हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

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उनके जिन्दा बचने का सवाल भी नहीं था ! वे सीधे ऊपर रवाना हो गये होंगे । मैंने राहत का सांस ली और भाग खडी हुई ।

शहर अभी दूर था । फिलहाल खतरा टल चुका था ।

भागते भागते मैं सडक पर पहुची । मुझे सड़क के किनारे एक वर्कशॉप नजर आई । उसके बाहर दो कारें, एक जीप और एक मोटरसाईक्रिल खडी थी ।

मैंने मोटरसाईकिल चुराने का इरादा कर लिया । क्योकि इस वक्त मुझे कोई टैक्सी इत्यादि मिलने वाली नहीं थी ।

गन मेरे लिये खतरनाक हो सकती थी । इसलिये पहले मैंने गन से छुटकारा पाया और चारों तरफ सतर्क निगाहें घुमाई ।मुझे आस पास किसी तरह का खतरा नजर नहीं आया था ।

चारों तरफ सन्नाटा था ।

एक आदमी वर्कशॉप के बाहर तख्त पर सोया पड़ा था । उसके खरटिं वातावरण में गूंज रहे थे ।

परिस्थिति मेरे अनुकूल थी ।

शीघ्र ही मैं शेड में थी ।

मैंने धीरे से मोटरसाईकिल स्टैण्ड से उतारी फिर उसे धकेलती हुई सड़क पर दूर तक ले आई ।

फिर मैंने किक मारकर मोटरसाईकिल स्टार्ट की और उस पर सवार हो गई । अगले क्षण मोटरसाईकिल सडक पर पूरी रफ्तार से भागी जा रही थी । वर्कशॉप का मालिक घोड़े बेचकर सोया हुआ था । उसे तो इस चोरी की भनक तक नहीं लगी थी । कई वाहन सड़क पर से गुजरे थे, मगर किसी ने भी मेरी तरफ तवज्जो नहीं दी थी ।

उन्होंने मुझे एक सैनिक ही समझा था . . ।

सफर लम्बा नहीं था ।

कुछ देर बाद मैंने शहर के बाहर मोटरसाइकल रोकी और उसे लावारिस छोडकर आगे बढ गई । अभी मै कठिनाई से बीस मीटर चली थी कि किसी वाहन की हैडलाईट चमक उठी ।

यह एक कार थी ।

मैंने हाथ उठाकर कार को रुकने का संकेत किया ।

कार मेरी बगल में आकर रुक गई । उसकी ड्राइविंग सीट पर एक अधेड़ मौजूद था । उसने खिड़की से सिर बाहर निकालकर कहा--"यस !"

"ये कौन-सा शहर है?"

"विंगस्टन !"

मेरा अंदाजा ठीक निकला था ।

"लार्डस कैम्पस किधर पडेगा?" मेरा अगला सवाल ।

लार्डस कैम्पस में ही डगलस की प्रेमिका तोशिमा रहती थी ।

अधेड ने मुझे लार्डस कैम्पस का रास्ता बताकर कहा-" यहां से ज्यादा दूर नहीं है । मुश्किल से बीस मिनट का रास्ता है ।" '

मैं अधेड का शुक्रिया अदा करके आगे बढ गई

====

====

====

मैं तोशिमा के आवास के करीब पहुचकर ठिठकी।

मुझे उसका आवास तलाश करने में किसी तरह की दिक्कत पेश नहीं आई थी । बो एक शानदार कोठी थी । उसका आंयरन वाला गेट बन्द था । गेट के पार लम्बा-चौड़ा लॉन था । यहां पपर्याप्त प्रकाश फैला था । किन्तु वहां मुझे किसी इन्सान के दर्शन नहीं हुए थे । भीतर ऐसा सन्नाटा था, यहाँ कोई जीवित प्राणी मौजूद ही न हो ।

वो सन्माटा मुझे बड़ा अजीब लगा था ।

फिर कुछ सोचकर मैंने मेन गेट से कोठी में दाखिल होना उचित नही समझा था । कोठी के पिछले हिस्से ही तरफ कदम बढा दिये।

कुछ पलों बाद मैं बाउड्री वॉल से पीठ टिकाये खडी थी ।

मैंने सतर्क निगाहों से आसपास का जायजा लिया है किन्तु मुझे कोई खतरा नजर नहीं आया था । सन्नाटा पूर्ववत् था ।

संतुष्ट्र होने के पश्चात मैं फिरकनी की तरह बाउण्ड्री वाल की तरफ घूम गई । वह ज्यादा ऊची नहीं थी । मैं आसानी से दूसरी तरफ पहुच सकती थी । मैंने दोनों हाथ ऊपर उठाये और किसी स्प्रिग लगे खिलौने की तरह उछलकर बाउण्ड्री वॉल का सिरा थाम लिया । अगले क्षण मैं बाउण्ड्री के दूसरी तरफ जम्प लगा रही थी ।

"धप्प....!"

मेरे पैरों के कच्ची जमीन से टकराने से हल्की-सी जावाब उत्पन्न हुई थी, मानो कोई बिल्ली कूदी हो ।

मैं कुछ पल यथास्थान लेटी रही । ये जानने के लिये कि कहीं कोई प्रतिक्रिया तो नहीं हुई है । किन्तु जब कोई प्रतिक्रिया सामने नही आई तो मैं लेटकर दवे पांव कोठी के पिछले हिस्से की तरफ वढी ।

मैं तीव्रता से सूना पड़ा लाॅन पार करती हुई एक कांच-युक्त खिड़की के पास पहुँचकर ठिठकी । खिडकी के सामने पहुंचकर ठिठकी । फिर मैंने खिडकी से चेहरा सटाकर भीतर झांका । किन्तु मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया था । भीतर घुप्प अंधेरा था । मैंने खिडकी पर हाथ रखकर भीतर की तरफ दबाव डाला । खिडकी भीतर से बद थी ।

मेरे होठों से सर्द सांस निकल गई । एक पल कुछ सोचकर मैं दबे कदमों कोठी के मुख्यद्वार की तरफ बढी ! मेरी चाल में लोमड्री जैसी सतर्कता थी । इस वक्त मेरा सावधानी बरतना जरूरी था । मुझे शक था कि कहीं सेना के अधिकारियों को इस वारे में मालूम हो गया कि तोशिमा डगलस की प्रेमिका है तो वे उस पर भी नजर रखे हो सकते थे । मैं मुख्यद्वार के समीप पहुंची ।

दरवाजा बन्द था ।

मैंने दरवाजे पर हाथ रखकर भीतर की तरफ दबाव डाला । यह अन्दर से बन्द नहीं था । अत: निशब्द खुलता चला गया । मैंने राहदारी में कदम रखा ।

