हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

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----किन्तु राष्ट्रपति सर. एडलॉफ उनके बिछाये चक्रव्यूह को तोडकर भाग निकला और किसी अज्ञात जगह पर जाकर छिप गया । फिलहाल उसकी देश के चप्पे चप्पे पर तलाश की जा रहीँ है ।"

"ल -लेक्रिन इस मामले से हमारे स्थानीय एजेन्ट का क्या ताल्लुक है सर? वैसे भी ये अन्तर्राष्टीय मामला है । इसमें हम कर भी क्या सकते हैं?" मैंने कहा ।

"मडलेण्ड हमारा मित्र राष्ट्र है रीमा । इस मामले में हम बहुत कुछ कर सकते हैं ।" यह गम्भीरता की प्रतिमूर्तिं बना बोला--" इस वक्त सबसे बड़् सवाल हमारे स्थानीय एजेन्ट डगलस की जिन्दगी का है ।"

" व....व्हाट !"

"यस रीमा ।"

खुराना ने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी थी ।

"मैँ कुछ समधी नहीं सर । आप मुझे खुलकर बताइये कि मामला क्या है?" मैँने पूछा ।

"डगलस मडतैण्ड में न सिर्फ आई०एस०सी० का स्थानीय एजेन्ट है, बल्कि सर एडलाफ का दायां हाथ भी है ।"

मैं उछल पडी ।

मेरा उछल पड़ना स्वाभाविक था, क्योकिं मेरे लिये है एक नई जानकारी थी ।

"य. . .ये आप क्या कह रहे हैं सर?" मेरे होठों से हैरत भरा स्वर निकला !"

"वही, जो सच है ।"

" लेकिन आज से पहले तो आपने मुझें ये बात नहीं बताई?"

‘मौका ही नहीं मिला । वैसे भी ऐसी बातों के को उस समय बताया जाता है जब कोई जरूरत सामने आती है ।" एक पल लेकर खुराना पुन: बोला-"मैं डगलस के बारे में बता रहा था । सर एडलॉफ का दायां हाथ के कारण उसे इस बारे में मालम है कि सर एडलॉफ कहीं छिपा हुआ है? न जाने कैसे उस मुल्क को ये महत्वपूर्ण जानकारी मिल गई । अत सेना ने डगलस को गिरफ्तार करके किसी अज्ञात जेल में नजरबंद कर दिया है । अब उसे टॉर्चर करके ये जानकारी लेने की कोशिश की जा रहीँ है कि सर एडलॉफ किस जगह पर छिपा हुआ है, लेकिन वो अपने मुंह पर ताला डाले हुए है । स्थिति बडी विस्फोटक है रीमा, अगर डगलस को जेल से नहीं निकाला गया तो वे लोग उसे यातनाएं देकर भयानक मौत मार डालेंगे और अगर ऐसा हो गया तो आई०एस०सी० अपना एक काबिल और जांबाज एजेण्ट खो देगी ।"

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"तो ये मामला है?"

"यस ।"

"एक बात पूछूं सर ।"

"पूछो ।"

"उस पश्चिम देश को मडलैण्ड की सत्ता का तख्ता पलटने की क्या जरूरत आ पडी है?"

"जरूरत है सोने की खाने ।" खुराना ने बताया-"मडलैण्ड एक समृद्धशाली मुल्क है । जिस तरह अरब देशों मे-तेल के कुएं हैं । उसी तरह से मडलैण्ड में सोने की खाने हैं । आज की तारीख में एशिया की सोने का अस्सी प्रतिशत भाग मडलेण्ड से प्राप्त होता है ।"

"समझ गई सर ।" एकपल ठहरकर मैंने पूछा-"मडलेण्ड की जनता का क्या रुख है?" _

"मडतैण्ड की जनता का रुख बड़ा ही आक्रमक है । वहा की जनता और राष्ट्रपति सर एडलॉफ के समर्थकों ने उस तानाशाह के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया है । वे उसका तख्ता उलटने पर आमादा हैं । बिगड़ते हालातों को मद्देनजर रखते हुए सेना उन लोगों पर अत्याचार कर रहीं है । सर एडलॉफ के समर्थकों को सरेआम गोलियों से उड़ाया जा रहा है । कुल मिलाकर मडलैण्ड में युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई है ।"

"अब मेरे लिये क्या आदेश है सर?"

" तुम्हें मडलेण्ड पहुंचना है रीमा । तुम्हें न सिर्फ डगलस को जेल छुडाना है, बल्कि सर एडलॉफ को भी सुरक्षित बचाना है । यहीं तुम्हारा मिशन होगा ।"

'"ल. . . लेकिन ये एक अन्तर्राष्टीय मामला है । इसलिये हमें गृहमंत्रालय की इजाजत लेनी होगी ।"

"मैं ऐसे ही तुम्हें इस मिशन पर रवाना नहीं कर रहा है । तुम्हें तलब करने से पहले मैं गृहमंत्रालय से इजाजत ले चुका हू।" उसने उत्तर दिया-"तुम्हें कुछ और पूछना हो तो पूछ सकती हो ।"

"मेरे सामने सबसे बडी प्रॉब्लम ये है कि मुझे इस बारे में कैसे मालूम होगा कि डगलस को किस जैल में नजरबंद करके रखा गया है ।"

"इस बोरे में तुम्हें तोशिमा से मालूम होगा ।"

"कौन तोशिमा?"

