कठपुतली -हिन्दी नॉवल complete

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Jemsbond
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

विनम्र की आवाज और उसके शब्दों ने बिंदू के ही नहीं बिज्जू को भी हिलाकर रख दिया । ।


"व-विनम्र ।" भयक्रांत बिंदू पिछे हटती हुई बोली ---" ये तुम क्या कह रहे हो ?"



"बाह । मरते वक्त किसी लड़की का जिन्दगी के लिए छटपटाना कितना रोमचकारी होता है ।" बिंदू के सवाल का ज़वाब देने की जगह वह निरन्तर अागे बढता कहता चला गया…"मैं वो मंजर देखना चाहता हूं लड़की । मेरी आखें किसी तड़पती लड़की को देखने के लिए वहुत दिन से प्यासी है । आ…मैं तेरा गला दबा दूं ।।"



विनम्र इस वक्त आवाज ही से नहीं, शक्ल से भी दरिन्दा नजर अा रहा था । जिस्म का सारा खून सिमटकर सिर्फ और सिर्फ उसके चेहरे पर इकटृठा हो गया था । मस्तक और कनपटी की एक--एक नस साफ़ चमक रही थी । आखों में रोशन थे लाल रंग के बल्ब । बोहत ही डरावना लग रहा था वह । इतना ज्यादा कि उसे गुलाम वनाने सारी अंदाए भूलकर चीख पडी ।।



"बचाओ -बचाओ ।

चीखना वह तीसरी बार भी चाहती थी मंगर चीख न सकी ।


उससे पहले विनम्र ने झपटकर उसकी गर्दन दबोच ली थी ।
पहली बार बिंदुं की जगह विनम्र का चेहरा बिज्जू कै कैमरे के सामने था । उसके हाथ ही नहीं सारा जिस्म सूखे पत्ते की मानिन्द कांप रहा था । वंह चीख पडना चाहता था मगर आवाज हलक में घुटकर रह गई ।।


उसका गला नहीं दबाया जा रहा था मगर हालत उसकी भी विंदु जैसी थी ।

वह देख रहा था--- बिंदु की बाहर निकल अाई जीभ को पलकों की सीमाएं तोड़कर कूद पड़ने के लिए तैयार आंखों को । रुकती सांसो को और खुद को मरने से बचाने के लिए उसकी छटपटाहट को ।

कान बिंदू की "गु--गू' पर हावी हो गई विनम्र की आवाज सुन रहे थे----"अब आ रहा है मजा! वाह । क्या तड़पन है तेरी! तडप और तड़प! जनूनी अवस्था में वह सव कहता विनम्र उसकी गर्दन पर दवाब बढाता चला गया ।


बिज्जू की आंखें एक हत्या होते देख रही थी ।

बह बिंदू को बचाना चाहता था ।

मगर लगा---यदि विनम्र को उसके यहां होने का पता लग गया तो वह उसे भी नहीं छोड़ेगा । विनम्र इस वक्त मासूम लड़का कहां था? वह तो दरिन्दा बना हुआ था! दरिन्दा ।।

और फिर !!!!


बिंदू के मुंह से निकलने बाली "गूं-गूं की आवाज़ ने दम तोड दिया । हाथ-पांय ढीले पड गए । उनमे कोई छटपटाहट नहीं थी ।


विनम्र के हाथों में कंसी गर्दन हलाल हो चुके बकरे की मानिन्द लटकी रह गई थी ।


बिज्जू कै जहन में एक ही विचार कौधां ---" खेल खत्म । "


उस वक्त जाने कैसे उसे अपने हाथों में मोजूद कैमरे का ख्याल आया ? इधर उसने बटन दबाया उधर विनम्र ने अपने हाथ बिंदू की गर्दन से हटा लिए । लाश "धप्प' की आवाज के साथ कालीन पर जा गिरी । उसकी गर्दन में मौजूद सच्चे मोतियों की माला विनम्र की अंगुषियों में उलझकर रह थी ।


वह टूट गई ।
सफेद रंग के मोती कालीन पर दूर--दूर तक बिखर गए ।


उछलता, कूदता और लुढ़कता हुआ एक मोती फ्रिज के पीछे भी आ घुसा । ठीक वहा जहाँ बिज्यू था! मारे खौफ के बिज्जू का यह हाल हो गया था कि मोती को फौरन ही अंगुली मारकर बापस लाश की तरफ लुढ़का दिया । कछ ऐसे अंदाज में वह मोती नहीं मर्डर वेपन हो ।



विनम्र अपने कदमों में पड्री लाश और बिघरे मोतियों को फटी-फटी आंखों से देख रहा था ।।



अंदाज ऐसा था जैसे यह सब उसने नहीं, किसी और ने किया हो ।


चेहरे पर मोजूद हिंसा के भाव खौफ के भावो में तब्दील होते चले गए । आंखे बिंदू की लाश से हटने का नाम नहीं ले रही थी । उसकी जीभ और
आंखें बाहर निकली हुई थीं । विनम्र को लगा---बिंदू जीभ निकालकर उसे चिड़ा रहीहै। आंखें उसी को घूर रही हैं ।।



उसका हर अंग ढीला और शिथिल पड़ चुका था ।



विनम्र ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढांप लिया! और. . . . .


बिज्जू स वक्त दंग रह गया जब विनम्र क्रो फूट…फूट कर रोते देखा ।। यह बात उसकी समझ से पूरी तरह बाहर थी कि हत्यारा हत्या करने के बाद रो क्यों रहा है? चेहरे पर मौजूद आंखे तक ढांप ली थीं उसने । जैसे लाश को देखना न चाहता हो ।



चेहरे को यूंही ढांपे वह रोता हुआ लाश के नजदीक से हटा । कदम ऐसे डगमगाए थे जैसे क्षमता से कई गुनी ज्यादा पी गया हो । सोफे पर जा गिरा । वहाँ भी बस हाथो से चेहरा छुपाए रोता रहा । बिज्जू की समझ मे ना आ रहा था "ये हो क्या रहा है?" न ही यह 'इन हालात वह क्या करे ?'

रोते हुए विनम्र के फोटो ले डाले उसने ।
बिज्जू की समझ में नहीं आ रहा था विनम्र क्या सोच रहा है, क्या कर रहा है! कभी रोने लगता । कभी सामान्य नजर जाता था । कभी उसके चेहरे पर किसी ठोस निश्चय की परछाई नजर जाने लगती थी ।



अब बाथरूम में गया था ।



दिमाग में सवाल अाया--" वह बाथरुम ने क्यों गया है?"


दिल जोर जोर से पसलियों पर सिर टकरा रहा था । 'जी' चाह रहा था'--फ्रिज़ के पीछे से निकले! देखने की केशिश तो करे वह बाथरुम में कर क्या रहा है मगर ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा'सका । जानता धा----अगर विनम्र को यहाँ उसकी मोज़दूगी का एहसास हो गया तो उसका भी वहीं हस्र होगा जो बिंदू का हुआ है ।


उसका खात्मा करते वक्त जो भाव विनम्र के चेहरे पर थे उन्हें याद करके बिज्जू के तिरपन कांप गए ।


उसने छूपे रहने में भलाई समझी ।


मुश्किल से दस सेकण्ड बाद सुईट में बाथरुम का दरवाजा बंद होने की आवाज गूंजी । फिर, विनम्र नजर अाया ।


इस वक्त उसके हाथ में सफेद रंग का एक रोएदार टॉवल था । टॉवल लिए वह लाश के नजदीक पहुचा।


बिज्जू का दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था ।


कैमरा एक बार फिर सम्भाल लिया । बिनम्र लाश के सिरहाने, घुटनों के बल बैठ गया ।


बिज्जू ने देखा-----कुछ देर बाद लाश की गर्दन को टॉवल से रगड रहा था । बिज्जू ने यह दृश्य कैमरे में कैद कर लिया ।
गर्दन को चारो तरफ से अच्छी तरह रगड़ने के वाद विनम्र ने एक बार फिर ऐसी हरकत की जो बिज्जू की समझ मेंं नहीं आईं । टॉवल का फंदा बनाकर वह ठीक इस तरह लाश की के चारो तरफ कस रहा था के जैसे जीवित व्यक्ति को मार डालने की कोशिश कर रहा हो ।


बिज्जू को यह हरकत अजीब लगी ।


पागलपन से भरी । वह बिंदू को दुवारा मारने की कोशिश क्यों कर रहा था? क्या उसे शक था कि बिंदू में अभी एकाध सांस बाकी है? अगर यह ऐसा सोच रहा था तो गधा था । बेवकूफ़ था । यह तो कभी की मर चुकी थी ।।


अंतत: विनम्र ने टॉवल वहीं, उसी पोजीशन में छोड़ा और खड़ा हो गया ।


लाश नजदीक खड़ा विनम्र कुछ देर तक कमरे का निरीक्षण करता रहा । उस "क्षण बिज्जू ने खुद को पूरी तरह फ्रिज के पीछे कर लिया था ।


फिर, उसने दूर जाती पदृचाप सुनी ।


सुईट का मुख्यद्वार खुला और बंद हो गया ।



हत्या करने के बाद इतने आराम से निकल गया हत्यारा?


