वारदात complete novel

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Re: वारदात

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सुबह उठकर तैयार होकर तीनों फिर किराए के कमरे में आ पहुचे । राजीव मल्होत्रा वहा पहले से मोजूद था ।



"तुम?" तीनों ने हैरानी से उसे देखा ।



राजीव ने बिना कुछ कहे गम्भीरता से सिर हिला दिया ।


. . “यानी कि हमारे साथ…बेंक-डकैती के लिए तैयार हो?" अरुण खेडा फोरन बोला I



“हां ।" राजीव धीमे स्वर मेँ बोला-"मैंने बहुत सोचा और इसी निष्कर्ष पर पहुंचा कि जरा भी' अच्छी जिन्दगी जीने के लिए काफी दौलत चाहिए । जो कि मुझें आसानी से कहीँ से भी नहीं मिल सकती । बिना पैसे होते हुए मैं शादी करके अपनी जिन्दगी को नर्क नहीं बनाना चाहता। सोचा, एक बार जिन्दगी का जुआ खेलकर किस्मत आजमा ही लूं ।“

"चिन्ता 'मत' करो I" दिबाकर ने उसकां कंधा
थपथपाया-"हम अवश्य कामयाब होंगे I"



उसकै बाद उन तीनों ने स्मैक का इस्तेमाल किया । नशे का कोटा पूरा होने पर उन्होंने बातें आरम्भ कीं । सबसे पहले दिवाकर ही बोला ।



“यह तो अभी बताऊंगा कि डकैती कैसे ओर किस प्रकार डालनी है I परन्तु एक बात सब कान खोलकर सून लो! हमें किसी का खून नहीं करना हे I किसी की जान नहीं लेनी है । रिवॉल्वर हाथ मैं होने का यह तो मतलब नहीं कि गोली चला दो I सामने वाले की जान ले लो I"


सब दिवाकर को ही देख रहे थे ।



"रिबॉंल्बरें हम लोगों को डराने कें लिए पकड़ेगे, किसी की जान कै तिए नहीं I सिर्फ डकैती इतना बड़ा जुर्म नूहीँ है , जितना कि डकैती कै साथ हत्या भी I”



उसके बाद दिवाकर ने सबको बताया कि डकैती किस प्रकार और कैसे डालनी हे । वैंक का सारा नक्शा समझाया ओर बैंक देखकर आने को भी कहा ।


"डकैती के बाद कार राजीव चलाएंगा । इसकी ड्राइविंग अच्छी डै I" खेडा बोला।



"मैं भी यही कहने वाला था I" दिवाकर ने सिर हिलाया I, डकैती कै लिए कार कहा से आएगी ?" सूरज हेगडे ने दिवाकर को देखा I


"मैं कहीं से कार चुराकर लाऊंगा । उसी से काम चलायेंगे । सुबह कार उठाऊगा और तीन-चार घटे बाद डकैती करने के बाद उसे कहीँ छोड देंगे ।"



" ठीक है I"


उसकै बाद वह फिर चारों डकैती के मुद्दे पर ही बाते करते रहे । तत्पश्चात् वहां से निकलकर उस बैंक की तरफ रवाना हो गए, जहां डकैती डालनी थी । दिवाकर सबको एक बार बैंक
भीतर से दिखा देना चाहता था I सबके दिल धडक रहे थे यह सोचकर कि वह जो काम केरने जा रहे हैँ, भगवान ही जाने वह पूरा होगा या नही , कहीँ वह जेल मे ही न पहुच जायें । पकड़े ना जाएँ I अगर पकड़े गए तो बदनामी बहुत ज्यादा होगी । बहरहाल जो भी हो, उन चारों ने बैंक लूटने का प्रोग्राम पक्की तरह निश्चित कर लिया था I


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फीनिश
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और फिर अगले दिन बेंक डकैती की उन्होने I


अनाडियों द्वारा किया गया काम कभी कभार गलत भी हो जाता हे । वहीँ हुआ, उन्होंने तीन कल्ल कर दिए बैंक में लूट के दौरान ।



एक बैंर्क मेनेजर का, दूसरा बैंक ग्राहक का, तीसरा दरबान का I हत्या करके उन्होंने अपने जुर्म क्रो और भी खतरनाक बना लिया था I



उसके बाद वह भागे तो पुलिस पीछे पड गई । राजीव ने सारा खतरा अपने सिर पर लेने की सोची और तीनों को चलती कार से नीचे उतार दिया ।



इत्तफाक से दस मिनट पश्चात् ही पुलिस-जीप सड़क के ट्रैफिक मेँ जा र्फसी और राजीव कार के साथ वच निकला ।



डकैती का सारा पैसा कार की हिलती सीट पर ही पड़ा था I नोटों से भरे दो मुहरबन्द सरकारी थैले । एक काले रंग का बड़ा-सा ट्र'क, जिस पर ताला लटक रहा था ।


अब राजीव के सामने बडी औंर गम्भीर समस्या खडी हो गई कि वह क्या करे।




अकेला था I


बाकी तीनों से तो फौरन मुलाकात होनी असम्भव थी क्योंकि वह तीनों तो बचते-बचाते ठिकाने. की तरफ बढ रहे होंगे । उधर बैंक डकैत्ती कै साथ तीन हत्या भी हो चुकी हैं I