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"डगलस द्वारा भेजे गये उस आखिरी फैक्स में तोशिमा का जिक्र भी है । तोशिमां डगलस की प्रेमिका है और वह मडतैण्ड की राजधानी विंगस्टन के लार्डस कैम्पस में रहती है ।" वह तोशिमा के आवास का पता बताकर पुन: बोला---"इस बारे में तुम्हें तोशिमा मुकम्मल जानकारी दे देगी ।"

"क्या आप समझते हैं कि तोशिमा सैनिकों की निगाहों से बची रहीं होगी?" मैंने सवाल किया ।

"वो सैनिकों की निगाहों से बची हुई है, तभी तो डगलस ने अपने फैक्स में उसका जिक्र किया है ।" खुराना ने कहा----अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद के लिये…

"नहीं सर ।" मैं खुराना का वाक्य बीच में ही काटकर बोली---." इस मिशन में मुझे किसी भी तरह की मदद की जरूरत नहीं हैँ । मैं अपने मिशन खुद देखूंगी । उस मुल्क ने हमारे स्थानीय एजेन्ट को गिरफ्तार करके हमारी संस्या के मुहे पर थप्पड़ मारा है । जो हमारी संस्था को वहुत हल्का करके आक रहे हैं । मैं उस मुल्क को इस बात का अहसास कराऊगी कि हमारे किसी एजेन्ट पर हाथ डालने का क्या अंजाम होता है?"

"रीमा... !"

खुराना ने कुछ कहना चाहा, मगर मैँने उसकी बात काटकर अपनी बात जारी रखी---" सब कुछ मुझ पर छोड़ दीजिये सर । मैं न सिर्फ डगलस को सुरक्षित जेल से छुडा लूगी बल्कि सर एडलॉफ का भी बाल बांका नहीं होने दूंगी ।"

खुराना गम्भीरता की प्रतिमूर्ति वना मेरा चेहरा देख रहा था ।

"एक बात बताइये सर ।" मैं बोली ।

"वो क्या?"

"उन लोगों को मालूम है कि डगलस आई०एस०सी का एजेण्ट है ।"

"मुमकिन है ।" उसने उत्तर दिया---"हो सकता है कि उन लोगों ने डगलस को टॉर्चर करके इस बारे में जानकारी हासिल कर ली हो?"

मैं चुप रही ।

"अगर सेना के अधिकारियों को तुम्हारे मिशन के बारे में मालूम होगा तो तुम्हारे लिये मुश्किलें वढ़ जायेंगी रीमा । इसलिये तुम्हारा हर कदम नपा-तुला सोचा-समझा होना चाहिये ।"

"आप फिक्र न करें सरा मेरा हर कदम नपा-तुला और स्रोचा समझा होगा ।"

"और कुछ?"

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"मुझे मिशन पर कब रवाना होना होगा ?"

"अब से एक घण्टे बाद । इस मिशन में जितनी देर होगी डगलस की जिन्दगी को उतना ही खतरा बढ जायेगा ।"

"ओ०के० सर । मैं ठीक एक घण्टे बाद रवाना हो जाऊंगी ।"

"मैंने तुम्हारे लिये के एक टू-सीटर प्लेन का बन्दोबस्त करवा दिया है ।क्योंकि तुम सीधे मडलैण्ड की राजधानी विंगस्टन में प्रवेश नहीं कर सकती, वहां सेना तैनात है और बाहर से आने वाले हर शख्स पर नजर रखे हुए है । इसलिये तुम्हें चोरी-छिपे है मडलैण्ड की सीमा में प्रवेश करना होगा । तुम्हें विंगस्टन कैसे पहुंचना है. .ये तुम्हारी सिरदर्दी है । वायुसेनां का एक पायलेट बाला सुन्दरम _ _ तुम्हारे साथ रहेगा । तुम जहाँ चाहोगी वह तुम्हें वहीं ड्रॉप कर देगा । तुम पैराशूट की मदद से नीचे कूदोगी ।"

" बेहतर ।"

"और कुछ?"

"मुझे मडलैण्ड का नक्शा चाहिये ।"

जवाब में खुराना ने अपनी मेज की ड्राअर खोली और उसमें से नक्शा निकालकर मेरे सामने रख दिया था ।

मेरी रवानगी पक्की हो चुकी थी ।

"मुझे विमान कहां से मिलेग़ा सर?" मैंने नक्शा कब्जे में करते हुए पूछा ।

"तुम अपनी तैयारी करके एक घण्टे तक आफिस पहुंच जाओं । तुम्हारे विमान तक पहुंचने का बन्दोस्त कर दिया जायेगा ।"

" ठीक ।" मैंने तुरन्त कुर्सी छोड दी थी ।

खुराना जानता था कि अपनी तैयारियाँ पूरी करके मैं ठीक एक घंटे बाद वापस हाजिर होने वाली हू। फलस्वरूप इस समय मैं अपने मिशन पर थी ।

इसे मैं अपनी बदनसीबी ही कहूगी कि मैं अपनी लाख सावधानियों के बावजूद उन सैनिर्कों र्के चंगुल में फस गई थी।

====

====

मैंने बेहोशी का नाटक खत्म क्रिया !

