हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

मेरा समूचा वजूद गुदगुदाहट ते भर उठा था । मेरी सहन-शक्ति जवाब देती जा रहीं थी ।
"'अ. . . अब और मत तढ़पाओ जानेमन ।" हिलकाक के सब्र का प्याला छलक गया ।
मैं भी कुछ पाने के लिये बेताब हो उठी । एक क्षण गंवाये बगैर मैं पीठ के वल वेड पर लेट गई ।
मेरी तरफ से उसे हरी झण्डी मिल चुकी थी ।
हिलकाक मेरे मखमली जिस्म पर झुकता चला गया । अगले क्षण मेरे होठों से पीड़ा भरी कराह निकल गई ।
वो पीड़ा क्षणिक ही थी ।
मैंने उसे अपनी तरफ से सुविधा और सहयोग प्रदान क्रिया ।
फिर ।
खेल चल निकला ।
वो खेल, जिसे सिर्फ दो खिलाडी ही खेलते हैं और उनका मकसद एक ऐसी मंजिल तक पहुंचना होता है, जहाँ स्वर्ग का सा आनन्द प्राप्त होता है ।
खेल चलता रहा ।
हमारे जिस्म पसीने से भीग चुके थे । वह मेरे कानों के समीप फुसफुसाते हुए न जाने क्या-क्या कहे जा रहा था । किन्तु मुझे तो कुछ भी सुनने का होश नहीं था ।
हमारी गति तूफानी थी ।
बेडरूम का तापमान इतना बढ गया था कि वहां की एक-एक वस्तु पिघलती हुई-सी महसूस हो रहीँ थी ।
अचानक ।
खेल खत्म ।
अगले कई पलों तक मुझे अपने आप पर कावू नहीं रहा था । मैं स्वयं को स्वर्ग की सैर करती-सी महसूस करने लगी थी ।
उधर उसने भी मुझें जोरों से अपनी बाहों में भर लिया था और कांपकर शांत हो गया था ।
मैंने अपनी लम्बी टांग उसकी कमर के इर्द-गिर्द लपेट दी थीं ।
".अ . . अब तो दोस्ती पक्सी हो गई ।" मैंने उखड्री उखडी सांसों के बीच पूछा ।
". . . हां ।"
"अब मुझे एक बात बताओ दोस्त ।"
"पूछो ।" वह अपनी उखडी हुई सासो पर काबू करता बोला ।

"डगलस को किस जेल में रखा गया है ।" मैंने धमाका क्रिया ।

उसके जिस्म को जोरों का झटका लगा । मानो उसके सिर पर कोई शक्तिशाली ब्रम फोड दिया गया हो । वह अपने चेहरे पर समूचे संसार का आश्चर्य समेटे मुझे देखता रह गया ।

"क. . .कौन हो तुम?" एकाएक उसके होठों से निकला । मेरे सवाल ने हिलकाक की सारी मस्ती हवा कर दी थी ।।

"तुम्हारी एक दोस्त है" मैंने गहरी मुस्कान के साथ कहा ।

"बको मत ।" वह गुर्राया--'भुझे ये बताओ कि तुम हो कौन ?"

जवाब में मेरे चेहरे पऱ जहरीले भाव कुण्डली मारते चले गये ।

"जवाब दो ।" उसका लहजा पूर्ववत् था ।

"भारत में एक महत्वपूर्ण जासूसी संस्था हुआ करती है आई०एस०सी०, मैं उसकी नम्बर वन एजेन्ट हू।"

हिलकाक का चेहरा फक्क पढ़ गया ।

"क कहीं तुम रीमा भारती तो नहीं हो "उसके होठों से आश्चर्य भरा स्वर निकला ।

"यानि तुम मुझे जानते हो । मेरा नाम सुन चुके हो तुम?"

"हा, लेकिन तुमने मुझसे अपने बारे में झूठ क्यों बोला?"

"अगर मैं झूठ न बोलती तो तुम्हारे बेडरूम तक कैसे पहुंचती?" मैंने कहा-"यहां तक पहुंचने के लिये ही तो मुझे इतना नाटक करना पडा था, लेकिन तुम बेवकूफ़ किस्म के इन्सान निकले । मुझे हासिल करने के चक्कर में तुमने ये भी नहीं सोचा कि एक लड़की इतनी आसानी से तुम्हें अपना जिस्म सौंपने के लिये कैसे तैयार हो गई?"

उसके चेहरे के भाव तेजी से बदले । कदाचित् अब उसे अपनी भूल का अहसास हुआ था, लेकिन अब क्या फायदा था? तीर तो कमान से निकल चुका था ।

"तो तुम्हीं आर्मी की बैरक से फरार हुई थी !! हिलकाक ने सवाल किया ।

"तुमने ठीक कहा ।"

" ल. . . लेकिन तुम मुझसे डगलस के बारे में क्यों पूछ रही हो । उससे तुम्हारा क्या रिश्ता है?"

" डगन्नस मेरा हमपेशा है । वह आई०एस०स्री० का एजेन्ट है । उससे मेरा यहीँ रिश्ता हे ।" मैने कहा--- " और मैं उसी की तलाश में यहां हू। मुझे उसे उस अज्ञात जेल से छूडाना है, जहाँ उसे नजरवद करके रखा गया है ।"

मैंने एक और धमाका क्रिया ।

यदि हिलकाक की कमर से मेरी टांगें न जकड्री होती तो निश्चित रूप से वह उछल पड़ा होता । उसकी आँखे हैरत से कगारों तक फटती चली गई ।

"मुझें बताओ कि डगलस किस जेल में बन्द है?" मेने पुन: अपना सवाल क्रिया ।

"तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हें डगलस का पता वता दूगा?"

"अगर तुमने मुझसे दोस्ती की है तो बताना ही पडेगा दोस्त ।" एकाएक मेरा लहजा कठोर हो उठा ।

"तुम्हारी जबरदस्ती है क्या ?"

