चीते का दुश्मन complete

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007
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Re: चीते का दुश्मन

Post by 007 »

""गुरु, इन रहस्यों को जानने के लिए मैँ भी बेचैन हूं जल्दी से इस टापू की ओर चलो I”



पढने के बाद विजय मुस्कराया और बोला…“तुम उधर मत जाना प्यारे वरना तुम भी हवा में उड़ने लगोगे I”



"गुरू . !" विकास इस प्रकार बोला मानो उसने तुरंत कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय ले लिया हो…“मैं सागर की गर्भ मे टुम्बकटू के यान की खोज करता हूं । आप दोनों इस टापू पर पहुंचकर इन अजीबोगरीब घटनाओं के बारे में पता लगाओ ।"



"अब तुम फालतू बातें न करो प्यारे, सभी ठीक है क्योंकि तुम्हारे दिमाग का बैलेंस बिगड़ गया है I” बिजय बोला-" अबे मियां, तुम्हें सागर के बीच मे यहां छोडकर हम भला यहां से कैसे जा सकते हैं . . .अगर कोई मुसीबत आई तो क्या होगा?"



“आप फिर भूल रहे हैं गुरु कि आप किसी भी स्थिति में मेरी सहायता नहीं करेगे ।” बिकास गुर्राया-""मैं सोच रहा था कि आप व्यर्थ ही यहां बोर होंगे । इससे अच्छा है कि आप टापू पर जाकर इन तिलिस्मी घटनाओँ का रहस्य जाने I”



विजय ने विकास को समझाने की भरपूर कोशिश की लेकिन विकास ने एक नहीं सुनी । वह अपनी जिद पर अड चुका था । ये सारा ज़माना जानता है कि जब बिकास क्रो किसी बात की जिद हो जाती है तो खुदा भी उसकी जिद नहीं तोड सकता, हजारों ढंग से विजय ने उसे समझाने की चेष्टा की,
लेकिन उसके भेजे में एक भी बात नही घुसी । अंत में यही हुआ कि विजय को विकास की जिद माननी पडी । निश्चय यही हुआ कि वह अकेला टुम्बकटू के यान तक पहुचने का प्रयास करेगा और धनुषटंकार एवं विजय टापू की ओर बढेगे । बिकास अपने अभियान पर बढने की पूरी तैयारी कर ही चुका था ।




बस चलते समय उसने एक बार विजय के चरण स्पर्श किए ।



"दो-तीन बच्चों और एक अदद बीबी के साथ समुद्र से बाहर आओ मेरे लाल. .!” अपने ढंग से आशीर्वाद देते हुए विजय ने उसके दोनों कान पकडकर उसे ऊपर उठाया और अपने गले से लिपटा लिया । विकास ने भी विजय को अपनी लम्बी बांहों में समेटा और शरारत के साथ पूरी शक्ति से भीचकर विजय की हड्रिडयां तक चटका देने का इरादा किया, लेकिन अजीब ढंग से बिजय उसकी बांहों में तड़पा और फिसलकर उसकी गिरफ्त से निकल गया ।



"क्यों बेटे...गुरु से उस्तादी I” बिजय उसे सामने खड़ा आंख मारकर कह रहा था ।



“लेकिन असली उस्ताद निकले आप ही गुरु. . ." बिकास मोहक ढंग से मुस्कराता हुआ बोला-“अच्छा प्यारे मोंटी, चले I”



धनुषटंकार ने डायरी का लिखा हुआ पेज उसकी तरफ बढाया । बिकास ने पढ़ा ।"…“हमारा आशीर्वाद चुम्बक की तरह आपसे चिपका हुआ है, गुरु ।"
इधर इस वाक्य को पढकर विकास मुस्कराया, उधर धनुषटंकार ने उसके चरण स्पर्श किए I उसी क्षण बिकास ने महसूस किया l नीचे से घनुषटंकार उसकी दोनो टांगे पक्रड़कऱ खींचना चाहता है । यह अनुभव होते ही बिकास ने फुर्ती का प्रदर्शन करके अपना स्थान छोड दिया । वास्तव में धनुषटंकार उसके दोनों पैर खींचकर उसे गिरा देना चाहता था, लेकिन बिकास की सतर्कता के कारण असफल होकर रह गया ।



"लो गुरु. . !" बिकास विजय से बोला…"ये भी साला हमारे ही नक्शे-कदम पर चल रहा है I"



"करनी तो भरनी ही पड़ेगी, बेटे. .!" विजय ने कहा…“जैसा तुम गुरु के साथ करोगे वैसा ही तुम्हारा चेला तुम्हारे साथ l"


तब तक धनुषटंकार दोनों बाहे बिकास के गले में डालकर उसके गालों पर दो'-तीन चुम्बन ले चुका था । विकास ने उसे प्यार किया और बोला…""सदा सुहागन रहो. . . I”



इस प्रकार. . .



मनोरंजन से भरपूर विदाई के पश्चात विकास डेक के किनारे पर पहुंचा और फिर बिना किसी से भी कुछ कहे एकदम डेक पर से उफनते सागर में कूद गया । विजय और धनुषटंकार ने झपटकर उस स्थान को देखा जहां बिकास कूदा था, लेकिन अब वहां क्या था उफनत्ते हुए सागर की लहरें । पानी की इन दीवारों ने लड़कै को अपने आगोश में छुपा लिया था । न जाने क्यों...विजय और धनुषटंकार का दिल बडी तेजी से धड़क उठा था ।



और विकास!


मौत से खेलने का शौकीन ये लडका ।

ज्वार से गूंजते हुए सागर के पानी से टकराया-उफनती हुई लहरों ने उछालना चाहा किन्तु लहरों का कलेजा चीरकर लडका उसके सीने मेँ घुस गया ।



अपने हाथ…पैरों को गति देकर वह सागर के गर्भ मेँ उतरता ही चला गया । उमड़ती-घुमड़ती लहरों ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वो विकास था ।



भारत माता का एक ऐसा सपूत जो गरजते हुए सागर का सीना चीरकर उसके गर्भ में पहुचना खेल समझता था । लहरों के प्रयास को विफल करता हुआ वह नीचे. . और नीचे उतरता ही चला गया । उसके चारों तरफ पानी था... पानी...पानी-ही…पानी.. .मगर पानी का जिगर चीरकर वह सागर की अनंत गहराइयों में उतरता चला जा रहा था I हिंद का ये बेटा मौत से क्य डरता था? गेस मास्क उसके चेहरे पर चढा हुआ था । हेड पर रोशन टॉर्च बराबर उसका मार्गदर्शन कर रही थी । वह जानता था कि सागर में अनेक खतरे हैं l उनमे से किसी भी खतरे से टकराने के लिए उसकी मझर-गन पूरी तरह तैयार थी।




वह सागर के गर्भ में जितना नीचे उतरता चला जा रहा था लहरों की उथल-पुथल उतनी ही कम होती जा रही थी । सागर के नीचे जितना भी नीचे वह उतरता जा रहा था सागर उतना ही शांत होता जा रहा था । बीस मिनट पश्चात वह बिल्कुल शांत पडे सागर के पानी में तैर रहा था । उसके इर्द-गिर्द छोटी-छोटीं मछलियां अठखेलियां कर रही थीं मगर उनकी ओर किसी प्रकार का भी ध्यान न देकर वह सावधानी से इधर-उधर देख रहा था l साथ ही वह सागर की गहराइयों मे उतरता जा रहा था.. .नीचे, खूब नीचे ।

लगातार दो घंटे तक वह नीचे उतरता रहा ।



इस समय उसके पास जल में डूबी हुई चट्टाने थी । उसके चारों ओर चट्टानों का जाल-सा बिछा हुआ था । इसके अतिरिक्त छोटे-मोटे समुद्री कीड़े मंडरा रहे थे ।