भीतर उजाला था किन्तु यहां मरघट जैसी खामोशी ने पाव पसार रखे थे । कोई आवाज और न आहट ।

मैं दबे पांव चलती हुई एक खुले दरवाजे के सामने पहुंची । मैंने देखा, वो ड्राइंग रूम था । मैंने फौरन भीतर प्रवेश करना उचित नहीं समझा था । मैं दरवाजे के बाहर खडी किसी भी प्रकार की आबाज को सुनने का प्रयास करने लगी ।

एक पीडा भरी कराह मेरे कानों से टकराई ।

वो कराह किसी नारी कंठ से निकली थी और ड्रांइग रूम के भीतर से आई थी ।

मैं चौंकी ।

साथ ही मैं दबे कदमों ड्राइंग रूम में दाखिल हुई । दूसरे क्षण मैं उछल पडी ।

सोफे के करीब फर्श पर बिछे जूट के कारपेट पर पीठ के बल एक निर्वस्त्र युवती पडी थी । उसके चेहरे और वक्षों पर खरोंचों के निशान नजर आ रहे थे । टांगें खून से रंगी पडी थीं । अभी भी जाधों के बीच से खून निकलकर कारपेट पर फैलता जा रहा था । उसकी आँखे बन्द थीं । उसके होठों से कराहे फूट रही थी । उसकी हालत देखकर ऐसा लगता था कि किसी भी क्षण उसकी सांसों की डोर-टूट सकती थी । मैंने तुरन्त अंदाजा लगा लिया था कि कुछ दरिन्दो ने उस युवती के साथ बलात्कार किया है और वे मरणसन्न अवस्था मे छोड़कर चले गये थे ।

वो युवती तोशिमा के अलावा और कोई भी नहीं सकती थी . . लेकिन सवाल तो ये था कि उसके साथ बलात्कार करने बाले कौन थे ।

इस बारे में तो तोशिमा ही बता सकती थी।

मेरे दिमाग में तुरन्त एक बात कोंधी । अगर तोशिमा ने दम तोड़ दिया तो मुझे इस बारे में मालूम नहीं हो पायेगा कि डगलस को किस जेल में बन्द करके रखा गया है? इस सोच कें दिमाग मे आते ही मैं लपकती हुई युवती के करीब पहुंचकर घटनो के बल बैठ गई, फिर उससे कहा----" तोशिमा !"

"अ.. .आह !" जवाब में उसके होठों कराह निकल गई ।

"आंखें खोलो तोशिमा ।"

उसकी पलकें हिली और फिर उसने धीरे से आँखे खोल दीं ।

अब इसमें सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी कि वहीँ तोशिमा थी ।

मेरे उपर निगाह पड़ते ही उसकी आँखों में खौफ की परछाइयां नाच उठी ।

उसके होठों से फंसा-फंसा स्वर निकला--"त. .....तुम लोग फिर आ गये । तुम लोगों ने मेरे साथ बलात्कार करके मुझे मौत के मुंह तक तो पहुंचा दिया है । दरिन्दौ, अब मुझसे क्या चाहते हो? भगवान तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगा. ।'"

मुझे जोरों का झटका लगा ।

मेरे जिस्म पर आर्मी की वर्दी थी । अतः वह मुझे कोई सैनिक ही समझ रही थी । अब उसकी बात से यह तो साफ हो गया था कि उसके साथ बलात्कार करने वाले सेनिक थे ।

"'देखो ।" मैंने कहा-"मैँ फीजी नहीं हूं। तुम मुझे गेलती से फोजी समझ रही हो ।"

"प. .परन्तु तुम्हारे जिस्म पर तो आर्मी की वर्दी है ।'" उसके होठों से फंसा-फसा-सा स्वर निकला' और तुम कह रहे हो कि तुम फौजी नहीं हो ।"

मैंने अपने सिर से कैप उतार दी । दूसरे क्षण मेरे रेशमी बाल कन्धों पर बिखर गये ।

तोशिमा के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरते चले गये । उसके होठों से बरबस ही निकल गया---" तुम तो एक लड़की हो?"

""हां, अब तो तुम्हें विश्वास हों गया कि मैं फौजी नहीं हूं ओर मर्द भी नहीं हू बल्कि औरत हूं?"

वह अपनी टूटती हुई सांसों को समेटती हुई बोली--"फ.. .फिऱ फौज की वर्दी क्यों पहन रखी है?"

""दरअसल, मैं सैनिकों के चंगुल में फस गई थी । उन्होंने पेरी असलियत जानने के लिये पहले तो मुझे टॉर्चर किया, किंतु मैंने अपना मुंह नहीं खोला और बेहोशी का नाटक कर लिया है _उन्होने मुझे एक बैरक में बद कर दिया, फिर मौका देखकर मैंने एक सैनिक को बेहोश क्रिया और उसकी ये वर्दी पहनकर वहां से भाग निकली ।

"'प.. .परन्तु हो कौन?"

"मुझे अपनी दोस्त समझो ।"

"द. .…दोस्त ।" तोशिमा ने अपनी उखडती सांसो: को नियंत्रित किया, फिर बोली "'ल.. लेकिन मैं तो तुम्हे नहीं जानती । मैं पहली वार तुम्हे देख रही हू।"

"भले ही तुम मुझे नहीं जानती, लेकिन मैं तुम्हें अच्छी तरह जानती हू। तुम्हारा नाम तोशिमा है और तुम डगलस की प्रेमिका हो । मैं डगलस को भी जानती हू।"

"अ.. .ओर.. .क्या जानती हो.. .डगलस कै बारे में?"

तोशिमा ने अटकते स्वर में पूछा ।
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

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"डगलस मडलेण्ड में भारत की सबसे महत्वपूर्ण जासूसी संस्था इण्डियन सीक्रेट कोर का स्थानीय एजेन्ट है । सिर्फ इतना ही नहीं, वह राष्ट्रपति सर एडलाॅफ का दायां हाथ भी था ।" मैंने बताया ।

इस अवस्था में भी तोशिमा बुरी तरह चौकी । मैंने मानो धमाका किया था ।

वह चेहरे पर आश्चर्य के ढेरों भाव लिये मुझे देखती रह गई ।

यह तोशिमा के लिये कम आश्चर्यजनक बात नहीं थी ।।

"त.. .तुम.. डगलस. कि बारे मेँ.. इतनी महत्वपूर्ण और गुप्त बातें कैसे जानती हो… ?"

’ इसलिये जानती हू कि मै भी उसी जासूसी संस्था की एक एजेंट हू और मेरा नाम रीमा भारती है । मैँ आज रात ही चोरी-छिपे इण्डिया से विंगस्टन पहुची हूं।"

"'ल. लिक्रिन इण्डियन तो नहीं लगती ।"

"मैं इस वक्त मेकअप में हूं।"

"क.. .क्यों?" तोशिमा का आश्चर्य दोगुना हो गया ।

"ताकि सेना कें लोग मेरी असलियत न जान सकें ।मैंने उत्तर दिया-"अब तो तुम्हें यकीन आ गया होगा कि मैं तुम्हारी दोस्त हू !"