और वह ।।।



वह अभी तक यहा का यही है।



यदि इस वक्त कोई सुईट में आ जाए! जाहिर है-वह लाश पर नजर पडते ही चीखने वाली मशीन की तरह चीखना शुरु कर देगा! पलक झपकते ही हुज्जूम लग जाएगा ।


निकल भागने का कोई मौका नहीं मिलेगा उसे अगर यह लाश के साथ पकड़ा गया तो लोग उसे ही हत्यारा समझेंगे ।

"हे भगवाना ! ये क्या बेवकूफी कर रहा हूं मैं ? क्यों छूपा हुआ हूं अभी तक यहां?"


"निकलकर भाग क्यों नहीं जाता?'


इन सब विचारों ने उसे फ्रिज के पीछे से बाहर निकल अाने पर मजबूर कर दिया ।


सबसे पहली नजर मुख्य द्वार पर पडी ।


वह 'लॉक' था ।


राहत की सांस ली । फिर सोचा--" मैं गधा हूं ! भला कोई हत्यारा कैसे साबित कर सकता हैं? मेरे पास कैमरा है । वह कैमरा जो सारी दुनिया को साफ-साफ़ बता देगा 'हत्या' किसने और किस तरह की है ।।।
मैं तो गवाह हूं ।।। मुझसे बड़ा गवाह है------ये कैमरा ।


पर कैमरे में मौजूद 'खजाने' को क्या मुझे इस तरह जाया कर देना चाहिए?

नहीं!

हरगिज नहीं ।!



कैमंरे में मौजूद फोटो करौड़पति बल्कि अरबपति बना सकते हैं, लेकिन तब जब सही मौका आने पर इन्हें विनम्र के सामने रखा जाए । वह इनकी मुह मांगी कीमत दे सकता है । उन फोटुओं से तो शायद यह कम कमाई करता जो यहां खींचने अाया था मगर जो फोटो इस वक्त कैमरे में है वो उसके पौ बारह कर देगें ।।।।


एक खरबपति शख्स खुद को कानुन से बचाने के लिए क्या नहीं दे देगा ?


वह खुद को कानून से बचाना चाहता है । इसलिए तो चुपचाप निकल गया ।



नहीं । ये फोटो किसी और को नजर नहीं आने चाहिए । यदि मुझे खुद को निर्दोष सावित करने के लिए इस्तेमाल करना पड़ा तो धमकी देकर विनम्र से बेशुमार दौलत कैसे खीचूंगा?


मुझे यहाँ से निकल जाना चाहिए । किसी भी किस्म की गडबड होने से पहले मेरा निकल जाना जरूरी है ।


ऐसा सोच कर मुख्यद्वार की तरफ़ लपका । गैलरी में पहुंचते-पहुचते कैमरा जेब में डाल चुका था । लिपट नम्बर फोर की तरफ बढते वक्त दिमाग में ख्याल कौंधा---"नही, मुझे इस लिफ्ट में सफर नहीं करना चाहिए । इसका लिफ्टमेन मुझे देखते ही गोडास्कर के हवाले कर देगा ।"


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Jemsbond
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

गोडास्कर का ख्याल आते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए । नागपाल द्वारा बिंदू से कहीं गई बातें जेहन से कौध उठी ।

गोडास्कर को अभी तक पतले-दुबले शख्स की तलाश है ! मुमकिन वह अभी-भी होटल के मुख्य द्वार पर नजर रखे हुए हो । हाथ लगने का मतलब है--सारा गुड़ गोबर हो जाना ।

नहीं! मुझे उसके हाथ नहीं लगना है! भले ही इसके लिए चाहे जो करना पडे ।।

वह सीढियों की तरफ लपका ।

इरादा आठवें फ्लोर पर पहुचकर लिफ्ट नम्बर फिफ्थ इस्तेमाल करने का था ।। यह समझ उसे बिंदू और नागपाल की बातों से मिली थी ।।।।
रात के दो बज़ गए।

अकेला बैठा नागपाल 'ब्लेक लेबल' की पूरी बोतल खाली कर चुका था।


अब उसे झपकियाँ आने लगी थी, मगर सोना नहीं चाहता था … . .


सोना वह कामयाबी की सूचना मिलने के बाद चाहता था ।


फोन करने के लिए कहा भी तो था बिंदू ने ।

" 'फोन क्यों नहीं आया?" यह सवाल नागपालके दिमाग से काफी देर से चकरा रहा था । यह सोचते-सोचते नशे की झौंक में झपकी आ जाती मगर पांच…सात मिनट बाद हडबड़ाकर जाग जाता ।



इन्तजार की इन्तेहा पर दिमाग में सवाल उभरा---"क्या मैं बिंदूं के मोबाईल पर फोन करूं?"


क्या ऐसा करना चाहिए?


शायद नहीं! मेरा फोन बिंदू को अपनी मंजिल पाने मे रुकाबट बन सकताहै ।


पर अभी तक बिंदू का फोन क्यों नहीं अाया?


"'कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है?" इस किस्म के शंकाएं फन उठाने लगी।


मोबाईल उठाकर उसने बिंदू का नम्बर मिला ही दिया । कुछ देर तक 'टुक-टुक' की आवाज जाती रही । फिर कहा गया----"या तो इस मोबाईल का स्वीच आँफ है या है रेंज से बाहर है ।"


नागपाल का दिमाग चकराकर रह गया । ऐसा कैसे हो सकता है?

रेज से बाहर होने का मतलब ही नहीं था । यह बात बिंदू ने उसे खुद बताई थी कि अपने मोबाईल का स्पिच वह कभी आफ नहीं करती ।
रात को सोते वक्त भी नहीं । चार्जर पर भी उसे 'आँफ’ नहीं करती । चार्जर पर भी उसे 'आन' पोजीशन पर ही लगाती है ।


उसने 'रिडायल' किया ।


पुन: वही आवाज ।


बार-बार ट्राई करने पर भी जब जवाब वही अाता रहा हैं नागपाल झुंझला उठा । किसी अनहोनी की आशका उसके दिमाग ने प्रबल हो चली थी । यह जानने के लिए पहले से कई गुना ज्यादा बेचैन हो उठा कि बिंदुको अपने मकसद ने कामयाबी मिली या नहीं? उसी बेचैनी ने उससे ओबराय के रिसेप्शन का नम्बर डायल करा दिया ।


" दूसरी तरफ से रिसीवर हटाकर कहा गया--'"होटल ओबराय ।"


"सुईट नम्बर सेबिन जीरो थर्टीन प्लीज !" नागपाल ने नशे में लढ़खड़ा रही अपनी अाबाज को वेलेस करने की कोशिश की ।"


दूसरी तरफ से बोलने वाली लड़की ने पूरे सम्मान के साथ मधुर आवाज में कहा…"रात के दो बज चुके है सर क्या इस वक्त उन्हें डिस्टर्ब करना मुनासिब होगा?"


"'मेरा नाम नागपाल है । सुईट मेरे ही नाम से वुक है । बहाँ मेरी एक मेहमान ठहरी हुई हैं । मुझे उनसे जरूरी बात करनी है । यदि सो भी रही होंगी तो मेरे फोनं का बुरा नहीं मानेगी ।"



' "ओ के सर: ।"' इस आवाज के बाद पलभर के लिए शांति छा गई फिर, घ'टी जाने की आवाज़ सुनाई देने लगी । नागपाल समझ सकता था…सुईट नम्बर सेविन जीरो थर्टीन में रखा फोन घनघना रहा है ।

मगर ।


वह केवल घनधनाता रहा । उठाया नहीं गया । नागपाल के दिमाग में सवाल कौधें----" क्यें हो रहा है ऐसा? क्यों? इंस्ट्रुमेट ड्राइंग रूम के अलावा बेडरूम और बाथरुम में भी है!



फिर फोन अटैण्ड क्यों नहीं किया जा रहा है? जितनी देर से बैल जा रही है उतनी देर में तो सोता हुआ आदमी भी जाग जाए । आखिर क्या हो रहा है सुईट मे?

नागपाल यह सव सोच ही रहा था कि "वैल" जानी बन्द ही गई रिसेप्शनिस्ट की आवाज आई--- "फोन नहीं उठाया जा रहा सर ।"

"एक बार फिर ट्राई करों ।"

रिसेप्शनिस्ट का काम था हूक्म का पालन करना ।
उसने वैसा ही किया । दुबारा और------ फिर तीसरी बार भी ।



फोन जब तब भी अटैण्ड नहीं किया गया तो अनेक सवालों ने नागपाल के दिमाग को पुरी तरह जकड लिया । रिसेप्शनिस्ट की तरफ से पुन 'सौरी सर' सुनते ही उसने कहा…“मैडम ,मुझे अपनी मेहमान को इसी वक्त कोई जरूरी वात बतानी है! प्लीज, किसी को भेजकर उन्हें जगवाईंए । उनसे कहिए तुरन्त मेरे मोबाईल पर बात करे ।।

रिसेप्शनिस्ट ने नम्बर पूछा ।।

नागपाल ने नोट करा दिया । अब उसके पास मोबाईल पर र्दूसरी तरफ से अाने वाले फोन का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था ।


झपकियाँ जाने कहां गुम हो गई थीं । नशा भी काफूर होता नजर आ रहा था । यह बात उसकी समझ में बिल्कुल नहीं अा रही थी कि सुईट में फोन क्यों नहीं उठाया जा रहा? इतनी 'घंटियां' सुनकर तो तो कुम्भकर्ण की नीद भी टूट जानी चाहिए थी ।।


इसका तो केवल एक ही है मतलब है सुइट में कोई है ही नहीं ।


हां । ऐसा हो सकता है ।


मिशन की समाप्ति के बाद विनम्र अपने बंगले पर चला गया हो, बिंदू अपने घर ।


मगर ऐसा हुआ होता ते बिंदू ने अपनी कामयाबी कीं सूचना ज़रूर दी होती ।।


चक्कर क्या है?


