वारदात complete novel

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Re: वारदात

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शंकर दादा उसके पेट मैं भी हाथ डालकर हैंडबैग निकाल लेगा I वह वहीँ खड़ा उन बदमाशों कै बाहर आने का इन्तजार करने लगा I

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"दादा....!” बसन्त कमरे में पांव रखते ही सूखै स्वर में बोला-"इसमेँ हमारा कोई कसूर नहीं है ।"



शकर दादा कई पल कहरभरी निगाहों से दोनों क्रो देखता रहा l



"हमने आपको फोन पर भी सब-कुछ बताया था कि.... ।"



"उल्लू कै पट्ठों I" शंकर दादा दहाड़ा"…""तुम दोनों एक मामूली-से पुलिस वाले को नहीं सम्भाल सकै । वह तुमसे बेग छीनकर ले गया और तुम खड़े देखते रहे I"



" उसके पास रिवॉल्वर थी ।"


"मुझें अपनी कमजोरी मत बताओ कि, उसके पास क्या' था और क्या नहीं I" शंकर दादा ने पूर्ववत: लहजे में कहा----"जब उस लडकी ने स्टेशन के क्लाकरूम में चारों बड़े सूटकेस रखै तो उसी समय ही उनकी रसीद तुम्हें उससे छीन लेनी थी I"



"स्टेशन पर यह काम नहीं हो सकता था । वहां बहुत भीड थी । हम पकडे जाते ।"



“मुझे हर हाल में रसीद चाहिए। स्टेशन के सामान-धर' ~ की रसीद चाहिए, जो उस लडकी कै हैंडबैग मेँ थी । उल्लू कै पट्ठों, मेरी बात समझ में आई कि नहीं?" शंकर दादा बहुत क्रोध में था ।



"हमने उस पुलिस वाले को तलाश करने की बहुत चेष्टा की, परन्तु वह हमेँ कहीँ मी नहीं मिला । अंधेरे मेँ उसकी छाती पर लगी नाम की पट्टी नहीं पढ सकै थे, अगर नेम-प्लेट पढ ली होती तो हमने अब तक कहीं न कहीँ से तलाश कर ही लिया होता ।"



"नेमप्लेट की तरफ ध्यान दिया होता तो नाम पढते ना ।"



"उस समय हालात ऐसे थे कि हम इन बातों की तरफ ध्यान ही नहीँ दे पाए थेl”




"भट्टा बिठा दिया तुमने मेरा । लाखों के माल को आसानी से हाथ से निकाल दिया l मैँ तुम दोनों की ऐसी हालत कर दूंगा कि अपने पैदा होने पर भी पछताओगे… ।"



" बाॅस गुस्सा करने से कुछ नहीं होगा । हम अभी वह रसीद तलाश कर सकते हैं l”



"कैसे?" शकर दादा ने भिचे दांतों से दोनों को देखा I

"उस पुलिस चाले को ढूंढेगे। चाहे जैसे भी होगा हम उसे तलाश कर ही लेगे I"



"तो क्या अब तक उसने हैंडबैग सम्भालकर रखा होगा? वह तो उसने लडकी को वापस दे दिया होगा I" शंकर दादा दांत भीचकर बोला…"उसने वह रसीद अपने हैंडबैग में ही डाल ली थी ना?"



"पक्का बात एकदम पक्का’ I”



"ठीक हे, सबकुछ भूलकर उस लडकी को नापो I" शंकर दादा ने कहा-"पुलिस वाले ने वह बेग लडकी को वापस कर दिया होगा। क्या कहा था तुमने वह किसी जबकतरे की लडकी है?"