हर तरफ़ पुलिस अलर्ट होगई होंगी I वायरलेस-पर वायरतैस खडक रहे होंगे ।



इससे पहले कि कार सहित वह ठिकाने पर पहुंचें, चारों तरफ नार्केबन्दी हो जानी थी और उसकी पहचान का सबसे बडा तमगा वह चौरी की कार थी, जिसका नम्बर अब तक पूरे शहर में फैली गश्ती पुलिस की कारों-जीपों और पुलिस स्टेशनों को मालूम होता जा रहा होगा ।


अंजना तब तक पास आ गई थी । उसने भीतर निगाह मारी तो वहां सीलबन्द दो बड़े-बड़े मोटे सरकारी थैले नजर आए तो उसके चेहरे पर अजीब-से भाव आ गए ।




"एक थैला मैं उठा रहा हूं । दूसरा तुम उठाओ जल्दी ।


राजीव ने एक थैला पकडकर बाहर निक्तते हुए कहा तो अंजना हडबड़ाकर बोती ।



"यह तो सरकारी थैले लग रहे हैं! सील मुहरबन्द ।"



"जल्दी करो । सवाल जवाब बाद में करना ।*
न चाहते हुए भी राजीव के होठों से क्रोघभरी गुर्राहट निकली । चेहरा बेहद कठोर हुआ पड़ा था । अंजना ने उसके चेहरे कै भाव देखे तो मन ही मन वह , हैरान हुई कि क्या यह वहीँ भोला-भाला राजीव हे, जिससे वह प्यार कंरती है और शादी करने जा रहीँ हे । दूसरे, मुहरबंद सरकारी थैलों को देखकर अंजना को गडबड का स्पष्ट एहसास हो गया था । परन्तु उसने मुंह बन्द रखा । राजीव और अंजना. ने एक-एक थैला'सम्भाला और मकान के भीतर ले जाकर रख दिया । थैला भारी था ।


अंजना की सांस फूलने लगी । उसको सासे लेते देखकर राजीव जल्दी से बोला ।



“बाद में इक्कट्ठा ही आराम कर लेना । आओ मेरे साथ ।"


" कहां ?"



"'कार तक अभी कूछ ओर भी लाना है ।” अंजना की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा हैं । फिर मी उसने कोई आनाकानी नहीँ की । राजीव के साथ बाहर निकलकर कार तक पहुंची ! राजीव ने कार की डिग्गी खोली इस ट्रंक को एक तरफ से पकडो । जल्दी, भीतर ले जाना है ।"


ट्रंक पर निगाह पडते ही अंजना खडी रह गई ।




उस पर मोटा ताता लटक रहा था जिसके मुह पर मुहर कै पश्चात् सील लगी हुई थी और ट्रंक कै ऊपरी हिस्से पर रिजर्व. बैंक और अन्य बैंक की ब्रांच स्तिप लगो हुई थी ।


"जल्दी कर ख़डी खडी क्या मुंह देख रहीँ हे l” राजीव का तीखा स्वर तनाव से भरा था ।



अंजना के जेहन को झटका लगा । उसने राजीव की आंखों मेँ झांका जहां भय और घबराहट कै आलवा और कुछ भी नहीँ था । फिर बिना देरी किए उसने ट्रक कं एक तरफ का कुन्दा पकडा i दूसरी तरफ से राजीव 'ने पहले ही पक्रड़ रखा था । दोनों ने ट्रक को मकान के भीतर जाकर रखा ।


“राजीव, , यह सब क्या है, तुमने क्या किया है?” अंजना ने सूखे होठों पर जीभ फेरकर कहा ।



"बाद मेँ पूछना I” राजीव जल्दी से बोला…"मैं जरा बाहर खडी कार क्रो कहीं छोढ़ आऊ ! उसके बाद तुम्हारी हर बात का जवाब दूगा I"


“अभी क्यों नहीं?”



"अभी इसलिए नहीं, क्योंकि वह कार मुझे फांसी के तख्ते तक ले जा तकती है I" राजीव कै होठों से खतरनाक गुर्राहट निकली और वह बाहर निकल गया ।



अंजना कई पलो तक फर्टी-फ़टी निगाहों से दोनों मुहरबन्द थैलों और काले ट्रक को देखती रही । उसका चेहरा फक्क पड़ चुका था । फिर कांपती टागों से आगे बढकर खुला दरवाजा बन्द कर लिया ।।



कुछ कूछ उसे अहसास हो चुका था कि राजीव ने क्या कर डाला है , क्या करके आ रहा है क्यों उसके होश उड़े पड़े हैँ ।

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Re: वारदात

Post by 007 »

डेढ घटे कै बाद राजीव की वापसी हुई । पसीने है भरा I चेहरा । कांपता शरीर । चेहरे का हल्दी समान पीला रंग अंछना ने सब-कुछ एक ही निगाह में भांप लिया । वह कोई बच्ची तो थी नहीं, खुद भी तो कभी जेब काटने का धंधा किया करतीं थी । दुनिया 'देखी थी उसने। राजीव की आखों से भय की काली छाया स्पष्ट झलक रही थी । अंजना ने राजीव से कुछ नहीं पूछा l

आते ही राजीब कुर्सी पर बैठा तो अंजना ने उसे पानी दिया ।



दो गिलास पानी पीकर राजीव की सांस कुछं संयत हुई । तत्पश्चात् उसने अंजना पर निगाह मारी, अंजना को अपनी तरफ देखता पाकर राजीव ने निगाहें फेर लीं ।



"नजरें क्यों नहीं मिला रहे हैं आप ?" अंजना कै स्वर में हल्की - सी सख्ती थी ।



"मै मिला तो रहा हूं।" राजीव ने सकपकाकर कहा I


"क्या करकै आए हो?"




