आँखें ( कहानी )
मौसम सुहाना था. वर्षा की बूँदें टपटप बरस रहीं थीं. दोनों मित्रों की आँखे भी बरस रहीं थी. दोनों मित्र एक दूसरे के समधी भी थे. इन्द्र ने अपने इकलौते बेटे की शादी अपने मित्र चंद्र की एक मात्र पुत्री से कर दिया था.
दोनों दोस्त बिजनेस में आधे – आधे पार्टनर थे. वर्षों पुरानी दोस्ती सम्बन्ध में बदल जाने से अब पार्टनरशिप के हिसाब सरल हो गये थे. दोनों मित्र जाम टकराते हुये हिसाब की बात पर अक्सर कह बैठते -“छोडो यार ! अगर हिसाब कुछ ऊपर नीचे हो भी गया तब क्या फर्क पड़ता हैं ? अगर घी गिरेगा भी तो दाल में ही ना ?
दो दिनों से इन्द्र का बेटा घर वापस नहीँ आया था. खाने -पीने का शौकीन बेटा पहले भी ऐसा करता था. पर इस बार उसका फोन भी बंद था. परेशान हो कर , दोनों ने उसकी खोज ख़बर लेनी शुरू की. पुलिस स्टेशन , अस्पताल सब जगह दोनों दौड़ लगा रहे थे.
पुलिस से मिली ख़बर सुन वे गिरते पड़ते लखनऊ के पास के बर्ड सेंचुरी के करीब पहुँचे. कार सड़क के दूसरी ओर रुकवा कर दोनों उतरे. मन ही मन अपने अराध्य देव से मना रहे थे, यह ख़बर झूठी निकले. सड़क पार कर पहुँचे.
इन्द्र के जवान पुत्र का शव सड़क के किनारे पडा था. तभी पीछे से आई चीख सुन दोनों पलटे. चीख चंद्र की पूर्ण गर्भवती पुत्री की थी. वे भूल ही गये थे. वह कार में बैठी थी. बहुत रोकने करने पर भी वह साथ आ गई थी. पति के शव को तो नहीँ , पर उसके चिकेन के कुर्ते के रंग को वह दूर से ही पहचान गई. अपने हाथों से इस्त्री कर सोने के बटन लगा कर पति को पहनने के लिये दिया था.वह बदहवास सड़क पर दौड़ पड़ी और सामने से आती ट्रक से टकरा गई.
दोनों मित्रों की नज़रें एक दूसरे से मिली. दोनों मनो जड़ हो गये. उनकी कार का ड्राइवर रामधनी दौड़ता हुआ आ कर चीख पड़ा तब जैसे दोनों की तंद्रा टूटी. उनकी आँखों के सामने वर्षों पुरानी यादें नाचने लगी.
****
दोनों मित्र रांची मेन रोड स्थित हनुमान मंदिर से पूजा करके निकले. मॆन रोड की भीड़ देख दोनो चिंतित हो गये. उन्हें जल्दी स्टेशन पहुँचना था. दोनों में दाँत काटी दोस्ती थी. जो भी करते साथ साथ करते. हनुमान जी की भक्ति हो या कुछ और. उनकी परेशानी बस एक थी. उन दोनों के इष्ट ब्रह्मचारी थे और वे दोनों नारी सौंदर्य के अनन्य उपासक. वरना वे लंगोट भी लाल ही बाँधते थे, ठीक हनुमान जी की तरह और सही अर्थों में लंगोटिया यार थे.
जब वे स्टेशन पहुँचे, सामने राजधानी ट्रेन खड़ी थी. दौड़ते भागते दोनों ट्रेन मॆं पहुँचे. चेहरे पर किसी रेस में ट्राफी मिलने जैसी विजय मुस्कान छा गई. चलो , हनुमान जी की कृपा से ट्रेन तो मिल गई.
सफ़र मजे में कट रही थी. दोनों ताश की गड्डी और शीतल पेय की बोतलें निकाल अपनी सीटों पर जम गये. बोतल के अंदर पेय परिवर्तन का ट्रिक दोनों ने ईजाद कर लिया था.
