वारदात complete novel

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007
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Re: वारदात

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"ओह देवराज चौहान साहब ।" करीब आकर महादेव देवराज चौहान का हाथ पकडकर हिलाता हुआ बोला-“कहां थे, चार-पांच दिन हो गए हुजूर कै दर्शन ही नहीँ हुए । कहां गुम हो गए ये साहव?"


"आप तो जानते ही हैं महादेव जो कि मैं रजीत श्रीवास्तव जैसे इन्सान के यहां नौकरी करता हूं। अब मालिकों का क्या है, कभी भी आर्डर ठोंक दिया । वहां जाओ यह काम करके आओ ।"



"हां । यह बात तो है ही ।" महादेव ने फौरन सिर को ऊपर नीचे हिलाया-"यह ब्रीफकेस कैसा?" ,

“यह ... I” देवराज चौहान ने हाथ में पकडे ब्रीफकेस को देखा-" मालिको का माल भरा पड़ा है इसमें । चार दिन बाद काम से वापस लौटा हू । सोचा जाते ही फिर बिजी हो जाऊगा । मालिक के पास पहुचने से पहले थोड्री स्री तफरीह कर लूं। इसलिए सीधा यहा चला आया ।"


"तफरीह की?” महादेव की आंखों में चमक उभर आई l



"वस आकर खडा ही हुआ हू। तुम सुनाओ, खाली-खाली , क्यों घूम रहे हो?” ,



"बुरी किस्मत । आज बीस हजार हार गया । साला पत्तेबाज मुझे ठग गया ।"


" कौंन ??"


"है साला, नया आया है । मुझे पूरा विश्वास है वह पत्ते वाला लगाता है , वरना इतनी आसानी से नहीं हार सकता था । चालाक इतना है कि पत्ते लगाते मैँ उसे नहीं पकड सका ।" महादेव ने गहरी सास ली-" अकेला था, कहां तक ध्यान लगाता , अपनी गेम भी तो मुझे देखनी थी ।"



देवराज चौहान की आखें सिकुड गई । ब्रीफकेस नीचे रखकर उसुने सिगरेट सुलगाई ।



"देखें उसे?"


"क्या करोगे?”


"मैं खेलूँ ।। तुम उसे पत्ते लगाते पकडना, अगर वह पत्तेवाज है तो .....!"



महादेव की आंखों में चमक आई ।



"गुड आइडिया! बैरी गुड ।। साले को पते लगाते पकड़ लिया । तो अपना बीस भी वसूल का लुगा हरामी से । लेकिन.... लेकिन तुम तो कहते थे कि ब्रीफकेस मे मालिकों का माल हे?"


"तुम इस चक्कर में ना पडो । यह मेरा जाती मामला है । हार गया तो देखा जाएगा l” देवराज चौहान ने होले से हंसकर कहा

" वेसे हारना मेरे नसीब में कम ही हे । जीत मेरी जिन्दगो का हिस्सा बन चुकी है।" . . .



"यह बात तो मैं कई बार आजमा चुका हूं।" महादेव हंसा I



फिर दोनों क्लब कै गुप्त रास्ते और पहरों कै बीच में से गुजरकर जुए के हॉल में जा पहुंचे I


वहां पर बड़े पैमाने पर जुआ जोऱ-शोर कै साथ चल रहा था ।



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फीनिश
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" शो !" देवराज चौहान ने टेबल पर नोटों की तीन गड्डियां डालीं और सामने बैठे खेलने वाले को देखा ।



अन्य बाकी के दो पहले ही पैक हो चुके थे । गेम बडी हो जाने की वजह के कारण आसपास चंद लोग भी आ खड़े हुए थे-खड़े लोगों में महादेव भी था, जिसकी पेनी निगाह देवराज चौहान के सामने डटे खिलाडी पर थी कि वह हेरा फेरी कब कहां और कैसे करता है ।



उसके शो मांगते ही सामने बैठे खिलाडी ने देवराज चौहान की आंखों मेँ झांका ।


देवराज चौहान ने लापरवाही-भरे अन्दाज में सिगरेट सुलगाई । इससे पहले के वह तीन गेम हार चुका था और उसे मन ही मन हैरानी थी ऐसा कैसे होरहा है जबकि हर बार उसके पास पत्ते अच्छे पड़े थे । परन्तु सामने वाले के पास हर बार उससे जरा सेबंड़े पत्ते होते ।


इसी बात से ही देवराज चौहान को पूरा बिश्वास हो गया था कि सामने वाला खिलाडी पत्ते लगा रहा है I और वह भी इस बात को नहीं पकड सका था कि वह भत्ते किस अन्दाज से लगा रहा है । इस बात कीं तरफ से वह निश्चित था क्योकि महादेव इसी काम फे लिए तो वहां खडा था ।



अब तक देवराज चौहान दो-ढाई लाख रुपया हार चुका था । जोकि उसके लिए सरासर अविश्सनीय बात थी I


उसने देवराज चौहान के शो मांगने पर अपने पत्ते खोल दिए । पत्तों को देखते ही देवराज चौहान की आंखें सिकुंड कर छोटी हो गई । फिर वहीँ गड़बड़ ।


उसके पास दो तीन-चार की स्रीकवैस थी और सामने खुले पत्तों में तीन-चार-पांच की सीकबैंस ।


बेहद शांत मुद्रा में देवराज चौहान ने अपने पत्ते खोल दिए । उसके पत्ते देखते ही सामने बेठे खिलाडी के होंठों पर मुस्कान की रेखा उभरी और टेबल पर पडे नोटों कै ढेर को अपनी तरफ सरका लिया ।


इस गेम मा वह करीब चालीस हजार ले गया था । महादेव सिर से पांव तक बेचैन हो गया I वह भी इससे इसी प्रकार हारता रहा था ।

" शो !" देवराज चौहान ने टेबल पर नोटों की तीन गड्डियां डालीं और सामने बैठे खेलने वाले को देखा ।