कमजोर सी कराह के साथ धीरे-से आँखे खोल दीं । अभी भी चारों सेनिक यहां मौजूद थे । मैं जानती थी कि कमाण्डर के आदेशानुसार अब मुझे बैरक मे बंद किया जाएगा ।।



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मेरा जिस्म पका फोडा बना हुआ था । समूचे वजूद में पीड़ा की लहरें उछाले मार रही थीं ।

"तो तुम्हें होश आ गया?" आर्थर नाम का सैनिक बोला ।

" तुम्हारे कमाण्डर ने तो मुझे मारने में कोई कसर बाकी नहीं छोडी थी । ये, तो मेरा भाग्य ही अच्छा था जो मैं बच गई । तुम्हारा कमाण्डर तो बड़ा ही दरिन्दा किस्म का इन्सान है । वह तो ये भी नहीं जानता कि एक लड़की के साथ किस तरह का सलूक क्रिया जाता है हैं !"

"अभी तुमने आर्मी वालों की दरिन्दगी देखी ही कहां है ? जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ है । वो तो एक नमूना था । हमारी पूरी दरिन्दगी का तो तुम्हें हेडक्वार्टर में पता चलेगा । क्यों अपनी जान की दुश्मन हो । अपनी असलियत बता क्यों नहीं देती?"

जवाब में मैं कराहकर रह गई ।

"इसे ले चलो आर्थर ।" दूसरे सैनिक ने कहा ।

आर्थर ने आगे बढकर मुझे बंधन-मुक्त क्रिया, फिर कर्कश स्वर में बोला--"उठो !"

मै चेयर से उठी तो मेरे जिस्म मेँ पीड़ा की तेज लहर दौड़ गई।

वे मुझे लेकर उस बैरक से बाहर निकले और एक अन्य बैरक के सामने लेकर पहुचे।

तभी!

मेरे नितम्बो पर बूट की जबरदस्त ठोकर पडी और मैं फुटबाल की तरह उछलकर धड़ाम् से मुंह के बल नंगे फ़र्श पर गिरी । अगर मैंने अपनी हथेलियों फर्श से न टिका दी होती तो मेरा चेहरा तीव्रता के साथ फर्श से टकराना था और उसका जुगराफिया बदल जाना था ।

"बन्द कर दो !"

मैं दोनों हथलियां फर्श पर टिकाकर उठी । साथ ही एडियों पर दरवाजे को तरफ धूम भी गई ।

बैरक का सलाखों वाला दरवाजा बद हो चुका था और उसके मुह पर मजबूत ताला भी डाल दिया गया था ।

"सुनो लडकी ।" आर्थर बोला-"अब तुम्हारे लिये यहां से भागना नामुमकिन है । तुम्हारे पास सुबह तक का वक्त है । तुम अच्छी तरह से सोच लो कि तुम्हे. जिन्दगी चाहिये या मौत?"

"क्या मुझे मौत भी दी जा सकती है?"



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“अगर तुम अपनी असलियत नहीं बताओगी तो तुम्हारी मौत निश्चित है ।“

" अच्छा !"

"हाँ !"

"मैं इस बारे में ज़रूर सोचूंगी आर्थर. कि मुझे जिन्दगी चाहिये यां मौत?”

आर्थर क्या जानता था कि दुनिया में आज तक ऐसी कोई जेल नहीं वनी, जिसकी दीवारें रीमा भारती को ज्यादा देर तक रोक सकें । मैं तो वो आँधी हूं जब चलती हू तो मेरे सामने रास्ते अपने आप खुल जाते हैँ।

दीवार से पीठ सटाकर आंखें कैद करके बैठ गई । मैं अपने अगले कदम के बारे में सोचने लगी । अब मुझे जल्दी से जल्दी उस कैद से बाहर निकलना था, क्योंकि अगर मुझे सेना के हेडक्वार्टर पहुचा दिया गया तो मेरे लिये मुश्किलें और बढ जाने वाली थीं ।

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अचानक!