"क्या करके आया हुं ?” राजीव से कुछ कहते न बन पा रहा था I



अंजना कई पलों तक रार्जीव को घूरती रही I बोली कुछ भी नहीं ।


"वह कार जिसे आप लेकर आए थे, आपनै कहा था कि आपको फासी के र्फदे तक ले जा सकती हे?"



राजीव ने कोई जवाब नहीँ दिया ।


"सुबह आपके साथ आपके तीनों दोस्त भी थे ना?" अंजना पुनं बोली ।


"कौन दोस्त?”



"वहीँ जो बड़े बडे घरानों से हैं ओर नशे कें कारण खुद को बरबाद किए बैठे हे I उनके घर वालों ने अब उनक्रो खर्चा-पानी देना भी बन्द कर रखा हे I” अंजना ने एक एक शब्द चबाकर कहा ।



“तो क्या हो गया जो वह मेरे साथ थे I राजीव ने पहली बार निगाहें उठाकर अजना की आंखों में झांका-"हमं सब अपनी जरुरत को ही एक दूसरे के साथ थे I"


"बैंक लूटा है आप सब लोगों ने?”


" तुम्हें कैसे मालूम?" राजीव ने चौंककर अंजना को देखा I



" काले ट्रंक पर लगी वैंक स्लिप देखकर अन्दाजा लगाया था मैंने ।"



"ठीक ख्याल है तुम्हारा I हम सबने मिलकर बैंक को ही लूटा हे I"

अंजना एकटक राजीव को देखती रह गई । "उन तीनों को अपने नशे के लिए पैसे की जरूस्त थी " राजीव पुन: बोला !



-----" और तुम्हें? तुम तो नशा नहीँ करते, फिर इस काम में क्यों शरीक हुए ?" अंजना की आवाज में सख्ती आ गईं-"मैं तो मामूली सा बुरा धधा करती थी जेब काटने का । तुमने प्यार का वास्ता देकर वह भी छुडा दिया और खुद ने बैंक डकैती कर ली । हैरानी हें मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि तुम ऐसा काम भी कर सकते हो ।"



राजीव ने अंजना क्रो देखा फिर भर्राए स्वर मेँ कह उठा ।


"तीन महीने हो गए मुझे जी जान से नौकरी तलाश कस्ते हुए । सोचा था अच्छी सी नौकरी करके तुमसे शादी कर लूगा । परन्तु कहीँ नौकरी नहीं मिली । सही बात यह थी कि हर बार मेरी गरीबी आडे आ जाती थी । किसी को मेरे बदन पर कपड़े पसन्द नहीं आते थे …तो किसी को मेरी फेमिली बैक ग्राउण्ड चाहिए थी । मेरी पढाई, मेरे नम्बरों को नहीं देखा । वक्त बीतने फे साथ …साथ मैं समझ गया कि अच्छी इज्जत चाली नोकरी मिलना मेरे नसीब में नहीं हे । कम पैसों बाती छोटी नोकरी करके में तुमसे शादी कैसे र्करता । घर का खर्च भी उससे पूरा नहीँ होना था ।" राजीव ने धीमे स्वर में कहा ।



"और इसीलिए तुमने अपने दोस्तों कै साथ मिलकर बैंक डकैती कर डाली ।"



"हां, क्योकि मैं तुम्हें किसी भी हाल मेँ खोना नहीं चाहता था । तुमसे शादी करकै अपने जीवन का अकेलापन खत्म कर देना चाहता हू। मैं भी हंसना चाहता हू। तमाम उम्र दो दो पैसे के इन्तजार में अपनी कमर दोहरी नहीँ करना चाहता। मैं नहीँ चाहता था कि शादी. कै बाद घर में इतना भी कुछ न हो कि चूल्हा न जले । सच बात 'तो यह हे अंजना कि मैं तुम्हें इतना चाहने लगा हूं कि तुम्हारे लिए मैं हर काम कर सकता हू परन्तु तुम्हें खोकर जिन्दा नहीँ रह सकता ।" राजीव के स्वर में हल्का-सा कम्पन्न आ गंया ।

अंजना कुछ नर्म पडी ।


"अगर ऐसा था तो एक बार डकैती करने से पहले मुझसे पूछ तो लेते?"