अन्य बाकी के दो पहले ही पैक हो चुके थे । गेम बडी हो जाने की वजह के कारण आसपास चंद लोग भी आ खड़े हुए थे-खड़े लोगों में महादेव भी था, जिसकी पेनी निगाह देवराज चौहान के सामने डटे खिलाडी पर थी कि वह हेरा फेरी कब कहां और कैसे करता है ।


उसके शो मांगते ही सामने बैठे खिलाडी ने देवराज चौहान की आंखों मेँ झांका ।


देवराज चौहान ने लापरवाही-भरे अन्दाज में सिगरेट सुलगाई । इससे पहले के वह तीन गेम हार चुका था और उसे मन ही मन हैरानी थी ऐसा कैसे होरहा है जबकि हर बार उसके पास पत्ते अच्छे पड़े थे । परन्तु सामने वाले के पास हर बार उससे जरा सेबंड़े पत्ते होते ।


इसी बात से ही देवराज चौहान को पूरा बिश्वास हो गया था कि सामने वाला खिलाडी पत्ते लगा रहा है I और वह भी इस बात को नहीं पकड सका था कि वह भत्ते किस अन्दाज से लगा रहा है । इस बात कीं तरफ से वह निश्चित था क्योकि महादेव इसी काम फे लिए तो वहां खडा था ।


अब तक देवराज चौहान दो-ढाई लाख रुपया हार चुका था । जोकि उसके लिए सरासर अविश्सनीय बात थी I


उसने देवराज चौहान के शो मांगने पर अपने पत्ते खोल दिए । पत्तों को देखते ही देवराज चौहान की आंखें सिकुंड कर छोटी हो गई । फिर वहीँ गड़बड़ ।


उसके पास दो तीन-चार की स्रीकवैस थी और सामने खुले पत्तों में तीन-चार-पांच की सीकबैंस ।


बेहद शांत मुद्रा में देवराज चौहान ने अपने पत्ते खोल दिए । उसके पत्ते देखते ही सामने बेठे खिलाडी के होंठों पर मुस्कान की रेखा उभरी और टेबल पर पडे नोटों कै ढेर को अपनी तरफ सरका लिया ।


इस गेम में वह करीब चालीस हजार ले गया था । महादेव सिर से पांव तक बेचैन हो गया I वह भी इससे इसी प्रकार हारता रहा था ।


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पत्तों के छोटे-वड़े होने में सिर्फ उन्नीस बीस का ही फ़र्क होता था । वह देख चुका था कि देवराज चौहान चार गेमों में काफी हजार रुपया हार चुका है और वह अभी तक उसका हेरा-फेरी करने वाला अन्दाज नहीं पकड पाया था ।



"पत्ते बांटूं या बन्द कर दूं?" उसने देवराज चौहान से पूछा l



“तब तक बाटते रहो जब तक इंकार ना कर दूं?" देवराज चौहान ने शांव्र स्वर में कहा



"जो थोडा-बहुत्त बचा हे, वह भी हार जाओगे !" उसने चेतावनी-भरे लहजे मे कहा ।



“हमदर्दी की जरूरत नही I मैं हमेशा जीतकर ही गेम समाप्त करता हू ।" देवराज चौहान ने उसकी आखो मे झांका ।



"मर्जी तुम्हारी l" कहने के साथ ही उतने गड्डी उठाई और पत्ते मिलाने लगा । देवराज चौहान को मूरा विश्वास हो चुका था कि अन्य दो खेलने वाले भी उसके ही साथी है , क्योंकि हर बार वह दो तीनन चाल चलने के पश्चात् पैक हो जाते थे, यानी कि उनका मकसद सिर्फ उन दोनों को भिड़ाना होता था ।



पत्ते बांटे गये । गेम पुन: आरम्भ हो गया । हर बार की तरह अन्य दो खेलने वालों से एक ने तीन बार चाल चली, दूसरे ने पांच बार । दोनों पैक हो गए l अब फिर देवराज चौहान और खेलने वाला सामने था । दोनों धोरे-घीरे चालें चलने लगे । देवराज चौहान ब्रीफकेस में से नोटो कौ. गड्रिडयां निकाल रहा था , टेबल पर नोटों का ढेर बढने लगा । और फिर एकाएक देवराज चौहान ने चाल चलनी बन्द कर दी । उसकी आखों में मौत के भाव विद्यमान होते चले गये ।



"तुम्हारी कमीज कै कफ के भीतर क्या हे?” देवराज चौहान सर्द लहजे में कह उठा ।



“क्या है?" वह एकदम सीधा होकर बैठ गया ।



“तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि उसनें क्या है । बाहर निकालो उन्हें देवराज चौहान गुर्राया ।



"कुछ नहीं है तुम सीधी तरह गेम खेलो I” उसका लहजां भी सख्त हो उठा था ।



खड़े लोग भी एकाएक बिगडे मामले को हैरानी से समझने की चेष्टा करने लगे ।

देवराज चौहान झटके कै सार्थ उठा और घूमकर उनके पास पहुचा । इससे पहंले. कि वह समझ पाता, देवराज चौहान ने उसकी
बांह पकडी और कमीज कै बंद कफ में छिपे तीन पत्ते निकालकर टेबल पर मौजूद नोटों कै ढेर पर फेंकें । वह गुलाम -वेगम, बादशाह थे , एक ही कलर के ।



अपनी हेराफेरी पकड़े जाते देखकर पल-मर के लिए वह हढ़बड़ा उठा ।


"तो इस तरह तुम हर गेम जीत रहे थे I” देवराज चौहान ने उसके सिर कै बाल पकडकर उसे उठाया और जोरदार घूंसा उसके गाल पर मारा, वह कराहकर नीचे लुढकता चला गया ।
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Re: वारदात

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जुए के हाल में बैठे कई लोगों का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित हो गया था I



देवराज चौहान एडियों कै बल घूमा और महादेव से बोला ।



"तुम इससे कितना हारे थे ?"