“हां दादा । बहुत वड़ा उस्ताद था जेब काटने का उसका, चाप । इसी से हिसाब लगा लो कि आज आधे शहर पें उसी कै ही चेले-चपाटे जेब काटने का धन्धा कर रहे हैं ।"



"'मुझे इससे कोई मतलब नहीँ कि उसका चाप क्या करता था । तुम लोग उस लडकी को पकडो और उससे स्टेशन के क्लाकरुम की रसीद वसूलो । आना कानी करे तो उठाकर ले आओ साली को I"


दोनों ने सिर हिलाया I


“इस बार कोई कोताही नहीं होनी चाहिए I”


"नहीं होगी दादा । पक्के से भी पक्का… I"


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अंजना की हालत बुरी हो रही थी I उसका मन कर रहा था कि अपना सिर दीवार से टकराना शुरु कर दे I लुटी-पुटीं-सी वह अपने घर में बैठी थी I सूनी-सूनी निगाहें सामने खाली पड़े दोनों थैलों और काले रंग कें ट्रंक पर बार-बार जा रही थीं I राजीव को तो भगबान ने पहले ही उससे छीन लिया था I उसके भविष्य कै लिए राजीव जो दौलत छोड गया था वह भी हाथ से निकल गई थी I



बैंक की लूट कै सारे रुपये उसने चारों सूटकेसों में भरकर स्टेशन के क्लाकरूम में जमा करवा दिये थे I उसकी रसीद तो पर्सं में रखी थी जोकि बस में उन बदमाशों ने पर्स छीन लिया था I



बस कुछ देर तो रुको रही थी वह भी बस के अन्य यात्रियों के साथ उस पुलिस वाले का इन्तजार करती रहीँ थी, जो कि वदमाशो के पीछे भागा था ।
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Re: वारदात

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कुछ देर बीतने पर यात्रियों ने बस को चलने पर मजबूर किया था । क्योंकि रात ,हो रही थी , सब अपने अपने घर पहुंच जाना चाहते थे ।



अब वह भी मजबूर थी । अकेली रात कै अंधेरे में सुनसान जगह पर नहीं खडी रह सकती थी l



उस पुलिस वाले को गए दस मिनट बीत गए थे । जब बस चलने लगी तो दुविधा में फंसी, मज़बूरी में जकड्री वह भी वस में सवार हो गई । उसके जोर देने पर ड्राइवर ने करीब दो मिनट और बस रोकी थी, फिर बस को आगे बढा दिया था ।



उसके सारे सपने.....सारे अरमानं......सारे ख्वाब..... क्लाकरूम की रसीद के रूप में वैग के साथ ही उससे जुदा हो गए थे l रात को बेजान सी घर पहुची ।



भूख तो उड चुकी थी । नींदं का नामोंनिशान नहीं था । रात-भर करवटें ही बदलती रही थी ।



अगले दिन का उजाला उसे रात की कालिमा से भी काला लग रहा. था l खुद को बरबाद-सा महसूस कर रही थी` वह । सपनों का घरोंदा बनकर बिखर गया था ।


सपनों मेँ उसने कई बार शादी का मण्डप देखा था जिसमें आग जल'रही थी । जिसके अगल वगल वह राजीव के संग फेरे ले रही थी, परन्तु सपनों की बातें जेसे सपनों कै साथ ही समाप्त हो गई थीं ।



अब उसके सामने एक ही रास्ता बचा था । पुरानी डगर पर चलने को मजबूर थी वह । जेब काटने का धन्धा जो राजीव ने सुनहरे सपने दिखाकर छुडवा दिया था । आखिर उसे अपना पेट तो पालना ही था । हर जगह राजीव जैसे इन्सान तो भरे नहीं पड़े जो उससे यह बुरा धंधा छूड़वाकर शादी कर लेंगे । जिस्म के शिकारी अवश्य थे, जो कि हर गली हर मोड पर मौजूद थे।



जब दिन चढ आया तो खाली पेट में खलबली मची ।


उसने थोड़ा-सा खाने को बनाया ओंर खाकर चाय पीकर पुन: सोचने लगी । तभी उसके दिमाग में यह बिचार कौंधा कि हो सकता हैं उस पुलिस वाले ने उन बदमाशों से . . उसका हैंडबैग बापस पा लिया हो, इस विचार के साथ ही उसकी आंखों में आशा की चमक जगमगा उठी ।



उस पुलिस वाले को तलाश करना चाहिए, जो बदमाशों के पीछे गया था । उसका चेहरा उसने अच्छी तरह देखा था । अंधेरे में देर्खा चेहरा भी वह भूल नहीं सकी । इस बिचार के साथ ही जल्दी से वह तेयार हुईं और बाहर निकल गई ।