" हां , अब मुझे इतना और बता दो रीमां कि तुम मेरे पास किसलिये आई हो?" तोशिमा ने सवाल किया ।

. "मेरी संस्था को डगलस का एक फेक्स मिला था । जिसमें इस बात का उल्लेख था कि पश्चिम के एक देश की सेना ने मडलैण्ड का तख्ता पलट दिया है और इस मुल्क की सत्ता की बागडोर अपने एक कठपुतले को सोंप दी है । सेना सर एडलॉफ़ को वन्दी बनाना चाहती थी, लेकिन वो अपनी जान बचाकर किसी सुरक्षित जगह जा छिपे ।" मैं बताती चली गई ----" न जाने कैसे उस मुल्क को जानकारी मिल गई कि डगलस को मालूम है कि सर एडलाॅफ कहां छिपा हुआ है? अत: डगलस को गिरफ्तार करके किसी अज्ञात जेल में बन्द कर दिया गया । अब उसे 'टॉर्चर करके इस बारे में जानने की कोशिश की जा रही है कि सर एडलाॅफ कहां छिपा हुआ है? लेकिन डगलस कुछ भी बताने के लिये तैयार नहीं है । वह जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है । अत: आइ .एस.सी. ने मुझे डगलस को सुरक्षित उस जेल से निकालने का काम सौंपा है । हमारी संस्था को मालूम नहीं है कि डगलस किस जेल में बद है? मेरे चीफ का कहना है कि तुम जानती हो कि डगलस किस जेल में नजरबंद है । इसलिये मैं तुमसे डगलस के बारे में जानने आई हूं।"

" व. . .वो हरामजादे फौजी भी मुझसे वहुत कुछ जानने आये थे ।" कहते हुए तोशिमा के चेहरे पर नफरत-हीं-नफरत फैलती चली गई, उसकी सांसें लगातार उखड़ती जा रही थी ------- "उनका ख्याल था कि डगलस ने मुझें राष्ट्रपति के छुपने के स्थान के बारे में बताया हो सकता है । इसी चक्कर में उन लोगों ने मेरा बार-बार बलात्कार किया । मुझे मौत के कगार तक पहुचा दिया ।"

"तुम्हारे साथ वाकई वहुत बुरा हुआ है तोशिमा ।।" मैंने अफ़सोस जाहिर किया---" क्या डगलस ने वाकई तुम्हें राष्ट्रपति के छुपने के स्थान के बारे में कुछ बताया है?"

"न. . . नहीं । व. . . बैसे अगर तुम डगलस को सुरक्षित जेल से निकाल सको । तुम्हारा बड़ा एहसान... ।" एकाएक तोशिमा का वाक्य अधूरा रह गया ।।

मैं चौंकी ।

तोशिमा के चेहरे पर मौत की छाया फैलती जा रही थी । अब उसकी सांसें फंस फंसकर चल रही थीं ।

"इंसमें अहसान कैसा तोशिमा? डगलस मेरी संस्था का एक जांबाज एजेन्ट है । उसे जेल से सुरक्षित निकालना मेरा कर्त्तव्य बनता है । डगलस को बचाना मेरा मिशन है लेकिन ये तभी मुमकिन है अव तुम मुझे बता दो कि डगलसं क्रिस जेल में नजरबंद है?" धीरे-धीरे तोशिमा की आखें बन्द होती जारही थीं।

"आंखें खोलो तोशिमा ।" मैंने उसे कंधे से झिझोड़ा-"मुझे बताओ कि डगलस किस जेल में बन्द 'हे?"

किन्तु तोशिमा के होठ तक नहीं हिले । मौत उसके करीब आती जा रही थी और अपने क्रूर पंजे उसके इदे-गिर्द कसती जा रही थी ।

मुझे लगा जैसे किसी भी क्षण उसकी सांसों की डोर टूट जायेगी ।

मैं उसके कान के करीब मुंह लेजाकर बोली-"बोलौ तोशिमा ।"

" तोशिमा के होठों से बोल नहीं फूटा ।

"बताओ तोशिमा । तुम मौत के करीब पहुंचती जा रही हो ।" मैं पुन: बोल उठी… "अगर डगलस को बचाया नहीं गया तो वो लोग उसकी जान ले लेंगे । उसे तड़पा-तड़पा कर

मारेंगे । भगवान कै लिये आंखें खोलो ।"

तोशिमा ने मानो अपनी समूची ताकत बटोरकर आंखे खोलीं, फिर उसके कांपते होठों से निकला----"ड.. ...डगलस !"

" हां , ,बताओ ।" इस बार मैं उसके चेहरे पर झुक गई थी ।

"व ...... वो....!"

तोशिमा के होठों से इतना ही निकल पाया, फिर मौत ने उसे एक शब्द भी बोलने की इजाजत नहीं दी थी । उसकी सांसों की डोर टूट गई थी । गर्दन एक तरफ़ को ढुलक गई ।

मेरे होठों से एक सर्द सांस निकल गई ।

तोशिमा मर चुकी थी ।

डगलस तक पहुंचने की आशा धूमिल पड़ चुकी थी । मेरे सामने ये जानने का दूसरा कोई रास्ता नहीँ था कि डगलस किस जेल में नजरबंद है?

अब मेरे वहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं रह गया था । मैं एक झटके से उठकर खडी हो गई । साथ ही मैँ दरवाजे की तरफ घूम गइ । .

ठीक उसी क्षण ।

मैं चौंकी!

वजह

पांच व्यक्ति एक-एक करके धडधड़ाते हुए ड्राइंग रूम में दाखिल हुए थे । पाचो पहलवानों जैसे डील-डौल के मालिक थे ।

उनकी फूली हुई जेबें इस बात की चुगली खा रही थीं कि उनमें रिवाॅल्बरे मौजूद हैं ।

मैं समझ नहीं पाई कि वे लोग कौन हैं और यहां क्रिस मकसद से आये हैं?

पहले उनकी निगाहें मेरे ऊपर पडी, फिर जूट के कारपेट पर पडी तोशिमा की निर्वस्त्र लाश पर चिपक कर रह गई ।

"अ अरे !" उनमें से एक के होठों से निकला---"ये तो तोशिमा है । इसकी हालत तो वहुत खराब है ।"

"तुम हालत खराब होने की बात का रहे हो । मुझे तो लगता है कि ये मर चुकी है ।" दूसरा बोला ।

"इसे देखो ।" तीसरे ने कहा ।

चौथे ने आगे बढकर उसका मुआयना किया, फिर अपने -साथियों की तरफ पलटता हुआ बोला…"य. ये तो वाकई मर चुकी है !"