" टक. ..टक. .।"

राहदारी में भारी जूते की आवाज़ गूंजती चली गई ।

मैंने पट से आखें खोल दीं।

बूटों की आवाज इसी बैरक की तरफ आ रही थी । मैं अपनी सारी पीड़ा भूलकर स्प्रिग लगे खिलौने की तरह उछलकर खडी हुई और लपककर सलाखों के करीब पहुंच गई । मैंने सलाखों से चेहरा सटाकर आवाज की दिशा में देखा, वो ऐक सैनिक था । उसके कन्धे पर गन तथा वैल्ट में चाबियों का गुच्छा नजर आ रहा था । मेरा चेहरा चमक उठा ।

मैंने अपनी शर्ट के उपरी दो बटन खोल दिये । आदतन मैं नीचे ब्रा नहीं पहने थी । अब मेरे वक्ष अपनी भरपूर छटा बिखेरने लगे ।

इस वक्त मैं दो लार्ज पैग व्हिस्की की ज़रूरत महसूस कर रही थी, ,अगर मुझे दो पैग मिल जाते तो वे मेरे लिये टॉनिक का काम करते ।

सैनिक मेरी बैरक के सामने पहुंचा तो मैं मुस्कुरां दी ।

"ऐ !" वो सैनिक कटखने कुत्ते की तरह गुर्राया--" यहा क्यों खड़ी हो ?"

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"मैं तुम्हारे इन्तजार में खड्डी हूं।" मेरे होठों की मुस्कान गहरी हो उठी ।

"क क्यों?" वह हड़बड़ाया ।

"मुझें इतना ज्यादा टॉर्चर किया गया है कि मेरा रोंम-रोम दर्द से चीख रहा है । क्या गला तर करने के लिये दो घूंट मिलेगी?"

"तो तुम्हें पीने कै लिये व्हिस्की चाहिये?"

"हां ।"

"मगर अफसोस यहां तुंम्हें मौत के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा ।"

"ऐसी भी क्या बेरुखी है डियर? तुम लोग भी मेरी जान के पीछे पड़े हुए हो?" मैंने कहा---"कम से कम मेरी खूबसूरती का तो कुछ ख्याल करो ? " कहने के साथ ही मैंने दोनों हाथों से सलाखें थामी और थोडा आगे की तरफ झुककर उस सैनिक को अपने बक्षों के दर्शन करां दिये ।

उसकी निगाहें मेरी शर्ट के गले के भीतर पढी तो वह पट्ठा पलकें झपकाना तक भूल गया ।

उसकी नजरें वहीं चिपक कर रह गई थीं ।

आखिर वह भी अच्छा-खासा मर्द था । भला ऐसा कैसे हो सकता था कि मेरे गुलाबी यौवन कलशों की झलक उसे प्रभावित न करती ।

मेरा जादू चल गया था ।

वह फंस रहा था । यूं कहो कि करीब-करीब फस चुका था ।

.जब मेरा अचूक हथियार चलता है तो भला कौन बच सकता … है? वह भी नहीं बच पा रहा था ।

"तुम चाहो तो मेरे लिये व्हिस्की का जुगाड़ कर सकते हो । अगर मुझे दो पेग पिलवा दोगे, तो तुम्हारा क्या बिगड जायेगा?"

मेरा स्वर अनुरोध भरा था ।

उसका सम्मोहन टूटा ।

सैनिक ने हड़बड़ाकर यहा से अपनी निगाहें हटा ली । साथ ही उसने दोनों हाथों से अपनी शर्ट पकाकर ऊपर उठा दी ।

मेरी आंखें चमक उठी ।

उसक्री अंटी में हाफ फंसा हुआ था ।

"प्यारे, दो ना यार ।" मै किसी छोटे बच्चे की तरह मचली-" बहुत तलब लगी है ।"

"मैं मुफ्त में किसी क्रो कुछ नहीं देता । "



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"मैं तुम्हें पूरी कीमत देने के लिये तैयार हूं ।" मैंने अपनी पैन्ट की हिप पकिट थपथपाई-" मेरे पास पेसे हैं ।"

"मुझे पैसे नहीं चाहिये ।"

"और तुम्हें क्या चाहिये ।"

"व्हिस्की तो तुम्हें मिल जायेगी, लेकिन मेरी एक शर्त है ।"

"क्या शर्त्त है तुम्हारी?"

उसके होठों पर अर्थपूर्ण मुस्कान नाच उठी ।

मैं उसकी मुस्कान का मतलब अच्छी तरह से समझ गई थी, लेकिन जानबूझ कर अनजान बनती हुई बोली---" बोलो, क्या शर्त है तुम्हारी?"

" तुम्हें मुझे खुश करना होगा ।"

" पैग के लिए इतनी बडी कीमत ।"

"सोच लो ।"

मैंने जानबूझ कर सोचने वाली मुद्रा बनाई-----मुझे एतराज तो क्या होना था? किन्तु एकदम 'हां' कर देने का मतलब था, उसे शक हो जाना ।

"बोलो-" सेनिक ने तनिक उतावलेपन से पूछा।

. "म . .मैं तुम्हारी शर्त मानने के लिये तैयार हूं लेकिन अगर इस तरफ कोई आ गया तो. . . ।"

"इधर कोई नहीं आयेगा । इस तरफ सिर्फ मेरी ड्यूटी है ।"

"जल्दी से भीतर जा जाओ ।"