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दिन-भर अंजना रात वाले पुलिस बाले. की तलाश में भटकती रही I कई पुलिस स्टेशन छान मारे, परन्तु वह कहीँ न मिली I नाम तो वह जानती नहीँ थी । हुलिये कै आधे अधूरे आधार पर पूछा, परन्तु कोई भी आशाजनक जानकारी हासिल नहीँ हुई ।



आशा की जो किरण उसके मन में जगी थी वह वुझने सी लगी । शाम को वह स्टेशन के क्लाकरूम कै सामने जा खडी हुईं जहा कल उसने लाखों रुपये कै भरे सूटकेस रखे थे । क्लाकरूम को हसरतमरी निगाहों से देखने लगी । काश उस हैंडबैग मैं. रखी रसीद उसके पास होती तो वह लाखों रुपयों की मालिक होती । सुनहरी भविष्य उसकें सामने होता l ‘



परन्तु अब तो कुछ 'भी नहीँ बचा था उसके पास । स्टेशन से बुझे मन से बाहर निकली ।



समझ नहीँ पा रहीँ थी कि क्या थके , कैसे उस रसीद को वापस हासिल करे l मालूम भी तो नहीं कि हैंडबैग अब किसके पास हैं । तभी उसने सोचा कि हो सकता है , पुलिस वाला भी हैंडबैग लिये उसे तलाश कर रहा हो और उसके न मिलने पर यह उसे रात वाली बंस पर ही देखै ।

शायद ऐसा हो जाए। बुझे मन से अंजना ने सोचा। शाम तो हो ही रही थी । उसने कल रात वाले रूट पर जाने का मन बना लिया । रात को उसी समय वाली बस पक्रड़ेगी ।



_ बस कंडक्टर से भी पूछेगी । शायद पुलिस वाले कै बारे में कोई जानकारी मिल जाए । आशा तो उसे नजर नहीं आ रही थी । फिर मी कोशिश कर लेने में क्या हर्ज था ।

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इन्सपेक्टर सूरजभान ।



कानून की इज्जत करने वाला, सच्चा रक्षक ।

उम्र पैंतीस वर्ष । लम्बा-बौड़ा जबान । वर्दी पहनने पर वहुत ही आकर्षक लगता था । चूंकि वह रिश्वत नहीं लेता था। न तो खुद खाता न और किसी को खाने देता था इसलिए वडे अफसरों ने नाराज होकर उसे शहंर के कोने में पडने वाले थाने का चार्ज दे दिया था, जहां जुर्म न कें बराबर होते थे । …



आंफिसरों की इस हरकत पर इन्सपेक्टर सूरजभान को क्रोध तो बहुत आया, परन्तु कुछ कर भी तो नहीं सकता था। खामोशी से जाकर उसने उस थाने का चार्ज सम्भाल लिया ।

. चार्ज सम्भाले महीना हीँ हुआ था कि उसकै थाने कै अंदर में पड़ने वाले बैंक मेँ डकैती पड़ गंई I उसे सूचना मिली फौरन वह सब-इन्सपेक्टर और चार पुलिस वालों क्रो साथ लेकर बैंक में जा पहुंचा ।



वहां तीन लाशो को देखते ही उसका चेहरा कठोर-होउठा ।

तफ्तीश की ।


मालूम हुआ कि डकैती करने वाले चार युवक थे । और चारों पढ़े लिखे और अच्छे घराने के लग रहे थे ।

उनमे किसी ने एक को दूसरे ने हेगड़े कहकर पुकारा था ।



बैंक से उंगलियों कै निशान उठाए गए।


दोपहर तक़ इंस्पेक्टरं सूरजभान बैक मैं हीं व्यस्त रहा ।



जब वह वहाँ से निकलने की सोच रहा था तो वह गश्ती पुलिस-जीप बहा आ पहुची जों लुटेरों कै पीछे गई थी । उसमें सब इंस्पेक्टर, दो अन्य पुलिस वाले और एक ड्राइवर था ।।

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Re: वारदात

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सब-इन्सपेक्टर सूरजभान से मिला और पीछा करने का सारा वृतात बताया ।



"बहुत शर्म की बात है कि तुम उन्हें पकड़ नहीं सकै ।" इन्सपेक्टर सूरजभान उखड़े स्वर में बोला ।


“हमारी जीप भीढ़ में फस गई थी सर, नहीं तो अवश्य पकड़े जाते ।" सब इन्सपेक्टर ने कहा ।


"कार का नम्बर क्या था?"


