चीते का दुश्मन complete

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007
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Re: चीते का दुश्मन

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इसके बाद उनके बीच थोडी देर के लिए सन्नाटा छा गया फिर इस सन्नाटे को बागारोफ़ ने ही तोड़ा…'"अबे, तुम क्या सारे-के-सारे चुकंदर की औलाद हो...साले जिस बात का जवाब देने के लिए मैं बेचैन हो रहा हूं. . .वह प्रश्न किसी ने किया ही नहीं?”



"कौन-सा प्रश्न, चचा?" बरगेन शॉ ने पूछा l




"अबे, यही आडू के बच्चे कि ये हजारों कंकाल सागर में पैदा कहां से हो गए?"



“मैने तो यह प्रश्न इसलिए नहीं पूछा चचा क्योंकि मुझे इस प्रश्न का उत्तर मालूम है I" जेम्सबांड ने कहा ।



"अबे, भाग ओ मुर्गी के बच्चे… ।" बागारौफ ने उसे लताड़ा-“तेरे तो बाप को भी पता नहीं होगा । पता है तो जवाब दे I"



"मेने इन कंकालों के पैरों में पडी हुई ब्रेडियां देख ली हैं, चचा ।" बांड बोला…" इन पर अभी तक हिटलर की मोहर स्पष्ट चमक रही हैं । सजा देने मे हिटलर भी दुनिया के चंद लोगों में से एक था । मेरे ख्याल से ये उसके युद्ध…बंदी थे जिन्हें उसने जीवित ही बेडियों में कसकर सागर में डाल दिया । इस समय तक समुद्गी जीव नोच-नोचकर इनका गोश्त खा गए. . . और ये बेचारे बदनसीब कंकाल रेत मे घंसकर खड़े रह गए ।"

“मान गए हरामी की दुम कि बुद्धि का स्टॉक तेरे पास भी है-- बागारोफ बोला…“कुछ कंकालों की तो हड्डियां तक भी इतनी गल चुकी थी कि हाथ लगाते ही वे खील खील होकर बिखर जाते थे । हरामजादे हिटलर की कारस्तानी ने आज हमे चकरघिन्नी बना दिया ।"



उसी समय हल्की…सी कराह ने सबका ध्यान आकर्षित किया । सबने देखा…त्वांगली कराहकर होश में आ रहा था ।



उसी समय बागारोफ को एक अजीबोगरीब शरारत सूझी । उसने कंकाल उठाया और फर्श पर पड़े त्वांगली के सामने आ गया और त्वांगली ने कराहकर एकदम चौंककर आंख खोली I



बागारोफ ने फुर्ती से कंकाल उसकी आंखों के सामने करके उसके ऊपर फेक दिया ।



"भ. . .भ. . .भूत ।" भयभीत होकर एकदम त्वांगली चीखा और पुन: बेहोश हो गया ।



जासूसों के जबर्दस्त कहकहे से सारा जलपोत गूंज उठा ।



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फिनिश
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"अबे यार, धनुषटंकार इस समस्या को तुम ही सुलझाओ ना. . . ।" बिजय चालक-कक्ष मे ही घनुषटंक्रार के पास बैठा हुआ कह रहा था-“साली एक कुतिया पाली थी और साली एक चूहे के इश्क में पागल होकर हमारे दिल पर चार फौ चालिस बोल्ट पावर का धक्का लगाकर उसके साथ चली गई । अब सोच रहे हैं कि क्या पाले । बिल्ली पाले तो कुत्ते से इश्क लड़ाएगी । चीता पाले तो शेरनी से इश्क लडाएगा. . लकड़बग्गा पाले तो. . . ।" और इसी प्रकार विजय लगातार बकवास करता
जा रहा था I



उसके समीप ही बैठा धनुषटंकार मोटर बोट का संचालन कर रहा था । विजय की बकवास के बीच वह बड़े भोलेपन से उसकी ओर देखता और मासूमियत के साथ पलकें झपका देता । इस समय उनकी मोटर बोट का रुख उसी टापू को ओर था, जिस पर उन्होंने जलती हुई आग और आग के ऊपर जलते हुए उढ़ते जानवर देखे थे । अब वे टापू के काफी करीब पहुच गए थे । निस्सदेह बिजय प्रत्यक्ष में बकवास करता नजर आ रहा था...किन्तु वास्तविकता ये थी कि टापू के वे जितना करीब पहुचते जा रहे थे. . .विजय उतना ही सतर्क होता जा रहा था ।



तब जबकि वे टापू के काफी करीब पहुच गए, उन्होंने देखा. . .टापू एकदम निर्जन-सा लगता था । सागर के किनारे लम्बी-लम्बी झाडियां थीं । सारे टापू पर अजीब-अजीब लम्बे वृक्ष थे । वृक्षो के पीछे छुपे टापू का वे अधिक भाग नहीं देख सके थे । सारा टापू एक घना जंगल-सा प्रतीत होता था । बिजय की आंखें भली-भांति किनारे का निरीक्षण कर रही थीं । र्कितु अभी तक उसे किसी भी प्रकार के खतरे का आभास नहीं मिला था और देखते-ही-देखते मोटर बोट साहिल पर पहुच गया था ।



धनुषटंकार और विजय इंजन बंद करके डेक पर आ गए । लंगर डाला गया और विजय से पहले धनुषटंकार किनारे की लम्बी घास में कूद गया । विजय अभी कूदना ही चाहता था कि एक फुंफकार सुनकर उसके कान खडे हो गए । विजय ने चौंककर देखा-किनारे पर घास में धनुषटंकार भी उसके सामने अपने दो पैरों पर खडा उससे टकराने के लिए तैयार था ।

नाग के जिस्म का एक तिहाई भाग हवा में लहरा रहा था ।



इस प्रकार वह धनुषटंकार से ऊंचा ही लग रहा था l बिल्कुल स्याह रंग का ये काला नाग देखने में वेहद खतरनाक लग रहा था । एक ही पल में विजय ने पूरी स्थिति का अध्ययन किया और पलक झपकते ही उसने जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया ।


उसी क्षण. . .वातावरण के सन्नाटे में धनुषटंकार की ची-ची ।। विजय ने देखा…धनुषटंकार की आंखें फ़न उठाए नाग पर जमी हुई थी और दायां हाथ ऊपर उठाकर वह बिजय को ऐसा संकेत कर रहा था जैसे कोई बहादुर लड़ाका अपने शिकार पर अपने किसी साथी को हमला करते देखकर रोकता हुआ कहता है-"ठहरो, ये मेरा शिकार है l’


धनुषटंकार की ये हरकत देखकर विजय के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान दोड़ गई ।




उसने सोचा…धनुषटंकार में एक…एक आदत विकास की आती जा रही है l विजय बहादुर था । अपने जीवन मेँ वह न जाने कितने खतरनाक इंसानों और जानवरों से टकराया था किंतु फिर भी वह बहादुरी से अधिक दिमाग को महत्व देता था । असमय की बहादुरी दिखाना वह मूर्खता समझता था l उसका सिंद्धांत था क्रि दुश्मन को खत्म करना है…चाहे किसी भी प्रकार हो... l अगर दुश्मन सरल ढंग से समाप्त हो सकता है तो व्यर्थ की बहादुरी दिखाना उचित नहीं है. . .ओर बिल्कुल इसके विपरीत मार थाड-विकास का सिद्धांत. . .उनका कहना था कि दुश्मन को बहादुरी से खत्म करो l उसी सिद्धांत पर इस समय धनुषटकार भी चल रहा था । एक बार तो बिजय के दिमाग में आया कि धनुषटंकार के संकेत क्रो नजरंदाज करके नाग को गोली से उडा दे ।

किन्तु. . .नहीँ. . अगले ही पल उसने विचार बदल दिया ।

वह जानता था कि अगर उसने ऐसा कर दिया तो धनुषटंकार पजामे से बाहर आ जाएगा । उसने यही उचित समझा कि वह धनुषटंकार को अपने अरमान निकालने के लिए पूरा अवसर दे I.