वह चक्कर को जानने की बैचेनी ही धी जिसने उससे विनम्र का नम्बर मिलवा दिया है वह नम्बर जिसे उसकी जानकारी के मुताविक बिनम्र के बेडरूम में होना चाहिए था ।


दूसरी तरफ़ रिग जाने लगी नागपाल धड़कते दिल से रिसीवर उठाए जाने का इंतजार करने लगा । दो बार रिंग गई, तीसरी बार आधी ही गई थी कि रिसीवर उठा लिया गया ।


" हेलो ।" नींद मे डूबी आवाज उभरी ।

नागपाल कुछ नहीं बोला । उल्टा दिल धाड़-धाड़ करके के बज रहा था ।


आवाज विनम्र की ही थी ।
और बस ।



यह पुष्टि, होते ही नागपाल ने कनेक्शन 'आँफ़' कर दिया । इस सारी प्रतिक्रिया के दरम्यान उसके चेहरे पर ढेर सारा पसीना उभर अाया था । वह पता लगा चुका था-------------विनम्र अपने बंगले पर है! वल्कि बैडरुम में है । सोया हुआ था ।

इसका मतलब-बह ओबराय से लोट अाया है ।


तो बिंदु कहां है ?


क्या बह भी अपने घर पहुच चुकी है?


इस सवाल का जवाब पाने का फिलहाल नागपाल के पास कोई जरिया नहीं था । पूछने के बावजूद बिदू ने न कभी उसे अपने घर का पता बताया था न ही फोन नम्बर ।


बस इतना ही कहा था --उंस सबकी कोई जरूरत नहीं है मिस्टर नागपाल । आपको जब भी संपर्क करना हो, मोबाईल मिलाए । यह चौबीस घंटे अॉन रहता है ।"

और

वही इस वक्त आँफ था ।


एकाएक उसका मोबाईल बज उठा ।


विचारों में गुम होने के कारण नागपाल इस तरह चौंका जेसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो' । मोबाईल हाथ ही में मोजूद था । बार-बार स्कीन पर चमक रहे नम्बर को पढ़़ने की कोशिश ने उसने एक पल भी नहीं गंवाया । इस उम्मीद में झट अॉन वाला स्पिच दबाकर कान से लगा लिया कि शायद बिंदू हो परन्तु दुसरी तरफ से रिसेप्शनिस्ट की आवाज सुनाइं दी---"सांरी सरा" ।

"क्या सौरी?” बह झल्ला उठा ।


"वेटर ही नहीं, इंचार्ज भी अपनी भरपूर केशिश कर चुका है । दरवाजा नहीं खोला जा रहा ।"


"व-क्या मतलब हुआ इस बात का ?"

"एक ही मतलब -वे बहुत गहरी नींद में सोई है ।"


क्यों ऐसा क्यो नहीं हो सत्ता कि वे होटल छोडकर कही चली गई हो?"


"उस अवस्था में चाबी हमारे "की-बोर्ड"' पर होनी चाहिए थी ।"


"क्या चाबी वहां नहीं है?"


"नो सर ।"


एक बार फिर नागपाल के दिमाग को झटका लगा ।


सोचा-क्यों न खुद सुईट में जाकर चेक करे ? बिनम्र तो अब बहां है नहीं । जाने में हर्ज ही क्या है ?
"मै वहीं अा रहा हूं मैडम ।" उसने फोन पर कहा ।


" अाप अा रहे है ?"


"बता ही चुका हूं ---मेरा इसी वक्त अपनी मेहमान से मिलना बेहद जरूरी है अगर वे दरवाजा नहीं खोल रही तो 'मास्टर की' का इस्तेमाल करना पड़ेगा ।" कहने के बाद दूसरी तरफ से-ज्रवाव का इंतजार किए और उसने कनेक्शन काट दिया ।

उठा ।


कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ा । कदमोंमें कोई लड़खड़ाहट नही थी । 'ब्लेक लेबल' की बोतल उसकी टेशन की भेंंट चढ़ चुकी थी ।


केवल तीस मिनट बाद ओबराय पहुंच गया ।


रिसेप्शनिस्ट को उसे "मास्टर है सौपने का अघिकार नहीं था ।


इसके लिए नाईट डूयूटी पर तैनात होटल के मेनेजर से मिलना पड़ा ।।
यह विश्वास दिलाना पड़ा कि वह वही शख्स है जिसके नाम से सुईट बुक है और सुईट में उसकी 'मेहमान' ठहरी हुई है । इस सबके बावजूद मेनेजर ने चाबी सेविन्थ फ्लोर के इन्चार्ज के हाथ में दी थीं तथा दो वेटर भी साथ भेजे ।



लिफ्ट नम्बर फोर के जरिएं वे सेविन्थ फ्लोर पर पहुचे । इस वक्त लिफ्टमेन "दिन याला' नहीं था बल्कि दुसरा था वह जिसकी इन दिनों नाईट डूयटी चल रही थी ।


एक बार फिर कालबेल आदि बजाकर दरवाजा खुलवाने की कोशिश की गई केशिश नाकाम होने पर 'मास्टर की' का इस्तेमाल किया गया ।।



दरवाजा खोलकर चारों सुइट के अंदर पहुंचे ।।



बहाँ कोई नहीं था ।


चारों ने सारा सुईट छान मारा ।। अब नागपाल के जहन की हर दीबार पर एक और केवल एक ही सवाल बार---बार टकरा रहा था----" कहां गई विंदु? "
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

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"अरे! इतना धूवां?" यह आवाज 'मां' की थी ।

विनम्र दरवाजे की तरफ घूमा ।।


मां , हाथों में बैड टी की ट्रै लिए खड़ी थी । बंगले मैं बीसियों नौकर थे परन्तु बैड टी उसके लिए हमेशा मां ही लाती थी । अभी यह कुछ कह भी नहीं पाया था कि अंदर अाती मां ने कहा…"विनम्र मैं तुझसे जितना सिगरेट न पीने के लिए कहती हूं उतनी ही ज्यादा पीने लगा ।"

विनम्र कुछ नहीं बोला ।


बोलता भी क्या? यह 'स्मोकर' है, मां कां यह जानना अलग बात थी मगर न तो मा के सामने सिगरेट पीता था न ही इस विषय पर चर्चा करना चाहता था ।


ट्रै मेज पर रखते वक्त मां की नज़र एश्ट्रे पर पड़ी । वह सिसौट के टोंटो से भरी पड्री थी ।


"इतनी । " मां ने उसकी तरफ देखा-"इतनी ज्यादा सिगरेट पी है तूने?"


बिनम्र अब भी चुप रहा ।



"और आखें भी लाल है ।" वह उसके नजदीक आई---'"तू किंसी टेंशन में हैं बेटे?"


" न--नहीं तो न चोरी पकडी जाने के डर से विनम्र थोड़ा हड़बड़ा गया…"नहीं तो मां ।"


"अपनी मां से मत झुपा बेटा! है तो सही कोई बात । अांखे देखकर लगता है सारी सोया नहीं । एश्ट्रे बता रही है स्मोकिंग करता रहा । मुझे बता-बता क्या है? रात को ठीक से सोया क्यों नहीं?"


"कोई खास बात नहीं है मां । बस बिजनेस की थोड्री-सी समस्या है ।।।


" हां ऐसा कुछ पता तो लगा है मुझे ।"


"प-पता लगा है ?" विनम्र बौखला गया--"क्या पता लगा है?"


यही कि आजकल तू पांच बजे के बाद भी बिजनेस मीटिंग अटैण्ड करने लगा है ।"



"ओह ।। आपसे शायद श्येता ने कुछ कहा है ।"
"हां ।। फोन अाया था उसका । शायद तुने उसे डांट दिया था ।" मां कहती चली गई-----" यह बात ठीक नहीं है ! बिजनेस अपनी जगह है । लाईफ अपनी जगह है । तेरा अपना ही तो सिद्धांन्त था यह । अब क्यों खुद ही दोनों को मिक्स कर रहा है? ऐसा बिजनेस किसी काम का नहीं लाईफ को डिस्टर्ब कर रातो को सोने न दे और श्वेता. . . कितनी प्यारी लड़की है वह । तुझसे कहीं ज्यादा वह मुझे पसंद है । यह बात मैं विल्कुल बर्दाश्त नहीं करूगी कि तू उसे दुख पहुंचाकर बिजनेस मीटिंग अटैण्ड करे ।"


"उसने गलत समय पर फोन किया था मा! उस वक्त .........


"मैं कुछ सुनना नहीं चाहती ।" मां ने उसकी बात काटी----"बैड टी पीने के बाद तू सबसे पहले श्वेता को फोन करेगा और आईन्दा ऐसी कोई बिजनेस मीटिंग अटैण्ड नहीं करेगा जो उसे दुखी करे या तेरी रातो की नीद छीन ले ।।"


"ठीक है मां ।" उसने बात समाप्त करने की गर्ज से कहा ।


"और उससे कहना गोडास्कर यहाँ आकर मुझसे मिले ।"


"गोडास्कर? "


"मा-बाप नहीं है बेचारी के । बड़ा भाई है । उसी को मिलना पडेगा न मुझसे?"