"जबरस्ती ही समझो ।"

वह खामोश रहा ।

मैंने उसके चेहरे का अध्ययन किया । मुझे लगा कि वह आसानी से मुंह खोलने वाला नहीं था ।

मैंने उसकी कमर पर अपनी टागों का शिकंजा कसना शुरू कर दिया ।

उसने मेरी टांगों की गिरफ्त से निकलने का प्रयास किया । किन्तु वह कामयाब नहीं हो सका । वो क्या जानता था कि मेरी टागे नही , लोहे के शिकंजे हैं । जिनकी गिरफ्त से निकलना इतना आसान नही ।

मैंने शिकंजा और कस दिया ।

उसका चेहरा पीडा से सुर्ख पड़ता चला गया । नि:सन्देह इस वक्त उसे अपनी हड्डियां टूटती हुई महसूस हो रही होगी ।

"छ. . .छोडो मुझे ।" जब उसका प्रयास विफल हो गया तो वह बिलबिला उठा ।

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

"जब तक तुम मेरे सवाल का जवाब नहीं दे दोगे, तव तक खातिरजमा रखो कि मेरे चगुल से नहीं निकल सकते हो ।" मैंने इत्मीनान से कहा---"मेरा नाम रीमा भारती है, जिसके पंजे में फंसा शिकार छटपटा तो सकता है, मगर अपना दम घुटने से पहले निकल नहीं सकता । अगर तुम जिन्दा रहना चाहते हो तो एक अच्छे दोस्त की तरह मेरे सवाल का जवाब दे दो, वरना तुम मेरी टांगों के शिकजे में कसते चले जाओगे और फिर इस दुनिया से रुख्सत होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी कैप्टन ।"

"त. . तुम जानती हो कि मैं कैप्टन हू ।" उसके होठो से हैरत भरा स्वर निकला ।

"अगर मैं तुम्हारे बारे में न जानती होती तो क्या मैं तुम्हारे सामने छत की तरफ मुँह करके पीठ के बल लेटकर झक मार रही थी? कम से कम मैं मजे लेने के लिये तो तुम्हारे साथ नहीं आई ।"

"तुम्हें मेरे बारे में किसने बताया?"

"ये जरूरी नहीं कि तुम्हारे हर सवाल का जवाब दिया जाये । बैसे भी तुम इस हालत में नहीं हो कि मुझसे कोई सबाल पुछ सको, अगर तुमने जल्दी नहीं बका तो मुझे तुम्हारी जान लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा ।"

"मेरी चिंता छोडो । तुम अपनी जिन्दगी के वारे में सोचो ।" उसने गिरगिट की तरह रंग बदला---"तुम यहाँ से जिन्दा बचकर वापस नहीं जाओगी ।"

"कौन मारेगा मुझें?"

"मैं मारूंगा ।"

"तुम मारोगे मुझे, जबकि खुद तुम्हारी जान तो मेरी मुट्ठी में है ।" मैं फुफकार उठी---" अब शुरु हो जाओ, वरना इस बात का लिहाज नहीं करूंगी कि अभी अभी तुमने मुझे स्वर्ग की सेर कराई है ।"

जवाब में उसने दोनों हाथों से मेरी सुराहीँदार गर्दन दबोच ली ।

मैं हढ़बड़ाकर रह गई ।

मुझे उम्मीद नहीं थी कि इस स्थिति में भी वह ऐसी हरकत कर सकेगा, मगर उसने कर दी थी । आखिर वो भी एक ट्रेन्ड फौजी था । मिलेट्री का कैप्टन था ।

हिलकाक की उगलियों मेरी गर्दन में धसने जाने लगी थीं । मेरा दम घुटने लगा । चेहरा सुर्ख पड़ता चला गया, आँखे कटोरिंयों से उबलने को तैयार हो गई । मैने अपनी फ़टी-फटी आंखों से देखा, उसका चेहरा अंगारा वना हुआ था । आँखों से मानो आग बरस रहीँ थी । जबडे कसे हुए थे । वह साक्षात् खून का प्यासा दरिन्दा नजर आ रहा था ।

मैं उनकी पीठ पर टांगों का शिकंजा कसती चली गई । ऐसा करने में मैंने अपनी पूरी ताकत खर्च कर दी थी । हमारे बीच खूनी सघर्ष चल रहा था । हर गुजरने वाला क्षण भयानक रुप अख्यियार करता जा रहा था । हम एक-दूसरे की जान लेने पर तुले हुए थे ।

शायद मैंने हिलकाक को कुछ कम करके आंक लिया था । मगर वो वडा ही जीवट वाला इन्सान निकला था वह एक मर्द था । जाहिर है जिस्मानी ताकत के मामले मैं मुझसे कुछ ज्यादा ही रहा होगा ।

उसके हाथों का दबाव मेरी गर्दन पर बढता जा रहा था । इस प्रयास में उसका चेहरा मेरे चेहरे के काफी करीब आ गया था ।

सहसा।।

मैं हरकत कर गई ।

मैंने अपनी नाखून-युक्त उगलियां सलाख की तरह उसकी आँखों में धुसेड़ दीं ।

वह पीड़ा से बिलबिला उठा ।

उसके हाथ मेरी गर्दन से हट गये ।

. . उसी क्षण ।

मैने अपना हाथ घुमा दिया ।

भडाक ।

मेरा जबरदस्त घूसा उसकी कनपटी पर पडा। वह हलाल होते बकरे की तरह चीख उठा ।

मैंने अपनी टांगों का शिकंजा और कस दिया । इसके बाद उसने अपने आपको सम्भाला और मेरे चेहरे पर ताबड़-तोड़ घेसे बरसाने लगा । परिणामस्वरूप उसकी पीठ पर मेरी टांगों का शिकंजा ढीला पड़ गया था और वह विजली को भी मात देने वाली गति से मेरी टागों के बीच से निकलकर स्प्रिग लगे खिलौने की तरह उछलकर खड़ा हो गया ।

हम कट्टर प्रतिद्धन्द्धियों की तरह एक-दूसरे के सामने थे । वह बाज की तरह मेरे ऊपर झपटा ।

परन्तु मैं तैयार थी । इससे पहले कि वह मुझे छू भी पाता, मैं हरकत कर गई थी । मेरा घुटना पूरे वेग के साथ उसकी जांघों के जोड पर पडा

और वह बुरी तरह से बिलविलाता हुआ दोनों हाथों से अपनी जांघों का जोड़ दबाये पीछे हटता चला गया था ।

"हरामजादी ! कूतिया ।" वह कठिनाई से किसी तरह कहने में कामयाब हुआ-" तूने क्या क्रिया?"