"वक्त नहीं था I सब-फुछ अचानक ही हुआ । वेसे में जानता हू अगर पूछता तो तुम कभी भी मुझे यह काम न करने देतीं । कोई भी अपनों को खतरे में नहीं डालना चाहता । तब तुम यही कहती हम नमक के साथ रोटी खा लेंगे, लेकिन तुम यह काम न करों I”



अंजना भारी मन से राजीव को देखती रही । बोली कुछ नहीं ।


" तुम्हें मेरा यह सब करना बुरा लगा क्या?" राजीव ने अंजना कों देखा ।



"हां, बहुत ही बुरा लगा । मैं शरीफ आदमी से शादी करना चाहती हूं अपराधी से नहीं, अगर मुझसे शादी करना चाहते हो, मुझें अपना बनाना चाहते हो तो मुझसे. वायदा करना पड़ेग कि पूरी जिन्दगी कभी कोई बुरा काम नहीं करोगे, चाहे कैसीं भी स्थिति क्यों न आ जाए। शराफत से मुझें रखोगे I तुम जो भी कमाओगे मैं उसी में राजी रहूंगी I”



राजीव की आँखों में पानी छलछला उठा ।



"हाँ अंजना ।"' राजीव के होठों से थरथराहट से भरे शब्द निकले-----"तुम्हारी कसम खाकर कहता हूं यह मेरी जिन्दगी का पहला और आखिरी बुरा काम था I अब कभी भी गलत काम नहीं करूंगा । इस पैसे को बांटने के बाद जों मेरे हिस्से में आएगा वह हम दोनों के लिए बहुत होगा । कोई बिजनेस कर लूगा छोटा-सा । हमारा परिवार सदा खुश रहेगा I"



"और तुम्हारे दोस्त चह अपने हिस्से में आए पैसों का नशा करेंगें । जल्द ही सारा पैसा खत्म कर देंगे । उसके बाद उसकी निगाहें फिर तुम पर जा टिकेगी । बेशक वह तुम्हारे दोस्त ही सही परन्तु नशेडियों का कोई भरोसा नहीं। वह बार बार हमारी जिन्दगी में जहर घोलते रहेगे । आखिरकार तुम्हें वरबाद करके रहेगे ।"

" तुम !" राजीव ने वेहद गम्भीर स्वर में कहा---"कहना क्या चाहती हो?"




"यही कि अपने हिस्से कै पैसे को लेकर हम इस शहर से कहीं दूर, बहुत दूर चले जायेंगे I जहां तक तुम्हारे दोस्त नहीं पहुंच सकेंगे । तुम उन्हें नहीं बताओगे कि कहां जा रहे हो बल्कि यह भी नहीं बताओगे कि हमेशा के लिए यह
शहर छोड़ रहे हो l”



राजीव खामोश रहा ।



“मेरी बात मंजूर नहीं क्या ?"



“अंजना वह मेरे बचपन के यार हैं।” राजीव ने व्याकुलता भरे स्वर में कहा ।




"होंगे मै कब मना करती हू। में तुम्हारे दोस्तों की दुश्मन नहीँ हूं। परन्तु वह ऐसे रास्ते 'पर पढ़ चूकै हैं कि उनका अन्त लाजिमी हे ।" अजना ने समझाने वाले अन्दाज में कहा----------"हमारे और उनके रास्ते अलग हैं I जो हंमारा रास्ता है वे उस पर नहीं चल सकते । उनके रास्ते पर हम नहीं चल सकते । मेरी बात समझने की कोशिश करो रार्जीव !"
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Re: वारदात

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"ठीक हे ।” राजीव नें फोरन निर्णय देकर कहा…" मै समझ रहा हूं तुम क्या कहना चाहतीं हो और मेरे ख्याल से तुम गलतं भी नहीं कह रही हो । मंजूर हे, मुझे तुम्हारी बात I मैं अपने नशेडी दोस्तों से खामोशी से किनारा करके तुम्हारे साथ यहां से कहीँ बहुत्त दूर चला जाऊगां I"



अंजना के चेहरे पर राहत और प्रसन्नता की हल्की -सी लहरें उभरीं ।


"अब मुझे बताओ कि तुम लोगों ने क्या और कैसे किया सब. I "



राजीवं ने सब-कुछ स्पष्ट कह डाला ।


"राजीव तुमने'यह नहीं सोचाकि अगर इस काम में तुम्हें कुछ हो जाता तो?"



"सोचा, बहुत सोचा, परन्तु 'इसके सिवाय मेरे पास कोई रास्ता भी नहीं था।"
"अब कभी कोई बुरा काम नहीं करना । खाओ मेऱी कसम I”



"तुम्हारी कसम…अब कोई बुरा काम नहीं करूंगा I" रजीव ने कहा और उसकी निगाह काले ट्रंक और दोनों थैलों पर टिकती चली गई । फिर वह उठकर उनके पास पहुंचा I



"क्या कर रहे हो?"