. .रिवॉत्त्वर उसने ताने रखा ताकि अगर धनुषटंकार पराजित-सा होता लगे तो वह नाग को तुरंत गोली मार दे ।



वह देख रहा था…धनुषटंकार और नाग आमने-सामने थे । नाग मस्ती के साथ अपना फन हवा में लहरा रहा था । इधर दोनों पैरों पर खड़े हुए धनुषटंकार के हाथ कैरेट की सूरत बनाए तैयार थे । एकाएक नाग ने बडी तेजी से धनुषटंकार पर अपने फन का वार किया किंतु धनुषटंकार उससे भी कही अधिक फुर्तीला निकला-वह अपनी बंदरानी हरकत दिखाकर उछला और नाग के पीछे कूदा । नाग का फन घास से टकराया I लेकिन तुरंत ही वह पुन: खडा हो गया । अभी नाग धनुषटंकार पर वार करने ही वाला था कि धनुषटंकार ने झपटकर उसका फ़न थाम लिया । नाग ने अपने बाकी जिस्म को धनुषटंकार की बांह से लपेटना चाहा किंतु धनुषटंकार ने उसे इतना अवसर न देकर अपने हाथ में दबा हुआ फन घास के नीचे धरती पर रगड़ दिया ।


नाग बिलबिला उठा ।



एक बार धनुषटंकार ने उसके रगड़े हुए फ़न को देखा और फन पर अपने मुंह से ढेर सारा थूक निकालकर थूक दिया ।

फिर उसका फ़न धरती पर रगड दिया । चांदनी रात में विजय को नाग ओर बंदर की यह लडाई काफी रोमांचक लग रही थी I कुछ देर बाद धनुषटंकार ने नाग को मारकर रस्सी की भांति एक तरफ फेंक दिया ।



"जियो बेटा धनुषटंकार बेड़ा कर दो आर पार I” विजय ने वहीँ से नारा लगाया और रिवॉल्वर जेब मेँ रखकर किनारे पर आ गया I


बडी शान के साथ धनुषटंकार ने अपनी जेब से सिगार निकाला I



"नहीं बे, जानवर ।” उसका इरादा भांपते ही बिजय बोला…“अभी केवल मारा-मारी ही सीखे हो बेटे ।” जासूसी के पैंतरे अभी हमसे सीखने पड़ेगे, ये सिगार किसी को भी हमारी स्थिति का पता बताता रहेगा और हम किसी को देख भी नहीं सकॅगे ।"



धनुषटंकार क्रो अपने स्वामी की बात एकदम उचित लगीं । उसने सिगार वापस रख लिया । धनुषटंकार फुदकता-सा बिजय से आगे-आगे चल रहा था I लम्बी घास को पार करके वे वृक्षों की और घुस रहे थे I जैसे ही थनुषटंकार पहले वृक्ष के नीचे पहुचा, एकदम अप्रत्याशित ढंग से वृक्ष की टहनियां झुकी और उन्होंने धनुषटंकार को अपने बीच में कसकर एकदम ऊपर उठा लिया । धनुषटकार की चीं-चीं से सारा जंगल गूंज उठा I



बिजय पेड़ से अभी थोड़ा पीछे था I उसने यह दृश्य देखा तो एक ही पल में भयानक खतरे को भांप गया I वह समझ गया कि ये वृक्ष मांसाहारी हैं I वह जानता था अगर उसने जल्दी ही कोई उपाय नहीं किया तो ये वृक्ष धनुषटंकार का सारा खून पी डालेगा और अंत में उसकी हड्रिडयां पेड के नीचे पडी रह जाएंगी I वृक्ष की टहनियों मेँ उलझा हुआ धनुषटंकार बराबर चीख रहा था । विजय ने गजब की फुर्ती का प्रदर्शन करते हुए जेब से कटार निकाली और गोरिंल्ले की भांति सीधा उस टहनी पर झपटा जिसमें धनुषटंकार फंसा हुआ था । उसने कटार का वार अपनी पूरी शक्ति से उन टहनियों में से एक की जड़ पर किया l



टहनी एकदम कटकर नीचे जा गिरी । इसके साथ ही धनुषटंकार नीचे गिरा I



"'बंदर मियां, सागर की ओर भागो I” टहनियों से उलझा हुआ विजय चीखा-वृक्ष की टहनियां उसे अपनी गिरफ्त में लेना चाह रही थीं ।


विजय का कटार वाला हाथ बिजली की गति से भी कहीँ अधिक तेजी के साथ चल रहा था, जो भी टहनी उसे जकड़ने की कोशिश करती, वह कटार से उसी को काट डालता I


मांसाहारी वृक्ष से विजय का ये अजीबोगरीब युद्ध पांच मिनट तक चला I



पांच मिनट पश्चात बिजय को एक ऐसा क्षण मिला, जब वह किसी भी टहनी की पकड़ में नहीं था। बिजय ने इसी क्षण का लाभ उठाया और एक जम्प के साथ हवा में तैरता हुआ सागर की ओर वृक्ष की रेंज के बाहर धरती पर जाकर गिरा । वही पर खड़ा हुआ धनुषटंकार वृक्ष से अपने स्वामी का ये अजीब युद्ध देख रहा था । विजय तो मांसाहारी वृक्षों के बारे मेँ पहले से जानता था किन्तु धनुषदंकार के लिए एक अजूबा था I आज से पूर्व उसने कभी ऐसा विचित्र वृक्ष नहीं देखा था I

विजय उछलकर खडा हो चुका था किंतु धनुषटंकार अभी तक आंख फाड़-फाढ़कर उस वृक्ष को देख रहा था ।



"अब वहां कहां देख रहे हो मियां बजरबटूटू?" बिजय बोला…"बच गए वरना तुम्हारी रामलीला ही खत्म थी ।”



अब विजय को जंगल में घुसने के लिए रास्ते की तलाश थी I यह तो वह जानता था कि यहां सारे, हर पेड़ मांसाहारी नहीँ है । किंतु आगे बढने के लिए यह जानना बहुत आवश्यक था कि कौन…सा वृक्ष मांसाहारी है ? कौन-सा नहीं । समस्या थी, यह पता लगाने की I अचानक उसके दिमाग में एक उपाय आया, वह धनुषटंकार से बोला…“प्यारे घसीटा, सुन, ज़रा उस नाग को तो दूंढ़कर लाओ जिसे तुमने शहीद किया था I”



धनुषटंक्रार की समझ में ये तो आया नहीं कि आखिर स्वामी अब उस मरे हुए नाग का करेंगे क्या, परंतु फिर भी आदेश का पालन करता हुआ वह उधर चल दिया जिधर उसने नाग फेंका था । चांदनी रात में उसे नाग को दूंढ़ने मे अधिक देर नहीं लगी I रस्सी की भांति लटकाए उसे धनुषटंकार विजय के पास ले आया l



"अब घसीटाराम, एक रस्सी का प्रबंध करना होगा ।”



जबाब में धनुषटंकार ने अपने कोट की जेब से रेशम की डोरी निकालकर विजय को थमा दी । विजय ने मरे हुए नाग क्रो रेशम की डोरी से बांधा और उसे मांसाहारी पेढ़ के नीचे फेंक दिया । बडी तेजी से वृक्ष की डालियां सर्प की ओर झपटीं किंतु विजय ने उनसे अधिक फुर्ती का प्रदर्शन करके रेशमी की डोरी क्रो झटका देकर सर्प को अपनी ओर खींच लिया। धनुषटंकार कुछ समझा और कुछ नहीं समझा।


विज़य सर्प को लेकर एक-दूसरे वृक्ष की ओर बढा, इसी प्रकार सर्प को वृक्ष के नीचे फेंका, वृक्ष की डाले उसी प्रकार सर्प पर झपटीं, बिजय ने पुन: उसे खींच लिया । इस प्रकार अब विजय के लिए यह पता लगाना सरल हो गया कि कौन-सा वृक्ष मांसाहारी है और कौन-सा नहीं । जब उसने पाचवे वृक्ष के नीचे सांप डाला तो वृक्ष में किसी प्रकार की कोई हरकत नहीं हुई, विजय उसी पेड़ के नीचे से आगे बढा । धनुषटंकार उसके पीछे-पीछे था । इस समय धनुषटंकार वृक्षों से भयभीत-सा नजर आ रहा था ।


अभी वे इस वृक्ष की सरहद को पार भी नही कर पाए थे कि अचानक वे दोनों बुरी तरह चोंक पडे…परंतु इससे पूर्व कि कोई भी कुछ कर सके उन्होंने खुद को एक मजबूत जाल में फंसा पाया । हुआ ये था कि चमत्कारिक ढंग से उनके ऊपर एक लाल सुर्ख जाल आकर गिरा और वे उसमें फंसते चले गए ।



"आदरणीय झकझकिए महोदय, सत्-सतृ प्रणाम ।" जंगल मे ही टुम्बकटू की आवाज गूंजी ।



बिजय और धनुषटंकार ने देखा, उनके सामने खडा टुम्बकटू लहरा रहा था । उसके जिस्म पर अनेकों घाव थे किंतु होंठो पर वही मुस्कान थी जो हमेशा रहती थी । एक क्षण के लिए तो विजय चौंककर रह गया, फिर बोला…“अबे कार्टून मियां, तुम यहां?"