सैनिक तो मुझे पाने के लिये खुद उतावला था ।

ऐसा लग रहा था जैसे औरत के सम्पर्क में आये उसे लम्बा अर्सा गुजर गया है, उसने ताला खोलकर दरवाजा धकेला, फिर तीर की तरह अन्दर आकर दरवाजा बन्द कर दिया, फिर बोला--" जल्दी से अपने कपड़े उतारो ।"

"पहले व्हिस्की तो दो ।" उसने अपनी अंटी में फंसा व्हिस्की का हाफ निकालकर मुझे थमा दिया ।

मैंने हाफ की सील तोड्री और उसे मुंह से लगा लिया, फिर जब मैंने हाफ होठों से हटाया तो वह आधे से ज्यादा खाली हो चुका था ।

"हाफ मुझे दो ।" सैनिक बोला । मैंने हाफ़ सैनिक को थमा दिया ।

उसने हाफ होठों से लगाकर एकही सांस में खाली करके बैरक के कोने में रख दिया ।

अब व्हिस्की ने मेरे ऊपर अपना असर दिखाना शुरु कर दिया था


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वाकई में इस वक्त व्हिस्की ने मेरे लिये टॉनिक जैसा काम किया था । मेरे जिस्म में पीड़ा की उछाले मारती लहरें धीमी पड़ने लगी ।

"अ.. .अब जल्दी से अपने कपड़े उतार दो ।" सैनिक का स्वर थरथराया ।

भला मुझे कपडे उतारने में क्या परहेज़ था? मैं अपनी शर्ट के बटन खोलने लगी । शीघ्र ही मेरे कपड़े लावारिस की तरह बैरक के फर्श पर पड़े थे । … अब मैं निर्वस्त्र थी ।

वहीं फैले बल्ब के पीले प्रकाश में मेरा निर्वस्त्र जिस्म कुन्दन की तरह चमक रहा था और वो सैनिक अबाक सा मेरे सगमरमरी जिस्म को देख रहा था । तदुपरान्त उसने आगे वढ़कर मुझे अपनी बाहों मे भर लिया, साथ ही उसके होठों से कांपता-सा स्वर निकला--"त.. .तुम तो बहुत जानदार चीज हो जानेमन । तुम्हारे अग अग से यौवन फूट रहा सिर से पांव तक कयामत हो?"

सेनिक ने कोई नई बात नहीं कहीं थी । जब क्रोईं मुझें पैदाइशी रुप में देखता है तो ऐसा ही कहने पर मजबूर हो जाता है ।

अब तो इस तरह के शब्द सुन-सुन का मेरे कान पक चुके हैं ।

वह मुझमें समाने के लिये बेताब हो उठा । उसने मुझे अपने से अलग किया और आनन-फानन में अपने अपने सारे कपडे उतार फेंके ।

अब वह भी निर्वस्त्र था ।

" अ.. .अब दीवार की तरफ मुंह करुके खडी हो जाओ और मैं अपनी दोनों हथेलियों को दीवार से टिका दो ।" सैनिक बोला ।

मैं समझ गई कि वो पट्ठा किस चक्कर में है? भला मुझे क्या एतराज हो सकता था ? मेरे चाहने वाले जानते हैं कि मैं हर तरह से प्यार का लुल्फ उठाना चाहती हूं।

` "ज़....जल्दी करो ।" वह पुन बोल उठा "अब मुझसे नहीं रह जा रहा ।" सेनिक की हालत देखकर मेरी हंसी छूटते छूटते बची । मैंने यहीं क्रिया, जो सेनिक चाहता था । सेनिक ने मेरी कमर पर हाथ रखकर नीचे की तरफ दबाव डाला । दूसरे क्षण मेरी स्थिति चौपाये जैसी हो गई थी ।

फिर पट्ठे ने पोजीशन सम्भालने में एक सैकेण्ड भी जाया नहीं किया ।


30

अगले क्षण ।

मुझे ऐसा लगा जैसे कोई तेज धार वाला नश्तर मेरे अन्तर को चीरता चला गया हो । न चाहते हुए भी मेरे होठों से तेज कराह निकल गई थी ।

कुछ पल बाद उसके थर्मामीटर का पारा निकल गया । वह मेरी पीठ पर चेहरा रखकर भैंसे की तरह हांफने लगा ।

मेरे जिस्म में पहले ही पीड़ा की लहरें उंछाल मार रही थीं । ऊपर से उस सेनिक ने मुझे झझोढ़कर रख दिया था । कुछ क्षणों बाद वह मुझसे अलग हुआ मैं सीधी होकर सैनिक की तरफ घूमती । सुनहरी मौका था ।

इस घडी वह थककर काफी ढीला पडा नजर आ रहा था ।

"तुम तो वहुत जायकेदार चीज निकली । मैं थोडी देर बाद फिर आऊंगा ।" कहकर उसने अपने होंठ मेरे अधरों की तरफ़ बढाये ।

मेरे अधरों पर जहरीली मुस्कान नाच उठी । साथ ही मेरा हाथ उसके चेहरे पर रेग गया, फिर एक क्षण भी गंवाये बगैर मैंने उसकी