"सर I" सब-इन्सपेक्टर ने कार का नम्बर बताकर कहा… …"सब जगह कार के नम्बर कै बारे मेँ खबर कर दी गई हे, जल्दी ही वह कार हमें मिल जाएगी ।"


"अब यह तुम्हारी डूयूटी है कि कार के मिलते ही मुझे पुलिस स्टेशन में खबर करो ।”



"ओ०के० सर I"



"तुमने बैंक लूटने बालों कै चेहरे देखै?” इन्सपेक्टर सूरजभान ने पूछा ।



"वह कार में थे सर । कुछ भी स्पष्ट नहीं देख सका । परन्तु यह ज़रूर देखा कि जो कार की पिछली सीट पर था, उसके चौडे कंधे थे और वह घुघराले बालों वाला था ।"



इन्सपेक्टर सूरजभान बैक वालों के बयान ले चुका था । चारों के हुलिए उसकै-पास थे ।


"वह जो भी थे, बडे घरानों के बिगडे हुए नौजवान थे । उनके हुलिए और डकैती करने वाले अन्दाज से ऐसा स्पष्ट महसूस होता हे । ऐसों को पकढ़ना जरा कठिन हो जाता हे । क्योंकि यह प्रोफेशनल क्रिमनल तो होते नहीं l” इन्सपेक्टर. सूरजभान ने सोचभरे स्वर में कहा l


"राइट सर I"


"तुम कार के बारे में मुझे खबर करना जब वह मिल जाए । मेरे इलाके मेँ बैक-डैकेती हुई हैं, उन लोगों क्रो पकडना मेरा काम है । इसलिए कार मिलने पर सिर्फ उसकी निगरानी की जाए । कार से छेडछाड न की जाए। वायरलेस सेट पर यह सूचना मी सबको दे दो i"


"यस सर मैं अभी हेडक्वार्टर कंट्रोलरूम में यह मेसेज भिजवाता हूं।” . . इन्सपेक्टर सूरजभान पुलिस स्टेशन चला गया ।



दो घन्टे बाद ही सब-इन्सपेक्टर कोहली फिगरप्रिट की रिपोर्ट लेकर आ गया कि यह फिगरप्रिट नए हैं, किसी पुराने अपराधी के नहीं हैं l"



“सब-इन्सपेक्टर-कोहली l" उन फिगरप्रिट को घूरते हुए इन्सपेक्टर सूरजभान ने कहा…"डकैती करने वाले नए रंगरूट थे, तभी तो उन्होने हाथों में दस्ताने नहीं पहने थे, तभी तो उन्होंने, अपने चेहरे नहीं ढके थे । अगर पुराने चावल होते तो वह इन सब बातों का ध्यान अवश्य रखते ।”



" ऐसे मेँ तो इन लोगों को ढूँढना बहुत ही कठिन है सर… i"

"वास्तव में कठिन है ।” इन्सपेक्टर सूरजभान होंठ भीचकर गुर्राया-"परंतु मेरी निगाहों से वह चारों बच नहीं सकेंगे। सिर्फ डकैती का ही मामला होता तो शायद मैं इसे गम्भीरता से नहीं लेता, परन्तु डकैती के साथ उन लोगों ने तीन हत्याएं भी की हैं । बैंक मैनेजर की चौकीदार की और एक ग्राहकं की । हत्यारों को छोडना तो मैंने कभी सीखा ही नहीँ । मैं इन्हें हर हाल में पकडकर रहूंगा l”