"क्यों मियां, हम यहां नहीं हो सकते?"



"हो क्यों नहीं सकते हो यार, बिल्कुल हो सकते हो।” बिजय बोला…"" मगर मियां, हमसे इश्क लडाने का यह कौन-सा ढंग है?"

"इश्क लड़ाने का भी अपना-अपना तरीका होता हे प्यारे झकझकिए ।" टुम्बकटू ने कहा----"इश्क क्री बाते करने के लिए ये उचित स्थान नहीं है, आराम से बैठकर बाते करेगे !" कहते ही दुम्बकटू ने आबाज लगाई-"झबरू l”


इसके बाद ।



विजय ने जो कुछ देखा उसे कमाल की ही संज्ञा दी जा सकती थी ।


उसने देखा-उनके ऊपर वाले पेड़ से एक शेर उड़ता हुआ नीचे आया ।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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-- 007

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Re: चीते का दुश्मन

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विजय को लगा ये सब उसकी आंख का भ्रम है । उसने पूरे ध्यान से देखा किंतु जो वह देख रहा था वह सत्य था । वास्तव में पेड़ के ऊपर से उडता हुआ जंगल की धरती पर एक शेर ही आया था । एकदम काला, भयानक और मोटा-ताजा.. .लम्बा...वह शेर ही था I किंतु उसके बड़े-बड़े पंख भी थे, इन्हीं के सहारे वह उडता हुआ धरती पर आते ही वह गर्दन झुकाकर टुम्बकटू के सामने इस प्रकार खडा हो गया मानो उसका गुलाम हो ।


"कार्टून भाई. . . ।" बिजय शेर की तरफ घूस्ता दुआ बोला…"ये क्या चमत्कार है?”



"चमत्कार केवल तुम्हारे लिए है, मेरे लिए नहीं…।” टुम्बकटू ने कहा-"तुम शायद इसे शेर समझ रहे हो किंतु असलियत ये है कि ये शेर नहीँ है l चंद्रमा का एक जानवर हे I ये ठीक है कि इसका ढांचा यहां के शेर से मिलता है, अंतर केवल इतना है कि शेर के पंख नहीं होते, और इनके पंख हैं । जैसे धरती पर ऐसे हुलिए के जानवर क्रो शेर कहा जाता है, उसी तरह चंद्रमा पर इसे झबरू कहा जाता है ।शेर की भांति ही इसके अंदर भी हमारी बात समझने का दिमाग नहीँ है परंतु क्योंकि ये मेरा पालतू झबरू है इसलिए मेरी विशेष भाषा समझता है और उसका पालन करता है ।"



“इसका मतलब आग के ऊपर यही महाराज उड़ रहे थे?" विजय ने कहा ।



"केवल यही नहीं महोदय, सुनिए! रोबिन और ब्लाउंड इत्यादि भी थे ।” टुम्बकटू ने बताया-"अब तुम ये पूछोगे क्रि ये मैं क्या ऊटपटांग नाम ले रहा हूं। इसका जवाब ये है कि वे चंद्रमा के अन्य जानवरों के नाम हैं जिनका ढांचा यहाँ के कुत्ते, बिल्ली इत्यादि से मिलता है । उनमें भी केवल इतना ही अंतर है कि इनके पंख हैं और यहां के जानवरों के पंख नहीं होते अत: ये उड़ सकते हैं और वे उड़ नहीं पाते. . . I”



“लेकिन मियां खां. . .हमने तो ये देखा था कि वे सब आग कें ऊपर उड़ रहे थे और खुद भी जल रहे थे ।"




“तुम फिर गलत समझें मि. झकझकिए, वह आग नहीं जान्द थी ।"



"जान्द ।" विजय ने दोहराया-"ये साली क्या वस्तु होती है, मियां? "



"अब ये तो मैं तुम्हें क्या बताऊं कि क्या वस्तु होती है I" टुम्बकटू बोला…“एक बात पहले तुम बताओ ।”



"पूछो? "



"तुम मुझे ये बता दो कि आग क्या वस्तु होती है?" टुम्बकटू ने बडा गहरा प्रश्न किया ।



टुम्बकटू के इस प्रश्न पर थोडा उलझते हुए बिजय ने ज़वाब दिया…“मियां . . .ये सवाल तो ऐसा है कि दिमाग चकरघिन्नी बनकर रह जाता डै । दुनिया में हजारों वस्तु है जैसे कपडा रोटी, पानी, किताब लेकिन कोई ये पूछे कि किताब क्या वस्तु हे तो इसका जवाब तो यही हो सकता हे कि किताब एक ऐसी वस्तु है जो पढने के काम आती है , पानी ऐसो वस्तु है जो प्यास बुझाता है इत्यादि, इस प्रकार वस्तुओं के नाम लेते ही उसके गुणों का बोध होता है । आग शब्द कहते ही हर व्यक्ति समझ जाता है कि यह एक ऐसी वस्तु है जो किसी को भी जलाने की क्षमता रखती है ।"



“लेकिन आग का नाम रोटी क्यों नहीँ रखा गया?" टुम्बकटू ने विचित्र-सा प्रश्न किया ।




"लगता हैं कार्टून प्यारे कि तुम्हारे दिमाग का बैलेंस गड़बड़ा गया है ।" बिजय बोला…“मियां रोटी और आग का क्या मेल. . .रोटी पेट की आग बुझाती हे और आग चाहे जहां आग लगा देती है I”



"ये तुम केवल इसलिए कह रहे हो क्योकि धरती पर पैदा होने के बाद तुम्हें रोटी और आग के गुण बताए गए हैं ।" टुम्बकटू ने कहा-“जरा ये सोचो कि अगर घरती के हर मानव को पैदा होते ही ये शिक्षा दी जाती कि जो वस्तु खाने के काम आती है उसका नाम आग है और जो कही भी आग लगा देती है उसे रोटी कहते हैं । यानी अगर रोटी का नाम आग होता और आग का रोटी तो क्या अंतर पडता?"



"तुम्हारी ये ऊटपटांग बाते अपने भेजे मे नहीं घुस रही हैं, मियां ।"



"मैं तुम्हें ये बताना चाहता हूं कि किसी भी वस्तु का नाम बदलने से उसके गुण नहीं बदलते। नाम तो केवल अपनी सहूलियत के लिए रख दिए जाते हैं l जैसे जब में पहली बार आप लोगों के सामने आया तो मैंने अपना नाम टुम्बकटू बताया, अब अगर तुम किसी से मेरा नाम लेते हो तो मेरा ढांचा उसकी आंखों के सामने तैर जाता है । अगर मैं तुम्हें अपना कोई दूसरा नाम बताता तो भी मैं ही रहता. . .गुण तो नहीं बदल सकते ।"



“मियां, ये बात तो शेक्सपियर महोदय ही कह गए ।" विजय बोला-"लेकिन हमारी बुद्धिमानी में ये बात नहीं आईं कि तुम ये फ्लासफी क्यों झाड़ने लगे । मैंने तो तुमसे उस वस्तु के बारे में पूछा था जिसे हम आग कहते हैं और तुम जान्द. . . I”



"मैं तुम्हें उसी बात का जवाब दे रहा हूं । तुमने पूछा था कि जान्द क्या वस्तु होती है? इसका जवाब देने के लिए ही मैंने तुमसे पूछा था कि आग क्या वस्तु हे? इसका जवाब तुमने ये दिया कि आग एक ऐसी वस्तु है जो किसी वस्तु को जलाने की क्षमता रखती है । यानी किसी वस्तु का नाम लेने से उसके गुणों का बोध होता है । मैं तुम्हें यही समझाना चाहता था कि अगर तुम चंद्रमा की भाषा जानते होते, जान्द कहते ही तुम समझ जाते कि यह क्या वस्तु होती है?”