"खोलकर तो देखूं इन्हें I"



. "अभी मत खोलना। नहीं तो तुम्हारे दोस्त कहेंगे कि तुमने हेराफेरी कर ली हे ।"



"चिन्ता मत करो वह नशेडी अवश्य हैं, परन्तु मेरे दोंस्त है I जान से ज्यादा चाहते हैं मुझे । ऐसा तों वह सोच भी नहीं सकते कि मै हेराफेरी कर सकता हूं।” राजीव ने विश्वासभरे स्वर मे कहा I



अंजना गहरी सांस लेकर रह गई ।


राजीव ने दोनों थैलों की सील तोडी फिरं गांठ खोली । भीतर झांककर देखा तो बेतरतीबी से पडी सौ-सो कै नोटों की गड्रिडयां नजर आयीं । दोनों थैले आधे-आधे भरे पडे थे ।



अंजना और राजीव आखे फाड़े एक-दूसरे को देखने लगे । ईतना पैसा उन्होने कभी अपने पास होने का सोचा भी न था । कई पलों तक तो उनके मुंह से कोई बोल भी न फूटा l



" य....यह तो बहुत सारा है ,बहुत ज्यादा ।" I" बरबस ही अंजना के होठों से कांपंता स्वर निकला ।



"अभी तो ट्रंक-में भी पडा हे l"


राजीव ट्रंक खोलने में व्यस्त हो गया I जिस पर मोटा ताला-सील-मुहरबन्द लटक रहा था I अब ताला उससे कैसे खुलता I न तो वह तालातोड़ था और न ही उसके पास चाबिया थीं, आखिरकार एक घन्टे की मेहेनत से उसने ट्रंक का कुण्डा ही उखाड दिया I फिर ट्रक खोला ।



दोनों आंखे फाडे खुले ट्रंक में करीने से रखी गई नोटों की छोटी और बडी गड्डियों को देखते रह गये I


ट्रंक ठसाठस भरा पड़ा था I पांच से लेकर सौ तक कै नोटों की गडिया थी । लाखों रुपया उसके अन्दर मोजूद था I

राजीव ने जल्दी से ट्क को बन्द करके अंजना पर नजर मारी जो कि स्तब्ध सी खडी थी जैसे होश ही गुम हुए हों I राजीव ने उसका कंधा पकडकर हिलाया तो उसे होश आया I वह थरथराते हुए स्वर में बोली ।



" य..... यह तो बहुत सारा है I हमें कभी भी कमी नहीँ होगी पैसे की I"



“यह सारा हमारा नहीं ।" राजीव का गला खुश्क हो रहा था, होठों से फटी फटी-सी आवाज निकल रही थी ।



"इसका चौथा हिस्सा हमारा I तीन हिस्से मेरे दोस्तों के हैं।"



"म .... मालूम है I इसका चौथा हिस्सा ही हमारे लिए बहुत् हे I" अंजना की कांपती टांगों ने उसे ज्यादा देर खडा न होने दिया तो वह कुर्सी पर बैठी I



राजीव कई पलों तक नाटों के थैलों और ट्रंक को देखता रहा फिर अंजना के करीब आ बैठा और भारी स्वर में कह उठा--- "एक गढ़बड़ हो गई I”



"क" क्या?"



“डकैती में हम लोगों सै तीन हत्पाएं हो गई हे'।"



" त.....तीन...." अजना का समूचा जिस्म काप गया ।।




“हां, लेकिन मैंने किसी को नहीं मारा I एक को अरुण खेडा ने मारा और दो को सूरज हेगड़े ने ।”




“लेकिन तुम साथ तो थे न I" अंजना जैसे चीख ही पडी ।



" हां , साथ तो था I" राजीव ने फक्क चेहरे से अजना को देखा ।



”फिर तो यह डकैती बहुत ही संगीन हो गई । सादी डकैती इतनी मायने नहीं रखतीं जितनी कि डकैती कै साथ हुई हत्या मायने रखती है I तुम लोगों ने तीन तीन जानें ली है I"




"अब हो भी क्या सकता है I"



"राजीव......हमें फौरन यह शहर छोड देना चाहिए I अगर पुलिस के फेर में तुम पड गए तो सीधे फांसी के तख्ते पर हीं पहुचोगे l" अंजना के स्वर में भयपूर्ण कम्पन उभर आया था I

"तुम ठीक कहती हो, परन्तु अभी हम इस शहर को न छोडने पर मजबूर हैँ । सबसे पहले यह दौलत हम दोस्तों मे बटेगी । उसके बाद ही हम शहर से निकलेंगे ।" राजीव ने जवाब दिया



"तो जल्दी करो, देर मत करो ले जाओ दौलत क्रो , अपने दोस्तों कै पास । हिस्से....."



"नहीं अंजना अभी यह काम नहीं हो पाएगा सड़कों पर पुलिस ने जबरदस्त नाकैबन्दी कर ली होगी । जगह-जगह वाहनों की तलाशी ली जा रही होगी । ऐसे में इस दौलत को कहीँ ले जाना खतरे से खाली नहीं I" राजीव ने लम्बी सांस ली ।
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Re: वारदात

Post by 007 »

"दो-एक दिन में पुलिस की हलचल कम हो जाएगी तो ही यह काम हो सकेगा ।"



"एक काम करो ।"



“ बोलो । "


" अपने दोस्तों को यहा ले आओ । यहीँ पर बटवारा कर लो। काम जल्दी से निपट....... ।"



“नहीं अंजना I” राजीव ने नकारात्मक ढंग से गर्दन हिलाई-"वह मेरे दोस्त अवश्य हैं परन्तु नशे की लत के कारण मेँ उन पर पूरा भरोसा नहीं कर सकता । मैं उन्हें न तो यह घर दिखाना चाहता हूं ओर न ही तुमसे मिलवाना चाहता हू।”




