गए हों सफेद रंग के ठीक वैसे मोती जैसे मोतियों की माला उसने अपनी सुराहीदार गर्दन से पहनी हुई थी । तीन लड़ी बाली माला थी वह जो काले लिबास के साथ यूं लग रही थी मानो गगन पर ईद का चांद मुस्करा रहा ही । नागपाल को कहना पडा…"मेने कोई चुटकुला सुना दिया क्या?"



"चुटकला ही तो था वह । चुटकला ही तो था ।" ख़नकदार आवाज के साथ बिंदू कहती चली गई…-"एक ही सेन्टेस मैं तुमने दो बाते कह दी! पहली----' इतनी प्रोफेशनल न बनू । दूसरी -तुम्हें अपने सीने को चूमने दूं तो मेरा क्या घिस जाएगा? सच कहा तुमने! कुछ नहीं धिसेगा । लेकिन अगर यूंही, फ्री में किसी ऐरे-गेरे को चूमने दूं तो इन्हें चूमने की "मोटी कीमत' कौन देगा ।"


" पक्की । बहुत ही पवक्री प्रोफेशनल हो तुम ।"


"बनना पड़ता है । न बने तो तुम जैसे मर्द मुझ जैसी लडकियों को फ्री में बकोट डाले ।" एक बोर फिर खिलखिलाकर कहने के बाद वह बोली-------"अंदर भी जाने दोगे या नहीं?"


"आओं आओ!" नागपाल के मस्तिस्क को झटका-सा लगा । सचमुच उसे पहली बार ख्याल अाया था कि विंदू और वह अभी तक दरवाजे ही पर खडे हैं ।


हड़बड़ाकर एक तरफ हटता हुआ बोला---‘प्लीज कम इन ।"

वहआगे बढी ।


लहराकर उसके-नजदीक से'निक्ली तो लगा…जेसे चल नहीं रही थी बल्कि कालीन से थोड़ा ऊपर उड़ रही थी ।


नागपाल ने दरवाजा बंद किया ।


घूमा।


नजर सोफासेट की तरफ बढ रही विंदू की पीठ पर पड़़ी ।।


वह उसके पीछे बढ़ ना सका । वस घूरता सा रह गया ।


सोफासेट के नजदीक पहूंचकर बिंदू घूमी और बोली --" विनम्र के आने का टाईम होरहा है !"


नागपाल को झटका सा लगा । बिंदू के आने के बाद उसे टाईम का होश ही न रहा । उल्टा बिंदू याद दिला रही थी ।

" हां । इस वक्त तो जाना ही पड़ेगा ।" कहकर सुइट से बाहर निकल गया ।।
नौ आठ पर उसने सुईट नम्बर सेविन जीरो थर्टीऩ की कॉलबेल का स्वीच दबा दिया ।। मुश्किल से आधे मिनट बाद दरबाजा खुला । विनम्र थोड़ा हडबड़ा गया । कारण था -- दरबाजा किसी लड़की के द्वारा खोला जाना ।

उसकी उम्मीद के मुताबिक नागपाल का चेहरा नजर आना चाहिए था ।

"सॉरी ।" कहने के साथ साथ उसने दरबाजे से हटना चाहा कि बिंदू ने हाथ बड़ा कर कलाई पकड़ ली ।। साथ ही कहा --- " आप बिल्कुल सही दरबाजे पर खड़े हैं मिस्टर विनम्र ।"


पता नहीं बिंदू की पकड़ में क्या था कि विनम्र को अपने सम्पूर्ण जिस्म में करेंट सा प्रवाहित होता लगा ।। आखें उसके रसभरे होठों पर चिपककर रह गई थी । बि'दू उसकेे लिए अजनबी धी मगर उसकी मुस्कान में था--घोर अपनत्व विनम्र ने खुद को किसी ओर ही दुनिया में पहुचने से रोकते हुए कहा…"मैं यहां मिस्टर नागपाल से मिलने आया था ।" "जानती हूं।" कहने के साय बिंदू ने सोधे-सीधे उसकी आंखों में झांका। "


लोग अक्सर कहा करते थे-"विनम्र तुम्हारी अांखों में चुम्बकीय शक्ति है' मगर, उसे लगा--लोग गलत कहते थे । चुम्बकीय शक्ति तो इसे कहते हैं । इसे, जो लडकी की आंखों में नजर अा रही है । वेहद चमकदार थी वे । कोशिश-के बस्वजूद विनम्र उन आंखों से नजरें न हटा सका । उनके 'सम्मोहऩ’ से निकलने के लिए काफी मेहनत करनी पडी । अपनी आवाज क़हीं दूर से आती महसूस हुई---"मिस्टर नागपाल कहां है?"