सब-इन्सपेक्टर कोहली खामोश रहा I


"कोहली मैं तुम्हें जो काम सोंप रहा हू वह कठिन अवश्य है पर बहुत जरूरी है । इसी कै दम पर ही हम उन चारों तक पहुच सकते हैँ I" इन्सपेक्टर सूरजभान ने कहा ।


"हुक्म कीजिए सर ।"


"शहर के रईसों की औलादों को टटोलो । देखो कौन कहां कहां बिगड़ा हुआ हैं? क्या-क्या करता हे? सबसे पहले तो हेगड़े नाम के लोगों को चेक करो जो अपने नाम के साथ हेगड़े लगाते हैं, क्योंक्रि डकैतों ने आपस में एक को हेगडे कहकर पुकार था । मैँ फिर कहता हूं काम कठिन है, परन्तु यही एक रास्ता है जिसके दम पर हम रावरी करने बालों तक पहुंच सकते हैँ ।"

"ओ०कै० सर । मैं अभी से यह काम शुरू कर देता हू। सबसे पहले हेगड़े वालों को ही चेक करता हूं।” सबइन्सपेक्टर कोहली ने सैल्यूट मारकर कहा ।



"फोन डायरेक्टरी से मालूम हो जाएगा कि शहर में कितने रईस-अमीर हेगड़े हे । उनकै पते भी पिल जायेंगे । हरिअप । शुरू हो जाओ । हमें देर नहीँ करनी चाहिए l"



"राइट सर ।" सब-इन्सपेक्टर कोहली बाहर निकल गया ।



तभी फोन की घंटी बजी । इन्सपेक्टर सूरजभान ने रिसीवर उठाया ।



फोन हेडक्वार्टर से कमिश्नर राममूर्ति का था राममूर्ति ने ही खुन्दक में उसका ट्रांसफर शहर के आखिरी कोने में वने इस थाने में करां था, क्योंकि वह रिश्वत नहीं लेता था । न ही लेने देता था । उसकी इस बारे मेँ कई शिकायतें रिश्वतें लेने और देने दालों ने कमिश्नर राममूर्ति से की थीं । इस्री कारण राममूर्ति को भी उसकी ट्रांसफ़र करनी ही पडी थी । राममूर्ति ने इन्सपेक्टर सूरजभान को बुलाकर एक बार समझाया भी था कि अपने काम से मतलब रखे, परन्तु सूरजभान भला यह बात कहां मानने वाला था I


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Re: वारदात

Post by 007 »

""हेलों !" इन्सपेक्टर सूरजभान माउथपीस में बोला ।


"इन्सपेक्टर सूरजभान बहुत अफसोस की बात हे कि तुम्हारे इलाके में बैंक-डकैती हो गईं।"



"बैंक डकैती तो किसी भी जगह पर हो सकती है।" इन्सपेक्टर सूरजभान ने स्थिर लहजे में कहा ।



"प्रोग्रेस रिपोर्ट क्या है?”



"अभी तो बैंक से पूछताछ करके लौटा हू। मुझे पूरा विस्वास हे कि जल्द ही बैक लुटेरों के बोरे में कोई क्लू हासिल कर लूंगा ।"


इन्सपेक्टर सूरजभानं ने विश्वासभरे स्वर में कहा ।



"मुझे तुम पर मूरा बिश्वास हे, तुम वास्तव में काबिल पुलिस वाले हो ।"


"इसी कारण आपने मुझे शहर कै कौने में पड़ने वाता थाना दे दिया" l" सूरजभान ने शिकायती लहजे में कहा… "यह थाना तो उसे देना चाहिए, जिसे आराम से बैठकर खाने की आदत हो ।"



"मैं जानता हूं तुम मुझसे नाराज हो I खैर, चिन्ता मत करो । तुम यह केस साल्व करो । इस कैस कै साल्व होते ही मैं तुम्हें किसी अच्छे. थाने का चार्ज दे दूंगा I”