"कुछ घंटों कै लिए मैं घर से बाहर चली जाऊंगी । तुम उन्हें लाकर दौलत का बंटवारा कर लो । आखिर घर दिखाने में क्या हर्ज है?” अजना ने उसे समझाने के भाव में कहा ।




"बहुत हर्ज हे घर दिखाने में I” राजीव ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा…"सारे हालात तुम्हारे सामने हैं , कभी भी हमेँ छिपने के लिए जरूरत पड सकती है । इस जगह के बारे मे…तुम्हारे घर के बारे में कोई नहीं जानता, जो कि हमारे लिए फायदे की बात है । पकडे जाने पर उन लोगों में से किसी ने मुह खोला तो मैं बचने के. लिए कहां छिपूंगा?"

बात अजना की समझे में आई ।


सिर हिलाकर वह चुप हो गई I



"दोपहर तो हो रही हैं ।" राजीव ने कहा-"मुझें भूख लग रही हे, तुम खान तैयार करो । उसके बाद आराम करूंगा। और शाम को हीं उनके पास जाऊगा I"



“तुम्हारे दोस्त बेसब्री के साथ तुम्हारे आने का इन्तजार कर रहे होंगे । वहां तुम्हें जल्दी जाना चाहिए । तुम्हारे देरी से जाने पर जाने वह क्या सोचेंगे I"




"कुछ नहीं सोचेंगे !" राजीव ने लापरंवाही से ’कहा-"तुम् खाना तैयार करो ।"




उसके बाद अंजना ने खाना तैयार किया। राजीव ने अंजना कै साथ ही खाना खाया फिर सो गया । अंजना डरी-डरी सी निगाहों से नोटों से भरे दोनों थैलों और लोहे कै काले ट्रंक को देखती ऱही ।



नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी । मन में कई तरह के बिचार गुड़मुड़ हो रहे थे । सिर्फ . एक ही बात उसे परेशान किए दे रही थी कि कहीँ पुलिस बैंक लूटने बातों`को ढूंढती हुई राजीव तक ना आ पहुंचे ।


राजीव को वह बहुत चाहने लगी थी । अब तो उसके बिना रहने की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी I



राजीव सारा दिन सोया रहा । शाम भी बीत गई ।


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फीनिश
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जब उसकी आंखें खुली तो रात के दस बज रहे थे । वह हड़बड़ाकर जल्दी से उठ बैठा ।


"तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?” राजीव ने अंजना से कहा । . ..




“ यूं ही ।"



"वह तीनों दिन भर मेरा इन्तजार करते रहे होंगे । मुझे वहां फौरन पहुंचना है ।" राजीव ने हाथ मुंह धोये, कपडे ठीक किए…"मैं रात क्रो ही वापस आ जाऊंगा या फिर सुबह तो हर हाल में आ ही जाऊंगा । तुम पैसों का ध्यान रखना ।"


जब उसकी आंखें खुली तो रात के दस बज रहे थे । वह हड़बड़ाकर जल्दी से उठ बैठा ।


"तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?” राजीव ने अंजना से कहा । . ..




“ यूं ही ।"



"वह तीनों दिन भर मेरा इन्तजार करते रहे होंगे । मुझे वहां फौरन पहुंचना है ।" राजीव ने हाथ मुंह धोये, कपडे ठीक किए…"मैं रात क्रो ही वापस आ जाऊंगा या फिर सुबह तो हर हाल में आ ही जाऊंगा । तुम पैसों का ध्यान रखना ।"


"अपना ध्यान् रखना I” अंजना ने अपनत्व से कहा I



"चिन्ता मत करो । खतरे का समय टल चुका हे I अब मुझे कुछ नहीं होगा I" राजीव ने मुस्कराकर अंजना का कंधा , थपथपाया और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया ।



अंजना ने भीतर से दरवाजा बन्द किया । दिन भर की वह थकी हुई थी । जरां भी आराम नहीं किया था । वेड पर लेटते ही उसे नींद आ गई I सोए-सोए भी सपने मेँ नोटो की गड्डियां और राजीव के साथ शादी का ख्याल घूमता रहा था I


भोर के उजाले कै साथ उसकी आंख खुली I रात में राजीव नहीँ आया तो अब आने ही वाला होगा । अंजना ने अच्छा सा नाश्ता तैयार कर लिया । नींद ले लेने कै बाद वह तनाव से मुक्त लग रही थी I


प्रसन्नत्ताभरी निगाहें थैलों और ट्रंक की तरफ घूम रही थी कि इस दौलत के कारण उसका भविष्य सुनहरी होगया है । राजीव के साथ… उसकी जिन्दगी बहुत अच्छी कटेगी। बैंक-डकैती उसने अवश्य डाली, परन्तु वह उसकी मजबूरी थी , वैसे मन का बुरा इन्मान नहीं हे वह I



नाश्ते का समयं बीत गया, राजीव नहीं आया । अंजना के मन में खलबली… सी मच गई कि राजीव क्यों नहीं आया I उसे तो अब तक आ जाना चाहिए था I वहां पर अपने दोस्तों कै पास उसे इतनी देर का तो काम ही था I फिर क्यों नहीं आया?