"आप तो आईए" उसकी आवाज मैं "चाश्नी जैसी मिठास थी ।

विनम्र हिचका ।

बिदू-उसका हाथ छोडकर एक तरफ हट गई -अंदाज रास्ता देने वाला था।

अंदर दाखिल होते विनम्र ने कहा…"नागपाल ने मुझे नौ बजे का टाईम दिया था ।। बे अब तक नहीं आए ?"

"कमाल है मिस्टर बिनम्र।" वह दरवाजा बंद करने के साथ बोली-----" जो सामने है उससे तो ठीक से मिल नहीं रहे और जो नहीं है, उसके बारे में बार-बार पूछ रहे है "।’"

विनम्र ने योड्री सख्ती से कहना चाहा ---" मैं यहां मिस्टर नागपाल से..... "



उसने विनम्र का वाक्य पूरा नहीं होने दिया------" नई जनरेशन के लड़के लड़की को सामने देखकर इस क़दर 'नर्वस' तो नहीं होते ।"


"न-नर्वस?" बौखलाकर विनम्र को कहना" पड़ा---"म मैं भला-नर्वस क्यों होने लगा?"



" अपने पेशे की माहिर विंदू अच्छी तरह जानती थी कि शिकार को जाल में फंसाने के लिए चोट कव और कहां की जानी चाहिए । विनम्र नर्वस था या नहीं मगर ऐसा कहकर उसने उसे यह साबित करने पर मजबूर कर दिया कि वह नर्वस नही है ।। यह साबित करने की भावना अब विनम्र की कमरे से बाहर नहीं जाने दे सकती थी ।
दूसरे तीर के
रूप मे
बिंदूने अपनी आँखे थोड़ी तिरछी की । उन्ही तिरछी आंखी से उसकी तरफ देखती हुई बौली---" हो तो रहे हो थोड़े से ।"


"व-बिल्कुल नहीं ।" बिनम्र ने अपनी आबाज मे कंन्फिडेंस लाते हुए कहा ओर. . यही तो चाहती थी बिंदू। यही जबाब सुनने के लिए उसने नर्वस होने का आरोप लगाया था ।


वह उसके नजदीक से गुजरकर सोफासैट के नजदीक पहुंचती हुई बोली-------" ऐसा ना होता तो अब तक कम-से-कम मेरा नाम तो पूछ ही चुके होते !"



"क्या नाम है तुम्हारा?" बिनम्र ने साबित किया वह नर्वस नहीं है ।

“बिंदू ।" सेंटर टेबल के नजदीक पहुंचकर वह वापस उसकी तरफ घूमी ।


' 'असल मैं मुझे यहां किसी लड़की से मुलाकात होने की उम्मीद नहीं थी । मैं तो नागपाल से मिलने...

"मैं उनकी सैकेट्री हूं " एक बारफिर उसने विनम्र का बाक्य काटा ।

विनम्र के मुंह से यही एक लफ्ज निकल सका…"औह ।"


"यहां आकर बैठने मे कोईं हर्ज है क्या?" बिंदू ने सोफा चेयर की तरफ इशारा करते हुए कहा ।।।


"हर्ज तो नहीं है मगर मैं यहां पर विजनेस कीबातें करने आयाथा।"


विनम्र को बाधें रखने के लिये बिंदू को कहना पड़ा ---" दो ही बाते तो जानने अाए है अाप यहाँ । पहली--भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कम्पनी में पाठक जेसे गगोल के और कितने अादमी है? दूसऱी---यह क्वीलिटी में क्या हेराफेरी कर रहा है?"

"तो तुम यह भी जानती हो?"


"शायद नागपाल साहव से बेहतर ।"


"नागपाल से बेहतर?"


" 'क्योकि यह सब पता कर मैंने ही बताया है ।" बिंदू ने कहा नागपाल साहब ने अपने यहां नौकरी देने के बाद मुझे सबसे पहला काम यही दिया था ।।
उनकी वेदना यह थी कि पिछले एक साल से उन्हें भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कम्पनी का कोई काम नहीं मिल रहा था । हर काम गगोल हथिया लेता । मिस्टर नागपाल जानना चाहते थे---"ऐसा क्यों हो रहा है था । हर बार मिस्टर गगोल के टेंडर में भरी रकम उनके टेंडर से कम क्यों निकलती है और इतने कम पर गगोल काम कैसे कर रहा है? इस राज का कारण पता लगाने का काम उन्होंने मुझे सौंपा । मेने क्या कैसे किया, यह एक लम्बी कहानी है । सुनने में शायद आपकी दिलचस्पी नहीं होगी । निचोड़ ये है कि मैंने मिस्टर नागपाल को उन लोगों के सूची दी जो भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कम्पनी में उनके खिलाफ़ और गगोल के फेवर में काम कर रहे थे । पाठक तो वहुत छोटा मोहरा है मिस्टर विनम्र. . . आपकी कम्पनी में गगोल के घुसपैठियों की सूची काफी लम्बी है । क्वालिटी में यह क्या-क्या और कैसी-कैसी हेराफेरियां कर रहा है, इस सबकी डिटेल सुबूतों के साथ मिस्टर नागपाल को मैंने ही दी है । जव , आपका यहाँ जाना निश्चित ही गया तो नागपाल साहब ने कहा'--बिदूं विनम्र साहब को जो चाहिए यह उन्हें मुझसे बेहतर तुम दे सकती हो तो क्यों न, मेरी जगह तुम ही उनसे मिल लो । इस तरह अाप यहाँ मिस्टर नागपाल की जगह मुझें देख रहे हैं ।"