"नहीं मा! अभी मैं शादी…


"ये फैसला हमें करना है विनम्र । हमें और गोडास्कर को ।" मां विनम्र को कुछ भी कहने का मौका दिए वगैर कहती चली गई------"' घर से बाहर वहुत हो लिए तुम्हारे और श्वेता के मिलन । अब ये मिलन इस घर में होगा । मेरी आंखे तुझे सेहरे में देखना चाहती हैं । कितने लम्बे अर्से से तुझे दूल्हे के रूप देखने की कल्पना करती रही हूं । अब ये कल्पनाएं साकार होनी ही चाहिए ।" कहते वक्त मां के चेहरे पर ऐसी आभा और आखों में ऐसी चमक घी कि विरोध करना तो दुर चाहकर थी विनम्र कुछ न कह सका ।


तभी, कमरे में नौकर अाया । उसके हाथ ने एक विजिटिंग कार्ड था । उसे विनम्र की तरफ बढ़ाता हुआ बोला---"साहब ये साहब आपसे मिलने अाए हैं ।"


विनम्र ने कार्ड लिया! पढ़ा ।


उसके दिमाग में सीटियां-सी बजने लगीं ।


कार्ड नागपाल का था ।
" कहाँ सर्विस करती है बिंदु?" सैंडविच 'चिंगलाते' गोडास्कर ने पूछा ।


उसके अॉफिस में, मेज के उस पार बैठी अधेड आयु की महिला ने कहा---"यह मुझे नहीं मालूम ।"



"कमाल है ! बल्कि अगर यह कहा जाए तो ज्यादा दुरुस्त लेगा क्रि हद करती है कलयुग की माएं ।"' अपना बिशाल जबड़ा बराबर चलाए रखता गोडास्कर बोला------" वे ये तो जानती है बेटी सर्विस करती है । मगर ये नहीं जानती सर्विस करती कहां है । एक जमाना था जब माए' यह भी बता दिया करती थी कि चौबीस घंटे ने बेटी तांस कितनी लेता है ।।"


" मैंने बिदू से कई बार पूछा, उसने बताया नहीं ।"



"ओर आप हर बार बगैर जाने चुप रह गई ।"

"क्या करती?" गोरे रंग की अधेड महिला ने सिर झुका लिया--"जवान बेटी से ज्यादा पूछताछ भी तो नहीं कर सकती ।"



" खैर , अब दिक्कत क्या है?"


" सारी रात गुजर गई वह घर नहीं अाई ।"


"आपने खुद बताया-वह जहां भी सर्विस करती थी, नाईट डयूटी पर रहती थी । रात अभी गुजरी ही तो है । डूयूटी निपटाकर आ जाएगी । इतनी जल्दी पेट में ऐठन क्यों होने लगी आपके?"


“इस के दो काऱण है इंस्पेक्टर साहब ।"


"दोंनों बता दो ।"


" पहला---बह जव भी डूयूटी पर जाती थी…


"एक मिनट एक मिनट ।।" गोडास्कर ने उसकी बात काटी------" जब भी डूयूटी पर जाने का क्या मतलब हुया? क्या वह हर रात डूयूटी पर नहीं जाती?


"नहीं इंस्पेक्टर साहब । जाने कैसी डूयूटी है उसकी । कभी होती है, कभी नहीं ।"


"समझ गया । डूयूटी का प्रकार' कुछ-कूछ गोडास्कर की खोपडी मे घुस रहा है ।"


"ज-जी?"


" और जो धुस रहा है वह सही है तो मामला काफी दिलचस्प है।"

" म--मेरी समझ में नहीं अाया अाप क्या कह रहे है?"
"गोडास्कर के कहे को समझने के फेर में मत पडो । दूसरों की तो बात ही दूर, कई बार तो गोडास्कर का कहा खुद गोडास्कर की समझ ने नहीं आता । जो बात अधूरी रह गई थी उसे पूरी करो । अाप फरमा रही थी----बह जब भी डूयूटी पर जाती थी. . .


" सूरज निकलने से पहले लैट अाती थी ।"


" गुड ! . . .पहले लोग सूरज डूवने से पहले घर लौटते थे, अब सूरज 'निकलने से पहले लौटते है । वैरी गुड, पेट की ऐंठन का दुसरा कारण?"


"उसने मुझसे कह रखा है---मेरा मोबाईल हमेशा अॉन रहता है । जब भी चाहू उससे बात कर सकती हूं ।" अाज से पहले हमेशा हुआ भी यही है । मैंने जव भी बात करनी चाही, हो गई मगर आज सुबह पांच बजे से लगातार ट्राई कर रही हूं । बात नहीं हो पा रही है ।"


" क्यें ?"


" या ते अॉफ है या रेज से बाहर है ।"


" तो इसमे क्या हुआ? अगर बह स्विच आँफ नहीं करती तो रेज से बाहर होगी ।। वेसे ऐसी लड़कियां अक्सर 'रेज से बाहर' निकल जाया करती हैं ।"


"'हो सकता है मगर. . . . .


"मगर ?"


"समझने की कोशिश कीजिए इंस्पेक्टर साहव मैं एक जवान बैटी की मां फिक्र तो रहतीं ही है !"


"वह तो अाप यह फरमाकर ही साबित कर चुकी हैं कि आपको उसके सर्विस के ठिकाने तक की जानकारी नहीं है ।"


" अधेड महिला थोडी हिचकती हुई बोली-"इंस्पेक्टर साहब, इतनी जल्दी 'रपट' लिखवाने के लिए आने का एक बड़ा कारण मेरी शंकाएं है।"



"कैसी शंकाएं?"


"म-मुझे लगता है------" बिंदू की सोसाईटी ठीक नहीं है?"

"ऐसा क्यों लगता है ?"
"मेरे पति डी॰ ए . में क्लर्क थे । छोटा-म परिवार था । मैं, वे और बिंदू । दो कमरों के फ्लेट में रहते थे । "उनकी' कमाई ठीक-ठाक थी । बिंदु बहूत लीडली थी उनकी । उसके मुंह से फरमाईश बाद में निकलती । वे पूरी पहले कर डालते थे । दो साल पहले एक्सीडेन्ट मैं उनकी मृत्यु हो गई कमाने वाला नहीं रहा तो अभावों ने घेर लिया । मेहनत-मजदूरी करके मैं अपना" और बिंदू का पेट पालने लगी परन्तु बिंदूकीं वे फरमाइंशें पूरी नहीं करं सकती थी जिनकी उसे आदत पड़ चुकी थी । फिर एक दिन, आज से करीब एक साल पहले बिंदू ना जाने कहाँ से देर सारे नोट ,ले अाई । पूछा हो बोली…"मैंने सर्विस कर ली है । ये एडवांस है ।" उसने मेरा काम पर जाना बंद कर दिया । देखते-ही-देखते हम दो कमरे के फ्लैट से चार कमरे के फ्लेट मे आ गए । नौकर-चाकर गाडी सव कुछ हो गया । विंदू मॉडर्न ड्रैस पहनने लगी । जिस रात डयूटी पर जाती तो कुछ ज्यादा ही सजधज कर…


"यानी आपके दिमाग ने भी शंका वही है जो गोडास्कर को खोपडी में घुसने की केशिश कर रही थी?"

"जि-जी ।" अधेड महिला शंका 'सच' होने से डर रही थी----'' म-मैं समझी नहीं ।"


"साफ--साफ कहिए । आपको शक हैकि बिंदू कोई ऐसा काम करती है जो उसे नहीं करना चाहिए ।"


"भगवान न करे ऐसा हो मगर…

"फिर मगर?"


"गलत कामों के नतीजे कभी अच्छे नहीं होते । अपनी इसी शंका के कारण मैं ज्यादा परेशान हो उठी हू । कृपया जल्दी से जल्दी पता लगाईए बह कहाँ है?"


"क्या आपके पास बिंदू का फोटो है?"
"जी ।। मैं अपने साथ लाईं हूं ।" कहते हुए उसने हैंड बैग से निकालकर एक फौटो मेज पर रख दिया । गोडास्कर ने सैंडविच का आखिरी पीस मुह में ठूंसते हुए फोटो उठाया । देखा और जुगाली करता मुंह रुक गया ।


वह चौक पड़ा था ।


उसकी जानकारी के मुताबिक फोटो हाई सोसाईटी से मूव करने वाली एक ऊंचे दर्जे की कालगर्ल का था ।

अधेड महिला की तरफ देखा । कहना चाहा…'तुम्हारी शंकाएं सच हैं माई। वेटी कालगर्ल है ।' मगर.....महिला के चेहरे पर मोजूद भावो ने ऐसा कहने से रोक दिया । जाने क्यों महिला की शंकाओं पर "सच की मोहर' लगाने को उसका जी नहीं चाहा इसलिए बाकी बचे सैंडविच को चबाना शुरु करने के साथ केवल इतना कहा--'"ठीक है! अाप फोटो छोड़ जाएं । गोडास्कर पता लगाने की कोशिश करता हैं ये कहाँ है?"