"तो भाई साहब, इस साली जान्द के गुण ही बता दो I”



“जान्द देखने में तुम्हारी आग जैसी वस्तु होती है किंतु इसके गुण तुम्हारी आग से बिल्कुल विपरीत होते हैं । आग गर्म होती हे लेकिन जान्द एकदम ठंडी । कदाचित तुम्हें मेरी बात विचित्र-सी लग रही हे लेकिन ये सच है कि जान्द आग जैसी लगती है खैर, इस तरह तुम्हें विश्वास नहीं आएगा I” टुम्बकटू ने अपने टेक्सीकलर कोट की जेब में हाथ डालते हुए कहा…“मैं तुम्हें दिखाता हू।" कहकर उसने पीली-सी एक गोल गेद जैसी वस्तु निकाली और उस जाल के ऊपर रख दी जिसके अंदर विजय और धनुषटंकार कैद थे l इसके बाद एक हरी…सी छडी निकालकर उसने गोल गेंद जैसी वस्तु से छुआ दी । फटाक-ठीक इस प्रकार की आवाज हुई जैसे पेट्रोल में एकदम आग लगा दी हो । साथ ही सारा जाल आग की लपटों मेँ घिर गया । विजय और धनुषटंकार टुम्बकटू की इस अजीबोगरीब हरकत पर एकदम बौखला गए ।



किंतु उस क्षण उनके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा जब उन्होंने देखा कि पूरा जाल यहां तक क्रि उनका थोडा जिस्म उन्हीं लपटों में घिर गया था र्कितु उससे जलना तो दूर, उन्हें हल्की…सी गर्मी का भी अनुभव नही हो रहा था । इसके विपरीत उन्हें हल्की-हल्की ठंड अवश्य लगने लगी थी ।



ये लपटें उनके जिन स्थानों से स्पर्श कर रही थीं वहां उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे बर्फ का कोई छोटा-सा टुकडा रखा हो ।



"अवे मियां कार्टून. . .बंद करो ये बंगाल का जादू।" विजय बोला ।



मुस्कराता हुआ टुम्बकटू बेधड़क उन लपटों में घुस गया I बोला…"इसे कहते हैं, जान्द ।" और कहने के साथ ही उसने उस गेंद जैसी गोल वस्तु पर अपना हाथ रख दिया । लपटे एकदम न जाने कहां गायब हो गई । टुम्बकटू ने उस वस्तु को उठाकर पुन: जेब में डाल लिया ।



“तो इसका मतलब ये हुआ प्यारे कार्टून कि हमने जो कुछ वहां से देखा था वह हमारी आग नहीं बल्कि तुम्हारी जान्द थी और तुम्हारे ये पंख वाले जानवर उसके ऊपर उछल कूद रहे थे ।" बिजय ने कहा ।



"मैँ जानता था कि तुम जान्द के बारे में कुछ नहीं जानते और जान्द को आग ही समझोगे I” टुम्बकटू ने कहा-“पंख वाले इन जानवरों क्रो मैंने जान्द के ऊपर उड़ने का आदेश दिया क्योंकि मुझे मालूम था कि जब तुम ये सब वहां से देखोगे तो यह तुम्हारे लिए एक बडा रहस्य होगा ।”



"लेकिन तुम्हारी इस हरकत का कारण? "



"जो कारण था वो पूरा हो चुका है, यानी तुम इस जाल में फंस चुके हो I” टुम्बकटू ने कहा…"मैं जानता था कि इस रहस्य को जानने के लिए तुम टापू पर आओगे । तुम्हें यहां बुलाने के लिए ही मैंने ये साधारण हरकत की जो तुम्हारे लिए बेहद विचित्र थी । तुम यहां आए और मेरे जाल मेँ फंस गए लेकिन बापू…जान अर्थात् तुम्हारा शिष्य समुद्र के रास्ते से ही हमारे यान मेँ पहुच गया I एक तरह से यू कहना चाहिए कि अपने षडूयंत्र में मुझे आधी सफलता मिली ।"



"लेकिन तुम हमें गिरफ्तार करना क्यों चाहते हो?”



"सीधी सी- बात है कि तुम मेरे रहस्यों तक पहुच गए हो । और मैंने वचन दिया है कि जो मेरे रहस्यों तक पहुंचकर उस वस्तु क्रो प्राप्त कर लेगा, जिसकी प्राप्ति पर वह अपने भगवान से भी श्रेष्ट हो जाएगा, मैं उसका गुलाम बन जाऊंगा । मुझे क्योंकि गुलाम बनने का शोक तो है नहीं इसलिए मैं अपना हर प्रयास करूंगां कि आप लोग उस वस्तु को प्राप्त न कर सकै । आप यहां तक पहुच गए हैं. . .अतः अब या तो आप मुझे अपना गुलाम ही बनाएंगे अन्यथा अंजाम मोत होगी ।”

"इसका मतलब ये हुआ कार्टून प्यारे कि हमारी तुम्हारी ठन गई I”


"बिल्कुल ठन गई ।" टुम्बकटू ने मुस्कस्ते हुए ज़वाब दिया l


" बैसे वो चीज क्या है प्यारे. . .जो हमेँ प्राप्त करनी हैं ?"



“तुमने एक बार फिर बिल्कुल बेकार प्रश्न किया है।" टुम्बकटू ने कहा…“तुमसे पहले भी कह चुका हू कि वस्तु की वेल्यू नाम से नहीं गुणों से होती है । मैं तुम्हें उस वस्तु का नाम तो बता दू किन्तु जब तक तुम उसके गुण नहीं जानोगे
उसका महत्व नही समझोगे, मान लो कि उसका नाम 'चंद्रवटी' है. I”



"'चंद्रवटी!" बिजय ने नाम दोहराया-"अब ये भी बता दो कि इसके गुण क्या हैं?"



"ऐसी भी क्या जल्दी है. . . ?" टुम्बकटू चालाकी के साथ मुस्कराता हुआ बोला-"गुण भी सब बहुत जल्दी जान जाओगे ।"



कुछ देर तक उनके बीच यू ही ऊटपटांग वार्तालाप होती रही ' फिर टुम्बकटू बोला-“खैर यहां से चलते हैं । कहने के पश्चात वह पंख वाले शेर अर्थात् झबरू की और घूमा और बिचित्र सी ऊटपटांग भाषा मेँ उससे कुछ बोला । इस भाषा को विजय अथवा धनुष्टंकार में से कोई भी कुछ नहीं समझा | थोडी देर तक टुम्बकटू झबरू को कुछ समझाता रहा I जाल की गठरी उसने झबरू की पीठ पर रख दी




झबरू उन्हें लेकर जंगल में एक तरफ को चल दिया । टुम्बकटू भी उसके साथ था ।

आधे घंटे तक वे घने जंगल में यात्रा करते रहे I इसके बाद वे एक पथरीली-सी गुफा में घुस गए । विजय का मस्तिष्क बराबर इस जाल से निकलने की युक्ति सोच रहा था किंतु सफल नहीं हो पा रहा था । जाल में उसके हाथ…पैर इस प्रकार उलझे हुए थे कि वह उन्हें हिला तक नहीं सकता था । जिस गुफा से वे इस समय गुजर रहे थे उसमें अंधेरा था र्कितु झबरू बढा चला जा रहा था l


न जाने गुफा के कितने मोडों को पार करके वे एक पत्थरों के ऐसे चौड़े-से स्थान पर पहुच गए जो देखने में एक कमरा-सा लगता था । कमरे के बीचोंबीच जान्द की लपटें लपलपा रही थीं । जिसके कारण कमरे मेँ प्रकाश था ।



बिजय ने देखा कमरे में कुछ ऐसी-ऐसीं मशीनें फिट थी ।


जिनसे ये स्पष्ट होता था कि यहां कोई वैज्ञानिक रहता है । झबरू कमरे में खड़ा हो गया l बिजय जाल मेँ फंसा हुआ ही टुम्बकटू की एक…एक हरकत देख रहा था I टुम्बकटू उसकी और घूमकर बोला ।