लेकिन विकास निश्चित था क्योंकि वह जानता था कि कीडे उसे किसी प्रकार की हानि नहीं पहुचा सकते। इसे विकास का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि अभी तक उसका सामना किसी भी ऐसे समुद्गी जीव से नहीं हुआ था जिसके लिए उसे अपनी मझर-गन का इस्तेमाल करना पड़ता। इस समय भी वह बराबर टुम्बकटू के यान की तलाश में इधर-उधर तैर रहा था. . .मगर यह स्थान चारों तरफ से समुद्गी चट्टानों से घिरा हुआ था । चट्टानो में जगह-जगह दरारें बनी हुई थी । विकास को वह स्थान निश्चित नही मालूम था कि टुम्बकटू का यान कहां है? मालूम होता भी कैसे. . .टुम्बकटू ने यान की निश्चित दिशा और गहराई फिल्म में नहीं बताई थी । केवल सागर का ऊपर केंद्र लिखा था । उसने लिखा था कि फलां जगह के आसपास नीचे सागर में कहीं उसका यान है । वह उसी कैद्र पर उतरा था जहां तक का टुम्बकटू ने फिल्म में नक्शा बनाया था । बस. . .यही उस यान को तलाश करना था ।



उसे और कुछ नहीं सूझा तो चट्टानों के मध्य बनी अनेक चट्टानों में से एक चट्टान के अंदर प्रविष्ट होता चला गया । वह सागरीय चट्टान के बीच तैरता चला गया । चट्टान का चक्कर लगाने के बाद वह तीस मिनट पश्चात पुन: खुले सागर में आ गया. . ...लेकिन चट्टान का अंतिम मोड़ काटते ही


गेस-सिलेडर के पीछे उसकी आंखें उठी । उसे अपनी मंजिल मिल गई थी ।



उसके सामने ठीक वही दृश्य था जो टुम्बकटू की फिल्म में वह कई बार देख चुका था । एक विशाल यान ठीक उसी स्थिति मेँ उसके सामने था । विकास को लगा जेसे यान की फिल्म में यान की बाहरी बॉडी का फोटो इसी चट्टान से लिया गया था । पांच कोनों वाला वो बिचित्र यान उसके सामने था । मगर मंजिल को सामने देखकर लडके ने अपने दिमाग का वैलेस नहीं खोया । चट्टान की आड में छुपकर उसने भलीभांति यान के इर्द…गिर्द यान के द्धार की ओर तैरने लगा । यान का वो द्वार बंद था लेकिन विकास को इस बात की तनिक भी चिंता नहीं थी । अपनी फिल्म में टुम्बकटू ने यान के इस द्धार को बाहर से खोलने की विधि स्पष्ट रूप से लिखीं थी ।



बिना किसी क्षति के विकास यान के द्वार तक पहुंच गया l



सम्पूर्ण यान सागरीय चट्टानों की भांति समुद्र के पानी मेँ डूबा हुआ था । बिकास तैरता हुआ यान की दीवार के करीब पहुचा । यान की दीवार से सटता हुआ बिकास द्धार की ओर बढ़ने लगा l द्वार के पास ही एक विशाल और भारी…सा बिचित्र-सी धातु का हेडिल था ।


बिकास ने अपनी मझर-गन कपडों में ढूंसी और दोनों हाथों से हैंडिंल पकड़कर उस पर झूल गया । कितु हैंडिल टस-से-मस नहीं हुआ ।



विकास ने एक बार पुन: हेंडिल पर अपनी उंगलियों की पकड़ सख्त की और एक बार पूरी शक्ति से उसने एक झटका दिया ।



अजीब-सी गड़गड़ाहट पानी का कलेजा दूर तक चीरती चली गई और इस्पात का भारी दरवाजा खुल गया ।

तैरता हुआ विकास पानी के साथ उसी मेँ प्रविष्ट हो गया । फिल्म में इस द्धार को बंद करने की युक्ति भी अंकित थी । तैरता हुआ वह यान के पानी से भरे कक्ष में आ गया l दीवार के अंदर भी एक वेसा ही हैँडिल था । पूरी शक्ति लगाकर विकास ने हेडिल ऊपर उटा लिया ।



उसी गड़गड़ाहट के साथ यान का द्धार पुन: बंद हो गया I



यान के उस कक्ष में अंधकार था । बिकास के शीर्ष पर लगी टॉर्च उसे पराजित कर रही थी I बिकास ने पहली बार ध्यान से कक्ष को देखा'-यान का यह कक्ष अत्यंत ही छोटा था । कक्ष मेँ विकास के सीने तक पानी भरा हुआ था । उसे अच्छी तरह याद था कि फिल्म में अगला दृश्य इसी कक्ष का था । उसे ये भी याद था कि इस कक्ष मेँ एक सीढी होनी चाहिए । उसकी टॉर्च का प्रकाश सीढियों पर पडा भी नहीं कि अंधेरे में ही सीढियां उसे चमक गई । सीढी इस तरह चमक रही थी जैसे अंधेरे में रखा हुआ सोना चमकता है ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: चीते का दुश्मन

Post by 007 »

विकास की समझ में नहीं आया कि सीढी इतनी चमक क्यो रही है ।



कुछ सोचते हुए उसने अपने हेट के शीर्ष पर चमकती हुई टोंर्च आँफ़ कर दी । कक्ष मेँ चारों ओर गहन अंधकार छा गया । लेकिन यह देखकर उसकी आंखों में हत्का-सा आश्चर्य उभर आया कि इस गहन अंधेरे में सुनहरी सीढियां स्पष्ट चमक रही थीं । अगर यूं कहा जाए कि सीढियों की चमक से कक्ष में हल्का हल्का-सा सुनहरा प्रकाश था तब भी अतिशयोक्ति नहीं होगी ।



विकास को लगा कि सीढियां सोने की बनी हुई है ।
यह सीढी ठीक इस प्रकार की थी जैसे आमतौर पर लकडी की सीढियां होती हैं । सीढी का आधा भाग नीचे पानी मे गुम था और आधा ऊपर कक्ष की छत तक चला गया था ।



फिल्म में इस सीढी के बारे में केवल ये लिखा हुआ था कि इस कक्ष में एक सीढी होगीं जो कक्ष के फर्श से छत तक होगी । जब इस सीढी के सबसे निचले डंडे, अर्थात् जो डंडा पानी में डूबा हुआ होगा, पर पैर रखेंगे तो आगे बढने का रास्ता आपको खुद ही मिल जाएगा । उसमें ये नहीं बताया गया था कि ये सीढी गोल्ड की बनी हुईं होगी । एक क्षण तक विकास आश्चर्य के साथ उस सीढी को देखता रहा और अगले ही पल वह तैरकर उसके करीब पहुच गया । सीढी के पास जाकर उसने चमकते हुए डंडों को पकडा और पैर से सीढी के सबसे निचले डंडे को टटोलकर उस पर चढ गया ।



उसी क्षण ।



कक्ष में एक ऐसा धमाका हुआ जैसे कोई बम फटा हो । विकास के हाथ से सीढी छुटते छूटते रह गई । इस धमाके के कारण एक क्षण के लिए बिकास की आंखें बंद हो गई थी ।



और जब खुली तो एकदम इतनी तीव्र चमक उसकी आंखों में घुसी कि उसे पुन: आंखें बंद करनी पडी । इसके बाद उसने धीरे-धीरे आंखें खोली-उसकी आंखें न केवल खुली बल्कि हैरत से फैलती चली गईं ।



कक्ष की छत की सीढी के पास वाला थोड़ा-सा भाग गायब था और उस ऊपर वाले कक्ष से ऐसी तीव्र सुनहरी चमक उसी कक्ष में झांक रही थी कि एकटक विकास देख नहीं सका । उसने देखा…ये सुनहरी चमक गोल्ड के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु की नहीं थी । उसने वही से खड़े-खड़े ऊपर देखा ।
इस कक्ष की छत में बने जिस गड्ढे से ये गोल्ड का चमकदार सुनहरा प्रकाश आ रहा था उस कक्ष की छत का थ्रोड़ा-सा भाग उसे चमक रहा था । उस छत को देखते ही उसकी आंखें हैरत से फटी-की-फ़टी रह गई । सारी छत अनेक चमकदार हीरों से जडी हुई थी ।


ऐसे चमकदार हीरे जिनकी और बिकास लगातार देख भी नहीं सका । विकास अपने दिमाग को समझा नहीं पा रहा था कि वो जो कुछ देख रहा है वह सवप्न नहीं हकीकत है । | उसके दिल मेँ उस कमरे में पहुचने की तीव्र जिज्ञासा जागी । किन्तु तभी । उसके दिमाग में जैसे एकदम खतरे की घंटी घनघना उठी । उसे याद आया,


फिल्म में लिखा था…"सावधान. . .पानी से भरे हुए कक्ष के ऊपर जो कक्ष है , आपके लिए एक अजीबोगरीब मुसीबत है । अगर आप सतर्क नहीं रहे तो यहीं पर धोखा खा जाएंगे l टुम्बकटू की फिल्म में लिखे ये शब्द विकास के मस्तिष्क-पटल पर उभरे और वह एकदम सतर्क हो गया l


उसके दिमाग में अजीबोगरीब प्रश्न चकराने लगे ।


इस कमरे पे उसके लिए क्या खतरा हो सकता है?