"बीस हजार I”



"उठा लो ।” महादेव ने फौरन सौ-सौ कै नोटों की दो गड्रियां उठाकर अपनी जेब में ठूंस लीं ।



बाकी टेबल पर पड़े नोटों के देर में से गड्डियां उठाकर देवराज चौहान अपने ब्रीफकेस मे ठूसने लगा । ब्रीफकेस भर गया तो उसे बन्द करके बाकी कै नोटोंको अपनी जेबों मे भरते हुए महादेव से बोला ---- "यह सारे मेरी जेब में नहीं आयेंगे । तुम भी अपनी जेवों में भर लो I एक पैसा यहा नहीं छोडना I"


महादेव तेजी से अपने काम में जुट गया ।


"तुम लोग यहां से एक पैसा मी नहीं ले जा सकतें ।" देवराज चौहान ने पलटकर देखा, वह चाकू थामे खतरनाक मुद्रा में खड़ा था I



अन्य खडे लोग यह दृश्य देखकर सहमते हुए पीछे हट गये ।



“जाओ अपना काम करो । " देवराज चौहान भिचे होंठों से बोला I साथ ही वंह नोट जेबों में ठूंसता रहा ।



नोटों को जेवों में ठूंसने का कार्य करते महादेव कै हाथ भी ना रुके थे ।

उसी पल देवराज चौहान एड्रियों कें बल घूमा और उसके हाथ में थमा चाकू जोकि उसकी कपम में धंसने जा रहा था, एक हाथ से उसने कलाई पकडी और दूसरे हाथ का घूसा उसके चेहरे पऱ दे मारा । इसके साथ ही देवराज चौहान ने उसकी कलाई छोड दी थी । वह तेज चीख के साथ नीचे जा गिरा और अगले ही पल उछलकर खड़ा हो गया । अब उसके चेहरे पर द्ररिन्दगी बरस रही थी ।



देवराज चौहान शांत मुद्रा में नोटों को जेब दो हवाले का रहा था ।।



"तुम यह नोट नहीं ते जा सकते । यह मेरा पैसा हे । " वह चीखा ।



"यह तुम्हारा नहीं, पते लगाकर हेराफेरी करके जीता हुआ लोंगों का पैसा है ।‘"



"तुम इस पैसे को लेकर यहां से जिन्दा बाहर नहीं जा सकते ।" वह पुन चीखा।


देवराज चौहान ने पलटकर मौत्त से निगाहों से उसकी आंखों में झांका ।


" तुम -तुम मेरी जान लोगे?"



“वह तो लेनी ही पडेगी अगर तुमने मेरा पैसा वापस टेबल पर ना रखा तो I”



देवराज चौहान का र्चेहरा क्रोध से स्याह पड़ गया। वह खतरनाक अन्दाज में उसकी तरफ बढा ।



"काट दो साले को l" वह चीखा ।



उसकी चीख की एवज में अब दो खेलने बालों ने जोकि सरासर उसी कं साथी थे, जेबों से चाकू निकाल लिए । देवराज चौहान क्षण-भर कै लिए ठिठका । सर्द निगाहों से उन दोनों को देखा l



“सारा पैसा वापस टेबल पऱ रख दो I” वह पुन् गला फाड़क्रर दडाड़ उठा I



'महादेव चाकुओं को देखकर कुछ घबरा उठा था । अब तक जुआघर में मौजूद सबकी निगाहें उन पर ठहर चुकी थी । ज्यादातर माजरा समझ चुके थे ।



उसी पंल देवराज चौहान का शरीर हवा में उछला और उसके दोनों जूतों की एडियां चाकू निकाले खडे ताश खेलने वाले उसके दोनों साथियों के माथे से वेग से जा टकरायीं ।



ठक ठक I



तीव्र आवाज हुई I उनके हलक से चीख भी ना निकली । अगले ही पल उनका माथा और सिर फट गया था ।


उनके शरीर लहराये और नीचे जा गिरे I माथे और सिर से तेजी से खून बहने लगा था I अब उनकें शरीरों में हरकत बिल्कुल नहीं थी I



देवराज चौहान तो उन पर वार करते ही फौरन सीधा खडा हो गया था । उनके नीचे गिरते ही वह पलटा और पुन: चाकू वाले खिलाडी की तरफ बढने लगा



"यह सब क्या हो रहा है?”




तभी ऊंची आबाज ने उसके कदम रूकवा दिए I



देवराज चौहान ने पलटकर देखा । क्लब का मेनेजर दो मुस्टण्डों के साथ वहां आ पहुंचा था I



"यह सब क्या हैं?" मैनेजर ने सख्त स्वर में कहा-" तुम लोगों को यहा पर खून-खराबा करने को किसने कहा?"



“यह पत्ते लगाकर हमसे जीत रहा था और हमने इसकी हेराफेरी पक्रड़ ली I" महादेव बोला।



“तो हमसे कहते I हम मामले का निपटारा कर देते । इस तरह कै झगड़े से हमारे क्लब की रैपुटेशन पर बुरा असर पडता हे ।" मैनेजर ने सख्त स्वर में कहा-"झगड़ा क्यों शुरू हुआ?"



देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और शांत स्वर मे कब उठा ।



"मैनेजरा पत्ते लगाकर हेराफेरी करके इसे खेलने का जुर्माना दे रहे हैँ । सादा-सा जुर्माना है, जो माल टेबल पर पड़ा वह सब हम ले रहे हैं यह अपने दो साथियों कै साथ चाकू निकालकर हमें माल ले जाने क्रो मना कर रहा हे I"



मैनेजर ने चाक्रू वाले खिलाडी क्रो देखा जोकि अब चाकू अपनी जेब में स्ख चुका था I तुमने पत्ते लगाये?"