महिला ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि मेज पर रखे फोन की घंटी घनघना उठी । रिसीवर उठाने के साथ गोडास्कर ने अपना परिचय दिया । दूसरी तरफ से घबराई हुई आवाज मैं कहा गया----" होटल ओबराय का मैनेजर बोल रहा हूं इंस्पेक्टरा अाप फौरन यहां आ जाइए ।"


'"गोडास्कर सरकार का नौकर है मियां, तुम्हारा नहीं कि उठाया फोन और दनदना दिया हुक्म ।"


"समझने की कोशिश करो इंस्पेक्टर । यहां एक मर्डर हो गया है ।"



“गोडास्कर ने तो कल ही फरमा दिया था मियां कि यहाँ कुछ न कुछ| होने वाला है ।" कहने के बाद गोडास्कर'ने रिसीवर केहिल पर रख दिया ।
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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

"त-तुमने! तुमने खुद सारा सुईट चेक किया है?" पूछते वक्त्त विनम्र के होश फाख्ता थे ।


नागपाल ने संक्षिप्त ज़वाब दिया---" हां ।"


"क--कुछ नहीं था वहां?" दिमाग बुरी तरह 'सन्ना' रहा था ।।


"नहीं ।"



"कुछ भी नहीं ?"


“कुछ भी से क्या मतलब? मैं केवल बिंदू की बात कर रहा हूं। वह वहां नहीं थी ।"



और . . विनग्र की इच्छा चीख-चीखकर पूछने की हुई…"मैं विंदु की नहीं । उसकी लाश की बातक्रर रहा हूं ।। क्या वह भी वहाँ नहीं थी ?" परन्तु ऐसा पूछ कैसे सकता था? कैसी विडम्बना थी, यही नहीं सकता था जो जानने के लिए रोम-रोम मरा जा रहा था । नागपाल ने जे कुछ कहा उसका एक ही मतलब था-सुईट मे बिंदू की लाश नहीं थी ।


कैसे हो सकता है ऐसा?

कहां चली जाएगी लाश?


. यह एक ही सवाल उसके दिमाग की चुलें हिलाए दे रहा था । होश फाख्ता थे उसके । जाने कब और कैसे सारा चेहरा पसीने से भरभरा उठा । सारी आभा अजीब से "फीकैपन' में बदल गई थी ।

फिर खुद को सम्भालने के लिए अपने अंदर की घबराहट को नागपाल से छूपाए रखने के लिए एक सिगरेट सुलगाने के अलाबा और कुछ नहीं सूझा । जेब से पेकिट निकालते सिगरेट सुलगाते वक्त उसने अपने हाथो को कांपते महसूस किया था । वह और नागपाल इस वक्त ड्राइंगरूम में थे । मां नहीं थी । सिगरेट में कश लगाते वक्त उसने सोचा था…"ये क्या कर रहा है ।। मैं इतना नर्वस होऊंगा तो हर कोई जान लेगा मेरे मन में चोर है । खुद को संभलना होगा । हिम्मत से काम लेना होगा, यही प्रयास करता बोला-" मेरे आने तक तो वह वही थी । मेरे पीछे सुईट के दरबाजे तक आई थी ।"









" यही बात तो खुद मेरी समझ में नहीं आ रही ।" नागपाल ने कहा----"'आपसे मुलाकात के बाद बिंदू चली कहां गई?"


" अपने घर चली गई होगी ? और कहां जाएगी ?"



" ऐसा होता तो उसे रिसेप्शन पर चाबी देकर जाना चाहिए था ।"


"हां! ये तो है । मगर मुमकिन है वह ऐसा करना भूल गई हो । मेरे ' ख्याल से तुम्हें यहाँ आने की जगह विंदू के घर जाना चाहिए था ।"



"प्रॉब्लम ही ये है ।। उसका पता नहीं मालूम । न ही उस मोबाईल के अलावा कोई है नम्बर मालूम है जो मिल नहीं रहा ।"

"कमाल कर रहे हो मिस्टर नागपाला बह तुम्हारी सेकेट्री थी और तुम्हें उस का एड्रेस नहीं पता ।"


"दरअसल मैंने उसे कुछ ही दिन पहले रखा था ।"


"ओंहा हां! कह तो रही के बह ऐसा ।" विनम्र बोला-"फिर भी उसकी तलाश में तुम्हें मेरे पास आना अजीब है । उसे मुझसे मिलने तुम्हीं ने नेजा था । मैने उससे बाते की और बापस अा गया । उसके बाद वहां क्या हुआ, बह कहां गई? भला इस सबकी जानकारी मुझें कैसे ही सकती है?"

"आपकी बात ठीक है मिस्टर विनम्र! फिर भी, मैं यहां केवल यह जानने आया था के आपसे बातो के दरम्यान उसने कोई ऐसी बात तो कि नहीं कही थी जिससे यह आभास होता हो कि आपके लोटने के बाद उसका प्रोग्राम क्या था?"



"नहीं,इस वारे में उसने कुछ नहीं कहा ।"

"क्या मैं…आपकै और उसके बीच हुई बाते जान सकता हूं ।"

"वातें हो ही कहाँ पाई थी?"

"क्या मतलब?"

‘बनने की केशिश मत करो मिस्टर नागपाल । मैं तुम्हारे द्वारा अरेंज की गई उस मीटिंग का असली मकसद समझ चुका हूं ।"

नागपाल थोड़ा हड़वड़ा गया--" म-मैं समझा नहीं आप क्या कहना चाहते हैं?"

"वही समझा रहा हू ।" विनम्र अपने हर शब्द पर जोर देता कहता चला गया------"उसके पास गगोल के आदमीयों की कोई लिस्ट नहीं थी । गगोल की पुअर क्वालिटीं के बारे ने बताने को कुछ नहीं था । इस बहाने उसे " शीशे में उतारने' के लिए भेजा गया था ।। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था मिस्टर नागपाल तुम ऐसी घटिया हरकत करोगे! तुमने यह सोच कैसे लिया कि विनम्र एक लडकी के रूपजाल ने फंसकर गगोल की जगह तुम्हें काम दे सकता है?"


बिनम्र के मुंह से सच्चाई सुनकर नागपाल अंदर ही अंदर बौखला उठा । बोला…"व-क्या बात कर रहे हैं मिस्टर विनम्र । क्या विंदु ने ऐसी कोई घटिया हरकत की ?"


"घटिया" बिनम्र गुर्राया-"धटिया से भी कहीं ज्यादा घटिया! पलक झपकते ही वह सैकैट्री की जगह बाजारू औरत नजर आने लगी थी ।मैं गगोल के आदमियों के नाम पूछ रहा था वह अपने टाप की चेन खोल बैठी । मैं गगोल द्वारा क्वालिटी में की जा रही हेराफेरी के बारे में जानना चाहता वह अपनी छातियां खोलकर मेरे सामने खडी होती कहने लगी------" आप भी अजीब अहमक आदमी है मिस्टर विनम्र हुस्न आपके सामने खुला पड़ा है और अाप बिजनेस की नीरस बाते किए चले जा रहे हैं ।" मेरे तो होश उड़ गए । मारे गुस्से के बुरा हाल हो गया था मेरा । बोला…"छातियां चमकानी बंद करो मिस बिंदु । काम की बांते करनी है तो करो वरना मैं यहाँ से जा रहा हूं ।। ऐसा सुनकर तो बह मुझ पर लपक ही जो पडी । उसकी केशिश मुझे अपनी बांहों में भरने की थी । मैं घबराया । किसी तरह बचकर सुईट के दरबाजे की तरफ लपका ।।।



"ऐसा किया बि'दू ने?" नागपाल ले हैरानी प्रकट की ।।



"मै क्या झूठ बोल रहा हूं ?"


विनम्र रोष में नजर आने लगा था---मुझे तो उसकी घटिया हरकत के बारे में बताने तक मे शर्म अा रही है । इसीलिए तुम्हे भी नहीं बता रहा था । सोचा 'था सारी रिपोर्ट तुम्हें वही अपने मुह से दे तो अच्छा रहेगा मगर तुम मेरा मुह खुलवाकर माने । जब मुह खुलवा ही दिया है तो कान खोलकर सुनो मिस्टर नागपाल, अपने चेहरे पर हैरानी लाकर नाटक करने की केशिश मत करो । मैं तुम्हारे इस झांसे में अाने वाला नहीं हूं कि वह सब बिंदू ने अपनी मर्जी से किया था ।"
मिस्टर विनम्र , आपको गलतफहमी हो गई… वाक्य अधूरा रह गया । उसकी जेब में पडा मोबाईल बज उठा था । यह कहा जाए तो जयादा मुनासिब होगा-मेबाईल ने बजकर उसे असुविधाजनक स्थिति से बचा लिया था । उसे विनम्र की बातो के ज़वाब नहीं सूझ रहे थे । मोबाईल निकालकर 'हैलो' कहा ।

" गोडास्कर बोल रहा हूं ।" मिस्टर नागपाल ।" दुसरी तरफ से आवाज़ उभरी ।



नागपाल बूरी तरह चौका । मुह से निकला-"ग-गोडास्कर?" गोडास्कर का नाम सुनकर विनम्र के भी कान खड़े हो गए ।


"जी हां! इंस्पैक्टर गोडास्कर कहते हैं मुझे ।" आवाज से जाहिर था वह अभी भी खा रहा है ।


नागपाल खुदको नियत्रित करने के साथ पूछा…"कहिए मुझे कैसे फोन किया? "


" सबसे पहले यह पूछों-गोडास्कर बोल कहां से रहा है?"


"कहां से बोल रहे हो?"


"जहा से तुमने गोडास्कर को बाहर निकलवाया था ।"


"ओबराय से?"


"अच्छा है । अच्छा है कि यह बात तुम्हें याद है ।" गोडास्कर के हर लफ्ज में व्यंग्य था--"' अब पूछो अपना पहला सवाला यह कि गोडास्कर ने तुम्हें फोन क्यो किया ? "

"क्यों किया है ?"