"वहीँ, जो तुम्हारे साथ क्रिया जाना चाहिये ।"

"याद रख, तूने एक आर्मी आफिसर पर हाथ उठाया है ।" वह दांत पीसता हुआ बोला---" ये तेरा इण्डिया नहीं है । यहां अपनी हरकत का भयानक परिणाम भुगतना होगा । "

उधर हिलकाक ने अपना वाक्य पूरा किया

इधर मै स्प्रिग लगे खिलौने की तरह उछली और मैंने दोनों पलाइग क्रिक उसके सीने पर जड दी ।

वह फुटबाल की तरह उछलकर पीछे दीवार से टकराया, फिर फर्श पर गिरा । उसके होठों से घुटी घुटी सी चीख निकल गई । गिरी मैं भी थी, लेक्रिन वेड पर और गिरते ही मैं उछलकर

खडी हो गई और फिर हाथ के हाथ हिलकाक पर जम्प लगा गई थी ।

हिलकाक बड़ा फुर्तीला निकला । पलक झपकते ही वह एक तरफ करवट बदल गया । फलस्वरूप मैं मुंह के वल फर्श पर गिरी । मैंने दोनों हथेलियाँ फर्श से टिका ली थी, अगर मैं ऐसा न करती तो मेरा चेहरा तीव्रता के साथ फर्श से टकराना था ।

गिरते ही मैं उठ खडी हुई । साथ ही मैंने अपनी लात उसके गुप्लांग पर जड़ दी । वह बिलबिला उठा । उसके चेहरे पर पीड़ा की असंख्य रेखायें खिंचती चली गई थीं ।

' 'दोस्ती करना आसान है हिलकाक ।" मैं मुस्कराई-"लेकिन दोस्ती निभाना मुश्किल है ।"

पलक झपकते ही वह उठा और तीर की तरह मुझसे टकराया । हम दोनों फर्श पर गिरे और गुत्थमगुत्था हो गये । कभी वह नीचे तो मैं ऊपर । कभी वह ऊपर तो मैं नीचे । जिसका भी दाव लगता वहीँ दूसरे के चेहरे पर घूसें बरसाने लगता था ।

मगर मुझे ये कबूल करने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं कि इस वक्त हिलकाक मुझ पर लगातार हावी होता जा रहा था ।

मुझे उम्मीद थी कि मैं उसे आसानी से कावू में कर लूंगी, लेकिन उसने मुझे अहसास करां दिया था । शक्ति और फुर्ती के मामलेमें वह मुझसे उन्नीस-बीस ही है । "

मैंने अपना मौका ताड़ा और उसकी कनपटी की एक विशेष नस दूसरी नस पर चढा दी । अगले क्षण वह फर्श पर पड़ा मछली की तरह छटपटा रहा था । उसके होठों से मर्मातक चीखे उबल रही थीं । वास्तव में ये मेरा अपने जापानी ट्रेनर द्वारा सीखा एक चिर-परिचित विशिष्ट दाव था । किसी को टॉर्चर करने का अनोखा तरीका । जिसे मैंने जब भी किसी पर आजमाया था, ये दाव खाली नहीं गया था ।

""य. . .ये तुमने क्या किया?" वह बिलबिलाता हुआ चीखा-"मुझें बचाओ, वरना मैं दर्द से मर जाऊंगा ।"

मैं उठकर खडी हो चुकी थी और दिलचस्प निगाहों से उसे तड़पता हुआ देख रही थी ।

"अ. . .भगबान के लिये मुझ पर रहम खाओ।" वह पुन: बिलबिलाता हुआ चीखा-"मेरी जान निकली जा रही है । मुझे इस नारकीय वेदना से छूटकारा दिलाओ ।"

"तुम्हें इस वेदना से एक ही शर्त पर छुटकारा मिल सकता हिलकाक ।" मैंने कहा-"अगर तुम मुझे डगलस का पता बता दो।"

"मा . .मै डगलस का पता नहीं जानता ।"

"बक्रो मत ।" मैं गुर्रा उठी---"मूर्ख समझते हो मुझे जो तुम्हारे इतना कह देने से मैं तुम्हारी बात पर विश्वास कर लूंगी । अगर तुम जिन्दा रहना चाहते हो तो तुम्हें सच उगलना ही होगा ।"

"मेरी बात का यकीन करो । मैंने तुम्हें सच ही बताया है ।"

"फिर तो तुम इसी तरह दर्द से तढ़प-तड़पकर मर जाओगे ।" मैं बोली---" और तुम्हें कोई नहीं बचा पायेगा? अपनी मौत तय समझो कैप्टन !"

"मै अपने गाॅड की कसम खाकर कहता हूं मिस रीमा ।" उसने आर्तनाद-सा क्रिया--"मुझे वाकई नहीं मालूम कि डगलस को कौन सी जैल मे रखा गया है?"

मैंने गौर से उसका चेहरा देखा । वह मुझे सच बोलता लगा था । वैसे भी मैंने उसके साथ जो हरकत की थी, उसकी वजह से तो बड़े से बड़े जिगर वाला इन्सग्न भी अपना मुंह खोलने पर मजबूर हो जाता है, क्योंकि ये पीडा इन्सान के लिये असहनीय होती है ।

"तो तुम नहीं जानते हिलकाक ।" मैंने उसके चेहरे पर निगाहे टिकाते हुए पूछा ।

"न. . . नहीं ।"

"फिर मुझे डगलस के बारे में कौन बता सकता है?" मैंने सवाल किया ।

"त. . .तुम्हें उसका पता विल्सन से मालूम हो सकता है ।"

"कौन विल्सन !"

"वो आर्मी का मेजर है ।"

"वो मुझे कहाँ मिलेगा?"

हिलकाक ने बडी शराफत से एक पता बता दिया ।

"किसी और का नाम बताओ, जो मुझे इस बारे में जानकारी दे सकता हो ।"

" मैं नहीं जानता ।"

"आर्मी को मेरी असलियत के बारे में मालूम है !"