अगर ये पता लग जाए कि खतरा किस प्रकार का है तो वह उस खतरे से निपटने के लिए भी तैयार हो जाए परंतु उसे केवल ये मालूम था कि ऊपर वाले कक्ष में कोई खतरा है, किंतु खतरा किस बात का है? इस बारे मेँ उसे कोई ज्ञान नहीं था I



लेकिन चाहे कुछ भी हो । आगे तो उसे बढना जरूर ही था l
वास्तव में यह बात सत्य थी कि खतरों से खेलने वाला व्यक्ति वहां तक पहुच ही नहीं सकता था I अपने लिबास से मझर-गन निकालकर उसने हाथ में ले ली । प्रत्येक खतरे का मुकाबला करने के लिए पूर्णतया तैयार होकर वह ऊपर चढा । मझर-गन का रुख ऊपर की ओर था और विकास की उंगली हर पल उसके ट्रेगर पर थी ।



किसी खतरे की प्रतीक्षा करता हुआ वह ऊपर पहुचा...लेक्रिन उस समय तक किसी भी प्रकार का खतरा उसके सामने नहीं आया I अब वह सीढी के सबसे ऊपरी डंडे पर खड़ा हो गया । उसके जिस्म का आधा ऊपरी भाग अब ऊपर वाले चमकते कक्ष में था I



बिकास ध्यान से पूरे कक्ष का निरीक्षण कर रहा था । इस कमरे का फर्श गोल्ड का था और पांच दीवारे तथा छत हीरों और जवाहरातों से जडी हुई थीं । उसे याद था कि फिल्प मेँ लिखा था…"इस कक्ष की एक दीवार में एक रिग होगा आपको वही रिग घुमाना है I आगे का रास्ता खुद ही आपके सामने होगा. ..लेकिन. ..सावधान...इस रिंग तक पेहुंचना हिमालय की चोटी पर चढने से भी कठिन है I


ये पंक्तियां बिकास के जेहन में चकरा रही थीं । वह पूरे ध्यान से देख रहा था कमरा एकदम खाली था । कुछ देर तक वह गन सम्भाले किसी खतरे की प्रतीक्षा में नीचे सीढी के एक डंडे से पैर उलझाए खडा रहा I



मगर. किसी प्रकार का कोई खतरा उसे नजर नहीं आया ।



उसकी दृष्टि अब दाईं ओर की दीवार के बीच बने पन्नों के उस रिग पर स्थिर थी ।




वह सोच रहा था कि फिल्म में लिखी हुई अभी तक एक भी बात गलत साबित नहीँ हुई है । क्रदचित इसलिए उसे लग रहा था कि इस रिंग तक पहुचते पहुंचते उस पर कोई खतरा अवश्य आएगा । मगर खतरा आएगा किस तरह का? इस प्रश्न का उत्तर विकास ने लाख सोचा लेकिन मिला नहीं ।



अंत में उसने यही निश्चय किया कि देखा जाएगा जो होगा । आगे तो बढना है ही l




बस यही सोचकर उसने अपना सीढी में उलझा हुआ पैर सीढी से निकालकर ऊपर वाले कक्ष के गोल्ड फर्श पर रखना चाहा. . परंतु उसी क्षण वह मात खा गया । एक क्षण में उसके जेहन में आया बो खतरे से घिर गया है । लेकिन खतरा ऐसा नहीं था जो उसे जरा भी सम्भलने का अवसर न देता । सीढी से पैर हटाते ही न केवल उसका बैलेंस एकदम बिगड गया बल्कि उसके अपने जिस्म पर उसका काबू नही रहा। एक क्षण के लिए उसे लगा कि उसका जिस्म एकदम भारहीन हो गया है । खतरे का आभास तो हुआ किन्तु इससे आगे उसका दिमाग काम भी नहीं कर पाया था कि क्षण-भर के लिए उसका जिस्म हवा में लहराया l



खटाक . . .



इस आवाज कै साथ ही बिकास का जिस्म बुरी तरह भिन्ना गया । सब कुछ इतनी तेजी से हुआ था कि वह यह भी नहीँ समझ पाया कि ये अचानक हो क्या गया? उसने तो केवल सीढी से पैर हटते ही. . .खुद को भारहीन महसूस किया । हवा में लहराया और अगले ही पल खटाक की आवाज़ के साथ उसका सिर कक्ष को छत से जाकर टकराया । यह तो गनीमत थी कि बिकास ने अभी तक गैस मास्क पहन रखा था बरना कठोर हीरों से टकराकर उसका सिर तरबूज़ की तरह फट गया होता । वह एकदम इस तरह छत की ओर खिंचा था मानो वह लोहा हो और छत चुम्बक ।



मझर-गन उसके हाथ से छूटकर उससे थोडी ही दूरी पर छत से चिपकी हुई थ्री ।



विकास का खुद सारा जिस्म छत से चिपका हुआ था । उसका चेहरा कक्ष के फर्श की ओर था । यानी वह छत से ठीक इस तरह चिपका हुआ था जैसे धरती पर कोई आदमी बिल्कुल चित्त अवस्था में लेट जाए यानी बिकास की गुद्दी...कमर, टांगों के पिछले भाग...सब कुछ छत से चिपका हुआ था और चेहरा, पेट, सीना इत्यादि फर्श को ओर । हीरों, पजों और गोल्ड की चमक उसकी आंखों में घुस रही थी ।



बिकास ने खुद को हिलाना-डुलाना चाहा. ..परंतु विफ़ल रहा ।



उसने तो कल्पना भी नहीं की थी कि वह ऐसे अजीब खतरे में घिरेगा? उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह इस अजीबोगरीब खतरे से निकले कैसे? वह पन्नों के बने उस रिग को देख रहा था और सोच रहा था ।



वास्तव में इस रिग तक पहुचना एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने से भी कठिन है । विकास के जिस्म का कोई भी अंग उसके नियंत्रण मेँ नहीं था । सारा खून उसके चेहरे पर जमा होता जा रहा था I खून से उसका चेहरा सुर्खं. . .और सुर्ख होता जा रहा था । उसे ऐसा लगा जैसे मौत नृत्य करती हुई उसकी तरफ बढ़ रही है. . . ।



फिनिश

विश्व के चुने हुए जासूसों से भरा हुआ वो बिशाल जलपोत सागर की छाती पर मस्त हाथी की भांति झूमता हुआ आगे बढ़ रहा था ।


जलपोत पर रूसो झंडा लहरा रहा था । जब बागारोफ इस जलपोत का प्रबंध करके बांड, माईक, रहमान इत्यादि जासूसों के पास पहुचा और उसे पता लगा कि टुम्बकटू उन सबको धोखा देकर फरार होने में सफल हो गया है.. .तो



बागारोफ ने चुन-चुनकर एक-एक जासूस क्रो अलग अलग सैक्सी गालियां सुना डाली ।


लेकिन अब क्या होना था?

चिडियां तो खेत चुग ही चुकी थीं ।


अंत में केवल इन महान जासूसों के पास रह गया टुम्बकटू का लेटर और नक्शा ।



एक वार फिर पुन: उन सब जासूसों के बीच मीटिंग हुई । इस मामले को लेकर ही कि उन्हें अब आगे करना क्या चाहिए? उनके हाथ मेँ इतने पापड बेलने के बाद आगे बढने का एक क्लू टुम्बकटू मिला था और वह भी हाथ से निकल गया ।



समस्या इसलिए खडी हो गई थी कि कई जासूसों ने यह सवाल उठा दिया था कि इस बात की क्या गारंटी है कि टुम्बकटू जो कुछ भी यहां छोड़ गया है वह सब सत्य है..?