"यहां एक मर्डर हो गया है" ।"


"म-मर्डर?" नागपाल उछल पडा ।।


इयर, विनम्र की धड़कने तेज होगई । दिमाग में कौंधा---तो लाश मिल ही गई ।।


"जी हां! मर्डर ।। " दूसरी तरफ से चटकारा सा लेकेर कहा गया…"आप फौरन यहाँ आजाएं तो गोडास्कर पर मेहरबानी होगी ।"


"म-मैं! मैं यहीं आ जाऊं? क्यों? क्या इस मर्डर का मुझसे कोई सम्बन्थ है?"


"कितने समझदार है अाप?"


"म-मगर ।" नागपाल की हबा खराब थी----" भला मेरा किसी मर्डर से क्या सम्बन्ध हो सकता है?" किसका मर्डर हुआ है ? "
इन्टरव्यू तुम्हें गोडास्कर का नहीं मियां, गोडास्कर को तुम्हारा लेना है ।" एक-एक शब्द को चबाकर कहा गया’---" बो भी फोन पर नहीं बल्कि आमने-सामने लेना है । फौरन से पहले यहाँ दौड़े चले आओ । गोडास्कर के आदमियों द्वारा हथकड़ियां पहना कर लाया जाना शायद तुम पर झिलेगा नहीं ।"


"मैं आ रहा हूं ।"

"'कितनी देर में ?"


"जहा हूं यहाँ से ओबराय पहुचने में पन्द्रह मिनट लगेंगे ।"


"कहा हौं?"


"मैं इस वक्त विनम्र के बंगले पर हूं।"


"विनम्र क्या तुम्हारा मतलब विनम्र भारद्वाज से है?"


"हां !"


"वाह । क्या बात है! गोडास्कर अगला फोन उसे हो करने वाला था । जरा यही मोबाईल उसे पकड़ा दो ।"


मोबाईल विनम्र की तरफ़ बढाते हुए नागपाल ने कहा----"इंस्पेक्टर गोडास्कर बात करनी चाहता है ।"


सम्भालने की लाख चेष्टाओं के बाबजूद विनम्र का चेहरा सफेद पड गया था । दिल पसलियों पर इस तरह सिर पटक रहा था जैसे मां बेटैं की मोत पर पटक रही हो ।। मुंह से निकला’-…"म-मुझसे? क्यों?"


"ओबराय में कोई मर्डर हो गया है ।।"


कांपते हाथों से मोबाईल लेते विनम्र ने कहा----"मेरा किसी मर्डर से क्या मतलब? "

"हैलो । हैलो जीजू।" मोबाईल से गोडास्कर की आबाज निकल रही थी ।

नागपाल के ज़वाब का इंतजार किए बगेर विनम्र ने जल्दी से मोबाईल अपने कान पर रखा । बोला-----" हां गोडास्कर । बोल रहा हुं ।"


"एक मर्डर के मामले में गोडास्कर क्रो अापसे कुछ पूछताछ करनी हैं जीजू ।" श्वेता का भाई होने के नाते गोडास्कर उसे 'जीजू' ही कहता था----" हुक्म तो आपको दे नहीं सकता विनती कर सकता हूं। नागपाल के साथ ओबराय जा जाओ ।"

मगर गोडास्कर भला मेरा किसी के मर्डर से क्या........


सेन्टेस अधूरा रह गया ।


दूसरी तरफ से सम्बन्थ विच्छेद किया जा चुका था ।

लाश पर नजर पडते ही विनम्र के दिमाग का फ्यूज उड़ गया ।

लिपट नम्बर पांच की छत पर पडी ताश विंदू की नहीं थी । वह एक ऐसे पतले शख्स की लाश थी जिसने 'ग्रे कलर’ का सूट पहन रखा था । बैसी ही टाई! टाई पर एक पिन ! लिफ्ट की छत पर वह मरी हुई छिपकली की तरह 'चित्त' पड़ा हुआ था । गर्दन में कसी हुई थी रेशम की एक मजबूत डोरी । लाश को देखकर कोई भी कह सक्ता ' था , उसकी इंहतीला इसी डोरी से समाप्त की गई है। उसकी जीभ बाहर निकली हुई थी । नथुनों से निकला हूआ खून जम चुका था और आंखें हैरानी से फट गई थीं । लिफ्ट इस वक्त ग्राऊन्ड फलोर और बेसमेंट के बीच कंही फंसी हुई थी । इसी कारण ग्राऊण्ड फ्लोर पर मौजूद" लोग उसकी छत पर पड़ी लाश को साफ देख सकते थे । अच्छी-खासी भीड़ थी यहाँ । भीड होटल के कर्मचारियों और बहीं ठहरे हुए लोगों की थी । पुलिस बाले भीड को लिफ्ट से दुर रखने का प्रयत्न कर रहे थे । कुछ पत्रकार और अपने कैमरों सहित इलेक्टोनिक्र मिडिया के लोग भी पहुंच चुके थे ।


पुलिस फोटोग्राफर जब लाश के पर्यापत फोटो ले चुका तो बरगर चिंगलाते गोडास्कर ने पुलिस वालों को हुक्म दिया------''उसे वहां से उठाकर आराम से यहाँ लिटा दो ।" उसने गेलरी मे बिछे कालीन की तरफ इशारा किया ।



पुलिस बाले लिफ्ट के खुले पिंजरे को पार करके उसकी छत पर उतर गए । जिस वक्त वो उसके हुक्म का पालन कर रहे थे उस वक्त नागपाल ने सवाल किया'--'"मेरी समझ में नहीं आ रहा, मुझे यहाँ क्यों बुलाया गया है? भला मेरा इस मर्डर से क्या तालुक ।"


"मिस्टर नागपाल ।" गोडास्कर ने अपने हाथ में मोजूद बरगर में एक और 'बुडक' मारने के साथ कहा…"गोडास्कर के ख्याल से तुम्हारी खोपडी ने इस शख्स का 'बायोडाटा' होना चाहिए ।"


" कौन है यह ?"


"मुबारक हो---जो सवाल गोडास्कर तुमसे पूछना चहता है वह तुम उल्टा गोडास्कर से पूछ रहे हो ।"


"मै इसे नहीं जानता ।"
" ये वही सज्जन है जिन्हें तुमने कल दोपहर दो बजे अपने सुईट मे "इन्वाईट' किया था । "


"ओह । तो यह है जिसके बारे में अाप कल रात पूछताछ कर रहे थे । मगर मैंने उस वत्त भी यही कहा था इंस्पेक्टर, अब भी यही कहूंगा मैंने आज से पहले इसे कभी नहीं देखा ।"

"तब तो तुमने इसे बुलाया भी नहीं होगा?"


"'कितनी बार कहूं ! नहीं! नहीं! जिसे मैं जानता ही नहीं उसे बुला कैसे सकता हूं ?"


"इसे नहीं तो किसी और को बुलाया होगा ?"


गोडास्कर के नये सवाल पर नागपाल गड़बड़ा गया । मुंह से निकला-"क्या मतलब?"


"शरीफ आदमियों की तरह जवाब दो---" तुमनै किसे और कितने बजे बुलाया था?"


इस सवाल का जवाब नागपाल ने तुरन्त नहीं दिया । नजर विनम्र की तरफ उठी थी । दिमाग में 'मंथन' शुरू हुआ-------अपने द्वारा कराई गई विनम्र और बिंदू की मुलाकात के बारे में बताए या नहीँ? अभी वह फैसला नहीं कर पाया था कि गोडस्कर ने अपनी जेब से फोटो निकलकर उसे दिखाते हुए कहा----" बुलाया था?"


फोटो पर नजर पड़ते ही नागपाल चौंक पड़ा ।


वह तो केबल चौका ही था । विनम्र के तो रौंगटे ही खड़े हो गए । गोडास्कर के हाथ में उसी की फोटो थी जिसकी वह हत्या कर चुका था ।।


"'है भगवाना ये हो क्या रहा है? जो मरी थी, उसकी लाश कहाँ गई और जिसकी लाश है यह कोन है? "


चक्कर क्या है ये?


क्रिस झमेले में फंस गया बह ।


इधर नागपाल को लगा --बह विंदू को पहचानने से इंकार करने की पोजिशन मे नहीं है । गोडास्कर के पास विंदू का फोटो होने का मतलब है वह पहले ही से काफी कुछ जान चुका है सो बोला------" हां मैं इसे जानता हूं । इसका नाम बिदू है । इसे मैंने रात के साठे आठ बजे सुईट में बुलाया था ।'"


"क्यों? "


नागपाल ने जवाब देने की जगह एक बार फिर बिनम्र की तरफ देखा । अंदाज ऐसा था जैसे पूछ रहा हो-------" वह सच बताऊं या नहीं?

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Re: कठपुतली -हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

विनम्र बेचारा क्या जवांव देता, वह तो समझ ही नहीं पा रहा था यह सब हो क्या रहा है?


तभी गोडास्कर के मुंह से शब्दों की ज्वाला निकली-"'दाएं-बाएं देखने से कुछ नहीं होगा मिस्टर नागपाल, गोडास्कर के सवाल का जवाब दो…तुमने अपने सुईट मे इस लडकी को क्यों बुलाया था?"