" नही ।" उसने शराफत के साथ उत्तर दिया ---" वो अवश्य समझ चुकी है कि कोई जासूस हो ।"

तदपुरान्त मैंने हिलकाक से अपने मतलब की जो भी बात पूछी, वह मुझें बताता चला गया ।

अब सवाल इस बात का था कि मैं हिलकाक का क्या करू?
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

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मुझे उसकी जुबान हमेशा के लिये बन्द कर देने के अलावा और कोई रास्ता नजर नहीं आया था । क्योंकि वह मेरी असलियत जान चुका था और मेरे लिये खतरनाक साबित हो सकता था । न जाने मुझे अपने मिशन में कितना वक्त लगना था । अब तो कदम कदम पर मेरा पाला सैनियों और सेना के ऑफिसरों से ही पड़ना था ।

"अ. . . अब तो मुझें इस वेदना से छुटकारा दिला दो ।" वह विलाप करता हुआ वोला-"मैं तुम्हारे सभी सवालों का जवाब दे चुका हूं।"

"उठो ।" मैं बोली ।

वह पीड़ा से निजात पाने के लिये उछलकर खड़ा हो गया ।

हिलकाक मेरे लिये बेकार था ।

बिजली की गति से मेरा हाथ हरकत में आया और मैंने अपनी खडी हथेली का वार उसकी गले पर कर दिया ।

अचूक वार ।

कडाक्

हिलकाक की गर्दन को हड्डी टूट गई ।

मेरा एक ही वार उसकी जान लेने के लिये पर्याप्त रहा था । वह होठों से ही-धुटी घुटी चीख उगलता हुआ मुंह के बल कालीन पर गिरा और स्थिर हो गया ।

मैंने झुककर उसे हिला-डुलाकर देखा ।

वह मौत की लम्बी नींद सो चुका था ।

मैंने जल्दी जल्दी कपड़े पहने और हिलकाक की लाश को उसी अवस्था में छोडकर दरवाजे की तरफ बढ़ गई ।

अब मेरा शिकार विल्सन था ।

किन्तु अभी मैं बेडरूम का दरवाजा भी पार नहीं कर पाई थी कि एकाएक बाहर से भारी बूटों का स्वर मेरे कानों से टकराया।

मैं चौकी ।

खतरा ।

ये शब्द किसी धन की तरह मेरे जेहन से टकराया था ।

मेरे पैरों में ब्रेक लग गये ।

बूटो की आवाज करीब आती जा रही थी ।

बेडरूम मैं कोई खिडकी इत्यादि भी नहीं थी, जिससे बाहर निकला जा सकता ।

पलक झपकते ही मैं खुले दरवाजे के एक पल्ले के पीछे दीदार से पीठ सटाकर खडी हो गई और दम साधे आने वालों का'इन्तजार करने लगी ।

आगन्तुक तीन सैनिक थे । तीनों के कन्धों पर रायफलें लटकी हुई थीं । अभी-अभी तीनों किसी एक्सप्रेस ट्रेन की तरह धढ़घड़ाते हुए भीतर दाखिल हुए थे । "

तीनों की पीठ मेरी तरफ थीं ।

"हे भगवान !! मैं मन ही मन कह उठी…"ये सैनिक भी कैसे लोग हैं? जो हर जगह मेरे इर्द-गिर्द किसी भूत की तरह प्रकट हो जाते हैं ।"

'"अ. . . अरे !" जो सबसे आगे था । उसके होठों से हैरत भरा स्वर निकला.."कैप्टन साहब तो नंगे फर्श पर पड़े हुए हैं । इन्हें क्या हुआ ?"

उन दोनों की निगाहें भी हिलकाक पर पड़ चुकी थी ।

"एक लडकी कैप्टन साहब के साथ उनकी कार मे आई थी ।" एक पल बाद दूसरा सैनिक बोल उठा ----" कैप्टन को देखो । मुझे तो कोई गडबड लगती है ।"

पहले वाले ने झपटकर हिलकाक का मुआयना किया ।

इधर मैं दम साधे दवे कदमों पल्ले के पीछे से निकलकर दरबाजे की तरफ बढी ।

"क. . .कैंप्टन साहब. . . ।"

"क्या हुआ कैप्टन साहब को?"

"ही इज नो मोर ।"

" व. . . व्हाॅट ।।"

"मैं सच कह रहा हूं।"

मैं कनखियों से उन्हें देखती हुई आगे बढ रही थी।

"का ..कैप्टन साहब को किसने मारा ।"

तभी पहले वाला दरवाजे की तरफ घूम गया ।

"हाल्ट ।" उसके होठों से गुर्राहट निकली ।

मैं फ्रिज होकर रह गई ।

"अगर एक कदम भी आगे बढाया तो भूनंकर

रख दी जाओगी ।"

पलक झपकते ही शेष दोनों सैनिक भी एडियों पर मेरी तरफ़ घूम गये थे । उनकी आखे हैरत से यूं फट पडी थी, मानो अभी उबलकर ' बाहर आ गिरेगी । तीनों सैनिकों के चेहरे देखते ही मैं भी झटका खाये बगैर नहीं रह सकी थी । उनमें से एक आर्थर था ।

"य .ये तो वही लडकी है ।" दूसरा सैनिक बोला "जो कैप्टन साहब के साथ कार में आई थी ।"

" हां ।" पहले ने कहा---"ये यहां से निकलकर भागने की फिराक में थी । अगर मेरी निगाहें इस पर न पड़ती तो ये भाग चुकी होती । मुझे तो लगता है कि इसी ने हिलकाक साहब की हत्या की है ।"

मेरा दिल जोरों से धडक उठा ।

"'काई गलत हरकत करने की कोशिश मत करना, बर्ना बेमौत मारी जाओगी । दूसरा चेतावनी भरे स्वर में बोला…"बाहर भी हमारे साथी मौजूद हैं ।"

मैं खामोश रही ।

वे सैनिक जरूरत से ज्यादा सतर्क नजर आ रहे थे । मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि वे वहाँ विन बुलाये मेहमान की तरह आ टपकेंगे । बहरहाल में फस चुकी थी ।

"कौन हो तुम ?" सहसा दूसरा गुर्रा उठा ।

प्रत्युत्तर में ऐसा चेहरा बना लिया जैसे जवाब देते हुए मेरा हार्टफेल हुआ जा रहा हो ।

"तुम वही लड़की हो न?" आर्थर फर्श रौंदता हुआ-सा मेरे करीब पहुचा ।

"क.. .कौन-सी लडकी?" मैंने भोलेपन से पूछा ।

"वहीँ, जो पिछली रात आर्मी बैरक से भागी थी ।" हालांकि चेहरा और हुलिया पूरी तरह बदला हुआ था परन्तु फिर भी पता नहीं उस पट्ठे को मेरे ऊपर कैसे शक होगया था?

" तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हो गई है ।" मैंने उत्तर दिया---" आज तक आर्मी एरिया देखा तक नहीं है । तुम वहां की बैरक से भागने की बात कर रहे हो?"

आर्थर ने गोर से मेरा चेहरा देखा, किन्तु उसे मेरे चेहरे पर ऐसा कुछ नजर नहीं आया होगा, जिससे वह मुझ पर रत्ती भर भी शक कर सके ।

"फिर कौन हो तुम ?" आर्थर ने पूछा ।

इस बीच दोनों सैनिकों की रायफलें न सिर्फ कन्धों से उतरकर उनके हाथों में आ गई थीं, बल्कि मेरे उपर तन भी चुकी थी ।

"मेरा नाम डिलेला है ।" मैंने जवाब दिया ।

"कौन डिलेला?"

"बको मत ।"

"मैं बक नहीं रही, हकीकत बयान कर रही हू।"

" अगर तुम कैप्टन साहब की प्रेमिका हो तो तुमने इनकी हत्या क्यों की है?"

"ह. . .हत्या!" मैंने हड़बड़ाने का जबरदस्त अभिनय क्रिया-" भला मैं अपने आशिक की हत्या क्यों करूंगी? दरअसल हुआ ये कि प्यार करने के बाद अचानक तुम्हारे कैप्टन साहब का सिर चकराया और धड़ाम से फर्श पर गिर पडे । मैं घबरा उठी थी । मैं समझ नहीं पाई कि एकाएक हिलकाक को क्या हो गया है । जरा सोचो, अगर में इनकी हत्या करती तो लाश पर हत्या करने का कोई चिन्ह तो दिलाई देता?"

"फिर तुम छिपकर भाग क्यों रही थी?" दूसरे सैनिक ने सवाल दागा ।

"पागल हौ तुम ! मैं भला क्यों भागूंगी?" मैंने कहा--"हिलकाक को गिरते देखकर कुछ देर के लिये मेरा दिमाग अवश्य कुन्द होकर रह गया था । मैं तो डॉक्टर को बुलाने का इरादा लेकर दरवाजे की तरफ झपटी थी । अचानक मुझे बूटों की आबाज सुनाई दीं थी । मैं समझी पता नहीं कौन हे? इस समय देश के हालात वैसे ही खराब हैं । अत्त: मैं घबराकर दरवाजे के पल्ले के पीछे छिप गई थी ।"

" तुम कहानी अच्छी गढ लेती हो ।" आर्थर बोला । .

" सच्चाई बयान कर रही हूं और तुम इसे कहानी बता रहे हो । भला मुझे कहानी गढने की क्या जरूरत है?"

"ताकि हम तुम्हारे उपर शक न कर सकें । ऐसी कहानी गढने में माहिर हो । ऐसी ही कहानी तुमने कमाण्डर को गढ़का सुनाई थी । मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम वहीँ लड़की हो ।"

मेरे जेहन को हजार वाट का जबरदस्त झटका लगा ।

"इसे हैड़बवार्टर ले चलो ।" आर्थर अपने साथियों को सम्बोधित करके आदेश पूर्व लहजे में बोला---" इससे सच उगलवाया जायेगा ।"

मैं एक बार फिर फंस चुकी थी ।
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"चलो ।" दोनो सैनिकों रायफल की नाल के बल पर मुझे दरवाजे की तरफ धकेला ।

"मेरे पास उनका आदेश मानने के अलावा दूसरा कोई चारा न था ।

वे मुझें हिलकाक के आवास से बाहर ले आये ।

वहां पहले ही एक जीप खडी थी । उसकी ड्राइविंग सीट पर एक सैनिक मोजूद था ।

"जीप में बैठो ।" आर्थर ने हुक्म दनदनाया ।

मै जीप के पिछले हिस्से में सवार हो गई।

मेरे पीछे-पीछे तीनों सैनिक भी जीप में बैठ गये थे ।

" चलो मैलेट ।" आर्थर ने ड्राइविग सीट पर मौजूद सैनिक को आदेश दिया ।

जीप चल पडी ।

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======

======

अचानक जीप के ब्रेक चीख उठे । ब्रेक इतनी ताकत से लगाये गये थे कि मैं उछलकर सामने वाली सीट पर बैठे आर्थर से टकराते-टकराते बची थी ।

जीप सडक पर जाम होकर रह गई थी ।

सैनिक हड़वड़ाकर रह गये ।

" क्या बात है मैलेट?" आर्थर ने ड्राइविंग सीट की तरफ गर्दन मोड़कर पूछा…"जीप क्यों रोक दी?"

"सडक के बीचों-बीच एक आदमी औंधे मुंह पड़ा हुआ है ।" उसने उत्तर दिया-"एक्सीडेन्ट हुआ लगता है ।"

"ओह ।"

"अब क्या क्रिया जाये?"

"हम लोग देखते हैं ।" आर्थर ने कहा और उन् सैनिकों में से एक को सम्बोधित करके बोला----"आओ मेरे साथ ।"

कहने के साथ ही आर्थर और सैनिक जीप से नीचे कूद गये और मेरी नजरों के सामने से गायब हो गये ।

अब जीप के पिछले हिस्से में एक सैनिक रह गया था ।

जिस जगह जीप खडी थी । वह शहर का बाहरी इलाका था । चारों तरफ सन्नाटा फैला हुआ था। हवा की सांय-सांय वातावरण में अजीब-सा डरावनापन उत्पन्न कर रहीँ थी ।

एकाएक मेरा मस्तिष्क तेजी से कार्य करने लगा था ।

इस वक्त मेरे पास शानदार मौका था । मैं थोड्री सी कोशिश करके उन सैनिकों के चंगुल से निकल भाग सकती थी ।

बहरहाल रिस्क तो था ही ।


और मैं रिस्क लेने का फैसलों कर चुकी थी । वस हिम्मत और हौंसले की जरूरत थी । मेरे मेहरबान दोस्त जानते ही हैं कि आपके सपनों की रानी में हिम्मत और हौंसले की कोई कमी नहीं है ।

मैंने अपनी बगल में बैठे सैनिक की तरफ कनखियों से देखा, वह मुझे जरूरत से ज्यादा सतर्क लगा ।

सड़क के दायी तरफ घने पेडों का झुरमुट था । अगर मैं सही-सलामत वहीं तक पहुंच जाती तो बाजी मेरे हाथ में होनी थी । मुझे आर्थर और उसके साथी के वापिस लोटने से पहले ही इस जीप से किनारा कर लेना था ।

किन्तु इससे पहले कि मैं कोई हरकत कर पाती ।

सहसा!