"थैक्यू ......सर I" सूरजभान ने मन ही मन तसल्ली से भरी गहरी सांस ली ।


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शाम चार बजे इन्सपेक्टर सूरजभान को डकैती में इस्तेमाल की गई कार के हासिल होने की सूचना मिली I वह पुलिस वालों को साथ लेकर वहा पहुचा जहां कार खडी थी । वहां पर पहले से ही दो गश्ती कारें मौजूद थीं और फिगरप्रिट
वाले कार से उंगलियों के निशान उठा रहे थे । सूरजभान गंश्ती कारों के पास खड़े पुलिस बालों कै पास पहुचा I वहां मौजूद इन्सपेक्टर उसकी पुरानी पहचान वाला था । दोनों खुलकर मिले ।



"सूरजभान यह कार चोरी की हे । आज सुबह ही कार चुराई गई हे । कार के मालिक ने फोन पर करीब कै थाने में कार चोरी हो जाने कीं रिपोर्ट दर्ज कंरवा दी थी I"


" ओह ।"



"’कुछ मालूम हुआ, डकैती करने वाले कौन थे ?"



"अभी तो खास कुछ नहीं पता चला, कोशिश जारी है।” सूरजभान ने सिर हिलाकर कहा-"परसु यह बात-तो में दावे के साथ कह सकता हूं कि डकैती करने वाले नए रगरुट थे I"


तभी फिगरप्रिंट एक्सपर्ट बहा आया और सूरजभान से बोला ।


कार से चार व्यक्तियों की ऊंगलियों कै निशान मिले हैँ । यह निशान हू-ब हू वही हैं जो सुबह बेंक के कई हिस्सों से उठाए गए' हैं ।।"



"हू । अब जाप लोगों का काम खत्म हो गया?"



“हां !"



"ठीक है l इन निशानों की आप फाइल तैयार कीजिए । दो घंटे तक किसी को भेजकर मैं हैढक्वार्टर से मंगवा लूगा ।" इन्सपेक्टर सूरजभान ने कार को देखते हुएं कहा ।


इन्सपेक्टर सूरजभान ने कार की बारीकी से तलाशी ली l



स्टेयरिंग के नीचे पायदान के करीब सीट के नीचे से उसे नया लेदर का पर्स मिला l उसने पर्स खोलकर देखा । चैक किया l पर्स में साठ-सत्तर रुपए के अलावा जो काम की वस्तु थी, वह था ड्राइविंग लाइसेंस । किसी राजीव मल्होत्रा कै नाम था । ऊपर उसकी तस्वीर लगी हुईं थी । नीचे नाम पता था । इंस्पैक्टर सूरजभान की आंखों में तीव्र चमक लहरा उठी ।

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इन्सपेक्टर सूरजभान ने किसी तरह बैंक कै चन्द कर्मचारियों कै घर का पता मालूम किया ओर उनके घर पर जा पहुचा । उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस मेँ लगी हुई तस्वीर दिखाई । तस्वीर देखते ही चार में से तीन ने पहचाना कि आज सुबह हुई बेंक-डकैंती में यह युवक शामिल था I इन्सपेक्टर सूरजभान के जबड़े सख्ती से बन्द होते चले गए ।



अब बैक-डकैती और तीन हत्याओं कै मुजरिम उससे ज्यादा दूर नहीं थे l , , .

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दो पुलिस वालों के साथ इन्सपेक्टर सूरजभान जब राजीब मल्होत्रा के फ्लैट पर पहुंचा तो दरवाजा बन्द पाया ।।


पूछने पर पता चला कि फ्लैट सुबह से ही बन्द हे । मालूम हुआ कि राजीव पढा…लिखा बेरोजगार युवक है ।



इन्सपेक्टर सूरजभान दोनों पुलिस बालों के साथ साइड में खड़ा होकर फ्लैट की निगरानी करने लगा, ताकि राजीव आए तो उसे कानून के शिकजे में र्फसा सकै । आधी रात बीत गई, परन्तु राजीव नहीं आया । इन्सपेक्टर सूरजभान समझ गया कि राजीव मल्होत्रा अब तीनों डकैतों और लूट की दौलत कै साथ कहीँ और जगह पर होगा । आखिर कभी तो आयेगा वहां दोनों पुलिस वालों को हिदायत दी…कि इस फ्लैट का मालिक जब भी आये फौरन उसे सूचना दी जाए। इसके बाद वह पुलिस स्टेशन चला गया । वहां चन्द घंटे सोया और एक अन्य पुलिस वाले को राजीव के फ्लैट की निगरानी पर भेज दिया, ताकि रात वाले दोनों कांस्टेबिल भी आराम कर सकें ।