कनपटी की एक विशेष नस दबाकर उसे बेहोश कर दिया । साथ ही बला की फुर्ती से सम्भलकर फर्श पर बैठती चली गई । मैंने उसे

फर्श पर लिटाया और अपने कपडों से सामान निकालकर कपड़े उसे पहना दिये, अगर कोई बैरक में झाके तो उसे शक न हो ।

सैनिक तो बेहोशी की गहरी नींद सो चुका था ।

सैनिक के कपड़े पहन मै सैनिक बन चुकी थी, उसके कपडे मेरे जिस्म पर एकदम फिट आये थे,जैसे वे मेरे नाप से ही सिले गये हों । मेरे कंधे पर गन टंगी हुई थी ।

अब मेरा यहाँ रुकने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था ।

. मैं सलाखों वाले दरवाजे के करीब पहुची । मैँने दरवाजा खोलकर दायें-वायें-नजर डाली ।

राहदारी पूर्ववत् अवस्था में सूनी पडी थी । मुझे वहां किसी भी तरह का खतरा नजर नहीं आया था ।

मैं संतुष्ट होकर बैरक से बाहर निकली । दरवाजा बन्द क्रिया, फिर उसके मुंह पर ताला डालकर एक तरफ बढ गई । इस वक्त मैं सतर्कता की मूर्ति नजर जा रही थी ।

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और गढ़बड़ हो गई ।

मेरी सारी सतर्कता धरी-की-धरी रह गई थी ।


31

मेरे पैरों मे ब्रेक लग चुके थे ।

वजह.....

अचानक एक आबनूसी रंगत वाला सैनिक किसी भूत की तरह प्रकट हुआ था और उसने मेरा रास्ता रोक लिया था । वह लम्बे कद और पहलवान सरीखा शख्स था । चेहरे पर पत्थर जैसी, कठोरता और सुर्ख आंखें ।

मेरे सामने एक नई मुसीबत आ खडी हुई थी ।

किन्तु.....

मैंने अपनै चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं आने दिया था । हां मैं मन ही मन किसी भी परिस्थिति का, सामना करने के लिये तैयार अवश्य हो गई थी ।

"कौन हो तुम?" उसने मुझे सिर से पाव तक घूरते हुए पूछा । "एक सैनिक ।" मैंने, तुरन्त उत्तर दिया, ।

" तुम इस तरफ़ कैसे आये?" सैनिक मेरे वक्ष-स्यल पर निगाहें जमाकर पूछा ।

मैं मन हीँ मन घबरा उठी।

सेनिक से ऐसे सवाल की उम्मीद ही नहीं थी । फिर जल्दी ही आपको सम्भलाकर हवा में तीर छोड़ा---" मुझे कमाण्डर ने भेजा है ।"

इधर मैंने अपना वाक्य पूरा क्रिया, उधर उस सैनिक ने बगैर किसी पूर्व चेतावनी के मेरे सिर से कैप उतार ली । मेरे बाॅबकट बाल कन्धों पर बिखर गये ।

मुझे जोरों का झटका लगा । मुझे उस सैनिक से सपने में भी ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी ।

"झूठ बोलकर यहां से भागना चाहती थी हरामजादी !" उसके के होठों से फुफकार निकली-" 'तू कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन यहां से भाग नहीं सकती । तुम वहीँ लडकी हो न, जो किसी विमान से पैराशूट से कूदी थी?"

मेरा कलेजा उछलकर हलक में आ फसा ।

मेरा भेद खुल चुका था ।

वो मुझे लिये आगे बढा ।

तभी

मैं हरकत कर गई ।

मैंने बला की फुर्ती के साथ अपने कन्धे से गन उतारी और उसके बट का ज़बरदस्त वार सैनिक की कनपटी पर कर दिया ।

" भड़ाकं..!!."

32

वार नपा-तुला साबित हुआ था । वह भरभराकर जमीन पर गिरा, फिर उसके जिस्म में हरकत नहीं हुई थी ।

जाहिर है, मेरे उस एक ही वार ने उस पहाड़ सरीखे इन्सान को बेहोशी की गहरी नीद सुना दिया था । '

अब मेरा एक क्षण भी यहाँ रूकना खतरे से खाली नहीं था ।

अतः मैं नाक की सीध में भाग छूटी ।

मै यूं भाग रही थी मानो मेरे पैरों में पंख उग आये हो, मुझे यहां की भोगोलिक स्थिति की कोई जानकारी नहीं थी । मैं तो भागे जा रही थी और फिर इसे मेरा भाग्य ही कहा जायेगा कि मैं बगैर किसी अन्य रुकावट के छावनी से बाहर निकल आईं, लेकिन मेरे पैरों की रफ्तार में अभी भी बाल बराबर कमी नहीं आई थी, तभी मुझे दूर कुछ रोशनियों जुगनुओं की तरह चमकती नजर आई । निसन्देह यह कोई शहर लगता था । मैंने अपने दिमाग पर जोर डाला । नक्शे के मुताबिक वो विंगस्टन शहर होना चाहिये था ।