यह भी तो सम्भव है कि टुम्बकटू उन्हें किसी प्रकारका धोखा देना चाहता हो ।


बस, यही एक समस्या अड़ गई । कुछ जासूसों का तर्क था कि टुम्बकटू को भला व्यर्थ ही अपने खजाने का पता देने की क्या ज़रूरत हे?
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Re: चीते का दुश्मन

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निश्चित रूप से वह जासूसों को परेशान कर रहा है मगर जासूसों का ख्याल था कि टुम्बकटू उन्हें बिल्कुल सही नक्शा दे गया है। जासूसों.
के विरोधी गुटों मे काफी देर तक गर्मा-गर्म बहस हुई और

अंत मेँ बागारोफ भिन्ना कर चीख पडा -"अबे हरामी के पिल्लो, केवल बड़बड़ ही करते रहोगे या कुछ काम भी करोगे । लुगाइयॉ की तरह ये बहस करना छोडो और कुछ निश्चय लो I"



अंत में निश्चय हुआ कि उनके पास टुम्बकटू के नक्शे के अतिरिक्त आगे बढ़ने के लिए और कुछ है नहीं I खाली बैठने से अच्छा है कि उसी कै आधार पर चला जाए. . .सम्भव है नक्शा सही हो । और. . . .



नतीजा ये हुआ कि उनका जलपोत इस समय उसी नक्शे कै आधार पर आगे बढ़ रहा था l इस यात्रा पर रवाना हुए आज उन्हें चौथा दिन था और इन चार दिनों मेँ उन पर किसी तरह की खास विपत्ति नहीं आई थी जबकि विश्व के महानतम जासूसों की ये टीम किसी भी तरह कै खतरे का मुकाबला करने कै लिए पूरी तरह तैयार और लैस थी ।



मंजिल पर पहुंचने कै लिए उन्हें अभी एक दिन की यात्रा और करनी थी । इस सारी यात्रा में वे इस बात का विशेष ख्याल रख रहे थे कि कहीं टुम्बकटू ने उन्हें गलत केंद्र न बता दिया हो. . इसलिए हमेशा दो-दो जासूसों का जोड़ा गोताखोरी की पोशाक पहनकर सम्भावित स्थानो पर सागर की गहराई तक जाकर भलीभांति निरीक्षण करते थे ।



पूरी सतर्कता के साथ अंतर्राष्टीय जासूसों का ये दल आगे बढ़ रहा था । उस समय बागारोफ अपने कक्ष में बैठा हुआ 'वोदका' (एक रूसी शराब) पी रहा था, तब वहाँ पर बांड ने प्रवेश किया ।

"तू बिना परमीशन कहां घुसता चला आ रहा है अंग्रेज़ की दुम I" उसे देखते ही बागारोफ ने आंखे निकाली ।



“आपको मालूम है चचा कि त्वांगली और रहमान गोताखोरी की पोशाक पहने हुए आज नीचे गए हैं I”



"अबे तो फिर दिक्कत क्या है, हरामी के पिल्ले I”



“चचा, वे नीचे से खतरे का सिग्नल दे रहे हैं I” बांड ने जेसे विस्फोट किया ।



"क्या…?" बागारोफ उछलकर खडा हो गया-"कैसा खतरा I”



"अभी तक ये पता नहीं लग पाया है, चचा I" बांड ने कहा…"लेकिन वे लगातार पिछले पंद्रह मिनट से खतरे का सिग्नल दे रहे हैं I"



"अबे तो चिडी के इक्को, पहले क्यों नहीं बताया ।" भडक गया बागारोफ…“आ मेरे साथ I”



और वे दोनों तेजी से चलते हुए मैसेज़-रूम मेँ आ गए । वहां पर पहले से ही माईक इत्यादि चार…पांच जासूस मौजूद थे l मगर बागारोफ भीड को चीरता हुआ ट्रांसमिटर पर पहुचा ।




वे नीचे गए गोताखोरों से बात नहीं कर सकते थे । उस ट्रांसमिटर में अलग-अलग रंग के कई बटन लगे हुए थे। हरा बटन जलने-बुझने का अर्थ था कि कोई खतरा नहीं है और गोताखोर सुरक्षित हैं । लाल बल्ब जलने-बुझने का अर्थ था'-खतरा! पीले बल्ब का अर्थ था वे वापस आ रहे हैं ।



नीले का मतलब था वे अभी सागर की और अधिक गहराई में उतर रहे हैं, इत्यादि ।
बागारोफ ने देखा'--रह-रहकर लाल बल्ब जल-बुझ रहा था ।




एक मिनट तक वह भी शांति के साथ बल्ब को देखता रहा । फिर अचानक चीख पडा…“अबे ओ चोट्टी के इतनी देर से ये खतरे का सिग्नल दे रहे हैं और तुम सब मुह लटकाए खडे हो-हरामजादों, गोताखोरी की पोशाक लाओ ।"



"चचा . . . ! "



“चुप भूतनी कै I" बागारोफ ने माईक क्रो एकदम डपट दिया-“साले खुद को तीसमारखां बनते हैं और वे इतनी देर से सिग्नल दे रहे है और तुम केवल देख रहे हो उनकी मदद के बारे में एक भी नहीं सोच रहा है I”




" सोचने की बात ये है चचा कि खतरा हो क्रिस प्रकार का सकता हे ।” बरगेन शॉ बोला जो इन चार दिनों में काफी स्वस्थ हो चुका था ।



"नीचे तेरी अमां रो रही होगी चटनी के ।’ भडक गया बागारोफ-"अबे उन्हें बचाओ. . .अबे मेरी पोशाक. . .!"




“चचा...।" बागारोफ की बात बीच में काटकर जेम्सबांड बोला…“देखो...!" उसका संकेत ट्रांसमिटर की तरफ़ था l



“क्या देखूं उल्लू के पट्ठे?" भडकता हुआ बागारोफ फिरक्नी की तरह ट्रांसमिटर की ओर घूम गया । उसने देखा…अब लाल बल्ब के स्थान पर रह-रहकर पीला बल्ब जल रहा था ।


इसका सीधा-सा मतलब था कि दोनों ऊपर आ रहे हैं । एक क्षण तक वह पुन: उसी क्रो देखता रहा । फिर चीखा-“अवे ऊंटनी वालों, मेरे बच्चे आ रहे हे जल्दी से लांच सागर में उतारो ।"

बागारोफ का आदेश जारी होते ही वह काम तेजी से होने लगा । बागारोफ, बांड और माईक भी उस कक्ष में से निकलकर तेजी के साथ नीचे की तरफ़ बढे l



रास्ते में बागारोफ न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता जा रहा था? बांड और माईक उसकी बड़बड़ाहट पर कोई ध्वनि नहीं दे रहे थे ।



जल्दी ही एक लांच सागर में उतारी गई । तीनों लांच पर सवार हुए और यान से थोडी दूर ही गए होंगे कि. . .



उनसे थोडी दूरी पर ही रहमान और त्वांगली सागर के गर्भ से निकलकर बाहर आए ।





"अबे चोट्टी वालों I” उन्हें देखते ही बागारोफ ने एक नारा…सा लगाया ।



माईक ने तुरंत मोड़कर लांच का रुख उनकी तरफ कर दिया । रहमान और त्वांगली ने भी बागारोफ की आवाज सुन ली थी । वे भी तेजी से तैरकर लांच की तरफ बढे ।




पांच मिनट बाद ही बागारोफ ने त्वांगली को और बांड ने रहमान को लांच पर खींच तिया l



“अबे, क्या हुआ मुर्दे की औलाद I” बागारोफ ने त्वांगली का गेस मास्क उतारते हुए कहा l



इधर बांड ने रहमान का फेस मास्क उतार दिया था । दोनों के चेहरे हल्दी की तरह पीले पड़े हुए थे ।




दोनों की सांसें थोंकनी की भांति चल रही थी । चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं मानो सागर मेँ नीचे के बेहद खौफनाक दृश्य देखकर आए हो ।



आंखों से मौत का भय झांक रहा था मानो नीचे मौत है ओर इस मौत से वे बडी कठिनता से पीछा छुड़ाकर आए हैं ।



बागारोफ पर जब नहीं रहा गया तो चीख ही पड़।…"अबे, क्या बात है कड़वे चीनी, नीचे क्या देखा?"