"प्यारे झकझकिए, अब मैं तुम्हें वह यान दिखाता हू जो तुमने मेरी फिल्म मेँ देखा था l” कहते हुए टुम्बकटू ने आगे बढकर एक अजीब-सी मशीन का हेंडिल घुमा दिया । एक कांच की प्लेट पर ठीक टी.वी. स्क्रीन की भांति पानी में डूबे हुए यान का चित्र उभर आया l



"यार टुम्बकटू।" विजय मूड में ही बोला…“तुम तो पूरे वैज्ञानिक हो रहे हो I”



“अजी कहां झकझक्रिए महोदय l” टुम्बकटू एकदम उस शायर की भांति बोला जो अपनी शायरी की तारीफ सुनकर बोलता है…“बस, हम तो आपके गुलाम है…जो भी कुछ टूटा-फूटा है आपकी सेवा मेँ पेश कर रहे हैं । अब में इस यान तक पहुचने का आपको ऐसा रास्ता बताता हू जो मेरी फिल्म में नही था ।" कहने के बाद उसने मशीन का एक बटन् दबा दिया ।



"इधर देखो ।" टुम्बकटू ने कांच की प्लेट की ओर इशारा किया ।
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Re: चीते का दुश्मन

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विजय और धनुषटंकार ने कांच की प्लेट की ओर देखा…उसने देखा. . .यान से एक बडा और चमकदार-सा डिब्बा बाहर आया । ये डिब्बा रेल के डिब्बे की भांति बडा ओर चारों ओर से बंद था । यान के अंदर से सरककर वह सागर के पानी को चीरता हुआ आगे बढ रहा था । डिब्बे का बहुत सारा भाग यान से बाहर आ चुका था और अभी तक वह यान से बाहर निकलता जा रहा था ।



ठीक उसी प्रकार जैसे कोई लम्बी रेल यान के अंदर से निकलकर पानी में आ रही हो ।



पहले बिजय को यान से निकलता हुआ ये चमकदार बॉक्स ही नजर आया था फिर ये बॉक्स जैसे-जैसे करीब आता गया, विजय ने देखा कि वह यान कै गर्भ से इस प्रकार निकल रहा है जैसे वह किसी गुफा से बहुत दुर खड़ा है और गुफा के मुंह से किसी रेलगाडी को निकलते देख रहा है । सुनहरे चमकदार बाँक्स की चौडाई ठीक रेल कै एक डिब्बे के बराबर थी और लम्बाई बढ़कर प्रतिपल एक लम्बी रेल की भांति होती जा रही थी । कुछ ही देर बाद बॉक्स का अगला भाग किसी खोखली दीवार में धंस गया और पिछला भाग अभी तक यान के गर्भ में था । रेल जैसा ये बाक्स अब रुक चुका था । विजय स्क्रीन पर साफ़ देख रहा था । यान से पानी के बीच होता हुआ ये बाँक्स उस दीवार तक आ गया था ।



“झबरू ।" टुम्बकटू ने शेर जैसे जानवर को आदेश दिया…"नीचे चलने के लिए तैयार ।"



आदेश प्राप्त होते ही झबरू कमरे के एक खास स्थान पर जाकर खडा हो गया । बिजय और धनुषटंकार उसकी पीठ पर उसी प्रकार पडे थे । टुम्बकटू के एक बटन दबाते ही फ़र्श का वह हिस्सा जहां झबरू खडा था, धीरे…धीरे नीचे खिसकने लगा । दो मिनट चलकर फर्श का वह टुकडा रूक गया । फर्श का ये टुकडा उन्हें दूसरे कमरे मेँ ले आया था । विजय ने ऊपर देखा…इस कमरे के ऊपर की छत में उस टुकड़े के बराबर मोखला बना हुआ था जिस पर झबरू खडा था । उसी पल छत का एक और दुकड़ा इस्पात की एक बडी रांड पर फिसलता हुआ नीचे आया । उस टुकडे पर टुम्बकटू खडा था ।



“तुम देख रहे हो प्यारे क्रि हम इस कमरे के बीच मेँ लटक रहे हैं ।" टुम्बकटू बोला…“लेकिन लगता है कि अभी भी तुम्हारी समझ में पूरा चक्कर नहीं आया है । खैर, मैं तुम्हें समझाता हू ।” टुम्बकटू दाईं दीवार की ओर संकेत करके बोला-"बो देखो ।"



विजय ने देखा तो पाया । उसी चमकदार बॉक्स का अगला भाग इस समय इसी कमरे में था । बॉक्स दीवार में इस तरह फिक्स था कि बॉक्स की दीवार और कमरे की दीवार के बीच से हवा भी पास नहीं हो सकती थी । अभी विजय सारा चक्कर समझने की चेष्टा कर ही रहा था कि टुम्बकटू ने चमकते हुए बॉक्स के अगले भाग पर लगा एफ़ बटन दबा दिया । बॉक्स का आगे वाला भाग गड़गड़ाहट के साथ खुल गया । बिजय ने देखा अंदर से बॉक्स खाली था और जिस धातु का बाँक्स बना हुआ था उस धातु की चमक का पर्याप्त प्रकाश उसके अंदर था।



"शायद तुम समझ गए होगे कि इसके अंदर से होते हुए हम यान में पहुंच सकते हैं l” टुम्बकटू ने कहा---" हम इस कमरे के बीच में इसलिए रुके हुए हैं क्योकि नीचे पानी भरा हुआ है । ये वो पानी है जो बॉक्स का अगला भाग अपने साथ धकेलता हुआ लाता है । तुम क्योकि झबरू की पीठ पर हो इसलिए नीचे नहीं देख पा रहे हो । बैसे कमरे में जब पानी अधिक हो जाता है तो पाइप के जरिए पुन: सागर में पहुचा दिया जाता है ।”



टुम्बकटू के प्रबंध देखकर विजय दंग रह गया ।।



फिनिश




विकास के जिस्म का सम्पूर्ण खून जैसे उसके चेहरे पर सिमट आया था । चमकते हुए उस कक्ष से वह अमी तक छत से चिपका हुआ था? उसकी दृष्टि उस चमकदार रिग पर थी,
जिस तक पहुचना वास्तव मेँ कठिन था । काफी देर से वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने का प्रयास कर रहा था मगर अभी तक दिमाग कोई ऐसी योजना सोचने मेँ सफ़ल नहीं हो पाया था जो उसे इन परिस्थितियों से छुटकारा दिला सकती । इस समय तो जैसे उसके दिमाग की सोचने-समझने की शक्ति ही समाप्त ही चुकी थी । उसके मस्तिष्क में जैसे हजारों चीटियां रेंग रही थीं ।

उसी क्षण-उसके कानों में हल्की…सी गड़गड़ाहट का शोर आया!



"बापूजान, आदाब अर्ज है ।" टुम्बकटू की ये आवाज गोल्ड के कमरे की दीवारों से टकराई ।



बिकास समझ गया कि ये गड़गड़ाहट और टुम्बकटू की आवाज उसके ऊपर से आ रही है और विवशता ये थी कि विकास बेचारा ऊपर देख नहीं सकता था । अपनी गर्दन को इधर-उधर हिलाने की उसने चेष्टा की भी किंतु असफल होकर बोला…“अबे लम्बे अंकल ये क्या चक्कर है?”



“ये चक्कर मेँ चक्कर मिलकर घनचक्कर बन गया है, बापूजान I” टुम्बकटू की आवाज गूंजी-“वैसे मेरे लिए और कोई सेवा है?”



"यार लम्बू अंकल, सेवा तो ये है कि पहले हमेँ सीधा करो I” काफी कठिनाई के बावजूद ही विकास बोला ।



"बात ये है बापूजान कि हम दोनो मेँ से एक का उल्टान होना ही चाहिए I” टुम्बकटू का स्वर पुन: उसी प्रकार गूंजा…"उस पाइप मेँ ततैये घुसेड़कर तुमने हमारा उल्टान कर दिया था । अब हमने तुम्हारा उल्टान कर दिया है अगर हमने तुम्हें सीधा कर दिया तो तुम हमेँ उल्टा कर दोगे ।"



"लेकिन लम्बू अंकल, ये माजरा क्या है?”