"’नहीं I यह बोलता है I” उसने चीखकर तेज स्वर में कहा----"मेरा सारा ले जाना चाहता है ।"



"इसकी हेराफेरी की बात तो यहां खड़े लोगों से भी जानी जा सकती है।" महादेव कह उठा।

मैनेजर ने लोगों से बात की I आखों देखै गवाहों ने सच्चाई बयान की ।

"तुम अपनी दौलत जितनी हारे थे, वह वापस ले लो और उसंर्के बाद टेबल पर मौजूद बाकी की आधी दौलत ले लो । पत्तेबाजों के लिए इतना जुर्माना ही बहुत है ।" मेनेजर ने देवराज. चौहान से कहा ।
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Re: वारदात

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& मैनेजर साहबा अगर आप पहले आ जाते और यह चाकू से मेरी जान लेने की चेष्टा ना करता तो शायद मै ऐसा ही करता…जैसा कि आप कह रहे हैं !" देवराज चौहान ने सर्द स्वर . में कहा-“लेकिन अब आपकी बात नहीं मानी जा सकती, क्योंकि दौलत जेब मे डालने के पश्चात् उसे मैँ बाहर निकालना पसन्द नहीं करता!"



"तुम्हें मेरी बात माननी होगी I” मेनेजर ने सख्त स्वर में… कहा ।।



“यहां जुआ खेलने वाले कई लोग खड़े हैँ । उनसे पूछ लीजिए ।” देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर कहा-“पत्ते लगाकर खेलने वाले के साथ वही सलूक करना चाहिए जो मैं कर रहा हूं। अगर यह लोग आधे पैसे को रखने के लि…ए कहते हैं तो मै सारा ही रख दूंगा ।"


“यह साहव ठीक कह रहे हैं। हेराफेरी करने वालों को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए ।" ‘



इसी प्रकार की मिलती जुलती कई आवाजें आईं


"सुना मैनेजर ।" देवराज ने शांत लहजे में कहा-फिर महादेव से बोला-"चलो ।"



महादेव जोकि टेबल के फुटकंर सारे नोट जेब मेँ डाल चुका था, देवराज चौहान कै साथ हो गया ।


देवराज -चौहान ने एक हाथ में ब्रीफकेस थाम लिया था । किसी ने उन दोनों को नहीं रोका ।



वह बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ बढे तो पीछे से जुआरी का तेज स्वर उन्हें सुनाई दिया ।




"इन्हें रोक्रो, यह मेरा सारा पैसा ले जा रहे हैं l"



परन्तु मैनेजर ने उन्हें नहीं रोका ।



जुआ खेलने वाले अन्य लोग इस बात से सहमत थे कि हेराफेरी करने वाले को एक पैसा भी नहीं मिलना चाहिए । ऐसे में अगर मेनेजर उन्हें जाने से रोकता तो क्लब की रैपुटेशन पर बुरा असर पड़ता । शायद यह भी सोचा जाता कि मैनेजर भी इन चीटरों से मिला हुआ है। *

"जाने दो उन्हें I” मैनेजर ने शांत स्वर मे अपने निकट खडे मुस्टण्डो से कहा ।


फिर हेराफेरी करने वाले जुआरी को देखकर सख्त स्वर में बोला-"आज के बाद तुम कभी इस क्लव मे कदम नहीं रखोगे । यहां उन लोगों कै. लिए जगह नहीं है जो फ्ते लगाकर गेम खेलते हैं I" मैनेजर कै शब्द सुनते ही वह तेजी से बाहर निकल गया।



"इन दोनों को।" मेनेजर ने नीचे बेहोश पड़े दोनों की तरफ इशारा करते कहा -“उठाकर क्लव कै बाहर फेंके दो I" वह नीचे अभी तक बेहोश पड़े थे ।जूते की एडी माथे पर लगने के कारण उनका सास चेहरा. खून से नहाया पड़ा था ।


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फीनिश
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“बचो महादेव ।"


देवरार्ज चौहान एकाएक गला फाड़कर चीखा I क्लब से बाहर आकर देवराज चौहान पार्किग में खडी अपनी कार में बैठा और स्टार्ट कर ली l महादेव आगे का दरवाजा खोलकर देवराज चौहान की बगल में बैठने जा रहा था कि पीछे से जुआरी का अक्स दिखाई पडा, जिसने चाकू वाला हाथ सिर से ऊपर उठा रखा था और कार में बैठते महादेव की पीठ में भौंकने जा रहा था ।


यह सब देखते ही देवराज चौहान चीखा था और इसके साथ है… ही एक हाथ से महादेव को जोर से धक्क्रा दिया । हड़बड़ाया-सा महादेव कुछ ना समझ सका और. नीचे जा गिरा I उसके नीचे गिरते ही पीछे से आते जुआरी के पांव उससे टकराये और वह औंधे मुह नीचे जा गिरा । आधा कार कै खुले दरवाजे के बाहर और आधा भीतर । हाथ `में खुला चाकू सीट का फोम फाड़ता हुआ सीट में जा धंसा।



इससे पहले कि वह सम्भल पाता, देवराज चौहान का पंजा उसकी गर्दन पर जा टिका । वह गुर्र-गुर्र करकै रह गया I देवराज चौहान ने दूसरा हाथ स्टेयरिंग से हटाया और उसके हाथ से चाकू छीनकर उसे बन्द करके अपने कपडों में डाल लिया I देबृराज चौहान का चेहरा मौत र्क भावों से भर उठा था । तब तक महादेव सम्भल कर खड़ा हो चुका था और सारा मामला समझ चुका था ।



"इस हरामी को दबाकर बैठ जा I” देवराज चौहान भिंचे दांतों से बोला I

महादेव ने सारा मामला समझने के पश्चात देर नहीं की I


वह आगे बढा I जुआरी की बाहर की तरफ लटक रही टांगों को मोढ़कर कार कै भीतर किया और एक ही छलांग में उसके ऊपर बैठते हुए दरवाजा वन्द कर लिया । नीचे दबे जुआरी ने तड़पकर उठने की चेष्टा की तो महादेव ने जोरदार चांटा औंधे पड़े उसके सिर में दे मारा । बैसे दो और चटि खाने के पश्चात् वह कुछ ~ ठण्डा पडा I