"चचा...!" फूली हुई सांस पर काबू पाने की असफल चेष्टा करते हुआ बोला…उसने आगे भी बोलने का प्रयास किया लेकिन कंठ में जैसे सूखा पड़ गया ।



कुछ बोलने के स्थान पर उसके चेहरे का पीलापन बढ गया । आंखों से और भी अधिक भय झांकने लगा । चेहरा ऐसा हो गया जैसे बो अब मरा, अब मरा ।



"अबे, बक मुर्गी के, जल्दी बक क्या है?” बागारोफ़ झुंझला उठा…"अबे, नीचे क्या तेरी अम्मा नाच रही है?"




"च. . .च. . .चा. . .!" हिम्मत बटोर करके त्वांगली बोला…"भ. . .भूत. . ! "





और यह कहता-कहता त्वांगली एकदम बेहोश होकर लुढक गया, उसका अंतिम शब्द बांड के दिमाग मेँ विस्फोट-सा कर गया । उसके 'भूत' शब्द पर बांड और बागारोफ़ की आंखें मिली । बागारोफ़ बोला…“क्यों बे अंग्रेज के पिल्ले, इस चिड्रीमार ने क्या बका?”




"चचा, भूत कह रहा है ।” बांड ने बताया ।



“अजी भूत कह रहा है ।" बागारोफ़ झुंझला उठा…"ये साला चिडी का पंजा नीचे भूत देखकर आया है । अबे ओ बंगाली मुर्गे I" बागारोफ़ रहमान से बोला…“इस साले चिडीमार की मां तो मर गई, तू बता, अंदर क्या देखा? अबे, क्या तेरी भी मां वहां भूत बनकर नाच रही हे?"




“चचा. . .!" रहमान के होश गुम थे…“वो ठीक कहता है, सागर में भूत हैँ बहुत सारे ।"



"अबे, क्या बकता है?"



"यकीन करो चचा, नीचे भूत हैं, हजारों भूत…व. . .

"यकीन करो चचा, नीचे भूत हैं, हजारों भूत…व. . .वो हाथों से इशारा करके हमेँ बुला रहे थे l चचा, वे हजारो हैं . . लाखों ।"



""अबे, ऊंटनी के! भूत…बता क्या होती है?"




“भ. . .भूत ।।" रहमान के मुह से भी ये अंतिम शब्द निकला ।



और वह भी बेहोश होकर लुढक गया ।


जेम्सबांड और बागारोफ मुर्खों की तरह एक-दूसरे का मुह ताकते रह गए । दोनों में से कोई भी भूतों पर विश्वास नहीं करता था और ये दो महान जासूस इतने आतंकित थे कि दोनों भूत-भूत करके ही बेहोश हो गए? दोनों में से ये विश्वास किसी को भी नहीं आया कि सागर मेँ भूत हो सकते हैं I”



“क्यों बे चटनी के?” बागारोफ घूमकर माईक से बोला…"तूने इन चोट्टी वालों की बकवास सुनी?"



"क्या ख्याल है...?"



"इन्हें शक है, चचा l” लांच का संचालन करता हुआ माईक बोला-“दुनिया में भूत नाम की कोई वस्तु नहीं है, ये मन का शक है I”
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Re: चीते का दुश्मन

Post by 007 »

“जिंदगी मेँ पहली बार तूने मार्के की बात कही है मुर्गी चोर ।" बागारोफ बोला-" पहली बात तो भूत नाम की कोई वस्तु नहीं होती और अगर होती भी है तो दुनिया का सबसे बड़ा भूत तो मैं खुद हू । वैसे तो मैंने भूत-प्रेतों के बहुत किस्से सुने हैं, लेकिन कसम इन ईंट के पंजों की, समुद्र कै भूत के बारे मेँ इनसे पहली बार सुन रहा हूं I"



"लेकिन एक सोचने की बात जरूर है, चचा ।" बांड कुछ सोचता हुआ बोला ।


" तू भी बक I”

"ये तो मैं भी नहीं मानता कि भूत होते हैं . . लेकिन सोचने की बात ये है कि इनका इस तरह घबराना, डरना और भय के कारण बेहोश तक हो जाना इस बात का सबूत है ही कि निश्चित रूप से इन्होंने सागर में कुछ देखा। इन्होंने भूत न…न देखे हों, लेकिन सम्भव है कि कोई बहुत ही भयानक वस्तु देखी हो और ये भयभीत हो गए हों और ये उस वस्तु को भूत समझे हौं, मेरा मतलब ये है कि यहां सागर में कोई अनोखा रहस्य तो है ही I”




"बात तो तेरी भी ठीक है, अंग्रेजी पुत्तर ।" बागारोफ बोला…“लेकिन ये साला बंगाली हिरन तो ये कह रहा था कि उसने हजारों-लाखों भूत देखे हैं । ऐसे क्या सागर में भूत तांडव नृत्य कर रहे हैं । खैर, पहले इन्हें जहाज पर पहुचाओ, तब देखेंगे कैसे भूत हैं?”



बांड और माईक को बागारोफ की बात उचित ही लगी I पंद्रह मिनट पश्चात ही तीनों त्वांगली और रहमान उनके बेहोश जिस्मों को लेकर जहाज पर पहुच गए । जहाज पर मौजूद अन्य जासूसों क्रो सारा किस्सा सुनाया गया तो किसी को भी ये विश्वास नहीं हुआ कि सागर मेँ भूत हो सकते हैं ।।


सभी बिज्ञान पर विश्वास करने वाले आधुनिक जासूस थे । पहली बात तो ये कि जासूसों मेँ से एक भी ऐसा नहीं था जो ऐसी ऊटपटांग बात पर विश्वास करता ओर उस पर भी तुर्रा ये कि "सागर के भूत एक नहीं हजारों-लाखो?"



एक भी जासूस ऐसा नहीं था जिसे विश्वास आ जाता l बहुत-से जासूस उन दोनों को होश में लाने की चेष्टा कर रहे थे । जलपोत उसी स्थान पर रोक दिया गया था ।


सारी बात सुनने के बाद आँस्ट्रेलिया का जासूस हेम्बलर बोला--'"भूत, ये क्या बकवास है! इनका दिमाग खराब हो गया है, मैं इस रहस्य का पता लगाकर आता हू ।"




ग्रेन मास्क ने जार्ज हेम्बलर का समर्थन किया और कहा कि इस बार गोताखोरी की पोशाक पहनकर जार्ज हेम्बलर कै साथ वह सागर के गर्भ में जाएगा और वास्तविकता का पता लगाकर लाएगा । अन्य कई जासूसों ने उनके साथ जाने का अनुरोध किया मगर तय यही हुआ कि हेम्बलर और मास्क ही नीचे जाएंगे ।



वे दोनों बाकायदा गए ।



धड़कते दिल से सारे जासूस पुन: ट्रांसमिटर के इर्द-गिर्द एकत्रित हो गए । तीस मिनट तक नीला बल्ब जलता-बुझता रहा जिसका सीधा'-सा अर्थ था कि ये बराबर सागर की गहराई में उतरते जा रहे हैं । खतरे का भी कोई सिग्नल उन्होंने नहीं भेजा । सब धड़कत्ते दिल से आने वाले पलों की इंतजार करते रहे । इसके पश्चात लगातार पंद्रह मिनट तक हरे बल्ब पर सिग्नल मिलता रहा ।



और तब सबके दिल बुरी तरह धक-धक करने लगे जब अचानक लाल बल्ब पर खतरे का सिग्नल मिलने लगा । सबने चौककर एक-दूसरे की ओर देखा। मानो वे एक-दूसरे से पूछ रहे हों, जो मैँ देख रहा हूं क्या तुम भी देख रहे हो?