विंगस्टन ।।

मडलैण्ड की राजधानी ।

मेरे इस खतरनाक मिशन का पहला पड़ाव । अर्थात् मैं जब प्लेन से कूदी थी, तो अपने लक्ष्य से ज्यादा दूर नहीं उतरी थी । ये तो संयोग था कि मैं सैनिकों के हत्थे चढ़ गई, अन्यथा अब तक विगस्टन में होती ।

वातावरण में हैलीकाॅप्टर के इंजन का स्वर गूंज उठा ।

मैं चौकी ।

मैंने भागते-भागते पलटकर आसमान की तरफ देखा, हवा में परवाज करता एक हैलीकाॅप्टर तेजी से मेरी तरफ बढा चला आ रहा था । मैं समझ गई कि छावंनी बालों को मेरे फरार होने की खबरं लग चुकी है और वे मेरी ही फिराक में हेलीकॉप्टर लेकर आ रहे हैं ।

हैलीकाॅप्टर के पैंदे में सर्चलाईट रोशन थी ।

मेरे कदमों में स्वत तीव्रता भर उठी , किन्तु मै एक हेलीकॉप्टर की रफ्तार का मुकाबला कैसे कर सकती थी?

हेलीकॉप्टर निरन्तर करीब आता जा रहा था ।

इस वक्त मैं जहाँ भाग रही थी, वहीं जगह-जगह बंकर वने हुए थे । जाहिर था कि वे बंकर सैनिकों ने अभ्यास के लिये बनाये होगे । इस वक्त ये बंकर मेरे लिये बेहतरीन शरणस्थली साबित् हो सकते थे ।

हैलीकॉप्टर करीब पहुँचा ।

तभी ।

प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

33

मैंने अपने कन्धे से गन उतारी और बंकर में जम्प लगा गई ।

ठीक उसी क्षण ।

आसपास का क्षेत्र सचंलाईट की तेज रोशनी मे नहा उठा । अगर मैंने जंम्प लगाने में एक क्षण की भी देरी कर दी होती तो मेरा उन लोगों की निगाहों में आ जाना निश्चित था । अब चूंकि मैं बंकर में छिपी थी । अतः मुझ पर किसी की निगाह पड़ने वाली नहीं थी ।

हैलीकाॅप्टर दनदनाता हुआ बंकर के उपर से गुजर गया ।

सहसा वातावरण में भारी बूटों की आवाजें गूंज उठी ।

एक और मुसीबत ।

मुझे अंदाजा लगाने में एक सैकेण्ड का सौवां हिस्सा भी नहीं लगा था कि बूटों की वो आवाजें सैनिकों के अलाबा और किसी की नहीं हो सकती थीं ।

हैलीकाॅप्टर मेरे सिर पर मंडरा रहा था और भारी बूटों की आवाजें निरन्तर करीब आती जा रही थीं ।

"बंकरो मे देखो !! वो बंकरों में छिपी हो सकती है ।" वातावरण में आदेश भरा कर्कश स्वर गूंजा ---- "बचकर नहीं निकलनी चाहिये ।"

मेरा दिल जोरों से धड़क उठा । अब वो बंकर भी मेरे लिए सुरक्षित नहीं रह गया था ।

सैनिकों की निगाहें मुझ पर पड़ सकती थीं और वो बंकर मेरे लिये कब्रगाह साबित हो सकता था ।

मेरे एक तरफ कुआं था, तो दूसरी तरफ खाई थी ।।

मैंने देखा!

हैलीकाॅप्टर घूमकर तेजी से वापस उसी तरफ बढ़ रहा था । अब मैंने रिस्क लेने का फैसला का लिया था । जैसे ही हैलीकाॅप्टर मेरे सिर के उपर पहुचा वैसे ही मेरे हाथ में दबी गन गरज उठी । हालाकि मैंने गोलियों सचंलाईट का निशाना लेकर चलाई थी , मगर निशाना चूक गया और गोलियां बेकार गई ।

गोलियों की आवाजें दूर-दूर तक गई होंगी । मेरे लिये खतरा बढ गया था । उधर हेलीकॉप्टर में सैनिकों को भी मेरी मौजूदगी की जानकारी मिल गई होगी । अत मैं बंकर से निकलकर भाग खडी हुई । कुछ पलों वाद हेलीकॉप्टर पुन मेरे सिर पर पहुच गया था ।

"तड़.. ..तड़ .रेट.. .…रेट हैलीकाॅप्टर से मानो मौत बरसी ।

मैंने फुर्ती से स्वय को जमीन पर गिरा लिया । गोलियां मेरे आसपास की ढेरों मिट्टी उधेडती चली गई ।
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34

मैं बाल-बाल बची थी ।

हैलीकॉंप्टऱ ने लम्बा चक्कर लगाया और पुनः दनदनाता हुआ मेरी तरफ बढा ।

इस बार मैं तैयार थी । गन का रुख आसमान की तरफ था ओऱ जैसे ही हैलीकॉप्टर मेरे सिर पर पहुंचा, वैसे ही मैंने दांत पर-दात जमाकर गन का लीवर खींच दिया ।