तभी दोनों की नज़रें पास के बर्थ पर अकेली यात्रा कर रही रूपवती और स्वस्थ युवती पर पड़ी. दोनों मित्रों एक दूसरे को आँखों ही आँखों मे देख मुस्कुराये और आपस में उस पर कुछ भद्दे जुमले कसे.
तभी वह युवती इनके पास से गुजरी. उसके जिस मोटापे पर दोनों ने व्यंग लिय था. वह स्वभाविक नहीँ था. दरअसल वह गर्भवती थी. किसी से फोन पर कह रही थी – “हाँ , खुश खबरी हैं. बडी पूजा और मन्नतों के बाद यह शुभ समय आया हैं. सोचती हूँ , इस बड़े मंगल के दिन सेतु हनुमान मंदिर में चोला चढा दूँ. उन्हें ही चिठ्ठी और अर्जी भेजी थी. उन्होंने मेरी प्रार्थना सुन ली. ”
दोनों ने नशे में झूमते हुये कहा -” यह तो टू इन वन हैं .” और ठहाका लगाया. जल्दी ही दोनों की नशे भरी आँखें बंद होने लगी. वे अपने अपने बर्थ पर लुढ़क गये.
सुबह अँधेरे में ही ट्रेन कानपुर स्टेशन पहुँच गई. स्टेशन से बाहर उनकी लम्बी काली कार खड़ी थी. ड्राईवर रामधनी ने आगे बढ़ कर उनके बैग ले लिये. कार लखनऊ की ओर दौड़ पड़ी. रिमझिम वर्ष होने लगी थी. पूर्व में आकाश में लाली छाने लगी थी. वैसी ही लाली मित्र द्वय की आँखों में भी थी. नशा अभी उतरा नहीँ था. आँखों में नशे की खुमारी थी.
इन्द्र ने रामधनी से कार किसी चाये के दुकान पर रोकने कही। दोनों कार की पिछली सीट पर सोने की कोशिश करने लगे. रामधनी ने हँस कर पूछा – “लगता हैं रात में आप लोगों की खूब चली हैं ” रामधनी ड्राइवर कम और उनके काले कारनामों का साथी और राजदार ज्यादा था.
दोनों सिर हिला कर ठठा कर हँस पड़े और निशाचर इन्द्र ने जवाब दिया – “अरे यार ! इतने सवेरे का सूरज तो मैंने आज़ तक नहीँ देखा हैं. 10-11 बजे से पहले तो मेरी नींद ही नहीँ खुलती हैं. “
चंद्र ने आँखें खोले बगैर ट्रेन को इतनी सबेरे पहुँचने के लिये एक भद्दी गाली देते हुये कहाँ – यार बड़ी रूखी यात्रा थी और अब यह सुबह -सुबह चाय की खोज क्यों कर रहे हो? उसने अपने बैग से एक बोतल निकाल कर मुँह से लगा लिया. नशा कम होने के बदले और बढ़ गया.
एक ढाबे के सामने कार रुकी. अभी भी अँधेरा पूरी तरह छटा नहीँ था. बारिश तेज हो गई थी. ठीक आगे की टैक्सी से ट्रेन वाली युवती उतर रही थी. दोनों मित्रों की आँखें धूर्तता से चमकने लगी. रामधनी और उनमें कुछ बातें हुई. रामधनी ने चारो ओर नज़रें घुमाई. चारो ओर सन्नाटा छाया था.
रामधनी ने कार महिला के बिलकुल पास रोका. जब तक गर्भभार से धीमी चलती वह महिला कुछ समझ पाती. पीछे की गेट खोल दोनों ने उसे अंदर खींच लिया. कार के काले शीशे बंद हो गये. कार तेज़ी से सड़क पर दौड़ने लगी.
हाथ -पैर मारती महिला चीख रहीं थी. वह गिडगिडाते हुये बोल उठी – “मैं माँ बनने वाली हूँ. मुझे छोड़ दो. भगवन से डरो.”