विनम्र ने तुरन्त कुछ नहीं कहा । बिंदू ने जो कुछ बताया था कुछ देर उस पर विचार करता रहा । बिचार करने के बाद बोला ।


"मिस्टर नागपाल को मुझे प्रोग्राम में हुई तब्दीली के बारे मे बताना चाहिए था. ।"


"क्या आपको मुझसे बात करने ने एतराज है?"


"मुझे भला क्या एतराज होगा ।" विनम्र ने कहा---" चलो! तुम ही कहो --क्या कहना है?"


"क्या अाप बैठेंगे नहीं?" बि'दू ने एक बार फिर नयनबाण चलाया ।

कुछ देर विनम्र खड़ा रहा फिर जाने क्या सोचकर अागे बढा और सोफा चेयर पर बैठ गया ।


बिंदू उसे बैठाने तक में कामयाब हो गई थी मगर जानती थी------" वह पूर्व शिकारों की तरह उसके 'रुपजाल' में उलझकर नहीं बैठा है बल्कि ये जानकारियां लेने बैठा है जो लेने यहाँ अाया था । यह स्थिति विंदू को अपनी शिकस्त जैसी लग रही थी ।
पहले ऐसा कभी नही हुआ था कि 'शिकार' उसके सामने रहते उसके अलावा कुछ सोच सका हो ।


"क्या लेगे?" विंदु ने मोहक मुस्कान के साथ पूछा ।


"कुछ नहीं! मेरे पास टाईम कम है ।"


"ऐसा कैसे हो सकता है मिस्टर विनम्रं कम से कम मेरी नौकरी का ख्याल तो आपको करना ही होगा ।"


" न न नौकरी का?"


"नागपाल को जव पता लगेगा मैं आपकी कोई सेवा नहीं कर पाई तो. . . ।" इतना कहकर वह स्वत: थोडी रुकी, फिर अागे बोली------'', क्या वे मुझे इस नौकरी पर रहने देगे? क्या छूटते ही यह नहीं कन्हेंगे कि जिस लडकी में मेरे मेहमान को कुछ पिलाने तक के टेलेन्ट नहीं है उसे नौकरी पर रखकर क्या करूगा ? "


" ओके ।" विनम्र धौड़ा मुस्कुराया-"अगर कुछ पिलाना जरुरी है तो पानी पिला दीजिए"'

" साबित हो गयाआपका केवल नाम ही विनम्र नहीं है बल्कि अंदर से भी एक विनम्र इंसान हैं । किसी लड़की की नोकरी बचाने के लिए कुए पीने के लिए तेयार हो जाना यह साबित करता है ।" कहने के बाद यह अपनी एड़ियों पर तेजी के साथ कुछ ऐसे अंदाज में घूमी कि उसके गोल नितम्ब ठीक विनम्र की आंखी के सामने यूं थरथराऐ जैसे मेज पर रखे पानी से भरे गुबारे थरथराए हो । फिर, उन्हें खास अंदाज में नचाती हुई फ्रिज की तरफ बढ़ी । भले ही विनम्र की तरफ उसकी पीठ थी परन्तु जानने की कोशिश यह कर रही थी कि विनम्र की नजर उसके नृत्य करते नितम्बों पर है या नहीं? और. . .उस वक्त उसने अपने अंतर में निराशा का भाव उतरते महसूस किया जव पीठ पर विनम्र के निगाहों की कोई चुभन महसूस नहीं की ।


सचमुच विनम्र उसकी तरफ नहीं देख रहा था ।

उसने जेब से डनहिल का पैकिट निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली थी । यह सिगरेट उसने खुद को "उन्ही' के प्रभाव से बचाने के लिए सुलगाई थी, जिनके आकर्षण में विंदु उसे बांधने का प्रयत्न कर रहीँ थी । ऐसा नहीं कि विनम्र पर उसके आकर्षक नितम्बो का कोई प्रभाव
नहीं पड़ा था । प्रभाव तो ऐसा पड़ा था कि उसे लग रहा था…बे अंग उसे अपनी तरफ़ खींच रहे हैं । बह 'खिंचना' नहीं चाहता था । दिलो-दिमाग मे यह डर समा रहा था कि कहीं वह "भटक" न जाए
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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इसी डर के कारण खुद को सिगरेट सुलगाने और फिर उसमें कश लगाने में व्यस्त किया था ।