लंच का समय भी बीत गया I परन्तु राजीव नहीं आया ।


अजना को चिन्ता होने लगी । वह राजीव की तलाश में जाना चाहती थी, परन्तु डकैती के लाखो रुपयों को इस तरह अकेला छोडकर नहीं जाना चाहती थी I फिर सबसे बडी बात तो यह थी क्रि उसे मालूम नहीं था कि राजीव कहां पर अपने दोस्तों से मिलने गया है I आशा कि किरण एक ही जगह से जगमगा सकती थी कि हो सकता हैं, वह किसी कारणवश अपने फ्लेट पर चला गया हो I वहां पर मौजूद हो और वहां से उसके पास आने ही वाला हो I शाम कै चार बजते ही मन बुरे-बुरे अदेशों से टकराने लगा ।।


तब उससे रहा नहीं गया और दौलत को वहीँ पर छोड़कर उसने बाहर से ताला लगाया और राजीव की तलाश में निकल पडी । सीधा उसके फ्लैट पर पहुंची। राजीव के… फ्लैट का दरबाजा खुला था और बाहर दो-चार लोग खडे आपस मे बातें कर रहे थे । अंजना का दिल घक्क से रह गया कि कहीँ पुलिस ने तो राजीव को नहीं पकड लिया ।



दिल धाड़-धाड़ पसलियों से बजने लगा । वह करीब पहुची 1 राजीव के बारे में मालूम किया तो जैसे उसके सिर पर बिजली की गाज गिरी हो ।



मालूम हुआ कि रात क्रो वह अपने फ्लेट पर सोया था, इसी बीच किसी समय उसे दिल का तीव्र दौरा पड़ा और वह मर गया ।
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Re: वारदात

Post by 007 »

डाक्टर के मुताबिक दिल का दोरा रात मेँ ही कंभी पड़ा हे ।



. . अंजना ठगी -सी खडी रह गई । उसका दिल चीखचीखकर कहने लगा कि राजीव को दिल का दौरा नहीं पड़ा । कुछ और ही बात हे । कुछ गड़बड़ हे । यकीनन उसकी जान ली गई है । परन्तु कहती तो वह किसे कहती । कौन उसकी बात मानता । वेसे भी उसके तीनों दोस्त ओर चंद पडोसी राजीव की अर्थी सजाकर अन्तिम संस्कार कै लिए बीस मिनट पहले ही शमशान ले गए थे ।



अंजना को लगा वह लुट-पुट गई है । खूबसूरत जिदगी और प्यारा सा हमसफर साथी उसके हाथ से निकल गया ।



कांटेदार पौधे की तरह वह अकेली ही रह गई हे । पथराई-सी वह काफी देर तक वहीँ खडी रहीँ । चूंकि वहां के लोगों कै… लिए अनजान. थी, इसलिए कोई भी उससे बात करने नहीं आया । मस्तिष्क में अन्धकार से भरी आंधी चल रही थी । चेहरा जैसे निचुड़कर लटक-सा गया था । राजीव की मौत कै बारे में सुनकर बहुत वडा वज्रपात हुआ था उसपर । वह कांपती टांगों से पैदल ही'वापस चल पडी ।



वहा' पर खड़ा होना उसके लिए ना तो ठीक था, ना ही जरूरी था ।



उसका अपना प्यारा मर चुका था ।

इस फ्लैट पर जाने कितनी बार आकर वह राजीच से मिली, मीठी-मीठी बातें कीं-जाने क्या क्या सपने देखे । और अब .वह सब बातें, सपने ख्वाब बनकर रह गए थे ।



भयभीत कर देने वाला ख्वाब ।



दुख और तड़प की चादर में लिपटी अंजना पैदल ही आगे बढती रही । किसी बात का उसे होश नहीं था कि उसके करीब से कौन आ-जा रहा हे । वह सोच रही थी-सिर्फ राजीव के बारे -' सोच रही थी कि वह मरा कैसे? क्या हुआ होगा ? इस बात पर तो उसे एक प्रतिशत भी विश्वास नहीँ था कि राजीव को दिल का दौरा पड़ा हे । फिर ? राजीव अपने तीनों नशेडी दोस्तों को मिलने गया था, अवश्य वहां पर ही कोई ऐसी बात हुईं कि जो उसकी मौत का कारण बना । उसे पूरा बिश्वास था कि दौलत को लेकर ही उन चारों दोस्तों में कोई बात हुई हे और राजीव की मौत का कारण भी उसके वह दोस्त ही बने हैं ।




"जाने क्यों अंजना अपने इस बिचार से मन ही मन पूरी तरहं सहमत थी और मन ही मन राजीव के दोस्तों के प्रति उसका मन कठोर हो चुकां था । मजबूरी तो यह थी उसके लिए कि वह अपनी यह बात किसी से कह नहीँ सकती थी । पुलिस स्टेंशत नहीं जा सकती थी, क्योंकि बेक से लूटी दौलत उसके धर पर पडी थी । उसकी समझ में नहीँ आ रहा था कि क्या करे ।