दूसरे पल सभी की अंगारे बरसाती निगाहें मेरे चेहरे पर स्थिर होकर रह गई । उनमें से एक के होठों से गुर्राहट निकली--"ज़रूर इस हरामजादे ने ही तोशिमा की हत्या की है ।"

मैं चौंकी ।

" वह मुझे सैनिक हीँ समझता रहा था । वैसे इसमें गलती उसकी नहीं थी, तोशिमा से बातों के दरम्यान मैंने वापस अपने बाल समेटकर . कैप सिर पर रख ली थी । अतः मैं उन्हें चिकना सैनिक ही नजर आ रहा हूंगा ।

पलक झपकते उन सभी के चेहरों पर पत्थर जैसी कठोरता फैलती-चली गई । आखो से मानो आग बरसने लगी । ज़बड़े एक-दूसरे पर जमकर सख्ती से कस गये । ऐसा लग रहा था जेसे किसी भी . . क्षण वे मुझे चीर-फाढ़कर रख देगे ।

"कौन हो तुम?" दूसरा गुर्राया ।

"एक लडकी।"

मेरे होठों से निकला ही था कि उसका शक्तिशाली घुसा मेरी कनपटी पर पडा । मेरी आखों के सामने रंग-बिरंगे तारे नाच उठे ।

मैं लड़खड़ाकर गिरते-गिरते बची थी ।

"एक सैनिक हो तुम? पर अपने आपको लड़की बता रहे हो तुम ?"वह पुन गुर्राया-'"हमारी आँखों में धूल झोंकना चाहते हो?"

मैंने सिर से कैप उतार दी । वे आश्चर्य भरी निगाहों से मेरे खुले बालों को देखते रह गये । "अब तो तुम लोगों को यकीन आ गया कि मैँ एक लड़की हूं।" मैंने पूछा ।

"अब इतना और बता दो कि तुमने तोशिमा की हत्या क्यों की है ?"

इस वार तीसरे ने होंठ खोले थे ।

"मैंने तोशिमा की हत्या नहीं की है । तुम लोगों को गलतफ़हमी हो गई है ।" मैंने जवाब दिया ।

पलक झपकते ही उसने मेरे रेशमी बाल मुट्ठी में जकड लिये और वह मेरे चेहरे पर घुसे बरसाने लगा ।

मैँ पीड़ा से बिलबिला उठी ।
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

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कसूर उन लोगों का नहीं था अगर उन लोगों की जगह मैं होगी तो मैं भी यही समझती । यहाँ में अकेली थी । तोशिमा की खूध से रमी लाश ड्राइंग रूम के फर्श पर मेरे सामने पड्री हुई थी । ऐसे मे कोइ भी क्या अंदाजा लगा सकता था?

. "झूठ बोलती है हरामजादी । तू क्या समझती है कि हम तेरी बकवास पर यकीन कर लेगे? तेरे अलावा और यहाँ कौन हैं? तू विदेशी फौज से मिली हुई है ! तब ही तो तू आर्मी की वर्दी पहनकर आई है ।" कहने के साथ ही उसने एक झटके से मेरे बाल छोड़े ।

मैं लड़खड़ाईं ।

अगर मैंने अपने आपको सम्भाल न लिया होता तो मैं मुंह … के बल फर्श पर गिरती । मुझे उस पर गुस्सा तो वहुत आया, लेकिन मैं कर भी क्या सकती थी?

वे पांच थे ।

जेबों में रिवाल्बरें थीं ।

और मैं अकेली ।

फिलहाल मेरे पास कोई हथियार भी नहीं था ।

"अगर तू अपनी खैरियत चाहती है तो सब कुछ सच -सच बता दे ।" वह मेरा गिरेश्चान थामकर फुफकारा ----"वरना हम मार-भारकर तेरी जान ले लेंगे ।"

. "मेरी बात का यकीन करों । मैंने तुम लोगों को सच ही बताया है ।" मैंने कहा-" जब मैं यहां पहुंची तोशिमा निर्वस्त्र अवस्था में फर्श पर पडी हुई थी । इसकी हालत बद से बदतर थी । ऐसा लग रहा था, जैसे किसी भी क्षण दम तोड़ देगी । मैंने तोशिमा से पूछा कि उसकी ये हालत किसने बनाई है तो इसने बताया कि उसके साथ सैनिकों ने बलात्कार किया है । इस समय लाश की हालत देखने से भी इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके साथ बुरी तरह बलात्कार हुआ है और बलात्कार की वजह से ही इसकी जान गई है ।"

" तू क्या समझती है कि हम तेरी इस बात पर यकीन कर लेंगे ?"

मेरे सामने खड़ा शख्स गुस्से से दांत पीसता हुआ गुर्राया-" ऐसे हालात तो तू खुद भी क्रियेट कर सकती थी कि देखने मे ऐसा लगे कि तोशिमा के साथ बलात्कार हुआ है । ये सच नहीं कि सैनिकों ने तोशिमा के साथ बलात्कार क्रिया है ।"

"फिर सच क्या है?"

"सच ये है कि तूने कोई महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने के लिये तोशिमा को टॉर्चर किया है और टॉर्चर करने की वजह से ही तोशिमा की जान गई है ।"

मैंने उन लोगों को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे मेरी बात मानने के लिये तैयार ही नहीं हुए । बस वे तो अपना पुराना राग अलापे जा रहे थे । उन लोगों की बातों से मैं इतना तो समझ ही गई थी कि वे पांचों तोशिमा के शुभचिंतक थे ।

" क्या नाम है तेरा?" इस बार पाँचवें ने मुह खोला ।

" मैगी !"

मैंने जानबूझ कर झूठ बोला था । वे मेरे दुश्मन मी हो सकते थे । इसलिये मैं उनसे असलियत छिपा गई थी ।

" तूने आर्मी की वर्दी क्यों पहनी हुई है?" उसने अगला सवाल किया ।

"सेना का एक कमाण्डर मेरी जान के पीछे पडा हुआ… था ।" उसने बंदी वना लिया था । अपनी जान बचानी थी । मैंने एक को बेहोश किया मैं उसकी वर्दी पहनकर भान निकली ।"

"कमाण्डर तेरी जान के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़ा हुआ है?"