उधर विंदु को लग रहा था-- आज की रात उसकी परीक्षा की रात है ।

लडका उसके 'ताप' से पिग्लने को तैयार नहीं है । फ्रिज का डोर खोलते वक्त उसने अपने टाप की चेन थोडी और खोल ली! इतनी कि ब्रा का ऊपरी हिस्सा थोड़ा नजर आने लगे ! उसे लगा था विनम्र को इतना जलवा दिखाना जरूरी है ।।


विंदू ने फ्रिज से ब्ल्यू लेवल की बोतल, दो गिलास ओऱ दो सोड़े निकाले ।

दस्वाजा बंद कंरने के साथ घूमी । विनम्र को अपनी तरफ न देखता देखकर एक बार फिर धक्का लगा । सोफे पर बैठा बह सिगरेट पी रहा था ।


" शीशे में तो उतारना है इस लडके को ।

ऐसा निश्चय करके वह सोफासेट की तरफ बढ गई ।

विनम्र के सामने पहुंचकर जव कांच की सेंटर टेबल पर बोतल, गिलास और सोडेे की बीतले रखीं तो विनम्र ने चौकते हुए कहा…"मैंने कैवल पानी मांगा था! यह सब क्या है?"

सामान सेटर टेवल पर रखते वक्त बिंदू के थोडा झुकने की जरुरत तो थी ही, लाभ उठाती हुई इतनी झुकी कि विनम्र की आंखे गले के पार . उसके वक्षस्थल की झलक देख सकें। साथ ही, आंखे उसकी आंखों में …डालती हुई बोली…क्यों कभी ली नहीं क्या?"


"लं--ले तो लेता हूं । मगर. .. ।" वह हकला रह गया ।


बि'दूने सारे जहा' की ज्योति अपनी आंखों मैं इकटृठी करके पूछा---"मगर ?"


"बिजनेस की बातें करते वक्त नहीं लेता ।" उसने सम्भलकर कहा ।

नजर बिंदू द्वारा पेश किए जा रहे 'जलवे' पर नहीं पडने देना चहता था । 'खेली खाई विंदु' समझ गई कि वह खुद को 'पिघगलने' से रोकने की कोशिश कर रहा है । खुद की पोज मे रखकर बोली------" अब तक अाप बिजनेस का बातें पांच बजे से पहले अपने आँफिस मैं करते रहे हैं ।"


" करेक्ट ।" बिनम्र केवल इतना ही कह सका ।





सूरज ढलने के बाद कुछ ओंर नहीं, केवल यह पी जाती है ।" कहने के साथ उसने बोतल की सील तोड दी थी । विनम्र इंकार करना चाहता था मगर नहीं कर सका । बेचैनी-सी महसूस कर रहा था वह । कारण था…वह बिंदू के गले की तरफ देखना नहीं चाहता था । मगर चोटियां थी कि बार-बार नजर को खींच रही थी ।।


गिलासों में व्हिस्की और सोडा डालने के बाद एक गिलास उठाकर 'विनम्र' की तरफ बढ़ाते हुए कहा--" प्लीज ।"


वह चौंका । तंद्रा भंग होगई । गिलास उसके हाथ से लेता बोला --" थैंक्यू ।"

बिंदु ने गिलास उसके गिलास से टकराते हुए कहा --" चियर्स ।"


" चियर्स ।" विनम्र को भी कहना पडा ।


एक घूंट पीने के बाद बिंदू सीधी हो गई थी । उसकी आंखों के सामने अपने नितम्बों का नृत्य पेश करती सामने वाले सोफे पर जा बैठी ।

'शिप' के बाद गिलास सेंटर टेबल पर रखते हुए विनम्र ने कहा-------'' विंदु अब हम काम की बाते करें तो बेहतर होगा ।"


"काम की बातें?"

"मुझे अपने आँफिस में गगोल के लिए काम करने वाले आदमियों की लिस्ट चाहिए ।"

" ल लिस्ट हां! क्यों नहीं?" कहने को तो वह कह गई मगर ऐसी कोई लिस्ट उसके पास थी कहां? लिस्ट रखने की उसने ज़रुरत ही महसूस नहीं की थी । कारण पिछले किसी भी मिशन के दौरान उस टापिक पर बात ही नहीं हुई थी जिसके 'बहाने' मीटिंग अरेंज की जाती थी । यह पहला शख्स था जो उसके द्वारा व्हिस्की सर्ब किए जाने के बाद भी 'मतलब की बात’ किए जा रहा था ।

बिंदू समझ नहीं पा रही थी विनम्र को कैसे पटरी पर लाये! अपनी हड़बड़ाहट को छुपाने के लिए उसने घूंट भरा! बोली-------" आप एन्जॉय करना नहीं जानते मिस्टर विनम्र"

" मतलब ?"