लेकिन ये सत्य था सब ठीक ही दृश्य देख रहे थे l ट्रांसमिटर पर मिलने वाला खतरे का सिग्नल I

"ये भी उल्लू कै पटूठे गधे की औलाद हैं l” बागारोफ गाली-रूपी अलंकारों से सुशोभित करता हुआ बोला…" इन सालों का भी दम निकल गया ।"




इस बार हर जासूस सोचने पर विवश हो गया कि आखिर नीचे क्या है? ये खतरे कै सिग्नल दिए क्यों जा रहे है? हर जासूस इस रहस्यपूर्ण गुत्थी में उलझा रहा और सबकी निगाह ट्रांसमिटर पर अटकी रही l लगातार बीस-पच्चीस मिनट तक खतरे का सिग्नल मिलता रहा । इसके पश्चात एकदम पीला सिग्नल मिला I



"तो ये सुअर भी दुम दबाकर आ रहे हैं । साले चर्खीं के..." बागारोफ़ बुदबुदाया ।



उनके लिए भी माईक, बांड और बागारोफ़ भी लांच लेकर सागर में पहुंचे। जब वे बाहर आए तो उनकी हालत भी त्वांगली और रहमान की तरह खस्ता थी । चेहरे पीले पड़ चुके थे । आंखों से भय झाक रहा था और उनकी मांति ही भूत-भूत करके वे भी बेहोश हो गए थे ।




बागारोफ़ ये भूत-भूत की रट सुनकर भिन्ना उठा था । उसका दिल तो ऐसा चाहा कि वह हेम्बलर और ग्रेन मास्क की खोपडी तोड दे किंतु काफी कोशिश के बाद उसने अपने दिल से उठने वाली इस पवित्र भावना का गला घोंट दिया । उन्हें भी जलपोत पर लाया गया । जब अन्य जासूसों ने ये सुना कि वे दोनो भूत-भूत की रट लगाते हुए सागर से बाहर निकले हैं तो अधिकांश जासूस सकते की हालत में आ गए । उन्हें याद था कि दोनों ने जाते समय भूत शब्द का किस दृढता से विरोध किया था लेकिन बाहर आए भूत-भूत कहते हुए ।


कई जासूसों कं दिमाग में तो आया कि कही सागर में वास्तव में ही तो भूत नही हैं? इस बार हर व्यक्ति थोड़े दूसरे ढंग से सोचने पर विवश हो गया । माईक सोच रहा था कि भूत तो कुछ होते नहीं लेकिन सागर के गर्म में आखिर बो है कौन सी वस्तु जिसे देखकर चारों भूत-भूत क्री रट लगा रहे हैं? अजीब सी गुत्थी पेश हो गई थी ।


"मुझे लगता है हरामी के पिल्लो कि तुम सभी के दिमागों का बैलेंस एकदम बिगड गया है ।" बागारोफ भड़ककर बोला…“तुम सब सालो यही पर इश्क लड़ाओ इस बार मैं जा रहा हूं । मैं देखूंगा वो साले कौन-से भूत हैं?"



“तुम्हरि साथ मैं चलूगा, चचा l” जेम्सबांड ने कहा ।



"चुप बे चकरधिन्नी की औलाद. .!" भडक उठा बागारोफ…"बोलती पर ढक्कन लगाकर चुपचाप एक तरफ़ बैठ जा ।”


"चचा, मैं चलूगा I” ये आवाज़ माईक की थी ।



"क्यों रंडी की औलाद.. तुझमें क्या सुर्खी के पर लगे हैं जो वो मुर्गी चोर नहीं जाएगा I” बागारोफ उस पर इस प्रकार चढ दौड़ा मानो उसने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो-“अभी बूढी हड्रिडयों में जान है हरामी के पिल्लो. . .भूतों के लिए मैँ अकेला ही काफी हू'।"



बांड और माईक ने बागारोफ कै साथ चलने का काफी प्रयास किया लेकिन उसने बारी-बारी से दोनों को अपनी अलंकारयुक्त भाषा में खूब सुनाई ।


बागारोफ उसकी लिहाज से, क्योंकि जासूसों में सबसे बड़ा था इसलिए सभी उसकी इज्जत करते थे ।


इस इज्जत के कारण ही माईक और बांड को चुप रह जाना पड़ा । बड़बड़ाता हुआ बागारोफ गोताखोरी की पोशाक पहनने चला गया । "उम्र के साथ-साथ चचा का दिमाग सठिया गया है I" बांड उसके जाने के बाद माईक से बोला ।



"अकेले जाकर कहीँ चचा किसी मुसीबत में न र्फस जाएं ।" माईक ने सम्भावना व्यक्त की ।



“लेकिन उन्हें उनके निश्चय से रोक कौन सकता है?" बरगेन शा ने कहा ।



"चचा अब किसी की नहीं सुनेंगे. . . ।" माईक पुन: बोला ।



कुछ ही देर बाद बागारोफ गोताखोरी की पोशाक पहनकर बाहर आ गया । एक बार पुन: बांड बोला-"'मान जाओ चचा…किसी भी एक साथी को ले लो?”



"देख बे, मुर्गी चोर. . . I” बागारोफ गुर्राया---" अगर इस बार चटाख करने की कोशिश करेगा तो कान पर ऐसा हाथ मारूंगा कि सात पुश्तों तक औलाद बहरी पैदा होगी । अबे उल्लू की दुम, जरा ये तो सोच कि वे चारों साले चिड्रीमार ‘भूत-भूत करते हुए तो बाहर आए हैं लेकिन हजारों-लाखों भूतो में से इन्हें एक को भी किसी ने नहीं पकडा और पहले भी कह चुका हूं अंग्रेजी की दुम कि अगर नीचे भूत है तो दुनिया का सबसे बडा भूत मैं हूं ।"




बागारोफ को न मानना था और न ही वह माना ।



चेहरे पर मास्क चढाकर वह बेखौफ सागर में कूद गया, मझर-गन उसके दाएं हाथ में दबी हुई थी । रूस का ये सबसे बड़ा जासूस उत्तेजनात्मक स्थिति में भूतों से टकराने के लिए बराबर सागर के गर्भ मे उतरता जा रहा था ।

वह अपने साथियों को ट्रांसमिटर पर किसी प्रकार का कोई सिग्नल भी नहीं दे रहा था । वह अपनी पूरी तेजी के साथ सागर के गर्म में उतरता जा रहा था ।



निरंतर तीस मिनट तक वह नीचे-नीचे सागर में और अधिक नीचे उतरता चला गया ।


उसकी नजर अपने चारों ओर बडी सावधानी के साथ निरीक्षण कर रही थी ।



अचानक उसने एक दृश्य देखा और देखते ही बुरी तरह चोंक पड़ा । एकदम उसे भी लगा समुद्र का ये भाग हजारों भूतों के कब्जे में है । रहमान, त्वांगली हेम्बर की बात उसे ठीक ही लगी । अपने चारों ओर के दृश्य को देखकर उसके जिस्म में सनसनी-सी दोड़ गई । उसे ऐसा लगा जैसे मौत ने उसे चारों ओर से घेर लिया है । यह कहना अनुचित नहीँ होगा कि बागारोफ़ जैसा महान जासूस भी उस समय भूतों पर बिश्वास कर बैठा. . उसकी भी रूह फ़ना हो गई ।




इस समय उसके पैर सागर के रेतीले तले से टकराए थे । इस रेतीले तले में लम्बी-लम्बी समुद्गी घास उगी थी । अपने चारों ओर का दृश्य देखकर बागारोफ़ का सिर भिन्ना गया । उसके होश फाख्ता ही गए । कदाचित बागारोफ़ अपने जीवन मेँ पहली बार इतना अधिक भयभीत हुआ था ।



उसके इदं-गिर्द चारों और दुर दूर तक भूत थे । भयानक घिनौने और डरावने भूत ।



बागारोफ़ की उत्तेजना तेज हो चुकी थी । उसे लग रहा था कि वह भूतों के घेरे में र्फस गया है । किसी भी कीमत पर अब वह बच नहीं सकेगा।

उसके चारों ओर लम्बे लम्बे डरावने
भूत थे सैकडों! वे वास्तव मे हाथ हिला-हिलाकर जैसे उसे अपने पास बुला रहे थे ।