सवाल जरा टेढा था । अगर मैं उसे कहानी बताने बैठ जाती तो मेरी असलियत खुल सकती थी मैं नहीं चाहती थी कि उन लोगों को मेरे मिशन की भनक तक लगे । इसलिये मैंने जवाब दिया-----"इस बोरे में मैं तुम्हे क्या बताऊं, मैं खुद नहीं जानती ।"

"ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करों ।" वह व्यंग से मुस्कृराया-----"सेना का एक कमाण्डर तेरी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ है और इस बारे में तुम नहीं जानती कि क्यों? उसे पागल कुत्ते ने काटा है, जो बेवजह तेरी जान लेनी चाहता है । खैरियत चाहती तो सच बोल ।"

"मैं तुम लोगों को जवाब दे चुकी हूं ।"

"तूने जो जवाब दिया है वो सच नहीं ।" वो बोला ----" और सच तो ये है कि अब तक तुने जो कुछ बताया है, वह सब झूठ है । हम सच जानना चाहते हैँ ।"
मैंने उपने होंठ भौंच लिये ।

मुझे कोई जवाब देता न देखकर वह मानो गुस्से से पागल हो उठा । उसने पुन: मेरे चेहरे पर घूसे बरसाने शुरू कर दिये । मैं खामोश खड्री उसके घूंसों को बर्दाश्त करती रही ।

"ये ऐसे नहीं बतायेगी ।" वह अपना हाथ रोकता हुआ----बोला---" अब टिकाने पर पहुंचकर इसकी खातिरदारी होगी तब ये सच बत्तायेगी । ले चलो इसे ।"

वे चारों तो जैसे तैयार खड़े थे । पलक झपकते ही उन्होंने मुझे दबोच लिया और घसीटते हुए दरवाजे की तरफ बढे ।

" आखिर तुम लोग चाहते क्या हो?" मैं चीखी ।

जवाब में पीछे से मेरे नितम्बो पर जबरदस्त ठोकर पडी । मेरे जिस्म में पीड़ा की तीव्र लहर दौड़ गई । अब मैंने खामोश रहना ही उचित समझा । फिलहाल मैं आठ हाथों में आई हुई थी । कुछ देर बाद वे मुझे घसीटते हुए तोशिमा की कोठी के बाहर सडक किनारे खडी एक कार के करीब… पहुचे ।

मैं एक बार फिर मुसीबत में फंस गई थी । मुझे उन लोगों से छुटकारा पाना था । पलक झपकते ही मेरे दोनों पांव एकाएक जमीन से उठे और कार की बॉडी के साथ जमाकर अपनी समूची ताकत खर्च करते हुए अपने जिस्म को पीछे की तरफ धकेला ।

अगले क्षण ।

चारों मुझसे छिटककर दायें-बायें गिरे ।

अपने साथियों को गिरते देखकर पांचवां शख्स बौखला उठा ।

वह तो-मुझे साधारण युवती समझ रहा था । उसने तो सपने में भी मुझसे इस हरकत की उम्मीद नहीं की होगी । भला चार-चार पहलवान सरीखे इन्सानों को यूं एक झटके में जमीन पर गिरा देना क्या कोई मामूली बात थी हैं उसकी नजरों में तो ये एक चमत्कार ही रहा होगा । वह दांत पीसता हुआ मुझ पर झपटा ।

मैं तैयार थी ।

वह जैसे ही मेरे करीब पहुचां वैसे ही मैं स्प्रिग लगे खिलौने की तरह उछली और उसके सीने पर फलाइग किक जड दी ।

वह होठों से चीख उगलता हुआ पीछे की तरफ उलट गया । अब तक वे चारों उठकर खडे हो चुके थे । सहसा मेरे दायेँ-बायें वाले व्यक्तियों ने मुझे एक साथ मिलकर दबोचने की कोशिश की, किन्तु मैं बला की फुर्ती से उसे डॉज देती

हुई उनके बीच से निकल गई थी । फलस्वरूप वे अपनी ही झोक आपस में टकरा गये थे ।

उसी क्षण ।

चौथे ने मुझ पर छलांग लगा दी ।

मगर....

मैं तो मानो बिजली बनी हुई थी !!

उसे सूंघने के लिये खाली जमीन मिली थी ।

"हरामजादी !" उनमें से एक गुर्राया----"शायद तुझे मालूम नही कि हम कितने खतरनाक लोग हैं, अगर इस बार गलत हरकत की तो तेरे जिस्म में इतनी गोलियां उतार देंगे कि तेरे जिस्म में सुराख-ही-सुराख नजर आयेंगे ।"

"कह क्यों रहे हो? तुम लोगों की जेबों में रिवाल्वरें मौजूद हैं । मेरे जिस्म में गोलियां उतारते क्यों नहीं?"

वे हैरतभरी निगाहों से मुझे देखते रहे गये ।

"आखिर -मैंने ऐसा क्या किया है, जो तुम लोग मेरी जान कै पीछे पड़े हुए हो ।" मैं पुनः बोल उठी---."अगर तुम लोग अपनी हरकतों से वाज नहीं आये तो अंजाम वहुत बुरा होगा !"

दूसरे पल पांचों बगैर किसी चेतावनी के किसी बाज लकी तरह मैं एक साथ मुझ पर झपटे ।

मुझे उन लोगों से पीछा छुड़ाना था । अत मैँ पलटकर भागी ।
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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »


उनमें से एक बड़ा तेज निकला था । अभी मैं कठिनाई से दस कदम ही भागी हूगी कि उसने मेरे सिर पर पहुंचकर पीछे से मेरे बाल अपनी मुट्ठी में जकड़ लिये ।

मैं लड़खड़ाकर रह गई ।

"भाग रही थी ।" उसका हिंसक स्वर मेरे कानों से ' टकराया---" हमारे हाथों से बचकर भागना आसान नहीं है कुतिया ।"

मैं बल खाकर रह गई ।

अब तक वे चारों भी वहां पहुंच चुके थे । 'उन्होंने न सिर्फ मुझे घेर लिया था, बल्कि जेबो से रिवाॅल्बर भी निकाल लिये थे ।

पांचवें ने मेरे बालों को तेज झटका देकर छोड़ दिया ।

मैं बिलबिला कर गिरते-गिरते बची थी । इस वक्त मेरी स्थिति किसी शिकारी के जाल में फंसे शिकार जैसी होकर रह गई थी । उन चारों की रिवाल्बरों की भयानक आंख मुझे ही घूर रही थीं ।

"अब तू हमारे निशाने पर है ।" मेरे दायी तरफ खडा शख्स चेतावनी भरे स्वर में बोला---" अब भागने की कोशिश की तो भेजा उड़ाकर रख दूंगा ।"

कहने के साथ ही उसने रिवाॅल्बर की नाल मेरी कनपटी से सटा दी ।।

अब ये बात तो साफ हो गई थी कि वे मुझे गोली मारने का इरादा नहीं रखते थे, वरना अब तक वे मुझे मार चुके होते ।