"उल्लू के पटूठे! यू ही जमा रह ।" महादेव गुर्राया I तब तक देवराज कार आगे बढा चुका था I क्लब से निकलकर कार सडक पर दौडने लगी थी ।



शाम का धुंधलका फैलना आरम्भ हो चुका था I
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फीनिश
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आधे घण्टे के बाद देवराज चौहान ने कार को नेशनल हाईवे पर ले जाकर रोका । उसका चेहरा चट्टान की भांति सख्त हुआ पड़ा था । महादेव अभी तक जुआरी को नीचे दबाए बैठा था और वह अब पीड़ा से बराबर कराहे जा रहा था I


"महादेवा निकलो और इसे भी बाहर निकालो ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ड्राइविंग डोर खोलकर नीचे उतरा और सिगरेट लगाकर आसपास देखने लगा I


हाईवे पर पूरी तरह शान्ति थी । कही भी कोई आता-जाता न दिखाई दे रहा था I कभी-कभार अस्सी या सौं की रफ्तार से कोई वाहन, कार वगेरह जाते थे l अन्यथा वहा तगड्री सुनसानी ही व्याप्त थी । देवराज ने निगाहो को घुमाकर महादेव को देखा, जो कि जुआरी को लिए कार से बाहर आ गया था ।


महादेव ने उसे कमीज कै कॉलर से पकडा हुआ था और वह गहरी-गहरी सांसें ले रहा था । आधा घंटा महादेव उस पर बैठा रहा था । इसी से उसके कसबल निकल गये थे I



"देवराज चौहान साहब ।" महादेव बीला -“इस साले की ऐसी गत बनानी चाहिए किं जिन्दगी में फिर यह ताश नं खेले l खेले तो तीन पत्तों बाली गेम तो सपने में भी न खेले I हरामंजादा हमें मारने चला था ।"


देवराज चौहान ने कोई जवाब नहीं दिया ।


“ मुझे माफ कर दीजिए। फिर से मैं कभी ऐसा कुछ नहीँ करूगां मै

"चुप !" महादेव ने उसके सिर पर जोर से हाथ मारा तो उसने होंठ बन्द कर लिये ।



"इसे मेरे पास ले आओ ।" देवराज चौहान शांत लहजे मे बोला । महादेब ने जुआरी को गर्दन से पकड़ा और देवराज चौहान के पास आया ।


देवराज चौहान की निगाहें दायें-बायेँ घूम रही थीं । … “क्या देख रहे हो ? इसका कुछ इन्तजाम करो । हमें चलना भी है। अंधेरा फेलने वाला है।"



देवराज चौहान ने महादेव की बात का कोई जवाब नहीं दिया ।



तभी उसके होंठ एकाएक भिचते चले गए। आंखों में जहान-भर की कठोरता सिमट आई । उसे सामने से आता ट्रक दिखाई दिया था, जिसकी स्पीड हर हाल में सौ से ज्यादा ही थी । वह गोली की सी रफ्तार से आ रहा था ।


देवराज चौहान उसी मुद्रा में खडा रहा । देखते ही देखते वह काफी समीप आ गया ।


ट्रक को उनके सामने से गुजरने में चंद ही सैकेण्ड शेष बचे थे कि देवराज चौहान का शरीर तेजी से हरकत में आया, उसने जुआरी की बांह थामी ।



इससे पहले कोई कुछ समझ पाता, देवराज चौहान ने उसे तीव्र झटका दिया । जुआरी फेंकें हुए पत्थर की तरह सडक पर लुढ़क्रता चला गया । ठीक उसी पल, रफ्तार से आता ट्रक उसके ऊपर से गुजरता चला गया l


वह चीख भी न सका और उसका शरीर कुचल चुका था ।



खून के छींटे आसपास तक बिखरते चले गए थे । क्षण भर के लिए ट्रक की गति धीमी हुई और दूसरे ही पल, ट्रक पहले से भी तेज रफ्तार से भागता हुआ निगाहों से ओझल हो गया । द्रक ड्राइवर रुककर खामखाह की मुसीबत मोल नही लेना चाहता था । जो भी हो, मरने वाला तो उसी कै ट्रक के पहिए कै नीचे आकर कुचला गया था ।


देवराज चौहान ने जो कुछ किया, उसे देखकर महादेव सकपकाकर खड़ा-का-खड़ा रह गया ।



"यह तुमने क्या किया ?" महादेव सूखे स्वर में बोला ।


निगाहें सडक कै बीचों-बी पडे, जुआरी के कुचले ओर न पहचाने जाने वाले शरीर पर टिकी थीं । ट्रक ने उसे बुरी तरह कुचल डाला था ।
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Re: वारदात

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" वह पहले भी जिन्दा था । अब भी जिन्दा हे । तुम्हारे घूंसे से वह मरा नहीं था, वल्कि लम्बी बेहोशी में डूब गया था I कुल मिलाकर अब तुम लोग यह बात अच्छी तरह समझ सकतें हो कि कैसे खतरे में घिरे बेठे.हो तुम लोग I अपने बाप को समझा देना । देवराज चौहान का मुह बन्द रहेगा तो सब ठीक रहेगा । कल आऊंगा मैं । मेरी बात का जवाब मिल जाना चाहिए । नाम याद रखना-देवराज चौहान ।" कहने कै साथ ही देवराज चौहान पलटा ओर तेज-तेज कदम उठाता हुआ बाहर निकलता चला गया ।"



दिवाकर बुत क्रो मानिन्द हक्का-बकाका-सा वहीं…का-वहीं खड़ा रहा था I




बाहर अपनी कार कै समीप पहुचते ही, देवराज चौहान ठिठक्रा । उसकी आखें सिकुड़कर छोटी होती चली गयीं I चेहरे -पर अजीब-से भाव फैलते चले गए ।

महादेव कार से टेक लगाये, सिगरेट कै कश लेता हुआ, लापरवाही से खडा था I कदमों की आहट-पाकर उसने सिर घुमाया । देवराज चौहान को वहा पाकर बरबस ही मुस्कराया और सीधा खड़े होते हुए बोला ।



“कार को देखकर मै सोच ही रहा था कि यह कार तो अपने देवराज चौहान की हे I मेरा ख्याल ठीक ही निकला I जब मैंने बन्द कार में, तुम्हारा ब्रीफकेस पड़ा देखा I"



देवराज ने महादेव की आखों में झांका I



“नोटों से भरा ब्रीफकेस तुम्हें इस तरह कार में छोड़कर नहीं जाना चाहिए । "



“इस ब्रीफकेस को तो सिर्फ तुमसे ही खतरा हो सकत्ता है, और किसी से नहीं ।" .