सागर का यह भाग जैसे उन्ही से भरा हुआ था । बागारोफ़ स्पष्ट देख रहा था उसके चारों ओर हजारों भूत थे । भयानक. . .डरावने और बेहद घृणित । उनके जिस्म पर कपड़े थे । जगह-जगह से फटे हुए चीथड़े से । वे सब सागर के रेत मे खड़े हुए इस तरह लहरा रहे थे जेसे नृत्य कर रहे हौं । उनके कपडे जगह-जगह से फ़टे हुए लीथड़े थे । वे सब सागर के रेत में खड़े हुए इस प्रकार लहरा रहे थे जैसे नृत्य कर रहे हो । इनके कपड़े पाश्चात्य सभ्यता के थे । हल्की हल्की सीटियों की आवाज पानी में तैर रही थी जो वहां बडी भयानक लग रही थी ।


ये सीटियां भी वे ही बजा रहे थे । कपड़े जगह-जगह से फट गए थे । किसी के जिस्म पर उखड़ा हुआ थोड़ा-सा गोश्त था तो कोई मात्र हड्डियों का कंकाल था । पानी मेँ वे इस प्रकार थिरकते से लग रहे थे मानो अपनी दुनिया में एक जिंदे व्यक्ति को देखकर खुशी से झूम रहे हों । उनके चारों और कई तो ऐसे ये जो सीधे उसी की ओर देख रहे थे और हाथ हिला-हिंलाकर उसे बुला रहे ये । बागारोफ ने ध्यान से देखा तो झुरझुरी-स्री उसके जिस्म मेँ दौड़ गई ।


उनके पैर लम्बी-लम्बी घास में छुपे हुए थे ।
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Re: चीते का दुश्मन

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सागर के गर्भ मे यह दृश्य बेहद डरावना लगता था, चागारोफ़ अभी अपने होश ठिकाने पर लगा भी नही पाया था कि उसके समीप खड़ा एक भूत तेजी से उस पर झपटा ।

अपनी पूरी फुर्ती का प्रदर्शन करके बागारोफ ने यह स्थान छोड दिया और उसने थोडी दूर जाकर उसकी ओर देखा तो महसूस किया कि वह भूत उसी को घूर रहा था और भयानक ढंग से हाथ हिला-हिलाकर उसे अपने करीब बुला रहा था ।



बागारोफ़ जैसे व्यक्ति का चेहरा भी पीला पड़ गया ।



शरीर मे काटो तो खून नहीं ।



बागारोफ़ ने अपनी ओर झपटने वाले भूत के चेहरे को ध्यान से देखा तो सिहर उठा । उस भूत के चेहरे पर नाममात्र को भी गोश्त नहीं था । मात्र हड्डियों का ढांचा। जिस्म के कपड़े चिथड़े से होकर उसकी हड्डियों पर झूल रहे थे । आंखों के स्थान पर दो गहरे गहरे गड्ढे थे । बागारोफ़ ने उन गड्ढो में देखा तो मौत की साफ़ परछाईं उसकी आंखों में उभर आई । सागर का पानी भूत की खोखली आंखों में से आर-पार हो रहा था l हड्डियों के बीच से पानी रिस रहा था ।



बागारोफ़ को ऐसा लग रहा था जैसे भूत बराबर उसी को घूर रहा है ।



जल्दी से घबराकर बागारोफ़ ने उस पर से अपनी नजर हटाई लेकिन जिधर भी नजर जाती उधर ही भूत । उसे महसूस हुआ कि सब उसी को घूर रहे हैं । जैसे एक शिकार को चारों और से शिकारियों की पूरी टोली ने घेर लिया हो । बागारोफ़ को गश-सा आने लगा ।।



उसे लगा अगर वह ज्यादा देर यहां रहा तो निश्चित रूप से ये भूत उसे मार डालेंगे । बस, उसने तेजी से अंगडाई ली और पानी में ऊपर उठता चला गया I भागने का प्रयास करते हुए बागारोफ़ की नजर अचानक एक काफी बडी मछली पर पडी । उसने देखा वह मछली दूर खडे हुए एक भूत कै चेहरे पर मौजूद उधड़ा हुआ गोश्त नोचकर भाग गई l

यह दृश्य बागारोफ ने स्पष्ट देखा और न जाने क्या सोचकर उसने भागने का प्रोग्राम एकदम केंसिल कर दिया ।


उसने सोचा…मछली भूत के चेहरे का गोश्त नोंचकर ले गई और भूत केवल अपने स्थान पर खडा हुआ लहराता रहा!


इसका मतलब चक्कर कुछ और है I इस बार उसने साहस करके अपनी मझर-गन सीधी की और एक भूत के चेहरे का निशाना लेकर तड़ातड़ दो तीन फायर कर दिए । मझर-गन की गोलियां भूत के चेहरे से टकराईं और यह देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि उस भूत का गर्दन से लेकर चेहरे और सिर वाला भाग गोलियां लगते ही एकदम खील-खील होकर बिखर गया I



अपनी सफ़लता पर बागारोफ़ की आंखे चमक उठी ।



उसका भय एकदम समाप्त हो गया । खोया हुआ आत्मविश्वास पूरी दृढ़ता के साथ वापस आ गया । अब क्या था? उसने तेजी से दूसरे कंकाल को निशाना लगाया । गोली कंकाल की रीढ की हड्डी से टकराई और उसी के साथ कंकाल लचककर टूटा और गिर गया I


इसके बाद ।


बागारोफ ने पांच-सात कंकालों को एकदम मझर-गन का निशाना बनाया । परिणाम यही था I अब उसका भय बिल्कुल ही समाप्त हो गया, वह पुन: तेजी से तैरकर उस कंकाल की ओर बढा जिसको उसने अब से पहले निशाना बनाया था । खासतौर से वह उसकी ओर इसलिए बढा क्योंकि उसकी गर्दन से ऊपर का भाग तो खील खील होकर बिखर ही गया था किंतु धड का हिस्सा अभी तक पानी में खड़ा उसी प्रकार लहरा रहा था ।

बेखौफ उसके करीब पहुंचकर बागारोफ ने पानी मेँ लहराते हुए कंकाल को दाएं हाथ से पकडा। उसके हाथ लगते ही कंकाल एकदम बिखर गया । उसकी गली हुई हड्डियां खील-खील होकर बिखर गईं । बिखरा हुआ कंकाल सागर के पानी में मिल गया l



बागारोफ के होंठों पर ऐसी मुस्कान नृत्य कर उठी मानो उसने दुनिया की महानतम समस्या सुलझा दी हो ।


और उधर ।



जलपोत पर जासूसों की सम्पूर्ण टीम वेहद बेचैन थी । जब से बागारोफ समुद्र में कूदा था तब से अभी तक उसकी और से किसी प्रकार का भी कोई सिग्नल ट्रांसमिटर पर इधर नहीं मिला था । बागारोफ को सागर में विलीन हुए पूरा एक घंटा हो चुका था । अभी तक किसी प्रकार का कोई सिग्नल न पाकर सारे जवान बुरी तरह बौखला चुके थे । सबके दिमागों में अजीब-अजीब…सी दुष्कृत्य घटनाओं का आवागमन होरहा था । सबके बीच में सन्नाटे की एक लम्बी दोबार थी । एक घंटे से लगातार सबकी निगाह बडी उत्सुकता के साथ ट्रांसमिटर पर जमी हुई थीं । मगर निराशा. . .निराशा. ..घोर निराशा।



“यार अजीब सनकी बूढा है कोई सिग्नल ही नहीं भेजा I” काफी देर से इस वाक्य की बांड अपने जहन मेँ ही दबाकर रख रहा था जो माईक ने एकदम कह दिया ।



"समझ मेँ नहीं आता कि अब क्या किया जाए?" बांड ने कहा ।



"बांड. . .मैं देखता हू ।" कहकर माईक तेजी से गोताखोरी की पोशाक पहनने चला गया l

केवल दस मिनट मेँ वह तैयार होकर बाहर आया और बोला…"मैं देखता हूं बांड कि बूढे को किस आफ़त ने घेर लिया I”



अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि अचानक ट्रांसमिटर पिक-पिक करने लगा । विद्युत गति से दोनों ट्रांसमिटर की ओर घूम गए I ट्रांसमिटर हरा सिग्नल दे रहा था । सभी जासूसों के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे ।



“लो साला अब सलामती की खबर दे रहा है I” बांड मुस्कराता हुआ बोला ।



"अजीब व्यक्ति है यार. . .तब से क्या सो रहा था?" माईक बुदबुदाया । सभी ट्रांसमिटर पर देख रहे थें ।


हरा सिग्नल मिल रहा था ।


इसका सीधा अर्थ ये था कि बागारोफ़ सुरक्षित है । कुछ देर हरे सिग्नल कै पश्चात पीला सिग्नल मिला । अर्थात् वागारोफ लोट रहा है ।



तुरंत माईक और बांड लांच लेकर उसके स्वागत में सागर में पहुच गए । माईक और बांड सहित अब सब जासूसों के दिल यह जानने के लिए धडक रहे थे कि देखते हैं बागारोफ क्या तीर मार आया है?