राजीव का इस प्रकार चले जाना जैसे उसे अपना सांस घूटता महसूस हो रहा था । अब वह क्या करे? अब क्या होगा? राजीव था तो कितनी निश्चित और मुक्त थी वह, अब तो लगता था . जैसे मुसीबत का सारा पहाड उसके सिर पर ही टूटू पड़ा हो । वह निढाल सी हुई पडी थी ।



बैंक-लूट की दौलत का क्या करें? सजीव तो अब रहा नहीं । उसकै दोस्त हर हाल में दौलत को पाने की चेष्टा करेंगे । वह उन्हें दौलत दे भी देती परन्तु मन का यह शक, विश्वास से भी ज्यादा पक्का था कि राजीव को दिल का दौरा नहीं पड़ा बल्कि उसके दोस्तों ने ही उसे किसी प्रकार का नुक्सान पहुंचाया है । मन ही मन उसने दुढ़ निश्चय कर लिया था कि दौलत में से एक खोटा तिनका भी वह राजीव के दोस्तों कै हाय नहीं लगने देगी ।

दो घटे तक अजना पैदल ही चलती हुईं अपने घर जा पहुंची इतना चल लेने पर भी उसे जरा भी थकावट महसूस न हुई थी, अलबत्ता बिगड़ती हालत में कुछ सुधार ही आया था । थोडा-सा ठीक प्रकार से सोचने-समझने कै लायक हुईं।



घर मेँ पडी लाखों की दौलत अब उसे चुभने लगी थी।




वह अकेली थी ओर इतनी ज्यादा दौलत खुलेआम घर में नहीं होनी चाहिए थी । सुबह ही डकैती पडी थी, अगर किसी तरह पुलिस ने वहां से दौलत हासिल कर ली तो वह सीधी जेल ही जाएगी ।



राजीव तो हमेशा कै लिए ही बिछड गया, बाकी की जिन्दगी भी जेल में नर्क बन जाएगी I कोई भी जान पहचान वाला उससे मिलने आ सकता था, दौलत कै इतने बडे-बड़े थैलों और ट्रंक को कहां छिपाती फिरेगी ।




सबसे पहला काम उसे दौलत को छिपाने का करना था I दोलत क्रो छिपाने के पश्चात् ही वह कोई बात ढंग से सोचेगी कि अब आगे क्या कदम उठाना -हे I शाम के सात बज रहे थे ।



अंजना का दिमाग दौड लगाने वाले अन्दाज में सोचे जा रहा था I सबसे पहले वह दौलत को यहा से हटाना चाहती थी और उसने रास्ता भी खोज निकाला ।।


नोटों से भरे थैले में सौ सौ की पुरानी-सी गड्डी निकालकर अपने हैंडबैग में डाली और बाहरी दरवाजे बन्द करते हुए बाहर निकल गई। एक घंटे के बाद जब वह लौटी तो टैक्सी पर उसने चार फूलसाईज कै सूटकेस रखे थे । वह इतने बड़े थे कि तोड़-भोड़कर एक आंदगी को उसके भीतर ठूंसा जा सकता था ।




टेक्सी क्रो विदा किया और सूटकेसों को वह भीतर ले आईं I सुबह का उसने कुछ नहीं खाया था ।



राजीव कै लिए उसने जो नाश्ता बनाया था, वह ज्यों का त्यों पड़ा था । उसी नाश्ते से उसने अपना पेट भरा । तत्पश्चात् उसने सूटकेसों के मुह खोले और नोटों की गड्डियों को करीने से उनमें रखने लगी । ऐसा करते समय उसका मन भारी हो रहा था ।

राजीव का चेहरा आंखों के सामने नाच रहा था कि इस समय वह भी पास में होता तो कितना खुश होता ।


टैक्सी स्टेशन के ठीक सामने पार्किग में रूकती । रात के नौ बज रहे थे । टैक्सी के रूकते ही तीन चार कुली उस तरफ लपके ।



अंजना टैक्सी से उतरी तो करीब पहुच चुका कुली जल्दी से बोला।



"मेम साहब सामान उठायें?"



“हां !" अंजना टैक्सी ड्राइवर को पैसे देने के लिए पर्स खोलती हुई बोली-"दो सूटकेस डिग्गी में हैँ और दो ऊपर रखै हैँ । उन्हें उतारकर नीचे रखो I"



अंजना ने टेक्सी ड्राइवर को किराया दिया ।



भीतर ही भीतर उसका दिल जोरो से धडक रहा था । वह इस प्रकार सजी सवरी थी कि जैसे लम्बे सफर पर जा रही हो l परन्तु यह तो' वह ही जानती थी कि इन सूटकेसों में सुबह हुई बैंक-डकैती कां पैसा मौजूद हे

अगर पकडी गई तो फिऱ उसें कभी खुली हवा में सांस लेना भी नसीब नहीं होना है । क्योकि बैंक लूट में तीन हत्यायें मी शामिल थीं । वह खुद को कितना भी निर्दोष कहती, कानून ने फांसी का फंदा मुकर्रर कर देना था ।।



कुलियों ने सूटकेस नीचे उतार लिए थे ।।



टैक्सी वहां से आगे वढ़ गई ।
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