"मैं सामने हूं और आपको काम की बाते सूझ रही हैं !" बिंदू के दिल की बात जुबान पर अा गई ।

"तुम सामने हो! मतलब ।" वह चौंका---“मैं समझा नहीं ।"


" उफ्फ पहाँ सेन्द्रल ए.सी के बावजूद यहां कितनी गर्मी है ।" विनम्र को 'चित्त' करने की मंशा से उसने टॉप की चेन और खोल ली!


मुकम्मल ब्रा और उसमें कसा हुआ जिस्म नजर आने लगे ।


विनम्र के जहन में विस्फोट हुआ ।

भयंकर विस्फोट ।।


आंखों के सामने टी..वी. पर अधेड को गर्म कर रही लड़की नाच उठी ।


मार डाल विनम्र । मार डाल इस लड़की को । विनम्र के अंदर बैठी ताकत ने उसे उकसाया------"जरा सोच'----मरने के बाद कितनी सुन्दर लगेगी ये! जव 'जहन' में यह सव गूंज रहा था तब उसकी आंखे विंदू के जिस्म पर जमी थी । स्थिर होकर रह गई थी बहाँ, और..........
बिंदू को लग रहा था----" उसका जादू गया है ।' होठों पर सफलता से लबरेज मुस्कान उभरी । मन ही मन खुद से कहा…"बचकर कहां जाएगा लड़के ! मुझसे आज तक कोई नहीं बच सका है ।

वह अपने स्थान से उठी ।



उठते वक्त जानबूझ कर कबूतरों में थरथराहट पैदा की ।

वह थरथराहट बारे में वह जानती थी कि-मर्द के अंदर तक हाहाकार मचा देती है ।


"विनम्र गला दबा दे इसका ।" अपने जहन की दीवार पर टक्कर मारती यह आवाज विनम्र को साफ़ सुनाई दी-------" फटी की फटी रह जाएगी इसकी चमकदार आंखें! कांच की गोलियों जैसी वेजान वे आंखें इससे कहीं ज्यादा सुन्दर लगेंगी जितनी अब लग रही है । बाह क्या सीन होगा । मजा आ जाएगा विनम्र मजा अा जाएगा ।।।"


बिंदू देख रही थी विनम्र की आंखो ने उसके सीने से हटने का नाम ही जो नहीं लिया । गदगद हो गई बह । बिनग्र को ऐसी अवस्था में पहुंचाकर उसे यह सुख मिल रहा था जो पहले कभी नहीं मिला था ।" जी चाह रहा था ठहाका लगाकर हंस पड़े । कहे---लड़के बहुत 'स्ट्राग' समझ रहा था न खुद को! अब क्यों घूरे जा रहा है इन्हे? इनके 'ताप' से बचने बाला दुनिया में पैदा ही नहीं हुआ । मगर, ऐसा कहा नहीं उसने! ठहाका भी नहीं लगाया! होठों पर केवल मुस्कान बिखेरी । निमंत्रण देने वाली मुस्कान' उसने सोच लिया था-जो कुछ दिमाग में आ रहा है उसे विनम्र से तब कहेगी जव वह उसका 'गुलाम' बन चुका होगा ।

वह विनम्र की तरफ बढ रही थी । जानती बी-------अब विनम्र भी खुद को उसकी तरफ बढने से नहीं रोक सकेगा।

वही हुआ ।


वह एक झटके के साथ खडा हो गया था ।

जहन की दीवारों से आवाज टकरा रहीं थी-किंत्तनी सुन्दर है यह लड़की । कितनी सैक्सी । यह किसी भी मर्द को पागल कर सकती है । दीवाना बना सकती है ।। इसे मर जाना चाहिए । अागे बढ विनम्र ।


खेल खत्म कर दे इसका । दबा दे गला । मरने से पहले जव यह जिंदा रहने के लिए छटपटाएगी तो कितना मजा अाएगा ।

कितनी प्यारी होगी वह तडपन ।

वाह । इसे मरते देखना कितना रोमांचकारी होगा । अागे बढ विनम्र !! ये सुख लूटने के लिए तू कब से मरा जा रहा है । लूट ले! इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा ।"


इस आवाज से प्रेरित विनम्र विंदू की तरफ बढा ।


उसे अपनी तरफ बढते देख बिंदू की निमंत्रण देती मुस्कान में सफलता का पुट मिसरी की तरह आ घुला । मुह से बगैर कुछ कहे उसने अपनी बाहे विनम्र की तरफ फैला दी । अंदाज ऐसा था जैसे उसे वाहों मे भरने के लिये मरी जा रही हो ।।।।।
फ्रिज के पीछे छुपे बिज्जू का कैमरा 'अबाध' गति से काम कर रहा था । . एक भी 'सीन को "मिस" नहीं करना चाहता था वह । एक-एक स्नेप उसे करोड़--करोड़ रुपये का लग रहा था । छातियां खोले बिंदू उसके कैमरे के ठीक सामने भी । बाहें फैलाए यह विनम्र की तरफ बढ़ रही ही और विनम्र उसकी तरफ़ ।