"मेरी तरफ से निश्चित रहो । मैँ दोस्तों के माल पर हाथ ,नहीं फेरता I" महादेव हौले से हंसा-"वैसे तुम्हारी इतनी ही मेहरबानी काफी रही कि तुमने मेरे हारे बीस हजार व्याज कै सरथ-साथ बापस दिलवा दिए ।"



"तुमने मेरा पीछा क्यों किया?" देवराज चौहान मतलब की बात पर आया ।


“कौन कहता है?"

"तुम्हारे यहां होने का यहीँ मतलब निकलता है I अगर मुझ पर निगाह रखनी थी तो स्पष्ट कह देते, मैँ तुम्हें साथ ही ले आता या जो भी मुझसे पूछना चाहते हो, स्पष्ट पूछ लेते ।"



महादेब ने सिगरेट का कश लिया और बंगले पर निगाह मारी ।



"इस बंगले में तुम्हारा कौंन सा पहचान वाला रहता हैं?"



देवराज चौहान की आखो में हल्की -सी कठोरता' उभरती चली गई ।



"मैंने तुमसे कुछ पूछा था महादेव । जो मैं पूछु इस समय सिर्फ उसी का जवाब दो ।"



"भई नाराज क्यों होते हो" महादेव मुस्करा रहा था----"खामखाह गुस्सा मत करो और क्रोध में मुझे भी किसी की आती गाडी आगे मत फेंक देना । वैसे मैंने तुम्हारा पीछा नहीं किया ।”



“तो फिर यहां कैसे आए? आधे घण्टे में ही यहा कैसे आ गए, जहां मै आया हू ।"




"संयोग ही समझो । मैं तुम्हें बताना नहीं चाहता, लेकिन हालात ऐसे हो गए हैं कि अब बताना ही पडेगा । वह साथ वाला बंगला देख रहे हो न, जहा से तुम निकले हो, उसकी दायी तरफ वाला I"

"हा !"



. “मै वही पर रहता हू।" महादेब ने सिर हिलाकर कहते हुए सिगरेट का कश लिया ।



“तुम इस वंगले में रहते हो ।" देवराज चौहान कै चेहरे पर अजीब-से भाव फैल गए ।



“क्यों ? क्या मैं बंगले में नहीं रह सकता?" महादेव ने उसी भाव में जवाब दिया ।



"तुम्हारी शक्ल बगले में रहने लायक नहीं है ।" देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़े । .


“पैंतालीस साल का खूबसूरत चेहरा है मेरा ।" महादेव ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा ।


"अपने कपडे देखे हैं?"



"कपडे क्या बुराई है मेरे कपडों में? पन्द्रह दिन पहले ही तो नया सूट खरीदा है । ”



"इन कपडों का पहनने वाला ऐसे बंगले का मालिक नहीं ही सकता । महादेव बेहतर यहीँ होगा कि मुझसे झूठ बोलने की चेष्टा मत करो !"

देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा-"नहीँ तो… ...।"



" देवराज चौहान साहव । मैंने यह कहा है, मैं इस बगले में रहता हू I मैं इस बंगले का मालिक नहीं हूं। बंगला तो दूर मेरी हैसियत ही क्या' जो बंगले की बाहरी चारदीवारी भी खऱीदने का दम जेब में रखता होऊं।"


देवराज चौहान कै चेहरे का तनाव कुछ कम हुआ ।


उसने सिगरेट सुलगाई I


"तेरे पिता का बंगला तो नहीं हो सकता यह?"

" नहीँ I"


तेरे मामे चाचे का भी नहीं होगा । "



"नहीं हे ।"


"तेरे सगे माई का भी नहीं होगा?"



"नहीं I" महादेव ने शराफत से सिर हिलाया ।



"और तेरे में इतना दम भी नहीं कि तू इतने बडे वगले का किराया दे सके?"



" किराया देने की औकात तो वास्तव में मेरी नहीं हैं !!" महादेव ने कबूल किया ।



"यह बंगला तुझे दहेज में भी नहीं मिला होगा?" देवराज चौहान ने सिगरेट का कश लिया ।



"शादी ही नहीं की तो फिर दहेज कहां से आएगा I” महादेव हसा।



"फिर तू किस बलबूते पर यहां रहता है? किसका बंगला यह?”


. "इस बंगले की मालकिन एक बूढ़ी औरत हैं । उसका कोई होता-सोता नहीं है I" महादेव ने गहरी सांस लेकर कहा-"मैं उसका होता- सोता बनने की कोशिश कर रहा हूं ताकि मरने से पहले यह बंगला और जेब में जो कुछ भी हो, मेरे हवाले कर जाए I दो महीने हो गए यहां रहते-रहते I”



"रहने का मामला कैसे पटा?"



“ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी । चेहरे पर कपडा बाँधकर 'बंगले के पीछे से भीतर घुसा और दो नौकरों और बुढिया-को बाँधकर सवा लाख का माल लेकर चंपत हो गया । घंटे -भर बादं असली भेष में माल कै साथ वापस लौटा । बेचारे तव भी वंघे हुए थे ।

बुढिया की हालत तो बुरी हो रही थी I उन्हें खोला और सवा लाख का माल बुढिया कै सामने रख दिया I उसे बताया कि मैँ बंगले कै सामने से गुजर रहा था कि चोर को मुंह ढांपे बाहर निकलते देखा । मै तभी समझ गया कि मामला गडबड़ हे I मैंने उसे पकडा और ठोक-पीटकर भगा दिया । मार खाते समय उसने बताया कि वह बंगले में चोरी करके आ रहा है । तो माल वापस करने आ गया । बुढिया मुझसे वहुत अच्छी तरह पेश आई I उसने ~ खाना वगैरह भी खिलाया I उसे मालूम हुआ कि शहर में नया हूं और रहने के लिए ठिकाना ढूंढ रहा हुं, बीवी कै बारे में पूछा तो बता दिया कि पांचं साल पहले ही वह किसी के साथ तीनों बच्चों क्रो लेकर, भाग गई थी । वहुत ढूंढा लेकिन वह नहीँ मिली, वरहाल कुल मिलाकर उसे मुझ पर तरस आया, जो कि में चाहता था । उसने मुझे छोटा भाई बनाकर अपने पास ही रख लिया । यानी कि रहना, खाना फ्री । कपड़े भी बुढिया ने सिलवा दिए l कभी कभार खर्चा-पानी भी मिल जाता । बुढिया को वहुत अच्छी तरह शीशे में उतार रखा डै मैंने । किसी बात की फिक्र नहीं ।"



देवराज चौहान के होठों पर मीठी मुस्कान उभरती चली गई I



"काफी होशियार हो ।"


"दोस्तों की मेहरबानी है । वरना वन्दा तो किसी काम का नहीं हे I” महादेव ने सिर हिलाया I



“अगर बुढिया का कोई होता-सोता निकल आया तो तुम खाली हाय रह जाओगे l”


"क्या फर्क पडता हैं । सब चलता है I फिलहाल तो सब-कूछ मजे में चल हीँरम रहा है।" . .



"मै तुम्हारी बात की सत्यता जांचना चाहता हूं ।" देवराज ~ चौहान बोला I



“जरुर-जरुर I आओ भीतर आओ । बतौर दोस्त में तुम्हें बुढिया से मिलाता हूं। खाना भी तैयार होगा । रात हो ही चूकी है । एक साथ खायेंगे । बातों-बातों में मेरी बात की सत्यता की जांच कर लेना ।"



"आज नहीं । कल आऊंगा I”
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Re: वारदात

Post by 007 »

“तुम्हारी मर्जी ।" महादेव ने दोबारा इन्वाइंट नहीं किया I देवराज चौहान कार का दरवाजा खोलने लगा तो महादेव कह उठा I

" तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया देवराज चौहान ।"



" कौन-सी बात?" देवराज चौहान ठिठका ।



"जहां से तुम आ रहे हों । यानी कि इस बंगले मे कौन रहता है?" . . .



"तुम्हें इस बात से क्या लेना देना?" देवराज चौहान ने उसकी आँखों में झांका I



"कोई खास नहीं । दरअसल पहले यह बंगला खाली रहता था । कुछ दिन से अब बंगले में हलचल तो महसूस होने लगी हैं, परन्तु घर कै मालिक बाहर नहीं निकलते, जोकि मुझे खटक रहा है । जाहिर है, जब कोई नया बंगला खरीदता हैं तो गर्दन बाहर निकालकर दायें-बायेँ देखता हे कि आसपास कौन रहता है । परन्तु इस बंगले में रहने वालों ने ऐसी कोई चेष्टा नहीं की, हेरत की बात है कि इस बंगले में आने वाले लोग, शाम को भी बाहर नहीं बैठते । देखा हे तो सिर्फ दो नौकरों को । इसलिए पूछ रहा था कि यहां कौन रहता है और तुम्हारा इन लोगों से वया वास्ता?"



“इस बंगले में जो भी रहता हैं, उसका तुम्हारे से कोई वास्ता नहीं ।” देवराज चौहान सख्त स्वर पें बोला ।



"ज़रा भी वास्ता नहीं?" महादेव ने आंखें फाडी ।



"जरा भी नहीं I”



"पडोसी हैँ । जान-पहचान् होते ही धीरे-धीरे वास्ता पडना भी आरम्भ हो जाएगा I”



"ज्यादा चालाकी मत करौ महादेव । तुम्हारा इन लोगों से वास्ता नहीं पडना चाहिए । यह मेरी पहचान के लोग हैं । अगर तुमने अपने काम से वास्ता न रखा तो इस बंगले में रहने वाली बुढिया के सामने तुम्हारी पोल खोल दूंगा ।"


"तुम तो नाहक ही परेशान हो रहे हो देवराज़ चौहान में… I”



"मेरे परेशान होने की चिन्ता मत करो । मैं तो तुम्हें आने वाली परेशानी से बचाना चाहता हूं।" देवराज चौहान ने अपने शब्दों को चबाकर कहा-"सिर्फ अपने काम से मतलब रखो, समझे मेरी बात?"



"समझ गया । तुम तो यू हीँ बात को बढाये जा रहे हो I" महादेव ने खीं-खीं की ।



" मै आऊंगा, तुम्हारे बंगले, यानी कि तुम्हारी उत बुढिया कै पास ।"

"जरूर आना ।" महादेव ने गर्दन हिलाई ।



"अपने आप से मतलब रखना I"



" वार-बार एक बात को क्यों दोहराते हो?"