" मैंने मिस्टर विनम्र और विंदू के बीच एक बिजनेस मीटिंग अरेंज की थी ।"’


"वह बिजनेस मीटिंग नहीं थी । " विनम्र चीख पड़ा ।


चीख वह इसलिए पड़ा क्योंकि लगा---यदि फौरन अपनी स्थिति ' स्पष्ट नहीं की तो किसी झमेले में फंस सकता है । वह कहता चला गया-----"" मुझे फंसाने की चाल थी । नागपाल चाहता था किं. . . "


"'मिस्टर बिनम्र भारद्वाज ।" उसकी बात पूरी होने से पहले गोडास्कर के हल्क से गुर्राहट निकली------"' आप केवल तव चोंच खोलोंगे जव सबाल आपसे किया जाए । फिलहाल गोडास्कर नागपाल से बात कर रहा ।"


"समझने की कोशिश करो गोडास्कर इसने मुझे .......


गोडास्कर एक बार फिर कहेगा मिस्टर विनम्र, समझने की केशिश आपको करनी है! आपको यह भी समझने की केशिश करनी है कि इस वक्त गोडास्कर न किसी का भाई है, न किसी का होने वाला 'सालगराम’ । गोडास्करं इस वत्त सिर्फ और सिर्फ एक इंस्पेक्टर है । ऐसा इंस्पेक्टर जो अपने इलाके ने हुए मर्डर की इन्वेस्टीगेशन कर रहा और अाप . . आप वह शख्स है जो इस झमेले में कहीं न कहीं जरूर उलझा हुआ है।"'



सकाकाकर रह गया विनम्र चुप रह जाने के अलावा इस वक्त वह और कर भी क्या सकता था? हालांकि वह पहले ही से जानता था-गोडास्कर एक सख्त पुलिसिया है मगर वह इस अंदाज में बात करेगा, ऐसा नहीं सोचा था ।


गोडास्कर के चेहरे पर केवल पल भर के लिए उत्तेजना के भाव उभरे थे । अगले पल पुन: सामान्य अवस्था में बरगद खाता नजर आया ।।।
नीली आंखे नागपाल के चेहरे पर जमाता बोला ---"हां तो हम कहां तक पहुचे थे मिस्टर नागपाला तुमने विनम्र और बिंदू के बीच बिजनेस मीटिंग अरेंज की थी ! करेक्ट! क्या गोडास्कर जान सकता है बिदू तुम्हारी फर्म में क्या हैं?"


नागपाल को एक बार फिर लगा------"" झूठ चलने वाला नहीं है ।' वह किसी भी तरह विंंदू को अपनी कर्मचारी साबित नहीं कर सकेगा । सच बोलना मजबूरी थी और सच बोलने में उसे कोई बुराई नजर नहीं अाई इसलिए कहा----" बिंदू -मेरी कर्मचारी नहीं है ।"


"फिर कौन है?"


"एक काल गर्ल ।"


"तो मिस्टर विनम्र की बिजनेस मीटिंग तुमने कालगर्ल के साथ अरेंज की थी ?"

" बिंदू बैसी कालगर्ल नही जो चंद नोंटों की खातिर चाहे जिसके बिस्तर पर बिछ जाती है । वह ऐक खास और पड़ी-लिखी कालगर्ल है ।


बिजनेस के अण्डस्वार्ड में वहुत नाम है उसका । माना यह जाता है कि 'जिस काम कौ क्रोई नहीं कर सकता उसे कर सकती है । अपनी इसी धाक' के कारण वह बहुत मोटी फीस लेती है । अनेक बिजनेस मैंन उससे काम निकलवा चुके हैं । जब हर कोशिश के बावजूद मुझे एक साल से भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कम्पनी का कोई काम नहीं मिला तो मैंने बिंदू को इस्तेमाल करने का निश्चय किया ।


मिस्टर विनम्र के दिमाग में यह बात की इनकी कम्पनी में मेरे प्रतिद्वन्दी के आदमी के घूसपैठ कर रहे हैं और वह इनकी कम्पनी के लिए किए जाने कामकी क्यालिटी मे भी हेराफेरी कर रहा है है इन्होंने उसके अदमियों की लिस्ट और हेराफेरी का प्रकार जानने के जिज्ञासा प्रकट की । बने इन्हें इस होटल के सुईट नम्बर सेविन जीरो थर्दीन में जाने के लिए कहा । उद्देश्य साफ था-इन्हे बिंदूके जाल में फंसाकर भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कम्पनी का काम लेना ।"



"काम मिला ?"


"इस बारे ने मिस्टर विनम्र से ही पूंछे तो बेहतर होगा ।"









चलो । इनसे पूछ लेते हैं ।" कहने के साथ गोडास्कर विनम्र की तरफ घूमा । बरगर का आखिरी पीस मुह के हवाले करने-बाद बोला--- " मिस्टर विनम्र, अब अाप जितना चाहे "चहचहा' सकते है ।"

विनम्र को तसल्ली थी कि नागपाल ने सच बोला था । वह वही सब वताता चला गया जो अपने बंगले के ड्राइंगरूम ने नागपाल से कहा था ।


गोडास्कर उसकी हर बात इस तरह सुनता रहा जैसे दादा के पेट पर बैठकर पोते कहानियां सूना करते है । कहानी खत्म होते होते गोडास्कर अपनी जेब से बिस्कुट का पैकिट निकल चुका था । उसका रेपर फाड़ने के बाद एक बिस्कुट मुहं में रखता हुआ नागपाल की तरफ घूमकर बोला---" अगर विनम्र द्वारा सुनाई गई कहानी सच है तो . तुम्हारे हाथ कुछ नहीँ लगा होगा ।"


"आप ठीक कह रहे हैं । लगता है बिंदु "फेल" हो गई ।"


गोडास्कर बिंदू की नहीं, विज्जू की बात कूर रहा हूं ।"


"व...बिज्यू?.... बिज्जू कोन?"


" ये महाश्य ।" गोडास्कर ने लाश की तरफ इशारा किया------'" जब तुम कुछ नहीं बता रहै तो गोडास्कर को ही बहुत कुछ बताना पडेगा । "


" इसका नाम बिज्जू है ?"



"पेशे से फोटोग्राफर है । जिस तरह तुम्हारे मुताबिक विंदू अपने फन में माहिर है उसी तरह यह भी अपने हुनर का उस्ताद था । तीन महीने पहले तक इसकी एक दुकान थी मगर बुरा हो शराब का । यह अच्छे-खासे हुनरमंदों को 'पी' जाती है । इंसे भी पी गई एक वार शराब की लत लगी, पटूटे की दुकान बुकान सब बिक गई सडक पर आ गया । कुत्तों जैसी बेसी ही जिदगी बसर करने लगा जैसी शराब के वे चसकी करते हैं जिनकी जेब मे पैसे नहीं होते।"



"पर सुईट नम्बर सेविन जीरो बन से होने बाली मीटिंग से इसका क्या मतलब ?"
"जितनी कहानी तुमने गोडास्कर को सुनाई है, अब गोडास्कर तुम्हें उससे अागे की कहानी सुनाता है ।" कहने के बाद उसने एक और बिस्कुट मुंह में सरकाया और शुरु हो क्या---"विनम्र और बिंदूकी के भैट कराने के पीछे तुम्हारा मकसद केवल और केवल भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कम्पनी का एकही काम लेना नहीं था ।।। बल्कि तुम ऐसे बीज वो रहे थे जिससे भारद्वाज कंस्ट्रक्शन कम्पनी का काम केवल और केवल तुम्हें ही मिले! किसी और के हाथ कुछ न लग सके ।"


"आपकी वात मेरी समझ में नहीं अा रही इंस्पेक्टर?" नागपाल ने कहा----"विनम्र यदि बिंदु के उस जाल में फंस भी जाता तो भला भविष्य के सारे काम मुझे कैसे मिल सकते थे?"


"क्योंकि तुम्हारे पास विनम्र और विदुके फोटो होते ।"


" क-- क्या मतलब?" नागपाल बौखला गया ।


" वे फोटो जिन्हें विनम्र जैसा प्रतिष्ठित शख्स किसी हालत में _ सार्वजनिक नहीं होने दे सकता था । मजबूरन विनम्र को भविष्य के सारे काम . . .


गोडास्कर की बात काटकर नागपाल उत्तेजित अवस्था में कहता चला गया------" क्या आप यह कहना चाहते हैं मैंने विनम्र को ब्लैकमेल करने की योजना वनाई थी?"



" कम शब्दों में कही गई बात को अच्छी तरह समझ जाने के लिए शुक्रिया!"


'"यह बंकबास है!" नागपाल चीख पडा… "मनघड़'त आरोप लगा रहें हैं अाप मुझ पर ।।"



गोडास्कर ने एक और विस्कुट में सरकाते हुए शांत स्वर में कहा--"गोडास्कर के पास इस अरोप का आधार है । "


" क्या आधार है आपके पास? सुनूं तो सही ।"



“विंदूऔर ब्रिनम्र के बीच होने भेंट के बारे ने किस-क्रिस को मालूम था ।"

"केवल मुझें, बिंदू और मिस्टर विनम्र को।"
" तो इसे ।" गोडास्कर ने लाश की तरफ़ इशारा किया---" इस फीटोग्राफर को कैसे पता लगगया?"


" मैं इस बारे मे क्या कह सकता हूं ।"


"जबकि गोडास्कर इसी बारे में कह रहा है ।’" गोडास्कर अंपने एक-एक शब्द पर जोर देता कहता चला गया-----" और कह गोडास्कर यह रहा है कि जिस किस्म के फोटो खीचंने ीे मंशा से यह शख्स सुईट नम्बर सेबिन जीरो थर्टीन में छुपा था उस किस्म के फोटुओं का लाभ भविष्य में तुम्हें और केवल तुम्हें हो सकता था ।"


"आप केसे कह सृकते हैं यह सुईट में छुपा था? वहां के फोटो लिए है ? क्या इससे कुछ बरामद हुआ है?"