अगर यह कहा जाए फोटो खीचने के चक्कर में वह आवश्यक सावधानी बरतना भी भूल गया था तो गलत न होगा । "ऐंगिल' बदलने के चक्कर मे कई बार कोहनी फ्रिज से टकराई थी । आबाज भी हुई थी ।।।


फ्रिज थोड़ा हिला भी था परन्तु उस सबकी परवाह किए बगैर अपने काम में लगा रहा ।


उधर, बिंदू या विनम्र भी तो उन आवाजो को नहीं सुन पाए थे । फ्रिज के हिलने तक ने उनमे से किसी का ध्यान नहीं किया था । होता भी कैसे? वे एक-दूसरे की तरफ दीवानो की तरह बढ रहे थे ।


बिज्जू की 'जी' चहा था…इस वक्त उसके हाथ मे कैमरा नहीं, वीडियो कैमरा होना चाहिए था । यह सीन तो पूरी फिल्म बनाने लायक था ।


एकाएक उसने विनम्र के वेहद नजदीक पहुंच चुकी बिंदु को चौंकते हुए देखा । कहते सुना---" अरे ! ये तुम हो किस मूड में हो विनम्र?"


बिनम्र बोला नही ।


बिंदू के चेहरे पर खौफ़ के भाव उभर अाए । अचानक डरी हुई नजर आने लगी थी वह ।


बिज्जू ने यह 'स्नेप' भी ले लिया ।


" विनम्र !" पीछे हटती हुई खौफजदा बिंदु चीख पड्री---"तुम्हें हो क्या गया है? "'








"वेइन्ताह सुन्दर हो तुम ।। गजब की सेक्सी ।" यह सब कहते वक्त विनम्र के दांत भिचे हुए थे । मुंह से मानो इंसान की नहीं दरिन्दे की आवाज निकल रही थी--" लडकी तेरे ये वक्ष जो इस वक्त रुई के गोले जैसे है अगर मर जाए तो पत्थर की तृरह सख्त हो जाएंगे । मुझे पत्थर जैसे सख्त वक्ष पसंद है । मरी हुई लड़क्री मुझे अच्छी लगती है । लाश की आंखें बहुत सेक्सी होती हैं ।"
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Jemsbond
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

विनम्र की आवाज और उसके शब्दों ने बिंदू के ही नहीं बिज्जू को भी हिलाकर रख दिया । ।


"व-विनम्र ।" भयक्रांत बिंदू पिछे हटती हुई बोली ---" ये तुम क्या कह रहे हो ?"



"बाह । मरते वक्त किसी लड़की का जिन्दगी के लिए छटपटाना कितना रोमचकारी होता है ।" बिंदू के सवाल का ज़वाब देने की जगह वह निरन्तर अागे बढता कहता चला गया…"मैं वो मंजर देखना चाहता हूं लड़की । मेरी आखें किसी तड़पती लड़की को देखने के लिए वहुत दिन से प्यासी है । आ…मैं तेरा गला दबा दूं ।।"



विनम्र इस वक्त आवाज ही से नहीं, शक्ल से भी दरिन्दा नजर अा रहा था । जिस्म का सारा खून सिमटकर सिर्फ और सिर्फ उसके चेहरे पर इकटृठा हो गया था । मस्तक और कनपटी की एक--एक नस साफ़ चमक रही थी । आखों में रोशन थे लाल रंग के बल्ब । बोहत ही डरावना लग रहा था वह । इतना ज्यादा कि उसे गुलाम वनाने सारी अंदाए भूलकर चीख पडी ।।



"बचाओ -बचाओ ।

चीखना वह तीसरी बार भी चाहती थी मंगर चीख न सकी ।


उससे पहले विनम्र ने झपटकर उसकी गर्दन दबोच ली थी ।
पहली बार बिंदुं की जगह विनम्र का चेहरा बिज्जू कै कैमरे के सामने था । उसके हाथ ही नहीं सारा जिस्म सूखे पत्ते की मानिन्द कांप रहा था । वंह चीख पडना चाहता था मगर आवाज हलक में घुटकर रह गई ।।


उसका गला नहीं दबाया जा रहा था मगर हालत उसकी भी विंदु जैसी थी ।

वह देख रहा था--- बिंदु की बाहर निकल अाई जीभ को पलकों की सीमाएं तोड़कर कूद पड़ने के लिए तैयार आंखों को । रुकती सांसो को और खुद को मरने से बचाने के लिए उसकी छटपटाहट को ।

कान बिंदू की "गु--गू' पर हावी हो गई विनम्र की आवाज सुन रहे थे----"अब आ रहा है मजा! वाह । क्या तड़पन है तेरी! तडप और तड़प! जनूनी अवस्था में वह सव कहता विनम्र उसकी गर्दन पर दवाब बढाता चला गया ।


बिज्जू की आंखें एक हत्या होते देख रही थी ।

बह बिंदू को बचाना चाहता था ।

मगर लगा---यदि विनम्र को उसके यहां होने का पता लग गया तो वह उसे भी नहीं छोड़ेगा । विनम्र इस वक्त मासूम लड़का कहां था? वह तो दरिन्दा बना हुआ था! दरिन्दा ।।

और फिर !!!!