तदुपरान्त पाचों ने आपस में कुछ इशारा क्रिया और इस बार एक साथ मेरे ऊपर शिकारी कुत्तों की तरह टूट पड़े ।

और फिर ।

उन लोगों के बूट की ठोकरें मेरे जिस्म पर बरसाती ओलों की तरह पड़ने लगी । वे मुझे घेरकर मार रहे थे । वातावरण में भड़ाक-भड़ाक की आवाज गूज रही थी ।

मैं कब तक बर्दाश्त करती? अन्त में मेरे होठों से पीड़ा भरी चीखे उबलने लगी, मगर वे तो जैसे बहरे हो गये थे । मेरी चीखे उन्हें सुनाई ही नहीं है रही थी ।

मैं मार खाते-खाते जमीन पर लम्बी हो गई लेकिन वे नहीं रूके । उनकी ठोकरें बदस्तूर मेरे जिस्म पर पढ़ रही थीं । मैं उनके बीच में फुटबाल बनी हुई थी ।

कुछ ही देर में उन्होंने मार मार कर मेरी हालत ख़राब कर दी थी ।

"वस करो !" अचानक उनमें से एक का स्वर मेरे कानों से टकराया ।

चारों के पेरों में तुरन्त ब्रेक लगे गये ।

"अगर हम लोग इसे इसी तरह से पीटते रहे तो ये मर जायेगी !" वहीँ स्वर पुन: मेरे कानों से टकराया----"हमें इसकी असलियत जाननी है । इसलिये इसका जिन्दा रहना जरूरी है ।"

मैं सड़क पर गर्म रेत पर पडी मछली की तरह छटपटा रहीं थी । मेरे होठों से पीड़ा भरी कराहें फूट रही थीं । रोम-रोम दर्द से चीख रहा था । मेरे कपड़े जगह-जगह से फट गये थे । फटे कपडों के बीच से झांकते जिस्म पर काले और नीले निशान नजर आ रहे थे । निचला होठ फट गया था और नाक से खून बह रहा था ।

मेरी हालत तो पहले ही खराब थी । रही… सही कसर उन लोगों ने पूरी कर दी थी ।

"इसे कार में बिठाओ ।" उनमें से एक अपने साथियों को सम्बोधित करता हुआ बोला ।

"उठो ।“ दूसरा गुरोंया ।

" मैं उठ नहीं सकती ।" मैंने कहा ।

"उठो !" वह मेरी पसलियों पर ठोकर जड़ता हुआ पुन गुर्रा उठा-- "वरना और मार पडेगी ।"

मै पीडा से बिलबिला उठी । ठोकर इतनी जबरदस्त थी कि अपनी पसलियों चटखती हुई महसूस हुई थी । मुझे उस पर गुस्सा बहुत आया था किन्तु फिलहाल दांत पीस कर रह जाने के आलावा और कुछ नहीं कर सकी

"इसे उठाकर कार में डाल दो ।" पहले व्यक्ति ने कहा ।

दूसरे ने मुझे उठाकर बोरे की तरह अपने कंधे पर लाद लिया ।

और कार के पिछले दरवाजे की तरफ बढा ।

इस बीच तीसरा दरवाजा खोल चुका था । दूसरे ने दरवाजे के करीब पहुंचकर दोनों सीटों के बीच में डाल दिया । मेरा सिर भड़ाक से सामने दरवाजे से टकराया था । मेरे होठों से हल्की सी चीख निकल गई थी । आँखों के समक्ष अंतरिक्ष के तमाम नक्षत्र नाच उठे ।

देखते-ही देखते वे पांचो कार में सवार हो गये ।

कार चल पडी ।

चारों तरफ सुबह का उजाला फैलने लगा था ।

=====

=====

वे मुझे लेकर एक हाॅलनुमा कमरे में पहुचे

रिवाल्वर की नाले अब जिस्म से चिपकी हुई थीं ।

वो हालनुमा कमरा ट्यूबलाटस के दूधिया प्रकाश से जगमगा रहा था । हॉल में एक व्यक्ति बैचेनी भरे अंदाज में चहलकदमी कर रहा था । उसकी उम्र चालीस साल से ज्यादा नहीं रही होगी । सुर्ख-सफेद रंग । चेहरे पर गम्भीरता । सिर के बाल छोटे छोटे थे । वह सफेद रंग की हाफ बाजू कीं शर्ट और पैन्ट पहने था ।

कदमों की आहट सुनकर उसके पैरों में मानो ब्रेक लग गऐ । अगले क्षण उसकी निगाहें दरवाजे की तरफ उठ गई ।

उसकी निगाहें मेरे ऊपर पड़ी तो वह चौंक उठा । चेहरे पर आश्चर्य के भाव कैब्रे कर उठे । .. ,

" ये तुम लोग किस लड़की को पकड़ लाये !" वह शख्स अपने आदमियों से मुखातिब हुआ---"तुम्हें तो तोशिमा को लाने के लिये भेजा गया था । तोशिमा कहां है?"

"तोशिमा अब इस दुनिया में नहीं है । उसकी हत्या कर दीं गई है ।" उनमें से एक ने कहा ।

""व. व्हाट?" वह उछल पड़ा ।

"ये सच है सर ।" वह बोला-"'जब हम लोग कोठी मैं पहुंचे तो वहां डाइंग-रूम में उसकी निर्वस्त्र लाश पडी थी और ये लडकी लाश के पास मौजूद थी ।"

"तोशिमा की हत्या किसने की है?" अधेड ने पूछा ।

"इस लड़की के अलावा उसकी हत्या और कौन करेगा?" दूसरे ने जवाब दिया-- "इसलिये हम लोग इसे पकढ़कर आपके पास लाये हैं ।"

"ये लडकी कौन है?"

"ये अपना नाम मैगी बताती है । इसका कहना है कि ये तोशिमा की दोस्त है और उससे मिलने उसकी कोठी पर गई थी, लेक्रिन ये सरासर झूठ बोलती लग रही है । सच तो ये है कि ये सेना की कोई जासूस है और तोशिमा से कोई महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने उसके पास पहुंची थी । उसने इसे जानकारी नहीं दी होगी । इसलिये इसने तोशिमा को टॉर्चर करके उसकी हत्या कर दी । इसने हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया ।"

वह शख्स अजीब निगाहों से मेरी तरफ देखता रह गया । उसका चेहरा और कठोर हो उठा । जबड़े एक-दूसरे पर जमकर सख्ती से कस गये ।

वह बोला-"मेरे आदमी ने जो कुछ वताया, क्या वो सच है"'

मैं समझ गई कि वो इन लोगों का चीफ है, लेकिन ये बात अभी तक भी साफ़ नहीं हो पाई थी कि वे लोग कौन हैं?