पुलिस वाले ने दोनों पुलिस बालों की छुट्टी देकर उनकी डूयूटी सम्भाल ली: परन्तु व पुलिस वाला कुछ लापरवाह किस्म का था और कुछ उसकी बीवी की तबियत खराब थी । धर पास ही था, वह घर पर चला गया । दिन-भर अपनी बीवी के संग रहा । डॉक्टर से दवा लाकर भी उसे दी ।



दोपहर का खाना खाकर दौ घन्टे स्रोया भी अच्छे पति कै सारे फर्ज निपटाकर जब वह वापस अपनी डूयूटी पर राजीव के फ्लैट पर पहुंचा तो अंधेरा घिरना आरम्भ हो गया था । राजीव कै फ्लेट का दरवाजा उसने खुला देखा। मालूम करने पर उसे पता चला कि इस फ्लेट में रहने वाले राजीव की मौत दिल का दोरा पडने से हो गई है और उसके दोस्त अन्तिम संस्कार के लिए उसे लेकर गये हैं ।



उस कांस्टेबिल की हालत खराब हो गई 1 वह मालूम कर चुका था कि सुबह से ही राजीव के. फ्लेट का दरवाजा खुला पड़ा था ।



अच्छा खासा हंगामा मचा रहा। अगर अब उसने अपने इन्सपेक्टर को इस बारे में खबर दी तो उसकी नौकरी गई, क्योंकि अपनी ड्यूटी उसने ठीक तरह से पूरी नहीं की दी ।

आखिरकार उसने यहीं फैसला किया कि इस बारे में अपनी जुबान बन्द रखेगा । उसने देखा दो घन्टे के बाद कुंछ लोग आए और उस फ्लैट कै दरवाजे पर ताला लगाकर चले गये । कुछ ही देर में वहां पर कोई भी नहीं थी । आधे घन्टे के बाद उसकीं जगह लेने दूसरा पुलिस वाला आ गया । उसने एक लम्बी सांस ली और वहां से सीधा पुलिस स्टेशन पहुंचकर सूरजभान को रिपोर्ट दीं कि फ्लैट पर सारा दिन कोई भी नहीं आया।



तभी इन्सपेक्टर कोहली ने भीतर प्रवेश किया ।

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"आओ कोहली बैठो ।" इन्सपेक्टर सूरजभान ने उसे देखते ही कहा ।



“सर ....." सब-इन्सपेक्टर कोहली बैठता हुआ बोला-----"मैंने आज दिन भर में पन्द्रह हेगडों को चैक किया है । उनका पता मैने फोन डायरेकट्री से हासिल कर लिया था ।"



"कोई सफलता?" इन्सपेक्टर सूरजभान की प्रश्चभरी निगाह उस कै, चेहरे पर जा टिकी I



"मिली भी, नहीं भी… l" सब इन्सपेक्टर कोहली ने सिर हिलाया-"पन्द्रह में से छः के तो कोई लडका ही नहीं है l चार के लडकै फॉरेन मेँ रहते हैँ । बाकी पांच के लडकों कै बारे में पूछताछ की । पाच में से चार के लडके ठीक निकले, परन्तु ......!"



"परन्तु क्या कोहली‘ ?"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: वारदात

Post by 007 »

"परन्तु पांचवें का बेटा नशेडी हैं सर, स्मैक, अफीम, चरस का नशा करता है I कभी घर में रहता है तो कभी बाहर आवारा दोस्तों कै साथ ।" कोहली ने बताया !!



"तो इसमें परन्तु कहकर रुकने वाली कौन-सी बात हो गई थी?”



"सर, वह नशेडी जज का लडका है I"

"जज का?"