बिंदू के मुंह से निकलने बाली "गूं-गूं की आवाज़ ने दम तोड दिया । हाथ-पांय ढीले पड गए । उनमे कोई छटपटाहट नहीं थी ।


विनम्र के हाथों में कंसी गर्दन हलाल हो चुके बकरे की मानिन्द लटकी रह गई थी ।


बिज्जू कै जहन में एक ही विचार कौधां ---" खेल खत्म । "


उस वक्त जाने कैसे उसे अपने हाथों में मोजूद कैमरे का ख्याल आया ? इधर उसने बटन दबाया उधर विनम्र ने अपने हाथ बिंदू की गर्दन से हटा लिए । लाश "धप्प' की आवाज के साथ कालीन पर जा गिरी । उसकी गर्दन में मौजूद सच्चे मोतियों की माला विनम्र की अंगुषियों में उलझकर रह थी ।


वह टूट गई ।
सफेद रंग के मोती कालीन पर दूर--दूर तक बिखर गए ।


उछलता, कूदता और लुढ़कता हुआ एक मोती फ्रिज के पीछे भी आ घुसा । ठीक वहा जहाँ बिज्यू था! मारे खौफ के बिज्जू का यह हाल हो गया था कि मोती को फौरन ही अंगुली मारकर बापस लाश की तरफ लुढ़का दिया । कछ ऐसे अंदाज में वह मोती नहीं मर्डर वेपन हो ।



विनम्र अपने कदमों में पड्री लाश और बिघरे मोतियों को फटी-फटी आंखों से देख रहा था ।।



अंदाज ऐसा था जैसे यह सब उसने नहीं, किसी और ने किया हो ।


चेहरे पर मोजूद हिंसा के भाव खौफ के भावो में तब्दील होते चले गए । आंखे बिंदू की लाश से हटने का नाम नहीं ले रही थी । उसकी जीभ और
आंखें बाहर निकली हुई थीं । विनम्र को लगा---बिंदू जीभ निकालकर उसे चिड़ा रहीहै। आंखें उसी को घूर रही हैं ।।



उसका हर अंग ढीला और शिथिल पड़ चुका था ।



विनम्र ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढांप लिया! और. . . . .


बिज्जू स वक्त दंग रह गया जब विनम्र क्रो फूट…फूट कर रोते देखा ।। यह बात उसकी समझ से पूरी तरह बाहर थी कि हत्यारा हत्या करने के बाद रो क्यों रहा है? चेहरे पर मौजूद आंखे तक ढांप ली थीं उसने । जैसे लाश को देखना न चाहता हो ।



चेहरे को यूंही ढांपे वह रोता हुआ लाश के नजदीक से हटा । कदम ऐसे डगमगाए थे जैसे क्षमता से कई गुनी ज्यादा पी गया हो । सोफे पर जा गिरा । वहाँ भी बस हाथो से चेहरा छुपाए रोता रहा । बिज्जू की समझ मे ना आ रहा था "ये हो क्या रहा है?" न ही यह 'इन हालात वह क्या करे ?'

रोते हुए विनम्र के फोटो ले डाले उसने ।
बिज्जू की समझ में नहीं आ रहा था विनम्र क्या सोच रहा है, क्या कर रहा है! कभी रोने लगता । कभी सामान्य नजर जाता था । कभी उसके चेहरे पर किसी ठोस निश्चय की परछाई नजर जाने लगती थी ।



अब बाथरूम में गया था ।



दिमाग में सवाल अाया--" वह बाथरुम ने क्यों गया है?"


दिल जोर जोर से पसलियों पर सिर टकरा रहा था । 'जी' चाह रहा था'--फ्रिज़ के पीछे से निकले! देखने की केशिश तो करे वह बाथरुम में कर क्या रहा है मगर ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा'सका । जानता धा----अगर विनम्र को यहाँ उसकी मोज़दूगी का एहसास हो गया तो उसका भी वहीं हस्र होगा जो बिंदू का हुआ है ।


उसका खात्मा करते वक्त जो भाव विनम्र के चेहरे पर थे उन्हें याद करके बिज्जू के तिरपन कांप गए ।


उसने छूपे रहने में भलाई समझी ।


मुश्किल से दस सेकण्ड बाद सुईट में बाथरुम का दरवाजा बंद होने की आवाज गूंजी । फिर, विनम्र नजर अाया ।