"तुम्हारा अन्दाजा सरासर झूठ बोल रहा है । मेरा तोशिमा की हत्या से कोई वास्ता नहीं है ।" मैंने उस शख्स को भी वही सब कुछ बता दिया जो उन लोगों को बताया था ।

"याद रखो लडकी, मैं बहुत खतरनाक किस्म का आदमी हूं । मुझे झूठ से सख्त नफरत है ।" उसने गुस्से से नथुने फुलाए।

"मैंने झूठ बोला ही कहां है?"

इधर मेरे मुंह से निकला, उधर उसकी चौडी हथेली मेरे चेहरे से टकराई ।

'तड़ाक. . . !'

थप्पड इतना ताकतवर था कि उसकी आवाज़ बन्दूक से निकले फायर की तरह गूंजी थी ।

"यानि तुम्हें भी मेरी बात पर विश्वास नहीं है ।"

मैं अपना गाल सहलाती हुई बोली ।

"जो कुछ भी मेरे आदमियों ने बताया है उसे सुनने के बाद कोई भी तुम्हारी बात-पर विश्वास नहीं करेगा । अगर तुम अपनी खैरियत चाहती हो तो शराफत के साथ सब-कुछ बता दो, वरना मुझे तुम्हारे साथ वो सलूक करना पडेगा, जो मैं एक औरत के साथ

कभी करना पसन्द नहीं करता।" वह खुरदरे स्वर मे बोला ।

मैंने कोई जवाब नहीं दिया ।

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वह शख्स भी यही समझ रहा था कि मैंने ही तोशिमा की हत्या की है । इसलिये उसके सामने कुछ भी कहना बेकार था ।

"तो तुम सच नहीं बोलोगी ।"

" "मैँ तुम्हें सच बता चुकी हू । इसलिये एक ही बात को बार बार’ दोहराने का कोई फायदा नहीं ।"

"क्या तुमने मुझें कोई बच्चा समझा है? जो मुझें यू झूठ मूठ का खिलौना थमाकर बहला लोगी और मैं बहल जाऊंगा । जल्दी से शुरू हो जाओ, वरना मैं इस बात का लिहाज नहीं करूंगा कि तुम एक लडकी हो । तुम्हारा मुंह खुलवाने के लिये मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं।"

मैं खामोश रहीं ।

मुझे खामोश देखकर उसने गुस्से से दांत पीसे और जबरदेंस्त घूंसा मेरी कनपटी पर जड़ दिया ।

मैं उलटकर गिरते-गिरते बची ।

"तुम मेरे साथ इस तरह का व्यवहार करके अच्छा नहीं कर रहे हो मिस्टर !" मैं कब तक उन लोगों की मार सहती, आखिर फट पड्री-"तुम लोगों को इसका भयानक परिणाम भुगतना पडेगा ।"

मेरा इतना कहना था कि एक रिवाल्वर वाले ने मेरे ऊपर झपटना चाहा, किन्तु उस अधेड ने अपना हाथ उठाकर उसे रोक दिया । रिवाल्वर वाला ठिठक तो गया, किन्तु उसकी आँखों में कहर नाच उठा था । जबड़े कस गये थे । उसके चेहरे के भाव इस बात की चुगली खाते प्रतीत हो रहे थे, अगर उसकी बश चले तो वह

मुझे चीर-फाढ़कर सुखा देगा ।

" अभी तो मैने तुम्हारे उपर हाथ उठाया है । अब मैं तुम्हारी जान भी लूगा !" वह व्यक्ति खतरनाक स्वर में मुझसे बोला--" गानीमत समझो कि अभी तक तुम मेरे सामने अपने पैरों पर खडे होने लायक हो ।"

मैं बल खाकर रह गई ।

तभी . . . ।

उसकी भरपुर ठोकर मेरे पेट पर पडी । . .

मेरा मुंह भाड़ की तरह खुल गया और मैं दोनों हाथों से अपना पेट दबाकर झुकती चली गई ।

उस कम्बख्त ने नीचे से अपना घुटना चला दिया । घुटना मेरे चेहरे पर पडा । मैं पीछे की तरफ़ उलट गई । मेरा सिर भड़ाक से फर्श के साथ टकराया था।

"चलो उठो ।" वह बोलोमा ।

मैं किसी तरह उठकर खडी हुई । मेरी नाक से पुनः खून बहने लगा था, किन्तु आँखे जैसे आग बरसा रही थीं । मैं उस शख्स को जलाकर राख कर देने बाली निगाहों से घूरकर रह गई ।

"ये तो बहुत सख्त जान लगती है सर । इतनी मार खाकर-भी एक ही राग अलापे जा रही है ।" रिवाल्वर वाला बोला…"इसकी असलियत जानने के लिये हमें कोई दूसरा रास्ता सोचना पडेगा ।"

"रास्ता तो मैं सोच चुका हूँ अगर इसने सच नहीं बताया तो हम इसे इतनी यातनाएं देंगे कि इसकी आत्मा भी सच बोलने के लिये तैयार हो जायेगी, लेकिन मैं चाहता हूं अगर सीधी उंगलियों से घी निकल जाये, तो उंगलियां टेढी क्यों की जायें?"

" सीधी ऊगलियों से कभी घी नहीं निकलता सर । घी निकालने के लिये तो उगंलिया टेढी ही करनी पड़ती हैं ।"

इस बार दूसरा बोल उठा---" वो कहावत तो सुनी होगी कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते । ये बातों से मानने बाली लग ही नहीं रही है ।"

"अजीब आदमी हो तुम। " मैं चीखी ! "तुम लोग अपनी ढपली और अपना ही राग अलापे जा रहे हो । तुममें से कोई भी मेरी बात मानने के लिये तैयार ही नहीं । आखिर तुम मुझसे किस जन्म की दुश्मनी निकाल रहे हो?"

किन्तु वे मेरे सवाल का जवाब हज्म कर गये और वो शख्स फुंफ़कारा---" हरीअप बेबी! तुम्हारे चीखने… चिल्लाने से कुछ होने बाला नहीं है । इसलिये बेहतर यहीँ होगा कि तुम वही करो, जो हम तुम से कह ऱहें हैं ।"

मैंने -सख्ती से होठ मीच लिये । मै बेबस थी ।

इस वक्त मेरा कोई भी गलत कदम मेरे लिये आत्म हत्या करने जैसा साबित हो सकता था ।

अतः मैंने वही किया, जो ऐसे समय में मैं कर सकती थी ।

मैंने खामौशी सें स्वयं को परिस्थितियों के हवाले कर दिया । मैं समझ चुकी थी कि अब मुझे यातनाओं के भयानक दौर से गुजरना पडेगा ।

" ये टॉर्चर हुए बगैर कुछ नहीं उगलेगी ।" उस शख्स के होठों से जहरीले नाग जैसी फुफकार निकली--"इसे टॉर्चर रूम में ले चलो ।"

मेरे जिस्म से फौरन रिवाल्वर की नाले आ चिपकी । फिर पाँचों रिवाॅल्बर धारी मुझे धकेलते हुए दरवाजे की तंरफ बढ़े ।

मैने गर्दन मोडकर देखा ।

वो शख्स भी पीछे चला आ रहा था । मैं एक बार फिर फंस चुकी थी, किन्तु इस वक्त मेरे जेहन में एक ही सवाल चकरा रहा था ।

सिर्फ एक ही सवाल ।

वे लोग कौन हैं?