'धड़ामू . .!'

जीप के करीब एक जबरदस्त विस्फोट हुआ ।

पलक झपकते ही जीप के चारों तरफ़ धुएं का पहाड-सा खडा होता चला गया । उस धुएं में कुछ भी देख पाना कठिन था । यहां तक कि मैं अपनी बगल में बैठे सैनिक का चेहरा भी नहीं देख पा रही थी ।

इससे सुनहरी मौका भला और क्या हो सकता था ।

एक क्षण भी व्यर्थ किये बगैर में जीप से नीचे कूदी ओर पेडों की झुरमुट को तरफ सरपट दौड़ पडी ।

"अरे! वो लडकी जीप से कूद कर भाग रही है आर्थर ।" वातावरण में किसी के चीखने का स्वर गूँज उठा । जाहिर है कि चीखने वाला वही सैनिक था, जो मेरी बगल में बैठा हुआ था ।

"वो बचकर नहीं जानी चाहिये ।" स्वर आर्थर का था--"उसका पीछा करों ।"

'तढ़. . .तढ़...रेट. . ,रेट.. . ।'

वातावरण में गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजी ।

"घड़ान् . . !"

अभी गोलियों को तड़तड़ाहट का स्वर खत्म भी नहीं हुआ था कि एक और विस्फोट हुआ था ।

मैं हैरत में थी । मैं गोलियां चलने और विस्फोटों का रहस्य नहीं समझ पा रहीँ थी । मैं तो वस अन्धा धुन्ध भागे जा रहीं थी ।

इस बार तीसरा विस्फोट हुआ । वो विस्फोट इतना जबरदस्त था कि मैं अपना बैलेंस नहीं बनाये रख सकी थी और मुंह के बल नीचे गिरी थी । मेरा सिर भड़ाक् से तेज अन्दाज के साथ किसी पत्थर टकराया था ।

मैंने गर्दन मोढ़कर सड़क की तरफ देखा तो आग के शोलों के बीच जीप के परखच्चे उडते नजर आये । अगले क्षण मेरी आंखों के समक्ष अंधेरे की सपाट चादर खिंचती चली गई । उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं रह गया था । मैं बेहोश हो चुकी थी ।।

=====

=====

मेरी बेहोशी टूटी ।

मैंने पटू से आँखे खोल दी । इस वक्त मैं एक शानदार सजै-संवरे कमरे में एक आराम देह दीवान पर लेटी हुई थी । कमरा प्रकाश से जगमगा रहा थे । उसका इकलौता दरवाजा बन्द था । वहां मुझे किसी इन्सान के दर्शन नहीं हुए थे ।

मैं आजाद थी ।

मुझें वे क्षण याद आते चले गये के जब मैं बेहोश हुई थी । अभी भी मैं उन विस्फोटों का रहस्य नहीं समझ पाई थी । मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं उन सैनिकों की गिरफ्त से आजाद हो चुकी हूँ । उस वक्त हुए धमाके से फैला धुआं मेरे लिये वरदान साबित हुआ था, जिसकी वजह से मैं जीप से कूदकर निकल भागने में कामयाब हो सकी थी । लेकिन इस वक्त मेरे जेहन में एक ही सवाल चकराये जा रहा था कि मैं कहां हूं और मुझे यहां कौन लाया है ? सहसा कमरे का दरवाजा खुला ।

दूसरे क्षण ।

जिस शख्स ने भीतर कदम रखा । उसे देखकर मेरी खोपडी अंतरिक्ष में उड़ने लगी ।

आरान्तुक क्लाइव था । सर एडलॉफ के समर्थकों का मुखिया ।

"त. तुम ।" मेरे होठों से हैरत भरा स्वर निकल गया । प्रत्युत्तर मैं क्लाइव मुस्कुराकर रह गया ।

"मुझें यहाँ कौन लाया है?" मैंने उत्सुकता भरे स्वर में सवाल किया ।

"मैं आपको यहां लाया हूं।" वह दीवान के करीब पहुंचकर बोला ।

"तुम ?"

"हा ।" उसने उत्तर दिया---" उस वक्त सडक पर जो कुछ भी हुआ वो मेरा ही किया-धरा है । आपको सैनिकों के चंगुल से आजाद कराने का यही एक रास्ता था ।"

"लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि मैं सैनिकों के चंगुल में फंस चुकी हूं।" मैंने उठकर बैठते हुए पूछा ।

"यहां से निकलने के बाद आप हर पल मेरी निगरानी में रही हैं । मुझे शक था कि आप पर खतरा आ सकता है । इसलिये मैं अपने आदमियों के साथ साये की तरह आपके पीछे लगा रहा । अगर वो सैनिक आपको अपने साथ ले जाने में सफल हो जाते तो मेरे सामने बडी कठिनाई आ जाती ।"

"उन सैनिकों का क्या हुआ?"

"सैनिकों का वहीँ हुआ, जो होना चाहिये था । हमने उन्हैं जीप सहित उडा दिया, लेकिन आप सैनिकों के चंगुल में कैसे फंस गई?"