इस वक्त उसके हाथ में सफेद रंग का एक रोएदार टॉवल था । टॉवल लिए वह लाश के नजदीक पहुचा।


बिज्जू का दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था ।


कैमरा एक बार फिर सम्भाल लिया । बिनम्र लाश के सिरहाने, घुटनों के बल बैठ गया ।


बिज्जू ने देखा-----कुछ देर बाद लाश की गर्दन को टॉवल से रगड रहा था । बिज्जू ने यह दृश्य कैमरे में कैद कर लिया ।
गर्दन को चारो तरफ से अच्छी तरह रगड़ने के वाद विनम्र ने एक बार फिर ऐसी हरकत की जो बिज्जू की समझ मेंं नहीं आईं । टॉवल का फंदा बनाकर वह ठीक इस तरह लाश की के चारो तरफ कस रहा था के जैसे जीवित व्यक्ति को मार डालने की कोशिश कर रहा हो ।


बिज्जू को यह हरकत अजीब लगी ।


पागलपन से भरी । वह बिंदू को दुवारा मारने की कोशिश क्यों कर रहा था? क्या उसे शक था कि बिंदू में अभी एकाध सांस बाकी है? अगर यह ऐसा सोच रहा था तो गधा था । बेवकूफ़ था । यह तो कभी की मर चुकी थी ।।


अंतत: विनम्र ने टॉवल वहीं, उसी पोजीशन में छोड़ा और खड़ा हो गया ।


लाश नजदीक खड़ा विनम्र कुछ देर तक कमरे का निरीक्षण करता रहा । उस "क्षण बिज्जू ने खुद को पूरी तरह फ्रिज के पीछे कर लिया था ।


फिर, उसने दूर जाती पदृचाप सुनी ।


सुईट का मुख्यद्वार खुला और बंद हो गया ।



हत्या करने के बाद इतने आराम से निकल गया हत्यारा?


और वह ।।।



वह अभी तक यहा का यही है।



यदि इस वक्त कोई सुईट में आ जाए! जाहिर है-वह लाश पर नजर पडते ही चीखने वाली मशीन की तरह चीखना शुरु कर देगा! पलक झपकते ही हुज्जूम लग जाएगा ।


निकल भागने का कोई मौका नहीं मिलेगा उसे अगर यह लाश के साथ पकड़ा गया तो लोग उसे ही हत्यारा समझेंगे ।

"हे भगवाना ! ये क्या बेवकूफी कर रहा हूं मैं ? क्यों छूपा हुआ हूं अभी तक यहां?"


"निकलकर भाग क्यों नहीं जाता?'


इन सब विचारों ने उसे फ्रिज के पीछे से बाहर निकल अाने पर मजबूर कर दिया ।


सबसे पहली नजर मुख्य द्वार पर पडी ।


वह 'लॉक' था ।


राहत की सांस ली । फिर सोचा--" मैं गधा हूं ! भला कोई हत्यारा कैसे साबित कर सकता हैं? मेरे पास कैमरा है । वह कैमरा जो सारी दुनिया को साफ-साफ़ बता देगा 'हत्या' किसने और किस तरह की है ।।।
मैं तो गवाह हूं ।।। मुझसे बड़ा गवाह है------ये कैमरा ।


पर कैमरे में मौजूद 'खजाने' को क्या मुझे इस तरह जाया कर देना चाहिए?

नहीं!

हरगिज नहीं ।!



कैमंरे में मौजूद फोटो करौड़पति बल्कि अरबपति बना सकते हैं, लेकिन तब जब सही मौका आने पर इन्हें विनम्र के सामने रखा जाए । वह इनकी मुह मांगी कीमत दे सकता है । उन फोटुओं से तो शायद यह कम कमाई करता जो यहां खींचने अाया था मगर जो फोटो इस वक्त कैमरे में है वो उसके पौ बारह कर देगें ।।।।


एक खरबपति शख्स खुद को कानुन से बचाने के लिए क्या नहीं दे देगा ?


वह खुद को कानून से बचाना चाहता है । इसलिए तो चुपचाप निकल गया ।



नहीं । ये फोटो किसी और को नजर नहीं आने चाहिए । यदि मुझे खुद को निर्दोष सावित करने के लिए इस्तेमाल करना पड़ा तो धमकी देकर विनम्र से बेशुमार दौलत कैसे खीचूंगा?


मुझे यहाँ से निकल जाना चाहिए । किसी भी किस्म की गडबड होने से पहले मेरा निकल जाना जरूरी है ।


ऐसा सोच कर मुख्यद्वार की तरफ़ लपका । गैलरी में पहुंचते-पहुचते कैमरा जेब में डाल चुका था । लिपट नम्बर फोर की तरफ बढते वक्त दिमाग में ख्याल कौंधा---"नही, मुझे इस लिफ्ट में सफर नहीं करना चाहिए । इसका लिफ्टमेन मुझे देखते ही गोडास्कर के हवाले कर देगा ।"


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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