"तुम्हारा भला चाहता हूँ इसलिए बार-बार कह रहा हू।" देवराज चौहान ने महादेव की आंखों में झांका फिर कार का दरबाजा खोलकर भीतर बैठा और कार स्टार्ट करकै, आगे बढा दी ।



महादेव ने दिवाकर वाले बंगले पर निगाह मारी फिर बगल, वाले बंगले की तरफ बढ़ गया ।



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फीनिश
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" क्या कह रहे हो?” खेडा का मुंह खुला-का खुला रह गया ।



“असम्भव सवाल ही नहीं पैदा होता ।" हेगड़े ने एकएक शब्द चबाकर कहा ।



"यह मैँ नहीं, वह आने वाला देवराज चौहान कह रहा था l" दिवाकर ने हाथ मसल कर कहा ।



"औंर तुमने विश्वास कर लिया?" खेडा ने पागलों की तरह आंखें फाड़कर देखा ।


"वह जिस ढंग से कह रहा था, वह ढंग विश्वास करने कै ही काबिल था । दिवाकर ने परेशान भाव से कहा-"मेरी तो कुछ भी समझ में नहीँ आ रहा कि यह सब क्या हो रहा है? देवराज चौहान कौन हे?"



"जो भी हो ।" हेगडे के होंठों से गुर्राहट निकली-"लेकिन यह बात तो हजार प्रतिशत सच है कि राजीव मर चुका है । मरा हुआ इंसान कभी भी जिन्दा नहीं हो सकता, वह साला देवराज चौहान बकवास करता है I”



"हो सकता है वह न मरा हो I वास्तव में तगड्री बेहोशी में जा डूबा हो, मेरा धूसा खाकर ।"



"नहीं I वह मर चुका था । मुझे पूरा बिश्वास है वह मर चुका था l” हेगडे बोला ।



"हेगडे ठीक कहता है कि राजीव की मौत हो चुकी है , अब तो उसका शरीर भी मिट्टी मे मे मिल चुका होगा I" खेड़ा ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा-"तुम्हारा वह घूंसा ऐसा नहीं था कि जिसे खाने कै बाद, राजीव आधी रात से अगले दिन अंधेरा होने तक वेहोश रहता, और फिर तुम्हारे उस डॉक्टर मनोहरलाल कालरा ने भी उसे आकर चैक किया था । उसके दिल की धडकन बिल्कुल वन्द थी I”

दिवाकर की खोपडी मैं यह बात जंची I



"तो फिर उसने क्यों कहा कि राजीव जिन्दा हे । ब्लैकमेल तो वह हमें बैसे भी कर सकता था।"


"अब यह बात तो वहीँ जाने I" खेडा ने कहा ।



“हम लोगों को डराने के लिए ऐसा कह दिया होगा ।" हेगडे ने कहा ।



"यह बात तो मेरे गले के नीचे नहीं उतरती कि… !"



"राजीव के जिन्दा होने की बात छोडो । सरासर बकवास है यह ।" खेड़ा ने उसकी बात काटकर कहा-"सवाल अब यह खड़ा होता है कि देवराज चौहान को हमारे बारे में सबकुछ मालूम हे । अपनी जुबान बन्द रखने के लिए वह किश्तों में दो करोड लेगा ओर अगर एक हीँ बार में मामला निपटना है तो एक करोड एक ही वार में । अब इतना पैसा कौन देगा उसे? मेरे ख्याल मेँ हमें फौरन यह जगह छोडकर देवराज चौहान की निगाहों से ओझल हो जाना चाहिए ।"


"फालतू बात मत करो ।” दिवाकर झल्लाया-"जो इन्सान ब्लेकमेलिंग करके इतनी मोटी रकम मांग रहा हे, वह इतना बेवकूफ नहीं होगा कि हम पर बात करने कै बाद निगाह ना रखे । अब उसकी या उसके आदमियों की निगाह बराबर हम पर होगीं । कहीं ऐसा ना हो कि हम यहां से भागने की चेष्टा करें और खामखाह किसी नई मुसीबत में फंस जायें । हमेँ ब्लैकमेल करने की रकम भी उसने मेरे बाप की हैसियत देखकर मांगी है, यूं ही उसने मुंह नहीं फाड दिया । वह राह चलता आम इन्सान नहीं हो सकता I”


"शायद तुम ठीक कहते हो ।" खेड़ा ने सिर हिलाया ।


" तो क्या तुम्हारा बाप उसे रकम दे देगा?" हेगडे ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।



“मैं अब इस बारे में क्या कह सकता हू । वेसे मेरे बाप के पास है तो वहुत । करोड दे देने से उसे कोई खास फ़र्क तो नहीं पड़ने वाला । पैसा तो उसके हाथ की मैल है ।" दिवाकर ने बेचैनी से कहा ।



" अपने बाप से बात कब करोगे?"


"कव क्या अमी फौन करता हूं। देवराज चौहान कल आने को कह गया है I साला हरामी जाने कौन है और उसे कैसे मालूम होगया कि हम दिल्ली मे क्या करके आए है ।" दिवाकर ने दांत भीचकर कहा और क्रोध भरे कदम बढ़ा दिए ।

"तुम किसी देवराज चौहान को जानते हो?" अरुण खेडा ने हेगडे से पूछा ।


“नहीं । मैने तो यह नाम भी पहली बार सुना है ।" हेगडे ने कडवे स्वर में कहा ।।




दिवाकर ने दो मिट फोन पर बात की फिर रिसीवर रखकर पलटा ।


"मेरा बाप कहता है कि कल तारासिह आयेगा?" दिवाकर ने दोनों की देखा l


"तारासिंह ? वही जिसने हमें पुलिस वेन से आजाद कराया था । "



"हां । बहुत खतरनाक आदमी है वह । मेरे ख्याल से वह हमें देवराज नाम की मुसीबत से निकाल देगा ।"



"तो क्या देवराज चौहान को पैसा नहीं दिया जाएगा या दिया जायेगा ?"



"मुझे क्या मालूम । यह फैसला तो मेरा बाप ही करेगा, जिसने अपनी जेब ढीली करनी है ।" चिन्तित्त-से दिवाकर ने कहा और नशे से भरे सिगरेट को सुलगाकर गहरा कश लिया ।



सबके चेहरो पर गहरी सोच कै भावं उभरे पडे था । मस्तिष्क से एक ही सवाल बार-वार टकरा रहा था कि अब क्या होगा?


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