"हा सर । बहुत बड़ा और इज्जतदार जज है । शायद आपने भी उनका नाम सुन रखा हो । जज कृष्णलाल हेगडे । अपनी शराफत को लेकर वह बहुत ही मशहूर हे सर ।"



"कृष्णलाल हेगड़े ।" इन्सपेक्टर सूरजभान की आखे सिंकुड़ गईं-"यह वहीँ कृष्णलाल हेगड्रै जज तो नहीं जिसने महीना-भर पहले नेता के खिलाफ फैसाल दिया था और उसे फासी की
सजा हुईं थी !"


. "यस सर ! मैं उसी कृष्णलाल हेगड़े की बात कर रहा हू।"


"उसका लडका नशेडी है?" इन्सपेक्टर सूरजभान ने हैरानी से कहा ।



"यस सर । सुना है वह अपने बेटे से बहुत दुखी हैँ । इकलौता लड़का है । वह भी बिगडा हुआ I दो लडकियां हैं l एक की शादी वह कर चुका हे । दूसरी पढ़ रही है ।" कोहली ने बताया ।


इन्सपेक्टर सूरजभान काफी देर तक गहरी सोच में डूबा रहा ।


"और इसके बारे में क्या मालूम किया?"


"अभी तो खास कुछ नहीँ सर I”



" मालूम करो! जज साहब कै लड़र्के का नाम क्या हैं?”


" सूरज सूरज हेगडे !”



“उसका हुलिया क्यहै ?"



"अभी मालूम नहीँ किया सर ।"



"मालूम करो l देखना कहीँ वह चौडे कंधे और घूंघराले बालों वाला तो नहीं हे । अगर वहीँ हे तो इसका कोई दोस्त इस हुलिए वाला हो ओर यह पता करो कि कल डकैती वाले दिन, खासतौर से सुबह के समय वह कहा था पक्की जानकारी हासिंल करना l"


"यस सर ।"



इन्सपेक्टर सूरजभान ने फिर राजीव मल्होत्रा कै बारे में बताया ।

"आपने उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया?” पूरी बात सुनते ही कोहली चौका . . ।।



"वह अमी तक अपने फ्लैट पर नहीं लौटा l निगरानी बराबर चल रही हे l" इन्सपेक्टर सूरजभान ने विचारपूर्ण स्वर में कहा-"अब मुझे लगता हैं कि वहीं जाकर मालूम कंरना पड़ेगा कि राजीव की जान-पहचान वाले कौन कौन लोग थे । उसे कहा से पकड़ा जा सकता है । तुम जाओ, सूरज हेगडे कै बारे में मालूम करो । मैं राजीव के बारे में कोई कदम उठाता हू। कमिश्नर साहब का फोन आया था । वह दबाव डाल रहे ये कि केस को जल्दी सॉल्व किया जाये।"


"जी !" कहने कै साथ ही कोहली उठा ओर इजाजत लेकर बाहर निकल गया ।



इन्सपेक्टर सूरजभान कुछ देर बेठा सोचता रहा फिर उठकल बाहर निकला । दो पुलिस वालों को साथ लेकर जीप में बैठा और राजीव मल्होत्रा कं फ्लैट की तरफ रवाना हो गया । वहा पहुंचकर उसे राजीव कै बारें में जो जानकारी मिली वह हैरान कर देने वाली थी कि राजीव की हार्टऔक से मौत हो चुकी हैं और कल ही यहां से उसकी अर्थी उठाई गई है । इन्सपेक्टर सूरजभान क्रो यह सुनकर बड़ा अटपटा लगा, क्योकिं उसके आदमी बराबर फ्लैट की निगरानी पर थे, परन्तु उसे इस बारे में उसके आदमियों ने कोई रिपोर्ट नहीं दी ।



वह समझ गया कि कल दिन में निगरानी करने बाला कांस्टेबिल गड़बड़ कर गया है । अपनी डूयूटी में उसने लापरवाही बरती हैं । बहरहाल अपना क्रोध दबाते हुए उसने पूछताछ जारी रखी । सबसे पहले उसने राजीव मल्होत्रा के पडौसी को पकडा ।

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कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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