रामधनी ने हड़बड़ा कर कहा -“साहब बड़ी भूल हो गई. यह तो पेट से हैं…यह माँ बननेवाली हैं. यह बड़ा भरी अन्याय होगा.” और उसने कार खचाक से रोक दी. कार एक झटके से रुक गई. जब तक किसी की समझ में बात आती. वह युवती कार का द्वार खोल बाहर निकल गई और सड़क के दूसरी ओर से आते वाहन से टकरा कर गिर पड़ी.वाहन बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ गया. सुनसान सड़क पर युवती की दर्दनाक चीत्कार गूँज उठी.. ।पास के पेङो से पक्षी भी शोर मचाते उङ गये।
तीनो भागते हुये उसके करीब पहुँचे. उसकी आँखें बंद हो रहीं थी. आँखों के कोरों से आँसू बह रहे थे. शरीर दर्द से ऐंठ रहा था. उसने अधखुली आँखों से उन्हे देखा. लड़खडाती और दर्द भरी आवाज़ में उसने कहा – ” तुम्हा… तुम्हारा वंश कभी नहीँ बढेगा. – तुम्हारा वंश कभी नहीँ बढेगा.” रक्तिम होती सड़क पर उसने आखरी साँसें ली. और उसकी अध खुली आँखें ऐसे पथरा गई. जैसे वे आँखे उन्हें ही देख रहीं हों.
आँखें ( कहानी )
- sexi munda
- Novice User
- Posts: 1305
- Joined: 12 Jun 2016 12:43
आँखें ( कहानी )
मित्रो नीचे दी हुई कहानियाँ ज़रूर पढ़ें
जवानी की तपिश Running करीना कपूर की पहली ट्रेन (रेल) यात्रा Running सिफली अमल ( काला जादू ) complete हरामी पड़ोसी complete मौका है चुदाई का complete बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete मैं ,दीदी और दोस्त complete मेरी बहनें मेरी जिंदगी complete अहसान complete
जवानी की तपिश Running करीना कपूर की पहली ट्रेन (रेल) यात्रा Running सिफली अमल ( काला जादू ) complete हरामी पड़ोसी complete मौका है चुदाई का complete बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete मैं ,दीदी और दोस्त complete मेरी बहनें मेरी जिंदगी complete अहसान complete
- sexi munda
- Novice User
- Posts: 1305
- Joined: 12 Jun 2016 12:43
Re: आँखें ( कहानी )
रामधनी पागलों की तरह बडबडाने लगा -” भाई जी, उस ने बद्दुआ दी हैं. यह तो पूरी हो कर रहेगी. माँ बनने वाली थी. उसकी बात खाली नहीँ जायेगी. आपने देखा, उसकी आँखों में ? प्रायश्चित करना ही होगा. प्रायश्चित…”
दोनों मित्र घबड़ा गये. उनका नशा उतर गया था. अपने को सम्भल कर वे झट कार के पास लौटे. चारो ओर फैला सन्नाटा देख चैन की साँस ली, चलो किसी ने देखा तो नहीँ. शायद अपने सर्वज्ञ इष्टदेव का उन्हे स्मरण नहीँ आया.
ललाट पर आये पसीने और बरसात की बूँदें घुल मिल गये थे. इन्द्र ने तुरंत निर्णय लिया और बौखलाये रामधनी को पीछे की सीट पर ठेल कर बैठा स्वयं चालक की सीट पर बैठ गया. चंद्र उसके बगल की सीट पर बैठ गया.
लखनऊ पहुँचने तक कार में मौन छाया रहा. हजरतगंज चौराहे की लाल बत्ती पर कार रुकी. तभी अचानक रामधनी कार से उतर कर हनुमान मंदिर की ओर दौड़ गया. दोनों मित्र भी कार किनारे रोक उसके पीछे पीछे मंदिर पहुँचे.
उन्होंने देखा रामधनी मंदिर के फर्श पर साष्टांग लोट रहा हैं. और हनुमान जी के चरणों में ललाट टिकाये कुछ बुदबुदा रहा हैं. पुजारी हैरानी से उसे देख रहे हैं.