"माजरा नहीं बापूजान, बल्कि दरअसल ये बाजरा है ।" टुम्बकटू ने कहा…“धरती पर छोटे-छोटे बच्चों क्रो पढाया जाता है कि पेड से फल टूटकर धरती पर ही क्यों गिरता है. ..वह हवा मे ऊपर क्यों नहीं उड जाता.. .क्या तुम इस सवाल का जवाब दे सकते हो, बापू?"

"जरूर दे सकते है, लम्बू मियां ।" विकास ने कहा…-"बात दरअसल ये है कि धरती में गुरूत्वाकर्षण शक्ति होती है । इसी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ऊपर उछाली गई कोई भी वस्तु सीधी धरती पर आकर गिरती हे ।"



"बस बापू-इसीं छोटे-से चफ्फर में आप र्फस गए हैं ।" टुम्बकटू ने बताया…“आपके इस नालायक पुत्र ने इस कक्ष की गुरूत्वाकर्षण शक्ति छत पर केंद्रित कर दी है. . और उसी का प्रभाव है कि आप छत पर ऐसे आराम फरमा रहे हे जैसे फर्श पर लेटे हों ।"



"अजीब उल्टा चक्कर है, अंकल l”



"उल्टा तुम्हारे लिए होगा, बापू। हमारे लिए तो यही सीधा है I”



"अब मुझे सीधा तो करो ।"



"शर्त ये होगी बापूजान कि सीधे होते ही आप मुझे उल्टा नही करेगे ।" टुम्बकटू ने कहा ।



विवशता ऐसी थी कि विकास को शर्त माननी पडी । उसके शर्त मानने की देर थी कि छत का वह थोड़ा सा भाग जिससे वह चिपका हुआ था, हल्की-स्री गड़गड़ाहट के साथ छत से निकलकर और ऊपर खिसकने लगा । छत के दुकड़े से उसी प्रकार चिपका हुआ वह छत से ऊपर आ गया और छत को अब वह देख सकता था । छत में वह स्थान रिक्त था जहां दुकड़े पर इस समय भी विकास चिपका हुआ था ।



एक क्षण पश्चात ही उस रिक्त स्थान को उसी के साइज के एक दूसरे चमकदार दुकड़े ने भर दिया ।

अभी वह इसके लिए तैयार भी नही था कि वह चिपके हुए टुकडे से टूटकर धम्म से फ़र्श पर आ गिरा । गोल्ड के इस सुनहरे और कठोर फर्श पर इस प्रकार अचानक गिर जाने के कारण उसकी कई हड्रिडयां कीर्तन कर उठी किंतु इसके बावजूद भी वह उछलकर इसप्रकार खड़ा हुआ मानो वह रबर का बना हो ।



ठीक सामने उससे भी लम्बा गन्ने जैसा टुम्बकटू खड़ा था ।



एक क्षण के लिए छलावा और शेतान ने एक…दूसरे की आंखों में झांका ।



दोनों के होंठों पर अजीब-स्री मुस्कान दोड़ गई ।



"लम्बू अंक्ल...ये सब साला चक्कर क्या है?” सन्नाटे की दीवार को विकास के शब्दों ने तोड़ा ।



"जब यहां तक आ ही गए हो बापू तो चक्कर भी सब समझ में आ जाएगा I” टुम्बकटू ने बडी अदा के साथ अपनी रंगीन सिगरेट सुलगाई और हरा धुआं सुनहरे कक्ष में उडाता हुआ बोला'-'"लेकिन मेरा सवाल ये हैं कि उससे पहले तुम अपने गुरु ओर चेले यानी झकझकिए और बंदर से जरूर मिलना चाहोगे ।"



"क्या मतलब?” हल्के-से चौंका विकास…“वे दोनों भी यहां पहुच गए I”



"बंदा परवर की नजरे इनायत चाहिए I” अदब से झुककर टुम्बकटू बोला ।



"लेकिन कैसे?"


"अपने-अपने ढंग हैं, बापूजान. . . I" कहता हुआ टुम्बकटू लहराया-“जरूरी नहीँ कि बताया ही जाए ।"


"खैर...पहले उनसे मिलवाओ तो सही ।" न जाने क्या सोचकर बिकास ने कहा l

“ब्लाउंड. . . I” टुम्बकटू ने तुरंत कहा l



जवाब में अपने बड़े-बड़े पंखों पर उडती हुई एफ बिल्ली उसी कमरे में प्रविष्ट हुई। उसे देखकर बिकास आश्चर्यचकित-सा रह गया ।



उसने टुम्बकटू से लगभग वही प्रश्न किए जो उससे पहले बिजय कर चुका था। जबाब णे टुम्बकटू ने उसे वही सब बता दिया जो उसने बिजय क्रो बताया था । ये ही बातें करते हुए वे हीरों की बनी हुई एक गैलरी में से गुजर रहे थे । ब्लाउंड अर्थात पंखों वाली बिल्ली उनके साथ थी l
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Re: चीते का दुश्मन

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टुम्बकटू का सारा यान गोल्ड का बना हुआ था । गोल्ड कै ऊपर हीरे और पन्ने जड़े हुए थे I ऐसे-ऐसे चमकदार हीरे जिनकी ओर देखने से आंखें चुधियां जाती थीं । गैलरी में होकर वे हीरों-पन्नों से उसी प्रकार चमकते हुए एक लम्बे-चोड़े हाल में पहुच गए ।



हॉल में जगह-जगह हीरों से जड़े हुए खम्बे थे ।


"अबे तुम भी आ गए दिलजले मियां ।" एकाएक उस हाल में विजय क्री आवाज़ गूंजी ।



तेजी से पलटकर बिकास ने उधर देखा-ओर देखा तो देखता ही रह गया ।



उस हाल के एक कोने में बिजय और धनुषटंकार बड़े विचित्र से ढंग से कैद थे ।

उनकें गर्दन तक के जिस्म हाँल के फर्श के नीचे धंसे हुए थे । दोनों के केवल चेहरे ही फर्श से ऊपर थे । ऐसा लगता था जैसे उनके गर्दन तक के भाग को फर्श कै नीचे दबा दिया गया हो I


विकास ने उनकी और देखा तथा बोला-" हम तो आ गए गुरु लेकिन आपकी स्थिति पर हमें दुख है !"

"चिंता मत करो बेटा...कुछ देर बाद हम भी तुम्हारी स्थिति पर दुख प्रकट करेगे. . .ये साला कार्टून अपने सिंगही चचा का भी बाप है ।"



"लम्बू अंकल... l" बिकास टुम्बकटू से बोला…“तुम्हें कम-से-कम इस बात का तो ख्याल रखना था कि गुरु के सामने चेला आ रहा हैं । अब जरा तुम्ही सोचो कि हम गुरु को अपना पक्का शिष्य होने का प्रमाण कैसे दे सकत्ते हैं । चरण नहीँ हे तो छुएं क्या?”



“हम भला आपकी शान में इतनी लम्बी-चौडी गुस्ताखी कैसे कर सकते हैं, बापूजान?" अजीब से ढंग से लहराता हुआ टुम्बकटू बोला…"अभी प्रबंध करते हैं I” कहने के एकदम बाद उसने अपने मुंह से एक ऐसी अजीब आवाज निकाली जिसे विजय, विकास और धनुषटंकार किसी प्रकार की संज्ञा नहीं दे सके । किंतु इस आवाज का परिणाम ये हुआ कि हाल की दीवारों में चारों ओर धड़धड़ शटर-से खुलते चले गए । तीनों ने देखा हाल के चारों ओर लगभग बीस पंख वाले अजीब-अजीब शक्ल के जानवर खड़े थे । उसमें शेर, गीदड़,
चीता, कुत्ता, बिल्ली, गधा और गाय जेसी शक्ल के भी जानवर थे । अंतर केंवल इतना था कि उन सब जानवरों के पंख थे और धरती के इन जानवरों के पंख नहीं होते ।


"आप तीनों महानुभावों में से कोई भी किसी सरकारी पवित्र हरकत करने से पहले ये अच्छी तरह सोच ले कि इनमे से हर नस्ल का जानवर अपने ढंग से खतरनाक है । बिल्ली जैसी सूरत के उस जानवर का नाम ब्लाउंड हे ।" टुम्बकटू उसकी ओर संकेत करके बोला-" किंतु वह चूहे नही बल्कि पवित्र हरकत करने वाले आदमियों को खाता हे । अगर आपने किसी भी प्रकार की कोई... ।"



"अमां यार कार्टून मियां. . .क्यों मेजा खा रहे हो?" विजय ने उसे बीच में ही रोक दिया…"हमने कभी पवित्र हरकत करना हीँ नहीँ सीखा…-हमे खोलो?"