लक्ष्य हैलीकॉप्टर की सर्चलाइंट थी ।

इस बार मेरा निशाना अचूक साबित हुआ ।

सर्चलाइंट शहीद हो गई ।

मेरे आसपास गुपम्प अंधेरा छा गया ।

पलक झपकते ही मैं उठी तो देखा, मुझसे थोडे ही फांसले पर शक्तिशाली टॉर्चों का प्रकाश इधर-उधर घूम रहा था । वे सेनिक थे । उन सैनिकों का वुरा वक्त आ गया था ।

मैंने टार्चों के प्रकाश को लक्ष्य बनाकर ट्रेगर दबा दिया ।

गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच कई इंसानी चीखे गूंजी । मैंने उन सायों को उलटते देखा, फिर मैं बंकर से बाहर निकली और अधान्धुन्ध भाग खडी हुई ।

अब उपर से गोलियों की बारिश होने लगी थी । मैंने ठिठककर हेलीकॉप्टर का निशाना बांधा और लीवर खींच दिया । मैंने ये भी नहीं देखा कि उन गोलियों का क्या हुआ? मैं भाग खडी हुई । अब सेना का एरिया पीछे छूट चुका था । जगह-जगह बने बंकरों का सिलसिला खत्म हो चुका था । आगे ऊचे-ऊँचे मिट्टी के टीले थे ।

जिनके बीच में पतली दरारें बनी हुई थीं । दरारें इस तरह हुयीं कि आसमान से बरस रही गोलियों से सुरक्षा मिल सकती थी ।

मैं उन दरारों में दौड रही थी ।

अब हैलीकाॅप्टर से उन टीलों पर गोलियां बरसाती थीं । आँख-मिचौली का खेल चल रहा था ।

हैलीकाॅप्टर की आबाज कम होती जा रही थी । मैंने देखा, वह वापस लौट रहा था ।

अब पीछे से बूटों'की आवाज आनी बन्द हो चुकी थी । जाहिर था कि मैं सारे सैनिकों को ऊपर पहुचा चुकी थी ।

मैंने राहत की सांस ली और दरार से बाहर निकल आई । लम्बी भाग-दौड़ के कारण मैं थक चुकी थी । मैंने चारों तरफ निगाहें घुमाई ।

आसपास घनी नुकीली कांटेदार झाड्रियां फैली हुई थीं । मैं एक टीले से पीठ सटाकर बैठ गई और अपनी उखडी हुई सांसों पर कावू पाने लगी ।

35

सहसा ।।

भेरी छठी इन्दी ने मुझे खतरे का संकैत दिया ।

मैँ सतर्क हो उठी ।

पलक झपकते ही मेरे कान वायरलेस में तब्दील हो गये थे ।

मुझे ऐसा लगा जैसे कई लोग दबे पांव टीले की तरफ आ रहे हों । मैंने अंधेरे में आँखे फाड़-फाडकर देखा, किन्तु मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया था ।

तभी...मेरे दायीं तरफ से फायरिंग होने लगी थी ।

मैंने अपनी बगल में रखी गन उठाई और फायरिंग का जवाब देने लगी । वातावरण मैं कई इन्सानी चीखे गूंज उठी ।

खतरा एक बार फिर सिर पर आ गया था । अत' मैं उठकर सरपट भाग खडी हुई ।

पीछे से मुझ पर गोलियो, की बाढ़ छूटी ।

खतरा बढ गया था और मैंने आव देखा ना ताव एक तरफ झाडियों में जम्प लगा गई और उसके भीतर घुसती चली गई । करीबी झाडियों ने मुझे जगह-जगह से घायल कर दिया था मगऱ इतने पर भी मैं नहीं रुकी । फिर झाडियों से निकलकर मैँ ठिठकी, सामने खुली जगह थी ।

अब मेरी आखें काफी हद तक अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थीं ।

मैंने झाडियों की ओट-से उस तरफ़ देखा, जिधर से में वहां आई थी ।

मुझे चार साये: वहां नजर आये । वे चारों फौजियों के अलावा और कोई नहीं हो सकते थे ।

"वो इन झाडियों में ही घुसी है ।" एक चीखता स्वर उभरा ।

"करना क्या है?" दूसरा स्वर ।

"साली को गोलियों से छलनी कर डालो ।" पहले वाले का स्वर मेरे कानों से टकराया-बचकर नहीं जानी चाहिये।"

मैं मुस्कुराई ।

वे चारों बेमौत मरने यहीं चले आये थे । उन्हें क्या मालूम था … कि वे गोलियों से छलनी हो जाने वाले हैं ।

और फिर. .

इससे पहले कि वो अपने प्रोग्राम को अम्ली जामा पहना पाते मैंने गन सीधे करके उसका मुंह खोल दिया ।

" तड़. ...तड-- -रेट ...रेट !"

चारों होठों से हौलनाक चीख उगलते हुए कटे पेड की तरह गिरे ।



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shubhs
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by shubhs »

बढ़िया
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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