"उन सैनिकों ने मुझे हिलकाक के साथ उसकी कार में आते हुए देख लिया था । न जाने कैसे उन्हें मेरे ऊपर शक हो गया । मैं हिलकाक के बेडरूम से निकल ही रहीं थी कि उन्होंने मुझे अपने कब्जे में कर लिया । उनमें एक आर्थर नाम का सैनिक भी था, जो मुझे आर्मी एरिया में मिला था । वो पट्ठा पता नहीं कैसे कूद कर इस नतीजे पर पहुच गया कि मैं वही लड़की हूं जो सैनिक बैरक से निकल भागी थी ।"

" ओह ।"

"मेरी असेलियत जानने के लिये वे मुझे सैना के हेडक्वार्टर ले जा रहे थे । अगर तुम वक्त पर पहुंचकर मेरी मदद न करते तो शायद इस समय मैं वहीं होती ।"

"कैप्टन हिलकाक ने डगलस के बारे में क्या बताया?"
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »


"तुम्हारी इन्कार्मेंशन गलत निकली क्लाइव । हिलकाक को मालूम नहीं है कि डगलस को किस गुप्त जेल में नजरबंद करके रख गया है ।"

"व. . .व्हाट?"

"ये सच है ।"

"ऐसा आपको कैप्टन हिलकाक ने बताया ।"

"और कौन बतायेगा?"

"वो हरामजादा झूठ भी तो बोलता हो-सकत्ता है ।"

"मैं एक जासूस हू क्लाइव । मैं सामने वाले का चेहरा देखकर बता सकती हूं कि वो सच बोल रहा है अथवा झूठ और मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि हिलकाक ने झूठ नहीं बोला था ।"

क्लाइव का चेहरा बुझ गया-" यानि आपका इतना खतरा उठाकर हिलकाक के पास जाना बेकार साबित हुआ । वो अहम् खबर आपको नहीं मिल पाई, जो हमें कामयाबी के, शिखर तक पहुचा सकती थी ।"

"मैं ये भी नहीं कह सकती कि मेरा हिलकाक के पास जान बेकार साबित हुआ है ।"

"म. मतलब ।" वह चौंका ।

"मतलब ये कि हिलकाक ने मुझे एक महत्वपूर्ण जानकारी दी है कि डगलस के बारे में विल्सन बता सकता है ।"

क्लाइव का चेहरा जिस तेजी से बुझा था । उसी तेजी से चमक उठा । उसका स्वर उत्सुकता से भर उठा… "कोन विल्सन ।"

"विल्सन सेना में मेजर है ।"

"विल्सन का पता-ठिकाना?"

मैंने क्लाइव को विल्सन का वो पता-टिकाना बता दिया, जो मुझे हिलकाक ने बताया था । अन्त में बोली-' "वो जगह कहां पड़ेगी, जहा विल्सन मिलेगा ।"

क्लाइव ने मुझे वो जगह समझा दी, फिर बोला-----" मगर उस इलाके में अधिकांश सैनिक अधिकारी रहते हैं ।"

" हूं ।"

"लेकिन आपने हिलकाक का क्या किया?"

"मैंने उसका वहीं किया, जो एक दुश्मन का करना चाहिये था । मैंने उसकी हत्या कर दी, अगर मैं उसे जिन्दा छोड़ देती तो वो हमारे लिये खतरनाक साबित हो सकता था ।" मैंने बताया ।

"ये तो आपने अच्छा किया, लेकिन उसकी हत्या आपके लिये सिरदर्द वन जायेगी । हिलकाक की हत्या की खबर फैलते ही सेना पागल हो उठेगी । वे लोग आपको पकड़ने के लिये ऐडी-चोटी का जोर लगा देंगे ।"

"सैना तो पहले ही मेरी तलाश जोर शोर से कर रही है । इस बात से मुझें कोई फ़र्क नहीं पड़ता ।"

"भले ही फर्क न पडता हैं, लेकिन सेना के आला दिमाग लोग तो सतर्क हो जायेंगे । वो फौरन अन्दाजा लगा लेंगे कि हिलकाक की हत्या किसी खास मकसद से की गई है. . . और विल्सन तो और भी ज्यादा सतर्क हो जायेगा । अगर उन लोगों के दिमाग में ये बात आ गई कि आपका मकसद डगलस को छुडाना है तो वो उसके चारों तरफ सुरक्षा की ऐसी मजबूत दीवार खडी कर देगे कि उसे तोड़कर . आपका डगलस तक पहुंचना लगभग असम्भव हो जायेगा ।"

"डोंट वरी ।" मैंने लापरवाही से कन्धे झटके--,"नम्बर एक तो ये बात उनके दिमाग में आयेगी ही नहीं, उन्हें कोई ख्वाब नहीं चमकने वाला और अगर आ भी गई तो सुरक्षा की ऐसी दीवारों को ध्वस्त करना भी मुझे बाखूंबी आता है !"

क्लाइव ने चुप्पी साध ली ।

उसने अपनी जेव से सिगरेट का पैकेट निकाला और अपने लिये सिगरेट लगा ली । उसे देखकर मुझे याद आया कि मुझे भी सिगरेट होठों लगाये घण्टों गुजर चुके थे ।

"एक सिगरेट मुझे भी दो !" कहा मैंने ।

क्लाइव ने पैकेट से एक सिगरेट निकालकर मुझे थमा दी ।

मैंने सिगरेट होठों के बीच दबा ली । क्लाइव ने उसे सुलगा भी दिया ।

" अब ये बताओ कि आपका अगला कदम क्या होगा?" क्लाइव ने गहरा कश लेकर ढेर सारा धुंआ उगल दिया ।

"हिलकाक ने विल्सन के बारे में मुझे बताया है कि वह बहुत सतर्क रहने वाला शख्स है ।" मैं बोली-"मगर फिर भी मुझे यकीन है कि मैं उसका मुंह खुलवाने में कामयाब हो जाऊंगी । बस मेरे उस तक पहुंचने की देर . !"

"कब निकलने का प्रोग्राम है?"

"कल दिन में किसी भी वक्त?“

क्लाइव ने मेरी तरफ इस अन्दाज से देखा, जैसे उसे मेरे दिमाग के हिल जाने का अंदेशा हो?

"मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो क्लाइव ?"