क्योंकि हरा सिग्नल मिलने का सीधा-सा कारण था कि बागारोफ़ सफ़ल ही गया हे l


उस क्षण जब बागारोफ सागर की सतह पर उभरा ।



"इधर चचा ।" माईक ने लांच पर से आवाज लगाई । बांड ने लांच का रुख तुरंत बागारोफ की ओर किया ।



बांड और माईक के अतिरिक्त जहाज के डेक पर खड़े हुए अन्य जासूसों ने भी बागारोफ को देखा तो एक बार को तो सबके जिस्म में सिहरन-सी दीड गई । उन्होंने देखा…बागारोफ़ के दोनों हाथों में दो कंकाल फसे हुए थे । उन्हें घसीटता हुआ वह बराबर लांच की और बढ़ रहा था ।


सभी जासूस उसे हैरतअंगेज दृष्टि से देख रहे थे ।


लांच उसके करीब पहुची । बागारोफ़ ने माईक को बाएं हाथ में थमा कंकाल थमाया । माईक ने कंकाल पकड़ तो लिया किंतु एक तीव्र घृनात्मक दुर्गध उसकी नाक में से होकर भेजे में उतरती चली गई ।



वह बदूबू उसी ककात से उठ रही थी । माईक को लगा कि इस भयानक सड़ांघ से उसका भेजा फ़ट जाएगा । किन्तु फिर भी उसने ककाल को खीचकर लांच में डाल लिया ।


इसके पश्चात बागारोफ़ ने बाएं हाथ में पकड़ा कंकाल उसे थमाया । भेजे को चीरती हुई ऐसी भयानक सड़ांघ उसमें से भी उठ रही थी । दोनों कंकालों कै पैर में लोहे की मोटी-मोटी वेडियां पडी हुई थी ।



दोनों कंकालों मेँ से ऐसी बदूबू उठ रही थी जैसे महीने-भर की सड्री हुईं लाश से उठ रही हो । ये बदूबू बांड के भेजे में भी उतरती चली गई । उसे लगा कि उसका दिमाग एकदम सड़ गया है । परंतु सांस रोककर वह बिना कुछ बोले बागारोफ़ के लांच पर चढने की प्रतीक्षा करता रहा ।



लांच पर आते ही बागारोफ़ ने अपना गेस मास्क उतार दिया । वही तेज सड़ांध उसके नथुनों में भी घुसती चली गई ।


"ये क्या उठा लाए, चचा?"


"ये ही तो हैं, वो साले समुद्री भूत I” बागारोफ़ बोला…"मैँ कहता था ना कि मैं सब भूतों का बाप हू ।"


"पूरा चक्कर क्या था, चचा?” लांच को जलपोत की और बढाते हुए बांड ने प्रश्न किया । “पूरा चक्कर सबको एक साथ जलपोत पर बताऊंगा हरांमखोंरों, वहीं चलो I”

और पंद्रह मिनट बाद ।



दोनों कंकाल बीच में पड़े थे और उनके चारों ओर जासूस खड़े थे । बागारोफ बडी शान से नमक-मिर्च लगाकर अपनी बहादुरी की कहानी सुना रहा था । अपनी डीग में वह उन तमाम बातों को छुपा गया था जब उन्हें वास्तव में भूत समझकर भागने लगा था । उसने तो बताया था कि पहली ही नज़र मे पहचान गया था कि ये भूत-वूत कुछ नही हे l चक्कर कुछ और ही है-बस उसने तुरंत झपट्टा मारकर कंकालों को पकड़ लिया ।



"लेकिन चचा, सागर में इन्हें देखकर भूतों का भ्रम क्यो होता था?" यह प्रश्न बरगेन शॉ ने किया ।



"अबे, भूतों का भ्रम कहां होता था उल्लू की दुम फाख्ता I” बागारोफ बोला…“वे ही साले चार चिड्रीमार इन्हें भूत समझते थे । मैं तो देखते ही समझ गया था कि ये भूत नहीं हैं । वैसे मैं यह समझ गया फि वे चारों इन्हें भूत कैसे समझे I”


"तो वही बता दो, चचा ।" माईक ने कहा ।


"असल बात ये थी कि इनके पैर सागर के रेत में बुरी तरह धंसे हुए थे । वहां रेत मे लम्बी-लम्बी घास थी । कुछ तो पैर रेत में धंसे हुए थे और कुछ इनके घुटनों तक का भाग लम्बी…लम्बी घास में उलझा रहता था । ये में तुम्हें बता ही चुका हूं कि सागर के तल मे ऐसे कंकाल सैकडों की संख्या मे थे । रेत में र्फसे और घास में उलझे होने के कारण ये गिरते नहीं थे । पानी की लहरों के सहारे ये लहराते-से रहते थे । पानी की लहरों पर ही इनके हाथ चलते थे...गर्दन भी हिलती थी

कभी-कभी जब पानी मे कोई तेज लहर इनसे टकराती तो ये बड्री जोर से लहराते जिसके कारण ऐसा प्रतीत होता कि ये हम पर झपट रहे हैं । वैसे सागर के तल में किसी भी आदमी का इनसे डर जाना बहुत ही स्वाभाविक बात थी । सागर के गर्भ मे जहां एक अथवा दो इंसान अकेले होते हे. . .वहां वे खुद को इन हजारों कंकालों के बीच में पाएं तो अच्छे-अच्छी के होश फाख्ता हो जाएं! कंकाल क्रो देखकर तो वैसे ही इंसान चीख पडता है और उस समय की कल्पना तो आप सरलता से ही कर सकते हैं जब दो व्यक्ति सागर के गर्भ मेँ हजारों कंकालों को एक ही स्थान पर देखें । आधे होश तो इन्हें देखते ही फाख्ता हो जाते हैं । इंसान की सोचने-समझने की बुद्धि एकदम समाप्त हो जाती है । तब इनके पानी में लहराते जिस्म हिलते हुए हम इंसानों क्रो ये सोचने पर विवश कर देते हैं कि ये जीवित हैँ । बस, इंसान घबरा जाता है और इनकी हर हरकत ऐसी लगती है जैसे ये उसी को बुला रहे हो । अत: यही सब देखकर ये चारों चोट्टी के भयभीत हो गए और 'भूत-भूत करने लगे ।"




"लेकिन आप नहीँ डरे चचा ।" बांड होंठों-ही-होंठो में मुस्कराता हुआ बोला ।।



"हम डरते तो इन्हें यहां तक ले आते?"



"लेकिन तुमने इनसे डरने का और भूत समझने का कारण इस ढंग से बताया हे चचा कि ऐसा लगता है जैसे यह सव आप-बीती हो ।” माईक ने कहा ।



“अबे. . .क्या कहा चूहे की औलाद ।” बागारोफ़ राशन-पानी लेकर माईक पर चढ गया--""साले अपने टोरिग ।"



"नहीं चचा, ऐसी बात नहीं ।" माईक हंसता हुआ हाथ जोडकर बोला ।

“लेकिन चचा, आपने एक घंटे तक कोई सिग्नल क्यों नहीं दिया?" जेम्सबांड ने प्रश्न किया l



"सस्पेंस बनाने के लिए I" बागारोफ़ ने बडी अदा के साथ अपने गंजे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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