===

===

टॉर्चर रूम में काफी यातनाए पाने के पश्चात् मैं बेहोश हो गई थी । काफी समय पश्चात् मेरी बेहोशी टूटी ।

अगले क्षण ।

मैं उछल पडी ।

मेरा उछल पड़ना स्वाभाविक ही था । क्योकि न तो में उस कमरे में उल्टी लटकी हुई थी । न ही मैँ बंधनों से जकडी हुई थी और न ही वे लोग वहां मौजूद थे, जो मेरी जान के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए थे । इस वक्त मैं जिस कमरे में थी । वो साफ-सुथरा कमरा था । उसमें ट्यूब लाईट का प्रकाश जगमगा रहा था । मैं एक नर्म गुदगुदे बिस्तर पर लेटी हुई थी । मेरे जिस्म पर साफ़-सुथरे कपड़े थे और मेरे जिस्म में उठती पीड़ा न जाने कहां गायब हो चुकी थी ? कमरे का दरवाजा बद था ।

मैं समझ नहीं पा रही थी कि इस वक्त मैं कहां हूँ और वे लोग कहां चले गये हैँ? मैंने उठने का प्रयास किया ।

उसी क्षण ।

दरवाजे के बाहर आहट हुई । मेरी निगाहें दरवाजे की तरफ़ उठ गई । अगले क्षणं दरबाजा खुला और एक वेहद हसीन युवती ने भीतर कदम रखा । वह हाथों मे ट्रे सम्भाले थी । ट्रे में जूस से भरा गिलास रखा हुआ था ।

मेरी निगाहें युवती के चेहरे पर चिपककर रह गई, जिस पर जमाने भर की मासूमियत फैली हुई थी ।

"अब आप कैसा महसूस कर रही हैं मैडम ।" युवती ने बेड के कऱीब पहुंच का मुझसे पूछा ।

" कौन हो तुम ?" मैं एक झटके से उठकर बेड पर बैठ गई ।

"मेरा नाम मिरान्डा है ।"

"वो लोग कहां हैं, जो मुझे यहां जबरदस्ती लेकर आये थे ।" मैंने दूसरा सवाल किया । "

!वे इसी इमारत में हैं ।"

"वे लोग कौन हैं?"

" मैँ आपके इस सवाल का जवाब नहीं दे सकती ।"

"क्यों ?"

"आप जूस पी लीजिये मैडम ।"

वह मेरा जवाब हजम करती हुई बोली ।

"तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ।"

जवाब में मिरान्डा ने ट्रे मेरी तरफ़ बढा दी ।

" इस जूस में जहर मिलाकर लाई हो क्या?"

"आपने ऐसा कैसे सोच लिया कि मैं जूस में जहर मिलाकर लाई हूंगी ।"

"मैँने ऐसा इसलिये कहा है कि उन लोगों के पास मुझे मौत के मुंह में पहुंचाने का इससे अच्छा रास्ता दूसरा कोई नहीं ही सकता ।" .

"आपका विचार एकदम गलत है मैडम । अगर आपको मारना होता तो बेहोशी के दौरान आसानी से मारा जा सकता था । जहर देने की ज़रूरत ही नहीं थी ।"

मैंने गोर से मिरान्डा का चेहरा देखा, वह मुझे सच बोलती लगी थी । मैंने हाथ बढ़ाकर ट्रे में रखा गिलास उठा लिया और एक ही सांस में खाली करके वापस ट्रे में रख दिया । वह चली गई । दरवाजा खुला रहा । कठिनाई से दो मिनट भी नहीं गुजरे थे कि तीन आदमी तीर की तरह भीतर दाखिल हुए । वे तीनों उन ही पाचो में से थे, जो मुझे जबरदस्ती कार में डालकर यहां तक लाये थे । वे तीनों बेड के करीब पहुचे तो उनमें से एक ने पूछा-"अब आप कैसी हैं मैडम?"

" जिन्दा हूं ।" मैंने उसे घूरते हुए कहा-- "तुम लोगों ने तो मुझे अपनी तरफ से मारने में कसर बाकी नहीं छोडी थी । ये तो मेरा भाग्य अच्छा है, जो मैं बच गई ।"

उसने अपराधी की तरह अपना सिर झुका लिया ।

"अब तुम लोग यहां किसलिए आये हो ?" मैंने उन लोगों को कहरभरी नजरों से घूरते हुए पूछा ।

"आपको हमारे साथ चलना है मैडम ।"

" कहां ?"

" चीफ के पास ।"

"क्यों ?"

" चीफ आपका इंतजार कर रहे है !"

मैं उन आदमियों के व्यवहार से मन ही-मन चोंके बगैर नहीं रह सकी थी । जो कुछ देर पहले दरिन्दे नजर आ रहे थे । अब वे मुझें अपने गुलाम प्रतीत हो रहे थे । एकाएक उनमें आ गये परिवर्तन का कारण समझ में नहीं आया था ।

मुझे सब कुछ रहस्यमय-सा लगा था ।

"चलिये मैडम?" पहले वाले के स्वर में अनुरोध था ।

"तुम लोगों के पास रिवात्वरें होगी । मुझे रिवाल्वरों की नालों के बल पर ले चलो ।"

"व. . .वो हमारी मजबूरी थी ।" उसने जबाब दिया--"आपको हमारे साथ खुद चलना होगा । हम आपके साथ जबरदस्ती नहीं करेंगे ।"

"तुम्हारा चीफ कौन है?"

"आप चल तो रही हैं । आपको खुद मालूम हो जायेगा।"

उन तीनों ने मेरी उत्सुकता बढा दी थी । अत: मैं बेड त्यागती हुई बोली---" चलो ।" _

वे तीनों दरवाजे की तरफ बढ गये । मैं उनके पीछे थी ।।

वैसे इस वक्त मेरे मस्तिष्क में एक विचार और भी चकरा रहा था कि कहीं वे लोग मुझे किसी जाल में फंसाने के लिये कोई चाल तो नहीं चल रहे हैं?

कुछ पलों बाद वे मुझे लेकर एक अन्य कमरे में पहुचे ।
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