"आप सब कुछ जानते हुए भी जानबूझ कर खतरे को न्यौता दे रही हो । सेना आपकी शहर के चप्पे-चप्पे पर तलाश कर रही है । वो आपकी जान के पीछे पडी हुई है । फिर भी आप दिन में जाने की बात कर रही हैं । मैं आपकी बात से सहमत नहीं हू, दिन में यहा से बाहर निकलना आत्महत्या करने जैसा काम होगा रीमा जी । मेरे ख्याल से आपका रात के वक्त निकलना ही उचित होगा ।"

"क्या सारा दिन मैं यहां हाथ-पर-हाथ रखे बैठी रहूं ?"

"इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है । विल्सन कोई मामूली आदमी नहीं है । सेना का मेजर है । उसकी सुरक्षा के लिये वहां सैनिक भी होगे । क्या वो आपको देखते ही गोलियों से नहीं भून डालेंगे?"

"अगर ऐसी वात है तो ठीक है, लेकिन रात के वक्त आप अपने बचाव में वहुत कुछ कर सकती हैं, जो दिन के उजाले में नहीं कर सकतीं । रात के वक्त आपके बचकर भाग निकलने के भी ज्यादा चांसेज हैं । मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आप दिन के वक्त यहां से बाहर भी निकले । आपका रात के वक्त जाना ही बेहतर होगा ।"

क्लाइव की बात में वजन था ।

मैं समझ चुकी थी कि क्लइइव मुझें दिन के वक्त बाहर नहीं निकलने देगा । अत: मैंने इससे ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा था ।

"औ०के ।" मैं कश लेकर बोली ।

"अगर आप चाहें तो मैं आपके साथ चल सकता हू क्योंकि एक से दो भले होते हैं ।"

"तुम्हारा मेरे साथ चलना ठीक नहीं होगा, अगर कोई खतरा आ गया तो अपने साथ साथ मुझें तुम्हारी हिफाजत भी करनी पडेगी ।

इस स्थिति में हम दोनों मुसीबत में फंस जायेगे ।"

"आपकी मर्जी ।" वह बोला" "मेरे लिये कोई आदेश हो तो बताइये।"

" अगर कोई आदेश होगा तो अवश्य वताऊंगी ।" मैंने सिगरेट का आखिरी कश लेकर उसे फर्श पर उछालते हुए कहा…" 'फिलहाल तो मैं सोना चाहती हू।"

"ओ०के० ।"

कहने के साथ ही क्लाइव चला गया । मैंने नीचे उतरकर दरवाजा बन्द किया, फिर लाईट आँफ करके दीवान पर लेटकर आंखें बन्द कर लीं । न जाने कब नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया था । मुझे पता ही नहीं चला था ।

=====

=====

मैंने बाउण्ड्री वाल पर बैठकर सतर्कता भरी निगाहें भीतर डाली ।

उधर घुप्प अंधेरा था । पूरा लॉन सूना पडा था । फूलों वाले पौधों के अलावा वहाँ मुझे कुछ नजर नहीं आया था । आसपास कोई खतरा मौजूद नहीं था ।

बाउण्ड्री वॉल ज्यादा ऊंची नहीं थी । अत: संतुष्ट होकर मैंने हाथों से बाल थामकर अपने पैर नीचे लटका दिये । अगले क्षण मेरे पैर कच्ची जमीन को छू रहे थे । मैं बाउण्ड्री वॉल छोड़कर घूमी ।

सन्नाटा पूर्ववत् था । पता नहीं क्यों दो सन्नाटा मुझे वहुत रहस्यमय-सा प्रतीत हो

रहा था । मगर किसी बात की परवाह न करते हुए मैं दबे पांव सामने बरामदे की तरफ बढती चली गई ।

मैंने रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले लिया था । ये रिवाल्वर मैंने क्लाइव से लिया था ।

मेहरबान दोस्तों को बता दूं कि इस वक्त मैं विल्सन के बंगले पर थी । यहां पहुंचते ही सबसे प।ले मैंने बंगले के मुख्य प्रवेश द्वार आयरन गेट का रुख क्रिया था । इस समय वह बन्द था और यहां मुझे कोई नजर नहीं आया था, लेकिन मैंने आयरन गेट से भीतर प्रवेश करना उचित नहीं समझा था ।

अतः मैंने बाउण्ड्री वॉल का रुख किया था ।

मुझे हल्का सा आश्चर्य अवश्य था । इस वक्त मैं सेना के एक मेजर के आवास पर थी और यहां अभी तक एक चूहे से भी मेरा सामना नहीं हुआ था । यहां किसी भी तरह की सुरक्षा-व्यवस्था तक नजर नहीं आ रही थी, जबकि होना तो ये चाहिये था कि अब तक मेरे स्वागत में दर्जन भर सेनिक मेरे सामने होते । या सहसा मेरे जेहन में एक विचार तेजी से चकराता चला गया कि कहीं कैप्टन हिलकाक ने मुझे विल्सन के बंगले की जगह किसी दूसरी जगह तो नहीं भेज दिया है ।

फिर कुछ सोचकर मैंने इस विचार को अपने दिमाग से झटक था ।

मैं बरामदे में पहुची। यहां भी अंधेरा सन्नाटे के साथ मिलकर पांव पसारे था । अब तक मेरी आँखे यहां फैले अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थीं ।

सामने प्रवेश द्वार था ।

मैं उस तरफ बढी ।

किन्तु उसी क्षण सहसा मैं तीव्र प्रकाश से नहा उठी । एकाएक बरामदे की सारी बत्तियां जल उठी थीं । मेरे पांव जहाँ के तहाँ चिपककर रह गये ।

साथ ही मैंने चौंककर तीव्रता से चारों तरफ नजरें घुमाई और पाया कि मैं चारों तरफ से धिर चुकी थी । इस समय लगभग आधा दर्जन रायफलों की नाले मेरे ऊपर तनी हुई थीं और वे रायफलें जो लोग सम्भाले थे, वे सभी सैनिक थे । एक सेनिक पर नजर पडते ही मुझे जोरों का झटका लगा ।

यह आर्थर था ।

जाहिर है कि यह उस जीप हादसे से बच निकलने में कामयाब होगया था।

मेरी सारी सतर्कता धरी रह गई थी ।

फिर अभी मैं ठीक से सम्भल भी नहीं पाई थी कि अचानक एक भयानक कहकहा पिघले हुए सीसे की तरह मेरे कानों में उतरता चला गया ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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