चंद्र ने लपक कर उसे उठाया और तेज़ी से कार की ओर बढ़ गया. इन्द्र पुजारी से माफी माँगने के अंदाज़ में बोल पड़ा -“पत्नी की बीमारी से बड़ा परेशान हैं , बेचारा.” रामधनी को रास्ते भर मुँह ना खोलने का निर्देश दोनों देते रहे , और वह लगातार प्रायश्चित्त की बात करता रहा.
कभी कभी दोनों उस घटना को याद करते. तब लगता जैसे उसकी पथराई अधखुली आँखें उन्हें घूर रहीं हैं. पर जल्दी ही दोनों ने इन बातों को बिसार दिया. हँसते खेलते परिवार और बच्चों के साथ जिंदगी अच्छी कटने लगी.
****
आज़ , इतने वर्षों बाद उसी जगह पर अपनी संतान के रक्त से रक्तीम हो रहीं लाल सड़क पर लगा जैसे एक कमजोर पड़ती दर्द भरी आवाज़ उनके कानों मे गूँजने लगी
– तुम्हारा वंश कभी नहीँ बढेगा……
दोनों मित्र घबड़ा गये. उनका नशा उतर गया था. अपने को सम्भल कर वे झट कार के पास लौटे. चारो ओर फैला सन्नाटा देख चैन की साँस ली, चलो किसी ने देखा तो नहीँ. शायद अपने सर्वज्ञ इष्टदेव का उन्हे स्मरण नहीँ आया.
ललाट पर आये पसीने और बरसात की बूँदें घुल मिल गये थे. इन्द्र ने तुरंत निर्णय लिया और बौखलाये रामधनी को पीछे की सीट पर ठेल कर बैठा स्वयं चालक की सीट पर बैठ गया. चंद्र उसके बगल की सीट पर बैठ गया.
लखनऊ पहुँचने तक कार में मौन छाया रहा. हजरतगंज चौराहे की लाल बत्ती पर कार रुकी. तभी अचानक रामधनी कार से उतर कर हनुमान मंदिर की ओर दौड़ गया. दोनों मित्र भी कार किनारे रोक उसके पीछे पीछे मंदिर पहुँचे.
उन्होंने देखा रामधनी मंदिर के फर्श पर साष्टांग लोट रहा हैं. और हनुमान जी के चरणों में ललाट टिकाये कुछ बुदबुदा रहा हैं. पुजारी हैरानी से उसे देख रहे हैं.
चंद्र ने लपक कर उसे उठाया और तेज़ी से कार की ओर बढ़ गया. इन्द्र पुजारी से माफी माँगने के अंदाज़ में बोल पड़ा -“पत्नी की बीमारी से बड़ा परेशान हैं , बेचारा.” रामधनी को रास्ते भर मुँह ना खोलने का निर्देश दोनों देते रहे , और वह लगातार प्रायश्चित्त की बात करता रहा.
कभी कभी दोनों उस घटना को याद करते. तब लगता जैसे उसकी पथराई अधखुली आँखें उन्हें घूर रहीं हैं. पर जल्दी ही दोनों ने इन बातों को बिसार दिया. हँसते खेलते परिवार और बच्चों के साथ जिंदगी अच्छी कटने लगी.
****
आज़ , इतने वर्षों बाद उसी जगह पर अपनी संतान के रक्त से रक्तीम हो रहीं लाल सड़क पर लगा जैसे एक कमजोर पड़ती दर्द भरी आवाज़ उनके कानों मे गूँजने लगी
– तुम्हारा वंश कभी नहीँ बढेगा……
मित्रो नीचे दी हुई कहानियाँ ज़रूर पढ़ें
जवानी की तपिश Running करीना कपूर की पहली ट्रेन (रेल) यात्रा Running सिफली अमल ( काला जादू ) complete हरामी पड़ोसी complete मौका है चुदाई का complete बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete मैं ,दीदी और दोस्त complete मेरी बहनें मेरी जिंदगी complete अहसान complete
जवानी की तपिश Running करीना कपूर की पहली ट्रेन (रेल) यात्रा Running सिफली अमल ( काला जादू ) complete हरामी पड़ोसी complete मौका है चुदाई का complete बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete मैं ,दीदी और दोस्त complete मेरी बहनें मेरी जिंदगी complete अहसान complete