मुस्कराकर टुम्बकटू ने अपना सलाई जैसा दायां हाथ तुरंत ऊपर उठा दिया । उसका ये सकेंत पता नहीं किसने कहां से देखा और कौन-सा बटन दबाया कि विजय और धनुषटंकार के जिस्म सरकते हुए पूरे हाल के फर्श पर आ गए ।



विकास ने विजय के चरण स्पर्श किए…धनुषटंकार ने विकास के । इस बीच तीनो के दिमाग ऐसा कुछ करने की सोच रहे थे जिससे टुम्बकटू की इस कैद से छुटकारा पाया जा सके, मगर तीनों में से किसी का भी दिमाग अमी तक कोई उपाय सोचने में समर्थ नहीं हो पाया था ।



"हमारे ख्याल से अब आपका मधुर मिलन समाप्त हो गया हैं I" उसी समय तीनों के कानों में टुम्बकटू की आवाज पडी ।



"वो तो हो गया कार्दून प्यारे । इस समय बिजय अपनी सबसे पुरानी चाल अर्थात् समय बिताने वाली चाल चलता हुआ बोला-“लेकिन यार, जरा ये तो बताओं कि क्या तुम वास्तव में धरती के सबसे बड़े अमीर हो?"



"अजी बंदा किस काबिल है?” झट से टुम्बकटू बोला…"बस, आपकी मेहरबानी है l”



"खैर, हमारी मेहरबानी तो है ही ।" बिजय किसी बुजुर्ग की भांति गर्दन हिलाता हुआ बोला--""लेकिन मियां खां, हमे तो यार सब खजाना धोखा ही लगता है l सच यार कार्टून, तुझे भड़गूजे की अम्मा की कसम, ये बताओ कि वास्तव में ही ये हीरे असली हैं?”



"क्यों, तुम्हें इनके असली होने में कोई संदेह है?" टुम्बकटू आराम से अपनी सिगरेट में कश लगाता हुआ बोला ।



”बस है।" विजय इस प्रकार लापरवाही के साथ बोला मानो अगर वे हीरे असती भी हैं तो उसके कहते ही नकली हो जाएंगे । हम तो मान नहीं सकते कि ये असली हैं ।"



“तुम्हारे न मानने से क्या होता है, हैं तो असली ही ।”



“नहीं प्यारे।” बिजय अपने ही मूड में बोला-" भड़भूजे की अम्मा की कसम खाओ वरना हम मानेंगे नहीं ।"


टुम्बकटू मुस्कराकर अभी कोई जवाब देना ही चाहता था कि विकास बोला…"तो क्या लम्बू अंकल आपके पास यही दौलत है, जिसके बूते पर तुमने यह कह दिया कि तुम्हारे पास इतनी दौलत है कि पूरे विश्व की दौलत भी तुम्हारी दौलत के सामने एक बटा दस है ।।”


"नहीं बापू और भी ज्यादा माल हे ।" टुम्बकटू ने कहा…“आओ, मैं आप लोगों को दिखाता हूं।”



इसके बाद टुम्बकटू आगे और तीनों उसके पीछे उन्हें चारों ओर से घेरे हुए अजीब किस्म के जानवर । वे सब हाल के एक ओंर गैलरी मे बढ गए ।



बिजय, बिकास और घनुषटंक्रार के दिमाग काफी तेजी से काम कर रहे थे ।



सबसे अधिक तेजी से धूम रहा था धनुषटंकार का दिमाग । वह चल जरूर रहा था किंतु उसका हाथ धीरे धीरे अपने कोट की जेब की और रेग रहा था । कदाचित वह हंगामा करना चाहता था कि तभी एक भयंकर गर्जना से पूरा वातावरण दहल उठा ।

हवा में फ़ड़फ़ड़ाने की आवाज़!


एक गधे जैसा जानवर हवा मे पंख फडफडाकर म चमत्कृत कर देने वाली फुर्ती कै साथ धनुषटंकार पर झपटा था ।




बेचारा घनुषटंकार काफी इरार्दो के बावजूद भी वह कुछ नहीं कर पाया ।



सबने केवल इतना देखा…गधे जैसे जानवर ने उसे अपने लम्बे जबड़े में फसाया और तेजी से झटका देकर दूर फेक दिया, सब देखते ही रह गए और घनुषटंकार की लाश हीरों की धरती पर पडी रह गई । विजय और बिकास देखते ही रह गए l उन्हें विश्वास नहीं आया कि घनुषटंकार का अंत इतनी जल्दी और सरलता से हो सकता है । विकास का पूरा जिस्म क्रोध और उत्तेजना से कांप उठा । उसकी आंखें लाल हो गईं I



उसकी आंखों के सामने धनुषटंकार की मौत ।।



विकास के जिस्म का ज़र्रा…जर्रा तन उठा ।
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Re: चीते का दुश्मन

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बस ऐसे समय पर उसकी सोचने-समझने की बुद्धि समाप्त हो जाती थी I उसने आव देखा न ताव दनाक से एक जम्प घनुषटंकार के हत्यारे जानवर पर लगा दी । अगले ही क्षण बिकास उस गधे जैसे जानवर से गुथा हुआ था । उसी पल अन्य जानवरों ने भी उस पर झपटना चाहा कि...



एकदम टुम्बकटू हाथ उठाकर विचित्र-सी आवाज में जाने क्या चीखा?



एकदम, जैसे जानवरों के पैरों में ब्रेक लग गए l

धनुष्टंकार का हत्यारा जानवर भी एकदम विकास से अलग हो गया । बिकास खूनी भेड्रिए की भांति एकदम पलटा और दहाडा----" टुम्बकटू , मै तुम्हारे इस यान को खाक मे मिला दूँगा ।"

" जोश में मत आओ बापूजान I" टुम्बकटू उसी प्रकार बोला-"जो हुआ है, ठीक हुआ है, निश्चित ही उसने कोई हरकत की होगीं !"




"हरामजादे ।” चीखकर विकास ने उस पर झपटना चाहा किं बिजय ने हाथ पकड लिया । बिखरे हुए बिकास को वह काफी कठिनता से काबू में लाया ।



टुम्बकटू कह रहा था…"घबराने की बात नहीं हे प्यारे बापूजान, हम मरे हुए को जिंदा भी कर लेते हैं I"



विकास तो खैर, इस समय उसका वाक्य सुनने अथवा उसे समझने की शक्ति खो चुका था । किन्तु टुम्बकटू के इस वाक्य ने विजय के मस्तिष्क में अवश्य धमाका-सा किया किंतु फिर भी न जाने क्या सोचकर वह चुप रह गया?



बिकास धनुषटंकार के जिस्म के पास बैठा और उसकी नब्ज देखी । यह महसूस करते ही कि घनुषटंकार स्वर्ग सिधार चुका है, लडके की आंखों में आंसू आ गए । वह बुरी तरह धनुषटंकार की लाश से लिपट गया । रोते-रोते ही उसका चेहरा सुर्ख होता चला गया ।




दहकती आंखों से उसने टुम्बकटू की ओर देखा और खूंखार स्वर में गुर्राया…""इस धरती पर बिकास के बहुत दुश्मन हैं टुम्बकटू न जाने कितने इंसान विकास के खून के प्यासे हैं, लेकिन आज मेरी एक बात याद रखना । विकास तुमसे घनुषटंकार की मौत का बदला लेगा…जरूर लेगा, ये सारी दुनिया जानती है टुम्बकटू-तुम मी जानते हो जव विकास बदला लेता है तो, तो मौत भी
जिंदगी कै लिए पनाह मांगली है । अपनी उस मां की कसम खाता हूं टुम्बकटू जिसके आंचल का दूध पिया है, मैं बदला लूगा, धरती से पाताल तक तुम्हें नहीं छोडूंगा, तुम्हारी मौत मेरे हाथ से होगी, मौत भी ऐसी टुम्बकटू किं फिर कभी कोई विकास के किसी प्यारे को ओर आंख उठाकर भी नहीं देख सकेगा-निर्मम बदला I"