"दुर्भाग्य से, अभी तक कुछ भी बरामद नहीं हो सका है ।"


" फिर--फिर आप ......


“गोडास्कर सरकार से तनख्वाह लेता ही विखरी हुई कड़ियों को जोडने की पाता है मिस्टर नागपाल ।" वह लगातार विस्कुट खाता कहता चला गया--- "यह शख्स जिसका नाम मैने बिज्जू बताया है, कल दोपहर दो बजे से सुईट नम्बऱ सेविन जीरो थर्टीन में घुसने क लिए बावला हुआ जा रहा था । ज़ब सफाई करने चाली महिला ने दाल नहीं गंलने दी तो पटूठे ने साबुन पर चाबी का अक्से ले डाला । चार बजे के आसपास इसे पुन: सातबे फ्लोर पर जाते देखा गया । इसका मतलब इस बीच बह चाबी बनवा चुका था । "मास्टर की' की मौजूदगी में इसके लिए सुईट में पहुंचना चुटकी बजाने जितना आसान था । अब सवाल ये उठता है सुईट मे पहुचने के पीछे इसका मकसद क्या था ?? जबाव इसका पेशा और सुईट में होने वाले सम्भावित क्रिया-कलाप दे देते है । भले ही वे वहां हुए नहीं लेकिन सम्भावना यही थी कि विनम्र बिंदू कै रूपजाल मे फस जाएगा । विज्जू का मकसद था----उन संवेदनशील क्षणों को फोटो कैमरे में कैद कर लेना ताकि बाद में ..........
"अपनी त्तिकड़मों से आपके द्वारा निकले गए विज्जू के मकसद को अगर सही भी मान लिया जाए तो इससे यह कहां साबित होता है कि इस काम पर बिज्जू को मैंने लगाया था?"


" तुमने खुद फरमाया…सुईट में क्या होने वाला है इसका पता केवल विनम्र, तुम्हें और बिंदुको था । बल्कि विनम्र को भी इस लिस्ट से निकाल देना चाहिए क्योंके उसकी नांलिज के मुताबिक सुईट में उसकी भेंट तुमसे होने वाली थी । अर्थात इसे नहीं मालूम था बिजनेस मीटिंग की आड में यहां क्या गुलगपाड़ा हेने वाला है । रह गए तुम और बिंदु। भला बिंदु को अपने 'नायाब' फोटो खिंचवाने की क्या जरूरत थ्री? रह गए तुम-----वह अकेले शख्स जिसके लिए है फोटो कुबेर का खजाना साबित हो सकते थे ।"


"आपने सारे हालात का काफी बारीकी से विशलेषण किया . इंस्पेक्टर मगर एक बात जो यह साबित करती है कि यह काम बिज्यू को मैंने नहीं सौपा हो सकता, पर ज़रा भी गौर नहीं किया ।"


"ऐसी कोई बात है तो उस पर तुम गौर करा दो ।"


" बिज्जू अगर मेरा आदमी था तो उसे सुइट मे दाखिल होने के लिए' इतने पापड़ बेलने की क्या ज़रूरत थी । सुइट मेरा था । मैं उसे विनम्र के , बल्कि चाहता तो बिंदू कै भी अाने से पहले सुईट में छुपा सकता था ।"



' गोडास्कर अंदर ही अंदर मुस्करा उठा मगर उस मुस्कान को अपने होठों तक नहीं पहुंचने दिया । जो बात नागपाल ने कही थी वह उस बात पर पहले ही गौर कर चुका था । और इस नतीजे पर पहुंच चुका था कि बिज्जू उसका आदमी नहीं था । बावजूद इसके उसने नागपाल पर आरोप लगाया था तो केवल यह देखने लिए इस आरोप पर उसकी हालत क्या होती है? वह बौखलाता है या नहीं? सामने बाले के दिलोदिमाग मे झाकने की गौडास्कर की यह अपनी तकनीक थी ।
ऐसा करने के लिए यह खुद को मूर्ख सिद्ध करने में भी परहेज नहीं करता था ।। अपनी उसी पालिसी के तहत वह कहता चला गया…'वाकई मिस्टर नागपल वाकई आपकी बातो में गोडास्कर से भी कई गुणा ज्यादा 'वेट' है ।। अगर अाप ही का चमचा होता तो इसे "मास्टर की' की डुप्लीकेट बनवाने की क्या जरूरत थी । कमाल हो गया-- इस छोटी सी बात को गेडास्कर की मोटी बुद्धि 'कैच' नहीं का सकी । अपनी खोपडी का 'कैट रकेन' कराना पडेगा गोडास्कर को । पता तो लगे इसमे कहा नुक्सं आगया है?"


गोडास्कर को 'मात' देकर नागपाल झूम उठा । उसकी झूम होठों पर भी नजर अाई और शब्दों में भी फूट पड़ी----" आशा है अाप भविष्य में बगैर सोचे-समझे किसी पर आरोप नहीं लगाएंगे ।।


"बिल्कुल नहीं लगाऊंगा हुजूर कान पकड़ता ' ।" गोडास्कर ने खुद को उससे शिकस्त खाया दर्शाने में जरा कंजूसी नहीं की---" मगर अब सवाल ये है---बिज्जू महाशय बिनम्र और बिंदू के फोटो किस के इशारे पर खींचना चाहते थे ?"


" ज्यादा चढ़ गए नागपाल ने कहा----“मैं तो आपकी इस तिगड़म को ही सही नहीं-मानता कि बिज्जू विनम्र और बिंदू के फोटो खीचने के मकसद से सुईट में गया होगा ।"



-""ओर किस मकसद से गया होगा?"


"मेरे विचार से तो हमारे पास यह मानने का भी कोई ठोस आधार नहीं है कि यह उसी सुईट में गया था ।"


"गोडास्कर मूर्ख हो सकता है मियां, मुर्खों का सम्राट नहीं । तुम तो गोडास्कर को वहीं साबित करने पर अामादा हो गए ।"


" क्या मतलब?"


"बिज्जू महाशय के जूतों के तलों पर लगे कालीन के रेशो पर गौर फरमाएं ।" बिस्कुट खाते गोडास्कर ने अव नागपाल को 'टुंडे' से उतारने की ठान ली' थी---अन्य रेशों के अलावा यहाँ सुईट में बिछे कालीन के रेशे भी फड़फ़ड़ा रहे हैं । सेबिन्थ फ्लोर पर केवल एक ही सुईट है।। सुईट नम्बर सेवेन जीरो थर्टीन ।। बाकी सब रूम है और यह बात यकीनन तुम्हारे संज्ञान से भी होगी कि सुईट में इस्तेमाल किया जानेवाला कालीन कमरों या गैलरी में इस्तेमाल किए जाने वाले कालीनों से अलग होता है । अलग इसलिए होता है क्योंकि बह अन्य कालीनों से कीमती होता है । यह बात गोडास्कऱ को होटल का स्टाफ बता सुका है ।कि ये विशेष रेशे सुइंट में बिछे कालीन के है ।"


" ऐसा तो मान लेता हू…बिज्यू सुईट में गया होगा मगर इससे भी यह कहां साबित होता है कि इसका मकसद बहां फोटो लेना था"


"इसके पास से कैमरा बरामद हुआ हो तो क्या कहेगे ।।"'


"क्या कैमरा बरामद हुआ है?”




" ये रहा ।" गोडास्कर ने अपनी जेब से कैमरा निकालकर बरामद दिखाया ।


" कुछ देर पहले तो अापने कह था---उससे कुछ भी बरामद नहीं हुआ ।।"



"गोडास्कर एक पुलिस इंस्पेक्टर है हुजूरे आला और पुलिस इंस्पेक्टर यह अच्छी तरह जानता है उसे कब किसके सामने क्या 'उजागर' करना है, कंया नहीं ।" कहने के साथ उसने दूसरी जेब से चाबी निकालकर दिखाई ।`बोला--;"यह चाबी भी इन महाशय कू जेव सेमिली है। मास्टर की की डूप्लीकेट है ये ।।।


नागपाल को चुप रह जाना पड़ा ।


कहने के लिए उसे कुछ सुझा नहीँ ।



जबकि बिस्कुट चबाता गोडास्कर कहता चला गया----'"उम्मीद है गोडास्कर कें निष्कर्ष को अब तुम मात्र 'तिगड़म' करार नहीं दोगे कि बिज्जू सुइट में ही गया था और उसका मकसद दोनों की फोटो लेने के अलाबा कुछ नहीं था ।"




"पर फोटो लिए क्या होगें ?" मिस्टर विनम्र के मुताबिक यहाँ ऐसा कुछ हुआ ही नहीं जिसके फोटो किसी के कुछ काम आ सके ।"



" इसीलिए यह बात समझ में नहीं अा रही कि इस कैमरे की रील क्यों गायब है?"


"क्या रील गायब है?" नागपाल ने'पूछा ।


गोडास्कर ने वहुत संक्षिप्त जवाब दिया---" जी ।"


सांन्नाटा छा गया वहा ।

बहुत ही पैना सन्नाटा । ऐसा जैसे कहने के लिए किसी के पास कुछ न बचा हो ।


प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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