इस तरह एक बार फिर भावुकता में बह गया विकास । बिजय ने उसे समझाने का प्रयास किया था किन्तु बह विजय पर भी गुर्रा-गुर्राकर आता था ।



बडी कठिनता से विकास समझा कि इस समय परिस्थिति ऐसी है कि वह वास्तव में कुछ नहीं कर सकता । धनुषटंक्रार की लाश को हाथों में उठाकर वह उसके साथ गैलरी मेँ आगे बढ़ गया । विजय और बिकास दोनों ही इस परिस्थिति में कुछ करना चाहते थे परंतु सफ़लता प्राप्त नहीँ हो रही थी ।



गेलरी के अनेक मोड़ पार करने के बाद वे एक छोटे-से कक्ष मेँ पहुचे । छोटे…से कक्ष मेँ पहुंचकर टुम्बकटू ने एक बटन दबाया ।


गड़गड़ाहट के साथ कक्ष की एक पूरी-की-पूरो दीवार हट गई । दीवार हटते ही बिजय और बिकास की आंखें महान आश्चर्य से उबल पड्री ।



दौलत. . .दौलत . . .दौलत ।



इतनी बेशुमार दौलत उन्होने जिंदगी मेँ कभी नहीं देखी थी । जिधर नज़र डालो चमकदार, हीरे, पन्ने, मोती उन पर नजर नही ठहरती थी l यह एक बेहद विशाल कमरा था और पूरा एक-से-एक चमकदार हीरों से भरा पड़ा था । हाल मे दौलत का जैसे पहाड-सा बन गया था I

"ये है बो धन ।” टुम्बकटू बोला--""जो निश्चित रूप से सारी दुनिया की दौलत से ज्यादा है । तुम यानी धरती के निवासी आज तक दुनिया का सबसे नायाब हीरा "कोहिनूर का हीरा" समझते हो लेकिन देखो, कोहिनूर का हीरा इनमे से किसी भी एक हीरे के सामने कांच का टुकडा-सा लगता है I”



“लेकिन मियां. . . I" बिजय बोला-“यहां यानी धरती पर हीरों की इतनी कीमत क्यो? क्यों लोग उसे कीमती समझते है...?"



"जब दोलत की मात्रा बढ जाती है तो उसका महत्त्व कम हो जाता है l” टुम्बकटू ने कहा-"जिस अनुमान में दौलत की मात्रा बढती है उसी अनुमान में उसका महत्त्व कम होता जाता जाता है । दौलत का महत्त्व तभी तक हे जब तक उसकी मात्रा सीमित हो । तुम्हारा सवाल यानी हीरे की इतनी वैल्यू क्यों है? लोग हीरे क्रो इतना कीमती क्यों समझते हैं? वास्तव में यह एक अहम सवाल है । ये सवाल यूं ही किसी के दिमाग में ज़न्मना कठिन है । तुम्हारे दिमाग में भी महज इस कारण से यह प्रश्न जन्मा है क्योंकि हीरे को आज से पहले तुम असीमित कीमती समझते थे । किसी भी एक हीरे कौ देखने के लिए लालायित रहते थे, वे ही हीरे आज तुम्हारी आंखों फे सामने मिट्टी की भांति पड़े हैं । इतने सारे हीरों को एक साथ देखकर इनके प्रति तुम्हारा महत्त्व भी कम हो गया है । इसीलिए तुम्हरि दिमाग मे प्रश्न जन्मा कि लोग आखिर हीरे की इतना महत्त्व क्यों देते हैं?"

"यार कार्टून मियां, तुम तो हमारी जरा-सी बात पर ही भाषण देने लगे हो I” विजय बोला-“ यार हमें तो तुम ये बताओ कि वे कौन…सी वस्तु हैं जिसे पाकर मानव भगवान से भी ऊपर हो जाएगा l”



" उससे पहले जरा तुम एक और वस्तु देख लो . . . !” कहने के बाद उसने एक अन्य बटन दबाया l हल्की-सी गड़गड़ाहट के साथ कमरे की दूसरी दीवार भी एक ओर हट गई ।



उसी क्षण . . .एक जबर्दस्त गर्जना से सारा यान दहल उठा ।



विजय और विकास तक के कलेजे दहलकर रह गए । उनकी आत्मा तक इस भयानक गर्जना से कांप उठी ।



उन्होंने देखा इधर भी उनकी आँखों के सामने एक ऐसा ही लम्बा…चौड़ा हॉल था । उस हाँल मे एक जानवर टहल रहा था । हाथी जैसै जिस्म का एक विशाल और भयानक जानवर । हाथी जैसी ही उसकी सूंड थी । उसी की गर्जना से वे दहल उठे थे ।



विजय और बिकास की आंखे गहन आश्चर्य से फैल गई ।



वे उसी अजीब और खौफनाक जानवर को देख रहे थे । उसका हाथी जैसा विशाल जिस्म एकदम खून की तरह सुर्ख था । लम्बी, लंगूर से भी पांच गुनी लम्बी पूंछ । आगे सूड कै पास मुंह से बाहर निकलते हुए चार भयानक नोकीले और दो…दो फुट लम्बे दांत...एक-एक पैर जैसे सो…सौ किलो का था । पैरों में बढे हुए लम्बे-लम्बे नाखून. ..पंखो जैसे कान . . .कटोरे जैसी आंखें ।



सब कुछ मिलाकर वह बेहद भयानक ओर डरावना लग रहा था ।



अभी वह पुन: जोर से गर्जना चाहता था कि टुम्बकटू का गन्ने जैसा जिस्म उसके सामने लहरा उठा।

हाथ उठाकर टुम्बकटू ने अपनी बिचित्र-सी भाषा में न जाने क्या कहा कि ऊपर को उठती हुई उसकी लाल सुर्ख सूंड सम्मान प्रदर्शित करके झुकती चली गई । वह अगले घुटनों पर बैठकर टुम्बकटू के सामने गुलाम की भांति लम्बी दुम को हिलाने लगा ।



बिजय और विकास आश्चर्य के साथ उस जानवर और टुम्बकटू को देख रहे थे ।




जानवर क्रो शांत करने के बाद टुम्बकटू उन दोनों के समीप आया और बोला…“बापूजान, ये है चीता जो मेरे इस खजाने का रखवाला है । मेने कहा था कि इस खजाने तक पहुचने वाला व्यक्ति चीते का दुश्मन होगा । तुम. . .बापूजान, तुम. . .आज टुम्बकटू कह रहा है कि तुम दुनिया के सबसे बड़े जासूस हो.. लेकिन तुम्हें याद होगा. . .जो लेटर तुमने मेरे जूते मेँ से निकालकर पढा था…उसमें लिखा था कि सबसे बड़ा जासूस ही चीते का दुश्मन होगा । अब तुम समझ सकते हो बापूजान कि तुम हो 'चीते के दुश्मन' और तुम्हारे सामने है यह चीता? तुम्हे ये मी याद होगा कि इस चीते ने अमृत पी लिया है, यानी ये मर नहीं सकता । अब अगर तुम मेरे इस यान क्रो प्राप्त करना चाहते हो तो तुम्हें इस चीते से लड़ना होगा I”




"अबे. . .अबे ओ कार्दून भाई I" एकदम बोखलाकर विजय बोला…“मियां, तुम्हारे दिमाग का बैलेंस तो ठीक है ना?"



"क्यों, इसमें बैलेंस बिगड़ने की क्या बात है?"


"अबे मियां, देख नहीं रहे कि हमारा दिलजला कैसा सुकुमार बालक है और तुम इसे इस हाथी से लडने को कह रहे हो । ऊपर से यह भी कह रहे हो कि इस चिड्रीमार ने अमृत पी लिया हे-मतलब, ये मरेगा नहीं तो क्या प्यारे हमारे दिलजले को मारना चाहते हो?"

"बिना इससे टकराए तो विकास सबसे बडा जासूस वन नही सकेगा ।"



"तो प्यारे हमें अपने सुकुमार को सबसे बड़ा जासूस बनाना भी नही है I" विजय बोला--"'मियां, अगर हमारा दिलजला इसके सामने खड़ा हो गया तो यकीन मानो ये रहेगा ही नहीं । इस साले हाथी को तुम चीता कहते हो?”



"इससे टकराए बिना तो तुम इस यान को भी प्राप्त नहीं कर सकोगे ।"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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